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अभियान

प्लास्टि कचरे के संकलन का महा​अभियान

प्लास्टि कचरे के संकलन का महा​अभियान

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जब पहली बार लोगों ने झाडू हाथ में लेकर सफाई करते हुए देखा पूरे देश में इसे अभियान का संबल मिल गया लेकिन बीते दिनों में इसमें कुछ सुस्ती आई। इस सुस्ती को सरकार ने आजादी के अमृत महोत्सव की श्रंखला से जोड़कर फिर शुरू किया है। इस बार अभियान की शुरूआत युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्री अनुराग ठाकुर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज से इसकी शुरूआत करेंगे। अभियान को देश के छह लाख गांवों तक पहुंचाया जाएगा।

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अभियान मुख्य रूप से सिंगल यूज प्लास्टिक वाले कचरे की सफाई को लेकर चलाया जाएगा। इसमें जन सहभागिता बनाने के लिए इसे अभियान का रूप दिया गया है। यह राष्ट्रव्यापी स्वच्छता अभियान एक से 31 अक्टूबर तक पूरे देश में आयोजित किया जाएगा। यह कार्यक्रम नेहरू युवा केंद्र संगठन (एनवाईकेएस) से संबद्ध युवा मंडलों (यूथ क्लब) और राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) से संबद्ध संस्थानों के नेटवर्क के माध्यम से देश भर के 744 जिलों के छह लाख गांवों में आयोजित किया जा रहा है। नई दिल्ली में पत्रकारों को जानकारी देते हुए युवा कार्यक्रम विभाग की सचिव श्रीमती उषा शर्मा  ने बताया कि पूरे देश में कचरे की सफाई को लेकर जागरूकता पैदा करना, लोगों को संगठित करना और उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना है। उन्होंने बताया कि ​अभियान के तहत 75 लाख किलो सिंगल यूज प्लास्टिक कचरे को इकट्ठा करके उसका निपटारा करना है। नगर निगम एवं जिला प्रशासन भी इस काम में लगेगा। कचरे के वजन की रसीद की पावती से ही उसकी पुष्टि होगी। स्वच्छता अभियान ऐतिहासिक,प्रसिद्ध और पर्यटन स्थलों, बस स्टैंड/रेलवे स्टेशनों, राष्ट्रीय राजमार्ग एवं शैक्षिक संस्थानों जैसी भीड़भाड़ वाली जगहों पर भी चलाया जाएंगा।
गाय के गोबर/पंचगव्य उत्पादों के व्यापक उपयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से

गाय के गोबर/पंचगव्य उत्पादों के व्यापक उपयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से "कामधेनु दीपावली अभियान" मनाने के लिए देशव्यापी अभियान शुरू किया

गौमाया गणेश अभियान की प्रतिक्रिया से उत्साहित, जिसने प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी द्वारा की गई अपील के आधार पर गणेश महोत्सव के लिए मूर्तियों के निर्माण में पर्यावरण के अनुकूल सामग्री के उपयोग को प्रोत्साहित किया, राष्ट्रीय कामधेनु आयोग (आरकेए) ने इस साल दीपावली त्योहार के अवसर पर "कामधेनु दीपावली अभियान" मनाने का अभियान शुरू किया है। इस अभियान के माध्यम से, आरकेए इस दिवाली महोत्सव के दौरान गाय के गोबर / पंचगव्य उत्पादों के व्यापक उपयोग को बढ़ावा दे रहा है। इस वर्ष के दिवाली उत्सव के लिए गोबर आधारित दीयों, मोमबत्तियों, धूप, अगरबत्ती, शुभ-लाभ, स्वस्तिक, समरणी, हार्डबोर्ड, वॉल-पीस, पेपर-वेट, हवन सामग्री, भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की मूर्तियों का निर्माण पहले ही शुरू हो चुका है।

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किसान गोबर से बने इन उत्पादों का व्यवसाय करके कुछ ही समय में अमीर बन सकते हैं आरकेए का लक्ष्य इस वर्ष दीपावली त्योहार के दौरान 11 करोड़ परिवारों में गाय के गोबर से बने 33 करोड़ दीयों को प्रज्वलित करना है। अब तक प्राप्त प्रतिक्रिया बहुत उत्साहजनक है और लगभग 3 लाख दीयों को केवल पवित्र शहर अयोध्या में ही प्रज्वलित किया जाएगा और 1 लाख दीये पवित्र शहर वाराणसी में जलाए जाएंगे। हजारों गाय आधारित उद्यमियों / किसानों / महिला उद्यमियों को व्यवसाय के अवसर पैदा करने के अलावा, गाय के गोबर से बने उत्पादों के उपयोग से स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण भी मिलेगा। यह गौशालाओं को आत्मनिर्भर ’बनाने में भी मदद करेगा। चीन निर्मित दीयों का पर्यावरण अनुकूल विकल्प प्रदान करके यह अभियान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया की परिकल्पना और अभियान को बढ़ावा देगा और पर्यावरणीय क्षति को कम करते हुए स्वदेशी ’आंदोलन को भी प्रोत्साहन देगा। आरकेए इस वर्ष की दीपावली में उपयोग की जाने वाली वस्तुओं के निर्माण में गाय के गोबर के उपयोग पर ध्यान केंद्रित करने और बढ़ावा देने के लिए वेबिनार की एक श्रृंखला के माध्यम से विभिन्न हितधारकों के साथ बातचीत कर रहा है। आरकेए ने देश भर में गौशालाओं में कामधेनु दीपावली से संबंधित वस्तुओं के उत्पादन और सुविधा के साथ देशव्यापी विपणन योजना लिए पूरे देश के हर जिले में अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से अपनी उपस्थिति बढ़ाई है। कामधेनु दीपावली के अभियान को बडे पैमाने पर सफल बनाने के लिए किसानों, निर्माताओं, उद्यमियों, गौशालाओं और अन्य संबंधित हितधारकों के विभिन्न खंडों को बड़े पैमाने पर शामिल किया जा रहा है।

