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पशु प्रजनन की आधुनिक तकनीक (Modern Animal Breeding Technology in Hindi)

पशु प्रजनन की आधुनिक तकनीक (Modern Animal Breeding Technology in Hindi)

2019 में जारी की गई बीसवीं पशु जनगणना रिपोर्ट के अनुसार भारत में इस समय 535 मिलियन (53 करोड़) पशुधन है, जिनमें सर्वाधिक संख्या मवेशियों की है, जोकि 2012 की तुलना में 4.6 प्रतिशत अधिक बढ़ी है। आज भी भारत के अधिकतम किसान खेती के साथ पशुधन पालन भी करते है। इतनी अधिक संख्या में उपलब्ध पशुधन से बेहतर उत्पाद प्राप्त करने के लिए, पिछले कुछ समय से पशु वैज्ञानिकों के द्वारा कई अनुसंधान कार्य किए जा रहे है, इन्हीं नए रिसर्च में पशु प्रजनन (pashu prajanan or animal breeding) पर भी काफ़ी ध्यान दिया गया है।

क्या है पशु प्रजनन (Animal Breeding) ?

इसे एक उदाहरण से आसानी से समझा जा सकता है, जैसे कि यदि एक भैंस एक दिन में 10 लीटर दूध देती है, अब यदि पशु विज्ञान (animal science) की मदद से उसकी अनुवांशिकता (Hereditary) में कुछ ऐसे परिवर्तन किए जाए, जिससे कि उस पशु से हमारी आवश्यकता अनुसार उन्नत उत्पाद तैयार करवाने के साथ ही दूध का उत्पादन भी बढ़ जाए। इस विधि अलग-अलग जीन वाले पशुओं के अनुमानित प्रजनन मूल्य को ध्यान में रखते हुए आपस में ही एक ही नस्ल के पशुओं या फिर अलग-अलग नस्लों के पशुओं में प्रजनन प्रक्रिया करवाई जाती है, इससे प्राप्त होने वाला उत्पाद पहली दोनों नस्लों की तुलना में श्रेष्ठ मिलता है। यह नई नस्ल अधिक उत्पादन प्रदान करने के अलावा कई बीमारियों और दूसरी प्रतिरोधक क्षमताओं में भी श्रेष्ठ प्राप्त होती है।
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पशु प्रजनन की आधुनिक तकनीक :

वर्तमान में विश्व स्तर पर कई प्रकार की प्रजनन विधियों को अपनाया गया है :
  • विशुद्ध प्रजनित तकनीक (Purebred Breeding) :

इस विधि में एक ही नस्ल के दो अलग-अलग पशुओं का प्रजनन करवाया जाता है। इस प्रजनन विधि के दौरान ध्यान रखा जाता है कि इस्तेमाल में आने वाली एक ही नस्ल के दो अलग-अलग पशु जीन की गुणवत्ता स्तर पर सर्वश्रेष्ठ होते है। इन से प्राप्त होने वाली नई नस्लें बहुत ही स्थाई होती है और उसके नई नस्ल के द्वारा हासिल किए गए यह गुण अगली पीढ़ी तक भी पहुंच सकते हैं।

इस विधि को अंतः प्रजनन तकनीक के नाम से भी जाना जाता है।

शरीर की बाहरी दिखावट, आकार तथा रंग रूप में एक समान दिखने वाले दो नर एवं मादा पशुओं की जनन की प्रक्रिया के द्वारा द्वारा वैसे ही दिखने वाली नई नस्ल तैयार की जाती है। इस तकनीक का सर्वश्रेष्ठ फायदा यह होता है कि इसमें अशुद्ध हानिकारक लक्षणों के लिए जिम्मेदार जीन से छुटकारा मिलने के साथ ही शुद्ध और अच्छी गुणवत्ता की जीन का संचय होता है।

हालांकि अंतः प्रजनन तकनीक के जरिए से कुछ नुकसान भी हो सकते है। लगातार अंत: प्रजनन विधि के पश्चात पर्याप्त होने वाली संतति पहले की तुलना में कमजोर होने लगती है और उन दोनों पशुओं की जनन एवं उत्पत्ति क्षमता में भी कमी आने लगती है।

  • बैकयार्ड प्रजनित तकनीक (Backyard Breeding) :

अमेरिका और दूसरे विकसित देशों में इस्तेमाल में आने वाली यह तकनीक मुख्यतः पशुओं से प्राप्त होने वाले उत्पादन पर फोकस करती है और अच्छी सेहत वाली नई नस्ल तैयार करने के लिए एनिमल साइंस का इस्तेमाल किया जाता है।

इस तरह की ब्रीडिंग तकनीक को बिना डॉक्टर की मदद से किया जाता है और केवल मुनाफा कमाने के लिए पशुओं के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जाता है।

वर्तमान में कुत्ते और दूसरे पालतू जानवरों के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।

  • बाह्य प्रजनन तकनीक :

अलग-अलग नस्ल के दो पशुओं के मध्य प्रजनन की क्रिया को बाह्य प्रजनन तकनीक के द्वारा संपन्न किया जाता है। इस प्रजनन प्रक्रिया के दौरान कुछ विधियों का इस्तेमाल किया जाता है :

    • बाह्यः संकरण विधि :

इस विधि के तहत किसी भी नस्ल की चार से छह पीढ़ी के बाद की नस्ल के मध्य संक्रमण की प्रक्रिया की जाती है।

इस विधि का सबसे ज्यादा फायदा यह होता है कि इसकी मदद से प्रजनन में आने वाले अवसादन को पूरी तरह से दूर किया जा सकता है और अब लगातार प्रजनन के बाद प्राप्त होने वाले संतति भी पहले किके जैसे ही है श्रेष्ठ गुणों के साथ मिल पाती है।

    • शंकर विधि :

दो अलग-अलग नस्लों के मध्य संगम करवाने की प्रक्रिया को संकरण कहते हैं और प्राप्त हुई नई संतति को शंकर संतति कहा जाता है। जैसे बेगूस गाय ब्राह्या मेल और एवरडीन फीमेल से प्राप्त की गई एक संकर नस्ल है।

शंकर विधि के दौरान की अतिविशिष्ट संस्करण प्रक्रिया को भी अपनाया जाता है, जिसमें दो निकटतम प्रजातियों में संकरण की प्रक्रिया करवाई जाती है। हालांकि इस प्रक्रिया से प्राप्त होने वाली नई संतति बांझ होती है, जैसे कि घोड़े और गधे की अतिविशिष्ट संकरण से प्राप्त हुई नई नस्ल खच्चर आगे की पीढ़ी में रेप्रोडूस नहीं कर पाती है।



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  • कृत्रिम वीर्य सेचन विधि ( Artificial sperm Implant method ) :

कृत्रिम संसाधनों और वैज्ञानिक उपकरणों की मदद से नर पशु के वीर्य को प्राप्त करने के बाद उसे कोल्ड स्टोरेज में रखा जाता है और जरूरत पड़ने पर इस वीर्य को मादा के शरीर में डाला जाता है।

इस विधि का एक फायदा यह है कि यह बहुत ही सस्ती दर पर उपलब्ध हो जाती है और एक बार वीर्य प्राप्त करके कई मादाओं को गर्भित किया जा सकता है। साथ ही किसी उत्तम नस्ल की प्राप्ति के लिए पशुपालक को हर प्रकार के पशु चिकित्सालय में यह सुविधा आसानी से प्राप्त हो सकती है।



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पशु प्रजनन बढ़ाने के लिए किए जा रहे सरकारी प्रयास और स्कीम :

भारतीय पशु कल्याण बोर्ड भारत में पशु हिंसा जैसे मुद्दों को लेकर प्रयासरत है और पिछले पांच सालों से इसी बोर्ड की मदद से पशु प्रजनन बढ़ाने के लिए सरकार के द्वारा कुछ नई स्कीम लांच की गई है, जो कि निम्न प्रकार है :
  • राष्ट्रीय गोकुल मिशन :

दिसंबर 2014 में लांच की गई यह राष्ट्रीय गोकुल मिशन स्कीम (Rashtriya Gokul Mission - RGM) बेहतरीन प्रजनन तकनीक की मदद से स्थानीय प्रजातियों की नस्लों के विकास और उनकी संख्या बढ़ाने के लिए किए गए प्रयास का एक उदाहरण है। इस मिशन के तहत भारत के कई पशु चिकित्सकों को अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के सहयोग से पशु प्रजनन से जुड़ी नई तकनीकों के बारे में भी जानकारियां दी जा रही है। कृषि मंत्रालय के द्वारा 2016 में लांच किया गया यह पोर्टल प्रजनन करवाने की विशेष दक्षता और उच्च गुणवत्ता वाले नर मवेशी रखने वाले किसानों को सामान्य किसान से सीधे संपर्क करवाता है
  • राष्ट्रीय पशुधन मिशन (National Livestock mission) :

