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मनरेगा पशु शेड योजना और इसके लिए आवेदन से संबंधित जानकारी

मनरेगा पशु शेड योजना और इसके लिए आवेदन से संबंधित जानकारी

खेती के उपरांत पशुपालन किसानों के लिए दूसरा सबसे बड़ा कारोबार है। बहुत सारे किसान खेती के साथ पशुपालन करना बेहद पसंद करते हैं, क्योंकि खेती के साथ पशुपालन काफी मुनाफे का सौदा होता है। पशुओं के लिए ज्यादा से ज्यादा हरा और सूखा चारा खेती से ही प्राप्त हो जाता है। यही कारण है, कि सरकार पशुपालक किसानों के लिए भी विभिन्न अच्छी योजनाएं लाती हैं, जिससे पशुपालक किसानों को ज्यादा से ज्यादा लाभान्वित किया जा सके। किसान की आमदनी का मुख्य साधन कृषि होता है, जिसके माध्यम से भारत के ज्यादातर पशुपालक आवश्यकताओं को भी पूरा कर सकते हैं। अधिकांश किसान कमजोर आर्थिक स्थिति की वजह से पशुओं के लिए मकान निर्मित नहीं कर पाते हैं। ठंड के मौसम में समान्यतः पशुओं को परेशानी होती है। क्योंकि ठंड के समय ही मकान की जरूरत सबसे ज्यादा होती है। बारिश और ठंड से पशुओं को बचाने के लिए जरूरी है, कि पशुओं के लिए शेड का निर्माण किया जाए। सरकार पशुओं के लिए शेड या घर बनाने के लिए किसानों को 1 लाख 60 हजार रुपए का अनुदान प्रदान कर रही है।

कितना मिलेगा लाभ

मनरेगा पशु शेड योजना से किसानों को व्यापक स्तर पर लाभ मिलेंगे। गौरतलब यह है, कि किसानों को ठंड के मौसम में सामान्य तौर पर दुधारू पशुओं में दूध की कमी का सामना करना पड़ता है। दरअसल, इसकी बड़ी वजह पशुओं के लिए ठंड के मौसम में उचित घर या शेड का न होना भी है। मनरेगा पशु शेड योजना के अंतर्गत पशुओं के लिए घर निर्मित पर सरकार द्वारा किसानों को अनुदान उपलब्ध किया जाता है। इससे पशुओं की सही तरह से देखभाल सुनिश्चित हो सकेगी। शेड में यूरिनल टैंक इत्यादि की व्यवस्था भी कराई जा सकेगी। इससे पशुओं की देखभाल तो होगी ही साथ ही किसानों की आमदनी में भी बढ़ोतरी होगी। साथ ही, किसानों के जीवन स्तर में सुधार देखने को मिलेगा।

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मनरेगा पशु शेड योजना

पशुपालक किसानों को पशुओं के लिए घर बनाने पर यह अनुदान प्रदान किया जाता है। इस योजना से ठंड या बारिश से पशुओं को बचाने के लिए घर बनाने के लिए धनराशि मिलती है। पशुओं का घर बनाकर किसान अपने पशु की देखभाल कर सकेंगे और पशु के दूध देने की क्षमता में भी वृद्धि कर सकेंगे। मनरेगा पशु शेड योजना से किसानों को व्यापक लाभ मिल पाएगा।

मनरेगा पशु शेड से कितना लाभ मिलता है

मनरेगा पशु शेड योजना के तहत किसानों को पशु शेड बनाने पर 1 लाख 60 हजार रुपए का अनुदान दिया जाता है। इस योजना का लाभ किसानों को बैंक के माध्यम से दिया जाता है। इस योजना से मिलने वाला पैसा एक तरह से किसानों के लिए ऋण होता है जिसकी ब्याज दर बहुत कम होती है।

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योजना के तहत किसको लाभ मिलेगा

मनरेगा पशु शेड योजना के तहत मिलने वाले लाभ की कुछ पात्रता शर्तें इस प्रकार है।

इस योजना का फायदा केवल भारतीय किसानों को ही मुहैय्या कराया जाएगा। पशुओं की तादात कम से कम 3 अथवा इससे अधिक होनी आवश्यक है।

योजना के लिए अनिवार्य दस्तावेज

पशुओं के लिए घर बनाने वाली इस योजना में आवेदन करने के लिए कुछ जरूरी दस्तावेजों का होना अनिवार्य है। जैसे कि - आधार कार्ड, पैन कार्ड, कृषक पंजीयन, बैंक पासबुक, मोबाइल नम्बर, ईमेल आईडी (अगर हो)

योजना में आवेदन करने की प्रक्रिया

पशुओं के लिए घर निर्मित करने की योजना में अनुदान लेने के लिए नजदीकी सरकारी बैंक शाखा में संपर्क करें। एसबीआई, इस योजना के अंतर्गत लोन प्रदान करती है। शाखा में ही आवेदन फॉर्म भर कर जमा करें। इस प्रकार इस योजना का लाभ किसानों को प्राप्त हो जाएगा।
Drumstick: कच्चा, सूखा, हरा हर हाल में बेशकीमती है मुनगा

Drumstick: कच्चा, सूखा, हरा हर हाल में बेशकीमती है मुनगा

बहु उपयोगी पेड़ सहजना, सुजना, सेंजन और मुनगा आदि कई स्थानीय नामों से पुकारे पहचाने जाने वाले इस फलीदार वृक्ष की खासियतों के राज यदि आप जानेंगे तो आपके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहेगा। किसान मित्र औषधीय एवं खाद्य उपयोगी कम लागत की इस पेड़ की खेती कर लाखों रुपए का लाभ हासिल कर सकते हैं। ड्रमस्टिक ट्री (Drumstick tree) यानी कि सहजन या मुनगा का वानस्पतिक नाम मोरिंगा ओलिफेरा (Moringa oleifera) है। जड़ से लेकर पत्तियों तक कई पोषक तत्वों से भरपूर इस पौधे का उपयोग रसोई से लेकर औषधीय गुणों के कारण प्रयोगशालाओं तक विस्तृत है।

उपयोग इतने सारे

सहजन या मुनगे की पत्तियों और फली की सब्जी को चाव से खाया जाता है। मुनगे की पत्तियां जल को स्वच्छ करने में भी उपयोग की जाती हैं।



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मुनगे की पहचान

एक हाथ या उससे अधिक लंबी आकार वाली मुनगे की फलियां खाद्य एवं औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं। आम तौर पर बरवटी, सेम जैसी फलीदार सब्जियां बेलों पर पनपती हैं। जबकि मुनगे की फलियां वृक्ष पर लगती हैं। मुनगे के पेड़ के तने में काफी मात्रा में पानी होता है। सहजन के पेड़ की शाखाएं काफी कमजोर होती हैं। सहजन के फल-फूल-पत्तियों की बाजार में खासी डिमांड रहती है। इसकी पत्तियों के क्रय एवं निर्जलीकरण के लिए सरकार द्वारा कई तरह की योजनाएं संचालित की जाती हैं। मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में मुनगे की खेती को प्रोत्साहित करने कृषि विभाग ने पत्तियों और फलों की खरीद से जुड़ी कई प्रोत्साहन योजनाओं को लागू किया है। उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण के अधीन मुनगा पत्‍ती रोपण के बारे में किसान कल्याण मंत्री से मुनगा पत्‍ती मूल्‍य अनुबंध खेती, किसानों के लिए इसमें समाहित अनुदान, प्रावधान से संबंधित सवाल किए जा चुके हैं।



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गौरतलब है कि बैतूल जिले में वर्ष 2018-19 में मुनगा की खेती के लिए किसानों के लिए प्रोत्साहन योजना लागू की गई थी। इसका लक्ष्य किसान से मुनगा पत्‍ती खरीदकर उन्हें लाभान्वित करना था। हालांकि सदन में यह भी आरोप लगा था कि, बैतूल के किसानों को 10 रुपए प्रति पौधे की दर से घटिया गुणवत्ता के पौधे प्रदान किए गए। यह पौधे मृत हो जाने से किसानों को लाभ के बजाए नुकसान उठाना पड़ा।