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इस राज्य की आदिवासी महिलाएं गोबर से पेंट बनाकर आत्मनिर्भर बन रहीं हैं हाल ही में, आरकेए ने प्रधानमंत्री की अपील पर इस साल के गणेश महोत्सव के लिए भगवान गणेश की मूर्तियों के निर्माण में पर्यावरण के अनुकूल सामग्री का उपयोग करने के लिए सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्मों पर एक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया था। इसने डेयरी किसानों / बेरोजगार युवाओं / महिलाओं और युवा उद्यमियों / गौशालाओं / गोपालकों / स्वयं सहायता समूहों आदि जैसे विभिन्न हितधारकों में काफी रुचि पैदा की। राष्ट्रीय कामधेनु आयोग (आरकेए) का गठन प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा गायों और गौवंश के संरक्षण, सुरक्षा और विकास तथा पशु विकास कार्यक्रम को दिशा प्रदान करने के लिए किया गया है। मवेशियों से संबंधित योजनाओं के बारे में नीति बनाने और कार्यान्वयन को दिशा प्रदान करने के लिए आरकेए एक उच्च शक्ति वाला स्थायी निकाय है ताकि आजीविका उत्पादन पर अधिक जोर दिया जा सके। पशुधन अर्थव्यवस्था का निर्माण ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 73 मिलियन घरों में होता है। देश भले ही, दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बावजूद भारत में औसत दूध का उत्पादन दुनिया के औसत का केवल 50% है। कम उत्पादकता मुख्य रूप से आनुवंशिक स्टॉक में गिरावट, खराब पोषण और अवैज्ञानिक प्रबंधन के कारण है। गाय और गाय आधारित कृषि और गाय आधारित उद्योग के बारे में प्रवृत्ति को बदल दिया जाना चाहिए और ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से गरीब समाज के सामाजिक और आर्थिक कायाकल्प के लिए तुरंत इसे ठीक करने की आवश्यकता है। आरकेए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण को लागू करने की पूरी कोशिश कर रहा है। गौ-केंद्रित अर्थव्यवस्था अपना योगदान देकर इस लक्ष्य को प्राप्त करने में भी मदद कर सकती है। इस उद्देश्य के लिए, आरकेए किसानों, गौपालकों, युवाओं, महिलाओं, स्व-सहायता समूहों और अन्य हितधारकों की आय बढ़ाने के लिए विभिन्न गाय-पंचगव्य उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है।
पीएम कुसुम योजना में पंजीकरण करने का दावा कर रहीं फर्जी वेबसाइट : नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की एडवाइजरी

पीएम कुसुम योजना में पंजीकरण करने का दावा कर रहीं फर्जी वेबसाइट : नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की एडवाइजरी

पीएम कुसुम योजना को लेकर नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने जारी की अपनी एडवाइजरी

पीएम कुसुम योजना में पंजीकरण करने का दावा कर रहीं फर्जी वेबसाइट को लेकर नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने जारी की अपनी एडवाइजरी नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ( एमएनआरई ) ( Ministry of New and Renewable Energy (MNRE) )  ने अपना सुझाव देते हुए कहा है कि अपने व्हाट्सएप/एसएमएस पर ऐसी किसी भी लिंक पर क्लिक ना करें जो प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (पीएम-कुसुम) योजना के लिए पंजीकरण का दावा करते हैं अन्यथा इससे आपको भरी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

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क्या है पीएम-कुसुम योजना ?

नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा जारी की गई इस योजना के तहत आपको अपना सोलर पंप स्थापित करने और कृषि पंपों के सोलाराइजेशन के लिए सब्सिडी दी जाती है। जिससे आपको अधिक रुपए खर्च करने की जरूरत नहीं होगी। लेकिन इस योजना के लागू होने के बाद से ही कई सारी फर्जी वेबसाइट पीएम कुसुम योजना में पंजीकरण करने दावा कर रहीं हैं जिसका नुकसान कई बार आम लोगों को उठाना पड़ता है। इन फर्जी वेबसाइट के माध्यम से आम जनता को नुकसान ना हो इसके लिए मंत्रालय-एमएनआरआई परामर्श जारी किया गया है।

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एनएमआरआई एडवाइजरी

एनएमआरआई ने अपनी एडवाइजरी में कहा है कि योजना लागू होने के बाद कुछ वेबसाइट द्वारा स्वयं को पीएम कुसुम के लिए पंजीकरण पोर्टल होने का दावा किया गया है। ऐसी वेबसाइट लोगों को आर्थिक नुकसान पहुंचा रही हैं जो लोग इन वेबसाइट में रुचि लेते हैं उन लोगों से यह वेबसाइट धन की वसूली कर रही हैं और उनके बारे में जानकारी एकत्र कर रही हैं। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा वेबसाइटों से होने वाले नुकसान को टालने के लिए पहले भी सार्वजनिक नोटिस जारी करके लोगों को सलाह दी थी कि वे इस तरह की वेबसाइटों में पंजीकरण फीस न जमा करें और ना ही उन्हें अपनी जानकारी दें। जिसके चलते शिकायतें प्राप्त होने पर इन फर्जी वेबसाइटों के खिलाफ कार्रवाई की गई है और अनेक पंजीकरण पोर्टलों को ब्लॉक कर दिया गया है, लेकिन इसके बावजूद भी व्हाट्सएप और अन्य साधनों के द्वारा लाभार्थियों को बहकाया जा रहा है। इसलिए मंत्रालय यह परामर्श देता है कि इस योजना में रुचि रखने वाले लोग ऐसी किसी भी फर्जी वेबसाइट में जाकर व्यक्तिगत जानकारी देने या धन जमा करने से बचें और वेबसाइट के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करके उसकी प्रमाणिकता की जांच करें।

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मंत्रालय प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा और उत्थान महाअभियान योजना लागू कर रहा है जिसके अंतर्गत कृषक को सोलर पंप स्थापित करने और कृषि पंपों के सौरकरण के लिए सब्सिडी दी जाती है। किसान 2 मेगावाट तक ग्रिड से जुड़े सौर विद्युत संयंत्रों को भी स्थापित कर सकते हैं। यह योजना राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित विभागों के द्वारा लागू की जा रही है जिसकी संपूर्ण जानकारी एमएनआरआई की वेबसाइट www.nmre.gov.in. पर उपलब्ध है। योजना में भाग लेने के लिए पात्रता और क्रियान्वयन प्रक्रिया संबंधी जानकारी प्राप्त करने के लिए मंत्रालय द्वारा जारी की गई वेबसाइट http://www.mnre.gov.in या पीएम-कुसुम सेंट्रल पोर्टल https://pmkusum.mnre.gov.in पर उपलब्ध है और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए टोल फ्री नंबर 1800-180-3333 डायल करके इस योजना संबंधी संपूर्ण जानकारी आप प्राप्त कर सकते हैं।
कुवैत में खेती के लिए भारत से जाएगा 192 मीट्रिक टन गाय का गोबर

कुवैत में खेती के लिए भारत से जाएगा 192 मीट्रिक टन गाय का गोबर

गोवंश पालकों के लिए खुशखबरी - कुवैत में खेती के लिए भारत से जाएगा १९२ मीट्रिक टन गाय का गोबर

