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फर्टिलाइजर

अधिक पैदावार के लिए करें मृदा सुधार

अधिक पैदावार के लिए करें मृदा सुधार

विनोद कुमार शर्मा, रविंद्र कुमार एवं कपिल आत्माराम भारत में कृषि प्रगति का श्रेय किसान एवं वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत के अलावा उन्नत किस्म उर्वरकों एवं सिंचित क्षेत्र को जाता है. 

इसमें अकेले उर्वरकों का खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि के लिए 50 परसेंट योगदान माना जाता है. उल्लेखनीय है कि फसलों द्वारा उपयोग की जाने वाली पोषक तत्वों की मात्रा और आपूर्ति में बहुत बड़ा अंतर है. 

फसलें कम उर्वरक लेती हैंं, किसान ज्यादा डालते हैं जिसका दुष्प्रभाव जमीन की उर्वरा शक्ति पर लगातार पड़ रहा है. देश के किसान उर्वरकों के उपयोग में न तो वैज्ञानिकों की संस्तुति का ध्यान रखते हैं ना अपने ज्ञान विशेष का। 

असंतुलित उर्वरकों के उपयोग से उन्नत व पौधों को हर तत्व की पूरी मात्रा मिल पाती है और ना ही उत्पादन ठीक होता है। इसके अलावा किसानों की लागत और बढ़ जाती है। 

जरूरत इस बात की है कि किसान संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करें ताकि उत्पादन अच्छा और गुणवत्ता युक्त हो एवं मृदा स्वास्थ्य ठीक रहे।

उपज में इजाफा ना होने के कारण

improve soil quality

  • मृदा में मौजूद पोषक तत्वों की सही जानकारी का अभाव रहता है। 
  • किस फसल के लिए कौन सा पोषक तत्व जरूरी है इसका ज्ञान ना होना। 
  • मुख्य एवं क्षमा सूक्ष्म पोषक तत्वों के विषय में जानकारी ना होना। 
  • उर्वरकों के उपयोग की विधि एवं समय कर सही निर्धारण न होना। 
  • सिंचाई जल का प्रबंधन ठीक ना होना। 
  • फसलों में कीट एवं खरपतवार प्रबंधन समय से ना होना।
  • लगातार एक ही फसल चक्र अपनाना। 
  • कार्बनिक खाद का उपयोग न करने से रासायनिक खादों से भी उपज में ठीक वृद्धि ना होना।

मृदा परीक्षण क्यों जरूरी है

यदि फसल उगाने की तकनीक के साथ उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर किया जाए तो दोहरा लाभ होता है। 

किसानों को गैर जरूरी उर्वरकों पर होने वाला खर्च नहीं करना होता इसके अलावा संतुलित उर्वरक फसल को मिलने के कारण उत्पादन अच्छा और गुणवत्ता युक्त होता है। संतुलित उर्वरक प्रयोग से मिट्टी की भौतिक दशा यानी सेहत ठीक रहती है।

फसलों के लिए उर्वरकों की वैज्ञानिक संस्तुति

इस विधि को विकसित करने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा दशकों पहले देश के विभिन्न भागों और राज्यों एवं मिट्टी की विभिन्न दशाओं में नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश उर्वरक की अलग-अलग मात्रा तथा उनके संयोजन के साथ विभिन्न फसलों पर प्रयोग किए गए। 

इन प्रयोगों के फसलों की उपज पर होने वाले प्रभावों व आर्थिक पहलुओं का मूल्यांकन करने के बाद विभिन्न फसलों के लिए सामान्य संस्तुति यां  विकसित की गईं। कुछ प्रमुख फसलों की सामान्य संस्तुतियां प्रस्तुत हैं।

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फसलें/उर्वरक तत्वों की मात्रा किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

नाइट्रोजन फास्फोरस/ पोटाश  धान 120 60 40 गेहूं  120 60 40 मक्का  120 60 40 बाजरा  80 40 40 सरसों    80 40 80 अरहर  25 60 × चना  25 50 × मूग  25 50 × उर्द 25 50 ×

वैज्ञानिक सुझाव भी कारगर नहीं

इस विधि का मुख्य जोश लिया है की इसमें मिट्टी की उर्वरा शक्ति का ध्यान नहीं रखा जाता। खेतों की उर्वरा शक्ति अलग-अलग होती है लेकिन बिना जांच के हमें एक समान ही खाद लगाना पड़ता है। 

किसी खेत में किसी एक तत्व की मात्रा पहले से ही मौजूद होती है लेकिन बगैर जांच के हम उसे और डाल देते हैं। उपज पर इसका अनुकूल प्रभाव नहीं पड़ता।

पोषक तत्वों की कमी के लक्षण

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  1. नाइट्रोजन- पुरानी पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है। अधिक कमी होने पर पत्तियां बोरी होकर सूख जाती हैैं
  2. फास्फोरस-पत्तियों एवं तनाव पर लाल लिया बैगनी रंग आ जाता है। जड़ों के फैलाव में कमी हो जाती है। 
  3. पोटेशियम- पुरानी पत्तियों के किनारे पीले पड़ जाते हैं। पत्तियां बाद में भंवरी झुलसी हुई लगने लगती हैं। 
  4. सल्फर- नई पत्तियों का रंग हल्का हरा एवं पीला पड़ने लगता है दलहनी फसलों में गांठें कब बनती हैं। 
  5. कैल्शियम-नई पत्तियां पीली अथवा गहरी हो जाती हैं। पत्तियों का आकार सिकुड़ जाता है। 
  6. मैग्नीशियम पुरानी पत्तियों की नसें हरी रहती हैं लेकिन उनके बीच का स्थान पीला पड़ जाता है। पत्तियां छोटी और सख्त हो जाते हैं। 
  7. जिंक-पुरानी पत्तियों पर हल्के पीले रंग के धब्बे देखने लगते हैं। शिरा के दोनों और रंगहीन पट्टी जिंक की कमी के लक्षण है। 
  8. आयरन-नई पत्तियों की शिराओं के बीच का भाग पीला हो जाता है। अधिक कमी पर पत्तियां हल्की सफ़ेद हो जाती हैैं। ंं ९-कॉपर-पत्तियों के शिराओं की चोटी-छोटी एवं मुड़ी हुई हल्की हरी पीली हो जाती है। 
  9. मैग्नीज-की कमी होने पर नई पत्तियों की शिराएं भूरे रंग की तथा पत्तियां पीली से भूरे रंग में बदल जाती हैं। ११-बोरान-नई पत्तियां गुच्छों का रूप ले लेती हैं। डंठल, तना एवं फल फटने लगते हैं। 
  10. मालिब्डेनम-पत्तियों के किनारे झुलस या मुड जाते हैं या कटोरी का आकार ले सकते हैं।

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क्या है बायो फर्टिलाइजर

बायो फर्टिलाइजर जमीन में मौजूद पढ़े अतिरिक्त खादों को घुलनशील बनाकर पौधों को पहुंचाने में मददगार होता है।

नत्रजन तत्व की पूर्ति के लिए

राइजोबियम कल्चर-इसका उपयोग दलहनी फसलों के लिए किया जाता है । 1 हेक्टेयर क्षेत्र के लिए 200 ग्राम के 3 पैकेट राइजोबियम लेकर बीज को उपचारित करके बुवाई करें। 

एजेक्वेक्टर एवं एजोस्पाइरिलम कल्चर-बिना दाल वाली सभी फसलों के लिए निम्नानुसार प्रयोग करें। रोपाई वाली फसलों के लिए दो पैकेट कल्चर को 10 लीटर पानी के घोल में पौधे की जड़ों को 15 मिनट तक ठोकर रखने के बाद रोपाई करें।

फास्फोरस तत्व की पूर्ति के लिए

पीएसबी कल्चर-रासायनिक उर्वरकों द्वारा दिए गए फास्फोरस का बहुत बड़ा भाग जमीन में घुलनशील होकर फसलों को नहीं मिल पाता । पीएसबी कल्चर फास्फोरस को घुलनशील बनाकर फसलों को उपलब्ध कराता है ।

