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तिलहन

भारत की मंडियों में तिलहन फसल सरसों की कीमतों में आई भारी गिरावट

भारत की मंडियों में तिलहन फसल सरसों की कीमतों में आई भारी गिरावट

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि वर्तमान में तिलहन फसलों में सर्वाधिक सरसों की कीमत प्रभावित हो रही है। विगत वर्ष के समापन में सरसों की कीमतों में काफी तीव्रता देखने को मिली थी। परंतु, अब सरसों की कीमतें एक दम नीचे गिरने लगी हैं। भारत भर की मंडियों में सरसों को क्या भाव मिल रहा है ? तिलहन फसलों का भाव निरंतर तीव्रता के पश्चात अब गिरावट की कवायद शुरू हो गई है। अधिकांश तिलहन फसलों की कीमतें अभी ज्यों की त्यों बनी हुई हैं।

कुछ एक फसलों में कमी दर्ज की जा रही है। तिलहन फसलोंकी बात करें तो सर्वाधिक सरसों के भाव प्रभावित हो रहे हैं। विगत वर्ष के अंत में सरसों की कीमतों में शानदार तीव्रता देखने को मिली थी। एक वक्त तो भाव 9000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया था। परंतु, अब भाव में एक दम से कमी आई है। आलम यह है, कि सरसों का भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी नीचे चला गया है, जिस कारण से कृषक भी काफी परेशान दिखाई दे रहे हैं। 

भारत भर की मंडियों में सरसों की कीमत क्या है

केंद्र सरकार ने सरसों पर 5650 रुपये का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित किया गया है। परंतु, भारत की अधिकतर मंडियों में किसानों को MSP तक की कीमत नहीं मिल रही है। सरसों की फसल को औसतन 5500 रुपये/क्विंटल की कीमत मिल रही है। केंद्रीय कृष‍ि व क‍िसान कल्याण मंत्रालय के एगमार्कनेट पोर्टल के मुताबिक, शनिवार (6 जनवरी) को भारत की एक दो मंडी को छोड़ दें, तो तकरीबन समस्त मंडियों में मूल्य MSP से नीचे ही रहा है। शनिवार को सरसों को सबसे शानदार भाव कर्नाटक की शिमोगा मंडी में हांसिल हुआ। जहां, सरसों 8800 रुपये/क्विंटल के भाव पर बिकी है।


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इसी प्रकार, गुजरात की अमरेली मंडी में भाव 6075 रुपये/क्विंटल तक रहा है। इन दो मंडियों को छोड़ दें, तो बाकी समस्त मंडियो में सरसों 5500 रुपये/क्विंटल के नीचे ही बेची जा रही है, जो MSP से काफी कम है। वहीं, भारत की कुछ मंडियों में तो भाव 4500 रुपये/क्विंटल तक पहुंच गया। विशेषज्ञों का कहना है, की कम मांग के चलते कीमतों में काफी गिरावट आई है। यदि मांग नहीं बढ़ी, तो कीमतें और कम हो सकती हैं, जो कि कृषकों के लिए काफी चिंता का विषय है।


यहां पर आप बाकी फसलों की सूची भी देख सकते हैं 

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि किसी भी फसल का भाव उसकी गुणवत्ता पर भी निर्भर रहता है। ऐसी स्थिति में व्यापारी क्वालिटी के हिसाब से ही भाव निर्धारित करते हैं। फसल जितनी शानदार गुणवत्ता की होगी, उसकी उतनी ही अच्छी कीमत मिलेंगे। यदि आप भी अपने राज्य की मंडियों में भिन्न-भिन्न फसलों का भाव देखना चाहते हैं, तो आधिकारिक वेबसाइट https://agmarknet.gov.in/ पर जाकर पूरी सूची की जाँच कर सकते हैं।

इस वैज्ञानिक विधि से करोगे खेती, तो यह तिलहन फसल बदल सकती है किस्मत

इस वैज्ञानिक विधि से करोगे खेती, तो यह तिलहन फसल बदल सकती है किस्मत

पिछले कुछ समय से टेक्नोलॉजी में काफी सुधार की वजह से कृषि की तरफ रुझान देखने को मिला है और बड़ी-बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों को छोड़कर आने वाले युवा भी, अब धीरे-धीरे नई वैज्ञानिक तकनीकों के माध्यम से भारतीय कृषि को एक बदलाव की तरफ ले जाते हुए दिखाई दे रहे हैं।

जो खेत काफी समय से बिना बुवाई के परती पड़े हुए थे, अब उन्हीं खेतों में अच्छी तकनीक के इस्तेमाल और सही समय पर अच्छा मैनेजमेंट करने की वजह से आज बहुत ही उत्तम श्रेणी की फसल लहलहा रही है। 

इन्हीं तकनीकों से कुछ युवाओं ने पिछले 1 से 2 वर्ष में तिलहन फसलों के क्षेत्र में आये हुए नए विकास के पीछे अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। तिलहन फसलों में मूंगफली को बहुत ही कम समय में अच्छी कमाई वाली फसल माना जाता है।

पिछले कुछ समय से बाजार में आई हुई हाइब्रिड मूंगफली का अच्छा दाम तो मिलता ही है, साथ ही इसे उगाने में होने वाले खर्चे भी काफी कम हो गए हैं। केवल दस बीस हजार रुपये की लागत में तैयार हुई इस हाइब्रिड मूंगफली को बेचकर अस्सी हजार रुपये से एक लाख रुपए तक कमाए जा सकते हैं।

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इस कमाई के पीछे की वैज्ञानिक विधि को चक्रीय खेती या चक्रीय-कृषि के नाम से जाना जाता है, जिसमें अगेती फसलों को उगाया जाता है। 

अगेती फसल मुख्यतया उस फसल को बोला जाता है जो हमारे खेतों में उगाई जाने वाली प्रमुख खाद्यान्न फसल जैसे कि गेहूं और चावल के कुछ समय पहले ही बोई जाती है, और जब तक अगली खाद्यान्न फसल की बुवाई का समय होता है तब तक इसकी कटाई भी पूरी की जा सकती है। 

इस विधि के तहत आप एक हेक्टर में ही करीब 500 क्विंटल मूंगफली का उत्पादन कर सकते हैं और यह केवल 60 से 70 दिन में तैयार की जा सकती है।

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मूंगफली को मंडी में बेचने के अलावा इसके तेल की भी अच्छी कीमत मिलती है और हाल ही में हाइब्रिड बीज आ जाने के बाद तो मूंगफली के दाने बहुत ही बड़े आकार के बनने लगे हैं और उनका आकार बड़ा होने की वजह से उनसे तेल भी अधिक मिलता है। 