2014 में कृषि मंत्रालय के द्वारा शुरू की गई राष्ट्रीय पशुधन मिशन (एनएलएम - NLM - National Livestock Mission) स्कीम के तहत पशुधन का पर्यावरण की हानि पहुंचाए बिना सस्टेनेबल विकास (Sustainable development) करने और नई वैज्ञानिक तकनीकों की मदद से प्रजनन की प्रक्रिया को जानवरों के लिए कम नुकसानदेह बनाते हुए गाय और भैंस की संख्या को बढ़ाकर अधिक उत्पादन प्राप्त करना है ।
  • राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम :

 2019 में 605 जिलों में शुरू हुआ यह कार्यक्रम अब तक 1500 से ज्यादा गांवों तक अपनी पहुंच बना चुका है और केवल 2 साल की अवधि में ही लगभग 50 लाख से ज्यादा मादा मवेशियों को उच्च गुणवत्ता वाले नर वीर्य से गर्भित किया जा चुका है। सन 2022 में इस प्रोग्राम के दूसरे फेज की शुरुआत करने की घोषणा भी की जा चुकी है।

पशु प्रजनन से किसान भाइयों को होने वाले फायदे :

पिछले कुछ सालों से पशु विज्ञान में हुए नए अनुसंधान की मदद से पशु प्रजनन में आयी दक्षता किसान भाइयों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो रही है।


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बेहतरीन पशु प्रजनन की प्रक्रिया किसान भाइयों को कम लागत में अधिक उत्पादन देने वाले पशुओं की उपलब्धता करवाने के साथ ही, इस तरह तैयार पशु कई पशुजन्य रोगों (Zoonotic Diseases) के खिलाफ बेहतरीन प्रतिरोधक क्षमता भी दिखा पाते है, जैसे कि हाल ही में केन्या में प्रजनन प्रक्रिया से तैयार की गई 'गाला बकरी', पशुओं में होने वाले खुरपका और मुंहपका रोगों के खिलाफ बेहतरीन प्रतिरोधक क्षमता दिखाती है और बकरी की यह नस्ल इन रोगों से ग्रसित नहीं होती। आशा करते हैं कि पशुपालन में सक्रिय हमारे किसान भाइयों को Merikheti.com की तरफ से पशु प्रजनन से जुड़ी संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी और आने वाले समय में आप भी ऊपर बताई गई जानकारी का सही फायदा उठाकर सरकारी स्कीमों की मदद से एक बेहतरीन नस्ल वाली मवेशी का पालन कर उत्पादन बढ़ाने के साथ ही अधिक मुनाफा भी कमा पाएंगे।
नांदेड स्थित कपास अनुसंधान केंद्र ने विकसित की कपास की तीन नवीन किस्में

नांदेड स्थित कपास अनुसंधान केंद्र ने विकसित की कपास की तीन नवीन किस्में

किसान भाइयों की जानकारी के लिए बतादें, कि नांदेड़ मौजूद कपास अनुसंधान केंद्र ने विगत छह साल के शोध के उपरांत कपास की तीन बीटी किस्में विकसित की हैं। इन किस्मों को हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित केंद्रीय किस्म चयन समिति की बैठक में स्वीकृत दी गई है। दावा यह भी किया गया है, क‍ि इनके बीजों का तीन वर्ष तक इस्तेमाल किया जा सकता है। वसंतराव नाइक मराठवाड़ा कृषि विश्वविद्यालय, परभणी के नांदेड़ मौजूद कपास अनुसंधान केंद्र ने कपास की तीन नवीन किस्में इजात की हैं। अब इन किस्मों से किसानों को अधिक फायदा होगा। किसानों के लिए बीज की लागत को कम करने में सहायता मिलेगी। बतादें, कि पैदावार भी काफी अच्छी होगी। इन क‍िस्मों को शुष्क जमीन वाले इलाकों में भी उगाया जा सकता है। यह बीटी क‍िस्म है, बीटी कॉटन के बीज के ल‍िए किसानों को निजी कंपनियों पर आश्रित रहना पड़ता था, ज‍िससे उन्हें बीज पर अधिक धनराशि खर्च करनी पड़ती थी। वर्तमान में नवीन क‍िस्में किसानों को एक विकल्प मुहैय्या कराएगी। यूनिवर्सिटी की तरफ से यह दावा किया गया है।

कपास की तीन नई किस्में इजात की गई

नांदेड़ मौजूद कपास अनुसंधान केंद्र ने विगत छह साल के शोध के पश्चात कपास की तीन बीटी किस्में इजात की हैं। इनमें एनएच 1901 बीटी, एनएच 1902 बीटी एवं एनएच 1904 बीटी शम्मिलित हैं। इन किस्मों को वर्तमान में नई दिल्ली में आयोजित केंद्रीय किस्म चयन समिति की बैठक में स्वीकृति दी गई है। इनकी बिजाई लागत संकर किस्मों की तुलना में कम होने का दावा क‍िया गया है। दावा यह भी किया गया है, क‍ि इनके बीजों का तीन वर्ष तक इस्तेमाल किया जा सकता है। ये भी पढ़े: कपास की खेती की संपूर्ण जानकारी

ये किस्में क‍िन राज्यों के ल‍िए विकसित की गई हैं

बतादें, कि इन किस्मों में खादों का उपयोग भी कम होगा। हालांकि, किसानों की तरफ से कपास की ऐसी किस्मों की मांग है। परंतु, किस्मों की अनुपलब्धता की वजह राज्य में सबसे ज्यादा संकर कपास की खेती की गई है। इस जरूरत को ध्यान में रखते हुए ही नवीन क‍िस्में तैयार की गई हैं। महाराष्ट्र प्रमुख कपास उत्पादक राज्य है। यहां बड़े पैमाने पर क‍िसान कॉटन की खेती पर न‍िर्भर हैं। ये तीन नवीन क‍िस्में महाराष्ट्र, गुजरात एवं मध्य प्रदेश के ल‍िए उपयुक्त हैं।

दक्ष‍िण भारत के ल‍िए विकसित की गई अलग क‍िस्म

यह दावा किया गया है, क‍ि परभणी कृषि विश्वविद्यालय कपास की सीधी किस्मों को बीटी तकनीक में परिवर्तित करने वाला राज्य का पहला कृषि विश्वविद्यालय बन चुका है। इससे पूर्व यह प्रयोग नागपुर के केंद्रीय कपास अनुसंधान केंद्र ने किया था। यह किस्म अब किसानों को आगामी वर्ष में खेती के लिए उपलब्ध होगी। साथ ही, परभणी के मेहबूब बाग कपास अनुसंधान केंद्र ने स्वदेशी कपास की एक सीधी किस्म 'पीए 833' विकसित की है, जो दक्षिण भारत के लिए अनुकूल है। ये भी पढ़े: किसानों के लिए सफेद सोना साबित हो रही कपास की खेती : MSP से डबल हो गए कपास के दाम

विकसित की गई इन तीन नवीन क‍िस्मों की विशेषता

कपास की इन तीन नवीन क‍िस्मों में संकर किस्म के मुकाबले में कम रासायनिक उर्वरकों की जरूरत होती है। इस किस्म में रस चूसने वाले कीट, जीवाणु झुलसा रोग और पत्ती धब्बा रोग नहीं लगता है। यह इन रोगों के प्रत‍ि बेहद सहनशील है। इस किस्म की कपास का उत्पादन 35 से 37 प्रतिशत है। धागों की लंबाई मध्यम है। मजबूती और टिकाऊपन भी काफी अच्छा है। यूनिवर्सिटी का दावा है, कि यह किस्म सघन खेती के लिए भी अच्छी है।
सरसों का रकबा बढ़ने से किसान होंगे खुशहाल

सरसों का रकबा बढ़ने से किसान होंगे खुशहाल

इस बार मौसम का मिजाज ठीक ठाक रहा और सरसों की फसल बची रही तो खाद्य तेलों के मामले में हम आत्म निर्भरता के करीब पहुंच सकते हेंं। इस बार सरसों की बिजाई किसानों ने भरपूर की है। सरसों की अच्छी कीमतों के चलते किसानों का यह रुझान कई माईनों में हमारे लिए राहत भरा है। बीते दो दशकों से सरकारें खाद्य तेलों के मामले में देश को आत्म निर्भर बनाने की दिशा में प्रयास कर रही हैं।आईसोपाम योजना में लाखों लाख रुपया किसानों को जागरूक करने व ट्रेनिंग प्रोग्राम के नाम पर खर्च होता रहा। मोटी धनराशि बीज किटों पर भी खर्च की जाती रही लेकिन बाजार की चाल और मौसम के मिजाज ने इसे एक बार में ही आसान बना दिया। इस बार सरसों की कीमतें बाजार में आठ हजार रुपए कुंतल के पार पहुंच गईं। इसका परिणाम यह रहा कि धान आदि के खेत खाली होते ही किसानों ने सरसों लगा दी।

