Ad

पशुपालन

अब हरे चारे की खेती करने पर मिलेंगे 10 हजार रुपये प्रति एकड़, ऐसे करें आवेदन

अब हरे चारे की खेती करने पर मिलेंगे 10 हजार रुपये प्रति एकड़, ऐसे करें आवेदन

हरा चारा (green fodder) पशुओं के लिए महत्वपूर्ण आहार है, जिससे पशुओं के शरीर में पोषक तत्वों की कमी दूर होती है। इसके अलावा पशु ताकतवर भी होते हैं और इसका प्रभाव दुग्ध उत्पादन में भी पड़ता है। जो किसान अपने पशुओं को हरा चारा खिलाते हैं, उनके पशु स्वस्थ्य रहते हैं तथा उन पशुओं के दुग्ध उत्पादन में वृद्धि होती है। हरे चारे की खेती करके किसान भाई अपनी आमदनी को बढ़ा सकते हैं, क्योंकि इन दिनों गौशालाओं में हरे चारे की जबरदस्त डिमांड है, 

जहां किसान भाई हरे चारे को सप्प्लाई करके अपने लिए कुछ अतिरिक्त आमदनी का प्रबंध कर सकते हैं। इन दिनों गावों में पशुपालन और दुग्ध उत्पादन एक व्यवसाय का रूप ले रहा है। ज्यादातर किसान इसमें हाथ आजमा रहे हैं, लेकिन किसानों द्वारा पशुओं के आहार पर पर्याप्त ध्यान न देने के कारण पशुओं की दूध देने की क्षमता में कमी देखी जा रही है। इसलिए पशुओं के आहार के लिए हरा चारा बेहद मत्वपूर्ण हो जाता है, जिससे पशु सम्पूर्ण पोषण प्राप्त करते हैं और इससे दुग्ध उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी होती है। 

ये भी पढ़े: दुग्ध प्रसंस्करण एवं चारा संयंत्रों को बड़ी छूट देगी सरकार 

हरे चारे की खेती ज्यादातर राज्यों में उचित मात्रा में होती है जो वहां के किसानों के पशुओं के लिए पर्याप्त है। लेकिन हरियाणा में हरे चारे की कमी महसूस की जा रही है, जिसके बाद राज्य सरकार ने हरे चारे की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए 'चारा-बिजाई योजना’ की शुरुआत की है। इस योजना के तहत किसानों को हरे चारे की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा, ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान हरे चारे की खेती करना प्रारम्भ करें। 

इस योजना के अंतर्गत सरकार हरे चारे की खेती करने पर किसानों को 10 हजार रुपये प्रति एकड़ की सब्सिडी प्रदान करेगी। यह राशि एक किसान के लिए अधिकतम एक लाख रुपये तक दी जा सकती है। यह सब्सिडी उन्हीं किसानों को मिलेगी जो अपनी जमीन में हरे चारे की खेती करके उत्पादित चारे को गौशालाओं को बेंचेंगे। इस योजना को लेकर हरियाणा सरकार के ऑफिसियल ट्विटर अकाउंट MyGovHaryana से ट्वीट करके जानकारी भी साझा की गई है। https://twitter.com/mygovharyana/status/1524060896783630336

हरियाणा सरकार ने बताया है कि यह सब्सिडी की स्कीम का फायदा सिर्फ उन्हीं किसानों को मिलेगा जो ये 3 अहर्ताएं पास करते हों :

  1. सब्सिडी का लाभ लेने वाले किसान को हरियाणा का मूल निवासी होना चाहिए।
  2. किसान को अपने खेत में हरे चारे के साथ सूखे चारे की भी खेती करनी होगी, इसके लिए उसको फॉर्म में अपनी सहमति देनी होगी।
  3. उगाया गया चारा नियमित रूप से गौशालाओं को बेंचना होगा।

जो भी किसान इन तीनों अहर्ताओं को पूर्ण करता है वो सब्सिडी पाने का पात्र होगा।

कौन-कौन से हरे चारे का उत्पादन कर सकता है किसान ?

दुधारू पशुओं के लिए बहुत से चारों की खेती भारत में की जाती है। इसमें से कुछ चारे सिर्फ कुछ महीनों के लिए ही उपलब्ध हो पाते हैं। जैसे कि ज्वार, लोबिया, मक्का और बाजरा वगैरह फसलों के चारे साल में 4-5 महीनों से ज्यादा नहीं टिकते। इसलिए इस समस्या से निपटने के लिए ऐसे चारा की खेती की जरुरत है जो साल में हर समय उपलब्ध हो, ताकि पशुओं के लिए चारे के प्रबंध में कोई दिक्कत न आये। भारत में किसान भाई बरसीम, नेपियर घास और रिजका वगैरह लगाकर अपने पशुओं के लिए 10 से 12 महीने तक चारे का प्रबंध कर सकते हैं। 

ये भी पढ़े: गर्मियों में हरे चारे के अभाव में दुधारू पशुओं के लिए चारा 

बरसीम (Berseem (Trifolium alexandrinum))  एक बेहतरीन चारा है जो सर्दियों से लेकर गर्मी शुरू होने तक किसान के खेत में उपलब्ध हो सकता है। यह चारा दुधारू पशुओं के लिए ख़ास महत्व रखता है क्योंकि इस चारे में लगभग 22 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है। इसके अलावा यह चारा बेहद पाचनशील होता है जिसके कारण पशुओं के दुग्ध उत्पादन में साफ़ फर्क देखा जा सकता है। इस चारे को पशुओं को देने से उन्हें अतिरिक्त पोषण की जरुरत नहीं होती। बरसीम के साथ ही अब भारत में नेपियर घास (Napier grass also known as Pennisetum purpureum (पेन्नीसेटम परप्यूरियम), elephant grass or Uganda grass) या हाथी घास  आ चुकी है। 

यह किसानों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है, क्योंकि यह मात्र 50 दिनों में तैयार हो जाती है। जिसके बाद इसे पशुओं को खिलाया जा सकता है। यह एक ऐसी घास है जो एक बार लगाने पर किसानों को 5 साल तक हरा चारा उपलब्ध करवाती रहती है, जिससे किसानों को बार-बार चारे की खेती करने की जरुरत नहीं पड़ती और न ही इसमें सिंचाई की जरुरत पड़ती है। नेपियर घास की यह विशेषता होती है कि इसकी एक बार कटाई करने के बाद, घास के पेड़ में फिर से शाखाएं निकलने लगती हैं। 

घास की एक बार कटाई के लगभग 40 दिनों बाद घास फिर से कटाई के लिए उपलब्ध हो जाती है। यह घास पशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाती है। रिजका (rijka also called Lucerne or alfalfa (Medicago sativa) or purple medic) एक अलग तरह की घास है जिसमें बेहद कम सिंचाई की जरुरत होती है। यह घास किसानों को नवंबर माह से लेकर जून माह तक हरा चारा उपलब्ध करवा सकती है। इस घास को भी पशुओं को देने से उनके पोषण की जरुरत पूरी होती है और दुग्ध उत्पादन में वृद्धि होती है।

ये भी पढ़ें: जानिए कैसे करें बरसीम,जई और रिजका की बुआई

सब्सिडी प्राप्त करने के लिए आवेदन कहां करें

जो भी किसान भाई अपने खेत में हरा चारा उगाने के इच्छुक हैं उन्हें सरकार की ओर से 10 हजार रूपये प्रति एकड़ के हिसाब से सब्सिडी प्रदान की जाएगी। इस योजना के अंतर्गत अप्प्लाई करने के लिए हरियाणा सरकार की ऑफिसयल वेबसाइट 'मेरी फसल मेरा ब्यौरा' पर जाएं और वहां पर ऑनलाइन माध्यम से आवेदन भरें। आवेदन भरते समय किसान अपने साथ आधार कार्ड, निवास प्रमाण पत्र, बैंक खाता डिटेल, आधार से लिंक मोबाइल नंबर और पासपोर्ट साइज का फोटो जरूर रखें। ये चीजों किसानों को फॉर्म के साथ अपलोड करनी होंगी, जिसके बाद अपने खेतों में हरे चारे की खेती करने वाले किसानों को सब्सिडी प्रदान कर दी जाएगी। सब्सिडी प्राप्त करने के बाद किसानों को अपने खेतों में उत्पादित चारा गौशालाओं को सप्प्लाई करना अनिवार्य होगा।

