संकट में फ्लोर मिल कारोबार | Flour mill business in crisis

संकट में फ्लोर मिल कारोबार

0

इसबार आटा,सूजी मैदा जैसे उत्पादों को बनाने वाले कारोबारी परेशान हैं। कारण यह है कि भण्डारण के लिए यही समय उपयुक्त होता है। ज्यादातर कारोबारी यह तय नहीं कर पा रहे हैं आखिर आने वाले महीनों में क्या होने वाला है।मिलों में उत्पादन में 30 से 40 फीसदी उत्पादन प्रभावित हुआ है। इधर चुनिंदा कर्मचारियों को मिलों में ही कोरंटाइन करके रखना पड़ रहा है ताकि लोगों को आटे की आपूर्ति हो सके। माल के तैयार होने से लेकर पैकिंग मैटेरियल और उसके गंतब्यों तक पहुंचना भी दुश्कर हो गया है। इसके अलावा सरकारी दखल के चलते मिल संचालक खासे परेशान हैं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार देश में तकरीबन ढाई हजार मिल हैं। इनमें करीब ढाई करोड टन आटा, सूजी और मैदा तैयार करती हैं। इसमें से आधी खपता बेकरी, बिस्किट, ब्रैड, पाव आदि प्रसंस्कृत उत्पादों में होती है। लॉकाडाउन के चलते प्रसंस्करण इकाइयां बंद प्राय हैं। इनमें नतो माल की खपत है न ही पुराने भुगतान हो पा रहे हैं। इन हालात में नए सत्र में मिलों में आटे के आलवा कुछ भी नहीं बन पा रहा। मथुरा स्थित अलंकार मिल के संचालक प्रतुल गर्ग की मानें तो मिलों के संचालन का पूरा मैकेनिज्म है। आटा तो सामान्य चक्कियां पर भी बहुतायत में बन जाता है लेकिन सूजी और मैदा वहां नहीं बन पाता। मिलें देश में संकट की घड़ी में पीछे नहीं हट रही हैं लेकिन माल की आवाजाही के अलावा उसके बिकने के ठिकानों पर तालाबंदी ने काम को ठप कर दिया है। वह कहते हैं कि किसी मिल का बिस्क्टि उद्योग में माल जाता है। किसी का रिटेल मार्केट में तो किसी का मंडियों में जाता है। लाकडाउन के चलते पूरा तंत्र चरमराया हुआ हैं। अब लेवल मिलों के पास बेहद थोड़ा काम शासन प्रशासन की मांग के अनुरूप आटा बनाने का रह गया है। इन हालात में उद्योगों को पूरी रफ्तार से संचा​लित नहीं किया जा सकता।

मिलों में आसान है सोस्यल डिस्टेंसिंग

मिल संचालकों की मानें तो उनके यहां सोस्यल डिस्टेंसिंग का पालन बेहद आसान है। मिलों में किसानों के माल की एक तौल धर्मकाटों पर होती है। चंद मिनटों में किसान का माल तुलकर काम खत्म हो जाता है जबकि मंडियों में किसानों को घण्टों इंतजार करना होता है। ऐसे में सरकार को मिलों को कुछ सहूलियत देनी चाहिए ताकि वह किसानों से सीधे माल खरीद सकें और आम जरूरत का आटा आदि बाजार में आसानी से उतार सकें। इसके अलावा यहां बोरों आदि की आवश्यक्ता भी किसानों को नहीं होती। किसी भी व्यक्ति से ज्यादा संपर्क भी नहीं होता।

ये भी पढ़ें: मथुरा जनपद में बंद पड़ी छाता चीनी मिल को योगी सरकार ने फिर से शुरू किया

मैदा नहीं होती खराब

मिलरों की मानें तो आटा एवं सूजी जल्दी खराब हो जाते हैं जबकि मैदा लम्बे समय तक खराब नहीं होती। इसका कारण उसके पार्टिकल्स का बारीक होना है। बड़ी मिलों को केवल आटे के भरोसे नहीं चलाया जा सकता । इधर लॉकडाउन के चलते मैदा एवं सूजी की खपत बिल्कुल नहीं रही है।

भरे हुए हैं गोदाम

मार्च 2020 तक एफसीआई के गोदामों में 275 लाख टन गेहूं रखा है जोकि पिछले साल के 239 लाख टन के सापेक्ष काफी अधिक है। इधर इस बार लम्बी ठंड के चलते गेहं की फसल भी अच्छी आई है।

Leave A Reply

Your email address will not be published.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More