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चाय

इस प्रकार बचायें अपने पशुओं को आने वाली शीत लहर से

इस प्रकार बचायें अपने पशुओं को आने वाली शीत लहर से

पराली जलने से देश का बड़ा इलाका प्रदूषित हो रहा है। इसका दुष्प्रभाव लोगों की सेहत पर पड़ने के साथ ही, दुधारु पशुओं को भी इससे कई हानि हैं। देशभर में अधिकतर पशु लंपी रोग से प्रभावित हैं। शीघ्र ही सर्दियां भी आने वाली हैं, ऐसे में पशुओं के अच्छे स्वास्थ्य के लिए उनकी बेहतर देखभाल भी आवश्यक है। सर्दियों के दिनों में ठंड के कारण ज्यादातर पशुओं को बुखार, झंझनाहट एवं कुछ केसों में मवेशियों की मृत्यु तक हो जाती है। इस प्रकार की समस्त समस्याओं से पशुओं के संरक्षण के लिए किसानों एवं पशुपालकों को तैयारी शुरू कर देनी चाहिए।

पशुओं को ठंड से बचाने हेतु इन तरीकों को अपनायें

आमतौर पर शीत लहर के चलते पशुओं की हड्डियों में कंपकंपाहट एवं टांगों में गलन होने लगती है, इससे पशुओं को बचाने के लिए जूट का बोरा पहना सकते हैं। इससे पशुओं में गर्मी बनी रहेगी। पशुओं की बेहतर रोग प्रतिरोधी क्षमता के लिए हरा चारा एवं सूखा चारा १:३ के अनुपात में मिलाकर खिलाना बेहद आवश्यक है। वक्त-वक्त पर पशुओं को गर्म पानी पिलायें व दलिया अथवा चरी उपयुक्त मात्रा में खिलायें। शीत लहर व ठंडी हवाओं से संरक्षण हेतु पशुओं को खुले में रखने की अपेक्षा छप्पर अथवा शेड का प्रयोग करें। सर्दियों में पशुओं को हानिकारक विषाणु से बचाने के लिए धूप में टहलाना आवश्यक है। लंपी का कहर पूर्ण रूप से रुका नहीं है, इसी वजह से समस्त दुधारु मवेशियों का टीकाकरण अति आवश्यक है।


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पशुओं के आस पास साफ सफाई रखें, सर्दियों के समय विभिन्न कीटाणु पैदा हो जाते हैं जो मवेशियों को बीमार कर देते हैं। तबेले, बिछावन और कपड़े को बेहतर ढंग से सूखाने के उपरांत ही प्रयोग करें। थोड़ी सी नमी होने पर पशुओं के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है। पशुओं को चिकने फर्श की बजाय बोरा या बिछावन पर बैठाने की व्यवस्था करें। पशुओं को सरसों के तेल के साथ अच्छा आहार दें एवं खल, गुड़ के साथ अन्य पौष्टिक व बेहतर आहार खिलायें। लंपी का कहर पूर्ण रूप से रुका नहीं है, इसी वजह से समस्त दुधारु मवेशियों का टीकाकरण अति आवश्यक है। सर्दियों में पशुओं को पाचन क्रिया खराब होने से दस्त हो जाते हैं, ऐसे में शीघ्रता बरतते हुए पशु चिकित्सतक से सलाह लें। सर्दी के मौसम में पशुओं को विभिन्न रोगों से ग्रसित होने का खतरा है। खुरपका मुंहपका रोग, निमोनिया, ज़ुकाम एवं अन्य रोगों का खतरा भी बढ़ जाता है। ऐसे में पशु विशेषज्ञ की सलाह अनुसार रोग प्रतिरोधक टीकाकरण करना अति आवश्यक है।
तितली मटर (अपराजिता) के फूलों में छुपे सेहत के राज, ब्लू टी बनाने में मददगार, कमाई के अवसर अपार

तितली मटर (अपराजिता) के फूलों में छुपे सेहत के राज, ब्लू टी बनाने में मददगार, कमाई के अवसर अपार

रंगबिरंगी तितली किसके मन को नहीं भाती, लेकिन हम बात कर रहे हैं, प्रमुख दलहनी फसलों में से एक तितली मटर के बारे में। आमतौर पर इसे अपराजिता (butterfly pea, blue pea, Aprajita, Cordofan pea, Blue Tea Flowers or Asian pigeonwings) भी कहा जाता है। 

इंसान और पशुओं के लिए गुणकारी

बहुउद्देशीय दलहनी कुल के पौधोंं में से एक तितली मटर यानी अपराजिता की पहचान उसके औषधीय गुणों के कारण भी दुनिया भर में है। इंसान और पशुओं तक के लिए गुणकारी इस फसल की खेती को बढ़ावा देकर, किसान भाई अपनी कमाई को कई तरीके से बढ़ा सकते हैं। 

ब्लू टी की तैयारी

तितली मटर के फूल की चाय (Butterfly pea flower tea)

बात औषधीय गुणों की हो रही है तो आपको बता दें कि, चिकित्सीय तत्वों से भरपूर अपरजिता यानी तितली मटर के फूलों से अब ब्लू टी बनाने की दिशा में भी काम किया जा रहा है।

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ब्लू टी से ब्लड शुगर कंट्रोल

जी हां परीक्षणों के मुताबिक तितली मटर (अपराजिता) के फूलों से बनी चाय की चुस्की, मधुमेह यानी कि डायबिटीज पीड़ितों के लिए मददगार होगी। जांच परीक्षणों के मुताबिक इसके तत्व ब्लड शुगर लेवल को कम करते हैं।

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पशुओं का पोषक चारा

इंसान के स्वास्थ्य के लिए मददगार इसके औषधीय गुणों के अलावा तितली मटर (अपराजिता) का उपयोग पशु चारे में भी उपयोगी है। चारे के रूप में इसका उपयोग भूसा आदि अन्य पशु आहार की अपेक्षा ज्यादा पौष्टिक, स्वादिष्ट एवं पाचन शील माना जाता है। तितली मटर (अपराजिता) के पौधे का तना बहुत पतला साथ ही मुलायम होता है। इसकी पत्तियां चौड़ी और अधिक संख्या में होने से पशु आहार के लिए इसे उत्तम माना गया है।

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अनुभवों के मुताबिक अपेक्षाकृत रूप से दूसरी दलहनी फसलों की तुलना में इसकी कटाई या चराई के बाद अल्प अवधि में ही इसके पौधों में पुनर्विकास शुरू हो जाता है। 

एशिया और अफ्रीका में उत्पत्ति :

तितली मटर (अपराजिता) की खेती की उत्पत्ति का मूल स्थान मूलतः एशिया के उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र एवं अफ्रीका में माना गया है। इसकी खेती की बात करें तो मुख्य रूप से अमेरिका, अफीका, आस्ट्रेलिया, चीन और भारत में इसकी किसानी का प्रचलन है। 

मददगार जलवायु

  • इसकी खेती मुख्यतः प्रतिकूल जलवायु क्षेत्रों में प्रचलित है। मध्यम खारी मृदा इलाकों में इसका पर्याप्त पोषण होता है।
  • तितली मटर प्रतिकूल जलवायु जैसे–सुखा, गर्मी एवं सर्दी में भी विकसित हो सकती है।
  • ऐसी मिट्टी, जिनका पी–एच मान 4.7 से 8.5 के मध्य रहता है में यह भली तरह विकसित होने में कारगर है।
  • मध्यम खारी मिट्टी के लिए भी यह मित्रवत है।
  • हालांकि जलमग्न स्थिति के प्रति यह बहुत संवेदनशील है। इसकी वृद्धि के लिए 32 डिग्री सेल्सियस तापमान सेहतकारी माना जाता है।

तितली मटर के बीज की अहमियत :

कहावत तो सुनी होगी आपने, बोए बीज बबूल के तो फल कहां से होए। ठीक इसी तरह तितली मटर (अपराजिता) की उन्नत फसल के लिए भी बीज अति महत्वपूर्ण है। कृषक वर्ग को इसका बीज चुनते समय अधिक उत्पादन एवं रोग प्रतिरोध क्षमता का विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए।

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तितली मटर की कुछ उन्नत किस्में :

