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अमरूद

अमरूद की खेती कैसे करें: तरीका, किस्में, अमरूद के रोग और उनके उपाय

अमरूद की खेती कैसे करें: तरीका, किस्में, अमरूद के रोग और उनके उपाय

किसान और पौधे दोनों एक दूसरे के पूरक हैं. किसान जो भी फसल उगता है वो पौधे के रूप में ही होती है. इसमें फर्क सिर्फ इतना है की कुछ पौधे हमारी खाद्यान्य जरूरतें पूरी करते हैं और कुछ हमारी औषधीय जरूरतों को पूरा करते हैं. वैसे तो हम अपनी इस सीरीज में सभी किसानोपयोगी पौधों की बात करेंगें.पौधे किसान क्या हर जीव के लिए बहुत आवश्यक हैं. पेड़ों से हमें ऑक्सीजन मिलती है तथा इनसे हमें फर्नीचर और जलाने के लिए लकड़ी मिलती है. किसान को इनसे इनकम होती है जो की कम से कम जमीन में ज्यादा से ज्यादा आमदनी होती है. ये किसान और मिट्टी के ऊपर निर्भर करता है की कौन से फल या किस्म के पौधे को हमारी जमीन अच्छे से पकड़ती है. जिनमे अमरूद, आम, कैला , जामुन, शीशम , पीपल , महोगनी , सहजन , नीम , नीबू ,काकरोंदा, अनार , चन्दन इत्यादि..

अमरूद खाने के फायदे

अमरूद एक बहुत ही स्वादिष्ट और पौष्टिक फल है इसमें बिटामिन C अधिक मात्रा में पाई जाती है वैसे तो इसमें बिटामिन A तथा बी, चूना, लोहा भी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है इसको गरीबों का सेब भी कहा जाता है. सामान्यतः यह साल में दो बार फल देता है. इससे जैली बनाई जाती है तथा बाजार में इनके जूस भी आते है. सामान्यतः यह लोगों का पसंदीदा फल होता है. ये भी देखें:
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अमरूद के लिए मिट्टी:

अमरूद के लिए दोमट एवं बलुई मिट्टी ज्यादा अच्छी रहती है लेकिन इसको किसी भी तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है. इसके पौधे को उगठा रोग से बचाने के लिए 6 से 7.5 PH मान की मिट्टी उपयुक्त होती है. इससे ज्यादा PH मान होने से उगठा रोग की संभावना बनी रहती है.

अमरूद की खेती के लिए मौसम:

अमरूद को गर्म और ठन्डे दोनों मौसम में उगाया जा सकता है. ये 50 डिग्री तक का तापमान भी झेल लेता है और ठण्ड को भी बर्दास्त कर लेता है. वैसे इसके लिए शुष्क मौसम भी अनुकूल होता है. सर्दियों में फल की क्वालिटी भी बहुत अच्छी होती है गर्मी के फल की अपेक्षा.

अमरूद की उन्नत किस्में:

सामान्यतः अमरुद की ५-६ किस्में आती है, इनमे प्रमुख रूप से इलाहाबादी- सफेदा , एप्पल कलर, चित्तीदार, सरदार , ललित एवं अर्का-मृदुला, भारत में अमरूद की प्रसिद्ध किस्में इलाहाबादी सफेदा, लाल गूदेवाला, चित्तीदार, करेला, बेदाना तथा अमरूद सेब हैं.

अमरुद उगाने का तरीका:

अमरूद को पौधे लगा के उगाया जाता है इसकी भटकलम विधि से भी अच्छी पौध तैयार की जाती है. कलम के द्वारा तैयार किये हुए पौधे को एक तरह की पॉलीथिन( अल्काथीन) से कलम वाली जगह पर कवर कर दिया जाता है. और जब कलम फूटने लगाती है तो ऊपर का भाग अलग कर दिया जाता है तथा उस कपोल को विक्सित होने देते है. कलम की विधि जून और जुलाई महीने में की जाती है खास बात यह है की इस महीने की 70 से 80 प्रतिशत कलम सफल होती हैं.

अमरूद के पौधे लगाने का समय:

सामान्यतः किसी भी पौधे को लगाने का सही समय मानसून में ही होता है इस समय पौधों के लिए मौसम अनुकूल होता है तथा पौधे अपनी जड़ें आराम से पकड़ लेते हैं इस लिए अमरूद के लिए भी जुलाई से अगस्त का समय मुफीद होता है. वैसे अगर सिचाईं की व्यवस्था हो तो आप इसको फरबरी से अप्रैल के बीच में भी लगा सकते है. वो समय भी भी पौधों के लिए मुफीद होता है. ये भी देखें: देश में सासनी का सुप्रशिद्ध अमरूद रोगग्रसित होने की वजह से उत्पादन क्षेत्रफल में भी आयी गिरावट

पौधे मिलने की जगह:

आजकल सरकार भी किसानों की आय बढ़ाने पर काफी जोर दे रही है. इसकी वजह से सरकार भी पौधे फ्री में दे रही है और नहीं तो आप किसी नर्सरी से भी ये पौधे ले सकते हैं.

अमरूद के पौधे लगाने की विधि

अगर आप बारिश के मौसम में पौधे लगा रहे है तो करीब 25 दिन पहले 2X2X2 यानि २ फुट लम्बा, 2 फुट चौड़ा और 2 फुट गहरा गड्ढा खोद के उसे कुछ दिन खुला छोड़ दें कुछ दिन बाद उसमे गोबर की बनी खाद फास्फेट , पोटाश और मिथाइल मिला के गड्ढे को ऊपर तक भर दें और या तो सिचाईं कर दें या उस पर एक बारिश निकलने दें जिससे की खाद गड्ढे में रम जाये उसके बाद पौधे लगा के फिर सिंचाई कर दें. गड्ढे से गड्ढे की दूरी 5 या 6 फुट की रखें इससे अमरूद के पेड़ को फैलने में कोई दिक्कत नहीं होगी. अमूमन बोलै जाता है कि जिस पेड़ पर फल आते हैं वो झुका हुआ होता है अमरूद के लिए ये कहावत एकदम सटीक बैठती है. इसकी डालियों को नीचे कि तरफ बांध दिया जाता है जिससे कि इसमें में फूल और फल ज्यादा आता है. अमरुद के पौधों कि कटाई करके उन्हें छोटा रखा जाता है ताकि फल अच्छा आये.

अमरुद के रोग और उनके उपाय:

अमरुद में सामान्यतः रोग ज्यादा नहीं होते लेकिन इस फल कि मिठास कि वजह से इसमें कीड़ा निकलने, उगठा रोग, और तनाभेदक रोग लगाने की संभावना रहती है. इसके लिए पौधे में नीचे चूना, जिप्सम व खाद मिला के लगाएं. तनाभेदक के लिए पेड़ के तने के छिद्र में मिट्टी का तेल डाल के गीली मिट्टी से बंद कर दें.
सामान्य खेती के साथ फलों की खेती से भी कमाएं किसान: अमरूद की खेती के तरीके और फायदे

सामान्य खेती के साथ फलों की खेती से भी कमाएं किसान: अमरूद की खेती के तरीके और फायदे

अमरूद का वैज्ञानिक नाम सीडियम ग्वायवा है। इसकी प्रजाति सीडियम है और जाति ग्वायवा है। विटामिन की बात करें तो इस फल में विटामिन सी अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा विटामिन ए तथा विटामिन बी भी पाए जाते हैं। साथ ही इसमें आयरन, कैल्शियम तथा फास्फोरस काफी अच्छी मात्रा में पाया जाता है। इसके कारण ये फल मानव जीवन के स्वास्थ्य के लिए कई तरह से लाभकारी होता है। इतिहास में झांक कर देखें तो पता चलता है कि इस फल की उत्पत्ति केन्द्रीय अमेरिका में हुई, जिसे आजकल हम वेस्ट इंडीज के नाम से भी जानते हैं। वहां से यह फल 17 वीं शताब्दी में भारत आया। उसके बाद यह फल भारत की मिट्टी में इस तरह से रच बस गया कि मानों यह भारत के लिए ही पैदा किया गया हो। अब यह फल भारत के कोने-कोने में पैदा होता है। भारत में यह फल उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्रा, कर्नाटक, उड़ीसा, तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी बंगाल और आंध्र प्रदेश में उगाया ही नहीं जाता है बल्कि इसकी खेती भी की जाती है। मीठे-मीठे व खट्टे -मीठे अमरूद तो आपने बहुत खाये होंगे। अमरूदों को गरीबों का सेब कहा जाता है। अमरूद के कितने फायदे होते हैं, शायद ही आप उनसे परिचित होंगे। यदि प्राचीन ग्रंथों की बात मानी जाये तो प्राचीन काल के ग्रंथों में अमरूद के औषधीय गुणों को देखते हुए संस्कृत भाषा में इस फल को अमृत फल कहा जाता था। इस फल एवं वृक्ष के औषधीय गुणों की बात करें तो अमरूद खाने से खून की कमी दूर होती है, इस फल में बीटा कैरोटीन होता है, इसलिये इसका सेवन करने से त्चचा संबंधी बीमारियां दूर होती हैं, चेहरे पर निखार आता है। इस फल से कब्ज की शिकायत दूर होती है। भुना हुआ अमरूद खाने से सर्दी-खांसी में फायदा मिलता है। फाइबर युक्त होने के कारण यह फल डायबिटीज को कंट्रोल करता है। अमरूद की पत्तियों का लेप लगाने से गठिया की बीमारी ठीक हो जाती है। अमरूद की पत्तियों के काढ़े से कुल्ला करने से मुंह की सारी बीमारियां दूर होतीं हैं, पत्तों के चबाने से दांत का दर्द दूर हो जाता है।कच्चे अमरूद का लेप सिर पर लगाने से पुराना सिर दर्द भी ठीक हो जाता है। सस्ता और औषधीय  गुणों के कारण यह फल आम तौर पर लोकप्रिय है। इसी कारण इस फल की भारत में व्यावसायिक खेती की जाती है। इससे किसानों को अच्छा लाभ प्राप्त होता है। अनेक लोगों के लिए इस फल की खेती रोजगार व आय का साधन बनी हुई है। आइये जानते है कि इसकी खेती किस प्रकार की जाती है।

