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ग्रीनहाउस

ग्रीनहाउस टेक्नोलॉजी में रोजगार की अपार संभावनाएं

ग्रीनहाउस टेक्नोलॉजी में रोजगार की अपार संभावनाएं

संरक्षित खेती उसे कहते हैं जो प्रतिकूल परिस्थितियों में की जाए। दूसरे अर्थों में इस तरह से समझा जा सकता है कि बेमौसमी सब्जियों का उत्पादन वह भी कंट्रोल कंडीशन में कृत्रिम माहौल तैयार करके किया जाता है। 

ग्रीन हाउस, पॉलीहाउस, नेट हाउस आदि तकनीकी इसी श्रेणी में आती हैं। इस तकनीकी के कई फायदे हैं।पौधों के लिए अनुकूल सूक्ष्म जलवायु परिस्थितियों को यहां प्रदान की जा सकती हैं। 

किसी भी मौसम में किसी भी सब्जी को उगाया जा सकता है। कम क्षेत्रफल में गुणवत्ता युक्त बेहतर उत्पादन पाया जा सकता है। कम पानी में पर्याप्त सिंचाई की जा सकती है। 

उच्च मूल्य वाली बेमौसमी फसलों की खेती के लिए बेहद उपयुक्त होता है। नासी जीवा और रोगों की रोकथाम में सहायक होता है। अगेती नर्सरी तैयार करके पौध भेजी जा सकती है।

हवा वर्षा बर्फ ठंड पक्षियों एवं ओलावृष्टि से फसल बची रहती है। शिक्षित युवाओं के लिए स्वरोजगार के अवसर प्रदान करता है।

ग्रीन हाउस प्रौद्योगिकी की क्षमता

ग्रीनहाउस टेक्नोलॉजी में अपार क्षमताएं विद्यमान हैं। इसे प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों में भी फसल उत्पादन किया जा सकता है। ग्रीन हाउस में संकर बीजों, सजावटी पौधों और सगंधीय पौधों का निर्माण किया जा सकता है। 

यह प्रौद्योगिकी अनुवांशिक इंजीनियरिंग के लिए उपयुक्त है। दुर्लभ एवं विदेशी औषधीय एवं सजावटी प्रजातियों की खेती इसमें आसानी से की जा सकती है। 

उच्च मूल्य कम, आयतन वाली बागवानी फसलों को यहां तैयार किया जा सकता है। शहरों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले ताजे फल सब्जियां एवं फूलों की आपूर्ति इसके माध्यम से संभव है।

ग्रीन हाउस की किस्में

भारतीय जलवायु परिस्थितियों को ध्यान में रखकर सब्सिडी के लिए भारत सरकार की राष्ट्रीय बागवानी मिशन आदि योजनाओं में दो प्रकार के ग्रीन हाउस पर विचार किया गया है और इनमें प्राकृतिक रूप से हवादार पंखा तथा पेड कूलिंग प्रणाली के साथ ग्रीनहाउस शामिल हैं। साथ ही लकड़ी और बांस की संरचना से बने सस्ते ग्रीन हाउस के लिए भी सब्सिडी का प्रावधान किया गया है।

प्राकृतिक रूप से हवादार ग्रीन हाउस

इस प्रकार के ग्रीनहाउस इन इलाकों के लिए ज्यादा उपयुक्त है जहां का तापमान 15 डिग्री सेल्सियस से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है । 

ग्रीन हाउस संरचना में हवा संचालन के लिए पर्याप्त संख्या में हवा आने वाले दरवाजे व खिड़कियों को लगाया जाता है । जलवायु परिस्थितियों पर निर्भर करते हुए फर्श क्षेत्रफल के हिसाब से 70% तक हवा संचरण का प्रावधान होना चाहिए।

ग्रीन हाउस के अंदर साइड वाली दीवार में सुराख कर अथवा छत में सुराख अथवा हवा गर्म एवं ठंडी के रास्ते बनाए जाते हैं। 

गर्मियों के महीनों में इस प्रकार से हवा के रास्तों को रखा जाए ताकि पर्याप्त व संचालन सुनिश्चित हो और सर्दियों में इन हाउस को पूरी तरह से हवा रोधी रखना चाहिए।

पंखा एवं पैड कूलिंग वाले ग्रीनहाउस

इस प्रकार के ग्रीनहाउस गर्म शुष्क जलवायु परिस्थितियों उत्तरी मैदानी इलाकों के लिए उपयुक्त होते हैं जहां तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है। 

यह प्रणाली उस सिद्धांत पर कार्य करती है जिसमें जल का वाष्पन होता है और आसपास के परिवेश से ताप का अवशोषण होता है। 

