वैज्ञानिक विधि से करें बेहतर पौधशाला प्रबंधन

बेहतर पौधशाला प्रबंधन के फायदे और उत्पादन से बढ़ेगी आय

किसान भाइयों को यह बात पता ही है कि किसी भी फसल के बेहतर उत्पादन के लिए एक स्वस्थ पौध का होना अनिवार्य है। केवल बेहतर बीज से तैयार हुई स्वस्थ और गुणकारी पौध समय पर गुणवत्ता युक्त फसल उत्पादन कर सकती है। कुछ सब्जी जैसे कि
बैंगन, मिर्च, टमाटर तथा पत्तागोभी जैसी फसलों में स्वस्थ पौधरोपण के बिना किसी भी हालत में बेहतर उत्पादन नहीं हो सकता है और किसी भी स्वस्थ पौध को तैयार करने के लिए एक बेहतर पौधशाला (nursery; paudhshala) की आवश्यकता होती है।

कैसे तैयार करें बेहतर पौधशाला ?

कृषि क्षेत्र में काम कर रहे कृषि वैज्ञानिक समय-समय पर पौधशाला के बेहतर प्रबंधन के लिए एडवाइजरी जारी करते हैं। पौधशाला के क्षेत्र की भूमि को हमेशा मुलायम और आसानी से पानी सोखने के लायक बनाया जाना चाहिए। नई तकनीकों का इस्तेमाल करने वाले किसान भाई दोमट मिट्टी का इस्तेमाल कर फसल पर पड़ने वाले अम्लीयता और क्षारीयता के प्रभाव से होने वाले नुकसान को कम करने में भी सफल हुए हैं। दोमट मिट्टी के प्रयोग से मृदा में जल धारण की क्षमता बढ़ने के साथ ही जैविक कार्बन की मात्रा भी बढ़ती है।

कैसे करें बेहतर शोधन मृदा ?

वर्तमान में पौधशाला में इस्तेमाल की जाने वाली मृदा को बेहतर उत्पादन और रोग प्रतिरोधक बनाने के लिए 'मृदा सौरीकरण विधि' (मृदा सूर्यीकरण; Soil Solarization; सॉयल सोलराइजेशन) का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस विधि में पौधशाला की मृदा को सूर्य के प्रकाश की मदद से बेहतर उपज वाली बनाया जाता है। सबसे पहले पौध उगाने के लिए काम में आने वाली मिट्टी की बड़ी-बड़ी क्यारियां बनाकर, जुताई करने के बाद सीमित मात्रा में सिंचाई करते हुए, मृदा की नमी को बरकरार रखने से बेहतर उपज प्राप्त होती है।


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पॉलिथीन की चादर से ढक कर मिट्टी को दबा कर अंदर की हवा और नमी को ट्रैप करके करके रखा जाना चाहिए, इस विधि की बेहतर सफलता के लिए पॉलिथीन की परत को अगले 7 से 10 सप्ताह तक वैसे ही लगा रहने देना चाहिए। अधिक समय तक पॉलिथीन लगी रहने से उसके अंदर के क्षेत्र में स्थित मृदा का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, जिससे मृदा में उपलब्ध कई हानिकारक बैक्टीरिया स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं और पौधशाला को भविष्य में होने वाले रोगों से आसानी से बचाया जा सकता है। इसके अलावा दक्षिणी भारत के राज्य और तटीय क्षेत्रों में 'जैविक विधि' की मदद से भी मृदा शोधन किया जाता है। इस विधि का इस्तेमाल मुख्यतः मृदा में उगने वाली फसल में होने वाले आर्द्र-गलन रोग से बचाने के लिए किया जाता है। इस विधि में 'ट्राइकोडरमा' की अलग-अलग प्रजातियों का बीज के बेहतर उपचार करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। कंपोस्ट और उचित कार्बनिक खाद की मात्रा वाले जैविक पदार्थों का उपयोग मृदा के शोधन को और बेहतर बना देता है। वर्तमान में कई किसान भाई जैव पदार्थों का इस्तेमाल भी करते हैं, ऐसे पदार्थों के प्रयोग से पहले ध्यान रखना चाहिए कि उस पदार्थ में जीवित और सक्रिय बीजाणु पर्याप्त मात्रा में होने चाहिए। जैविक पदार्थों के प्रयोग के बाद पौधशाला को ऊपर से ढक देना चाहिए क्योंकि मृदा को बारिश एवं धूप से बचाने की आवश्यकता होती है। जैविक विधि का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें किसी भी तरह के रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, इसलिए किसानों की लागत में भी कमी देखने को मिलती है।