नई दिल्ली। गोवंश पालकों के लिए खुशखबरी है। अब गोवंश का गोबर बेकार नहीं जाएगा। सात समुंदर पार भी गोवंश के गोबर को अब तवज्जो मिलेगी। अब पशुपालकों को गाय के गोबर की उपयोगिता समझनी पड़ेगी। पहली बार देश से 192 मीट्रिक टन गोवंश का गोबर कुवैत में खेती के लिए जाएगा। गोबर को पैक करके कंटेनर के जरिए 15 जून से भेजना शुरू किया जाएगा। सांगानेर स्थित श्री पिंजरापोल गौशाला के सनराइज ऑर्गेनिक पार्क (
sunrise organic park) में इसकी सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं।

कुवैत में जैविक खेती मिशन की शुरुआत होने जा रही है।

भारतीय जैविक किसान उत्पादक संघ (Organic Farmer Producer Association of India- OFPAI) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अतुल गुप्ता ने बताया कि जैविक खेती उत्पादन गो सरंक्षण अभियान का ही नतीजा है। जिसकी शुरुआत हो चुकी है। पहली खेप में 15 जून को कनकपुरा रेलवे स्टेशन से कंटेनर रवाना होंगे। श्री गुप्ता ने बताया कि कुवैत के कृषि विशेषज्ञों के अध्ययन के बाद फसलों के लिए गाय का गोबर बेहद उपयोगी माना गया है। इससे न केवल फसल उत्पादन में बढ़ोतरी होती है, बल्कि जैविक उत्पादों में स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर देखने को मिलता है। सनराइज एग्रीलैंड डवलेपमेंट को यह जिम्मेदारी मिलना देश के लिए गर्व की बात है।

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राज्य सरकारों की भी करनी चाहिए पहल

- गाय के गोबर को उपयोग में लेने के लिए राज्य सरकारों को भी पहल करनी चाहिए। जिससे खेती-किसानी और आम नागरिकों को फायदा होगा। साथ ही स्वास्थ्यवर्धक फसलों का उत्पादन होगा। प्राचीन युग से पौधों व फसल उत्पादन में खाद का महत्वपूर्ण उपयोग होता हैं। गोबर के एंटीडियोएक्टिव एवं एंटीथर्मल गुण होने के साथ-साथ 16 प्रकार के उपयोगी खनिज तत्व भी पाए जाते हैं। गोबर इसमें बहुत महत्वपूर्ण है। सभी राज्य सरकारों को इसका फायदा लेना चाहिए।

गाय के गोबर का उपयोग

- प्रोडक्ट विवरण पारंपरिक भारतीय घरों में गाय के गोबर के केक का उपयोग यज्ञ, समारोह, अनुष्ठान आदि के लिए किया जाता है। इसका उपयोग हवा को शुद्ध करने के लिए किया जाता है क्योंकि इसे घी के साथ जलते समय ऑक्सीजन मुक्त करने के लिए कहा जाता है। गाय के गोबर को उर्वरक के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। ये भी पढ़े : सीखें वर्मी कंपोस्ट खाद बनाना 1- बायोगैस, गोबर गैस : गैस और बिजली संकट के दौर में गांवों में आजकल गोबर गैस प्लांट लगाए जाने का प्रचलन चल पड़ा है। पेट्रोल, डीजल, कोयला व गैस तो सब प्राकृतिक स्रोत हैं, किंतु यह बायोगैस तो कभी न समाप्त होने वाला स्रोत है। जब तक गौवंश है, अब तक हमें यह ऊर्जा मिलती रहेगी। एक प्लांट से करीब 7 करोड़ टन लकड़ी बचाई जा सकती है जिससे करीब साढ़े 3 करोड़ पेड़ों को जीवनदान दिया जा सकता है। साथ ही करीब 3 करोड़ टन उत्सर्जित कार्बन डाई ऑक्साइड को भी रोका जा सकता है। 2- गोबर की खाद : गोबर गैस संयंत्र में गैस प्राप्ति के बाद बचे पदार्थ का उपयोग खेती के लिए जैविक खाद बनाने में किया जाता है। खेती के लिए भारतीय गाय का गोबर अमृत समान माना जाता था। इसी अमृत के कारण भारत भूमि सहस्रों वर्षों से सोना उगलती आ रही है। गोबर फसलों के लिए बहुत उपयोगी कीटनाशक सिद्ध हुए हैं। कीटनाशक के रूप में गोबर और गौमूत्र के इस्तेमाल के लिए अनुसंधान केंद्र खोले जा सकते हैं, क्योंकि इनमें रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों के बिना खेतिहर उत्पादन बढ़ाने की अपार क्षमता है। इसके बैक्टीरिया अन्य कई जटिल रोगों में भी फायदेमंद होते हैं। ये भी पढ़े : सीखें नादेप विधि से खाद बनाना 3- गौमूत्र अपने आस-पास के वातावरण को भी शुद्ध रखता है। कृषि में रासायनिक खाद्य और कीटनाशक पदार्थ की जगह गाय का गोबर इस्तेमाल करने से जहां भूमि की उर्वरता बनी रहती है, वहीं उत्पादन भी अधिक होता है। दूसरी ओर पैदा की जा रही सब्जी, फल या अनाज की फसल की गुणवत्ता भी बनी रहती है। जुताई करते समय गिरने वाले गोबर और गौमूत्र से भूमि में स्वतः खाद डलती जाती है। 4- कृषि में रासायनिक खाद्य और कीटनाशक पदार्थ की जगह गाय का गोबर इस्तेमाल करने से जहां भूमि की उर्वरता बनी रहती है, वहीं उत्पादन भी अधिक होता है। दूसरी ओर पैदा की जा रही सब्जी, फल या अनाज की फसल की गुणवत्ता भी बनी रहती है। जुताई करते समय गिरने वाले गोबर और गौमूत्र से भूमि में स्वतः खाद डलती जाती है। 5- प्रकृति के 99% कीट प्रणाली के लिए लाभदायक हैं। गौमूत्र या खमीर हुए छाछ से बने कीटनाशक इन सहायक कीटों को प्रभावित नहीं करते। एक गाय का गोबर 7 एकड़ भूमि को खाद और मूत्र 100 एकड़ भूमि की फसल को कीटों से बचा सकता है। केवल 40 करोड़ गौवंश के गोबर व मूत्र से भारत में 84 लाख एकड़ भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है। 6- गाय के गोबर का चर्म रोगों में उपचारीय महत्व सर्वविदित है। प्राचीनकाल में मकानों की दीवारों और भूमि को गाय के गोबर से लीपा-पोता जाता था। यह गोबर जहां दीवारों को मजबूत बनाता था वहीं यह घरों पर परजीवियों, मच्छर और कीटाणुओं के हमले भी रोकता था। आज भी गांवों में गाय के गोबर का प्रयोग चूल्हे बनाने, आंगन लीपने एवं मंगल कार्यों में लिया जाता है। 7- गोबर के कंडे या उपले : वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय के गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है। आम मान्यता है कि गाय के गोबर के कंडे से धुआं करने पर कीटाणु, मच्छर आदि भाग जाते हैं तथा दुर्गंध का नाश हो जाता है। कंडे पर रोटी और बाटी को सेंका जा सकता है। 8- गोबर का पाउडर के रूप में खजूर की फसल में इस्तेमाल करने से फल के आकार में वृद्धि के साथ-साथ उत्पादन में भी बढ़ोतरी होती है।

