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दूध

पशुओं का दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए करे ये उपाय, होगा दोगुना फायदा

पशुओं का दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए करे ये उपाय, होगा दोगुना फायदा

किसान भाइयों आजकल दूध और दूध से बने पदार्थ की बहुत मांग रहती है। पशुपालन से किसानों को बहुत लाभ मिलता है। पशुपालन का असली लाभ तभी मिलता है जब उसका पशु पर्याप्त मात्रा में दूध दे और दूध में अच्छा फैट यानी वसा हो। 

क्योंकि बाजार में दूध वसा के आधार पर महंगा व सस्ता बिकता है। आइये जानते हैं कि पशुओं में दूध उत्पादन कैसे बढ़ाया जाये। 

 किसान भाइयों आपको अच्छी तरह से जान लेना चाहिये कि पशुओं में दूध उत्पादन उतना ही बढ़ाया जा सकता है जितना उस नस्ल का पशु दे सकता है।  

ऐसा ही फैट के साथ होता है। दूध में वसा यानी फैट की मात्रा पशु के नस्ल पर आधारित होती है। ये बातें आपको पशु खरीदते समय ध्यान रखनी होंगी और जैसी आपको जरूरत हो उसी तरह का पशु खरीदें।

दूध उत्पादन कम होने के कारण (Due to low milk production)

  1. संतुलित आहार की कमी होना।
  2. पशुओें की देखभाल में कमी होना।
  3. बच्चेदानी की खराबी व अन्य बीमारियों का होना
  4. टीके लगाने का साइड इफेक्ट होना
  5. चारा-पानी के प्रबंधन में कमी होना।

पशुओं की देखभाल कैसे करें

दुधारू पशु की देखभाल किसान भाइयों को 24 घंटे करनी चाहिये। कोई-कोई किसान भाई कहते हैं कि अपने पशुओं के चारे-दाने पर बहुत ज्यादा खर्च कर रहे हैं लेकिन फिर भी उनका दूध उत्पादन नहीं बढ़ता है।  

आपने किसी जानवर को दूध के हिसाब से 5 किलो सुबह और 5 किलो शाम दाना खिला दिया , उसके बाद भी दूध उत्पादन नहीं बढ़ता है। आपको दो समय की जगह पर उतनी ही मात्रा को चार बार देना है और समय-समय पर पानी का प्रबंध भी करना है।

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कैसा होना चाहिये पशुओं का संतुलित आहार

किसान भाइयों  आपको पशुओं की नस्ल, उनकी कद-काठी एवं दूध देने की क्षमता के अनुसार संतुलित आहार देना चाहिये। आइये जानते हैं कुछ खास बातें:-

  1. पशुओं के संतुलित आहार में, 60 प्रतिशत हरा चारा खिलाना चाहिये तथा 40 प्रतिशत सूखा चारा जिसमें दाना व खल भी शामिल है, खिलाना चाहिये।
  2. हरे चारे में घास, हरी फसल व बरसीम आदि देना चाहिये
  3. सूखे चारे में गेहूं, मक्का, ज्वार-बाजरा आदि का मिश्रण बनाकर भूसे के साथ देना चाहिये।
  4. पशुओं को दिन में 30 से 32 लीटर पानी देना चाहिये।
  5. पशुओं में दूध का उत्पादन बढ़ाने गाय को प्रतिदिन 5 किलो और भैंसको प्रतिदिन 10 किलो दाना खिलाना चाहिये।
  6. वैसे तो पशुओं को सुबह शाम सानी की जाती है लेकिन कोशिश करें कि कम से कम तीन बार तो आहार दें और कम से कम इतनी ही बार उन्हें पानी पिलायें।
  7. खली में सरसों ,अलसी व बिनौले की खली देना पशुओं के लिए उत्तम है। इससे दूध और उसका फैट बढ़ता है।

संतुलित आहार का मिश्रण कैसे तैयार करें

  1. गेहूं, जौ, बाजरा और मक्का का दानें से संतुलित आहार तैयार करें। आहार में दाने का हिस्सा 35 प्रतिशत रखना चाहिये।
  2. संतुलित आहार बनाते समय खली का विशेष ध्यान रखना चाहिये। क्षेत्र के हिसाब से अलग-अलग तरह की खली मिलती है। वैसे दूध की क्वालिटी अच्छी करने में सरसों की खली सबसे अच्छी मानी जाती है। यदि किसी क्षेत्र में सरसों की खली न मिले तो वहां पर मूंगफली की खली, अलसी की खली या बिनौला की खली का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। आहार में खली की मात्रा 30 प्रतिशत होनी चाहिये।
  3. चोकर या चूरी भी पशुओं के दूध बढ़ाने में बहुत सहायक हैं। चोकर या चूरी में गेहूं का चोकर,चना की चूरी, दालों की चूरी और राइस ब्रान आदि का प्रयोग संतुलित आहार में किया जाना चाहिये। आहार में चोकर या चूरी की मात्रा भी एक तिहाई रखनी चाहिये।
  4. खनिज लवण दो किलो या अन्य साधारण नमक एक किलो पशुओं को देने से उनका हाजमा सही रहता है तथा पानी भी अधिक पीते हैं। इससे उनके दूध उत्पादन की क्षमता में बढ़ोतरी होती है।
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मौसम के अनुसार करें पशुओं की देखभाल

हमारे देश में प्रमुख रूप से सर्दी, गर्मी और बरसात के मौसम होते हैं। इन मौसमों में पशुओं की देखभाल करनी जरूरी होती है।

  1. चाहे कोई सा मौसम हो पशुओं को स्वच्छ व ताजा पानी पिलाना चाहिये। ताजे पानी से वो पेट भर कर पानी पी लेगा। बासी व गंदा पानी पीने से अनेक तरह की बीमारियां होने का खतरा बना रहता है। सर्दियों में ठंडा बर्फीला और गर्मियों में गर्म पानी होने से पशु अपनी प्यास का आधा ही पानी पी पाता है। इससे उसके स्वास्थ्य को तो नुकसान होता ही है और उसके दुग्ध उत्पादन पर भी विपरीत असर पड़ता है।
  2. आवास का प्रबंधन करना होगा। गर्मियों में पशुओं को गर्मी के प्रकोप से बचाना होता है। उन्हें प्रचंड धूप व गर्म हवा लू से बचायें। धूप के समय उनको साये में बनी पशुशाला में रखें। उन्हें अधिक बार पानी पिलायें। पानी पर्याप्त मात्रा में हो तो दिन में एक बार उन्हें ताजे पानी से नहलायें। इससे उनके शरीर का तापमान सामान्य रहेगा और स्वस्थ रहकर दुग्ध उत्पादन बढ़ा पायेंगे।
  3. सर्दियों में पशुओं के आवास का विशेष प्रबंधन करना होता है। शाम को या जिस दिन अधिक सर्दी हो, तब उन्हें साये वाले पशुशाला में रखें। उनके शरीर पर बोरे की पल्ली ओढ़ायें। पशु शाला में थोड़ी देर के लिए आग जलायें। आग जलाते समय स्वयं मौजूद रहें। जब आपका कहीं जाना हो तो आग को बुझायें । यदि तसले आदि में आग जलाई हो तो वहां से हटा दें।

मौसम के अनुसार आहार पर भी दें ध्यान

मौसम के बदलाव के अनुसार पशुओं के आहार में भी बदलाव करना चाहिये। गर्मियों के मौसम में संतुलित आहार बनाते समय किसान भाइयों को इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि वो अपने पशुओं को ऐसी कोई चीज न खिलायें जिसकी तासीर गर्म होती हो। इस समय गुड़ और बाजरे से परहेज करना चाहिये।