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जलवायु व मिट्टी

अमरूद के लिये शुष्क व गर्म जलवायु सबसे उपयुक्त है। केवल नन्हे पौधों को छोड़कर अमरूद का पेड अधिक गर्मी और सर्दी में पड़ने वाले पाला को भी वर्दाश्त कर लेता है। इस फल की खेती के लिए 20 से 300 सेंटीग्रेड का तापमान बहुत ही अच्छ होता है। इसके अलावा ये सूखा भी वर्दाश्त कर लेता है। अधिक लू लपेट व कम वर्षा तथा बाढ़ आदि का भी अमरूद की फसल पर असर नहीं पड़ता है। वैसे तो अमरूद हर प्रकार की मिट्टी में पैदा हो सकता है लेकिन बलुई दुमट मिट्टी अमरूद की खेती के लिए सबसे अच्छी होती है। इस फल की खेती 6 से लेकर 9 पीएच मान की मृदा अधिक लाभकारी होती है।

बुआई, अवधि और कुल उम्र

अमरूद के पौधे की बुआई वैसे तो जुलाई अगस्त के बीच में की जाती है लेकिन जहां पर सिंचाई आदि की अच्छी सुविधा हो वहां पर  अमरूद की बुआई फरवरी-मार्च में भी की जा सकती है। अमरूद की फसल 700 से 900 दिन यानी दो से तीन साल में तैयार होती है। यह अवधि अमरूद की विभिन्न किस्मों पर आधारित होती हैं। यह कहा जाता है कि अमरूद का पेड़ 30 साल तक फल देता रहता है। उसके बाद उसको बदलना पड़ता है।

कैसे करें खेत की तैयारी

खेत की पहली जुताई गहरी की जानी चाहिये। इसके बाद खेत को समतल करना चाहिये ताकि कहीं भी पानी न रुक सके और खरपतवार को बीन कर खेत को एकदम साफ कर लेना चाहिये। इसके 15 दिन बाद पौधे लगाने के लिए पौधों की किस्मों के अनुसार 3-6 मीटर की लाइन में एक निश्चित दूरी पर 20 इंच की गहराई, लम्बाई व चौड़ाई वाले गड्ढे बना लेने चाहिये। गोबर से तैयार  की गई खाद, सुपर फॉस्फेट, पोटाश, मिथाइल पैराथियॉन पाउडर को अच्छी तरह से मिलाकर मिश्रण तैयार करके इन गड्ढों में भर देनी चाहिये। इसके बाद सिंचाई करें ताकि मिट्टी अच्छी तरह से जम जाए। उसके बाद पौधे लगाएं।

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बीजों का उपचारित कर इस प्रकार रोपें

बीजों को रोपे जाने से पहले उनका उपचार करना आवश्यक होता है।  कार्बोनडाजिम को प्रति लीटर पानी में दो ग्राम घोल कर उसमें पौध को रात भर रखकर उसे उपचारित करें उसके बाद ही उन्हें रोपें। अमरूद के पौधों को रोपने के लिए उनकी नस्ल यानी किस्म के पौधों की लम्बाई चौड़ाई को देखते हुए जगह छोड़नी होती है। गड्डा बनाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना होता है। कुछ पौधे पास-पास तो कुछ पौधे दूर-दूर लगाये जाते हैं। नस्लों के अनुसार तीन तरह से पौधों की रोपाई की जाती है जो इस प्रकार है
  • प्रति हेक्टेयर 2200 लगाये जाने वाले पौधों के लिए लाइन से लाइन की दूरी 3 मीटर रखी जाती है और पौधों से पौधों की दूरी 1.5 मीटर रखी जाती है
  • दूसरे तरह के 1100 पौधे प्रति हेक्टेयर लगाये जाने के लिए लाइन से लाइन की दूरी तो 3 मीटर ही रखी जाती है लेकिन पौधों से पौधों की दूरी 3 मीटर हो जाती है।
  • सबसे बड़े आकार के पेड़ों की पौध के लिए लाइन से लाइन की दूरी 6 मीटर रखी जाती है और पौधों से पौधों की दूरी 1.5 मीटर ही रखी जाती है। इस तरह की बुआई में प्रति हेक्टेयर 600 पौधे रोपे जाते हैं।

बिजाई के तरीके

बिजाई के कई तरीके इस्तेमाल किये जाते हैं। इसमें पके हुए फल के बीजों से बिजाई की जा सकती है। दूसरे तरीके में खेतों में पौधे पहले से तैयार करके उन्हेंं लगाया जा सकता है।  तीसरा तरीका कलमे लगा कर बिजाई की जा सकती है। चौथा तरीका पनीरी तैयार करे उनकी अंकुरित टहनियों को लगा कर बिजायी की जा सकती है। बिजाई करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि उनकी जड़ों को लगभग 25 सेमी. तक की गहराई में रोपना चाहिये।

कटाई-छंटाई की आवश्यकता

पौधों को सही तरीके से बढ़ने व अधिक बढ़ने से रोकने के लिए उनकी कटाई-छंटाई की जाती है। अमरूद का पेड़ जितना छोटा और घना होगा उतने अधिक फल देगा। इस बात को ध्यान में रखते हुए साल में एक बार अवश्य कटाई-छंटाई की जानी चाहिये।

खाद कब-कब और कितनी डालनी चाहिये

अमरूद के पौधों की बुवाई के 12 महीने बाद प्रति पौधे को 15 किग्रा. गोबर की खाद, 400 ग्राम सुपर फास्फेट, 100 ग्राम कार्बोफरान, 200 ग्राम यूरिया और 100 ग्राम पोटाश देना जरूरी होता है । 24 महीने के बाद सभी खादों की मात्रा दोगुनी कर देनी चाहिये।  तीन साल बाद इन खादों व रसायनों मात्रा को बढ़ाकर तीन गुना कर दिया जाना चाहिये।

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सिंचाई कब-कब करें और कब नहीं करें

अमरूद की पौध लगाने के तुरंत बाद सिंचाई करनी चाहिये। उसके बाद तीसरे दिन फिर सिंचाई करनी चाहिये। इसके बाद मौसम, मिट्टी व फसल की जरूरत के हिसाब से सिंचाई करते रहना चाहिये। गर्मियों में कम से कम प्रति सप्ताह दो बार सिंचाई करनी चाहिये। सर्दियों में दो से तीन बार सिंचाई करना जरूरी है। जब पेड़ में फूल आ रहे हों तो सिंचाई नहीं करनी चाहिये। वरना फूल झड़ सकते हैं।

कीट व रोग प्रबंधन

अमरूद के पौधे में कई तरह के कीडे लगते हैं और कई तरह की बीमारियां भी लगतीं हैं। इनसे फसल का बहुत नुकसान हो सकता है। इन दोनों से फसल को बचाने के लिए भी प्रबंधन करने होते हैं।
  • अमरूद की शाख का कीट होने पर क्लोरपाइरीफॉस या क्विनलफॉस के पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • चेपा गंभीर कीट है, इसका हमला होने पर डाइमैथेएट या मिथाइल डेमेडान को पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • सूखा रोग होने पर अमरूद के खेत में जमा पानी को बाहर निकालें। बीमार पौधों को बाहर निकाल कर दूर ले जाकर नष्ट करें। कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या कार्बेनडाजिम को पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • एंथ्राक्नोस रोग लगने से फल गलने लग जाते हैं। इससे बचाने के लिए बीमार पौधों को बाहर निकालें, प्रभावित फलों को नष्ट करें। खेत में पानी हो तो तुरन्त निकालें। छंटाई के बाद कप्तान को पानी में मिलाकर छिड़काव करें। फल पकने तक इसका छिड़काव समय-समय पर करते रहें। इसके अलावा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

फसल की कटाई करें

अमरूद की नस्लों के अनुसार बिजाई के दो या तीन साल बाद फसल तैयार हो जाती है। माल की सप्लाई की सुविधानुसार अधपके फलों को तोड़कर कार्टून  में पैक करके मार्केट भेजें। फलों को ज्यादा नहीं पकाना चाहिये। अधिक पकने से फल की क्वालिटी खराब हो जाती है।

अमरूद की प्रसिद्ध किस्में

इलाहाबाद सफेदा, पंजाब पिंक, सरदार या एल49, पंजाब सफेदा, अरका अमूल्या, स्वेता, निगिस्की, इलाहाबाद सुरखा, एपल गुवावा, चित्तीदार आदि।
पोषक तत्वों से भरपूर काले अमरुद की खेती से जुड़ी जानकारी

