Ad

आम

अमरूद की खेती कैसे करें: तरीका, किस्में, अमरूद के रोग और उनके उपाय

अमरूद की खेती कैसे करें: तरीका, किस्में, अमरूद के रोग और उनके उपाय

किसान और पौधे दोनों एक दूसरे के पूरक हैं. किसान जो भी फसल उगता है वो पौधे के रूप में ही होती है. इसमें फर्क सिर्फ इतना है की कुछ पौधे हमारी खाद्यान्य जरूरतें पूरी करते हैं और कुछ हमारी औषधीय जरूरतों को पूरा करते हैं. वैसे तो हम अपनी इस सीरीज में सभी किसानोपयोगी पौधों की बात करेंगें.पौधे किसान क्या हर जीव के लिए बहुत आवश्यक हैं. पेड़ों से हमें ऑक्सीजन मिलती है तथा इनसे हमें फर्नीचर और जलाने के लिए लकड़ी मिलती है. किसान को इनसे इनकम होती है जो की कम से कम जमीन में ज्यादा से ज्यादा आमदनी होती है. ये किसान और मिट्टी के ऊपर निर्भर करता है की कौन से फल या किस्म के पौधे को हमारी जमीन अच्छे से पकड़ती है. जिनमे अमरूद, आम, कैला , जामुन, शीशम , पीपल , महोगनी , सहजन , नीम , नीबू ,काकरोंदा, अनार , चन्दन इत्यादि..

अमरूद खाने के फायदे

अमरूद एक बहुत ही स्वादिष्ट और पौष्टिक फल है इसमें बिटामिन C अधिक मात्रा में पाई जाती है वैसे तो इसमें बिटामिन A तथा बी, चूना, लोहा भी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है इसको गरीबों का सेब भी कहा जाता है. सामान्यतः यह साल में दो बार फल देता है. इससे जैली बनाई जाती है तथा बाजार में इनके जूस भी आते है. सामान्यतः यह लोगों का पसंदीदा फल होता है. ये भी देखें:
जापानी रेड डायमंड अमरूद से किसान सामान्य अमरुद की तुलना में 3 गुना अधिक आय कर सकते हैं

अमरूद के लिए मिट्टी:

अमरूद के लिए दोमट एवं बलुई मिट्टी ज्यादा अच्छी रहती है लेकिन इसको किसी भी तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है. इसके पौधे को उगठा रोग से बचाने के लिए 6 से 7.5 PH मान की मिट्टी उपयुक्त होती है. इससे ज्यादा PH मान होने से उगठा रोग की संभावना बनी रहती है.

अमरूद की खेती के लिए मौसम:

अमरूद को गर्म और ठन्डे दोनों मौसम में उगाया जा सकता है. ये 50 डिग्री तक का तापमान भी झेल लेता है और ठण्ड को भी बर्दास्त कर लेता है. वैसे इसके लिए शुष्क मौसम भी अनुकूल होता है. सर्दियों में फल की क्वालिटी भी बहुत अच्छी होती है गर्मी के फल की अपेक्षा.

अमरूद की उन्नत किस्में:

सामान्यतः अमरुद की ५-६ किस्में आती है, इनमे प्रमुख रूप से इलाहाबादी- सफेदा , एप्पल कलर, चित्तीदार, सरदार , ललित एवं अर्का-मृदुला, भारत में अमरूद की प्रसिद्ध किस्में इलाहाबादी सफेदा, लाल गूदेवाला, चित्तीदार, करेला, बेदाना तथा अमरूद सेब हैं.

अमरुद उगाने का तरीका:

अमरूद को पौधे लगा के उगाया जाता है इसकी भटकलम विधि से भी अच्छी पौध तैयार की जाती है. कलम के द्वारा तैयार किये हुए पौधे को एक तरह की पॉलीथिन( अल्काथीन) से कलम वाली जगह पर कवर कर दिया जाता है. और जब कलम फूटने लगाती है तो ऊपर का भाग अलग कर दिया जाता है तथा उस कपोल को विक्सित होने देते है. कलम की विधि जून और जुलाई महीने में की जाती है खास बात यह है की इस महीने की 70 से 80 प्रतिशत कलम सफल होती हैं.

अमरूद के पौधे लगाने का समय:

सामान्यतः किसी भी पौधे को लगाने का सही समय मानसून में ही होता है इस समय पौधों के लिए मौसम अनुकूल होता है तथा पौधे अपनी जड़ें आराम से पकड़ लेते हैं इस लिए अमरूद के लिए भी जुलाई से अगस्त का समय मुफीद होता है. वैसे अगर सिचाईं की व्यवस्था हो तो आप इसको फरबरी से अप्रैल के बीच में भी लगा सकते है. वो समय भी भी पौधों के लिए मुफीद होता है. ये भी देखें: देश में सासनी का सुप्रशिद्ध अमरूद रोगग्रसित होने की वजह से उत्पादन क्षेत्रफल में भी आयी गिरावट

पौधे मिलने की जगह:

आजकल सरकार भी किसानों की आय बढ़ाने पर काफी जोर दे रही है. इसकी वजह से सरकार भी पौधे फ्री में दे रही है और नहीं तो आप किसी नर्सरी से भी ये पौधे ले सकते हैं.

अमरूद के पौधे लगाने की विधि

अगर आप बारिश के मौसम में पौधे लगा रहे है तो करीब 25 दिन पहले 2X2X2 यानि २ फुट लम्बा, 2 फुट चौड़ा और 2 फुट गहरा गड्ढा खोद के उसे कुछ दिन खुला छोड़ दें कुछ दिन बाद उसमे गोबर की बनी खाद फास्फेट , पोटाश और मिथाइल मिला के गड्ढे को ऊपर तक भर दें और या तो सिचाईं कर दें या उस पर एक बारिश निकलने दें जिससे की खाद गड्ढे में रम जाये उसके बाद पौधे लगा के फिर सिंचाई कर दें. गड्ढे से गड्ढे की दूरी 5 या 6 फुट की रखें इससे अमरूद के पेड़ को फैलने में कोई दिक्कत नहीं होगी. अमूमन बोलै जाता है कि जिस पेड़ पर फल आते हैं वो झुका हुआ होता है अमरूद के लिए ये कहावत एकदम सटीक बैठती है. इसकी डालियों को नीचे कि तरफ बांध दिया जाता है जिससे कि इसमें में फूल और फल ज्यादा आता है. अमरुद के पौधों कि कटाई करके उन्हें छोटा रखा जाता है ताकि फल अच्छा आये.

अमरुद के रोग और उनके उपाय:

अमरुद में सामान्यतः रोग ज्यादा नहीं होते लेकिन इस फल कि मिठास कि वजह से इसमें कीड़ा निकलने, उगठा रोग, और तनाभेदक रोग लगाने की संभावना रहती है. इसके लिए पौधे में नीचे चूना, जिप्सम व खाद मिला के लगाएं. तनाभेदक के लिए पेड़ के तने के छिद्र में मिट्टी का तेल डाल के गीली मिट्टी से बंद कर दें.
आम की खेती: आमदनी अच्छी खर्चा कम

आम की खेती: आमदनी अच्छी खर्चा कम

आम का नाम आते ही मन में एक स्वादिष्ट, रसभरे फल की आकृति मन में बनती है वैसे भी आम को फलों का राजा बोला जाता है। आम को कई तरह से हम अपने खाने का स्वाद बढ़ाने के लिए प्रयोग में लाते हैं जैसे आमचूर्ण, आमपापड, आम का अचार, आमरस, आम का शेक, आम की मीठी सब्जी (लोंजी) इत्यादि. तभी तो आम को फलों का राजा बोला जाती है. आम का उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार ने आम महोत्सब मनाना शुरू किया जो की शायद ही किसी अन्य फल का कोई महोत्सब होता हो। 

आम की खेती

आम सामान्य और खास, बच्चे और बूढ़े सभी की खास पसंद होता है। आम को गर्मी में खाने से लू से बचा जा सकता है तथा इसके पना पीने से गर्मी में बहुत राहत मिलती है। आम में पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा पाई जाती है तथा ये अपने स्वाद , रूप, रंग से भी लोगों को अपना दीवाना बनता है। इसकी सबसे बड़ी कमी ये है की इसको बाहर किसी पार्टी में इसके खाने की तरह नहीं खाया जा सकता जो की इसकी खासियत है। 

खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

वैसे तो आम की खेती आप किसी भी उपजाऊ जमीन में कर सकते हैं लेकिन दोमट और काली मिट्टी इसके लिए बहुत अच्छी होती है, इसके लिए अच्छी और उपजाऊ शक्ति वाली मिट्टी का होना बहुत आवश्यक है इसको किसी भी क्षेत्र में उगाया जा सकता है। इसको काम उपजाऊ बाली मिटटी में पहले से ही गोबर की बानी हुई खाद को मिटटी के साथ मिलाकर 1X1 के गड्ढे में डाल के या तो पानी डाल देना चाहिए या वर्षा होने का इंतजार करना चाहिए। 

आम लगाने की विधि

Mango Cultivation 

 इसके लिए तापमान भी 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तक चाहिए इसको उगाने के लिए आपको कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना होता है। इसकी पेड़ से पेड़ की दूरी का विशेष ध्यान रखना चाहिए, इसको जून से जुलाई के मध्य लगाना चाहिए। 

ये भी पढ़े: आम की खेती: आमदनी अच्छी खर्चा कम 

जून के पहले हफ्ते में 1X1 मीटर का गड्ढा खोद के उसमे गोबर की सड़ी हुई खाद मिटटी, यदि दीमक की समस्या हो तो 200 ग्राम क्लोरपाइरीफॉस पाउडर प्रति गड्ढे की दर से गड्ढे भरने से पहले मिट्टी में मिला लेनी चाहिए। इसको पहली बारिश तक खुला छोड़ देना चाहिए तथा बारिश के बाद या पानी लगाने के बाद पेड़ को शाम के समय गड्ढे में रोपित करें।

आम के पेड़ों की देखभाल कैसे करें

Mango Farming

इसके छोटे पेड़ों में पाले का बहुत नुकसान होता है इसके लिए शुष्क वातावरण ज्यादा सही है इसके लिए वर्षा का वार्षिक वितरण अधिक महत्वपूर्ण है फल फूल आने के समय पर मौसम अच्छा होना चाहिए बारिश नहीं होनी चाहिए अगर फल आने के टाइम पर बारिश हो जाती है तो इसके लिए नुकसानदायक होती है उसे फल और फूल झड़ जाते हैं और जब फल लगने के टाइम पर अगर तेज आंधी आ जाए तो उसमें कच्चे फल झड़ जाते हैं। इसके लिए जट्टारी के पास के किसान खेमचंद जी से हमारी बात हुई जिनका आम का बगीचा हैं उन्होंने बताया कि अगर मौसम अच्छा ना हो तो कई बार पूरी की पूरी फसल ही बर्बाद हो जाती है जैसे फूल लगाने के समय में थोड़ी सी हल्की बारिश भी हो जाए तो इनके लिए ज्यादा नुकसानदायक होती है सभी किसान भाइयों को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पेड़ की निराई गुड़ाई टाइम से की जाए और कोशिश करें कि पेड़ का आकार छोटा ही रहे बहुत बड़ा ना हो जिससे इस पर फल अच्छे लगते हैं देसी खाद आम के पेड़ के लिए बहुत आवश्यक है क्योंकि इसकी वजह से कई बार आपको रासायनिक खाद की जरूरत नहीं पड़ती है इससे फल स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है.

ये भी पढ़े: नीलम आम की विशेषताएं (Neelam Mango information in Hindi) 

 पेड़ के जड़ के पास थोड़ा गड्ढा बनाकर उसमें गोबर और बाकी दीमक नाशक मिला  कर  लगा सकते हैं जब आप पेड़ लगाएं तो दो पेड़ों के बीच में कम से कम 8 से 10 मीटर की दूरी होनी चाहिए उस से क्या होगा, जब आम का पेड़ बड़ा होगा तो उसको फैलने के लिए पूरी जगह चाहिए. आम के पेड़ की देखभाल 3 साल तक बहुत ज्यादा होती है सर्दी में इसे पाले से बचाना होता है तथा गर्मी में इसे लू लगाने से बचाना होता है. इसके लिए समय समय पर आपको पानी देना होता है पानी गर्मी में ठंडक और सर्दी में गर्मी देने का काम करता है.  आम का पेड़ काफी बड़ा होता है और इसके लिए आपको इसको समय समय पर कटिंग करने पड़ेगी जिससे की इसकी फुटोर अच्छी हो तो उसमे फल और फूल भी अच्छा आएगा.

आम की उन्नत किस्में

mango varieties

आम की कुछ उन्नत किस्में ऐसी होती हैं जो कि एक नॉर्मल इंसान को भी पता होती है जैसे, दशहरी:  यह किस्म सबसे मशहूर किस्म है दशहरी आम उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, पंजाब , बिहार में ज्यादा पाया जाता है, और जो सबसे महंगा आम होता है वह अल्फांसो होता है इसकी पैदावार साउथ में होती है अगर हम राज्यबार बात करें  तो उत्तर प्रदेश में दशहरी, लंगड़ा , चौंसा, सफेदा एवं लखनवी इत्यादि. 