गर्मियों के मौसम का आहार

गर्मियों के लिए आहार में गेहूं, जौ, मक्के का दलिया,चने का खोल, मूंग का छिलका, चने की चूरी, सोयाबीन, उड़द, जौ, तारामीरा,आंवला और सेंधा नमक का मिश्रण तैयार करके पशुओं को देना चाहिये।

सर्दियों के मौसम का आहार

सर्दियों के मौसम के आहार में गेहूं, मक्का, बाजरा का दलिया, चने की चूरी, सोयाबीन, दाल की चूरी, हल्दी, खाद्य लवण व सादा नमक का मिश्रण तैयार करें। 

इसके अलावा सर्दियों के मौसम में गुड़ और सरसों का तेल भी दें। बाजरा और गुड़ का दलिया भी अलग से दे सकते हैं। यह ध्यान रहे कि यह दलिया केवल अधिक सर्दियों में ही दें। 

खास बात

पशुओं को खली देने के बारे में भी सावधानी बरतें। सर्दियों के समय हम खली को रात भर भिगोने के बाद पशुओं को देते हैं। गर्मियों में ऐसा नहीं करना चाहिये। सानी करने से मात्र दो-तीन घंटे पहले ही भिगो कर ही दें।

फैट्स बढ़ाने के तरीके

पशुओं में फैट्स उनकी नस्ल की सीमा से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है। फिर भी कोई पशु अपनी नस्ल की सीमा से कम फैट देता है तो उसको बढ़ाने के लिए निम्न उपाय करें:-

  1. शाम को जब पशुओं को रात्रि विश्राम के लिए बांधा जाये तो उस समय 300 ग्राम सरसों के तेल को 300 ग्राम गेहूं के आटे में मिलाकर दें और उसके बाद पानी न दें।
  2. अच्छा फैट देने वाले किसान भाइयों को चाहिये कि वो दूध दुहने से दो घंटे पहले ही पानी पिलायें, उसके बाद नहीं । ऐसा करने से फैट बढ़ेगा।
  3. दूध दुहने से पहले बच्चे को पहले दूध पिलायें क्योंकि पहले वाले दूध में फैट कम होता है और बाद वाले दूध में फैट अधिक होता है। यदि आपका दुधारू पशु दस-12 लीटर दूध देता है तो उसको एक चौथाई दूध दुह कर बर्तन बदल लें। बाद में जो दूध दुहेंगे उसमें फैट पहले वाले से अधिक निकलेगा।

बन्नी नस्ल की भैंस देती है 15 लीटर दूध, जानिए इसके बारे में

बन्नी नस्ल की भैंस देती है 15 लीटर दूध, जानिए इसके बारे में

बन्नी भैंस पाकिस्तान के सिंध प्रान्त की किस्म है, जो भारत में गुजरात प्रांत में दुग्ध उत्पादन के लिए मुख्य रूप से पाली जाती है। बन्नी भैंस का पालन गुजरात के सिंध प्रांत की जनजाति मालधारी करती है। जो दूध की पैदावार के लिए इस जनजाति की रीढ़ की हड्डी मानी जाती है। बन्नी नस्ल की भैंस गुजरात राज्य के अंदर पाई जाती है। गुजरात राज्य के कच्छ जनपद में ज्यादा पाई जाने की वजह से इसे कच्छी भी कहा जाता है। यदि हम इस भैंस के दूसरे नाम ‘बन्नी’ के विषय में बात करें तो यह गुजरात राज्य के कच्छ जनपद की एक चरवाहा जनजाति के नाम पर है। इस जनजाति को मालधारी जनजाति के नाम से भी जाना जाता है। यह भैंस इस समुदाय की रीढ़ भी कही जाती है।

भारत सरकार ने 2010 में इसे भैंसों की ग्यारहवीं अलग नस्ल का दर्जा हांसिल हुआ

बाजार में इस भैंस की कीमत 50 हजार से लेकर 1 लाख रुपये तक है। यदि इस भैंस की उत्पत्ति की बात की जाए तो यह भैंस पाकिस्तान के सिंध प्रान्त की नस्ल मानी जाती है। मालधारी नस्ल की यह भैंस विगत 500 सालों से इस प्रान्त की मालधारी जनजाति अथवा यहां शासन करने वाले लोगों के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण पशुधन के रूप में थी। पाकिस्तान में अब इस भूमि को बन्नी भूमि के नाम से जाना जाता है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि भारत के अंदर साल 2010 में इसे भैंसों की ग्यारहवीं अलग नस्ल का दर्जा हांसिल हुआ था। इनकी शारीरिक विशेषताएं अथवा
दुग्ध उत्पादन की क्षमता भी बाकी भैंसों के मुकाबले में काफी अलग होती है। आप इस भैंस की पहचान कैसे करें।

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बन्नी भैंस की कितनी कीमत है

दूध उत्पादन क्षमता के लिए पशुपालकों में प्रसिद्ध बन्नी भैंस की ज्यादा कीमत के कारण भी बहुत सारे पशुपालक इसे खरीद नहीं पाते हैं। आपको बता दें एक बन्नी भैंस की कीमत 1 लाख रुपए से 3 लाख रुपए तक हो सकती है।

बन्नी भैंस की क्या खूबियां होती हैं

बन्नी भैंस का शरीर कॉम्पैक्ट, पच्चर आकार का होता है। इसके शरीर की लम्बाई 150 से 160 सेंटीमीटर तक हो होती है। इसकी पूंछ की लम्बाई 85 से 90 सेमी तक होती है। बतादें, कि नर बन्नी भैंसा का वजन 525-562 किलोग्राम तक होता है। मादा बन्नी भैंस का वजन लगभग 475-575 किलोग्राम तक होता है। यह भैंस काले रंग की होती है, लेकिन 5% तक भूरा रंग शामिल हो सकता है। निचले पैरों, माथे और पूंछ में सफ़ेद धब्बे होते हैं। बन्नी मादा भैंस के सींग ऊर्ध्वाधर दिशा में मुड़े हुए होते हैं। साथ ही कुछ प्रतिशत उलटे दोहरे गोलाई में होते हैं। नर बन्नी के सींग 70 प्रतिशत तक उल्टे एकल गोलाई में होते हैं। बन्नी भैंस औसतन 6000 लीटर वार्षिक दूध का उत्पादन करती है। वहीं, यह प्रतिदिन 10 से 18 लीटर दूध की पैदावार करती है। बन्नी भैंस साल में 290 से 295 दिनों तक दूध देती है।
भारत में पाई जाने वाली इस नस्ल की गाय का दुग्ध उत्पादन में पहला स्थान

भारत में पाई जाने वाली इस नस्ल की गाय का दुग्ध उत्पादन में पहला स्थान

भारत के अंदर विभिन्न प्रकार की गायों की नस्लें पाई जाती हैं। कृषि के साथ-साथ पशुपालन किसानों की आय बढ़ाने में काफी सहयोगी भूमिका अदा करता है। 

पशुपालकों के लिए गाय पालन उनकी आय को बढ़ाने के लिए सबसे अच्छा स्त्रोत माना जाता है। अब ऐसे में पशुपालन करने वाले किसानों को गाय की अच्छी नस्ल का चयन करना महत्वपूर्ण होता है। 

इसलिए आज के इस लेख में हम आपको गाय की ऐसी नस्ल की जानकारी देंगे जो कि सबसे ज्यादा दूध देती है। दरअसल, हम आज आपको बताऐंगे गाय साहीवाल नस्ल (Sahiwal Breed Cow) के बारे में। 