पोषक तत्वों से भरपूर काले अमरुद की खेती से जुड़ी जानकारी

काला अमरुद सिर्फ आमदनी के लिए ही नहीं बल्कि मानव सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद होता है। आज हम आपको इसके अद्भुत गुणों के साथ-साथ इसकी खेती की भी जानकारी देंगे। हम सब अमरुद के संबंध में तो काफी अच्छे से जानते ही हैं। आज हम इसकी खेती को लेकर भी बहुत सी जानकारियों से परिचित हैं। परंतु, हम जिस अमरुद की चर्चा करने जा रहे हैं। वह सामान्य अमरुद की श्रेणी से अलग है और इतना ही नहीं इस अमरुद का रंग भी बाकी अमरुद से पूर्णतय भिन्न है।

भारत के अंदर काला अमरुद इन जगहों पर उगाया जाता है

काले
अमरुद का उत्पादन भारत के उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में किया जाता है। परंतु, यदि बाकी अमरूदों से इसकी तुलना करें तो यह बेहद ही कम मात्रा में उगाया जाता है। इस पौधे की सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि काले रंग में यह अमरुद ही नहीं होता बल्कि इसके पत्ते और पेड़ में भी आपको कालिमा स्पष्ट तौर पर दिखाई देगी। यदि हम इस अमरुद के भाव की बात करें तो यह बाकी अमरूदों की तुलना में सबसे अधिक होती है।

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काले अमरुद में पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा होती है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि काले अमरुद में अगर हम पोषक तत्वों की बात करें तो यह एक औषधीय फल है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट सबसे अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसके साथ यदि हम इसके बाकी तत्वों की बात करें तो इसके अंदर विटामिन-ए, विटामिन-बी, विटामिन सी, कैल्शियम और आयरन के साथ-साथ और भी बहुत से मल्टीविटामिन तथा मिनरल्स होते हैं। एक तरह से हम कह सकते हैं, कि यह अमरुद हमारे शरीर के लिए पूर्ण रूप से एक आयुर्वेदिक औषधी का कार्य करती है।

काले अमरूद की खेती कैसे की जाती है

काले अमरुद की खेती करने के लिए सर्वोत्तम समय ठण्ड का मौसम होता है। अगर आप मृदा की जांच करा कर इस पौधे को सही तरीके से बोते हैं, तो यह 2 से 3 साल में ही आपको फल देने लग जाता है। सामान्य रूप से इस पौधे के लिए दोमट मृदा सबसे अनुकूल होती है। आप इनके 1 से 3 वर्ष के पौधों में 10 से 20 किलो तक गोबर की खाद का उपयोग कर सकते हैं। इसके साथ ही सिंगल सुपर फास्फेट 250 से 750 ग्राम और म्यूरेट ऑफ पोटाश 200 से 400 ग्राम का इस्तेमाल करना चाहिए। हम इनके बेहतरीन विकास के लिए यूरिया 50 से 250 ग्राम और जिंक सल्फेट 25 ग्राम प्रति पौधा का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इन सब के उपरांत भी यदि आपके अमरुद के पेड़ में फूल नहीं आ रहे हैं, तो आप इसमें यूरिया अथवा एथेफॉन-यूरिया स्प्रे की उच्च सांद्रता का इस्तेमाल करें। यह पौधों में एक प्रेरक का कार्य करता है।
जापानी रेड डायमंड अमरूद की खेती करना किसानों के लिए क्यों लाभकारी है

जापानी रेड डायमंड अमरूद की खेती करना किसानों के लिए क्यों लाभकारी है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि जापानी रेड डायमंड अमरूद अंदर से दिखने में सुर्ख लाल होता है। यह देसी अमरूद की तुलना में काफी महंगा बिकता है। बाजार में इसका भाव हमेशा 100 से 150 रुपये किलो के मध्य ही रहता है। अगर आप इसकी खेती करते हैं, तो आपकी कमाई तीन गुना बढ़ जाएगी। इस किस्म के अमरुद की खेती करने पर निश्चित रूप से मुनाफा हांसिल होगा। दरअसल, लोगों को अमरुद का सेवन करना बेहद पसंद होता है। बाजार में अमरुद की मांग हमेशा बनी रहती है। अमरुद एक प्रकार से पोषक तत्वों का भंडार होता है। किसानों को अत्यधिक मुनाफा हांसिल करने के लिए भी वैज्ञानिक अमरुद की खेती करने की सलाह देते हैं। दरअसल, अमरुद के अंदर विभिन्न विटामिन्स पाए जाते हैं। परंतु, इसमें सबसे ज्यादा विटामिन सी की मात्रा पाई जाती है। इसके अतिरिक्त अमरूद में लोहा, चूना एवं फास्फोरस भी भरपूर मात्रा में उपस्थित होते हैं। यदि आप नियमित तौर पर अमरूद का सेवन करते हैं, तो आपका शरीर तंदरुस्त एवं तरोताजा रहेगा। दरअसल, भारत के अंदर अमरूद की विभिन्न किस्मों की खेती की जाती है। परंतु, आज हम एक ऐसे किस्म के विषय में बात करने वाले हैं, जिसकी खेती से किसान कुछ ही दिनों में धनवान हो जाएंगे।

जापानी रेड डायमंड अमरुद की कीमत

भारत में सामान्यतः अमरूद 40 से 60 रुपये किलो बिकता है। परंतु, जापानी रेड डायमंड अमरूद की एक ऐसी किस्म है, जिसका भाव काफी अधिक होता है। यह अपने स्वाद एवं मिठास के लिए जाना जाता है। बाजार में यह 100 से 150 रुपये किलो बिकता है। इसकी खेती करने वाले किसान कुछ ही वर्षों में धनवान हो जाते हैं। मुख्य बात यह है, कि बहुत सारे राज्यों में किसानों ने जापानी रेड डायमंड अमरूद की खेती की शुरुआत भी कर दी है।

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जापानी रेड डायमंड अमरुद की खेती के लिए मृदा एवं तापमान

जापानी रेड डायमंड अमरुद की खेती के लिए 10 डिग्री सेल्सियस से 42 डिग्री सेल्सियस के मध्य का तापमान उपयुक्त माना गया है। इसकी खेती के लिए मृदा का पीएच मान 7 से 8 के मध्य होना चाहिए। यदि आप काली एवं बलुई दोमट मृदा में जापानी रेड डायमंड अमरूद की खेती करते हैं, तो आपको काफी बेहतरीन उत्पादन मिलेगा। मुख्य बात यह है, कि खेत में जापानी डायमंड की बुवाई करते वक्त कतार से कतार के मध्य का फासला 8 फीट होनी चाहिए। वहीं, पौधों से पौधों के बीच का फासला 6 फीट रखना चाहिए। इससे पौधों का तीव्रता से विकास होता है। साथ ही, वर्ष में दो बार पौधों की छटाई भी करनी चाहिए।

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जापानी रेड डायमंड अमरुद की खेती से वार्षिक आय

दरअसल, बाकी फसलों की भांति जापानी रेड डायमंड अमरूद के खेत में उर्वरक के तौर पर गोबर एवं वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल करें। इससे जमीन की उर्वरक शक्ति भी काफी बढ़ जाती है। यदि आप चाहें, तो एनपीके सल्फर, कैल्शियम नाइट्रेट, मैग्नीशियम सल्फर एवं बोरान का खाद के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं। साथ ही, पौधों को पानी देने के लिए ड्रिप सिंचाई का ही इस्तेमाल करें, इससे पानी की खपत काफी कम होती है। यदि आप देशी अमरूद की खेती से वर्ष में एक लाख रुपये कमा पा रहे हैं, तो जापानी रेड डायमंड अमरूद की खेती से आपकी कमाई तीन गुना तक बढ़ जाएगी। इसका अर्थ यह है, कि आप साल में 3 लाख रुपये की आय करेंगे।
अमरूद की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

अमरूद की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

भारत के अंदर अमरूद की फसल आम, केला और नीबू के बाद चौथे स्थान पर आने वाली व्यावसायिक फसल है। भारत में अमरुद की खेती की शुरुआत 17वीं शताब्दी से हुई। अमेरिका और वेस्ट इंडीज के उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र अमरुद की उत्पत्ति के लिए जाने जाते हैं। अमरूद भारत की जलवायु में इतना घुल मिल गया है, कि इसकी खेती बेहद सफलतापूर्वक की जाती है। 

वर्तमान में महाराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडू, बिहार और  उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त इसकी खेती पंजाब और हरियाणा में भी की जा रही है। पंजाब में 8022 हेक्टेयर के भू-भाग परअमरूद की खेती की जाती है और औसतन पैदावार 160463 मीट्रिक टन है। इसके साथ ही भारत की जलवायु में उत्पादित अमरूदों की मांग विदेशों में निरंतर बढ़ती जा रही है, जिसके चलते इसकी खेती व्यापारिक रूप से संपूर्ण भारत में भी होने लगी है।

अमरूद का स्वाद और पोषक तत्व

अमरुद का स्वाद खाने में ज्यादा स्वादिष्ट और मीठा होता है। अमरुद के अंदर विभिन्न औषधीय गुण भी विघमान होते हैं। इस वजह से इसका इस्तेमाल दातों से संबंधी रोगों से निजात पाने के लिए भी किया जाता है। बागवानी में अमरूद का अपना एक अलग ही महत्व है। अमरूद फायदेमंद, सस्ता और हर जगह मिलने की वजह से इसे गरीबों का सेब भी कहा जाता है। अमरुद के अंदर विटामिन सी, विटामिन बी, कैल्शियम, आयरन और फास्फोरस जैसे पोषक तत्व विघमान होते हैं।

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अमरुद से कितना लाभ अर्जित होता है