हरियाणा- सरोली (बाम्बे ग्रीन), दशहरी, लंगड़ा और आम्रपाली आदि प्रमुख है| 

गुजरात- आफूस, केसर, दशेरी, लंगड़ो, राजापुरी, वशीबदामी, तोतापुरी, सरदार, दाडमियो, नीलम, आम्रपाली, सोनपरी, निल्फान्सो और रत्ना आदि प्रमुख है| 

बिहार- लंगड़ा (कपूरी), बम्बई, हिमसागर, किशन भोग, सुकुल, बथुआ और रानीपसंद आदि प्रमुख है| 

मध्य प्रदेश- अल्फान्सो, बम्बई, लंगड़ा, दशहरी और सुन्दरजा आदि प्रमुख है| पंजाब- दशहरी, लंगड़ा और समरबहिश्त चौसा आदि प्रमुख है| 

बंगाल- बम्बई, हिमसागर, किशन भोग, लंगड़ा जरदालू और रानीपसन्द आदि प्रमुख है| 

महाराष्ट्र- अल्फान्सो, केसर, मनकुराद, मलगोवा और पैरी आदि प्रमुख है| 

उड़ीसा- बैंगनपल्ली, लंगड़ा, नीलम और सुवर्णरेखा आदि प्रमुख है| 

कर्नाटक- अल्फान्सो, बंगलौरा, मलगोवा, नीलम और पैरी प्रमुख है| 

केरल- मुनडप्पा, ओल्यूर और पैरी आदि प्रमुख है| 

आन्ध्र प्रदेश-बैंगनपल्ली, बंगलौरा, चेरुकुरासम, हिमायुद्दीन और सुवर्णरेखा आदि प्रमुख है| 

गोवा- फरनानडीन और मनकुराद प्रमुख है|

आम के रोग:

Mango Disease

आम में दो तरह के रोग होते हैं एक जो पेड़ को ख़राब करते हैं एक जो फल और फूल को नुकसान पहुंचाते हैं. आम के पेड़ में लगाने वाला रोग आम के तने को खोकला करता है. पौधे की उम्र जैसे – जैसे बढ़ते जाती है वैसे – वैसे पेड़ का मुख्य तना खोखला होते जाता है तथा शाखाएं आपस में मिल जाती हैं, तथ बहुत सघन हो जाती हैं आम के ऐसे पौधों में बारिश का पानी खोखली जगह में भर जाता है । जिससे सड़न व गलन कि समस्या उत्पन्न होती है तथा, पौधे कमजोर हो जाते हैं और थोड़ी सी हवा में टूट जाते हैं, ऐसे में उपचार के लिए सबसे पहले सभी अनुत्पादक शाखाओं को हटा देना चाहिए 100 कि.ग्रा. अच्छी पकी हुई गोबर की खाद तथा 2.5 कि.ग्रा. नीम की खली प्रति पौधा देना चाहिए। जिससे अगले सीजन में लगी शाखाओं में वृद्धि होती है

आम के निम्नलिखित रोग होते हैं:

1. फुदका या भुनगा कीट-

Mango Disease

यह कीट आम की फसल को सबसे अधिक क्षति पहुंचाते हैं। इस कीट के लार्वा एवं वयस्क कीट कोमल पत्तियों एवं पुष्पक्रमों का रस चूसकर हानि पहुचाते हैं। इसकी मादा 100-200 तक अंडे नई पत्तियों एवं मुलायम प्ररोह में देती है और इनका जीवन चक्र 12-22 दिनों में पूरा हो जाता है। इसका प्रकोप जनवरी-फरवरी से शुरू हो जाता है। 

ये भी पढ़े: आम के फूल व फलन को मार्च में गिरने से ऐसे रोकें : आम के पेड़ के रोगों के उपचार

रोकथाम- इस कीट से बचने के लिए ब्यूवेरिया बेसिआना फफूंद के 0.5 फीसदी घोल का छिड़काव करें। नीम तेल 3000 पीपीएम प्रति 2 मिली प्रति लिटर पानी में मिलाकर, घोल का छिड़काव करके भी निजात पाई जा सकती है। इसके अलावा कार्बोरिल 0.2 फीसदी या क्विनोलफाॅस 0.063 फीसदी का घोल बनाकर छिड़काव करने से भी राहत मिल जाएगी।

2. गाल मीज-

Mango Disease

इनके लार्वा बौर के डंठल, पत्तियों, फूलों और छोटे-छोटे फलों के अन्दर रह कर नुकसान पहुंचाते हैं। इनके प्रभाव से फूल एवं फल नहीं लगते। फलों पर प्रभाव होने पर फल गिर जाते हैं। इनके लार्वा सफेद रंग के होते हैं, जो पूर्ण विकसित होने पर भूमि में प्यूपा या कोसा में बदल जाते हैं। 

रोकथाम- इनके रोकथाम के लिए गर्मियों में गहरी जुताई करना चाहिए। रासायनिक दवा 0.05 फीसदी फोस्फोमिडान का छिड़काव बौर घटने की स्थिति में करना चाहिए।

3. फल मक्खी (फ्रूट फ्लाई)-

Mango Disease

फलमक्खी आम के फल को बड़ी मात्रा में नुकसान पहुंचाने वाला कीट है। इस कीट की सूंडियां आम के अन्दर घुसकर गूदे को खाती हैं जिससे फल खराब हो जाता है। 

रोकथाम- यौनगंध के प्रपंच का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें मिथाइल यूजीनॉल 0.08 फीसदी एवं मेलाथियान 0.08 फीसदी बनाकर डिब्बे में भरकर पेड़ों पर लटका देने से नर मक्खियां आकर्षित होकर मेलाथियान द्वारा नष्ट हो जाती हैं। एक हैक्टेयर बाग में 10 डिब्बे लटकाना सही रहेगा।

कीट का नाम लक्षण नियंत्रण 

मैंगोहापर

फरवरी मार्च में कीट आक्रमण करता है। जिससे फूल-फल झाड़ जाते है एवं फफूँद पैदा होती है। क्विीनालाफास का एक एम.एल दवा एक लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 

मिलीबग 

फरवरी में कीट टहनियों एवं बौरों से रस चूसते हैं जिससे फूल फल झाड़ जाते है। क्लोरपायरीफास का 200 ग्राम धूल प्रति पौधा भुरकाव करें। 

मालफारर्मेषन 

पौधों की पत्तियां गुच्छे का रूप धारण करती है एवं फूल में नर फूलों की संख्या बड़ पाती है। प्रभावित फूल को काटकर दो एम.एल. नेप्थलीन ऐसटिक एसिड का छिड़काव 15 दिन के अंतर से 2 बार करें।  

ये भी पढ़े: चौसा आम की विशेषताएं

रोकथाम हेतु सावधानियाँ

  1. सिन्थेटिक पाइथाइड दवाओं जैसे साइपरमेथिन, डेल्टामेथ्रिन, फेनवेलरेट आदि को भुनगे की रोकथाम हेतु प्रयोग न करें, क्योंकि इससे परागण कीट एवं अन्य लाभकारी कीट नष्ट हो जाते हैं और भुनगे में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है|
  2. बागों में परागण करने वाले कीटों का संरक्षण करें और मधु मक्खियों की कालोनी रखें|
  3. यदि फूल खिल गये हो तो छिड़काव न करें|
  4. भुनगा तथा पाउडरी मिल्ड्यू के नियंत्रण के लिए तीनों छिड़काव में फफूंद नाशक एवं कीटनाशक दवाओं को मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं|
  5. कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को अन्य दवाओं के साथ न मिलायें|
  6. प्रत्येक छिड़काव के लिए दवा बदल कर घोल बनाये, जिससे कीटों में दवा की प्रतिरोधक क्षमता विकसित न हो|
  7. दवा के घोल में तरल साबुन (टीपॉल) अवश्य मिलायें|
  8. दवा का छिड़काव फब्बारे के रूप में करें तथा सही सान्द्रता का प्रयोग करें|
  9. अच्छी गुणवत्ता वाले कीट या फफूंदनाशक का प्रयोग करें|
दशहरी आम की विशेषताएं

दशहरी आम की विशेषताएं

फलों का राजा कहा जाने वाला आम भारत देश में इसकी विभिन्न विभिन्न प्रकार की किस्में उगाई जाती है। उन किस्मो में से एक दशहरी आम की किस्में है। दशहरी आम की पूर्ण विशेषता जानने के लिए हमारे इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहे। हम आपको दशहरी आम से जुड़ी सभी आवश्यक जानकारी प्रदान करेंगे: 

दशहरी आम

दशहरी आम, आम की उन किस्मो में से एक है जो अपनी भीनी भीनी- सोंधी सोंधी खुशबू तथा मीठे स्वाद के लिए जाना जाता है। दशहरी आम को ना सिर्फ भारत में अपितु इसे विदेशों में भी खूब पसंद किया जाता है। विदेशों में यह दशहरी आम बहुत ही ज्यादा मशहूर है अपने बेहतरीन स्वाद के चलते, कहा जाता है कि दक्षिण भारत में दशहरी आम को दसहरी नाम भी दिया गया है। उत्तर प्रदेश में दशहरी आम को बहुत ज्यादा पसंद किया जाता है। क्या आपने कभी सोचा है कि इसे दशहरी नाम क्यों दिया गया है? क्योंकि  दशहरी आम प्रजाति की उत्पत्ति लखनऊ क्षेत्र के पास दशहरी के गांव से हुई थी। इस वजह से इन्हें दशहरी नाम दिया गया है। 

दशहरी आम का बीज रोपण

दशहरी आम का रोपण करने के लिए किसान सबसे पहले अच्छी भूमि का चयन करते हैं। जिन क्षेत्रों में ज्यादा वर्षा होती है, उन क्षेत्रों में वर्षा के अंत के महीने में आम का बाग रोपण करना चाहिए। बीज रोपण करने के लिए भूमि को अच्छी तरह से गड्ढे दार तैयार कर लेना चाहिए। 50 सेंटीमीटर व्यास की दर से 1 मीटर गहरे गड्ढे मई के महीने में खोद लेना चाहिए। उन गड्ढों में करीब 30 से 40 प्रति किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद को मिट्टी में अच्छी तरह से मिलाकर उनमें 100 ग्राम क्लोरोपाइरिफास पाउडर मिलाना चाहिए। इन प्रतिक्रिया को अपनाकर बीज रोपण की क्रिया को करना चाहिए।

ये भी पढ़ें: आम के फूल व फलन को मार्च में गिरने से ऐसे रोकें : आम के पेड़ के रोगों के उपचार

दशहरी आम की खेती

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार दशहरी आम की खेती मलिहाबाद में की जाती है। वैसे तो उत्तर प्रदेश में 14 बेल्ट है और इन 14 बेल्ट में आम की खेती की जाती है परंतु दशहरी आम का स्वर्ग ( जन्नत) मलिहाबाद को कहा जाता है।  इसी वजह से दशहरी आम की खेती करने के लिए मलिहाबाद को सबसे श्रेष्ठ कहा जाता है। आंकड़ों के अनुसार मलिहाबाद में करीब 3,0,000 हेक्टेयर के क्षेत्रों में सिर्फ और सिर्फ आम की खेती ही की जाती है। अपनी इन सभी विशेषताओं के कारण उत्तर प्रदेश आम की उत्पादकता के लिए दूसरे नंबर पर आता है। सबसे ज्यादा आम का उत्पादन करने वाला उत्तर प्रदेश, भारत को कहा जाता है। दशहरी आम की खेती करने वाला पहला राज्य आंध्र प्रदेश है। जहां इसकी खेती भारी मात्रा में की जाती है इसीलिए आंध्रप्रदेश दशहरी आम की उत्पादकता के लिए अब तक नंबर वन की जगह बनाए हुए हैं।

ये भी पढ़ें: आम की खेती: आमदनी अच्छी खर्चा कम

विदेशों में दशहरी आम की बढ़ती मांग

दशहरी आम देश और विदेश दोनों जंगहो में काफी पसंद किया जाता है इसीलिए इसकी मांग विदेशों में बढ़ती जा रही है। वैसे तो दशहरी  की मुख्य राजधानी लखनऊ है। परंतु दशहरी आम को करीब के गांवों में जैसे: काकोरीइलाके नन्दी फिरोजपुर आदि में इसकी पैदावार होती है। दशहरी आम कई विदेशी राज्य में काफी पसंद किए जाते हैं, इसीलिए इन्हें उन राज्य में भेजा जाता है जैसे : पाकिस्तान, मलेशिया, नेपाल ,सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, हांगकांग, फिलीपींस जैसे विदेशी राज्य है जहां दशहरी आम को भारत देश से भेजा जाता है। 

दशहरी आम की पैदावार

आंकड़ों के मुताबिक दशहरी आम लगभग 20 लाख टन हर साल पैदा होते हैं। दशहरी आम उत्तर प्रदेश में भारी मात्रा में उत्पाद किया जाता है। जैसा कि हम आपको पहले ही बता चुके हैं। कि लखनऊ के पास स्थित गांव जिसका नाम दशहरी है। उसकी वजह से इस आम का नाम दशहरी पड़ा, कहा जाता हैं कि दशहरी आम का पहला पेड़ लखनऊ में आज भी स्थित है। यह पेड़ लखनऊ के पास के ही काकोरी स्टेशन के समीप दशहरी गांव में लगा हुआ है। इस पेड़ का ही पहला दशहरी आम आया था। इस पहले दशहरी आम के पेड़ की आयु लगभग दो सौ साल तक के आसपास बताई जाती है। इस आम के पेड़ को मान्यता देते हुए। इसे मदर ऑफ मैंगो ट्री से सम्मानित कर बुलाया जाता है। उत्तर प्रदेश में मलिहाबाद दशहरी आम उत्पाद करने वाला सबसे बड़ा क्षेत्र माना जाता हैं।

