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भैंस

बन्नी नस्ल की भैंस देती है 15 लीटर दूध, जानिए इसके बारे में

बन्नी नस्ल की भैंस देती है 15 लीटर दूध, जानिए इसके बारे में

बन्नी भैंस पाकिस्तान के सिंध प्रान्त की किस्म है, जो भारत में गुजरात प्रांत में दुग्ध उत्पादन के लिए मुख्य रूप से पाली जाती है। बन्नी भैंस का पालन गुजरात के सिंध प्रांत की जनजाति मालधारी करती है। जो दूध की पैदावार के लिए इस जनजाति की रीढ़ की हड्डी मानी जाती है। बन्नी नस्ल की भैंस गुजरात राज्य के अंदर पाई जाती है। गुजरात राज्य के कच्छ जनपद में ज्यादा पाई जाने की वजह से इसे कच्छी भी कहा जाता है। यदि हम इस भैंस के दूसरे नाम ‘बन्नी’ के विषय में बात करें तो यह गुजरात राज्य के कच्छ जनपद की एक चरवाहा जनजाति के नाम पर है। इस जनजाति को मालधारी जनजाति के नाम से भी जाना जाता है। यह भैंस इस समुदाय की रीढ़ भी कही जाती है।

भारत सरकार ने 2010 में इसे भैंसों की ग्यारहवीं अलग नस्ल का दर्जा हांसिल हुआ

बाजार में इस भैंस की कीमत 50 हजार से लेकर 1 लाख रुपये तक है। यदि इस भैंस की उत्पत्ति की बात की जाए तो यह भैंस पाकिस्तान के सिंध प्रान्त की नस्ल मानी जाती है। मालधारी नस्ल की यह भैंस विगत 500 सालों से इस प्रान्त की मालधारी जनजाति अथवा यहां शासन करने वाले लोगों के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण पशुधन के रूप में थी। पाकिस्तान में अब इस भूमि को बन्नी भूमि के नाम से जाना जाता है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि भारत के अंदर साल 2010 में इसे भैंसों की ग्यारहवीं अलग नस्ल का दर्जा हांसिल हुआ था। इनकी शारीरिक विशेषताएं अथवा
दुग्ध उत्पादन की क्षमता भी बाकी भैंसों के मुकाबले में काफी अलग होती है। आप इस भैंस की पहचान कैसे करें।

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बन्नी भैंस की कितनी कीमत है

दूध उत्पादन क्षमता के लिए पशुपालकों में प्रसिद्ध बन्नी भैंस की ज्यादा कीमत के कारण भी बहुत सारे पशुपालक इसे खरीद नहीं पाते हैं। आपको बता दें एक बन्नी भैंस की कीमत 1 लाख रुपए से 3 लाख रुपए तक हो सकती है।

बन्नी भैंस की क्या खूबियां होती हैं

बन्नी भैंस का शरीर कॉम्पैक्ट, पच्चर आकार का होता है। इसके शरीर की लम्बाई 150 से 160 सेंटीमीटर तक हो होती है। इसकी पूंछ की लम्बाई 85 से 90 सेमी तक होती है। बतादें, कि नर बन्नी भैंसा का वजन 525-562 किलोग्राम तक होता है। मादा बन्नी भैंस का वजन लगभग 475-575 किलोग्राम तक होता है। यह भैंस काले रंग की होती है, लेकिन 5% तक भूरा रंग शामिल हो सकता है। निचले पैरों, माथे और पूंछ में सफ़ेद धब्बे होते हैं। बन्नी मादा भैंस के सींग ऊर्ध्वाधर दिशा में मुड़े हुए होते हैं। साथ ही कुछ प्रतिशत उलटे दोहरे गोलाई में होते हैं। नर बन्नी के सींग 70 प्रतिशत तक उल्टे एकल गोलाई में होते हैं। बन्नी भैंस औसतन 6000 लीटर वार्षिक दूध का उत्पादन करती है। वहीं, यह प्रतिदिन 10 से 18 लीटर दूध की पैदावार करती है। बन्नी भैंस साल में 290 से 295 दिनों तक दूध देती है।
अपने दुधारू पशुओं को पिलाएं सरसों का तेल, रहेंगे स्वस्थ व बढ़ेगी दूध देने की मात्रा

अपने दुधारू पशुओं को पिलाएं सरसों का तेल, रहेंगे स्वस्थ व बढ़ेगी दूध देने की मात्रा

पशुपालन या डेयरी व्यवसाय एक अच्छा व्यवसाय माना जाता है। पशुपालन करके लोग को अच्छा लाभ मिल रहा हैं। गाय भैंस के दूध से पनीर मक्खन आदि सामग्री बनती है, जिनका बाजार में काफी अच्छा पैसा मिलता है। कई बार आपके पशु बीमार हो जाते हैं, जिसके कारण उनमें दूध देने की क्षमता कम हो जाती है। आपका पशु स्वस्थ होगा तभी वह अच्छी मात्रा में दूध दे सकेगा। पशु के अच्छे स्वास्थ्य के लिए पशु के अच्छे आहार का होना जरूरी है।


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सरसों का तेल ऊर्जा बढ़ाने में सहायक

डॉक्टर के अनुसार, जब आपके पशु बीमार हो तो उन्हें सरसों का तेल पिलाना चाहिए। क्योंकि सरसों के तेल में वसा की मात्रा अधिक होती है  तथा वह उनके शरीर को पर्याप्त ऊर्जा व ताक़त प्रदान करती है‌।

पशुओं को कब देना चाहिए सरसों का तेल ?

गाय भैंस के बच्चे होने के बाद भी उन्हें सरसों का तेल पिलाया जा सकता है, जिससे कि उनके अंदर आई हुई कमजोरी को दूर किया जा सके। पशु चिकित्सकों के अनुसार, गर्मियों में पशुओं को सरसों का तेल पिलाना चाहिए, जिससे कि लू लगने की संभावना कम हो तथा उनमें लगातार ऊर्जा का संचार होता रहे। इसके अलावा, सर्दियों में भी पशुओं को सरसों का तेल पिलाया जा सकता है, जिससे कि उनके अंदर गर्मी बनी रहे।

पशुओं के दूध देने की बढ़ेगी क्षमता

सरसों का तेल पिलाने से पशुओं में पाचन प्रक्रिया दुरूश्त रहती है। इससे पशु को एक अच्छा आहार मिलता है। पशु का स्वास्थ्य सही रहता है तथा स्वस्थ दुधारू पशु, दूध भी अच्छी मात्रा में देते हैं।

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क्या पशुओं को रोज पिलाना चाहिए सरसों का तेल ?

पशु चिकित्सकों के अनुसार, रोज सरसों का तेल पिलाना पशुओं के लिए फायदेमंद नहीं होगा। पशुओ को सरसों का तेल तभी देना चाहिए जब वे अस्वस्थ हो, ताकि उनके अंदर ऊर्जा का संचार हो सके।

क्या गैस बनने पर भी पिलाना चाहिए सरसों का तेल ?

