Ad

कवक

इन रोगों से बचाऐं किसान अपनी गेंहू की फसल

इन रोगों से बचाऐं किसान अपनी गेंहू की फसल

मौसमिक परिवर्तन के चलते गेहूं की खड़ी फसल में लगने वाले कीट एवं बीमारियां काफी अधिक परेशान कर सकती हैं। किसानों को समुचित समय पर सही कदम उठाकर इससे निपटें नहीं तो पूरी फसल बेकार हो सकती है।

वर्तमान में गेहूं की फसल खेतों में लगी हुई है। मौसम में निरंतर परिवर्तन देखने को मिल रहा है। कभी बारिश तो कभी शीतलहर का कहर जारी है, इसलिए मौसम में बदलाव की वजह से गेहूं की खड़ी फसल में लगने वाले कीट और बीमारियां काफी समस्या खड़ी कर सकती हैं। किसान भाई वक्त पर सही कदम उठाकर इससे निपटें वर्ना पूरी फसल बेकार हो सकती है। गेंहू में एक तरह की बामारी नहीं बल्कि विभिन्न तरह की बामारियां लगती हैं। किसानों को सुझाव दिया जाता है, कि अपनी फसल की नियमित तौर पर देखरेख व निगरानी करें।

माहू या लाही

माहू या लाही कीट काले, हरे, भूरे रंग के पंखयुक्त एवं पंखविहीन होते हैं। इसके शिशु एवं वयस्क पत्तियों, फूलों तथा बालियों से रस चूसते हैं। इसकी वजह से फसल को काफी ज्यादा नुकसान होता है और फसल बर्बाद हो जाती है। बतादें, कि इस कीट के प्रकोप से फसल को बचाने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा दी गई सलाहें।

ये भी पढ़ें: जानिए, पीली सरसों (Mustard farming) की खेती कैसे करें?

फसल की समय पर बुआई करें।

  • लेडी बर्ड विटिल की संख्या पर्याप्त होने पर कीटनाशी का व्यवहार नहीं करें।
  • खेत में पीला फंदा या पीले रंग के टिन के चदरे पर चिपचिपा पदार्थ लगाकर लकड़ी के सहारे खेत में खड़ा कर दें। उड़ते लाही इसमें चिपक जाएंगे।
  • थायोमेथॉक्साम 25 प्रतिशत डब्ल्यूजी का 50 ग्राम प्रति हेक्टेयर या क्विनलफोस 25 प्रतिशत ईसी का 2 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

हरदा रोग

वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस मौसम में वर्षा के बाद वायुमंडल का तापमान गिरने से इस रोग के आक्रमण एवं प्रसार बढ़ने की आशंका ज्यादा हो जाती है। गेहूं के पौधे में भूरे रंग एवं पीले रंग के धब्बे पत्तियों और तनों पर पाए जाते हैं। इस रोग के लिए अनुकूल वातावरण बनते ही सुरक्षात्मक उपाय करना चाहिए।

बुआई के समय रोग रोधी किस्मों का चयन करें।

बुआई के पहले कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का 2 ग्राम या जैविक फफूंदनाशी 5 ग्राम से प्रति किलो ग्राम बीज का बीजोपचार अवश्य करें।

ये भी पढ़ें: सरसों की फसल के रोग और उनकी रोकथाम के उपाय

खड़ी फसल में फफूंद के उपयुक्त वातावरण बनते ही मैंकोजेब 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का 2 किलो ग्राम, प्रोपिकोनाजोल 25 प्रतिशत ईसी का 500 मिली प्रति हेक्टेयर या टेबुकोनाजोल ईसी का 1 मिली प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।

अल्टरनेरिया ब्लाईट

अल्टरनेरिया ब्लाईट रोग के लगने पर पत्तियों पर धब्बे बनते हैं, जो बाद में पीला पड़कर किनारों को झुलसा देते हैं। इस रोग के नियंत्रण के लिए मैकोजेब 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का 2 किलो ग्राम या जिनेव 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का 2 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