ये भी पढ़ें: हापुस आम की पूरी जानकारी (अलफांसो)

दशहरी आम के फायदे

दशहरी आम, दशहरी आम न सिर्फ खाने बल्कि इसके विभिन्न फायदे हैं, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। यदि आप अभी तक इनके फायदों से वाकिफ नहीं तो चलिए हम आपको इनके कुछ फायदे बताते हैं:
  • कैंसर जैसी भयानक बीमारियों से बचने के लिए आम स्वास्थ्य के लिए बेहद ही फायदेमंद होते है। क्योंकि आम में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट कोलोन जैसे आवश्यक तत्व ल्यूकेमिया और प्रोस्टेट कैंसर से शरीर का बचाव करते हैं। क्यूर्सेटिन, एस्ट्रागालिन और फिसेटिन जैसे आवश्यक तत्व कैंसर की रोकथाम करने में बहुत सहायक होते हैं।
  • दशहरी आम में विटामिन ए की पूर्ण मात्रा पाई जाती है। विटामिन ए के जरिए आंखों की रोशनी बढ़ती है इसीलिए दशहरी आम खाने से आप अपनी आंखों की चमक और रोशनी दोनों को बरकरार रख सकते हैं।
  • दशहरी आम में विटामिन सी और फाइबर उच्च मात्रा में पाए जाते हैं। इन दोनों तत्वों के जरिए हम अपने शरीर के खराब असंतुलित कोलेस्ट्रॉल को संतुलित बनाए रख सकते हैं।
  • दशहरी आम बहुत ही फायदेमंद होता है। यदि आप आम के गूदे को अपने चेहरे पर लगाते हैं। या फिर मसाज करते हैं तो आपका चेहरा चमकता हुआ दिखाई देगा। साथ ही साथ विटामिन सी की मदद से संक्रमण रोगों से भी  बचाव कर सकते हैं
  • दशहरी आम में मौजूद एंजाइम्स आप की पाचन क्रिया को बेहतर बनाए रखने में सहायक होते हैं। इसमें मौजूद एंजाइम्स प्रोटीन को तोड़ने का कार्य करते हैं जिसकी वजह से भोजन बहुत जल्दी पच जाता है। साथ ही साथ यह वजन कम करने में भी सहायक होते हैं।
दोस्तों हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह आर्टिकल दशहरी आम पसंद आया होगा। यदि आप हमारे इस आर्टिकल से संतुष्ट हैं, तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा सोशल मीडिया और अपने दोस्तों के साथ शेयर करें। धन्यवाद।

केसर आम की विशेषताएं

केसर आम की विशेषताएं

फलों का राजा आम जिसकी विभिन्न विभिन्न प्रकार की किस्में मौजूद है। उन किस्मों में से एक किस्म केसर आम की है। गर्मियों का मौसम आते ही सबसे पहला नाम आम का आता है। लोग गर्मी को आम की वजह से पसंद करते है। क्योंकि गर्मी के मौसम में अलग अलग प्रकार की आम की किस्म आती है जिसे लोग बड़े शौक से खाते हैं। केसर आम से जुड़ी विशेषताओं के बारे में जानने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहे: 

केसर आम

केसर आम की खुशबू एकदम केसर जैसी होती है यह केसर आम स्वाद में बहुत ही मीठा होता है। केसर आम की मुख्य पैदावार जूनागढ़ और अमरेली जिले में मौजूद गिर्नार पर्वत के तलहटी में केसर आम का उत्पादन होता है। कहा जाता है कि केसर आम को भौगोलिक संकेत की भी प्राप्ति है। 

इस आम का नाम केसर आम क्यों पड़ा

प्राप्त की गई जानकारियों के अनुसार इस आम को केसर के नाम से इसलिए पुकारा जाता है। क्योंकि इस आम में केसर की खुशबू आती है इसीलिए इसका नाम केसर आम पड़ा। केसर आम की पैदावार उत्तर प्रदेश में बहुत ही ज्यादा मात्रा में होती है।

ये भी पढ़ें: दशहरी आम की विशेषताएं

केसर आम का इतिहास

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार केसर आम को वजीर सेल भाई द्वारा वनथाली में उगाया गया था। सन 1931के करीब जूनागढ़ में केसर आम का उत्पादन किया गया था। केसर आम को गिरनार की तलहटी और जूनागढ़ के समीप लाल डोरी फॉर्म में 75 से 80 ग्राफ्ट तक लगाया गया था। केसर आम की पहचान और इसका नाम 1934 में केसर के रूप में लोगों के बीच जाना जाने लगा। मोहम्मद महाबत खान जो जूनागढ़ के नवाब कहे जाते थे। जब उन्होंने इस नारंगी और खूबसूरत फल को देखा , देखते ही उन्होंने कहा या तो केसर है। तब से इस आम को केसर के नाम से ही जाना जाता है। 

केसर आम का उत्पादन

हर साल केसर आम का उत्पादन लगभग 20,000 हेक्टेयर क्षेत्र की दर पर उगाया जाता है। केसर आम की इस उत्पादकता को गुजरात के सौराष्ट्र के जूनागढ़ तथा अमरेली जिले में उगाया जाता हैं। कृषि केंद्र परिषद के अनुसार केसर आम का वार्षिक उत्पादन करीबन दो लाख टन के समीप होता है। अभयारण्य क्षेत्र में केसर आम को गिर केसर आम के नाम से भी पुकारा जाता है। केसर आम की किस्म बाकी किस्मों से बहुत ही ज्यादा महंगी होती है

ये भी पढ़ें: हापुस आम की पूरी जानकारी (अलफांसो)

केसर आम को जीआई टैग की अनुमति

केसर आम का भौगोलिक पंजीकरण का प्रस्ताव गुजरात के एग्रो इंडस्ट्रीज कॉरपोरेशन द्वारा रखा गया था। प्रस्ताव के स्वीकार हो जाने के बाद केसर आम को जीआई टैग की प्राप्ति हुई। जीआई टैग के तहत केसर आम को विभिन्न विभिन्न देशों में भेजा जा सकता है। जिसे स्कैन कर केसर आम का मुख्य पता और जानकारी जान सकेंगे। 

केसर आम का रोपण

केसर आम का वृक्ष रोपण करने से पहले किसान कुछ देर के लिए बीजों को डाइमेथोएट में डूबा कर रखते हैं। इस क्रिया द्वारा फसल में किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं होता और आम की फसल पूरी तरह से सुरक्षित रहती हैं। बीजों को थोड़ी थोड़ी दूरी पर रोपण करते हैं और हल्का पानी का छिड़काव करते हैं।

ये भी पढ़ें: लंगड़ा आम की विशेषताएं

केसर आम के लिए उपयुक्त जलवायु

केसर आम की खेती दो प्रकार की जलवायु में सबसे सर्वोत्तम होती है पहली उष्ण और दूसरी समशीतोष्ण जलवायु , दोनों ही जलवायु सबसे अच्छी जलवायु मानी जाती है केसर आम की खेती के करने के लिए। केसर आम की खेती के लिए तापमान करीब 23 .1 से लेकर 26 .6 डिग्री सेल्सियस सबसे उत्तम माना जाता है। केसर आम की खेती आप किसी भी तरह की भूमि में आराम से कर सकते हैं।

ये भी पढ़ें: आम के फूल व फलन को मार्च में गिरने से ऐसे रोकें : आम के पेड़ के रोगों के उपचार

केसर आम के लिए उपयुक्त सिचाई

केसर आम की फसल की सिंचाई लगभग एक से 2 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए। केसर आम की फसल के लिए मिट्टी और जलवायु दोनों का खास ख्याल रखना चाहिए।बीच-बीच में लगातार हल्की हल्की सिंचाई करते रहे। हल्की सिंचाई लगातार करते रहने से अच्छा उत्पादन होता है। गर्मियों के मौसम में कम से कम 7 से 8 दिनों के भीतर सिंचाई करते रहना चाहिए। केसरआम जब पूर्ण रूप से विकसित हो जाए तब हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है।

ये भी पढ़ें: आम की बागवानी से कमाई

केसर आम की सप्लाई

पिछले साल की ही बात है केसर आम बहुत ही ज्यादा चर्चा में था। जब केसर आम मार्केट में आया था। तब इसका वजन लगभग 250 ग्राम से लेकर 400 ग्राम तक का था। अपनी इन खूबियों के चलते केसर आम मार्केट में बहुत ही ज्यादा लोकप्रिय हो गया था। लोगों में केसर आम की मांग काफी बढ़ गई थी कुछ ऐसे राज्य हैं जहां यह आम सप्लाई होने लगे थे। जैसे: कोलकाता , दिल्ली, हैदराबाद बेंगलुरु, रायपुर , आदि जगह केसर आम की सप्लाई तेजी से बढ़ने लगी। 

केसर आम खाने के फायदे

केसर आम खाने के बहुत सारे फायदे हैं और यह फायदे कुछ इस प्रकार है:
  • सबसे पहले बात इसके स्वाद की करे, तो केसर आम स्वाद में सबसे बेहतर होता है। इसमें केसर की भीनी खुशबू आती है और देखने में बहुत ही आकर्षित लगता है।
  • यदि आप केसर आम खाते हैं तो आपका चेहरा चमकता हुआ दिखाई देगा। रोजाना केसर आम खाने से चेहरे का ग्लो बढ़ता है स्किन सॉफ्ट रहती है।
  • केसर आम में मौजूद पोषक तत्व आपको गर्मी में लू लगने से बचाव करते हैं।
  • केसर आम में एंटीऑक्सीडेंट जैसे आवश्यक तत्व मौजूद होते हैं। यह आवश्यक तत्व हमारे शरीर को स्वस्थ रखते हैं।
  • हमारी पाचन क्रिया को मजबूत बनाते हैं आंखों की रोशनी को बढ़ाते हैं गिरते हुए बालों की समस्या को दूर करते हैं।
  • केसर आम का सेवन करने से हमारे शरीर का कोलेस्ट्रॉल काफी बेहतर रहता है। हमारे शरीर का वजन सामान्य रहता है।
  • किसानों को केसर आम की फसल से बहुत अच्छा मुनाफा होता है जिससे वह आय निर्यात की प्राप्ति कर लेते हैं।
दोस्तों हम उम्मीद करते हैं , आपको हमारा यह आर्टिकल केसर आम की विशेषताएं पसंद आया होगा। इस आर्टिकल में केसर आम से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक बातें और जानकारियां मौजूद है। यदि आप हमारी दी गई जानकारियों से संतुष्ट है। तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा सोशल मीडिया और दोस्तों के साथ शेयर करें । धन्यवाद।

आम की बागवानी से कमाई

आम की बागवानी से कमाई

आम भारत का राष्ट्रीय फल है। देश में इसका सर्वाधिक क्षेत्रफल उत्तर प्रदेश में पाया जाता है किंतु उत्पादन की दृष्टि से आंध्र प्रदेश ही श्रेष्ठ रहता है। रंग, सुगंध और स्वाद के मामले में आम देश ही नहीं विदेशों तक जाना पहचाना जाता है। यह विटामिन ए एवं बी के प्रचुर स्रोत है विटामिन ए नेत्रों एवं विटामिन बी शक्ति के स्रोत के रूप में काम आता है। कच्चे आम से अनेक प्रकार की चटनी, आचार, मुरब्बा, सिरप आदि का निर्माण किया जाता है। तरह के पेय पदार्थ बनाए जाते हैं। आम की बागवानी लाभकारी होने के कारण पूर्वांचल के और बुलंदशहर के कई इलाकों में बहुतायत में की जाती है।

 

आम की बागवानी के लिए मिट्टी पानी

आम की बागवानी हर तरह की मृदा में की जा सकती है लेकिन भूगर्भीय जल जिन इलाकों में सरी पाया जाता है | वहां इससे अच्छे फल की उम्मीद नहीं की जा सकती। इसकी श्रेष्ठ बढ़वार के लिए दो से ढाई मीटर मिट्टी की आवश्यकता होती है। आम के बाग 24 से 27 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान वाले इलाकों में अच्छे होते हैं। लेकिन 23.8-26. 6 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान को इसके लिए आदर्श तापमान माना जाता है। यानी ज्यादा गर्मी वाले इलाकों में इससे अच्छा उत्पादन नहीं मिलता।

ये भी पढ़ें:
इस राज्य में प्रोफेसर आम की खेती से कमा रहा है लाखों का मुनाफाआम की बागवानी


आम की उन्नत किस्में

आम की एक से बढ़कर एक किस्म तैयार हो चुकी है। कई किस्मों की मांग देश नहीं विदेशों तक होने लगी है। 

दशहरी किस्म सबसे लोकप्रिय है। इसे 10 दिन तक सुरक्षित रखा जा सकता है। बनावट स्वाद सुगंध और रंग की दृष्टि से यह बेहद ही खूबसूरत लगता है। 

दूसरी किस्म मुंबई हरा के नाम से जानी जाती है और यह है अगेती किस्म है। इसे माल्दा एवं सरोली भी कहते हैं। फल मध्यम आकार का अंडाकार, पकने पर भी हर अपन लिए हुए रहता है। इसे ज्यादा दिन तक सुरक्षित नहीं रखा जा सकता। 

लंगड़ा भी दशहरे की तरह मध्य मौसम में पकने वाली किस्म है इससे दरभंगा रूह अफजा एवं हर दिल अजीत भी कहते हैं। 4 दिन की भंडारण क्षमता वाला यह आम बेहद मीठा होता है। 