यदि आपके पशुओं के पेट में गैस बनी है, तो उन्हें सरसों का तेल अवश्य पिलाना चाहिए। सरसों का तेल पीने से उनका पाचन प्रक्रिया या डाइजेशन सही होगा, जिससे कि वह स्वस्थ रहेंगे।
एकीकृत कृषि प्रणाली से खेत को बना दिया टूरिज्म पॉइंट

एकीकृत कृषि प्रणाली से खेत को बना दिया टूरिज्म पॉइंट

इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम मॉडल (Integrated Farming System Model) यानी एकीकृत या समेकित कृषि प्रणाली मॉडल (ekeekrt ya samekit krshi pranaalee Model) को बिहार के एक नर्सरी एवं फार्म में नई दशा-दिशा मिली है। पटना के नौबतपुर के पास कराई गांव में पेशे से सिविल इंजीनियर किसान ने इंटीग्रेटेड फार्मिंग (INTEGRATED FARMING) को विलेज टूरिज्म (Village Tourism) में तब्दील कर लोगों का ध्यान खींचा है। कराई ग्रामीण पर्यटन प्राकृतिक पार्क नौबतपुर पटना बिहार (Karai Gramin Paryatan Prakritik Park, Naubatpur, Patna, Bihar) महज दो साल में क्षेत्र की खास पहचान बन चुका है।

लीज पर ली गई कुल 7 एकड़ भूमि पर खान-पान, मनोरंजन से लेकर इंटीग्रेटेड फार्मिंग के बारे में जानकारी जुटाकर प्रेरणा लेने के लिए काफी कुछ मौजूद है। एकीकृत कृषि प्रणाली से खेती किसानी को ग्रामीण पर्यटन (Village Tourism) का केंद्र बनाने के लिए सिविल इंजीनियर दीपक कुमार ने क्या कुछ जतन किए, इसके बारे में जानने से पहले यह समझना जरूरी है कि आखिर इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) यानी एकीकृत या समेकित कृषि प्रणाली (ekeekrt ya samekit krshi pranaalee) क्या है।

एकीकृत या समेकित कृषि प्रणाली (Integrated Farming System)

एकीकृत कृषि प्रणाली किसानी की वह पद्धति है जिसमे, कृषि के विभिन्न घटकों जैसे फसल पैदावार, पशु पालन, फल एवं साग-सब्जी पैदावार, मधुमक्खी पालन, कृषि वानिकी, मत्स्य पालन आदि तरीकों को एक दूसरे के पूरक बतौर समन्वित तरीके से उपयोग में लाया जाता है। इस पद्धति की खेती, प्रकृति के उसी चक्र की तरह कार्य करती है, जिस तरह प्रकृति के ये घटक एक दूसरे के पूरक होते हैं। 

इसमें घटकों को समेकित कर संसाधनों की क्षमता, उत्पादकता एवं लाभ प्रदान करने की क्षमता में वृद्धि स्वतः हो जाती है। इस प्रणाली की सबसे खास बात यह है कि इसमें भूमि, स्वास्थ्य के साथ ही पर्यावरण का संतुलन भी सुरक्षित रहता है। हम बात कर रहे थे, बिहार में पटना जिले के नौबतपुर के नजदीकी गांव कराई की। यहां बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड में कार्यरत सिविल इंजीनियर दीपक कुमार ने समेकित कृषि प्रणाली को विलेज टूरिज्म का रूप देकर कृषि आय के अतिरिक्त विकल्प का जरिया तलाशा है।

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सफलता की कहानी अब तक

जैसा कि हमने बताया कि, इंटीग्रेटेड फार्मिंग में खेती के घटकों को एक दूसरे के पूरक के रूप मेें उपयोग किया जाता है, इसी तर्ज पर इंजीनियर दीपक कुमार ने सफलता की इबारत दर्ज की है। उन्होंने अपनी पुश्तैनी जमीन बेचकर, पिछले साल 2 जून 2021 को 7 एकड़ लीज पर ली गई जमीन पर अपने सपनों की बुनियाद खड़ी की थी। बचपन से कृषि कार्य में रुचि रखने वाले दीपक कुमार इस भूमि पर समेकित कृषि के लिए अब तक 30 लाख रुपए खर्च कर चुके हैं। इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम के उदाहरण के लिए उनका फार्म अब इलाके के साथ ही, देश के अन्य किसान मित्रों के लिए आदर्श मॉडल बनकर उभर रहा है। उनके फार्म में कृषि संबंधी सभी तरह की फार्मिंग का लक्ष्य रखा गया है। 

इस मॉडल कृषि फार्म में बकरी, मुर्गा-मुर्गी, कड़कनाथ, मछली, बत्तख, श्वान, विलायती चूहों, विदेशी नस्ल के पिग, जापानी एवं सफेद बटेर संग सारस का लालन-पालन हो रहा है। मुख्य फसलों के लिए भी यहां स्थान सुरक्षित है। आपको बता दें प्रगतिशील कृषक दीपक कुमार ने इंटीग्रेटेड फार्मिंग के इन घटकों के जरिए ही विलेज टूरिज्म का विस्तार कर कृषि आमदनी का अतिरिक्त जरिया तलाशा है। मछली एवं सारस के पालन के लिए बनाए गए तालाब के पानी में टूरिस्ट या विजिटर्स नौकायन का लुत्फ ले सकते हैं।

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इसके अलावा यहां तैयार रेस्टॉरेंट में वे अपनी पसंद की प्रजाति के मुर्गा-मुर्गी और मछली के स्वाद का भी लुत्फ ले सकते हैं। इस फार्म के रेस्टॉरेंट में कड़कनाथ मुर्गे की चाहत विजिटर्स पूरी कर सकते हैं। इलाके के लोगों के लिए यह फार्म जन्मदिन जैसे छोटे- मोटे पारिवारिक कार्यक्रमों के साथ ही छुट्टी के दिन सैरगाह का बेहतरीन विकल्प बन गया है।

अगले साल से होगा मुनाफा

दीपक कुमार ने मेरीखेती से चर्चा के दौरान बताया, कि फिलहाल फार्म से होने वाली आय उसके रखरखाव में ही खर्च हो जाती है। इससे सतत लाभ हासिल करने के लिए उन्हें अभी और एक साल तक कड़ी मेहनत करनी होगी। नौकरी के कारण कम समय दे पाने की विवशता जताते हुए उन्होंने बताया कि पर्याप्त ध्यान न दिए जाने के कारण लाभ हासिल करने में देरी हुई, क्योंकि वे उतना ध्यान फार्म प्रबंधन पर नहीं दे पाते जितने की उसके लिए अनिवार्य दरकार है।

हालांकि वे गर्व से बताते हैं कि उनकी पत्नी उनके इस सपने को साकार करने में हर कदम पर साथ दे रही हैं। उन्होंने अन्य कृषकों को सलाह देते हुए कहा कि जितना उन्होंने निवेश किया है, उतने मेंं दूसरे किसान लगन से मेहनत कर एकीकृत किसानी के प्रत्येक घटक से लाखों रुपए की कमाई प्राप्त कर सकते हैं।

इनका सहयोग

उन्होंने बताया कि वेटनरी कॉलेज पटना के वीसी एवं डॉक्टर पंकज से उनको समेकित कृषि के बारे में समय-समय पर बेशकीमती सलाह प्राप्त हुई, जिससे उनके लिए मंजिल आसान होती गई। वे बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट पर उन्होंने किसी और से किसी तरह की आर्थिक मदद नहीं जुटाई है एवं अपने स्तर पर ही आवश्यक धन राशि का प्रबंध किया।

युवाओं को जोड़ने की इच्छा

समेकित कृषि को अपनाने का कारण वे बेरोजगारी का समाधान मानते हैं। उनका मानना है कि ऐसे प्रोजेक्ट्स के कारण इलाके के बेरोजगारों को आमदनी का जरिया भी प्राप्त हो सकेगा।

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नए प्रयोग

आधार स्थापना के साथ ही अब दीपक कुमार के कृषि फार्म पर गोबर गैस प्लांट ने काम करना शुरू कर दिया है। उन्होंने बताया कि उनके फार्म पर गाय, बकरी, भैंस, सभी पशुओं के प्रिय आहार, सौ फीसदी से भी अधिक प्रोटीन से भरपूर अजोला की भी खेती की जा रही है। इस चारा आहार से पशु की क्षमता में वृद्धि होती है।