भारत मे 30% गोबर से बनते हैं उपले

- भारत में 30% गोबर से उपले बनते हैं। जो अधिकांश ग्रामीण अंचल में तैयार किए जाते हैं। इन उपलों को आग जलाने के लिए उपयोग में लिया जाता है। जबकि ब्रिटेन में हर वर्ष 16 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन किया जाता है। वहीं चीन में डेढ़ करोड़ परिवारों को घरेलू ऊर्जा के लिए गोबर गैस की आपूर्ति की जाती है। अमेरिका, नेपाल, फिलीपींस तथा दक्षिणी कोरिया ने भारत से जैविक खाद मंगवाना शुरू कर दिया है। -------- लोकेन्द्र नरवार
महाराष्ट्र में शुरू हुई कपास की खेती के लिए अनोखी मुहिम - दोगुनी होगी किसानों की आमदनी

महाराष्ट्र में शुरू हुई कपास की खेती के लिए अनोखी मुहिम - दोगुनी होगी किसानों की आमदनी

कपास की खेती से दोगुनी होगी किसानों की आमदनी - महाराष्ट्र में शुरू हुई कपास की खेती के लिए अनोखी मुहिम

मुम्बई। कपास की खेती किसानों के लिए सफेद सोना बन गई है। भले ही केन्द्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए कॉटन का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 6380 रु. तय किया है। जबकि महाराष्ट्र में किसानों को कॉटन का भाव 12000 रु. प्रति क्विंटल मिल रहा है। इसीलिए इस साल कपास की बुवाई पर किसान काफी जोर दे रहे हैं। कृषि विभाग भी चाहता है कि किसान ज्यादा से ज्यादा कपास की बुवाई करें, जिससे किसानों को फायदा मिले। और किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाए। कृषि विभाग के अधिकारियों के मार्गदर्शन और किसानों की भागी से इस बार उत्पादन में वृद्धि होने की उम्मीद जताई जा रही है। महाराष्ट्र के कई गांवों में कपास की एक ही किस्म लगाने और उत्पादन में इजाफा करने का प्लान बनाया गया है।

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कपास का रकबा बढाने के लिए पहल

- 'एक-गांव, एक-पहल' के तहत महाराष्ट्र के 63 गांवों में 6 हजार 225 हेक्टेयर में एक साथ कपास की बुवाई की जाएगी। इसकी शुरुआत भी हो चुकी है। यहां कपास का रकबा साल दर साल बढ़ रहा है। इस अभियान का मकसद तभी पूरा होगा, जब किसानों को फसल का पूरा दाम मिले। ये भी देखें: कपास की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

ये ब्लॉक होंगे अभियान में शामिल

- 'एक गांव-एक किस्म' अभियान के तहत नगर तालुका में 9 गांव शामिल होंगे। इसमें 774 हेक्टेयर में कपास की खेती होगी। पथरडी तालुका में 13 गांवों को शामिल किया गया है। इनमें 1460 हेक्टेयर क्षेत्र शामिल होगा। शेवगांव तालुका के 8 गांवों में 1 हजार 200 हेक्टेयर एरिया शामिल किया जाएगा। इस पहल के जरिए रकबा तो बढ़ेगा ही साथ में उत्पादन में भी इजाफा होगा. जिससे किसानों की आय बढ़ेगी। ------ लोकेन्द्र नरवार
फसल बीमा सप्ताह के तहत जागरूकता अभियान शुरू

फसल बीमा सप्ताह के तहत जागरूकता अभियान शुरू

खरीफ सीजन की बुआई के साथ ही पुरे देश में फसलों का बीमा की प्रक्रिया शुरू हो गयी है। फसलों का बीमा कराने के लिए पंजीयन करने का काम शुरू हो गया है। फसल बीमा योजना का लाभ किसानो को अधिक से अधिक मिले, इसके लिये सरकारी स्तर पर प्रयास किये जा रहे हैं। अधिक से अधिक किसान योजना के तहत अपनी फसलों का बीमा करवाएँ, इसी को लेकर विभिन्न राज्य सरकारों के साथ ही केंद्र सरकार द्वारा जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। फसल बीमा योजना (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana - PMFBY) को लेकर जागरूकता अभियान के तहत ही देशभर में 7 जुलाई तक फसल बीमा सप्ताह मनाया जा रहा है।

जागरूकता अभियान के तहत फसल बीमा वाहनों को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया :

शुक्रवार को राजस्थान के कृषि मंत्री श्री लालचंद कटारिया ने 35 फसल बीमा वाहनों को हरी झण्ड़ी दिखाकर रवाना किया। मौके पर कृषि मंत्री श्री कटारिया नें कहा कि इस वैन केम्पेन द्वारा राज्य के दूर-दराज के गांवों एवं किसानों तक कृषक बीमा पॉलिसी का प्रचार-प्रसार किया जायेगा और जानकारी पहुंचाई जाएगी।

किसानों को फसल बीमा क्लेम 15 हजार 800 करोड़ रूपये का भुगतान :

कृषि मंत्री श्री कटारिया ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अन्तर्गत पिछले साढे तीन वर्षों में अनावृष्टि, अतिवृष्टि और बाढ़ के कारण फसलों को भारी नुकसान हुआ था, जिसकी भरपाई के लिए 149 लाख फसल बीमा पॉलिसी धारक किसानों को तकरीबन 15 हजार 800 करोड़ रूपये का फसल बीमा क्लेम वितरित किये गये हैं। फसल बीमा क्लेम में खरीफ 2021 में 39 लाख 56 हजार तथा रबी 2021-22 में 25 लाख कृषक बीमा पॉलिसियों का वितरण किया गया है। कृषि मंत्री श्री कटारिया ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा खरीफ 2021 में गांव-गांव में कैम्प लगाकर पॉलिसी वितरित करने के निर्णय लिया गया था।

