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स्ट्रॉबेरी

जिस स्ट्रोबेरी के है सब दीवाने, उसे उगाकर किस्मत चमकालें

जिस स्ट्रोबेरी के है सब दीवाने, उसे उगाकर किस्मत चमकालें

कन्वेंशनल खेती के माध्यम से हो रही आमदनी में पिछले दस वर्षों में काफी गिरावट देखी गई है, क्योंकि लगातार खराब मौसम और मार्केट में सप्लाई बढ़ने की वजह से आमदनी भी कम प्राप्त हो रही है। जिन किसानों के पास अधिक जमीन है, वह तो फिर भी पारंपरिक खेती के माध्यम से जैसे-तैसे गुजारा कर लेते हैं । परंतु, जिनके पास कम जमीन होती है, उस तरह के किसान अब धीरे-धीरे फलों और सब्जियों की तरफ रुख करते हुए दिखाई दे रहे हैं।

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इन्हीं फलों की श्रेणियों में एक फल है - स्ट्रॉबेरी (Strawberry)

पिछले कुछ समय से भारतीय लोगों की प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी होने की वजह से, अब लोग महंगे फल एवं सब्जियां खरीदने में भी रुचि दिखा रहे हैं।

स्ट्रॉबेरी भी भारत की एक महत्वपूर्ण फल वाली फसल है

यह भारत के कुछ राज्यों जैसे कि उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिमी बंगाल, दिल्ली और राजस्थान तथा हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में उगाई जाती है।

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स्ट्रॉबेरी को उगाने से आप केवल आर्थिक रूप से ही संपन्न नहीं होंगे, बल्कि साथ की इस फसल के स्वास्थ्यगत फायदे भी बहुत अधिक होते हैं। चमकीले लाल रंग की दिखाई देने वाली यह स्ट्रॉबेरी विटामिन सी और आयरन की कमी को पूरा करती है। इसके अलावा इसका यूज स्ट्रॉबेरी फ्लेवर वाली आइसक्रीम बनाने में भी किया जाता है।

स्ट्रॉबेरी की खेती ऐसे करें (Strawberry farming information in hindi)

स्ट्रॉबेरी की फसल उगाने के लिए आपको अक्टूबर के महीने को चुनना चाहिए, क्योंकि इस समय भारत में मानसून जैसी कोई हालत नहीं रहती है।

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 भारत में मुख्यतया इसके उत्पादन के लिए हाइड्रोपोनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इस तकनीक में हरितगृह बनाने पड़ते हैं जिससे कि, जिस जगह पर फसल को उगाया जा रहा है वहां के तापमान को फसल के उत्पादन के अनुकूल बनाया जा सके। स्ट्रॉबेरी फसल को उगाने से पहले जमीन की अच्छी तरीके से जुताई या पलॉगिंग (ploughing) की जाती है, इसके लिए कल्टीवेटर (cultivator) का इस्तेमाल किया जा सकता है। 

 स्ट्रॉबेरी की फसल का सबसे बड़ा फायदा यह है कि, इसे समतल जगह के अलावा पहाड़ी ढलान और ऊंची उठी हुई जमीन पर भी लगाया जा सकता है। पिछले कुछ सालों में ऐसे ही कई युवाओं ने मौसम विभाग के द्वारा जारी की गई एडवाइजरी और उद्यान विभाग के द्वारा दी गई पौध का इस्तेमाल कर, एक से डेढ़ एकड़ की जमीन में भी इस फसल की खेती की शुरुआत की है और उन्हें केवल दो से तीन लाख रुपए की लागत के बाद दस लाख रुपए से भी ज्यादा की बचत हुई है। स्ट्रॉबेरी फसल को उगाने के लिए मुख्यतया आपको नर्सरी से तैयार किए हुए पौधों को लगाना पड़ता है, इसके बाद उसमें गोबर और ऑर्गेनिक खाद का इस्तेमाल किया जाता है।

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आपको ध्यान रखना चाहिए कि स्ट्रॉबेरी को ज्यादा पानी मिलने पर इस में कीड़े लगने की संभावनाएं होती है, इसीलिए इसमें ड्रिप सिंचाई विधि का इस्तेमाल किया जाता है और पौधों के नीचे पॉलिथीन बिछाई जाती है। इसके बाद जो फ़सल पूरी तरह बनकर तैयार हो जाती है, तब आप एक पौधे से 5 किलो तक स्ट्रॉबेरी प्राप्त कर सकते हैं। यदि एक सामान्य अनुमान की बात करें, तो भारत के किसान एक एकड़ जमीन में लगभग 8 टन से भी ज्यादा की स्ट्रॉबेरी का उत्पादन कर सकते हैं। मध्य प्रदेश के सातारा और पश्चिमी बंगाल के कुछ जिलों ने इससे भी ज्यादा ज्यादा यील्ड पैदा करके यह साबित कर दिया है, कि सही मैनेजमेंट और उचित आपूर्ति में डाले गए ऑर्गेनिक खाद की वजह से इस फ़सल से बहुत ही अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।

वर्तमान में भारत के अलग-अलग राज्यों में इनकी बाजार कीमत 400 रुपये से लेकर 700 रुपए प्रति किलो तक है।

अक्टूबर में इस फसल को उगाने के बाद इसकी कटाई लगभग मार्च-अप्रैल में की जाती है। इनकी कटाई का सबसे उपयुक्त समय सुबह का माना जाता है और एक सप्ताह में लगभग तीन से चार बार इन्हें हार्वेस्ट किया जा सकता है, इसके बाद इन्हें छोटे-छोटे बास्केट में पैक कर दिया जाता है। स्ट्रॉबेरी को खेत में लगाने के दौरान कुछ बातों का ध्यान रखना होता है, सबसे पहले यह है कि इसकी दो पौध के बीच में लगभग 25 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए, इस आंकड़े के आधार पर आप एक एकड़ जमीन में करीब बीस हजार पौधे लगा सकते हैं। 

 पौध के बीच में अंतराल सही होने की वजह से बड़े होने पर इनकी ग्रोथ अच्छी दिखाई देती है, हालांकि आपको ध्यान रखना होगा कि स्ट्रॉबेरी की फसल को कोल्ड स्टोरेज में भी स्टोर करना पड़ सकता है, इसके लिए फ़सल से तैयार हुए फलों को 27 डिग्री से लेकर 30 डिग्री के तापमान में स्टोर किया जाता है। हमें उम्मीद है कि Merikheti.com के द्वारा दी गई स्ट्रॉबेरी फसल की यह जानकारी आपको पसंद आई होगी और यदि आपका खेत छोटा भी है, तो आप उसमें कृषि विभाग के मार्गदर्शन में दी गई जानकारी का सही फायदा उठाकर अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे।

इस राज्य में स्ट्रॉबेरी (Strawberry) की फसल उगाकर चिकित्सक का बेटा धन के साथ यश भी कमा रहा है

इस राज्य में स्ट्रॉबेरी (Strawberry) की फसल उगाकर चिकित्सक का बेटा धन के साथ यश भी कमा रहा है