कलिका रोग

कलिका रोग में बालियों में दाने के स्थान पर फफूंद का काला धूल भर जाता है। फफूंद के बीजाणु हवा में झड़ने से स्वस्थ बाली भी आक्रांत हो जाती है। यह अन्तः बीज जनित रोग है। इस रोग से बचाव के लिए किसान भाई इन बातों का ध्यान रखें।

ये भी पढ़ें: गेहूं का उत्पादन करने वाले किसान भाई इन रोगों के बारे में ज़रूर रहें जागरूक

रोग मुक्त बीज की बुआई करे।

  • कार्बेन्डाजिंग 50 घुलनशील चूर्ण का 2 ग्राम प्रति किलोग्राग की दर से बीजोपचार कर बोआई करें। 
  • दाने सहित आक्रान्त बाली को सावधानीपूर्वक प्लास्टिक के थैले से ढक कर काटने के बाद नष्ट कर दें। 
  • रोग ग्रस्त खेत की उपज को बीज के रूप में उपयोग न करें। 

बिहार सरकार ने किसानों की सुविधा के लिए 24 घंटे उपलब्ध रहने वाला कॉल सेंटर स्थापित कर रखा है। यहां टॉल फ्री नंबर 15545 या 18003456268 से संपर्क कर किसान अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त कर सकते हैं।

मशरूम के इस मॉडल से खड़ा किया 50 लाख का व्यवसाय

मशरूम के इस मॉडल से खड़ा किया 50 लाख का व्यवसाय

आपने कई बार अखबारों और विज्ञापनों में पढ़ा होगा कि स्वास्थ्य के लिए बेहद सतर्क लोग कुकुरमुत्ता (कवक) यानि मशरूम (Mushroom) को निरंतर इस्तेमाल में लेते हैं। ऐसे ही अखबारों में छपी हेड-लाइन से प्रभावित होकर हरियाणा के 18 वर्षीय किसान विकास वर्मा (Vikas Verma) ने भी मशरूम की खेती करने के बारे में विचार बनाया। लेकिन शुरुआत में कृषि में काम आ रही आधुनिक विधियों का कोई ज्ञान ना होने की वजह से, पहले ही साल कम उम्र में ही विकास को 14 लाख रुपए का नुकसान झेलना पड़ा। इतना बड़ा नुकसान किसी भी युवा किसान का हिम्मत तोड़ने के लिये काफी साबित होता है, लेकिन विकास वर्मा ने ऐसी परिस्थितियों में अपने खेत और मशरूम की खेती उगाने की प्रक्रिया में कुछ संस्थागत बदलाव किए और उसी की बदौलत आज वह हर साल 50 लाख रुपए तक मुनाफा कमा पा रहे हैं। विकास बताते हैं कि आज उनके द्वारा अपनाई जा रही तकनीक को, उनके गांव एवं आसपास के जिलों में कई किसान भाई सीखने की कोशिश कर रहे हैं और कुछ लोग तो काफी सफल भी हो गए हैं। एक किसान परिवार में जन्मे विकास, बारहवीं कक्षा के बाद अपने दादा और पिता की तरह परंपरागत कृषि प्रणाली से उगाने वाले गेहूं, बाजरा और दूसरे धान की फसल से अलग हटकर कुछ करने की सोच रखते थे। इसी सोच पर काम करते हुए इन्होंने अपने परिवार वालों को उच्च शिक्षा छोड़कर कृषि में पूरा ध्यान लगाने की बात बताई, शुरुआत में कुछ नोकझोंक के बाद परिवार वाले विकास के समर्थन के लिए राजी हो गए।


