कृषि कानूनों के खि़लाफ़ हर एक मोर्चे पर लड़ाई लड़ेंगे, मुख्यमंत्री ने किसान यूनियनों को दिया भरोसा

By: MeriKheti
Published on: 29-Sep-2020

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने मंगलवार को भरोसा दिया है कि उनकी सरकार इन काले और कठिन समय में मुज़ाहरा कर रहे किसानों की पूर्ण हिमायत करेगी। नए कृषि कानूनों के खि़लाफ़ कानूनी हल समेत सभी संभव कदम उठाएगी, जिसमें पंजाब विधान सभा का एक विशेष सत्र भी बुलाया जाना शामिल है, जिसके दौरान अगली रणनीति बनाने सम्बन्धी गहराई से विचार-विमर्श होगा। मुख्यमंत्री ने 31 किसान जत्थेबंदियों के नुमायंदों के साथ इस मुद्दे पर उनके विचार जानने के लिए बुलाई गई मीटिंग की अध्यक्षता करते हुए कहा कि वह आज अपनी कानूनी माहिरों की टीम के साथ इस मुद्दे को गंभीरता से विचारेंगे और आगे उठाए जाने वाले कदमों को अंतिम रूप देंगे, जिनमें इन कृषि कानूनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देना शामिल होगा। इस मौके पर किसानों के नुमायंदों के अलावा कुल हिंद कांग्रेस के जनरल सचिव और पंजाब मामलों संबंधी इंचार्ज हरीश रावत समेत कैबिनेट मंत्री सुखजिन्दर सिंह रंधावा, गुरप्रीत सिंह कांगड़, भारत भूषण आशु और विधायक राणा गुरजीत सिंह, पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रधान सुनील जाखड़ और एडवोकेट जनरल अतुल नन्दा भी मौजूद थे।

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मुख्यमंत्री ने किसान नेताओं को भरोसा देते हुए कहा, ‘‘हम केंद्र सरकार द्वारा राज्य के संघीय और संवैधानिक अधिकारों पर किए गए हमलो का जवाब देने के लिए हर मुमकिन कदम उठाएंगे और किसानों के हितों के लिए लड़ेंगे।’’ उन्होंने आगे कहा कि यदि कानूनी माहिरों की यह सलाह होती है कि केंद्रीय कानूनों का मुकाबला करने के लिए प्रांतीय कानूनों में संशोधन किया जाए, तो ऐसा करने के लिए तुरंत ही विधान सभा का विशेष सत्र बुलाया जाएगा। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि यदि मौजूदा हालात में सबसे सही रास्ता यही है तो सरकार को विधान सभा सत्र बुलाने पर कोई ऐतराज़ नहीं है, परन्तु शिरोमणि अकाली दल प्रधान सुखबीर सिंह बादल द्वारा विधान सभा के विशेष सत्र की माँग को हलके स्तर की ड्रामेबाज़ी करार देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि पहले तो महीनों तक अकालियों ने केंद्रीय कानूनों की खुलकर हिमायत की थी। उन्होंने प्रश्न के लहज़े में पूछा कि पिछले सत्र के दौरान अकाली कहाँ थे और क्यों सुखबीर ने सर्वदलीय मीटिंग में अन्य पक्षों की तरह हिमायत नहीं की। कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने अकाली दल द्वारा अपने संकुचित राजनैतिक हितों की पूर्ति के लिए राज्य के किसानों के हित बड़े कॉर्पोरेट घरानों के आगे कुर्बान करने की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि अकाली विधायकों ने विधान सभा सत्र से दूरी बनाए रखने का फ़ैसला किया था, जिसके दौरान कृषि बिलों के खि़लाफ़ प्रस्ताव पास हुआ था। उन्होंने आगे कहा कि यह साफ़ हो चुका है कि सुखबीर बादल के नेतृत्व में अकालियों ने हमेशा से ही कृषि अध्यादेशों की हिमायत की है और सिफऱ् तभी अपने कदम पिछे की तरफ़ खिंचे जब पंजाब में किसानों के भारी विरोध को देखते हुए अकाली बुरी तरह से फंस गए। उन्होंने सवाल किया कि यदि अकालियों को किसानों के हितों की इतनी ही चिंता थी तो हरसिमरत बादल ने उस समय केंद्रीय कैबिनेट से इस्तीफ़ा क्यों नहीं दिया जिस समय केंद्र सरकार ने कृषि अध्यादेश लाए गए थे। यह साफ़ करते हुए कि केंद्र सरकार को ऐसे कानून बनाने का कोई हक ही नहीं है, मुख्यमंत्री ने कहा कि यह कानून बनाना संविधान का उल्लंघन और संघीय ढांचे पर हमला है। उन्होंने आगे कहा कि उनकी सरकार किसानों की चिंताओं को बखूबी समझती है और किसानी को तबाह करने के राह डालने वाले इन काले कानूनों को रद्द करने के लिए जो भी बना वह करेगी।