कहां कितना बढ़ा सरसों बिजाई क्षेत्र

सरसों का राजस्थान में 30 से प्रतिशत से अधिक क्षेत्रफल बढ़ा है। गुजरात राज्य में भी सरसों की बिजाई बेतहासा बढ़ी है। हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी सरसों उत्पादक क्षेत्रों में भी बिजाई का क्षेत्रफल काफी बढ़ा है।

बीज कंपनियों ने जमकर काटी चांदी

सरसों की अच्छी बुबाई का अंदाजा लगा चुकी कंपनियों ने जमकर चांदी काटी। बाजार में बीज 800 रुपए प्रति किलोग्राम के पार तक बिक गया। बिजाई सीजन में हुई पछेती बरसात के चलते किसानों को दोबारा फसल बोनी पड़ी। इसके चलते डीएपी खाद के साथ साथ बीज के लिए भी मारामारी रही।

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खरपतवार नियंत्रकों घटेगी सेल

सरसों की फसल में खरपतवार कम निकलते हैं। इसके अलावा जिस खेत में सरसों लग जाती है उसमें दूसरी फसल में भी खरपतवार नहीं निकलते। मसलन उनका बीज नहीं बन पाता और खरपतवार सरसों के नीचे ही दम तोड़ देते हैं। कई सालों के लिए किसान की जमीन खरपतवार की समस्या से मुक्त हो जाती है। इसका असर खरपतवार नियंत्रक कंपनियों की सेल पर पड़ेगा। मानव  स्वास्थ्य की दृष्टि से यह शुभ संकेत भी है।

विदेशी मुद्रा भंडार होगा सुरक्षित

देशी खाद्य तेलों की जरूरत को पूरा करने के लिए हमें विदेशों से तेल और सोयाबीन आदि मंगानी पड़ती है। सरसों का क्षेत्र इसी तरह बढ़ा तो वह दिन दूर नहीं कि हमेें आधे से ज्यादा खाद्य तेल के आयात की बजाय थोड़ा बहुत तेल मंगाना पड़े। इससे विदेशी मुद्रा भंडार सुरक्षित होगा।

किसान पूसा से धान की इन किस्मों का बीज अब ऑनलाइन खरीद सकते हैं

किसान पूसा से धान की इन किस्मों का बीज अब ऑनलाइन खरीद सकते हैं

भारत विश्व में चावल उत्पादन के मामले में दूसरे स्थान पर है। भारत में खरीफ की प्रमुख फसलों में धान का विशेष स्थान है। धान की खेती भारत के उत्तरी और दक्षिणी प्रदेशों में मानसून के मौसम में की जाती है। 

साथ ही, कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां धान का सीजन (Paddy Season) वर्ष में दो बार आता है। धान की खेती सिंचित और असिंचित दोनों ही तरह के इलाकों में की जाती है। बतादें, कि धान की खेती छिड़काव और रोपाई विधि के माध्यम से की जाती है। 

बतादें, कि रोपाई विधि से धान का उत्पादन काफी अच्छा हांसिल होता है। भारत में धान की बहुत सारी ऐसी उन्नत किस्में हैं, जिनकी खेती करके आप काफी शानदार लाभ कमा सकते हैं। 

इनमें धान की PB 1692" और "PB 1509" किस्म शामिल है, जिन्हें आप ऑनलाइन भी खरीद सकते हैं।

धान की पीबी 1692 किस्म / Paddy PB 1692 Variety

पूसा बासमती 1692 धान की उन्नत किस्मों में से एक है। यह एक शीघ्र पकने वाली बासमती धान की प्रजाति है। इसको पकने में तकरीबन 110 से 115 दिनों का समय लगता है और ज्यादा उत्पादन होता है। 

इसी खूबी की वजह से यह बासमती उत्पादक क्षेत्र में धान की फसल की समय पर कटाई करने में सहयोग करता है। ताकि फसल के पश्चात अन्य कार्यों को करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। 

अगर समय पर खेतों की सफाई की जाती है, तो इससे पर्यावरण प्रदूषण को भी कम करने में सहायता मिलती है। इसके अतिरिक्त बासमती जीआई क्षेत्र में आने वाली गेहूं की फसल की भी वक्त पर बुवाई में सहायता मिलती है। 

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किसान धान की पीबी 1692 किस्म की खेती कर करीब 20 से 24 क्विंटल प्रति एकड़ फसल हांसिल कर सकते हैं। वहीं, प्रति एकड़ में रोपाई के लिए 5 किलो बीज पर्याप्त होते हैं।

धान की पीबी 1509 किस्म / Paddy PB 1509 Variety

पूसा बासमती 1509 धान भी उन्नत किस्मों में से एक है। इसको 2013 में सीवीआरसी द्वारा बासमती उगाने वाले इलाकों जैसे कि - दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी यूपी, उत्तराखंड और जम्मू और कश्मीर के लिए जारी किया गया था। 

यह एक शीघ्रता से पकने वाली बासमती धान की किस्म है। इसको पकने में 115 से 120 दिनों का वक्त लगता है। पूसा बासमती 1509 धान की किस्म 5 से 6 सिंचाई तक बचाने में मदद करती है, जिससे आप लगभग 33% प्रतिशत तक पानी की बचत कर सकते हैं। 

किसान धान की इस किस्म की खेती से करीब 27 से 28 क्विंटल प्रति एकड़ फसल हांसिल कर सकते हैं। प्रति एकड़ भूमि में इस किस्म की धान की रोपाई के लिए 4 से 5 किलो बीज पर्याप्त होते हैं। 

धान की ऑनलाइन खरीद कैसे करें 

अगर आप धान की “PB 1692" और "PB 1509" किस्म को खरीदना चाहते हैं, तो आप इसको घर बैठे ऑनलाइन माध्यम से भी ऑर्डर कर सकते हैं। 

अब आप एनएससी के उत्तम किस्म के धान ‘पीबी 1692’ और पीबी’ किस्म के सर्टिफाइड बीज के 10 किलोग्राम के पैकट को ऑनलाइन माध्यम से खरीद सकते हैं। 

यहां आपको NSC धान पीबी 1509 बीज के 10 किलोग्राम का पैकट 850 रुपये में मिलता है। वहीं, NSC धान पीबी 1509 बीज के 10 किलोग्राम के पैकट की कीमत 800 रुपये निर्धारित की गई है। अभी ऑर्डर करने के लिए https://mystore.in/en/search/nsc-paddy लिंक पर क्लिक करें। 

ऐसे मिले धान का ज्ञान, समझें गन्ना-बाजरा का माजरा, चखें दमदार मक्का का छक्का

ऐसे मिले धान का ज्ञान, समझें गन्ना-बाजरा का माजरा, चखें दमदार मक्का का छक्का

पैडी (Paddy) यानी धान, शुगरकैन (sugarcane) अर्धात गन्ना, बाजरा (millet) और मक्का (maize) की अच्छी पैदावार पाने के लिए, भूमि सेवक किसान यदि मात्र कुछ मूल सूत्रों को अमल में ले आएं, तो कृषक को कभी भी नुकसान नहीं रहेगा। यदि होगा भी तो बहुत आंशिक।

धान, गन्ना, जवार, बाजरा, मक्का, उरद, मुंग की अच्छी पैदावार : समझें अनुभवी किसानों से

स्यालू में धान (dhaan/Paddy)

स्यालू यानी कि खरीफ की मुख्य फसल (Major Kharif Crops) की यदि बात की जाए तो वह है धान (dhaan/Paddy/Rice)। इस मुख्य फसल की बीज या फिर रोपा (इसकी सलाह अनुभवी किसान देते हैं) आधारित रोपाई, जूलाई महीने में हर हाल में पूरा कर लेने की मुंहजुबानी सलाह किसानों से मिल जाएगी। 

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अच्छी धान के लिए कृषि वैज्ञानिकों के मान से धान (dhaan) के खेत (Paddy Farm) में यूरिया (नाइट्रोजन) की पहली तिहाई मात्रा का उपयोग धान रोपण के 58 दिन बाद करना हितकारी है। क्योंकि इस समय तक पौधे जमीन में अच्छी तरह से जड़ पकड़ चुके होते हैं। रोपण के सप्ताह उपरांत खेत में रोपण से वंचित एवं सूखकर मरने वाले पौधों वाले स्थान पर, फिर से पौधों का रोपण करने से विरलेपन के बचाव के साथ ही जमीन का पूर्ण सदुपयोग भी हो जाता है। 

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धान रोपण युक्ति

तकरीबन 20 से 25 दिन में तैयार धान की रोपाई खेत में की जा सकती है। इस दौरान पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेंटीमीटर तथा पौध से पौध की दूरी 10 सेमी रखने की सलाह कृषि वैज्ञानिक देते हैं। उत्कृष्ट उत्पादन के लिए प्रति हेक्टेयर 100 किग्रा नाइट्रोजन (Urea), 60 किग्रा फास्फोरस, 40 किग्रा पोटाश और 25 किग्रा जिंक सल्फेट डालने की सलाह कृषि सलाहकारों की है। 