कटाई का महत्व

पौधे की ऊंचाई की बात करें, तो आम तौर पर सहजन का पौधा लगभग 10 मीटर तक वृद्धि करता है। चूंकि जैसा हमने बताया कि इसके तने कमजोर होते हैं, इस कारण इस पर चढ़कर फल, पत्तियों की तुड़ाई करना खतरनाक हो सकता है। इसलिए लगभग 10 से 12 मीटर की ऊंचाई पर पहुंचने पर इसकी पैदावार करने वाले किसान इसकी हर साल इसकी कटाई कर डेढ़ से दो मीटर की ऊंचाई को कम कर देते हैं। इसके फल-फूल-पत्तियों की आसान तुड़ाई के लिए यह प्रक्रिया अपनाई जाती है।

स्टोरेज कैपिसिटी

अपनी फलियों के आकार के कारण ड्रमस्टिक ट्री (Drumstick tree) कहे जाने वाले मुनगा पेड़ में उगने वाली फलियां ड्रम (पाश्चात्य वाद्य) बजाने वाली स्टिक (डंडी/छड़ी) की तरह दिखती हैं। मुनगा की कच्ची-हरी फलियां भारतीय लोग रसम, सांबर, दाल में डालकर या सब्जी आदि बनाकर खाते हैं। लगभग एक बांह लंबी डंडी के आकार वाली सहजन या मुनगा की फलियां तुड़ाई के बाद 10 से 12 दिनों तक उचित देखरेख में घरेलू उपयोग में लाई जा सकती हैं। साथ ही सूखने के बाद भी इसकी फलियों का चूर्ण आदि कई तरह के उपयोग में लाया जाता है।



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कितने गुणों से भरपूर

सहजन की पत्तियों से लेकर फलियां, छाल, जड़ तक बहुआयामी उपयोगों से परिपूर्ण हैं। मुनगा के बीज से तेल निकालकर भी उसे खाद्य एवं औषधीय उपयोग में लाया जाता है। सहजन की कच्ची हरी पत्तियों में पोषक मूल्य की मात्रा महत्वपूर्ण होती है।

USDA Nutrient database के अनुसार

सहजन में उर्जा, कार्बोहाइड्रेट, आहारीय रेशा, वसा, प्रोटीन की मात्रा ही इसे खास बनाती है। इसमें पानी, विटामिन, कैल्शियम, लोहतत्व से लेकर अन्य पोषक पदार्थ बहुतायत में पाए जाते हैं। एशिया और अफ्रीका में मुनगा के पेड़ प्राकृतिक रूप से स्वतः पनप जाते हैं। ड्रमस्टिक (Drumstick) एवं इसकी पत्तियां कम्बोडिया, फिलीपाइन्स, दक्षिणी भारत, श्री लंका और अफ्रीका के नागरिक खाने में उपयोग में लाते हैं। दक्षिण भारत के तमाम व्यंजनों में इसका अनिवार्यता से प्रयोग होता है। स्वाद की बात करें तो मुनगा का टेस्ट, मशरूम सरीखा महसूस होता है। छाल, रस, पत्तियों, बीजों, तेल, और फूलों से पारम्परिक दवाएँ बनायी जाती है। जमैका में इसके रस से नीली डाई (रंजक) के रूप में उपयोग किया जाता है। दक्षिण भारतीय व्यंजनों में इसका प्रयोग बहुत किया जाता है।



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सहजना, सुजना, सेंजन, मुनगा, मोरिंगा या ड्रमस्टिक (Drumstick) औषधीय गुणों से भरपूर है। इसके औषधीय अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि, तकरीबन तीन सैकड़ा से अधिक रोगों की रोकथाम के साथ ही इनके उपचार की ताकत मुनगा में होती है। मुनगा में मौजूद 90 से अधिक किस्मों के मल्टीविटामिन्स, कई तरह के एंटी आक्सीडेंट, दर्द निवारक गुण और कई प्रकार के एमिनो एसिड इसके प्राकृतिक महत्व को जाहिर करने के लिए काफी हैं।

कम लागत, कम देखभाल, मुनाफा पर्याप्त

स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र या प्राइवेट फल-पौधों की नर्सरी से सहजना, सुजना, सेंजन, मुनगा, मोरिंगा या ड्रमस्टिक (Drumstick) के उपचारित बीज एवं पौधे क्रय किए जा सकते हैं। किसान मित्र मुनगा के पुराने पौधों की फलियों को संरक्षित करके भी उसके बीजों को बोकर पौध तैयार कर सकते हैं। हालांकि नर्सरी आदि में तैयार बीज एवं पौधे ज्यादा मुनाफा प्रदान करने में सहायक होते हैं, क्योंकि इस पर प्रतिकूल मौसम का प्रभाव कम होता है। इसके साथ ही नर्सरी या शासकीय विक्रय केंद्रों से बीज एवं पौधे खरीदने पर किसानों को मुनगे की पैदावार से जुड़़ी महत्वपूर्ण जानकारियां एवं सुझाव भी मुफ्त में प्राप्त होते हैं।



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बारिश अनुकूल मौसम

किसान मित्रों के लिए जुलाई-अगस्त का महीना मुनगा की खेती करने के लिए हितकारी होता है। बारिश का मौसम पौध एवं बीजारोपण के लिए अनुकूल माना जाता है। आमतौर पर वर्षाकाल बागवानी के लिए सबसे मुफीद होता है क्योंकि इस दौरान किसी भी पौधे को तैयार किया जा सकता है। https://youtu.be/s5PUiHTe82Q

बीज का ऑनलाइन मार्केट

ऑनलाइन मार्केट में भी कृषि सेवा प्रदान करने वाली कई कंपनियां मुनगा के बीज एवं पौधे रियायती दर पर उपलब्ध कराने के दावे करती हैं। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर मोरिंगा (सफेद) बीज के 180 ग्राम वजनी पैकेट की कीमत 2 अगस्त 2022 को सभी टैक्स सहित ₹499.00 दर्शाई जा रही थी।

सहजन के लाभ एवं नुकसान

मुनगा के अंश का सेवन करने से मानव की रोग प्रत‍िरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। इसमें भरपूर रूप से उपलब्ध कैल्‍श‍ियम की मात्रा साइटिका, गठिया के इलाज में कारगर है। हल्का एवं सुपाच्य भोज्य होने के कारण इसका खाद्य उपयोग लि‍वर की सेहत के लिए फायदेमंद है। पेट दर्द, गैस बनना, अपच और कब्ज की बीमारी भी मुनगा के फूलों का रस या फिर इसकी फलियों की सब्जी के सेवन से काफूर हो जाती है।



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हालांकि मुनगा जहां मानव स्वास्थ्य के लिए अति गुणकारी है वहीं इसके सेवन के कई नुकसान भी हो सकते हैं। मोरिंगा (सहजन) का असंतुलित सेवन शरीर में आंतरिक जलन का कारक हो सकता है। मासिक धर्म में महिलाओं को इसके सेवन से बचना चाहिए। प्रसव के फौरन बाद भी इसका सेवन वर्जित माना गया है।

मुनगा का बाजार महत्व

जैसा कि इसकी उपयोगिता से स्पष्ट है कि कच्चे फल, पत्तियों से लेकर उसके उपोत्पाद तक के मामले में सहजना, सुजना, सेंजन, मुनगा, मोरिंगा या ड्रमस्टिक (Drumstick) की तूती बोलती है। दैनिक, साप्ताहिक हाट बाजार, शासकीय निर्धारित मूल्य पर खरीद से लेकर शॉपिंग मॉल्स में भी इसकी डिमांड बनी रहती है। तो यह हुई कच्चे फल, पत्तियों के बाजार से जुड़़ी मांग की बात, अब इसके बाय प्राडक्ट पर नजर डालते हैं। दरअसल ऑर्गेनिक खेती से जुड़े उत्पाद की सेल करने वाली कंपनियां मोरिंगा (मुनगा) के उपोत्पाद भी रिटेल सेंटर्स के साथ ही ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर मुहैया कराती हैं। ऑनलाइन मार्केट में 100 ग्राम मोरिंगा पाउडर 2 सौ रुपए से अधिक की कीमत पर बेचा जा रहा है। ऐसे में समझा जा सकता है कि, मुनगा की किसानी में कृषक को कितना मुनाफा मिल सकता है।