तितली मटर की उन्नत किस्मों की बात करें तो काजरी–466, 752, 1433, जबकि आईजीएफआरआई की 23–1, 12–1, 40 –1 के साथ ही जेजीसीटी–2013–3 (बुंदेलक्लाइटोरिया -1), आईएलसीटी–249 एवं आईएलसीटी-278 इत्यादि किस्में उन्नत प्रजाति में शामिल हैं। 

तितली मटर की बुवाई के मानक :

अनुमानित तौर पर शुद्ध फसल के लिए बीज दर 20 से 25 किलोग्राम मानी गई है। मिश्रित फसल के लिए 10 से 15 किलोग्राम, जबकि 4 से 5 किलोग्राम बीज स्थायी चरागाह के लिए एवं 8 से 10 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर अल्पावधि चरण चरागाह के लिए आदर्श पैमाना माना गया है। तय मान से बुवाई 20–25 × 08 – 10 सेमी की दूरी एवं ढ़ाई से तीन सेमी की गहराई पर करनी चाहिए। कृषि वैज्ञानिक उपचारित बीजों की भी सलाह देते हैं। अधिक पैदावार के लिए गर्मी में सिंचाई का प्रबंधन अनिवार्य है। 

तितली मटर की कटाई का उचित प्रबंधन :

मटर के पके फल खेत में न गिर जाएं इसलिए तितली मटर की कटाई समय रहते कर लेना चाहिए। हालांकि इस बात का ध्यान भी रखना अनिवार्य है कि मटर की फसल परिपक्व हो चुकी हो। जड़ बेहतर रूप से जम जाए इसलिए पहले साल इससे केवल एक कटाई लेने की सलाह जानकार देते हैं।

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तितली मटर के उत्पादन का पैमाना :

उपज बरानी की दशा में स्थितियां अनुकूल रहने पर लगभग 1 से 3 टन सूखा चारा और 100 से 150 किलो बीज प्रति हेक्टेयर मिल सकता है। इतनी बड़ी ही सिंचित जमीन पर सूखा चारा 8 से 10 टन, जबकि बीज पांच सौ से छह सौ किलो तक उपज सकता है। 

पोषक तत्वों से भरपूर खुराक :

तितली मटर में प्रोटीन की मात्रा 19-23 फीसदी तक मानी गई है। क्रूड फ़ाइबर 29-38, एनडीफ 42-54 फीसदी तो फ़ाइबर 21-29 प्रतिशत पाया जाता है। पाचन शक्ति इसकी 60-75 फीसदी तक होती है।

उत्तर प्रदेश में प्रधानी के चुनाव

उत्तर प्रदेश में प्रधानी के चुनाव

आज कल गांव में किसी बात की सबसे ज्यादा चर्चा है तो बस दो बातों की है, एक तुमने धIन की कौन सी प्रजाति लगाई है और दूसरी अबकी बार कौन कौन प्रधानी के लिए खड़े हो रहे है... वो कहते है न जितना छोटा चुनाव उतना ज्यादा टेंसन... आजकल प्रधानी और सदस्यी जैसे छोटे चुनाव भी बड़े खर्चीले हो गए हैं. लोग प्रत्यासी न देख कर सिर्फ पैसा, खाना ( पूड़ी सब्जी) और शराब  किसने ज्यादा दिया उसी के हो लिए. जो आपका वोट लेने के लिए इतना पैसा खर्च कर रहा है आपको लगता है की वो आपको विकास की गंगा बहा कर देगा ? नहीं वो अपने विकास की बात करेगा और कब वो बाइक से स्कार्पियो पर आ जायेगा आप को पता भी नहीं चलेगा. 

ग्राम पंचायत का गठन कैसे होता है? 

 जब किसी गांव में प्रधानी का चुनाव होता है तो उस गांव की जनसंख्या 200 से ज्यादा होनी चाहिए अगर इससे कम जनसंख्या है तो उसको दूसरे गांव के साथ मिला दिया जाता है तब दोनों गांव को मिला कर एक प्रधान होता है. कई जगह प्रधान को सरपंच या मुखिया भी बोलै जाता है. अमूमन 1000 की जनसंख्या 10 सदस्य होते हैं, 3000 तक 15 सदस्य और इसी तरह ये क्रम बढ़ता जाता है . ग्रामसभा की मीटिंग हर 6 महीने में होनी चाहिए मतलब साल में 2 मीटिंग्स और इसकी सूचना 15 दिन पहले डोढी पिटवा के या फिर सदस्य के घर जाकर एक रजिस्टर पर साइन करके भी दी जा सकती है. सरपंच या प्रधान मीटिंग बुलाता है और मीटिंग बुलाने का अधिकार उसी के पास होता है और अगर कुल सदस्यों के एकतिहाई सदस्य अपने साइन करके प्रधान को देते है तो भी प्रधान को मीटिंग बुलानी पड़ती है, मीटिंग में कम से कम कुल सदस्यों के 5वें  भाग की उपस्थिति जरूरी होती है जैसे किसी पंचायत में २० सदस्य है तो ४ सदस्यों का मीटिंग में होना जरूरी है. 

उप प्रधान का चुनाव 

 चुने हुए सदस्यों में से ही सहमति के अनुसार एक सदस्य को उप प्रधान बनाया जाता है अगर किसी कारन वश प्रधान को हटा दिया जाता है तो सदस्यों के द्वारा एक कमेटी का गठन किया जाता है जो की प्रधान के सारे काम देखती है.

प्रधान या उप प्रधान को पद से हटाना हो तो ? 

 अगर आपका प्रधान या सपंच कम सही न कर रहा हो और पैसे का सही इस्तेमाल न हो रहा हो तो उसे कार्यकाल पूरा होने से पहले पद से हटाया भी जा सकता है उसके लिए जिला पंचायत राज अधिकारी को लिखित सूचना हटाने के कारण सहित लिखित में देना होता है और इस पर आधे या आधे से ज्यादा सदस्यों के साइन होने चाहिए तथा 4 से 5 सदस्यों का अधिकारी के समक्ष उपस्थित होना आवश्यक है इसके बाद जिला पंचायत राज अधिकारी गांव में एक मीटिंग बुलाते है जिसकी सूचना 15 दी पहले दी जाती है. मीटिंग में सभी सदस्यों का उपस्थित रहना आवश्यक होता है तथा वोटिंग के बाद प्रधान और उप प्रधान को हटाया जा सकता है. 

ग्राम पंचायत की समतियाँ 

अमूमन ग्राम पंचायत में सभी काम के लिए समितियों का गठन किया जाता है जिससे की सारे काम सही से और समय से चलते रहें. ग्राम पंचायत की सभी समितियों में चार सदस्य बहुत आवश्यक है जिनमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, महिला एवं पिछड़े वर्ग का एक-एक सदस्य होगा. ग्राम पंचायत के अंदर बहुत सी समितियाँ आती है. जैसे नीचे दी गई समिति तथा उनके कार्य.