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गन्ने की खेती (Sugarcane Farming)

गले की तरावट, मद्य, मीठे गुड़ में मददगार शुगरकैन फार्मिंग (Sugarcane Farming), यानी गन्ने की खेती में भी कुछ बातों का ख्याल रखने पर दमदार और रस से भरपूर वजनदार गन्नों की फसल मिल सकती है। जैसे गन्ने की पछेती बुवाई (रबी फसल कटने के बाद) करने की दशा में, खेत में समय-समय पर सिंचाई, निराई एवं गुड़ाई अति जरूरी है। फसल कीड़ों-मकोड़ों और बीमारियों के प्रकोप से ग्रसित होने पर रासायनिक, जैविक या अन्य विधियों से नियंत्रित किया जा सकता है। ये भी पढ़ें: हल्के मानसून ने खरीफ की फसलों का खेल बिगाड़ा, बुवाई में पिछड़ गईं फसलें अत्यधिक वर्षा, तूफान या तेज हवा के दबाव में गन्ने के फसल जमीन पर बिछने/गिरने का खतरा मंडराता है। ऐसे में जुलाई-अगस्त के महीने में ही, दो कतारों मध्य कुंड बनाकर निकाली गई मिट्टी को ऊपर चढ़ाने से ऐहतियातन बचाव किया जा सकता है।

उड़द, मूंग में सावधानी

बारिश शुरू होते ही उड़द एवं मूंग की बुवाई शुरू कर देना चाहिए। अनिवार्य बारिश में देर होने की दशा में पलेवा कर इनकी बुवाई जुलाई के प्रथम पखवाड़े, यानी पहले पंद्रह दिनों में खत्म करने की सलाह दी जाती है। 

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उड़द, मूंग की बुवाई सीड ड्रिल या फिर अपने पुश्तैनी देसी हल से कर सकते हैं। इस दौरान ख्याल रहे कि 30-45 सेमी दूरी पर बनी पक्तियों में बुवाई फसल के लिए कारगर होगी। इसके साथ ही निकाई से पौधे से पौधे के बीच की दूरी 7 से 10 सेमी कर लेनी चाहिए। उड़द, मूंग की उपलब्ध किस्मों के अनुसार उपयुक्त बीज दर 15 से 20 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर मानी गई है। दोनों फसलों में प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किग्रा फास्फोरस तथा 20 किग्रा गंधक का मानक रखने की सलाह कृषि वैज्ञानिक एवं सलाहकार देते हैं।

भरपूर बाजरा (Bajra) उगाने का यह है माजरा

बाजरा के भरपूर उत्पादन के लिए कई प्लस पॉइंट हैं। अव्वल तो बाजरा (Bajra) के लिए अधिक उपजाऊ मिट्टी की जरूरी नहीं, बलुई-दोमट मिट्टी में यह पनपता है। इसकी भरपूर पैदावार के लिए सिंचित क्षेत्र के लिए नाइट्रोजन 80 किलोग्राम, फॉस्फोरस और पोटाश 40-40 किलोग्राम और बारानी क्षेत्रों के लिए नाइट्रोजन-60 किग्रा, फॉस्फोरस व पोटाश 30-30 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करने की सलाह जानकार देते हैं।


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सभी परिस्थितियों में नाइट्रोजन की मात्रा आधी तथा फॉस्फोरस एवं पोटाश पूरी मात्रा में तकरीबन 3 से 4 सेंमी की गहराई में डालना चाहिए। बचे हुए नाइट्रोजन की मात्रा अंकुरण से 4 से 5 हफ्ते बाद मिट्टी में अच्छी तरह मिलाने से फसल को सहायता मिलती है।

ज्वार का ज्वार, मक्का (Maize) का पंच

देशी अंदाज में भुंजा भुट्टा, तो फूटकर पॉपकॉर्न तक कई रोचक सफर से गुजरने वाले मक्के की दमदार पैदावार का पंच यह है, कि मक्का (Maize) व बेबी कॉर्न की बुवाई के लिए मानसून उपयुक्त माना गया है। उत्तर भारत में इसकी बुवाई की सलाह मध्य जुलाई तक खत्म कर लेने की दी जाती है। मक्के की ताकत की यही बात है कि इसे सभी प्रकार की मिट्टी में लगाया जा सकता है। हालांकि बलुई-दोमट और दोमट मिट्टी अच्छी बढ़त एवं उत्पादकता में सहायक हैं।


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जोरदार, धुआंधार ज्वार की पैदावार का ज्वार लाने के लिए बारानी क्षेत्रों में मॉनसून की पहली बारिश के हफ्ते भर भीतर ज्वार की बुवाई करना फलदायी है। ज्वार के मामले में एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में बुवाई के लिए 12 से 15 किलोग्राम ज्वार के बीज की जरूरत होगी।  

IYoM: मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा को अब गरीब का भोजन नहीं, सुपर फूड कहिये

IYoM: मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा को अब गरीब का भोजन नहीं, सुपर फूड कहिये

दुनिया को समझ आया बाजरा की वज्र शक्ति का माजरा, 2023 क्यों है IYoM

पोषक अनाज को भोजन में फिर सम्मान मिले - तोमर भारत की अगुवाई में मनेगा IYoM-2023 पाक महोत्सव में मध्य प्रदेश ने मारी बाजी वो कहते हैं न कि, जब तक योग विदेश जाकर योगा की पहचान न हासिल कर ले, भारत इंडिया के तौर पर न पुकारा जाने लगे, तब तक देश में बेशकीमती चीजों की कद्र नहीं होती। कमोबेश कुछ ऐसी ही कहानी है देसी अनाज बाजरा की।

IYoM 2023

गरीब का भोजन बताकर भारतीयों द्वारा लगभग त्याज्य दिये गए इस पोषक अनाज की महत्ता विश्व स्तर पर साबित होने के बाद अब इस अनाज
बाजरा (Pearl Millet) के सम्मान में वर्ष 2023 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (आईवायओएम/IYoM) के रूप में राष्ट्रों ने समर्पित किया है।
इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (IYoM) 2023 योजना का सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें
मिलेट्स (MILLETS) मतलब बाजरा के मामले में भारत की स्थिति, लौट के बुद्धू घर को आए वाली कही जा सकती है। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष घोषित किया है। पीआईबी (PIB) की जानकारी के अनुसार केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जुलाई मासांत में आयोजित किया गया पाक महोत्सव भारत की अगुवाई में अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष (IYoM)- 2023 लक्ष्य की दिशा में सकारात्मक कदम है। पोषक-अनाज पाक महोत्सव में कुकरी शो के जरिए मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा, अथवा मोटे अनाज पर आधारित एवं मिश्रित व्यंजनों की विविधता एवं उनकी खासियत से लोग परिचित हुए। आपको बता दें, मिलेट (MILLET) शब्द का ज्वार, बाजरा आदि मोटे अनाज संबंधी कुछ संदर्भों में भी उपयोग किया जाता है। ऐसे में मिलेट के तहत बाजरा, जुवार, कोदू, कुटकी जैसी फसलें भी शामिल हो जाती हैं। पीआईबी द्वारा जारी की गई सूचना के अनुसार महोत्सव में शामिल केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने मिलेट्स (MILLETS) की उपयोगिता पर प्रकाश डाला।

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अपने संबोधन में मंत्री तोमर ने कहा है कि, “पोषक-अनाज को हमारे भोजन की थाली में फिर से सम्मानजनक स्थान मिलना चाहिए।” उन्होंने जानकारी में बताया कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष घोषित किया है। यह आयोजन भारत की अगु़वाई में होगा। इस गौरवशाली जिम्मेदारी के तहत पोषक अनाज को बढ़ावा देने के लिए पीएम ने मंत्रियों के समूह को जिम्मा सौंपा है। केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर ने दिल्ली हाट में पोषक-अनाज पाक महोत्सव में (IYoM)- 2023 की भूमिका एवं उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि, अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष (IYoM)- 2023 के तहत केंद्र सरकार द्वारा स्थानीय, राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक कार्यक्रमों के आयोजन की विस्तृत रूपरेखा तैयार की गई है।

बाजरा (मिलेट्स/MILLETS) की वज्र शक्ति का राज

ऐसा क्या खास है मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा या मोटे अनाज में कि, इसके सम्मान में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूरा एक साल समर्पित कर दिया गया। तो इसका जवाब है मिलेट्स की वज्र शक्ति। यह वह शक्ति है जो इस अनाज के जमीन पर फलने फूलने से लेकर मानव एवं प्राकृतिक स्वास्थ्य की रक्षा शक्ति तक में निहित है। जी हां, कम से कम पानी की खपत, कम कार्बन फुटप्रिंट वाली बाजरा (मिलेट्स/MILLETS) की उपज सूखे की स्थिति में भी संभव है। मूल तौर पर यह जलवायु अनुकूल फसलें हैं।