किसानों को सब्सिडी पर कृषि यंत्र दे रही MP सरकार

किसानों को सब्सिडी पर कृषि यंत्र दे रही MP सरकार

पाईप लाइन सेट, स्प्रिंकलर सेट एवं डीजल/विद्युत पम्पसेट देने का प्रावधन

भोपाल। मध्यप्रदेश सरकार अपने राज्य के किसानों के लिए सब्सिडी पर कृषि यंत्र दे रही है। किसानों को सिंचाई एवं खेती में सरलता लाने के उद्देश्य से शिवराज सरकार ने योजना बनाई है। इसमें किसानों को सब्सिडी पर पाईप लाइन सेट, स्प्रिंकलर सेट एवं डीजल/विद्युत पम्पसेट देने का प्रावधन रखा गया है। साथ विभिन्न जिलों के किसानों को सिंचाई के लिए अनुदान पर सिंचाई यंत्र भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। मध्यप्रदेश के कृषि विभाग ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (
National Food Security Mission (NFSM)) योजना के अंतर्गत किसानों के लिए जिलेवार लक्ष्य निर्धारित किया है। इच्छुक किसान आवश्यकता अनुसार सिंचाई यंत्र के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। ऑनलाइन आवेदन के बाद चयनित किसानों को कृषि यंत्र उपलब्ध कराए जाएंगे।

सिंचाई के लिए सब्सिडी पर मिलेंगे यह यंत्र :

- स्प्रिंकलर - डीजल/विद्युत पम्पसेट - पाइप लाइन सेट - रेनगन सिस्टम
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* योजनाएं जिनके अंतर्गत किसान कर सकते हैं आवेदन

  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (गेहूं) योजना के अंतर्गत छतरपुर, पन्ना, कटनी, सागर, शिवनी, सीधी, सतना, टीकमगढ़, रीवा, राजगढ़, रायसेन, अशोकनगर, गुना, विदिशा, शिवपुरी, खंडवा व निवाड़ी जिलों के किसानों को स्प्रिंकलर सेट, डीजल/विद्युत पम्पसेट, पाइप लाइन सेट, रेनगन सिस्टम देने का प्रावधान रखा गया है।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (दलहन) के तहत राज्य के सभी जिलों के किसानों को पाइप लाइन सेट, डीजल/विद्युत पम्पसेट व स्प्रिंकलर सेट दिए जाएंगे। इसके लिए किसानों को ऑनलाइन आवेदन करना होगा।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा (टरफा) योजना के अंतर्गत छिंदवाड़ा, सिवनी, कटनी, बालाघाट, मंडला, डिंडोरी, नरसिंहपुर, दमोह, रायसेन, होंशगाबाद, शहडोल, उमरिया, पन्ना, रीवा, सीधी, सिंगरौली, बेतुल, अनूपपुर जिलों के किसानों को स्प्रिंकलर सेट, पाइप लाइन सेट के उपकरण दिए जाएंगे।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (बुंदेलखंड विशेष पैकेज) योजना में राज्य के सागर, दमोह, पन्ना, टीकमगढ़, दतिया, निवाड़ी, छतरपुर जिलों के किसानों को स्प्रिंकलर सेट, डीजल-विधुत सेट, पाइप लाइन सेट दिए जाएंगे।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा (धान) के अंतर्गत राज्य के सीधी, अनूपपुर, रीवा, दमोह, रीवा, डिंडोरी, मंडला, कटनी जिलों के किसानों को डीजल/विधुत पम्पसेट देने का प्रावधान किया गया है।
  • कृषि यंत्रों पर कितना अनुदान मिलेगा।
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- मध्यप्रदेश सरकार अपने राज्य के विभिन्न वर्ग के किसानों को तरह-तरह की योजनाओं के अंतर्गत सब्सिडी देकर उपकरण उपलब्ध कराएगी। योजना के अंतर्गत किसानों को 50 से 55 फीसदी तक अनुदान देने का प्रावधान है।
CG: छत्तीसगढ़ मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड ऑनलाइन (Chhattisgarh Misal Bandobast Record) ऑनलाइन ऐसे देखें

CG: छत्तीसगढ़ मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड ऑनलाइन (Chhattisgarh Misal Bandobast Record) ऑनलाइन ऐसे देखें

CG Misal Bandobast Record से जुड़े ऑनलाइन मंत्र

छत्तीसगढ़ सरकार ने केंद्रीय डिजिटल भारत मिशन के अंतर्गत छत्तीसगढ़ मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड (Chhattisgarh Misal Bandobast Record) प्रक्रिया को पूर्णतः ऑनलाइन (Online) कर दिया है। CG मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड (CG Misal Bandobast Record) प्रक्रिया के ऑनलाइन होने से
छत्तीसगढ़ प्रदेश के नागरिकों को संबंधित रिकॉर्ड की वर्तमान स्थिति जानने में आसानी होगी। इस प्रक्रिया के तहत छत्तीसगढ़ शासन कार्यालय कलेक्टोरेट ने प्रदेश के सभी जिलों के लिए अलग-अलग जिलों के अनुसार मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड का डिजिटल ऑनलाइन खाका (फॉर्मेट) बनाकर उसको जिलेवार उपलब्ध कराया है। संबंधित नागरिक इस कार्य के लिए तैयार की गई आधिकारिक वेबसाइट www.cg.nic.in/ के माध्यम से मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड स्थिति का ऑनलाइन अध्ययन कर प्रतिलिपि प्राप्त कर सकते हैं।

नो दफ्तर, ऑनलाइन अवसर

छत्तीसगढ़ में मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड इंटरनेट पर मुहैया हो जाने के कारण आदिवासी बहुल प्रदेश के किसी भी जिले के निवासी अब ऑनलाइन तरीके से मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड की खाना तलाशी कर सकेेंगे।


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छत्तीसगढ़ में दुर्ग, धमतरी, जांजगीर, कोरबा, रायगढ़, बिलासपुर, रायपुर जैसे प्रमुख शहर आधारित जिलों के साथ ही सुदूरवर्ती ग्रामीण अंचल से नाता रखने वाले जिलों का मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड तैयार कर ऑनलाइन उपलब्ध कराने से शासकीय प्रक्रिया में गति आएगी। छत्तीसगढ़ के नागरिकों को अब CG मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड की जानकारी प्राप्त करने के लिए सरकारी दफ्तर तक नहीं जाना पड़ेगा। छत्तीसगढ़ के नागरिक अब इंटरनेट की मदद से लगभग सभी जिलों से संबंधित मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड को प्राप्त कर सकते हैं। इस सुविधा से पटवारियों पर से भी काम का बोझ कम होगा।


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डाउनलोड एंड प्रिंट

छत्तीसगढ़ मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड (Chhattisgarh Misal Bandobast Record) प्रक्रिया को पूर्णतः ऑनलाइन (Online) करने का सबसे प्रमुख लाभ यह है कि, जानकारी हासिल करने के लिए लोगों की पटवारी पर निर्भरता अब समाप्त हो गई है। अतिरिक्त लाभ यह भी है कि इससे कागज, बिजली, स्याही की तक बचत होगी। वेबसाइट पर जिलों के रिकॉर्ड को डाउनलोड करने यानी कंप्यूटर, मोबाइल या फिर किसी मैमोरी में सेव करने का विकल्प भी प्रदान किया गया है। आवश्यक होने पर संबंधित जानकारी जुटाने वाला नागरिक सूचनाओं का प्रिंट भी इस वेबसाइट से ले सकता है। स्क्रीन शॉट से भी संबंधित जानकारी को अपने पास इमेज के रूप में सुरक्षित रखा जा सकता है।

CG मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड क्या है

छत्तीसगढ़ मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड प्रदेश के नागरिकों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण दस्तावेज है।