  • नियोजन एवं विकास समिति – इस समिति में एक सभापति और 4 अन्य सदस्य होते है. इस समिति का सभापति सरपंच होता है. इस समिति का कार्य ग्राम पंचायत की योजना तैयार करना, कृषि, पशुपालन और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों का संचालन करना है.
  • शिक्षा समिति – इस समिति में एक सभापति, एक सचिव और 4 अन्य सदस्य होते है. इस समिति का सभापति उप सरपंच और सचिव सरकारी विद्यालय का प्रधानाध्यापक होता है. इस समिति का कार्य विद्यार्थियों के अभिभावकों को सम्मिलित करना, प्राथमिक शिक्षा, उच्च प्राथमिक शिक्षा, अनौपचारिक शिक्षा तथा साक्षरता आदि सम्बंधी कार्यों को देखना है.
  • निर्माण कार्य समिति – इस समिति में एक सभापति और 4 अन्य सदस्य होते है. इस समिति का सभापति ग्राम पंचायत द्वारा नामित सदस्य होता है. इस समिति का कार्य सभी निर्मित भवनों की गुणवत्ता की जाँच करना और निर्माण किये जाने वाले कार्यों की देखरेख करना है.
  • प्रशासनिक कार्य समिति – इस समिति में एक सभापति और 4 अन्य सदस्य होते है. इस समिति का सभापति सरपंच होता है. इस समिति का कार्य प्रशासन की कमियों-खामियों को देखना और राशन संबंधी कार्य देखना है.
  • स्वास्थ्य एवं कल्याण समिति – इस समिति में एक सभापति और 4 अन्य सदस्य होते है. इस समिति का सभापति ग्राम पंचायत द्वारा नामित सदस्य होता है. इस समिति का कार्य चिकित्सा स्वास्थ्य, परिवार कल्याण सम्बंधी कार्य और समाज कल्याण योजनाओं का संचालन, अनुसूचित जाति-जनजाति तथा पिछड़े वर्ग की उन्नति एवं संरक्षण करना है.
  • जल प्रबंधन समिति – इस समिति में एक सभापति, प्रत्येक राजकीय नलकूप के कमाण्ड एरिया में से दो उपभोक्ता और 4 अन्य सदस्य होते है. इस समिति सभापति ग्राम पंचायत द्वारा नामित सदस्य होता है. इस समिति का कार्य राजकीय नलकूपों का संचालन उसकी मरम्मत व रखरखाव और पेयजल संबंधी कार्य करना है.
चुनाव की तारीख: चुनाव आयोग अगर कोई फेरबदन नहीं करता है तो चुनाब नवंबर या दिसंबर -२०२० में हो जाने चाहिए. एक गांव में कम से कम ७ से ८ प्रत्याशी होते हैं कुछ लोग तो दूसरे के वोट काटने के लिए ही होते है, उन्हें न तो चुनाव लड़ना होता है न ही वो जीत सकते है वो बस इस इन्तजार में रहते है की फलां व्यक्ति आये और कुछ पैसे दे या मुझे परचा वापस लेने को बोले जिससे में उसके ऊपर हमेशा अपना अहसान रखूं की तेरी वजह से परचा वापस लिया था नहीं तो में जीत रहा था ...

कितना पैसा आता है ग्राम पंचायत में विकास के लिए: हर ग्राम पंचायत को पैसा उसकी जनसंख्या और एरिया के हिसाब से आता है. अंत में मेरा तो यही कहना है की इस बार आप जाति और धर्म से ऊपर उठकर वोट करें और किसी अच्छे प्रत्याशी का चयन करें और उससे पैसा खर्च न कराएं बस विकास की गॉरन्टी लें.

चाय की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

चाय की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

भारत के अंदर चाय की खेती काफी पहले से की जा रही है। दरअसल, साल 1835 में अंग्रेजो ने सबसे पहले असम के बागो में चाय लगाकर इसकी शुरुआत की थी। आज के समय में भारत के विभिन्न राज्यों में चाय की खेती की जाती है। इससे पूर्व चाय की खेती सिर्फ पहाड़ी क्षेत्रों में ही की जाती थी। लेकिन, अब यह पहाड़ी क्षेत्रों से लेकर मैदानी इलाकों तक पहुंच चुकी है। दुनिया में भारत चाय उत्पादन के संदर्भ में दूसरे स्थान पर है। विश्व की लगभग 27 फीसद चाय का उत्पादन भारत के अंदर ही किया जाता है। इसके साथ ही 11 फीसद चाय उपभोग के साथ भारत सबसे बड़ा चाय का उपभोगकर्ता भी है। चाय को पेय प्रदार्थ के तौर पर उपभोग में लाया जाता है। अगर चाय का सेवन सीमित रूप में करते है, तो आपको इससे विभिन्न लाभ मिलते हैं। भारत में चाय का सर्वाधिक सेवन किया जाता है। विश्व में भी जल के उपरांत यदि किसी पेय प्रदार्थ का सबसे ज्यादा उपयोग किया जाता है, उसका नाम चाय है। चाय में कैफीन भी काफी ज्यादा मात्रा में विघमान रहती है। चाय प्रमुख तौर पर काले रंग में पाई जाती है, जिसे पौधों और पत्तियों से तैयार किया जाता है। गर्म जलवायु में चाय के पौधे अच्छे से प्रगति करते है। यदि आप भी चाय की खेती करना चाहते हैं, तो आइए हम इस लेख में आपको चाय की खेती से जुड़ी अहम जानकारी देंगे।

चाय की खेती हेतु मृदा, जलवायु एवं तापमान कैसा होना चाहिए

चाय की खेती करने के लिए हल्की अम्लीय जमीन की जरूरत होती है। इसकी खेती के लिए बेहतर जल निकासी वाली भूमि होना अति आवश्यक है। क्योंकि, जलभराव वाली जगहों पर इसके पौधे काफी शीघ्रता से नष्ट हो जाते हैं।
चाय की खेती अधिकांश पहाड़ी इलाकों में की जाती है। चाय की खेती हेतु जमीन का P.H. मान 5.4 से 6 के बीच रहना चाहिए। चाय की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु को उपयुक्त माना जाता है। चाय के पौधों को गर्मी के साथ-साथ वर्षा की भी जरुरत पड़ती है। शुष्क और गर्म जलवायु में इसके पौधे अच्छे से विकास करते हैं। इसके अतिरिक्त छायादार स्थानों पर भी इसके पौधों को विकास करने में सहजता होती है। अचानक से होने वाला जलवायु परिवर्तन फसल के लिए नुकसानदायक होता है। इसके पौधों को शुरुआत में सामान्य तापमान की जरूरत पड़ती है। चाय के पौधों को विकास करने के लिए 20 से 30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। चाय के पौधे कम से कम 15 डिग्री और ज्यादा से ज्यादा 45 डिग्री तापमान ही झेल सकते हैं।

जानें चाय की उन्नत किस्में कौन-कौन सी हैं

चीनी जात चाय

चाय की इस किस्म में पौधों का आकार झाड़ीनुमा होता है, जिसमें निकलने वाली पत्तियां चिकनी और सीधी होती हैं। इसके पौधों पर बीज काफी शीघ्रता से निकल आते हैं और इसमें चीनी टैग की खुशबू विघमान होती है। इसकी पत्तियों को तोड़ने के दौरान अगर अच्छी पत्तियों का चयन किया जाता है, तो चाय भी उच्च गुणवत्ता वाली अर्जित होती है।

असमी जात चाय

चाय की यह प्रजाति विश्व में सबसे बेहतरीन मानी जाती है। इसके पौधों पर निकलने वाली पत्तियों का रंग थोड़ा हरा होता है, जिसमें पत्तियां चमकदार एवं मुलायम होती हैं। इस प्रजाति के पौधों को फिर से रोपण करने के लिए भी उपयोग में लिया जा सकता है।

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व्हाइट पिओनी चाय

चाय की यह व्हाइट पिओनी प्रजाति सर्वाधिक चीन में उत्पादित की जाती है। इस प्रजाति के पौधों पर निकलने वाली पत्तियां कोमल एवं बड्स के जरिए से तैयार की जाती हैं। साथ ही, चाय में हल्का कड़कपन भी पाया जाता है। इसको जल में डालने पर इसका रंग हल्का हो जाता है।

सिल्वर निडल व्हाइट चाय

सिल्वर निडल व्हाइट प्रजाति की चाय को कलियों के जरिए से तैयार किया जाता है। इस प्रजाति की कलियां चहुंओर से रोये से ढक जाती हैं। इसके बीज पानी में डालने पर हल्के रंग के पड़ जाते हैं। सिल्वर निडल व्हाइट किस्म का स्वाद मीठा एवं ताजगी वाला होता है।

चाय कितने तरह की होती है

चाय की उन्नत प्रजातियों से चाय प्रमुख तौर पर काली, सफेद और हरे रंग की अर्जित हो जाती है। इसकी पत्तियों, शाखाओं एवं कोमल हिस्सों को प्रोसेसिंग के जरिए से तैयार किया जाता है।

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सफेद चाय

सफेद चाय को तैयार करने के लिए पौधों की ताजा एवं कोमल पत्तियों को उपयोग किया जाता है। इस प्रकार की चाय स्वाद का स्वाद मीठा होता है। इसमें एंटी-ऑक्सिडेंट की मात्रा ज्यादा और कैफीन की मात्रा काफी कम पाई जाती है।