वैज्ञानिक ब्रीडिंग के माध्यम से देसी गायों की नस्ल में सुधार कर उन्हें साहीवाल नस्ल में परिवर्तित किया जा रहा है। हरियाणा राज्य के अंदर बड़ी संख्या में इस नस्ल की गाय होती हैं। वहीं, पंजाब और राजस्थान में भी साहीवाल पशुओं के लिए कुछ गौशालाएं तैयार की गई हैं।

साहीवाल नस्ल की किस प्रकार जान-पहचान की जाती है

दुधारू गाय की साहीवाल नस्ल की गायों का सिर चौड़ा, सींग छोटे और मोटे साथ ही शरीर मध्यम आकार का होता है। गर्दन के नीचे लटकती हुई भारी चमड़ी और भारी लेवा होता है। 

साहीवाल गायों का रंग अधिकतर लाल और गहरे भूरे रंग का होता है। इस नस्ल की कुछ गायों के शरीर पर सफेद चमकदार धब्बे भी पाए जाते हैं। 

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इस नस्ल के वयस्क बैल का औसतन भार 450 से 500 किलो और मादा गाय का वजन 300-400 किलोग्राम तक हो सकता है। बैल की पीठ पर बड़ा कूबड़ जिसकी ऊंचाई 136 सेमी तथा मादा की पीठ पर बने कूबड़ की ऊंचाई 120 सेमी के आसपास होती है।

पशुपालक यहां से शुद्ध नस्ल के पशु या गाय प्राप्त कर सकते हैं  

साहीवाल गाय अधिकतम उत्तरी भारत में पाई जाने वाली महत्वपूर्ण नस्ल है। बतादें, कि इसका उदगम स्थल पाकिस्तान पंजाब के मोंटगोमरी जिले और रावी नदी के आसपास का है। 

सबसे ज्यादा दूध देने वाली यह नस्ल पंजाब के फिरोजपुर और अमृतसर जैसे जनपदों में पाई जाती है। वहीं, राजस्थान के श्री गंगानगर जिले में इस नस्ल की गाय हैं। 

वहीं, पंजाब में फिरोजपुर जिले के फाजिल्का और अबोहर कस्बों में शुद्ध साहीवाल गायों के झुंड के झुंड देखने को मिल जाएंगे।

साहीवाल गाय की विशेषताएं या खूबियां क्या-क्या हैं ?

साहीवाल (Sahiwal) नस्ल की गाय एक बार ब्याने पर 10 महीने तक दूध देती है। वहीं, दूध काल के दौरान ये गायें औसतन 2270 लीटर दूध देती हैं। यह प्रतिदिन 10 से 16 लीटर दूध देने की क्षमता रखती हैं। 

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साहीवाल गाय अन्य देशी गायों की अपेक्षा अधिक दूध देती हैं। इनके दूध में बाकी गायों के तुलनात्मक अधिक प्रोटीन और वसा मौजूद है।

साहीवाल गाय की प्रजनन प्रक्रिया क्या है ? 

गाय के पहले प्रजनन की अवस्था जन्म के 32-36 महीने में आती है। इसकी प्रजनन समयावधि में 15 महीने का समयांतराल होता है। 

गाय की देशी नस्ल होने की वजह से इसके रखरखाव और आहार पर भी अधिक खर्च करना नहीं पड़ता। यह नस्ल ज्यादा गर्म इलाकों में भी आसानी से रह सकती है। 

इनका शरीर बाहरी परजीवी के प्रति प्रतिरोधी होता है, जिससे इसे पालने में अधिक मशक्कत नहीं करनी पड़ती है। 

साहीवाल गाय की कीमत कितनी होती है ?

साहीवाल गाय की कीमत (Sahiwal Cow Price) इसके दूध उत्पादन की क्षमता, उम्र, स्वास्थ्य इत्यादि पर निर्भर करती है। यदि अनुमानित तोर पर बात करें तो साहीवाल गाय तकरीबन 40 हजार से 60 हजार रुपए की कीमत के आसपास खरीदी जा सकती है।

ठंड के दिनों में घटी दूध की आपूर्ति

ठंड के दिनों में घटी दूध की आपूर्ति

दूध के बाजार में इस बार अजीब उथल पुथल की स्थिति है। यह ओमेक्रोन के खतरे के चलते है या महंगे भूसे, दाने चारे के कारण या किसी और वजह से कह पाना आसान नहीं है लेकिन हालात अच्छे नहीं हैं। गुजरे कोरोनाकाल में दूध के कारोबार पर बेहद बुरा असर पड़ा। यह बात अलग है दूधिए और डेयरियों को किसी तरह की बंदिश में नहीं रखा गया लेकिन दूध से बनने वाले अनेक उत्पादों पर रोक से दूध की खपत बेहद घटी। चालू सीजन में बाजार में दूध की आवक करीब 25 फीसद कम है। दूध की आवक में कमी के चलते देश के कई कोआपरेटिव संघ एवं मितियां दूध के दाम बढ़ाने की दिशा में निर्णय कर चुके हैं। कुछने तो दाम बढ़ा भी दिए हैं। एक एक संघ रेट बढ़ाता है तो दूसरों को भी कीमत बढ़ानी पड़ती है। नवंबर माह में पिछले साल के मुकाबले इस बार दूध की कीमत दो से तीन रुपए लीटर ज्यादा हैं। 

15 रुपए किलो हुआ भूसा

सूखे चारे पर महंगाई की मार से पशुपालक आहत हैं। गेहूं का भूूसा 15 रुपए प्रति किलोग्राम तक पहुंच गया है। एक भैंस को दिन में तकरीबन 10 किलोग्राम सूखे भूसे की आवश्यकता होती है। सूखे चारे पर महंगाई की मार से किसान भी कराहने लगे हैं। इसके चलते पशुपालन में लगे लोगों ने भी अपने पशुओं की संख्या बढ़ाने के बजाय सीमित की हुई है। इसी का असर है कि ठंड के दिनों में भी बड़ी डेयरियों पर दूध की आवक कमजोर बीते सालों के मुकाबले कमजोर चल रही है। 

घाटे का सौदा है दूध बेचना

आईए 10 लीटर दूध की कीमत का आकलन करते हैं। 10 लीटर दूध देने वाली भैंस के लिए हर दिन 10 किलोग्राम भूसे की जरूरत होती है। इसकी कीमत 150 रुपए बैठती है। इसके अलावा एक किलोग्राम दाना शरीर के मैनेजमेंट के लिए जरूरी होता है। इसकी कीमत भी करीब 25 रुपए बैठती है। तकनीबन 300 ग्राम दाना प्रति लीटर दूध पर देना होता है। इस हिसाब से 10 लीटर दूध वाले पशु को करीब तीन किलोग्राम दाना, खल, चुनी चोकर आदि चाहिए। यह भी 250 रुपए से कम नहीं बैठता। 

इसके अलावा हरा चारा, नमक, गुड़ और कैल्सियम की पूर्ति के लिए  खडिया जैसे सस्ते उत्पादों की कीमत जोड़ें तो दुग्ध उत्पादन से पशुपलकों को बिल्कुल भी आय नहीं मिल रही है। गांवों में दूध 40 रुपए लीटर बिक रहा है। यानी 10 लीटर दूध 400 का होता है और पशु की खुराब 500 तक पहुंच रही है। उक्त सभी उत्पादों की कीमत जोड़ें तो 10 लीटर दूध देने वाले पशु से आमदनी के बजाय नुकसान हो रहा है। पशु पालक के श्रम को जोड़ दिया जाए को घाटे की भरपाई असंभव है। किसान दूध से मुनाफा लेने के लिए पशु की खुराक में कटौती करते हैं लेकिन इसका असर उसकी प्रजनन क्षमता एवं स्वास्थ्य पर पड़ता है। इसके चलते पशु समय से गर्मी पर नहीं आता। इसके चलते पशु पालक को पशुओं का कई माह बगैर दूध के भी चारा दाना देना होता है। इस स्थिति में तो पशुपालक की कमर टूट जाती है।