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ब्रिटिश हुकूमत ने भारत में 1929-30 के दशक में संपूर्ण देश की भूमि संबंधी मूल रिकॉर्ड का दस्तावेजीकरण किया था। मिसल रिकॉर्ड को पी1 रिकॉर्ड भी कहा जाता है। इसे 1929-30, 1938-39, 1942-43 के वर्षों के दौरान रिकॉर्ड किया गया था। इस महत्वपूर्ण दस्तावेज में किसानों के नाम और उनकी मूल जाति का उल्लेख किया जाता है। अंग्रेजों द्वारा निर्मित यह दस्तावेजीकरण ही मिसल बंदोबस्त के नाम से पहचाना जाता है। यह वही रिकॉर्ड है जिसके आधार पर देश के राज्य एवं केंद्र सरकार जमीनों का प्रबंधन करती आई हैं। मध्यप्रदेश से विखंडित होकर छत्तीसगढ़ राज्य का सृजन भी मिसल बंदोबस्त के आधार पर ही हुआ था। नए राज्य के गठन के बाद छत्तीसगढ़ राज्य में कई जिलों के मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड न मिलने की शिकायतें भी सामने आईं। मिसल बंदोबस्त कई तरह के शासकीय कार्यों के लिए अति महत्वपूर्ण दस्तावेज है।

जानिये ऑनलाइन प्रक्रिया के बारे में

छत्तीसगढ़ सरकार ने जिलों की जानकारी के मान से जिलेवार सूचनाओं का समंकन किया है। इस प्रक्रिया के तहत अलग-अलग जिलों के लिहाज से मिसल रिकॉर्ड के डिजिटल फॉर्म को ऑनलाइन प्रक्रिया के लिए तैयार किया गया है।

इस ऑनलाइन सुविधा का लाभ छत्तीसगढ़ प्रदेश के सभी नागरिक उठा सकते हैं।

छत्तीसगढ़ मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड (Misal Bandobast Records Chhattisgarh ) देखने के लिए पहले कुछ आसान प्रक्रिया को पूरा करना होगा। वेबसाइट www.cg.nic.in/ के होमपेज पर संबंंधित जिला, तहसील, राजस्व न., प.ह.नं, गांव, अभिलेख, CG मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड आदि के बारे में चयन करने के बाद सर्च (खोजें) विकल्प पर क्लिक करने से संबंधित उपयोगकर्ता को मिसल बंदोबस्त के बारे में इच्छित जानकारी प्राप्त हो सकती है। सर्च ऑप्शन को क्लिक करने के बाद स्क्रीन पर संबंधित क्रमांक के तहत शामिल गांव का संपूर्ण मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड नाम सहित दिखने लगेगा। इसी तरह अन्य विकल्पों के माध्यम से उपयोगकर्ता संबंधित रिकॉर्ड को डाउनलोड करने के साथ ही उसका प्रिंट भी प्राप्त कर सकता है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने शुरू की मुहिम, अब ऑनलाइन बेचे जा रहे उपले और गोबर से बने प्रोडक्ट

छत्तीसगढ़ सरकार ने शुरू की मुहिम, अब ऑनलाइन बेचे जा रहे उपले और गोबर से बने प्रोडक्ट

गांवों में किसान की जीविका का साधन पशु और खेती होती है। यही वजह है कि पशुओं को पशुधन बुलाया जाता है। किसान खेती से निकलने वाले भूसे से लेकर गोबर के उपले बनाने तक हर तरह से खेती और अपने पशुओं का उपयोग करता है, ताकि अपनी जीविका को चलाया जा सके। हाल फिलहाल में ऑनलाइन दुनिया के प्रसार के साथ गोबर से बनने वाली वस्तुओं की मांग बहुत तेजी से बढ़ी है।


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जिसे देखते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने एक कदम उठाया है ताकि गोबर के उत्पादों की बिक्री तेजी से हो, इसके लिए एक बाजार शुरू किया है। इसकी शुरुआत स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से हो रही है। मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक इस मुहिम में 354 स्वयं सहायता समूहों को जोड़ा गया है जिसमें 4,000 से ज्यादा महिलाएं शामिल हैं। ये महिलाएं जो भी गोबर से बने उत्पाद बनाएंगी उन्हें ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराया जाएगा। इस तरह से, किसी भी शहर में रहने वाले लोग इन वस्तुओं को खरीद सकते हैं। तीज त्योहार में इन चीजों की जरूरत बड़े शहरों में बहुत महसूस की जाती है और यह मुहिम इसी के लिए शुरू की गई है। अब आप जानना चाहते होंगे कि ये स्वयं सहायता समूह कौन-कौन से गोबर से बने प्रोडक्ट बना रहे हैं, तो आपको बता दें कि इनमें खाद, गोबर से बने कंडे (उपले), दिये और फूलदान शामिल हैं।


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इस मुहिम को लेकर राजनांदगांव के कलेक्टर तरण प्रकाश सिन्हा काफी उत्साहित हैं। उन्होंने आंकड़ों की जानकारी देते हुए कहा है कि जिले की महिलाओं के द्वारा बनाए गए 5 करोड़ रुपये के गोबर प्रोडक्ट बेचे जा चुके हैं। साथ ही जो ऑनलाइन माध्यम में बेचना हाल फिलहाल में शुरू हुआ, उसके जरिए 1 लाख रुपये तक के प्रोडक्ट की बिक्री हो चुकी है। साथ ही ऑनलाइन माध्यम के जरिए बिक्री में बढ़ोतरी हर गुजरते दिन के साथ हो रही है।


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छत्तीसगढ़ सरकार छोटे मझोल किसानों के लिए अक्सर ही ऐसी योजनाएं लाती रहती है ताकि उन्हें सशक्त बनाया जा सके। पिछले महीनों सरकार ने गोधन न्याय योजना शुरू की थी। इस योजना के अंतर्गत डेयरी किसानों से 2 रुपये प्रति किलो खरीदा गया था और इस तरह से सरकार ने 66,400 क्विंटल गोबर की खरीदारी की थी। बहरहाल, ऑनलाइन पहले के साथ सरकार ने एक और मील का पत्थर छूने की कवायद शुरू कर दी है। गोबर की खाद को लेकर अक्सर बातें होती रहती हैं इसलिए इसकी मांग भी खूब है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए स्वयं सहायता समूह वर्मीकंपोस्ट बनाने में जुटे हुए हैं। आलम यह है कि अब तक 53,000 क्विंटल वर्मीकंपोस्ट स्वयं सहायता समूह बेच चुके हैं। इसके पहले खाद केवल गौशालाओं और किसानों को बेची जा रही थी लेकिन अब ऑनलाइन माध्यम से इसकी पहुंच देश भर में है और इनकी वर्मीकंपोस्ट की मांग तेजी से बढ़ी है। कई राज्यों से लाखों रुपये के ऑर्डर पहले से ही मिल चुके हैं।
राजस्थान में एमएसपी पर अब ऑनलाइन खरीदी जाएंगी फसलें

राजस्थान में एमएसपी पर अब ऑनलाइन खरीदी जाएंगी फसलें

राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार किसानों की समृद्धि और खुशहाली के लिए दिन रात काम कर रही है। इसके तहत सरकार कई ऐसे प्रयास कर रही है जिससे किसानों को फायदा होने के साथ-साथ उनकी जीवनशैली आसान बनाई जा सके। इसको देखते हुए गहलोत सरकार ने राज्य में अनाजों की खरीदारी के लिए पूरा सिस्टम ऑनलाइन कर दिया है। अब राज्य में एमएसपी (MSP) के माध्यम से फसलों की खरीदारी ऑनलाइन की जाएगी ताकि किसान भाई अपनी फसल को बेहद आसानी से बेंच पाएं। इसका एक फायदा ये भी होगा कि ऑनलाइन माध्यम से किसानों को बेहद आसानी से भुगतान किया जा सकेगा, जिससे फसल बेचने के बाद किसानों के खातों में त्वरित पैसा आ सकेगा। फसल की ऑनलाइन खरीदी की घोषणा के बाद राजस्थान देश में ऐसा पहला राज्य बन गया है, जहां फसल बेंचने से लेकर भुगतान तक की प्रक्रिया ऑनलाइन की जाएगी।