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शाकाहार की ओर उन्मुख पीढ़ी के बीच शाकाहारी खाद्य पदार्थों की मांग में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि हो रही है। ऐसे में मिलेट पॉवरफुल सुपर फूड की हैसियत अख्तियार करता जा रहा है। खास बात यह है कि, मिलेट्स (MILLETS) संतुलित आहार के साथ-साथ पर्यावरण की सुरक्षा में भी असीम योगदान देता है। मिलेट (MILLET) या फिर बाजरा या मोटा अनाज बी-कॉम्प्लेक्स विटामिन और खनिजों जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों का भंडार है।

त्याज्य नहीं महत्वपूर्ण हैं मिलेट्स - तोमर

आईसीएआर-आईआईएमआर, आईएचएम (पूसा) और आईएफसीए के सहयोग से आयोजित मिलेट पाक महोत्सव के मुख्य अतिथि केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर थे। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि, “मिलेट गरीबों का भोजन है, यह कहकर इसे त्याज्य नहीं करना चाहिए, बल्कि इसे भारत द्वारा पूरे विश्व में विस्तृत किए गए योग और आयुर्वेद के महत्व की तरह प्रचारित एवं प्रसारित किया जाना चाहिए।” “भारत मिलेट की फसलों और उनके उत्पादों का अग्रणी उत्पादक और उपभोक्ता राष्ट्र है। मिलेट के सेवन और इससे होने वाले स्वास्थ्य लाभों के बारे में जागरूकता प्रसार के लिए मैं इस प्रकार के अन्य अनेक आयोजनों की अपेक्षा करता हूं।”

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मिलेट और खाद्य सुरक्षा जागरूकता

मिलेट और खाद्य सुरक्षा संबंधी जागरूकता के लिए होटल प्रबंधन केटरिंग तथा पोषाहार संस्थान, पूसा के विद्यार्थियों ने नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत किया। मुख्य अतिथि तोमर ने मिलेट्स आधारित विभिन्न व्यंजनों का स्टालों पर निरीक्षण कर टीम से चर्चा की। महोत्सव में बतौर प्रतिभागी शामिल टीमों को कार्यक्रम में पुरस्कार प्रदान कर प्रोत्साहित किया गया।

मध्य प्रदेश ने मारी बाजी

मिलेट से बने सर्वश्रेष्ठ पाक व्यंजन की प्रतियोगिता में 26 टीमों में से पांच टीमों को श्रेष्ठ प्रदर्शन के आधार पर चुना गया था। इनमें से आईएचएम इंदौर, चितकारा विश्वविद्यालय और आईसीआई नोएडा ने प्रथम तीन क्रम पर स्थान बनाया जबकि आईएचएम भोपाल और आईएचएम मुंबई की टीम ने भी अंतिम दौर में सहभागिता की।

इनकी रही उपस्थिति

कार्यक्रम में केंद्रीय राज्यमंत्री कैलाश चौधरी, कृषि सचिव मनोज आहूजा, अतिरिक्त सचिव लिखी, ICAR के महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्र और IIMR, हैदराबाद की निदेशक रत्नावती सहित अन्य अधिकारी एवं सदस्य उपस्थित रहे। इस दौरान उपस्थित गणमान्य नागरिकों की सुपर फूड से जुड़ी जिज्ञासाओं का भी समाधान किया गया। महोत्सव के माध्यम से मिलेट से बनने वाले भोजन के स्वास्थ्य एवं औषधीय महत्व संबंधी गुणों के बारे में लोगों को जागरूक कर इनके उपयोग के लिए प्रेरित किया गया। दिल्ली हाट में इस महोत्सव के दौरान पोषण के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां प्रदान की गईं। इस विशिष्ट कार्यक्रम में अनेक स्टार्टअप ने भी अपनी प्रस्तुतियां दीं। 'छोटे पैमाने के उद्योगों व उद्यमियों के लिए व्यावसायिक संभावनाएं' विषय पर आधारित चर्चा से भी मिलेट संबंधी जानकारी का प्रसार हुआ। अंतर राष्ट्रीय बाजरा वर्ष (IYoM)- 2023 के तहत नुक्कड़ नाटक तथा प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताओं जैसे कार्यक्रमों के तहत कृषि मंत्रालय ने मिलेट के गुणों का प्रसार करने की व्यापक रूपरेखा बनाई है। वसुधैव कुटुंबकम जैसे ध्येय वाक्य के धनी भारत में विदेशी अंधानुकरण के कारण शिक्षा, संस्कृति, कृषि कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष (IYoM)- 2023 जैसी पहल भारत की पारंपरिक किसानी के मूल से जुड़ने की अच्छी कोशिश कही जा सकती है।
राजस्थान के सीताराम सेंगवा बागवानी से कमा रहे हैं लाखों का मुनाफा

राजस्थान के सीताराम सेंगवा बागवानी से कमा रहे हैं लाखों का मुनाफा

पूरा विश्व आज जल के अभाव से प्रभावित है, किसानों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव हो रहा है। राजस्थान के ज्यादातर क्षेत्रों में जल की कमी के बावजूद भी कई किसान फसलों से अच्छी खासी पैदावार प्राप्त कर रहे हैं। इन किसानों में जोधपुर के सीताराम सेंगवा भी सम्मिलित हैं। ४२ वर्षीय सीताराम सेंगवा ने २२ की आयु से खेती शुरू कर एक बड़ी उपलब्धी हासिल की है। कृषि एवं बागवानी में नाम व धन अर्जन के बाद वो संतुष्ट हैं कि उन्होंने सरकारी नौकरी की जगह कृषि को प्राथमिकता दी है। किसान सीताराम सेंगवा खेती के लिए ड्रिपस्प्रिंकलर सिंचाई के माध्यम से बूंद-बूंद जल का उपयोग कर उम्दा किस्म के पौधे तैयार कर रहे हैं। फिलहाल उनके द्वारा नर्सरी में तैयार उम्दा पौधे पुरे देश में लगाये जा रहे हैं। उनकी इस सफलता में भाकृअनुप - केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (ICAR – Central Arid Zone Research Institute) के वैज्ञानिकों का भी सहयोग रहा है। यही कारण है कि आज कृषि में मुनाफा एवं बागवानी का नुस्खा उपयोग कर सीताराम सेंगवा २० लाख वार्षिक आय अर्जित कर रहे हैं।


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सीताराम सेंगवा राजस्थान राज्य के जोधपुर जनपद की भोपालगढ़ तहसील के पालड़ी राणावतन गांव में कृषि कार्य कर रहे हैं। सीताराम सेंगवा ने २५ बीघा खेत के साथ बेहतरीन पौधों की नर्सरी स्थापित की है। वह अपनी पत्नी, बेटों एवं बेटियों के सहयोग से आज बेहतर आजीविका के लिए अच्छा मुनाफा कर पा रहे हैं। एक वक्त वह भी था जब विघालय से शिक्षा पूर्ण करने के उपरांत उनके सारे मित्र सरकारी नौकरी की तैयारी में जुट गए थे। लेकिन सन २००१ में भी सीताराम ने खेती को ही प्राथमिकता दी थी। आज सीताराम सेंगवा २२ वर्ष की आयु से खेती के सफर में सफलता हासिल कर राज्य सरकार एवं वैज्ञानिकों से विभिन्न प्रकार के सम्मान भी प्राप्त कर चुके हैं।

तरह तरह की किस्म के पौधे हैं सीताराम सेंगवा की नर्सरी में

सीताराम सेंगवा २०१८ से पूर्व केवल पारंपरिक खेती ही करते थे, लेकिन वर्ष २०१८ में काजरी की वैज्ञानिक अर्चना वर्मा के द्वारा बागवानी सम्बंधित प्रशिक्षण लेने के उपरांत नर्सरी का कार्य भी आरम्भ कर दिया था। कृषि के साथ-साथ नर्सरी प्रबंधन में वैज्ञानिक तकनीकों की सहायता से सीताराम सेंगवा ने हजारों उम्दा किस्म के पौधे तैयार किए। आज उनकी नर्सरी में चंदन के २ हजार, शीशम के ३ हजार, बेर के १० हजार, ताइवान पपीते के ५ हजार, सहजन के १० हजार, आंवला के ३ हजार, अमरूद के २५००, अनार के ३ हजार, गोभी के २० हजार, टमाटर के २० हजार, बैंगन के २० हजार, खेजड़ी के ७ हजार, गूगल धूप के १५००, करोंदा के २ हजार, नीम के २ हजार, मालाबार नीम के ५ हजार एवं नींबू के ५ हजार उम्दा किस्म के पौधे बिक्री हेतु उपलब्ध हैं। उन्नत बीजों से उत्पादित ये पौधे ही सीताराम सेंगवा के सफल होने की वजह हैं। यही वजह है कि पिछले वर्ष उन्होंने ७० से ८० हजार पौधे विक्रय किये हैं। उत्तर प्रदेश से लेकर हरियाणा एवं राजस्थान के जालौर, सीकर,जोधपुर, बाड़मेर, बीकानेर, नागौर व बालोतरा के किसान भी बेहतरीन किस्म के पौधे खरीदने के लिए आते रहते हैं। सीताराम सेंगवा केवल उम्दा किस्म के पौधे उत्पादित करने के साथ साथ ही होम डिलीवरी की माध्यम से लेने वाले के पास भी पहुँचाते हैं।