कृषि क्षेत्र में युवाओं की काफी चिलचस्पी देखने को मिल रही है। इसी क्रम में सोनीपत के एक युवा द्वारा स्ट्रॉबेरी की खेती (Strawberry ki kheti) से धन के साथ यश भी अर्जित किया जा रहा है। इस युवा के इस कार्य को काफी सराहा जा रहा है। हरियाणा राज्य ने भारत को बहुत सारे शूरवीर और पराक्रमी युवा दिए हैं। भारत की सेवा करने वाले एवं देश की शक्ति को विश्व स्तर पर दिखाने वाले वीर सपूत दिए हैं। हालाँकि, हरियाणा राज्य को किसानों एवं खिलाड़ियों की भूमि भी कहा जाता है। क्योंकि हरियाणा के किसान अपने खेतों में बेहद परिश्रम करने के साथ-साथ उनके बच्चे भारत का खेल जगत में प्रतिनिधित्व करते हैं। बीते कुछ वर्षों में अन्य राज्यों की तुलना में हरियाणा राज्य ने खेती किसानी में बेहतरीन प्रदर्शन किया है। वर्तमान में यहां के किसानों से लेकर नौजवान भी खेती-किसानी से जुड़ नवीन कार्य करने की दिशा में बढ़ रहे हैं। इनकी कहानियां सोशल मीडिया पर लोगों को प्रेरित कर रही है एवं इसी प्रकार लोगों की दिलचस्पी कृषि क्षेत्र में बढ़ती जा रही है। अब हम आपके साथ एक प्रेरणायुक्त कहानी साझा करने जा रहे हैं। जो कि सोनीपत जनपद के चिटाना गांव निवासी अंकित की है। अंकित के पिताजी पेशे से डेंटल फिजिशियन हैं, परंतु अंकित ने सफलता हाँसिल करने हेतु किसी बड़ी नौकरी, डिग्री, पेशे की जगह कृषि को प्राथमिकता दी है।

स्ट्रॉबेरी की खेती से किसान मोटा मुनाफा कमा सकते हैं

सोनीपत जनपद के चिटाना गांव के निवासी अंकित आजकल स्ट्रॉबेरी का उत्पादन कर रहे हैं। अंकित ने स्ट्रॉबेरी के उत्पादन हेतु कहीं और से प्रशिक्षण नहीं लिया है, बल्कि YouTube द्वारा परिकल्पना लेकर ही वर्तमान में इस बेहतरीन स्वादिष्ट विदेशी फल स्ट्रॉबेरी का उत्पादन कर रहे हैं। इस कार्य को लगभग 5 वर्ष पूर्व आरंभ किया गया था, जब अंकित ने YouTube द्वारा ही स्ट्रॉबेरी उत्पादन की नवीन तकनीकों के विषय में जाना था। प्रतिदिन एक नई तकनीक के विषय में जानकर स्वयं के ज्ञान को अधिक बढ़ाते थे। कुछ समय बाद उनको इस फसल के बारे में अच्छी समझ और जानकारी हो गयी। उसके बाद उन्होंने उन्होंने स्ट्रॉबेरी की फसल का उत्पादन चालू कर दिया। परिणामस्वरूप आज वह 4 से 5 लाख रूपए की आमदनी कर रहे हैं।

अंकित ने कब से शुरू किया स्ट्रॉबेरी का उत्पादन

नवभारत टाइम्स के विवरण के अनुसार, अंकित स्ट्रॉबेरी के उत्पादन सहित Graduation भी कर रहे हैं। लगभग 2 वर्ष पूर्व स्वयं की 2 एकड़ भूमि में स्ट्रॉबेरी के उत्पादन का निर्णय किया था। उनके द्वारा स्ट्रॉबेरी की खेती हेतु 7 से 8 लाख रुपये का व्यय भी किया गया। फिलहाल अंकित ना केवल स्वयं बेहतरीन आय करके आत्मनिर्भर हुए साथ में गाँव के बहुत सारे लोगों को आय का स्त्रोत भी देने का अवसर प्रदान किया है।


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बतादें कि स्ट्रॉबेरी के फल की मांग सदैव बनी रहती है। इसी कारण से अंकित को इसके विपणन संबंधित कभी भी कोई भी समस्या नहीं हुई। फिलहाल ग्राहक फोन के माध्यम से ही अपना Order Book कर लेते हैं। अंकित को स्ट्रॉबेरी की खेती में हो रहे खर्च से बहुत ज्यादा आमदनी हो रही है।

परंपरागत कृषि से अधिक मुनाफा कमाए

मीडिया को बताते हुए अंकित ने कहा है, कि पारंपरिक फसलों की तुलनात्मक स्ट्रॉबेरी की खेती करके बेहतरीन मुनाफा अर्जित किया जा सकता है। हमारे पूर्वज इतना गेहूं-धान के उत्पादन से लाभ नहीं अर्जित कर सकते, जितना स्ट्रॉबेरी उत्पादन से आमदनी हो रही है। फिलहाल के समय में जहां युवाओं को नौकरी पाना भी मुश्किल है। इसलिए स्ट्रॉबेरी की खेती से हम लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध करा रहे हैं। जहां केवल नौकरी-पेशे को ही सफलता का मापक माना जाता है, लेकिन आज अंकित की तरह बहुत सारे युवा अन्य लोगों की सोच व दिशा परिवर्तन का कार्य कर रहे हैं।
बिहार सरकार की किसानों को सौगात, अब किसान इन चीजों की खेती कर हो जाएंगे मालामाल

बिहार सरकार की किसानों को सौगात, अब किसान इन चीजों की खेती कर हो जाएंगे मालामाल

बिहार सरकार किसानों को एक बड़ी सौगात दे रही है जिसकी खूब चर्चा हो रही है। दरअसल बिहार सरकार का उद्यान विभाग मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना एवं राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत फल और फूलों के बगीचे लगाने के लिए किसानों को 40 से 75 प्रतिशत तक की सब्सिडी प्रदान कर रहा है, जिससे बिहार के किसानों के चेहरे पर खुशी झलक रही है। मौजूदा दौर में देश के कई राज्यों में किसानों के द्वारा मुख्य फसल की जगह पर तरह तरह के फल और फूलों की खेती की जा रही है।  खेती करने की मुख्य वजह फल और फूलों की घरेलू बाजार के साथ-साथ विश्व की बाजारों मे बढ़ती हुई मांग है।  किसानों को उनके द्वारा उगाए गए फूलों का उचित रेट भी मिल रहा है।  उचित मुनाफा होने के कारण किसान भी जोर–शोर से फल और फूलों की खेती कर रहे हैं।


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भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है। यहां के अधिकतर लोग कृषि के कार्यक्षेत्र से जुड़े हुए हैं, जो अपना भरण-पोषण अपने द्वारा उपजाए गए फसलों को बाजारों में बेचकर करते हैं। मुख्य फसलों की जगह पर फल फूलों की खेती करना आज के इस दौर में कृषि के क्षेत्र में एक प्रमुख विकल्प बनकर उभर रहा है। राज्य सरकार और भारत सरकार भी किसानों की आय में बढ़ोतरी और किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए तरह-तरह की स्कीम और नए-नए तकनीक के साथ खेती करने का प्रशिक्षण दे रही है। इसी कड़ी में बिहार सरकार ने भी किसानों को एक बहुत बड़ी सौगात दी है। फलों एवं फूलों की खेती करने के लिए बिहार के किसानों को उद्यान विभाग राष्ट्रीय बागवानी मिशन एवं मुख्यमंत्री मिशन योजनाओं 40 से 75 प्रतिशत का अनुदान दे रही है। सब्सिडी को प्राप्त करने के लिए आवेदन प्रक्रिया को शुरू कर दिया गया है। सरकार सरकार के द्वारा फल और फूलों की खेती करने पर इस तरह से अनुदान देना एक सराहनीय कदम माना जा रहा है।

