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रोटावेटर

गेहूं की फसल का समय पर अच्छा प्रबंधन करके कैसे किसान अच्छी पैदावार ले सकते हैं।

गेहूं की फसल का समय पर अच्छा प्रबंधन करके कैसे किसान अच्छी पैदावार ले सकते हैं।

गेहूं जैसा कि हम जानते हैं, विश्व में सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली अनाज की फसल है। गेंहू विश्व में उत्पादन और सबसे अधिक उगाया जाता है, इसलिए गेहूं को फसलों का राजा कहा जाता है। गेहूं किसी भी अन्य अनाज की तुलना में मिट्टी और जलवायु की अधिक विविधता में खेती करने में सक्षम है और रोटी बनाने, ब्रेड बनाने, मैक्रोनी बनाने और बहुत रूप में उपयोग के लिए भी बेहतर अनुकूल है। गेहूं में एक ग्लूटेन नाम का प्रोटीन जो बेकिंग के लिए आवश्यक होता है। इसलिए ये बेकरी प्रोडक्ट्स बनने के लिए उपयोगी है। हमारे भारत में गेहूं की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। सबसे ज्यादा गेहूं की फसल की खेती उत्तरप्रदेश, हरियाणा और पंजाब में की जाती है। प्रति एकड़ की पैदावार पंजाब में सबसे अधिक है, क्योंकि पंजाब में 100% पानी आधारित खेती होती है।उत्पादन की बात की जाए तो हमें बढ़ती आबादी को देखते हुए 2025 तक गेहूं की मांग को पूरा करने के लिए 117 मिलियन टन गेहूं के उत्पादन करना होगा। इसके लिए हमें उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल करके गेहूं की पैदावार को ज्यादा करना होगा।

खरीफ की फसल की कटाई के बाद कैसे करें जमीन तैयार

खरीफ की फसल कटाई के बाद हमें अपने खेत को हैरो, कल्टीवेटर या रोटावेटर चलाकर अच्छी तरह से जोतना है ताकि भूमि में पिछली फसल के अवशेष खतम हो जाएं। इस के बाद हमें अपने खेत में गोबर की खाद डाल देनी है और, एक बार और हैरो चला देनी है जिस से गोबर की खाद मिट्टी में अच्छी तरह से मिल जाए। गेहूं की फसल बोने से पहले हमें मिट्टी में नमी भी देखनी है, अगर मिट्टी में सही नमी न हो तो हमें खेत में सिंचाई करनी चाहिए ताकि फसल की उपज अच्छी हो। गेहूं की फसल में सीड़ बेड समतल और प्लेन होना चाहिये। गेहूं की फसल में ग्रोथ के लिए 20-25 डिग्री सेल्सियस तापमान चाहिये। गेहूं की फसल के लिए काली या दोमट मिट्टी अच्छी पैदावार देती है और मिट्टी का pH मान 5-7 होना चाहिए।

पोषण व्यवस्था कैसे करें

सब से पहले हमें खेत की मिट्टी की जांच करनी है, उस के आधार पर हमें अपने खेत में पोषण तत्व देने हैं। गेहूं की फसल को 40-50 किलो नाइट्रोजन, 25-30 किलो फॉस्फोरस,15-20 किलो पोटास और 10 किलो जिंक और 10 किलो सल्फर डालने से अच्छी पैदावार होती है।

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नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फास्फोरस, पोटाश व जिंक और सल्फर की पूरी मात्रा तथा गोबर की खाद की पूरी मात्रा खेत तैयार करते समय या अंतिम जुताई के समय खेत में मिला देनी चाहिए। कई बार खड़ी फसल में जिंक की कमी दिखने पर इस का स्प्रे भी कर सकते हैं। नाइट्रोजन की शेष मात्रा को दो भागों में बांटकर पहली सिंचाई 20-25 दिन बाद एवं दूसरी 40-45 दिन के बाद प्रयोग करें।

बिजाई का उत्तम समय और बीज की मात्रा

नवंबर महीने की 15 - 25 तारीख तक बिजायी का उत्तम समय होता है। 25 नवंबर के बाद हम पछेती किस्मों की बिजाई कर सकते हैं। पछेती बिजाई पर बीज और उर्वरक की मात्रा थोड़ी ज्यादा डालनी पड़ती है, जिससे पछेती फसल की भी अच्छी पैदावार हो सकती है। एक अकड़ के लिए 40 किलो बीज पर्याप्त होता है। कम पानी वाली इलाके में 50 किलो बीज प्रति एकड़ और पछेती बिजाई पर भी 20 किलो बीज सामान्य से ज्यादा लगता है। पौधे से पौधे की दुरी 8 -10 CM होनी चाहिये और कतार से कतार की दूरी 22. 5 CM होनी चाइए। बीज 4 से 5 CM मिट्टी की गहराई में डालना चाहिए। इन नई किस्मों, जिन्हें DBW-316, DBW-55, DBW-370, DBW-371 और DBW-372 नाम दिया गया है। भारतीय कृषि परिषद की गेहूं और जौ की प्रजाति पहचान समिति द्वारा अनुमोदित किया गया है। इन किस्मो का चुनाव कर के किसान अच्छी पैदावार ले सकते है।

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सिचाई प्रबंधन

फसल में हल्की मिट्टी में करीब 6 सेंटीमीटर की गहराई तक सिंचाई करनी चाहिए। वहीं दोमट मिट्टी में करीब 8 सेंटीमीटर की गहराई तक सिंचाई करनी चाहिए। अगर हमारी जमीन में पर्याप्त जल उपलब्ध है, तो हमें फसल में 5 से 6 बार सिंचाई करनी चाहिए। सिचाई की अवधियाँ इस प्रकार हैं। पहली सिंचाई मुख्य जड़ विकास (CROWN ROOT INITATION ) - 21 -25 दिन की हो जाने पर फसल में सिंचाई करना बहुत आवश्यक है। इस स्टेज पर फसल में सिंचाई करना बहुत आवश्यक है, क्योंकि इस स्टेज के नाम से ही पता चल रहा है कि 21 दिन बाद फसल में नई जड़ का विकास होता है। अगर इस समय पर फसल को पानी नहीं मिलता है तो फसल की पैदावार बिल्कुल घट जाती है। इस लिए कई स्थानों पर जहाँ पानी की कमी है, केवल एक सिंचाई संभव है, तो किसान इस स्टेज की फसल की सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। दूसरी सिंचाई 40 -45 दिन की फसल हो जाने पर करनी चाहिए। इस समय फसल में टिलर्स बनते हैं, यानि की फसल में फुटाव होता है। तीसरी सिंचाई 60- 65 दिन पर करनी होती है। इस समय फसल पर गेहू का विकास बिंदु भूमि की सतह से ऊपर जाता है और फसल का पूर्ण विकास होता है। चोथी सिंचाई 80 -85 दिन बाद करते हैं। इस समय पर फसल में बालियाँ बननी शुरू हो जाती हैं। इस को बूट चरण भी बोलते हैं, तब शुरू होता है जब फ्लैग लीफ के अंदर बालियाँ बनने लगती हैं । दुग्ध विकास चरण 100 - 105 दिन बाद सिंचाई करते हैं। ये फूल आने के पूरा होने के बाद शुरू होता है और प्रारंभिक गठन चरण होता है। इसे अर्ली, मीडियम और लेट मिल्क में बांटा गया है। विकासशील एंडोस्पर्म एक दूधिया तरल पदार्थ के रूप में शुरू होता है, जो बाद में दाने बन जाते हैं। इस समय पर फसल में पानी देने से दाने मोटे हो जाते हैं, जिससे फसल की पैदावार बढ़ जाती है।