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आपको बता दें अजोला घास जिसे मच्छर फर्न (Mosquito ferns) भी कहा जाता है, जल की सतह पर तैरने वाला फर्न है। अजोला अथवा एजोला (Azolla) छोटे-छोटे समूह में गठित हरे रंग के गुच्छों में जल में पनपता है। जैव उर्वरक के अलावा यह कुक्कुट, मछली और पशुओं का पसंदीदा चारा भी है। इसके अलावा समेकित कृषि प्रणाली आधारित कृषि फार्म में हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics) तकनीक द्वारा निर्मित हरा चारा तैयार किया जा रहा है। 

इसमेें गेहूं, मक्का का चारा तैयार होता है। आठ से दस दिन की इस प्रक्रिया के उपरांत चारा तैयार हो जाता है। अनुकूल परिस्थितियों में हाइड्रोपोनिक्स चारे में 9 दिन में 25 से 30 सेंटीमीटर तक वृद्धि दर्ज हो जाती है। इस स्पेशल कैटल डाइट में प्रोटीन और पाचन योग्य ऊर्जा का प्रचुर भंडार मौजूद है। उनके अनुभव से वे बताते हैं कि इस प्रक्रिया में लगने वाला एक किलो गेहूं या मक्का तैयार होने के बाद दस किलो के बराबर हो जाता है। अल्प लागत में प्रोटीन से भरपूर तैयार यह चारा फार्म में पल रहे प्रत्येक जीव के जीवन चक्र में प्राकृतिक रूप से कारगर भूमिका निभाता है।

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हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics) अर्थात जल संवर्धन विधि से हरा चारा तैयार करने में मिट्टी की जरूरत नहीं होती। इसे केवल पानी की मदद से अनाज उगाकर निर्मित किया जा सकता है। इस विधि से निर्मित चारे को ही हाइड्रोपोनिक्स चारा कहते हैं। यदि आप भी इस फार्म के आसपास से यदि गुजर रहे हों तो यहां समेकित कृषि प्रणाली में पलने बढ़ने वाले जीवों और उनके जीवन चक्र को समझ सकते हैं। 

अन्य कृषि मित्र इस तरह की खेती से अपने दीर्घकालिक लाभ का प्रबंध कर सकते हैं। (फार्म संचालक दीपक कुमार द्वारा दूरभाष संपर्क पर दी गई जानकारी पर आधारित, आप इस फार्म के बारे में फेसबुक लिंक पर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।) 

संपर्क नंबर - 8797538129, दीपक कुमार 

फेसबुक लिंक- https://m.facebook.com/Karai-Gramin-Paryatan-Prakritik-Park-Naubatpur-Patna-Bihar-100700769021186/videos/1087392402043515/

यूट्यूब लिंक-https://youtube.com/channel/UCfpLYOf4A0VHhH406C4gJ0A

गाय भैंस का बच्चा पेट में घूम जाए तो क्या करें किसान

गाय भैंस का बच्चा पेट में घूम जाए तो क्या करें किसान

गर्भित पशुओं में गर्भाशय का अपने लम्बे अक्ष पर घूम जाने को गर्भाशय में ऐंठन आना कहा जाता है। यह समस्या गाय भैंस में ज्यादा मिलती है। कभी-कभी घोड़ी, भेड़ तथा बकरी में भी यह परेशानी देखी जाती है। जो पशु पहले बच्चे दे चुके हैं उनमें इस बीमारी की सम्भावना अधिक होती है। यह समस्या गर्भावस्था की अन्तिम 2 माह में होने की ज्यादा सम्भावना होती है। इस दशा के होने पर पशु बहुत ही अधिक पीड़ा में होता है और तुरंत निवारण न होने पर पशु की मृत्यु हो सकती है। 

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 अन्य पशुओं की तुलना में गाय और भैंसों में गर्भाशय की शारीरिक रचना में अन्तर होने के अतिरिक्त गर्भित पशुओं के गर्भाशय का कम स्थिर होना इस दशा का मुख्य कारण है। गर्भाशय में अस्थिरता के कई कारण हो सकते हैं जैसे - पशु के उठने तथा बैठने दोनों ही दशाओं में शरीर का पिछला हिस्सा अधिक ऊॅचाई पर होता है और इस दशा में दूसरे पशु से धक्का लगने, फिसलने या गिरने पर गर्भाशय आसानी से घूम जाता है। बच्चे का गर्भाशय के दो में से किसी एक हार्न में होने के कारण भी गर्भाशय की स्थिरता कम रहती है और गर्भाशय आसानी से घूम जाता है। बच्चे के बहुत अधिक हलचल के कारण भी गर्भाशय में ऐंठन आ सकती है। गर्भित पशुओं का गर्भावस्था के अन्तिम महीनों में वाहन में लम्बी यात्रा, दूसरे पशुओं सेे झगड़ा, गिरना, कूदना, भागना इत्यादि भी गर्भाशय के घूम जाने के कारण हो सकते हैं। भैंसों का पानी या कीचड़ में लोटने की आदत भी गर्भाशय के घूम जाने का एक मुख्य कारण है। पशुओं के भोजन मेें पोषक तत्वों की कमी, पशुओं के रखने के स्थान का समतल न होना आदि भी इस समस्या के लिये उत्तरदायी हो सकता हैै। 

गर्भाशय में बच्चा घूमने से बचने के उपाय:

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लक्षण

जब गर्भाशय में बहुत कम डिग्री की ऐंठन होती है तो पशु में सामान्यतः कोई लक्षण नहीं मिलते हैं परंतु अधिक डिग्री होने पर कई प्रकार के लक्षण दिख सकते है। इस समस्या के चलते पशु के पेट में दर्द, भूख न लगना, जुगाली न करना तथा शरीर के ताप का गिर जाना, बार-बार उठना, बैठना तथा जमीन पर लोटना पैर खींचना अथवा पेट में लात मारना, बेचैन होना, ब्याने के लिए जोर लगाना इत्यादि दिक्कतें आमतौर पर दिखती हैं। गर्भावस्था के पूर्ण होने पर भी बच्चा न होना तथा योनी से किसी प्रकार के द्रव्य का स्राव न होना इस दशा के लक्षण है। कभी-कभी दशा अधिक खराब होने पर या समय पर उपचार न होने पर पशु की मृत्यु भी हो जाती है। 

रोकथाम के उपाय

गर्भावस्था के अंतिम दिनों में गर्भित पशु को लम्बी यात्रा पर न जायें। गर्भित पशुओं को दूसरे पशुओं से अलग स्थान पर रखने की व्यवस्था करें। गर्भित पशु को रखने का स्थान समलत होना चाहिए। गर्भित पशु को गर्भावस्था के दौरान बहुत अधिक हलचल जैसे - कूदना, भागना इत्यादि न करने दें। भैंसों को गर्भावस्था के अंतिम दिनों में पानी या कीचड़ में न छोड़ें । गर्भित पशुओं को पोषक तत्वों से भरपूर संतुलित आहार दें। गर्भावस्था के अंतिम दिनों में बताये गये लक्षणों के दिखने पर बिना विलम्ब किये किसी पशु चिकित्सक को पशु दिखायें अथवा सलाह लें।

गाय भैंसों की देखभाल गर्मी के दिनों में कैसे करें (Taking care of cow & buffaloes in summer in Hindi)

गाय भैंसों की देखभाल गर्मी के दिनों में कैसे करें (Taking care of cow & buffaloes in summer in Hindi)

आज हम बात करेंगे, कि बेहद गर्मियों के मौसम में गाय और भैंसों की देखभाल किस तरह से करनी चाहिए। ताकि उनको गर्मी के मौसम में किसी भी तरह का कोई नुकसान ना हो सके और वह किसी भी प्रकार से रोग ग्रस्त ना हो। 

