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अदरक

घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां (Summer herbs to grow at home in hindi)

घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां (Summer herbs to grow at home in hindi)

दोस्तों, आज हम बात करेंगे जड़ी बूटियों के विषय में ऐसी जड़ी बूटियां जो ग्रीष्मकालीन में उगाई जाती है और इन जड़ी बूटियों से हम विभिन्न विभिन्न प्रकार से लाभ उठा सकते हैं। यह जड़ी बूटियों को हम अपने घर पर उगा सकते हैं, यह जड़ी बूटियां कौन-कौन सी हैं जिन्हें आप घर पर उगा सकते हैं, इसकी पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें।

ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां

पेड़ पौधे मानव जीवन के लिए एक वरदान है कुदरत का यह वरदान मानव जीवन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। विभिन्न प्रकार से यह पेड़-पौधे जड़ी बूटियां मानव शरीर और मानव जीवन काल को बेहतर बनाते हैं। पेड़ पौधे मानवी जीवन का एक महत्वपूर्ण चक्र है। विभिन्न प्रकार की ग्रीष्म कालीन जड़ी बूटियां  रोग निवारण करने के लिए इन जड़ी बूटियों का उपयोग किया जाता है। इन जड़ी-बूटियों के माध्यम से विभिन्न प्रकार की बीमारियां दूर होती है अतः या जड़ी बूटियां मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां, औषधि पौधे न केवल रोगों से निवारण अपितु विभिन्न प्रकार से आय का साधन भी बनाए रखते हैं। औषधीय पौधे शरीर को निरोग बनाए रखते हैं। विभिन्न प्रकार की औषधि जैसे तुलसी पीपल, और, बरगद तथा नीम आदि की पूजा-अर्चना भी की जाती है। 

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घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां :

ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां जिनको आप घर पर उगा सकते हैं, घर पर इनको कुछ आसान तरीकों से उगाया जा सकता है। यह जड़ी बूटियां और इनको उगाने के तरीके निम्न प्रकार हैं: 

नीम

नीम का पौधा गर्म जलवायु में सबसे अच्छा पनपता है नीम का पेड़ बहुत ही शुष्क होता है। आप घर पर नीम के पौधे को आसानी से गमले में उगा सकते हैं। इसको आपको लगभग 35 डिग्री के तापमान पर उगाना होता है। नीम के पौधे को आप घर पर आसानी से उगा सकते हैं। आपको ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं होती, नीम के पेड़ से गिरे हुए फल को  आपको अच्छे से धोकर उनके बीच की गुणवत्ता  तथा खाद मिट्टी में मिला कर पौधों को रोपड़ करना होता है। नीम के अंकुरित लगभग 1 से 3 सप्ताह का टाइम ले सकते हैं। बगीचों में बड़े छेद कर युवा नीम के पौधों को रोपण किया जाता है और पेड़ अपनी लंबाई प्राप्त कर ले तो उन छिद्रों को बंद कर दिया जाता है। नीम चर्म रोग, पीलिया, कैंसर आदि जैसे रोगों का निवारण करता है।

तुलसी

तुलसी के पौधे को घर पर उगाने के लिए आपको घर के किसी भी हिस्से या फिर गमले में बीज को मिट्टी में कम से कम 1 से 4 इंच लगभग गहराई में तुलसी के बीज को रोपण करना होता है। घर पर तुलसी के पौधा उगाने के लिए बस आपको अपनी उंगलियों से मिट्टी में इनको छिड़क देना होता है क्योंकि तुलसी के बीज बहुत ही छोटे होते हैं। जब तक बीच पूरी तरह से अंकुरित ना हो जाए आपको मिट्टी में नमी बनाए रखना है। यह लगभग 1 से 2 सप्ताह के बीच उगना शुरू हो जाते हैं। आपको तुलसी के पौधे में ज्यादा पानी नहीं देना है क्योंकि इस वजह से पौधे सड़ सकते हैं तथा उन्हें फंगस भी लग सकते हैं। घर पर तुलसी के पौधा लगाने से पहले आपको 70% मिट्टी तथा 30 प्रतिशत रेत का इस्तेमाल करना होता है। तुलसी की पत्तियां खांसी, सर्दी, जुखाम, लीवर की बीमारी मलेरिया, सास से संबंधित बीमारी, दांत रोग इत्यादि के लिए बहुत ही उपयोगी होती है।

बेल

बेल का पौधा आप आसानी से गमले या फिर किसी जमीन पर उगा सकते हैं। इन बेल के बीजों का रोपण करते समय अच्छी खाद और मिट्टी के साथ पानी की मात्रा को नियमित रूप से देना होता है। बेल के पौधे विभिन्न प्रकार की बीमारियों को दूर करने के काम आते हैं। जैसे: लीवर की चोट, यदि आपको वजन घटाना हो या फिर बहुत जादा दस्त हो, आंतों में विभिन्न प्रकार की गड़बड़ी, कब्ज की समस्या तथा चिकित्सा में बेल की पत्तियों और छालों और जड़ों का प्रयोग कर विभिन्न प्रकार की औषधि का निर्माण किया जाता है। 

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आंवला

घर पर  किसी भी गमले या जमीन पर आप आंवले के पौधे को आसानी से लगा सकते हैं। आंवले के पेड़ के लिए आपको मिट्टी का गहरा और फैलाव दार गमला लेना चाहिए। इससे पौधों को फैलने में अच्छी जगह मिलती है। गमले या फिर घर के किसी भी जमीन के हिस्से में पॉटिंग मिलाकर आंवले के बीजों का रोपण करें। आंवले में विभिन्न प्रकार का औषधि गुण मौजूद होता है आंवले में  विटामिन की मात्रा पाई जाती है। इससे विभिन्न प्रकार के रोगों का निवारण होता है जैसे: खांसी, सांस की समस्या, रक्त पित्त, दमा, छाती रोग, मूत्र निकास रोग, हृदय रोग, क्षय रोग आदि रोगों में आंवला सहायक होता है।

घृत कुमारी

घृतकुमारी  जिसको हम एलोवेरा के नाम से पुकारते हैं। एलोवेरा के पौधे को आप किसी भी गमले या फिर जमीन पर आसानी से उगा सकते हैं। यह बहुत ही तेजी से उगने वाला पौधा है जो घर के किसी भी हिस्से में उग सकता है। एलोवेरा के पौधे आपको ज्यादातर भारत के हर घर में नजर आए होंगे, क्योंकि इसके एक नहीं बल्कि अनेक फायदे हैं। एलोवेरा में मौजूद पोषक तत्व त्वचा के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होते हैं। त्वचा के विभिन्न प्रकार के काले धब्बे दाने, कील मुहांसों आदि समस्याओं से बचने के लिए आप एलोवेरा का उपयोग कर सकते हैं। यह अन्य समस्याओं जैसे  जलन, डैंड्रफ, खरोच, घायल स्थानों, दाद खाज खुजली, सोरायसिस, सेबोरिया, घाव इत्यादि के लिए बहुत सहायक है।

अदरक

अदरक के पौधों को घर पर या फिर गमले में उगाने के लिए आपको सबसे पहले अदरक के प्रकंद का चुनाव करना होता है, प्रकंद के उच्च कोटि को चुने करें। घर पर अदरक के पौधे लगाने के लिए आप बाजार से इनकी बीज भी ले सकते हैं। गमले में 14 से 12 इंच तक मिट्टी को भर ले, तथा खाद और कंपोस्ट दोनों को मिलाएं। गमले में  अदरक के टुकड़े को डाले, गमले का जल निकास नियमित रूप से बनाए रखें। 

अदरक एक ग्रीष्मकालीन पौधा है इसीलिए इसको अच्छे तापमान की बहुत ज्यादा आवश्यकता होती है। यह लगभग 75 से लेकर 85 के तापमान में उगती  है। अदरक भिन्न प्रकार के रोगों का निवारण करता है, सर्दियों के मौसम में खांसी, जुखाम, खराश गले का दर्द आदि से बचने के लिए अदरक का इस्तेमाल किया जाता है। अदरक से बैक्टीरिया नष्ट होते हैं, पुरानी बीमारियों का निवारण करने के लिए अदरक बहुत ही सहायक होती है। 

दोस्तों हम यह उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह आर्टिकल घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां पसंद आया होगा। हमारे आर्टिकल में घर पर उगाई जाने वाली  जड़ी बूटियों की पूर्ण जानकारी दी गई है। जो आपके बहुत काम आ सकती है यदि आप हमारी जानकारी से संतुष्ट है। तो हमारी इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्त और सोशल मीडिया पर  शेयर करें। 

धन्यवाद।

घर के गमले में अदरक का पौधा : बढ़ाये चाय की चुस्की व सब्जियों का जायका

घर के गमले में अदरक का पौधा : बढ़ाये चाय की चुस्की व सब्जियों का जायका

वृंदावन। चाय में अदरक का अपना अलग ही महत्व होता है। बिना अदरक वाली चाय की चुस्की आनंददायक नहीं होती है। अदरक (Ginger (जिंजर)) को सब्जियों में डालने से सब्जियों का जायका भी बढ़ जाता है और चाय में डालने से चाय की चुस्की आनंदित कर देती है। अदरक हर घर की जरूरत है। आप अपने घर के गमले में अदरक का पौधा लगाकर कर सकते हैं अपने जीवन को आनंदित। अदरक का उपयोग हम सभी अपने-अपने घरों में करते हैं। कुछ लोग इसका उपयोग मसाले के तौर पर करते हैं, तो कुछ गार्निशिंग के लिए। इसके अरोमा और फ्लेवर से खाने का स्वाद चार गुना बढ़ जाता है।

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घर में कैसे उगाएं अदरक ?

लोगों की सेहत के लिए अदरक का सेवन बहुत ही लाभदायक होता है और यह घरेलु इम्यूनिटी बूस्टर काढ़े में मौजूद तत्वों में से एक प्रमुख तत्व है। यह हमारे तनाव को कम करने में भी मदद करता है। इस प्रकार यदि हम घर पर ही शुद्ध व ताजी अदरक उगाना चाहते हैं, तो इसके लिए आसान से तरीके हैं।

- सर्वप्रथम हमें बाजार से अदरक की जड़ें लेकर आना चाहिए। फिर उन्हें घर पर गमले अथवा घर के आस-पास बगीचे में लगा देना चाहिए, फिर वह धीरे-धीरे अंकुरित होगी और कुछ समय बाद अदरक का पौधा बनने लगेगा।

- दूसरी प्रकिया के मुताबिक, बीज के रूप में हम गमले या बगीचे में अदरक के लगभग 2 से 2.5 इंच लंबे टुकड़ों को मिट्टी में गाड़ देंगे, जिससे धीरे धीरे अदरक का पौधा अंकुरित होगा और यह पौधा बड़ा हो जाएगा।

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२० से २५ दिन में तैयार हो जाता है अदरक

अच्छी तरह से नियमित देखभाल एवं समय-समय पर छिड़काव करने से अदरक का पौधा तेजी से विकास करता है। एक स्वस्थ पौधा करीब २० से २५ दिन में अदरक तैयार कर देता है।

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अदरक के पौधे की सुरक्षा एवं रखरखाव

1- घर पर ही गमले में अदरक उगा‌ रहे हैं, तो हमें गमले को ऐसे स्थान पर रखना चाहिए जहां उसे समय-समय पर धूप और जल मिल सके। 2- बगीचे में अगर अदरक उगा‌ रहे हैं, तो पौधे को ऐसे स्थान पर लगाना चाहिए जहां धूप पड़ती हो और जल आसानी से मिल सके। 3- ध्यान रहे कि अदरक के पौधे में जल अधिक नहीं डालना चाहिए। अधिक जल से पौधे में सड़न आ सकती है। 4- अदरक के पौधे वाले गमले अथवा बगीचे में जल निकास की व्यवस्था भी करनी चाहिए। 5- अदरक के पौधे को कीड़ों से बचाने के लिए दवा का छिड़काव करना चाहिए, क्योंकि इसमें कीड़े लगने की संभावना ज्यादा रहती है। 6- नियमित पौधे की देखभाल एवं समय-समय पर छिड़काव करना चाहिए। 7- नीबूं पानी का घोल बनाकर छिड़काव करने से कीटों से निजात मिलती है। 

 ------ लोकेन्द्र नरवार

सहफसली तकनीक से किसान अपनी कमाई कर सकते हैं दोगुना

सहफसली तकनीक से किसान अपनी कमाई कर सकते हैं दोगुना

किसानों को परंपरागत खेती में लगातार नुकसान होता आ रहा है, जिसके कारण जहाँ किसानों में आत्महत्या की प्रवृति बढ़ रही है, वहीं किसान खेती से विमुख भी होते जा रहे हैं. इसको लेकर सरकार भी चिंतित है. लगातार खेती में नुकसान के कारण किसानों का खेती से मोहभंग होना स्वभाविक है, इसी के कारण सरकार आर्थिक तौर पर मदद करने के लिए कई योजनाओं पर काम कर रही है. सरकार की तरफ से किसानों को खेती में सहफसली तकनीक (multiple cropping or multicropping or intercropping) अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. विशेषज्ञों की मानें, तो ऐसा करने से जमीन की उत्पादकता बढ़ती है, साथ ही एकल फसली व्यवस्था या मोनोक्रॉपिंग (Monocropping) तकनीक की खेती के मुकाबले मुनाफा भी दोगुना हो जाता है.


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सहफसली खेती के फायदे

परंपरागत खेती में किसान खरीफ और रवि के मौसम में एक ही फसल लगा पाते हैं. किसानों को एक फसल की ही कीमत मिलती है. जो मुनाफा होता है, उसी में उनकी मेहनत और कृषि लागत भी होता है. जबकि, सहफसली तकनीक में किसान मुख्य फसल के साथ अन्य फसल भी लगाते हैं. स्वाभाविक है, उन्हें जब दो या अधिक फसल एक ही मौसम में मिलेगा, तो आमदनी भी ज्यादा होगी. किसानों के लिए सहफसली खेती काफी फायदेमंद होता है. कृषि वैज्ञानिक लंबी अवधि के पौधे के साथ ही छोटी अवधि के पौधों को लगाने का प्रयोग करने की सलाह किसानों को देते हैं. किसानों को सहफसली खेती करनी चाहिए, ऐसा करने से मुख्य फसल के साथ-साथ अन्य फसलों का भी मुनाफा मिलता है, जिससे आमदनी दुगुनी हो सकती है.


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धान की फसल के साथ लगाएं कौन सा पौधा

सहफसली तकनीक के बारे में कृषि विशेषज्ञ डॉक्टर दयाशंकर श्रीवास्तव सलाह देते हैं, कि धान की खेती करने वाले किसानों को खेत के मेड़ पर नेपियर घास उगाना चाहिए. इसके अलावा उसके बगल में कोलस पौधों को लगाना चाहिए. नेपियर घास पशुपालकों के लिए पशु आहार के रूप में दिया जाता है, जिससे दुधारू पशुओं का दूध उत्पादन बढ़ता है और उसका लाभ पशुपालकों को मिलता है, वहीं घास की अच्छी कीमत भी प्राप्त की जा सकती है. बाजार में भी इसकी अच्छी कीमत मिलती है.


