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ठंड

इस प्रकार बचायें अपने पशुओं को आने वाली शीत लहर से

इस प्रकार बचायें अपने पशुओं को आने वाली शीत लहर से

पराली जलने से देश का बड़ा इलाका प्रदूषित हो रहा है। इसका दुष्प्रभाव लोगों की सेहत पर पड़ने के साथ ही, दुधारु पशुओं को भी इससे कई हानि हैं। देशभर में अधिकतर पशु लंपी रोग से प्रभावित हैं। शीघ्र ही सर्दियां भी आने वाली हैं, ऐसे में पशुओं के अच्छे स्वास्थ्य के लिए उनकी बेहतर देखभाल भी आवश्यक है। सर्दियों के दिनों में ठंड के कारण ज्यादातर पशुओं को बुखार, झंझनाहट एवं कुछ केसों में मवेशियों की मृत्यु तक हो जाती है। इस प्रकार की समस्त समस्याओं से पशुओं के संरक्षण के लिए किसानों एवं पशुपालकों को तैयारी शुरू कर देनी चाहिए।

पशुओं को ठंड से बचाने हेतु इन तरीकों को अपनायें

आमतौर पर शीत लहर के चलते पशुओं की हड्डियों में कंपकंपाहट एवं टांगों में गलन होने लगती है, इससे पशुओं को बचाने के लिए जूट का बोरा पहना सकते हैं। इससे पशुओं में गर्मी बनी रहेगी। पशुओं की बेहतर रोग प्रतिरोधी क्षमता के लिए हरा चारा एवं सूखा चारा १:३ के अनुपात में मिलाकर खिलाना बेहद आवश्यक है। वक्त-वक्त पर पशुओं को गर्म पानी पिलायें व दलिया अथवा चरी उपयुक्त मात्रा में खिलायें। शीत लहर व ठंडी हवाओं से संरक्षण हेतु पशुओं को खुले में रखने की अपेक्षा छप्पर अथवा शेड का प्रयोग करें। सर्दियों में पशुओं को हानिकारक विषाणु से बचाने के लिए धूप में टहलाना आवश्यक है। लंपी का कहर पूर्ण रूप से रुका नहीं है, इसी वजह से समस्त दुधारु मवेशियों का टीकाकरण अति आवश्यक है।


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पशुओं के आस पास साफ सफाई रखें, सर्दियों के समय विभिन्न कीटाणु पैदा हो जाते हैं जो मवेशियों को बीमार कर देते हैं। तबेले, बिछावन और कपड़े को बेहतर ढंग से सूखाने के उपरांत ही प्रयोग करें। थोड़ी सी नमी होने पर पशुओं के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है। पशुओं को चिकने फर्श की बजाय बोरा या बिछावन पर बैठाने की व्यवस्था करें। पशुओं को सरसों के तेल के साथ अच्छा आहार दें एवं खल, गुड़ के साथ अन्य पौष्टिक व बेहतर आहार खिलायें। लंपी का कहर पूर्ण रूप से रुका नहीं है, इसी वजह से समस्त दुधारु मवेशियों का टीकाकरण अति आवश्यक है। सर्दियों में पशुओं को पाचन क्रिया खराब होने से दस्त हो जाते हैं, ऐसे में शीघ्रता बरतते हुए पशु चिकित्सतक से सलाह लें। सर्दी के मौसम में पशुओं को विभिन्न रोगों से ग्रसित होने का खतरा है। खुरपका मुंहपका रोग, निमोनिया, ज़ुकाम एवं अन्य रोगों का खतरा भी बढ़ जाता है। ऐसे में पशु विशेषज्ञ की सलाह अनुसार रोग प्रतिरोधक टीकाकरण करना अति आवश्यक है।
बरसात के साथ बढ़ेगी ठंड

बरसात के साथ बढ़ेगी ठंड

गुजरे दशकों में मध्य नवंबर के बाद हल्की और तेज बरसात के साथ ठंड का आगाज होता हैंं। 31 दिसंबर की आखिरी तारीख घने कोहरे के आगाज का पहला दिन होती है। इस बार बरसात को लेकर मौसम विभाग ने पूर्वानुमान जारी कर दिया है। इससे देश के अधिकांश हिस्सों में बूंदाबांदी और बरसात का योग बना हुआ है। बरसात से पछती धान की खेती वाले इलाकों में गेहूं की बिजाई का कार्य प्रभावित होगा वहीं सरसों की समय से बिजाई कर चुके किसानों को बेहद लाभ होगा। ये भी पढ़े : जानिए चने की बुआई और देखभाल कैसे करें