पशुओं का दाना न खा जाएं पेट के कीड़े (Stomach bug)

पशुओं का दाना न खा जाएं पेट के कीड़े (Stomach bug)

पशुओं के पेट में अंतः परजीवी पाए जाते हैं। यह पशु के हिस्से का आहार खा जाते हैं। इसके चलते पशु दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से कमजोर पड़ जाता है और शारीरिक विकास दृष्टि से भी कमजोर हो जाता है। यह कई अन्य बीमारियों के कारण भी बनते हैं।

लक्षण

आंतरिक परजीवी से ग्रस्त पशु सामान्यतः बेचैन रहता है। पर्याप्त दाना पानी खिलाने के बाद भी उसका शारीरिक विकास ठीक से नहीं होता। यदि
दुधारू पशु है तो उसके दूध का उत्पादन लगातार गिरता जाता है। प्रभावित पशु मिट्टी खाने लगता है। दीवारें चाटने लगता है। पशु के शरीर की चमक कम हो जाती है। बाल खड़े हो जाते हैं। इसके अलावा कभी कबार पशु के गोबर में रक्त और कीड़े भी दिखते हैं। पशुओं में इन की अधिकता मृत्यु का कारण तक बन सकती है। कई पशुओं में दूध की कमी, पुनः गाभिन होने में देरी, गर्भधारण में परेशानी एवं शारीरिक विकास दर में कमी जैसे लक्षण क्रमियों से ग्रसित होने के कारण बनते हैं। gaay ke rog

कृमि रोग का निदान

कर्मी रोग का परीक्षण सबसे सरलतम गोबर के माध्यम से किया जा सकता है। ब्रज में अनेक वेटरनरी विश्वविद्यालय स्थित है वहां यह परीक्षण 5 से ₹7 में हो जाता है।
ये भी पढ़े : कम पैसे में उगायें हरा चारा, बढ़ेगा दूध, बनेगा कमाई का सहारा

दवाएं

अंतर है पर जीबीओ को खत्म करने के लिए पशु को साल में दो बार पेट के कीड़ों की दवा देनी चाहिए। गाभिन और गैर गाभिन पशुओं को दवा देते समय इस बात का ध्यान रखा जाए कि कौन सी दवा गाभिन पशु के लिए है कौन सी गैर गाभिन पशु के लिए। ट्राई क्लब एंड आजोल गर्भावस्था के लिए सुरक्षित दवा है। इसे रोटी या गुड़ के साथ मुंह से खिलाया जा सकता है। गाय भैंस के लिए इसकी 12 मिलीग्राम मात्रा पशु के प्रति किलो वजन के हिसाब से दी जाती है। बाजार में स्वस्थ पशु के लिए एक संपूर्ण टेबलेट आती है। दूसरी दवा ऑक्सीक्लोजानाइड है। इसलिए दवा रेड फॉक्स नइट गर्भस्थ पशु के लिए भी सुरक्षित है और संपूर्ण विकसित पशु के लिए इसकी भी एक खुराक ही आती है। आम तौर पर प्रचलित अल्बेंडाजोल गोली भी बहुतायत में प्रयोग की जाती है।
सावधान : बढ़ती गर्मी में इस तरह करें अपने पशुओं की देखभाल

सावधान : बढ़ती गर्मी में इस तरह करें अपने पशुओं की देखभाल

फिलहाल गर्मी के दिन शुरू हो गए हैं। आम जनता के साथ-साथ पशुओं को भी गर्मी प्रभावित करेगी। ऐसे में मवेशियों को भूख कम और प्यास ज्यादा लगती है। पशुपालक अपने मवेशियों को दिन में न्यूनतम तीन बार जल पिलाएं। 

जिससे कि उनके शरीर को गर्म तापमान को सहन करने में सहायता प्राप्त हो सके। इसके अतिरिक्त लू से संरक्षण हेतु पशुओं के जल में थोड़ी मात्रा में नमक और आटा मिला देना चाहिए। 

भारत के विभिन्न राज्यों में गर्मी परवान चढ़ रही है। इसमें महाराष्ट्र राज्य सहित बहुत से प्रदेशों में तापमान 40 डिग्री पर है। साथ ही, गर्म हवाओं की हालत देखने को मिल रही है। साथ ही, उत्तर भारत के अधिकांश प्रदेशों में तापमान 35 डिग्री तक हो गया है। 

इस मध्य मवेशियों को गर्म हवा लगने की आशंका रहती है। लू लगने की वजह से आम तौर पर पशुओं की त्वचा में सिकुड़न और उनकी दूध देने की क्षमता में गिरावट देखने को मिलती है। 

हालात यहां तक हो जाते हैं, कि इसके चलते पशुओं की मृत्यु तक हो जाने की बात सामने आती है। ऐसी भयावय स्थिति से पशुओं का संरक्षण करने के लिए उनकी बेहतर देखभाल करना अत्यंत आवश्यक है।

पशुओं को पानी पिलाते रहें

गर्मी के दिनों में मवेशियों को न्यूनतम 3 बार जल पिलाना काफी आवश्यक होता है। इसकी मुख्य वजह यह है, कि जल पिलाने से पशुओं के तापमान को एक पर्याप्त संतुलन में रखने में सहायता प्राप्त होती है। 

इसके अतिरिक्त मवेशियों को जल में थोड़ी मात्रा में नमक और आटा मिलाकर पिलाने से गर्म हवा लगने की आशंका काफी कम रहती है। 

ये भी देखें: इस घास के सेवन से बढ़ सकती है मवेशियों की दुग्ध उत्पादन क्षमता; 10 से 15% तक इजाफा संभव 

यदि आपके पशुओं को अधिक बुखार है और उनकी जीभ तक बाहर निकली दिख रही है। साथ ही, उनको सांस लेने में भी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। उनके मुंह के समीप झाग निकलते दिखाई पड़ रहे हैं तब ऐसी हालत में पशु की शक्ति कम हो जाती है। 

विशेषज्ञों के मुताबिक, ऐसे हालात में अस्वस्थ पशुओं को सरसों का तेल पिलाना काफी लाभकारी साबित हो सकता है। सरसों के तेल में वसा की प्रचूर मात्रा पायी जाती है। जिसकी वजह से शारीरिक शक्ति बढ़ती है। विशेषज्ञों के अनुरूप गाय और भैंस के पैदा हुए बच्चों को सरसों का तेल पिलाया जा सकता है।

पशुओं को सरसों का तेल कितनी मात्रा में पिलाया जाना चाहिए

सीतापुर जनपद के पशुपालन वैज्ञानिक डॉ आनंद सिंह के अनुरूप, गर्मी एवं लू से पशुओं का संरक्षण करने के लिए काफी ऊर्जा की जरूरत होती है। ऐसी हालत में सरसों के तेल का सेवन कराना बेहद लाभकारी होता है। 

ऊर्जा मिलने से पशु तात्कालिक रूप से बेहतर महसूस करने लगते हैं। हालांकि, सरसों का तेल पशुओं को प्रतिदिन देना लाभकारी नहीं माना जाता है। 

डॉ आनंद सिंह के अनुसार, पशुओं को सरसों का तेल तभी पिलायें, जब वह बीमार हों अथवा ऊर्जा स्तर निम्न हो। इसके अतिरिक्त पशुओं को एक बार में 100 -200 ML से अधिक तेल नहीं पिलाना चाहिए। 

हालांकि, अगर आपकी भैंस या गायों के पेट में गैस बन गई है, तो उस परिस्थिति में आप अवश्य उन्हें 400 से 500 ML सरसों का तेल पिला सकते हैं। 

साथ ही, पशुओं के रहने का स्थान ऐसी जगह होना चाहिए जहां पर प्रदूषित हवा नहीं पहुँचती हो। पशुओं के निवास स्थान पर हवा के आवागमन के लिए रोशनदान अथवा खुला स्थान होना काफी जरुरी है।

पशुओं की खुराक पर जोर दें

गर्मी के मौसम में लू के चलते पशुओं में दूध देने की क्षमता कम हो जाती है। उनको इस बीच प्रचूर मात्रा में हरा एवं पौष्टिक चारा देना अत्यंत आवश्यक होता है। 