दीवार के एक ओर से लगाए गए नमी वाले पैड़ के माध्यम से उसमें ठंडी हवा को भेजकर ऐसा करना संभव होता है। जहां दीवार के विपरीत सिरों पर लगे अक्षीय पंखों द्वारा गर्म हवा गो ग्रीन हाउस से बाहर निकाला जाता है। 

अत्यधिक तापमान के कारण पौधों की आकृति विज्ञान तथा शरीर क्रिया विज्ञान प्रक्रियाओं को अनेक प्रकार का नुकसान होता है । 

जैसे फूल का रंग बिगड़ना, पत्तियों का झुलसना, घटिया फल गुणवत्ता, अत्यधिक वाष्पोत्सर्जन पौधों की जीवन अवधि छोटी होना जैसी दिक्कतें पैदा हो जाती हैं। हाउस के अंदर का तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से 28 डिग्री सेल्सियस बनाए रखना होता है।

पंखा एवं पैड कूलिंग प्रणाली का ऑपरेशन

पंखा एवं पैड प्रणाली को थर्मोस्टेट द्वारा नियंत्रित किया जाता है थर्मोस्टेट से नियंत्रित पंखे बाहर की हवा को ग्रीन हाउस के अंदर छोड़ते हैं और अंदर की हवा को बाहर निकालते हैं प्रति मिनट ग्रीनहाउस आयतन के प्रत्येक 1 मीटर के लिए पंखे की क्षमता एक घन मीटर होनी चाहिए ताकि उष्णकटिबंधीय परिस्थितियों के तहत एक पूर्ण नवीनीकरण का कम से कम उसका तीन चौथाई या अधिक नवीनीकरण प्रति घंटा 50 से 60 नवीनीकरण सुनिश्चित किया जा सके।

ग्रीन हाउस संरचना को चयन करने के मानक

जहां तक संभव हो जी आई पाइप आधारित ग्रीन हाउस में न्यूनतम 2 मिलीमीटर दीवार मोटाई के साथ आई एस आई मां कसम नहीं लगना चाहिए। 

ग्रीन हाउस के विस्तार के लिए विकल्पों के साथ स्टेप टाइप एंकरिंग बुनियाद गेलवेनाइज्ड तथा नट बोल्ट वाली संरचना होनी चाहिए। लाइव लोड, डेड लोड, फसल लोड हवा तथा इस स्नो लोड जैसे विभिन्न प्रकार के लोड अथवा भार को सहन करने के लिए पर्याप्त मजबूती होनी चाहिए। 

सिंगल टुकड़ा जी आई गाटर 500 मिली मीटर चौड़ा और 1 मीटर मोटा होना चाहिए। हवा के तेज बे को सहन करने के लिए सभी परिधि के साथ एरोडायनेमिक आकृति होनी चाहिए।150 किलोमीटर प्रति घंटा तक के बेग को सहन करने की क्षमता डिजाइन में होनी चाहिए।

क्लैडिंग अथवा आवरण सामग्री

 

ग्रीन हाउस प्लैनिंग अथवा आवरण या ढकने के लिए दो प्रकार की प्लास्टिक फिल्मों का उपयोग किया जाता है। पहली एकल परत वाली स्पष्ट पारदर्शी यूवी स्टेबलाइज्ड फिल्म और विशिष्ट फिल्में तथा डिफ्यूज्ड बूंद रोधी, धूल रोधी, सल्फर रोधी आदि। 

प्लास्टिक फिल्म का चुनाव ग्रीन हाउस में बोई गई फसलों और उत्पादन चक्र के दौरान किए गए विभिन्न रासायनिक उपचारों के आधार पर किया जाए। 

प्लास्टिक फिल्म में तीन प्रकार के होती है सामान्य फिल्म, थर्मिक क्लियर फिल्म, धार्मिक प्रसार अथवा फैलाव वाली फिल्म। फिल्म में 80% से अधिक पारदर्शिता और अल्प ग्रीन हाउस प्रभाव, इंफ्रारेड प्रभावशीलता होनी चाहिए।

कैसे मिलेगा अनुदान

ग्रीन हाउस एवं पॉलीहाउस लगाने के लिए उद्यान इनोवेशन के अंतर्गत अनुदान प्रदान किया जाता है। इसके लिए देश के किसी भी राज्य में जिला उद्यान अधिकारियों के माध्यम से कार्य योजना बनाकर शासन को भेजी जाती है और उसके अनुरूप ग्रीन हाउस पॉलीहाउस स्थापित किए जाते हैं। 

तदोपरांत अनुदान की धनराशि किसान के खाते में डीबीटी के माध्यम से भेज दी जाती है।वर्तमान समय इस योजना का लाभ लेने के लिए बिल्कुल उपयुक्त समय है। 

अपने नजदीकी जिला उद्यान अधिकारी कार्यालय में संपर्क कर या शासन की उद्यान विभाग की वेबसाइट पर जाकर विस्तृत जानकारी ले सकते हैं।

पॉलीहाउस की मदद से हाईटेक कृषि की राह पर चलता भारतीय किसान

पॉलीहाउस की मदद से हाईटेक कृषि की राह पर चलता भारतीय किसान

अपने जीवन में अपने कभी ना कभी हरित गृह प्रभाव या ग्रीनहाउस प्रभाव (greenhouse effect) के बारे में तो अवश्य सुना होगा, लेकिन इसी हरित ग्रह प्रभाव की मदद से कई भारतीय किसान अब पॉलीघर या पॉलीहाउस (Polyhouse) तकनीक का इस्तेमाल कर हाईटेक फार्मिंग या संरक्षित खेती करने में सफल हो रहे हैं।

क्या होता है पॉलीहाउस ?

पोली-हाउस हरित गृह प्रभाव पर काम करने वाली एक तकनीक होती है, जिसमें विशेष प्रकार की पॉलीथिन का इस्तेमाल फसलों को ढकने के लिए एक आवरण बनाकर किया जाता है। इस पोली हाउस की मदद से किसी भी जगह की कठोर पर्यावरणीय परिस्थितियों को नियंत्रित किया जाता है। कृषि में आई नई तकनीकों के शुरुआती दौर में हरित गृह प्रभाव के लिए लकड़ी के चेंबर बनाकर उसे कांच से ढका जाता था, लेकिन पिछले कुछ सालों से पॉलीथिन और प्लास्टिक के निर्माण में आए सुधारों की वजह से अब प्लास्टिक अथार्त पॉलीथिन (Polyethylene या Polythene) का इस्तेमाल भी हरित गृह प्रभाव के लिए किया जा रहा है। [caption id="attachment_10755" align="alignnone" width="487"]पॉलीहाउस - बाहर से (Polyhouse) पॉलीहाउस - बाहर से[/caption]

पॉलीहाउस में किस फसल का हो सकता है सर्वश्रेष्ठ उत्पादन ?

वैसे तो पॉलीहाउस का इस्तेमाल दैनिक दिनचर्या में इस्तेमाल होने वाली सब्जी के उत्पादन और पौधे की छोटी नर्सरी तैयार करने में किया जाता है। वर्तमान में भारत के उत्तरी पूर्वी और हिमालय पर्वत से जुड़े राज्यों में कुकुम्बर (cucumber) और गुच्ची मशरूम (Gucchi Mushroom) के अलावा कई फसलें इसी विधि से तैयार की जा रही है। इसके अलावा सजावट और स्वास्थ्यवर्धक फायदे वाले कई प्रकार के फूल जैसे कि जरबेरा, गुलाब और ऑर्किड की खेती भी की जा रही है।


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कैसे लगाएं पॉलीहाउस ?

पॉलीहाउस की शुरुआत करने के लिए आपको लगभग 1000 स्क्वायर मीटर की जगह की आवश्यकता होगी। किसान भाई ध्यान रखें कि किसी भी पॉलीहाउस की संरचना बनाने से पहले उस जगह पर पानी की उपलब्धता और मार्केट की दूरी के बारे में पूरी जानकारी अवश्य प्राप्त कर लेवें। [caption id="attachment_3641" align="alignnone" width="750"]पॉलीहाउस निर्माण कार्य पॉलीहाउस निर्माण कार्य[/caption] इसके अलावा पॉलीहाउस को हमेशा समतल धरातल पर ही बनाना चाहिए और पॉलीहाउस का स्थान अपने आसपास के समतल धरातल से थोड़ा ऊपर उठा हुआ होना चाहिए। इसके लिए या तो आप कोई ऐसी जगह निश्चित कर सकते हैं जो ऊपर उठी हुई हो, या फिर अपने खेत की ही समतल जगह पर मिट्टी का जमाव कर स्थान को ऊपर उठा सकते है।

क्या है पॉलीहाउस फार्मिंग के फायदे ?

भारतीय किसानों के लिए मुख्यतः मौसम की मार कई बार उनके खेतों में सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। इसी मौसम के बदलते स्वरूप से होने वाले नुकसान से बचने के लिए, कठोर वातावरण वाले जगहों पर कृषि करने वाले किसान भाई, धीरे-धीरे पॉलीहाउस फार्मिंग की तरफ बढ़ रहे हैं। जलवायुवीय बदलाव जैसे की हवा की तेजी और बारिश का कम या ज्यादा होना जैसे नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों से पोली हाउस की मदद से बचा जा सकता है। पॉलीहाउस का एक और सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इसके इसके अंदर उगाई जाने वाली कोई भी फसल को उसकी आवश्यकता अनुसार तापमान और नमी की मात्रा उपलब्ध करवाई जा सकती है, जिससे उसकी वृद्धि दर तेज हो जाती है और उत्पाद जल्दी तथा अधिक प्राप्त होता है।


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[caption id="attachment_2895" align="alignnone" width="666"]ग्रीनहाउस टेक्नोलॉजी पॉलीघर या पॉलीहाउस -भीतर से (Polyhouse - inside view)[/caption] कृषि वैज्ञानिकों की राय में पोली हाउस में कार्बन डाइऑक्साइड के अधिक सांद्रण की वजह से उत्पाद अधिक तैयार होते हैं और परंपरागत तरीके से की जाने वाली खुली खेती की तुलना में पॉलीहाउस में लगभग 2 गुना तक उत्पाद प्राप्त हो सकते हैं। वर्तमान में पॉलीहाउस में मशीनीकरण के बेहतर इस्तेमाल की वजह से फर्टिलाइजर का छिड़काव और पानी की नियमित सिंचाई स्वचालित रूप से ही हो रही है, इसी वजह से किसान भाइयों की मजदूरी में लगने वाली लागत कम खर्च होती है। हालांकि इन सभी फायदों के अलावा पॉलीहाउस फार्मिंग के कुछ नकारात्मक प्रभाव भी हैं, जैसे कि पॉलीहाउस को बनाना और पूरी तरह सेट अप करना काफी खर्चीला होता है। इसके अलावा पॉलीहाउस विधि से होने वाली कृषि की निरंतर निगरानी रखनी होती है और तापमान या नमी में थोड़े से बदलाव होने की वजह से ही फसल का नुकसान हो सकता है। पॉलीहाउस को चलाने के लिए किसी स्किल्ड सुपरवाइजर की आवश्यकता होती है और किसान भाइयों को कई प्रकार का तकनीकी ज्ञान हासिल करना होता है। खुले पर्यावरण से मिलने वाले कई पोषक तत्व और हवा में उपलब्ध कई सूक्ष्म पोषक तत्व पॉलीहाउस फार्मिंग में पौधे तक नहीं पहुंच पाते हैं, इसीलिए इस विधि में उर्वरक और कीटनाशक का अधिक इस्तेमाल किया जाता है जो कि जैविक खेती की तरफ बढ़ते भारतीय किसानों की सोच के लिए नकारात्मक असर देता है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=KiHbtPNAyUg[/embed]

सामान्यतः पूछे जाने वाले सवाल (FaQs) :

सवाल :- क्या पॉलीहाउस फार्मिंग के लिए सरकार किसी तरह की कोई सहायता उपलब्ध करवाती है ?

जवाब :- वर्तमान में केंद्र और राज्य सरकार के अलावा कई स्थानीय पंचायती सरकारें भी किसान भाइयों के लिए कई प्रकार की सब्सिडी और तकनीकी ज्ञान के लिए ट्रेनर की सुविधा उपलब्ध करवा रही है। इसके अलावा केंद्र सरकार अपनी हॉर्टिकल्चर ट्रेंनिंग स्कीम के तहत अलग-अलग जगह पर सेंटर खोल कर पॉलीहाउस के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए कोशिश कर रही है।

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सवाल :- क्या किसी भी पॉलीहाउस को बनाने से पहले पूरी प्लानिंग करना आवश्यक है ?

जवाब :- जी हां, किसी भी अन्य व्यवसाय की तरह ही पॉलीहाउस फार्मिंग के लिए भी पहले से पूरी प्लानिंग बनाएं और इसके लिए किसान भाई एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करें। इस प्रोजेक्ट रिपोर्ट में आप अपने पॉलीहाउस को संचालित करने के लिए काम में आने वाले तकनीकी ज्ञान और वित्तीय सहायता के अलावा बाजार से जुड़ी संबंधित जानकारियों के बारे में लिस्ट तैयार करके ही फार्मिंग की शुरुआत करें।

सवाल :-  क्या पॉलीहाउस फार्मिंग के लिए किसी प्रकार के लाइसेंस की आवश्यकता होती है ?

जवाब :- वर्तमान में कृषि मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार पॉलीहाउस फार्मिंग के लिए किसी लाइसेंस की जरूरत नहीं है, हालांकि किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि पॉलीहाउस बनाने के दौरान बची हुई पॉलीथिन को खुले में ना फेंके। आशा करते हैं कि हमारे सभी किसान भाइयों को Merikheti.com के द्वारा पॉलीहाउस फार्मिंग से जुड़ी यह जानकारी पसंद आई होगी और भविष्य में बदलती जलवायुवीय परिस्थितियों से बचने के लिए आप भी कम क्षेत्र में अधिक उत्पादन की राह पर चलते हुए पॉलीहाउस फार्मिंग में जरूर हाथ आजमाना चाहेंगे।
इस राज्य के किसानों को ग्रीन हाउस के लिए मिल रहा है, 70 फीसद तक अनुदान