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इसकी प्रशंसा करते हुए केन्द्र सरकार ने भी पूरे देश में फसल पॉलिसियां वितरण करने के लिये एक अभियान शुरू करने का निर्णय लिया है। इस अभियान का नाम ‘‘मेरी पॉलिसी मेरे हाथ‘‘ ('Meri Policy Mere Haath' Campaign) है। उन्होंने बताया कि 2022 खरीफ में कुल 284 वाहनों के माध्यम से राज्य के सभी गाँव और तहसीलों में किसानों को फसल बीमा की जानकारियां दी जायेंगी। इसी अभियान के तहत सभी जिलों कलेक्टरों द्वारा 204 फसल बीमा रथों को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया है। बीमा रथ के माध्यम से किसानों को सरल भाषा में पॉलिसी के बारे में बताया जाएगा। वहीँ किसान पाठशाला के माध्यम से भी प्रचार-प्रसार किया जायेगा। अभियान के दौरान 1 से 31 जुलाई तक किसानों को बीमा राशि, बीमित फसलों के प्रकार तथा कुल बीमित क्षेत्र आदि की जानकारी दी जाएगी। 

ज्ञात हो कि फसल बीमा योजना को लेकर किसान भी बहुत जागरूक हैं और चाहते हैं की फसल बीमा करायें। क्योंकि जलवायु के बदलते मिजाज और बाढ़ और सुखा से फसलों को होने वाली क्षति की भरपाई के लिये फसल बीमा बहुत जरूरी है। पिछले वर्ष अतिवृष्टि और अनावृष्टि के कारण फसलों को काफी क्षति हुई थी ऐसे में फसल बीमा किसानो का सबसे बड़ा सहारा बना।

रोका-छेका अभियान: आवारा पशुओं से फसलों को बचाने की पहल

रोका-छेका अभियान: आवारा पशुओं से फसलों को बचाने की पहल

फसलों को आवारा पशुओं से काफी नुक्सान होता है. देश के विभिन्न राज्यों में यह समस्या काफी विकराल होती जा रही है. उत्तर प्रदेश के किसान आवारा पशुओं से फसल को बचाने के लिए रात रात भर खेतों की रखवाली के लिए मजबूर हैं. किसानों ने सरकार से फसलों को आवारा पशुओं से बचाने के लिए गुहार भी लगायें हैं. बिहार में नीलगाय ( घोड्परास ) के आतंक से त्रस्त हैं. सरकार ने भी इस ओर कड़े कदम उठाते हुये इन्हें मारने की इजाजत दी है और इसके लिए बाहर से शूटर भी मंगाए गए हैं. कहने का तात्पर्य यह है की कमोबेश आवारा पशु फसल के लिए अभिशाप बने हुये हैं.

रोका - छेका अभियान

छत्तीसगढ़ के किसान भी आवारा पशुओं द्वारा फसलों को बर्बाद किये जाने को लेकर परेशान हैं. इसके कारण किसानों को काफी नुक्सान सहना पड़ता है. फसलों को आवारा पशुओं से बचाने की दिशा में छत्तीसगढ़ सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है. आवारा पशुओं से फसलों को बचाने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा रोका – छेका अभियान (Roka Cheka Abhiyan) चलाई जा रही है. 10 जुलाई से 20 जुलाई तक चालु खरीफ के समय ये अभियान चलाई जा रही है. इसको लेकर सरकार द्वारा किसानों से सहयोग की अपील की गयी है.

ये भी पढ़ें: भारत मौसम विज्ञान विभाग ने दी किसानों को सलाह, कैसे करें मानसून में फसलों और जानवरों की देखभाल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने किसानों से कहा है कि रोका – छेका हमारी परम्परा में है. योजना को सफल बनाने की अपील करते हुये उन्होंने कहा,  किसान संकल्प लें कि चराई के लिए पशुओं को खुले में नहीं छोड़ें. घर, खलिहान या गौठानों (गौशाला) में पशुओं को रखें और उनके चारा पानी का इंतजाम करें. रोका छेका का काम, अब गांव में गौठानों के बनने से सरल हो गया है। गौठानों में पशुओं की देखभाल और उनके चारे-पानी का प्रबंध समितियां कर रही हैं. खरीफ फसलों को आवारा पशुओं से बचाने के लिए पुरे प्रदेश में यह अभियान चलाया जा रहा है. इस दौरान पशुओं का स्वास्थ्य परीक्षण भी किया जाएगा. ये भी पढ़ें : गाय के गोबर से बन रहे सीमेंट और ईंट, घर बनाकर किसान कर रहा लाखों की कमाई

पशुओं के किये स्वास्थ्य जांच शिविर का आयोजन

फसल को चराई से बचाने के लिए पशुओं को नियमित रूप से गौठान में लाने के लिए रोका-छेका अभियान के तहत ढिंढोरा पीटकर प्रचार-प्रसार भी कराया जा रहा है. गौठानों में पशु चिकित्सा शिविर लगाकर पशुओं के स्वास्थ्य की जांच, पशु नस्ल सुधार के लिए कृत्रिम गर्भधान एवं टीकाकरण किया जा रहा है. पशुओं में बरसात के मौसम में गलघोंटू या घरघरा रोग और एकटंगिया की बीमारी होती है। पशुओं को इन दोनों बीमारियों के संक्रमण से बचाने के लिए पशुधन विकास विभाग द्वारा पशुओं को टीका लगाया जा रहा है. गोठानों में लगने वाले इस शिविर में किसान अपने पशुओं का स्वस्थ्य जांच और टीकाकरण भी करा सकते हैं।  खुरपका और मुंहपका रोग के रोकथाम की कवायद तेज की गयी। ये भी पढ़ें : तुलसी की खेती : अच्छी आय और आवारा पशुओं से मुक्ति

पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था

राज्य में पशुधन की बेहतर देखभाल हो सके इसी उद्देश्य से गांव में गौठानों का निरमान कराया जा रहा है. सरकारी आंकड़ों की माने तो अब तक 10,624 गौठानों के निर्माण की स्वीकृति दे दी गयी है, जिसमें से 8408 गौठान का निर्माण कार्य पूर्ण हो चूका है. चारागाहों का भी तेजी से विकास किया जा रहा है, ताकि गौठानों में आने वाले पशुओं को सुखा चारा के साथ हरा चारा भी उपलब्ध कराई जा सके. राज्य के 1200 से अधिक गौठानों में हरे चारे का उत्पादन भी पशुओं के लिए किया जा रहा है।  
पंजाब सरकार पराली जलाने से रोकने को ले कर सख्त, कृषि विभाग के कर्मचारियों की छुट्टी रद्द..