फसल में खरपतवार नियंत्रण

सब से पहले हमें अपने खेत का निरीक्षण करके देखना है, कि हमारे खेत में किस प्रकार के खरपतवार हैं। फिर उस आधार पर हमें दवा का छिड़काव करना है। डोज के आधार पर ही हमें खेत में दवा का छिड़काव करना है। रेकमेंडेड डोज से ज्यादा अगर किसी भी खरपतवार नाशी का प्रयोग किया जाये तो वो फसल को भी जला सकते हैं।

संकरी पत्ती वाले खरपतवार

मंडूसी अथवा गुल्ली डंडा अथवा गेहूं का मामा खरपतवार और जंगली जई को मारने के लिए खरपतवार नासी स्ल्फोसफल्फ्यूरान या क्लोनिडाफाप प्रोपेरजिल 15 प्रतिशत डब्ल्यूपी 400 ग्राम प्रति एकड़ को पानी में घोलकर छिड़काव करें। मेटासुलफूरों 2 किलो डब्ल्यूपी का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार

बथुआ, जंगली पालक, मोथा के लिए टू फोर डी सोडियम साल्ट 80 प्रतिशत दवा आती है। 250 एमएल दवा एक एकड़ एवं 625 एमएल प्रति हैक्टेयर के लिए उपोग मे लाएं। पानी में मिलाकर 400 से 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करने से तीन दिन में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार मर जाते हैं। टू फोर डी ईस्टर साल्ट का प्रयोग भी फसल के 30 - 35 दिन बाद की हो जाने पर करना चाहिये नहीं तो फसल में ग्रेन मलफोर्मेशन की दिक्क्त आ सकती है।

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फसल में रोग प्रबंधन

पूर्ण रतुआ /भूरा रतुआ रोग का पहला लक्षण पत्तियों पर अनियमित रूप से सूक्ष्म, गोल, नारंगी छोटे छोटे गोल दभ्भे का दिखना है। पत्तियों में गंभीर जंग लगने से उपज में कमी आती है, रोग आमतौर पर जनवरी के दूसरे पखवाड़े या फरवरी के पहले सप्ताह में प्रकट होता है। रोग इष्टतम 15-2oC के साथ 2-35oC के तापमान रेंज में दिखायी दे सकता है।

धारीदार रतुआ या पीला रतुआ

रोग मुख्य रूप से पत्तियों पर दिखायी देता है, हालांकि पत्ती के आवरण, डंठल और बालियां भी प्रभावित हो सकती हैं। नींबू के पीले रंग के छोटे-छोटे दाने लंबी पंक्तियों में व्यवस्थित होते हैं, जो धारियों का पैटर्न देते हैं। जो पर्यावरणीय परिस्थितियों के आधार पर दिसंबर या मध्य जनवरी के अंतिम सप्ताह में दिखायी देते हैं। बाद के चरणों में पत्तियों की निचली सतह पर फीकी काली धारियाँ बन जाती हैं। प्रभावित पौधों में दाने हल्के और सिकुड़े हुए हो जाते हैं, जिससे उपज में भारी कमी आती है।

काला रतुआ

रतुआ संक्रमण का पहला लक्षण पत्तियों, पर्णच्छदों, कल्मों और फूलों की संरचनाओं का छिलना है। ये धब्बे जल्द ही आयताकार, लाल-भूरे रंग के रूप में विकसित हो जाते हैं। जब बड़ी संख्या में स्पोर्स फटते हैं और अपने बीजाणु छोड़ते हैं, तो पूरी पत्ती का ब्लेड और अन्य प्रभावित हिस्से दूर से भी भूरे रंग के दिखाई देंगे।

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तीनों रतुआ का उपाय :

  • देर से बुआई करने से बचें।
  • नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों का संतुलित प्रयोग करें।
  • प्लांटवैक्स @ 0.1% के साथ बीज ड्रेसिंग के बाद एक ही रसायन के साथ दो छिड़काव।
  • 15 दिनों के अंतराल पर जिनेब @ 0.25% या मैनकोजेब @ 0.25% या प्लांटावैक्स @ 0.1% के साथ दो या तीन बार छिड़काव करें।
  • रोग के लक्षण दिखाई देते ही 200 मिली. प्रोपीकोनेजोल 25 ई.सी. या पायराक्लोट्ररोबिन प्रति लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।
  • रोग के प्रकोप और फैलाव को देखते हुए दूसरा छिड़काव 10-15 दिन के अंतराल में करें।

करनाल बंट

खेत में करनाल बंट के लक्षणों को पहचानना अक्सर मुश्किल होता है, क्योंकि किसी दिए गए सिर पर संक्रमित गुठली की घटना कम होती है। लक्षण कटाई के बाद बीज पर सबसे आसानी से पाए जाते हैं।

लूज स्मट

यह रोग आंतरिक रूप से संक्रमित बीज से पैदा होता है तथा संक्रमित बीज ऊपर से देखने में बिल्कुल स्वस्थ बीजों की तरह ही दिखाई देता है। इस रोग से प्रति वर्ष उत्तर भारत में गेहूं की उपज में 1-2 प्रतिशत की हानि होती है। बुवाई से पहले बीज को वीटावैक्स 2 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित करें। संक्रमित कानों को मिट्टी के अंदर दबा दें |
गेहूं कटाई के बाद खेत की जुताई के लिए आधुनिक कृषि यंत्र

गेहूं कटाई के बाद खेत की जुताई के लिए आधुनिक कृषि यंत्र

आधुनिकता के चलते भारतीय कृषि क्षेत्र में बैलों की जगह कई प्रकार के कृषि यंत्रो और मशीनों ने ले ली है। उपकरण खेती के बहुत सारे बड़े से बड़े कार्यों को आसान बनाते हैं। 

साथ ही, लागत को भी कम करने का कार्य करते हैं। बुवाई से लगाकर कटाई तक के कार्यों को सुगम बनाने में कृषि यंत्र अपनी अहम भूमिका निभाते हैं। बुवाई के लिए खेत को तैयार करने के लिए किसान ट्रैक्टर द्वारा रोटावेटर या कल्टीवेटरका इस्तेमाल करते हैं। 

ये उपकरण मिट्टी की उपरी परत की हल्की जुताई करते हैं, जिससे बुवाई करना काफी सरल हो जाता है। आइए जानते हैं जुताई के लिए कुछ महत्वपूर्ण और लाभदायक कृषि यंत्रों के बारे में। 

मोल्ड बोर्ड हल 

मोल्ड बोर्ड हल को किसानों के बीच मिट्टी पलट हल के नाम से भी जाना व पहचाना जाता है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाये रखने के लिए जरूरी है कि इसे पलटा जाये। 

मिट्टी पलटने तथा खरपतवार को नीचे दबाने के लिए मोल्ड बोर्ड हल (Mould Board Plough) ज्यादा गहरी जुताई करते हैं। मिट्टी को भी पलटते हैं, जिससे सतह पर मौजूद खर-पतवार और अन्य फसल अवशेष बेहतर तरीके से दब जाते हैं। 

बतादें, कि 2 फाल वाले प्लाऊ को संचालित करने के लिए ट्रैक्टर की हॉर्स पावर 35 से 45 हॉर्स पॉवर होनी चाहिए। इस प्लाऊ की कार्य क्षमता 1.5 हेक्टेयर तक प्रति दिन होती है। 