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मुख्यमंत्री ने और जानकारी दी कि यह लड़ाई कई मोर्चों पर लड़ी जाएगी और बीते दिनों कुल हिंद कांग्रेस के सचिव हरीश रावत द्वारा किए गए एलान के मुताबिक हस्ताक्षर मुहिम के अलावा राज्य की सभी पंचायतों को विनती की जाएगी कि कृषि कानूनों के खि़लाफ़ प्रस्ताव पास किए जाएँ, जिनको केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। यह ऐलान करते हुए कि उनकी सरकार और पंजाब कांग्रेस इस मुश्किल घड़ी में किसानों के साथ है, कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि वह अगली कार्यवाही के लिए कानूनी माहिरों के साथ किसान जत्थेबंदियों द्वारा दिए गए सुझावों सम्बन्धी विचार करेंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर यह नए कानून लागू हो गए तो इसके साथ ही कृषि तबाह हो जाएगी। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘आने वाले समय के दौरान भारत सरकार द्वारा इन काले कानूनों के बाद न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) और एफ.सी.आई. का ख़ात्मा किया जाएगा, जिससे पिछले काफ़ी समय से चली आ रही और लाभप्रद साबित हुई खऱीद और मंडीकरण प्रणाली का अंत हो जाएगा। उन्होंने आगे बताया कि जो मंडियां बीते 60 वर्षों से होंद में हैं और अच्छा काम कर रही हैं, उनका ख़ात्मा हो जाएगा और एम.एस.पी. के अंत के साथ गेहूँ भी मक्का की तरह ही बिकेगी, भाव इसकी कीमतें एम.एस.पी. से काफ़ी कम होंगी। कृषि को बचाने के लिए इन काले कानूनों के खि़लाफ़ लड़ाई लडऩे की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि इससे न सिफऱ् किसान बल्कि पूरा मुल्क तबाह हो जाएगा। मुख्यमंत्री ने बताया कि उन्होंने बिल के पास होने से पहले ही प्रधानमंत्री को तीन बार पत्र लिखकर उनसे अपील की कि इन बिलों पर आगे न बढ़ा जाए, क्योंकि इससे समूचे मुल्क में बहुत सी समस्याएँ पैदा होंगी, परन्तु प्रधानमंत्री ने कोई जवाब नहीं दिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि यहाँ तक कि कोविड के कठिन समय के दौरान पराली जलाने को रोकने के लिए बोनस देने संबंधी उनकी विनती को नहीं सुना गया। उन्होंने कहा कि भारत सरकार द्वारा अपने स्तर पर किसानों की रक्षा करने संबंधी भरोसा नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि पिछले आठ महीनों में केंद्र सरकार से जी.एस.टी. का मुआवज़ा भी प्राप्त नहीं हुआ है। कृषि बिलों के विरुद्ध किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होने का वायदा करते हुए श्री जाखड़ ने कहा कि वह इसको राजनैतिक रंगत दिए जाने के बिना किसानों के रोष प्रदर्शनों में शामिल होने के लिए पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षता का पद छोडऩे के लिए भी तैयार हैं। हालाँकि, उन्होंने भरोसा ज़ाहिर करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री केंद्र सरकार द्वारा किसान भाईचारे पर किए गए हमले का मुकाबला करने के लिए पानी के मुद्दे पर लिए गए दिलेराना फ़ैसले की तरह इसका भी रास्ता ढूँढ लेंगे। उन्होंने कहा, ‘‘उन्होंने (केंद्र) किसानों को कलम के साथ मारा है और हमें भी उनको कलम से मारने के लिए रास्ता ढूँढना होगा।’’ उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा, ‘‘कलम से मारा है, हम कलम से बचाएंगे।’’