कब और कहां होगी बरसात

मौसम विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार बंगाल की खाड़ी में निम्न दबाव का क्षेत्र बनने से कई राज्यों में बरसात की संभावना है। 18 से 19 तारीख के मध्य तमिलनाडु एवं तटीय आंध्र प्रदेश में भारी बरसात, छत्तीसगढ़ में 18 को हल्की बरसात, मध्य प्रदेश में हल्की बरसात की संभावना है। राजस्थान में 18 से 20 नवंबर के मध्य हल्की एवं मध्यम बरसात होने की संभावना बनी हुई है। 19—20 को गुजरात के कई इलाकों में हल्की एवं मध्यम बरसात होने की संभावना बनी हुई है। देश के अधिकांश राज्यों में हल्की एवं मध्यम बरसात होने के साथ ही तापमान में गिरावट होगी। ठंड का प्रभाव बढ़ना गेहूं की फसल के विकास के लिए आवश्यक होता है। इसी के चलते मध्य नवंबर के बाद मौसम बदलता है और ठंड में तेजी आती है।
Potato farming: आलू की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

Potato farming: आलू की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि उपज देने वाली आलू की किस्मों की समय से बोआई संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग समुचित कीटनाशक उचित जल प्रबंधन के जरिये आलू का अधिक उत्पादन कर अपनी आय बढ़ाई जा सकती है। आलू एक प्रमुख नगदी फसल है। प्रत्येक परिवार में यह किसी न किसी रूप में उपयोग किया जाता है। इसमें स्टार्च, प्रोटीन, विटामिन-सी एवं खनिज लवण भरपूर मात्रा में विघमान रहते हैं। बतादें, कि अत्यधिक उत्पादन देने वाली प्रजातियों की समय से बुवाई, संतुलित मात्रा में उर्वरकों का इस्तेमाल, समुचित कीटनाशक, बेहतर जल प्रबंधन के माध्यम से आलू की ज्यादा पैदावार कर अपनी आमदनी बढ़ाई जा सकती है।

आलू की खेती के लिए मृदा एवं किस्में

आलू की खेती के लिए जीवांश की भरपूर मात्रा से युक्त दोमट एवं बलुई दोमट मृदा को उपयुक्त माना जाता है। मध्य समय की प्रजातियां - कुफरी लालिमा, कुफरी बहार, कुफरी पुखराज, कुफरी अरुण इत्यादि को नवंबर के पहले सप्ताह में बुवाई करने से अच्छी पैदावार होती है। विलंभ से बोने के लिए कुफरी सिंदूरी, कुफरी देवा और कुफरी बादशाह आदि की नवंबर के आखिरी सप्ताह तक बुवाई जरूर कर देनी चाहिए। यह भी पढ़ें: इस तरह करें अगेती आलू की खेती

आलू की बुवाई एवं खेत की तैयारी इस प्रकार करें

आलू एक शीतकालीन फसल है। इसके जमाव और शुरू की बढ़वार के लिए 22 से 24 डिग्री सेल्सियस और कंद के विकास के लिए 18 से 20 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। खेत की तैयारी हेतु तीन से चार गहरी जुताई करके मृदा को बेहतर तरीके से भुरभुरी बना लें और बुवाई से पूर्व प्रति एकड़ 55 किलो यूरिया, 87 किलो डीएपी अथवा 250 किलो सिंगल सुपर फास्फेट व 80 किलो एमओपी को मृदा में मिला दें।