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दूध नहीं घी बनाएं किसान

देश के अधिकांश ग्रामीण अंचल में अधिकतर पशु पालक 40 रुपए लीटर ही दूध बेच रहे हैं। भैंस के दूध में औसतन 6.5 प्रतिशत फैट होता है। इस हिसाब से 10 लीटर दूध में करीब 650 ग्राम घी बनता है। गांवों में भी 800 से 1000 रुपए प्रति किलोग्राम शुद्ध घी आसानी से बिक जाता है। घी बनाते समय मिलने वाली मठा हमारे पशुपालक परिवार के पोषण में वृद्धि करती है। इस लिहाज से दूध बेचने से अच्छा तो घी बनाना है। दूध बेचने में खरीददार दूधियों द्वारा भी पशु पालकों के पैसे को रोक कर रखा जाता है। उन्हें समय पर पूरा पैसा भी नहीं मिलता। इसके अलावा ठंड के दिनों में जो दूधिया दूध खरीदता है उसे गर्मियों में दूध देना पशु पालक की मजबूरी बना जाता है।

इन नस्लों की गायों का पालन करके किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं

इन नस्लों की गायों का पालन करके किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं

हमारे देश का किसान हमेशा से ही खेती के साथ मुनाफा कमाने के लिए पशुपालन भी करता आ रहा है। लेकिन कई किसानों को पता नहीं होता कि कौन से नस्ल के पशु चुनने होते हैं, ताकि वह उन से अच्छा मुनाफा कमा सके। 

ज्यादातर हमारे देश के किसान विदेशी नस्ल की गाय पालते हैं, ये गाय दूध तो ज्यादा देती है पर इन के दूध का रेट किसान को कम मिलता है। क्योंकि इन के दूध में फैट कम होता है और बीटा-कैसिइन A1 पाया जाता है, जो हमारे शरीर में कई बीमारियाँ उत्पन करता है। 

इसलिए आजकल लोगों का रुझान देसी गाय की तरफ हो रहा है। क्योंकि देसी गाय का दूध बहुत अच्छा होता है, इस में बीटा-कैसिइन A2 पाया जाता है और ये हमारे शरीर में ऊर्जा पैदा करता है। 

जिससे हम कम बीमार होते हैं, तभी आज कल देसी गाय के दूध का मूल्य 120 रूपये प्रति किलो हो गया है। इसलिए अगर किसान देसी नस्ल की गाय पालन करे तो उन का अच्छा मुनाफा हो सकता है।

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देसी गायों की प्रमुख नस्ले इस प्रकार हैं -

साहीवाल

ये नस्ल भारत की सब से ज्यादा दूध देने वाली देसी नस्ल है। इस का रंग लाल भूरे रंग से लेकर अधिक लाल तक हो सकता है। ये एक दिन में 18 लीटर तक दूध दे सकती है। 

दूध दुहते समय साहीवाल बहुत शांत होती है, इस की गर्मी सहनशीलता और उच्च दूध उत्पादन के कारण उन्हें अन्य एशियाई देशों के साथ-साथ अफ्रीका और कैरिबियन में निर्यात किया जाता है।

गिर

ये नस्ल गुजरात की नस्ल है। इस नस्ल की गाय बहुत सहनशील होती है और अच्छा दूध उत्पादन करती है। गिर दिखने में विशिष्ट है, आमतौर पर एक गोल और गुंबददार माथे, लंबे पेंडुलस कान और सींग जो बाहर और पीछे मुड़े होते हैं। 

गिर आमतौर पर लाल से लेकर पीले से लेकर सफेद तक के रंग के साथ धब्बेदार होते हैं। इस नस्ल की गायें रोग प्रतिरोधी होती हैं। गायों का वजन औसतन 385 किलोग्राम और ऊंचाई 130 सेमी होती है। 

140 सेमी की ऊंचाई के साथ बैल का वजन औसतन 545 किलोग्राम होता है। जन्म के समय बछड़ों का वजन लगभग 20 किलो होता है। इसके दूध में 4.5% फैट होता है और ये एक दिन में 15 से 16 लीटर तक दूध दे सकती है।

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देसी / हरियाणा

यह हरियाणा राज्य के रोहतक, करनाल, कुरुक्षेत्र, जींद, हिसार, भिवानी, चरखीदादरी और गुरुग्राम जिलों में ज्यादा मिलती है। मवेशी मध्यम से बड़े आकार के होते हैं और आम तौर पर सफेद से भूरे रंग के होते हैं। 

इसके दूध में फुर्ती बहुत होती है, ये गाय एक दिन में 10 - 15 लीटर तक दूध दे सकती है | इस नस्ल के बैल बहुत अच्छे बनते हैं, ये नस्ल गर्मी के मौसम में भी अच्छा दूध उत्पादन करती है। 

गाय का दूध विटामिन डी, पोटेशियम एवं कैल्शियम का अच्छा स्रोत है, जो कि हड्डियों की मजबूती के लिए जरूरी है। इसके साथ ही गाय के दूध में कैरोटीन भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह कैरोटीन मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता को 115 प्रतिशत तक बढ़ाता है। 

गाय का दूध, देशी घी को श्रेष्ठ स्रोत माना गया है, गौ, मूत्र, गैस, कब्ज, दमा, मोटापा, रक्तचाप, जोड़ों का दर्द, मधुमेह, कैंसर आदि अनेक बीमारियों की रोकथाम के लिए बहुत उपयोगी होता है। 

गाय के दूध में विटामिन ए पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है, जो आँखों में होने वाले रतोंधी रोग की रोकथाम के लिए आवश्यक है। इसके साथ विटामिन बी 12 व राइबोफ्लेविन भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, जो हृदय को स्वस्थ रखने में सहायक होता है।

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थारपारकर

ये नस्ल राजस्थान, हरियाणा में ज्यादा पाली जाती है। इसका रंग सफेद होता है और लटकती हुई नाभि और गलकम्बल होता है। इस नस्ल की गाय दूध ज्यादा देती है। 

15 लीटर तक दूध एक दिन में देती है, माना जाता है कि ये गाय राजस्थान में थार का रेगिस्तान पार कर के आयी थी। इसलिए इस का नाम थारपारकर पड़ गया।

गंगातीरी गाय कहाँ पाई जाती है और किन विशेषताओं की वजह से जानी जाती है

गंगातीरी गाय कहाँ पाई जाती है और किन विशेषताओं की वजह से जानी जाती है

गंगातीरी गाय की अद्भुत विशेषता के विषय में जानकर आप भौंचक्के हो जाएंगे। यह एक दिन के अंदर दस लीटर से भी अधिक दूध प्रदान करती है। क्या आपने कभी गंगातीरी गाय के विषय में सुना है? यदि आप पशुपालन का व्यवसाय करते होंगे, तो इस गाय के संबंध में आपको भली भांति जानकारी है। दरअसल, यह गाय उत्तर प्रदेश एवं बिहार में काफी मशहूर है। इस गाय की विशेषता के संबंध में जानकर आप पूरी तरह से दंग रह जाएंगे। गंगातीरी गाय रखने वाले लोगों का कहना है, कि यह एक दिन में 10 से 16 लीटर तक दूध प्रदान करती है। इतना ही नहीं, इस गाय की और भी बहुत सारी विशेषताएं हैं, जिसके बारे में हम इस कहानी के जरिए से बताने जा रहे हैं। तो चलिए आज हम इस लेख में गंगातीरी गाय के संबंध में विस्तार पूर्वक जानें। 