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सीताराम सेंगवा ने स्वयं आत्मनिर्भर बन अन्य किसानों के लिए भी रोजगार का अवसर प्रदान किया

सीताराम सेंगवा कृषि एवं बागवानी के माध्यम से आत्मनिर्भर बन पाए हैं, साथ ही गांव के कई किसानों व महिलों को भी रोजगार के अवसर प्रदान कर रहे हैं। कृषि क्षेत्र में उनका यह सफर बेहद संघर्षमय एवं चुनौतीपूर्ण रहा है। खेती में सीताराम सेंगवा के सराहनीय योगदान के लिए काजरी संस्थान ने उनकी सराहना करते हुए सम्मानित किया है। विभिन्न उपलब्धियां हासिल करने के उपरांत सीताराम को गर्व है कि वह एक सफल किसान हैं। सीताराम कहते हैं कि उनके अधिकतर मित्रगण सरकारी नौकरी में कार्यरत हैं, लेकिन वे मेरे कार्य की काफी सराहना करते हैं। सीताराम के मित्रों का कहना है कि सीताराम द्वारा खेती करने का निर्णय सही व उत्तम था। साथ ही, सीताराम का भी यही मत है कि नौकरी की अपेक्षा उनके द्वारा कृषि को प्राथमिकता देना बेहतरीन निर्णय था।
किसान भाई खरीफ सीजन में इस तरह करें मूंग की खेती

किसान भाई खरीफ सीजन में इस तरह करें मूंग की खेती

मूँग एक प्रमुख दलहनी फसल होने की वजह से यह एक उत्तम आय का माध्यम है। साथ ही, मूँग की फसल को पोषण के मामले में काफी ज्यादा अच्छा माना जाता है। 

भारत के अंदर खेती करने के लिये तीन फसल चक्र अपनाये जाते हैं, जिसमें रबी की फसल, खरीफ की फसल और जायद की फसल शम्मिलित हैं। किसान भाइयों ने रबी फसल की कटाई कर ली है एवं खरीफ फसल के लिये खेतों की तैयारी का काम चल रहा है। 

जो भी किसान भाई खरीफ सीजन में अच्छा मुनाफा अर्जित करना चाहते हैं, वे अपने खेतों में पलेवा, बीजों का चुनाव, सिंचाई की व्यस्था और खेतों में बाड़बंदी की तैयारी कर लें। 

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निर्देशानुसार यह समय मूंग की खेती करने के लिये काफी ज्यादा अनुकूल है। मूंग एक प्रमुख दलहनी फसल है, जिसकी खेती कर्नाटक, उड़ीसा, तमिलनाडु, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में की जाती है। 

प्रमुख दलहनी फसल होने की वजह मूंग की फसल एक बेहतरीन कमाई का जरिया तो है ही, साथ में पोषण के मामले में मूंग की फसल को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।

मूंग की फसल हेतु खेत की तैयारी

अगर किसान इस खरीफ सीजन में मूंग की फसल लगाना चाह रहे हैं, तो वो खेतों में 2-3 बार बारिश होने पर गहरी जुताई का कार्य कर लें। इससे मृदा में छिपे कीड़े निकल जाते हैं और खरपतवार भी खत्म हो जाते हैं। 

गहरी जुताई से फसल की पैदावार बढ़ती है और स्वस्थ फसल लेने में भी सहायता मिलती है। किसान ध्यान रखें, कि गहरी जुताई करने के पश्चात खेत में पाटा चलाकर उसे एकसार कर लें। 

इसके पश्चात खेत में गोबर की खाद और आवश्यक पोषक तत्व भी मिला लें, जिससे बेहतरीन पैदावार प्राप्त हो सके।

मूंग की फसल हेतु बीजों का चयन

जून के अंतिम सप्ताह से लेकर जुलाई के प्रथम सप्ताह तक किसान खरीफ मूंग की बुवाई कर सकते हैं। बुवाई के लिये किसानों को बेहतरीन गुणवत्ता वाले उपयुक्त बीजों का ही चयन करना चाहिये, इससे मूंग की फसल में कीड़े एवं बीमारियां लगने की संभावना काफी कम रहती है। 

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मूंग की फसल की बुवाई

खेत में मूंग के बीज की बुवाई करने से पहले उनका बीजशोधन अवश्य करना चाहिए। बतादें कि इससे स्वस्थ और रोगमुक्त फसल लेने में विशेष सहायता मिलती है। 

मूंग के बीजों को कतारों में ही बोयें, जिससे निराई-गुड़ाई करने में काफी सुगमता रहे और खरपतवार भी आसानी से निकाले जा सकें।

मूंग की फसल में सिंचाई की व्यवस्था

हालांकि, मूंग की फसल के लिये अत्यधिक जल की आवश्यकता नहीं पड़ती है। 2 से 3 बरसातों में ही फसल को अच्छी खासी नमी मिल जाती है। परंतु, फिर भी फलियां बनने के दौरान खेतों में हल्की सिंचाई कर देनी चहिये। 

शाम के वक्त हल्की सिंचाई करने पर मिट्टी को नमी मिल जाती है। इस बात का खास ख्याल रखें कि फसल पकने के 15 दिन पहले ही सिंचाई का काम बंद कर दें।

मूंग की फसल में कीटनाशक और खरपतवार नियंत्रण

दूसरी फसलों की तरफ मूंग की फसल में भी कीट-रोग लगने की संभावना बनी रहती है। इस वजह से समय-समय पर निराई-गुड़ाई का भी कार्य करते रहें। खेतों में उगे खरपतवारों को उखाड़कर जमीन के अंदर दबा दें। साथ ही, रोगों से भी फसल की निगरानी करते रहें। 

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मूंग की फसल की कटाई-गहाई

खरीफ मूंग की फसल कम समय में पकने वाली फसल है। यह सामान्य तौर पर 65-70 दिनों के अंदर पककर तैयार हो जाती है। जून-जुलाई के मध्य बोई गई फसल सिंतबर-अक्टूबर के मध्य पककर तैयार हो जाती है। 

मूंग की फलियां हरे रंग से भूरे रंग की होने लग जाऐं तो कटाई-गहाई का कार्य वक्त रहते कर लेना चाहिये।

चावल की बेहतरीन पैदावार के लिए इस प्रकार करें बुवाई

चावल की बेहतरीन पैदावार के लिए इस प्रकार करें बुवाई

धान की बेहतरीन पैदावार के लिए जुताई के दौरान प्रति हेक्टेयर एक से डेढ़ क्विंटल गोबर की खाद खेत में मिश्रित करनी है। आज कल देश के विभिन्न क्षेत्रों में धान की रोपाई की वजह खेत पानी से डूबे हुए नजर आ रहे हैं। किसान भाई यदि रोपाई के दौरान कुछ विशेष बातों का ध्यान रखें तो उन्हें धान की अधिक और अच्छी गुणवत्ता वाली पैदावार मिल सकती है। अमूमन धान की रोपाई जून के दूसरे-तीसरे सप्ताह से जुलाई के तीसरे-चौथे सप्ताह के मध्य की जाती है। रोपाई के लिए पंक्तियों के मध्य का फासला 20 सेंटीमीटर और पौध की दूरी 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए। एक स्थान पर दो से तीन पौधे रोपने चाहिए। धान की फसल के लिए तापमान 20 डिग्री से 37 डिग्री के मध्य रहना चाहिए। इसके लिए दोमट मिट्टी काफी बेहतर मानी जाती है। धान की फसल के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और 2 से तीन जुताई कल्टीवेटर से करके खेत को तैयार करना चाहिए। साथ ही, खेत की सुद्रण मेड़बंदी करनी चाहिए, जिससे बारिश का पानी ज्यादा समय तक संचित रह सके।

धान शोधन कराकर खेत में बीज डालें

धान की बुवाई के लिए 40 से 50 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के अनुसार बिजाई करनी चाहिए। साथ ही, एक हेक्टेयर रोपाई करने के लिए 30 से 40 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है। हालांकि, इससे पहले बीज का शोधन करना आवश्यक होता है। ये भी पढ़े: भूमि विकास, जुताई और बीज बोने की तैयारी के लिए उपकरण

खाद और उवर्रकों का इस्तेमाल किया जाता है

धान की बेहतरीन उपज के लिए जुताई के दौरान प्रति हेक्टेयर एक से डेढ़ क्विंटल गोबर की खाद खेत में मिलाते हैं। उर्वरक के रूप में नाइट्रोजन, पोटाश और फास्फोरस का इस्तेमाल करते हैं।