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साथ ही, 3 फाल वाले प्लाऊ को चलाने के लिए ट्रैक्टर की हॉर्स पावर 40 से 50 एचपी होनी चाहिए। इस हल के साथ किसान 2 हेक्टेयर तक प्रति दिन कार्य कर सकते हैं। 

इस कृषि उपकरण का इस्तेमाल गर्मी के मौसम में खेत की गहरी जुताई के लिए, ढैचा/सनई आदि हरी खाद वाली फसल को मिट्टी में पलटकर मिलाने के लिए भी किया जाता है। 

डिस्क प्लाऊ

डिस्क प्लाऊ  (Disc Plough) भी एक मिट्टी पलटने वाला हल है और यह मोल्ड बोर्ड हल की अपेक्षा ज्यादा गहराई तक जुताई करने में सक्षम होता है। किसान इस यंत्र का इस्तेमाल भारी मृदा को पलटने के लिए करते हैं। इसमें आपको दो या तीन फाल देखने को मिल सकते हैं।

खेतों में ज्यादा खरपतवार और गहरे फसल अवशेष को काटने तथा पलटने में इस यंत्र का इस्तेमाल किया जाता है। ट्रैक्टर की क्षमता के अनुसार इस यंत्र से 40 से 50 सेंटीमीटर की गहराई तक जुताई की जा सकती है। इस कृषि यंत्र की कार्य क्षमता प्रतिदिन 1.5 से 2 हेक्टेयर है। 

चिसेल प्लाऊ 

चिसेल हल (Chisel Plough) बिना सतह वाली मृदा को अस्त व्यस्त किये और सतह पर मौजूद फसल अवशेषों को यथावत रखते हुए बहुत गहरी चीरे लगाई जा सकती हैं। इस यंत्र के साथ 1 मीटर की गहराई तक जुताई कर सकते हैं। 

ऐसा करने से स्थाई तौर पर सतह के नीचे की जल निकासी सुनिश्चित की जा सकती है। मिट्टी पलट हलों के मुकाबले में चिजेल हल के इस्तेमाल से मिट्टी की सतह पर किसी तरह का कार्य नहीं किया जाता है, जिससे हवा या पानी की वजह मिट्टी के कटाव को रोका जा सकता है। 

लेजर लैंड लेवलर 

खेत की जुताई और सिंचाई करने से जमीन असमतल हो जाती है, जिससे मृदा के पोषक तत्व का असामान्य वितरण और सिंचाई जल में वृद्धि जैसी दिक्कतें खड़ी होने लग जाती हैं। 

समय-समय पर खेत के समतलीकरण की आवश्यकता को सटीक और कम में वक्त में पूरा करने के लिये लेजर लैंड लेवलर (Laser Land Leveler) का इस्तेमाल किया जाता है। इस मशीन में लेजर किरणों की सहायता से पीछे लगे बकेट को काबू करके जमीन को एकसार किया जा सकता है। 

जुताई का राजा रोटावेटर(Rotavator)

जुताई का राजा रोटावेटर(Rotavator)

रोटावेटर ट्रैक्टर के साथ चलने वाला जुताई का आधुनिक यंत्र है। जमीन पर बढ़ते फसलों के बोझ की स्थिति में यह सूखे या गीली जमीन में जुताई करने का उपयुक्त माध्यम है। 

इसका खास लाभ किभी फसल के कूडे़ या डंठलों को जमीन में मिलाने के लिए किया जाता है। एक ही जुताइ में खेत को तैयार करने वाली परिस्थितियों के लिए यह बेहद कारगर मशीन है। 

 रोटावेटर मक्का,गेहूं,धान,गन्ना आदि के अवशेष को हटाने अथवा इसके मिश्रण करने के लिए उपयुक्त माना जाता है। रोटावेटर के उपयोग से मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार भी आता है। 

इसके अलावा धन,लागत,समय और ऊर्जा आदि की भी बचत होती है। रोटावेटर के खास तरीके से डिजाइन किए गए ब्लेडों की खास बनावट रोटावेटर को एक मजबूत मशीन का आकार देती है।आज कई कंपनियां अलग- अलग प्रकार के रोटावेटर मशीनें बना रही हैं, जो किसानों का खेती का काम आसान कर रही हैं।

वर्तमान समय में दो प्रकार के रोटावेटर प्रचलन में हैं।पहला टिलमेट और दूसरा सायल मास्टर रोटावेटर

सायल मास्टर रोटावेटर(Soil Master Rotavator)

Soil Master Rotavator


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सायल मास्टर रोटावेटर को किसी भी तरह की मिट्टी में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसे कठोर और मुलायम दोनों तरह की मिट्टी के इस्तेमाल के लिए खासतौर से डिजायन किया गया है।

इसकी डिजाइन मजबूत होने के कारण इसमें कम्पन कम होता है और यही कारण है कि ट्रक्टर पर भी भार कम पड़ता है। यह अकेली ही ऐसी मशीन है जिसमें दोनों तरफ बैरिंग लगे हैं।

यही कारण है कि यह सूखी और गीली मिट्टी दोनों पर ही काम करके अच्छे नतीजे देता है। अच्छी क्वालिटी होने की वजह से इसके रखरखाव पर भी कम खर्च आता है। 

इसका बाक्स कवर खेत में काम करते समय गीयर बाक्स को पत्थरों व दूसरी बाहरी चीजों से बचाता है।साइड स्किड असेंबली के साथ जुताई की गहराई में 4 से 8 इंच तक का फेरबदल किया जा सकता है। 

टिलमेट रोटावेटर (Tilmate Rotavator)

इसको खास तरीके से डिजाइन किया गया है। इसमें बोरान स्टील के ब्लेड लगे होते हैं। इसमें एक गियर ड्राइव भी लगा होता है जिसकी वजह से यह लंम्बे समय तक चलता है। 

इसमें ट्रेनिंग बोर्ड को एडजस्ट करने के लिए ऑटोमैटिक सिं्प्रग लगे होते हैं। इसका भी प्रयोग गीले और सूखे दोनों ही स्थानों पर कर सकते है। रोटाबेटर अन्य जुताई मशीनों की तुलना में डीजल की भी काफी बचत करता है। 

यह मिट्टी को तुरंत तैयार कर देता है जिससे पिछली फसल की मिट्टी की नमी का पूर्णतया उपयोग में आ जाता है। रोटावेटर का उपयोग 125 मिमी -150 मिमी की गहराई तक की मिट्टी के जुताई के लिए उपयुक्त है। 

इससे बीज की बुआई में आसानी रहती है। इससे जुताई अन्य यंत्रों के मुकाबले चैथाई समय में ही हो जाती है। इसका उपयोग फसलों के अवशेषो को हटाने में भी किया जाता है। इसे चलाते समय खेत में घुमाने में भी आसानी रहती है।

मेरी खेती से डबल शाफ्ट रोटावेटर खरीदने पर आपको मिलेगी भारी छूट, जानिए ऑफर के बारे में

मेरी खेती से डबल शाफ्ट रोटावेटर खरीदने पर आपको मिलेगी भारी छूट, जानिए ऑफर के बारे में

किसान भाइयों रोटावेटर आज के दिन हर किसान की जरूरत बन गया है। रोटावेटर के इस्तेमाल से आसानी से खेत की जुताई की जा सकती है। ये खेत को एक बार में ही अच्छी तरह से भुरभुरा कर देता है, जिससे कि किसान का समय और पूँजी दोनों बचते हैं। 