अभी सिर्फ इन जिले के किसानों को ही मिलेगा लाभ

एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट गवर्नमेंट ऑफ़ बिहार के ट्विटर आईडी पर पूरी जानकारी स्पष्ट रूप से दी गई हुई है जिसमें ऑनलाइन आवेदन करने के बारे में भी बताया गया है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन और मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना के तहत आच्छादित जिलों की सूची भी दी गई है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत आवेदन करने वाले जिले पटना, नालंदा, रोहताश, गया, औरंगाबाद, मुजफ्फर पुर, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, वैशाली, दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, सहरसा, पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किशनगंज, मूंगेर, बेगूसराय, जमुई, खगड़िया, बांका और भागलपुर है। वहीं मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना के अंतर्गत आवेदन करने वाले जिले भोजपुर, बक्सर, कैमूर, जहानाबाद, अरवल, नावादा, सारण, सिवान, गोपालगंज, सीतामढी, शिवहर, सुपौल, मधेपुरा, लखीसराय और शेखपुरा है।

जानिए किस फल पर मिल रही है कितनी सब्सिडी

उद्यान विभाग, राष्ट्रीय बागवानी मिशन और मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना के तहत चयनित जिलों के किसानों को ड्रैगन फ्रूट और स्ट्रॉबेरी उपजाने के लिए 40 फीसदी की सब्सिडी दी जा रही है। वहीं अनानास, फूल की खेती जैसे गेंदा और अन्य फूल, मसाले की खेती और सुगंधित पौधे की खेती (मेंथा) पर 50 फीसदी की सब्सिडी दी जा रही है। बिहार सकार मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए भी सब्सिडी का प्रावधान रखा है। केन्द्र सरकार द्वारा नेशनल बीकीपिंग एंड हनी मिशन का भी गठन किया जा रहा है।


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सबसे ज्यादा यानी 75 फ़ीसदी की सब्सिडी पपीते की खेती पर दी जा रही है, जिससे कम लागत में किसान आसानी से उत्पादन कर सकता है। लोगों में इस फल की मांग भी काफी ज्यादा रहती है। अगर आप ड्रैगन फ्रूट्स, स्ट्रॉबेरी, पपीता, गेंदे की फूल की खेती और सुगंधित पौधे (मेंथा) की खेती करना चाहते है और आप सरकार द्वारा चयनित जिले के निवासी हैं, तो आप http://horticulture.bihar.gov.in/ पर जाकर ऑनलाइन आवेदन करके योजनाओं का लाभ पा सकते हैं। अगर आप इन योजनाओं की विस्तृत जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो आप अपने जिले के सहायक निदेशक उद्यान से संपर्क कर सकते हैं और किसान अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र पर जाकर बीज प्राप्त करने कि जानकारी और नए तकनीक के साथ खेती को और बेहतर बनाने के लिए प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं।


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भारत के अनेक राज्यों में फल फूल की खेती लोग तेजी से कर रहे हैं। मुख्य तौर पर लोग अब मुनाफा अर्जित करने के लिए ड्रैगन फ्रूट जैसे फलों की उपज करने पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। यह एक वानस्पतिक फल वाला पौधा है जो आम तौर पर मानसून के दौरान या उसके बाद में फलता है। इसे आमतौर पर रोपने के 18-24 महीने बाद यह फल देना शुरू कर देता है। प्रत्येक फल का वजन लगभग 300 से 1000 ग्राम तक होता है। एक पेड़ में आमतौर पर लगभग 15 से 25 किलो फल लगते हैं, ये फल बाजार में 300 से 400 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिकते हैं, लेकिन सामान्य कृषि दर लगभग रु 125 से 200 प्रति किलो। अगर आप इसकी उपज करते हैं तो आप प्रति एकड़ 5-6 टन की औसत उपज पा सकते हैं।


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भले ही बिहार में बड़े उद्योग लग नहीं पा रहे हैं, लेकिन बावजूद इसके कृषि से जुड़े क्षेत्र में लगातार बेहतर कार्य हो रहे है। बिहार सरकार दूसरी हरित क्रांति लाने के प्रयास में जुट गयी है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने भी बिहार के बारे कहा था की बिहार में दूसरी हरित क्रांति की पूरी संभावना है और जिस तरह से बिहार कृषि के क्षेत्र बढ़ रहा है, इससे अर्थव्यवस्था में काफी हद तक सुधार होगी। बिहार को कृषि में आगे बढ़ने और औद्योगीकरण की ओर बढ़ने के लिए एक बड़ी छलांग की जरूरत है।


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वर्तमान में, हमारे किसान देखते हैं कि पिछले सीजन में किसी विशेष उपज के लिए उन्हें क्या कीमत मिली थी। उदाहरण के लिए, यदि सरसों से उन्हें अच्छी कीमत मिलती है, तो हर कोई उसी की खेती करना पसंद करता है।  लेकिन जिस तरह से सरकार फल फूलों को उपजाने के लिए सब्सिडी दे रही है उससे किसानों का आत्मबल मजबूत हो रहा है और साथ ही बिहार में किसानों कि हालात में भी सुधार हो रहा हैं।
अब उत्तर प्रदेश में होगी स्ट्रॉबेरी की खेती, सरकार ने शुरू की तैयारी

अब उत्तर प्रदेश में होगी स्ट्रॉबेरी की खेती, सरकार ने शुरू की तैयारी

स्ट्रॉबेरी (strawberry) एक शानदार फल है। जिसकी खेती समान्यतः पश्चिमी ठन्डे देशों में की जाती है। लेकिन इसकी बढ़ती हुई मांग को लेकर अब भारत में भी कई किसान इस खेती पर काम करना शुरू कर चुके हैं। पश्चिमी देशों में स्ट्रॉबेरी की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है जो वहां पर किसानों के लिए लाभ का सौदा है। इसको देखकर दुनिया में अन्य देशों के किसान भी इसकी खेती शुरू कर चुके हैं। भारत में स्ट्रॉबेरी की खेती करना और उसे खरीदना एक स्टेटस का सिंबल है। इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश सरकार दिनोंदिन इस खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रयास कर रही है। इसके लिए प्रदेश में नई जमीन की तलाश की जा रही है जहां स्ट्रॉबेरी की खेती की जा सके। [caption id="attachment_10376" align="alignright" width="225"]एक उत्तम स्ट्रॉबेरी (A Perfect Strawberry) एक उत्तम स्ट्रॉबेरी (A Perfect Strawberry)[/caption] उत्तर प्रदेश सरकार के अंतर्गत आने वाले उद्यान विभाग की गहन रिसर्च के बाद यह पाया गया है कि प्रयागराज की जमीन और जलवायु स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए पूरी तरह से उपयुक्त है। इसके लिए सरकार ने प्रायोगिक तौर पर कार्य करना शुरू किया है और बागवानी विभाग ने 2 हेक्टेयर जमीन में खेती करना शुरू कर दी है, जिसके भविष्य में बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते हैं। बागवानी विभाग के द्वारा प्रयागराज की जमीन की स्ट्रॉबेरी की खेती करने के उद्देश्य से टेस्टिंग की गई थी जिसमें बेहतरीन परिणाम निकलकर सामने आये हैं। स्ट्रॉबेरी की खेती से जुड़े सरकारी अधिकारियों का कहना है कि जल्द ही प्रयागराज में बड़े पैमाने पर स्ट्रॉबेरी की खेती आरम्भ की जाएगी।