अमरुद से जेली, जूस, जैम और बर्फी भी बनायीं जाती हैं। अमरुद के फल की अच्छे से देख-रेख कर इसको ज्यादा समय तक भंडारित किया जा सकता है। किसान भाई अमरुद की एक बार बागवानी कर तकरीबन 30 साल तक उत्पादन उठा सकते हैं। किसान एक एकड़ में अमरूद की बागवानी से 10 से 12 लाख रूपए वार्षिक आय सुगमता से कर सकते हैं। यदि आप भी अमरूद की बागवानी करने का मन बना रहे हैं तो यह लेख आपके लिए अत्यंत लाभकारी है। क्योंकि, हम इस लेख में आपको अमरुद की खेती के बारे में जानकारी देंगे।

अमरूद की व्यापारिक उन्नत किस्में 

पंजाब पिंक: इस किस्म के फल बड़े आकार और आकर्षक सुनहरी पीला रंग के होते हैं। इसका गुद्दा लाल रंग का होता है, जिसमें से काफी अच्छी सुगंध आती है। इसके एक पौधा का उत्पादन वार्षिक तकरीबन 155 किलोग्राम तक होता है।

इलाहाबाद सफेदा: इसका फल नर्म और गोल आकार का होता है। इसके गुद्दे का रंग सफेद होता है, जिस में से आकर्षक सुगंध आती है। एक पौधा से तकरीबन सालाना पैदावार 80 से 100 किलोग्राम हो सकती है।

ओर्क्स मृदुला: इसके फल बड़े आकार के, नर्म, गोल और सफेद गुद्दे वाले होते हैं। इसके एक पौधे से वार्षिक 144 किलोग्राम तक फल हांसिल हो जाते हैं।

सरदार:  इसे एल 49 के नाम से भी जाना जाता है। इसका फल बड़े आकार और बाहर से खुरदुरा जैसा होता है। इसका गुद्दा क्रीम रंग का होता है। इसका प्रति पौधा वार्षिक उत्पादन 130 से 155 किलोग्राम तक होती है।

श्वेता: इस किस्म के फल का गुद्दा क्रीमी सफेद रंग का होता है। फल में सुक्रॉस की मात्रा 10.5 से 11.0 फीसद होती है। इसकी औसतन पैदावार 151 किलो प्रति वृक्ष होती है। 

पंजाब सफेदा: इस किस्म के फल का गुद्दा क्रीमी और सफेद होता है। फल में शुगर की मात्रा 13.4% प्रतिशत होती है और खट्टेपन की मात्रा 0.62 प्रतिशत होती है।

अन्य उन्नत किस्में: इलाहाबाद सुरखा, सेब अमरूद, चित्तीदार, पंत प्रभात, ललित इत्यादि अमरूद की उन्नत व्यापारिक किस्में है। इन सभी किस्मों में टीएसएस की मात्रा इलाहबाद सफेदा और एल 49 किस्म से ज्यादा होती है। 

अमरूद की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु 

भारतीय जलवायु में अमरूद इस तरह से घुल मिल गया है, कि इसकी खेती भारत के किसी भी हिस्से में अत्यंत सफलतापूर्वक सुगमता से की जा सकती है। अमरूद का पौधा ज्यादा सहिष्णु होने की वजह इसकी खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी एवं जलवायु में बड़ी ही आसानी से की जा सकती है। अमरुद का पौधा उष्ण कटिबंधीय जलवायु वाला होता है।

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इसलिए इसकी खेती सबसे अधिक शुष्क और अर्ध शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में की जाती है। अमरुद के पौधे सर्द और गर्म दोनों ही जलवायु को आसानी से सहन कर लेते हैं। किन्तु सर्दियों के मौसम में गिरने वाला पाला इसके छोटे पौधों को नुकसान पहुंचाता है। इसके पौधे अधिकतम 30 डिग्री तथा न्यूनतम 15 डिग्री तापमान को ही सहन कर सकते है। वहीं, पूर्ण विकसित पौधा 44 डिग्री तक के तापमान को भी सहन कर सकता है।

खेती के लिए भूमि का चुनाव

जैसा कि उपरोक्त में आपको बताया कि अमरूद का पौधा उष्ण कटिबंधीय जलवायु का पौधा हैं। भारतीय जलवायु के अनुसार इसकी खेती हल्की से भारी और कम जल निकासी वाली किसी भी तरह की मृदा में सफलतापूर्वक की जा सकती है। परंतु, इसकी बेहतरीन व्यापारिक खेती के लिए बलुई दोमट से चिकनी मिट्टी को सबसे अच्छा माना जाता है। क्षारीय मृदा में इसके पौधों पर उकठा रोग लगने का संकट होता है। 

इस वजह से इसकी खेती में भूमि का पी.एच मान 6 से 6.5 के बीच होना चाहिए। इसकी शानदार पैदावार लेने के लिए इसी तरह की मिट्टी के खेत का ही इस्तेमाल करें। अमरूद की बागवानी गर्म एवं शुष्क दोनों जलवायु में की जा सकती है। देश के जिन इलाकों में एक साल के अंदर 100 से 200 सेमी वर्षा होती है। वहां इसकी आसानी से सफलतापूर्वक खेती की जा सकती है।

अमरूद के बीजों की बुवाई की प्रक्रिया

अमरूद की खेती के लिए बीजों की बुवाई फरवरी से मार्च या अगस्त से सितंबर के महीने में करना सही है। अमरुद के पौधों की रोपाई बीज और पौध दोनों ही तरीकों से की जाती है। खेत में बीजों की बुवाई के अतिरिक्त पौध रोपाई से शीघ्र उत्पादन हांसिल किया जा सकता है। यदि अमरुद के खेत में पौध रोपाई करते हैं, तो इसमें पौधरोपण के वक्त 6 x 5 मीटर की दूरी रखें। अगर पौध को वर्गाकार ढ़ंग से लगाया गया है, तो इसके पौध की दूरी 15 से 20 फीट तक रखें। पौध की 25 से.मी. की गहराई पर रोपाई करें। 

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इससे पौधों और उसकी शाखाओं को फैलने के लिए काफी अच्छी जगह मिल जायेगी। अमरूद के एक एकड़ खेत वाली भूमि में तकरीबन 132 पौधे लगाए जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त यदि इसकी खेती की बुवाई बीजों के जरिए से कर रहे हैं, तो फासला पौध रोपाई के मुताबिक ही होगा और बीजों को सामान्य गहराई में बोना चाहिए।

बिजाई का ढंग - खेत में रोपण करके, कलम लगाकर, पनीरी लगाकर, सीधी बिजाई करके इत्यादि तरीके से बिजाई कर सकते हैं।

अमरूद के बीजों से पौध तैयार (प्रजनन) करने की क्या प्रक्रिया है  

चयनित प्रजनन में अमरूद की परंपरागत फसल का इस्तेमाल किया जाता है। फलों की शानदार उपज और गुणवत्ता के लिए इसे इस्तेमाल में ला सकते हैं। पन्त प्रभात, लखनऊ-49, इलाहाबाद सुर्ख, पलुमा और अर्का मिरदुला आदि इसी तरह से विकसित की गई है। इसके पौधे बीज लगाकर या एयर लेयरिंग विधि द्वारा तेयार किए जाते हैं। सरदार किस्म के बीज सूखे को सहने लायक होते हैं और इन्हें जड़ों द्वारा पनीरी तैयार करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इसके लिए पूर्णतय पके हुए फलों में से बीज तैयार करके उन्हें बैड या नर्म क्यारियों में अगस्त से मार्च के माह में बिजाई करनी चाहिए। 

बतादें, कि क्यारियों की लंबाई 2 मीटर और चौड़ाई 1 मीटर तक होनी चाहिए। बिजाई से 6 महीने के पश्चात पनीरी खेत में लगाने के लिए तैयार हो जाती है। नवीन अंकुरित पनीरी की चौड़ाई 1 से 1.2 सेंटीमीटर और ऊंचाई 15 सेंटीमीटर तक हो जाने पर यह अंकुरन विधि के लिए इस्तेमाल करने के लिए तैयार हो जाती है। मई से जून तक का वक्त कलम विधि के लिए उपयुक्त होता है। नवीन पौधे और ताजी कटी टहनियों या कलमें अंकुरन विधि के लिए उपयोग की जा सकती हैं।

Gardening Tips: अगस्त में अमरूद, आँवला, केला से जुड़ी सावधानियां एवं देखभाल

Gardening Tips: अगस्त में अमरूद, आँवला, केला से जुड़ी सावधानियां एवं देखभाल

ऐसे करें अमरूद की तैयारी, आँवला की फफूंद का उपचार व केला के पनामा विल्ट का इलाज

कृषि फसल उत्पादन से जुड़े किसानों के लिए महीने के अनुसार कृषि कार्य सुझावों के तहत, इस बार अगस्त माह में जानिये बागवानी फसलों की अधिक पैदावार और उससे मुनाफा कमाने के तरीकों के बारे में। हम बात करेंगे मौसमी फलों वाले पौधों
अमरूद (Amarood/Guava), आँवला (Aanvala/Amla/Indian Gooseberry) के साथ ही अब साल भर मार्केट में डिमांड में बने रहने वाले केला (Kela/Banana) की फार्मिंग के तरीकों के बारे में। शुरुआत करते हैं अंग्रेजी में गुआवा (Guava) कहे जाने वाले अपने देशी बिही, जामफल या फिर अमरूद के पौधों को लगाने के तरीकों से।

अमरूद (Amarood/Guava Planting) रोपण विधि :