इसके इस्तेमाल के बाद आपको खेत में कल्टीवेटर अथवा हैरो से जुताई करने की आवश्यकता नहीं होती है। डबल शाफ्ट रोटावेटर से जुताई करने के बाद मिट्टी एकदम भुरभुरी हो जाती है और बिल्कुल समतल भी हो जाती है। इसके इस्तेमाल से खेत की मिट्टी की पानी सोखने की क्षमता भी बढ़ती है। 

आज के इस लेख में हम आपको इस डबल शाफ्ट रोटावेटर के बारे में संपूर्ण जानकारी देंगे जेसे कि ये कैसे काम करता है। हमारे इस लेख में आप ये भी जानेंगे कि मेरी खेती से अगर आप ये रोटावेटर खरीदते हैं, तो आपको कितनी छूट मिलेगी।

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डबल शाफ्ट रोटावेटर की विशेषताएँ

डबल शाफ्ट रोटावेटर एक ही बार में मिट्टी को भुरभुरा कर देता है। इस रोटावेटर को (न्यूनतम 35 - 40 एचपी) के ट्रैक्टर से आसानी से चलाया जा सकता है। डबल शाफ्ट रोटावेटर में दोनों धुरी एक ही दिशा में, एक ही गति से घूमती हैं, जिसके परिणामस्वरूप एक ही बार में मिट्टी बेहतर भुरभुरी हो जाती है। 

यह 7 फीट से 12 फीट तक के आकार में मौजूद है और मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए एल, जे और सी प्रकार जैसे विभिन्न आकार के ब्लेड को रोटर से जोड़ा जा सकता है। 

कार्य की चौड़ाई: 203 -205 मिमी, संचालन की गति (किमी प्रति घंटा): 3.63-3.91, क्षेत्र क्षमता: 0.629-0.734 हेक्टेयर/घंटा; क्षेत्र दक्षता: 82.9-94.1%, कट की गहराई: 6.0-6.3 मिमी, ईंधन खपत: 5.90-6.29 मील प्रति घंटे। ये रोटावेटर आज कल किसानों की पहले पसंद बन गए हैं। 

किसान भाइयों आप इसको खरीद कर आसानी से एक ही बार में जुताई कर सकते हैं। डबल शाफ्ट रोटावेटर के इस्तेमाल के बाद आपको हैरो या कल्टीवेटर से जुताई करने की आवश्यकता नहीं होती है ,डबल शाफ्ट रोटावेटर से एक बार जुताई के बाद खेत में सीधा फसल के बीजों की बुवाई कर सकते है।

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मेरी खेती से ख़रीदे डबल शाफ्ट रोटावेटर कम दामों पर

किसान भाइयों जैसा की आप जानते है डबल शाफ्ट रोटावेटर के बहुत फायदे है। अगर आप डबल शाफ्ट रोटावेटर खरीदने के इच्छुक हैं, तो मेरी खेती के माध्यम से आप इसकी खरीद कर सकते हैं। 

मेरी खेती पर आपके लिए एक ऑफर है, जिसमें आपको ये डबल शाफ्ट रोटावेटर कम कीमत पर मिल सकता है। अगर आप खरीदने के इच्छुक है तो यहां क्लिक करें

दमदार ट्रैक्टर(Tractor) का दौर

दमदार ट्रैक्टर(Tractor) का दौर

देश में बढ़ते हुए मशीनीकरण के दौर में किसान भाइयों को खेती करना बहुत आसान हो चुका है, जिसमे ट्रैक्टर का अनवरत चला आ रहा अकथनीय योगदान रहा है। हम जब हमारे बचपन को याद करते हैं, तो अस्सी के दशक में बहुत कम ही किसानों के पास ट्रैक्टर हुआ करते थे और उस दौर में भी ट्रैक्टर के उपयोग की सीमा भी ज्यादा नहीं रहा करती थी।  उस समय किसान भाई खेती के लिए ज्यादातर पशुओं पर निर्भर रहते थे, जिससे खेती का कार्य अत्यंत कठिन हो जाता था।  एक तरफ जहां किसान पशु और प्रकृति पर निर्भर थे, वहीँ दूसरी तरफ समय और परिश्रम भी ज्यादा लगता था। पर बदलते दौर में धीरे धीरे इसमें सुधार आने लगा, जिसके परिणामस्वरूप आज के किसानों की जटिलता कम हो गयी और उनके समय की बचत एवं आर्थिक सुधार का दौर आ गया। जब हम किसानों की कठिनाईयों की बात करते हैं तो ट्रैक्टर की याद जरूर आती है। सर्व प्रथम ट्रैक्टर के विषय में उन्नीसवीं शताब्दी में जाना गया। मगर भारत में इसकी शुरुआत हरित क्रांति से ही हो गयी थी।  स्वतंत्रता के बाद जहाँ भारत में एक तरफ इसका इस्तेमाल तेज़ी से होने लगा और इसकी मांग बढ़ गयी वहीँ दूसरी तरफ १९५० से १९६० के बीच ही अपने देश में ट्रैक्टर निर्माण का कार्य भी शुरू हो चुका था। आधुनिक कृषि उपकरण में ट्रैक्टर का स्थान कोई अन्य नहीं ले सकता है। इसकी सहायता से कठिन से कठिन कार्य भी आसानी से हो सकता है। इसका उपयोग कृषि से सम्बंधित अन्य उपकरणों को चलाने व खींचने में भी किया जाता है। कृषि क्षेत्र में ट्रैक्टर का इस्तेमाल जोतने, बीज बोने, फसल लगाने और काटने जैसे कार्यों में होता आ रहा था, परन्तु अब लकड़ी चीरने, सामान ढोने, सब्जी बोने एवं निकालने आदि कार्यों में भी होने लगा है। अगर ट्रैक्टर के बनावट की बात करें तो इसमें इंजन और उसके साधन चेसिस और पावर ट्रान्समीटिंग सिस्टम मुख्य होते हैं।  सामान्यतः ट्रैक्टर के दो मुख्य प्रकार होते हैं।  जिसमे पहला प्रकार व्हिल्ड ट्रैक्टर का उपयोग किसानों द्वारा कृषि कार्यों में होता है और दूसरा प्रकार ट्रैक ट्रैक्टर का उपयोग औद्योगिक क्षेत्रों में एवं बाँध बनाने जैसे कार्यों में किया जाता है।