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गन्ना, मक्की, अरहर और सूरजमुखी के साथ लगाएं ये फसल

पंजाब हरियाणा और उत्तर भारत समेत कई राज्यों में किसानों के बीच आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है और इसका कारण लगातार खेती में नुकसान बताया जाता है. इसका कारण यह भी है की फसल विविधीकरण नहीं अपनाने के कारण जमीन की उत्पादकता भी घटती है और साथ हीं भूजल स्तर भी नीचे गिर जाता है. ऐसे में किसानों के सामने सहफसली खेती एक बढ़िया विकल्प बन सकता है. इस विषय पर दयाशंकर श्रीवास्तव बताते हैं कि सितंबर से गन्ने की बुवाई की शुरुआत हो जाएगी. गन्ना एक लंबी अवधि वाला फसल है. इसके हर पौधों के बीच में खाली जगह होता है. ऐसे में किसान पौधों के बीच में लहसुन, हल्दी, अदरक और मेथी जैसे फसलों को लगा सकते हैं. इन सबके अलावा मक्का के फसल के साथ दलहन और तिलहन की फसलों को लगाकर मुनाफा कमाया जा सकता है. सूरजमुखी और अरहर की खेती के साथ भी सहफसली तकनीक को अपनाकर मुनाफा कमाया जा सकता है. कृषि वैज्ञानिक सह्फसली खेती के साथ-साथ इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) यानी ‘एकीकृत कृषि प्रणाली’ की भी सलाह देते हैं. इसके तहत खेतों के बगल में मुर्गी पालन, मछली पालन आदि का भी उत्पादन और व्यवसाय किया जा सकता है, ऐसा करने से कम जगह में खेती से भी बढ़िया मुनाफा कमाया जा सकता है.
घर पर करें बीजों का उपचार, सस्ती तकनीक से कमाएं अच्छा मुनाफा

घर पर करें बीजों का उपचार, सस्ती तकनीक से कमाएं अच्छा मुनाफा

एक किसान होने के नाते यह बात तो आप समझते ही हैं कि किसी भी प्रकार की फसल के उत्पादन के लिए सही बीज का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है और यदि बात करें सब्जी उत्पादन की तो इनमें तो बीज का महत्व सबसे ज्यादा होता है। स्वस्थ और उन्नत बीज ही अच्छी सब्जी का उत्पादन कर सकता है, इसीलिए कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा आपको हमेशा सलाह दी जाती है कि बीज को बोने से पहले अनुशंसित कीटनाशी या जीवाणु नाशी बीज का ही इस्तेमाल करना चाहिए। इसके अलावा कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा समय समय पर किसान भाइयों को बीज के उपचार की भी सलाह दी जाती है।


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आज हम आपको बताएंगे ऐसे ही कुछ बीज-उपचार करने के तरीके, जिनकी मदद से आप घर पर ही अपने साधारण से बीज को कई रसायनिक पदार्थों से तैयार होने वाले लैब के बीज से भी अच्छा बना सकते है। बीज उपचार करने का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इसे स्टोर करना काफी आसान हो जाता है और सस्ता होने के साथ ही कई मृदा जनित रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है। यह बात तो किसान भाई जानते ही होंगे कि फसलों में मुख्यतः दो प्रकार के बीज जनित रोग होते है, जिनमें कुछ रोग अंतः जनित होते हैं, जबकि कुछ बीज बाह्य जनित होते है।अंतः जनित रोगों में आलू में लगने वाला अल्टरनेरिया और प्याज में लगने वाली अंगमारी जैसी बीमारियों को गिना जा सकता है। बीज उपचार करने की भौतिक विधियां प्राचीन काल से ही काफी प्रचलित है। इसकी एक साधारण सी विधि यह होती है कि बीज को सूर्य की धूप में गर्म करना चाहिए, जिससे कि उसके भ्रूण में यदि कोई रोग कारक है तो उसे आसानी से नष्ट किया जा सकता है। इस विधि में सबसे पहले पानी में 3 से 4 घंटे तक बीज को भिगोया जाता है और फिर 5 से 6 घंटे तक तेज धूप में रखा जाता है।


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दूसरी साधारण विधि के अंतर्गत गर्म जल की सहायता से बीजों का उपचार किया जाता है। बीजों को पानी में मिलाकर उसे 50 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर 20 से 25 मिनट तक गर्म किया जाता है, जिससे कि उसके रोग नष्ट हो जाते है। इस विधि का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें बीज के अंकुरण पर कोई भी विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है, जैसे कि यदि आप आलू के बीच को 50 डिग्री सेल्सियस पर गर्म करते हैं तो इसमें लगने वाला अल्टरनेरिया रोग पूरी तरीके से नष्ट हो सकता है। बीज उपचार की एक और साधारण विधि गरम हवा के द्वारा की जाती है, मुख्यतया टमाटर के बीजों के लिए इसका इस्तेमाल होता है। इस विधि में टमाटर के बीज को 5 से 6 घंटे तक 30 डिग्री सेल्सियस पर रखा जाता है, जिससे कि इसमें लगने वाले फाइटोप्थोरा इंफेक्शन का असर कम हो जाता है। इससे अधिक डिग्री सेल्सियस पर गर्म करने पर इस में लगने वाला मोजेक रोग का पूरी तरीके से निपटान किया जा सकता है। इसके अलावा कृषि वैज्ञानिक विकिरण विधि के द्वारा बीज उपचार करते है, जिसमें अलग-अलग समय पर बीजों के अंदर से पराबैगनी और एक्स किरणों की अलग-अलग तीव्रता गुजारी जाती है। इस विधि का फायदा यह होता है कि इसमें बीज के चारों तरफ एक संरक्षक कवच बन जाता है, जो कि बीज में भविष्य में होने वाले संक्रमण को भी रोकने में सहायता प्रदान करता है।


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इसके अलावा सभी किसान भाई अपने घर पर फफूंदनाशक दवाओं की मदद से मटर, भिंडी, बैंगन और मिर्ची जैसी फलदार सब्जियों की उत्पादकता को बढ़ा सकते है। इसके लिए एक बड़ी बाल्टी में पानी और फफूंदनाशक दवा की उपयुक्त मात्रा मिलाई जाती है, इसे थोड़ी देर घोला जाता है,जिसके बाद इसे मिट्टी के घड़े में डालकर 10 मिनट तक रख दिया जाता है। इस प्रकार तैयार बीजों को निकालकर उन्हें आसानी से खेत में बोया जा सकता है। हाल ही में यह विधि आलू, अदरक और हल्दी जैसी फसलों के लिए भी कारगर साबित हुई है। इसके अलावा फफूंद नाशक दवा की मदद से ही स्लरी विधि के तहत बीज उपचार किया जा सकता है, इस विधि में एक केमिकल कवकनाशी की निर्धारित मात्रा मिलाकर उससे गाढ़ा पेस्ट बनाया जाता है, जिसे बीज की मात्रा के साथ अच्छी तरीके से मिलाया जाता है। इस मिले हुए पेस्ट और बीज के मिश्रण को खेत में आसानी से बोया जा सकता है।


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सभी किसान भाई अपने खेतों में जैविक बीज उपचार का इस्तेमाल भी कर सकते है, इसके लिए एक जैव नियंत्रक जैसे कि एजोटोबेक्टर को 4 से 5 ग्राम मात्रा को अपने बीजों के साथ मिला दिया जाता है, सबसे पहले आपको थोड़ी सी पानी की मात्रा लेनी होगी और उसमें लगभग दो सौ ग्राम कल्चर मिलाकर एक लुगदी तैयार करनी होगी। इस तैयार लुगदी और बोये जाने वाले बीजों को एक त्रिपाल की मदद से अच्छी तरह मिला सकते है और फिर इन्हें किसी पेड़ की ठंडी छाया में सुखाकर बुवाई के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। हम आशा करते है कि हमारे किसान भाइयों को जैविक और रासायनिक विधि से अपने बीजों के उपचार करने के तरीके की जानकारी मिल गई होगी। यह बात आपको ध्यान रखनी होगी कि महंगे बीज खरीदने की तुलना में, बीज उपचार एक कम लागत वाली तकनीक है और इसे आसानी से अपने घर पर भी किया जा सकता है। वैज्ञानिकों की राय के अनुसार इससे आपकी फ़सल उत्पादन में लगभग 15 से 20% तक मुनाफा हो सकता है।
अदरक के भाव में कमी के चलते अदरक उत्पादक बेहद चिंता में, मूल्य में घटोत्तरी के बारे में ये बोले किसान