आलू की खेती से अच्छी पैदावार लेने के लिए खाद का उपयोग

आज हम आपको आलू की खेती में खाद के विषय में जानकारी देंगे। आलू की बुवाई के 30 दिन पश्चात 45 किलो यूरिया खेत में डाल दें। खेत की तैयारी के दौरान 100 किलो जिप्सम प्रति एकड़ उपयोग करने से परिणाम मिलते हैं। शीतगृह से आलू निकालकर सात-आठ दिन छाया में रखने के पश्चात ही बोआई करें। अगर आलू आकार में बड़े हों तो उन्हें काटकर बुवाई करें। परंतु, आलू के प्रत्येक टुकड़े का वजन 35-40 ग्राम के आसपास रहे। प्रत्येक टुकड़े में कम से कम 2 स्वस्थ आंखें होनी चाहिए। इस तरह प्रति एकड़ के लिए 10 से 12 क्विंटल कंद की जरूरत पड़ेगी। यह भी पढ़ें: आलू की पछेती झुलसा बीमारी एवं उनका प्रबंधन बुवाई से पूर्व कंद को तीन फीसद बोरिक एसिड अथवा पेंसीकुरान (मानसेरिन), 250मिली/आठ क्विंटल कंद या पेनफ्लूफेन (इमेस्टो), 100 मिली/10 क्विंटल कंद की दर से बीज का उपचार करके ही बुवाई करें। बुवाई के दौरान खेत में पर्याप्त नमी रखें। एक पंक्ति की दूसरी पंक्ति 50 से 60 सेमी के फासले पर रखें। कंद से कंद 15 सेमी की दूरी पर बोएं। आलू की बुवाई के 7 से 10 दिन के पश्चात हल्की सिंचाई कर दें। खरपतवार नियंत्रण के दो से चार पत्ती आने पर मेट्रिब्यूजीन 70 प्रतिशत, डब्ल्यूपी 100 ग्राम मात्रा 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
ठंडी और आर्द्र जलवायु में रंगीन फूल गोभी की उपज कर कमायें अच्छा मुनाफा, जानें उत्पादन की पूरी प्रक्रिया

ठंडी और आर्द्र जलवायु में रंगीन फूल गोभी की उपज कर कमायें अच्छा मुनाफा, जानें उत्पादन की पूरी प्रक्रिया

छोटे बच्चे से लेकर बुजुर्ग व्यक्ति के जीवन में रंगो का महत्वपूर्ण स्थान होता है। विभिन्न प्रकार के रंग लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं।लेकिन क्या आपको पता है कि अब ऐसी ही रंगीन प्रकार की फूल गोभी (phool gobhee; cauliflower) का उत्पादन कर, सेहत को सुधारने के अलावा आमदनी को बढ़ाने में भी किया जा सकता है। फूलगोभी के उत्पादन में उत्तरी भारत के राज्य शीर्ष पर हैं, लेकिन वर्तमान में बेहतर वैज्ञानिक तकनीकों की मदद से दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्रों में भी फूलगोभी का उत्पादन किया जा रहा है।

फूलगोभी में मिलने वाले पोषक तत्व :

स्वास्थ्य के लिए गुणकारी फूलगोभी में पोटेशियम और एंटीऑक्सीडेंट तथा विटामिन के अलावा कई जरूरी प्रकार के मिनरल भी पाए जाते हैं। शरीर में बढ़े रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल के नियंत्रण में भी फूल गोभी का महत्वपूर्ण योगदान है। किसी भी प्रकार की रंगीन फूल गोभी के उत्पादन के लिए ठंडी और आर्द्र जलवायु अनिवार्य होती है। उत्तरी भारत के राज्यों में सितंबर महीने के आखिरी सप्ताह और अक्टूबर के शुरुआती दिनों से लेकर नवम्बर के पहले सप्ताह में 20 से 25 डिग्री का तापमान रहता है, वहीं दक्षिण भारत के राज्यों में यह तापमान वर्ष भर रहता है, इसलिए वहां पर उत्पादन किसी भी समय किया जा सकता है।


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रंगीन फूलगोभी की लोकप्रिय और प्रमुख किस्में :

वर्तमान में पीले रंग और बैंगनी रंग की फूलगोभी बाजार में काफी लोकप्रिय है और किसान भाई भी इन्हीं दो किस्मों के उत्पादन पर खासा ध्यान दे रहे हैं। [caption id="attachment_11024" align="alignnone" width="357"]पीली फूल गोभी (Yellow Cauliflower) पीली फूल गोभी[/caption] [caption id="attachment_11023" align="alignnone" width="357"]बैंगनी फूल गोभी (Purple Cauliflower) बैंगनी फूल गोभी[/caption] पीले रंग वाली फूलगोभी को केरोटिना (Karotina) और बैंगनी रंग की संकर किस्म को बेलिटीना (Belitina) नाम से जाना जाता है।

कैसे निर्धारित करें रंगीन फूलगोभी के बीज की मात्रा और रोपण का श्रेष्ठ तरीका ?

सितंबर और अक्टूबर महीने में उगाई जाने वाली रंगीन फूलगोभी के बेहतर उत्पादन के लिए पहले नर्सरी तैयार करनी चाहिए। एक हेक्टेयर क्षेत्र के खेत में नर्सरी तैयार करने में लगभग 250 से 300 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

कैसे करें नर्सरी में तैयार हुई पौध का रोपण ?