चक्रीय खेती के तहत बहुत ही कम समय में एक तिलहन फसल को उगाया जाता है और उसके तुरंत बाद खाद्यान्न की किसी फसल को उगाया जाता है। जैसे कि हम अपने खेतों में समय-समय पर खाद्यान्न की फसलें उगाते हैं, लेकिन एक फसल की कटाई हो जाने के बाद में बीच में बचे हुए समय में खेत को परती ही छोड़ दिया जाता है, लेकिन यदि इसी बचे हुए समय का इस्तेमाल करते हुए हम तिलहन फसलों का उत्पादन करें, जिनमें मूंगफली सबसे प्रमुख फसल मानी जाती है।

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भारत में मानसून मौसम की शुरुआत होने से ठीक पहले मार्च में मूंगफली की खेती शुरू की जाती है। अगेती फसलों का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इन्हें तैयार होने में बहुत ही कम समय लगता है, साथ ही इनकी अधिक मांग होने की वजह से मूल्य भी अच्छा खासा मिलता है। 

इससे हमारा उत्पादन तो बढ़ेगा ही पर साथ ही हमारे खेत की मिट्टी की उर्वरता में भी काफी सुधार होता है। इसके पीछे का कारण यह है, कि भारत की मिट्टि में आमतौर पर नाइट्रोजन की काफी कमी देखी जाती है और मूंगफली जैसी फसलों की जड़ें नाइट्रोजन यौगिकीकरण या आम भाषा में नाइट्रोजन फिक्सेशन (Nitrogen Fixation), यानी कि नाइट्रोजन केंद्रीकरण का काम करती है और मिट्टी को अन्य खाद्यान्न फसलों के लिए भी उपजाऊ बनाती है। 

इसके लिए आप समय-समय पर कृषि विभाग से सॉइल हेल्थ कार्ड के जरिए अपनी मिट्टी में उपलब्ध उर्वरकों की जांच भी करवा सकते हैं।

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मूंगफली के द्वारा किए गए नाइट्रोजन के केंद्रीकरण की वजह से हमें यूरिया का छिड़काव भी काफी सीमित मात्रा में करना पड़ता है, जिससे कि फर्टिलाइजर में होने वाले खर्चे भी काफी कम हो सकते हैं। 

इसी बचे हुए पैसे का इस्तेमाल हम अपने खेत की यील्ड को बढ़ाने में भी कर सकते हैं। यदि आपके पास इस प्रकार की हाइब्रिड मूंगफली के अच्छे बीज उपलब्ध नहीं है तो उद्यान विभाग और दिल्ली में स्थित पूसा इंस्टीट्यूट के कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा समय-समय पर एडवाइजरी जारी की जाती है जिसमें बताया जाता है कि आपको किस कम्पनी की हाइब्रिड मूंगफली का इस्तेमाल करना चाहिए। 

समय-समय पर होने वाले किसान चौपाल और ट्रेनिंग सेंटरों के साथ ही दूरदर्शन के द्वारा संचालित डीडी किसान चैनल का इस्तेमाल कर, युवा लोग मूंगफली उत्पादन के साथ ही अपनी स्वयं की आर्थिक स्थिति तो सुधार ही रहें हैं, पर इसके अलावा भारत के कृषि क्षेत्र को उन्नत बनाने में अपना भरपूर सहयोग दे रहे हैं। 

आशा करते हैं कि मूंगफली की इस चक्रीय खेती विधि की बारे में Merikheti.com कि यह जानकारी आपको पसंद आई होगी और आप भी भारत में तिलहन फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के अलावा अपनी आर्थिक स्थिति में भी सुधार करने में सफल होंगे।

सोयाबीन, कपास, अरहर और मूंग की बुवाई में भारी गिरावट के आसार, प्रभावित होगा उत्पादन

सोयाबीन, कपास, अरहर और मूंग की बुवाई में भारी गिरावट के आसार, प्रभावित होगा उत्पादन

किसान भाई खेत में उचित नमी देखकर ही तिलहन और दलहन की फसलों की बुवाई शुरू करें

नई दिल्ली। बारिश में देरी के चलते और प्रतिकूल मौसम के कारण तिलहन और दलहन की फसलों की बुवाई में भारी गिरावट के आसार बताए जा रहे हैं। माना जा रहा है कि सोयाबीन, अरहर और मूंग की फसल की बुवाई में रिकॉर्ड गिरावट आ सकती है। 

खरीफ सीजन की फसलों की बुवाई इस साल काफी पिछड़ रही है। तिलहन की फसलों में मुख्यतः सोयाबीन की बुवाई में पिछले साल के मुकाबले राष्ट्रीय स्तर पर 77.74 फीसदी कमी आ सकती है। 

वहीं अरहर की बुवाई में 54.87 फीसदी और मूंग की फसल बुवाई में 34.08 फीसदी की कमी आने की संभावना है। उधर बुवाई पिछड़ने के कारण कपास की फसल की बुवाई में भी 47.72 फीसदी की कमी आ सकती है। हालांकि अभी भी किसान बारिश के बाद अच्छे माहौल का इंतजार कर रहे हैं।

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तिलहन के फसलों के लिए संजीवनी है बारिश

- इन दिनों तिलहन की फसलों के लिए बारिश संजीवनी के समान है। जून के अंत तक 80 मिमी बारिश वाले क्षेत्र में सोयाबीन और कपास की बुवाई शुरू हो सकती है। जबकि दलहन की बुवाई में अभी एक सप्ताह का समय शेष है।

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दलहनी फसलों के लिए पर्याप्त नमी की जरूरत

- कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि दलहनी फसलों की बुवाई से पहले खेत में पर्याप्त नमी का ध्यान रखना आवश्यक है। नमी कम पड़ने पर किसानों को दुबारा बुवाई करनी पड़ सकती है। दुबारा बुवाई वाली फसलों से ज्यादा बेहतर उत्पादन की उम्मीद नहीं की जा सकती है। इसीलिए किसान भाई पर्याप्त नमी देखकर की बुवाई करें। ----- लोकेन्द्र नरवार

दिवाली से पूर्व केंद्र सरकार गेहूं सहित 23 फसलों की एमएसपी में इजाफा कर सकती है

दिवाली से पूर्व केंद्र सरकार गेहूं सहित 23 फसलों की एमएसपी में इजाफा कर सकती है

लोकसभा चुनाव से पूर्व ही केंद्र सरकार किसानों को काफी बड़ा तोहफा दे सकती है। ऐसा कहा जा रहा है, कि सरकार शीघ्र ही गेहूं समेत विभिन्न कई फसलों की एमएसपी बढ़ाने की स्वीकृति दे सकती है। वह गेहूं की एसएमसपी में 10 प्रतिशत तक भी इजाफा कर सकती है। लोकसभा चुनाव से पूर्व केंद्र सरकार द्वारा किसानों को बहुत बड़ा गिफ्ट दिए जाने की संभावना है। ऐसा कहा जा रहा है, कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार रबी फसलों के मिनिमम सपोर्ट प्राइस में वृद्धि कर सकती है। इससे देश के करोड़ों किसानों को काफी फायदा होगा। सूत्रों के अनुसार, केंद्र सरकार गेहूं की एमएसपी में 150 से 175 रुपये प्रति क्विंटल की दर से इजाफा कर सकती है। इससे विशेष रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, बिहार और पंजाब के किसान सबसे ज्यादा लाभांवित होंगे। इन्हीं सब राज्यों में सबसे ज्यादा गेहूं की खेती होती है।