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इस प्रक्रिया को ऑनलाइन करने में राजस्थान स्टेट कॉपरेटिव मार्केटिंग फैडरेशन (Rajasthan State Co-operative Marketing Federation Ltd.) ने महत्वपूर्ण योगदान निभाया है, इस प्रक्रिया को पूरी तरह से राजस्थान स्टेट कॉपरेटिव मार्केटिंग फैडरेशन ही संचालित करेगा। ऑनलाइन प्रक्रिया के माध्यम से सरकार का उद्देश्य है कि किसानों की फसलों की खरीद सुनिश्चित हो सके तथा किसानों को उनकी फसलों का पूरा दाम मिले।

किसान अपनी फसलों को किस प्रकार से ऑनलाइन बेंच सकते हैं

राजस्थान में इस नई योजना के अंतर्गत किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य में अपनी फसल बेंचने के लिए ऑनलाइन नामांकन करवाना होगा, जिसके लिए किसान भाई नजदीकी खरीद केंद्र या ई-मित्र केंद्र पर जाकर अपना नामंकन करवा सकते हैं। नामांकन करवाने के लिए किसानों को आधार कार्ड, जन आधार कार्ड, गिरदावरी पी-35, बैंक खाते आदि की डिटेल की जरुरत पड़ सकती है, इसलिए किसान ये दस्तावेज अपने साथ रखें। नामांकन करते वक़्त आधार के माध्यम से किसान का बायोमेट्रिक सत्यापन किया जाएगा, इसके बाद नामांकन पूर्ण हो जाएगा।

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जब किसान से फसल खरीदने की बारी आएगी तो राजस्थान स्टेट कॉपरेटिव मार्केटिंग फैडरेशन के द्वारा किसान को एसएमएस (SMS) के माध्यम से सूचित किया जाएगा। इसके साथ ही एसएमएस के माध्यम से किसान को तुलाई की दिनांक, कृषि जिंस की मात्रा तथा खरीदी केंद्र के बारे में भी सूचित किया जाएगा। जिसके बाद किसान निर्धारित दिनांक को नियत खरीदी केंद्र पर जाकर अपनी फसल की तुलाई करवा सकता है। जहां पर किसान का फिर से बायोमीट्रिक सत्यापन किया जाता है और तुलाई की रसीद दी जाती है, इसके बाद किसानों के रूपये शीघ्र ही उनके खातों में ट्रांसफर कर दिए जाते हैं। इस प्रक्रिया से किसानों की सहूलियत बढ़ेगी और कई दिनों तक फसलों को बेचने के लिए लाइनों में लगने से निजात मिलेगी। किसानों की सहूलियतों को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने खरीदी केंद्रों की संख्या में भी इजाफा किया है। सरकार की कोशिश है कि किसानों के लिए खरीदी केंद्र उनके पास ही उपलब्ध करवाए जाएं ताकि किसानों को ज्यादा भटकना न पड़े। इसको ध्यान में रखते हुए सरकार ने खरीदी केंद्रों की संख्या बढाकर 650 से अधिक कर दी है, पहले राज्य में खरीदी केंद्रों की संख्या मात्र 250 थी। अब बड़े केंद्रों के साथ-साथ ग्राम सेवा सहकारी समितियों पर भी खरीद केंद्र बनाए गए हैं, साथ ही पंजीयन करवाने के लिए तहसीलों को भी अधिकृत कर दिया गया है। अब तहसीलों में भी किसान अपना पंजीयन करवा सकते हैं।

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इसके साथ ही अब सरकार ने वेयरहाउस सेवा को भी ऑनलाइन कर दिया है, अब राज्य में वेयरहाउस ई-रिसिप्ट सेवा की व्यवस्था को लागू कर दिया गया है। जिसके तहत किसान भाइयों को फसल बेंचने के बाद 3 दिन के भीतर भुगतान कर दिया जाएगा पहले यह व्यवस्था ऑफलाइन थी। जिसमें भुगतान करने में कई महीनों का समय लग जाता था, क्योंकि किसान की उपज वेयरहाउस में जमा होने के बाद नैफेड तक रसीद पहुंचे में ही महीनों लग जाते थे। जिससे किसानों के भुगतान में अनावश्यक देरी होती थी, इस सुविधा के लागू हो जाने के बाद किसानों को देरी से होने वाले भुगतान से निजात मिलेगी। राज्य में यह व्यवस्था लागू होने के बाद किसान काफी खुश हैं, किसानों का कहना है कि वो अब अपनी फसल बिना किसी परेशानी के बेंच पाएंगे। इसके साथ ही उन्हें भुगतान भी जल्दी मिल जाएगा। इस प्रक्रिया के लागू होने के बाद किसानों के समय की बचत होगी, जिससे किसान अपनी दूसरी खेती पर ज्यादा ध्यान दे पाएंगे। अन्य खेती में ज्यादा ध्यान देने से किसान अपनी पैदावार को और ज्यादा बढ़ा सकते हैं। जिससे किसानों की थोड़ी बहुत आमदनी और ज्यादा बढ़ सकती है।
इस राज्य में किसानों को घर बैठे अनुदानित दर पर बीज मुहैय्या कराए जाएंगे

इस राज्य में किसानों को घर बैठे अनुदानित दर पर बीज मुहैय्या कराए जाएंगे

खेती किसानी में बेहतर पैदावार जब ही प्राप्त हो सकती है, जब उर्वरक भूमि के साथ-साथ बेहतरीन गुणवत्ता के बीज भी होने चाहिए। बिहार सरकार फिलहाल उत्तम गुणवत्ता के बीजों को किसानों के घर तक पहुंचाएगी। बेहतरीन खेती के लिए अच्छी गुणवत्ता के बीजों का होना काफी आवश्यक होता है। किसान बीज प्राप्त करने के लिए बाजार एवं बीज केंद्रों के चक्कर काटते रहते हैं। उत्तम गुणवत्ता का बीज न मिलने की वजह से किसानों की फसल उतनी खास नहीं हो पाती है। किसानों के समक्ष चुनौती यह भी रहती है, कि बेहतरीन गुणवत्ता के बीजों की पहचान किस तरह की जाए। राज्य सरकार के स्तर से भी किस तरह अच्छे बीज प्राप्त हो सकें। किसान इसको लेकर भी मांग करते रहते हैं। फिलहाल, बिहार सरकार ने इसी दिशा में पहल की जा रही है। किसानों की काफी परेशानियां भी समाप्त कर दी है।

बिहार सरकार की तरफ से बीजों की होम डिलीवरी की सुविधा दी गई है

बिहार सरकार खरीफ सीजन में उगाई जाने वाली विभिन्न फसलों के बीजों को अनुदान देकर मुहैय्या करा रही है। बीजों को किसानों के घर तक मुहैय्या कराने के लिए होम डिलीवरी की सुविधा भी दी गई है। राज्य सरकार के अधिकारियों ने बताया है, कि जो किसान घर पर बीज प्राप्त करना चाहते हैं। उनको एक अलग विकल्प भरना होगा। होम डिलीवरी हेतु उनसे अतिरिक्त धन भी लिया जाएगा। यह भी पढ़ें:
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बिहार सरकार द्वारा किया अपील की गई है

बिहार सरकार, कृषि विभाग द्वारा सोशल मीडिया पर यह जानकारी प्रदान की है। बिहार सरकार की तरफ से बताया गया है, कि किसान भाइयों एवं बहनों, कृपया गौर करें! खरीफ मौसम, 2023 में विभिन्न फसलों के बीज की सब्सिड़ी दर पर उपलब्धता से जुड़ी सूचना। कृषि विभाग द्वारा बिहार राज्य बीज निगम के जरिए से खरीफ मौसम, 2023 की विभिन्न योजनाओं में खरीब फसलों के बीज अनुदानित दर पर वितरण करने की योेजना तैयार कर ली है।

किसान ऑनलाइन आवेदन यहां कर सकते हैं

इच्छुक किसान अनुदानित दर पर विभिन्न खरीफ फसलों के बीज प्राप्त करने के लिए DBT Portal (https://dbtagriculture.bihar.gov.in) / BRBN Portal (brbn.bihar.gov.in) के बीज अनुदान / आवेदन लिंक पर दिनांक 15 अप्रैल, 2023 से 30 मई, 2023 तक आवेदन किया जा सकता है। किसान सुविधानुसार   साइबर कैफ / वसुधा केंद्र / कॉमन सर्विस सेंटर अथवा स्वयं के Android Mobile के उपयोग से आवेदन किया जा सकता है।