तैयार हुई पौध को 5 से 6 सप्ताह तक बड़ी हो जाने के बाद उन्हें खेत में कम से कम 60 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाना चाहिए। रंगीन फूलगोभी की बुवाई के बाद में सीमित पानी से सिंचाई की आवश्यकता होती है, अधिक पानी देने पर पौधे की वृद्धि कम होने की संभावना होती है।

कैसे करें खाद और उर्वरक का बेहतर प्रबंधन ?

जैविक खाद का इस्तेमाल किसी भी फसल के बेहतर उत्पादन के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है, इसीलिए गोबर की खाद इस्तेमाल की जा सकती है।सीमित मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग उत्पादकता को बढ़ाने में सहायता प्रदान कर सकता है। समय रहते मृदा की जांच करवाकर पोषक तत्वों की जानकारी प्राप्त करने से उर्वरकों में होने वाले आर्थिक नुकसान को कम किया जा सकता है। यदि मृदा की जांच नहीं करवाई है तो प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में 120 किलोग्राम नाइट्रोजन और 60 किलोग्राम फास्फोरस के अलावा 30 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल किया जा सकता है। गोबर की खाद को पौध की बुवाई से पहले ही जमीन में मिलाकर अच्छी तरह सुखा देना चाहिए। निरन्तर समय पर मिट्टी में निराई-गुड़ाई कर अमोनियम और बोरोन जैसे रासायनिक खाद का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।


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कैसे करें खरपतवार का सफलतापूर्वक नियंत्रण ?

एक बार पौध का सफलतापूर्वक रोपण हो जाने के बाद निरंतर समय पर निराई-गुड़ाई कर खरपतवार को खुरपी मदद से हटाया जाना चाहिए। खरपतवार को हटाने के बाद उस स्थान पर हल्की मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए, जिससे दुबारा खरपतवार के प्रसार को रोकने में मदद मिल सके।

रंगीन फूलगोभी में होने वाले प्रमुख रोग एवं उनका इलाज :

कई दूसरे प्रकार के फलों और सब्जियों की तरह ही रंगीन फूलगोभी भी रोगों से ग्रसित हो सकती है, कुछ रोग और उनका इलाज निम्न प्रकार है :-
  • सरसों की मक्खी :

यह एक प्रकार कीट होते हैं, जो पौधे के बड़े होने के समय फूल गोभी के पत्तों में अंडे देते हैं और बाद में पत्तियों को खाकर सब्जी की उत्पादकता को कम करते हैं।

इस रोग के इलाज के लिए बेसिलस थुरिंगिएनसिस (Bacillus thuringiensis) के घोल का छिड़काव करना चाहिए।

इसके अलावा बाजार में उपलब्ध फेरोमोन ट्रैप (pheromone trap) का इस्तेमाल कर बड़े कीटों को पकड़ा जाना चाहिए।

यह रोग छोटे हल्के रंग के कीटों के द्वारा फैलाया जाता है। यह छोटे कीट, पौधे की पत्तियों और कोमल भागों का रस को निकाल कर अपने भोजन के रूप में इस्तेमाल कर लेते हैं, जिसकी वजह से गोभी के फूल का विकास अच्छे से नहीं हो पाता है।

[caption id="attachment_11030" align="alignnone" width="800"]एफिड रोग (cauliflower aphid) एफिड रोग[/caption]

इस रोग के निदान के लिए डाईमेथोएट (Dimethoate) नामक रासायनिक उर्वरक का छिड़काव करना चाहिए।

  • काला विगलन रोग :

फूल गोभी और पत्ता गोभी प्रकार की सब्जियों में यह एक प्रमुख रोग होता है, जो कि एक जीवाणु के द्वारा फैलाया जाता है। इस रोग की वजह से पौधे की पत्तियों में हल्के पीले रंग के धब्बे होने लगते हैं और जड़ का अंदरूनी हिस्सा काला दिखाई देता है। सही समय पर इस रोग का इलाज नहीं दिया जाए तो इससे तना कमजोर होकर टूट जाता है और पूरे पौधे का ही नुकसान हो जाता है।

इस रोग के इलाज के लिए कॉपर ऑक्सिक्लोराइड (copper oxychloride) और स्ट्रैप्टो-साइक्लीन (Streptocycline)  का पानी के साथ मिलाकर एक घोल तैयार किया जाना चाहिए, जिसका समय-समय पर फसल पर छिड़काव करना चाहिए।