रटोल किस्म को भी अगेती माना जाता है। इसका फल भी छोटे आकार का होता है। उसका फल छोटे आकार का अंडाकार, सुगंधित एवं मीठा होता है। 

चौसा पछेती किस्म है। इसे काजरी एवं खाजरी के नाम से भी जाना जाता है। 5 दिन की भंडारण क्षमता वाला यह आम आकार में बड़ा होता है।

ये भी पढ़ें:
जानें विश्व के सर्वाधिक महंगे आम की विशेषताओं के बारे में जिसकी वजह से 3 लाख तक बेचा जाता है

फजरी किस्म का आम पछेती होता है यानी कि बाजार में इसके फल देर से आते हैं । इसे फजली भी कहते हैं। धारण क्षमता कम होती है। 

राम अकेला भी देर से पकने वाली किस्म है इसका फल पकने के बाद भी खट्टापन लिए हुए रहता है। इसे अचार के लिए सर्वोत्तम किस्म माना जाता है। 

आम्रपाली किस्म दशहरी एवं नीलम किस्मों के सहयोग से विकसित की गई है। यह मध्य मौसम की बोनी व नियमित फलत वाली किस्म है। इसका एक हेक्टेयर में बाग लगाने के लिए ढाई मीटर भाई ढाई मीटर पर पौधा लगाने पर 16 सौ पौधे लगाए जा सकते हैं। 

मल्लिका किस्म नीलम एवं दशहरी के संयोग से विकसित हुई है। यह मध्यम मौसम की फसल है। यह नियमित रूप से चलने वाली मध्य मौसम की किस्में है। भंडारण क्षमता अधिक है किंतु फल कम लगते हैं। निर्यात के लिए इसके फलों को अच्छा माना जाता है। 

सौरभ किस्म का आम दशहरी एवं फजरी जाफरानी के संयोग से विकसित किया गया है | यह मध्य मौसम की किस्म है। 

गौरव किस्म के आम को दशहरी एवं तोतापरी आम हैदराबादी किस्मों के क्रॉस से तैयार किया गया है।

राजीव कृष्ण के आम को दशहरे एवं रोमानी किस्मों के सहयोग से तैयार किया गया है यह जुलाई के तीसरे सप्ताह में जाकर पकती है ।फल मध्यम आकार के होते हैं। 

कैसे लगाएं बाग

बाग लगाने के लिए मई से लेकर जून के महीने तक किस्म के अनुसार 11 से 13 मीटर की दूरी पर 1 वर्ग मीटर आकार के गड्ढे खोद देने चाहिए। कुछ दिन इन गड्ढों की मिट्टी को धूप में सूखने देना चाहिए ताकि मिट्टी में मौजूद कीट व अंडे समाप्त हो जाएं। गड्ढा खोदते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए की ऊपरी डेढ़ फीट मिट्टी बांई तरफ एवं नीचे की डेढ फीट मिट्टी दाईं तरफ डालनी चाहिए। हफ्ते 10 दिन मिट्टी को धूप लगने के बाद उसमें पर्याप्त सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाकर आधी मिट्टी गड्ढे में भर देनी चाहिए। ध्यान रहे की गड्ढे में खुदाई के समय बाई तरफ डाली गई ऊपरी डेढ़ फीट मिट्टी ही डालनी चाहिए। ऊपरी मिट्टी को ही उपजाऊ माना जाता है। तत्पश्चात या तो एक दो बरसात होने का इंतजार करना चाहिए अन्यथा गड्ढे में एक दो बार पानी भरने के बाद पौधे लगा देनी चाहिए। हम घरों में फल वृक्ष लगाते तो हैं लेकिन उनका पालन पोषण फसल की तरह से नहीं करते। नटू पौधों में पर्याप्त कम्पोस्ट डालते हैं और ना ही सुक्ष्म पोषक तत्वों का मिश्रण डालते हैं। हमें बागवानी के लिए समुचित रसायनों का प्रयोग करना चाहिए।

ये भी पढ़ें:
आम की खेती: आमदनी अच्छी खर्चा कम
 

एक वर्ष के आम के पौधे के लिए 10 किलोग्राम कंपोस्ट 100 ग्राम नाइट्रोजन 50 ग्राम फास्फोरस सौ ग्राम पोटाश 25 ग्राम कॉपर सल्फेट एवं 25 ग्राम जिंक सल्फेट पहले साल में थाना बनाकर डालनी चाहिए। अगले साल से इस मात्रा को 10 साल तक बढ़ाकर दोगुना कर लेना चाहिए। पौधे को 5 साल का होने के बाद बोरेक्स का प्रयोग शुरु कर देना चाहिए ‌। पांच विशाल 100 ग्राम इसके बाद प्रतिवर्ष 50 ग्राम मात्रा बोरेक्स की बढ़ाती जाना चाहिए।  

आम के कीट एवं रोगआम के कीट एवं रोग

  • आम को भुनगा कीट सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। उसके शरीर का आकार तिकोना होता है। इस कीट के नियंत्रण के लिए कीटनाशक का छिड़काव और आने और दो 3 इंच लंबा होने पर ही कर देना चाहिए। इसके 15-20 दिन बाद दूसरा छिड़काव करना चाहिए। इसकी को मारने के लिए किसी भी प्रभावशाली कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए इनमें मोनोक्रोटोफॉस, क्यूनालफास, डाईमेथोएट आदि शामिल हैं।
  • दूसरा कीट मैंगो मिलीबग यानी कढी कीट प्रभावित करता है। सफेद रंग का यह गीत शाखाओं का रस चूस लेते हैं इसके साथ ही एक चिपचिपा पदार्थ छोड़ते हैं जिस पर काली फफूंद उग आती है। बचाव के लिए दिसंबर माह में पौधों के छालों की बुराई करते समय मिथाइल पराथियान डस्ट 2% डेढ़ सौ से 200 ग्राम प्रति छाले मिला देनी चाहिए।
  • सिल्क कीट मुलायम टहनियों व पत्तियों की निचली सतह पर सैकड़ों की संख्या में चिपके रहते हैं पौधे और फल दोनों को प्रभावित करते हैं। नष्ट करने के लिए भी प्रभावी कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए।
  • आम को तना भेदक कीट से बचाने के लिए गिडार द्वारा तने में बनाए गए क्षेत्र में मोनोक्रोटोफॉस या डीडीवीपी का घोल छिड़ककर तने के छेद को गीली मिट्टी से बंद कर देना चाहिए।
  • शाखा भेधक कीट सबके लिए कार बोरवेल 50 डब्ल्यूपी 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में बनाए घोल के 2-3 छिड़काव 15 से 20 दिन के अंतराल पर पौधों पर करना चाहिए।
  • आम के पौधों पर खर्रा यानी कि पाउड्री मिलड्यू का प्रभाव भी होता है। रोकथाम के लिए डायलॉग कैप 48 सीसी 1ml प्रति लीटर पानी में घोलकर या घुलनशील गंधक की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से घोल कर छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा कोयलिया, फल का आंतरिक सड़न, गोंद निकलने का रोग जैसी समस्याएं थी आम की फसल में रहती हैं। सभी रोगों का विशेषज्ञों की सलाह के बाद परीक्षण कराकर ही इलाज कराना चाहिए। इसके लिए हर ब्लाक स्तर पर स्थित कृषि रक्षा इकाई, जिला स्तर पर जिला कृषि अधिकारी एवं उप कृषि निदेशक तथा कृषि विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञों के पास पौधों की संक्रमित टहनी ले जाकर रोग की पहचान और निदान कराना ज्यादा श्रेयस्कर रहेगा।

आम के फूल व फलन को मार्च में गिरने से ऐसे रोकें: आम के पेड़ के रोगों के उपचार

आम के फूल व फलन को मार्च में गिरने से ऐसे रोकें: आम के पेड़ के रोगों के उपचार

आम जिसे हम फलों का राजा कहते है,  इसके लजीज स्वाद और रस के हम सभी दीवाने है। गर्मियों के मौसम में आम का रस देखते ही मुंह में पानी आने लगता है। 

आम ना केवल अपने स्वाद के लिए सबका पसंदीदा होता है बल्कि यह हमारे  स्वास्थ्य के लिए भी काफी फायदेमंद होता है। आम के अंदर बहुत सारे विटामिन होते है जो हमारी त्वचा की चमक को बनाए रखती है। 

हां आपको मार्च में आम के फूल व फलन को गिरने से रोकने और आम के पेड़ के रोगों के उपचार की जानकारी दी जा रही है।

आम की उपज वाले राज्य और इसकी किस्में [Mango growing states in India and its varieties]

भारत में सबसे ज्यादा आम कन्याकुमारी में लगते है। आम के पेड़ो की अगर हम लंबाई की बात करे तो यह तकरीबन 40 फुट तक होती है। वर्ष 1498 मे केरल में पुर्तगाली लोग मसाला को अपने देश ले जाते थे वही से वे आम भी ले गए। 

भारत में लोकप्रिय आम की किस्में दशहरी , लगड़ा , चौसा, केसर बादमि, तोतापुरी, हीमसागर है। वही हापुस, अल्फांसो आम अपनी मिठास और स्वाद के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी काफी डिमांड में रहता है।

 

आम के उपयोग और फायदे [Uses and benefits of mango]

आम का आप जूस बना सकते है, आम का रस निकल सकते है और साथ ही साथ कच्चे आम जिसे हम कैरी बोलते है उसका अचार भी बना सकते है। 

आम ना केवल हमारे देश में प्रसिद्ध है बल्कि दुनिया के कई मशहूर देशों में भी इसकी मांग बहुत ज्यादा रहती है। आम कैंसर जैसे रोगों से बचने के लिए काफी ज्यादा फायदेमंद होता है। 

ये भी पढ़े: आम की बागवानी से कमाई

आम के पौधों को लगाने के लिए सबसे पहले आप गड्ढों की तैयारी इस प्रकार करें [Mango Tree Planting Method]

आम के पेड़ों को लगाने के लिए भारत में सबसे अच्छा समय बारिश यानी कि बसंत रितु को माना गया है। भारत के कुछ ऐसे राज्य हैं जहां पर बहुत ज्यादा वर्षा होती हैं ऐसे में जब वर्षा कम हो उस समय आप आम के पेड़ों को लगाएं। 

क्योंकि शुरुआती दौर में आम के पौधों को ज्यादा पानी देने पर वो सड़ने लग जाते है। इसके कारण कई सारी बीमारियां लगने का डर भी रहता है। 

आम के पेड़ों को लगाने के लिए आप लगभग 70 सेंटीमीटर गहरा और चौड़ा गड्ढा खोल दें और उसके अंदर सड़ा हुआ गोबर और खाद डालकर मिट्टी को अच्छी तरह तैयार कर दीजिए। 

इसके बाद आप आम के बीजों को 1 महीने के बाद उस गड्ढे के अंदर बुवाई कर दीजिए। प्रतीक आम के पेड़ के बीच 10 से 15 मीटर की दूरी अवश्य होनी चाहिए अन्यथा बड़े होने पर पेड़ आपस में ना टकराए।

आम के पौधों की अच्छे से सिंचाई किस प्रकार करें [How to irrigate mango plants properly?]

आम के पेड़ों को बहुत लंबे समय तक काफी ज्यादा मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। एक बार जब आम के बीज गड्ढों में से अंकुरित होकर पौधे के रूप में विकसित होने लगे तब आप नियमित रूप से पौधों की सिंचाई जरूर करें। 

आम के पेड़ों की सिंचाई तीन चरणों में होती हैं। सबसे पहले चरण की सिंचाई फल लगने तक की जाती है और उसके बाद दूसरी सिंचाई में फलों की कांच की गोली के बराबर अवस्था में अच्छी रूप से की जाती हैं। 

 जब एक बार फल पूर्ण रूप से विकसित होकर पकने की अवस्था में आ जाते हैं तब तीसरे चरण की सिंचाई की जाती हैं। सबसे पहले चरण की सिंचाई में ज्यादा पानी की आवश्यकता होती हैं 

आम के पौधों को। सबसे अंतिम चरण यानी तीसरे चरण में आम के पेड़ों को इतनी ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती हैं। आम के पेड़ों की सिंचाई करने के लिए थाला विधि सबसे अच्छी मानी जाती हैं इसमें आप हर पेड़ के नीचे नाली भला कर एक साथ सभी पेड़ों को धीरे-धीरे पानी देवे। 

ये भी पढ़े: आम की खेती: आमदनी अच्छी खर्चा कम

आम के पौधों के लिए खाद और उर्वरक का इस्तेमाल इस प्रकार करें [How to use manure and fertilizer for mango plants?]