केंद्र सरकार गेंहू की अगले साल एमएसपी में 3 से 10 प्रतिशत वृद्धि करेगी

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार आगामी वर्ष के लिए गेहूं की एमएसपी में 3 प्रतिशत से 10 प्रतिशत के मध्य इजाफा कर सकती है। अगर केंद्र सरकार ऐसा करती है, तो गेहूं का मिनिमम सपोर्ट प्राइस 2300 रुपए प्रति क्विंटल तक पहुंच सकता है। हालांकि, वर्तमान में गेहूं की एमएसपी 2125 रुपए प्रति क्विंटल है। इसके अतिरिक्त सरकार मसूर दाल की एमएसपी में भी 10 प्रतिशत तक का इजाफा कर सकती है।

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यह निर्णय मार्केटिंग सीजन 2024- 25 के लिए लिया जाएगा

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि सरसों और सूरजमुखी (Sunflower) की एमएसपी में 5 से 7 प्रतिशत की बढ़ोतरी की जा सकती है। दरअसल, ऐसी आशा है कि आने वाले एक हफ्ते में केंद्र सरकार रबी, दलहन एवं तिलहन फसलों की एमएसपी बढ़ाने के लिए स्वीकृति दे सकती है। मुख्य बात यह है, कि एमएसपी में वृद्धि करने का निर्णय मार्केटिंग सीजन 2024-25 के लिए लिया जाएगा।

एमएसपी में समकुल 23 फसलों को शम्मिलित किया गया है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की सिफारिश पर केंद्र मिनिमम सपोर्ट प्राइस निर्धारित करती है। एमएसपी में 23 फसलों को शम्मिलित किया गया है। 7 अनाज, 5 दलहन, 7 तिलहन और चार नकदी फसलें भी शम्मिलित हैं। आम तौर पर रबी फसल की बुवाई अक्टूबर से दिसंबर महीने के मध्य की जाती है। साथ ही, फरवरी से मार्च एवं अप्रैल महीने के मध्य इसकी कटाई की जाती है।

जानें एमएसपी में कितनी फसलें शामिल हैं

  • अनाज- गेहूं, धान, बाजरा, मक्का, ज्वार, रागी और जो
  • दलहन- चना, मूंग, मसूर, अरहर, उड़द,
  • तिलहन- सरसों, सोयाबीन, सीसम, कुसुम, मूंगफली, सूरजमुखी, निगर्सिड
  • नकदी- गन्ना, कपास, खोपरा और कच्चा जूट
सूरजमुखी की इन प्रमुख किस्मों की खेती से मिलेगी शानदार उपज और मोटा मुनाफा

सूरजमुखी की इन प्रमुख किस्मों की खेती से मिलेगी शानदार उपज और मोटा मुनाफा

सूरजमुखी एक सदाबहार फसल है, इसकी खेती रबी, जायद और खरीफ के तीनों सीजन में की जा सकती है। बतादें, कि सूरजमुखी की खेती के लिए सबसे अच्छा समय मार्च के माह को माना जाता है। इस फसल को कृषकों के बीच नकदी फसल के रूप में भी पहचाना जाता है। 

सूरजमुखी की खेती से किसान कम लागत में ज्यादा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। इसके बीजों से 90-100 दिनों के समयांतराल में 45 से 50% तक तेल हांसिल किया जा सकता है। 

सूरजमुखी की फसल को शानदार विकास देने के लिए 3 से 4 बार सिंचाई की जाती है, ताकि इसके पौधे सही तरीके से पनप सकें। अगर हम इसकी टॉप 5 उन्नत किस्मों की बात करें, तो इसमें एमएसएफएस 8, केवीएसएच 1, एसएच 3322, ज्वालामुखी और एमएसएफएच 4 आती हैं।

1. सूरजमुखी की एमएसएफएस-8 (MSFS-8) किस्म 

सूरजमुखी की उन्नत किस्मों में एमएसएफएस-8 भी शम्मिलित है। इस किस्म के सूरजमुखी के पौधे की ऊंचाई तकरीबन 170 से 200 सेमी तक रहती है। एमएसएफएस-8 सूरजमुखी के बीज में 42 से 44% तक तेल की मात्रा पाई जाती है।

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किसान को सूरजमुखी की इस फसल को तैयार करने में 90 से 100 दिनों का वक्त लगता है। MSFS-8 किस्म की सूरजमुखी फसल की यदि एकड़ भूमि पर खेती की जाती है, जो इससे लगभग 6 से 7.2 क्विंटल तक उपज मिलती है। 

2. सूरजमुखी की केवीएसएच-1 (KVSH-1) किस्म 

केवीएसएच-1 सूरजमुखी की उन्नत किस्मों में शम्मिलित है, जो कि शानदार उत्पादन देती है। सूरजमुखी के इस किस्म वाले पौधे की ऊंचाई तकरीबन 150 से 180 सेमी तक होती है। 

केवीएसएच-1 सूरजमुखी के बीज से लगभग 43 से 45% तक तेल प्राप्त होता है। किसान को सूरजमुखी की इस उन्नत किस्म को विकसित करने में 90 से 95 दिनों की समयावधि लगती है। अगर केवीएसएच-1 सूरजमुखी की फसल को एकड़ भूमि पर लगाया जाए, तो इससे तकरीबन 12 से 14 क्विंटल तक उत्पादन हो सकता है। 

3. सूरजमुखी की एसएच-3322 (SH-3322) किस्म 

सूरजमुखी की शानदार उपज देने वाली किस्मों में एसएच-3322 भी शुमार है। इस सूरजमुखी की उन्नत किस्म के पौधों की ऊंचाई तकरीबन 137 से 175 सेमी तक पाई जाती है। एसएच-3322 सूरजमुखी के बीज से लगभग 40-42% फीसद तक तेल की मात्रा हांसिल होती है। 

किसान को एसएच-3322 किस्म की सूरजमुखी फसल को विकसित करने में 90 से 95 दिनों का वक्त लग जाता है। सूरजमुखी की एसएच-3322 किस्म को अगर एक एकड़ जमीन पर उगाया जाए, तो इससे तकरीबन 11.2 से 12 क्विंटल तक की उपज हांसिल हो सकती है। 

