आगामी 27 सालों में उर्वरकों के उत्सर्जन में हो सकती है भारी कटौती

आगामी 27 सालों में उर्वरकों के उत्सर्जन में हो सकती है भारी कटौती

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इन दिनों दुनिया भर में प्रदूषण एक बड़ी समस्या बनी हुई है। जो ग्लोबल वार्मिंग की मुख्य वजह है। प्रदूषण कई चीजों से फैलता है जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है। इन दिनों अन्य प्रदूषणों के साथ-साथ उर्वरक प्रदूषण भी चर्चा में है। इन दिनों पूरी दुनिया के किसान भाई खेती में उत्पादन बढ़ाने के लिए नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का प्रयोग करते हैं जो पर्यावरण और जैवविविधता को नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे में खेती में इनके प्रयोग को नियंत्रित करना जरूरी हो गया है।

हाल ही में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक शोध में पाया है कि आगामी 27 वर्षों में साल 2050 तक उर्वरकों से होने वाले उत्सर्जन को 80 फीसदी तक कम किया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने कार्बन उत्सर्जन की बारीकी से गणना की है। शोधकर्ताओं ने बताया है कि खेती में नाइट्रोजन के उपयोग से होने वाला उत्सर्जन वैश्विक स्तर पर होने वाले उत्सर्जन का 5 फीसदी है।

यह ध्यान देने योग्य बात है कि वैश्विक स्तर पर कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का धड़ल्ले से उपयोग किया जा रहा है, जो ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण बन रहा है।

हर साल रासायनिक उर्वरकों से हो रहा है इतना उत्सर्जन

वैज्ञानिकों ने अपने शोध में बताया है कि हर साल खाद और सिंथेटिक उर्वरक के प्रयोग से 260 करोड़ टन उत्सर्जन हो रहा है। यह उत्सर्जन धरती पर विमानन और शिपिंग कंपनियों के द्वारा किए जा रहे उत्सर्जन से कहीं ज्यादा है। इसको देखते हुए वैज्ञानिक किसानों से वैकल्पिक उर्वरकों के उपयोग की अपील कर रहे हैं क्योंकि लंबी अवधि में यह बेहद हानिकारक है।

उत्सर्जन में कमी लाने के लिए किसानों को करना होगा जागरुख

शोधकर्ताओं ने कहा है कि रासायनिक उर्वरक के दुष्परिणामों को किसानों के समक्ष रखना एक बेहद आसान और अच्छा तरीका है। ऐसा करके उत्सर्जन में कमी लाई जा सकती है। वैज्ञानिकों ने दुनिया में उपयोग किए जाने वाले रासायनिक उर्वरकों का अध्ययन किया है। जिसके बाद उन्होंने अपने शोध में कहा है कि यदि दुनिया भर में यूरिया को अमोनियम नाइट्रेट से बदल दिया जाए तो इससे उत्सर्जन में 20 से 30 फीसद तक की कमी लाई जा सकती है। फिलहाल यूरिया सबसे ज्यादा उत्सर्जन करने वाले उर्वरकों में गिना जाता है।

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वैज्ञानिकों का अब भी मानना है कि वैश्विक खाद्य जरूरतों को ध्यान में रखते हुए कार्बन उत्सर्जन को कम करना एक बड़ी चुनौती है। फिर भी इस समस्या के समाधान के लिए लगातार शोध करने की जरूरत है, साथ ही नई तकनीकों की खोज की जरूरत है। जिससे भविष्य में उत्सर्जन को बेहद निचले इतर पर लाया जा सके।

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