गाय भैंसों की देखभाल गर्मियों के मौसम में

पशुपालन के लिए गर्मी का मौसम बहुत ही नुकसानदायक होता है क्योंकि गर्मियों के मौसम में पशुओं की देखभाल करना बेहद मुश्किल हो जाता है। ऐसे में पशुपालन अपनी कमर कस लेते हैं और अपने पशुओं जैसे: गाय-भैंसों की देखभाल की स्थिति को बनाए रखने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रयास करते हैं ताकि वह गाय-भैंसों को इस भीषण गर्मी के तापमान से बचा सके। गर्मियों के मौसम में वातावरण का तापमान लगभग 42 - 48 °c सेल्सियस तक पहुंच जाता है कभी-कभी और ज्यादा भी हो सकता है। जिसके चलते गर्मी में पशुपालन करते समय पशुओं की विशेष रूप से देखभाल की जरुरत होती है।तापमान के इस दबाव के चलते पशुओं की पाचन प्रणाली तथा दूध उत्पादन में भी काफी बुरा प्रभाव पड़ता है। जब यह पशु नवजात शिशु को जन्म देते हैं, और इस गर्मी के मौसम में उनकी ज़रा भी देखभाल में की गई कमी उनकी जान के लिए घातक साबित हो सकती है।थोड़ी भी लापरवाही नवजात शिशुओं की जान पर बन आती है।

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गर्मियों के मौसम में पशुओं की स्वास्थ्य की देखभाल

गर्मियों के मौसम में  किसी भी स्थिति में पशुओं के स्वास्थ्य के साथ की गई लापरवाही।उनके स्वास्थ्य पर काफी हानिकारक प्रभाव डालती है। जिसके चलते पशु पालन करने वालो का निर्यात का साधन भी बंद हो सकता है ऐसे में पशुपालन को चाहिए कि अपना निर्यात का साधन बनाए रखने के लिए पशुओं की खास देखभाल करें।पशुओं की खास देखभाल करने के लिए निम्न बातों का पूर्ण रुप से ध्यान रखे:

  • सर्वप्रथम पशु पालन करने वाले भाइयों को हरा चारा अधिक से अधिक गर्मियों के मौसम में गाय और भैंसों को देना चाहिए। क्योंकि गाय और भैंस इन हरे चारों को बहुत ही चाव से खाते हैं , हरे चारे में मौजूद 70 से 90% जल की पूर्ण मात्रा होती है जिससे पशुओं के शरीर में जल की पूर्ति होती है।
  • गर्मियों के मौसम में गाय भैंस और अन्य पशुओं को भूख कम लगती हैं अथवा प्यास ज्यादा लगती हैं। ऐसी स्थिति में पशुपालन को दिन में कम से कम 3 बार स्वच्छ और साफ सुथरा पानी गाय ,भैंसों को देना चाहिए। जिसे पीकर उनके शरीर का तापमान पूर्ण रूप से नियंत्रण में रहता है, कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार पानी में थोड़ा सा आटा व नमक मिलाकर पिलाना पशुओं के लिए उपयोगी होता है।शुष्क मौसम के लिए ऐसा करना लाभदायक होता है तथा शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है।
  • पशुपालन गर्मियों के दिनों में अपने पशुओं को चारे में एमिनो पाउडर तथा ग्रो बी-प्लेक्स का मिश्रण देते हैं जो पशुओं के लिए बहुत ही उपयोगी होता है।
  • बढ़ती गर्मी के कारण पशुओं को भूख कम लगना शुरू हो जाती है ऐसी स्थिति में पशुपालन उनको ग्रोलिव फोर्ट (Grow live Forte) देते हैं। जिसे खाकर उनके शरीर में भोजन का पूर्ण निर्यात हो सके। गर्मियों के प्रभाव से पशुओं की पाचन प्रणाली पर काफी बुरा असर पड़ता है। ऐसे में ग्रोलिव फोर्ट पशुओं में खुराक की मात्रा को बढ़ाता है।
  • पशुओं से दूध प्राप्त करने के बाद उन्हें हो सके, तो ठंडा पानी पिलाएं ऐसा करने से उनके शरीर में ठंडक पहुंचेगी। तीन से चार बार पशुओं को ताजा ठंडा पानी पिलाना बहुत ही जरूरी है प्रतिदिन गर्मियों के मौसम में पशुपालन को अपने पशुओं को ठंडे पानी से स्नान कराना चाहिए।पशुपालन भैंसों को तीन से चार बार गर्मियों के दिनों मे स्नान कराते हैं तथा गायों को दो बार नहलाते हैं।
  • गर्मियों के मौसम में गाय भैंस आदि पशुओं को खाद पदार्थ जैसे रोटी, आटा ,चावल आदि पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए।यह कार्बोहाइड्रेट की अधिकता वाले खाद्य पदार्थ हैं।पशुओं को संतुलित आहार के रूप में चारे तथा दाना जिसकी मात्रा 40 और 60 के बीच की हो आहार के रूप में दें।
  • आने वाली बरसात से पशुओं को बचाने के लिए उनका टीकाकरण जरूर कराएं। टीकाकरण कराने से पशु कई प्रकार की बीमारियां जैसे गलाघोंटू , खुरपका मुंहपका , लंगड़ी बुखार आदि से खुद का बचाव कर सकेंगे। समय-समय पर गाय भैंस पशुओं को एलेक्ट्रल एनर्जी की भी आवश्यकता होती है। ऐसे में इन को समय-समय पर आपको एलेक्ट्रल एनर्जी एनर्जी देनी होगी

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गर्मियों के दिनों में पशु आवास की व्यवस्था

  • गर्मियों के दिनों में गाय और भैंसों के लिए उचित आवास व्यवस्था करनी चाहिए , क्योंकि गर्मियों के दिनों में तापमान तेज होने के कारण भूमि पूरी तरह से गर्म रहती है जिसके चलते उनके शरीर पर काफी बुरा प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे में आपको कुछ सावधानी बरतनी चाहिए यह सावधानियां कुछ इस प्रकार हैं:
  • सर्वप्रथम गर्मियों के दिनों में गाय और भैंसों को हमेशा पेड़ की छांव के नीचे बांधना चाहिए जिससे उनका धूप से बचाव हो सके।
  • जिस भी जगह पर आप अपने पशुओं को बांधे उसकी छत पर आपको सूखी घास या फिर आपको कडबी रखनी चाहिए। ऐसा करने से छत को गर्म होने से पूरी तरह से रोका जा सकता है और छत का तापमान ठंडा रहेगा। पशुपालकों को पशुओं के आवास के लिए अपने पक्के मकानों में इस तरह की व्यवस्था करनी चाहिए।
  • जरूरत से ज्यादा आपको पशुओं को बांधकर नहीं रखना है। जैसे ही शाम होने लगे आपको पशुओं को चरने के लिए छोड़ देना है और जहां भी पशु आवास करते हैं। उन जगहों पर बोरे की छाल लगा देनी चाहिए जिससे कि ताजी और ठंडी हवा उन तक पहुंच सके।
  • यदि पशुपालन करने वाले पशुओं को छायादार वृक्षों के नजदीक पशुशाला का निर्माण करते हैं। तो इससे पशुओं का तापमान संतुलित बनाए रखने में सहायता मिलती हैं।
  • इन आसान तरीकों को अपनाकर नवजात पशु तथा गाय-भैंसों वह दुधारू पशुओं की उच्च ढंग से देखभाल की जा सकती है। तथा इन उपायों के अनुसार गर्मियों के भयानक प्रकोप से पशुओं का बचाया किया जा सकता है और उनसे विभिन्न प्रकार के उत्पादन की भी प्राप्ति की जा सकती है।

हमारी इस पोस्ट में गाय और भैंसों की देखभाल करने की पूर्ण जानकारी दी गई है। कि किस प्रकार गर्मियों के दिनों में उनकी खास देखभाल की जरूरत है ताकि उनको किसी भी तरह की कोई भी परेशानी ना हो और वह ज्यादा से ज्यादा उत्पादन कर सकें। यदि आपको हमारी दी हुई जानकारी अच्छी लगी हो, तो आप हमारी इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।