अदरक के भाव में कमी के चलते अदरक उत्पादक बेहद चिंता में, मूल्य में घटोत्तरी के बारे में ये बोले किसान

अदरक (Ginger; जिंजर; adrak) की कीमतों में घटोत्तरी के कारण किसान बेहद चिंतित हैं, उनके मुताबिक कुछ साल से कीमतों में घटोत्तरी हो रही है। आजकल के समय बाजारों में अदरक का मूल्य २५०० रुपये से लेकर ३००० रुपये प्रति क्विंटल मिल रहा है, जबकि ५००० रुपये प्रति क्विंटल तक का भाव मिले तब जाकर उत्पादकों को अच्छा मुनाफा मिल पायेगा। महाराष्ट्र राज्य के किसानों की परेशानियाँ कम ही नही हो रही हैं। कभी बेमौसम बारिश तो कभी बाजारों में पैदावार का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। महाराष्ट्र में इस वक्त किसान सोयाबीन एवं प्याज के गिरते मूल्य से चिंतित तो थे ही, अब अदरक उत्पादकों की भी समस्या बढ़ गई हैं। अदरक के भाव में भारी कमी देखने को मिल रही है। महाराष्ट्र में अदरक उत्पादन करने वाले किसानों को पिछले कुछ वर्षों से बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ है। अदरक की खेती पर किसान लाखों रुपये व्यय करते हैं, लेकिन बाजार में उचित मूल्य नहीं मिलने से अदरक उत्पादकों को घाटा वहन करना पड़ रहा है। राज्य में सर्वाधिक अदरक की खेती सतारा, जालना एवं औरंगाबाद जिले में की जाती है। महाराष्ट्र में अदरक की फसल का रकबा लगभग २० हजार हेक्टेयर तक पहुंच चुका है। पुणे, बीड,जलाना, वाशिम, औरंगाबाद, सांगली एवं सतारा जनपदों में अदरक की फसल का उत्पादन तो बढ़ा है, लेकिन मूल्यों में वृद्धि नहीं हो पा रही है। किसानों ने बताया है कि ४ वर्ष पूर्व अदरक उत्पादन से लाभ तो हो रहा था, लेकिन अब नहीं हो पा रहा है। किसान सोमनाथ पाटिल ने बताया है कि अगर किसानों को अदरक का उचित मूल्य न्यूनतम ५००० रुपये प्रति क्विंटल मिले तब कहीं अदरक उत्पादकों को लाभ हो सकेगा।


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अत्यधिक बरसात के चलते हुआ था फसल को भारी नुकसान

अक्टूबर माह में २० दिनों के दौरान अदरक उत्पादक इलाकों में मूसलाधार बरसात हुई, जिसके चलते अदरक की गुणवत्ता भी बेहद प्रभावित हुई है। इससे किसानों की समस्याएं ज्यादा बढ़ गई हैं। फिलहाल बाजार में अदरक की आवक में घटोत्तरी हो रही है, लेकिन अदरक २५०० रुपये से ३००० रुपये प्रति क्विंटल के मूल्य पर विक्रय हो रहा है, जो कि काफी कम है। अदरक की फसल पैदावार की औसत खर्च ७५ हजार से १. ५ लाख प्रति एकड़ तक होता है। साथ ही, अन्य फसलों की अपेक्षा में रोपण के उपरांत न्यूनतम छह महीने तक सुरक्षा रखने की आवश्यकता होती है। विगत कुछ वर्षों में बरसात में परिवर्तन के चलते हानि हुई है। अक्टूबर और नवंबर माह में अकारण बरसात में अदरक की पैदावार में गिरावट आ जाती है।

अदरक उत्पादन में किसान का कितना व्यय होता है ?

किसान सोमनाथ पाटिल ने कहा है कि उनका अदरक उत्पादन करने के दौरान प्रति एकड़ ५० हजार से लेकर ६० हजार रुपए तक का व्यय होता है। साथ ही, इसके अतिरिक्त परिवहन का खर्च ही ३ हजार तक जाता है। अदरक के बीज के लिए ५००० रुपए लग जाते हैं। यदि बाजारों में अदरक का भाव ५००० रुपये प्रति क्विंटल मिले तब कहीं उत्पादकों द्वारा फसल पर किया गया खर्च निकल पाएगा।
इस फार्मिंग के जरिये एक स्थान पर विभिन्न फसल उगा सकते हैं

इस फार्मिंग के जरिये एक स्थान पर विभिन्न फसल उगा सकते हैं

मल्टीलेयर फार्मिंग(Multilayer Farming) में एक स्थान पर विभिन्न फसलों का उत्पादन किया जा सकता है। किसान सोच समझ के फसलों का चयन कर काफी कम भूमि में से भी लाखों रुपये की आमंदनी कर सकते हैं। कृषि देश की रीढ़ की हड्डी मानी जाती है, क्योंकि देश की बहुत बड़ी जनसँख्या कृषि पर ही आश्रित रहती है। किसानों को अच्छी आय वाली खेती के लिए कृषि विशेषज्ञ एवं वैज्ञानिक अपने-अपने स्तर से शोध करते रहते हैं। एक खेती में ही अन्य फसल का भी उत्पादन कर किसान दोगुना मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। परंतु आज हम आपको उस खेती के सम्बन्ध में जानकारी देने वाले हैं। जिसके अंतर्गत एक, दो नहीं कृषि की विभिन्न परतें (Layer) होती हैं। सभी परतों पर फसल उत्पादन कर अच्छा खासा मुनाफा अर्जित किया जा सकता है। इसलिए ही इसका नाम मल्टीलेयर फार्मिंग (Multilayer Farming) है। मल्टीलेयर फार्मिंग(Multilayer Farming), नाम से ही पता चलता है, कि एक ही जगह पर विभिन्न प्रकार की खेती करना। इसमें 3, 4 ही नहीं 5 प्रकार की कृषि भी की जा सकती है। विशेषज्ञों के मुताबिक, इसमें मृदा के प्रयोग को देखा जाता है। हालाँकि कुछ फसलें भूमि के अंदर दबी हों, कुछ ऊपर, कुछ अधिक बड़े स्तर पर एवं कुछ अन्य किस्मों की कृषि की जा सकती है। फसल चक्र के संदर्भ में बात करें तो कुछ कम, कुछ मध्यम एवं कुछ पकने में ज्यादा वक्त लगा सकती हैं।


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मल्टीलेयर फार्मिंग (Multilayer Farming) में फसलों का बेहतर चुनाव करने में सतर्कता अत्यंत आवश्यक है। प्रथम परत में बड़े पौधे लगाने पर अन्य परत खराब हो जाएंगी। विशेषज्ञों ने बताया है, कि पहली परत में छोटे पौधे के रूप में अदरक एवं हल्दी का उत्पादन कर सकते हैं। दूसरी परत में भी कम ऊंचाई एवं कम गहराई साग-सब्जियों की फसलों का चुनाव करें। तीसरी परत में बड़े पेड या पौधे, पपीता अथवा अन्य फलदार पौधे उगाये जा सकते हैं। चौथी परत में किसी भी बेल फसल उगा सकते हैं। यह पोषक तत्व भूमि से लेती रहेगी, परंतु इसका विस्तार अत्यधिक सीमित होगा।

क्यों आवश्यक है, मल्टीलेयर फार्मिंग का परीक्षण

मल्टीलेयर फार्मिंग (Multilayer Farming) से उचित मुनाफा अर्जित करने हेतु इसका प्रशिक्षण लेना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए कृषि विशेषज्ञ अथवा कृषि वैज्ञानिक या फिर किसी कृषि अधिकारी से सलाह ली जा सकती है। दरअसल, फसलों के उत्पादन हेतु पर्यावरण का अनुकूल होना अति आवश्यक है। देश के भिन्न-भिन्न राज्यों में तापमान अलग अलग रहता है। ऐसे में जिस स्थान पर मल्टीलेयर फार्मिंग की जाए, वहाँ फसलों का बेहतर चुनाव उसी के अनुकूल हो, इससे किसान 4 से 5 गुना अधिक बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।