हरा चारा अधिक ऊर्जा प्रदान करता है। हरे चारे में 70-90 फीसद तक जल की मात्रा होती है। यह समयानुसार जल की आपूर्ति सुनिश्चित करती है। इससे पशुओं की दूध देने की क्षमता काफी बढ़ जाती है।

पशुपालन विभाग की तरफ से निकाली गई बंपर भर्ती, उम्मीदवार 5 जुलाई से आवेदन कर सकते हैं

पशुपालन विभाग की तरफ से निकाली गई बंपर भर्ती, उम्मीदवार 5 जुलाई से आवेदन कर सकते हैं

बीपीएनएल के ओर से सर्वे इंचार्ज एवं सर्वेयर पद पर अच्छी खासी संख्या में भर्तियां निकाली हैं। इस भर्ती में सर्वे इंचार्ज पद के लिए 574 वहीं सर्वेयर पद के लिए 2870 भर्तियां निर्धारित की गई हैं। भारतीय पशुपालन निगम लिमिटेड में बंपर भर्ती निकली है। यदि आप सरकारी नौकरी करना चाहते हैं एवं पशुपालन में आपकी रुचि है तो ये भर्ती आपके लिए ही है। सबसे खास बात यह है, कि इस भर्ती में 10वीं पास लोग भी हिस्सा ले सकते हैं। जो भी इच्छुक उम्मीदवार इस भर्ती परीक्षा में बैठना चाहते हैं, उनको 5 जुलाई से पूर्व इस परीक्षा के लिए आवेदन फॉर्म भरना पड़ेगा। इस भर्ती से जुड़ी समस्त जानकारी आपको बीपीएनएल की आधिकारिक वेबसाइट पर प्राप्त हो जाएगी।

भर्ती हेतु आवेदनकर्ता पर क्या-क्या होना चाहिए

भारतीय पशुपालन निगम लिमिटेड मतलब कि बीपीएनएल द्वारा सर्वे इंचार्ज और सर्वेयर पद पर बंपर भर्तियां निकाली हैं। इस भर्ती में सर्वे इंचार्ज पद के लिए 574 एवं सर्वेयर पद के लिए 2870 भर्तियां निर्धारित की गई हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि जो लोग भी सर्वे इंचार्ज पद पर आवेदन करना चाहते हैं, उन उम्मीदवारों की आयु सीमा 21 से 40 वर्ष के मध्य होनी अति आवश्यक है। इसके साथ ही उनके पास भारत के किसी मान्यता प्राप्त कॉलेज से 12वीं पास का रिजल्ट भी होना अनिवार्य है। वहीं, सर्वेयर पद के लिए जो उम्मीदवार इच्छुक हैं, उनकी आयु सीमा 18 से 40 वर्ष के मध्य होनी चाहिए। साथ ही, उनके पास 10वीं पास का रिजल्ट अवश्य होना चाहिए। हालांकि, ऐसा नहीं है, कि इस भर्ती के लिए केवल 10वीं अथवा 12वीं पास लोग ही आवेदन कर सकते हैं। यदि आप इससे अधिक पढ़े लिखे हैं, तब भी आप इस भर्ती के लिए आवेदन कर सकते हैं। यह भी पढ़ें: इन पशुपालन में होता है जमकर मुनाफा

भर्ती परीक्षा हेतु कितनी फीस तय की गई है

भारतीय पशुपालन निगम लिमिटेड की भर्ती परीक्षा की फीस की बात की जाए तो सर्वे इंचार्ज पद पर आवेदन करने के लिए उम्मीदवारों को 944 रुपये की फीस जमा करनी पड़ेगी। इसके अतिरिक्त सर्वेयर पद के लिए जो उम्मीदवार आवेदन करना चाहते हैं, उनकी फीस 826 रुपये निर्धारित की गई है। समस्त उम्मीदवारों का चयन ऑनलाइन टेस्ट एवं इंटरव्यू के अनुसार होगा। सबसे खास बात यह है, कि आवेदन की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है और अंतिम तिथि 5 जुलाई 2023 है।
बन्नी नस्ल की भैंस देती है 15 लीटर दूध, जानिए इसके बारे में

बन्नी नस्ल की भैंस देती है 15 लीटर दूध, जानिए इसके बारे में

बन्नी भैंस पाकिस्तान के सिंध प्रान्त की किस्म है, जो भारत में गुजरात प्रांत में दुग्ध उत्पादन के लिए मुख्य रूप से पाली जाती है। बन्नी भैंस का पालन गुजरात के सिंध प्रांत की जनजाति मालधारी करती है। जो दूध की पैदावार के लिए इस जनजाति की रीढ़ की हड्डी मानी जाती है। बन्नी नस्ल की भैंस गुजरात राज्य के अंदर पाई जाती है। गुजरात राज्य के कच्छ जनपद में ज्यादा पाई जाने की वजह से इसे कच्छी भी कहा जाता है। यदि हम इस भैंस के दूसरे नाम ‘बन्नी’ के विषय में बात करें तो यह गुजरात राज्य के कच्छ जनपद की एक चरवाहा जनजाति के नाम पर है। इस जनजाति को मालधारी जनजाति के नाम से भी जाना जाता है। यह भैंस इस समुदाय की रीढ़ भी कही जाती है।

भारत सरकार ने 2010 में इसे भैंसों की ग्यारहवीं अलग नस्ल का दर्जा हांसिल हुआ

बाजार में इस भैंस की कीमत 50 हजार से लेकर 1 लाख रुपये तक है। यदि इस भैंस की उत्पत्ति की बात की जाए तो यह भैंस पाकिस्तान के सिंध प्रान्त की नस्ल मानी जाती है। मालधारी नस्ल की यह भैंस विगत 500 सालों से इस प्रान्त की मालधारी जनजाति अथवा यहां शासन करने वाले लोगों के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण पशुधन के रूप में थी। पाकिस्तान में अब इस भूमि को बन्नी भूमि के नाम से जाना जाता है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि भारत के अंदर साल 2010 में इसे भैंसों की ग्यारहवीं अलग नस्ल का दर्जा हांसिल हुआ था। इनकी शारीरिक विशेषताएं अथवा
दुग्ध उत्पादन की क्षमता भी बाकी भैंसों के मुकाबले में काफी अलग होती है। आप इस भैंस की पहचान कैसे करें।

ये भी पढ़ें:
अब खास तकनीक से पैदा करवाई जाएंगी केवल मादा भैंसें और बढ़ेगा दुग्ध उत्पादन

बन्नी भैंस की कितनी कीमत है

दूध उत्पादन क्षमता के लिए पशुपालकों में प्रसिद्ध बन्नी भैंस की ज्यादा कीमत के कारण भी बहुत सारे पशुपालक इसे खरीद नहीं पाते हैं। आपको बता दें एक बन्नी भैंस की कीमत 1 लाख रुपए से 3 लाख रुपए तक हो सकती है।

बन्नी भैंस की क्या खूबियां होती हैं

बन्नी भैंस का शरीर कॉम्पैक्ट, पच्चर आकार का होता है। इसके शरीर की लम्बाई 150 से 160 सेंटीमीटर तक हो होती है। इसकी पूंछ की लम्बाई 85 से 90 सेमी तक होती है। बतादें, कि नर बन्नी भैंसा का वजन 525-562 किलोग्राम तक होता है। मादा बन्नी भैंस का वजन लगभग 475-575 किलोग्राम तक होता है। यह भैंस काले रंग की होती है, लेकिन 5% तक भूरा रंग शामिल हो सकता है। निचले पैरों, माथे और पूंछ में सफ़ेद धब्बे होते हैं। बन्नी मादा भैंस के सींग ऊर्ध्वाधर दिशा में मुड़े हुए होते हैं। साथ ही कुछ प्रतिशत उलटे दोहरे गोलाई में होते हैं। नर बन्नी के सींग 70 प्रतिशत तक उल्टे एकल गोलाई में होते हैं। बन्नी भैंस औसतन 6000 लीटर वार्षिक दूध का उत्पादन करती है। वहीं, यह प्रतिदिन 10 से 18 लीटर दूध की पैदावार करती है। बन्नी भैंस साल में 290 से 295 दिनों तक दूध देती है।
अपने दुधारू पशुओं को पिलाएं सरसों का तेल, रहेंगे स्वस्थ व बढ़ेगी दूध देने की मात्रा