4. सूरजमुखी की ज्वालामुखी (Jwalamukhi) किस्म 

सूरजमुखी की ज्वालामुखी किस्म के बीजों में 42 से 44% प्रतिशत तक तेल पाया जाता है। किसान को इसकी फसल तैयार करने में 85 से 90 दिनों का वक्त लगता है। 

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ज्वालामुखी पौधे की ऊंचाई तकरीबन 170 सेमी तक रहती है। सूरजमुखी की इस किस्म को एक एकड़ भूमि पर लगाने से लगभग 12 से 14 क्विंटल तक पैदावार हो जाती है। 

5. सूरजमुखी की एमएसएफएच-4 (MSFH-4) किस्म

सूरजमुखी की इस एमएसएफएच-4 किस्म की खेती रबी और जायद के सीजन में की जाती है। इस फसल के पौधे की ऊंचाई तकरीबन 150 सेमी तक पाई जाती है। 

एमएसएफएच-4 सूरजमुखी के बीजों में तकरीबन 42 से 44% तक तेल की मात्रा विघमान रहती है। इस किस्म की फसल को तैयार करने में किसान को 90 से 95 दिनों का वक्त लग जाता है। 

अगर किसान इस किस्म की फसल को एक एकड़ खेत में लगाते हैं, तो इससे करीब 8 से 12 क्विंटल तक की उपज बड़ी आसानी से प्राप्त हो जाती है।

किसानों को मिलेगा चार हजार रुपए प्रति एकड़ का अनुदान, लगायें ये फसल

किसानों को मिलेगा चार हजार रुपए प्रति एकड़ का अनुदान, लगायें ये फसल

दलहन व तिलहन फसल लगाने पर अनुदान

देश में
दलहन एवं तिलहन फसलों का उत्पादन कम एवं माँग अधिक है. यही कारण है कि किसानों को इन फसलों के अच्छे मूल्य मिल जाते हैं. वहीँ दलहन या तिलहन की खेती में धान की अपेक्षा पानी भी कम लगता है। यही कारण है कि अलग-अलग राज्य सरकारें किसानों को धान की फसल छोड़ दलहन एवं तिलहन फसल लगाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। केंद्र सरकार भी किसानों को दलहन और तिलहन की खेती करने के लिय प्रोत्साहित करती है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है की भारत खाद्य पदार्थों जैसे, धान, गेहूं आदि में तो आत्मनिर्भर है, पर दलहन और तिलहन में आत्मनिर्भर नहीं हो सका है। आज भी देश में बाहर से दलहन का आयात करना पड़ता है। स्वाभाविक है की राज्य सरकारें दलहन और तिलहन की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करती है। इसी नीति के तहत हरियाणा सरकार ने दलहन और तिलहन फसलों पर अनुदान देने का निर्णय लिया है.

ये भी पढ़ें: दलहन की फसलों की लेट वैरायटी की है जरूरत दलहन फसलों जैसे मूँग एवं अरहर और तिलहन फसलों जैसे अरंडी व मूँगफली की फसल लगाने पर किसानों को प्रोत्साहित करने के लिये अनुदान का प्रावधान किया है. हरियाणा सरकार के अनुदान के फैसले के पीछे बड़ा उद्देश्य यह भी है की इससे किसानों की आमदनी बढ़ाई जा सके. इस योजना का दोहरा लाभ किसानों को होगा. क्योकि एक तो दलहन और तिलहन फसलों की कीमत भी किसानों को अधिक प्राप्त होगा और साथ ही साथ अनुदान की राशि भी सहायक हो सकेगा. सरकार ने इन फसलों को उगाने वाले किसानों को अनुदान के रूप में प्रति एकड़ चार हजार रुपए देने का निर्णय लिया है।

सात ज़िले के किसानों को मिलेगा योजना का लाभ :

हरियाणा सरकार की ओर से झज्जर सहित दक्षिण हरियाणा के सात जिलों का चयन इस अनुदान योजना के लिये किया गया है. इन सात जिलों में झज्जर भिवानी, चरखी दादरी, महेंद्रगढ़, रेवाड़ी, हिसार व नूंह शामिल है. हरियाणा सरकार नें इन सात जिलों के दलहन और तिलहन की खेती करने वाले किसानों के लिए विशेष योजना की शुरुआत की है। इस योजना को अपनाने वाले किसानों को चार हजार रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से वित्तीय सहायता दी जाएगी।

कितना अनुदान मिलेगा किसानों को ?

हरियाणा सरकार द्वारा फसल विविधीकरण के अंतर्गत दलहन व तिलहन की फसलों को बढ़ावा देने के लिए इस नई योजना की शुरुआत की गयी है। योजना के तहत दलहन व तिलहन की फसल उगाने वाले किसानों को 4,000 रुपये प्रति एकड़ वित्तीय सहायता प्रदान की जायेगी. यह योजना दक्षिण हरियाणा के 7 जिलों: झज्जर, भिवानी, चरखी दादरी, महेन्द्रगढ, रेवाड़ी, हिसार तथा नूंह में खरीफ मौसम 2022 के लिये लागू की जायेगी.

ये भी पढ़ें: तिलहनी फसलों से होगी अच्छी आय हरियाणा सरकार नें प्रदेश में खरीफ मौसम 2022 के दौरान एक लाख एकड़ में दलहनी व तिलहनी फसलों को बढ़ावा देने का लक्ष्य तय किया है. सरकार नें इस योजना के तहत दलहनी फसलें मूँग व अरहर को 70,000 एकड़ क्षेत्र में और तिलहन फसल अरण्ड व मूँगफली को 30,000 एकड़ में बढ़ावा देने का लक्ष्य रखा है.

किसान यहाँ करें आवेदन

चयनित सातों ज़िलों के किसानों को योजना का लाभ लेने के लिए ऑनलाइन आवेदन करना होगा. इसके लिए किसानों को मेरी फसल मेरा ब्यौरा पोर्टल जाकर सबसे पहले पंजीकरण कराना होगा. वित्तीय सहायता फसल के सत्यापन के उपरान्त किसानों के खातों में स्थानान्तरण की जाएगी.  
आजादी के अमृत महोत्सव में डबल हुई किसानों की आय, 75000 किसानों का ब्यौरा तैयार - केंद्र

आजादी के अमृत महोत्सव में डबल हुई किसानों की आय, 75000 किसानों का ब्यौरा तैयार - केंद्र

आजादी के अमृत महोत्सव में डबल हुई 75000 किसानों की आय का ब्यौरा तैयार - केंद्र

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने पिछले साल तय अपने निर्धारित लक्ष्य को पूरा किया है। परिषद ने पिछले साल आजादी के अमृत महोत्सव में किसानों की सफलता का दस्तावेजीकरण करने का टारगेट तय किया था। इस वर्ग में ऐसे कृषक मित्र शामिल हैं जिनकी आय दोगुनी हुई है या फिर इससे ज्यादा बढ़ी है। परिषद के अनुसार ऐसे 75 हजार किसानों से चर्चा कर उनकी सफलता का दस्तावेजीकरण कर किसानों का ब्यौरा जारी किया गया है। आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में आय बढ़ने वाले लाखों किसानों में से 75 हजार किसानों के संकलन का एक ई-प्रकाशन तैयार कर उसे जारी किया गया। [embed]https://youtu.be/zEkVlSwkq1g[/embed]