ये भी पढ़ें: आप खेती में स्टार्टअप शुरू करना चाहते है, तो सरकार आपकी करेगी मदद
जब अपनी पढ़ाई के दौरान ही विकास अपने गांव से चंडीगढ़ जा रहे थे, तभी रास्ते में ही सोनीपत के एक क्षेत्र में इन्होंने मशरूम की खेती होती देखी और जब पूछताछ करने की कोशिश की तो पता चला कि वह किसान मशरूम की खेती से काफी अच्छा मुनाफा कमा पा रहा है। लेकिन, विकास को जानकर आश्चर्य हुआ कि आखिर क्यों दूसरे कई किसान इस क्षेत्र में मशरूम नहीं ऊगा रहे हैं, जब की एक किसान इतना मुनाफा कमा पा रहा है। इस सवाल का जवाब विकास को खुद ही मिल गया जब उन्होंने पहले ही साल में परंपरागत रूप से मशरूम की खेती की और उन्हें बड़ा नुकसान झेलने को मिला। साल 2014 में राज्य सरकार के कृषि विभाग के अंतर्गत कार्य करने वाले कृषि विज्ञान केंद्र से ट्रेनिंग लेकर, विकास भी मशरूम की खेती के उत्पादन में हाथ आजमाने की तैयारी कर चुके थे। आज विकास 'कंपनी कानून 2013' के तहत रजिस्टर्ड 'वेदांता मशरूम प्राइवेट लिमिटेड' (Vedanta Mushrooms (opc) Private Limited) नाम की एक सफल कंपनी भी चलाते है, जोकि मशरूम से तैयार होने वाले उत्पादों को सही दामों में लोगों तक पहुंचाने में सफल रही है। विकास ने बताया कि कृषि कैरियर के शुरुआती दिनों में, घर में जमा पैसों से और बैंक से लोन लेकर उन्होंने 14 लाख रुपए की राशि इकट्ठा की, इस पैसे की मदद से उन्होंने मशरूम उगाने के लिए इस्तेमाल होने वाले बैग और एक यूनिट की स्थापना की, लेकिन जल्दबाजी में किए गए प्रयासों से विकास को बुरी तरह धक्का लगा। जब विकास ने अपनी खेती की विफलता के बारे में पूरा रिसर्च किया, तो पता चला कि उनके द्वारा इस्तेमाल किया गया कंपोस्ट खाद मशरूम की खेती के लिए बिल्कुल भी लाभदायक नहीं रहा और इसी कंपोस्ट खाद की वजह से विकास को इतना अधिक नुकसान उठाना पड़ा। जब विकास ने अपने खेत में जैसे-तैसे तैयार हुई कुछ मशरूम को बाजार में बेचने की कोशिश की, तब भी उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। सौ रुपये प्रति किलो की मांग रखने वाले विकास को कोल्ड स्टोरेज फैसिलिटी ना होने की वजह से, अपनी मेहनत से तैयार की गई फसल को औने पौने दामों में पचास रुपए प्रति किलो की दर से बेचना पड़ा।


ये भी पढ़ें: एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाने के लिए मोदी सरकार ने दिए 10 हजार करोड़
अपनी गलतियों से सीख कर उन्होंने कृषि विभाग के कुछ वैज्ञानिकों की मदद ली और मशरूम की खेती से कई दूसरे प्रकार के वैल्यूएटेड उत्पाद बनाने की शुरुआत की। दूसरे सीजन के शुरुआती दिनों में विकास ने खेत से तैयार मशरूम को पहले सुखाकर उसका पाउडर बनाया और फिर उससे कई प्रकार के स्वास्थ्यवर्धक पेय-पदार्थ (Health drinks), बिस्कुट और पापड़ जैसे मार्केट में बिकने वाले प्रोडक्ट तैयार किए। विकास बताते है कि मशरूम से तैयार की गई हेल्थ ड्रिंक टीबी, थायराइड और ब्लड प्रेशर से जूझ रहे मरीजों के लिए काफी लाभदायक साबित हुआ, इसी वजह से जहां वह 100 रुपए प्रतिकिलो में मशरूम बेचने को लेकर संघर्ष कर रहे थे, वही उनके द्वारा तैयार उत्पाद एक हजार रुपए प्रति किलो की दर से बाजार में आसानी से बिक रहे थे। इसी एक साल में विकास ने कुल 35 लाख रुपए का मुनाफा कमाया। विकास ने बताया कि पहले उन्होंने पंजाब के लुधियाना शहर में कई बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट जोड़ा और आज वह दिल्ली में रहने वाले मशरुम प्रेमियों की मांग को भी पूरा कर रहे हैं।


