कृषि क्षेत्र को प्रभावित करेगा न्यू कोविड वेरियंट

कोराना के न्यू वेरियंट को लेकर देश में भी सतर्कता की डुगडुगी बजने लगी है। फिलहाल भले ही इसका कोई असर न दिखे लेकिन यह कृषि क्षेत्र को भी अच्छा खासा प्रभावित करेगा। हाल ही में यूरिया जैसे उर्वरक की कमी के पीछे भी इसके असर को कम करके नहीं देखा जा सकता। यदि भविष्य में जरा भी हालात बिगडे तो फसलों की बेकदरी होने से नहीं बच सकती। देश में खाद की कुल जरूरत का आधा हिस्सा अकेला यूरिया का है। बाकी सभी खादों के सापेक्ष  देश में सालाना करीब 320 लाख टन यूरिया की खपता होती है। इसमेंं तकरीबन 60 लाख टन यूरिया विदेशों से आयात किया जाता है।

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उर्वरक उपयोग की प्रवृत्ति लागातार बढ़ रही है। किसान इन पर पूरी तरह निर्भर होते जा रहे हैं। जमीन में कंपोस्ट खादों की रिक्तता से खेती में रासायनिक खादों के बैलेंस और फसलों द्वारा उसके अवशोषण में भी गिरावट दर्ज की जा रही है। यानी कार्बनिक खादों के अभाव में रासायनिक खादें जितनी मात्रा में डाली जा रही हैं उनके काफी बड़े अंश का खेती में दुरुपयोग हो रहा है। फसल उन्हें पूरी तरह से ले नहीं पातीं। खादों को पौधों की जड़ों तक पहुंचाने वाले वैक्टीरिया जमीन में लागातार घट रहे है। जमीन रासायनिक खादों की आदी हो गई है और अब किसानों को पर्याप्त खाद भी मिल नहीं पा रही है। इस तरह की प्रतिकूलताओं के बाद भी किसानों को इस बात की चिंता सताने लगी है कि आगामी कोविड न्यू वेरियंट के प्रभाव से उनकी फसलों का बाजार प्रभावित न हो जाए। सरकार को अभी से किसानों की आगामी सीजन की फसलों के उचित मूल्य की दिशा में कमद उठाने होंगे। एक तरफ देश एमएसएपी पर गारंटी वाले कानून की बहस में उलझा है दूसरी तरफ किसान कई तरह की दिक्कतों में उलझे हैं। किसानों की उलझन आजादी के प्रारंभ से अभी तक कम नहीं हुई हैं। वह ज्यादातर ऐसी ही रहती हैं। यानी जैसे खेती भगवान भरोसे रहती है वैसे ही किसान भगवान भरोसे हैं।