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भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसके कारण कृषि से होने वाले आर्थिक फायदे और नुक्सान का हमारे देश में गहरा प्रभाव पड़ता है। आज के दौर में ट्रैक्टर कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण भागीदार रहा है। इसके बगैर आज की कृषि भी संभव नहीं है।  किसानों की बढ़ती हुई मांग की आपूर्ति के लिए आज दुनिया भर में ३० प्रतिशत ट्रैक्टर का निर्माण सिर्फ भारत में ही होता है। आज़ादी से पहले रूस से भारत ट्रैक्टर का आयात करता था। परिणामस्वरूप यह बहुत महंगा हो जाता था, जिस वजह से सभी किसानों को यह आसानी से सुलभ नहीं था।  सिर्फ धनाढ्य लोगों के घरों में ही यह दिखता था। हरित क्रांति के बाद इस कहानी में एक नया मोड़ आया जिसमें भारत में निर्माण कार्य भी प्रारम्भ हो गया।  परन्तु इसमें बड़े बदलाव अस्सी के दशक में आया जिससे पैदावार में बढ़ोतरी हुई। धीरे धीरे सत्र  २००० तक आते आते भारत ने ट्रैक्टर उत्पादन में अमेरिका को भी पीछे छोड़ते हुए नए मुकाम को हासिल कर लिया। इतने सारे ट्रैक्टर निर्माताओं में, फार्मट्रैक 60 पिछले दशकों से भारतीय किसानों के सबसे प्रिय ट्रैक्टरों में से एक रहा है। फार्मट्रैक 60 विश्व स्तरीय गुणवत्ता और नवीनतम सुविधाओं के साथ स्पष्ट रूप से बड़े और शक्तिशाली ट्रैक्टर के मूल मूल्यों को परिभाषित करता है। फार्मट्रैक 60 पॉवरमैक्स का नवीनतम संस्करण, अब 55 एचपी और 16.9x28 टायर के साथ आता है। यह निश्चित रूप से 3514 सीसी इंजन और 254 एनएम टॉर्क के साथ तीन सिलेंडर इंजन श्रेणी में सबसे शक्तिशाली ट्रैक्टर है। और देश के सबसे प्यारे ट्रैक्टरों में से एक है। 20-स्पीड गियरबॉक्स प्रत्येक एप्लिकेशन पर 3 या अधिक गति प्रदान करता है जिससे 50% अधिक उत्पादकता मिलती है। इसमें 8+2 गियरबॉक्स का भी विकल्प है। फार्मट्रैक अपनी लिफ्ट की श्रेष्ठता के लिए जाना जाता है जिसे अब सबसे शक्तिशाली 2500 किलोग्राम भारी शुल्क लिफ्ट के साथ बढ़ाया गया है। ये सारे विकल्प इसे कल्टीवेटर, रोटावेटर, हल, प्लांटर जैसे अन्य उपकरणों के लिए बहुत उपयुक्त बनाते हैं। फार्मट्रैक 60 पॉवरमैक्स ट्रैक्टर भारतीय खेतों पर राज करता है और इसे कृषि के राजा के रूप में जाना जाता है। अपनी शक्ति के साथ, सुपर सीडर और रीपर के लिए सबसे उपयुक्त गति, और उन्नत सुविधाओं के साथ यह सबसे बड़े उन्नत उपकरणों को अत्यंत आसानी से चला सकता है। बड़े टायर और ईपीआई में कमी इसे ढुलाई और वाणिज्यिक अनुप्रयोगों में भी सर्वश्रेष्ठ बनाती है। यह ट्रैक्टर अपनी कम ईंधन की खपत और इंजन विश्वसनीयता के लिए जाना जाता है। साथ ही, कम सेवा लागत और सेवा केंद्रों की एक विस्तृत श्रृंखला इस ब्रांड को किसानों के बीच सबसे पसंदीदा ब्रांड बनाती है। फार्मट्रैक 60 पॉवरमैक्स ट्रैक्टर जो की भारत में निर्मित ब्रांड है, कम ईंधन या कहें जबरदस्त माइलेज वाला इंजन, कम रखरखाव लागत वाली विश्वसनीय इंजन और अन्य क्षमताओं से लैस होने की वजह से बिलकुल पैसा वसूल वाली खरीद है।
तेज मशीनी चाल के आगे आज भी कायम बैलों की जोड़ी संग किसान की कछुआ कदमताल

तेज मशीनी चाल के आगे आज भी कायम बैलों की जोड़ी संग किसान की कछुआ कदमताल

रोबोटिक्स मिश्रित जायंट फार्म इक्विपमेंट मशीनरी (Giant Farm Equipment Machinery), यानी विशाल कृषि उपकरण मशीनरी की तेज चाल दौड़ में परंपरागत किसानी की विरासत, गाय-बैल-किसान की पहचान धुंधली पड़ती जा रही है। हालांकि कुछ भूमिपुत्र ऐसे भी हैं, जो बैलों की जोड़ियों के गले में बंधी घंटी की खनक के साथ, खेतों में कछुआ गति से कदम ताल करते यदा-कदा नजर आ ही जाते हैं। जी हां, भारत से इंडिया में तब्दील होते आधुनिक देश में पारंपरिक किसानी के तरीकों में तेजी से बदलाव हुआ है। काम में मददगार कृषि प्रौद्योगिकी उपकरणों की उपलब्धता के कारण मौसम आधारित खेती, अवसर आधारित हो गई है। लेकिन देश के कई हलधर ऐसे भी हैं जिन्होंने पारंपरिक खेती की असल पहचान, हलधर किसान की छवि को बरकरार रखा है।

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भूमि विकास, जुताई और बीज बोने की तैयारी के लिए उपकरण हालांकि कहना गलत नहीं होगा कि, दो बैलों और हल के साथ खेतों की जुताई करते किसान की परंपरा अब शायद अपने अंतिम दौर में है। ट्रैक्टर, मशीनों से किसानी की नई पीढ़ी अब बैल-हल से खेती में रुचि नहीं लेती। मेरे देश की धरती सोना-हीरा-मोती उगले गीत सुनकर यदि कोई अक्स उभरता है, तो वह है हरे-भरे खेत में बैलों की जोड़ी, हल के साथ खेत जोतता किसान। यह वास्तविकता अब सपना बनती नजर आ रही है। मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों के ठेठ ग्रामीण इलाकों में ही, आर्थिक रूप से कमजोर किसानों को ही इस पहचान के साथ खेत में काम करते देखा जा सकता है। इन किसानों को देखकर पता लगाया जा सकता है, कि किस तरह हमारे पूर्वज अन्नदाता किसानों ने हल और बैलों की मदद से, अथक परिश्रम कर देश का पेट, मिट्टी में से अनमोल अनाज उगा कर भरा।

खेत जोतने से लेकर कटाई, सप्लाई सब मशीनी

आज के मशीनी दौर में किसानी के उपयोग में आने वाले मददगार उपकरणों की सुलभता ने भी पारंपरिक किसानी को पीछे किया है। बैलों की शक्ति के मुकाबले कई अश्वों की ताकत से लैस, कई हॉर्सपॉवर का शक्तिशाली ट्रैक्टर चंद घंटे में कई एकड़ जमीन जोत सकता है। दैत्याकार मशीनें अब कटाई-मड़ाई भी पल भर में करने में मददगार हैं। प्रतिकूल मौसम में भी मददगार मशीनी मदद से समय और श्रम की भी बचत होती है। कल्टीवेटर, रोटावेटर, हैरो जैसे तकनीक आधारित हल मिट्टी की जुताई बेहतर तरीके से कर देते हैं। [embed]https://youtu.be/AjPz41c7pls[/embed]

लेकिन हां….बड़े धोखे हैं इस राह में...

