गेहूं
खरपतवार नियंत्रण हेतु बोआई के 30-35 दिनों बाद सल्फोसल्फ्यूरान एवं मैटसल्फ्यूरान के मिश्रण वाली दवा का प्रयोग करें ताकि संकरी एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार एक साथ मर जाएं। अन्य कई दवाएं आती हैं और सभी की डोज एक एकड़ के हिसाब से बनती है। गेहूं की पछेती किस्मों की बिजाई अगेती आलू के खाली खेतों में करें। इसके लिए हलना, डब्लूयआर 544 पूसा गोल्ड जैसी किस्मों को लगाएं।
जौ
कम समय में पकने वाली किस्मों की बिाजाई भी कम पानी वाले क्षेत्रों में की जा सकती है।
चना
जिन खेतों में बोरोन तथा मोलिब्डेनम की कमी हो वहाँ 10 किलोग्राम बोरेक्स पाउडर व 10 किलोग्राम अमोनियम मोलिब्डेट प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करें।
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राई-सरसों
कीट-नियंत्रण: लाही (अहिल्लवी) से इस फसल को काफी नुकसान होता है | रोकथाम हेतु मेटासिसटोक्स की 1 लीटर दवा 800 लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिनों के अंतराल पर 2-3 छिड़काव करनी चाहिए |
आलू
आलू लाही रोग के नियंत्रण हेतु रोपाई के 45 दिन बाद फसल पर 0.1 टक्के रोगर या मेटासिस्टोक्स का घोल 2-3 बार 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिये |
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पिछेती आलू में दिसम्बर तथा जनवरी माह में अधिक ठंड की आशंका होने पर फसल की सिंचाई कर देनी चाहिये | पाले से बचाव के लिए खेत में नमी बरकरार रहनी चाहिए।
आम
मधुआ कीट एवं पाउडरी मिल्ड्यू के नियंत्रण के लिए मंजर निकलने के समय बैविस्टिन या कैराथेन (0.2 प्रतिशत) तथा मोनोक्रोटोफ़ॉस या इमिडाक्लोरोपिड (0.05 प्रतिशत) का पहला रक्षात्मक छिड़काव करें |
लीची
मंजरी आने के 30 दिन पहले पौधों पर जिंक सल्फेट (2 ग्रा./लीटर) के घोल का पहला एवं 15 दिन बाद दूसरा छिड़काव करने से मंजरी एवं फूल अच्छे होते हैं |
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पपीता
वृक्षारोपण के छ:महीने के बाद प्रति पौधा उर्वरक देना चाहिए | नाईट्रोजन – 150 -200 ग्राम, फ़ॉस्फोरस 200-250 ग्राम, पोटाशियम 100-150 ग्राम | तीनों उर्वरक 2-3 खुराक में वृक्ष लगाने से पहले फूल आने के समय तथा फल लगने के समय दे देना चाहिए |
अमरुद
फल-मक्खी के नियंत्रण के लिए साइपरमेथ्रिन 2.0 मि.ली./ली. या मोनोक्रोटोफ़ॉस 1.5 मिली./ली. की दर से पानी में घोल बनाकर फल परिपक्कता के पूर्व 10 दिनों के अंतर पर 2-3 छिड़काव करें |
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आंवला
तुड़ाई उपरांत फलों को डाइफोलेटान (0.15 प्रतिशत), डाइथेन एम – 45 या बैवेस्टीन (0.1 प्रतिशत)से उपचारित करके भण्डारित करने से रोग की रोकथाम की जा सकती है |
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