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स्ट्रॉबेरी की खेती करना बेहद महंगा सौदा है। लेकिन इस खेती में मुनाफा भी उतना ही शानदार मिलता है जितनी लागत लगती है। स्ट्रॉबेरी की खेती में लागत और मुनाफे का अंतर अन्य खेती की तुलना में बेहद ज्यादा होता है। भारत में स्ट्रॉबेरी की एक एकड़ में खेती करने में लगभग 4 लाख रुपये की लागत आती है। जबकि इसकी खेती के बाद किसानों को प्रति एकड़ 18-20 लाख रुपये का रिटर्न मिलता है, जो एक शानदार रिटर्न है। प्रयागराज के जिला बागवानी अधिकारी नलिन सुंदरम भट्ट ने बताया कि एक हेक्टेयर (2.47 एकड़) खेत में लगभग 54,000 स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाए जा सकते हैं और साथ ही इस खेती में ज्यादा से ज्यादा जमीन का इस्तेमाल किया जा सकता है। [caption id="attachment_10375" align="alignleft" width="321"]आधा स्ट्रॉबेरी दृश्य (Half cut strawberry view) आधा स्ट्रॉबेरी आंतरिक संरचना दिखा रहा है (Half cut strawberry view)[/caption] खेती विशेषज्ञों के अनुसार स्ट्रॉबेरी की खेती को ज्यादा पानी की जरुरत भी नहीं होती है। यह भारतीय किसानों के लिए एक शुभ संकेत है क्योंकि भारत में आजकल हो रहे दोहन के कारण भूमिगत जल लगातार नीचे की ओर जा रहा है, जिसके कारण ट्यूबवेल सूख रहे हैं और सिंचाई के साधनों में लगातार कमी आ रही है। इसलिए भारतीय किसान अन्य खेती के साथ स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए भी पानी का उचित प्रबंधन करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि सिंचाई के लिए उपयुक्त मात्रा में पानी की उलब्धता बनाई जा सके।    

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स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए रेतीली मिट्टी या भुरभुरी जमीन की जरुरत होती है। इसके साथ ही स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए 12 से लेकर 18 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान हो तो बहुत ही अच्छा होता है। यह परिस्थियां उत्तर भारत में सर्दियों में निर्मित होती हैं, इसलिए सर्दियों के समय स्ट्रॉबेरी की खेती किसान भाई अपने खेतों में कर सकते हैं और मोटा मुनाफा कमा सकते हैं। इजरायल की मदद से भारत में अब ड्रिप सिंचाई पर भी काम तेजी से हो रहा है, यह सिंचाई तकनीक इस खेती के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। क्योंकि इस माध्यम से सिंचाई करने पर सिंचाई की लागत में किसान भाई 30 प्रतिशत तक की कमी कर सकते हैं। इसके साथ ही भारी मात्रा में पानी की बचत होती है। ड्रिप सिंचाई का सेट-अप खरीदना और उसे इस्तेमाल करना बेहद आसान है। आजकल बाजार में तरह-तरह के ब्रांड ड्रिप सिंचाई का सेट-अप किसानों को उपलब्ध करवा रहे हैं। [caption id="attachment_10377" align="alignright" width="300"]एक नर्सरी पॉट में स्ट्रॉबेरी (strawberries in a nursery pot) एक नर्सरी पॉट में स्ट्रॉबेरी (Strawberries in a nursery pot)[/caption] उत्तर प्रदेश के बागवानी अधिकारियों ने बताया कि स्ट्रॉबेरी की खेती में एक एकड़ जमीन में लगभग 22,000 पौधे या एक एक हेक्टेयर जमीन में लगभग 54,000 पौधे  लगाए जा सकते हैं। इस खेती में किसान भाई लगभग 200 क्विंटल प्रति एकड़ की उपज ले सकते हैं। स्ट्रॉबेरी की खेती में लाभ का प्रतिशत 30 से लेकर 50 तक हो सकता है। यह फसल के आने के समय, उत्पादन, डिमांड और बाजार भाव पर निर्भर करता है। भारत में स्ट्रॉबेरी की खेती सितम्बर और अक्टूबर में शुरू कर दी जाती है। शुरूआती तौर पर स्ट्रॉबेरी के पौधों को ऊंची मेढ़ों पर उगाया जाता है ताकि पौधों के पास पानी इकठ्ठा होने से पौधे सड़ न जाएं। पौधों को मिट्टी के संपर्क से रोकने के लिए प्लास्टिक की मल्च (पन्नी) का उपयोग किया जाता है। स्ट्रॉबेरी के पौधे जनवरी में फल देना प्रारम्भ कर देते हैं जो मार्च तक उत्पादन देते रहते हैं। पिछले कुछ सालों में भारत में स्ट्रॉबेरी की तेजी से डिमांड बढ़ी है। स्ट्रॉबेरी बढ़ती हुई डिमांड भारत में इसकी लोकप्रियता को दिखाता है। [caption id="attachment_10379" align="alignleft" width="300"]स्ट्रॉबेरी की सतह का क्लोजअप (Closeup of the surface of a strawberry) स्ट्रॉबेरी की सतह का क्लोजअप (Closeup of the surface of a strawberry)[/caption] उत्तर प्रदेश के बागवानी विभाग ने बताया कि सरकार स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। इसके अंतर्गत सरकार किसानों को स्ट्रॉबेरी के पौधे 15 से 20 रूपये प्रति पौधे की दर से मुहैया करवाने जा रही है। सरकार की कोशिश है कि किसान इस खेती की तरफ ज्यादा से ज्यादा आकर्षित हो ताकि किसान भी इस खेती के माध्यम से ज्यादा मुनाफा कमा सकें। सरकार के द्वारा सस्ते दामों पर उपलब्ध करवाए जा रहे पौधों को प्राप्त करने के लिए प्रयागराज के जिला बागवानी विभाग में पंजीयन करवाना जरूरी है। जिसके बाद सरकार किसानों को सस्ते दामों में पौधे उपलब्ध करवाएगी। पंजीकरण करवाने के लिए किसान को अपने साथ आधार कार्ड, जमीन के कागज, आय प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र, बैंक की पासबुक, पासपोर्ट साइज फोटोग्राफ इत्यादि ले जाना अनिवार्य है। [caption id="attachment_10380" align="alignright" width="300"]पके और कच्चे स्ट्रॉबेरी (Ripe and unripe strawberries) पके और कच्चे स्ट्रॉबेरी (Ripe and unripe strawberries)[/caption] जानकारों ने बताया कि कुछ सालों पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में खास तौर पर सहारनपुर और पीलीभीत में स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की गई थी। वहां इस खेती के बेहतर परिणाम देखने को मिले हैं। सबसे पहले इन जिलों के किसानों की ये खेती करने में सरकार ने मदद की थी लेकिन अब जिले के किसान इस मामले में पूरी तरह से आत्मनिर्भर बन चुके हैं। इसको देखते हुए सरकार प्रयागराज में स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू करने को लेकर बेहद उत्साहित है। सरकार के अधिकारियों का कहना है, चूंकि इस खेती में पानी की बेहद कम आवश्यकता होती है और पानी का प्रबंधन भी उचित तरीके से किया जा सकता है, इसलिए स्ट्रॉबेरी की खेती का प्रयोग सूखा प्रभावित बुंदेलखंड के साथ लगभग 2 दर्जन जिलों में किया जा रहा है और अब कई जिलों में तो प्रयोग के बाद अब खेती शुरू भी कर दी गई है।
खुशखबरी: २०० करोड़ के निवेश से इस राज्य में बनने जा रहा है अनुसंधान केंद्र