जानें कैसे आप बिना पशुपालन के डेयरी व्यवसाय खोल सकते हैं

जानें कैसे आप बिना पशुपालन के डेयरी व्यवसाय खोल सकते हैं

किसान भाई बिना गाय-भैंस पालन के डेयरी से संबंधित व्यवसाय चालू कर सकते हैं। इस व्यवसाय में आपको काफी अच्छा मुनाफा होगा। अगर आप भी कम पैसे लगाकर बेहतरीन मुनाफा कमाने के इच्छुक हैं, तो यह समाचार आपके बड़े काम का है। आज हम आपको एक ऐसे कारोबार के विषय में जानकारी देंगे, जिसमें आपकी मोटी कमाई होगी। परंतु, इसके लिए आपको परिश्रम भी करना होगा। भारत में करोड़ो रुपये का डेयरी व्यवसाय है। यदि आप नौकरी छोड़कर व्यवसाय करना चाहते हैं, तो हमारा यह लेख आपके लिए बेहद फायदेमंद है। दरअसल, हम अगर नजर डालें तो डेयरी क्षेत्र में विभिन्न तरह के व्यवसाय होते हैं। इसमें आप डेयरी प्रोडक्ट का व्यवसाय शुरू कर सकते हैं या गाय-भैंस पालकर दूध सप्लाई कर अच्छा मुनाफा कमा सकते है। परंतु, आप गाय-भैंस नहीं पालना चाहते हैं और डेयरी बिजनेस करना चाहते हैं तो भी आपके लिए अवसर है। आप मिल्क कलेक्शन सेंटर खोल सकते हैं।

दूध कलेक्शन की विधि

बहुत सारे गांवों के पशुपालकों से दूध कंपनी पहले दूध लेती है। ये दूध भिन्न-भिन्न स्थानों से एकत्रित होकर कंपनियों के प्लांट तक पहुंचता है। वहां इस पर काम किया जाता है, जिसमें पहले गांव के स्तर पर दूध जुटाया जाता है। फिर एक स्थान से दूसरे शहर या प्लांट में भेजा जाता है। ऐसे में आप दूध कलेक्शन को खोल सकते हैं। कलेक्शन सेंटर गांव से दूध इकट्ठा करता है और फिर इसको प्लांट तक भेजता है। विभिन्न स्थानों पर लोग स्वयं दूध देने आते हैं। वहीं बहुत सारे कलेक्शन सेंटर स्वयं पशुपालकों से दूध लेते हैं। ऐसे में आपको दूध के फैट की जांच-परख करनी होती है। इसे अलग कंटेनर में भण्डारित करना होता है। फिर इसे दूध कंपनी को भेजना होता है।

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कीमत इस प्रकार निर्धारित की जाती है

दूध के भाव इसमें उपस्थित फैट और एसएनएफ के आधार पर निर्धारित होते हैं। कोऑपरेटिव दूध का मूल्य 6.5 प्रतिशत फैट और 9.5 प्रतिशत एसएनएफ से निर्धारित होता है। इसके उपरांत जितनी मात्रा में फैट कम होता है, उसी तरह कीमत भी घटती है।

सेंटर की शुरुआत इस प्रकार से करें

सेंटर खोलने के लिए आपको ज्यादा रुपयों की जरूरत नहीं होती है। सबसे पहले आप दूध कंपनी से संपर्क करें। इसके पश्चात दूध इकट्ठा कर के उन्हें देना होता है। बतादें, कि यह कार्य सहकारी संघ की ओर से किया जाता है। इसमें कुछ लोग मिलकर एक समिति गठित करते हैं। फिर कुछ गांवों पर एक कलेक्शन सेंटर बनाया जाता है। कंपनी की ओर से इसके लिए धनराशि भी दी जाती है।
भैंस पालन से भी किसान कमा सकते हैं बड़ा मुनाफा

भैंस पालन से भी किसान कमा सकते हैं बड़ा मुनाफा

भारत को कृषि प्रधान देश कहते हैं. देश के किसान कृषि के साथ साथ सामान रूप से पशुपालन भी करते हैं. कहा भी जाता है कि कृषि और पशुपालन एक दुसरे का पूरक होता है. पशुपालन से जहाँ एक ओर दुग्ध उत्पादन होता है, वहीं किसानी खेती के लिए सबसे बेहतर खाद भी प्राप्त किया जाता है. गाँव में लगभग सभी किसान खेती के साथ ही पशुपालन भी करते है. दुधारू पशुओं को हर घर में देखा जा सकता है. पशुपालन अब डेयरी व्यवसाय का रूप ले चूका है. गाय, भैंस, भेड, बकरी डेयरी व्यवसाय के लिए पाला जाता है. लेकिन दूध देने की क्षमता के आधार पर भैंस पालन (buffallo rearing) को ज्यादा अच्छा माना जाता है.

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गांव में रहने वाले लोग भैंस पालन का व्यवसाय कर बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं.

भैंस पालन के लिए सबसे जरूरी है की भैंसों का सही चुनाव किया जाए. जो किसान भैंस पालन करना चाहते हैं और अपनी आर्थिक स्थिति सुधारना चाहते हैं वैसे लोगों के लिए यह जानना जरूरी है कि किस नस्ल की भैंस को पाला जाए जिससे ज्यादा से ज्यादा दूध का उत्पादन हो सके. दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में भारत का स्थान अव्वल है. देश के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि और किसानी के साथ-साथ पशुपालन भी एक मुख्य कार्य है. हजारों की संख्या में ग्रामीण, पशुपालन से अपना जीवन यापन करते हैं. पशु विशेषज्ञों की माने तो दुधारू जानवरों में सबसे ज्यादा दूध देने की क्षमता भैस में होती है, इसी के कारण किसान कम मेहनत में ज्यादा दूध उत्पादन के लिए ज्यादातर भैंस पालन को बेहतर समझते हैं. लेकिन, यहां सबसे ज्यादा जरूरी होता है कि भैंस के किन नस्लों का चुनाव किया जाए जिनकी दूध उत्पादकता की क्षमता सबसे अधिक हो. दुग्ध उत्पादन पर ही पशुपालक के आर्थिक समृद्धि निर्भर करती है. अगर दूध देने की क्षमता कम होगी तो स्वाभाविक है की बिजनेस ठप हो जाएगा या फिर घाटे में चलेगा. इसी के कारण हम यहां किसान भाइयों को भैंस की नस्ल के बारे में बता रहे हैं जिनको घर लाकर आप ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं.

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भैंस के किस नस्ल का चुनाव करें ?

मुर्रा नस्ल :

दुनिया में सबसे ज्यादा दुधारू भैंस में मुर्रा नस्ल को माना जाता है. मुर्रा नस्ल की भैंस 1 दिन में 13 से 15 लीटर तक दूध दे सकती है. लेकिन मुर्रा भैंस का पालन करने वाले पशुपालकों की उसके खानपान पर क्या ध्यान देना पड़ता है.

मेहसाना नस्ल :

मेहसाना नस्ल की भैंस भी अच्छी प्रजाति का भैंस माना जाता है. यह 20 से 30 लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती है. गुजरात और महाराष्ट्र में मेहसाना भैंस का बड़ी मात्रा में पालन किया जाता है.

पंढरपुरी भैंस और सुरती नस्ल की भैस :

महाराष्ट्र में पाए जाने वाली भैंस की नस्ल पंढरपुरी अपने दूध देने के क्षमता के कारण ही जानी जाती है. वही सुरती नस्ल की भैंस भी दूध क्षमता में बेहतर होती है. यह दोनों भैंस 1 साल में 1400 लीटर से 1600 लीटर दूध देती है.

