जानें कैसे एरोबिक विधि कर देगी किसानों के सिंचाई के संकट को खत्म - Meri Kheti

जानें कैसे एरोबिक विधि कर देगी किसानों के सिंचाई के संकट को खत्म

0

भारत के अधिकाँश लोग किसानी पर निर्भर हैं और खेती करते हुए अपनी आमदनी करते हैं। हम सभी जानते हैं, कि किसी भी तरह की फसल उगाने के लिए सिंचाई सबसे ज्यादा जरूरी होती है। फसल का पानी से गहरा नाता है। कोई भी व्यक्ति जो फसल उगा कर अपनी आमदनी कर रहा है। उसके लिए यह कल्पना करना भी मुश्किल है, कि उसके पास सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध ना हो।

समय-समय पर हमें यह भी सुनने को मिलता है, कि आए दिन किसी न किसी राज्य में सिंचाई का संकट बना रहता है। कई बार अच्छी तरह से बारिश ना होने पर या फिर किसी अन्य कारण से पानी की कमी हो जाती है, जिसका हर्जाना किसानों को उठाना पड़ता है। पानी का संकट सीधे तौर पर किसानों के लिए आर्थिक संकट लेकर आता है। ऐसे में बहुत से वैज्ञानिक इस तरह की पद्धतियां इजात करने में लगे हुए हैं, जिनका इस्तेमाल करते हुए फसल उगाने में कम से कम पानी की जरूरत पड़े।

हालांकि पानी के प्राकृतिक संकट को खत्म करना है, तो अचानक से संभव नहीं है। इसलिए वैज्ञानिक कुछ इस तरह की फसल की प्रजाति बनाने की कोशिश कर रहे हैं। जिन्हें उगाने में कम से कम पानी की जरूरत पड़े। इसी तरह की एक पहल में वैज्ञानिकों ने धान की एक ऐसी प्रजाति विकसित की है।

क्या है धान की दक्ष प्रजाति?

मीडिया रिपोर्ट की मानें तो हाल ही में साइंटिस्ट ने धान की प्रजाति का विकास किया है। जीकेवीके कैंपस बेंगलुरु के प्रो. एमएस शेशायी ने बताया कि दक्ष प्रजाति एरोबिक राइस वैरायटी है। धान की बाकी किस्मों के मुकाबले इसमें पानी करीब आधा लगता है। साथ ही, पानी की कमी होने पर फसल का उत्पादन भी प्रभावित नहीं होता है। माना जा रहा है, कि दक्ष प्रजाति के विकास से किसानों के सामने काफी हद तक पानी का संकट नहीं रहता है।

ये भी पढ़ें: तर वत्तर सीधी बिजाई धान : भूजल-पर्यावरण संरक्षण व खेती लागत बचत का वरदान (Direct paddy plantation)

कर्नाटक में एक हजार एकड़ में हो रही है दक्ष प्रजाति की उपज

प्रो. एमएस शेशायी से हुई बातचीत में उन्होंने बताया कि उत्तर भारत में उतना चावल नहीं खाया जाता है। लेकिन इसके अलावा देश की आबादी का 60% हिस्सा चावल की खेती पर निर्भर रहता है।

सरल भाषा में बात की जाए तो एक किलो चावल पैदा करने के लिए भी 4 से 5 हजार लीटर पानी की जरूरत होती है। इसी को लेकर धान की नई प्रजाति पर पिछले एक दशक से रिसर्च चल रही थी। अब नई प्रजाति दक्ष के रूप में सामने आ चुकी है। कर्नाटक के एक हजार एकड़ में इस धान की बुवाई हो रही है।

पंजाब, हरियाणा के लिए भी डेवलप की जा रही प्रजाति

प्रो शेशायी ने बताया कि मोटे अनाज को 10 प्रतिशत पानी की ही जरूरत होती है। लेकिन चावल के साथ ऐसा नहीं होता है। ऐसे में हम पानी के संकट को तो अचानक से खत्म नहीं कर सकते हैं। लेकिन धान की फसल को इस तरीके से बदला जा सकता है, कि वह स्वयं ही पानी की खपत कम कर दे। इस रिसर्च में धान की प्रजाति के व्यवहार को बदलने की कोशिश की गई है। इस बीज को थोड़ा गहरा लगाना होता है। ये वहां भी हो सकती है, जहां पानी की जरूरत कम होती है।

ये भी पढ़ें: धान के दुश्मन कीटों से कैसे करें बचाव, वैज्ञानिकों ने बताए टिप्स

ब्रीडिंग टेक्नोलॉजी से बनने वाली इस किस्म दक्ष में 50 फीसदी कम पानी में फसल हो जाती है। आम किस्मों में एक किलो चावल पैदा करने में 4 हजार लीटर पानी की जरूरत होती है। यह 2 हजार लीटर में ही हो जाता है। पंजाब और हरियाणा के लिए भी इस किस्म का ट्रायल कर इन राज्यों के अनुसार डेवलप किया जा सकता है।

क्या है धान उगाने की एरोबिक विधि

जैसा कि हम सभी जानते हैं, कि धान की फसल की बुआई करने से पहले पूरे खेत को पानी से भरना पड़ता है। उसके बाद पौधे की रोपाई की जाती है। लेकिन एरोबिक धान की खेती की एक विधि है, जिसमें खेत में पानी नहीं भरना पड़ता है और न ही रोपाई करनी पड़ती है। इस विधि से बुवाई करने के लिए बीज को एक लाइन में बोया जाता है। बुआई के लिए कम पानी की जरूरत होती है।

Leave A Reply

Your email address will not be published.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More