बीज की डिलीवरी इस प्रकार से की जाएगी

किसानों का आवेदन संबंधित एग्रीकोऑर्डिनेटर को भेजा जाएगा। एग्री कोऑर्डिनेटर जिस स्थान पर बीज आवंटित करेगा, उस जगह की जानकारी किसान को दी जाएगी। किसान बीज विक्रेता को बीज वितरण के दौरान आधार कार्ड आधारित फिंगर प्रिंट अथवा आईरिस पहचान द्वारा आधार प्रमाणीकरण करवाकर एवं पंजीकृत मोबाइल नंबर साझा करना होगा। इसके उपरांत पंजीकृत नंबर पर ओटीपी आ जाएगा। उसको दर्ज करने के उपरांत अनुदान की धनराशि भी घट जाएगी एवं शेष धनराशि का भुगतान कर दें।
केंद्र सरकार की तरफ से जारी किया गया ई-नाम पोर्टल, फल-सब्जियों के कारोबार को मिली नई दिशा

केंद्र सरकार की तरफ से जारी किया गया ई-नाम पोर्टल, फल-सब्जियों के कारोबार को मिली नई दिशा

भारत में आजकल बहुत सारे व्यवसाय एक अच्छी दिशा की तरफ बढ़ रहे हैं। बदलते दौर और आधुनिक युग में कारोबार और व्यवसाय एक मजबूत स्तंभ के रूप में कार्य कर रहा है। इसी कड़ी में भारत में ई-नाम का कारोबार भी काफी तेजी से बढ़ता जा रहा है। दो साल में ई-नाम का ऑनलाइन टर्नओवर लगभग 80 हजार रूपये तक पहुँच चुका है। केंद्र सरकार निरंतर किसानों के फायदे में कदम उठाती रही है। केंद्र सरकार का सदैव प्रयास रहता है, कि किसान भाइयों को उनकी फसलों का समुचित भाव किसानों को प्राप्त हो पाए। केंद्र सरकार की तरफ से इसी को लेकर e- NAM पोर्टल जारी किया है। बतादें, कि करीब 7 साल में ही इस पोर्टल से लाखों की तादाद में किसान जुड़ चुके हैं। हजारों करोड़ रुपये की खरीदारी इसी पोर्टल की सहायता से की गई है। इस पोर्टल की सफलता का आलम यह है, कि साल 2022-23 में e-NAM पोर्टल का आंकड़ा 32 फीसद तक बढ़ चुका है। बतादें, कि इसका कारोबार लगभग 80 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। केंद्र सरकार के अधिकारियों का कहना है, कि e-NAM पोर्टल पूर्व से ज्यादा चर्चा में हैं और ज्यादा लोग इस पोर्टल से जुड़ रहे हैं।

ई-नाम ने कारोबार को नई दिशा दी है

7 साल पूर्व ई- नाम फल-सब्जियों के व्यवसाय को ऑनलाइन करने के लिए निर्मित किया गया था। खास बात यह है, कि व्यापारी, किसान और किसान संघठन को पसंद कर रहे हैं। मीडिया खबरों के मुताबिक, साल 2022 में ई-नाम पोर्टल के अंतर्गत टर्नओवर 56497 करोड़ रुपये पर पहुंच गया, जबकि साल 2022 में यह 31366 करोड़ रुपये था। मतलब कि इस पोर्टल पर किसान, उससे संबंधित संगठन फल-सब्जी एवं उससे जुड़े उत्पाद खरीद सकते हैं। कहा गया है, कि ई-नाम पर सीफूड एवं दूध को छोड़कर समस्त प्रकार का व्यवसाय किया जाता है।

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कृषि उत्पादों का कारोबार मिलियन्स तक पहुंच चुका है

ई-नाम के जो आंकड़ें सामने आए उनके मुताबिक, साल 2023 में 18.6 मिलियन टन जींस का व्यापार हो चुका है। साथ ही, विगत वर्ष 13.2 मीट्रिक टन कृषि उत्पाद का कारोबार ई-नाम से किया था। यह लगभग 41 प्रतिशत का इजाफा है। भारत के विभिन्न राज्यों में ई-नाम का चलन और इस्तेमाल काफी तीव्रता से बढ़ा है।

ई-नाम से किन किन राज्यों में खरीदारी हो रही है

झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, केरला और ओड़िशा के खरीदारों को विभिन्न उत्पादों की बिक्री हो रही है। इनमें चना, सोयाबीन, जीरा, आलू, सेब, सरसों और रागी की बिक्री इसी पोर्टल के जरिए से की गई। इनके अतिरिक्त पश्चिम बंगाल, तमिलानाडु, ओडिशा, महाराष्ट्र और राजस्थान आदि प्रदेशों में भी विभिन्न उत्पादों का विक्रय किया जा रहा है।
मालदा आम के किसानों को झटका, मात्र तीन रुपये किलो बिक रहे हैं ये आम

मालदा आम के किसानों को झटका, मात्र तीन रुपये किलो बिक रहे हैं ये आम

गर्मियों का मौसम शुरू हो चुका है। इस मौसम के शुरू होते ही देश में आम की बहार आ जाती है। इन दिनों बाजार में बंगाल का मशहूर मालदा आम आने लगा है। लेकिन आम की फसल आने के साथ ही मालदा आम के किसानों को बड़ा झटका लगा है। पश्चिम बंगाल में यह आम मात्र 3 रुपये किलो बिक रहा है। जिससे किसान बेहद परेशान हैं और उन्हें लंबा घाटा लग रहा है। मालदा आम की गिरती हुई कीमत को देखते हुए मंडियों में भी व्यापारी इसे खरीदने से कतरा रहे हैं। अभी बाजार में कच्चे मालदा आमों की भारी आवक हो रही है। कच्चे मालदा आम का उपयोग आचार बनाने में किया जाता है। अगर पिछले कई सालों के रिकार्ड को देखा जाए तो ये आम अच्छी खासी कीमत पर बिकते थे। लेकिन इस साल इन आमों के दाम नहीं मिल पा रहे हैं। पानी के आभाव में ये आम पेड़ से सूखकर नीचे गिर रहे हैं, इससे इनकी क्वॉलिटी पर फर्क पड़ रहा है। यह भी एक कारण है जिसकी वजह से आम के उचित दाम नहीं मिल पा रहे हैं। पहले इस आम की बाजार में कीमत 50 रुपये किलो तक होती थी, लेकिन इस साल इनकी कीमत 3 रुपये किलो से भी कम है। जिसके कारण किसानों के साथ-साथ व्यापारी भी निराश हैं। भीषण गर्मी के कारण फसल भी खराब हो रही है। जिसके कारण किसानों का घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है।

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मालदा आम को फाजली आम के नाम से भी जानते हैं। इसका उत्पादन मुख्य तौर पर पश्चिम बंगाल में किया जाता है। यह आम की बेहद लोकप्रिय किस्म है, जो खासकर मालदा जिले में उगाई जाती है। बढ़ती हुई मांग और अच्छे भाव के कारण अब इस आम की किस्म की खेती बिहार, उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों में भी की जाने लगी है। यह आम बेहद स्वादिष्ट आमों में से गिना जाता है। मालदा आम हरे-पीले और कई जगहों पर लाल रंग में भी पाया जाता है। यह बेहद रसीला आम होता है, जिसमें रेशे होते हैं। इसका स्वाद मीठा होता है और यह साइट्रस गुणों से भरपूर होता है। वर्तमान में मालदा जिले की लगभग 33,450 हेक्टेयर भूमि पर इस आम की खेती की जाती है। जो लगातार बढ़ रही है। हर साल इस आम के रकबे में बढ़ोत्तरी देखने को मिलती है। इस आम की भारत के साथ-साथ विदेशों में भी मांग है, इसलिए इसे बड़े पैमाने पर निर्यात किया जाता है। पश्चिम बंगाल के लोगों का कहना है कि इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया को मालदा आम बेहद पसंद थे, इसलिए वो हर साल भारत से ये आम मंगवाया करती थीं। पश्चिम बंगाल के लोग कहते हैं कि जो व्यक्ति एक बार मालदा आम खा लेता है, उसे फिर दूसरे आम पसंद नहीं आते।
इस राज्य में किसानों को निःशुल्क पौधे, 50 हजार रुपये की अनुदानित राशि भी प्रदान की जाएगी