बीजोपचार उपरोक्तानुसार करें या 2 किलो कल्चर को 100 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर खेत में मिला दे। वैम कल्चर-यह कल्चर फास्फोरस के साथ-साथ दूसरे सभी तत्वों की उपलब्धता बढ़ा देता है । उपरोक्त अनुसार बीज उपचार करें।

किसानों को भरपूर डीएपी, यूरिया और एसएसपी खाद देने जा रही है ये सरकार

किसानों को भरपूर डीएपी, यूरिया और एसएसपी खाद देने जा रही है ये सरकार

जयपुर। खरीफ की फसल के सीजन में किसानों को भरपूर बीज एवं खाद देने की व्यवस्था की जा रही है। राजस्थान सरकार ने समस्त अधिकारियों को खाद व बीज की व्यवस्था दुरुस्त करने के निर्देश दिए हैं। 

एक समीक्षा बैठक में अधिकारियों को सख्त निर्देश देते हुए कृषि मंत्री लालचंद कटारिया ने कहा है कि किसानों को इन दोनों कृषि इनपुट की दिक्कत न हो। इसके लिए कृषि विभाग डीएपी, यूरिया और सिंगल सुपर फास्फेट (एसएसपी) फर्टिलाइजर का स्टॉक प्रचुर मात्रा में रखें। 

किसान भाई इस वर्ष खाद की चिंता न करें। आंकड़ो के अनुसार राजस्थान में 164.17 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल के लक्ष्य के विपरीत अब तक 66.05 लाख हेक्टेयर बुवाई हो चुकी है।

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उच्च क्वालिटी की पाइप लाइन बिछाने के निर्देश :

सरकार ने किसानों के खेतों में बिछाई जाने वाली पाइप लाइन की क्वालिटी उच्च रखने के निर्देश दिए हैं। माना जा रहा है कि पाइपलाइनों को जमीन के भीतर डालने की अपेक्षा जमीन के ऊपर बिछाने की व्यवस्था करनी चाहिए। 

जिससे किसानों को पाइपलाइन में लीकेज की जानकारी का सही व जल्दी पता चल सके। इसके अलावा खेतों में बनने वाले किसान फार्म पौंड स्कीम (Farm pond (Khet talai )) पर सुरक्षा की व्यावक व्यवस्था करने के लिए भी सख्ती से निर्देश दिए गए हैं।

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राज्य में 15 लाख बीज किट वितरित

- राजस्थान सरकार ने इस साल करीब 25 लाख किसानों को मुफ्त में बीज देने का लक्ष्य रखा है। जिसमें अब तक 15 लाख मिनिकिट्स वितरित किए जा चुके हैं। 

किसानों को बाजरा, मक्का, मूंग, उड़द व सोयाबीन के बीज दिए जा रहे हैं। इससे किसानों को काफी राहत मिलेगी।

जैविक खेती के लिए किसानों को दी जाएगी ट्रेनिंग

- राजस्थान सरकार अपने राज्य के किसानों को जैविक खेती के क्रियान्वयन के लिए ट्रेनिंग देने जा रही है। जैविक खेती के क्रियान्वयन और प्रचार-प्रसार में अधिक से अधिक प्रगतिशील एवं युवा किसानों को शामिल किया जा रहा है। 

ट्रेनिंग के दौरान किसानों को कृषि ज्ञान के साथ-साथ व्यवहारिक ज्ञान भी दिया जाएगा। ------- लोकेन्द्र नरवार

'एक देश में एक फर्टिलाइजर’ लागू करने जा रही केंद्र सरकार

'एक देश में एक फर्टिलाइजर’ लागू करने जा रही केंद्र सरकार

भारत ब्रांड के तहत बिकेंगे देश में सभी उर्वरक

नई दिल्ली। देश भर में फर्टिलाइजर ब्रांड में यूनिफॉर्मिटी लाने के लिए सरकार एक देश में एक ही फर्टिलाइजर (One Nation One Fertilizer) के तहत काम करने जा रही है। भारत सरकार आज से एक आदेश जारी कर सभी कंपनियों को अपने उत्पादों को 'भारत' के सिंगल ब्रांड नाम के तहत बेचने का निर्देश दिया है। अब देश मे सभी फर्टिलाइजर ब्रांड एक ही नाम से बिकेंगे। देश भर में फर्टिलाइजर ब्रांड में यूनिफॉर्मिटी लाने के लिए सरकार ने आज एक आदेश जारी कर सभी कंपनियों को अपने उत्पादों को 'भारत' के सिंगल ब्रांड नाम के तहत बेचने का निर्देश दिया है।



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आदेश के बाद सभी उर्वरक बैग, चाहे यूरिया या डाइ-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) या म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP - Muriate of Potash) या एनपीके (NPK) हों, वह सभी ब्रांड नाम 'भारत यूरिया', 'भारत DAP', 'भारत MOP' और 'भारत NPK' के नाम से बाजार मे बिकेंगे। प्राइवेट और पब्लिक सेक्टर के मैन्युफैक्टर दोनों को भारत ब्रांड नाम देना होगा।


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हालांकि, इसका फर्टिलाइजर कंपनियों ने नेगेटिव प्रतिक्रया दी है। कंपनियों के मुताबिक उनके ब्रांड वैल्यू और मार्केट में फर्क उन्हें खत्म कर देगा। सरकारी आदेश में यह भी कहा गया है कि सिंगल ब्रांड नाम और प्रधानमंत्री भारतीय जनउरवर्क परियोजना (PMBJP) का लोगो भी लगाना होगा। ये वो स्कीम है जिसके जरिये केंद्र सरकार सालाना सब्सिडी देती है। कंपनी को ये लोगो (Logo) बैग पर दिखाना होगा। इंडस्ट्री के मुताबिक कुल पैकेजिंग के छोटे हिस्से पर ही कंपनी का नाम लिखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि सरकार का यह कदम उर्वरक कंपनियों को काफी नुकसान पहुंचा सकता है। क्योंकि अलग ब्रांडिंग होने से फर्टिलाइजर में किसानों को फर्क साफ तरीके से दिखाई देगा। फर्टिलाइजर कंपनियां अपने आप को दूसरों से अलग करने के लिए कई तरह की एक्टिविटी करती है। इसके बाद यह सब शीघ्र ही बंद हो जाएगा। ---- लोकेन्द्र नरवार
उर्वरकों के दुरुपयोग से होने वाली समस्याएं और निपटान के लिए आई नई वैज्ञानिक एडवाइजरी : उत्पादन बढ़ाने के लिए जरूर करें पालन

उर्वरकों के दुरुपयोग से होने वाली समस्याएं और निपटान के लिए आई नई वैज्ञानिक एडवाइजरी : उत्पादन बढ़ाने के लिए जरूर करें पालन

हरित क्रांति के बाद से भारत के खेतों में उर्वरकों का इस्तेमाल बहुत तेजी से बढ़ा है, हालांकि उर्वरकों के बढ़े हुए इस्तेमाल की वजह से प्रति व्यक्ति उत्पादकता में बढ़ोतरी तो हुई है, लेकिन इससे हमारी मृदा पर नकारात्मक असर देखने को मिला है। आर्थिक सर्वेक्षण 2021 (Economic survey 2021-22) के अनुसार वर्तमान में पूरे विश्व भर में प्रतिवर्ष 16 हज़ार टन फर्टिलाइजर का इस्तेमाल किया जा रहा है, वहीं यदि बात करें प्रति हेक्टेयर उर्वरक इस्तेमाल की, तो यह लगभग 120 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है।

उर्वरकों के दुरुपयोग को रोकने के लिए आई नई वैज्ञानिक एडवाइजरी

अनाज और दलहनी फसलों के उत्पादन में उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल अथार्त दुरुपयोग होने की वजह से धीरे-धीरे प्रति किलोग्राम उर्वरक की मदद से होने वाली उत्पादकता में भी कमी दिखाई दे रही है।


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रसायनिक उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल से होने वाली समस्याएं :