पंजाब सरकार पराली जलाने से रोकने को ले कर सख्त, कृषि विभाग के कर्मचारियों की छुट्टी रद्द..

पंजाब के कृषि मंत्री ने पराली जलाने (stubble burning) पर प्रतिबंध को जमीनी स्तर पर लागू करने के लिए पिछले दिनों अधिकारियों के साथ बैठक की। बैठक के दौरान, उन्होंने अधिकारियों को जमीनी स्तर पर किसानों के साथ मिलकर काम करने की सलाह दी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रतिबंध का ठीक से पालन हो। खेती का सीजन जोरों पर है। आने वाले दिनों में धान की फसल कटाई के लिए तैयार हो जाएगी। बहुत जगह फसल तैयार भी हो चुकी हैं और कटाई शुरू हो चुकी है। इसी कड़ी में पंजाब सरकार ने बहुत ही सक्रिय भूमिका निभाई है। पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए इस बार पंजाब सरकार जमीनी स्तर पर सक्रिय भूमिका निभा रही है और इसको ध्यान मे रखते हुए पंजाब सरकार ने एक उल्लेखनीय निर्णय लिया है जिसमे कृषि विभाग सहित सभी कर्मचारियों की छुट्टी रद्द कर दी है। कृषि मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल (Kuldeep Singh Dhaliwal ने इस बारे में जानकारी साझा की है। ये भी पढ़े: पराली जलाने पर रोक की तैयारी

इस तारीख तक छुट्टी रद्द

पंजाब सरकार ने पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए राज्य के कृषि विभाग के कर्मचारियों की 7 नवंबर तक की छुट्टी रद्द करने का फैसला किया है। दरअसल पंजाब के कृषि मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने बीते रोज पराली जलाने को रोकने के लिए अधिकारियों के साथ बैठक की और जिला स्तर पर क्रियान्वयन करने के लिए इसके रोडमैप पर चर्चा की। मंत्री महोदय ने कहा कि राज्य में पराली जलाने की प्रथा को रोकने के लिए विभिन्न कदम उठाए जा रहे हैं। इन कदमों में शिक्षा और प्रवर्तन भी शामिल हैं। मंत्री ने कृषि विभाग के सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को जमीनी स्तर पर ध्यान केंद्रित कर काम करने के लिए कहा। उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे 7 नवंबर तक विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को छुट्टी न दें। कृषि मंत्री ने पराली जलाने को रोकने के लिए जागरूकता अभियान चलाने और सभी गतिविधियों की निगरानी के लिए एक राज्य स्तरीय समिति का गठन किया है। सख्त निर्देश देते हुए मंत्री महोदय ने सेंट्रल कंट्रोल रूम बनाने के भी आदेश दिए हैं। ये भी पढ़े: पराली प्रदूषण से लड़ने के लिए पंजाब और दिल्ली की राज्य सरकार एकजुट हुई दिल्ली-एनसीआर में हर साल सर्दी के मौसम में गंभीर वायु प्रदूषण होता है। प्रदूषण की शुरुआत अक्टूबर महीने से हो जाती है। यह वही समय है जब पंजाब और हरियाणा में किसानों द्वारा पराली जलाया जाता है जो की एक गंभीर समस्या का रूप ले लेता है। हाल के वर्षों में पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए तरह-तरह के प्रयास किए जा रहे हैं जिसमे किसानों को जागरूक भी किया जा रहा हैं। इसी समय दिल्ली एनसीआर में पराली के धुएं से होने वाले प्रदूषण का अनुपात 40% से अधिक दर्ज किया है। खुले में पराली को जलाने से वातावरण में बड़ी मात्रा में हानिकारक प्रदूषक निकलते हैं, जिनमें गैसें भी शामिल हैं जो पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं। ये प्रदूषक को वातावरण में फैलने से रोकना चाहिए क्योंकि ये भौतिक और रासायनिक परिवर्तनों से गुजरते हैं और अंततः धुंध की मोटी चादर बना देते हैं। इससे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ये भी पढ़े: पंजाब सरकार बनाएगी पराली से खाद—गैस पराली जलाने से बचने के लिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार राष्ट्रीय पराली नीति बनाई है। राज्यों को इसका सख्ती से पालन करने का दिशा निर्देश भी दिया गया है। आज तक, खेतों में पराली को नष्ट करने के लिए कोई प्रभावी और उपयुक्त तरीके और मिशनरी सामने नहीं आए हैं। हैपीसीडर व एसएमएस सिस्टम से प्रणाली भूसे को खेत में मिलाया जा सकता है, लेकिन यह पूरी तरह से ठोस प्रणाली नहीं है जिससे खेत अगली फसल के लिए पूरी तरह से तैयार हो सके। पराली जलाने की समस्या के समाधान के लिए पिछले चार साल में केंद्र सरकार ने पंजाब पर करोड़ों रुपये खर्च किए हैं, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है। खेतों में अभी भी बड़ी संख्या में पराली जलाई जा रही है।
दीवाली पर अधिक मांग की वजह से मिलावटी हो रहे तेल, दाल और मसाले

दीवाली पर अधिक मांग की वजह से मिलावटी हो रहे तेल, दाल और मसाले

दिवाली के समय तेल, दाल और मसालों के साथ साथ मिठाईयों में भी मिलावट होने की खबर आती रहती है, इसका मुख्य कारण त्योहारों पर खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग है। क्यूँकि त्योहारों पर पकवान मिठाईयां एवं अन्य भोज्य सामग्री हर घर में बनती हैं, जिसकी पूर्ति करने और ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में मिलावटखोर दाल, तेल और मसालों में मिलावट करते हैं, साथ ही खाद्य पदार्थों को जहरीला बना देते हैं, जिससे खाने वालों की सेहत खराब हो जाती है। दिवाली से पहले ही तेल, दाल, मसाले सब्जी व घी में मिलावट करने की बात सामने आयी है। मिलावटयुक्त खाद्य पदार्थों से बचने का प्रयास करें, अच्छी तरह जाँच परख कर ही खरीदें खाद्य सामग्री। इन दिनों खाद्य पदार्थों को लेकर बेहद सजग रहने की आवश्यकता है।


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कैसे पहचाने मिलावटी खाद्य पदार्थों को