आम के पेड़ को पूर्ण रूप से विकसित होने के लिए बहुत ज्यादा मात्रा में नाइट्रोजन फास्फोरस और पोटेशियम की बहुत ज्यादा आवश्यकता होती हैं। 

ऐसे में आप प्रतिवर्ष आम के पौधों को इन सभी खाद और उर्वरकों की पूर्ण मात्रा में खुराक देवे। यदि आप आम के पौधों में जैविक खाद का इस्तेमाल करना चाहते है तो 40kg सड़ा हुआ गोबर का खाद जरूर देवे। 

इस प्रकार की खाद और सड़ा गोबर डालने से प्रतिवर्ष आम के फलों की पैदावार बढ़ जाती हैं।इसी के साथ साथ अन्य बीमारियां और कीड़े मकोड़ों से भी आम के पौधों का बचाव होता है।

आप नाइट्रोजन पोटाश और फास्फोरस को पौधों में डालने के लिए नालियों का ही इस्तेमाल करें। प्रतिमाह कम से कम तीन से चार बार आम के पौधों को खाद और उर्वरक देना चाहिए इससे उनकी वृद्धि तेजी से होने लगती हैं।

आम के फूल व फलन को झड़ने से रोकने के लिए इन उपायों का इस्तेमाल करें [Remedies to stop the fall of mango blossom flowers & raw fruits]

आम के फलों का झड़ना कई सारे किसानों के लिए बहुत सारी परेशानियां खड़ी कर देता है। सबसे पहले जान लेते हैं ऐसा क्यों होता है ऐसा अधिक गर्मी और तेज गर्म हवाओं के चलने के कारण होता है। 

ऐसे में आप यह सावधानी रखें कि आम के पेड़ों को सीधी गर्म हवा से बचाया जा सके। सबसे ज्यादा आम के पेड़ों के फलों का झड़न मई महीने में होता है। इस समय ज्यादा फलों के गिरने के कारण बागवानों और किसानों को सबसे ज्यादा हानि होती हैं। 

इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए आप नियमित रूप से सिंचाई कर सकते हैं। नियमित रूप से सिंचाई करने से आम के पौधों को समय-समय पर पानी की खुराक मिलती रहती हैं इससे फल झड़ने की समस्या को कुछ हद तक रोका जा सकता है। 

आम के फलों के झड़ने का दूसरा कारण यह भी होता है कि आम के पौधों को सही रूप में पोषक तत्व नही मिले हो। इसके लिए आप समय-समय पर जरूरतमंद पोषक तत्व की खुराक पौधों में डालें। 

इसके अलावा आप इन हारमोंस जैसे कि ए एन ए 242 btd5 जी आदि का छिड़काव करके फलों के झाड़न को रोक सकते हैं। आम के पौधों को समय समय पर खाद और उर्वरक केकरा देते रहें इससे पौधा अच्छे से विकसित होता है और अन्य बीमारियों से सुरक्षित भी रहता है।

आम के पौधों में लगने वाले रोगों से इस प्रकार बचाव करें [How to prevent and cure diseases in mango plants]

जिस प्रकार आम हमें खाने में स्वादिष्ट लगते हैं उसी प्रकार कीड़ों मकोड़ों को भी बहुत ज्यादा पसंद आते हैं। ऐसे में इन कीड़ों मकोड़ों की वजह से कई सारी बीमारियां आम के पेड़ों को लग जाती हैं और पूरी फसल नष्ट हो जाती है। 

आम के पेड़ों में सबसे ज्यादा लगने वाला रोग दहिया रोग होता है इससे बचाव के लिए आप घुलनशील गंधक को 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव अवश्य करें। इससे आम के पेड़ों में लगने वाला दहिया रोग मात्र 1 से 2 सप्ताह में पूर्ण रूप से नष्ट हो जाता है। 

इस घोल का छिड़काव आप प्रति सप्ताह दो से तीन बार अवश्य करें। छिड़कावकरते समय यह ध्यान अवसय रखे की ज्यादा मात्रा में घोल को आम के पेड़ों को ना दिया जाए वरना वो मुरझाकर नष्टभी हो सकते है। 

इसके अलावा दूसरा जो रोग आम के पेड़ में लगता है वह होता है कोयलिया रोग। से बचाव के लिए आप el-200 पीपी और 900 मिलीलीटर की मात्रा में घोल बनाकर सप्ताह में तीन से चार बार छिड़काव करें। 

इसका छिड़काव आप 20 20 दिन के अंतराल में जरूर करें और इसका ज्यादा छिड़काव करने से बचें। उपरोक्त उपायों से आप आम के फूल व फलन को गिरने से रोकने में काफी हद तक कामयाब हो सकते हैं ।

आम की बागवानी

आम की बागवानी

दोस्तों आज हम बात करेंगे, आम की बागवानी के विषय में, आम का नाम सुनते ही मुंह में पानी आना शुरू हो जाता है। साल भर आम का इंतजार लोग काफी बेसब्री से करते हैं। लोग आम का इस्तेमाल जूस, जैम, कचरी, आचार विभिन्न विभिन्न तरह की डिशेस बनाने में आम का इस्तेमाल करते हैं।आम भाषा में कहें तो आम के एक नहीं बहुत सारे फायदे हैं। यहां तक की कुछ दवाइयां ऐसी भी हैं। जिनमें आम का इस्तेमाल किया जाता है। आमकीफ़सल की पूरी जानकारी जानने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें।  

आम की फ़सल के लिए भूमि एव जलवायु :

आम की फसल किसानों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। इसलिए इसकी जलवायु और भूमि का खास ख्याल रखना चाहिए। आम की फसल के लिए भूमि एवं जलवायु का चयन किस प्रकार करते हैं जानिए: आम के फसल की खेती दो तरह की जलवायु में की जाती है पहली समशीतोष्ण एवं उष्ण जलवायु, आम की खेती के लिए यह दोनों जलवायु बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण होती हैं। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार आम के फसल की अच्छी प्राप्ति करने के लिए इस का तापमान लगभग 23.8 से 26.6 डिग्री सेंटीग्रेट सबसे अच्छा तापमान होता हैं। आम की खेती किसी भी तरह की भूमि यानी जमीन में की जा सकती है। लेकिन ध्यान रखें कि आम की खेती के लिए जलभराव वाली भूमि ,पथरीली भूमि तथा बलुई वाली भूमि आम की फसल उगाने के लिए अच्छी नहीं होती होती। आम की फसल के लिए सबसे अच्छी दोमट भूमि होती है और इन में जल निकास काफी अच्छी तरह से हो जाता है।

ये भी पढ़ें:
आम की बागवानी से कमाई

आम की प्रजातियां :

आम की एक नहीं बल्कि विभिन्न विभिन्न प्रकार की प्रजातियां मौजूद है। यह प्रजातियां कहीं और नहीं हमारे देश में उगाई जाती हैं। और इनका स्वाद भी अलग अलग होता है। आम की प्रजातियां कुछ इस प्रकार है जैसे: लंगड़ा आम, दशहरी आम, चौसा आम, बाम्बे ग्रीन, अलफांसी, तोतापरी आम ,हिमसागर आम, नीलम, वनराज ,सुवर्णरेखा आदि आम की प्रजातियां है। इन प्रजातियों की जानकारी हमें कृषि विशेषज्ञों द्वारा दी गई है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार आम की कुछ और भी नई प्रजातियां उगाई जा रही हैं। जो इस प्रकार हैं जैसे:  आम्रपाली, दशहरी 51, दशहरी 5 ,मल्लिका, अंबिका, राजीव ,गौरव, रामकेला और रत्ना आदि आम की नई प्रजातियों में शामिल हैं।  

खाद एवं उर्वरक का इस्तेमाल :

आम के पेड़ों के चारों तरफ जुलाई के महीनों में,  नलिका बनाई जाती है और उन नलिका में 100 ग्राम प्रति नाइट्रोजन, पोटाश और फास्फोरस की मात्रा इन नलिका मे दी जाती है। मृदा अवस्था सुधार के अंतर्गत भौतिक और रासायनिक में परिवर्तन लाने के लिए 25 से लगभग 30 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खादों का इस्तेमाल किया जाता है। पौधों में सड़ी हुई खाद देना बहुत ही ज्यादा उपयोगी होता है। किसान जुलाई और अगस्त के महीने में जैविक खाद का इस्तेमाल करते हैं। इन खादो का इस्तेमाल 25 ग्राम एजीसपाइरिलम और 40 किलोग्राम गोबर की खाद के साथ अच्छी तरह से मिक्स करने के बाद खेतों में डालने से आम की उत्पादकता काफी अच्छी होती है।

ये भी पढ़ें:
आम के फूल व फलन को मार्च में गिरने से ऐसे रोकें : आम के पेड़ के रोगों के उपचार

आम की फसल की सिंचाई :

आम की फसल के लिए सिंचाई किस प्रकार करते है? जब किसान बीज रोपण कर लेते हैं तो लगभग प्रथम सिंचाई 2 से 3 दिन के भीतर  भूमि की आवश्यकता अनुसार कर लेनी चाहिए। खेतों में आम के छोटे-छोटे फूल आने शुरू हो जाए तो दो से तीन बार सिंचाई कर लेनी चाहिए। किसान खेतों में पहली सिंचाई पेड़ लगाते समय तथा दूसरी सिंचाई आम की कली जब अपना गोलाकार धारण कर ले तब की जाती है। तीसरी सिंचाई कली पूरी तरह से खेतों में फैल जाए तब करनी चाहिए। सिंचाई नालियों द्वारा ही करनी चाहिए क्योंकि इस क्रिया द्वारा पानी की बचत होती है किसी भी तरह का जल व्यर्थ नहीं होता हैं। इसीलिए सिंचाई की यह क्रिया बहुत ही महत्वपूर्ण है।  

आम की फसल में निराई गुड़ाई और खरपतवारों की रोकथाम :

आम की फसल के लिए खेतों में निराई गुड़ाई करना आवश्यक होता है क्योंकि निराईगुड़ाई के द्वारा खेत साफ-सुथरे रहते हैं। आम की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए खेतों में साल में दो बार अच्छी गहरी जुताई करते रहना चाहिए। क्योंकि इस प्रकार जुताई करने से किसी भी तरह का खरपतवार और भूमि कीट नहीं लगते हैं। भूमि में लगने वाले कीटनाशक कीट आदि भी नष्ट हो जाते हैं। खेतों में घास का नियंत्रण बनाए रखना आवश्यक होता है जिससे कि समय-समय पर खेतों में घास निकलती रहे।  

आम की फसल से होने वाले फायदे :

किसानों के लिए आम की फसल बहुत ही आवश्यक होती है, क्योंकि इसमें ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती हैं कम सिंचाई पर ही या काफी भारी मात्रा में उत्पादन करते हैं। इसीलिए किसानों के लिए आम की फसल लाभदायक फसलों में से एक है। किसानों के लिए यह बहुत बड़ा फायदा है आम की बागवानी करने का क्योंकि इसमें ज्यादा जल की जरूरत नहीं पड़ती है। आम की खेती शुष्क भूमि पर की जा सकती है। आम के साथ ही साथ इसके पत्ते, लकड़ियां आदि भी बहुत ही उपयोगी होते हैं। हिंदू धर्म में आम के पत्तों द्वारा पूजा पाठ किया जाती हैं। इसीलिए यह कहना उचित होगा कि आम का पूरा भाग बहुत ही ज्यादा उपयोगी होता है। मार्किट में उचित दाम पर आम बेचकर किसान अच्छा आय निर्यात कर लेते हैं। आम की फसल आय निर्यात का सबसे महत्वपूर्ण और अच्छा साधन होता है किसानों के हित में, आम की फ़सल में  किसी भी तरह की कोई लागत नहीं लगती है और ना ही किसी तरह का कोई नुकसान होता है। 

आम की विशेषताएं :

आम के फल में विटामिन ए की मात्रा होती हैं। सभी फलों के मुकाबले आम में विटामिन ए की भरपूर मात्रा पाई जाती है। ना सिर्फ विटामिन ए, बल्कि आम में और भी तरह के आवश्यक और महत्वपूर्ण विटामिंस मौजूद होते हैं जैसे : इसमें आपको विटामिन बी, विटामिन सी और विटामिन ई, की मात्रा प्राप्त भी होती है। विटामिंस के साथ ही साथ आम में आयरन तथा पोटैशियम, मैग्नीशियम और कॉपर जैसे आवश्यक तत्व भी मौजूद होते हैं। 

दोस्तों हम उम्मीद करते हैं हमारा यह आम की फसल वाला आर्टिकल आपके लिए  बेहद ही फायदेमंद साबित होगा। यदि आप हमारे इस आर्टिकल से संतुष्ट है और आगे आम से जुड़ी जानकारी जानना चाहते हैं। तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा शेयर करते रहें। धन्यवाद।

लंगड़ा आम की विशेषताएं

लंगड़ा आम की विशेषताएं

भारत में आम की हर तरह कि किस्म मौजूद है और उन किस्मों में से एक लंगड़ा आम की किस्म है। जो लोगों को बहुत ही ज्यादा लोकप्रिय है इस के स्वाद से लोगों के मुंह में अजीब सी मिठास आ जाती है। नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाता हैं। लंगड़े आम की विशेषता और इससे जुड़ी विभिन्न प्रकार की आवश्यक जानकारी जानने के लिए हमारे इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहे:

लंगड़ा आम

लंगड़ा आम उत्तर भारत में सबसे प्रसिद्ध है और लंगड़ा आम बनारस में बहुत ही मशहूर है। वैसे तो बनारस का पान, साड़ी और भी आवश्यक चीजें है जो बनारस की बहुत ही ज्यादा मशहूर है। लेकिन बनारस के लंगड़े आम की अपनी एक अलग जगह है। लोगों में यह लंगड़ा आम इतना लोकप्रिय है कि लंगड़े आम की कोई भी कीमत देने के लिए लोग तैयार रहते हैं इसके स्वाद को चखने के लिए।