बेहतर सिंचाई प्रबंधन किस प्रकार की जाए

धान की फसल को सबसे ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है। रोपाई के उपरांत 8 से 10 दिनों तक खेत में पानी का बना रहना आवश्यक है। कड़ी धूप होने पर खेत से पानी निकाल देना चाहिए। जिससे कि पौध में गलन न हो, सिंचाई दोपहर के समय करनी चाहिए, जिससे रातभर में खेत पानी सोख सके।

कीट नियंत्रण किस प्रकार किया जाता है

धान की फसल में कीट नियंत्रण के लिए जुताई, मेंड़ों की छंटाई और घास आदि की साफ सफाई करनी चाहिए। फसल को खरपतवारों से सुरक्षित रखना चाहिए। 10 दिन की समयावधि पर पौध पर कीटनाशक और फंफूदीनाशक का ध्यान से छिड़काव करना चाहिए।
बासमती उत्पादक किसानों को सरकार के इस कदम से झेलना पड़ रहा नुकसान

बासमती उत्पादक किसानों को सरकार के इस कदम से झेलना पड़ रहा नुकसान

भारत संपूर्ण दुनिया का सबसे बड़ा बासमती चावल का निर्यातक देश है। यह अपनी पैदावार का लगभग 80 प्रतिशत निर्यात कर देता है। साल 2022-23 में भारत ने तकरीबन 4.6 मिलियन टन बासमती चावल का निर्यात किया है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा एवं पंजाब की मंडियों में बासमती धान की आवक चालू हो गई है। परंतु, इस बार कृषकों को विगत वर्ष की तुलना में बासमती धान का कम भाव मिल रहा है। किसानों का यह कहना है, कि उन्हें इस वर्ष बासमती धान की बिक्री में काफी हानि हो रही है। किसानों की मानें, तो उन्हें इस बार प्रति क्विंटल 400 से 500 रुपये कम प्राप्त हो रहे हैं। साथ ही, किसानों का यह आरोप है, कि केंद्र सरकार द्वारा बासमती चावल के मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस 1,200 डॉलर प्रति टन निर्धारित करने के चलते उन्हें काफी हानि उठानी पड़ रही है।

भारत दुनिया में सबसे बड़ा बासमती निर्यातक देश है

भारत दुनिया का सबसे बड़ा बासमती चावल का निर्यातक देश है। यह अपनी पैदावार का 80 प्रतिशत बासमती चावल निर्यात करता है। ऐसी स्थिति में इसका भाव निर्यात के कारण से चढ़ता-उतरता रहता है। यदि बासमती चावल का मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस 850 डॉलर प्रति टन से ज्यादा हो जाएगा, तो ऐसी स्थिति में व्यापारियों को काफी नुकसान होगा। इससे किसानों को भी काफी नुकसान उठाना पड़ेगा। क्योंकि व्यापारी किसानों से कम भाव पर बासमती चावल खरीदेंगे। इस मध्य खबर है, कि बासमती चावल की नवीन फसल 1509 किस्म की कीमतों में काफी गिरावट आई है। विगत सप्ताह इसके भाव में 400 रुपये प्रति क्विंटल की कमी दर्ज की गई।

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किसानों को वहन करना पड़ रहा घाटा

किसान कल्याण क्लब के अध्यक्ष विजय कपूर ने बताया है, कि मिलर्स और निर्यातक किसानों को सही भाव नहीं दे रहे हैं। वह किसानों से कम कीमत पर बासमती खरीदने के लिए काफी दबाव डाल रहे हैं। उनकी मानें तो यदि सरकार 15 अक्टूबर के पश्चात मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस वापस ले लेती है, तो किसानों को काफी अच्छा मुनाफा मिलेगा। उन्होंने कहा है, कि पंजाब के व्यापारी हरियाणा से कम भाव पर बासमती चावल की 1509 प्रजाति की खरीदारी कर रहे हैं। इससे किसानों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।

किसानों को 1,000 करोड़ रुपये की हानि होगी

हरियाणा में कुल 1.7 मिलियन हेक्टेयर रकबे में से बासमती चावल की खेती की जाती है। इसमें से लगभग 40 प्रतिशत हिस्सेदारी 1509 किस्म की है। ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया के अनुसार, यदि इसी प्रकार बासमती का भाव मिलता रहा, तो किसानों को कुल मिलाकर 1,000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा।
ICAR ने बताए सोयाबीन कीट एवं रोग नियंत्रण के उपाय

ICAR ने बताए सोयाबीन कीट एवं रोग नियंत्रण के उपाय

मानसून की लेटलतीफी के कारण भारत के राज्यों में सोयाबीन की खेती की तैयारी में भी इस साल देरी हुई। अवर्षा और अतिवर्षा की मार के बाद किसी तरह खेत में बोई गई सोयाबीन की फसल पर अब कीट पतिंगों का खतरा मंडरा रहा है। इस खतरे के समाधान के लिए भारत के कृषि विज्ञानियों ने अनुभव एवं शोध के आधार पर उपयोगी तरीके सुझाए हैं।

सोयाबीन कृषकों के लिए ICAR की उपयोगी सलाह

भाकृ.अनु.प. के भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान सस्थान (ICAR-Indian Institute of Soybean Research) इन्दौर, ने सोयाबीन फसल की रक्षा के लिए उपयोगी एडवायजरी (Advisory) जारी की है। आपको बता दें, इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (Indian Council of Agricultural Research/ICAR) यानी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भाकृअनुप) कृषि कल्याण हित में काम करने वाली संस्था है। भाकृअनुप (ICAR) भारत सरकार के कृषि मंत्रालय में कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के अधीन एक स्वायत्तशासी संस्था के तौर पर कृषि जगत के कल्याण संबंधी सेवाएं प्रदान करती है।

सोयाबीन पर मौजूदा खतरा

सोयाबीन की खेती आधारित भारत के प्रमुख राज्यों मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं राजस्थान पर विविध रोगों का प्रभाव देखा जा रहा है। इन राज्यों के कई जिलों में सोयाबीन की फसल पर तना मक्खी, चक्र भृंग एवं पत्ती खाने वाली इल्ली तथा रायजोक्टोजनिया एरिअल ब्लाइट, पीला मोजेक वायरस रोग के संक्रमण की स्थिति देखी जा रही है। भाकृअनुप (ICAR) की इस संबंध में कृषकों को सलाह है कि, वे अपनी फसल की सतत निगरानी करें एवं किसी भी कीट या रोग के प्रारंभिक लक्षण दिखते ही, नियंत्रण के उपाय अपनाएं।

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तम्बाखू की इल्ली

सोयाबीन की फसल में तम्बाखू की इल्ली एवं चने की इल्ली के प्रबंधन के लिए बाजार में उपलब्ध कीट-विशेष फिरोमोन ट्रैप्स का उपयोग करने की आईसीएआर (ICAR) ने सलाह दी है। इन फेरोमोन ट्रैप में 5-10 पतंगे दिखने का संकेत यह दर्शाता है कि इन कीड़ों का प्रादुर्भाव आप की फसल पर हो गया है। इसका संकेत यह भी है कि, यह प्रादुर्भाव अभी प्रारंभिक अवस्था में है। अतः शीघ्र अतिशीघ्र इनके नियंत्रण के लिए उपाय अपनाने चाहिए। खेत के विभिन्न स्थानों पर निगरानी करते हुए यदि आपको कोई ऐसा पौधा मिले जिस पर झुंड में अंडे या इल्लियां हों, तो ऐसे पौधों को खेत से उखाड़कर अलग कर दें।

तना मक्खी

तना मक्खी के नियंत्रण के लिए पूर्व मिश्रित कीटनाशक थायोमिथोक्सम (Thiamethoxam) 12.60%+लैम्ब्डा साह्यलोथ्रिन (Lambda-cyhalothrin) 09.50% जेडसी (ZC) (125 ml/ha) का छिड़काव करने की सलाह भाकृअनुप (ICAR) के वैज्ञानिकों ने दी है। चक्र भृंग-(गर्डल बीटल) के नियंत्रण हेतु प्रारंभिक अवस्था में ही टेट्रानिलिप्रोल 18.18 एस.सी. (250- 300 मिली/हे) या थायक्लोप्रिड 21.7 एस.सी. (750मिली/हे) या प्रोफेनोफॉस 50 ई.सी.(1 ली/हे.) या इमामेक्टीन बेन्जोएट (425 मिली/हे.) का छिड़काव करने की कृषकों को सलाह दी गई है। इसके अलावा रोग के फैलाव की रोकथाम हेतु प्रारंभिक अवस्था में ही पौधे के ग्रसित भाग को तोड़कर नष्ट करने की भी सलाह दी गई है।