सनद रहे तकनीक आधारित काम में प्राकृतिक नुकसान की भी संभावना बढ़ जाती है। पर्यावरण सुरक्षा की दशा में चौकन्ने होते देशों को सोचना होगा कि, इन मशीनों से खेत पर काम करने से मिट्टी की गुणवत्ता में वह सुधार संभव नहीं जो पारंपरिक तरीके की किसानी में निहित है।

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धान की फसल काटने के उपकरण, छोटे औजार से लेकर बड़ी मशीन तक की जानकारी मशीनों आधारित अधिक गहरी खुदाई से जमीन और खेत की गुणवत्ता प्रभावित होती है, जीव-जंतुओं को नुकसान होता है। जबकि खेत में बैलों, जानवरों के उपयोग से प्राकृतिक संतुलन बना रहता है। कहना गलत नहीं होगा कि, तकनीक आधारित ट्रेक्टर के धुएं ने हल-बैल और किसान की परंपरा का गुड़-गोबर कर अतीत की स्मृति को धुंधला दिया है।

छोटी जोत के किसान

छोटी जोत के गैर साधन संपन्न किसानों को हल और बैल आधारित किसानी करते देखा जा सकता है। इसके भी कई गूढ़ कारण हैं।

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पुरानी टेक्नीक

हल-बैल वाली युक्ति में लकड़ी का बना एक जुआ होता है। इसमें बने दो बड़े खानों को बैलों की डील पर पहनाया जाता है। इससे दोनों बैल एक समानांतर दूरी पर खड़े हो जाते हैं। इसके बाद लकड़ी अथवा लोहे की छड़ से लोहे का एक हल जुड़ा होता है। इस हल का जमीन को फाड़ कर उसे पलटने  वाला नुकीला भाग नीचे की ओर होता है। इसे संभाल कर दिशा देने के लिए ऊपर की तरह एक मुठिया बनी होती है, जिसे किसान हाथों से नियंत्रित कर सकता है। बाई ओर चलने वाले बैल से बंधी रस्सी जिसे नाथ बोलते हैं को किसान अपने एक हाथ में पकड़ कर रखता है। इस नाथ से बैलों की दिशा परिवर्तन में मदद मिलती है। खेतों में हल के माध्यम से होने वाली जुताई को  हराई बोलते हैं। पारंपरिक खेती के अनुभवी किसानों के अनुसार छोटी जोत में ट्रैक्टर के माध्यम से जुताई असंभव हो जाती है। जबकि हल-बैल के माध्यम से खेत की अधिक-से अधिक भूमि उपजाऊ बनाई जा सकती है। हालांकि मेकर्स ने छोटी जोत में मददगार मिनी ट्रेक्टरों का दावा भी कर दिया है।
इस पेड़ की खेती करके किसान भाई कर सकते हैं अच्छी खासी कमाई

इस पेड़ की खेती करके किसान भाई कर सकते हैं अच्छी खासी कमाई

देश के किसान इन दिनों पारंपरिक खेती करने में व्यस्त हैं। वो ज्यादातर गेहूं, मक्का, धान, तिलहन, दलहन की पारंपरिक फसलें ही उत्पादित करते है। जिससे किसानों को अपनी आवीविका चलाने के लिए पर्याप्त कमाई हो जाती है। लेकिन बहुत सारे किसान ऐसे भी हैं, जो पारंपरिक खेती के इतर आधुनिक एवं वैज्ञानिक तरीके से खेती करते हैं। जिससे किसानों को अतिरिक्त कमाई होती है, जो उनके जीवनशैली में परिवर्तन लाने में सहायक होती है।


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ऐसी ही एक फसल है जिसे हम पॉपुलर के पेड़ों की खेती के नाम से जानते है। पेड़ों की यह फसल किसानों को अतिरिक्त कमाई करवा सकती है। इसकी मांग अब देश के साथ अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में बेहद तेजी से बढ़ी है। इन दिनों पॉपुलर के पेड़ों की लकड़ी बाजार में बेहद महंगे दामों पर बिकती है।

इस प्रकार की भूमि होती है पॉपुलर के पेड़ों की खेती के लिए सबसे उपयुक्त

अगर पॉपुलर की खेती की बात करें तो इसकी खेती के लिए खेत में उपजाऊ मिट्टी होना बेहद आवश्यक है। इसके साथ ही कभी भी क्षारीय नेचर की मिट्टी में पॉपुलर के पौधों की बुवाई नहीं करना चाहिए। इसके नकारात्मक परिणाम देखेने को मिल सकते हैं। इसकी खेती के लिए भूमि का pH मान 5.8-8.5 के बीच होना चाहिए। साथ ही बुवाई के समय खेत का तापमान 20 डिग्री सेल्सियस के आस पास होना चाहिए। इसके साथ ही अगर अधिकतम तापमान की बात करें पॉपुलर की खेती 45 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सहन कर सकती है। साथ ही न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। पॉपुलर की खेती आर्गेनिक तत्वों वाली भूमि में बेहतर परिणाम दे सकती है।

इस तरह से करें पॉपुलर के पौधे की रोपाई

चूंकि पॉपुलर के पेड़ों की जड़ें गहरी होती हैं इसलिए इसके लिए खेत में गहरी जुताई आवश्यक होती है। खेत की गहरी जुताई करने के बाद खेत में पानी लगाएं। इसके बाद रोटावेटर की मदद से कम से कम तीन बार जुताई करें। इसके बाद खेत को समतल कर दें और 5 मीटर की दूरी पर पक्तियां बना लें। पंक्तियों में 6 मीटर की दूरी पर एक मीटर गहरे गड्ढे बनाएं और उन गड्ढों में पौधे की रोपाई करें। पॉपुलर के पेड़ों की रोपाई के लिए फरवरी माह सबसे उपयुक्त होता है। इसलिए इनकी रोपाई 15 फ़रवरी से 10 मार्च के बीच करनी चाहिए। इस अवधि में पौधों की रोपाई करने से पौधों का विकास तेजी से होता है।

पॉपुलर के पेड़ों की खेती करने से किसान भाई बन सकते हैं मालामाल

पॉपुलर की खेती करके कई किसानों ने भारत में जमकर रुपये कमाए हैं। इसकी पौध को खरीदना एवं लगाना बेहद सस्ता है जबकि इसकी अपेक्षा इसके पेड़ों की कीमत ज्यादा होती है। पॉपुलर की लकड़ी बाजार में 800 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से बिकती है। किसान भाई इन पेड़ों की एक हेक्टेयर में खेती करके लगभग 10 लाख रुपये कमा सकते हैं। एक हेक्टेयर खेत में लगभग 250 पॉपुलर के पेड़ लगाए जा सकते हैं। इन दिनों देश में पॉपुलर की खेती सबसे ज्यादा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में होती है। जहां से इनका विदेशों में भी निर्यात किया जाता है।
इस राज्य में कृषि उपकरणों पर दिया जा रहा है 50 प्रतिशत तक अनुदान

इस राज्य में कृषि उपकरणों पर दिया जा रहा है 50 प्रतिशत तक अनुदान

आजकल मक्का, गन्ना और गेंहू की कटाई के उपरांत खेत को आगामी फसल हेतु तैयार करने में अत्यंत समय लग जाता है। परंतु, फिलहाल आधे भावों पर यह कृषि मशीनरी खरीदकर एक ही दिन में खेत तैयार किया जा सकता है। फिलहाल के आधुनिक काल में मशीनें एवं तकनीकें तकरीबन हर क्षेत्र का कार्य सुगम और सुविधाजनक बना रही हैं। कृषि क्षेत्र हेतु विभिन्न स्पेशलाइज्ड मशीनें बाजार में उतारी जा रही हैं, जिनसे करीब हर कृषि कार्य को काफी कम समय में पूर्ण किया जा सकता है। रोटावेटर का नाम भी इन मशीनों की सूची में शम्मिलित है, जिनसे बड़े स्तर की खेती किसानी को बेहद सुविधाजनक किया जा सकता है। विशेष बात यह है, कि लाखों की कीमत वाली यह मशीन फिलहाल आधी कीमतों पर किसानों को मुहैय्या करवाई जा रही है। वर्तमान में राजस्थान सरकार द्वारा कृषि कार्यों में उपयोग होने वाली मशीनरी पर अनुदान देने का ऐलान किया है। इसी कड़ी में ट्रेक्टर चलित रोटावेटर पर 50% प्रतिशत अनुदान मतलब कि 50,400 रुपये की सब्सिड़ी दी जाती है।