गंगातीरी गाय के संबंध में विस्तृत जानकारी

इस प्रजाति की गाय कहाँ कहाँ पाई जाती है

गंगातीरी गाय एक प्रकार से देसी प्रजाति की गाय है। बतादें कि इस नस्ल की गायें अधिकांश उत्तर प्रदेश और बिहार के जनपदों में देखी जाती हैं। यह प्रमुख तौर पर उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर, वाराणसी, गाजीपुर और बलिया तो वहीं बिहार के रोहतास और भोजपुर जनपद के अंतर्गत पाई जाती हैं। उत्तर प्रदेश में गंगातीरी गायों की तादात तकरीबन 2 से 2.5 लाख रुपए तक है। यह गाय भी दूसरी आम गायों की भांति ही दिखती है। परंतु, इसे पहचानना काफी ज्यादा आसान रहता है। गंगातीरी नस्ल की गायें भूरे और सफेद रंग की होती हैं। 

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जानें इस गाय की पहचान किस प्रकार की जाती है

दरअसल, हम पहले भी बता चुके हैं, कि गंगातीरी गाय का रंग भूरा और सफेद होता है। इसके अतिरिक्त इन गायों के सिंघ छोटे व नुकीले होते हैं, जो कि दोनों तरफ से फैले होते हैं। वहीं, इस गाय के कान थोड़ी नीचे की ओर झुके होते हैं। इस प्रजाति के जो बैल होते हैं, उनकी ऊंचाई तकरीबन 142 सेन्टमीटर होती है। वहीं, गाय की ऊंचाई की बात की जाए तो 124 सेन्टीमीटर तक होती है।

गंगातीरी गायों का वजन तकरीबन 235-250 किलो तक रहता है। इस नस्ल की गायें बाजार में बेहद ही महंगी बिकती हैं। इनकी कीमत 40 से 60 हजार रुपये तक होती है। यहां ध्यान देने योग्य जो बात है, वह यह कि इन गायों का ख्याल थोड़ा ज्यादा रखने की आवश्यकता पड़ती है। क्योंकि, पर्याप्त आहार न मिलने की स्थिति में यह गायें बीमार भी हो सकती हैं। इस गाय के दूध में फैट तकरीबन 4.9 प्रतिशत तक पाया जाता है। इसका दूध साधारण गायों के मुकाबले ज्यादा कीमतों पर बिकता है।

जानें कांकरेज नस्ल की गाय की कीमत, पालन का तरीका और विशेषताओं के बारे में

जानें कांकरेज नस्ल की गाय की कीमत, पालन का तरीका और विशेषताओं के बारे में

भारत के अंदर बहुत सारी नस्लों की गाय पाई जाती हैं। प्रत्येक नस्ल की गाय की अपनी अपनी खूबियां होती हैं। इसी कड़ी में आज हम बात करेंगे कांकरेज नस्ल की गाय के बारे में। इस नस्ल की गाय राजस्थान और गुजरात में पाई जाती है, जो कि बहुत ही प्रसिद्ध गाय है। बतादें कि यह एक दिन में 10 से 15 लीटर दूध का उत्पादन करती है। कांकरेज गाय देशी नस्ल की गाय होती है। यह भारत के गुजरात एवं राजस्थान राज्य में पाई जाती है। यह गाय देश में अपनी दूध उत्पादन की क्षमता के लिए काफी मशहूर है। इस नस्ल की गाय दिन में 6 से 10 लीटर दूध देती है। कांकरेज नस्ल की गाय और बैल दोनों की ही बाजार में बहुत मांग है। बतादें कि इनका इस्तेमाल दूध के साथ-साथ कृषि कार्यों के लिए भी किया जाता है। इसे लोकल भाषा में बोनाई, तलबाडा, वागडिया, वागड़ और नागर आदि नामों से जाना जाता है। चलिए आज हम आपको कांकरेज नस्ल की इस गाय से संबंधित विशेषताओं के विषय में बताते हैं। 

कांकरेज गाय की कितनी कीमत होती है

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि इन गायों की कीमत बाजार में सामान्य तौर पर उम्र और नस्ल के आधार पर निर्धारित की जाती है। बाजार में इस गाय की कीमत 25 हजार रुपये से लेकर 75 हजार रुपये तक की है। बहुत सारे राज्यों में इसकी कीमत और भी अधिक होती है।

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कांकरेज गाय का किस प्रकार पालन किया जाता है

कांकरेज गायों को गर्भ के दौरान विशेष देखभाल की आवश्यकता पड़ती है। इस दौरान इसे रोगों से संरक्षण के लिए वक्त - वक्त पर टीकाकरण की आवश्यकता होती रहती है। इससे बछड़े बेहतर एवं स्वस्थ पैदा होते हैं। साथ ही, दूध की पैदावार भी काफी ज्यादा होती है। 

कांकरेज गाय की खासियतें

कांकरेज नस्ल की गायें एक महीने में औसतन 1730 लीटर तक दूध प्रदान करती है। इस गाय के दूध में वसा 2.9 और 4.2 प्रतिशत के मध्य विघमान रहता है। इसके वयस्क बच्चों की लंबाई 25 सेमी है, जबकि वयस्क बैल की औसत ऊंचाई 158 सेमी होती है। इन गायों का वजन 320 से 370 किलोग्राम तक होता है। कांकरेज नस्ल के मवेशी सिल्वर-ग्रे एवं आयरन ग्रे रंग के होते हैं। इसका खान-पान बेहद ही अच्छा होता है। इन गायों के लिए पर्याप्त चारे, पानी, खली और चोकर की बेहद जरूरत होती है।

पशुओं को साइलेज चारा खिलाने से दूध देने की क्षमता बढ़ेगी

पशुओं को साइलेज चारा खिलाने से दूध देने की क्षमता बढ़ेगी

गाय-भैंस का दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए आप साइलेज चारे को एक बार अवश्य खिलाएं। परंतु, इसके लिए आपको नीचे लेख में प्रदान की गई जानकारियों का ध्यान रखना होगा। पशुओं से हर दिन समुचित मात्रा में दूध पाने के लिए उन्हें सही ढ़ंग से चारा खिलाना बेहद आवश्यक होता है। इसके लिए किसान भाई बाजार में विभिन्न प्रकार के उत्पादों को खरीदकर लाते हैं एवं अपने पशुओं को खिलाते हैं। यदि देखा जाए तो इस कार्य के लिए उन्हें ज्यादा धन खर्च करना होता है। इतना कुछ करने के पश्चात किसानों को पशुओं से ज्यादा मात्रा में दूध का उत्पादन नहीं मिल पाता है।

 यदि आप भी अपने पशुओं के कम दूध देने से निराश हो गए हैं, तो घबराने की कोई जरूरत नहीं है। आज हम आपके लिए ऐसा चारा लेकर आए हैं, जिसको समुचित मात्रा में खिलाने से पशुओं की दूध देने की क्षमता प्रति दिन बढ़ेगी। दरअसल, हम साइलेज चारे की बात कर रहे हैं। जानकारी के लिए बतादें, कि यह चारा मवेशियों के अंदर पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के साथ ही दूध देने की क्षमता को भी बढ़ाता है। 