इल्लियों का नियंत्रण

चक्र भृंग तथा पत्ती खाने वाली इल्लियों के एक साथ नियंत्रण हेतु पूर्वमिश्रित कीटनाशक क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 09.30 % + लैम्ब्डा साह्यलोथ्रिन 04.60 % ZC (200 मिली/हे) या बीटासायफ्लुथ्रिन + इमिडाक्लोप्रिड (350 जमली/है) या पूर्वमिश्रित थायमिथोक्सम़ + लैम्बडा साह्यलोथ्रिन (125 मिली/है) का जिड़काव करने की सलाह दी गई है। इनके छिड़काव से तना मक्खी का भी नियत्रंण किया जा सकता है। पत्ती खाने वाली इल्लियां (सेमीलूपर, तम्बाकू की इल्ली एवं चने की इल्ली) होने पर इनके नियंत्रण के लिए किनालफॉस 25 ई.सी. (1 ली/हे), या ब्रोफ्लानिलिड़े 300 एस.सी. (42-62 ग्राम/है) आदि में से किसी एक का प्रयोग करने की सलाह कृषकों को दी गई है।

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पौधों को उखाड़ दें

पीला मोजेक रोग के नियंत्रण हेतु सलाह है कि तत्काल रोगग्रस्त पौधों को खेत से उखाड़कर अलग कर दें। इन रोगों को फैलाने वाले वाहक सफेद मक्खी की रोकथाम हेतु पूर्वमिश्रित कीटनाशक थायोमिथोक्सम + लैम्ब्डा साह्यलोथ्रिन (125 मिली/है) रसायन का छिड़काव करने की सलाह दी गई है। इसके छिड़काव से तना मक्खी का भी नियंत्रण किया जा सकता है। सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु कृषकगण, अपने खेत में विभिन्न स्थानों पर पीला स्टिकी ट्रैप लगाकर सोयाबीन की फसल की रक्षा कर सकते हैं। कुछ क्षेेत्रों में रायजोक्टोनिया एरिअल ब्लाइट का प्रकोप होने की सूचना प्राप्त होने की आईसीएआर (ICAR) ने जानकारी दी है। इसके उपचार के लिए वैज्ञानिकों ने हेक्साकोनाझोल %5ईसी (1 मिली/ली पानी) का छिड़काव करने का सुझाव दिया गया है।

जैविक सोयाबीन उत्पादन

जैविक सोयाबीन उत्पादन में रुची रखने वाले कृषक, पत्ती खाने वाली इल्लियों (सेमीलूपर, तम्बाखू की इल्ली) की छोटी अवस्था में रोकथाम हतु बेसिलस थुरिन्जिएन्सिस आदि का निर्धारित मात्रा में प्रयोग कर सकते हैं। प्रकाश प्रपंच का उपयोग करने की भी सलाह दी गई है।

कीट एवं रोग प्रबंधन के अन्य उपाय

सोयाबीन पर लगने वाले कीट एवं रोग के प्रबंधन के रासायनिक छिड़काव के अलावा अन्य प्रकृति आधारित उपाय भी हैं।

बर्ड पर्चेस

सोयाबीन की फसल में पक्षियों के बैठने के लिए ”T“ आकार के बर्ड पर्चेस लगाने की भी वैज्ञानिकों ने कृषि मित्रों को सलाह दी है। इससे कीट-भक्षी पक्षियों द्वारा भी इल्लियों की संख्या कम करने में प्राकृतिक तरीके से सहायता मिलती है।

सावधानियां

  • कीट एवं रोग नियंत्रण के लिए केवल उन्ही रसायनों का प्रयोग करें जो सोयाबीन की फसल में अनुशंसित हों।
  • कीटनाशक या फफूंद नाशक के छिड़काव के लिए सदैव पानी की अनुशंसित मात्रा का ही उपयोग करें।
  • किसी भी प्रकार का कृषि-आदान क्रय करते समय दुकानदार से हमेशा पक्का बिल लें जिस पर बैच नंबर एवं एक्सपायरी दिनांक आदि का स्पष्ट उल्लेख हो।



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सोयाबीन कीट एवं रोग नियंत्रण प्रबंधन पर आधारित यह लेख भारतीय कृषक अनुसंधान परिषद, भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान, इन्दौर द्वारा जारी कृषि आधारित सलाह पर आधारित है। लेख में वर्णित रसायन एवं उनकी मात्रा का उपयोग करने के पहले कृषि सलाहकारों, केवीके के वैज्ञानिकों, दवा विक्रेता से उचित परामर्श अवश्य प्राप्त करें। इस बारे में आईसीएआर (ICAR) की विस्तृत जानकारी के लिए लिंकhttps://www.icar.org.in/weather-based-crop-advisory पर क्लिक करें। यहां वेदर बेस्ड क्रॉप एडवाइज़री (Weather based Crop Advisory) विकल्प में आपको सोयाबीन की सलाह संबंधी पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने मिल जाएगी।

सोयाबीन की तीन नई किस्मों को मध्य प्रदेश शासन ने दी मंजूरी

सोयाबीन की तीन नई किस्मों को मध्य प्रदेश शासन ने दी मंजूरी

भारत में सोयाबीन (soyabean) का सबसे ज्यादा उत्पादन मध्य प्रदेश में होता है इसलिए इस राज्य को सोया राज्य कहा जाता है, चूंकि मध्य प्रदेश के किसान हर साल बड़ी मात्रा में सोयाबीन की खेती करते हैं। इसलिए केंद्र सरकार और मध्य प्रदेश शासन मिलकर इसके रिसर्च और अनुसंधान पर भी पूरा ध्यान देते हैं, ताकि समय-समय पर किसानों को नए बीज उपलब्ध करवाए जा सकें, जिससे उत्पादन में बढ़ोत्तरी हो तथा किसानों को भी फायदा हो। भारत में खाद्य तेलों की बढ़ती हुई मांग को देखते हुए, ICAR - भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान (IISR), इंदौर पिछले कई सालों से सोयाबीन की नई किस्मों को विकसित करने के लिए अनुसंधान कर रहा है। इस संस्थान के कृषि वैज्ञानिकों के सतत प्रयासों के बाद भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान (IISR), इंदौर ने सोयाबीन की 3 नई किस्मों को विकसित करने में सफलता पाई है। इन किस्मों को कृषि वैज्ञानिकों द्वारा एनआरसी 157, एनआरसी 131 और एनआरसी 136 नाम दिया गया है।

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कृषि वैज्ञानिकों के काम से खुश होकर मध्य प्रदेश शासन ने इन तीनों किस्मों को तुरंत ही मंजूरी दे दी है, ताकि ये किस्में जल्द से जल्द बाजार में किसानों के लिए उपलब्ध हो सकें, जिससे किसान ज्यादा से ज्यादा नई किस्मों के द्वारा लाभान्वित हो सकें। संस्थान के हेड साइंटिस्ट और ब्रीडर डॉ संजय गुप्ता ने सोयाबीन की नई किस्मों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि एनआरसी 157 एक मध्यम अवधि की फसल है, जो बुवाई करने के बाद मात्र 94 दिनों में तैयार हो जाती है। इस किस्म की उपज भी शानदार है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर 16.5 क्विंटल फसल का उत्पादन दे सकती है। एनआरसी 157 नाम की यह किस्म अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट, बैक्टीरियल पस्ट्यूल और टारगेट लीफ स्पॉट जैसी बीमारियों से मध्यम प्रतिरोधी क्षमता रखती है। इसकी खेती करने वाले किसानों को ज्यादा हानि होने की संभावना नहीं है। इसके साथ ही यदि इस किस्म की बुवाई 20 जुलाई तक भी की जाती है, तो भी यह इस किस्म के लिए उपयुक्त मानी जाएगी।

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दूसरी किस्म एनआरसी 131 भी एक मध्यम अवधि की फसल है, जो बुवाई करने के बाद 93 दिनों में तैयार हो जाती है। यह औसत रूप से एक हेक्टेयर में 15 क्विंटल फसल का उत्पादन दे सकती है। यह किस्म भी चारकोल रॉट और टार्गेट लीफ स्पॉट जैसी बीमारियों के लिए मध्यम रूप से प्रतिरोधी है।

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इन दो किस्मों के साथ तीसरी किस्म एनआरसी 136 है। जिसे मध्य प्रदेश शासन ने अभी मंजूरी दी है। हालाँकि यह किस्म देश में पहले से ही उपयोग की जा रही है। इसका उपयोग ज्यादातर पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में किया जाता है। इसके बारे में जानकारी देते हुए संस्थान के एक प्रधान कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि, यह किस्म बुवाई के बाद 105 दिन की अवधि में तैयार होती है। साथ ही, यह सोयाबीन की ऐसी पहली किस्म है, जिसके ऊपर सूखे का कोई ख़ास प्रभाव देखने को नहीं मिलता, इस किस्म का उत्पादन एक हेक्टेयर में 17 क्विंटल तक हो सकता है। यह किस्म मूंग बीन येलो मोज़ेक वायरस के लिए मध्यम रूप से प्रतिरोधी है।