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इससे पहले विभिन्न किसान नेताओं ने मुख्यमंत्री को केंद्रीय एक्टों को कानूनी तौर पर चुनौती देने की अपील की और राज्य में अडानी के सायलोज़ का निर्माण रोकने समेत किसानों के हितों के लिए बनते कदम उठाने के लिए कहा। इन सभी नेताओं ने तबाह करने वाले कानूनों से किसानों को बचाने के लिए मुख्यमंत्री में विश्वास प्रकट किया। भारतीय किसान यूनियन राजेवाल के प्रधान बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि यह नए कानून किसानों, आढ़तियों, कृषि मज़दूरों और मंडी मुलाजि़मों को तबाह करके रख देंगे और लाखों लोग रोजग़ार से वंचित हो जाएंगे, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने कहा कि यह कानून दो तरह की मंडियों की स्थापना के लिए रास्ता साफ करेगा, जहाँ एक मंडी टैक्स वाली और दूसरी मंडी प्राईवेट लोगों के लिए बिना टैक्स से होगी जो आखिऱ में सरकारी मंडियों को तबाह कर देगी और कॉर्पोरेट का एकाधिकार और किसानों का शोषण शुरू हो जाएगा। उन्होंने पंजाब और यहाँ के किसानों की रक्षा के लिए विधान सभा के विशेष सत्र के द्वारा प्रांतीय कानून पास करने के हक की बात की। भारतीय किसान यूनियन सिद्धूपुर के नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने मुख्यमंत्री को केंद्रीय कानूनों का मुकाबला करने के लिए एक कानून पास करने के लिए विधान सभा का विशेष सत्र बुलाने की अपील की, जबकि क्रांतिकारी किसान यूनियन पंजाब के प्रमुख डॉ. दर्शन पाल ने मुख्यमंत्री से अपील की कि कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रधान सोनियां गांधी के निर्देशों की रेखा पर कानून माहिरों के साथ विचार-विमर्श किया जाए, जिससे राज्य नया कानून बना सके। भारतीय किसान यूनियन एकता के बूटा सिंह और झंडा सिंह ने कहा कि यह लड़ाई केंद्र सरकार के तबाह करने वाले बिलों से किसानों और राज्य को बचाने की लड़ाई है, क्योंकि केंद्र सरकार का एकमात्र मकसद प्राईवेट कॉर्पोरेटों की मदद करना है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि कृषि तबाह हो गई तो पूरा मुल्क ही तबाह हो जाएगा। इस मौके पर उपस्थित किसान जत्थेबंदियों के नुमायंदों में लोकतांत्रिक किसान सभा पंजाब के जनरल सचिव कुलवंत सिंह संधू, भारतीय किसान यूनियन एकता डकौंदा के जनरल सचिव जगमोहन सिंह पटियाला, कुल हिंद किसान सभा पंजाब के जनरल सचिव बलदेव सिंह नेहालगढ़, कामगार किसान यूनियन के प्रधान निरभय सिंह ढुड्डीके, पंजाब किसान यूनियन के प्रधान रुलदू सिंह मानसा, कुल हिंद किसान सभा पंजाब के जनरल सचिव मेजर सिंह पुन्नावाल, किसान संघर्ष कमेटी पंजाब के प्रधान इन्दरजीत सिंह कोट बूढ़ा, आज़ाद किसान संघर्ष कमेटी पंजाब के जनरल सचिव निर्वैल सिंह डालेके, जय किसान आंदोलन पंजाब के गुरबख़्श सिंह बरनाला, किसान मज़दूर संघर्ष कमेटी के प्रधान सतनाम सिंह पन्नू, किसान संघर्ष कमेटी पंजाब के प्रधान कंवलप्रीत सिंह पन्नू, भारतीय किसान यूनियन एकता के प्रधान जोगिन्दर सिंह उगराहां, भारतीय किसान यूनियन के प्रधान सुरजीत सिंह फूल, भारतीय किसान यूनियन सिद्धूपुर के प्रधान जगजीत सिंह डल्लेवाल, भारतीय किसान यूनियन कादियाँ के प्रधान हरमीत सिंह, भारतीय किसान यूनियन राजेवाल के प्रधान बलबीर सिंह राजेवाल, भारतीय किसान यूनियन लक्खोवाल के जनरल सचिव हरिन्दर सिंह लक्खोवाल, भारतीय किसान यूनियन दोआबा के जनरल सचिव सतनाम सिंह साहनी, भारतीय किसान यूनियन मानसा के प्रधान बोघ सिंह मानसा, माझा किसान कमेटी के बलविन्दर सिंह औलख, इंडियन फार्मरज़ एसोसिएशन के प्रधान सतनाम सिंह बहरू, भारतीय किसान मंच के प्रधान बूटा सिंह शादीपुर, लोग भलाई इन्साफ वैलफेयर सोसाइटी के बलदेव सिंह सिरसा, दोआबा किसान कमेटी के जंगबीर सिंह टांडा, दोआबा किसान संघर्ष कमेटी के मुकेश चंद्र, गन्ना संघर्ष कमेटी दसूहा के सुखपाल सिंह, आज़ाद किसान कमेटी दोआबा के हरपाल सिंह, भारतीय किसान यूनियन (मान) के राष्ट्रीय प्रधान भुपिन्दर सिंह मान और इंटरनेशनल पंथक दल किसान विंग के कृपाल सिंह नत्थूवाला उपस्थित थे।

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