कौन से मवेशी को कितना चारा खिलाना चाहिए

ऐसे में आपके दिमाग में आ रहा होगा कि क्या पशुओं को यह साइलेज चारा भरपूर मात्रा में खिलाएंगे तो अच्छी पैदावार मिलेगी। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ऐसा करना सही नहीं है। इससे आपके मवेशियों के स्वास्थ्य पर गलत प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए ध्यान रहे कि जिस किसी भी दुधारू पशु का औसतन वजन 550 किलोग्राम तक हो। उस पशु को साइलेज चारा केवल 25 किलोग्राम की मात्रा तक ही खिलाना चाहिए। वैसे तो यह चारा हर एक तरह के पशुओं को खिलाया जा सकता है। परंतु, छोटे और कमजोर मवेशियों के इस चारे के एक हिस्से में सूखा चारा मिलाकर देना चाहिए। 

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साइलेज चारे में कितने प्रतिशत पोषण की मात्रा होती है

जानकारी के अनुसार, साइलेज चारे में 85 से लेकर 90 प्रतिशत तक हरे चारे के पोषक तत्व विघमान होते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें विभिन्न प्रकार के पोषण पाए जाते हैं, जो पशुओं के लिए काफी फायदेमंद होते हैं। 

साइलेज तैयार करने के लिए इन उत्पादों का उपयोग

अगर आप अपने घर में इस चारे को बनाना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको दाने वाली फसलें जैसे कि ज्वार, जौ, बाजरा, मक्का आदि की आवश्यकता पड़ेगी। इसमें पशुओं की सेहत के लिए कार्बोहाइड्रेट अच्छी मात्रा में होते हैं। इसे तैयार करने के लिए आपको साफ स्थान का चयन करना पड़ेगा। साथ ही, साइलेज बनाने के लिए गड्ढे ऊंचे स्थान पर बनाएं, जिससे बारिश का पानी बेहतर ढ़ंग से निकल सके। 

गाय-भैंस कितना दूध प्रदान करती हैं

अगर आप नियमित मात्रा में अपने पशु को साइलेज चारे का सेवन करने के लिए देते हैं, तो आप अपने पशु मतलब कि गाय-भैंस से प्रति दिन बाल्टी भरकर दूध की मात्रा प्राप्त कर सकते हैं। अथवा फिर इससे भी कहीं ज्यादा दूध प्राप्त किया जा सकता है।

जानें कैसे आप बिना पशुपालन के डेयरी व्यवसाय खोल सकते हैं

जानें कैसे आप बिना पशुपालन के डेयरी व्यवसाय खोल सकते हैं

किसान भाई बिना गाय-भैंस पालन के डेयरी से संबंधित व्यवसाय चालू कर सकते हैं। इस व्यवसाय में आपको काफी अच्छा मुनाफा होगा। अगर आप भी कम पैसे लगाकर बेहतरीन मुनाफा कमाने के इच्छुक हैं, तो यह समाचार आपके बड़े काम का है। आज हम आपको एक ऐसे कारोबार के विषय में जानकारी देंगे, जिसमें आपकी मोटी कमाई होगी। परंतु, इसके लिए आपको परिश्रम भी करना होगा। भारत में करोड़ो रुपये का डेयरी व्यवसाय है। यदि आप नौकरी छोड़कर व्यवसाय करना चाहते हैं, तो हमारा यह लेख आपके लिए बेहद फायदेमंद है। दरअसल, हम अगर नजर डालें तो डेयरी क्षेत्र में विभिन्न तरह के व्यवसाय होते हैं। इसमें आप डेयरी प्रोडक्ट का व्यवसाय शुरू कर सकते हैं या गाय-भैंस पालकर दूध सप्लाई कर अच्छा मुनाफा कमा सकते है। परंतु, आप गाय-भैंस नहीं पालना चाहते हैं और डेयरी बिजनेस करना चाहते हैं तो भी आपके लिए अवसर है। आप मिल्क कलेक्शन सेंटर खोल सकते हैं।

दूध कलेक्शन की विधि

बहुत सारे गांवों के पशुपालकों से दूध कंपनी पहले दूध लेती है। ये दूध भिन्न-भिन्न स्थानों से एकत्रित होकर कंपनियों के प्लांट तक पहुंचता है। वहां इस पर काम किया जाता है, जिसमें पहले गांव के स्तर पर दूध जुटाया जाता है। फिर एक स्थान से दूसरे शहर या प्लांट में भेजा जाता है। ऐसे में आप दूध कलेक्शन को खोल सकते हैं। कलेक्शन सेंटर गांव से दूध इकट्ठा करता है और फिर इसको प्लांट तक भेजता है। विभिन्न स्थानों पर लोग स्वयं दूध देने आते हैं। वहीं बहुत सारे कलेक्शन सेंटर स्वयं पशुपालकों से दूध लेते हैं। ऐसे में आपको दूध के फैट की जांच-परख करनी होती है। इसे अलग कंटेनर में भण्डारित करना होता है। फिर इसे दूध कंपनी को भेजना होता है।

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कीमत इस प्रकार निर्धारित की जाती है

दूध के भाव इसमें उपस्थित फैट और एसएनएफ के आधार पर निर्धारित होते हैं। कोऑपरेटिव दूध का मूल्य 6.5 प्रतिशत फैट और 9.5 प्रतिशत एसएनएफ से निर्धारित होता है। इसके उपरांत जितनी मात्रा में फैट कम होता है, उसी तरह कीमत भी घटती है।

सेंटर की शुरुआत इस प्रकार से करें

सेंटर खोलने के लिए आपको ज्यादा रुपयों की जरूरत नहीं होती है। सबसे पहले आप दूध कंपनी से संपर्क करें। इसके पश्चात दूध इकट्ठा कर के उन्हें देना होता है। बतादें, कि यह कार्य सहकारी संघ की ओर से किया जाता है। इसमें कुछ लोग मिलकर एक समिति गठित करते हैं। फिर कुछ गांवों पर एक कलेक्शन सेंटर बनाया जाता है। कंपनी की ओर से इसके लिए धनराशि भी दी जाती है।
कोरोना मरीजों पर कितना कारगर होगा बकरी का दूध

कोरोना मरीजों पर कितना कारगर होगा बकरी का दूध

बकरी का दूध बहुत से लोगों को भले ही पसंद नहीं आता लेकिन उसके फायदे बहुत हैं।औषधीय गुणों के कारण यह विशेष गंध वाला होता है। इसे अब आम लोग भी समझने लगे हैं। इसलिए डेंगू जैसे रोगों के मरीजों के लिए इसकी मांग लगातार बढ़ी है।जरूरत इस बात की है कि कोविड मरीजों पर भी इसके प्रभावों का परीक्षण किया जाए ताकि वनस्पतियां खाकर दूध देने वाली बकरी के दूध की उच्च गुणवत्ता का लोगों को पता चल सके। 

यदि यह लाभकारी सिद्ध होता है तो विश्व में फैल रही महामारी मैं सहयोगी सप्लीमेंट के रूप में इसका प्रयोग हो सके। बकरी के दूध को दोयम दर्जे का समझा जाता है लेकिन यह दूध कई मामलों में औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसमें कई प्राण रक्षक तत्व तो गाय के दूध से भी ज्यादा होते हैं। दिनों दिन बढ़ती दूध की मांग के दौर में ग्रामीण अंचल में यह सस्ता और सहज ही मिल जाता है।कहावत जैसा खाए अन्न वैसा रहे मन भी सटीक बैठती है। 