ये भी पढ़ें: भारत में 2 बिलियन डॉलर इन्वेस्ट करेगा UAE, जानिये इंटीग्रेटेड फूड पार्क के बारे में
एक बार खुद को सफलता मिलने के बाद विकास ने अपने ज्ञान को दूसरे किसानों तक पहुंचाने के लिए भी काफी प्रयास किए। विकास वर्मा का मानना है कि आप केवल तभी विचारों से बड़े और अच्छे व्यक्ति बन सकते है, यदि आप अपने समाज के बुरे समय में भी उनके साथ खड़े रहे और उन्हें नई वैज्ञानिक विधियों से मदद करने की सोच रखें। पिछले 6 सालों में कुल 15000 से ज्यादा किसानों को मशरूम उत्पादन की नई तकनीक के माध्यम से फायदा पहुंचा चुके विकास बताते हैं कि, वर्तमान में वह कई खाद्य प्रसंस्करण संस्थाओं (Food processing organisation) में लगभग 3000 किसानों को प्रत्यक्ष रूप से मशरूम उगाने की ट्रेनिंग दे रहे है। हालांकि विकास इस दुविधा को भी समझते हैं कि उन्ही की मेहनत की बदौलत आने वाले समय में मशरूम का उत्पादन बढ़ने से किसानों को होने वाले मुनाफे में कमी आ सकती है, इसीलिए वह भारत के दूसरे राज्यों और अलग-अलग हिस्सों में मशरूम से तैयार उत्पादों के लिए नए मार्केट की खोज की शुरुआत भी कर चुके है।


ये भी पढ़ें: किसान रेल योजना (Kisan Rail info in Hindi)
पिछले साल 2021 में ही उन्होंने अपना कस्टमर बेस बनाना भी शुरू किया है और अब स्वास्थ्य क्षेत्र में काम कर रही कई बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियां विकास से तैयार उत्पाद सीधे ही खरीद कर विदेशों में बेच रही है। अपने पुराने दिनों को याद करते हुए विकास बताते है कि शुरुआत में उनके पास किसी प्रकार की कोई वित्तीय सहायता नहीं थी, लेकिन फिर भी लोन लेकर उन्होंने कृषि क्षेत्र में कुछ नया करने की सोच रखते हुए एक बार विफलता मिलने के बाद भी आज वह अपने आसपास के क्षेत्र के सबसे सफलतम किसानों में गिने जाते है।


ये भी पढ़ें: भारत सरकार द्वारा लागू की गई किसानों के लिए महत्वपूर्ण योजनाएं (Important Agricultural schemes for farmers implemented by Government of India in Hindi)
आशा करते हैं कि हमारे किसान भाइयों को विकास वर्मा जैसे प्रगतिशील किसानों की कहानी सुनकर, कृषि से जुड़ी नई तकनीकों को इस्तेमाल करने की प्रेरणा मिली होगी और भविष्य में आप भी ऐसे ही प्रगतिशील किसान बनकर, स्वास्थ्यवर्धक लोगों की मांग को पूरा करने में अपना पर्याप्त सहयोग प्रदान करने के अलावा, अच्छा मुनाफा कमाने में भी सफल हो पाएंगे।
बिहार में मशरूम की खेती कर महिलाएं हजारों कमा हो रही हैं आत्मनिर्भर

बिहार में मशरूम की खेती कर महिलाएं हजारों कमा हो रही हैं आत्मनिर्भर

बिहार राज्य के डॉक्टर दयाराम (Doctor Dayaram) ने लाखों महिलाओं एवं किसानों के जीवन को मशरूम या कुकुरमुत्ता (कवक; Mushroom) की खेती की बेहतर जानकारी देके उनकी आजीविका के लिए आय का स्त्रोत निर्मित किया है। कोरोना जैसी महामारी के चलते लोगों की आजीविका खतरे में आ गयी थी, इस समस्या को देखते हुए डॉक्टर दयाराम जी ने किसानों को मशरूम करके आय करने के लिए प्रेरित किया एवं भरपूर उनकी भरपूर सहायता भी की। डॉक्टर दयाराम जी को बिहार के मशरूम मैन (Mushroom Man) के नाम से भी जाना जाता है। इनके मशरूम की खेती के बारे में पूर्ण जानकारी एवं सहायता करने की वजह से सभी किसान उनको बेहद सम्मान और प्रेम के भाव से देखते हैं। डॉक्टर दायाराम जी द्वारा गरीबों की जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए मशरूम को ही उनकी आजीविका का साधन बना दिया है। दयाराम जी की मेहनत एवं लगन के जरिये आज हजारों गरीब परिवारों को आय का स्त्रोत प्राप्त हो पाया है, साथ ही उनकी आजीविका में भी बेहद सुधार हुआ है। डॉक्टर दयाराम का कहना है कि उनके इस सराहनीय प्रयास से भूमिहीन मजदूर भी अपनी झुग्गी झोपडी में मशरूम उत्पादित कर, बिना किसी के आश्रित हुए अपना जीवन यापन कर सकते हैं।