रोटावेटर पर 50% प्रतिशत का अनुदान दे रही राजस्थान सरकार

राजस्थान सरकार लगातार किसानों के हित में कोई ना कोई कार्य और योजना जारी करती आ रही है। अब रोटावेटर की खरीद पर भिन्न-भिन्न श्रेणी के कृषकों को 40 से 50 प्रतिशत सब्सिडी दी जा रही है। इस योजना के नियमों के अनुसार, एससी-एसटी, लघु, सीमांत एवं महिला किसानों के रोटावेटर की खरीद में 50% सब्सिडी मतलब 42000 रुपए से 50,400 रुपये तक की छूट प्रदान की जाएगी। साथ ही, सामान्य वर्ग के कृषकों को 40 प्रतिशत छूट सहित 34000 रुपए से 40,300 रुपये सब्सिड़ी का प्रावधान है। ये भी देखें: एक घंटे में होगी एक एकड़ गेहूं की कटाई, मशीन पर सरकार की भारी सब्सिडी

इच्छुक किसान यहां करें आवेदन

राजस्थान सरकार द्वारा किसानों की सुविधा हेतु राज किसान साथी पोर्टल तैयार किया है। इस पोर्टल की सहायता से कृषि क्षेत्र के विकास एवं कृषकों हेतु जारी कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी हाँसिल की जा सकती है। यदि किसान चाहें तो विभिन्न सरकारी योजनाओं हेतु किसान प्रत्यक्ष रूप से आवेदन भी कर सकते हैं। अगर आप भी राजस्थान के किसान हैं और रोटावेटर की खरीद पर अनुदान का फायदा उठाना चाहते हैं, तो राजकिसान साथी पोर्टल पर आवेदन कर सकते हैं। ज्यादा जानकारी के लिए किसान अपने ग्राम पंचायत स्तर पर कृषि पर्यवेक्षक, पंचायत समिति स्तर पर सहायक कृषि अधिकारी, उप जिला स्तर पर सहायक निदेशक कृषि (विस्तार) या उद्यान कृषि अधिकारी से भी संपर्क कर सकते हैं।

किस काम में उपयोग की जाती है रोटावेटर मशीन

राजस्थान सरकार द्वारा 20 बीएचपी से ज्यादा 35 बीएचपी क्षमता तक के ट्रेक्टर से चलित रोटावेटर को खरीदने पर सब्सिड़ी की सिफारिश की है। जानकारी के लिए बतादें, कि मक्का, गन्ना, गेहूं, धान की कटाई के उपरांत खेत में बची हुई ठूंठ को मृदा में मिश्रण करने के लिए रोटावेटर मशीन का उपयोग किया जाता है। यह रोटावेटर मशीन हर प्रकार की मृदा एवं क्षेत्र के लिए उपयोगी है। यह एक ही दिन में खेत को बुवाई हेतु तैयार करता ही है। मृदा में नमी की मात्रा को भी कायम रखता है।
भारत में कृषि को नई दिशा देने में उपयोगी ये पांच कृषि यंत्र जो कम खर्चे में बढ़ाऐंगे लाभ

भारत में कृषि को नई दिशा देने में उपयोगी ये पांच कृषि यंत्र जो कम खर्चे में बढ़ाऐंगे लाभ

भारत में कृषि को अत्याधुनिक करने के लिए कुछ उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है, जिससे किसान खेत में होने वाले कार्यों के लिए कड़ी मेहनत करने से बच जाते हैं। खेती में आने वाली लागत को भी कम करने में मदद करते हैं। अगर आप भी खेती को सहज और फायदेमंद बनाने के लिए कृषि यंत्रों की खरीद करना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए सहायक साबित हो सकता है।  भारत में ज्यादातर कृषकों के साथ आमदनी की दिक्कत देखने को नजर आती है। आमदनी कम होने की वजह से किसान बेहद मन लगा कर कृषि नहीं कर पाते हैं। साथ ही, कभी - कभी इससे उनको काफी हानि भी हो जाती है। यदि किसान अपनी आमदनी को ज्यादा बढ़ाना चाहते हैं, तो उन्हें पहले खेती में आने वाली लागत को कम करना चाहिए। खेती में निहित खर्चे को कम करने के लिए बेहद जरूरी है, कि फसल की पैदावार में लगने वाली लागत को कम किया जाए। इसको कम करने के लिए कृषकों को परंपरागत कृषि यंत्रों को छोड़कर आधुनिक कृषि यंत्रों की मदद लेनी चाहिए। आधुनिक कृषि यंत्रों की सहायता से किसान कम वक्त और कम श्रम में खेती के कार्य निपटा सकते हैं। भारत में खेती के कार्य को सहज बनाने के लिए वैसे तो बहुत सारे यंत्र हैं। 

कृषि कार्य हेतु रोटावेटर की भूमिका 

कृषि को सहज एवं सुगम बनाने के लिए जुताई के कार्य में आने वाले यंत्रों में रोटावेटर का सर्वाधिक इस्तेमाल किया जाता है। किसानों का इसे ज्यादा उपयोग में लेने का प्रमुख कारण यह है, कि इससे 1 अथवा 2 बार की जुताई में ही खेत पूर्ण रूप से फसल उगाने के लिए तैयार हो जाता है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि रोटावेटर को ट्रैक्टर से जोड़कर चलाया जाता है। इस यंत्र से गेहू, गन्ना और मक्का इत्यादि फसलों के अवशेष को हटाने में सहयोगी होने के साथ ही इसको मिश्रण के लिए काफी उपयुक्त माना जाता है। इसका इस्तेमाल करके आप खेती के खर्च, समय एवं लेबर इत्यादि की बचत सुगमता से कर सकते हैं। इस यंत्र को किसी भी तरह की मृदा की जुताई के लिए इस्तेमाल में लिया जा सकता है। इसके साथ ही बाकी यंत्रों की तुलना में यह तकरीबन 15 से 35 फीसद तक ईंधन की बचत करता है।

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सीड ड्रिल कम फर्टिलाइजर मशीन का उपयोग 

किसान खेती में कम वक्त और कम परिश्रम के लिए सीड ड्रिल कम फर्टिलाइजर मशीन का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इस कृषि यंत्र की सहायता से किसान एक साथ विभिन्न कतारों में बीजों की बिजाई काफी कम समय में कर सकते हैं। यह मशीन खेत की मृदा में बीज को अंदर गहराई तक पहुंचाकर बो सकती है। इस मशीन की सहायता से खेतों में बीज एवं उर्वरक की एक साथ निश्चित अनुपात में बिजाई की जा सकती है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि सीड ड्रिल कम फर्टिलाइजर मशीन को 35 HP से ज्यादा ट्रैक्टर के साथ शानदार ढ़ंग से चलाया जा सकता है।

स्प्रेयर पंप का खेती में उपयोग 

फसलों में कीट, बीमारियों एवं खरपतवार की रोकधाम के लिए विभिन्न प्रकार के कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है। स्प्रेयर पंप एक ऐसा शानदार कृषि यंत्र है, जिसकी सहायता से किसान लिक्विड खाद एवं कीटनाशक का छिड़काव खेतों में बेहद सहजता से कर सकते हैं। यह यंत्र खेती में लेबर के साथ-साथ समय की बचत करते हैं। क्योंकि, इस स्प्रेयर पंप से कृषक स्वयं ही छिड़काव कर सकते हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि विभिन्न प्रकार के स्प्रेयर पंप भिन्न-भिन्न उपयोग के लिए बाजार में उपलब्ध हैं। साथ ही, कुछ ऐसे भी है, जिन्हें ट्रैक्टर के साथ जोड़कर सुगमता से चलाया जा सकता है।