बकरी या जंगल में औषधीय पौधों को ही अपना आहार बनाती हैं और उनके दूध में इसकी सुगंध और तत्व दोनों होते हैं। इस दूध में औषध ही गुणों की मात्रा भी प्रचुर होती है। बकरी का दूध मधुर, कसैला ,शीतल ,ग्राही ,हल्का ,रक्तपित्त ,अतिसार, क्षय, खांसी और ज्वर को नष्ट करने की क्षमता बढ़ाता है । यह वैज्ञानिकों द्वारा सत्यापित तथ्य है। बकरी पालन करने वाले लोग भी इसीलिए रोगों के शिकार कम होते हैं। पिछले सालों में डेंगू बुखार के दौरान बकरी के दूध की उपयोगिता जरूर सिद्ध हुई। 

लोग बकरी का दूध खोजते नजर आए।रूटीन में यदि बकरी के दूध का सेवन किया जाए तो अनेक बीमारियों से बचा जा सकता है। बकरी का दूध गाय के दूध से मिलता जुलता होता है लेकिन इसमें विटामिन बी 6, भी 12 सी एवं डी की मात्रा कम पाई जाती है।इसमें फोलेट बैंड करने वाले अवैध की मात्रा ज्यादा होने से फोलिक एसिड नामक आवश्यक विटामिन की बच्चों के शरीर में उपलब्धता कम हो जाती है।

लिहाजा 1 साल से कम उम्र के बच्चों को बकरी के दूध नहीं पिलाना चाहिए। बकरी के दूध में मौजूद प्रोटीन गाय भैंस की तरह जटिल नहीं होती। इसके चलते यह हमारे प्रतिरोधी रक्षा तंत्र पर कोई प्रतिकूल असर नहीं डालता। संयुक्त राज्य अमेरिका में गाय का दूध पीने से कई तरह की एलर्जी के लक्षण बच्चों में देखे जाते हैं। इनमें लाल चकत्ते बनना ,पाचन समस्या, एग्जिमा आदि प्रमुख हैं। बकरी के दूध इन सब से स्वयं बचाता है। बकरी के दूध में गाय के दूध से दोगुनी मात्रा में स्वास्थ्यवर्धक फैटी एसिड पाए जाते हैं। बकरी के दूध में प्रोटीन के अणु गाय के दूध से भी सूक्ष्म होते हैं। इसके कारण यह दूध कम गरिष्ठ होता है और गंभीर रोगी भी इसे बचा सकता है।

गाय का दूध किसी बच्चे के पेट में पचने में 8 घंटे लेता है वही बकरी के दूध मात्र 20 मिनट में पच जाता है।जो व्यक्ति लेप्टोंस को पचाने की पूर्ण क्षमता नहीं रखते हैं वह बकरी के दूध आसानी से पचा लेते हैं। बकरी का दूध अपच दूर करता है और आलसी को मिटाता है। इस दूध में शायरी बस में पाए जाने के कारण आंतरिक तंत्र में अम्ल नहीं बनता। थकान सिरदर्द मांसपेशियों में खिंचाव अत्याधिक वजन आदि विकार रक्तम लिया था और आंतरिक टी एच के स्तर से संबंध रखते हैं। बकरी के दूध से म्यूकस नहीं बनता है। पीने के बाद गली में चिपचिपाहट भी नहीं होती। मानव शरीर के लिए जरूरी सेलेनियम तत्व बकरी के दूध में अन्य पशुओं के दूध से ज्यादा होता है। यह तत्व एंटीऑक्सीडेंट के अलावा प्रतिरोधी रक्षा तंत्र को उच्च व निम्न करने का काम करता है। एचआईवी आदि रोगों में से कारगर माना जाता है। इसमें आने वाली विशेषकर इसके औषधीय गुणों को परिलक्षित करती है।  

सरकार द्वारा जारी पांच एप जो बकरी पालन में बेहद मददगार साबित होंगे

सरकार द्वारा जारी पांच एप जो बकरी पालन में बेहद मददगार साबित होंगे

बकरी पालन एक लाभकारी व्यवसाय है। अगर आप भी वैज्ञानिकों की सलाह के अनुरूप अच्छी नस्ल की बकरी का पालन करना चाहते हैं, तो ये 5 मोबाइल एप आपकी सहायता करेंगे। ये ऐप 4 भाषाओं में मौजूद हैं। किसान भाई खेती के साथ-साथ पशुपालन भी हमेशा से करते आ रहे हैं। परंतु, कुछ ऐसे किसान भी हैं, जो अपनी आर्थिक तंगी की वजह से गाय-भैंस जैसे बड़े-बड़े पशुओं का पालन नहीं कर पाते हैं। इसलिए वह मुर्गी पालन और बकरी पालन आदि करते हैं। भारतीय बाजार में इनकी मांग भी वर्षभर बनी रहती है। यदि देखा जाए तो किसानों के द्वारा बकरी पालन सबसे ज्यादा किया जाता है। यदि आप भी छोटे पशु मतलब कि बकरी पालन (Goat Farming) से बेहतरीन मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो आपको नवीन तकनीकों की सहायता से इनका पालन करना चाहिए। साथ ही, केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (Central Goat Research Institute) के द्वारा निर्मित बकरी पालन से जुड़े कुछ बेहतरीन मोबाइल ऐप का उपयोग कर आप अच्छे से बकरी पालन कर सकते हैं। इन ऐप्स में वैज्ञानिक बकरी पालन, बकरियों का सही प्रबंधन, उत्पादन एवं कीमत आदि की जानकारी विस्तार से साझा की गई है।

बकरी पालन से संबंधित पांच महत्वपूर्ण एप

बकरी गर्भाधान सेतु

बकरी की नस्ल में सुधार करने के लिए बकरी गर्भाधान सेतु एप को निर्मित किया गया है। इस एप में वैज्ञानिक प्रोसेस से बकरी पालन की जानकारी प्रदान की गई है।

गोट ब्रीड ऐप

यह एप बकरियों की बहुत सारी नस्लों की जानकारी के विषय में विस्तार से बताता है, ताकि आप बेहतरीन नस्ल की बकरी का पालन कर उससे अपना एक अच्छा-खासा व्यवसाय खड़ा कर पाएं।

गोट फार्मिंग ऐप

यह एप लगभग 4 भाषाओं (हिंदी, तमिल, कन्नड़ और अंग्रेजी) में है। इसमें बकरी पालन से जुड़ी नवीन तकनीकों के विषय में बताया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें देसी नस्ल की बकरी, प्रजनन प्रबंधन, बकरी की उम्र के हिसाब से डाइट, बकरी का चारा, रखरखाव एवं देखभाल के साथ-साथ मांस और दूध उत्पादन आदि की जानकारी के विषय में जानकारी प्रदान की गई है।

बकरी उत्पाद ऐप

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस एप के अंदर बाजार में कौन-कौन की बकरियों की मूल्य वर्धित उत्पादों की बाजार में मांग। साथ ही, कैसे बाजार में इससे अच्छा मुनाफा उठा सकते हैं। यह एप भी हिंदी, तमिल, कन्नड़ और अंग्रेजी भाषा में उपलब्ध है।

बकरी मित्र

इस एप में बकरियों के प्रजनन प्रबंधन, मार्केटिंग, आश्रय, पोषण प्रबंधन, स्वास्थ्य प्रबंधन एवं खान-पान से संबंधित जानकारी प्रदान की जाती है। साथ ही, इसमें बकरी पालन के प्रशिक्षण कार्यक्रम भी होते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें किसानों की सहायता के लिए कॉल की सुविधा भी दी गई है। जिससे कि किसान वैज्ञानिकों से बात कर बेहतर ढ़ंग से बकरी पालन कर सकें। बकरी मित्र एप को विशेषतौर पर यूपी एवं बिहार के किसानों के लिए तैयार किया गया है।
मालदा आम की विशेषताएं