मल्टीलेयर फार्मिंग छत पर भी कर सकते हैं।

मल्टीलेयर फार्मिंग (Multilayer Farming) भूमि ही बल्कि छत पर भी उत्पादित की जा सकती है, परंतु इसके उत्पादन हेतु छत पर भूमि की तरह अवस्था निर्मित होगी। देसी खाद युक्त मृदा की मोटी परत छत पर बिछा दीजिए। अगर पौधे ज्यादा गहराई वाले हैं, तो मृदा की परत एवं ज्यादा मोटी हो। बैंगन, टमाटर, भिंडी, गाजर, मूली, पालक आदि फसलें छत पर उत्पादित की जा सकती हैं।


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छत पर उगाएं सेहतमंद सब्जियां

इसके अंतर्गत 70 प्रतिशत कम जल की आवश्यकता है।

मल्टीलेयर फार्मिंग (Multilayer Farming) का विशेष फायदा यह है, कि इसमें जल की न्यूनतम आवश्यकता होती है। दरअसल, एक ही मृदा की परत में समस्त फसलें उगायी जाती हैं। जब एक फसल को जल दिया जाता है, तो अन्य फसलों की भी सिंचाई हो जाती है। इस प्रकार लगभग 70 फीसदी कम जल की आवश्यकता होती है।
गमले में अदरक उगाएं रोग प्रतिरोधक क्षमता बड़ाएं

गमले में अदरक उगाएं रोग प्रतिरोधक क्षमता बड़ाएं

सर्दियों के सीजन में समुचित आहार एवं व्यायाम नहीं करने की स्थिति में शीघ्र रोगग्रसित हो सकते हैं, परंतु फिलहाल घर पर ही अदरक (Ginger; Adrak) की तरह जड़ी बूटी उत्पादित करके स्वयं प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकते हैं, साथ ही सेहतमंद जीवन व्यतीत किया जा सकता है। भारत में शीत लहर आरंभ होने के साथ धीरे-धीरे हवा में कंपकपाहट में भी बढ़ोत्तरी हो रही है। सर्दियों के मौसम में लोग ज्यादातर बीमारियों के चंगुल में फंस जाते हैं। बुखार, सर्दी-जुकाम, इस मौसम में सामान्य सी बात हो चुकी है। ऐसी समस्त समस्याओं से आपको अदरक से बनी चाय ही बचा सकती है। बतादें, कि अदरक एक प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक है, इसका उपयोग आयुर्वेदिक दवाएं बनाने के लिए किया जाता है। इसमें जिंक, आयरन, कैल्शियम के साथ-साथ विटामिंस प्रचूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो कि किसी बीमारिओं से बचाने में बेहद सहायक होते हैं। मुख्य चीज यह है, कि फिलहाल स्वस्थ्य रहने हेतु आपको बाजार के अदरक पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा, क्योंकि अब आप अपने घर पर ही बहुत सुगमता से इसको उत्पादित कर सकते हैं। दरअसल, अदरक का गृह उत्पादन बेहद ही आसान है। इसके हेतु आपको कोई अतिरिक्त व्यय करने की आवश्यकता नहीं होगी। वर्तमान में इसका बीज या अदरक के टुकड़े से भी आप 1 से 2 किलो तक अदरक की हार्वेस्टिंग ले आसानी से ले सकते हो। जिसकी विधि हम आपको आगे इस लेख में बताने जा रहे हैं।

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कौनसी जगह अदरक की बागवानी के लिए सही है

यदि हम अदरक की बागवानी के बारे में बात करें तो, उसके लिए जगह एक महत्वपूर्ण विषय है। अदरक की बागवानी ऐसी जगह की जानी चाहिए जहां सीधी धूप पर्याप्त मात्रा में मिल सके। यदि आप चाहें तो घर की छत, बालकनी अथवा आप खिड़की के आसपास भी गमला रखकर उगाया जा सकता है। अदरक के कंटेनर को शेड में स्थापित करें, जिसकी वजह से सर्द हवा एवं पाले का प्रत्यक्ष प्रभाव पौधे पर ना पड़े। क्योंकि बहुत बार अत्यधिक सर्दी के कारण हार्वेस्टिंग बेकार भी हो सकती है।

किस प्रकार करें प्लांटर को तैयार

अदरक की बागवानी करने हेतु सर्व प्रथम गमला स्थापित करना होगा। अगर आपको अच्छा लगे तो घर पर ही किसी पुरानी बाल्टी या कंटेनर का भी उपयोग कर सकते हैं। इसमें बागवानी मृदा अथवा साधारण मिट्टी के साथ कोकोपीट, वर्मीकंपोस्ट तथा गोबर से बनी खाद का मिश्रण डाल दें। एक बात का विशेष ख्याल रखें कि मृदा अत्यधिक नम या फिर गीली ना हो।

अदरक का बीज कैसे लगाएं

गमला तैयार करने के उपरांत आप 2 से 3 इंच का अदरक का टुकड़ा रसोई से लायें। पौधे के सुगम उत्पादित होने के लिए आप अदरक के टुकड़े को अंकुरित करके लगाएं। इसके बाद अदरक का टुकड़ा गमले में मिट्टी के भीतर लगाएं और उसके बाद थोड़ा सा जल भी छिड़क दें। यदि आप दिए गए विधि द्वारा अदरक का बीजारोपण करते हैं, तो आपको अति शीघ्र ही पैदावार मिलने के आसार हैं।

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इस प्रकार करें देखरेख

अदरक का गमला पूर्ण रूप से व्यवस्थित करने के उपरांत इसको प्रत्यक्ष रूप से धूप वाले स्थान पर रख दें, जिससे पौधे को शीघ्रता से बढ़ने में सहायता मिल सके। समय समय पर अपने पौधे की जाँच करते रहें, इसमें कोई कीड़े-मकोड़े, रोग एवं जलन तो नहीं लगे। अगर ऐसी स्थिति है, तो नींबू पानी का घोल बनाकर के पौधे पर छिड़काव कर सकते हैं। पौधे में जल आवश्यकतानुसार ही डालें, यदि जरूरत से ज्यादा जल ड़ाल दिया तो पौधा एवं अदरक में गलाव लग जाता है। सर्दियों के दिन प्रत्येक सप्ताह में 2 बार जल का छिड़काव किया जा सकता है।

मात्र 25 दिनों में अदरक की कटाई कर सकते हैं

बतादें, कि यदि आपने पौधे की बेहतरीन तरीके से देखभाल की है। हालाँकि, मौसम भी अदरक की बागवानी हेतु काफी अनुकूल ही रहेगा। इस वजह से 25 दिन के अंतराल में ही अदरक की काफी बेहतरीन कटाई ली जा सकती है। इस प्रकार से स्वयं भी मात्र एक अदरक के टुकड़े से आप काफी उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। इसके माध्यम से आपको बेहद कम व्यय करके अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ा सकते हैं।
इस तकनीक के जरिये किसान एक एकड़ जमीन से कमा सकते है लाखों का मुनाफा

इस तकनीक के जरिये किसान एक एकड़ जमीन से कमा सकते है लाखों का मुनाफा

भारत के बहुत सारे किसानों पर कृषि हेतु भूमि बहुत कम है। उस थोड़ी सी भूमि पर भी वह पहले से चली आ रही खेती को ही करते हैं, जिसे हम पारंपरिक खेती के नाम से जानते हैं। लेकिन इस प्रकार से खेती करके जीवन यापन भी करना एक चुनौतीपूर्ण हो जाता है। परन्तु आज के समय में किसान स्मार्ट तरीकों की सहायता से 1 एकड़ जमीन से 1 लाख रूपये तक की आय अर्जित कर सकते हैं। वर्तमान में प्रत्येक व्यवसाय में लाभ देखने को मिलता है। कृषि विश्व का सबसे प्राचीन व्यवसाय है, जो कि वर्तमान में भी अपनी अच्छी पहचान और दबदबा रखता है। हालाँकि, कृषि थोड़े समय तक केवल किसानों की खाद्यान आपूर्ति का इकलौता साधन था। लेकिन वर्त्तमान समय में किसानों ने सूझ-बूझ व समझदारी से सफलता प्राप्त कर ली है। आजकल फसल उत्पादन के तरीकों, विधियों एवं तकनीकों में काफी परिवर्तन हुआ है। किसान आज के समय में एक दूसरे के साथ सामंजस्य बनाकर खेती किसानी को नई उचाईयों पर ले जाने का कार्य कर रहे हैं। आश्चर्यचकित होने वाली यह बात है, कि किसी समय पर एक एकड़ भूमि से किसानों द्वारा मात्र आजीविका हेतु आय हो पाती थी, आज वही किसान एक एकड़ भूमि से बेहतर तकनीक एवं अच्छी फसल चयन की वजह से लाखों का मुनाफा कमा सकता है। यदि आप भी कृषि से अच्छा खासा मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो आपको भूमि पर एक साथ कई सारी फसलों की खेती करनी होगी। सरकार द्वारा भी किसानों की हर संभव सहायता की जा रही है। किसानों को आर्थिक मदद से लेकर प्रशिक्षण देने तक सरकार उनकी सहायता कर रही है।

वृक्ष उत्पादन

किसान पेड़ की खेती करके अच्छा खासा लाभ अर्जित कर सकते हैं। लेकिन उसके लिए किसानों को अपनी एकड़ भूमि की बाडबंदी करनी अत्यंत आवश्यक है। जिससे कि फसल को जंगली जानवरों की वजह से होने वाली हानि का सामना ना करना पड़े। पेड़ की खेती करते समय किसान अच्छी आमदनी देने वाले वृक्ष जैसे महानीम, चन्दन, महोगनी, खजूर, पोपलर, शीशम, सांगवान आदि के पेड़ों का उत्पादन कर सकते हैं। बतादें, कि इन समस्त पेड़ों को बड़ा होने में काफी वर्ष लग जाते हैं। किसान भूमि की मृदा एवं तापमान अनुरूप फलदार वृक्ष का भी उत्पादन कर सकते हैं। फलदार वृक्षों से फल उत्पादन कर अच्छी कमाई की जा सकती है।

पशुपालन

पेड़ लगाने के व खेत की बाडबंदी के उपरांत सर्वप्रथम गाय या भैंस की बेहतर व्यवस्था करें। क्योंकि गाय व भैंस के दूध को बाजार में बेचकर अच्छा मुनाफा कमाया जाता है। साथ ही, इन पशुओं के गोबर से किसान अपनी फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए खाद की व्यवस्था भी कर सकते हैं। किसान चाहें तो पेड़ उत्पादन सहित खेत के सहारे-सहारे पशुओं हेतु चारा उत्पादन भी कर सकते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि बहुत से पशु एक दिन के अंदर 70-80 लीटर तक दूध प्रदान करते हैं। किसान बाजार में दूध को विक्रय कर प्रतिमाह हजारों की आय कर सकते हैं।


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मौसमी सब्जियां

किसान अपनी एक एकड़ भूमि का कुछ भाग मौसमी सब्जियों का मिश्रित उत्पादन कर सकते हैं। यदि किसान चाहें तो वर्षभर मांग में रहने वाली सब्जियां जैसे कि अदरक, फूलगोभी, टमाटर से लेकर मिर्च, धनिया, बैंगन, आलू , पत्तागोभी, पालक, मेथी और बथुआ जैसी पत्तेदार सब्जियों का भी उत्पादन कर सकते हैं। इन सब सब्जियों की बाजार में अच्छी मांग होने की वजह से तीव्रता से बिक जाती हैं। साथ इन सब्जिओं की पैदावार भी किसान बार बार कटाई करके प्राप्त हैं। किसान आधा एकड़ भूमि में पॉलीहाउस के जरिये इन सब्जियों से उत्पादन ले सकते हैं।

अनाज, दाल एवं तिलहन का उत्पादन

देश में प्रत्येक सीजन में अनाज, दाल एवं तिलहन का उत्पादन किया जाता है, सर्वाधिक दाल उत्पादन खरीफ सीजन में किया जाता हैं। बाजरा, चावल एवं मक्का का उत्पादन किया जाता है, वहीं रबी सीजन के दौरान सरसों, गेहूं इत्यादि फसलों का उत्पादन किया जाता है। इसी प्रकार से फसल चक्र के अनुसार प्रत्येक सीजन में अनाज, दलहन अथवा तिलहन का उत्पादन किया जाता है। किसान इन तीनों फसलों में से किसी भी एक फसल का उत्पादन करके 4 से 5 माह के अंतर्गत अच्छा खासा लाभ अर्जित कर सकते हैं।

सोलर पैनल

आजकल देश में सौर ऊर्जा के उपयोग में वृध्दि देखने को मिल रही है। बतादें, कि बहुत सारी राज्य सरकारें तो किसानों को सोलर पैनल लगाने हेतु धन प्रदान कर रही हैं। सोलर पैनल की वजह से किसानों को बिजली एवं सिंचाई में होने वाले खर्च से बचाया जा सकता है। साथ ही, सौर ऊर्जा से उत्पन्न विघुत के उत्पादन का बाजार में विक्रय कर लाभ अर्जित किया जा सकता है। जो कि प्रति माह किसानों की अतिरिक्त आय का साधन बनेगी। विषेशज्ञों द्वारा किये गए बहुत सारे शोधों में ऐसा पाया गया है, सोलर पैनल के नीचे रिक्त स्थान पर सुगमता से कम खर्च में बेहतर सब्जियों का उत्पादन किया जा सकता है।
इस प्रकार से अदरक की खेती करने पर होगा जबरदस्त मुनाफा

इस प्रकार से अदरक की खेती करने पर होगा जबरदस्त मुनाफा

वर्तमान समय में किसान भाई लगातार अपनी आय बढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं ताकि वो अपनी जरूरतों को पूरा कर सकें। लेकिन कुछ समय से देखा गया है कि जबरदस्त मेहनत करने के बावजूद किसान भाइयों को परंपरागत फसलों से मुनाफा लगातार कम होता जा रहा है। ऐसे में अब किसान भाई वैकल्पिक फसलों की तरफ रुख कर रहे हैं। ये फसलें कम समय में ज्यादा मुनाफा देने में सक्षम हैं। ऐसी ही एक फसल है अदरक की फसल। अदरक का उपयोग चाय से लेकर सब्जी, अचार में किया जाता है। इसलिए इस फसल की मांग बाजार में साल भर बनी रहती है। ऐसे में किसान भाई इस फसल को लगाकर अच्छी खासी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।

इस प्रकार की परिस्थियों में की जा सकती है अदरक की खेती

अदरक की खेती के लिए अलग से जमीन का चयन करने की बिल्कुल जरूरत नहीं होती है। इसकी
खेती पपीता और दूसरे बड़े पेड़ों के बीच आसानी से की जा सकती है। लेकिन फसल बोने के पहले मिट्टी की जांच करना आवश्यक है। जिस मिट्टी में अदरक की फसल लगाने जा रहे हैं उस मिट्टी का पीएच 6 से 7 के बीच होना चाहिए। इसके साथ ही खेत से पानी निकालने की भी समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। खेत में जरूरत से अधिक पानी जमा होने पर यह फसल सड़ सकती है। जिससे किसान को नुकसान उठाना पड़ सकता है। अगर मिट्टी की बात करें तो इसकी फसल के लिए बलुई दोमट सबसे उपयुक्त मानी गई है।