खुशखबरी: २०० करोड़ के निवेश से इस राज्य में बनने जा रहा है अनुसंधान केंद्र

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि आयुष मंत्रालय बदरवाह में अनुसंधान केंद्र निर्माण हेतु २०० करोड़ रुपये स्वीकृत हो चुके हैं। यह जम्मू-कश्मीर के कृषकों के लिए हर्ष की बात है। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया है, कि जम्मू-कश्मीर में कृषि-प्रौद्योगिकी स्टार्टअप का केंद्र बनने के असीमित अवसर हैं। इसी संबंध में उनका यह भी कहना है, कि जम्मू में उत्पादित होने वाले बांसों का प्रयोग अगरबत्ती समेत विभिन्न प्रकार के आवश्यक उत्पादों के निर्माण हेतु हो सकता है। इस वजह से बांस की खेती के क्षेत्रफल में बढ़ोत्तरी तो होगी ही साथ में किसानों की आय में भी वृद्धि होगी। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि स्ट्रॉबेरी व सेब एवं ऐसे अन्य फलों की जीवनावधि को कोल्ड-चेन की उत्तम व्यवस्था के जरिये बढ़ाया जाना संभव है।

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उन्होंने कहा कि जम्मू और कश्मीर में गैर-इमारती वन उत्पाद (NTFP) में आने वाले पौधे जिनमें मशरूम, गुच्ची एवं अन्य औषधीय पौधे काफी संख्या में मिल जाते हैं। चिनाब घाटी अथवा पीर पंजाल क्षेत्र (राजौरी, पुंछ) उच्च गुणवत्ता वाले शहद एवं एनटीएफपी का केंद्र है। दरअसल, इनकी उचित तरीके से विपणन नहीं हो पाती है। केंद्रीय मंत्री ने बताया है, कि प्रदेश के जम्मू-कश्मीर औषधीय पादप बोर्ड एवं वन विभाग को साम्मिलित किया, क्योंकि एक सहायक पद्धति के जरिये से उत्पादन, बिक्री और विपणन की आवश्यकता है। 

कृषि संबंधित औघोगिक क्रांति से बेहद मुनाफा हो सकता है

उपरोक्त में जैसा बताया गया है, कि डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि आयुष मंत्रालय बदरवाह में अनुसंधान केंद्र निर्माण हेतु २०० करोड़ रुपये स्वीकृत हो चुके हैं।. इसी दौरान मंत्री का कहना है, कि कृषि, बागवानी एवं ग्रामीण विकास की भाँति अनेकों प्रगतिशील क्षेत्रों में कार्यरत सरकारी संगठनों हेतु निरंतर सहायता की आवश्यकता है। साथ ही उनका कहना है, कि शेर-ए-कश्मीर कृषि विश्वविद्यालय (SKUAST) कश्मीर, को उद्यमिता विकास संस्थान (EDI) के साथ मिलकर भेड़पालन व पशुपालन विभागों को सहायता प्रदान करनी चाहिए। 

किसानों को (एफपीओ) व सहकारी समितियों के जरिये संस्थागत होना चाहिए

बतादें कि, मंत्री जितेंद्र सिंह का कहना है, कि किसानों को सहकारी समितियों और किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के माध्यम से संस्थागत होना महत्वपूर्ण है। कृषि एवं बागवानी क्षेत्रों में स्थानीय मांगो पर ध्यान केंद्रित हो, एवं ऐैसे नौजवानों को तैयार करना होगा जिनकी इस क्षेत्र में कार्य करने की रूचि हो। साथ ही, एनजीओ किसानों को फसल बीमा अर्जन हेतु संवेदनशील बनाना अति आवश्यक है, क्योंकि इसकी जम्मू और कश्मीर में बेहद जरूरत है। केंद्रीय मंत्री के अनुसार, इस प्रकार के सरकारी संगठनों द्वारा समर्थन हेतु कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों में कार्यशील प्रमुख गैर सरकारी संगठनों व अनुसंधान संस्थानों का सम्मिलित होना अति आवश्यक है। बाजार में अच्छी पकड़ हेतु, अधिकारियों द्वारा कोई ऐसी नीति जारी होनी जरूरी है, जो स्थानीय कृषि और बागवानी उत्पादों जैसे अखरोट, सेब व राजमा आदि के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की जिम्मेदारी उठा सके।

जानें सर्दियों में कम खर्च में किस फसल से कमा सकते हैं अच्छा मुनाफा

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स्ट्रॉबेरी का उत्पादन करने वाले कृषक सर्वप्रथम खेत की मृदा का की जाँच पड़ताल कराएं। यदि किसान स्ट्रॉबेरी का उपादान करना चाहते हैं, तो खेती की मृदा बलुई दोमट होनी अति आवश्यक है। स्ट्रॉबेरी एक ऐसा फल है, जो कि आकर्षक दिखने के साथ-साथ बेहद स्वादिष्ट भी होता है। स्ट्रॉबेरी का स्वाद हल्का खट्टा एवं मधुर होता है। बाजार में स्ट्रॉबेरी की मांग बारह महीने होती है। इसी कारण से इसका उत्पादन करने वाले किसान हमेशा लाभ कमाते हैं। भारत में स्ट्रॉबेरी का उत्पादन अधिकाँश रबी सीजन के दौरान किया जाता है। इसकी मुख्य वजह यह है, कि इसके बेहतर उत्पादन के लिए जलवायु और तापमान ठंडा होना अति आवश्यक है। स्ट्रॉबेरी का उत्पादन अधिकाँश महाराष्ट्र, जम्मू & कश्मीर, उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश में किया जाता है। परन्तु वर्तमान में किसान नवीन तकनीकों का उपयोग कर स्ट्रॉबेरी का उत्पादन विभिन्न राज्यों के अलग-अलग क्षेत्रों में कर रहे हैं। आगे हम इस लेख में बात करेंगे कि कैसे किसान स्ट्रॉबेरी का उत्पादन करें और लाभ अर्जित करें।

अन्य राज्य किस तरह से कर रहे हैं स्ट्रॉबेरी का उत्पादन

बतादें, कि आधुनिक तकनीक के सहयोग आज के वक्त में कुछ भी आसानी से किया जा सकता है। खेती-किसानी के क्षेत्र में भी इसका उपयोग बहुत तीव्रता से किया जा रहा है। तकनीकों की मदद से ही कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं बिहार जैसे राज्यों के कृषक फिलहाल ठंडे राज्यों में उत्पादित होने वाली स्ट्रॉबेरी का उत्पादन कर रहे हैं। बतादें, कि इन राज्यों के किसान स्ट्रॉबरी का उत्पादन करने हेतु पॉलीहाउस तकनीक का उपयोग करते हैं। पॉलीहाउस में उत्पादन करने हेतु सर्व प्रथम मृदा को सूक्ष्म करना अति आवश्यक है एवं उसके उपरांत डेढ़ मीटर चौड़ाई व 3 मीटर लंबाई वाली क्यारियां निर्मित की जाती हैं। इन क्यारियों में ही स्ट्रॉबेरी के पौधे रोपे जाते हैं।


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स्ट्रॉबेरी का एक एकड़ में कितना उत्पादन हो सकता है