ये भी पढ़ें: दशहरी आम की विशेषताएं

लंगड़े आम का परिचय

लंगड़ा आम की पैदावार उत्तर प्रदेश के बनारस में होती है। लंगड़ा आम करीबन 300 साल पुराना कहा जाता है। प्राप्त की गई जानकारियों के अनुसार लंगड़ा आम की स्थापना एक साधु द्वारा की गई थी जो कि शिव मंदिर में आकर निवास कर रहे थे। लंगड़ा आम दिखने में बहुत ही खूबसूरत होते हैं  इनकी गुठली  बहुत ही छोटी होती और गूदे बहुत ही ज्यादा होते हैं इसीलिए इन्हें और भी ज्यादा पसंद किया जाता है।

इसका नाम लंगड़ा आम क्यों पड़ा

यदि आप अभी भी इस बात से अपरिचित हैं कि इस आम को लंगड़ा आम के नाम से क्यों पुकारा जाता है? तो निश्चित रहे हम आपके इस प्रश्न का उत्तर जरूर देंगे। इस आम को लंगड़ा आम इसलिए कहा जाता है कि, जिस साधु जी द्वारा इस पौधे का रोपण हुआ था, जो इस पेड़ की देखरेख करते थे वह लंगड़े थे। इस लिए पेड़ से पैदा होने वाले सभी आमो को लंगड़ाआम का नाम दिया गया। भारत में इस प्रजाति के सभी आम लंगड़ेआम के नाम से ही प्रसिद्ध हैं।

ये भी पढ़ें: आम के फूल व फलन को मार्च में गिरने से ऐसे रोकें : आम के पेड़ के रोगों के उपचार

लंगड़ा आम का इतिहास

पुरानी जानकारियों के चलते लंगड़े आम का अपना अलग ही इतिहास हैं। कि करीब ढाई सौ साल पहले की यह कहानी या फिर घटना कहे। बनारस में एक बहुत ही छोटा सा शिव मंदिर था। जो लगभग 1 एकड़ की जमीन पर बना हुआ था। चार दिवारी के अंदर यह मंदिर स्थापित था। एक दिन इस शिव मंदिर में एक साधु आया और पुजारी से कुछ दिन मंदिर में ठहरने को कहा। पुजारी जी ने उस साधु को मंदिर में ठहरने की अनुमति दे दी। पुजारी जी ने कहा यहां बहुत सारे कच्छ है जिसमें आप चाहो रह सकते हो। साधु जी के पास दो छोटे-छोटे आम के पौधे थे। आम के पौधों को साधु जी ने अपने हाथों से मंदिर की पीछे वाली दीवार के पास अपने हाथों से रोपड़ कर दिया। रोज सुबह साधु जी  पेड़ को पानी देते पेड़ की अच्छी तरह से देखभाल करते थे। 

साधु जी करीब 4 साल उस मंदिर में रुके रहे और पेड़ों की सेवा करते रहें। 4 साल के अंदर पेड़ काफी बड़ा हो गया और उसमें छोटी-छोटी कलियां भी खिल गई। साधु जी ने उन कलियों को शिवमंदिर पर चढ़ा दिया। साधु जी बनारस से चले गए, जाने से पहले साधु जी ने इस आम के पेड़ से निकलने वाले फल को प्रसाद के रूप में बांटने को कहा और पुजारी जी वैसा ही करते रहे भक्तोंकोशिवप्रसाद के रूप में वह आम के टुकड़े देते थे। इस लंगड़े आम की खबर काशी नरेश के कानों तक जा पहुंची और वह एक दिन स्वयं इस आम के वृक्ष को देखने आए रामनगर के मंदिर में बहुत ही श्रद्धा के साथ। 

काशी नरेश ने भगवान शिवकीपूजा की और फिर पुजारी जी से कहा कि आप मुझे इस आम की कुछ जड़े दे सकते हैं। पुजारी जी ने कहा मैं आपकी आज्ञा को कैसे अस्वीकार कर सकता हूं। मैं साधना पूजा के दौरान शंकरजी से प्रार्थना करता हूं। जैसे ही मैं शिवजी का संकेत पाता हूं आप के महल में आकर आम के रूप में प्रसाद लाऊंगा। काशी नरेश को वृक्ष लगाने की आज्ञा प्राप्ति हो गए। महल के समीप एक छोटा सा बाग बनाकर इन बीजों का रोपण किया गया। वर्षा ऋतु के बाद काफी भारी मात्रा में वृक्ष बनकर फल देने लगे। इस प्रकार से रामनगरमेंलंगड़ेआम के बहुत सारे भाग बन गए। बनारस में खुले स्थानों में या गांव में लंगड़ेआम की भरमार नजर आती है। लोकप्रिय लंगड़ेआम का कुछ इस प्रकार का इतिहास रहा है।

ये भी पढ़ें: आम की बागवानी से कमाई

लंगड़ा आम खाने के फायदे

लंगड़ा आम खाने के बहुत से फायदे हैं और यह फायदे निम्न प्रकार है;

  • लंगड़ा आम स्वाद के मामले में सबसे स्वादिष्ट और बेहतर होता है। मुंह में मीठे रस की तरह घुल जाता है और मुंह का स्वाद 1 मिनट में बदल देता है।
  • यदि आप लंगड़े आम का सेवन करते हैं तो आपके शरीर का कोलेस्ट्रोल पूर्ण रूप से नियंत्रण में रहता है।
  • आम में अच्छी मात्रा में विटामिन सी मौजूद होता है विटामिन सी के साथ ही साथ इसमें फाइबर जैसे गुण भी मौजूद होते हैं। यह सभी आवश्यक तत्व विशेष रुप से खराब एलडीएल कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करते हैं।
  • लंगड़े आम से आप जूस, जैम, शेक या अन्य प्रकार की डिशेस भी बना सकते हैं जो आपको पसंद हो।
  • लंगड़े आम से किसानों को अच्छा मुनाफा पहुंचता है और यह फसल किसी भी तरह की कोई लागत नहीं मांगती है। लंगड़े आम से किसानों को अच्छे आय की प्राप्ति होती है।

ये भी पढ़ें: हापुस आम की पूरी जानकारी (अलफांसो)

 

दोस्तों हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारी यह पोस्ट लंगड़े आम की विशेषताएं, से लंगड़े आम का इतिहास लंगड़े आम से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक और महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त होगी। जिससे आप लंगड़े आम के विषय में पूरी तरह से जान सकेंगे। यदि आप हमारी दी गई जानकारियों से संतुष्ट हैं। तो ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों और सोशल मीडिया व अन्य प्लेटफार्म पर हमारे इस आर्टिकल को शेयर करते रहें। धन्यवाद।

किसान संजय सिंह आम की बागवानी करके वार्षिक 20 लाख की आय कर रहे हैं  

किसान संजय सिंह आम की बागवानी करके वार्षिक 20 लाख की आय कर रहे हैं  

बिहार के इस किसान ने आम की बागवानी आरंभ कर अपनी तकदीर बदल दी है। आज वह तकरीबन 20 लाख रुपये तक वार्षिक आमदनी कर रहे हैं। बिहार के सहरसा के जनपद के निवासी किसान संजय सिंह ने पारंपरिक खेती को छोड़ आम की बागवानी चालू की। आज वह प्रति वर्ष लगभग 20 लाख से अधिक आम का टर्नओवर कर रहे हैं। इसके पहले संजय सब्जियों की खेती किया करते थे। परंतु, उनके एक दोस्त की सलाह पर उन्होंने आम की बागवानी के विषय में सोचा और वह आज अपने क्षेत्र में लोगों के लिए एक मिशाल बन गए हैं।  

किसान संजय सिंह ने 20 बीघे में बागवानी शुरू की 

संजय जी ने अपनी विरासत की भूमि पर आम के पौधों को लगाने के विषय में विचार किया। उन्होंने जनपद के कृषि विभाग से आम की नवीन प्रजातियों की खरीदारी की एवं जैविक तरीके से इसकी बुआई की। संजय का कहना है, कि शुरु में उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। परंतु, परिवार की सहायता से उन्हें काफी हौसला मिला। वहीं, आज उनकी सफलता की कहानी सबको पता है। वह विगत 8 वर्षों से आम की बागवानी कर रहे हैं। पारंपरिक खेती के मुकाबले में बागवानी फसलों का उत्पादन करना काफी फायदेमंद होता है।  

यह भी पढ़ें: आम की बागवानी से कमाई

संजय सिंह की आर्थिक स्थिति में भी आया सुधार 

संजय सिंह का कहना है, कि आम की खेती से बेहतरीन आमदनी होने लगी। साथ ही, उनके घर की स्थिति भी अच्छी हो गई। पहले खेती से उनको कोई फायदा नहीं होता था। परंतु, अब वह काफी बेहतरीन आमदनी कर अपने परिवार की देख भाल कर रहे हैं। 

 

संजय सिंह प्रतिवर्ष लाखों की आय करते हैं 

किसान संजय सिंह का कहना है, कि उन्होंने शुरुआत में कुछ ही पेड़ों से आम का उत्पादन कर बेचना शुरु किया था। परंतु, मांग बढ़ने के उपरांत उन्होंने इसकी खेती बड़े पैमाने पर चालू की और इससे उनको आमदनी काफी ज्यादा होने लगी। वह इन आमों की बिक्री से प्रति वर्ष 20 लाख रुपये तक की आमदनी कर लेते हैं। संजय जी ने अपने खेतो में कुल 300 से ज्यादा आम के पेड़ लगा रखे हैं। आपको बतादें, एक आम के पौधे की कीमत 400 रुपये के आसपास थी। यह 5 से 6 वर्ष तक फल देने योग्य होता है।

मिठास से भरपूर आम की इस सदाबहार प्रजाति से बारह महीने फल मिलेंगे

मिठास से भरपूर आम की इस सदाबहार प्रजाति से बारह महीने फल मिलेंगे

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि आप आम की थाईलैंड वैराइटी यानी कि थाई बारहमासी किस्म से किसान हर सीजन में बेहतरीन उत्पादन अर्जित कर सकते हैं। यह आम खाने में काफी मीठा होता है। आम की थाईलैंड प्रजाति से किसान वर्ष भर में तीन बार पैदावार हाँसिल कर सकते हैं। इस प्रजाति की विशेषता यह है, कि खेत में लगाने के दो वर्ष में ही फल मिलना प्रारंभ हो जाता है। फलों के राजा आम की खेती से किसान बेहतरीन आमदनी प्राप्त करते हैं। सामान्य तौर पर इसकी खेती से किसान वर्ष में एक ही बार फल अर्जित कर पाते हैं। परंतु, आज के समय में बाजार में ऐसी विभिन्न प्रकार की आम की उन्नत प्रजातियां आ गई हैं, जिनसे कृषक वर्षभर में आम की शानदार उपज हांसिल कर सकते हैं। दरअसल, कुछ दिन पहले ही पंतनगर में आयोजित अखिल भारतीय किसान मेले में आम की बारहमासी किस्म की प्रदर्शनी लगाई गई। ऐसा कहा जा रहा है, कि आम की यह किस्म वर्ष में तीन बारी आम की बेहतरीन उत्पादन देने में समर्थ है। दरअसल, आज हम आम की उन किस्मों की बात कर रहे हैं, उसका नाम थाईलैंड किस्म का थाई बारहमासी मीठा आम है। इस किस्म की विशेषता यह है, कि थाई बारहमासी मीठा आम कम समयांतराल मतलब कि दो वर्षों में ही फल देना शुरू कर देता है। वहीं, यदि हम थाईलैंड किस्म के इस आम की मिठास पर ध्यान दें, तो यह अन्य आमों की तुलना में काफी मीठा होता है।

आम कितने सालों में आने शुरू हो जाऐंगे

थाईलैंड वैराइटी की थाई बारहमासी मीठा आम की यह प्रजाति यदि आप खेत में लगाते हैं। इसकी सही ढ़ंग से देखभाल करते हैं, तो किसान इसे लगभग दो वर्ष में ही आम के फल अर्जित कर सकते हैं। वर्तमान में आपके दिमाग में आ रहा होगा कि शीघ्रता से आम देने की यह किस्म स्वास्थ्य व मिठास के संबंध में शायद खराब होगी। बतादें, कि यह किस्म स्वास्थ्य एवं मिठास दोनों के संबंध में ही अव्वल है।

ये भी पढ़ें:
आम के फूल व फलन को मार्च में गिरने से ऐसे रोकें: आम के पेड़ के रोगों के उपचार वैज्ञानिकों के अनुसार, आम की यह किस्म विषाणु युक्त मानी गई है। इसके पेड़ में हर एक मौसम में किसी भी प्रकार के वायरस का कोई विशेष प्रभाव नहीं होता है। साथ ही, किसान आम की इस प्रजाति से पांच वर्ष के उपरांत तकरीबन 50 किलो तक आम की फसल अर्जित कर सकते हैं।

आम की इस किस्म को किसने विकसित किया है

मीडिया खबरों के अनुसार, आम की यह थाईलैंड किस्म बांग्लादेश के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई है। इस किस्म को भिन्न-भिन्न इलाकों में विभिन्न नामों से जाना जाता है। कुछ राज्यों में थाईलैंड वैराइटी किस्म को काटी मन के नाम से भी जाना जाता है। आम की थाईलैंड किस्म की खेती पंजाब, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और गुजरात के किसानों द्वारा सबसे ज्यादा की जाती है।
आम में फूल आने के लिए अनुकूल पर्यावरण परिस्थितियां एवं बाग प्रबंधन