भाकृअनुप ने अपना 94वां स्थापना दिवस और पुरस्कार समारोह – 2022 का किया आयोजन

प्रेस रिलीज़ :

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के 94वें स्थापना दिवस पर कृषि मंत्री की अध्यक्षता में समारोह, पुरस्कार दिए

केंद्रीय मंत्री तोमर ने किया विमोचन

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने समारोह में कहा कि, देश में कृषि क्षेत्र एवं कृषक मित्रों का तेजी से विकास हो रहा है। केंद्र एवं राज्य सरकारों, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), भारत के कृषि विज्ञान केंद्रों के समन्वित प्रयास के साथ ही जागरूक किसान भाईयों के सहयोग से किसान की आय में वृद्धि हुई है। परिषद ने 'डबलिंग फार्मर्स इनकम' पर राज्य आधारित संक्षिप्त प्रकाशन भी तैयार किया है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने विमोचन अवसर पर ई-बुक को जारी किया।

पुरस्कार से नवाजा

कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के 94वें स्थापना दिवस पर मंत्री तोमर ने उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए वैज्ञानिकों व किसानों को पुरस्कृत भी किया। पूसा परिसर, दिल्ली में आयोजित समारोह में तोमर ने कहा कि, आज का दिन ऐतिहासिक है, क्योंकि आईसीएआर ने पिछले साल, आजादी के अमृत महोत्सव में ऐसे 75 हजार किसानों से चर्चा कर उनकी सफलता का दस्तावेजीकरण करने का लक्ष्य निर्धारित किया था, जिनकी आय दोगुनी या इससे ज्यादा दर से बढ़ी है। उन्होंने कहा कि सफल किसानों का यह संकलन भारत के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगा। केंद्रीय मंत्री तोमर ने आईसीएआर के समारोह में अन्य प्रकाशनों का भी विमोचन किया। उन्होंने आईसीएआर के स्थापना दिवस को संकल्प दिवस के रूप में मनाने की बात इस दौरान कही।

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कृषि क्षेत्र में निर्मित किए जा रहे रोजगार अवसर

कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि, कृषि प्रधान भारत देश में निरंतर कार्य की जरूरत है। इस क्षेत्र में आने वाली सामाजिक, भौगोलिक, पर्यावरणीय चुनौतियों के नित समाधान की जरूरत भी इस दौरान बताई। उन्होंने पारंपरिक खेती को बढ़ावा देने के मामले में तकनीक के समन्वित इस्तेमाल का जिक्र अपने संबोधन में किया। उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री की कोशिश है कि गांव और गरीब-किसानों के जीवन में बदलाव आए। मंत्री तोमर ने ग्रामीण क्षेत्र में एग्री इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित कर, कृषि का मुनाफा बढ़ाने के लिए किए जा रहे केंद्र सरकार के कार्यों पर इस दौरान प्रकाश डाला।

एग्री इंफ्रास्ट्रक्चर से की जा रही फंडिंग

केंद्रीय मंत्री ने बताया कि नव रोजगार सृजन के लिए हितग्राही योजनाएं लागू कर उचित फंडिंग की जा रही है। ग्रामीण नागरिकों को रोजगार से जोड़ा जा रहा है। खास तौर पर कृषि में रोजगार के ज्यादा अवसर निर्मित करने का सरकार का लक्ष्य है।

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जलवायु परिवर्तन चिंतनीय

केंद्रीय कृषि मंत्री ने आईसीएआर की स्थापना के 93 साल पूर्ण होने के साथ ही वर्ष 1929 में इसकी स्थापना से लेकर वर्तमान तक संस्थान द्वारा जारी की गईं लगभग 5,800 बीज-किस्मों पर गर्व जाहिर किया। वहीं इनमें से वर्ष 2014 से अभी तक 8 सालों में जारी की गईं लगभग दो हजार किस्मों को उन्होंने अति महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया। उन्होंने जलवायु परिवर्तन की स्थिति को चिंतनीय कारक बताकर कृषि वैज्ञानिकों, साथियों से इसके सुधार की दिशा में रोडमैप बनाकर आगे बढ़ने का आह्वान किया।

नई शिक्षा नीति का उदय -

मंत्री तोमर ने प्रधानमंत्री की विजन आधारित नई शिक्षा नीति का उदय होने की बात कही। उन्होंने स्कूली शिक्षा में कृषि पाठ्यक्रम के समावेश में कृषि शिक्षा संस्थान द्वारा प्रदान किए जा रहे सहयोग पर प्रसन्नता व्यक्त की। मंत्री तोमर ने दलहन, तिलहन, कपास उत्पादन में प्रगति के लिए आईसीएआर (ICAR) और केवीके ( कृषि विज्ञान केंद्र (KVK)) को अपने प्रयास बढ़ाने प्रेरित किया। समारोह के पूर्व देश के विभिन्न हिस्सों के किसानों से कृषि मंत्री ने ऑनलाइन तरीके से विचार साझा किए। हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात के किसानों से हुई चर्चा में सरकारी योजनाओं, संस्थागत सहयोग से किसानों की आय में किस तरह वृद्धि हुई इस बात की जानकारी मिली।
सहफसली तकनीक से किसान अपनी कमाई कर सकते हैं दोगुना

सहफसली तकनीक से किसान अपनी कमाई कर सकते हैं दोगुना

किसानों को परंपरागत खेती में लगातार नुकसान होता आ रहा है, जिसके कारण जहाँ किसानों में आत्महत्या की प्रवृति बढ़ रही है, वहीं किसान खेती से विमुख भी होते जा रहे हैं. इसको लेकर सरकार भी चिंतित है. लगातार खेती में नुकसान के कारण किसानों का खेती से मोहभंग होना स्वभाविक है, इसी के कारण सरकार आर्थिक तौर पर मदद करने के लिए कई योजनाओं पर काम कर रही है. सरकार की तरफ से किसानों को खेती में सहफसली तकनीक (multiple cropping or multicropping or intercropping) अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. विशेषज्ञों की मानें, तो ऐसा करने से जमीन की उत्पादकता बढ़ती है, साथ ही एकल फसली व्यवस्था या मोनोक्रॉपिंग (Monocropping) तकनीक की खेती के मुकाबले मुनाफा भी दोगुना हो जाता है.