अगस्त के महीने में अमरूद राेपण (Guava Planting) में कुछ वैज्ञानिक युक्तियों के प्रयोग से भरपूर पैदावार और मुनाफा मिलता है। अमरूद के पौधों का रोपण (Planting Guava plants) करते समय पौधों के बीच 5×5 मीटर की दूरी रखने की सलाह बागवानी सलाहकार देते हैं।

अमरूद (Guava) के पौधों का चयन :

अमरूद राेपण (Guava Planting) की कई विधियां हैं। आम तौर पर पुराने पेड़ों के पास की भूमि पर अमरूद के नए पौधे स्वतः पनप जाते हैं। इनको निकालकर खेतों में इच्छित जगह पर रोपा जा सकता है। कलम विधि से भी अमरूद (Guava) के रोपण योग्य पौधे तैयार किये जा सकते हैं। अमरूद के पत्तों से पौधे तैयार करने की भी विधि कारगर हो सकती है। इस तरीके से अमरूद का बाग तैयार करने के लिए किसान को अगस्त माह के पहले से तैयारी करनी होगी।

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नर्सरी प्लांट्स :

बड़े खेत पर अमरूद के पौधों का रोपण (Planting Guava plants) करने के लिए किसान मित्र नर्सरी या फिर कृषि विज्ञान केंद्रों के साथ ही उद्यानिकी विभाग से संबद्ध केंद्रों से अमरूद के उमदा किस्म के पौधे निर्धारित मूल्य पर खरीद सकते हैं। आम तौर पर अमरूद के पौधे उनकी खासियतों, क्षमता के आधार पर 10 रुपये से लेकर 300 से 500 रुपयों के वर्ग में बाजार में ऑनलाइन भी बेचे जा रहे हैं। देशी-विदेशी किस्म में से किसान अपनी पसंद के अमरूद के पौधों का चुनाव यहां कर सकते हैं।

जैविक खाद एवं उर्वरक (Organic Fertilizer) :

अमरूद का पौधा रोपते समय जैविक खाद का उपयोग करने से पौधे को प्राकृतिक तरीके से वृद्धि करने में मदद मिलती है। अमरूद का पौधा रोपते समय प्रति गड्ढा 25 से 30 किलोग्राम गोबर की खाद का मिश्रण उपयोग करना चाहिए। इसके लिए पहले साल 260 ग्राम यूरिया, 375 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट और 500 ग्राम पोटेशियम सल्फेट प्रति पौधा उपयोग का बागवानी सलाहकारों ने सुझाव दिया है। इसी तरह आयु, कद एवं क्षमता के हिसाब से खाद एवं उर्वरक का प्रयोग कर अमरूद के पौधे को दीर्घकाल तक फलदायक रखा जा सकता है।

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आम समस्याओं का समाधान :

अमरूद के पौधे की पत्ती पीली पड़ने, आकार छोटा होने तथा पौधों की बढ़त कम होने संबंधी परेशानी से परेशान होने की जरूरत नहीं। आम तौर पर जस्ता तत्व की कमी होने से अमरूद के पौधों में यह समस्या आती है। इन व्याधियों के समाधान के लिए 2 प्रतिशत जिंक सल्फेट के स्पे के अलावा 300 ग्राम जिंक सल्फेट को अमरूद के पौधों की जड़ों में डालने से भी अमरूद की पत्तियों के पीलेपन, पेड़ का आकार कम होने आदि जैसी समस्याओं का समाधान हो जाता है।
दो बार फल
आम तौर पर अमरूद के पौधों, पेड़ों पर साल में दो बार फल लगते हैं। वर्षाकाल के फलों का स्वाद ठंड में आने वाले फलों के मुकाबले पनछीटा, या फीका होता है। वर्षा के समय अमरूद के फल अधिक तो लगते हैं, लेकिन इनकी गुणवत्ता खराब होती है। इस मौसम के फलों में कीड़े लगने की भी समस्या रहती है। कुछ अनुभवी कृषक इस मौसम में फल न लेकर शरद ऋतु आधारित अमरूद की पैदावार की तैयारी पर अधिक ध्यान देते हैं। अगस्त महीने में किसान अमरूद के पौधे रोप तो सकते हैं लेकिन उनको मानसून में बाग में जल निकासी के प्रबंध का खास ध्यान रखना चाहिए। साथ ही बाग में पनप रहे अमरूद के पौधों की सतत निगरानी भी अगस्त में जरूरी है ताकि किसी भी रोग के लक्षण दिखने पर उसका तत्काल निदान किया जा सके।

आँवला (Aanvala/Amla/Indian Gooseberry) की तैयारी :

आँवला वो चमत्कारी फल है जिसके पौधे, पेड़ों की पत्तियों, शाखाओं, जड़ों तक का व्यापक महत्व है। रसोई की खाद्य सामग्री से दवाई की प्रयोगशालाओं के रसायन तक आँवला अपनी उपयोगिता सिद्ध कर चुका है। एक तरह से इंडियन गूसबेरी (Indian Gooseberry) यानी आँवला (Aanvala/Amla) की प्राकृतिक खेती, हर्बल उत्पादों की व्यापक पहचान बन चुका है। आँवला का मुरब्बा, जूस, अचार, हलवा आदि के अलावा चूरन आदि कई उत्पाद भारतीय हर्बल प्रोडक्ट्स की पहचान हैं।

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आँवला (Aanvala/Amla/Indian Gooseberry) के पौधों को सहेजने के लिए अगस्त का माह अहम होता है। इस महीने में आँवला के एक साल के पौधे के लिए प्रति पौधा 10 किलोग्राम गोबर या वर्मीकम्पोस्ट खाद एवं 50 ग्राम नाइट्रोजन व 35 ग्राम पोटाश का उपयोग करने की सलाह बागवानी सलाहकार देते हैं। इस मात्रा को 10 वर्ष या उससे ऊपर के वृक्षों में जो क्रमशः बढ़ाते हुए 100 कि.ग्रा. गोबर या कम्पोस्ट खाद एवं 500 ग्राम नाइट्रोजन व 350 ग्राम पोटाश का मिश्रण तैयार कर उपयोग में लाया जा सकता है।

आँवला और फफूंद

किसान मित्रों को आँवला के पौधे का फफूंद जनित रोगों से बचने की खास जरूरत है। अगस्त के दौरान आँवला के पौधों पर नीले फफूंद रोग की आशंका बलवती रहती है। इसके नियंत्रण के लिए फलों को बोरेक्स या नमक से उपचारित कर फलों की सुरक्षा की जा सकती है। कार्बेन्डाजिम या थायोफनेट मिथाइल 0.1 प्रतिशत के उपचार से भी आँवला के फलों को रोगों से सुरक्षित रखा जा सकता है।

केला (Kela/Banana) का रखरखाव :

अगस्त के दौरान केला (Kela/Banana) के रखरखाव के बारे में भा.कृ .अनु.प.-भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान सस्थान (ICAR-Indian Institute of Soybean Research) ने एडवाइजरी जारी की है। सलाह के अनुसार केले में प्रति पौधा 100 ग्राम पोटाश एवं 55 ग्राम यूरिया का उपयोग करना चाहिए। इसे केले के पौधे से 50 सेंटीमीटर दूर गोलाकार प्रयोग कर हल्की गुड़ाई की मदद से मिट्टी में पूरी तरह मिश्रित करने की सलाह दी गई है।

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पनामा विल्ट उपचार :

केला (Kela/Banana) के पौधों में पनामा विल्ट की समस्या हो सकती है। इसकी रोकथाम बाविस्टीन के घोल से संभव है। इसकी 1.5 मिलीग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में तैयार घोल को केले के पौधों के चारों तरफ की मिट्टी पर छिड़काव की सलाह दी गई है। लगभग 20 दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव करने से पनामा विल्ट का उपचार होने की जानकारी कृषि वैज्ञानिकों ने दी है।
किसानों को होगा मुनाफा इलाहाबादी सुर्खा अमरुद किया जायेगा निर्यात

किसानों को होगा मुनाफा इलाहाबादी सुर्खा अमरुद किया जायेगा निर्यात

कौशांबी जनपद के प्रसिद्ध इलाहाबादी सुर्खा अमरूद शीघ्र ही दुसरे देशों में निर्यात किया जाएगा। अमरूद के बागानों में बैगिंग के लिए दिये जाने वाला प्रशिक्षण, फेरोमैन ट्रैप एवं कैनोपी प्रबंधन सफल साबित हो रहा है। इस सुर्खा अमरूद को इलाहाबादी अमरूद के नाम से भी जाना जाता है। यूपी के कौशांबी जनपद में अमरूद की बागवानी करने वाले कृषकों के अच्छे दिन शीघ्र आने वाले हैं। प्रदेश सरकार द्वारा अमरूद को क्षेत्रीय बाजार के अतिरिक्त विदेशों में निर्यात करने की व्यवस्था की शुरूआत की गयी है। फल की बैगिंग उद्यान विभाग के अधकारियों द्वारा एक्सपोर्ट क्वालिटी के अनुरूप करेंगे। डीडी उद्यान प्रयागराज मंडल डॉ कृष्ण मोहन चौधरी के अनुसार चायल विकासखंड के अमरूद फल की पट्टी क्षेत्र के बागानों में बैगिंग हो रही है। इसके लिए अमरूद के कृषकों को कई सारी गोष्ठियों का आयोजन करके जागरूक किया जायेगा। जिसकी सहायता से किसानों को अमरूद के बागानों में बैगिंग को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया सके। साथ ही, बागानों में एक्सपोर्ट क्वालिटी की पैदावार हो पायेगी।