यदि इसके बावजूद भी इस रोग का प्रसार नहीं रुकता है तो, रोग से ग्रसित पौधों को उखाड़कर इकट्ठा करके उन्हें जलाकर नष्ट कर देना चाहिए।

इसके अलावा रंगीन फूलगोभी में आर्द्रगलन और डायमंड बैकमॉथ (Diamondback Moth) जैसे रोग भी होते हैं, इन रोगों का इलाज भी बेहतर बीज उपचार और वैज्ञानिक विधि की मदद से आसानी से किया जा सकता है। आशा करते हैं Merikheti.com के द्वारा हमारे किसान भाइयों को हाल ही में बाजार में लोकप्रिय हुई नई फसल 'रंगीन फूलगोभी' के उत्पादन के बारे में संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी और भविष्य में आप भी बेहतर लागत-उत्पादन अनुपात को अपनाकर अच्छी फसल ऊगा पाएंगे और समुचित विकास की राह पर चल रही भारतीय कृषि को सुद्रढ़ बनाने में अपना योगदान देने के अलावा स्वंय की आर्थिक स्थिति को भी मजबूत बना पाएंगे।
केले के उत्पादन को प्रभावित कर रही बढ़ती ठंड

केले के उत्पादन को प्रभावित कर रही बढ़ती ठंड

महाराष्ट्र राज्य के हिंगोली जनपद में बढ़ती ठंड केले के बागों को काफी प्रभावित कर रही है। इसकी वजह से केले की पैदावार में ३० फीसद तक घटोत्तरी की की आशंका व्यक्त की जा रही है। प्रदेशों के किसानों को काफी हानि हो रही है, इस समय ठंड काफी बढ़ गयी है। वहीं बढ़ती ठंड की वजह से कृषि फसलें काफी प्रभावित हो रही हैं। बढ़ती ठंड की वजह से हिंगोली जनपद में केले की खेती करने वाले किसान बहुत प्रभावित हुए हैं, जैसे कि ठंड की वजह से केले के वजन में घटोत्तरी हो रही है। केले के विकास में भी बाधा उत्पन्न हो रही है। केले की पैदावार में ३० फीसद तक की घटोत्तरी आने की संभावना हुई है, ठंड में बढ़ोत्तरी की वजह से केले का वजन कम हुआ है। प्रदेश के अधिकाँश भागों में तापमान में कमी आई है, इस वर्ष बढ़ती ठंड का प्रभाव केले के बागों पर ज्यादा दिख रहा है। वहीं ठंड में बढ़वार से बिक्री के लिए तैयार कच्चे केले के छिलके के कोशिकाएं खत्म हो जाती हैं, इस वजह से बाजार में केले का उचित व सही मूल्य नहीं मिल पाता है। इसका दुष्परिणाम किसानों को सहन करना पड़ता है।


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केले उत्पादन में कमी की क्या वजह है ?

इस वर्ष मराठवाड़ा में ठंड में काफी अधिक वृध्दि हुई है, इसका प्रभाव फसलों पर पड़ रहा है। सर्वाधिक केले के बाग प्रभावित होते हैं। ठंड की वजह से केले का बेहतर तरीके से उत्पादन नहीं हो पाता है। इससे केले का वजन तो घटता ही है, साथ ही बेचने हेतु तैयार कच्चे केलों के छिलकों की कोशिकाएं खत्म होने की वजह से केला पूर्णतः पकने के पहले पीला हो जाता है। परिणामस्वरूप, ऐसे केले को बाजार में बेहतर मूल्य अर्जित नहीं हो पाता है, इसी वजह से केला किसानों को काफी आर्थिक हानि हुई है। अनुमान है, कि इस सर्दी में केले के उत्पादन में ३० फीसद की कमी आ सकती है।

किसानों को क्यों हो रहा है नुकसान ?