अपने दुधारू पशुओं को पिलाएं सरसों का तेल, रहेंगे स्वस्थ व बढ़ेगी दूध देने की मात्रा

पशुपालन या डेयरी व्यवसाय एक अच्छा व्यवसाय माना जाता है। पशुपालन करके लोग को अच्छा लाभ मिल रहा हैं। गाय भैंस के दूध से पनीर मक्खन आदि सामग्री बनती है, जिनका बाजार में काफी अच्छा पैसा मिलता है। कई बार आपके पशु बीमार हो जाते हैं, जिसके कारण उनमें दूध देने की क्षमता कम हो जाती है। आपका पशु स्वस्थ होगा तभी वह अच्छी मात्रा में दूध दे सकेगा। पशु के अच्छे स्वास्थ्य के लिए पशु के अच्छे आहार का होना जरूरी है।


ये भी पढ़ें: भेड़, बकरी, सुअर और मुर्गी पालन के लिए मिलेगी 50% सब्सिडी, जानिए पूरी जानकारी

सरसों का तेल ऊर्जा बढ़ाने में सहायक

डॉक्टर के अनुसार, जब आपके पशु बीमार हो तो उन्हें सरसों का तेल पिलाना चाहिए। क्योंकि सरसों के तेल में वसा की मात्रा अधिक होती है  तथा वह उनके शरीर को पर्याप्त ऊर्जा व ताक़त प्रदान करती है‌।

पशुओं को कब देना चाहिए सरसों का तेल ?

गाय भैंस के बच्चे होने के बाद भी उन्हें सरसों का तेल पिलाया जा सकता है, जिससे कि उनके अंदर आई हुई कमजोरी को दूर किया जा सके। पशु चिकित्सकों के अनुसार, गर्मियों में पशुओं को सरसों का तेल पिलाना चाहिए, जिससे कि लू लगने की संभावना कम हो तथा उनमें लगातार ऊर्जा का संचार होता रहे। इसके अलावा, सर्दियों में भी पशुओं को सरसों का तेल पिलाया जा सकता है, जिससे कि उनके अंदर गर्मी बनी रहे।

पशुओं के दूध देने की बढ़ेगी क्षमता

सरसों का तेल पिलाने से पशुओं में पाचन प्रक्रिया दुरूश्त रहती है। इससे पशु को एक अच्छा आहार मिलता है। पशु का स्वास्थ्य सही रहता है तथा स्वस्थ दुधारू पशु, दूध भी अच्छी मात्रा में देते हैं।

ये भी पढ़ें:
थनैला रोग को रोकने का एक मात्र उपाय टीटासूल लिक्विड स्प्रे किट

क्या पशुओं को रोज पिलाना चाहिए सरसों का तेल ?

पशु चिकित्सकों के अनुसार, रोज सरसों का तेल पिलाना पशुओं के लिए फायदेमंद नहीं होगा। पशुओ को सरसों का तेल तभी देना चाहिए जब वे अस्वस्थ हो, ताकि उनके अंदर ऊर्जा का संचार हो सके।

क्या गैस बनने पर भी पिलाना चाहिए सरसों का तेल ?

यदि आपके पशुओं के पेट में गैस बनी है, तो उन्हें सरसों का तेल अवश्य पिलाना चाहिए। सरसों का तेल पीने से उनका पाचन प्रक्रिया या डाइजेशन सही होगा, जिससे कि वह स्वस्थ रहेंगे।
घर पर ही यह चारा उगाकर कमाएं दोगुना मुनाफा, पशु और खेत दोनों में आएगा काम

घर पर ही यह चारा उगाकर कमाएं दोगुना मुनाफा, पशु और खेत दोनों में आएगा काम

भारत के किसानों के लिए कृषि के अलावा पशुपालन का भी अपना ही एक अलग महत्व होता है। छोटे से लेकर बड़े भारतीय किसान एवं ग्रामीण महिलाएं, पशुपालन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।



ये भी पढ़ें:
पशुपालन के लिए 90 फीसदी तक मिलेगा अनुदान ग्रामीणों की अर्थव्यवस्था को एक ठोस आधार प्रदान करने के अलावा, खेती की मदद से ही पशुओं के लिए चारा एवं फसल अवशेष प्रबंधन (crop residue management) की भी व्यवस्था हो जाती है और बदले में इन पशुओं से मिले हुए ऑर्गेनिक खाद का इस्तेमाल खेत में ही करके उत्पादकता को भी बढ़ाया जा सकता है।

एजोला चारा (Azolla or Mosquito ferns)

अलग-अलग पशुओं को अलग-अलग प्रकार का चारा खिलाया जाता है, इसी श्रेणी में एक विशेष तरह का चारा होता है जिसे 'एजोला चारा' के नाम से जाना जाता है। यह एक सस्ता और पौष्टिक पशु आहार होता है, जिसे खिलाने से पशुओं में वसा एवं वसा रहित पदार्थ वाली दूध बढ़ाने में मदद मिलती है। अजोला चारा की मदद से पशुओं में बांझपन की समस्या को दूर किया जा सकता है, साथ ही उनके शरीर में होने वाली फास्फोरस की कमी को भी दूर किया जा सकता है।

ये भी पढ़ें:
कम पैसे में उगायें हरा चारा, बढ़ेगा दूध, बनेगा कमाई का सहारा
इसके अलावा पशुओं में कैल्शियम और आयरन की आवश्यकता की पूर्ति करने से उनका शारीरिक विकास भी बहुत अच्छे से हो पाता है।

समशीतोष्ण जलवायु में पाए जाने वाला यह अजोला एक जलीय फर्न होता है।

अजोला की लोकप्रिय प्रजाति पिन्नाटा भारत से किसानों के द्वारा उगाई जाती है। यदि अजोला की विशेषताओं की बात करें तो यह पानी में बहुत ही तेजी से वृद्धि करते हैं और उनमें अच्छी गुणवत्ता वाले प्रोटीन होने की वजह से जानवर आसानी से पचा भी लेते है। अजोला में 25 से 30% प्रोटीन, 60 से 70 मिलीग्राम तक कैल्शियम और 100 ग्राम तक आयरन की मात्रा पाई जाती है।

कम उत्पादन लागत वाला वाला यह चारा पशुओं के लिए एक जैविक वर्धक का कार्य भी करता है।

एक किसान होने के नाते आप जानते ही होंगे, कि रिजका और नेपियर जैसा चारा भारतीय पशुओं को खिलाया जाता रहा है, लेकिन इनकी तुलना में अजोला पांच गुना तक अच्छी गुणवत्ता का प्रोटीन और दस गुना अधिक उत्पादन दे सकता है। अजोला चारा उत्पादन के लिए आपको किसी विशेषज्ञ की जरूरत नहीं होगी, बल्कि किसान खुद ही आसानी से घर पर ही इसको ऊगा सकते है।

ये भी पढ़ें:
गर्मियों में हरे चारे के अभाव में दुधारू पशुओं के लिए चारा

इसके लिए आपको क्षेत्र को समतल करना होगा और चारों ओर ईंट खड़ी करके एक दीवार बनाई जाती है।

उसके अंदर क्यारी बनाई जाती है जिससे पानी स्टोर किया जाता है और प्लांट को लगभग 2 मीटर गहरे गड्ढे में बनाकर शुरुआत की जा सकती है। इसके लिए किसी छायादार स्थान का चुनाव करना होगा और 100 किलोग्राम छनी हुई मिट्टी की परत बिछा देनी होगी, जोकि अजोला को पोषक तत्व प्रदान करने में सहायक होती है।

इसके बाद लगभग पन्द्रह लीटर पानी में पांच किलो गोबर का घोल बनाकर उस मिट्टी पर फैला देना होगा।