अमरूद की बैगिंग के बारे में जानें

कौशांबी के नोडल वैज्ञानिक डॉ मनीष केशरवानी का कहना है, कि क्षेत्रीय अमरूद किसानों की इसी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए अमरूद की बैगिंग प्रारंभ हो गयी है। बतादें कि, बैगिंग अमरूद के फल को एक विशेष प्रकार के बैग से ढ़कने की क्रिया है। अमरूद का फल जब फूल से फल में परिवर्तित होने लगता है, तब उसको एक विशेष प्रकार के पेपर बैग में ड़ालकर बाँध दिया जाता है। इस खास पैकिंग से अमरूद के फल को समुचित मात्रा में रौशनी तो प्राप्त होती ही है। साथ ही, बाहरी प्रदूषण एवं कीट संबंधित रोगों के संक्रमण से फल को बचाया जा सकता है।

फेरोमैन ट्रैप व कैनोपी प्रबंधन काफी सफल साबित हो रहा है

अमरूद के फलों को फ्रूट फ्लाई एवं उकठा रोग के संक्रमण के प्रभाव को वैज्ञानिक शोध उपचार के उपरांत बहुत हद तक नियंत्रित किया गया है। परिणामस्वरूप इस साल फल मंडी में सुर्खा अमरूद सभी मौसमी फलों को पीछे छोड़ रहा है। औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केंद्र खुसरोबाग प्रयागराज के प्रशिक्षण प्रभारी डॉ वीके सिंह के अनुसार कीट, प्रबंधन, कैनोपी, फल, मक्खी प्रबंधन से अमरूद की 90% हानियुक्त फसल को बचा लिया गया है। इसके उपरांत अब बैगिंग विधि से अमरूद को एक्सपोर्ट क्वालिटी के फल के स्तर पर पहुँचाने की कोशिश जारी है।


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कौशांबी जनपद में अमरूद की बहुत सारी भिन्न-भिन्न जगहों पर बाग लगे हुए हैं। जहां से अमरूद तैयार होने के बाद देश के विभिन्न स्थानों पर निर्यात किया जाता है और इससे इलाहाबाद के अमरूद के नाम से भी बुलाया जाता है। लोगों को इलाहाबादी अमरूद खाना बहुत अच्छा लगता है।
देश में सासनी का सुप्रशिद्ध अमरूद रोगग्रसित होने की वजह से उत्पादन क्षेत्रफल में भी आयी गिरावट

देश में सासनी का सुप्रशिद्ध अमरूद रोगग्रसित होने की वजह से उत्पादन क्षेत्रफल में भी आयी गिरावट

आपको बतादें, कि सासनी के अमरूद ने विगत 6 वर्षों में फल मंडी के अंतर्गत स्वयं की विशेष पहचान स्थापित की है। परंतु, अब दीमक एवं उकटा रोग जैसे रोगों की वजह से इस विशेष अमरूद के बाग काफी संकीर्ण होते जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश राज्य के सासनी क्षेत्र के प्रसिद्ध अमरूद के बागानों का क्षेत्रफल काफी कम होता दिखाई दे रहा है। इन अमरूदों ने विगत 6 दशकों के अंतर्गत फल मंडी में खुद का अच्छा खासा वर्चस्व स्थापित किया है। लेकिन वर्तमान में इन अमरूदों के बागान और पैदावार को दीमक रोग, उखटा रोग, कीट एवं मौसमिक मार की वजह से बर्बाद होती दिखाई दे रही है। हानि में होती वृद्धि की वजह से कृषकों ने अमरूद के बागों की अपेक्षा अन्य फसलों का उत्पादन करना आरंभ कर दिया है। हालाँकि, बागवानी विभाग द्वारा कृषकों को आर्थिक एवं तकनीकी सहायता प्रदान की गई है। फिर भी कीट-रोगों के संक्रमण में वृद्धि की वजह से उत्पादन में कमी होती दिखाई दे रही है। इस वजह से किसान समुचित आय अर्जित नहीं कर पाते हैं। ऐसी स्थिति में किसान निराश और हतास होकर फिलहाल सासनी इलाके के अमरूद उत्पादक बागवानी को छोड़ते जा रहे हैं।

सासनी के अमरुद के बागानों में कमी आने की वजह

अमरूद की बागवानी करने वाले किसान वीरपाल सिंह का कहना है, कि इस वर्ष कम बारिश की वजह से अमरूद के बागों में बेहद गंभीर हानि हुई है। बागों में कीट संक्रमण भी देखने को मिल रहा है, जिससे बागवानी में काफी घटोत्तरी देखने को मिली है। साथ ही, कुछ किसानों का कहना है, कि उनके क्षेत्र का पानी बहुत बेकार है, जिसकी वजह से अमरूद के पेड़ों में दीमक का संक्रमण होना आरंभ हो जाता है। रोगों के चलते पेड़ में बहुत सूखापन हो जाता है। ऐसी स्थिति में स्वभाविक सी बात है, कि फलों की पैदावार अच्छी तरह से अर्जित नहीं हो पाती है। अधिकाँश ठंड के दिनों में पाले की वजह से पेड़ की टहनियां बेहद कमजोर हो जाती हैं एवं टूटके नीचे गिर पड़ती हैं, तो पैदावार में घटोत्तरी हो गई है।

अमरुद के बागों को कौन-कौन से रोग प्रभावित कर रहे हैं

कृषि क्षेत्र को जलवायु परिवर्तन काफी गंभीर रूप से प्रभावित करता है। बहुत से क्षेत्रों में फलों के बागान कीट-रोगों के संक्रमण की वजह से नष्ट होते जा रहे हैं। फिलहाल, मशहूर सासनी के अमरूद के बागानों के ऊपर भी दीमक और उखटा रोग का संकट काफी प्रभावित कर रहा है। पेड़ के ऊपरी भागों तक समुचित पोषण संचारित ना होने की वजह से पेड़ सूखकर नष्ट होते ही जा रहे हैं।
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बहुत से बागों में दीमक का संक्रमण आरंभ हो चुका है। ऐसी स्थिति में सामान्यतः पेड़ की जड़ें खोखली हो रही हैं। किसान अन्य पेड़ों को संक्रमण से बचाने के लिए रोगग्रस्त पेड़ पौधों को जड़ समेत उखाड़ फेंकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है, कि दीमक का संक्रमण बढ़ने की स्थिति में पेड़ की जड़ों में गोबर की खाद सहित ट्राइकोडर्मा उर्वरक का मिश्रण कर उपयोग करना चाहिए।

बागवानी विभाग द्वारा नई पहल शुरू की गई है।

मीडिया द्वारा दी गयी खबरों के हिसाब से हाथरस की जिला उद्यान अधिकारी अनीता यादव जी ने कहा है, कि उखटा रोग जैसी बहुत-सी बीमारियों के संक्रमण बड़ने पर कृषकों ने बागवानी के स्थान पर खेती करना आरंभ कर दिया है। इन चुनौतियों का निराकरण करने हेतु राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड द्वारा वार्षिक नवीन बागों की स्थापना हेतु लक्ष्य तय किया गया है। इस वर्ष लगभग 30 हेक्टेयर में नवीन बागान लगाए गए हैं। इसके अंतर्गत 17 हैक्टेयर में अमरूद के बागान भी शम्मिलित हैं। पौधरोपण के उपरांत पेड़ बनने एवं फलों के पकने तक भिन्न-भिन्न कृषि कार्यों हेतु अनुदान प्रदान किया जाता है। अमरूद के बागान में कीट-रोगों के समुचित प्रबंधन हेतु कृषकों को भी शिविर के जरिए से जागरूक किया जा रहा है।

यह अमरुद बाजार में सासनी अमरुद के नाम से ही बिकता है

अगर सासनी के सुप्रसिद्ध अमरूदों की सप्लाई की बात करें तो उत्तर प्रदेश समेत उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में भी की जा रही है। सासनी के किसानों से अमरूद खरीदकर उनमें से बेहतरीन गुणवत्ता वाले अमरूदों को छांटा जाता है। अमरूद का भाव उसकी गुणवत्ता के अनुरूप निर्धारित किया जाता है। उसके बाद इन अमरूदों को पैक किया जाता है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में माँग के अनुरूप आपूर्ति की जाती है। अन्य राज्यों में अमरूद सासनी अमरुद के नाम से ही बेचे जाते हैं।
यह अमरुद किसानों की अच्छी आमदनी करा सकता है

यह अमरुद किसानों की अच्छी आमदनी करा सकता है

आपने हरा, पीला व लाल अमरूद सुना और देखा होगा। जिनका उत्पादन कर किसान अच्छी खासी आय भी अर्जित करते हैं। उसी तरह काला अमरूद भी एक ऐसा ही फल है, जो किसानों की बेहतरीन आमदनी करा सकता है। परंपरागत खेती किसानी की जगह नवीनतम व आधुनिक खेती कर किसान लाखों में खेल रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, धान, मक्का, तिलहन, दलहन, गेंहू पारंपरिक खेती का ही भाग है। किसान इनसे अच्छा मुनाफा अर्जित करते हैं। परंतु, एक पारंपरिक विधि से अलग खेती करें तो अच्छा लाभ हो सकता है। दरअसल, कृषि करने से पूर्व किसान विशेषज्ञों की सलाह नहीं लेते तो उनको खेती से अच्छा उत्पादन नहीं मिल पाता है। जबकि फसल का चयन करने से लेकर फसल की कटाई तक विशेषज्ञों से अहम पहलुओं के बारे में जानना अति आवश्यक होता है। यदि किसान काला अमरूद (Kala Amrud Ki Kheti) का उत्पादन करना चाहते हैं, तो उनको किसानों से सलाह व जानकारी लेकर ही खेती करनी चाहिए। इससे उनको अच्छा मुनाफा होने की संभावना अधिक होगी।