हरी चाय

हरी चाय की पत्तियों से विभिन्न प्रकार की चाय बनाई जाती है। इसके पौधों में निकलने वाली कच्ची पत्तियों से हरी चाय को तैयार करते है। इस चाय में एंटी-ऑक्सिडेंट की मात्रा सर्वाधिक होती है।

काली या आम चाय

यह एक साधारण चाय होती है, जो कि प्रमुख तौर पर हर घर में मौजूद होती हैं। इसके दानों को विभिन्न तरह की चायों को बनाने हेतु इस्तेमाल में लाया जाता है। परंतु, सामान्य तौर पर इसको साधारण चाय के लिए उपयोग में लाते हैं। इस प्रजाति की चाय को तैयार करने के लिए पत्तियों को तोड़के कर्ल किया जाता है, जिससे दानेदार बीज भी मिल जाते हैं।

चाय की खेती के लिए भूमि की तैयारी एवं खाद

चाय के पौधे एक बार तैयार हो जाने के पश्चात विभिन्न सालों तक पैदावार देते हैं। इसलिए इसके खेत को बेहतर ढ़ंग से तैयार कर लिया जाता है। भारत में इसका उत्पादन अधिकांश पर्वतीय इलाकों में ढलान वाली भूमि में किया जाता है। इसके लिए भूमि में गड्डों को तैयार कर लिया जाता है। यह गड्डे पंक्तिबद्ध ढ़ंग से दो से तीन फीट का फासला रखते हुए तैयार किये जाते हैं। इसके अतिरिक्त पंक्तियों के बीच भी एक से डेढ़ मीटर का फासला रखा जाता है। इसके उपरांत तैयार गड्डों में जैविक खाद के तौर पर 15 KG पुरानी गोबर की खाद व रासायनिक खाद स्वरूप 90 KG पोटाश, 90 KG नाइट्रोजन और 90 KG सुपर फास्फेट की मात्रा को मृदा में मिश्रित कर प्रति हेक्टेयर में तैयार गड्डो में भर दिया जाता है। यह समस्त गड्डे पौध रोपाई से एक महीने पूर्व तैयार कर लिए जाते हैं | इसके पश्चात भी इस खाद को पौधों की कटाई के चलते साल में तीन बार देना पड़ता है।

चाय के पौधों को प्रभावित करने वाले रोग और उनका नियंत्रण कैसे करें

बतादें, कि अन्य फसलों की भांति ही चाय के पौधों में भी विभिन्न प्रकार के रोग लग जाते है, जो पौधों पर आक्रमण करके बर्बाद कर देते हैं। अगर इन रोगों का नियंत्रण समयानुसार नहीं किया जाता है, तो उत्पादन काफी प्रभावित होता है। इसके पौधों में मूल विगलन, चारकोल विगलन, गुलाबी रोग, भूरा मूल विगलन रोग, फफोला अंगमारी, अंखुवा चित्ती, काला मूल विगलन, भूरी अंगमारी, शैवाल, काला विगलन कीट और शीर्षरम्भी क्षय जैसे अनेक रोग दिखाई पड़ जाते हैं। जो कि चाय के उत्पादन को बेहद प्रभावित करते हैं। इन रोगो से पौधों का संरक्षण करने हेतु रासायनिक कीटनाशक का छिड़काव समुचित मात्रा में किया जाता है।

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चाय की खेती से कितनी आमदनी होती है

चाय के पौधे रोपाई के एक साल पश्चात पत्तियों की कटाई के लिए तैयार हो जाते है। इसके उपरांत पत्तियों की तुड़ाई को एक वर्ष में तीन बार किया जा सकता है। बतादें, कि इसकी प्रथम तुड़ाई मार्च के महीने में की जाती है। वहीं, अतिरिक्त तुड़ाई को तीन माह के समयांतराल में करना होता है। चाय की विभिन्न तरह की उन्नत प्रजातियों से प्रति हेक्टेयर 600 से 800 KG की पैदावार हांसिल हो जाती है। बाजार में चाय का भाव बेहद अच्छा होता है, जिससे किसान भाई चाय की एक साल की फसल से डेढ़ से दो लाख तक की आमदनी सहजता से कर सकते हैं।
घर के गमले में अदरक का पौधा : बढ़ाये चाय की चुस्की व सब्जियों का जायका

घर के गमले में अदरक का पौधा : बढ़ाये चाय की चुस्की व सब्जियों का जायका

वृंदावन। चाय में अदरक का अपना अलग ही महत्व होता है। बिना अदरक वाली चाय की चुस्की आनंददायक नहीं होती है। अदरक (Ginger (जिंजर)) को सब्जियों में डालने से सब्जियों का जायका भी बढ़ जाता है और चाय में डालने से चाय की चुस्की आनंदित कर देती है। अदरक हर घर की जरूरत है। आप अपने घर के गमले में अदरक का पौधा लगाकर कर सकते हैं अपने जीवन को आनंदित। अदरक का उपयोग हम सभी अपने-अपने घरों में करते हैं। कुछ लोग इसका उपयोग मसाले के तौर पर करते हैं, तो कुछ गार्निशिंग के लिए। इसके अरोमा और फ्लेवर से खाने का स्वाद चार गुना बढ़ जाता है।

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घर में कैसे उगाएं अदरक ?

लोगों की सेहत के लिए अदरक का सेवन बहुत ही लाभदायक होता है और यह घरेलु इम्यूनिटी बूस्टर काढ़े में मौजूद तत्वों में से एक प्रमुख तत्व है। यह हमारे तनाव को कम करने में भी मदद करता है। इस प्रकार यदि हम घर पर ही शुद्ध व ताजी अदरक उगाना चाहते हैं, तो इसके लिए आसान से तरीके हैं।

- सर्वप्रथम हमें बाजार से अदरक की जड़ें लेकर आना चाहिए। फिर उन्हें घर पर गमले अथवा घर के आस-पास बगीचे में लगा देना चाहिए, फिर वह धीरे-धीरे अंकुरित होगी और कुछ समय बाद अदरक का पौधा बनने लगेगा।

- दूसरी प्रकिया के मुताबिक, बीज के रूप में हम गमले या बगीचे में अदरक के लगभग 2 से 2.5 इंच लंबे टुकड़ों को मिट्टी में गाड़ देंगे, जिससे धीरे धीरे अदरक का पौधा अंकुरित होगा और यह पौधा बड़ा हो जाएगा।

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२० से २५ दिन में तैयार हो जाता है अदरक

अच्छी तरह से नियमित देखभाल एवं समय-समय पर छिड़काव करने से अदरक का पौधा तेजी से विकास करता है। एक स्वस्थ पौधा करीब २० से २५ दिन में अदरक तैयार कर देता है।

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अदरक के पौधे की सुरक्षा एवं रखरखाव

1- घर पर ही गमले में अदरक उगा‌ रहे हैं, तो हमें गमले को ऐसे स्थान पर रखना चाहिए जहां उसे समय-समय पर धूप और जल मिल सके। 2- बगीचे में अगर अदरक उगा‌ रहे हैं, तो पौधे को ऐसे स्थान पर लगाना चाहिए जहां धूप पड़ती हो और जल आसानी से मिल सके। 3- ध्यान रहे कि अदरक के पौधे में जल अधिक नहीं डालना चाहिए। अधिक जल से पौधे में सड़न आ सकती है। 4- अदरक के पौधे वाले गमले अथवा बगीचे में जल निकास की व्यवस्था भी करनी चाहिए। 5- अदरक के पौधे को कीड़ों से बचाने के लिए दवा का छिड़काव करना चाहिए, क्योंकि इसमें कीड़े लगने की संभावना ज्यादा रहती है। 6- नियमित पौधे की देखभाल एवं समय-समय पर छिड़काव करना चाहिए। 7- नीबूं पानी का घोल बनाकर छिड़काव करने से कीटों से निजात मिलती है। 

 ------ लोकेन्द्र नरवार

किसानों को होगा मुनाफा इलाहाबादी सुर्खा अमरुद किया जायेगा निर्यात

किसानों को होगा मुनाफा इलाहाबादी सुर्खा अमरुद किया जायेगा निर्यात

कौशांबी जनपद के प्रसिद्ध इलाहाबादी सुर्खा अमरूद शीघ्र ही दुसरे देशों में निर्यात किया जाएगा। अमरूद के बागानों में बैगिंग के लिए दिये जाने वाला प्रशिक्षण, फेरोमैन ट्रैप एवं कैनोपी प्रबंधन सफल साबित हो रहा है। इस सुर्खा अमरूद को इलाहाबादी अमरूद के नाम से भी जाना जाता है। यूपी के कौशांबी जनपद में अमरूद की बागवानी करने वाले कृषकों के अच्छे दिन शीघ्र आने वाले हैं। प्रदेश सरकार द्वारा अमरूद को क्षेत्रीय बाजार के अतिरिक्त विदेशों में निर्यात करने की व्यवस्था की शुरूआत की गयी है। फल की बैगिंग उद्यान विभाग के अधकारियों द्वारा एक्सपोर्ट क्वालिटी के अनुरूप करेंगे। डीडी उद्यान प्रयागराज मंडल डॉ कृष्ण मोहन चौधरी के अनुसार चायल विकासखंड के अमरूद फल की पट्टी क्षेत्र के बागानों में बैगिंग हो रही है। इसके लिए अमरूद के कृषकों को कई सारी गोष्ठियों का आयोजन करके जागरूक किया जायेगा। जिसकी सहायता से किसानों को अमरूद के बागानों में बैगिंग को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया सके। साथ ही, बागानों में एक्सपोर्ट क्वालिटी की पैदावार हो पायेगी।

अमरूद की बैगिंग के बारे में जानें

कौशांबी के नोडल वैज्ञानिक डॉ मनीष केशरवानी का कहना है, कि क्षेत्रीय अमरूद किसानों की इसी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए अमरूद की बैगिंग प्रारंभ हो गयी है। बतादें कि, बैगिंग अमरूद के फल को एक विशेष प्रकार के बैग से ढ़कने की क्रिया है। अमरूद का फल जब फूल से फल में परिवर्तित होने लगता है, तब उसको एक विशेष प्रकार के पेपर बैग में ड़ालकर बाँध दिया जाता है। इस खास पैकिंग से अमरूद के फल को समुचित मात्रा में रौशनी तो प्राप्त होती ही है। साथ ही, बाहरी प्रदूषण एवं कीट संबंधित रोगों के संक्रमण से फल को बचाया जा सकता है।

फेरोमैन ट्रैप व कैनोपी प्रबंधन काफी सफल साबित हो रहा है

अमरूद के फलों को फ्रूट फ्लाई एवं उकठा रोग के संक्रमण के प्रभाव को वैज्ञानिक शोध उपचार के उपरांत बहुत हद तक नियंत्रित किया गया है। परिणामस्वरूप इस साल फल मंडी में सुर्खा अमरूद सभी मौसमी फलों को पीछे छोड़ रहा है। औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केंद्र खुसरोबाग प्रयागराज के प्रशिक्षण प्रभारी डॉ वीके सिंह के अनुसार कीट, प्रबंधन, कैनोपी, फल, मक्खी प्रबंधन से अमरूद की 90% हानियुक्त फसल को बचा लिया गया है। इसके उपरांत अब बैगिंग विधि से अमरूद को एक्सपोर्ट क्वालिटी के फल के स्तर पर पहुँचाने की कोशिश जारी है।


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कौशांबी जनपद में अमरूद की बहुत सारी भिन्न-भिन्न जगहों पर बाग लगे हुए हैं। जहां से अमरूद तैयार होने के बाद देश के विभिन्न स्थानों पर निर्यात किया जाता है और इससे इलाहाबाद के अमरूद के नाम से भी बुलाया जाता है। लोगों को इलाहाबादी अमरूद खाना बहुत अच्छा लगता है।
जानें भारत में सबसे बड़े पैमाने पर की जाने वाली फसलों से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

जानें भारत में सबसे बड़े पैमाने पर की जाने वाली फसलों से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की 70 प्रतिशत आबादी खेती किसानी पर ही निर्भर रहती है। कोरोना जैसी महामारी में भी केवल कृषि क्षेत्र ने ही देश की अर्थव्यवस्था को संभाला था। भारत में कृषि को देश की रीढ़ की हड्डी माना जाता है। भारत पहले से ही बहुत सारी फसलों का बहुत बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है। इन फसलों के अंतर्गत मक्का, दलहन, तिलहन, चाय, कॉफी, कपास, गेहूं, धान, गन्ना, बाजरा आदि शम्मिलित हैं। अन्य देशों की तुलना में भारत की भूमि कृषि हेतु अत्यधिक बेहतरीन व उपजाऊ होती है।


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भारत में प्रत्येक फसल उत्पादन हेतु विशेष जलवायु एवं मृदा उपलब्ध है। जैसा कि हम जानते ही हैं, कि फसल रबी, खरीफ, जायद इन तीन सीजन में की जाती है, इन सीजनों के अंतर्गत विभिन्न फसलों का उत्पादन किया जाता है। भारत की मृदा से उत्पन्न अन्न का स्वाद विदेशी लोगों को भी बहुत भाता है। आंकड़ों के अनुसार भारत में बाजरा, मक्का, दलहन, तिलहन, कपास, धान, गेहूं से लेकर गन्ना, चाय, कॉफी का उत्पादन विशेष तौर पर किया जाता है, परंतु इन फसलों में से धान की फसल का उत्पादन भारत के सर्वाधिक रकबे में उत्पादित की जाती है।

कौन कौन से राज्यों में हो रही है, धान की खेती

हालाँकि धान एक खरीफ सीजन की प्रमुख नकदी फसल है। साथ ही, देश की आहार श्रृंखला के अंतर्गत धान सर्वप्रथम स्थान पर आता है। भारत के धान या चावल की खपत देश में ही नहीं विदेशों में भी भारतीय चावल की बेहद मांग है। एशिया के अतिरिक्त विभिन्न देशों में प्रतिदिन चावल को आहार के रूप में खाया जाता है। यही कारण है, कि किसान निर्धारित सीजन के अतिरिक्त भी विभिन्न राज्यों में बारह महीने धान का उत्पादन करते हैं। अगर हम धान का उत्पादन करने वाले कुछ प्रमुख राज्यों के बारे में बात करें, तो पंजाब, हरियाणा, बिहार, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और आन्ध्र प्रदेश में धान का उत्पादन अच्छे खासे पैमाने पर किया जाता है।

धान की खेती किस प्रकार की जाती है

चावल केवल भारत के साथ-साथ विभिन्न देशों की प्रमुख खाद्यान्न फसल है। धान की फसल के लिए सबसे जरूरी बात है, इसको जलभराव अथवा ज्यादा बरसात वाले क्षेत्र धान के उत्पादन हेतु बेहतर साबित होते हैं। इसकी वजह यह है, कि धान का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने हेतु बहुत ज्यादा जल आपूर्ति की जरूरत होती है। विश्वभर में धान की पैदावार के मामले में चीन पहले स्थान पर है, इसके उपरांत भारत दूसरे स्थान पर धान उत्पादक के रूप में बनकर उभरा है। चावल की खेती करते समय 20 डिग्री से 24 डिग्री सेल्सियत तापमान एवं 100 सेमी0 से ज्यादा बारिश एवं जलोढ़ मिट्टी बहुत अच्छी होती है। भारत में मानसून के दौरान धान की फसल की बुवाई की जाती है, जिसके उपरांत धान की फसल अक्टूबर माह में पकने के उपरांत कटाई हेतु तैयार हो जाती है।

इन राज्यों में धान का उत्पादन 3 बार होता है

देश के साथ अन्य देशों में भी धान की काफी खपत होती है, इसी वजह से धान की फसल कुछ राज्यों के अंदर वर्षभर में 3 बार उत्पादित की जाती है। इन राज्यों के अंतर्गत ओडिशा, पश्चिम बंगाल एवं असम प्रथम स्थान पर आते हैं, जो धान के उत्पादन हेतु प्राकृतिक रूप से समृद्ध राज्य हैं। इन राज्यों में कृषि रबी, खरीफ अथवा जायद के अनुरूप नहीं बल्कि ऑस, अमन व बोरो अनुरूप वर्ष में तीन बार धान की फसल का उत्पादन किया जाता है।

जलवायु परिवर्तन से क्या हानि हो सकती है

धान एक प्रमुख नकदी फसल तो है, परंतु ग्लोबल वार्मिंग एवं मौसमिक बदलाव के कारण से फिलहाल धान के उत्पादन में बेहद हानि हुई है। वर्ष 2022 भी धान के किसानों हेतु अत्यंत चिंताजनक रहा है। देरी से हुए मानसून की वजह से धान की रोपाई ही नहीं हो पाई है, बहुत सारे किसानों द्वारा धान की रोपाई की जा चुकी थी। परंतु अक्टूबर माह में कटाई के दौरान बरसात की वजह से आधे से ज्यादा धान नष्ट हो गया, इसलिए वर्तमान में चावल के उत्पादन की जगह पर्यावरण एवं जलवायु के अनुरूप फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहन दिया जाता है।

धान की फसल के लिए योजनाएं एवं शोध

प्रत्येक खरीफ सीजन के दौरान समय से पूर्व धान का उत्पादन करने वाले किसानों हेतु बहुत सारी योजनाएं जारी की जाती हैं। साथ ही, कृषि के व्यय का भार प्रत्यक्ष रूप से किसानों को प्रभावित न कर सके। विभिन्न राज्य सरकारें न्यूनतम दरों पर चावल की उन्नत गुणवत्ता वाले बीज प्रदान करती हैं। धान की सिंचाई से लेकर कीटनाशक व उर्वरकों हेतु अनुदान दिया जाता है। धान की खेती के लिए मशीनीकरण को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। साथ ही, धान की फसल को मौसमिक प्रभाव से संरक्षण उपलब्ध कराने हेतु फसल बीमा योजना के अंतर्गत शम्मिलित किया गया है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, हाइब्रिड चावल बीज उत्पादन एवं राष्ट्रीय कृषि विकास योजना आदि भी चावल का उत्पादन करने वाले कृषकों को आर्थिक एवं तकनीकी सहायता मुहैय्या कराती है। चावल के सबसे बड़े शोधकर्ता के आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय चावल अनुसन्धान संस्थान, मनीला (फिलीपींस) एवं भारत में राष्ट्रीय चावल अनुसन्धान संस्थान, कटक (उड़ीसा) पर कार्य कर रहे हैं, जो किसानों को धान की वैज्ञानिक कृषि करने हेतु प्रोत्साहित कर रहे हैं।
Merikheti.com ने की जनवरी की मासिक किसान पंचायत

Merikheti.com ने की जनवरी की मासिक किसान पंचायत

Merikheti.com के द्वारा 7 जनवरी 2023 दिन शनिवार को सोनीपत (हरियाणा) के गाँव टिकोला में आयोजित की गयी। मासिक किसान पंचायत के दौरान किसानों को कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली फसलों एवं तकनीकों के बारे में बताया गया था। Merikheti.com द्वारा प्रत्येक माह किसान मासिक पंचायत का आयोजन किया जाता है। जिससे कि किसानों को वर्तमान में कृषि क्षेत्र में हुए परिवर्तन के बारे में बताया जा सके साथ ही उनकी आय में बढ़ोत्तरी करके उनको अच्छे ढंग से अपना जीवन यापन करने के लिए सक्षम बनाया जा सके। हमारे समाज की रीढ़ के रूप में, खेती किसानी हर वर्ग को खाना दिलाकर पेट भरने वाला इकलौता व्यवसाय है । हालांकि, उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण के बावजूद, किसानों को अक्सर ऐसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो उनके कल्याण और आजीविका को प्रभावित कर सकती हैं। इन मुद्दों को हल करने और किसानों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए नियमित बैठकें आयोजित करना महत्वपूर्ण है ,जहां वे अपनी समस्याओ पर चर्चा करने और उनका समाधान खोजने के लिए एक साथ आ सकें। किसानों के हित में आयोजित इस कार्यक्रम के दौरान देश के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक मौजूद रहते हैं। किसान बेझिझक अपने सवाल पूछते हैं, जिनका उत्तर कार्यक्रम में उपस्थित कृषि विशेषज्ञ और कृषि वैज्ञानिक विस्तृत रूप में देते हैं। किसान मासिक पंचायत के दौरान डॉ सी.बी. सिंह प्रिंसिपल साइंटिस्ट (RETD) IARI एवं डॉ हरीश कुमार कृषि वैज्ञानिक PUSA (ICAR) सहित अन्य बहुत से कृषि क्षेत्र से जुड़े दिग्गज वैज्ञानिक उपस्थित रहे। किसानों को जैविक खेती की ओर बढ़ने की सलाह दी गई। इस पंचायत में मैसी फर्ग्यूसन (Massey Ferguson) से आए विशेषज्ञों ने भी बढ़चढ़कर भागीदारी दर्ज की। मैसी के विशेषज्ञों ने किसानों की ट्रैक्टर से संबंधित जिज्ञासा के बारे में भी उनको बेहतर जानकारी प्रदान की। Merikheti.com का मुख्य उद्देश्य किसानों की बेहतरी है। इसलिए प्रत्येक माह किसान मासिक पंचायत का आयोजन किया जाता है। इस आयोजन से किसानों को कृषि से संबंधित बहुत-सी महत्त्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त होती हैं। उनको फसलों के उत्तम चयन व फसलों की देखभाल किस प्रकार करें आदि आवश्यक पहलुओं के बारे में बेहद गहनता से बताया जाता है। किसान इस मासिक पंचायत में बढ़चढ़ कर हिस्सेदारी लेते हैं। कृषि वैज्ञानिकों के माध्यम से किसानों की समस्याओं का समाधान प्रदान किया जाता है। मासिक किसान पंचायत के अंतर्गत वैज्ञानिकों से सवाल पूछने वाले किसानों को पुरुस्कृत किया जाता है।
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मेरीखेती की टीम विभिन्न राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों में मासिक किसान पंचायत का आयोजन कराती है। किसान भी इन कार्यक्रमों में खूब दिलचस्पी दिखाते हैं। किसानों को बीज उत्पादन से लेकर व्यापारी बनाने तक की जानकारी कृषि वैज्ञानिकों द्वारा प्रदान की जाती है। इस मासिक किसान पंचायत में वैज्ञानिक एवं विशेषज्ञ किसानों को आधुनिक तकनीकों एवं कृषि प्रणाली के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। अगर किसी किसान को कृषि संबंधित किसी भी प्रकार की कोई समस्या होती है, तो कार्यक्रम में उपस्थित कृषि वैज्ञानिक किसान की समस्या का सर्वोत्तम समाधान प्रदान करते हैं। यदि आप भी खेती किसानी करते हैं, तो Merikheti.com पर कृषि संबंधित सही एवं सटीक जानकरी ले सकते हैं।
भारत ने किया रिकॉर्ड तोड़ चाय का निर्यात

भारत ने किया रिकॉर्ड तोड़ चाय का निर्यात

भारत द्वारा रिकॉर्ड तोड़ चाय का निर्यात किया गया है। बीते बहुत से वर्षों में निर्यात के आंकड़े काफी हद तक बढ़े हैं। चाय का विदेशों में किया गया निर्यात इस बार बढ़कर के 18.53 करोड़ किलोग्राम तक पहुँच गया है। दरअसल, ईरान, रूस, यूएई सहित विभिन्न देशों में भारत ने चाय निर्यात की है। कृषि उत्पादों का उत्पादन, निर्यात के संदर्भ में भारत निरंतर रिकॉर्ड तोड़ रहा है। बतादें, कि आलू, गेहूं, धान, गन्ना में भारत की विश्व में एक अलग ही पहचान रखता है। किसानों की मेहनत की वजह से करोड़ों हेक्टेयर में फसलों का उत्पादन किया जाता है। चाय के उत्पादन में भी देश ने अपनी विशेष पहचान स्थापित की है। मुख्य बात यह है, कि देश की चाय की चुस्की विश्व के विभिन्न देश ले रहे हैं। हाल ही, में चाय के निर्यात के नवीन आंकड़ें देखने को मिल रहे हैं।