अपने प्लांट में आकार के अनुसार 500 लीटर पानी भर ले और इस क्यारी में तैयार मिश्रण पर, बाजार से खरीद कर 2 किलो ताजा अजोला को फैला देना चाहिए। इसके पश्चात 10 लीटर हल्के पानी को अच्छी तरीके से छिड़क देना होगा। इसके बाद 15 से 20 दिनों तक क्यारियों में अजोला की वर्द्धि होना शुरू हो जाएगी। इक्कीसवें दिन की शुरुआत से ही इसकी उत्पादकता को और तेज करने के लिए सुपरफ़ास्फेट और गोबर का घोल मिलाकर समय-समय पर क्यारी में डालना होगा। यदि आप अपने खेत से तैयार अजोला को अपनी मुर्गियों को खिलाते हैं, तो सिर्फ 30 से 35 ग्राम तक खिलाने से ही उनके शरीर के वजन एवं अंडा उत्पादन क्षमता में 20% तक की वृद्धि हो सकती है, एवं बकरियों को 200 ग्राम ताजा अजोला खिलाने से उनके दुग्ध उत्पादन में 30% की वृद्धि देखी गई है।

ये भी पढ़ें:
बकरी बैंक योजना ग्रामीण महिलाओं के लिये वरदान अजोला के उत्पादन के दौरान उसे संक्रमण से मुक्त रहना अनिवार्य हो जाता है, इसके लिए सीधी और पर्याप्त सूरज की रोशनी वाले स्थान को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। हालांकि किसी पेड़ के नीचे भी लगाया जा सकता है लेकिन ध्यान रहे कि वहां पर सूरज की रोशनी भी आनी चाहिए।

साथ ही अजोला उत्पादन के लिए 20 से 35 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान को उचित माना जाता है।

सही मात्रा में गोबर का घोल और उर्वरक डालने पर आपके खेत में उगने वाली अजोला की मात्रा को दोगुना किया जा सकता है। यदि आप स्वयं पशुपालन या मुर्गी पालन नहीं करते हैं, तो उत्पादन इकाई का एक सेंटर खोल कर, इस तैयार अजोला को बाजार में भी बेच सकते है। उत्तर प्रदेश, बिहार तथा झारखंड जैसे राज्यों में ऐसी उत्पादन इकाइयां काफी मुनाफा कमाती हुई देखी गई है और युवा किसान इकाइयों के स्थापन में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। किसान भाइयों को जानना होगा कि पशुओं के लिए एक आदर्श आहार के रूप में काम करने के अलावा, अजोला का इस्तेमाल भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में हरी खाद के रूप में भी किया जाता है। इसे आप 15 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से अपने खेत में फैला सकते हैं, तो आपके खेत की उत्पादकता आसानी से 20% तक बढ़ सकती है। लेकिन भारतीय किसान इसे खेत में फैलाने की तुलना में बाजार में बेचना ज्यादा पसंद करते हैं, क्योंकि वहां पर इसकी कीमत काफी ज्यादा मिलती है।

ये भी पढ़ें:
गाय के गोबर से किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए मोदी सरकार ने उठाया कदम
आशा करते हैं, घर में तैयार किया गया अजोला चारा भारतीय किसानों के पशुओं के साथ ही उनके खेत के लिए भी उपयोगी साबित होगा और हमारे द्वारा दी गई यह जानकारी उन्हें पूरी तरीके से पसंद आई होगी।

लोबिया की खेती: किसानों के साथ साथ दुधारू पशुओं के लिए भी वरदान

लोबिया की खेती: किसानों के साथ साथ दुधारू पशुओं के लिए भी वरदान

लोबिया को बहुत ही पोषक फसल माना जाता है। इसको पूरे भारत भर में उगाया जाता है। लोबिया के बहुआयामी उपयोग है। जैसे खाद्य, चारा, हरी खाद और सब्जी के रूप में होता है।

लोबिया मनुष्य के खाने का पौष्टिक तत्व है तथा पशुधन चारे का अच्छा स्रोत भी है| ये दुधारू पशुओं में दूध बढ़ाने का भी अच्छा जरिया बनता है तथा इसके खाने से पशु का दूध भी पौष्टिक होता है| 

इसके दाने में 22 से 24 प्रोटीन, 55 से 66 कार्बोहाईड्रेट, 0.08 से 0.11 कैल्शियम और 0.005 आयरन होता है| इसमे आवश्यक एमिनो एसिड जैसे लाइसिन, लियूसिन, फेनिलएलनिन भी पाया जाता है| 

यह भी पढ़ें: डेयरी पशुओं में हरे चारे का महत्व

लोबिया की खेती के लिए खेत की तैयारी:

जैसा की आमतौर पर सभी फसलों के लिए गोबर की बनी हुई खाद बहुत आवश्यक होती है उसी तरह से लोबिया की फसल के लिए भी गोबर की सड़ी खाद बहुत आवश्यक होती है. 

इसके खेत में बुवाई से पहले नाइट्रोजन की मात्रा 20 kg पर एकड़ के हिसाब से मिला देना चाहिए. गोबर की 20-25 टन मात्रा बुवाई से 1 माह पहले खेत में डाल दें। जिससे की खाद में जो भी खरपतवार हो वो उग जाये और नष्ट हो सके| 

खाद डालने के बाद इसमें हैरो से 2 बार जुताई कर दें तथा 1 बार कल्टीवेटर निकाल दें जिससे की मिटटी मिलाने के साथ साथ इसमें गहराई भी आ सके| 

मिटटी और उर्वरक:

इसको किसी भी तरह की मिटटी में उगाया जा सकता है. वैसे इसके लिए रेतीली और दोमट मिटटी उपयुक्त रहती है. जल निकासी की सामान्य व्यवस्था होनी चाहिए. खेत में पानी रुकना नहीं चाहिए. 

लोबिया एक दलहनी फसल है, इसलिए नत्रजन की 20 कि.ग्रा, फास्फोरस 60 किग्रा तथा पोटाष 50 किग्रा/हेक्टेयर खेत में अंतिम जुताई के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए तथा 20 किग्रा नत्रजन की मात्रा फसल में फूल आने पर प्रयोग करें। 

यह भी पढ़ें: नीलहरित शैवाल: खाद का बेहतर विकल्प

मौसम और बोने का समय:

मौसम की अगर हम बात करें तो इसके लिए गर्म और नमी वाला मौसम अच्छा रहता है. इसको फ़रवरी,-मार्च और जून,-जुलाई में उगाया जा सकता है. 

इसके लिए 20 से 30 डिग्री तक का तापमान उचित रहता जो की इसके बीज को अंकुरित होने में सहायता करता है. 17 डिग्री से कम के तापमान पर इसे उगाना संभव नहीं है. 

लोबिया की उन्नत प्रजातियां:

हमारे कृषि वैज्ञानिक लगातार अपनी फसलों में उन्नत किस्में लेन के लिए मेहनत करते रहते हैं. लोबिया के लिए भी कुछ अच्छी पैदावार वाली किस्में विकसित की हैं. लोबिया की कुछ उन्नत प्रजातियां हैं जो निचे दी गई हैं|

  1. पूसा कोमल: लोबिया की यह किस्म रोग प्रतिरोधक है. इसमें आसानी से रोग नहीं आता है. इस किस्म की बुवाई बसंत, ग्रीष्म और बारिश, तीनों मौसम में आसानी से की जा सकती है. इसकी फलियों का रंग हल्का हरा होता है. यह मोटा गुदेदार होता है, जो कि 20 से 22 सेमी लम्बा होता है. इस किस्म की बुवाई से प्रति हेक्टेयर 100 से 120 क्विंटल पैदावार मिल जाती है|
  2. पूसा बरसाती: जैसा की नाम से ही पता चलता है इसको बरसात के मौसम में यानि जुलाई के महीने में लगाना ज्यादा सही रहता है. इसकी फलियों का रंग हल्का हरा होता है, जो कि 26 से 28 सेमी लंबी होती है. खास बात है कि यह किस्म लगभग 45 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इससे प्रति हेक्टेयर लगभग 70 से 75 क्विंटल पैदावार मिल जाती है.
  3. अर्का गरिमा: अर्का गरिमा पौधे ऊँचे और लम्बे होते है तथा ये पशु चारे के लिए भी उपयुक्त होते हैं। फलियाँ हल्की हरी, लंबी, मोटी, गोल, माँसल और रेशे-रहित हैं। सब्जी बनाने के लिए उत्तम हैं। ताप और कम नमी के प्रति सहनशील है।
  4. पूसा फालगुनी: जैसा की नाम से विदित हो रहा है इसको फ़रवरी और मार्च के महीने में लगाया जाता है. इसका पौधा छोटा तथा झाड़ीनुमा किस्म के होते है| इसकी फली का रंग गहरा हरा होता है. इनकी लंबाई 10 से 20 सेमी होती है. खास बात है कि यह लगभग 60 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं. इससे प्रति हेक्टेयर लगभग 70 से 75 क्विंटल पैदावार मिल सकती है.
  5. पूसा दोफसली: किस्म को फ़रवरी से लेकर जुलाई, अगस्त तक लगाया जा सकता है, ये तीनों मौसम में लगाई जाती है. इसकी फली का रंग हल्का हरा पाया जाता है. यह लगभग 17 से 18 सेमी लंबी होती है. यह 45 से 50 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं. इससे प्रति हेक्टेयर 75 से 80 क्विंटल पैदावार मिल सकती है.
ठंड के दिनों में घटी दूध की आपूर्ति