इस अमरुद की खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं

कृषि विशेषेज्ञों के मुताबिक, वर्तमान में केवल हरे, पीले एवं इलाहाबादी की भाँति लाल अमरूद देखने को मिले होंगे। जो कि पारंपरिक खेती हैं। परंतु, यदि अमरूद का उत्पादन नवीनतम ढंग से किया जाए तो काला अमरूद उसके लिए अच्छा चयन है। काला अमरुद आने वाले समय में अत्यधिक मांग के साथ बाजार में अपना स्थान बनाएगा। भारतीय जलवायु व मृदा काले अमरूद के उत्पादन हेतु काफी अनुकूल है। आगामी दौर में पीले, हरे के उपरांत काले अमरूद की बाजार में अच्छी खासी माँग रहेगी। आपको बतादें कि आगामी समय में काले अमरुद की अत्यधिक मांग होने के साथ-साथ अच्छे मुनाफे की भी संभावना है।

काले अमरुद का उत्पादन किस समय किया जाता है

विशेषज्ञों के अनुसार, अमरूद का उत्पादन करने के लिए ठंडी जलवायु व मौसम होना काफी आवश्यक होता है। लेकिन आपको यह भी बतादें कि अत्यधिक मोसमिक नमी फसल के लिए फायदेमंद नहीं होती है। सर्द मौसम में यदि अमरुद की खेती की जाए तो अमरूद के पैदावार काफी बेहतर हो सकती है। साथ ही, उत्पादन के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। लेकिन, यदि किसान सामान्य मृदा में भी अमरूद की खेती करना चाहें तो कर सकते हैं।


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कितने वर्ष उपरांत अमरुद लगने लगता है

अमरूद की खेती में यदि आप समुचित उर्वरक व सिंचाई इत्यादि करें, तो इसका विकास अच्छा और शीघ्र होता है। कृषकों को उचित समयानुसार अमरुद की कटाई, छंटाई भी होनी जरुरी होती है। आपको बतादें कि बुवाई करने के उपरांत दो से तीन वर्ष उपरांत पेड़ पर अमरूद लगना आरंभ हो जाते हैं। अमरूद की फसल की देखभाल करने में कोई लापहरवाही नहीं बरतनी चाहिए। कीट रोगों के संक्रमण के दौरान विशेषज्ञों से सलाह मशवरा लेकर ही कीटनाशकों का छिड़काव अवश्य कर देना चाहिए। अमरुद को पककर तैयार होने के बाद कटाई में समय नहीं लगाना चाहिए।

काले अमरुद की खेती कहाँ-कहाँ हो रही है

काले अमरूद की बाजार में उपलब्धता और बेहतर मुनाफे की वजह से देश के विभिन्न भागों में इसका उत्पादन किया जा रहा है। इस अमरुद की खेती हिमाचल से लेकर उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य में भी की जा रही है। इसके अतिरिक्त और कुछ राज्यों में भी इसकी खेती होती नजर आई है। इस अमरुद के अंदर पाया जाने वाला गूदा लाल रंग का होता है। इसको खाने हेतु स्वादिष्ट एवं पोषक तत्वों से युक्त माना गया है। किसानों को आज ऐसी ही नवीन और अच्छी माँग वाली खेती करने की अत्यधिक आवश्यकता है। जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति और देश की अर्थव्यवस्था सुधर सके।
जापानी रेड डायमंड अमरूद से किसान सामान्य अमरुद की तुलना में 3 गुना अधिक आय कर सकते हैं

जापानी रेड डायमंड अमरूद से किसान सामान्य अमरुद की तुलना में 3 गुना अधिक आय कर सकते हैं

अमरूद के फल की बाजार में सामान्यतः बहुत सारी किस्में उपलब्ध हैं। इन किस्मों के अंतर्गत एक जापानी रेड डायमंड नामक अमरुद की किस्म से किसान अच्छा खासा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। लेकिन इसकी कृषि करते समय हमें समझदारी और बुद्धिमत्ता की आवश्यकता पड़ती है। इसके उपरांत किसान लाखों की आय अर्जित कर सकते हैं। अगर हम भारत की बात करें तो यहां गेहूं, मक्का, धान जैसी परंपरागत फसलों का अधिक प्रचलन रहा है। किसान कृषि के जरिए लाखों रुपये की आमदनी करते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, गन्ना, मक्का, गेंहू जैसी फसलों का उत्पादन करके किसान अच्छी आय अर्जित करते हैं। परंतु, परंपरागत विधि की अपेक्षा यदि किसान खेती किसानी करें तो निश्चित रूप से उनको बेहतर मुनाफा प्राप्त हो सकता है। आगे इस लेख में हम आपको एक ऐसी ही किस्म के संबंध में बताने जा रहे हैं, जिसका उत्पादन करके किसान धनी और समृद्ध हो सकता है।

जापानी रेड डायमंड अमरूद की खेती मुनाफे का सौदा है

भारत में जापानी रेड डायमंड किस्म के अमरूद के उत्पादन के रकबे में बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। विशेषज्ञों के मुताबिक, रेड डायमंड अमरूद की खेती करके आप अच्छा खासा लाभ उठाना चाहते हो तो आपको इसकी खेती समझदारी और आधुनिक विधि द्वारा करने की आवश्यकता है। इस
अमरुद की खेती से किसान वार्षिक तौर पर लाखों रुपये तक की आय की जा सकती है।

इस फल की खेती हेतु किस प्रकार की जलवायु, मिट्टी की आवश्यकता होती है

किसान जापानी रेड डायमंड अमरूद का उत्पादन करना किसानों को बेहद अच्छा लगता है। अमरुद की इस किस्म के बेहतर पैदावार हेतु 10 डिग्री सेल्सियस से 42 डिग्री सेल्सियस तापमान बेहद फायदेमंद होता है। दरअसल, तापमान में थोड़ी बहुत घटोत्तरी होने क स्थिति में भी उत्पादकों को चिंतित होने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती है। इस अमरुद के उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। हालांकि, जापानी रेड डायमंड अमरूद के बेहतर उत्पादन हेतु मृदा की बात की जाए तब इसकी अच्छी उपज के लिए बलुई दोमट, काली मिट्टी सबसे अनुकूल होती है। पीएच 7 से 8 के मध्य होना जरुरी है।
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इस अमरुद की बुवाई करते समय किस बात का ध्यान रखें

जापानी डायमंड अमरुद की बुवाई के दौरान इसके मध्यस्थ समुचित दूरी का ध्यान रखना भी अति आवश्यक माना जाता है। आपको बतादें कि इसकी कतार से कतार में 8 फीट एवं पौधे से पौधे में 6 फीट की दूरी होना अनिवार्य है। पौधे का विकास समुचित ढ़ंग से हो इसके लिए आपको वर्ष में दो बार अमरुद के पौधे की छंटाई करनी होगी। यदि फल चीकू के आकार का हो जाये उस स्थिति में इसे फोम बैग अथवा अखबार की मदद से ढक देना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से अमरूद बेहतर तरीके से पकता है। साथ ही, किसी प्रकार का कोई भी दाग, धब्बे जैसा निशान भी नहीं रहता है।

इस फल की अच्छी पैदावार हेतु उर्वरक, पानी का समयानुसार उपयोग जरुरी होता है

इस किस्म के अमरुद में अन्य फसलों की ही भांति गोबर एवं वर्मी कंपोस्ट का उपयोग किया जाना अच्छा माना जाता है। इन सबकी वजह से भूमि की उर्वरक शक्ति काफी बढ़ती है। इसके अतिरिक्त फसल हेतु रासायनिक उर्वरकों में कैल्शियम नाइट्रेट, मैग्नीशियम सल्फवत, बोरान, एनपीके सल्फर आदि का उपयोग कर सकते हैं। इस पौधे की सिंचाई हेतु ड्रिप सिंचाई उत्तम मानी जाती है। अन्यथा तो सामान्य सिंचाई समयानुसार करना अति आवश्यक होता है।
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जापानी रेड डायमंड अमरूद की बाजार में कितनी कीमत है

जापानी रेड डायमंड अमरूद का आंतरिक ढाँचा तरबूज की भांति सुर्ख लाल, नाशपाती की तरह मीठा होता है। हालांकि बाजार के अंदर देशी अमरूद का भाव 50 से 60 रुपये किलो होता है जबकि जापानी रेड डायमंड अमरूद की बाजार में कीमत 100 से 150 रुपये प्रति किलोग्राम तक होती है। साधारण अमरूद की तुलना में इसकी कीमत 3 गुना तक होती है। कम खर्च में 3 गुना लाभ भी प्रदान करता है। इसलिए इसके उत्पादन से किसानों को बेहतर मुनाफा मिलने के साथ साथ उनकी प्रगति व विकास की राह भी आसान हो सकती है।
बदली MBA पास की किस्मत, अमरूद की खेती से बना करोड़पति

बदली MBA पास की किस्मत, अमरूद की खेती से बना करोड़पति

आज का अधिकांश युवा वर्ग खेती किसानी की तरफ रुख कर रहा है. इससे उन्हें उनके सुनहरे भविष्य को नये पंख लग रहे हैं. नई सोच और नई तकनीक से खेती के मायने बदलने वाले युवाओं में से एक हैं MBA पास राजीव भास्कर. जो अमरूद बेचकर करोड़पति बन गये हैं. राजीव भास्कर का जन्म नैनीताल में हुआ था. उन्होंने रायपुर की एक बीज कंपनी में भी काम किया. जिसमें उन्हें विशेषज्ञता मिली. जिस वजह से वो आज एक समृद्ध और उद्यमी किसान बन सके. राजीव ने बताया कि, उन्होंने बिक्री और मार्केटिंग के मेंबर के तौर पर VNR सीड्स कंपनी में करीब चार सालों तक काम किया. इस दौरान उन्होंने देश के अलग अलग क्षेत्र के कई किसानों के साथ मुलाकात की. जिसके बाद उन्हें खेती और किसानी से जुड़ी कई अहम जानकारियां मिली. इन्हीं जानकारियों के दम पर राजीव भास्कर ने नौकरी छोड़ कर खेती करने का फैसला किया.