चाय का निर्यात कितने करोड़ किलो हो गया है

भारत से चाय के निर्यात के आंकड़ें समक्ष आ चुके हैं। बीते वर्ष जनवरी से अक्टूबर के मध्य चाय का निर्यात 18.53 करोड़ किलोग्राम तक रहा है। जिसमें 18.1 फीसद की बढ़ोत्तरी हुई है। लेकिन, पूर्व में यह 16 करोड़ किलोग्राम रहा था।

राष्ट्रकुल देशों में सर्वाधिक चाय निर्यात की गई है

चाय बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक, राष्ट्रकुल देश (सीआईएस ब्लॉक) वर्ष 2022 के पूर्व दस माह में 4 करोड़ 36.5 लाख किलोग्राम चाय आयात कर सर्वोच्च आयातक देशों का समूह रहा। जो कि इससे पहले यह 3 करोड़ 69.5 लाख किलोग्राम पर रहा था। साथ ही, रूस राष्ट्रकुल देशों में 3 करोड़ 28 लाख किलोग्राम की चाय आयात करने सहित सीआईएस ब्लॉक में सर्वोच्च आयातक देश रहा था।
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यूएई (UAE) द्वारा 3 करोड़ से ज्यादा का चाय आयात किया है

संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने साल 2022 में इसी दौरान में 3 करोड़ 29.5 लाख किलोग्राम सहित दूसरे सर्वोच्च आयातक के तौर पर सामने आया है। बीते वर्ष में इसी समय में यह 1 करोड़ 24.5 लाख किलोग्राम रहा था।

ईरान द्वारा चाय का आयात कम करना चिंता का विषय

ईरान भारतीय चाय का बड़ा खरीदार रहा है। परंतु, वर्तमान में ईरान के चाय आयात के आंकड़ों ने चिंता को काफी बढ़ा दिया है। ईरान द्वारा जनवरी माह से अक्टूबर 2022 तक 1 करोड़ 95.2 लाख किलोग्राम चाय का आयात किया गया है। साल 2021 में इसी दौरान में दो करोड़ 14.5 लाख किलोग्राम से बहुत कम है।
Merikheti.com ने राजस्थान में फरवरी की मासिक किसान पंचायत का आयोजन किया

Merikheti.com ने राजस्थान में फरवरी की मासिक किसान पंचायत का आयोजन किया

Merikheti.com के द्वारा मासिक किसान पंचायत 12 फरवरी 2023 दिन रविवार को गाँव सीथल, जिला अलवर (राजस्थान) की जय हिन्द नर्सरी में आयोजित की गयी। मासिक किसान पंचायत के दौरान किसानों को कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली फसलों एवं तकनीकों के बारे में बताया गया था। Merikheti.com द्वारा प्रत्येक माह किसान मासिक पंचायत का आयोजन किया जाता है। जिससे कि किसानों को वर्तमान में कृषि क्षेत्र में हुए परिवर्तन के बारे में बताया जा सके साथ ही उनकी आय में बढ़ोत्तरी करके उनको अच्छे ढंग से अपना जीवन यापन करने के लिए सक्षम बनाया जा सके। किसानों के हित में आयोजित इस कार्यक्रम के दौरान  भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के  वैज्ञानिक  मौजूद रहते हैं। किसान बेझिझक अपने सवाल पूछते हैं, जिनका उत्तर कार्यक्रम में उपस्थित कृषि विशेषज्ञ  विस्तृत रूप में देते हैं। किसान मासिक पंचायत के दौरान डॉ सी.बी. सिंह प्रिंसिपल साइंटिस्ट (RETD) IARI , डॉ विपिन शर्मा कृषि वैज्ञानिक (KvK) G. B नगर और डॉ हरीश कुमार कृषि वैज्ञानिक PUSA (ICAR) सहित अन्य बहुत से कृषि क्षेत्र से जुड़े दिग्गज वैज्ञानिक उपस्थित रहे।  इस मासिक किसान पंचायत में वैज्ञानिकों ने  गाँव सीथल (भिवाड़ी ) के किसानों  को खेती की ऊपज बढ़ाने के लिए कई नुस्खों और तकनीकों के बारे में बताया। सीथल गाँव शुष्क इलाकों में आता है यहां खेती वर्षा पर ही आधारित है यहां के किसानों को बताते हुए वैज्ञानिकों ने कहा की  आप जैविक खेती को अपना कर भी अच्छी पैदावर ले सकते है। वैज्ञानिकों ने किसनो को संजीवक, जीवामृत बनाने की विधि के बारे में बताया। ये दोनों घोल बनाने की विधि निम्नलिखित है। 

संजीवक घोल को बनाने की विधि इस प्रकार है

संजीवक का उपयोग सूक्ष्मजीवों और त्वरित अवशेषों के अपघटन के साथ मिट्टी को समृद्ध करने के लिए उपयोग किया जाता है।  सबसे पहले आपको 500 लीटर  के बंद ड्रम में 300 लीटर पानी में 100-200 किलो गाय का गोबर, 100 लीटर गोमूत्र और 500 ग्राम गुड मिलाना है। इसके बाद इस ड्रम को बंद करके 10 दिनों के लिए गलने के लिए रख दे। 10 दिनों बाद ये संजीवक घोल बनकर तैयार हो जाता है। इसका प्रयोग 20 गुना पानी में घोलकर एक एकड़ में या तो मिट्टी के स्प्रे के रूप में या सिंचाई के पानी के साथ छिड़काव करें।संजीवक घोल का छिड़काव सिंचाई के पानी के माध्यम से उपयोग किया जाता है।  ये भी देखें: Merikheti.com ने की जनवरी की मासिक किसान पंचायत तीन बार इस  घोल का छिड़काव करने से फसल की ऊपज में बढ़ोतरी होती है, एक बुवाई से पहले, दूसरा बुवाई के बीस दिन बाद और तीसरा बुवाई के 45 दिन बाद।

जीवामृत बनाने की विधि

एक बैरल/ड्रम में 100 लीटर पानी लें और 10 किलो गाय का गोबर और 10 लीटर गोमूत्र में मिलाएं। इसके बाद  दो किलो गुड़ और दो किलो चना या कोई भी दाल का आटा इस घोल में  लकड़ी की डंडी से अच्छी तरह मिला लें। इस घोल को 5 से 7 दिन के लिए गलने के लिए रख दें। घोल को नियमित रूप से दिन में तीन बार हिलाएं। जीवामृत का छिड़काव करके या सिंचाई के पानी के माध्यम से मिट्टी में मिला कर इसका उपयोग किया जाता है। तीन बार इस घोल को उपयोग करने की  जरूरत है एक बुवाई से पहले, दूसरा बुवाई के बीस दिन बाद और तीसरा बुवाई के 45 दिन बाद। इस प्रकार यदि किसान इस घोल को प्रयोग करते है तो फसल की ऊपज में इजाफा होता है।  Merikheti.com का मुख्य उद्देश्य किसानों की बेहतरी है। इसलिए प्रत्येक माह किसान मासिक पंचायत का आयोजन किया जाता है। इस आयोजन से किसानों को कृषि से संबंधित बहुत-सी महत्त्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त होती हैं। उनको फसलों के उत्तम चयन व फसलों की देखभाल किस प्रकार करें आदि आवश्यक पहलुओं के बारे में बेहद गहनता से बताया जाता है। किसान इस मासिक पंचायत में बढ़चढ़ कर हिस्सेदारी लेते हैं। कृषि वैज्ञानिकों के माध्यम से किसानों की समस्याओं का समाधान प्रदान किया जाता है। मासिक किसान पंचायत के अंतर्गत वैज्ञानिकों से सवाल पूछने वाले किसानों को पुरुस्कृत किया जाता है।
किसानों को जागरूकता और सूझ बूझ से खेती करने की अत्यंत आवश्यकता है : Merikheti.com

किसानों को जागरूकता और सूझ बूझ से खेती करने की अत्यंत आवश्यकता है : Merikheti.com