ये भी पढ़ें: बिहार में मशरूम की खेती करने पर सरकार दे रही 90 फीसदी अनुदान

मशरूम की खेती को लेकर डॉक्टर दयाराम का क्या कहना है ?

डॉक्टर दयाराम जी ने बताया है कि कोरोना वायरस महामारी के चलते पूरे देश की ही अर्थव्यवस्था खतरे में आ गयी थी। सबसे ज्यादा प्रभावित बिहार के लोग हुए थे, इसका कारण यह है कि बिहार में औघोगिक इकाईओं की कमी है। जिसके चलते बिहार के लोगों को अपनी आजीविका के लिए अन्य प्रदेशों में जाना पड़ता है। कोरोना महामारी की वजह से हजारों मजदूरों का रोजगार समाप्त हो गया था,और उनको पुनः अपने राज्य में वापस आना पड़ा। ऐसी स्तिथि में मजदूरों का जीवन यापन बेहद कठिन हो गया था। इसलिए दयाराम जी ने मजदूरों को मशरूम की खेती के फायदे एवं उसे करने की पूरी विधि किसानों एवं मजदूरों से साझा की जिसको किसान व मजदूरों ने अपनाया और मशरूम उगाना शुरू कर दिया।

सर्वप्रथम यहां से की थी मशरूम की खेती

डॉक्टर दयाराम जी ने सर्वप्रथम समस्तीपुर जनपद के एक गांव में ईंट- भट्ठे पर कार्य करने वाले मजदूरों को मशरूम की खेती करने के लिए प्रेरित किया गया था, जिसके लिए दयाराम जी ने मजदूरों को अच्छी तरह खेती की विधि एवं बीज भी प्रदान किये। मशरूम की खेती मजदूरों के लिए एक नयी अजीब बात थी। विचित्र बात यह है की मजदूरों द्वारा ओएस्टर का थैला भी उनके पशुओं के रहने वाले स्थान पर ही लटकाया जाता था, जिसकी पूर्ण विधि महिलाओं ने भी जानी और आज महिलायें मशरूम की खेती कर आत्मनिर्भरता की राह पर चल रही हैं।


ये भी पढ़ें: मशरूम के इस मॉडल से खड़ा किया 50 लाख का व्यवसाय

कितना कमा सकते हैं मशरूम की खेती से ?

मशरूम की ओएस्टर वैरायटी की उपज लगभग न्यूनतम २५ और अधिकतम ४० डिग्री पर आसानी से होती है, जिसकी सहायता से एक परिवार प्रति माह १०-२० बैग मशरूम बेचकर ४ से ५ हजार रूपये की आय कर अपना जीवन यापन कर रहा है। इसकी पैदावार में लगभग २० से २५ दिन लग जाते हैं। समस्तीपुर से शंकर का कहना है जो कि खुद एक मशरूम के किसान है, पहले उनको मशरूम की खेती के बारे में कोई अंदाजा नहीं था। डॉक्टर दयाराम जी द्वारा किये गए प्रयास और अथक मेहनत से आज उनके परिवार की महिलाएं भी मशरूम उगा रही हैं, साथ ही आसपास के सभी लोग भी मशरूम उगाकर फायदा कमा रहे हैं।
मशरूम उत्पादन यूनिट के लिए यह राज्य दे रहा है 40% तक सब्सिडी