स्ट्रॉबेरी का उत्पादन करने वाले कृषकों को सर्वप्रथम बेहतर मृदा परख होनी आवश्यक है। यदि किसान स्ट्रॉबेरी का उत्पादन करना चाहते हैं, तो उसके लिए भूमि की मृदा का बलुई दोमट होना अत्यंत जरुरी है। साथ ही, किसान यदि 1 एकड़ भूमि में तकरीबन 22000 स्ट्रॉबेरी के पौधे उत्पादित कर सकते हैं। हालाँकि, इन पौधों में जल देने के लिए किसानों को ड्रिप सिंचाई (Drip irrigation) की सहायता लेनी होती है। स्ट्रॉबेरी के पौधे तकरीबन 40 से 50 दिनों के अंतराल में ही फल प्रदान करने लगते हैं।

स्ट्रॉबेरी की अच्छी बाजार मांग का क्या राज है

आपको बतादें कि दो कारणों से स्ट्रॅाबेरी के फल की मांग वर्ष के बारह महीने होती है। इसकी पहली वजह इसकी सुंदरता एवं इसका मीठा स्वाद दूसरी वजह इसमें विघमान बहुत से पोषक तत्व जो सेहत के लिए बहुत लाभकारी साबित होते हैं। यदि बात करें इसमें पाए जाने वाले पोषक तत्वों की तो इसमें विटामिन के, विटामिन सी, विटामिन ए सहित फास्फोरस, पोटेशियम, केल्सियम, मैग्नीशियम एवं फोलिक ऐसिड पाया जाता है। स्ट्रॉबेरी के सेवन से कील मुंहासों को साफ किया जा सकता है एवं यह आंखों के प्रकाश एवं दांतों हेतु भी लाभकारी है।
स्ट्रॉबेरी का फल देखने में काफी अच्छा लगता है, इसके लिए एैसा मौसम होना चाहिए

स्ट्रॉबेरी का फल देखने में काफी अच्छा लगता है, इसके लिए एैसा मौसम होना चाहिए

स्ट्रॉबेरी एक ऐसा फल है, जो कि ना सिर्फ दिखने में बेहतरीन होता है, बल्कि स्वाद में भी उत्कृष्ट होता है। इसका उत्पादन शरद जलवायु वाले क्षेत्रों में किया जाता है। हमारे भारत देश में स्ट्रॉबेरी की कृषि ऐसे तो हिमाचल प्रदेश, कश्मीर और उत्तराखंड के उचाई वाले पहाड़ी इलाकों में की जाती है। दरअसल, फिलहाल समय परिवर्तन सहित बाकी प्रदेशों में भी इसकी कृषि की जा रही है। स्ट्रॉबेरी का पौधा थोड़े ही दिनों में फल देने हेतु तैयार हो जाता है। फिलहाल, किसान भाई पारंपरिक कृषि को दर किनार करके फलों व सब्जियों का उत्पादन कर रहे हैं। इसी क्रम में फिलहाल हम कृषकों को स्ट्रॉबेरी की कृषि के विषय में बताने जा रहे हैं।

स्ट्रॉबेरी की फसल कब उगाई जाती है

स्ट्रॉबेरी के उत्पादन हेतु उपयुक्त वक्त सितंबर से अक्टूबर के मध्य का माना जाता है। लेकिन, ठंडी जलवायु वाले इलाकों में इसकी कृषि फरवरी एवं मार्च में भी की होती है। वहीं इसके अतिरिक्त
पॉली हाउस एवं बाकी संरक्षित विधि से कृषि करने वाले किसान इसकी बुवाई बाकी माह में भी किया करते हैं।

स्ट्रॉबेरी फल की प्रजातियाँ

हालाँकि यदि हम नजर डालें तो पूरे विश्व में स्ट्रॉबेरी की 600 से ज्यादा प्रजातियाँ उपस्थित हैं। जिनमें से देश में विशेष रुप से एलिस्ता, चांडलर, कमारोसा, फेयर फॉक्स, ओफ्रा और स्वीड चार्ली प्रजातियों का उत्पादन किया जाता है।

स्ट्रॉबेरी के उत्पादन के लिए खेत को किस तरह तैयार करें

स्ट्रॉबेरी के उत्पादन करने हेतु मृदा की गुणवत्ता बेहतर रहनी चाहिए। कृषि में पाटा लगाके मृदा को सूक्ष्म किया जाता है, जिसके उपरांत क्यारियां निर्मित की जाती हैं। स्ट्रॉबेरी के उत्पादन हेतु ध्यान रहे कि क्यारियों की उंचाई तकरीबन 15 सेंमी ऊंची रहनी चाहिए। साथ ही, पौधे से पौधे की दूरी एवं कतार से कतार की दूरी 30 सेमी रहनी चाहिए।

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स्ट्रॉबेरी के पौधरोपण करने के कुछ वक्त उपरांत इसमें फूल आने चालू हो जाएंगे। इस दौरान आपको मंल्चिग विधि का उपयोग करना चाहिए। मल्चिंग का उपयोग करने से फसल में खरपतवार और फल खराब होने की आशंका बेहद कम रहती है। वहीं, उत्पादन भी अच्छा होता है।

स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए कौन-सा इलाका अच्छा होता है

पहाड़ी राज्यों में जलवायु में ठंडक होने की वजह से स्ट्रॉबेरी का उत्पादन बेहद अच्छा होता है। परंतु, इसके साथ-साथ पहाड़ी क्षेत्रों में वर्षा होती रहती है, इसको ध्यान में रखते हुए किसानों को स्ट्रॉबेरी की खेती पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। कृषि विशेषज्ञ वर्षा के दौरान स्ट्रॉबेरी के पौधों को पॉलीथीन द्वारा ढकने की राय देते हैं, जिससे कि फसल में सड़न - गलन ना आए। सिंचाई हेतु स्ट्रॉबेरी के पौधरोपण के उपरांत खेत में स्प्रिकंलर अथवा ड्रिप विधि द्वारा सिंचाई करनी चाहिए। स्ट्रॉबेरी के फल का पौधरोपण करने के 1.5 माह के समयोपराँत इसमें फल लगना चालू हो जाते हैं। ध्यान रहे कि फल लाल होने की स्थिति में किसान भाई इसकी तुड़ाई कर लें।
गोमूत्र की गंध और स्वाद आपकी पसंद का होगा, क्योंकि अब मनचाहे फ्लेवर में गोमूत्र उपलब्ध

गोमूत्र की गंध और स्वाद आपकी पसंद का होगा, क्योंकि अब मनचाहे फ्लेवर में गोमूत्र उपलब्ध

यह फ्लेवर्ड गोमूत्र वर्तमान में 6 प्रकार के भिन्न भिन्न स्वाद में मौजूद है। इन फ्लेवर्स में स्ट्रॉबेरी, पान, मैंगो, ऑरेंज, पाइनएप्पल और मिक्स फ्लेवर है। इसके एक लीटर की कीमत 200 रुपये के लगभग है। गोमूत्र विगत कुछ सालों से ज्यादा चर्चा में है। दरअसल, इसका उपयोग औषधीय के तौर पर आयुर्वेद में सदियों से किया जाता रहा है। आयुर्वेद की द्रष्टि से देखें तो बहुत सारी गंभीर बीमारियों में भी इसके सेवन से फायदा होता है। भारत सहित संपूर्ण विश्व में ऐसे लाखों लोग हैं, जो इसका उपभोग करते हैं। परंतु, कुछ लोग इसके स्वाद और इसकी बदबू के कारण चाह कर भी इसका सेवन नहीं कर पाते हैं।