बढ़ती ठंड की वजह से केले का सही विकास नहीं हो पाता है, केले की फली सही से नहीं उत्पादित हो पाती है। ऐसी हालत में केले की लंबाई में कमी व केले की फलियों के मध्य की दूरी में भी कमी आती है। किसानों ने कहा है, कि ठंड बढ़ने के कारण केले का रंग गहरा पीला न होने की वजह से बाजार में ऐसे केलों को कोई नहीं खरीदता। इससे किसानों को भारी हानि होती है, केले को २० से ३८ के मध्य तापमान की अत्यंत आवश्यकता होती है। किसानों के मुताबिक, अगर तापमान में इससे अधिक कमी आने से केले की फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। किसानों ने यह भी बताया है, कि जून व जुलाई की बिजाई के तुलनात्मक वजन लगभग ३० प्रतिशत तक घट सकता है।
ठंड के कारण बर्बाद हो रही है, किसानों की फसलें, जाने कौन-कौन सी फसल को है नुकसान

ठंड के कारण बर्बाद हो रही है, किसानों की फसलें, जाने कौन-कौन सी फसल को है नुकसान

इस बार सर्दियों ने पिछले कई सालों के रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड से लोग परेशान हैं। साथ ही, यह फसलों के लिए भी बेहद हानिकारक साबित हो रही हैं। किसान अपनी बर्बाद हो रही फसलों को लेकर बेहद परेशान हैं। किसान इस भारी ठंड में भी दिन-रात जागते हुए अपनी फसलों की निगरानी कर रहे हैं। लेकिन फिर भी पाला फसलों को बर्बाद कर रहा है। उत्तर भारत में ज्यादातर नुकसान आलू की फसल को हुआ है। लेकिन अभी एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है। पाले से इस बार फूलों वाली खेती पर भी बेहद बुरा प्रभाव पड़ रहा है। मौजूदा समय में हो रही फूलों वाली फसलों को भी नुकसान हो सकता है। किसानों को सावधानी बरतने की जरूरत है।

फूलों वाली फसलों को हो रहा नुकसान

बहुत ज्यादा कोहरा और पाला पड़ने के कारण सभी फसलें ठंड की चपेट में आ रही हैं। लेकिन फूलों वाली फसल में झुलसा रोग हो रहा है, जो पूरी तरह से फूलों वाली फसल को बर्बाद कर रहा है। यह रोक लगने के बाद फसल पूरी तरह से सूख कर बर्बाद हो जाती है। कोहरा और पाला अधिक पड़ने से फसलें अधिक ठंड की चपेट में आ गई हैं। झुलसा रोग फसलों को अधिक चपेट में ले रहा है। झुलसा रोग लगने से फसलें सूख जाती हैं। इससे किसानों को लाखों रुपये का नुकसान हो रहा है। सरसों व राई की फसल फूलों वाली फसल होती है। विशेषज्ञों का कहना है, कि इस सीजन में इन फसलों पर माहू कीट और सफेद गेरूई का असर दिख रहा है। इसका असर फूल पर भी पड़ता है और फूल सूख जाता है। इससे सरसों और राई का उत्पादन घट जाता है।

इस रोग की चपेट में आ रही चने की फसल

चने की फसल के लिए कटवा कीट और बुकनी रोग बहुत ही हानिकारक होता है। चने की फसल में यह दोनों ही रोग देखने को मिल रहे हैं। फूल आने के समय फसल सूखने से किसानों का उत्पादन शत प्रतिशत घट जाता है। इस समय यही स्थिति बनी हुई है। किसान अपनी पूरी की पूरी फसल बर्बाद होने के कारण बहुत ज्यादा समस्याओं का सामना कर रहे हैं और आगे चलकर उन्हें आर्थिक मंदी का सामना भी करना पड़ रहा है।


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आलू की फसलों को भी हो रहा नुकसान

आलू के लिए ज्यादा ठंड कभी भी सही नहीं रहती है और इस बार की ठंड के कारण इसका सीधा असर आलू की खेती पर देखा जा रहा है। कृषि एक्सपर्ट का कहना है, कि अगर अगले 15 दिन तक भी ऐसी ही कड़ाके की ठंड पड़ी तो आलू की फसल को और भी ज्यादा नुकसान होने का खतरा है।
इस नई साल में आने वाली ठंड किसानों की फसलों को कितना नुकसान पहुँचाने वाली है?

इस नई साल में आने वाली ठंड किसानों की फसलों को कितना नुकसान पहुँचाने वाली है?