इस प्रकार से करें अदरक की बुवाई

बुवाई के पहले खेत को अच्छे से जुताई करके तैयार कर लें। इसके बाद खेत में अदरक के कंदों की बुवाई करें। प्रत्येक कंद के बीच 40 सेंटीमीटर का अंतर रखें। कंदों को मिट्टी में 5 सेंटीमीटर की गहराई में बोना चाहिए। अगर बीज की मात्रा की बात करें तो एक हेक्टेयर में बुवाई के लिए 2 से 3 क्विंटल तक अदरक के बीज की जरूरत पड़ती है। बुवाई के बाद ढालदार मेड़ बनाकर बीजों को हल्की मिट्टी या गोबर की खाद से ढक दें। बीजों को ढकते समय पानी निकासी की व्यवस्था का ध्यान रखें। ये भी देखें: गमले में अदरक उगाएं रोग प्रतिरोधक क्षमता बड़ाएं अदरक एक कंद है। इसलिए छाया में बोई गई फसल में अन्य फसलों की अपेक्षा ज्यादा उपज होती है। कई बार यह उपज 25 प्रतिशत तक अधिक हो सकती है। साथ ही छाया में बोई गई अदरक में कंदों का गुणवत्ता में भी उचित वृद्धि होती है।

पलवार का उपयोग करें

अदरक की खेती में पलवार का उपयोग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसको बिछाने से भूमि के तापक्रम एवं नमी में सामंजस्य बना रहता है। जिससे फसल का अंकुरण अच्छा होता है और वर्षा और सिंचाई के समय भूमि का क्षरण भी नहीं होता है। पलवार का उपयोग करने से बहुत हद तक खरपतवार पर भी नियंत्रण पाया जा सकता है। पलवार के लिए काली पॉलीथीन के अलावा हरी पत्तियां लम्बी घास, आम, शीशम, केला या गन्ने के ट्रेस का भी उपयोग किया जा सकता है। पलवार को फसल रोपाई के तुरंत बाद बिछा देना चाहिए। इसके बाद दूसरी बार बुवाई के 40 दिन बाद और तीसरी बार बुवाई के 90 दिन बाद बिछाना चाहिए।

निदाई, गुडाई तथा मिट्टी चढ़ाना

अदरक की फसल में निदाई, गुडाई फसल बुवाई के 4-5 माह बाद करना चाहिए। इस दौरान यदि खेत में किसी भी प्रकार का खरपतवार है तो उसे निकाल देना चाहिए। जब अदरख के पौधों की ऊंचाई 20-25 सेमी हो जाए तो पौधों की जड़ों में मिट्टी चढ़ाना चाहिए। इससे मिट्टी भुरभुरी हो जाती है और अदरक का आकार बड़ा हो जाता है।

इस तरह से करें खाद का प्रबंधन

अदरक की फसल बेहद लंबी अवधि की फसल है, इसलिए इसमें पोषक तत्वों की हमेशा मांग रहती है। जमीन में पोषक तत्वों की मांग को पूरा करने के लिए बुवाई से पहले 250-300 कुन्टल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सड़ी हुई गोबर या कम्पोस्ट की खाद को खेत में बिछा देना चाहिए। इसके साथ ही कंद रोपड़ के समय नीम की खली डालने पौधे में किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं लगती है और पौधा स्वस्थ्य रहता है। ये भी देखें: अदरक के भाव में कमी के चलते अदरक उत्पादक बेहद चिंता में, मूल्य में घटोत्तरी के बारे में ये बोले किसान इसके अलावा रासायनिक उर्वरकों में 75 किग्रा. नत्रजन, किग्रा कम्पोस्टस और 50 किग्रा पोटाश को प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग कर सकते हैं। इन उर्वरकों का प्रयोग करने के बाद  प्रति हेक्टेयर 6 किग्रा जिंक का प्रयोग भी किया जा सकता है। इससे फसल उत्पादन अच्छा प्राप्त होता है।

ऐसे करें हार्वेस्टिंग

अदरक की फसल 9 माह में तैयार हो जाती है। जिसके बाद इसे भूमि से निकालकर बाजार में बेंचा जा सकता है। लेकिन यदि किसान को लग रहा है कि उसे उचित दाम नहीं मिल रहे हैं तो इसे जमीन के भीतर 18 महीने तक छोड़ा जा सकता है। ऐसे में यह फसल किसी भी तरह से प्रभावित नहीं होती है। यह एक बड़ा मुनाफा देने वाली फसल है। ऐसे में  किसान भाई इस फसल को उगाकर लाखों रुपये बेहद आसानी से कमा सकते हैं।
जानें अदरक की कीमत में इतना ज्यादा उछाल किस वजह से आया है

जानें अदरक की कीमत में इतना ज्यादा उछाल किस वजह से आया है

जैसा कि हम जानते हैं, कि पूरे भारत में अदरक के भाव बेमौसम बारिश के कारण बढ़ रहे हैं। साथ ही, बंगाल में अदरक की कीमत में वृद्धि की वजह मणिपुर हिंसा है। वहां अदरक 12 से 15 हजार रुपये प्रति क्विंटल के भाव से बेचा जा रहा है। भारतीय रसोई में आपको और कुछ मिले ना मिले। लेकिन अदरक आपको अवश्य मिलेगा। भारतीय लोग सदियों से अदरक का उपयोग करते आ रहे हैं। इसे मसालों के अतिरिक्त एक औषधीय के तौर पर भी उपयोग किया जाता है। इसके अंदर जो गुण विघमान हैं, वह हमारे शरीर को वायरस और बैक्टीरिया से लड़ने में बेहद सहायता करते हैं। परंतु, फिलहाल अदरक खरीदना आपके लिए काफी कठिन होने वाला है। दरअसल, मणिपुर हिंसा के उपरांत ही अदरक की कीमतों में इजाफा देखने को मिला है।

अदरक की कीमतों में उछाल की क्या वजह है

भारत के विभिन्न राज्यों में बैमौसम बरसात ने किसानों का काफी नुकसान किया है।
अदरक की खेती करने वाले किसानों को भी बेमौमस बरसात ने तबाह कर दिया है। दरअसल, इसकी वजह से अदरक की कीमतों में तीव्रता से उछाल आया है, जिसके कारण किसान अपने नुकसान की भरपाई भी कर रहे हैं। कुछ दिनों पूर्व भी महाराष्ट्र का एक वीडियो वायरल हो रहा था, जिसमें कुछ किसान अदरक के भाव में हुए इजाफे के कारण खुशी से नाचते दिखाई दे रहे थे।

अदरक के दामों में उछाल की एक वजह मणिपुर हिंसा भी है

जैसा कि हम जानते हैं, कि पूरे भारत में अदरक के भाव बेमौसम बारिश के कारण बढ़ते जा रहे हैं। साथ ही, बंगाल में अदरक के भाव में उछाल की वजह मणिपुर हिंसा है। दरअसल, मणिपुर हिंसा के उपरांत बंगाल में बाहर से अदरक नहीं पहुंच पा रहा है, जिसकी वजह से वहां अदरक के भावों में 6 से 7 हजार रुपये प्रति क्विंटल का इजाफा देखने को मिल रहा है। यदि हम फुटकर भाव की बात करें, तो बंगाल की सब्जी मंडियों में अदरक 300 रुपये किलो के भाव से बेचा जा रहा है। ये भी पढ़े: घर के गमले में अदरक का पौधा : बढ़ाये चाय की चुस्की व सब्जियों का जायका

दक्षिण भारत में वाहनों के ना मिलने से अदरक की आवक में बाधा उत्पन्न हुई है

बंगाल सहित पूरे उत्तर भारत में अदरक दक्षिण भारत से भी पहुँचता है। परंतु, कर्नाटक चुनाव और मणिपुर हिंसा के कारण ढुलाई के वाहन भी नहीं मिल पा रहे हैं। इसकी वजह से किसान अपने अदरक को प्रदेश से बाहर नहीं भेज पा रहे हैं। यही कारण है, कि बंगाल समेत उत्तर भारत में भी अदरक की कीमत तीव्रता से बढ़ती जा रही है। विशेषज्ञों को लगता है, कि आगामी दिनों में अदरक का भाव और अधिक बढ़ सकता है। वैसे तो गर्मी के दिनों में अदरक की खपत कम होती है। परंतु, फिर भी यदि आपके घर में अदरक मौजूद नहीं है, तो बाजार से लाकर रख लें। क्योंकि, यह सब्जी में डालने के साथ-साथ सर्दी जुखाम के वक्त काढ़े बतौर भी उपयोग किया जाता है।
अदरक और टमाटर सहित इस फल की भी कीमत हुई दोगुनी

अदरक और टमाटर सहित इस फल की भी कीमत हुई दोगुनी

बारिश से फसल को हानि पहुंचने के कारण आजादपुर मंडी (दिल्ली में) में टमाटर की आपूर्ति काफी कम हो गई है। नई फसल आने तक भाव कुछ वक्त तक ज्यों की त्यों रहेंगी। टमाटर ने एक बार पुनः अपना रुद्र रूप दिखाना चालू कर दिया है। विगत एक पखवाड़े में टमाटर एवं अदरक के भावों में रॉकेट की रफ्तार जितनी बढ़ोत्तरी हुई है। कुछ समय पूर्व हुई बारिश से उत्तर भारत में टमाटर की फसल प्रभावित हुई है। वहीं दूसरी तरफ, अदरक के किसान अपनी फसल को अभी रोक रहे हैं। विगत वर्ष हुई क्षति की भरपाई के लिए कीमतों में बढ़ोत्तरी कर रहे हैं।

तरबूज की कीमत किस वजह से बढ़ी है

इसी मध्य, तरबूज के बीज की कीमत तीन गुना तक बढ़ चुकी है। दरअसल, इसको सूडान से आयात किया जाता है। परंतु, वहां पर सैन्य संघर्ष चल रहा है। जिसके चलते आपूर्ति काफी कम है। दिल्ली के एक व्यापारी संजय शर्मा का कहना है, कि एक किलो तरबूज के बीज का भाव फिलहाल 900 रुपये है। जो कि सूडान संघर्ष से पूर्व मात्र 300 रुपये थी।

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टमाटर का भाव दोगुना हो चुका है

खुदरा बाजार में टमाटर का भाव 15 दिन पूर्व 40 रुपये प्रति किलोग्राम थी। जिसमें फिलहाल तकरीबन 80 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई हैं। आजादपुर बाजार में टमाटर ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक कौशिक के मुताबिक बारिश से फसल को क्षति पहुंचने की वजह से आजादपुर मंडी (दिल्ली में) में टमाटर की आपूर्ति काफी कम हो चुकी है। नवीन फसल आने तक भाव कुछ वक्त तक इतना ही रहने वाला है। कौशिक का कहना है, कि दक्षिणी भारत से टमाटर की भारी मांग है, जिससे भी भाव बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा है, कि टमाटर फिलहाल हरियाणा एवं यूपी के कुछ इलाकों से आ रहे हैं। कीमतों का कम से कम दो माह तक ज्यों के त्यों रहने की आशंका है।

अदरक की कीमतों में हुई वृद्धि

अदरक की कीमत जो कि 30 रुपये प्रति 100 ग्राम थी। वह अब बढ़कर 40 रुपये तक हो गई है। ऑल इंडिया वेजिटेबल ग्रोअर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष श्रीराम गढ़वे का कहना है, कि पिछली साल किसानों को कम भाव के चलते नुकसान वहन करना पड़ा था। इस बार वह बाजार में सावधानी से फसल उतार रहे हैं। अब जब कीमतों में वृद्धि हुई है, तो वह अपनी फसल को बेचना चालू कर देंगे। भारत का वार्षिक अदरक उत्पादन करीब 2.12 मिलियन मीट्रिक टन है।
अदरक की इन उन्नत प्रजातियों की जुलाई-अगस्त में बुवाई कर अच्छा उत्पादन उठा सकते हैं

अदरक की इन उन्नत प्रजातियों की जुलाई-अगस्त में बुवाई कर अच्छा उत्पादन उठा सकते हैं

अथिरा: अथिरा अदरक की एक बेहतरीन प्रजाति है। बुवाई करने के उपरांत 220 से 240 दिन में इसकी फसल तैयार हो जाती है। अगर आप एक एकड़ में अथिरा किस्म की खेती करते हैं, तो 84 से 92 क्विंटल तक अदरक की पैदावार हो सकती है। अदरक एक औषधीय श्रेणी में आने वाली फसल है, जिसका इस्तेमाल खाने के साथ-साथ औषधियां बनाने में भी किया जाता है। यह सालों साल सुगमता से बाजार में मिल जाता है। हालांकि, मौसम के हिसाब से इसका भाव ऊपर- नीचे अस्थिर होता रहता है। परंतु, वर्तमान में अदरक ने महंगाई के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। इसकी कीमत 250 से 300 रुपये किलो के मध्य पहुंच गई है। हालांकि, ऐसे इसका भाव 100 से 120 रुपये किलो के आसपास ही रहता है। ऐसी स्थिति में बहुत सारे किसान अदरक बेचकर लखपति बन चुके हैं। यदि आप अदरक की खेती करने के विषय में सोच रहे हैं, तो आज हम आपको इसकी चार ऐसी प्रजातियों के विषय में बताएंगे, जिससे बंपर उत्पादन मिलेगा।

अदरक की बुवाई किस प्रकार की जाती है

सामान्य तौर पर अदरक की बुवाई अप्रैल से मई महीने के दौरान की जाती है। अधिकतर किसान इन्हीं दो महीनों में अदरक की खेती करते हैं। परंतु, वर्तमान में मानसून की दस्तक के उपरांत भी इसकी बुवाई की जाने लगी है। यदि आप चाहते हैं, तो जुलाई और अगस्त माह के दौरान भी इसकी बुवाई की जा सकती है। इस वजह से अदरक की खेती करने वाले किसान इसकी बुवाई करने से पूर्व नीचे दी गई बेहतरीन किस्मों का चयन जरूर करें। यदि आप खरीफ सीजन में वैज्ञानिक विधि से इन प्रजातियों की खेती करते हैं, तो अच्छी आमदनी होगी।

अदरक की कुछ प्रमुख किस्में

सुप्रभा: सुप्रभा प्रजाति का छिलका सफेद और चमकीला सा होता है। यह कम समयावधि में पककर तैयार होनी वाली प्रजाति है। इसकी बुवाई करने पर आप 225 से 230 दिनों में फसल की पैदावार कर सकते हैं। विशेष बात यह है, कि इस प्रजाति में प्रकंद विगलन रोग नहीं लगता है। क्योंकि, इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा विघमान होती है। इसका उत्पादन 80 से 92 क्विंटल प्रति एकड़ है।

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सुरुची: इसी प्रकार सुरुचि किस्म का कोई तोड़ ही नहीं है। यह एक प्रकार की अगेती प्रजाति है। रोपाई करने के 200 से 220 दिन के समयांतराल पर फसल तैयार हो जाती है। बतादें कि इसकी औसतन ऊपज 4.8 टन प्रति एकड़ होती है। नदिया: नदिया किस्म की खेती सबसे अधिक उत्तर भारत के किसान करते हैं। इसकी फसल को तैयार होने में काफी वक्त लगता है। लगभग 8 से 9 महीने में नदिया किस्म की फसल पक कर तैयार हो जाती है। साथ ही, इसकी औसत पैदावार 80 से 100 क्विंटल प्रति एकड़ है। अथिरा: अथिरा अदरक की एक बेहतरीन प्रजाति है। बुवाई करने के पश्चात 220 से 240 दिन में इसकी फसल तैयार हो जाती है। यदि आप एक एकड़ में अथिरा प्रजाति की खेती करते हैं, तो 84 से 92 क्विंटल तक अदरक का उत्पादन हो सकता है। इससे लगभग 22.6 प्रतिशत सूखी अदरक 3.4 प्रतिशत कच्चे रेशे और 3.1 प्रतिशत तेल की मात्रा प्राप्त होती है। अधिकांश किसान इसी प्रजाति की खेती करते हैं।