सरसों (Brassica juncea) एक महत्वपूर्ण तेल की फसल है, जिसका उपयोग खाद्य तेल, अचार, और विभिन्न खाद्य उत्पादों में किया जाता है।
उन्नत किस्मों का विकास किसान की उत्पादन क्षमता बढ़ाने, रोगों से सुरक्षा प्रदान करने, और कृषि की विभिन्न चुनौतियों से निपटने के लिए किया गया है।
इस लेख में हम भाकृअनुप-डीआरएमआर द्वारा विकसित सरसों की उन्नत किस्मों के बारे में जानकारी देंगे।
सरसों की यह किस्म अच्छा उत्पादन देती है। राधिका किस्म को दिल्ली, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, पंजाब और राजस्थान के कुछ हिस्से में लगने के लिए तैयार किया गया है।
मुख्य रूप से ये किस्म देर से बोई गई (सिंचित) स्थितियों के लिए विकसित की गयी है। इस किस्म के पौधे की ऊंचाई 191- 204 से.मी. तक होती है और इसकी औसत उत्पादकता 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हैं।
राधिका सरसों में तेल की मात्रा 40.7 % होती है। सरसों की इस किस्म में प्रति फली बीज की संख्या 14 बीज होती है। ये किस्म 120- 150 दिन में पक कर तैयार हो जाती है।
इस किस्म के विशेष गुण अल्टरनेरिया ब्लाइट, व्हाइट रस्ट, स्टेम रोट, डाउनी मिल्ड्यू और पाउडरी मिल्ड्यू और एफिड का निम्न संक्रमण है।
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ये भी एक सरसों की उन्नत किस्म है, इस किस्म को दिल्ली, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, पंजाब और राजस्थान के लिए विकसित किया गया है।
बृजराज किस्म सरसों के पौधे की ऊंचाई 188- 197 से.मी. तक होती है। इस किस्म में तेल की मात्रा: 37.6- 40.9 % तक हो सकती है। बृजराज में प्रति फली बीज की संख्या 14-18 बीज हो सकती है।
इस किस्म की फसल 120- 149 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। उत्पादन की क्षमता 16 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
बृजराज किस्म में अल्टरनेरिया ब्लाइट, व्हाइट रस्ट, स्टेम रोट, डाउनी मिल्ड्यू और पाउडरी मिल्ड्यू और एफिड का संक्रमण बहुत कम देखने को मिलता है।
इस किस्म का विकास मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, बिहार, जम्मू और कश्मीर, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, छत्तीसगढ़ और मणिपुर के लिए किया गया हैं।
इस किस्म की उत्पादकता 15 से 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हैं साथ ही इसमें तेल की मात्रा 34.6- 42.1 % हैं, जो की ऊपर दी गयी किस्मों की तुलना में अधिक हो सकती हैं।
एनआरसीएचबी-101 सरसों की ऊंचाई 170- 200 से.मी. तक हो सकती हैं। ये किस्म देर से बोई गई सिंचित और बारानी स्थितियों के लिए उपयुक्त हैं।
इस किस्म की फसल 105-135 दिन में पक कर तैयार हो जाती हैं और अच्छा उत्पादन देती हैं।
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इस किस्म का सबसे बड़ा गुण ये हैं कि ये किस्म अंकुर अवस्था में गर्मी सहिष्णु और नमी तनाव सहिष्णु हैं जिससे की इस किस्म का उत्पादन सबसे अधिक होता हैं।
इस किस्म को राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और जम्मू और कश्मीर आदि राज्यों के लिए तैयार किया गया हैं।
किस्म की औसत उत्पादकता 22-26 क्विंटल/हेक्टेयर है और साथ ही इसके बीज में तेल की मात्रा 40-42.5 % तक होती है।
डीआरएमआर 1165-40 किस्म के पौधे की ऊंचाई 177-196 से.मी. तक होती है। फसल को पकने के लिए 133 - 151 दिनों की आवश्यकता होती हैं।
इस किस्मों को सबसे अधिक उत्पादन देने वाली किस्म के नाम से जाना जाता हैं साथ ही इसमें तेल की मात्रा भी अधिक होती हैं।
सरसों की ये किस्म 137-153 दिन में पक कर तैयार हो जाती हैं और प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादकता 22-27 क्विंटल प्राप्त होता हैं।
इस किस्म का विकास समय पर बोई गई सिंचित स्थिति के लिए किया गया हैं इस किस्म की बुवाई दिल्ली, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, पंजाब और राजस्थान के हिस्सों में की जा सकती हैं साथ ही इसके पौधे की ऊंचाई 180 - 210 से.मी. तक चली जाती हैं।
फली में दानों की संख्या 14-18 बीज तक हो सकती हैं। इस किस्म को मोटे बीज वाली, अधिक तेल वाली और अधिक उपज देने वाली किस्म के नाम से जाना जाता हैं।
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उन्नत सरसों की किस्में किसानों को बेहतर उत्पादन, रोग प्रतिरोधक क्षमता, और कृषि की विभिन्न चुनौतियों से निपटने में मदद करती हैं।
इन किस्मों को अपनाकर किसान अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं और स्थायी कृषि के लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं। उचित कृषि प्रथाओं के साथ इन उन्नत किस्मों का उपयोग करने से सरसों की खेती अधिक लाभकारी बन सकती है।
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