नये साल के दस्तक देते ही फिलहाल तेजी से ठंड बढ़नी शुरू हो गई है, जिससे आमजन जीवन पर भी काफी प्रभाव पड़ रहा है। सर्दियों के दिनों में खेती से संबंधित काम करने में भी कठिनाइयाँ आती हैं। ऐसे में मौसम विभाग ने किसानों की चिंता को और ज्यादा बढ़ा दिया है। मौसम विभाग के मुताबिक, आगामी दिनों में कड़ाके की ठंड पड़ेगी। IMD के मुताबिक, बहुत सारी जगहों पर तापमान शून्य से भी नीचे जाने की संभावना जताई जा रही है।अब ऐसी स्थिति में किसानों को ज्यादा सावधानी बरतने की आवश्यकता है।

किसानों पर संकट आने की काफी संभावना है 

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ने की चेतावनी दी है। इस दौरान तापमान जीरो डिग्री सेल्सियस से भी नीचे जा सकता है।ठंड की वजह से किसानों को विभिन्न प्रकार की मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। इससे कृषकों को सर्वाधिक समस्या हो सकती है। उनमें फल, सब्जी समेत बाकी फसलों का उत्पादन करने वाले कृषक भाई सम्मिलित हैं।

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किसान भाई क्या उपाय करें ?

  • फल और सब्जियों की फसलों को ढ़ककर रखें। 
  • पशुओं को गर्म रखने की व्यवस्था करें। समय पर उनके लिए उचित मात्रा में चारा एवं पानी मुहैय्या कराऐं। 
  • कौन-से क्षेत्रों में ज्यादा ठंड पड़ेगी ?
  • पहाड़ी क्षेत्रों के अतिरिक्त राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में आगामी दिनों में प्रचंड ठंड पड़ेगी। 

मौसमिक परिवर्तन से बागवानी को काफी हानि 

बतादें, कि सर्दी में इजाफा होने की वजह से फल और सब्जियों की फसलों को काफी क्षति पहुंच सकती है। बतादें, कि गोभी, मटर, प्याज, टमाटर, बैंगन और आलू जैसी फसलों को हानि हो सकती है। इन फसलों को ठंड से संरक्षित करने के लिए किसानों को काफी सावधानी बरतनी पड़ेगी। साथ ही, ठंड की वजह से धान की फसलों के बीज अंकुरण में विलंभ हो सकता है। इससे धान की फसल की उपज काफी प्रभावित हो सकती है। इनके अतिरिक्त ठंड की वजह से पशुओं के बीमार पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। पशुओं को ठंड से संरक्षित रखने के लिए किसानों को अत्यंत सावधानी बरतनी चाहिए।

उत्तर प्रदेश के मौसम में बदलाव और बारिश की संभावना

उत्तर प्रदेश के मौसम में बदलाव और बारिश की संभावना

जैसा कि हम सब जानते हैं, कि कड़कड़ाती सर्दी का मौसम चल रहा है। किसानों को खेती–किसानी में बहुत सारी समस्याएं आती हैं। ऐसी स्थिति में यदि बारिश हो जाए तो ये समस्या और बढ़ जाती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जनपदों में आगामी एक–दो दिन में बारिश की संभावना है। अब ऐसे में कृषकों के लिए कुछ खास बातें हैं, जिनका विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, आगरा, हाथरस, अलीगढ़ और समीपवर्ती हिस्सों में बारिश होने की संभावना है।


पौधों में रोग ना लगे इसके लिए क्या करें ?

विगत बहुत सारे महीनों से तैयार फसल में कृषकों की काफी लागत और अथक परिश्रम लगी है। अब ऐसी स्थिति में किसान अपनी फसल को लेकर काफी फिक्रमंद हैं। फसल को बचाने के लिए सबसे आवश्यक है, कि प्रतिदिन खेती की निगरानी की जाए। यदि पौधे के पत्ते में कोई रोग नजर आए, तो तुरंत उखाड़कर जमीन के अंदर दबा दें। यदि अधिक रोग नजर आए तो तुरंत विशेषज्ञों का मशवरा लें और सावधानी के लिए एक फफूंद नाशक का छिड़काव कार्बेंडाजिम मैनाकोजेब अथवा फिर मेटलैक्सिल और मैंकोजेब का छिड़काव भी कर सकते हैं। 

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आलू की फसल में झुलसा के लिए अनुकूल मौसम है, तो इना फंगीसाइड का 2 ग्राम प्रति लीटर में छिड़काव अवश्य कर दें। अगर सरसों की फसल में सफेद पत्ती धब्बा रोग होता है, तो 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड अथवा कार्बेंडाजिम मैनाकोजेब का छिड़काव करें।