बढ़ती हुई जनसंख्या की खाद्य मांग की पूर्ति के लिए रसायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल तो अब अनिवार्य हो गया है, हालांकि बेहतर समुचित विकास के लिए पर्यावरण का सहयोग प्राप्त किए बिना, भविष्य में इस मांग की आपूर्ति करना नामुमकिन हो सकता है। वर्तमान समय में रासायनिक उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल से निम्न प्रकार की समस्याएं देखने को मिल रही है :
  • पानी का प्रदूषण (Water Eutrophication) :

वर्तमान में भारतीय किसानों के द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे रासायनिक उर्वरक, पानी की गुणवत्ता को खराब करने में सर्वाधिक भूमिका निभा रहे हैं।

बारिश के मौसम के दौरान उर्वरक का इस्तेमाल किए हुए खेत के ऊपर से गुजरा हुआ पानी, जब किसी जगह पर इकट्ठा होता है तो वह अपने साथ उर्वरकों के दूषित पदार्थों को भी बहाकर ले जाता है, जो कि उस पानी को पूरी तरीके से अनुपयोगी बना देते हैं। इस प्रकार का पानी पूरे जलीय चक्र को प्रभावित कर सकता है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार यदि किसान भाई रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करते हैं तो उन्हें अपने खेत में पड़े हुए पानी को, उर्वरकों के तुरंत इस्तेमाल के बाद बाहर नहीं छोड़ना चाहिए। इससे आपके आसपास में स्थित पानी के स्रोत दूषित हो सकते हैं, जो भविष्य में सम्पूर्ण परिस्थिति की तंत्र को बिगाड़ सकते हैं।

  • हरितगृह गैस का बढ़ता प्रभाव (Greenhouse Gas Emission) :

वर्तमान समय में इस्तेमाल किए जा रहे कुछ रासायनिक उर्वरक जैसे कि डीएपी (DAP) और यूरिया तथा पोटाश के लिए विदेश से आयात किए जा रहे कुछ उर्वरकों में ऐसे पदार्थ उपलब्ध होते हैं, जो खेत से निकलने वाली हरित गृह गैस 'मीथेन' की मात्रा को बढ़ा देते हैं।

यह मीथेन पृथ्वी से भूतापीय ऊर्जा को वापस लेकर जाने वाली किरणों को पर्यावरण में रोक देती है, जिससे धीरे-धीरे पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है और इसी बढ़ते तापमान की वजह से कम बारिश और सूखे के अलावा कई स्थानों पर बाढ़ जैसी समस्याएं देखने को मिलती है, जो कि अंततः किसान भाइयों के लिए ही खतरनाक साबित होती है।

इस हरित ग्रह प्रभाव को कम करने के लिए किसानों को ऐसी फसलों का उत्पादन नहीं करना चाहिए जो ज्यादा मिथेन गैस निकालती हो।

संयुक्त राष्ट्र संस्थान से जुड़ी खाद्य एवं कृषि संस्थान (Food and Agriculture Organisation) की एक रिपोर्ट के अनुसार पोटाश और मैग्नेशियम की कमी को दूर करने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे उर्वरकों का बहुत ही सीमित मात्रा में प्रयोग किया जाना चाहिए, इससे हरित गृह प्रभाव को कम करने में मदद तो मिलेगी ही, साथ ही सीमित प्रयोग से उत्पादकता की अच्छी प्राप्त होगी।



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  • मृदा में बढ़ती हुई अम्लता (Soil acidification) :

अम्लीय उर्वरकों के अधिक प्रयोग से भारतीय मृदा की अम्लता में बढ़ोतरी हो रही है, जो कि किसी भी पौधे की वृद्धि दर को धीरे कर सकती हैं। अम्लता बढ़ने से मृदा में पाए जाने वाले छोटे-छोटे जीव पाचन की प्रक्रिया नहीं कर पाते हैं, जिससे मृदा में उपलब्ध पोषक तत्व पौधे की जड़ों तक नहीं पहुंच पाते हैं। पोषक तत्वों की कमी की वजह से उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल के बावजूद भी पौधे की लंबाई और अनुमानित उत्पादकता वास्तविकता में कम प्राप्त होती है।

कृषि वैज्ञानिकों की राय में इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए रासायनिक उर्वरकों की जगह प्राकृतिक खाद का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, जोकि मृदा के स्तर को पहले जैसा बनाने में सहायक साबित होते है। इसके लिए किसान भाई पशुओं से प्राप्त होने वाले गोबर का इस्तेमाल कर सकते हैं या फिर केंचुआ से प्राप्त खाद को भी उर्वरक के रूप में खेत में डाल सकते हैं।

  • मृदा अपरदन (Soil degradation / Soil erosion) :

मृदा की गुणवत्ता में भौतिक, रासायनिक और जैविक रूप से कमी आने को ही मृदा अपरदन कहा जाता है। वास्तविकता में मृदा अपरदन में, मृदा में उपलब्ध जैविक पदार्थों में आई कमी के साथ ही, उर्वरता में आई कमी के अलावा लवणता बढ़ने जैसी समस्याओं को शामिल किया जाता है।

अधिक उत्पादन और ज्यादा मुनाफे के लिए पंजाब और हरियाणा राज्य में पानी के अधिक इस्तेमाल और रासायनिक उर्वरकों के अधिक प्रयोग की वजह से मृदा पर बढ़ता दबाव किसानों के साथ ही कृषि वैज्ञानिकों के लिए भी चिंता का विषय बनता जा रहा है।

उत्पादकता को पुनः स्थापित करने के लिए कृषि वैज्ञानिक प्रयासरत हैं, इसी राह पर चलते हुए अब पूसा के वैज्ञानिकों ने रासायनिक उर्वरकों से अलग अधिक उत्पादकता देने वाले जैविक उर्वरकों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए प्रयास जारी कर दिए है। खेतों की घटती उत्पादकता आने वाले समय में भारी खाद्य संकट भी पैदा कर सकती है।

  • किसानों पर बढ़ता आर्थिक दबाव (Monetary Pressure) :

उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल के लिए किसानों में बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा आर्थिक दबाव पैदा कर रही है। यदि किसी एक किसान ने अपने खेत में ज्यादा उर्वरक इस्तेमाल किया और उस वर्ष उसके खेत से अधिक उत्पादकता प्राप्त हुई, तो उसी को देख कर दूसरे किसान भी अधिक उर्वरक का इस्तेमाल करते हैं। इससे मृदा पर बढ़ता दबाव और किसानों की जेब पर आया अतिरिक्त आर्थिक बोझ, उन्हें आत्महत्या जैसी गंभीर समस्याओं की तरफ ले जा रहा है।

ऐसी समस्याओं से निजात पाने के लिए सरकार किसानों के बीच उर्वरकों के समोचित इस्तेमाल के लिए जागरूकता फैलाने के अलावा, कृषि मंत्रालय की वेबसाइट के द्वारा समय-समय पर बेहतर गुणवत्ता वाले उर्वरकों की जानकारी भी उपलब्ध करवा रही है।



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उर्वरकों के बढ़ते प्रभाव से होने वाली समस्याओं का समाधान :

ऊपर बताई जानकारी से सभी किसान भाइयों को यह तो समझ में आ गया होगा कि उर्वरकों का अधिक इस्तेमाल उनके लिए हमेशा हानिकारक ही होता है, यदि आप भी अपने आर्थिक बोझ को कम करने के लिए प्रयासरत हैं तो नीचे बताए गए कुछ समाधान को अपनाकर फायदा उठा सकते हैं :-
  • पता लगाएं मृदा में उपलब्ध पोषक तत्वों की सही मात्रा :

भारत में अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग प्रकार की मृदा में पाई जाती है और प्रत्येक मृदा में उपलब्ध पोषक तत्व भी भिन्न भिन्न प्रकार के होते हैं।

यदि किसी मृदा में पहले से ही नाइट्रोजन की पर्याप्त मात्रा है तो, उस मृदा में डीएपी और यूरिया जैसे उर्वरक का इस्तेमाल कोई सकारात्मक उत्पादकता नहीं देगा बल्कि आपके लिए नुकसान ही करेगा।



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अपने खेत में पाई जाने वाली मृदा को पास में ही स्थित किसी कृषि सेवा केंद्र में जाकर 'सोयल हेल्थ कार्ड स्कीम' (Soil Health card scheme) के जरिए उपलब्ध पोषक तत्वों की जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं। इस कार्ड में खेत की मृदा में पाए जाने वाले 12 मुख्य और सूक्ष्म पोषक तत्वों की जानकारियां उपलब्ध करवाई। सोयल हेल्थ कार्ड से प्राप्त रिपोर्ट की मदद से अपने खेत में केवल उसी पोषक तत्व से जुड़े उर्वरक का इस्तेमाल करें, जिसकी कमी पाई गई है।

  • कैसे करें उर्वरकों का सही इस्तेमाल और प्रबंधन ?

उर्वरकों के सही प्रबंधन में हम कुछ आधार निर्धारित कर सकते हैं, जैसे कि प्रत्येक प्रकार की फसल के लिए उर्वरक का इस्तेमाल अलग-अलग हो सकता है , इसलिए किसी भी फसल को उगाने से पहले उसके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर लें और केवल सही समय पर ही उर्वरक का छिड़काव करें, जिससे बेहतर उत्पादकता के साथ ही पौधे की वृद्धि दर अधिक प्राप्त होगी।

इसके अलावा उर्वरक की सही मात्रा का इस्तेमाल भी फर्टिलाइजर के बेहतर प्रबंधन में शामिल किया जा सकता है, यदि किसी फसल को कम उर्वरक की आवश्यकता है तो उसमें केवल सीमित मात्रा में ही छिड़काव करें, पौधे की वृद्धि दर सुचारू रूप से होने पर उर्वरक का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए।



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किसी भी उर्वरक का इस्तेमाल करने से पहले किसान भाइयों को यह जानकारी अवश्य प्राप्त करनी चाहिए कि वह उर्वरक किस कंपनी के द्वारा तैयार किया गया है और इस कंपनी के उत्पादों के साथ किसानों का पूर्व अनुभव कैसा रहा है, इससे आपको सही ब्रांड से उत्पाद खरीदने का अंदाजा लग जाएगा।



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यदि आप अपने खेत से एक से अधिक जगह से मृदा के सैंपल ले जाकर जांच करवाते हैं तो अलग-अलग सैंपल में प्राप्त हुई पोषक तत्वों की अलग-अलग मात्रा को ध्यान में रखते हुए उर्वरकों की छिड़काव की मात्रा को कम या अधिक किया जा सकता है। आशा करते हैं कि Merikheti.com के द्वारा उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल से खेती में आने वाली समस्याएं और उनके समाधान से जुड़ी हुई जानकारी किसान भाइयों को मिल गई होगी।इस एडवाइजरी का इस्तेमाल कर भविष्य में आप भी खेत की उर्वरता को बरकरार रखने के साथ ही उत्पादकता को बढ़ाने में सक्षम हो पाएंगे और आर्थिक मजबूती सुनिश्चित कर पाएंगे।
एग्री स्टार्टअप कॉनक्लेव में किसानों को मिलेंगी कई सौगातें, पीएम मोदी रहेंगे मौजूद

एग्री स्टार्टअप कॉनक्लेव में किसानों को मिलेंगी कई सौगातें, पीएम मोदी रहेंगे मौजूद

कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय (Agriculture & Farmers Welfare Ministry) 17 और 18 अक्टूबर को नई दिल्ली में एग्री स्टार्ट अप कॉनक्लेव और किसान सम्मेलन (Agri Startup Conclave & Kisan Sammelan) का आयोजन करने जा रहा है। यह सम्मेलन दिल्ली में आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा के मैदान में आयोजित किया जाएगा, इस एग्री स्टार्ट अप कॉनक्लेव का उद्घाटन पीएम नरेंद्र मोदी करने वाले हैं। किसान सम्मेलन में पीएम मोदी किसानों से बातचीत करेंगे। इस सम्मलेन में वहां पर मौजूद अधिकारियों द्वारा किसानों को वैज्ञानिक खेती के लाभ के बारे में बताया जाएगा। साथ ही किसान नई कृषि तकनीकों के साथ आसानी से तालमेल कैसे बैठा पाएं, इसके बारे में भी जानकारी दी जाएगी। कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया है कि इस सम्मेलन में किसानों को खेती बाड़ी के साथ-साथ कृषि स्टार्ट अप से जुड़ने के लिए भी प्रेरित किया जाएगा, इस बार कृषि मंत्रालय की तरफ से इस कार्यक्रम की थीम 'कृषि का बदलता स्वरूप और तकनीक' रखी गई है।


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बड़ी संख्या में लोग होंगे शामिल

इस कार्यक्रम में 15,000 से ज्यादा किसान तथा किसान उत्पादक संगठनों के शामिल होने की संभावना है, इसके साथ ही लगभग 500 कृषि स्टार्टअप इस आयोजन में शामिल होंगे। इस कार्यक्रम में किसानों के अलावा कृषि अधिकारी, कृषि नीति निर्माता, कृषि उद्योग के दिग्गज, कृषि वैज्ञानिक और कृषि शिक्षाविद भी शामिल होंगे, जो खेती बाड़ी को लेकर किसानों के बीच अपना ज्ञान और अपने विचार साझा करेंगे। यह कार्यक्रम किसानों के लिए एक बड़ा मंच है, जहां पर किसान कृषि स्टार्टअप खोलने के लिए महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल कर सकते हैं। कार्यक्रम में उपस्थित सभी विशेषज्ञ इस मामले में किसानों की सहायता करेंगे, इस दौरान पीएम मोदी भी किसानों को नए कृषि स्टार्टअप खोलने के लिए प्रोत्साहित करने वाले हैं। एग्री स्टार्ट अप कॉनक्लेव में सरकार 600 मॉडल उर्वरक दुकानों को खोलने की भी शुरुआत करने वाली है, 17 अक्टूबर को इन दुकानों का सिंगल क्लिक के माध्यम से उद्घाटन किया जाएगा। इन दुकानों में किसानों के लिए एक ही जगह पर खाद, बीज, उर्वरक, कीटनाशक और छोटे कृषि उपकरण उपलब्ध करवाए जायेंगे, इन दुकानों को 'मॉडल फर्टिलाइजर रिटेल वन शॉप' के नाम से जाना जाएगा, भविष्य में इन दुकानों की संख्या में बढ़ोत्तरी की संभावना है। 'मॉडल फर्टिलाइजर रिटेल वन शॉप' में खेत की मिट्टी की जांच की सुविधा भी किसानों को मिलेगी, साथ ही कृषि योजनाओं से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी भी इन दुकानों के माध्यम से किसानों तक पहुंचाई जाएगी।


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किसान सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जारी करेंगे पीएम किसान की 12वीं किस्त

दिवाली के ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के किसानों को तोहफा देने जा रहे हैं, 17 अक्टूबर को पीएम मोदी सिंगल क्लिक के माध्यम से पीएम किसान की 12वीं किस्त देश के किसानों के बैंक खातों में सीधे ट्रांसफर करेंगे। वर्तमान में पीएम किसान योजना के अंतर्गत लगभग 11 करोड़ किसान लाभार्थी हैं, 12वीं क़िस्त अपने तय समय से देर से जारी की जा रही है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण किसानों का केवाईसी समय से न हो पाना है, पीएम नरेंद्र मोदी 12वीं क़िस्त के अंतर्गत 20 हजार करोड़ रुपये की राशि सीधे किसानों के बैंक खातों में ट्रांसफर करेंगे।
गन्ने के किसानों के लिए बिहार सरकार की सौगात, मिलेगी 50% तक सब्सिडी

गन्ने के किसानों के लिए बिहार सरकार की सौगात, मिलेगी 50% तक सब्सिडी

भारत गन्ने का बहुत बड़ा उत्पादक देश है। यहां पर काफी राज्यों में गन्ने की खेती की जाती है और बिहार भी उनमें से एक है। इस बार मौसम के चलते खरीफ की फसल में किसानों को बहुत ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा इसलिए इस बार उनका रुझान गन्ने की खेती की ओर बढ़ा है। पहले भी लोग गन्ने की खेती करते रहे हैं, लेकिन कुछ समय से इस में आने वाली लागत बहुत बढ़ गई है, जिसको आम किसान नहीं उठा पा रहे हैं। किसानों की इसी समस्या का समाधान बिहार सरकार ने ढूंढा है और गन्ने की खेती पर जैविक खाद आदि देने के लिए 50% तक सब्सिडी देने की बात कही गई है।

कितने अनुदान का फायदा उठा सकते हैं किसान?

बायोफर्टिलाइजर और कंपोस्ट खाद आदि खरीदने पर बिहार गन्ना उद्योग विभाग की ओर से गन्ने की पैदावार करने वाले किसानों को 50 फीसदी अनुदान दिया जा रहा है। गन्ना की खेती करने वाले किसानों को जैव उर्वरक और कार्बनिक पदार्थों वाली वर्मी कंपोस्ट खाद की खरीद पर 150 रुपये प्रति क्विंटल की दर से अनुदान राशि देने का प्रावधान किया है। एक हेक्टेयर के लिए 25 क्विंटल तक खपत होती है। इस स्कीम का फायदा उन किसानों को मिलेगा जिनके पास अधिकतम 2.5 एकड़ यानी 1 हेक्टेयर जमीन है। इस हिसाब से गन्ना की खेती करने वाला हर किसान अधिकतम 3,750 रुपये का अनुदान ले सकता है।


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इस बार सर्दियों में गन्ने की अच्छी पैदावार होने की है उम्मीद

मध्य सितंबर से लेकर नवंबर के महीने के अंत तक गन्ने की खेती की बुआई की जाती है। इसके बाद सबसे बड़ी समस्या जो किसानों को आती है, वह है फसल को कीड़ों से होने वाला नुकसान। गन्ने की फसल में बेधक कीड़े लग जाते हैं, जो कई बार पूरी तरह से फसल को बर्बाद कर देते हैं। लेकिन इस बार फसल में शुरुआत से ही अच्छी तरह की खाद और फर्टिलाइजर इस्तेमाल करने के लिए सरकार की तरफ से अनुदान दिया जा रहा है। इसी के चलते माना जा रहा है, कि फसल में कीड़े आदि से होने वाली समस्याएं शुरू से ही कम रहेंगी और पैदावार भी बढ़ेगी।

उत्पादन को डबल करने के लिए क्या करें

अगर किसान चाहे तो गन्ने की फसल में दो से 4 गुना अधिक उत्पादन कर सकते हैं। इसके लिए गन्ना की फसल के साथ आलू, चना, राई और सरसों की सह-फसल की खेती और मधुमक्खी पालन करने की सलाह दी जाती है। इस तरह फसलों में खाद-उर्वरक और सिंचाई के लिए अलग से खर्च नहीं करना पड़ता, और साथ में लगाई गई फसलों से ही गन्ने की फसल की सभी तरह की जरूरतों की आपूर्ति हो जाती है। ऐसा माना गया है, कि ट्रेंच विधि से गन्ना की खेती करने वाले किसान यदि फसल की सही देखभाल करें तो 250 से 350 क्विंटल तक उत्पादन ले सकते हैं।
क्या होते हैं प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र? जानिए इनके बारे में

क्या होते हैं प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र? जानिए इनके बारे में

भारत में किसानों के लिए खेती करने के लिए बहुत सारी परेशानियां हैं, जिसके कारण भारत के किसान अपनी क्षमता के हिसाब से खेतों से पर्याप्त उपज प्राप्त नहीं कर पाते हैं। 

कई बार उन्हें अपनी उपज को बढ़ाने के लिए उर्वरक, सॉइल और उन्नत बीजों की जरूरत होती हैं। लेकिन किसानों को ये चीजें समय पर नहीं मिल पाती हैं, और कई बार मिलती भी हैं तो उनकी गुणवत्ता बेहद घटिया होती है। 

जिसके कारण किसान भाई फर्जी दुकानदारों के द्वारा छले जाते हैं। इन परेशानियों का निवारण करने के लिए केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र बनाने की घोषणा की है।

क्या है प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश भर में प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र बनाने की घोषणा की है। इन केंद्रों पर किसानों की सहूलित के लिए हर चीज उपलब्ध होगी। 

उदाहरण के लिए इन केंद्रों पर वन नेशन वन फर्टिलाइजर स्कीम के तहत उर्वरक, खाद, बीज कीटनाशक के साथ कई तरह की कृषि मशीनरी भी उपलब्ध कारवाई जाएगी। 

साथ ही, इन केंद्रों पर किसान भाई कृषि मशीनरी किराये पर भी ले सकेंगे। कृषि मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया है, कि इन केंद्रों पर किसान भाई अपने खेत की मिट्टी की जांच भी करवा सकेंगे। 

साथ ही बुवाई का सीजन शुरू होने के पहले इन केंद्रों के माध्यम से किसान भाइयों के लिए 15 दिन का जागरुकता अभियान भी चलाया जाएगा। जिसमें शामिल होकर किसान भाई खेती बाड़ी से संबंधित नई तकनीकों के बारे में जानकारी हासिल कर सकेंगे। 

इसके साथ ही इन प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्रों को कृषि उपज मंडी के आस पास बनाया जाएगा, ताकि किसान भाई आसानी से इन केंद्रों तक पहुंच सकें।

सरकार का प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र खोलने की उद्देश्य क्या है?

सरकार द्वारा इन केंद्रों को खोलने का उद्देश्य किसानों के बीच खेती बाड़ी को लेकर जागरुकता फैलाना है। ताकि किसान भाई खेती में नई तकनीक का इस्तेमाल करके ज्यादा से ज्यादा उत्पादन प्राप्त कर सकें। 

इसके साथ ही सरकार इन केंद्रों के माध्यम से किसानों को खेती संबंधी मशीनरी, बीज आदि को अच्छी दरों पर उपलब्ध कराना चाह रही है। इन केंद्रों पर किसानों की सभी समस्याएं एक ही छत के नीचे सुलझ जाएंगी। 

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ब इन केंद्रों के माध्यम से सरकार किसानों तक बेहद आसानी से फर्टिलाइजर पहुंचा सकेगी। क्योंकि अभी तक मौजूदा व्यवस्था में निर्माता कंपनियां फर्टिलाइजर की दुकानों पर डीलर के माध्यम से फर्टिलाइजर पहुंचाती थीं। 

लेकिन अब डीलर कंपनियां प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र में सीधे फर्टिलाइजर पहुंचा सकेंगी। इससे किसानों तक खाद वितरण में आसानी होगी। पीएम नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में आयोजित किसान मेला में 600 पीएम किसान समृद्धि केंद्रों का उद्घाटन किया है। 

साथ ही, घोषणा की है, कि आने वाले दिनों में देश में 330499 खुदरा खाद दुकानों को किसान समृद्धि केंद्रों में बदल दिया जाएगा। जहां किसानों को खाद, बीज, उपकरण, मिट्टी की टेस्टिंग और खेती से जुड़ी सभी जानकारी बेहद आसानी से हासिल हो सकेगी। 

साथ ही पीएम नरेंद्र मोदी ने बताया था, कि किसानों को कृषि उपज बढ़ाने के लिए कृषि सेवा केंद्र और कृषि विज्ञान केंद्र व एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की ओर से भी जागरूक किया जाएगा। यह जागरुकता अभियान किसान समृद्धि केंद्रों के माध्यम से चलाया जाएगा।

ये किसान उठा सकते हैं इस केंद्र का लाभ

कृषि मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया है, कि ये केंद्र देश के किसानों के लिए खोले गए हैं। इसलिए इन केंद्रों पर जाकर हर किसान इस योजना का लाभ ले सकते हैं। 

कोई भी किसान अपने खेत की मिट्टी की जांच करवा सकता है और यहां से खाद, बीज, दवाई और उर्वरक ले सकता है। इन केंद्रों के खुल जानें से किसानों को इधर उधर भटकने की जरूरत नहीं पड़ेगी। 

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इन केंद्रों पर दुर्घटना बीमा का भी मिलेगा लाभ

सरकार ने बताया है, कि इन केंद्रों पर आने वाले किसानों को अब दुर्घटना बीमा का भी लाभ मिलेगा। फिलहाल इफको की तरफ से खाद-उर्वरक की बोरी पर 4,000 रुपये का दुर्घटना बीमा दिया जाता है। 

सरकार ने बताया है, कि दुर्घटना बीमा का लाभ लेने के लिए ग्राहक को खाद खरीदने के बाद पॉक्स मशीन से पक्का बिल लेना होता है। इसके अतिरिक्त कृषि-किसान से जुड़ी दुर्घटनाओं पर एक लाख तक का बीमा कवर दिया जाता है। 

यह दुर्घटना बीमा प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र के माध्यम से किसान भाई बेहद आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। बताया जा रहा है कि भविष्य में इन केंद्रों के माध्यम से ड्रोन की सुविधा भी किसानों के लिए उपलब्ध कारवाई जाएगी। 

यह सुविधा पूर्णतः फ्री होगी, ड्रोन के माध्यम से खेती करने पर किसान भाई अपने समय के साथ-साथ धन की बचत भी कर पाएंगे।

किसान परिवारों को बिना हानिकारक उर्वरक के खेती करना सिखाएगी यह सरकार, जाने क्या है प्लान

किसान परिवारों को बिना हानिकारक उर्वरक के खेती करना सिखाएगी यह सरकार, जाने क्या है प्लान

आजकल हर कोई अपनी सेहत को लेकर बेहद जागरूक है और ऐसे में सभी लोग इस तरह की चीजें खाना चाहते हैं। जिसमें केमिकल या फिर किसी भी तरह के रासायनिक उर्वरक का इस्तेमाल ना किया गया हो। इन सब बातों का ही ध्यान रखते हुए हिमाचल प्रदेश में सरकार ने किसानों को केमिकल फ़र्टिलाइज़र (Chemical Fertilizer) और कीटनाशक आदि के बिना खेती करने की सलाह दी है। योजना के तहत प्रदेश सरकार किसानों को बिना कैमिकल उर्वरक और कीटनाशक खेती करना सीखा रही है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना शुरू की है। जिसमें राज्य सरकार प्रदेश में कीटनाशक और केमिकल फर्टिलाइजर (Chemical Fertilizer) के प्रयोग को एकदम खत्म करने का बारे में सोच रही है। हाल ही में आई खबर में पता चला है, कि हिमाचल प्रदेश राज्य के कृषि सचिव राकेश कंवर ने इस पूरी योजना की समीक्षा की है। इस समीक्षा के अनुसार साल 2022-23 के लिए निर्धारित लक्ष्य का 83 प्रतिशत से अधिक लक्ष्य पूरा कर लिया गया है। बाकी के बचे हुए लक्ष्य को भी जल्दी ही पूरा करने की संभावना है।
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इस आर्टिकल में हम ये जाने की कोशिश करेंगे कि प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना क्या है। हिमाचल की सरकार इसको ग्राउंड लेवल पर उतारने के लिए क्या काम कर रही है?

क्या है प्राकृतिक खेती खुशहाल योजना?

जैसा कि पहले ही बताया गया है, कि इस योजना का मुख्य उद्देश्य खेतों में केमिकल फर्टिलाइजर (Chemical Fertilizer) और कीटनाशकों के इस्तेमाल को खत्म करना है। इस योजना के तहत हिमाचल प्रदेश के 3226 में से 2934 पंचायतों के 72,193 किसान परिवारों को प्राकृतिक खेती के बारे में पूरी तरह से जानकारी देते हुए उन्हें प्रशिक्षण दिया जाएगा। किसानों को फर्टिलाइजर और कीटनाशक के उपयोग के नुकसान के बारे में पूरी जानकारी अच्छी तरह से दी जाएगी। साथ ही राज्य सरकार के आर्थिक रूप से भी मदद भी उपलब्ध कराएगी।
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राज्य के किसान परिवारों को लाया जाएगा एक साथ

हिमाचल प्रदेश की सरकार इस योजना के तहत लगभग 10 लाख किसान परिवारों को एक साथ लेकर आएगी और उन्हें इस योजना से जोड़ने का प्रयत्न करेगी। राज्य सरकार के अधिकारियों का कहना है, कि सरकार का प्रयास है, कि कोई भी किसान प्रदेश में केमिकल फर्टिलाइजर (Chemical Fertilizer) और कीटनाशक का प्रयोग न करें। केमिकल फर्टिलाइजर (Chemical Fertilizer) इस्तेमाल करने का नुकसान यह होता है, कि जमीन की उर्वरक क्षमता क्षीण होती है। राज्य सरकार योजना के तहत प्रदेश के हर किसान को जोड़ेगी। फिलहाल दस लाख किसानों का इससे जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है।

किसानों को क्या होगा योजना का फायदा

यह योजना पर्यावरण के लिए तो अच्छी है ही साथ ही है किसानों के लिए भी बेहद लाभकारी साबित होने वाली है। यह प्रदेश के किसानों को आत्मनिर्भर बनाने में मदद करेगी और आने वाले समय में उन्हें इस तरह की खेती से अच्छा खासा मुनाफा होने की भी संभावना है।
उर्वरकों के बढ़ते दामों को नियंत्रित करने के लिए 22303 करोड़ का अनुदान

उर्वरकों के बढ़ते दामों को नियंत्रित करने के लिए 22303 करोड़ का अनुदान

कृषकों को रबी सीजन में उर्वरक का दाम पूर्व की भांति 1350 रुपये प्रति बोरी की दर से ही मिलेगा। भारत सरकार की तरफ से इसके लिए 22303 करोड़ रुपये के अनुदान की घोषणा भी कर दी है। दरअसल, इस जानकारी को भारत के केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कैबिनेट मीटिंग की जानकारी देते हुए मीडिया को बताया। रबी की फसल की बिजाई के साथ-साथ किसानों के लिए उर्वरक की पूर्ती करना एक बड़ी समस्या होती है। 

दरअसल, उर्वरकों की बढ़ती कीमतों के चलते किसानों को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है। परंतु, दशहरा पर भारत सरकार की तरफ से किसानों को तोहफे में बढ़ते उर्वरक भावों पर सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया है। किसानों को रबी सीजन में उर्वरक पहले की तरह 1350 रुपये प्रति बोरी की दर से ही मिलेंगे। भारत सरकार ने इसके लिए 22303 करोड़ रुपये के अनुदान की घोषणा भी कर दी है। इस जानकारी को भारत के केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कैबिनेट मीटिंग की जानकारी देते हुए मीडिया को बताया।

22303 करोड़ रुपये का अनुदान

भारत सरकार ने रबी के सीजन में किसानों को सहूलियत देने के मकसद से 22303 करोड़ रुपये की सब्सिडी उर्वरक दामों को नियंत्रित करने के लिए जारी की है। सरकार के इस ऐलान के उपरांत किसानों को इस सीजन में उर्वरक की एक बोरी पिछली कीमतों के अनुरूप ही 1350 रुपये प्रति बोरी के हिसाब से मिलेगी। आपको जानकारी के लिए बतादें, कि उर्वरक के दामों में वृद्धि को लेकर सरकार ने स्पष्ट मना किया हुआ है।

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फिलहाल कितना भाव है

समस्त सीजनों में उर्वरक को लेकर कुछ न कुछ उतार-चढ़ाव देखने को मिलते रहते हैं। लेकिन, रबी के सीजन में सरकार की तरफ से उर्वरक की कीमतों में स्थिरता को बरकरार रखने के लिए बड़े बजट के साथ किसानों को तोहफा दिया हुआ है। प्रेस वार्ता में कैबिनेट मिनिस्टर अनुराग ठाकुर का कहना है, कि आने वाली रबी फसल के सीजन में अनुदान का आधार नाइट्रोजन: 47.2 रुपये प्रति किलो, फास्फोरस: 20.42 रुपये प्रति किलो, पोटाश: 2.38 रुपये प्रति किलो, सल्फर: 1.89 रुपये प्रति किलो होगा। सरकार ने इस नियम के अनुरूप ही किसानों की उर्वरक सब्सिडी के चलते 22303 करोड़ रुपये की सब्सिड़ी को लागू किया है। 

प्रति बोरी कितने रुपए में मिलेगी

किसान उर्वरक की खरीद प्रति बोरी के अनुरूप करते हैं, जिसके आधार पर ही उन्हें उसका भुगतान करना पड़ता है। कैबिनेट मंत्री के मुताबिक किसानों को फिलहाल अमोनियम फास्फेट (डीएपी) पुरानी दर के अनुसार ही किसानों को दी जाएगी, जिसका भाव 1350 रुपये प्रति बोरी होगा। इसके साथ-साथ नाइट्रोजन फास्फोरस और पोटेशियम (एनपीके) 1470 रुपये प्रति बोरी के हिसाब से किसानों को वितरित की जाएगी। सरकार के मुताबिक यह कवायद किसानों को एक बड़ी राहत देने के उद्देश्य से शुरू की गई है।

भारत में कृषि को नई दिशा देने में उपयोगी ये पांच कृषि यंत्र जो कम खर्चे में बढ़ाऐंगे लाभ

भारत में कृषि को नई दिशा देने में उपयोगी ये पांच कृषि यंत्र जो कम खर्चे में बढ़ाऐंगे लाभ

भारत में कृषि को अत्याधुनिक करने के लिए कुछ उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है, जिससे किसान खेत में होने वाले कार्यों के लिए कड़ी मेहनत करने से बच जाते हैं। खेती में आने वाली लागत को भी कम करने में मदद करते हैं। अगर आप भी खेती को सहज और फायदेमंद बनाने के लिए कृषि यंत्रों की खरीद करना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए सहायक साबित हो सकता है।  भारत में ज्यादातर कृषकों के साथ आमदनी की दिक्कत देखने को नजर आती है। आमदनी कम होने की वजह से किसान बेहद मन लगा कर कृषि नहीं कर पाते हैं। साथ ही, कभी - कभी इससे उनको काफी हानि भी हो जाती है। यदि किसान अपनी आमदनी को ज्यादा बढ़ाना चाहते हैं, तो उन्हें पहले खेती में आने वाली लागत को कम करना चाहिए। खेती में निहित खर्चे को कम करने के लिए बेहद जरूरी है, कि फसल की पैदावार में लगने वाली लागत को कम किया जाए। इसको कम करने के लिए कृषकों को परंपरागत कृषि यंत्रों को छोड़कर आधुनिक कृषि यंत्रों की मदद लेनी चाहिए। आधुनिक कृषि यंत्रों की सहायता से किसान कम वक्त और कम श्रम में खेती के कार्य निपटा सकते हैं। भारत में खेती के कार्य को सहज बनाने के लिए वैसे तो बहुत सारे यंत्र हैं। 

कृषि कार्य हेतु रोटावेटर की भूमिका 

कृषि को सहज एवं सुगम बनाने के लिए जुताई के कार्य में आने वाले यंत्रों में रोटावेटर का सर्वाधिक इस्तेमाल किया जाता है। किसानों का इसे ज्यादा उपयोग में लेने का प्रमुख कारण यह है, कि इससे 1 अथवा 2 बार की जुताई में ही खेत पूर्ण रूप से फसल उगाने के लिए तैयार हो जाता है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि रोटावेटर को ट्रैक्टर से जोड़कर चलाया जाता है। इस यंत्र से गेहू, गन्ना और मक्का इत्यादि फसलों के अवशेष को हटाने में सहयोगी होने के साथ ही इसको मिश्रण के लिए काफी उपयुक्त माना जाता है। इसका इस्तेमाल करके आप खेती के खर्च, समय एवं लेबर इत्यादि की बचत सुगमता से कर सकते हैं। इस यंत्र को किसी भी तरह की मृदा की जुताई के लिए इस्तेमाल में लिया जा सकता है। इसके साथ ही बाकी यंत्रों की तुलना में यह तकरीबन 15 से 35 फीसद तक ईंधन की बचत करता है।

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सीड ड्रिल कम फर्टिलाइजर मशीन का उपयोग 

किसान खेती में कम वक्त और कम परिश्रम के लिए सीड ड्रिल कम फर्टिलाइजर मशीन का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इस कृषि यंत्र की सहायता से किसान एक साथ विभिन्न कतारों में बीजों की बिजाई काफी कम समय में कर सकते हैं। यह मशीन खेत की मृदा में बीज को अंदर गहराई तक पहुंचाकर बो सकती है। इस मशीन की सहायता से खेतों में बीज एवं उर्वरक की एक साथ निश्चित अनुपात में बिजाई की जा सकती है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि सीड ड्रिल कम फर्टिलाइजर मशीन को 35 HP से ज्यादा ट्रैक्टर के साथ शानदार ढ़ंग से चलाया जा सकता है।

स्प्रेयर पंप का खेती में उपयोग 

फसलों में कीट, बीमारियों एवं खरपतवार की रोकधाम के लिए विभिन्न प्रकार के कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है। स्प्रेयर पंप एक ऐसा शानदार कृषि यंत्र है, जिसकी सहायता से किसान लिक्विड खाद एवं कीटनाशक का छिड़काव खेतों में बेहद सहजता से कर सकते हैं। यह यंत्र खेती में लेबर के साथ-साथ समय की बचत करते हैं। क्योंकि, इस स्प्रेयर पंप से कृषक स्वयं ही छिड़काव कर सकते हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि विभिन्न प्रकार के स्प्रेयर पंप भिन्न-भिन्न उपयोग के लिए बाजार में उपलब्ध हैं। साथ ही, कुछ ऐसे भी है, जिन्हें ट्रैक्टर के साथ जोड़कर सुगमता से चलाया जा सकता है।

क्रॉप कटर मशीन से आप क्या समझते हैं 

किसानों के लिए खेती को सहज एवं सुगम बनाने के लिए क्रॉप कटर मशीन भी शानदार उपकरण सिद्ध हो रहा है। बतादें, कि जब फसलों की कटाई की जाती है, तो बहुत सारे मानव संसाधन की जरूरत होती है। अगर अकेला किसान इसे करें तो इसमें उसे काफी अधिक समय लग जाता है। इस मशीन की सहायता से सोयाबीन, मक्का, ज्वार, हरा चारा, घास, गेहूं, चावल और गन्ना काटने जैसे अनेकों कार्यों को काफी सुगमता से किया जा सकता है। यह आधुनिक उपकरण मृदा की सतह से महज 2 से 3 सेंटीमीटर ऊपर फसलों को काफी सहजता से काट सकती हैं। इसके अतिरिक्त इसमें लगे वीडर अटैचमेंट्स, खरपतवार को हटाने का कार्य करते हैं। इस यंत्र को डीजल के माध्यम से चलाया जाता है। साथ ही, यह मशीन घास ट्रिमिंग, लॉन ट्रिमिंग, खेत की निराई-गुड़ाई भी कर सकती है। बतादें, कि इस यंत्र का इस्तेमाल स्वयं  से छोटे और बड़े किसान फसल की कटाई करने में कर सकते हैं।
खाद के दाम हुए कम, फर्टिलाइजर पर भी सब्सिडी को मिली मंजूरी

खाद के दाम हुए कम, फर्टिलाइजर पर भी सब्सिडी को मिली मंजूरी

देश में रबी की फसलों की बुवाई का समय चल रहा है। इस दौरान किसानों के द्वारा खाद की भरपूर मांग की जा रही है। देश के लगभग सभी राज्यों में खाद की पर्याप्त उपलब्धता है, जिससे किसानों को इस बार आसानी के खाद उपलब्ध कारवाई जा रही है। रबी की फसलों की बुवाई के दौरान किसानों की सहूलियत को ध्यान में रखते हुए 2 नवंबर को केंद्रीय कैबिनेट और आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने कई अहम फैसले लिए हैं। 

इस बैठक में निर्णय लिया गया है कि पोषक तत्व आधारित नए उर्वरकों को किसानों को वितरित किया जाएगा। ये उर्वरक किसानों को सस्ती और रियायती दरों पर उपलब्ध कराए जाएंगे। केंद्रीय कैबिनेट और आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की अध्यक्षता पीएम नरेंद्र मोदी कर रहे थे। इस बार पीएम नरेंद्र मोदी ने फर्टिलाइजर (Fertilizer) पर 51875 करोड़ रुपये की सब्सिडी प्रदान करने की स्वीकृति दी है। यह सब्सिडी किसानों के लिए 1 अक्टूबर 2022 से 31 मार्च 2023 तक के लिए स्वीकृत की गई है।

इस तरह से खाद के दामों में की गई है कटौती

केंद्रीय कैबिनेट और आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने खाद के नए रेट जारी कर दिये हैं। इस दौरान सरकार ने नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश समेत कई न्यूट्रिएंड बेस्ड उर्वरकों की दामों में कटौती की है। अगर नए दामों की बात करें तो अब नाइट्रोजन 98.02 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेंचा जाएगा। साथ अब फॉस्फोरस किसानों को 66.93 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बाजार में मिलेगा। इसके साथ ही पोटाश की नई कीमत 23.65 रुपये प्रति किलोग्राम निर्धारित की गई है तथा अब सल्फर खेती करने के लिए 6.12 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से खरीदा जा सकेगा।

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सस्ते उर्वरक उपलब्ध करवाने पर किसानों को यह होगा फायदा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में  केंद्रीय कैबिनेट और आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने बताया कि देश के किसानों को अब रियायती दामों में उर्वरक उपलब्ध करवाए जाएंगे, जिससे खेती की लागत में कमी आएगी। इसका सीधा लाभ किसानों को मिलेगा। इसके साथ ही फर्टिलाइजर निर्माता कंपनियों को भी इसका सीधा लाभ मिल सकेगा। 

सरकार के इस फैसले की जानकारी उर्वरक मंत्रालय ने अपने ट्विटर हैंडल के माध्यम से साझा की। ट्विटर में उर्वरक मंत्रालय ने साफ किया है कि सरकार के द्वारा  फर्टिलाइजर के आयात के मूल्य के आधार पर ही किसानों को सस्ती और रियायती दरों पर उर्वरक उपलब्ध करवाए जाएंगे। उर्वरकों के मूल्य पूरी तरह से फर्टिलाइजर के आयात मूल्य पर निर्भर करेंगे।

जाने कैसे एक इंजीनियर मां अपने बच्चे की बीमारी के बाद बन गई एक किसान

जाने कैसे एक इंजीनियर मां अपने बच्चे की बीमारी के बाद बन गई एक किसान

आजकल सबसे ज्यादा मिलावट खाने-पीने की चीजों में की जाती है। सब्जियां हो या फिर बाहर से लिया जाने वाला कोई भी सामान इनमें बहुत ज्यादा मात्रा में केमिकल फर्टिलाइजर डाले जाते हैं, जिनका हमारी सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ता है। इन सभी तरह की मिलावट के चलते बच्चे और बड़े सभी के स्वास्थ्य का नुकसान हो रहा है। आप बाजार में मिल रही किसी भी वस्तु पर पूरी तरह से भरोसा नहीं कर सकते हैं। फसलों में ज्यादा से ज्यादा उत्पादन के लिए पेस्टिसाइड और केमिकल मिलाया जाना आजकल बहुत ही सामान्य हो गया है। ऐसे में क्या किया जाए? इन्हीं सब चीजों से परेशान एक मां, सुभश्री संथ्या ने अपने बच्चे की हार्ट सर्जरी होने के बाद उसकी हेल्थ को अच्छा रखने के लिए एक बहुत ही बड़ा कदम उठाया। उसने खुद से ही ऑर्गेनिक खेती करने की ठानी और आज वह लगभग 1 एकड़ जमीन पर बिना किसी केमिकल का इस्तेमाल किए ऑर्गेनिक खेती कर रही हैं।

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कैसे एक इंजीनियर मां बनी किसान

अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद सुभश्री संथ्या आईटी की फील्ड में अच्छी खासी नौकरी कर रही थी। सूत्रों की मानें तो वह टीसीएस जैसी जानी मानी कंपनी में कार्यरत थी। लेकिन उनकी जिंदगी ने एक मोड़ ले लिया जब कोविड-19 के बाद से उनका बच्चा बहुत ज्यादा बीमार रहने लगा। उनका सिर्फ 6 महीने का बच्चा दिल की बीमारी से पीड़ित हो गया था और सबसे ज्यादा आश्चर्य की बात यह है, कि सुभश्री संथ्या के परिवार में किसी भी तरह की दिल की बीमारी की दिक्कत की नहीं आयी है। डॉक्टर की मानें, तो यह हमारे लंबे समय से चले आ रहे गलत खान-पान का ही परिणाम है। डॉक्टर ने उन्हें सख्त हिदायत दी, कि उन्हें पूरी तरह से नेचुरल और ऑर्गेनिक खाने की तरफ अपना रुख कर लेने की जरूरत है। साथ ही, ऐसा खाना खाने की जरूरत है, जो पोषक तत्वों से भरपूर हो और उसमें किसी भी तरह के केमिकल का इस्तेमाल ना किया गया हो। कहा जाता है, कि एक मां अपने बच्चों के लिए कुछ भी कर सकती हैं और ऐसा ही यहां भी हुआ। सुभश्री संथ्या ने शुरू में मुंबई में अपने अपार्टमेंट की बालकनी में ही कुछ सब्जियों और फलों के पौधे लगाकर जैविक कृषि की शुरुआत की और आज वह पूरी तरह से एक जैविक किसान बन चुकी हैं।

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किस तरह से खेती की शुरुआत की सुभश्री संथ्या को खेती के बारे में किसी भी तरह की जानकारी नहीं थी और उनके पास कोई जमीन भी नहीं थी। सबसे पहले जैविक कृषि क्षेत्र को अच्छी तरह से जानने के लिए इन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और इसके बारे में पूरी तरह से रिसर्च किया। शुरू में उन्होंने यह कृषि अपने घर में ही शुरू की और किचन से निकलने वाले वेस्ट से उन्होंने कंपोस्ट बनाना शुरू किया। लेकिन उनके लिए यह काफी नहीं था, इसलिए उन्होंने एक बहुत ही बड़ा कदम उठाया और अपनी बचाई गई जमा पूंजी से अपने घर से ही लगभग आधे घंटे की दूरी पर एक खेत खरीद लिया। 

आईआईटी खड़गपुर से ली सस्टेनेबल फार्मिंग की डिग्री

सुभश्री संथ्या ना सिर्फ अपने लिए ही कुछ कर रहे हैं बल्कि वह अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणा का स्त्रोत बन गई हैं। उन्होंने ऑर्गेनिक फार्मिंग को अच्छी तरह से समझने के लिए आईआईटी खड़कपुर से सस्टेनेबल फार्मिंग की पढ़ाई की ओर डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने ‘मड एंड मदर’ नाम की एक कंपनी की शुरुआत की जो ऑर्गेनिक तरीके से सब्जियां उगाने के लिए बेस्ट है।

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 आज सुभश्री संथ्या अपने जैसी ही अन्य बहुत-सी महिलाओं को भी इस खेती करने के तरीके के बारे में जागरूक कर रही हैं। उनका कहना है, कि खुद को और अपने बच्चों को एक केमिकल फ्री जीवन देना उनका लक्ष्य बन गया है और इस सफर में वह कभी भी सीखना बंद नहीं करेंगी। आगे चलकर बच्चों को एक बेहतर भविष्य देने के बारे में निरंतर प्रयास करती रहेंगी।