MBA पास कर शुरू की खेती

राजीव भास्कर ने कृषि से BSC पूरा किया. हालांकि जब तक उन्होंने VNR बीजों के साथ काम करना नहीं शुरू किया था, तब तक खेती किसानी की दिशा में उन्होंने आगे बढ़ने के बारे में भी नहीं सोचा था. जिस बीच राजीव ने MBA का कोर्स कर लिया. जो Distance Learning था. राजीव भास्कर बताते हैं कि, जैसे जैसे उन्होंने बीजों और पोधौं को बेचने का काम शूरू किया, वैसे वैसे कृषि में उनकी दिलचस्पी भी बढ़ती गयी. जिसके बाद उन्होंने इस ओर काम करने का मन बना लिया. नौकरी के साथ ही राजीव ने अमरूद की थाई किस्म के बारे में जाना और समझा. जिसने बाद उन्होंने इसकी खेती करने का फैसला लिया, और काम शुरू कर दिया. ये भी देखें:
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5 एकड़ जमीन पर की खेती, चमक गयी किस्मत

राजीव ने अमरूद की खेती के लिए सबसे पहले 5 एकड़ जमीन किराए पर ली. उन्होंने इसकी खेती हरियाणा के पंचकुला में की. उन्होंने अमरूद की थाई किस्म की खेती की और उसके लिए अपनी नौकरी तक छोड़ दी. जिसके बाद राजीव के उगाए थाई किस्म के अमरूदों ने पूरे हरियाणा में तहलका मचा दिया और इसकी डिमांड बढ़ गयी. जिसके चलते सिर्फ पांच सालों में ही राजीव करोड़पति बन गये. लेकिन इन पांच सालों में उनकी खेती का रकबा बढ़ा और आज वो 5 नहीं बल्कि 25 एकड़ की जमीन में थाई किस्म के अमरूद की खेती कर रहे हैं.

अच्छी पैदावार के लिए जैविक खेती जरूरी

राजीव भास्कर की उम्र महज 30 साल ही है. उनकी मानें तो अब तक उनके खेत में लगभग 12 हजार अमरूद के पेड़ हैं. जिसके चलते वो एक साल में करीब एक से डेढ़ करोड़ तक की कमाई कर रहे हैं. राजीव बताते हैं कि, नौकरी छोड़ने के बाद जब उन्होंने पहली बार खेती करनी शुरू की थी तो, उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि, ज्यादा विकास और ज्यादा उत्पादन के लिए अच्छे उर्वरक और सिंचाई की जरूरत होती है. राजीव भास्कर अपने उगाए हुए अमरूद की खेती के बारे में बताते हुए कहते हैं कि, उनके अमरूद ना सिर्फ टेस्टी बल्कि हेल्दी और पौष्टिक तत्वों से भरपूर हैं. इसके अलावा उनका यह भी कहना है कि, अगर आप जमीन पर खेती कर रहे हैं, और उर्वरकों का कम इस्तेमाल कर रहे हैं, तो उस जगह पर जैविक खेती करने से अच्छी पैदावार मिल सकती है. राजीव कहते हैं कि, वो अपना सारा सामान दिल्ली एपीएमसी मार्केट तक पहुंचाते है. जहां उन्हें एक हफ्ते की पेमेंट दी जाती है. अच्छी वैरायटी और मौसम के हिसाब से उन्हें प्रति किलो अमरूद के 40 से 100 रुपये के बीच तक होती है. जिस तरह वो सालाना प्रति एकड़ के हिसाब से लगभग 6 लाख रुपये तक कमाते हैं.
अमरूद की इन बेहतरीन किस्मों से किसान प्रतिवर्ष लाखों की आय कर सकते हैं

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आपकी जानकारी के लिए बतादें कि अमरूद एक ऐसी फसल है, जिसका उत्पादन किसी भी प्रकार की जलवायु में किया जा सकता है। यह 5 डिग्री से लेकर 45 डिग्री तक के तापमान को सहन करने में सक्षम है। अमरूद का सेवन करना सभी लोगों को काफी पसंद है। यह एक ऊर्जावान फल है। यह मिनरल्स और विटामिन से भरपूर है। सर्दी के मौसम में लोग इसका सेवन बड़े ही चाव से करते हैं। इसके अंदर भरपूर मात्रा में फाइबर भी विघमान रहता है। अमरूद का सेवन करने से कब्ज की बीमारी बिल्कुल सही हो जाती है। अच्छे एवं ताजे अमरूद का भाव सदैव 60 से 80 रुपये प्रतिकिलो होता है। अब ऐसी स्थिति में यदि किसान भाई अमरूद का उत्पादन करते हैं, तो उनकी आमदनी में काफी इजाफा हो सकता है।

अमरुद की कुछ बेहतरीन किस्में

अमरूद की फसल एक बागवानी फसलों के अंतर्गत आती है। अमरुद की खेती हर एक तरह की मृदा में की जा सकती है। एक हेक्टेयर में अमरूद की खेती करने पर किसान वर्ष भर में 24 लाख रुपये की आमदनी कर सकते हैं। इसमें 14 से 15 लाख रुपये का मुनाफा होगा। विशेष बात यह है, कि अमरूद की खेती की शुरूआत करने से पूर्व किसानों को इसकी बेहतरीन प्रजातियों के विषय में जानना होगा। यदि किसान भाई, बाग में अच्छी किस्म के पौधे नहीं रोपेंगे, तो निश्चित रूप से पैदावार प्रभावित होने की संभावना रहती है। हिसार सुर्खा, सफेद जैम,अर्का अमुलिया और वीएनआर बिही अमरूद की अच्छी किस्में हैं। इसके अतिरिक्त चित्तीदार, इलाहाबाद सफेदा, लखनऊ-49 भी अमरूद की शानदार किस्में हैं। ये भी पढ़े: जापानी रेड डायमंड अमरूद से किसान सामान्य अमरुद की तुलना में 3 गुना अधिक आय कर सकते हैं

अमरुद के पौधे हमेशा एक पंक्ति में 8 फीट की दूरी पर ही लगाएं

अमरूद बागवानी के अंतर्गत आने वाली एक ऐसी फसल है, जिसकी खेती हर तरह की जलवायु में की जा सकती है। यह 5 डिग्री से लेकर 45 डिग्री तक तापमान को सह सकता है। इस वजह से किसान पूरे भारत में इसका उत्पादन कर सकते हैं। एक बार खेती आरंभ करने पर किसान कई वर्षों तक मुनाफा कमा सकेंगे। अमरूद के पौधों को सदैव एक पंक्ति में 8 फीट की दूरी पर ही लगाएं। इससे पौधों को भरपूर मात्रा में धूप, हवा और पानी मिलते हैं, जिससे फसल का काफी अच्छा विकास होता है। दो पंक्तियों के मध्य 10 से 12 फीट की दूरी भी होनी चाहिए। ऐसे में आपको पौधे के ऊपर कीटनाशकों का छिड़काव करने में किसी भी प्रकार की दिक्कत नहीं आएगी। साथ ही, फल की तुड़ाई करना भी काफी सुगम हो जाएगा।

एक हेक्टेयर भूमि में 1200 अमरूद के प्लांट स्थापित किए जा सकते हैं

किसान भाई एक हेक्टेयर में 1200 अमरूद के प्लांट स्थापित कर सकता है। 2 साल के उपरांत अमरूद के बाग में फल आने चालू हो जाएंगे। इस दौरान रोपाई से लेकर पौधों के रख-रखाव पर लगभग 10 लाख की लागत आएगी। साथ ही, 2 साल के उपरांत एक सीजन में एक पेड़ से आप लगभग 20 किलो तक अमरूद तोड़ सकते हैं। इस प्रकार आप 1200 अमरूद के पौधों से एक सीजन में 24000 किलो अमरूद अर्जित कर सकते हैं।

किसान इस तरह अमरूद की खेती से 24 लाख तक की आमदनी कर सकते हैं

बाजार में अमरूद 60 से 80 रुपये प्रतिकिलो के हिसाब से बिकता है। अगर आप 50 रुपये किलो के हिसाब से भी अमरूद बेचते हैं, तो 24000 किलो अमरूद का भाव लगभग 12 लाख रुपए हो जाएगा। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि अमरूद का पेड़ वर्ष में दो बार फल प्रदान करता है। इस प्रकार आप अरूद की खेती से 24 लाख तक की आमदनी कर सकते हैं।