इस राज्य में किसानों को निःशुल्क पौधे, 50 हजार रुपये की अनुदानित राशि भी प्रदान की जाएगी

बिहार सरकार बागवानी को प्रोत्साहन दे रही है। कृषकों को बागवानी क्षेत्र से जोड़ने के लिए सब्सिडी दी जा रही है। उनको शर्ताें के मुताबिक फ्री पौधे, आर्थिक तौर पर सहायता भी की जा रही है। भारत के कृषक अधिकांश बागवानी पर आश्रित रहते हैं। बतादें कि देश के राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार सहित समस्त राज्यों में बागवानी की जाती है। किसान लाखों रुपए की आमदनी कर लेते हैं। साथ ही, राज्य सरकारों के स्तर पर कृषकों को काफी सहायता दी जाती है। इसी कड़ी में बिहार सरकार की तरफ से एक अहम कवायद की गई है। राज्य सरकार से कृषकों को बागवानी हेतु नि:शुल्क पौधे मुहैय्या किए जाऐंगे। साथ ही, उनको मोटा अनुदान भी प्रदान किया जाएगा। राज्य सरकार की इस योजना से किसान काफी खुश नजर आ रहे हैं।

इस प्रकार किसानों को निःशुल्क पौधे दिए जाऐंगे

बिहार सरकार के अधिकारियों के मुताबिक, नालंदा जनपद में निजी जमीन पर 15 हेक्टेयर में आम का बगीचा लगाता है, तो उसको निःशुल्क पौधे दिए जाएंगे। सघन बागवानी मिशन के अंतर्गत 10 हेक्टेयर जमीन में आम का बगीचा लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। एक किसान 8 कट्ठा साथ ही ज्यादा से ज्यादा एक हेक्टेयर में पौधे लगा सकते हैं। 5 हेक्टेयर में अमरूद और 5 हेक्टेयर में केला और बाग लगाने वाले किसानोें को भी सब्सिड़ी प्रदान की जाएगी। ये भी पढ़े: बागवानी के साथ-साथ फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाकर हर किसान कर सकता है अपनी कमाई दोगुनी

योजना का लाभ पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर मिलेगा

किसान भाई इसका फायदा उठाने के लिए ऑनलाइन माध्यम से आवेदन किया जा सकता है। इसमें पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर चुनाव होगा। मतलब योजना के अंतर्गत जो पहले आवेदन करेगा। उसे ही योजना का फायदा मिल सकेगा। द्यान विभाग के पोर्टल (horticulture.bihar.gov.in) पर ऑनलाइन आवेदन कर आप योजना का फायदा उठा सकते हैं।

धनराशि इस प्रकार से खर्च की जाएगी

बिहार सरकार के मुताबिक, 50 फीसद अनुदान के उपरांत प्रति हेक्टेयर 50,000 रुपये के प्रोजेक्ट पर तीन किस्तों में धनराशि व्यय की जानी है। प्रथम वर्ष में 60 प्रतिशत तक धनराशि प्रदान की जाएगी। जो कि 30,000 रुपये तक होगी। एक हेक्टेयर में लगाए जाने वाले 400 पौधों का मूल्य 29,000 रुपये होगा। शेष धनराशि कृषकों के खाते में हस्तांतरित की जाएगी। द्वितीय वर्ष में 10 हजार, तीसरे वर्ष में भी 10 हजार रुपये का ही अनुदान मिलेगा। हालांकि, इस दौरान पौधों का ठीक रहना काफी जरूरी है। मुख्यमंत्री बागवानी मिशन के अंतर्गत 5 हेक्टेयर में आम का बाग लगाया जाना है। प्रति हेक्टेयर 100 पौधों पर 18 हजार रुपये खर्च किए जाऐंगे। आम की किस्मों में मल्लिका, बंबइया, मालदाह, गुलाब खास, आम्रपाली शम्मिलित हैं।
मधुमक्खी पालन के लिए दी जा रही है 75% तक सब्सिडी, जाने किसान कैसे उठा सकते हैं इसका लाभ

मधुमक्खी पालन के लिए दी जा रही है 75% तक सब्सिडी, जाने किसान कैसे उठा सकते हैं इसका लाभ

आजकल देश भर में किसान खेती के साथ-साथ कोई ना कोई वैकल्पिक इनकम सोर्स भी रखते हैं ताकि उन्हें खेती के साथ-साथ कुछ अलग से मुनाफा भी होता रहे।  ऐसा ही एक बिजनेस जिसकी तरफ लोगों का रुझान बढ़ा है वह है मधुमक्खी पालन। बहुत ही राज्य सरकारें किसानों को मधुमक्खी पालन करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं और इनमें ही एक और सरकार जो इसके लिए बहुत ही बेहतरीन कदम उठा रही है वह है बिहार सरकार.

मधुमक्खी पालन के लिए बिहार सरकार दे रही है सब्सिडी

अगर सब्सिडी की बात की जाए तो बिहार सरकार
मधुमक्खी पालन के लिए अच्छी खासी सब्सिडी किसानों को दे रही है.  अगर किसी किसान का रुझान मधुमक्खी पालन की तरह है और वह इसे एक व्यवसाय के तौर पर लेना चाहता है तो बिहार सरकार की तरफ से उसे 75% तक सब्सिडी दी जाएगी. बिहार सरकार ने मधुमक्खी पालन के लिए एक परियोजना शुरू की है, जिसे 'बिहार मधुमक्खी विकास नीति' के नाम से जाना जाता है। इस नीति के अंतर्गत, सरकार किसानों को मधुमक्खी पालन के लिए विभिन्न उपकरणों, जैसे कि मधुमक्खी बक्से, जहाज, रासायनिक उपकरण आदि की आपूर्ति करती है।उदाहरण के लिए अगर आपको यह व्यवसाय शुरू करने में ₹100000 का खर्चा पढ़ रहा था तो इसमें से ₹75000 आपको बिहार सरकार द्वारा दिए जाएंगे.

 क्या है आवेदन करने का तरीका?

आप इस परियोजना के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही तरह से रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं.  एक तो आप आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर इसके लिए आवेदन दे सकते हैं जहां पर आवेदन कर्ता को कुछ जरूरी डॉक्यूमेंट अपलोड करने की जरूरत है.  अगर आप यह आवेदन ऑनलाइन नहीं देना चाहते हैं तो आप उद्यान विभाग में जाकर भी अपना पंजीकरण करवा सकते हैं.  यहां पर भी आपको मांगे गए सभी दस्तावेज दिखाने की जरूरत है.  

केंद्र सरकार कैसे कर रही है मदद?

राज्य सरकारों के साथ-साथ केंद्र सरकार की तरफ से भी मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए कई तरह के कदम उठाए जा रहे हैं जिससे किसानों को काफी लाभ मिलने वाला है. राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन द्वारा शहद की क्वालिटी को चेक करने के लिए प्रशिक्षण प्रयोगशाला और क्षेत्रीय प्रयोगशाला बनाने की परमिशन दी गई है.  इस योजना के तहत 31 मिनी प्रशिक्षण प्रयोग चलाएं और चार क्षेत्रीय प्रयोगशालाओं को बनाने की परमिशन के लिए सरकार द्वारा दे दी गई है.  इसके अलावा जो भी शहर पालन का व्यवसाय की तरह आगे बढ़ाना चाहते हैं तो उन कृषि उद्यमियों या सभी तरह की स्टार्टअप की भी सरकार के द्वारा मदद की  जाएगी. ये भी पढ़े: मधुमक्खी पालकों के लिए आ रही है बहुत बड़ी खुशखबरी

भारत में क्या है शहद प्रोडक्शन के आंकड़े

अगर आंकड़ों की बात की जाए तो भारत देश को शहद के उत्पादन का एक हग माना गया है और यहां पर सालाना कई लाख टर्न शहद का प्रोडक्शन हो रहा है. वर्ष 2021-22 के आंकड़ों को ही देखें तो देश में इस समय 1,33,000 मीट्रिक टन (एमटी) शहद का उत्पादन हो रहा है. इसके अलावा भारत में उत्पादित किया हुआ शहद विश्व के कई देशों में भी निर्यात किया जाता है.