गोमूत्र ऑरेंज, आम और पाइनएप्पल फ्लेवर्स में उपलब्ध है

फिलहाल, ऐसे ही लोगों की सुविधा के लिए वैज्ञानिकों द्वारा फ्लेवर्ड
गोमूत्र तैयार किया गया है। इसका अर्थ यह है, कि फिलहाल गोमूत्र आपको अलग-अलग प्रकार के स्वाद में मिल पाऐगा। यदि आपको आम पसंद है तो गोमूत्र आम फ्लेवर में मिल जाएगा। यदि आपको संतरा पसंद है तो गोमूत्र ऑरेंज फ्लेवर में मिल पाऐगा। वहीं, यदि आप पाइनएप्पल के शौकीन हैं, तो आपको गोमूत्र इस स्वाद में भी मिल जाएगा। मतलब कि फिलहाल आप खट्टा, मीठा व नमकीन जैसा स्वाद और सुगंध में चाहेंगे गोमूत्र आपको उसी तरह का मिल जाएगा।

फ्लेवर्ड गोमूत्र को किसने तैयार किया है

गोमूत्र के विभिन्न फ्लेवर्स की यह बड़ी खोज आईआईटी मुंबई से पीएचडी कर चुके डॉक्टर राकेश चंद्र अग्रवाल ने की है। उन्होंने इस फ्लेवर्ड गोमूत्र को नाम संजीवनी रस रखा है। इस खोज के उपरांत गोमूत्र विभिन्न फ्लेवर्स में पूरे भारत में उपलब्ध है। भिन्न-भिन्न प्रयोग शालाओं में इसको तैयार करने के लिए लोगों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। डॉ. राकेश इसको लेकर दीर्घ काल से शोध कर रहे थे और अंततः उन्हें सफलता मिल ही गई। डॉ. राकेश का कहना है, कि गोमूत्र में विभिन्न प्रकार के एंजाइम्स और न्यूट्रिएंट्स होते हैं। जो हमारे शरीर को विभिन्न प्रकार के गंभीर रोगों से ग्रसित होने से बचाते हैं। इसलिए उन्होंने यह निर्णय लिया है, कि फिलहाल वह फ्लेवर्ड गोमूत्र तैयार कर इसको घर-घर तक उपलब्ध करा देंगे।

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फ्लेवर्ड गोमूत्र का नाम संजीवनी रस रखा है

मीडिया की खबरों के अनुसार, आपको बतादें कि यह फ्लेवर्ड गोमूत्र वर्तमान में 6 प्रकार के अलग-अलग स्वाद में मौजूद है। इन फ्लेवर्स में पाइनएप्पल, स्ट्रॉबेरी, पान, मैंगो, ऑरेंज और मिक्स फ्लेवर है। इसको तैयार करने के लिए फूड ग्रेड कलर एवं एसेंस का उपयोग किया जाता है। वर्तमान में यह कोटा की 6 गोशालाओं में बनाया जा रहा है। लेकिन, आहिस्ते आहिस्ते इसको बड़े पैमाने पर तैयार करने की भी योजना है। यदि आप भी इस प्रकार का फ्लेवर्ड गोमूत्र चाहते हैं, तो आपको एक लीटर के लिए न्यूनतम 200 रुपये खर्च करने पड़ेंगे।
किसान ने विपरीत परिस्थितियों में स्ट्रॉबेरी और ब्रोकली की खेती कर मिशाल पेश की

किसान ने विपरीत परिस्थितियों में स्ट्रॉबेरी और ब्रोकली की खेती कर मिशाल पेश की

राजस्थान के जोधपुर जनपद से संबंध रखने वाले किसान रामचन्द्र राठौड़ विपरीत परिस्थितियों में भी स्ट्रॉबेरी एवं ब्रोकली की खेती कर लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया है। अपनी इस सफलता से उन्होंने बहुत सारे अन्य किसानों को भी प्रेरित किया है। रामचन्द्र विगत 19 वर्षों से खेती कर रहे हैं। जब कोई इंसान कुछ ठान लेता है, तो विपरीत परिस्थितियों में भी उसे हांसिल अवश्य कर लेता है। ऐसी ही एक कहानी है, राजस्थान के जोधपुर जनपद से संबंध रखने वाले किसान रामचन्द्र राठौड़ की, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी कुछ ऐसी फसलों की खेती करी, जो कोई सोच तक भी नहीं सकता था। सामान्य तौर पर राजस्थान एक कठोर जलवायु परिस्थितियों वाला राज्य है। इसके बावजूद भी रामचन्द्र ने एक बंजर भूमि पर स्ट्रॉबेरी एवं ब्रोकली की खेती कर विभिन्न लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया है। अपनी इस सफलता से उन्होंने बहुत से अन्य किसानों को भी प्रेरित किया है। इसके साथ ही दूर-दूर से किसान भी इनसे प्रशिक्षण लेने आ रहे हैं। राजस्थान के इस किसान ने विपरीत परिस्थितियों एवं काफी चुनौतियों से घिरे होने के चलते भी मिशाल पेश कर दी है। बतादें कि इस किसान ने राजस्थान की रेतीली जमीन में स्ट्रॉबेरी और ब्रॉकली की खेती कर ड़ाली है।

समस्यापूर्ण परिस्थितियों में की कृषि

रामचन्द्र राठौड़ जोधपुर जनपद की लूनी तहसील से ताल्लुक रखते हैं। लूनी पश्चिमी राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र का एक हिस्सा है, जो बंजर जमीन के लिए जाना जाता है। इतना ही नहीं, इस क्षेत्र को प्रदूषित पानी की वजह डार्क जोन के तौर पर वर्गीकृत किया गया है। हाल के दिनों में कुछ सुधार के होते हुए भी, इस रेगिस्तानी इलाके में लोग बार-बार सूखे का संकट झेलने को मजबूर हैं। ज्यादातर युवा नौकरी की खोज में शहरों की ओर पलायन कर गए हैं। परंतु, इस चुनौतीपूर्ण परिदृश्य में भी रामचंद्र राठौड़ ने अपनी पैतृक जमीन पर स्ट्रॉबेरी और ब्रोकोली की सफलतापूर्वक खेती करके बहुत सारे लोगों को हैरान किया है। ऐसा कहते हैं, कि उनके खेत के टमाटर फ्रिज के अंदर दो महीने तक ताजा रहते हैं। रामचन्द्र की कृषि तकनीकों ने वैश्विक कृषि विशेषज्ञों का ध्यान भी खींचा है।

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किसान ने महज 17 वर्ष की आयु में कृषि शुरू की थी

मीडिया खबरों के मुताबिक, रामचन्द्र ने कहा है, कि वे चुनौतियों से भरी परिस्थितियों में बड़े हुए हैं। उनके पिता जी भी एक किसान थे एवं उन्हें अपर्याप्त बरसात की वजह से बार-बार फसल की विफलता का सामना करना पड़ता था। जिसकी वजह से रामचन्द्र को आगे की पढ़ाई करने की जगह खेती में मदद करने के लिए मजबूर होना पड़ा। उन्होंने अपने परिवार का सहयोग करने के लिए सिलाई की तरफ रुख किया एवं स्व-वित्तपोषण के जरिए से 12वीं कक्षा तक अपनी शिक्षा जारी रखी थी। हालांकि, 2004 में अपने पिता की मौत के पश्चात उन्होंने 17 साल की आयु में अपनी पैतृक जमीन पर वापस खेती करने का निर्णय लिया। उन्होंने बताया कि शुरुआत में वे बाजरा, ज्वार और मूंग की खेती किया करते थे। हालांकि, उन्हें प्रदूषित एवं अनुपयुक्त जल के चलते बहुत सारी समस्याओं को सामना भी करना पड़ा।