जाफराबादी, संभलपुरी भैंस, नीली-रावी भैंस टोड़ा भैंस, साथकनारा भैंस :

डेयरी व्यवसाय करने वाले किसानों के लिए जाफराबादी संबलपुरी बैंड नीली-रावी भैंस, टोड़ा भैंस और साथकनारा भैंस अच्छी नस्ल की भैंसों में मानी जाती है. इन नस्ल की भैंस सालाना 1500 लीटर से 2000 लीटर तक दूध उत्पादन की क्षमता रखती है.
शेर से भी लड़ सकती है यह भैंस, साधारण भैंस से कहीं ज्यादा देती है दूध।

शेर से भी लड़ सकती है यह भैंस, साधारण भैंस से कहीं ज्यादा देती है दूध।

देश की सुदृढ़अर्थव्यवस्था के लिए खेती करने के साथ-साथ पशुपालन का भी बहुत ही अहम योगदान होता है। किसान खेती के साथ-साथ बड़ी संख्या में गाय भैंस और बकरी का पालन करके अच्छी खासी आमदनी प्राप्त करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालन से किसानों को बहुत ही फायदा होता है। किसान गाय, भैंस और बकरी का दूध बेचकर बढ़िया मुनाफा अर्जित करते हैं। जाफराबादी नस्ल की भैंस आजकल किसानों के बीच बेहद लोकप्रिय है, यह भैंस अपनी ताकत और दूध देने की क्षमता के लिए काफी प्रसिद्ध है। मजबूत कद काठी वाली यह भैंस अधिक मात्रा में दूध देती है, इस के दूध में 8% से भी अधिक पोषण होता है, जिससे पीने वाले के शरीर को मजबूती मिलती है। माना तो यह भी जाता है, कि इस भैंस के अंदर इतनी ताकत होती है, कि यह शेरों से भी भिड़ सकती है।


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इस नस्ल की भैंस मुख्य तौर पर गुजरात में पाई जाती हैं।

गुजरात के गिर जंगलों से ताल्लुक रखने वाला जफराबादी नस्ल की यह भैंस रोजाना 30 से 35 लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती है यानी हर महीने यह भैंस हजार लीटर से भी ज्यादा दूध देती है। दूध का व्यापार करने वाले किसानों के लिए जाफराबादी भैंस काफी उपयुक्त मानी जाती है। जो किसान डेयरी का काम करते हैं, उनके लिए इस नस्ल की भैंस अच्छी कमाई का स्रोत बन सकती है। पशु पालन करने वाले किसानों के लिए सरकार के द्वारा आर्थिक सहायता भी दी जाती है। यह भैंस सबसे अधिक दुग्ध उत्पादन के लिए जानी जाती है, इस के दूध में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी होती है। डेरी फार्मिंग छोटे/सीमांत किसानों और खेतिहर मजदूरों के लिए सहायक आय का एक अनिवार्य स्रोत है। दूध के अलावा जानवरों की खाद मिट्टी की उर्वरकता और फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए कार्बनिक पदार्थों का एक अच्छा स्रोत माना जाता है। भैंस फार्म का संचालन करना लगभग सभी मसौदा शक्ति की आपूर्ति करते हैं, क्योंकि कृषि अधिकतर आवधिक होती है। इसीलिए भैंस डेयरी फार्मिंग के माध्यम से अनेक व्यक्तियों को रोजगार मिलने की संभावना अधिक रहती है। जो किसान इस नस्ल की भैंस का पालन करके डेयरी व्यवसाय के माध्यम से अच्छी खासी आय अर्जित करना चाहते हैं। उन्हें अपने नजदीकी डेयरी फार्म और कृषि विश्वविद्यालय/ सैनी डेयरी फार्मों का दौरा करना चाहिए और डेयरी फार्मिंग की लाभप्रदता पर चर्चा करनी चाहिए। क्योंकि इस तरह के नस्लों वाली भैंस को पालने के लिए एक अच्छा व्यवहारिक प्रशिक्षण और विशेषज्ञता अत्यधिक जरूरी होती है।


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जाफराबादी भैंस का विशेष तौर पर ख्याल रखना होता है, इसके आहार और आराम का ख्याल रखना बेहद जरूरी माना जाता है। जो किसान इस नस्ल की भैंस का पालन करते हैं, उन्हें इसके आहार में संतुलन बनाए रखना अनिवार्य होता है। तोजो किसान पशुपालन में अपनी रुचि रखते हैं, उन्हें जाफराबादी नस्ल के भैंस को जरूर पालना चाहिए। मजबूत कद काठी वाली यह भैंस 1 महीने में हजार लीटर से भी ज्यादा दूध देती है। किसान इस भैंस का दूध निकाल कर डायरेक्ट बाजार में बेचकर बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं, इसके बच्चे भी बहुत ही जल्दी तैयार हो जाते है। इन्हें भी बेचकर किसान बढ़िया मुनाफा अर्जित कर सकते हैं, कुल मिलाकर बात करें तो जाफराबादी भैंस के पालने से आप लाखों का मुनाफा अर्जित कर सकते हैं।
बिना गाय और भैंस पालें शुरू करें अपना डेयरी सेंटर

बिना गाय और भैंस पालें शुरू करें अपना डेयरी सेंटर

गाय और भैंस पालना हर किसी के बस की बात नहीं है, लेकिन फिर भी बहुत से लोग ऐसे हैं जो डेयरी सेक्टर से जुड़ना चाहते हैं। बहुत बार जगह के अभाव के कारण या फिर इस क्षेत्र में अनुभव की कमी के कारण लोग गाय या भैंस पाल नहीं सकते हैं। लेकिन फिर भी दुग्ध से जुड़ा हुआ व्यापार करना चाहते हैं। इसी समस्या का समाधान करने के लिए सरकार ने एक बहुत ही अच्छी पहल की है। देश में जगह-जगह पर मिल्क कलेक्शन सेंटर बनाए जा रहे हैं।

क्या है मिल्क कलेक्शन सेंटर

बहुत से गांवों और शहरों में मिल्क कलेक्शन सेंटर का निर्माण किया जा रहा है। यह एक ऐसी जगह है, जहां पर आपके क्षेत्र के आसपास के दुग्ध उत्पादक लोग आकर अपने गाय या भैंस का दूध जमा करवा सकते हैं। मिल्क कलेक्शन सेंटर में कोई भी जानवर नहीं पाला जाता है, बल्कि जानवर रखने वाले व्यापारी स्वयं ही आकर वहां पर दूध जमा करवा देते हैं। यहां पर दूध को जमा करने के लिए बड़े-बड़े कंटेनर और कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था की जाती है। इसके बाद दूध को इकट्ठा करते हुए बड़ी-बड़ी कंपनियों को बेच दिया जाता है। मिल्क कलेक्शन सेंटर का फायदा कंपनी और सेंटर वालों को तो हो ही रहा है। साथ ही, अब दुग्ध उत्पादन करने वाले किसानों को भी अपना दूध बेचने के लिए किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ रहा है। पहले उन्हें दूध बेचने के लिए अपने घर और गांव से दूर शहर की ओर जाना पड़ता था। लेकिन आजकल वह गांव में रहते हुए ही दूध बेच सकते हैं।


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दूध को इकठ्ठा करने का है अच्छा तरीका

यहां पर आने वाले दूध का सैंपल चेक किया जाता है और इस सैंपल के बाद यह निर्धारित किया जाता है कि दूध में कितना फैट है। फैट के आधार पर ही दूध को अलग-अलग कंटेनर में डाल दिया जाता है और डिमांड के हिसाब से कंपनियों को दे दिया जाता है।