दिवाली के आते ही खाद्य पदार्थों में मिलावट करने वालों की शिकायत आना शुरू हो जाती है इसलिए राजस्थान सरकार ने 'शुद्ध के लिए युद्ध अभियान' (Shuddh Ke Liye Yuddh Abhiyan) शुरू किया है। इस अभियान के अंतर्गत जितने भी खाद्य पदार्थों में मिलावट की शिकायत आती है, जैसे की दाल, तेल, मसाले, घी एवं अनाज आदि, सभी की अच्छी तरह जाँच की जाएगी। हालाँकि जिला जाँच विभाग ने खाद्य उघोगों से कई हजार टन मिलावटी खाद्यान्न पदार्थों को पकड़ा है। ऐसे में किसी भी पदार्थ पर आँख बंद करके भरोसा करना खतरे से खाली नहीं है। त्योहारों पर मिलावट की ये खबरें अब बेहद आम बात हो गयी है, आये दिन किसी न किसी खाद्य पदार्थ में मिलावट होने की खबर से उपभोक्ताओं के अंदर भय व्याप्त हो चुका है। राजस्थान सरकार का 'शुद्ध के लिए युद्ध अभियान' लोगों को मिलावटी जहर खाने से बचाने में बेहद सहायक साबित होगा।

क्या दालों में मिलाया जा रहा है धतूरा

राजस्थान जिला प्रशासन विभाग के अधिकारीयों द्वारा इस बात की शंका जताई गयी है कि दाल का वजन बढ़ाने के लिए धन के लालची लोग दाल में धतूरे के बीजों का मिश्रण कर देते हैं, जिससे दाल का वजन बढ़ जाता है। दाल में धतूरे को पहचानने के लिए सबसे आसान तरीका यह है कि यदि दाल में काले काले दाने दिखें, तो उनको तुरंत निकालकर जाँच करें। क्योंकि अगर धतूरा दाल के साथ उबलने के बाद खा लिया, तो खाने वालों की तबियत बेहद खराब कर सकता है।


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क्या हरी सब्जियों और सरसों में भी मिलावट की आशंका है

सब्जियाँ और सरसों का तेल मानव जीवन का बेहद महत्वपूर्ण भाग है। प्रतिदिन जीने के लिए सब्जियों और तेलों की बेहद आवश्यकता होती है। हालांकि इनमे भी आजकल मिलावटखोर मिलावट करने लग गए हैं। जबकि सरसों के तेल का उपयोग खाने से लेकर त्वचा और बालों के लिए भी किया जाता है, ऐसे में अगर इन पदार्थों में मिलावट की जायेगी तो मानव जीवन बेहद प्रभावित होगा। सब्जियों को हरी भरी और ताजातरीन रखने के लिए न जाने कैसे कैसे केमिकल्स को इंजेक्ट किया जाता है, जिनसे सब्जियां तरोताजा तो रहती ही हैं, लेकिन लोगों को इन्हें खाने के उपरांत बेहद खराब अनुभव होता है।
इस राज्य में बनाए जा रहे हैं पशुओं के लिए आधार कार्ड जिससे मिल पायेगा सरकारी लाभ

इस राज्य में बनाए जा रहे हैं पशुओं के लिए आधार कार्ड जिससे मिल पायेगा सरकारी लाभ

पशुओं की यूआईडी टैगिंग सहित वैक्सीनेशन हेतु पशुपालन विभाग की तरफ से फिलहाल पशुओं हेतु 12 नंबर के टैग निर्मित हो रहे हैं। जो कि पशुओं हेतु आधार कार्ड की भाँति कार्य करेंगे। भारत सरकार द्वारा प्रत्येक देशवासी को पहचान हेतु आधार कार्ड व पहचान पत्र अनिवार्य किए हैं। प्रत्येक आधार कार्ड पर 12 अंक का एक नंबर लिखा होता है, जो कि व्यक्ति विशेष की पहचान प्रस्तुत करता है। इसी क्रम में पशुओं हेतु भी आधार कार्ड बांटे जा रहे हैं एवं इन पशुओं की पहचान करने हेतु 12 अंक का टैग भी निर्मित किया जा रहा है, इसके लिए पशु के मालिक से 5 रुपये का शुल्क लिया जाता है। हम आपको बतादें, कि 12 नंबर के इस Identification tag के माध्यम से पशुओं की पहचान व उनका समयानुसार टीकाकरण करवाना बेहद सुगम हो गया है। यह पहल पशुपालन विभाग द्वारा की गयी है, जिसको राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान के तहत समस्त पशुओं की टैगिंग करने एवं उनका पहचान पत्र के निर्माण हेतु चालू किया गया है। भारत में अधिकाँश मवेशियों को बीमारियों अथवा दुर्घटनाओं से जान-माल का खतरा होता है। बहुत बार तो पशुओं की पहचान करना बेहद कठिन होता है। इस तरह की परिस्थितियों में पशुओं की टैगिंग कर पहचान पत्र (12 अंकों का नंबर) प्रदान किया जाता है, इसकी सहायता से वर्तमान में पशुओं की पूर्ण जानकारी ऑनलाइन प्राप्त होगी।

राजस्थान के कोटा जनपद में टीकाकरण किया जा रहा है

आपको जानकारी हेतु बतादें, कि राजस्थान राज्य के कोटा जनपद में केंद्र सरकार के द्वारा संचालित
राष्ट्रीय पशुरोग नियंत्रण कार्यक्रम के माध्यम से पशुओं में खुरपका-मुंहपका रोग से बचाने हेतु राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान को चलाने का कार्य कर रहे हैं। इस अभियान के अंतर्गत मवेशियों को एफएमडी वैक्सीनेशन होगा। साथ ही, मिशन पशु आरोग्य योजना के माध्यम से पशुओं की पहचान हेतु कान में पीले रंग का 12 अंको का टैग होना भी बेहद आवश्यक है। अब हर पशुपालक को अपने पशु की यूआईडी टैगिंग करवानी होगी। पशु चिकित्सक के पास जाके स्वयं आधार कार्ड एवं रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर दें, उसके कुछ समय बाद आपके पशु का पंजीयन कर दिया जाएगा।

वैक्सीन लगवाने के लिए बेहद आवश्यक है टैगिंग

सरकार द्वारा पशुपालन के क्षेत्र में बहुत सारे बड़े परिवर्तन किए जा रहे हैं। लम्पी जैसी बीमारियों द्वारा गंभीर रूप से प्रभावित होने के कारण फिलहाल पशुओं की सेहत को लेकर बेहद कड़ाई बरती जा रही है। सरकार के निर्देशानुसार, अब से उन्हीं पशुओं का टीकाकरण कराया जाएगा, जिनके पास आधार कार्ड (12 अंकों का यूआईडी टैग) होगा।


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लम्पी स्किन डिजीज (Lumpy Skin Disease)
राजस्थान राज्य के कोटा जनपद में पशुओं के टीकाकरण से संबंधित यह शर्त रखी गई है, कि यहां तकरीबन 2.5 लाख गौवंश एवं भैंस है, उन सबका टीकाकरण कराना अति आवश्यक है। अभी तक 20,000 पशुओं का टीकाकरण किया जा चुका है। लंपी के संक्रमण की वजह से पशुओं के टीकाकरण के अधूरे लक्ष्य को जल्द पूर्ण किया जायेगा।