क्रॉप कटर मशीन से आप क्या समझते हैं 

किसानों के लिए खेती को सहज एवं सुगम बनाने के लिए क्रॉप कटर मशीन भी शानदार उपकरण सिद्ध हो रहा है। बतादें, कि जब फसलों की कटाई की जाती है, तो बहुत सारे मानव संसाधन की जरूरत होती है। अगर अकेला किसान इसे करें तो इसमें उसे काफी अधिक समय लग जाता है। इस मशीन की सहायता से सोयाबीन, मक्का, ज्वार, हरा चारा, घास, गेहूं, चावल और गन्ना काटने जैसे अनेकों कार्यों को काफी सुगमता से किया जा सकता है। यह आधुनिक उपकरण मृदा की सतह से महज 2 से 3 सेंटीमीटर ऊपर फसलों को काफी सहजता से काट सकती हैं। इसके अतिरिक्त इसमें लगे वीडर अटैचमेंट्स, खरपतवार को हटाने का कार्य करते हैं। इस यंत्र को डीजल के माध्यम से चलाया जाता है। साथ ही, यह मशीन घास ट्रिमिंग, लॉन ट्रिमिंग, खेत की निराई-गुड़ाई भी कर सकती है। बतादें, कि इस यंत्र का इस्तेमाल स्वयं  से छोटे और बड़े किसान फसल की कटाई करने में कर सकते हैं।
रोटावेटर की खरीदी पर किसानों को मिलेगी सब्सिडी

रोटावेटर की खरीदी पर किसानों को मिलेगी सब्सिडी

सरकार किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार करने के लिए कृषि यंत्र सुधार करने के लिए अनुदान योजना चलाई है। सरकार द्वारा किसानों को सस्ती दर पर कृषि यंत्र प्रदान की जा रही है। विभिन्न राज्यों में इस योजना को अलग-अलग नामों से चलाया जाता है। 

कृषि यंत्र अनुदान योजना राजस्थान (Krishi Yantra Anudan Yojana Rajasthan), कृषि यंत्रीकरण योजना उत्तर प्रदेश (Agricultural Mechanization Scheme) और ई-कृषि यंत्र अनुदान योजना मध्यप्रदेश (E-Krishi Yantra Anudan Yojana) चल रही हैं। किसानों को इन योजनाओं के तहत राज्य अपने स्तर पर कृषि उपकरणों की खरीद पर सब्सिडी का लाभ देते हैं।

रोटावेटर का क्या कार्य होता है?

रोटावेटर का इस्तेमाल खेत को जोतने के लिए किया जाता है। रोटावेटर से जुताई करते ही जमीन भुरभुरी हो जाती है। इसकी सहायता से फसलों को मिट्टी में मिलाना बहुत आसान होता है। रोटावेटर के प्रयोग से खेत की मिट्टी उपजाऊ बनती है।

रोटावेटर पर किसानों को कितनी सब्सिडी मिलेगी

किसानों को राज्य सरकार से रोटावेटर खरीदने पर 40 से 50 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जाती है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, लघु और सीमांत किसानों और महिलाओं को कृषि यंत्र अनुदान योजना के तहत 20 बीएचपी से अधिक क्षमता वाले रोटावेटर की कीमत का 50 प्रतिशत, या 42,000 से 50,400 रुपए तक की सब्सिडी दी जाएगी। 

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साथ ही, अन्य श्रेणी के किसानों को रोटावेटर की लागत पर 40 प्रतिशत सब्सिडी दी जाएगी, जो 34,000 से 40,300 रुपये तक हो सकती है।

रोटावेटर कितनी कीमत तक मिल जाता है? 

कई कंपनिया रोटावेटर का निर्माण करती है साथ ही इनकी कीमत भी किसानों के बजट के आधार पर निर्धारित करती है। रोटावेटर की कीमत लगभग 50,000 रुपए से शुरू होकर 2 लाख रुपए तक है। रोटावेटर की कीमत इसके फीचर्स और स्पेसिफिकेशन के आधार पर निर्धारित की जाती है।

रोटावेटर की खरीदी के लिए पात्रता और शर्तें   

  • आवेदक के पास स्वयं के नाम से कृषि भूमि होनी चाहिए या अविभाजित परिवार में राजस्व रिकार्ड में नाम होना चाहिए।
  • ट्रैक्टर चलित कृषि यंत्र के लिए सब्सिडी का लाभ प्राप्त करने के लिए ट्रैक्टर का रजिस्ट्रेशन आवेदक के नाम से होना चाहिए।
  • विभाग की किसी भी योजना में किसी भी प्रकार का कृषि यंत्र एक किसान को तीन वर्ष की अवधि में केवल एक बार दिया जाएगा।
  • एक वित्तीय वर्ष में एक किसान को सभी योजनाओं में अलग-अलग प्रकार के तीन कृषि यंत्रों पर अनुदान दिया जाएगा।
  • राज किसान साथी पोर्टल पर सूचीबद्ध किसी भी पंजीकृत निर्माता या विक्रेता से कृषि यंत्र खरीदने पर ही अनुदान दिया जाएगा।

रोटावेटर की खरीद पर सब्सिडी लेने के लिए आवेदन प्रिक्रिया 

इस योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए आपको राजकिसान पोर्टल पर आवेदन करना होगा जिससे की आपको समय पर योजना का लाभ प्राप्त हो सके। पोर्टल पर प्राप्त आवेदनों का रैंडमाइजेशन के बाद ऑनलाइन वरीयता क्रम के आधार पर निस्तारण किया जाएगा। 

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जो किसान स्वयं आवेदन करना चाहते हैं, वे राजकिसान पोर्टल पर जाकर आवेदन कर सकते हैं। यदि स्वयं आवेदन नहीं कर सकते हैं तो आप अपने नजदीकी ई-मित्र केंद्र पर जाकर आवेदन कर सकते हैं। आप आवेदन पत्र ऑनलाइन जमा किए जाने की प्राप्ति रसीद ऑनलाइन ही प्राप्त कर सकते हैं। 

आवेदन के लिए आवश्यक दस्तावेज 

आवेदन करते समय आपके पास आधार कार्ड, जनाधार कार्ड, जमाबंदी की नकल (जो छह माह से अधिक पुरानी नहीं होनी चाहिए), जाति प्रमाण पत्र, ट्रैक्टर का पंजीयन प्रमाण-पत्र (आर.सी.) की प्रति (ट्रैक्टर चलित यंत्रों के लिए अनिवार्य) की आवश्यकता होगी।   

राज्य के किसानों कृषि कार्यालय से प्रशासनिक स्वीकृति मिलने के बाद ही कृषि यंत्रों की खरीदी कर सकेंगे। किसान को मोबाइल संदेश या उनके क्षेत्र के कृषि पर्यवेक्षक से स्वीकृति की जानकारी दी जाएगी। 

कृषि उपकरण या मशीन की खरीद के बाद कृषि पर्यवेक्षक या सहायक कृषि अधिकारी द्वारा भौतिक जांच की जाएगी। सत्यापन के समय कृषि यंत्र की खरीद का बिल देना होगा। तब ही अनुदान का भुगतान किसान के बैंक खाते में डिजिटल रूप से किया जाएगा।