ठंड के दिनों में घटी दूध की आपूर्ति

दूध के बाजार में इस बार अजीब उथल पुथल की स्थिति है। यह ओमेक्रोन के खतरे के चलते है या महंगे भूसे, दाने चारे के कारण या किसी और वजह से कह पाना आसान नहीं है लेकिन हालात अच्छे नहीं हैं। गुजरे कोरोनाकाल में दूध के कारोबार पर बेहद बुरा असर पड़ा। यह बात अलग है दूधिए और डेयरियों को किसी तरह की बंदिश में नहीं रखा गया लेकिन दूध से बनने वाले अनेक उत्पादों पर रोक से दूध की खपत बेहद घटी। चालू सीजन में बाजार में दूध की आवक करीब 25 फीसद कम है। दूध की आवक में कमी के चलते देश के कई कोआपरेटिव संघ एवं मितियां दूध के दाम बढ़ाने की दिशा में निर्णय कर चुके हैं। कुछने तो दाम बढ़ा भी दिए हैं। एक एक संघ रेट बढ़ाता है तो दूसरों को भी कीमत बढ़ानी पड़ती है। नवंबर माह में पिछले साल के मुकाबले इस बार दूध की कीमत दो से तीन रुपए लीटर ज्यादा हैं। 

15 रुपए किलो हुआ भूसा

सूखे चारे पर महंगाई की मार से पशुपालक आहत हैं। गेहूं का भूूसा 15 रुपए प्रति किलोग्राम तक पहुंच गया है। एक भैंस को दिन में तकरीबन 10 किलोग्राम सूखे भूसे की आवश्यकता होती है। सूखे चारे पर महंगाई की मार से किसान भी कराहने लगे हैं। इसके चलते पशुपालन में लगे लोगों ने भी अपने पशुओं की संख्या बढ़ाने के बजाय सीमित की हुई है। इसी का असर है कि ठंड के दिनों में भी बड़ी डेयरियों पर दूध की आवक कमजोर बीते सालों के मुकाबले कमजोर चल रही है। 

घाटे का सौदा है दूध बेचना

आईए 10 लीटर दूध की कीमत का आकलन करते हैं। 10 लीटर दूध देने वाली भैंस के लिए हर दिन 10 किलोग्राम भूसे की जरूरत होती है। इसकी कीमत 150 रुपए बैठती है। इसके अलावा एक किलोग्राम दाना शरीर के मैनेजमेंट के लिए जरूरी होता है। इसकी कीमत भी करीब 25 रुपए बैठती है। तकनीबन 300 ग्राम दाना प्रति लीटर दूध पर देना होता है। इस हिसाब से 10 लीटर दूध वाले पशु को करीब तीन किलोग्राम दाना, खल, चुनी चोकर आदि चाहिए। यह भी 250 रुपए से कम नहीं बैठता। 

इसके अलावा हरा चारा, नमक, गुड़ और कैल्सियम की पूर्ति के लिए  खडिया जैसे सस्ते उत्पादों की कीमत जोड़ें तो दुग्ध उत्पादन से पशुपलकों को बिल्कुल भी आय नहीं मिल रही है। गांवों में दूध 40 रुपए लीटर बिक रहा है। यानी 10 लीटर दूध 400 का होता है और पशु की खुराब 500 तक पहुंच रही है। उक्त सभी उत्पादों की कीमत जोड़ें तो 10 लीटर दूध देने वाले पशु से आमदनी के बजाय नुकसान हो रहा है। पशु पालक के श्रम को जोड़ दिया जाए को घाटे की भरपाई असंभव है। किसान दूध से मुनाफा लेने के लिए पशु की खुराक में कटौती करते हैं लेकिन इसका असर उसकी प्रजनन क्षमता एवं स्वास्थ्य पर पड़ता है। इसके चलते पशु समय से गर्मी पर नहीं आता। इसके चलते पशु पालक को पशुओं का कई माह बगैर दूध के भी चारा दाना देना होता है। इस स्थिति में तो पशुपालक की कमर टूट जाती है।

ये भी पढ़े: ठण्ड में दुधारू पशुओं की देखभाल कैसे करें

दूध नहीं घी बनाएं किसान

देश के अधिकांश ग्रामीण अंचल में अधिकतर पशु पालक 40 रुपए लीटर ही दूध बेच रहे हैं। भैंस के दूध में औसतन 6.5 प्रतिशत फैट होता है। इस हिसाब से 10 लीटर दूध में करीब 650 ग्राम घी बनता है। गांवों में भी 800 से 1000 रुपए प्रति किलोग्राम शुद्ध घी आसानी से बिक जाता है। घी बनाते समय मिलने वाली मठा हमारे पशुपालक परिवार के पोषण में वृद्धि करती है। इस लिहाज से दूध बेचने से अच्छा तो घी बनाना है। दूध बेचने में खरीददार दूधियों द्वारा भी पशु पालकों के पैसे को रोक कर रखा जाता है। उन्हें समय पर पूरा पैसा भी नहीं मिलता। इसके अलावा ठंड के दिनों में जो दूधिया दूध खरीदता है उसे गर्मियों में दूध देना पशु पालक की मजबूरी बना जाता है।

पशुओं को साइलेज चारा खिलाने से दूध देने की क्षमता बढ़ेगी

पशुओं को साइलेज चारा खिलाने से दूध देने की क्षमता बढ़ेगी

गाय-भैंस का दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए आप साइलेज चारे को एक बार अवश्य खिलाएं। परंतु, इसके लिए आपको नीचे लेख में प्रदान की गई जानकारियों का ध्यान रखना होगा। पशुओं से हर दिन समुचित मात्रा में दूध पाने के लिए उन्हें सही ढ़ंग से चारा खिलाना बेहद आवश्यक होता है। इसके लिए किसान भाई बाजार में विभिन्न प्रकार के उत्पादों को खरीदकर लाते हैं एवं अपने पशुओं को खिलाते हैं। यदि देखा जाए तो इस कार्य के लिए उन्हें ज्यादा धन खर्च करना होता है। इतना कुछ करने के पश्चात किसानों को पशुओं से ज्यादा मात्रा में दूध का उत्पादन नहीं मिल पाता है।

 यदि आप भी अपने पशुओं के कम दूध देने से निराश हो गए हैं, तो घबराने की कोई जरूरत नहीं है। आज हम आपके लिए ऐसा चारा लेकर आए हैं, जिसको समुचित मात्रा में खिलाने से पशुओं की दूध देने की क्षमता प्रति दिन बढ़ेगी। दरअसल, हम साइलेज चारे की बात कर रहे हैं। जानकारी के लिए बतादें, कि यह चारा मवेशियों के अंदर पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के साथ ही दूध देने की क्षमता को भी बढ़ाता है। 

कौन से मवेशी को कितना चारा खिलाना चाहिए

ऐसे में आपके दिमाग में आ रहा होगा कि क्या पशुओं को यह साइलेज चारा भरपूर मात्रा में खिलाएंगे तो अच्छी पैदावार मिलेगी। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ऐसा करना सही नहीं है। इससे आपके मवेशियों के स्वास्थ्य पर गलत प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए ध्यान रहे कि जिस किसी भी दुधारू पशु का औसतन वजन 550 किलोग्राम तक हो। उस पशु को साइलेज चारा केवल 25 किलोग्राम की मात्रा तक ही खिलाना चाहिए। वैसे तो यह चारा हर एक तरह के पशुओं को खिलाया जा सकता है। परंतु, छोटे और कमजोर मवेशियों के इस चारे के एक हिस्से में सूखा चारा मिलाकर देना चाहिए। 