इस राज्य के किसानों को ग्रीन हाउस के लिए मिल रहा है, 70 फीसद तक अनुदान

बागवानी फसलों को मौसमिक प्रभाव से संरक्षित करने हेतु राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत राजस्थान राज्य के कृषकों को ग्रीन हाउस के निर्माण के व्यय पर 50 से 70 फीसद तक अनुदान प्रदान किया जा रहा है। आधुनिक तकनीकों द्वारा फिलहाल कृषि को बहुत गुना सुगम कर दिया है। विगत समय में किसान खेतों में मौसमिक आधार पर बागवानी फसल यानी सब्जियां-फलों का उत्पादन किया करते थे। परंतु फिलहाल ग्रीन हाउस, लो टनल एवं पॉलीहाउस जैसे संरक्षित ढांचों में गैर-मौसमी सब्जियों का उत्पादन करके सामान्य से ज्यादा पैदावार ली जा सकती है। यदि हम बात करें ग्रीनहाउस की तब इस संरक्षित ढांचे में उत्पादित की जा रही बागवानी फसलें जैसे सब्जियां-फल सर्दियों में पाले एवं गर्मियों में धूप के भयंकर ताप से सुरक्षित रहती है। इसकी सहायता से मौसमिक मार एवं कीट-रोग से उत्पन्न समस्याओं को काफी हद तक कम कर सकते हैं। यही कारण है, कि फिलहाल सरकार भी कृषकों को ग्रीन हाउस तकनीक को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। इसी क्रम में राजस्थान के किसान भाइयों के लिए भी ग्रीन हाउस निर्मित करने हेतु अनुदान प्रदान किया जा रहा है।

किसानों के लिए कितने फीसद अनुदान प्रदान किया जा रहा है

  • राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत राजस्थान के किसान भाइयों को ग्रीनहाउस के लिए किए जाने वाले निर्माण व्यय पर 50 से 70 फीसद तक अनुदान प्रदान किया जा रहा है।
  • सामान्य वर्गीय कृषकों को ग्रीन हाउस के इकाई व्यय पर 50 फीसद अनुदान दिया जाएगा।
  • लघु, सीमांत, एससी, एसटी वर्ग के किसान भाइयों को इकाई व्यय पर 20 फीसद ज्यादा मतलब 70% अनुदान प्रदान किया जाएगा।
  • इस अनुदान योजना का फायदा उठाने के लिए किसान भाइयों को न्यूनतम 4000 वर्ग मीटर का ग्रीन हाउस निर्मित करना पड़ेगा।
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जानें किन किसानों को मिल पाएगा लाभ

ग्रीन हाउस पर अनुदान योजना का फायदा प्रति पात्र किसान तक पहुंच पाए। इस वजह से योजना की पात्रता तय की गई है, जिसके अंतर्गत किसान के पास स्वयं की कृषि लायक भूमि का होना अति आवश्यक है। ध्यान रहे कि आवेदन करते वक्त कृषकों को स्वयं का मूल निवास प्रमाण पत्र भी लगाना होगा। किसान भाई खेत में सिंचाई संबंधित उत्तम व्यवस्था रखें। मृदा-जलवायु की जांच रिपोर्ट एवं एससी-एसटी की पहचानने हेतु जाति प्रमाण पत्र भी जोड़ना होगा।

किसान भाई योजना का लाभ लेने के लिए यहां आवेदन करें

राजस्थान राज्य में किसान भाइयों के लिए जारी ग्रीन हाउस पर अनुदान योजना का फायदा उठाने हेतु राज किसान ऑफिशियल पोर्टल rajkisan.rajasthan.gov.in पर आवेदन करना पड़ेगा। यदि किसान भाई चाहें तो अपने आसपास किसी जन सेवा केंद्र अथवा ई-मित्र केंद्र पर भी आवेदन कर सकते हैं। इस योजना से जुड़ी जानकारी राजस्थान सरकार के सूचना और जनसंपर्क विभाग की आधिकारिक वेबसाइट https://dipr.rajasthan.gov.in/ पर विस्तृत रूप से प्रदान की गई है। ज्यादा जानकारी हेतु किसान अपने जनपद के कृषि या बागवानी विभाग के कार्यालय में जाकर संपर्क करें।
सफेद बैंगन की खेती से किसानों को अच्छा-खासा मुनाफा मिलता है

सफेद बैंगन की खेती से किसानों को अच्छा-खासा मुनाफा मिलता है

अगर आप सफेद बैंगन की बिजाई करते हैं, तो इसके तुरंत उपरांत फसल में सिंचाई का कार्य कर देना चाहिए। इसकी खेती के लिये अधिक जल की जरुरत नहीं पड़ती। जैसा कि हम सब जानते हैं, कि प्रत्येक क्षेत्र में लोग लाभ उठाने वाला कार्य कर रहे हैं। 