किसान भाई बेहद समस्याओं का सामना करते हैं। कभी प्राकृतिक आपदाएं तो कभी निराश्रित पशुओं से होने वाली हानि तो कभी फसल का समुचित मूल्य ना मिल पाना। किसान हमेशा चुनौतियों से घिरे रहते हैं। साथ ही, हमारे किसान भाई फसल उत्पादन करने से पूर्व किस फसल का चयन करें और किस फसल का नहीं उनको इस बात की जानकारी का अभाव होता है। इसलिए, आज भी किसान भाई परंपरागत तरीके से कृषि करने में अधिक विश्वास रखते हैं। भूमिगत तौर पर किसान फसल वहां की मृदा और जलवायु के अनुरूप उगाते हैं। लेकिन फायदेमंद और लाभकारी विकल्प को चुनने में मात खा जाते हैं। यूँ तो भारत में बहुत सी अनुपयोगी चीजों का भी विपणन कर किसान भाइयों को गुमराह किया जाता है। लेकिन कुछ फसलें ऐसी भी हैं जिनका उत्पादन समय की मांग के अनुरूप किया जाए तो किसान अच्छी आय कर सकते हैं। किसानों को अगर सुखी और समृद्ध बनना है, तो उनको काफी सजग और जागरूक होने की अत्यंत आवश्यकता है। किसानों की दयनीय स्थिति को देखकर मेरीखेती टीम को काफी हमदर्दी होती है। आजकल किसान सड़कों पर ज्यादा खेत में कम दिखाई देता है, कभी फसल हानि के मुआवजे की गुहार करने तो कभी फसल के समुचित न्यूनतम समर्थन मूल्य की माँग के लिए किसान सड़कों पर मायूस घूमता रहता है। किसानों को अपनी स्थिति को बेहतर बनाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों के संपर्क में रहने की आवश्यकता है। क्योंकि कृषि के क्षेत्र में शोधकर्ता और जानकारों को काफी अनुभव होता है। इस बात के बहुत से प्रमाण भी हैं, कि कृषि वैज्ञानिकों की सलाहनुसार किसानों ने खेती करके अच्छी आय और पैदावार हांसिल की है। इनकी सलाह से खेती करने वाले किसान काफी फायदे में रहते हैं। क्योंकि इनको कृषि क्षेत्र के विषय में काफी जानकारी होती है। तो मानी सी बात है, कि किसानों को इससे काफी लाभ मिलेगा।

Merikheti.com किसानों के लिए लिए हर माह किसान पंचायत आयोजित कराती है

Merikheti.com किसान और कृषि विशेषज्ञों को एक दूसरे से सवाल जवाब करने के लिए एक मंच प्रदान करता है। जहां किसान भाई कृषि समस्याओं से संबंधित समाधान प्राप्त कर सकते हैं। मेरीखेती द्वारा इस आयोजन को निःशुल्क तौर पर केवल किसानों के फायदे के उद्देश्य से कराया जाता है। मेरीखेती टीम किसानों को सजग और जागरूक करने के साथ-साथ उनको अच्छी जानकारी मुहैय्या कराने का कार्य पूरी लगन से करती है। मेरीखेती टीम का केवल एक ही उद्देश्य है, कि किसानों को प्रमाणित और बेहतर जानकारी प्रदान करके उनको एक लाभकारी कृषि प्रणाली की तरफ अग्रसर किया जा सके। केवल इतना ही नहीं देशभर में जहां कहीं भी कृषि से संबंधित एवं किसानों के हित में कोई कार्यक्रम होता है, तो मेरीखेती की टीम उसे कवर करने जरूर पहुँचती है। प्रति माह किसान पंचायत होने से पूर्व उसकी जानकारी मेरीखेती की आधिकारिक फेसबुक पर दे दी जाती है।

किसानों को जागरूक होने की बेहद आवश्यकता है

किसान भाइयों को जागरूक होना ही पड़ेगा अन्यथा उनके हालात बदल नहीं पाएंगे। किसान यदि सही सूझ-बूझ और बेहतर तरीके से कृषि करें तो उनको काफी उन्नति और प्रगति हांसिल हो सकती है। Merikheti.com वेब पोर्टल पर हम कृषि से जुड़ी सही और सटीक जानकारी किसान भाइयों को प्रदान करते हैं। साथ ही, कृषि से संबंधित किसानों की समस्याओं का भी हल यथावत रूप से उनको देने का भी कार्य करते हैं। हम किसानों के लिए समर्पित भाव से कार्य करते आए हैं। किसानों के विकास को प्राथमिकता में रखते हुए हम किसानों को बेहतर जानकारी देने से लेकर प्रति माह किसान पंचायत का आयोजन एवं अन्य हितकर कार्य करते हैं।
असम के चाय उत्पादकों को सामान्य चाय उत्पादन की आशा

असम के चाय उत्पादकों को सामान्य चाय उत्पादन की आशा

चाय का उच्चतम उत्पादक राज्य माने जाने वाले असम राज्य के चाय उत्पादक पूर्व में बेहद चिंताग्रस्त थे। चिंता की वजह यह थी, कि उनको यह संभावना लग रही थी, कि उनकी कम बारिश की वजह से प्रथम फ्लश फसल प्रभावित होगी। दीर्घकाल से सूखे के उपरांत, असम के समस्त चाय बागानों में विगत कुछ दिनों में बेहतरीन बारिश हुई है। जिससे बागान मालिकों के मुँह पर खुशी छा गई है, क्योंकि बरसात से नए सीजन के पूर्व फ्लश उत्पादन के "सामान्य" होने की आशा है। ये भी पढ़े: भारत ने किया रिकॉर्ड तोड़ चाय का निर्यात चाय के उच्चतम उत्पादक राज्य असम में चाय उत्पादक पूर्व में बेहद चिंतित थे। क्योंकि, वह आशा कर रहे थे, कि कम वर्षा से पहली फ्लश फसल प्रभावित होगी। “इससे पहले असम के कुछ इलाकों में बारिश हुई थी, जबकि कुछ इलाके बिल्कुल सूखे रहे थे। लेकिन अब राज्य के सभी हिस्सों में बारिश हुई है। पिछले पांच दिनों में पूरे असम में बारिश हुई है। मुझे लगता है, कि पहली फ्लश फसल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। हमें एक सामान्य फसल मिलनी चाहिए, ” नॉर्थ ईस्टर्न टी एसोसिएशन (NETA) के सलाहकार बिद्यानंद बरकाकोटी ने बताया।

असम चाय उद्योग के लिए पहली फ्लश फसलों का उत्पादन सामान्यतयः मार्च और अप्रैल में किया जाता है।

“पहला फ्लश अब अच्छा रहा है, क्योंकि असम के सभी हिस्सों में बारिश हो रही है। मार्च की फसल पिछले साल की तुलना में बेहतर होनी चाहिए। पिछले साल फसल देरी से शुरू हुई थी। इस साल इसकी शुरुआत जल्दी हो गई है, जो अच्छी बात है। पिछले सप्ताह तक पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में वर्षा की कमी थी। अब निश्चित तौर पर यह आगे बढ़ गया है।" ये भी पढ़े: सही लागत-उत्पादन अनुपात को समझ सब्ज़ी उगाकर कैसे कमाएँ अच्छा मुनाफ़ा, जानें बचत करने की पूरी प्रक्रिया प्रथम फ्लश फसल असम में कुल चाय उत्पादन का तकरीबन 10% है। हालांकि, असम चाय उद्योग हेतु दूसरा फ्लश ज्यादा जरुरी है, क्योंकि यह प्रीमियम किस्म होती है। दूसरी फ्लश फसलें सामान्यतः मई एवं जून में उत्पादित की जाती हैं। 2022 में, असम चाय का उत्पादन 687.93 मिलियन किलोग्राम रहा था। वहीं, 2021 में यह 667.73 मिलियन किलोग्राम था। 2021 में उत्पादन वर्ष के आरंभिक माहों (जनवरी, फरवरी और मार्च) के साथ-साथ 2020 के बाद (अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर) के समय कम वर्षा की वजह से कम था। “खरीदार मार्च में असम चाय उत्पादन पर इतना निर्भर नहीं हैं। आगे चलकर कीमतें अप्रैल और मई में हुए उत्पादन पर निर्भर करेंगी। जहां तक मैं देखता हूं बाजार अभी भी भूखा नहीं है। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि सर्दियों के दौरान खपत उम्मीद के मुताबिक नहीं बढ़ी थी, जो तुलनात्मक रूप से गर्म थी।"