कंपनियों का रहता है कॉन्ट्रैक्ट

आप एक दुकान या कलेक्शन यूनिट बनवाकर मिल्क कलेक्शन सेंटर खोल सकते हैं। साथ ही, आपको कुछ बड़े बर्तन एक टैंक एवं कोल्ड स्टोरेज बनाना पड़ता है। केंद्र सरकार की डेयरी उद्यमिता योजना के चलते इस तरह का बिजनेस शुरू करने के लिए वित्तीय और तकनीकी दोनों ही तरह की मदद की जाती है। आप एक बार अपना सेटअप करने के बाद किसी भी दूध वाली कंपनी के साथ अपना कॉन्ट्रैक्ट शुरू कर सकते हैं और अपने मिल्क सेंटर में आने वाला सारा दूध इकट्ठा करके कंपनी तक पहुंचा देते हैं। ज्यादातर कंपनियां खुद ही अपने टैंक मिल्क कलेक्शन सेंटर तक भेज देते हैं और आप अपना दूध उनके द्वारा दी गई सुविधा के तहत ही कंपनी तक पहुंचा आते हैं। इस बिजनेस में सहकारी संघ काफी मदद करते हैं और एक समिति बनाकर आस-पास के गांव से दूध को इकट्ठा करके कंपनी के साथ एक कॉन्ट्रैक्ट कर लेते हैं। कंपनी समिति को तो पैसा देती ही है और यह समिति दूध बेचने वाले ग्रामीणों को भुगतान कर देती है।
हरियाणा की रेशमा भैंस ने 34 किलो दूध देकर बनाया सबसे ज्यादा दूध देने का रिकॉर्ड

हरियाणा की रेशमा भैंस ने 34 किलो दूध देकर बनाया सबसे ज्यादा दूध देने का रिकॉर्ड

ये भैंस हरियाणा के कैथल जिले के बूढ़ा खेड़ा गांव के तीन भाइयों संदीप, नरेश और राजेश की है | आपको बता दें की रेशमा का नाम सबसे ज्यादा दूध देने वाली भैंसो मैं शामिल हैरेशमा को सरकार की तरफ से मिल चुके है कई इनाम, नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड की तरफ से रेशमा नाम की भैंस को 33.8 लीटर दूध देने का रिकॉर्ड कायम करने का सर्टिफिकेट मिल चूका है | रेशमा रोजाना 33.8 लीटर दूध देकर एक नया कीर्तिमान स्थापित कर चुकी है रेश्मा से पहले हरियाणा के हिसार जिले के किसान सुखवीर ढांडा की भैंस सरस्वती ने 33 लीटर दूध दे कर ये रिकॉर्ड बनाया था | इस रिकॉर्ड को कैथल जिले की रेशमा भैंस ने 33.8 लीटर दूध दे कर खुद के नाम कर लिया है | चौथी बार 2022 में रेशमा को मां बनने पर नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड ने सबसे ज्यादा दूध देने वाली भैंस का सर्टिफिकेट भी दिया.| 

रेशमा भैंस के दूध में कितना फैट है और किस बयात में कितना दूध दिया आइये जानते है |

  • इसके दूध की फैट की गुणवत्ता 10 में से 9.31 है
  • रेशमा भैंस के मालिक संदीप बताते हैं कि रेशमा ने पहली बार जब बच्चे को जन्म दिया तो 19-20 लीटर दूध दिया था
  • दूसरी बार उसने 30 लीटर दूध दिया.जब तीसरी बार 2020 में रेशमा मां बनी तब भी रेशमा ने 33.8 लीटर दूध देकर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया था.|
  • इसके बाद चौथी बार रेशमा 2022 में मां बनी तब उसे नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड ने सबसे ज्यादा दूध देने वाली भैंस का सर्टिफिकेट भी दिया


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क्या खाती है रेश्मा भैंस जाने डाइट के बारे में ?

  • रेश्मा भैंस के मालिक संदीप कहते हैं कि वह ज्यादा भैंसों का पालन नहीं करते हैं.| फिलहाल उनके पास तीन भैंसे ही हैं इन्हीं भैंसों की वह अच्छे तरीके से देखभाल करते हैं और उनसे बढ़िया दूध उत्पादन लेते हैं |
  •  रेशमा की डाइट के बारे में बताते हुए संदीप कहते हैं कि उसे एक दिन में 20 किलो पशु दाना खाने के लिए दिया जाता है साथ ही अच्छी मात्रा में हरा चारा भी उसकी डाइट में शामिल है
  • इसके अलावा अन्य जानवरों की तरह उसे दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए  मिनरल मिक्सचर को दाने में मिला कर दिया जाता है
  • रेशमा को तेल और गुड़ भी भोजन के तौर पर दिया जाता है

पाँचवे बयात में भी रेशमा का रिकॉर्ड है कायम |

संदीप के मुताबिक रेशमा भैंस 5 बार बच्चों को जन्म दे चुकी है.| 5 बयात में अभी भी उसकी दूध देने की क्षमता अच्छी-खासी बनी हुई है | हालांकि, अभी तक रेशमा का रिकॉर्ड टूट नहीं पाया है.कोशिश है ये रिकॉर्ड आगे भी बरकरार रहे| संदीप का कहना है की रेशमा 5 बच्चों को जन्म दे चुकी है. उसके बच्चे भी ऊंची कीमत पर बिकते हैं.
अब खास तकनीक से पैदा करवाई जाएंगी केवल मादा भैंसें और बढ़ेगा दुग्ध उत्पादन

अब खास तकनीक से पैदा करवाई जाएंगी केवल मादा भैंसें और बढ़ेगा दुग्ध उत्पादन

अब भारत के किसान खेती बाड़ी के साथ-साथ पशुपालन भी करते हैं। इस तरह से अपनी आमदनी को दोगुना करने की कोशिश कर रहे हैं। किसानों द्वारा की जा रही यह पहल ना सिर्फ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को आगे ले जा रही है बल्कि भारत में बढ़ रहे डेयरी उत्पादों की मांग को पूरा करने के लिए भी यह बेहतरीन विकल्प है। कुछ समय पहले तक दुधारू पशुओं की संख्या एक चुनौती बनी हुई थी। लेकिन सरकार ने इस समस्या का हल निकालने के लिए काफी प्रयास किया है और अब देश में मादा दुधारू पशुओं की संख्या बढ़ाने के लिए कुछ तकनीक चलाई जा रही हैं। सेक्स सॉर्टेड सीमन तकनीक के तहत मादा भैंसों की पैदाइश बढ़ाई जाएगी और नर भैंसों को पैदा होने से रोका जा सकता है। देशभर में पहले से ही राष्ट्रीय गोकुल मिशन चल रहा है और उसी के तहत नस्ल सुधार कार्यक्रम के भीतर इस तकनीक को प्रमोट किया जाएगा। इस तकनीक में सबसे ज्यादा ध्यान मादा भैंसों की संख्या बढ़ाने पर ही रहेगा।
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मध्यप्रदेश राज्य पशुधन एवं कुक्कुट विकास निगम ऑफ भोपाल मदर बुल फॉर्म में भी अब गौवंशों के साथ भैंसवंशों के नस्ल सुधार का काम चल रहा है। इससे राज्य में दूध उत्पादन बढ़ाने और श्वेत क्रांति में योगादान देने में खास मदद मिलेगी।