उसी प्रकार खेती-किसानी के क्षेत्र में भी वर्तमान में किसान ऐसी फसलों का पैदावार कर रहे हैं। जिन फसलों की बाजार में मांग अधिक हो और जो उन्हें उनके खर्चा की तुलना में अच्छा मुनाफा प्रदान कर सकें। 

सफेद बैंगन भी ऐसी ही एक सब्जी है, जिसमें किसानों को मोटा मुनाफा अर्जित हो रहा है। काले बैंगन की तुलनात्मक इस बैंगन की पैदावार भी अधिक होती है। 

साथ ही, बाजार में इसका भाव भी काफी अधिक मिल पाता है। सबसे मुख्य बात यह है, कि बैंगन की यह प्रजाति प्राकृतिक नहीं है। इसे कृषि वैज्ञानिकों ने अनुसंधान के माध्यम से विकसित किया है।

बैंगन की खेती कब और कैसे होती है

सामान्यतः सफेद बैंगन की खेती ठण्ड के दिनों में होती है। परंतु, आजकल इसे टेक्नोलॉजी द्वारा गर्मियों में भी उगाया जाता है। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा सफेद बैंगन की दो किस्में- पूसा सफेद बैंगन-1 और पूसा हरा बैंगन-1 को विकसित किया है। 

सफेद बैंगन की यह किस्में परंपरागत बैंगन की फसल की तुलना में अतिशीघ्र पककर तैयार हो जाती है। बतादें, कि इसका उत्पादन करने हेतु सबसे पहले इसके बीजों को ग्रीनहाउस में संरक्षित हॉटबेड़ में दबाकर रखा जाता है। 

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साथ ही, इसके उपरांत इसकी बिजाई से पूर्व बीजों का बीजोपचार करना पड़ता है। ऐसा करने से फसल में बीमारियों की आशंका समाप्त हो जाती है। 

बीजों के अंकुरण तक बीजों को जल एवं खाद के माध्यम से पोषण दिया जाता है और पौधा तैयार होने के उपरांत सफेद बैंगन की बिजाई कर दी जाती है। यदि अत्यधिक पैदावार चाहिए तो सफेद बैंगन की बिजाई सदैव पंक्तियों में ही करनी चाहिए।

सफेद बैंगन की खेती बड़ी सहजता से कर सकते हैं

जानकारी के लिए बतादें कि सफेद बैंगन की रोपाई यदि आप करते हैं, तो इसके शीघ्र उपरांत फसल में सिंचाई का कार्य कर देना चाहिए। इसकी खेती के लिये अत्यधिक जल की आवश्यकता नहीं पड़ती है। 

यही कारण है, कि टपक सिंचाई विधि के माध्यम से इसकी खेती के लिए जल की जरूरत बड़े आराम से पूरी हो सकती है। हालांकि, मृदा में नमी को स्थाई रखने के लिये वक्त-वक्त पर आप सिंचाई करते रहें। 

सफेद बैंगन की पैदावार को बढ़ाने के लिए जैविक खाद अथवा जीवामृत का इस्तेमाल करना अच्छा होता है। जानकारी के लिए बतादें, कि इससे बेहतरीन पैदावार मिलने में बेहद सहयोग मिल जाता है। 

इस फसल को कीड़े एवं रोगों से बचाने के लिये नीम से निर्मित जैविक कीटनाशक का इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि बैंगन की फसल 70-90 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है।

पॉलीहाउस खेती क्या होती है और इसके क्या लाभ होते हैं

पॉलीहाउस खेती क्या होती है और इसके क्या लाभ होते हैं

जैसा कि हम जानते हैं, भारतीय समाज हमेशा से ही खेती पर निर्भर रहा है। हमारे देश की 70 प्रतिशत आबादी कृषि से जुड़ी हुई है। लोग अपनी जलवायु परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग मौसमों में अलग-अलग फसलें उगाते हैं। 

जलवायु परिवर्तन के कारण जलवायु पैटर्न बहुत तेजी से बदल रहा है। भारत एक ऐसा देश है जो अपनी कृषि गतिविधियों के लिए मुख्य रूप से मानसून पर निर्भर है।

किसानों को जलवायु परिवर्तन से भारी हानि पहुँचती है

जलवायु परिवर्तन की वजह से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है, जिससे कुछ तकनीकों को विकसित करने की आवश्यकता होती है। जो किसानों को कृषि गतिविधियों में काफी सहायता करेगी। 