ये काम भूलकर भी ना करें 

अगर आपके इलाके में बारिश होने की संभावना है, तो सिंचाई ना करें। खेत में ज्यादा नमी होने पर सब्जियों वाली फसलों को प्रमुख रूप से नुकसान हो सकता है। वहीं, बहुत सारी बीमारियां लग सकती हैं। बतादें, कि रोगाणु, कीटनाशक अथवा खरपतवार नााशक का छिड़काव सबसे बेहतर है, जब धूप खुली होती है। अगर कोहरा और बादल छाए हुए हैं और बारिश की संभावना है तो कीटनाशक छिड़काव से भी बचें। 


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यदि फसल में फूल गए हैं, तो किसी तरह के रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग से बचें। किसी भी फसल में फूल रहे हैं। वहां रासायनिक छिड़कावों का उपयोग ना करें। फूल की ग्रोथ (बढ़वार) काफी रुक जाऐगी। फूल झड़ जाऐंगे, जिससे दाने और फल नहीं बन पाऐंगे। ऐसी स्थिति में प्राकृतिक तरीकों, धुआं, नमी, नीम का तेल और कंडों की राख का उपयोग करें। इसके अतिरिक्त खेत में मधुमक्खियां पाल रखी हैं और वो उधर आती हैं तो दिन के वक्त रासायनिक छिड़काव नहीं करें वर्ना वो मर जाऐंगे। शाम को मधुमक्खियां छत्तों में लौट आती हैं उस समय इस्तेमाल करें। 

जानें देसी गाय और जर्सी गाय में अंतर और दुग्ध उत्पादन क्षमता

जानें देसी गाय और जर्सी गाय में अंतर और दुग्ध उत्पादन क्षमता

किसान एवं पशुपालक अपनी आमदनी को बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार के दुधारू पशुओं का पालन किया करते है। सामान्य तोर पर देखा जाए तो आज के दोर में पशुपालन सबसे शानदार व्यवसाय है। 

लेकिन, सामान्य तोर पर देखा गया है, कि पशुपालकों को गायों की सटीक जानकारी का अभाव होने के चलते उन्हें विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। 

ऐसे में आज हम किसानों व पशुपालकों के लिए देसी और जर्सी गाय से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी लेकर आए हैं। इससे आपको अपनी आवश्यकता के अनुसार उचित गाय चयन का पालन कर सके। 

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भारत देश में ऐसे तो विभिन्न प्रकार की गाय की नस्लें पाई जाती हैं। लेकिन देसी और जर्सी गाय का पालन अधिकांश पशुपालकों के द्वारा किया जाता है।

भारतीय देसी गाय 

भारतीय गाय को भी देसी गाय कहा जाता है। ये बॉश इंडिकस श्रेणी की गाय होती हैं। इनकी पहचान लंबे सींग और बड़े कूबड़ से होती है। 

इस गाय का विकास प्रकृति द्वारा होता है। उत्तर भारत में देसी गाय की बहुत सी नस्लें पाई जाती हैं। देसी गाय अधिकतर गर्म तापमान में रहती हैं। इस गाय की दूध देने की क्षमता काफी ज्यादा शानदार होती है। 

जर्सी गाय 

जर्सी गाय बॉश टेरेस की श्रेणी में आती हैं। जर्सी गाय देसी गाय की तुलना में ज्यादा दूध देती हैं। इन गायों के लंबे सींगें और बड़े कूबड़ नहीं होते हैं। गाय का निर्यात भारत में सबसे ज्यादा होता है। जर्सी गाय ठंडी जलवायु में रहती है। 

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देसी और जर्सी गाय में पाए जाने वाले प्रमुख अंतर 

सनातन धर्म के अनुरूप भारत में देसी गाय को माता का दर्जा मिला है, तो वहीं जर्सी गाय को ब्रिटेन में प्रमुख स्थान मिला है। बॉश इंडिकस श्रेणी में देसी गाय आती है और जर्सी गाय बॉश टोरस की श्रेणी में आती है।

देसी गाय का विकास प्रकृति पर निर्भर है। देसी गाय का विकास जलवायु परिस्थितियों, चारे की उपलब्धता, काम करने के तरीके आदि के आधार पर होता है। वहीं, जर्सी गाय का विकास ठंडे तापमान के अनुरूप होता है। 

देसी गाय के सींग लंबे और बड़े कूबड़ होते हैं। लेकिन, ऐसा जर्सी गाय में नहीं होता है। देसी गायों का कद जर्सी गायों की तुलना में छोटा होता है।