पैदा होंगी केवल मादा भैंस

सेक्स सीमन सॉर्टेड तकनीक पहले ब्राजील में इस्तेमाल की जाती रही है और इसके तहत वहां पर मादा भैंसों का जन्म करवाया जाता रहा है। इसी तकनीक की तर्ज पर अब भारत में भी यह अपनाया जाएगा। अब ब्राजील की तरह मादा पशुओं का उत्पादन बढ़ाने के लिए मध्य प्रदेश का कुटकुट विकास निगम अब भैंसों में सेक्स सॉर्टेड सीमन की तकनीक का परीक्षण करेगा। इस तकनीक के तहत मादा पशुओं को आर्टिफिशियल तरीके से गर्भधारण करवाया जाएगा। इस तरह से गर्भधारण होगा कि केवल मादा भैंस ही जन्म लेगी और नर पशु के जन्म को रोक दिया जाएगा। अगर पशुपालन विभाग में रहने वाले एक्सपर्ट लोगों की बात मानी जाए तो इस तकनीक के जरिए पैदा होने वाली भैंस में दूध की क्षमता बाकी के मुकाबले ज्यादा होगी। इस तकनीक से पैदा हुई भैंस रोजाना 20 लीटर तक दूध का उत्पादन करने में मदद करेगी। इससे किसान और पशुपालकों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा और उनकी आय भी बढ़ेगी। एक्सपर्ट्स ने बताया कि इसी तकनीक की तर्ज पर ब्राजील ने भारत के देसी पशुधन के जरिए 20 से 54 लीटर तक दूध उत्पादन लेने का रिकॉर्ड कायम किया है।

इन भैसों की नस्लों का होगा सुधार

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मध्य प्रदेश कुटकुट विकास निगम के सहयोग से मदर बुल फॉर्म स्थित लैब मुर्रा नस्ल के बफेलो बुल से सेक्स सॉर्टेड सीमन से 50,000 स्ट्रा तैयार किए जा रहे हैं। भैंसों के इस नस्ल सुधार कार्यक्रम में मुर्रा, जाफराबादी और भदावरी प्रजाति की भैसों को शामिल किया गया है। इस प्रोजेक्ट के पहले चरण की बात की जाए तो सबसे पहले ज्यादा दूध उत्पादन करने वाली मुर्रा नस्ल की भैंस में सुधार होगा। माना जाता है, कि मुर्रा नस्ल की भैंस अभी 8 से 10 लीटर तक दूध देती है। अगर इस तकनीक के जरिए नस्ल बढ़ाई जाती है, तो दूध उत्पादन बढ़कर 18 से 20 लीटर तक हो जाएगा। पशुपालन विभाग के विशेषज्ञों ने बताया कि मुर्रा प्रजाति हरियाणा से ताल्लुक रखती है। जिसे दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए तैयार करने में 35 साल का समय लगा। अब इससे दूसरी नस्लों का सुधार किया जा रहा है।

मादा पशु हैं दूध सेक्टर का भविष्य

अगर डेयरी सेक्टर की बात की जाए तो केवल मादा पशु ही इस सेक्टर का भविष्य माने गए हैं। क्योंकि डेयरी से जुड़ी हुई सभी तरह की डिमांड इन के दूध से पूरी हो सकती। ऐसे जब हम इस नस्ल के मादा पशु बना पाएंगे जो ज्यादा से ज्यादा दूध देते हों, तो यह हमारे दुग्ध सेक्टर के लिए काफी लाभकारी होगा। इन्हीं सब कारणों के चलते सरकार काफी बढ़ चढ़कर राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत इस तकनीक को प्रमोट कर रही है। इससे मादा पशुओं के पैदा होने की संभावना 90 से 95% तक होती है।
यहां मिल रहीं मुफ्त में दो गाय या भैंस, सरकार उठाएगी 90 फीसद खर्च

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पशु पालन को सबसे कामयाब और मजबूत आय का जरिया माना जाता है. खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में ये काफी कारगर है. इस बात से किसानों के साथ साथ सरकारें भी वाकिफ हैं. यही वजह है कि पशु पालन के चलते किसानों की आय को बढ़ाने की कोशिश लगातार की जा रही है. इसी तर्ज पर मध्य प्रदेश की सरकार भी जनजातीय समाज के बेरोजगारों के लिए पशु पालन से जोड़ने के लिए प्रयासरत है. जानकारी के मुताबिक बता दें कि, एमपी सरकार बैगा, भारिया और सहरिया समाज के बेरोजगारों को पशुपालन से जोड़ने का काम कर रही है. इस समाज के परिवारों को दो गाय या भैंस मुफ्त में दी जाएंगी. इन सबके अलावा पशुओँ को चारे से लेकर उनपर होने वाले सभी तरह के खर्च पर लगभग 90 फीसद तक का खर्चा सरकार करेगी.

जनजातीय समाज की आर्थिक स्थिति बेहतर बनाने का प्रयास

माना जा रहा है कि, मध्य प्रदेश की सरकार की इस योजना से पशु पालन व्यवसाय में काफी हद तक इजाफा होगा. साथ ही जनजातीय समाज के लोगों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हो सकेगा. वहीं मध्य प्रदेश में आवारा पशुओं की भी भरमार है, जिसमें कमी आएगी.

सरकार की तरफ से लोन सुविधा

MOU यानि की एमपी स्टेट को-ऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के मुताबिक राज्य के किसान भाइयों को दूध देने वाले पशुओं की खरीद पर सरकार 10 लाख रुपये तक का लोन दे रही है. किसानों को यह लोग मध्य प्रदेश कुछ चिन्हित बैंकों से ही मिल सकेगा. ये भी पढ़ें: जाने किस व्यवसाय के लिए मध्य प्रदेश सरकार दे रही है 10 लाख तक का लोन इस योजना के तहत आवेदन करने वाले लोग 2, 4, 6 और 8 दुधारू पशु खरीदने के लिए हर जिले के तीन से चार बैंक की शाखाओं पर लोन की सुविधा मिलेगी. जिसमें से 10 लाख रुपये तक नॉन कोलेट्रल मुद्रा लोन और 60 हजार रूपये का मुद्रा लोन शामिल किया गया है. लाभार्थी को इस लोन को लेने के लिए 10 फीसद का मार्जिन मनी जमा करनी होगी. साथ ही इस लोन को कुल 36 किस्तों में चुकाने की सहूलियत लाभार्तियों को मिलेगी.

जानिए क्या है पूरी योजना

  • मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार ने इस योजना की घोषणा अपने ट्वीटर हैंडल के जरिये दी है.
  • मुख्यमंत्री सिवराज सिंह चौहान की सरकार ने कहा कि. वो दो गाय या फिर दो भैंस मुफ्त में देगी.
  • इसके आलवा उनके पशुपाल पर होने वाले खर्चे का 90 फीसद भी सरकार की तरफ से दिया जाएगा.
  • मध्य प्रदेश सरकार का मानना है कि, पशु पालन में सरकारी मदद मिलने

से लोगों की आर्थिक स्थिति में काफी हद तक सुधार आएगा.

  • मध्य प्रदेश सरकार यह योजना राज्य के जनजातीय समाज के बेरोजगारों के लिए लेकर आई है.
  • यह योजना राज्य के बैगा, भारिया और सहरिया समाज के लिए लाई गयी है.
  • राज्य में आवारा पशुओं की संख्या में लगाम लग सकेगी.
  • राज्य में पशुपालन को बढ़ावा मिलेगा जिससे दूध का उत्पादन भी बढ़ेगा.
एमपी में जनजातीय समाज के लोगों की जनसंख्या एवरेज है. इस समाज की बेहतरी हो, यह सरकार भी चाहती है. जिसके लिए उन्हें इस व्यवसाय से जोड़ा जा रहा है. सहरिया, बैगा और भरिया समाज के ज्यादा से ज्यादा लोग इस व्यवसाय से जुड़े, ऐसी मंशा से सरकार परिवारों को दो भैंस या गाय मुफ्त में देगी. वहीं पशुओं पर आने वाले हर तरीके के खर्च का भी 90 फीसद हिस्सा सरकार के जिम्मे होगा. मध्य प्रदेश पशु पालन विभाग ने सरकार के इस फैसले की जानकारी अपमे ऑफिशियल ट्वीटर हैंडल पर जारी की है.