पॉलीहाउस खेती भारतीय समाज हमेशा से कृषि पर निर्भर रहा है। हमारी 70% आबादी पूरी तरह से अपने निर्वाह के लिए कृषि पर निर्भरती को अधिक लाभदायक, लागत प्रभावी और पर्यावरण के अनुकूल बनाने की दिशा में एक कदम है। आगे इस लेख में, हम पॉलीहाउस खेती के लाभों को देखेंगे।

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पॉलीहाउस कृषि क्षेत्र का एक नवाचार है

वक्त के साथ, खेती को लाभदायक बनाने के लिए खेती के तरीके बदल गए हैं। पॉलीहाउस खेती कृषि का एक नवाचार है, जहां किसान जिम्मेदार कारकों को नियंत्रित करके अनुकूल वातावरण में अपनी कृषि गतिविधियों को जारी रख सकते हैं।

यह ज्ञानवर्धक तरीका किसानों को कई लाभ निकालने में सहायता करता है। आजकल लोग पॉलीहाउस खेती में गहरी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। क्योंकि यह ज्यादा लाभदायक है, और पारंपरिक खुली खेती की तुलना में इसके जोखिम बहुत कम हैं। 

साथ ही, यह एक ऐसी विधि है, जिसमें किसान पूरे वर्ष फसल उगाते रह सकते हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें कि केंद्र और राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर से पोलीहॉउस खेती के लिए सब्सिड़ी प्रदान कर सकते हैं।

खेती में पॉलीहाउस का इस्तेमाल क्यों किया जाता है

पॉलीहाउस नियंत्रित तापमान में फसल उगाने में बेहद लाभदायक होता है। इसके इस्तेमाल से फसल को नुकसान होने की संभावना कम होती है। 

पॉलीहाउस के अंदर कीट, कीड़ों और बीमारियों के फैलने की संभावना काफी कम होती है, जिससे फसलों को नुकसान से बचाया जा सकता है। इसलिए पॉलीहाउस तकनीक बाधाओं से लड़ने में काफी प्रभावी है।

भारत के किसान खेती में इजराइली तकनीकों का उपयोग कर बेहतरीन उत्पादन कर रहे हैं

भारत के किसान खेती में इजराइली तकनीकों का उपयोग कर बेहतरीन उत्पादन कर रहे हैं

कृषि क्षेत्र में इजराइल की तकनीक का उपयोग कर भारतीय किसान भी काफी अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। इजराइली तकनीक के माध्यम से खेती करने के चलते जमीन की उत्पादकता में भी काफी वृद्धि हो रही है।​ इजराइल अपनी तकनीक को लेकर सदैव चर्चा में बना रहता है। अब चाहे फिर वो डिफेंस सिस्टम आयरन डोम हो अथवा फिर खेती में इस्तेमाल होने वाली विभिन्न नवीन-नवीन प्रणालियां। यही वजह है, कि भारत के किसानों को भी इजराइल की तकनीक का उपयोग करने के लिए कहा जाता है। भारत के अधिकांश किसान इजराइली तकनीक का इस्तेमाल भी कर रहे हैं। साथ ही, शानदार मुनाफा भी हांसिल कर रहे हैं। आइए आगे हम आपको इस लेख में उन तकनीकों के विषय में बताऐंगे जिनका उपयोग कर भारतीय किसान काफी शानदार आमदनी कर रहे हैं।

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इजराइल में बागवानी हेतु विभिन्न प्रोजेक्ट जारी किए जा रहे हैं

इजराइल में फल, फूल और सब्जियों की आधुनिक खेती के लिए बहुत सारे प्रोजेक्ट चलाए जा रहे हैं। कृषि के क्षेत्र में मदद करने के लिए भारत एवं इजराइल के बीच बहुत सारे समझौते भी हुए हैं। इन समझौतों में संरक्षित खेती पर विशेष तौर पर ध्यान दिया गया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इजराइल से भारत के किसानों ने जो संरक्षित खेती के तौर तरीके सीखे हैं, उनकी वजह से क‍िसी भी सीजन में कोई भी फल खाने को म‍िल जाता है। इस टेक्निक की सहायता से वातावरण को नियंत्रित किया जाता है। साथ ही, एक बेहतरीन खेती भी की जाती है।

वातावरण फसल के अनुरूप निर्मित किया जाता है

इसके अंतर्गत कीट अवरोधी नेट हाउस, ग्रीन हाउस, प्लास्टिक लो-हाई टनल एवं ड्रिप इरीगेशन आता है। बाहर का मौसम भले ही कैसा भी हो, परंतु इस तकनीक के माध्यम से फल, फूल और सब्जियों के मुताबिक वातावरण निर्मित कर दिया जाता है। इसके चलते किसान भाई बहुत सी फसलों का उत्पादन कर रहे हैं। साथ ही, उन्हें बेहतरीन कीमतों में बेच रहे हैं। किसानों को बहुत सारी फसलों के दाम तो दोगुने भी मिल जाते हैं। जानकारों के मुताबिक, तो इस खेती को विश्व की सभी प्रकार की जलवायु जैसे शीतोष्ण, सम शीतोष्ण कटिबंधीय, उष्णकटिबंधीय इत्यादि में अपनाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त संरक्षित खेती के चलते जमीन की उत्पादकता में भी काफी बढ़ोतरी होती है।
इस राज्य में पॉलीहाउस और शेड नेट पर 50% प्रतिशत सब्सिड़ी दी जा रही है