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सहफसली खेती के फायदे

परंपरागत खेती में किसान खरीफ और रवि के मौसम में एक ही फसल लगा पाते हैं. किसानों को एक फसल की ही कीमत मिलती है. जो मुनाफा होता है, उसी में उनकी मेहनत और कृषि लागत भी होता है. जबकि, सहफसली तकनीक में किसान मुख्य फसल के साथ अन्य फसल भी लगाते हैं. स्वाभाविक है, उन्हें जब दो या अधिक फसल एक ही मौसम में मिलेगा, तो आमदनी भी ज्यादा होगी. किसानों के लिए सहफसली खेती काफी फायदेमंद होता है. कृषि वैज्ञानिक लंबी अवधि के पौधे के साथ ही छोटी अवधि के पौधों को लगाने का प्रयोग करने की सलाह किसानों को देते हैं. किसानों को सहफसली खेती करनी चाहिए, ऐसा करने से मुख्य फसल के साथ-साथ अन्य फसलों का भी मुनाफा मिलता है, जिससे आमदनी दुगुनी हो सकती है.


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धान की फसल के साथ लगाएं कौन सा पौधा

सहफसली तकनीक के बारे में कृषि विशेषज्ञ डॉक्टर दयाशंकर श्रीवास्तव सलाह देते हैं, कि धान की खेती करने वाले किसानों को खेत के मेड़ पर नेपियर घास उगाना चाहिए. इसके अलावा उसके बगल में कोलस पौधों को लगाना चाहिए. नेपियर घास पशुपालकों के लिए पशु आहार के रूप में दिया जाता है, जिससे दुधारू पशुओं का दूध उत्पादन बढ़ता है और उसका लाभ पशुपालकों को मिलता है, वहीं घास की अच्छी कीमत भी प्राप्त की जा सकती है. बाजार में भी इसकी अच्छी कीमत मिलती है.


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गन्ना, मक्की, अरहर और सूरजमुखी के साथ लगाएं ये फसल

पंजाब हरियाणा और उत्तर भारत समेत कई राज्यों में किसानों के बीच आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है और इसका कारण लगातार खेती में नुकसान बताया जाता है. इसका कारण यह भी है की फसल विविधीकरण नहीं अपनाने के कारण जमीन की उत्पादकता भी घटती है और साथ हीं भूजल स्तर भी नीचे गिर जाता है. ऐसे में किसानों के सामने सहफसली खेती एक बढ़िया विकल्प बन सकता है. इस विषय पर दयाशंकर श्रीवास्तव बताते हैं कि सितंबर से गन्ने की बुवाई की शुरुआत हो जाएगी. गन्ना एक लंबी अवधि वाला फसल है. इसके हर पौधों के बीच में खाली जगह होता है. ऐसे में किसान पौधों के बीच में लहसुन, हल्दी, अदरक और मेथी जैसे फसलों को लगा सकते हैं. इन सबके अलावा मक्का के फसल के साथ दलहन और तिलहन की फसलों को लगाकर मुनाफा कमाया जा सकता है. सूरजमुखी और अरहर की खेती के साथ भी सहफसली तकनीक को अपनाकर मुनाफा कमाया जा सकता है. कृषि वैज्ञानिक सह्फसली खेती के साथ-साथ इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) यानी ‘एकीकृत कृषि प्रणाली’ की भी सलाह देते हैं. इसके तहत खेतों के बगल में मुर्गी पालन, मछली पालन आदि का भी उत्पादन और व्यवसाय किया जा सकता है, ऐसा करने से कम जगह में खेती से भी बढ़िया मुनाफा कमाया जा सकता है.
दलहनी फसलों पर छत्तीसढ़ में आज से होगा अनुसंधान

दलहनी फसलों पर छत्तीसढ़ में आज से होगा अनुसंधान

विकास के लिए रायपुर में आज से जुटेंगे, देश भर के सौ से अधिक कृषि वैज्ञानिक

रायपुर। छत्तीसगढ़ में वर्तमान समय में लगभग 11 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में दलहनी फसलें ली जा रहीं है, जिनमें अरहर, चना, मूंग, उड़द, मसूर, कुल्थी, तिवड़ा, राजमा एवं मटर प्रमुख हैं। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर में दलहनी फसलों पर अनुसंधान एवं प्रसार कार्य हेतु तीन
अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजनाएं - मुलार्प फसलें (मूंग, उड़द, मसूर, तिवड़ा, राजमा, मटर), चना एवं अरहर संचालित की जा रहीं है जिसके तहत नवीन उन्नत किस्मों के विकास, उत्पादन तकनीक एवं कृषकों के खतों पर अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन का कार्य किया जा रहा है। विश्वविद्यालय द्वारा अब तक विभिन्न दलहनी फसलों की उन्नतशील एवं रोगरोधी कुल 25 किस्मों का विकास किया जा चुका है, जिनमें मूंग की 2, उड़द की 1, अरहर की 3, कुल्थी की 6, लोबिया की 1, चना की 5, मटर की 4, तिवड़ा की 2 एवं मसूर की 1 किस्में प्रमुख हैं।


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छत्तीसगढ़ राज्य गठन के उपरान्त पिछले 20 वर्षों में प्रदेश में दलहनी फसलों के रकबे में 26 प्रतिशत, उत्पादन में 53.6 प्रतिशत तथा उत्पादकता में 18.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसके बावजूद प्रदेश में दलहनी फसलों के विस्तार एवं विकास की असीम संभावनाएं हैं। इसी के तहत देश में दलहनी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अनुसंधान एवं विकास हेतु कार्य योजना एवं रणनीति तैयार करने, देश के विभिन्न राज्यों के 100 से अधिक दलहन वैज्ञानिक, 17 एवं 18 अगस्त को कृषि विश्वविद्यालय रायपुर में जुटेंगे। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के सहयोग से यहां दो दिवसीय रबी दलहन कार्यशाला एवं वार्षिक समूह बैठक का आयोजन किया जा रहा है। कृषि महाविद्यालय रायपुर के सभागृह में आयोजित इस कार्यशाला का शुभारंभ प्रदेश के कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे करेंगे। शुभारंभ समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रदेश के कृषि उत्पादन आयुक्त डॉ. कमलप्रीत सिंह, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के उप महानिदेशक डॉ. टी.आर. शर्मा, सहायक महानिदेशक डॉ. संजीव शर्मा, भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर के निदेशक डॉ. बंसा सिंह तथा भारतीय धान अनुसंधान संस्थान हैदराबाद के निदेशक डॉ. आर.एम. सुंदरम भी उपस्थित रहेंगे। समारोह की अध्यक्षता इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल करेंगे। इस दो दिवसीय रबी दलहन कार्यशाला में चना, मूंग, उड़द, मसूर, तिवड़ा, राजमा एवं मटर का उत्पादन बढ़ाने हेतु नवीन उन्नत किस्मों के विकास एवं अनुसंधान पर विचार-मंथन किया जाएगा।


