जानें उत्तर प्रदेश में उगाई जाने वाली धान की इन दस उन्नत किस्मों की खासियत और उत्पादन के बारे में

जानें उत्तर प्रदेश में उगाई जाने वाली धान की इन दस उन्नत किस्मों की खासियत और उत्पादन के बारे में

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आज हम आपको धान की उन दस उन्नत प्रजातियों के विषय में बताने जा रहे हैं। जो कि उत्तर प्रदेश में सामान्यतः उगाई जाती हैं। उत्तर प्रदेश में धान की खेती काफी बड़े स्तर पर की जाती है। अब हम बात करेंगे इन 10 उन्नत किस्मों में से हर एक की अपनी प्रमुख विशेषताओं और फायदों के बारे में।

बतादें, कि धान की इन उन्नत किस्मों को उत्तर प्रदेश में किसानों द्वारा उनकी उच्च उपज क्षमता, कीटों एवं रोगों के लिए अच्छे प्रतिरोध साथ ही उत्कृष्ट अनाज की गुणवत्ता की वजह से पसंद किया जाता है। किसी विशेष प्रजाति का चयन किसानों की प्रमुख जरूरतों और प्राथमिकताओं पर आश्रित रहता है।

चावल का प्रति हेक्टेयर उत्पादन सिंचाई सुविधाओं, उर्वरक उपयोग मृदा के प्रकार, मौसम, कीट प्रबंधन बाकी प्रबंधन कार्य जैसे विभिन्न कारकों के आधार पर अलग हो सकता है। हालांकि, यहां धान की 10 उन्नत प्रजाति हैं। तो वहीं उनकी अनुमानित प्रति हेक्टेयर उत्पादन, जो समान्तयः उत्तर प्रदेश में बोई जाती हैं।

पंत धान 10: 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह एक और संकर किस्म है, जो कि उत्तर प्रदेश में काफी लोकप्रिय है। यह अपनी उच्च उपज क्षमता, कीटों एवं रोगों के लिए अच्छे प्रतिरोध और खाना पकाने की अच्छी गुणवत्ता हेतु मशहूर है। यह एक लघु समयावधि की फसल भी है, जो कि तकरीबन 115-120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है।

पीबी1: 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह चावल की एक ऐसी किस्म है, जिसको उत्तर प्रदेश समेत उत्तर भारत में बड़े पैमाने पर उत्पादित किया जाता है। यह अपनी उच्च उपज क्षमता, कीटों एवं रोगों के प्रति अच्छे प्रतिरोध और उत्कृष्ट अनाज की गुणवत्ता हेतु जाना जाता है। यह अति शीघ्र पकने वाली फसल भी है, जिसे पकने में लगभग 110-115 दिन लगते हैं।

एचयूआर 105: 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह चावल की एक संकर किस्म है, जो उत्तर प्रदेश में काफी मशहूर है। यह अपनी उच्च उपज क्षमता, कीटों और रोगों के लिए अच्छे प्रतिरोध और खाना पकाने की अच्छी गुणवत्ता हेतु जाना जाता है। यह एक छोटी अवधि की फसल भी है, जो तकरीबन 115-120 दिनों में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है।

एनडीआर 97: 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह चावल की एक गैर-बासमती किस्म है, जो आमतौर पर उत्तर प्रदेश में उगाई जाती है। यह अपनी उच्च उपज क्षमता, कीटों और रोगों के लिए अच्छे प्रतिरोध और अनाज की अच्छी गुणवत्ता के लिए काफी प्रसिद्ध है। यह पकने वाली फसल भी है, जिसके पकने में तकरीबन 115-120 दिन लग जाते हैं।

पूसा बासमती 1121: 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह बासमती चावल की एक बेहतरीन पैदावार देने वाली किस्म है, जो अपने लंबे एवं पतले दानों, सुखद सुगंध व उत्कृष्ट खाना पकाने की गुणवत्ता हेतु जानी जाती है। यह कीटों एवं रोगों के लिए भी प्रतिरोधी मानी जाती है। इसकी खेती के लिए अन्य किस्मों की तुलना में कम पानी की जरूरत होती है। इसकी बाजार में काफी मांग है। साथ ही, इसका इस्तेमाल सामान्य तौर पर बिरयानी बनाने के लिए किया जाता है।

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पूसा सुगंध 5: 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह एक सुगंधित चावल की किस्म है, जो उत्तर प्रदेश के अंदर व्यापक तौर से उत्पादित की जाती है। यह अपने छोटे और सुगंधित अनाज, उच्च उपज क्षमता के लिए मशहूर है। यह पकाने में भी आसान होती है।

पूसा 44: 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह चावल की एक गैर-बासमती किस्म है, जो उत्तर प्रदेश में बेहद मशहूर है। यह भी एक उच्च उपज वाली किस्म है, जो बहुत सारे कीटों व रोगों के लिए प्रतिरोधी सबित होती है, जो कि इसको कृषकों हेतु एक विश्वसनीय विकल्प बनाती है।

सरजू 52: 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह एक और गैर-बासमती किस्म है जो कि सामान्यतः उत्तर प्रदेश में उगाई जाती है। यह अपने मध्यम आकार के अनाज एवं खाना पकाने की बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जानी जाती है। साथ ही, यह कीटों और रोगों के लिए भी प्रतिरोधी है।

महसूरी: 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह चावल की एक किस्म है, जो उत्तर प्रदेश समेत भारत के विभिन्न इलाकों में उगाई जाती है। यह अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता, उच्च उपज क्षमता के साथ-साथ अच्छी खाना पकाने की गुणवत्ता हेतु जानी जाती है। यह शीघ्र पकने वाला भी है एवं यह 120-125 दिनों में कटाई हेतु तैयार हो जाती है।

पीआर 121: 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह चावल की एक संकर किस्म है, जो उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर उगाई जाती है। यह किस्म की उच्च उत्पादक क्षमता के लिए प्रसिद्ध है। कीटों एवं रोगों के प्रति अच्छी प्रतिरोध क्षमता और उत्तम अनाज की गुणवत्ता हेतु काफी मशहूर मानी जाती है। यह एक छोटी समयावधि की फसल भी है, जो तकरीबन 110-115 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है।

यह धान की उन्नत किस्मों के कुछ उदाहरण हैं, जो सामान्यतः उत्तर प्रदेश में उत्पादित की जाती हैं। बहुत सारी बाकी किस्में भी उत्पादित की जाती हैं, जिनमें से हर एक किस्म की अपनी अनोखी खासियत और फायदा है। यह ध्यान रखना काफी अहम है, कि इस लेख में प्रति हेक्टेयर उत्पादन अनुमानित आंकड़ों पर आधारित है। क्योंकि किसानों द्वारा अपनाई गई खास स्थितियों एवं प्रबंधन प्रथाओं के तहत वास्तविक पैदावार भिन्न हो सकती है।

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