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इसके अलावा 'रासायनिक विधि' की मदद से भी मृदा शोधन किया जाता है, जिसमें फार्मएल्डिहाइड और फॉर्मलीन जैसे रसायनिक उर्वरकों का एक घोल तैयार किया जाता है, जिसे समय-समय पर मृदा के ऊपर अच्छी तरह छिड़का जाता है। इस विधि में भी पॉलिथीन की चादर का इस्तेमाल करके वाष्पीकरण और नमी को ट्रैप किया जाता है। [caption id="attachment_11392" align="alignnone" width="600"]एक पौधशाला का दृष्य एक पौधशाला का दृष्य  (Source-Wiki; Author-NB flickr)[/caption]

पौधशाला प्रबंधन से किसानों को होने वाले लाभ :

खुले खेत की तुलना में पौधशाला में किसी भी फसल की पौध जल्दी तैयार होती है और उसकी गुणवत्ता बेहतर होने के साथ ही उपज भी अधिक प्राप्त होने की संभावना होती है। इसके अलावा पौधशाला में फसल उगाना आर्थिक रूप से कम खर्चीला होता है, इससे किसानों को होने वाला मुनाफा अधिक हो सकता है। पौधशाला प्रबंधन का एक और फायदा यह भी है कि इसमें बीज की बुवाई करने से लेकर अंकुरण तक पौधे के विकास के लिए आवश्यक जलवायु और तापमान को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है, इससे फसल में होने वाले रोगों से भी बचा जा सकता है। पौधशाला की मदद से घर पर ही पौध तैयार करने से भूमि की जुताई में होने वाले खर्चे को कम किया जा सकता है, साथ ही श्रम पर होने वाला खर्चा भी बचाया जा सकता है। इसीलिए कृषि वैज्ञानिकों की राय में छोटे और सीमांत किसानों को खुले खेत की तुलना में पौधशाला विधि की मदद से ही फसल उत्पादन करना चाहिए। तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के क्षेत्रों में पौधशाला विधि से खेती करने वाले किसानों की राय में उन्हें पूरी फसल से होने वाले मुनाफे से भी ज्यादा फायदा केवल पौधशाला में तैयार नर्सरी से ही हो जाता है।


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कई सब्जी की फसलों के बेहतर उत्पादन के लिए कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा तैयार संकर किस्म के बीज बाजार में काफी महंगे बिकते हैं, इसलिए पौधशाला में ही नर्सरी की मदद से बुवाई कर बीजों को भी बचाया जा सकता है। पौधशाला प्रणाली में किसानों को किसी भी प्रकार के बीजों को चुनने की स्वतंत्रता होती है, क्योंकि इस विधि में बीज उपचार के माध्यम से सस्ते बीजों को भी बेहतर उत्पादन लायक बनाया जा सकता है। रासायनिक उर्वरकों का ज्ञान रखने वाले कई किसान भाई फफूंद नाशक और कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल कर बीजों का बेहतर उपचार कर नर्सरी से होने वाली उपज को बढ़ाने में सफल हुए हैं। आशा करते हैं हमारे किसान भाइयों को पौधशाला प्रणाली की मदद से क्यारियां बनाने और बेहतर उपज वाली मृदा और बीज उपचार के बारे में सम्पूर्ण जानकारी मिल गई होगी और Merikheti.com द्वारा उपलब्ध करवाई गई इस जानकारी से, आप भी भविष्य में वैज्ञानिकों के द्वारा बताई गई गुणवत्ता युक्त सब्जी उत्पादन की बेहतर तकनीक का इस्तेमाल कर अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे।