चीकू, जिसे सपोटा भी कहा जाता है, एक उष्णकटिबंधीय फल है जिसका वैज्ञानिक नाम Manilkara zapota है। यह फल भारत, मैक्सिको, थाईलैंड और अन्य उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में व्यापक रूप से उगाया जाता है।
चीकू के पेड़ सदाबहार होते हैं और इसके फल गोलाकार या अंडाकार होते हैं, जिनकी बाहरी सतह खुरदरी और भूरे रंग की होती है। फल का गूदा मुलायम, मीठा, और हल्का दानेदार होता है, जिसमें एक विशेष सुगंध होती है।
चीकू की खेती विशेष रूप से गर्म और आर्द्र जलवायु में अच्छी होती है। यह पेड़ गर्मियों में अच्छे से फल देता है और थोड़ी बहुत सूखी परिस्थितियों को भी सहन कर सकता है। चीकू के पेड़ की गहराई तक जाने वाली जड़ें इसे जल की कमी के बावजूद फलने में मदद करती हैं।
चीकू की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु उपयुक्त होती है। चीकू के पेड़ को गर्म और आर्द्र मौसम की आवश्यकता होती है (10°C से 38°C के बीच)। सूखे की परिस्थितियों में भी यह पेड़ सहनशील होता है।
चीकू की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी की जल निकासी अच्छी होनी चाहिए। इसकी खेती के लिए मिट्टी में अच्छी उपजाऊ शक्ति होनी चाहिए जिससे की पौधे और फलों का विकास अच्छे से हो सकें।
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मानसून की शुरुआत में पौधारोपण सामान्यत किया जाता है और इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि कलम जोड़ जमीन के स्तर से कम से कम 15 से.मी. ऊपर हो।
पौधारोपण के बाद, जड़ों के चारों ओर की मिट्टी को अच्छी तरह से दबा देना चाहिए और कलम को दो मजबूत खूंटों और एक रस्सी का उपयोग करके बांधना चाहिए।
कलमों को पौधों और पंक्तियों के बीच 7-8 मीटर की दूरी पर लगाना चाहिए। पौधों को ठीक से 3-4 वर्षों तक प्रशिक्षित करना चाहिए।
सबसे निचली शाखाओं को जमीन से 60 से.मी. से 1 मीटर की ऊंचाई तक हटा देना चाहिए। बेहतर फल सेट और उपज के लिए, एक से अधिक किस्मों या पेड़ों का रोपण करने की सलाह दी जाती है।
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पौधों को सही पोषण देने के लिए गोबर की खाद, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की सही मात्रा में आवश्यकता होती है।
प्रत्येक पौधे को सालाना 25 किलोग्राम गोबर की खाद और 1.5 किलोग्राम नाइट्रोजन, 0.5 किलोग्राम फॉस्फोरस, और 0.5 किलोग्राम पोटाश देना चाहिए। यह मात्रा प्रति वर्ष धीरे-धीरे बढ़ाई जाती है।
पोधों के रोपाई के एक वर्ष बाद 4 – 5 टोकरी गोबर की खाद , 2 – 3 कि.ग्रा. अरण्डी / करंज की खली एवं 50:25:25 ग्रा. एन.पी.के. प्रति वर्ष डालते रहना चाहिए।
यह मात्रा 10 वर्ष तक बढ़ाते रहना चाहिए तत्पश्चात 500:250:250 ग्रा. एन.पी.के. की मात्रा प्रत्येक वर्ष देना चाहिए।
FYM की पूरी खुराक और रासायनिक उर्वरकों की आधी मात्रा मानसून के मौसम की शुरुआत (अप्रैल-मई) में और शेष आधी मात्रा मानसून के अंत (अक्टूबर) में डालनी चाहिए।
कमी के लक्षण दिखाई देने पर, ZnSO4 और FeSO4 @ 0.5% का पत्तियों पर छिड़काव करने की सलाह दी जाती है।
गर्मियों में सप्ताह में एक बार सिंचाई करें। बरसात के मौसम में सिंचाई की जरुरत नहीं पड़ती है, लेकिन सर्दी के मौसम में 15 दिन पर सिंचाई करने से पौधों में फल तथा फूल अच्छे लगते है।
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तुड़ाई की विधि: फलों को हल्के हाथों से या कैंची से काटकर निकाला जाता है ताकि पौधे को कोई नुकसान न हो।
एक परिपक्व चीकू का पेड़ प्रति वर्ष 1000 से 1500 फल तक दे सकता है। प्रति हेक्टेयर 20-25 टन उपज प्राप्त हो सकती है।