क्या है मधुमक्खी पालन के मुख्य लाभ?

मधुमक्खी पालन के कुछ मुख्य लाभ हैं:

अतिरिक्त आय: मधुमक्खी पालन से किसान अतिरिक्त आय कमा सकते हैं। मधुमक्खी से निर्मित शहद, मधुमक्खी की चारा और मधुमक्खी की बीज से कमाई होती है। स्थान संरक्षण: मधुमक्खी पालन एक स्थान संरक्षण व्यवसाय है। मधुमक्खी के बीज से पौधे उगाए जाते हैं जो वनों के बीच रखे जा सकते हैं तथा वनों को संभाला जा सकता है। पर्यावरण के लिए फायदेमंद: मधुमक्खी पालन पर्यावरण के लिए फायदेमंद है। मधुमक्खी नेक्टार उत्पादन करती है जो न केवल शहद के रूप में उपयोग किया जाता है बल्कि भी नेक्टार जैसी जड़ी बूटियों और औषधि के उत्पादन में भी उपयोग किया जाता है। जीवन की गुणवत्ता में सुधार: मधुमक्खी नेक्टार से उत्पन्न शहद एक स्वस्थ और गुणवत्ता वाला प्राकृतिक खाद है। इससे कृषि उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ती है और यह खाद पौधों के विकास के लिए भी यह उपयोगी है.
सोनालिका ट्रैक्टर्स: विश्व ट्रैक्टर बाजार में भारत की विकास गाथा का नेतृत्व कर रहा है

सोनालिका ट्रैक्टर्स: विश्व ट्रैक्टर बाजार में भारत की विकास गाथा का नेतृत्व कर रहा है

भारत वर्तमान में दुनिया का सबसे बड़ा ट्रैक्टर बाजार है जहां दुनिया में बिकने वाले 40% से अधिक ट्रैक्टरों की खपत होती है। विश्व ट्रैक्टर बाजार में भारत की विकास गाथा का नेतृत्व करते हुए, सोनालिका ट्रैक्टर वर्तमान में भारत से शीर्ष ट्रैक्टर निर्यात ब्रांड है और 28.2% बाजार हिस्सेदारी (TMA FY'23) रखता है। वित्त वर्ष 24 की पहली छमाही में यह बढ़कर 36% हो गया है, जिसका मतलब है कि भारत से निर्यात किया जाने वाला हर तीसरा ट्रैक्टर सोनालिका का है। विश्व स्तर पर, यह वर्तमान में 5वीं सबसे बड़ी ट्रैक्टर निर्माता है और भारतीय बाजार में भी मजबूती से नंबर 3 की स्थिति रखती है। भारत में सर्वश्रेष्ठ ट्रैक्टर निर्माता होने के नाते, सोनालिका किसानों के विकास के लिए मजबूत गुणवत्ता वाले उत्पादों को डिजाइन करने पर ध्यान केंद्रित करती है और अमूल्य ग्राहक प्रतिक्रिया के आधार पर लगन से काम करती है। कंपनी होशियारपुर में अपने विश्व के नंबर 1 ट्रैक्टर विनिर्माण संयंत्र में 20-120 एचपी में सर्वश्रेष्ठ ट्रैक्टर रेंज का निर्माण करती है, जो मजबूत गुणवत्ता वाले उत्पाद सुनिश्चित करने के लिए लगभग हर चीज को घर में ही डिजाइन करता है। ब्रांड किसानों की संतुष्टि के लिए प्रतिबद्ध है। क्योंकि यह 5 साल की ट्रैक्टर वारंटी का भारी शुल्क आश्वासन प्रदान करता है, जो किसान समुदाय के उत्थान के लिए इसके ठोस समर्थन को दर्शाता है।

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सोनालिका ने वित्त वर्ष’23 के 8 माह में 1 लाख ट्रैक्टर बेचे और 11.2% YTD वृद्धि के साथ उद्योग की वृद्धि (8.8% अनुमानित) को पीछे छोड़ नया रिकॉर्ड बना कीर्तिमान स्थापित किया है।
अपने किसान केंद्रित दृष्टिकोण से प्रेरित होकर, कंपनी अपनी क्षेत्रीय मिट्टी में किसानों की जरूरतों को समझती है और 20-120 एचपी रेंज और 70+ उपकरणों में 1,000+ ट्रैक्टर बनाती है। कंपनी भारत में सर्वोत्तम ट्रैक्टर बनाकर नवीन कृषि समाधान विकसित करती रहती है, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं। सोनालिका टाइगर और सोनालिका सिकंदर DLX: ये प्रीमियम ट्रैक्टर HDM+ इंजन, 5G हाइड्रोलिक्स और 12F+12R शटल तकनीक मल्टी-स्पीड ट्रांसमिशन जैसी अत्याधुनिक तकनीकों से लैस हैं। जहां टाइगर सीरीज भारतीय किसानों की समृद्धि के लिए 'यूरोप में डिजाइन' की गई है, वहीं सिकंदर डीएलएक्स सीरीज '10 डीलक्स फीचर्स' से लैस है जो किसानों के लिए एक प्रगतिशील भविष्य सुनिश्चित करती है।

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ITL ने सोनालिका ट्रैक्टर्स की नई सीरीज लॉन्च करदी है सोनालिका सीआरडी तकनीक - सोनालिका की उन्नत सीआरडीएस तकनीक ट्रेम स्टेज IV उत्सर्जन मानदंडों का अनुपालन करती है, और 55-75 एचपी रेंज में टाइगर श्रृंखला के तहत उपलब्ध है। ये ट्रैक्टर किसानों के लिए ईंधन दक्षता और बिजली की जरूरतों को अधिकतम करने के लिए 3 अद्वितीय मोड - 'पावर मोड, इको मोड और सामान्य मोड' प्रदान करते हैं, जो उन्हें टिकाऊ खेती के लिए उपयुक्त बनाते हैं। राज्य-विशिष्ट ट्रैक्टर: राज्यों की मिट्टी के पैटर्न और फसल विशिष्ट आवश्यकताओं के विश्लेषण से प्रेरित, सोनालिका ने छत्रपति (महाराष्ट्र के लिए), महाबली (तेलंगाना के लिए) और महाराजा (राजस्थान के लिए) लॉन्च किया।

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Sonalika DI 745 III सिकंदर ट्रैक्टर घर लाए और अपनी खेती के कार्य को आसान बनाए किसानों की संतुष्टि के लिए प्रतिबद्ध होने के नाते, सोनालिका 3x2 सेवा वादे के माध्यम से बिक्री के बाद सर्वोत्तम सेवा सहायता प्रदान करता है। इस सर्विसिंग सुविधा में कंपनी शिकायत के 3 घंटे के भीतर अपने तकनीशियन को भेजती है और 2 दिनों के भीतर समस्या का पूरी तरह से समाधान हो जाता है। वर्तमान में, सोनालिका के पास 950 डीलरों, 15,000 खुदरा बिंदुओं और बेहतर सेवा नेटवर्क के साथ-साथ कुशल तकनीशियनों का एक विशाल नेटवर्क है। ताकि किसान अपने उपकरणों को तुरंत ठीक करा सकें। भारत में सर्वश्रेष्ठ ट्रैक्टर निर्माता सोनालिका ने 150 से अधिक देशों में 15 लाख से अधिक किसानों का दिल जीत लिया है। कंपनी नई तकनीकों का उपयोग करने को लेकर उत्साहित है और विश्व स्तर पर कृषि समृद्धि लाने के लिए अपने ट्रैक्टरों को अनुकूलित करना जारी रखती है।