आखिर पशुओं को क्या लाभ मिलेगा

देश के आम नागरिक की पहचान उसके आधार कार्ड से होती है, इसी आधार पर समस्त सरकारी योजनाओं का फायदा लिया जाता है। अब इसी तरह मवेशियों की यूआईडी टैगिंग करके 12 अंक का आधार नंबर उपलब्ध करवाया जा रहा है। आपको बतादें कि इसके आधार पर पशुपालक को खुद के पशुओं का कृत्रिम गर्भाधान मतलब Artificial insemination की व्यवस्था की जाती है। इसके अलावा इस टैगिंग के माध्यम से पशुओं के अगले-पिछले टीकाकरण की पूर्ण जानकारी पशुपालकों को फोन पर ही प्राप्त हो जाएगी एवं पशुपालन से संबंधित बहुत सारी सरकारी योजनाओं से फायदा लेना भी आसान रहेगा।
किसान मोर्चा की खास तैयारी, म‍िलेट्स या मोटे अनाज को बढ़ावा देने का कदम

किसान मोर्चा की खास तैयारी, म‍िलेट्स या मोटे अनाज को बढ़ावा देने का कदम

केंद्र सरकार ने बजट में श्री अन्न योजना की शुरूआत की है. हालांकि पहले से ही केंद्र सरकार प्राकृतिक खेती के साथ-साथ मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही है. जिसे देखते हुए इस बार के बजट में सरकार ने किसानों की आमदनी को बढ़ाने के लिए इस योजना की शुरूआत की है. सरकार के मुताबिक मोटे अनाज और प्राकृतिक खेती से जमीन का वाटर लेबल बढ़ सकता है. इसके अलावा इस तरह की खेती में ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती. इस खुशखबरी के बीच बीजेपी (BJP) की कृषि विंग समेत किसान मोर्चा ने भी एक अभियान शुरू कर दिया है. यह राष्ट्रव्यापी अभियान कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों के कम इस्तेमाल को लेकर है. इस अभियान के तहत उन्होंने एक करोड़ लोगों तक अपना मैसेज पहुंचाने का लक्ष्य रखा है. इसके अलावा वह करीब एक लाख से भी ज्यादा गांवों की यात्रा कर रहे हैं. किसान मोर्चा के राज्य संयोजक और अन्य सह संयोजकों के नेतृत्व में यह यात्रा गंगा के किनारे बसे गांवों में की जा रही है.

13 फरवरी को प्रशिक्षण संगोष्ठी

13 फरवरी को किसान मोर्चा एक महत्वपूर्ण काम करने जा रहा है. जानकारी के मुताबिक वह न सिर्फ यात्राओं को बल्कि बीजेपी के कार्यकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण संगोष्ठी का भी आयोजन करने वाला है.बिंग के अधिकारी के नेतृत्व में इस संगोष्ठी का आयोजन किया जाएगा. इसके अलावा इसमें साइंटिस्ट, न्यूट्रीशनिस्ट और अन्य एक्सपर्ट्स शामिल होंगे. इस संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य बीजेपी के कार्यकर्ताओं को को जैविक खेती और बाजरे के बारे में जानकारी दी जाएगी. जिसके बाद वो अपने जिले के किसानों की इस विषय में मदद कर सकें. हालांकि इस संगोष्ठी के बाद सभी जिलों में इसी तरह के सत्र का आयोजन किया जाएगा.
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चौपाल और चर्चाओं का चलेगा सिलसिला

यूपी के शुक्रताल में अगले महीने से जन जागरण अभियान की शुरूआत होगी. जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत कई बीजेपी नेताओं की भागीदारी होगी. एक गांव परिक्रमा यात्रा भी इस अभियान का हिस्सा होगी. इसके अलावा इसमें किसान चौपाल और चर्चाओं का भी सिलसिला चलेगा. किसानों को किसान मोर्चा बजट से कई फायदे होंगे. जिसके चलते उन्हें शिक्षित करने के लिए एक हफ्ते का अभियान चल रहा है. इसके अलावा इस अभियान के जरिये किसानों को यह भी समझाना है कि, उन्हें सरकार की नीतियों से कैसे फायदा मिल सकता है. साथ ही यह भी बताना है कि, जैविक खेती को कैसे बढ़ाया जाए और नुकसानदायक रसायनों का इस्तेमाल कम किया जाए.
‘मेरी पॉलिसी मेरे हाथ’ अभियान जारी, किसानों को होगा फायदा

‘मेरी पॉलिसी मेरे हाथ’ अभियान जारी, किसानों को होगा फायदा

किसानों के हित में सरकारें एक से एक योजनाएं ला रही है. इसी की तर्ज में छत्तीसगढ़ के जशपुरनगर में एक खास अभियान की शुरुआत की गयी है. इस अभियान का नाम मेरी पॉलिसी मेरे हाथ है. बता दें आजादी के अमृत महोत्सव भारत 75 के तहत मेरी पॉलिसी मेरे हाथ नाम का अभियान शुरू हो चुका है. यह अभियान प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत खरीफ मौसम साल 2022 की तरह ही 15 फरवरी से इस अभियान को शुरू किया गया है. वहीं कृषि विभाग के अनुसार ‘मेरी पॉलिसी मेरे हाथ’ के अंतर्गत रबी सीजन 2022 से 2023 में ग्राम पंचायत स्तर पर जान प्रतिनिधियों की मौजूदगी में किसानों को क्रियान्वयक बीमा कंपनी इस फसल बीमा पॉलिसी को बांटेगी. ये भी देखें: PMFBY: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में किसान संग बीमा कंपनियों का हुआ कितना भला?

योजना से जुड़ने की अपील

इसके लिए कृषि विभाग द्वारा विरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी और समिति प्रबंधक आदिम जाति सेवा समितियों को निर्देशित किया गया है. साथ ही इस कार्य्रकम को सफल बनाने के लिए मौसम रबी 2022 से 2023 में जिन किसानों को बिमा हुआ है, उन्हें बीमा पत्रक बांटने के लिए योयोजना से जुड़े सभी स्टेकहोल्डर्स क्रियान्वयक बीमा कंपनी से समन्वय करना होगा, इसके अलावा मेरी पॉलिसी मेरे हाथ अभियान को ग्राम पंचायत स्तर से सफल संचालन और प्रक्रिया के हिसाब से उचित कार्यवाही के निर्देश भी दिए गये हैं.