ये भी पढ़े: भारतीय स्टेट बैंक दुधारू पशु खरीदने के लिए किसानों को देगा लोन

साइलेज चारे में कितने प्रतिशत पोषण की मात्रा होती है

जानकारी के अनुसार, साइलेज चारे में 85 से लेकर 90 प्रतिशत तक हरे चारे के पोषक तत्व विघमान होते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें विभिन्न प्रकार के पोषण पाए जाते हैं, जो पशुओं के लिए काफी फायदेमंद होते हैं। 

साइलेज तैयार करने के लिए इन उत्पादों का उपयोग

अगर आप अपने घर में इस चारे को बनाना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको दाने वाली फसलें जैसे कि ज्वार, जौ, बाजरा, मक्का आदि की आवश्यकता पड़ेगी। इसमें पशुओं की सेहत के लिए कार्बोहाइड्रेट अच्छी मात्रा में होते हैं। इसे तैयार करने के लिए आपको साफ स्थान का चयन करना पड़ेगा। साथ ही, साइलेज बनाने के लिए गड्ढे ऊंचे स्थान पर बनाएं, जिससे बारिश का पानी बेहतर ढ़ंग से निकल सके। 

गाय-भैंस कितना दूध प्रदान करती हैं

अगर आप नियमित मात्रा में अपने पशु को साइलेज चारे का सेवन करने के लिए देते हैं, तो आप अपने पशु मतलब कि गाय-भैंस से प्रति दिन बाल्टी भरकर दूध की मात्रा प्राप्त कर सकते हैं। अथवा फिर इससे भी कहीं ज्यादा दूध प्राप्त किया जा सकता है।

राजस्थान सरकार गाय पालने पर देगी 90 प्रतिशत अनुदान

राजस्थान सरकार गाय पालने पर देगी 90 प्रतिशत अनुदान

राजस्थान की गेहलोत सरकार ने गाय के गोबर को 2 रुपये प्रति किलो की कीमत से खरीदने का ऐलान की है। राज्य सरकार गौ पालन और गौ संरक्षण के लिए पूर्व से भी कामधेनु योजना को चलाया जा रहा है, जिसके लिए सरकार डेयरी चालकों को 90 फीसद तक का अनुदान प्रदान करती है। भारत में जहां एक तरफ गाय गौ मूत्र एवं गौ गोबर को लेकर आप विभिन्न प्रकार की समाचार को सुनते ही आए हैं। परंतु, आज हम आपको इस लेख जिस समाचार को बताने जा रहे हैं, वह आपके लाभ की बात है। दरअसल फिलहाल राजस्थान सरकार गाय के गोबर को 2 रुपये/किलो की कीमत से खरीदेगी। राज्य के मुख्य मंत्री अशोक गहलोत ने यह जानकारी पुरानी पेंशन योजना की शुरुआत करने की चल रही मीटिंग के चलते प्रदान की। राजस्थान सरकार ने यह ऐलान किसानों को आर्थिक एवं सामाजिक तौर पर सबल बनाने एवं गाय के गोबर को बेहतर ढंग से प्रयोग में लाने की दिशा में एक नया बताया है।

ये योजनाऐं गौ पालन के लिए चल रही हैं

राजस्थान सरकार गाय पालने के लिए तथा उनका संरक्षण करने हेतु 90 प्रतिशत तक की अनुदान योजना को भी चला रही है। राज्य सरकार के मुताबिक, इससे राज्य में दुग्ध की पैदावार की मात्रा तो बढ़ेगी। इसके साथ ही गौ वंशों के संरक्षण के लिए लोगों को प्रोत्साहित भी किया जा सकेगा। सरकार इस योजना के जरिए ज्यादा दूध देने वाली गायों की प्रजनन दर को बढ़ाएगी। साथ ही, इनकी खरीद पर नियमावली के मुताबिक किसानों को 90 फीसद तक का अनुदान भी प्रदान करेगी। सरकार की इस योजना का फायदा सिर्फ डेयरी धारकों के लिए ही है। क्योंकि, यह अनुदान योजना 25 गायों के पालन पर दी जाती है, जिसके लिए प्रदेश सरकार भिन्न-भिन्न तरीकों के जरिए से लागत का 90 प्रतिशत तक की अनुदान के रूप में प्रदान करेगी।

ये भी पढ़ें:
बन्नी नस्ल की भैंस देती है 15 लीटर दूध, जानिए इसके बारे में


गोबर 2 रुपए किलो के हिसाब

राजस्थान सरकार ने गौ संरक्षण के साथ-साथ गाय के गोबर को 2 रुपये प्रति किलो की कीमत से खरीदेगी। राज्य सरकार इससे पूर्व में भी गायों के संरक्षण एवं लोगों के द्वारा इसके पालन के लिए विभिन्न योजनाओं को संचालित कर रही है। इन योजनाओं में कामधेनु योजना, कामधेनु पशु बीमा योजना और गाय योजना इत्यादि हैं। राजस्थान राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने किसानों को इस दिशा में और भी ज्यादा प्रोत्साहित करने के लिए गाय के गोबर को 2 रुपये प्रति किलो की कीमत से खरीदने का ऐलान किया है।

बकरी पालन और नवजात मेमने की देखभाल में रखे यह सावधानियां (goat rearing and newborn lamb care) in Hindi

बकरी पालन और नवजात मेमने की देखभाल में रखे यह सावधानियां (goat rearing and newborn lamb care) in Hindi

पशुपालन की बात करें, तो हम बकरियों को कैसे भूल सकते हैं। इन बकरियों का इस्तेमाल किसान प्राचीन काल से ही करते आ रहे हैं। क्योंकि इन से प्राप्त गोबर से बनी जैविक खाद कृषि उत्पादन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। बकरियों का मुख्य स्त्रोत वैसे तो दूध देना होता है। परंतु या किसानों के लिए बहुत ही लाभदायक होती हैं। किसान खेती तथा पशुपालन कर अपना आय निर्यात करते हैं। यह कार्य किसान प्राचीन काल से करते चले आ रहे हैं। बकरियों का कृषि उपज में बहुत महत्वपूर्ण योगदान है कृषि के कई कार्यों में इनका इस्तेमाल किया जाता है। 

कभी-कभी  किसानों को अपने खेत द्वारा फायदा नहीं होता तो वह पशुपालन की ओर बढ़ते है। कुछ ही वक्त में किसान पशुपालन से ज्यादा लाभ  उठा लेता है। बकरी पालन व नवजात मेमने की देखभाल रखे कुछ सावधानियां । यदि आप भी पशुपालन द्वारा धन की प्राप्ति करना चाहते हैं। तो यह उच्च विचार है क्योंकि आप बकरी पालन में बहुत ज्यादा फायदा उठा सकते हैं। अब आप यह सोच रहे होंगे, कि बकरी पालन में इतना फायदा क्यों होता है, क्योंकि या मार्केट में उचित दाम पर बिकते हैं। जिससे आपको अच्छी धन की प्राप्ति होती है।बकरियों को बाजार में बेचने में कोई समस्या नहीं होती। किसान के लगाए हुए मूल्य पर यह बकरियां मार्केट में बिका करती हैं। 

बकरियों की भारतीय नस्लें (Goat Breeds in India)

किसान द्वारा पशुपालन की नस्लों को निम्नलिखित भागों में बांटा गया हैं। पूर्ण रूप से भारत में लगभग 21 मुख्य बकरियों की नस्लें पाई जाती है। 

बकरियों की दुधारू नस्लें (Milch Breeds of Goats) in Hindi

बकरियों की नस्ल में दुधारू नस्लें कुछ इस प्रकार की होती हैं जैसे: बरबरी ,बीटल ,सूरती, जखराना, जमुनापारी आदि। 