इस राज्य में पॉलीहाउस और शेड नेट पर 50% प्रतिशत सब्सिड़ी दी जा रही है

केंद्र और राज्य सरकार अपने अपने स्तर से कृषकों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए विभिन्न प्रयास करती रहती हैं। खेती किसानी के विकास और किसानों की आमदनी को दोगुना करने के उद्देश्य से सरकार आए दिन नई-नई योजनाओं को जारी करती रहती है। 

अब इसी कड़ी में बिहार सरकार किसानों के लिए एक और नई योजना लेकर आई है। दरअसल, सरकार ने संरक्षित खेती द्वारा बागवानी विकास योजना के अंतर्गत पॉलीहाउस और शेड नेट की व्यवस्था  उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है।

सरकार पॉलीहाउस और शेड नेट के माध्यम से खेती करने पर किसानों को अच्छा खासा अनुदान मुहैय्या करा रही है। सरकार के इस निर्णय से किसानों की आमदनी के साथ-साथ उत्पादन में भी इजाफा होगा। 

योजना के अंतर्गत कितना अनुदान दिया जाएगा ?

योजना की जानकारी बिहार कृषि विभाग ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर साझा की है। कृषि विभाग की पोस्ट के अनुसार, सरकार संरक्षित खेती द्वारा वार्षिक बागवानी विकास योजना के अंतर्गत पॉलीहाउस और शेड नेट की मदद से खेती करने पर कृषकों को 50 प्रतिशत तक का अनुदान प्रदान कर रही है।

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इसमें किसानों को प्रति वर्ग मीटर की इकाई लगाने के लिए 935 रुपये के खर्च में से 50 फीसद मतलब 467 रुपये दिए जाएंगे तथा शेड नेट के लिए प्रति वर्ग मीटर की इकाई 710 रुपये में से 50% फीसद यानी 355 रुपये दिए जाएंगे। 

पॉलीहाउस और शेड नेट किसानों के लिए कैसे फायदेमंद है ? 

यदि आप भी एक किसान हैं और पॉलीहाउस और शेड नेट तकनीक को अपनाकर खेती करने की सोच रहे हैं, तो इससे आपको बेहद लाभ होने वाला है। दरअसल, खेती की ये तकनीक फसलों को कीटों के हमलों से बचाती है। 

इस तकनीक का इस्तेमाल करने से कीट आक्रमण में 90% प्रतिशत तक की कमी आती है। पॉलीहाउस और शेड नेट तकनीक के जरिए आप वर्षों-वर्ष सुरक्षित तरीके से खेती कर सकते हैं। 

योजना का फायदा लेने के लिए कैसे करें आवेदन ?

योजना का लाभ उठाने के लिए सबसे पहले बागवानी विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पर जाएं। होम पेज पर उद्यान निदेशालय अंतर्गत संचालित योजनाओं का लाभ लेने के लिए Online Portal के ऑप्शन पर क्लिक करें।

वहां संरक्षित खेती द्वारा बागवानी विकास योजना के लिए आवेदन पर क्लिक करें। इसके बाद आपके सामने नए पेज पर कुछ नियम और शर्तें आएंगी। 

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अब इन नियम और शर्तों को ध्यानपूर्वक पढ़कर जानकारी से सहमत वाले ऑप्शन पर क्लिक करें। ऐसा करते ही आपके सामने आवेदन फॉर्म खुल जाएगा। अब मांगी गई सभी आवश्यक जानकारी को ध्यानपूर्वक भरें। 

इसके बाद आवश्यक दस्तावेजों को अपलोड करें। दस्तावेज अपलोड करते ही सबमिट के ऑप्शन पर क्लिक करें। इस प्रकार आप सफलतापूर्वक इस योजना के तहत ऑनलाइन आवेदन हो जाएगा। 

किसान अधिक जानकारी के लिए यहां करें संपर्क

योजना से संबंधित ज्यादा जानकारी के लिए किसान भाई बिहार कृषि विभाग, बागवानी निदेशालय की ऑफिशियल वेबसाइट पर विजिट कर सकते हैं। 

इसके अलावा, स्थानीय जनपद के उद्यान विभाग के सहायक निदेशक से भी जानकारी प्राप्त की जा सकती है।