आम में फूल आने के लिए अनुकूल पर्यावरण परिस्थितियां एवं बाग प्रबंधन

इस वर्ष भी शीत ऋतु का आगमन देर से होने एवं जनवरी के अंतिम सप्ताह में न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस  से कम एक सप्ताह से ज्यादा समय से चल रहा है ,इन परिस्थितियों में किसान यह जानना चाह रहा है की क्या इस साल आम में मंजर समय से आएगा की देर से आएगा । वर्तमान पर्यावरण की परिस्थितियां इस तरफ इशारा कर रही है की मंजर आने में विलम्ब हो सकता है। इष्टतम फल उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए आम के पेड़ों में फूल आने के लिए अनुकूल वातावरण बनाना महत्वपूर्ण है। सफल पुष्पन प्रक्रिया में कई कारक योगदान करते हैं, जिनमें जलवायु परिस्थितियों और मिट्टी की गुणवत्ता से लेकर उचित पेड़ की देखभाल और बाग प्रबंधन की विभिन्न विधा पर निर्भर करता  हैं।

जलवायु और तापमान

आम के पेड़ में अच्छे मंजर आने के लिए आवश्यक है की ढाई से तीन महीने तक शुष्क एवं ठंडा मौसम  उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में आवश्यक हैं। फूल आने के लिए आदर्श तापमान 77°F से 95°F (25°C से 35°C) के बीच होता है। ठंडा तापमान फूल आने में बाधा उत्पन्न करता है, इसलिए ठंढ से बचना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, सर्दियों की ठंड की अवधि, जिसमें तापमान लगभग 50°F (10°C) तक गिर जाता है तब फूलों के आगमन को बढ़ा देता है।कहने का तात्पर्य है की उस साल मंजर देर से आता है।

ये भी पढ़ें: अचानक कीट संक्रमण से 42 प्रतिशत आम की फसल हुई बर्बाद

प्रकाश आवश्यकताएँ

आम के पेड़ को आम तौर पर सूर्य की किरणे प्रिय होते हैं। मंजर के निकलने एवं उनके स्वस्थ को प्रोत्साहित करने के लिए दिन में कम से कम 6 से 8 घंटे तक पूर्ण सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है।  पर्याप्त धूप उचित प्रकाश संश्लेषण सुनिश्चित करती है, जो फूल आने और फलों के विकास के लिए आवश्यक ऊर्जा के लिए महत्वपूर्ण है।

मिट्टी की गुणवत्ता

थोड़ी अम्लीय से तटस्थ पीएच (6.0 से 7.5) वाली अच्छी जल निकासी वाली, दोमट मिट्टी आम के पेड़ों के लिए आदर्श होती है।  अच्छी मिट्टी की संरचना उचित वातन और जड़ विकास की अनुमति देती है।  नियमित मिट्टी परीक्षण और कार्बनिक पदार्थों के साथ संशोधन से पोषक तत्वों के स्तर को बनाए रखने और फूल आने के लिए अनुकूलतम स्थिति सुनिश्चित करने में मदद मिलती है।

जल प्रबंधन

आम के पेड़ों को लगातार और पर्याप्त पानी की आवश्यकता होती है, खासकर फूल आने के दौरान।  हालाँकि, जलभराव की स्थिति से बचना चाहिए क्योंकि इससे जड़ सड़न हो सकती है।  एक अच्छी तरह से विनियमित सिंचाई प्रणाली, जल जमाव के बिना नमी प्रदान करती है, फूल आने और उसके बाद फल लगने में सहायता करती है।किसान यह जानना चाहता है की मंजर आने से ठीक पहले या फूल खिलते समय सिंचाई कर सकते है की नही ,इसका सही जबाब है की सिंचाई नही करना चाहिए ,क्योंकि यदि इस समय सिंचाई किया गया तो मंजर के झड़ने की समस्या बढ़ सकती है जिससे किसान को नुकसान होता है।

पोषक तत्व प्रबंधन

आम के फूल आने के लिए उचित पोषक तत्व का स्तर महत्वपूर्ण है।  विशिष्ट विकास चरणों के दौरान नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम से भरपूर संतुलित उर्वरक का प्रयोग किया जाना चाहिए।  जिंक जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व भी फूलों की शुरुआत और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।  नियमित मृदा परीक्षण पोषक तत्वों के सटीक अनुप्रयोग का मार्गदर्शन करता है।

ये भी पढ़ें: आम के पत्तों के सिरे के झुलसने (टिप बर्न) की समस्या को कैसे करें प्रबंधित?

छंटाई और प्रशिक्षण

छंटाई पेड़ को आकार देने, मृत या रोगग्रस्त शाखाओं को हटाने और सूर्य के प्रकाश के प्रवेश को प्रोत्साहित करने में मदद करती है।  खुली छतरियाँ बेहतर वायु संचार की अनुमति देती हैं, जिससे फूलों को प्रभावित करने वाली बीमारियों का खतरा कम हो जाता है।  शाखाओं का उचित प्रशिक्षण सीधी वृद्धि की आदत को बढ़ावा देता है, जिससे सूर्य के प्रकाश के बेहतर संपर्क में मदद मिलती है।

कीट और रोग प्रबंधन

कीट और रोग फूलों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।  नियमित निगरानी और उचित कीटनाशकों का समय पर प्रयोग संक्रमण को रोकने में मदद करता है।  उचित स्वच्छता, जैसे गिरी हुई पत्तियों और मलबे को हटाने से एन्थ्रेक्नोज जैसी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है, जो फूलों को प्रभावित करता है।

परागण

आम के पेड़ मुख्य रूप से पर-परागण करते हैं, और मधुमक्खियाँ जैसे कीट परागणकर्ता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।  आम के बागों के आसपास विविध पारिस्थितिकी तंत्र बनाए रखने से प्राकृतिक परागण को बढ़ावा मिलता है।  ऐसे मामलों में जहां प्राकृतिक परागण अपर्याप्त है, फलों के सेट को बढ़ाने के लिए मैन्युअल परागण विधियों को नियोजित किया जा सकता है।

शीतलन की आवश्यकता

आम के पेड़ों को फूल आने के लिए आमतौर पर शीतलन अवधि की आवश्यकता होती है। उन क्षेत्रों में जहां सर्दियों का तापमान स्वाभाविक रूप से कम नहीं होता है, फूलों की कलियों के निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए विकास नियामकों को लागू करने या कृत्रिम शीतलन विधियों को प्रदान करने जैसी रणनीतियों को नियोजित किया जाता है।

ये भी पढ़ें: आम का पेड़ ऊपर से नीचे की तरफ सूख (शीर्ष मरण) रहा है तो कैसे करें प्रबंधित?

रोग प्रतिरोध

रोग प्रतिरोधी आम की किस्मों को रोपने से पेड़ स्वस्थ होता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि रोग फूल आने की प्रक्रिया में बाधा न बनें। आम के फलते-फूलते बाग के लिए ख़स्ता फफूंदी या जीवाणु संक्रमण जैसी बीमारियों के खिलाफ नियमित निगरानी और त्वरित कार्रवाई आवश्यक है।

अंत में, आम में फूल आने के लिए अनुकूल वातावरण बनाने में एक समग्र दृष्टिकोण शामिल होता है जिसमें जलवायु संबंधी विचार, मिट्टी की गुणवत्ता, जल प्रबंधन, पोषक तत्व संतुलन, छंटाई, कीट और रोग नियंत्रण, परागण रणनीतियाँ और विशिष्ट शीतलन आवश्यकताओं पर ध्यान शामिल होता है।  इन कारकों को संबोधित करके, उत्पादक फूलों को बढ़ा सकते हैं, जिससे फलों के उत्पादन में सुधार होगा और समग्र रूप से बगीचे में सफलता मिलेगी।


Dr AK Singh

डॉ एसके सिंह
प्रोफेसर (प्लांट पैथोलॉजी) एवं विभागाध्यक्ष,

पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी, 

प्रधान अन्वेषक, 
अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना,डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा-848 125, 
समस्तीपुर,बिहार 
Send feedback sksraupusa@gmail.com/sksingh@rpcau.ac.in
आम के बागों से अत्यधिक लाभ लेने के लिए फूल (मंजर ) प्रबंधन अत्यावश्यक, जाने क्या करना है एवं क्या नही करना है ?

आम के बागों से अत्यधिक लाभ लेने के लिए फूल (मंजर ) प्रबंधन अत्यावश्यक, जाने क्या करना है एवं क्या नही करना है ?

उत्तर भारत खासकर बिहार एवम् उत्तर प्रदेश में आम में मंजर, फरवरी के द्वितीय सप्ताह में आना प्रारम्भ कर देता है, यह आम की विभिन्न प्रजातियों तथा उस समय के तापक्रम द्वारा निर्धारित होता है। आम (मैंगीफेरा इंडिका) भारत में सबसे महत्वपूर्ण उष्णकटिबंधीय फल है। भारतवर्ष में आम उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश एवं बिहार में प्रमुखता से इसकी खेती होती है। भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के वर्ष 2020-21 के संख्यिकी के अनुसार भारतवर्ष में 2316.81 हजार हेक्टेयर में आम की खेती होती है, जिससे 20385.99 हजार टन उत्पादन प्राप्त होता है। आम की राष्ट्रीय उत्पादकता 8.80 टन प्रति हेक्टेयर है। बिहार में 160.24 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में इसकी खेती होती है जिससे 1549.97 हजार टन उत्पादन प्राप्त होता है। बिहार में आम की उत्पादकता 9.67 टन प्रति हे. है जो राष्ट्रीय उत्पादकता से थोड़ी ज्यादा है।

आम की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि मंजर ने टिकोला लगने के बाद बाग का वैज्ञानिक ढंग से प्रबंधन कैसे किया जाय जानना आवश्यक है ? आम में फूल आना एक महत्वपूर्ण चरण है,क्योंकि यह सीधे फल की पैदावार को प्रभावित करता है । आम में फूल आना विविधता और पर्यावरणीय परिस्थितियों पर अत्यधिक निर्भर है। इस प्रकार, आम के फूल आने की अवस्था के दौरान अपनाई गई उचित प्रबंधन रणनीतियाँ फल उत्पादन को सीधे प्रभावित करती हैं।

आम के फूल का आना

आम के पेड़ आमतौर पर 5-8 वर्षों के विकास के बाद परिपक्व होने पर फूलना शुरू करते हैं , इसके पहले आए फूलों को तोड़ देना चाहिए । उत्तर भारत में आम पर फूल आने का मौसम आम तौर पर मध्य फरवरी से शुरू होता है। आम के फूल की शुरुआत के लिए तेज धूप के साथ दिन के समय 20-25 डिग्री सेल्सियस और रात के दौरान 10-15 डिग्री सेल्सियस की आवश्यकता होती है। हालाँकि, फूल लगने के समय के आधार पर, फल का विकास मई- जून तक शुरू होता है। फूल आने की अवधि के दौरान उच्च आर्द्रता, पाला या बारिश फूलों के निर्माण को प्रभावित करती है। फूल आने के दौरान बादल वाला मौसम आम के हॉपर और पाउडरी मिल्डीव एवं एंथरेक्नोज बीमारियों के फैलने में सहायक होता है, जिससे आम की वृद्धि और फूल आने में बाधा आती है।

ये भी पढ़ें: आम में फूल आने के लिए अनुकूल पर्यावरण परिस्थितियां एवं बाग प्रबंधन

आम में फूल आने से फल उत्पादन पर क्या प्रभाव पड़ता है?

आम के फूल छोटे, पीले या गुलाबी लाल रंग के आम की प्रजातियों के अनुसार , गुच्छों में गुच्छित होते हैं, जो शाखाओं से नीचे लटकते हैं। वे उभयलिंगी फूल होते हैं लेकिन परागणकों द्वारा क्रॉस-परागण अधिकतम फल सेट में योगदान देता है। आम परागणकों में मधुमक्खियाँ, ततैया, पतंगे, तितलियाँ, मक्खियाँ, भृंग और चींटियाँ शामिल हैं। उत्पादित फूलों की संख्या और फूल आने की अवस्था की अवधि सीधे फलों की उपज को प्रभावित करती है। हालाँकि, फूल आना कई कारकों से प्रभावित होता है जैसे तापमान, आर्द्रता, सूरज की रोशनी, कीट और बीमारी का प्रकोप और पानी और पोषक तत्वों की उपलब्धता। ये कारक फूल आने के समय और तीव्रता को प्रभावित करते हैं। यदि फूल आने की अवस्था के दौरान उपरोक्त कारक इष्टतम नहीं हैं, तो इसके परिणामस्वरूप कम या छोटे फल लगेंगे। उत्पादित सभी फूलों पर फल नहीं लगेंगे। फल के पूरी तरह से सेट होने और विकसित होने के लिए उचित परागण आवश्यक है। पर्याप्त परागण के बाद भी, मौसम की स्थिति और कीट संक्रमण जैसे कई कारकों के कारण फूलों और फलों के बड़े पैमाने पर गिरने के कारण केवल कुछ अनुपात में ही फूल बनते हैं। इससे अंततः फलों की उपज और गुणवत्ता प्रभावित होती है। फूल आने का समय, अवधि और तीव्रता आम के पेड़ों में फल उत्पादन को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है।