बकरी पालने करने के तरीके:  ( Methods of Raising Goats:) in Hindi

bakri palan karne ka tarika


ये भी पढ़े: कम पैसे में उगायें हरा चारा, बढ़ेगा दूध, बनेगा कमाई का सहारा 

 बकरियों को पालने के लिए आपको बहुत बड़ी जगह की आवश्यकता नहीं होती।आप साधारण स्थान पर भी उनका पालन पोषण कर सकते हैं। उन्हें आप अपने घर के किसी भी हिस्से में आसानी से रख सकते हैं।वह भी काफी बड़ी मात्रा में , अगर आप भी बकरी पालने का काम शुरू करना चाहते हैं। तो आपको बड़ी जगह लेने की जरूरत नही पड़ेगी। बकरी पालन का मुख्य क्षेत्र बुंदेलखंड है। जहां इन बकरियों का पालन पोषण किया जाता है। या बकरियां खेतों में घूमते फिरते, चारा चर अपना पेट भर लेती हैं। बकरियों के लिए अलग से चारों की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती है।

बकरियों की प्रजनन क्षमता: ( Fertility of Goats:)

बकरियों की प्रजनन क्षमता बहुत होती हैं ,यह सिर्फ करीबन डेढ़ साल की उम्र में ही बच्चा प्रजनन करने की क्षमता रखती है। 6 से 7 महीनों के अंदर उनका जन्म हो जाता है। एक बकरियां एक बार में तीन से चार या कभी-कभी उससे अधिक बच्चे भी पैदा करती हैं। इनकी वृद्धि का यह भी मुख्य कारण है। कि यह 1 साल में दो बार प्रजनन क्षमता की शक्ति रखती हैं।जिससे इनकी संख्या में काफी वृद्धि हो जाती है। किसान या बकरियों के मालिक इनको लगभग 1 वर्ष की उम्र में या फिर उससे कम समय से ही बेचना शुरू कर देते हैं।

बकरियों को पालते समय कुछ सावधानियां बरतें:( Some Precautions to Be Taken While Raising Goats) in Hindi

Bakri Palan

  • जब बकरियों के बच्चे छोटे होते हैं, तो उनको बहुत सावधानी के साथ रखना पड़ता है क्योंकि कुछ जंगली जानवर उनको नोच, दबाकर खा लेते हैं।
  • कम आबादी वाले क्षेत्र में जंगल बहुत ही पास होता है जिसकी वजह से जंगली जानवर बकरियों को खाने के लिए उनकी महक सूंघकर आते हैं।
  • बकरियों को हरे चारे बहुत पसंद होते हैं जिसकी वजह से वह खेत की ओर भागते हैं, इसीलिए खेत को सुरक्षित रखने के लिए बकरियों से सावधानी बरखनी चाहिए।
  • बकरियों के दूध में बहुत तरह के पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं ,परंतु दूध में आने वाली महक लोगों को अच्छी नहीं लगती हैं, जिसकी वजह से बकरियों के दूध नहीं बिकते।
  • बारिश के मौसम में आपको इनकी देख रेख बहुत अच्छे ढंग से करनी होती है क्योंकि यह गीले स्थान पर बैठना पसंद नहीं करती हैं।
  • गीली जगह पर बैठने से बकरियों को कई तरह के रोग हो जाते हैं।
  • बकरियों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए इनको प्रतिदिन जंगलों या खेतों में चराना बहुत ही आवश्यक होता है।
  • बकरी पालने के लिए आपको किसी तकनीकी या किसी भी अन्य ज्ञान की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती है। यह व्यवसाय काफी तेजी से बढ़ रहा है शहरों से कई लोग बकरी खरीदने के लिए गांव की ओर रुख करते हैं।
  • किसी भी तरह की आपत्ति या जरूरत आने पर आप उचित दामों में बकरी या बकरे को बेचकर धन की प्राप्ति कर सकते हैं यह व्यवसाय आय के साधनों को बढ़ाता है।

ये भी पढ़े: गजब का कारोबार ब्रायलर मुर्गी पालन

गाभिन बकरियां ( Pregnant Goats) in Hindi

किसान गाभिन बकरियों की निम्नलिखित तरीकों से जांच करते हैं वह कुछ इस प्रकार है:

जब बकरियां गाभिन होती हैं तो उनको और उचित पोषक तत्व की जरूरत पड़ती है।ताकि उनको अपने शिशु को जन्म देते हुए कोई तरह  परेशानी ना हो। गाभिन बकरियों को अतिरिक्त पोषण के साथ कीड़ा में लिप्त मेमनों से सुरक्षा  का उचित ख्याल रखना होता है। बकरियां अतिरिक्त 144 या 152 दिन के अंदर अपना गर्भ धारण कर लेती हैं। पौष्टिक तत्व बकरियों की प्रजनन क्षमता को बहुत बढ़ाता है। जिससे या अधिक संतान पैदा कर सके। पौष्टिक तत्व की बिना पर यह जुड़वा बच्चे देने में भी सक्षम होती हैं।

बकरियों के प्रसव से जुड़ी कुछ सावधानियां:(Some Precautions Related to The Delivery of Goats) in Hindi

जब बकरियां प्रसव के करीब रहे, तो उनकी अच्छे से देखभाल करना आवश्यक होता है। किसान को उनके प्रसव के टाइम पर पूर्ण निगरानी रखनी चाहिए। जब प्रसव एकदम करीब आ जाए तो उसकी तैयारी के लिए किसानों के पास दूध की छोटी बोतल का होना जरूरी है ताकि  वह नवजात शिशु को दूध पिला सके। बकरियों के बच्चों के लिए अच्छा टिंक्चर आयोडीन तथा प्रतिजैविक दवाइयों का देना आवश्यक है। यदि बकरियां किसी भी प्रकार से जन्म देने के लिए तैयार ना हो तो पशु चिकित्सालय से संपर्क करें।

ये भी पढ़े: कोरोना मरीजों पर कितना कारगर होगा बकरी का दूध

बकरियों के नवजात मेमने की देखभाल:(Newborn Lamb Care of Goats) in Hindi:

बकरी के नवजात मेमने की देखभालmemne ki dekhbhal

बकरियों के बच्चे जैसे पैदा हो उनका मुंह ,नाक  साफ कपड़े से अच्छी तरह पोछे।

  • उनकी नाभि से कुछ दूरी पर नाल कांटे और साफ धागे से टिंचर लगा दे।
  • नवजात शिशु अच्छे से चल सके। इसको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इसलिए उनकी की खुर साफ करते हुए तोड़ कर अलग कर दें। जिससे बच्चा आसानी से खड़ा हो सके।
  • नवजात बकरियों के शिशु को मां के पास ही रखें।ताकि बकरियां उन्हें चाट कर उनके बदन में गर्मी पैदा कर सके।
  • पोटाश के पानियों से बकरियों के थन स्थल को अच्छे से साफ करें।
  • नवजात शिशु के लिए दूध बहुत ही उपयोगी होता है। जितना जल्दी हो सके वह बकरी का दूध पी ले। जिससे विभिन्न प्रकार की बीमारियों से नवजात शिशु की रक्षा हो सके।
  • 15 दिन के बाद बकरियों के शिशु को नरम हरा चारा देने की शुरुआत कर दें। इन में बढ़ोतरी करते रहे। जिससे बच्चा अच्छे से चलने लगे और फुर्तीला बना सके।
  • 3 महीने के बाद बकरियों के बच्चों को चरने के लिए खेतों में लेकर जाएं। किसी खुले स्थान पर छोड़ दें ताकि वह चर सके।
  • बकरियों के नवजात शिशु का वजन तीन महीनों पर करते रहे। जिससे उनके वजन का अंदाजा हो सके। ऐसा करने से वजन की बढ़ोतरी तथा घटने दोनों की जानकारी हो जाती हैं।
  • बकरियों के नवजात शिशु को कृमिनाशक दवाई पिलायें साथ ही साथ उनका टीकाकरण भी करें, तथा अपने पास के पशु चिकित्सा केंद्र भी जाते रहे।

ये भी पढ़े: मुर्गी पालन उभरता हुआ कारोबार 

हमारी इस पोस्ट में बकरियों से जुड़ी विभिन्न प्रकार की जानकारी दी हुई है। जिससे आप बकरियों की पूर्ण रूप से देखभाल कर सकते हैं। यदि आप हमारी दी गई जानकारी से संतुष्ट हैं। तो आप इस आर्टिकल को Social Media और अपने दोस्तों के साथ ज्यादा से ज्यादा शेयर(Share) करें धन्यवाद।