मालदा आम की विशेषताएं

दोस्तों गर्मी शुरू होते ही फलों का राजा बाजारों और दुकानों में अपनी दस्तक देना शुरू कर देता है। आम की डेढ़ सौ किस्मों में से हर तरह की किस्मों में सबसे मशहूर मालदा आम की किस्म हैं। जो अपनी अद्भुत मिठास के लिए जानी जाती है। आम की मालदा किस्म की टक्कर कोई और आम की किस्म बिल्कुल भी नहीं दे सकती है। जो स्वाद आपको मालदा में मिलता है वह आपको और कहीं भी नहीं मिल सकता।

मालदा आम:

मालदा आम दिखने में पीले रंग के होते हैं। शुरुआत में इनका रंग पूरी तरह से हरा होता है धीरे-धीरे यह अपने हरे रंग को छोड़ते हुए पूरे पीले रंग को धारण कर लेते हैं। मालदा आम रेशेदार और स्वाद में बेहद ही मीठे होते हैं। मालदा आम के गुच्छे काफी अच्छे होते हैं जिससे आप जूस की बहुत सारी मात्रा को प्राप्त कर सकते हैं। यदि आप मालदा आम को ऐसे ही खाते हैं तो आपके मुंह में इनके ढेर सारे रेशे आते हैं जिससे इनका स्वाद और भी बेहतर लगता है। मालदा आम कि यह खूबी है कि यह दुबारा बीज के रूप में सिकुड़ कर फिर बीज रूप धारण कर लेते हैं। मालदा आम के छिलके हल्के होते हैं और इनमें बहुत गठीला पन होता है। मालदा आम खाने वाले यह दावा करते हैं यदि आपने मालदा आम नहीं खाया तो आपने आम का स्वाद ही नहीं जाना है। जो एक बार मालदा आम खा लेता है उसको दोबारा कोई आम की किस्म नहीं पसंद आती हैं।

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मालदा आम का उत्पादन:

मालदा आम मुख्य रूप से भारत में स्थित पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के राजशाही में उगता है। मालदा आम को देश और विदेशों में काफी पसंद किया जाता हैं। पटना के दीघा घाट में इस आम की खुशबू और मिठास पूरे देश और विदेशों में फैली हुई है।

मालदा आम की बढ़ती मांग:

मालदा आम के स्वाद के चलते कई विदेशी राज्य है जहां इसकी मांग काफी बढ़ जाती है। हर साल मालदा आम को विदेशी राज्यों में भेजकर निर्यात का साधन बना रहता है। कुछ ऐसे राज्य है जो मालदा आम की मिठास और खुशबू के दीवाने हैं और हर साल मालदा आम की मांग करते हैं। जैसे: दुबई, यूरोप, अमेरिका, इंग्लैंड, स्वीडन और नाइज़ीरिया आदि देशों में रहने वाले लोग मालदा की मांग करते हैं।

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मालदा आम के बगान:

किसानों के अनुसार हर साल मालदा में लगभग 33,450 हेक्टेयर दर पर मालदा आम की खेती की जाती है। बढ़ती मांग के चलते मालदा आम कि यह खेती पिछले साल से करीब 300 हेक्टेयर अधिक है। मालदा आम की खेती से आप आम कि इस मालदा किस्म की उपयोगिता का अंदाजा लगा सकते हैं। आम की इस खेती से किसानों को निर्यात में काफी फायदा पहुंचता है।

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मालदा आम से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें:

  • प्राप्त की गई जानकारियों के अनुसार मालदा आम के विषय में लोगों का यह कहना है। कि इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया मालदा आम की बहुत बड़ी दीवानी थी। वह भारत से आम की मालदा किस्म को हर साल मंगवाया करती थी।
  • कहा जाता है कि सिनेमा दुनिया के मशहूर अभिनेता राजकपूर और गायिका सुरैया भी दीघा के बगीचों में घूमने आया करते थे। करीब सन 1952 में बहुत सारे मालदा आम को अपने साथ मुंबई शहर ले गए थे। पेटी भर मालदा आम को ले जाकर वह मालदा आम के स्वाद का मजा लेना चाहते थे।
  • राजनीतिक दल की बहुत सारी बड़ी हस्तियां मालदा आम की दीवानी थी। कहा जाता है हमारे देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद तथा इंदिरा गांधी जी को भी मालदा आम बहुत पसंद था। कई लोगों ने ही यह भी कहा है। कि जब राजेंद्र प्रसाद दिल्ली आया करते थे, तो वह दीघा आम को काफी याद करते थे। 1962 के करीब जब हमारे राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद जी पटना वापस आये, तो मालदा की बहुत अच्छी फलन बगीचे में लहरा रही थी।
  • मालदा आम की फसल हर साल देश में जितनी भी हस्तियां कहे, जैसे: नेताओं, सेलिब्रिटी यानी कलाकारों, उद्योगपतियों आदि को आम की यह मालदा किस्म भेजी जाती थी।

यह मालदा आम से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां थी।

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नवाब फिदा हुसैन ने लगाया था मालदा आम का पेड़:

मालदा आम के विषय में या महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई है। कि मालदा आम के पेड़ को नवाब फिदा हुसैन ने लगाया था। नवाब फिदा हुसैन लखनऊ के बहुत मशहूर नवाब थे। मालदा आम का या पौधा नवाब फिदा हुसैन पाकिस्तान के करीब इस्लामाबाद के शाह फैसल मस्जिद के इलाके से लाए थे।आम की यह खास किस्म नवाब फिदा हुसैन द्वारा लगाई गई थी। जब नवाब फिदा हुसैन पटना में रहते थे उसी दौरान उन्होंने दीघा के करीब रेलवे क्रॉसिंग पर और कुछ आसपास के इलाकों में मालदा आम के लगभग 50 से भी ज्यादा पेड़ लगाए थे। 

मालदा आम के विषय में लोग यह कहते हैं कि नवाब साहब बहुत सी गाय पाले हुए थे। जब कभी दूध बच जाता तो वह बचा हुआ दूध मालदा आम की जड़ों में डाल दिया करते थे। कुछ टाइम के बाद जब या पेड़ फल देने लगे तो इन फलों में से दूध जैसा पदार्थ निकलना शुरू हो गया था। यही कारण है कि लोग इस आम को दूधिया मालदा के नाम से भी पुकारते हैं। आम की इस किस्म का नाम दूधिया मालदा आम पड़ा। इसके बाद मालदा आम के पेड़ों की सेवा मोहम्मद इरफान ने काफी अच्छे ढंग से की थी। मोहम्मद इरफान की सेवा को देखते हुए लोगों ने इस बगीचे को इरफान बगीचे के नाम से पुकारने लगे। कहां जाता है कि अखिल भारतीय आम प्रदर्शनी मे मालदा आम प्रथम स्थान पर आता है। अपने स्वाद के चलते मालदा आम सभी किस्मों से उत्तम माना जाता है। 

हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा या आर्टिकल मालदा आम की विशेषताएं पसंद आया होगा। हमारी इस पोस्ट में मालदा आम से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी दी हुई है। हमारे इस आर्टिकल में आप मालदा आम के विषय में बेहतर तरीके से जान पाएंगे। यदि आप हमारी जानकारियों से संतुष्ट है तो हमारे इस आर्टिकल को अपने दोस्तों और सोशल मीडिया पर शेयर करें। धन्यवाद।