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भारत आज मांग से ज्यादा कर रहा अनाज का उत्पादन

उल्लेखनीय है कि भारत में हरित क्रांति अभियान के उपरान्त देश ने अनाज उत्पादन के क्षेत्र में आत्म निर्भरता हासिल कर ली है और आज हम मांग से ज्यादा अनाज का उत्पादन कर रहे हैं। लेकिन, आज भी हमारा देश दलहन एवं तिलहन फसलों के उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर नहीं बन सका है और इन फसलों का विदेशों से बड़ी मात्रा में आयात करना पड़ता हैै। वर्ष 2021-22 में भारत ने लगभग 27 लाख मीट्रिक टन दलहनी फसलों का आयात किया है। देश को दालों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लगातार प्रयास किये जा रहें हैं। केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा किसानों को दलहनी फसलें उगाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। वैसे तो भारत विश्व का प्रमुख दलहन उत्पादक देश है और देश के 37 प्रतिशत कृषि क्षेत्र में दलहनी फसलों की खेती की जाती है। विश्व के कुल दलहन उत्पादन का एक चौथाई उत्पादन भारत में होता है, लेकिन खपत अधिक होने के कारण प्रतिवर्ष लाखों टन दलहनी फसलों का आयात करना पड़ता है।

यह समन्वयक करेंगे चर्चा

इस दो दिवसीय कार्यशाला में इन संभावनाओं को तलाशने तथा उन्हें मूर्त रूप देने का कार्य किया जाएगा। कार्यशाला में अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना चना के परियोजना समन्वयक डॉ. जी.पी. दीक्षित, अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना मुलार्प के परियोजना समन्वयक डॉ. आई.पी. सिंह, सहित देश में संचालित 60 अनुसंधान केन्द्रों के कृषि वैज्ञानिक शामिल होंगे।
देश में दलहन और तिलहन का उत्पादन बढ़ाने के प्रयास करेगी सरकार, देश भर में बांटेगी मिनी किट

देश में दलहन और तिलहन का उत्पादन बढ़ाने के प्रयास करेगी सरकार, देश भर में बांटेगी मिनी किट

इस साल देश के कई राज्यों में खरीफ की फसल मानसून की बेरुखी के कारण बुरी तरह से प्रभावित हुई है, जिसके कारण उत्पादन में भारी गिरावट आई है। उत्पादन में यह गिरावट किसानों की कमर तोड़ने के लिए पर्याप्त है, क्योंकि यदि किसान खरीफ की फसल में लाभ नहीं कमा पाए तो उनके लिए नई चुनौतियां खड़ी हो जाएंगी। इसके अलावा अगर किसानों के पास पैसा नहीं रहा तो किसानों के लिए रबी की फसल में बुआई करना मुश्किल हो जाएगा। बिना पैसों के खेती से जुड़ी चीजें जैसे कि खाद, बीज, कृषि उपकरण, डीजल इत्यादि सामान खरीदना किसानों के लिए मुश्किल हो जाएगा। किसानों की इन चुनौतियों को देखते हुए केंद्र सरकार किसानों की मदद करने जा रही है। केंद्र सरकार किसानों के लिए रबी सीजन में दलहन और तिलहन की फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए मुफ्त मिनी किट वितरित करेगी। कृषि मंत्रालय के अधिकारियों और विशेषज्ञों का अनुमान है कि इससे देश भर में दलहन के उत्पादन में लगभग 20-25 फीसदी की वृद्धि की जा सकती है। इसको देखते हुए मिनी किट वितरण की रूप रेखा तैयार कर ली गई है। ये भी पढ़े: दलहनी फसलों पर छत्तीसढ़ में आज से होगा अनुसंधान देश भर में मिनी किट का वितरण भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ लिमिटेड (NAFED) के अंतर्गत आने वाली संस्था राष्ट्रीय बीज निगम - एनएससी (NSC) करेगी। इन मिनी किटों का भुगतान भारत सरकार अंतर्गत आने वाले राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत किया जाएगा। केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय की योजना के अनुसार इन मिनी किटों का वितरण उन्हीं राज्यों में किया जाएगा, जहां दलहन एवं तिलहन का उत्पादन किया जाता है।

इस योजना का उद्देश्य क्या है

केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय की तरफ से दी गई जानकारी के अनुसार, इस योजना का मुख्य उद्देश्य उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के साथ ही किसानों के बीच फसलों की नई किस्मों को लेकर जागरूक करना है, ताकि किसान इन मिनी किटों के माध्यम से नई किस्मों के प्रति आकर्षित हों और ज्यादा से ज्यादा रबी की बुआई में नई किस्मों का इस्तेमाल करें। इस योजना के अंतर्गत किसानों के बीच मिनी किटों में उच्च उत्पादन वाले बीजों का वितरण किया जाएगा। मिनी किटों का वितरण महाराष्ट्र के विदर्भ में रेपसीड और सरसों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए, साथ ही तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक जैसे राज्यों में वहां की प्रमुख तिलहन फसल मूंगफली के उत्पादन को बढ़ाने के लिए तथा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और राजस्थान में अलसी और महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना में कुसुम (सूरजमुखी) का उत्पादन बढ़ाने के लिए किया जाएगा। ये भी पढ़े: तिलहनी फसलों से होगी अच्छी आय केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय ने इस साल देश भर के 11 राज्यों में दलहन की बुवाई बढ़ाने के लिए, उड़द के 4.54 लाख बीज मिनी किट और मसूर के 4.04 लाख बीज मिनी किट राज्यों को भेज दिए हैं। उत्तर प्रदेश के लिए सबसे ज्यादा 1,11,563 मिनी किट भेजे गए हैं, इसके बाद झारखण्ड के लिए 12,500 मिनी किट और बिहार के लिए 12,500 मिनी किट भेजे गए हैं। इसके अतिरिक्त कृषि मंत्रालय एक और योजना लागू करने जा रही है, जिसके अंतर्गत देश भर के 120 जिलों में मसूर और 150 जिलों में उड़द का उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा। इस योजना को विशेष कार्यक्रम '(TMU 370; टीएमयू 370) 'तूर मसूर उड़द - 370'' के नाम से प्रचारित किया जाएगा।
"केंद्र सरकार के रबी 2022-23 के लिए दलहन और तिलहन के बीज मिनीकिट वितरण" से सम्बंधित 
सरकारी प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) रिलीज़ का दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें।
ये भी पढ़े: किस क्षेत्र में लगायें किस किस्म की मसूर, मिलेगा ज्यादा मुनाफा अगर आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले 3 सालों के दौरान देश में दलहन और तिलहन के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि देखने को मिली है। अगर साल 2018-19 तक अब की तुलना करें तो दलहन के उत्पादन में 34.8% की वृद्धि दर्ज की गई है। जहां साल 2018-19 में दलहन का उत्पादन 727 किग्रा/हेक्टेयर था। जबकि मौजूदा वर्ष मे दलहन का उत्पादन बढ़कर 1292 किग्रा/हेक्टेयर पहुंच गया है।
अलसी की खेती से भाग जाएगा आर्थिक आलस