मशरूम उत्पादन यूनिट के लिए यह राज्य दे रहा है 40% तक सब्सिडी

आजकल भारत में अंतरवर्तीय खेती बहुत ज्यादा चलन में है। पारंपरिक फसलों के साथ-साथ किसान सब्जी, फल, औषधि और मसालों की भी खेती करने लगे हैं। इससे किसानों को अतिरिक्त आमदनी तो मिल ही जाती है। पिछले कुछ समय से मशरूम भी एक ऐसी ही फसल है जो प्रमुख बागवानी फसल बनकर सामने आई है। बिहार जैसे कई राज्य मशरूम की खेती करते हुए अच्छा-खासा मुनाफा कमा रहे हैं। दूसरे राज्य भी आज बिहार से प्रेरित होकर मशरूम की खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। देश-विदेश में सुपरफूड के तौर पर इस फंगी/कवक की मांग बढ़ रही है। बिहार की तर्ज पर ही राजस्थान सरकार भी मशरूम की खेती को बढ़ावा दे रही है। राज्य में किसानों को मशरूम यूनिट लगाने के लिए सब्सिडी प्रदान कर रही है। सरकार ने किसानों से इसके लिए आवेदन भी मांगे हैं।

कैसे ले सकते हैं अनुदान का लाभ

मशरूम उत्पादन यूनिट लगाने के लिए राजस्थान की सरकार 40% सब्सिडी पर 8 लाख रुपये का क्रेडिट लिंक बैक एंडेड अनुदान देती है। अगर आप 2000000 रुपए तक की लागत में मशरूम का उत्पादन कर रहे हैं। तो इसके लिए 40% की सब्सिडी सरकार द्वारा आप को दी जाएगी। इसके लिए सरकार 8 लाख रुपये प्रति इकाई क्रेडिट लिंक बैक एंडिडयड अनुदान देती है। ये भी देखें: बिहार में मशरूम की खेती करने पर सरकार दे रही 90 फीसदी अनुदान वहीं 15 लाख रुपये तक की लागत वाली इकाई के लिए भी 40% अनुदान पर 6 लाख रुपये का क्रेडिट लिंक बैक एंडिड अनुदान दिया जाता है।

किन किसानों को मिलेगा लाभ

मशरूम एक बागवानी फसल है और इसी के तहत राजस्थान सरकार राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत इसके लिए अनुदान दे रही है। लेकिन राजस्थान सरकार ने अनुदान देने के लिए कुछ जिले चयनित किए हैं। जो इस प्रकार से हैं। अजमेर, अलवर, बांसवाड़ा, बाड़मेर, भीलवाड़ा, बूंदी, चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर, श्रीगंगानगर, जयपुर, जैसलमेर, जालौर, झालावार, झुंझुनू, जोधपुर, कोटा, नागौर, पाली, सिरोही, सवाई माधोपुर, टोंक, उदयपुर, बांरा और करौली के किसान या किसानों के समूह को ही अनुदान के लिए शामिल किया गया है।

कैसे कर सकते हैं आवेदन

अगर आप भी राजस्थान से हैं और मशरूम उत्पादन यूनिट लगाने के बारे में सोच रहे हैं। तो सरकार की तरफ से दी जा रही क्रेडिट लिंक बैंक एंडेड सब्सिडी योजना का लाभ आप ले सकते हैं। इस स्कीम में आवेदन करने से पहले अपने जिले के कृषि विभाग या कृषि विज्ञान केंद्र के कार्यालय में संपर्क कर सकते हैं। यहां पर कार्यालय में जाकर ही आप इस योजना से जुड़ी हुई सभी तरह की जानकारी ले सकते हैं। जानकारी के बाद कृषि विभाग में ही आप ऑफलाइन अपना फॉर्म जमा करवा सकते हैं या फिर किसी नजदीकी मित्र केंद्र या सीएससी सेंटर पर जाकर भी निशुल्क आवेदन कर सकते हैं। ध्यान रखें कि किसानों को आवेदन के साथ कुछ डोक्यूमेंट भी अटैच करने होंगे। जिसमें आधार कार्ड, बैंक पासबुक, पैन कार्ड, किसान का शपथ पत्र या लोन की कॉपी, जनाधार या भामाशाह कार्ड की कॉपी और अपनी पूरी प्रोजेक्ट रिपोर्ट भी सब्मिट करनी होगी।