आम के फूलों का प्रबंधन

1. कर्षण क्रियाएं

फल की तुड़ाई के बाद आम के पेड़ों की ठीक से कटाई - छंटाई करने से अच्छे एवं स्वस्थ फूल आते हैं। कटाई - छंटाई की कमी से आम की छतरी (Canopy) घनी हो जाती है, जिससे प्रकाश पेड़ के आंतरिक भागों में प्रवेश नहीं कर पाता है और इस प्रकार फूल और उपज कम हो जाती है। टहनियों के शीर्षों की छंटाई करने से फूल आने शुरू होते हैं। छंटाई का सबसे अच्छा समय फल तुडाई के बाद होता है, आमतौर पर जून से अगस्त के दौरान। टिप प्रूनिंग, जो अंतिम इंटरनोड से 10 सेमी ऊपर की जाती है, फूल आने में सुधार करती है। गर्डलिंग आम में फलों की कलियों के निर्माण को प्रेरित करने के लिए उपयोग की जाने वाली एक विधि है। इसमें आम के पेड़ के तने से छाल की पट्टी को हटाना शामिल है। यह फ्लोएम के माध्यम से मेटाबोलाइट्स के नीचे की ओर स्थानांतरण को अवरुद्ध करके करधनी के ऊपर के हिस्सों में पत्तेदार कार्बोहाइड्रेट और पौधों के हार्मोन को बढ़ाकर फूल, फल सेट और फल के आकार को बढ़ाता है। पुष्पक्रम निकलने के समय घेरा बनाने से फलों का जमाव बढ़ जाता है। गर्डलिंग की गहराई का ध्यान रखना चाहिए। अत्यधिक घेरेबंदी की गहराई पेड़ को नुकसान पहुंचा सकती है। यह कार्य विशेषज्ञ की देखरेख या ट्रेनिंग के बाद ही करना चाहिए।

2. पादप वृद्धि नियामक (पीजीआर)

पादप वृद्धि नियामक (पीजीआर) का उपयोग पौधों की वृद्धि और विकास को नियंत्रित करने वाली शारीरिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करके फूलों को नियंत्रित करने और पैदावार बढ़ाने के लिए किया जाता है।एनएए फूल आने, कलियों के झड़ने और फलों को पकने से रोकने में भी मदद करते हैं। वे फलों का आकार बढ़ाने, फलों की गुणवत्ता और उपज बढ़ाने और सुधारने में मदद करते हैं। प्लेनोफिक्स @ 1 मी.ली. दवा प्रति 3 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव फूल के निकलने से ठीक पूर्व एवं दूसरा छिड़काव फल के मटर के बराबर होने पर करना चाहिए ,यह छिड़काव टिकोलो (आम के छोटे फल) को गिरने से रोकने के लिए आवश्यक है।लेकिन यहा यह बता देना आवश्यक है की आम के पेड़ के ऊपर शुरुआत मे जीतने फल लगते है उसका मात्र 5 प्रतिशत से कम फल ही अंततः पेड़ पर रहता है , यह पेड़ की आंतरिक शक्ति द्वारा निर्धारित होता है । कहने का तात्पर्य यह है की फलों का झड़ना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है इसे लेकर बहुत घबराने की आवश्यकता नहीं है । पौधों की वृद्धि और विकास पर नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए पीजीआर का सावधानीपूर्वक प्रबंधन किया जाना चाहिए, जैसे अत्यधिक शाखाएं, फलों का आकार कम होना, या फूल आने में देरी। उपयोग से पहले खुराक और आवेदन के समय की जांच करें।

3. पोषक तत्व प्रबंधन

आम के पेड़ों में फूल आने के लिए पोषक तत्व प्रबंधन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नाइट्रोजन पौधों की वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक है। हालाँकि, अत्यधिक नाइट्रोजन फूल आने के बजाय वानस्पतिक विकास को बढ़ावा देकर आम के फूल आने में देरी करती है। इससे फास्फोरस(पी) और पोटाश (के) जैसे अन्य पोषक तत्वों में भी असंतुलन हो सकता है जो फूल आने के लिए महत्वपूर्ण हैं। नाइट्रोजन के अधिक उपयोग से वानस्पतिक वृद्धि के कारण कीट संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है। फूलों के प्रबंधन के लिए नत्रजन (एन) की इष्टतम मात्रा का उपयोग किया जाना चाहिए। फास्फोरस आम के पेड़ों में फूल लगने और फल लगने के लिए आवश्यक है। फूल आने को बढ़ावा देने के लिए फूल आने से पहले की अवस्था में फॉस्फोरस उर्वरक का प्रयोग करें। पर्याप्त पोटेशियम का स्तर आम के पेड़ों में फूलों को बढ़ा सकता है और फूलों और फलों की संख्या में वृद्धि करता है। पोटेशियम फल तक पोषक तत्वों और पानी के परिवहन में मदद करता है, जो इसके विकास और आकार के लिए आवश्यक है। यह पौधों में नमी के तनाव, गर्मी, पाले और बीमारी के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी मदद करता है। सूक्ष्म पोषक तत्वों के प्रयोग से फूल आने, फलों की गुणवत्ता में सुधार और फलों का गिरना नियंत्रित करके बेहतर परिणाम मिलते हैं।

ये भी पढ़ें: आम के पत्तों के सिरे के झुलसने (टिप बर्न) की समस्या को कैसे करें प्रबंधित?

4. कीट एवं रोग प्रबंधन

फूल और फल बनने के दौरान, कीट और बीमारी के संक्रमण की संभावना अधिक होती है, जिससे फूल और समय से पहले फल झड़ने का खतरा होता है। मैंगो हॉपर, फ्लावर गॉल मिज, मीली बग और लीफ वेबर आम के फूलों पर हमला करने वाले प्रमुख कीट हैं। मैंगो पाउडरी मिल्ड्यू, मैंगो मैलफॉर्मेशन और एन्थ्रेक्नोज ऐसे रोग हैं जो आम के फूलों को प्रभावित करते हैं जिससे फलों का विकास कम हो जाता है। फलों की पैदावार बढ़ाने के लिए आम के फूलों में कीटों और बीमारियों के लक्षण और प्रबंधन की जाँच करें - आम के फूलों में रोग और कीट प्रबंधन करना चाहिए।

विगत 4 – 5 वर्ष से बिहार में मीली बग (गुजिया) की समस्या साल दर साल बढ़ते जा रही है। इस कीट के प्रबंधन के लिए आवश्यक है कि दिसम्बर- जनवरी में बाग के आस पास सफाई करके मिट्टी में क्लोरपायरीफास 1.5 डी. धूल @ 250 ग्राम प्रति पेड का बुरकाव कर देना चाहिए तथा मीली बग (गुजिया)  कीट पेड़ पर न चढ सकें इसके लिए एल्काथीन की 45 सेमी की पट्टी आम के मुख्य तने के चारों तरफ सुतली से बांध देना चाहिए। ऐसा करने से यह कीट पेड़ पर नही चढ़ सकेगा । यदि आप ने पूर्व में ऐसा नही किया है एवं गुजिया कीट पेड पर चढ गया हो तो ऐसी अवस्था में डाएमेथोएट 30 ई.सी. या क्विनाल्फोस 25 ई.सी.@ 1.5 मीली दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। जिन आम के बागों का प्रबंधन ठीक से नही होता है वहां पर हापर या भुनगा कीट बहुत सख्या में हो जाते है अतः आवश्यक है कि सूर्य का प्रकाश बाग में जमीन तक पहुचे जहां पर बाग घना होता है वहां भी इन कीटों की सख्या ज्यादा होती है।

पेड़ पर जब मंजर आते है तो ये मंजर इन कीटों के लिए बहुत ही अच्छे खाद्य पदार्थ होते है,जिनकी वजह से इन कीटों की संख्या में भारी वृद्धि हो जाती है।इन कीटों की उपस्थिति का दूसरी पहचान यह है कि जब हम बाग के पास जाते है तो झुंड के झुंड  कीड़े पास आते है। यदि इन कीटों को प्रबंन्धित न किया जाय तो ये मंजर से रस चूस लेते है तथा मंजर झड़ जाता है । जब प्रति बौर 10-12 भुनगा दिखाई दे तब हमें इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल.@1मीली दवा प्रति 2 लीटर पानी में घोल कर छिडकाव करना चाहिए । यह छिड़काव फूल खिलने से पूर्व करना चाहिए अन्यथा बाग में आने वाले मधुमक्खी के किड़े प्रभावित होते है जिससे परागण कम होता है तथा उपज प्रभावित होती है ।

पाउडरी मिल्डयू/ खर्रा रोग के प्रबंधन के लिए आवश्यक है कि मंजर आने के पूर्व घुलनशील गंधक @ 2 ग्राम / लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव करना चाहिए। जब पूरी तरह से फल लग जाय तब इस रोग के प्रबंधन के लिए हेक्साकोनाजोल @ 1 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए। जब तापक्रम 35 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो जाता है तब इस रोग की उग्रता में कमी अपने आप आने लगती है।

ये भी पढ़ें: आम का पेड़ ऊपर से नीचे की तरफ सूख (शीर्ष मरण) रहा है तो कैसे करें प्रबंधित?

गुम्मा व्याधि से ग्रस्त बौर को काट कर हटा देना चाहिए। बाग में यदि तना छेदक कीट या पत्ती काटने वाले धुन की समस्या हो तो क्विनालफोस 25 ई.सी. @ 2 मीली दवा / लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव करना चाहिए। लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है की फूल खिलने के ठीक पहले से लेकर जब फूल खिले हो उस अवस्था मे कभी भी किसी भी रसायन, खासकर कीटनाशकों का छिडकाव नहीं करना चाहिए, अन्यथा परागण बुरी तरह प्रभावित होता है एवं फूल के कोमल हिस्से घावग्रस्त होने की संभावना रहती है । 

5. परागण

आम के फूल में एक ही फूल में नर और मादा दोनों प्रजनन अंग होते हैं। हालाँकि, आम के फूल अपेक्षाकृत छोटे होते हैं और बड़ी मात्रा में पराग का उत्पादन नहीं करते हैं। इसलिए, फूलों के बीच पराग स्थानांतरित करने के लिए वे मक्खियों, ततैया और अन्य कीड़ों जैसे परागणकों पर बहुत अधिक निर्भर होते हैं। परागण के बिना, आम के फूल फल नहीं दे सकते हैं, या फल छोटा या बेडौल हो सकता है। पर-परागण से आम की पैदावार बढ़ती है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पूर्ण ब्लूम(पूर्ण रूप से जब फूल खिले होते है) चरण के दौरान कीटनाशकों और कवकनाशी का छिड़काव नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इस समय कीटों द्वारा परागण प्रभावित होगा जिससे उपज कम हो जाएगी। आम के बाग से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए आम के बाग में मधुमक्खी की कालोनी बक्से रखना अच्छा रहेगा,इससे परागण अच्छा होता है तथा फल अधिक मात्रा में लगता है।

6. मौसम की स्थिति

फूल आने के दौरान अनुकूलतम मौसम की स्थिति से सफल फल लगने की दर और पैदावार में वृद्धि होती है। उदाहरण के लिए, अत्यधिक हवा की गति के कारण फूल और फल बड़े पैमाने पर गिर जाते हैं। इस प्रकार, विंडब्रेक या शेल्टरबेल्ट लगाकर आम के बागों को हवा से सुरक्षा प्रदान करना आवश्यक है।

ये भी पढ़ें: इस राज्य में प्रोफेसर आम की खेती से कमा रहा है लाखों का मुनाफा

7. जल प्रबंधन

आम के पेड़ों को विशेष रूप से बढ़ते मौसम के दौरान पर्याप्त मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। अपर्याप्त या अत्यधिक पानी देने से फल की उपज और गुणवत्ता कम हो सकती है। उचित जल प्रबंधन बीमारियों और कीटों को रोकने में भी मदद करता है, जो नम वातावरण में पनपते हैं। गर्म और शुष्क जलवायु में, सिंचाई आर्द्रता के स्तर को बढ़ाने और तापमान में उतार-चढ़ाव को कम करने में मदद कर सकती है, जिससे आम की वृद्धि के लिए अधिक अनुकूल वातावरण मिलता है। अत्यधिक सिंचाई से मिट्टी का तापमान कम हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप पौधों की वृद्धि और विकास कम हो जाता है। दूसरी ओर, अपर्याप्त पानी देने से मिट्टी का तापमान बढ़ सकता है, पौधों की जड़ों को नुकसान पहुँच सकता है और पैदावार कम हो सकती है। इस प्रकार, स्वस्थ पौधों की वृद्धि और फल उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी जल प्रबंधन आवश्यक है। फूल निकलने के 2 से 3 महीने पहले से लेकर फल के मटर के बराबर होने के मध्य सिंचाई नही करना चाहिए ।कुछ बागवान आम में फूल लगने एवं खिलने के समय सिंचाई करते है इससे फूल झड़ जाते है । इसलिए सलाह दी जाती है सिंचाई तब तक न करें जब तक फल मटर के बराबर न हो जाय।

सारांश

अधिक पैदावार के लिए आम के फूलों के प्रबंधन में पौधों की वृद्धि को अनुकूलित करने, कीटों और बीमारियों का प्रबंधन करने और फूलों के विकास और परागण के लिए इष्टतम पर्यावरणीय परिस्थितियों को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से रणनीतियों का संयोजन शामिल है। इन प्रबंधन प्रथाओं का पालन करने से फूलों और फलों के उत्पादन में वृद्धि हो सकती है, जिससे उच्च पैदावार और फलों की गुणवत्ता में सुधार होगा।


Dr AK Singh
डॉ एसके सिंह प्रोफेसर (प्लांट पैथोलॉजी) एवं विभागाध्यक्ष,
पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी,
प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना,डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा-848 125, समस्तीपुर,बिहार
Send feedback sksraupusa@gmail.com/sksingh@rpcau.ac.in