अलसी की खेती से भाग जाएगा आर्थिक आलस

किसान जितनी मेहनत करते हैं, उन्हें उतना पैसा मिल जाता तो क्या कहना था। लेकिन, एक समस्या यह भी है, कि किसान आमतौर पर पारंपरिक खेती से इतर प्रयोग करने से बचाते हैं। लेकिन, आज हम एक ऐसी फसल के बारे में बता रहे है, जिसकी खेती की जाए तो जिन्दगी से आर्थिक आलस का खात्मा तय है। आज हम बात कर रहे हैं, अलसी की।

अलसी एक प्रयोग अनेक

अलसी तिलहन फसल है और आजकल यह बहुत बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। इसकी वजह है, इसमें ओमेगा फैटी एसिड का पाया जाना, अलसी के तेल का पेंट्स, वार्निश व स्नेहक बनाने के साथ पैड इंक तथा प्रेस प्रिटिंग हेतु स्याही तैयार करने में उपयोग किया जाता है। इसमें पोषक तत्वों की उचित मात्रा होने के कारण इसका उपयोग खाद के रूप में किया जाता है।


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मौसम:

इसकी खेती के लिए ठंडे व शुष्क जलवायु की जरूरत है, यह असल में रबी फसल है। इसके उचित अंकुरण हेतु 25-30 डिग्री से.ग्रे. तापमान तथा बीज बनते समय तापमान 15-20 डिग्री से.ग्रे. होना चाहिए।

जमीन:

इसकी खेती के लिये काली भारी एवं दोमट (मटियार) मिट्टी सही है, अधिक उपजाऊ मृदाओं की अपेक्षा मध्यम उपजाऊ मृदायें अच्छी समझी जाती हैं। उचित जल निकास का प्रबंध होना चाहिए। खेत भुरभुरा एवं खरपतवार रहित होना चाहिये, दो से तीन बार हैरो चलाना आवश्यक है, जिससे नमी संरक्षित रह सके। अलसी के बीज को कार्बेन्डाजिम की 2.5 से 3 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिये अथवा ट्राइकोडरमा विरीडी की 5 ग्राम मात्रा अथवा ट्राइकोडरमा हारजिएनम की 5 ग्राम एवं कार्बाक्सिन की 2 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित कर बुवाई करनी चाहिये।


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बेहतर उत्पादन के लिए इसे 2 सिंचाई की आवश्यकता होती है, पहली सिंचाई बुवाई के एक माह बाद एवं दूसरी सिंचाई फल आने से पहले करनी चाहिये। विभिन्न प्रकार के रोग जैसे गेरूआ, उकठा, चूर्णिल आसिता तथा आल्टरनेरिया अंगमारी एवं कीट यथा फली मक्खी, अलसी की इल्ली, अर्धकुण्डलक इल्ली चने की इल्ली द्वारा भारी क्षति पहुचाई जाती है। इसके लिए उचित प्रबंधन किए जाने की जरूरत है। अलसी की जब पत्तियाँ सूखने लगें, केप्सूल भूरे रंग के हो जायें और बीज चमकदार बन जाय तब फसल की कटाई करनी चाहिये। बीज में 70 प्रतिशत तक सापेक्ष आद्रता तथा 8 प्रतिशत नमी की मात्रा भंडारण के लिये सर्वोत्तम है।
खाने का तेल होगा सस्ता

खाने का तेल होगा सस्ता

पिछले कुछ समय से आम उपभोक्ताओं की शिकायत रही है, कि खाने के तेल के दाम बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं। सरकार की तरफ से भी कहा गया कि मलेशिया से आने वाले पाम आयल पर प्रतिबन्ध लगाए जाने के कारण ऐसा हुआ है। लेकिन, अब उम्मीद बंधती दिख रही है, कि खाने के तेल के दाम में गिरावट आ सकती है। लेकिन, सवाल यह भी है कि क्या किसानों को इससे फायदा होगा या नुकसान ? खबर यह है, कि सूरजमुखी उगाने वाले कई राज्यों, जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और हरियाणा में अभी सूरजमुखी के बीज निकालने का समय आ गया है। भारत हर साल करीब 2 लाख टन सूरजमुखी तेल का उत्पादन करता है। लेकिन, इस बीच खबर यह है, कि तिलहन की मांग में कमजोरी आई है, न सिर्फ सूरजमुखी बल्कि सरसों, सोयाबीन, मूंगफली की कीमत में भी कमी देखी गयी है। दूसरी तरफ, पाम आयल की मांग में तेजी देखी जा रही है।
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जानकारों की माने तो, अभी से ठीक 6 महीना पहले जहां सूरजमुखी तेल की कीमत 2,500 डॉलर प्रति टन थी, वहीं यह करीब आधा घटकर 1,360 डॉलर प्रति टन रह गया है। माना जा रहा है, कि यह विदेशों से तेल आने के कारण हुआ है, विदेश से आने वाला यह तेल ही किसानों को नुकसान पहुंचाएगा क्योंकि उसकी कीमत ११२ रूपये प्रति किलो तय की गयी है। दूसरी तरफ, किसानों को एक किलो सूरजमुखी बीज निकालने में 40 रूपये का खर्च बैठता है। यानी, उसकी कीमत हो गयी 152 रूपये। तो सवाल है, कि वह 112 रूपये वाली कीमत का मुकाबला कैसे करेगा ? जाहिर है, ऐसे में किसान सूरजमुखी का तेल बनाने से अधिक उसके अन्य प्रोडक्ट बनाना पसंद करेंगे, जिससे कि उनका मुनाफ़ा बढ़ सके। सूरजमुखी से अन्य कई प्रोडक्ट, जैसे मुर्गी दाना और पशु आहार आदि भी बनाए जाते हैं। एक और समस्या है, विदेश से आने वाले सूरजमुखी तेल पर आयात शुल्क नहीं है। हां, यह कोटा के तहत जरूर लाया जा रहा है, इस वजह से सप्लाई कम हो गया है और विक्रेता इसका फायदा उठा रहे हैं। जाहिर है, भारत में तिलहन उत्पादन तभी बढ़ सकता है, जब किसानों को उनकी उपज का मूल्य बेहतर मिलेगा। विदेश से आने वाले पाम आयल, सूरजमुखी के मुकाबले सस्ता पड़ता है, इस वजह से भी किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। सरकार को कीमत में अन्तर के बारे में सोचना होगा।