सरकारी प्रशिक्षण ने जिंदगी को पूर्णतय परिवर्तित कर दिया

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि उनके जीवन में अहम मोड़ तब आया जब उन्हें सरकार की कृषक मित्र योजना के अंतर्गत जोधपुर सीएजेडआरआई संस्थान में सात दिवसीय प्रशिक्षण का अवसर मिला था। इस प्रशिक्षण ने उनको सिखाया कि कृषि के लिए वर्षा जल का संरक्षण किस प्रकार किया जाए। साथ ही, रेगिस्तानी परिस्थितियों में नवीन कृषि पद्धतियों को कैसे अपनाया जाए। बतादें कि प्रशिक्षण ने उन्हें कृषकों की सहायता करने वाली सरकारी योजनाओं की एक श्रृंखला से भी परिचित कराया है। प्रशिक्षण ने उनको इस विश्वास को चुनौती देने के लिए प्रेरित किया कि अकाल एवं बेमौसम बारिश असाध्य समस्याएं हैं। कृषि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन एवं प्रशिक्षण से अर्जित व्यावहारिक ज्ञान के जरिए उन्होंने वर्षा जल संचयन की क्षमता एवं अनियमित मौसम पैटर्न के विरुद्ध पॉलीहाउस के सुरक्षात्मक लाभों की खोज करी।

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किसान रामचंद्र बहुत सारे कृषकों को प्रेरित कर रहे हैं

जोधपुर जनपद में बागवानी विभाग के एक अधिकारी द्वारा प्रोत्साहित किए जाने पर रामचंद्र ने 2018 में एक पॉलीहाउस का निर्माण किया है। इसके पश्चात उन्होंने 2019-20 में एक फार्म तालाब एवं एक वर्मी-कम्पोस्ट इकाई निर्मित करके अपनी कोशिशों का विस्तार किया। पॉलीहाउस में खीरे की खेती के लिए वर्षा जल का इस्तेमाल करके, उन्होंने केवल 100 वर्ग मीटर में 14 टन का रिकॉर्ड-तोड़ उत्पादन हासिल की, जो कि जोधपुर जनपद के किसी भी कृषक द्वारा बेजोड़ उपलब्धि है। अपने नए-नए इनोवेशन को जारी रखते हुए उन्होंने नकदी फसलों के क्षेत्र में कदम रखा और रेगिस्तानी क्षेत्र में स्ट्रॉबेरी और तोरी की सफलतापूर्वक खेती कर ड़ाली है। उन्होंने अपनी भूमि का एक अहम भाग बागवानी खेती के लिए समर्पित करते हुए जैविक उर्वरक उत्पादन का भी बीड़ा उठाया है। उनकी सफलता की कहानी ने व्यापक असर उत्पन्न किया है। साथ ही, अन्य कृषकों को भी इसी तरह की पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रेरित किया गया है।
गुरलीन जमीन के छोटे से टुकड़े पर स्ट्रॉबेरी की खेती कर मिशाल बन चुकी हैं

गुरलीन जमीन के छोटे से टुकड़े पर स्ट्रॉबेरी की खेती कर मिशाल बन चुकी हैं

गुरलीन का कहना है, कि उन्होंने ऑनलाइन ही स्ट्रॉबेरी की खेती करना सीखा था। गुरलीन के इस परिश्रम को देखते हुए उनके पिता ने उन्हें सपोर्ट किया। गुरलीन ने बताया कि आरंभ में उन्होंने छोटे से भूमि के टुकड़े से इसकी शुरुआत की थी। परंतु, आज वह ढेड एकड़ भूमि में इसका उत्पादन कर रही हैं। भारत में युवा पीढ़ी की सोच खेती-किसानी के प्रति आहिस्ते-आहिस्ते परिवर्तित हो रही है। बतादें, कि ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं, जहां युवाओं ने शानदान वेतन वाली नौकरी छोड़ खेती का मार्ग पकड़ा है। केवल इतना ही नहीं बहुत सारे युवा खेती कर लाखों की आमदनी कर रहे हैं। कुछ इस प्रकार की ही कहानी है, उत्तर प्रदेश-झांसी की मूल निवासी गुरलीन चावला की, जिन्होंने युवाओं के लिए एक नजीर प्रस्तुत की है। गुरलीन आज सफल ढ़ंग से खेती कर लाखों की आमदनी कर रही हैं। अपने परिश्रम की बदौलत गुरलीन एक बंजर भूमि के टुकड़े से सोना उगल रही हैं। जी हां, आपने सही सुना है, जब गुरलीन ने खेती का प्रारंभ किया था, तब उनके पास एक बंजर भूमि का टुकाड़ा था, जिसे उन्होंने कृषि करने लायक बनाया। वहीं, आज उसी भूमि पर वह अपनी फसल उगा रही हैं।

गुरलीन का सफर लॉकडाउन के दौरान चालू हुआ था  

गुरलीन का कहना है, कि अपनी पढ़ाई संपन्न करने के पश्चात वह कुछ हटकर करना चाहती थी, जिस वजह से उन्होंने बंजर भूमि पर स्ट्रॉबेरी की खेती आरंभ की है। उन्होंने अपने सपनों को पूर्ण करने के लिए दिन-रात परिश्रम किया। गुरलीन ने बताया कि उन्हें इसका आइडिया लॉकडाउन के समय आया, जब वह झांसी में अपने घर पर थीं। उन्हें स्ट्रॉबेरी बेहद पसंद है। परंतु, लॉकडाउन के दौरान स्ट्राबेरी मिलने पर उन्होंने घर पर ही इसे उगाने के विषय में सोचा। गुरलीन ने बतौर प्रयोग पहले घर में कुछ गमलों में इसके बीज रोपे। प्रयोग सफल रहने पर उन्होंने अपने पिता को इसकी जानकारी प्रदान की एवं उनके फॉर्म हाउस में बंजर पड़ी भूमि पर इसकी खेती चालू कर ड़ाली। गुरलीन ने बताया कि आरंभिक समय में उन्होंने छोटे सी भूमि से इसका प्रारंभ किया था। वहीं, आज वह ढेड एकड़ भूमि में इसका उत्पादन कर रही हैं।

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गुरलीन के कार्य की PM मोदी भी सराहना कर चुके हैं  

गुरलीन ने बताया कि उन्होंने झांसी ऑर्गेनिक्स नाम से एक वेबसाइट भी तैयार कर रखी है। जहां लोग ऑनलाइन माध्यम से आर्डर कर सकते हैं। गुरलीन स्ट्रॉबेरी की खेती के साथ-साथ विभिन्न सब्जियों को भी उगा रही हैं। गुरलीन का कहना है, कि उन्होंने ढेड एकड़ भूमि से खेती का आरंभ किया था। वहीं, आज वह 7 एकड़ भूमि पर खेती कर रही हैं। झांसी में स्ट्रॉबेरी की सफलतापूर्वक खेती करने के पश्चात गुरलीन प्रशासन एवं सरकार की सराहना भी प्राप्त कर चुकीं हैं। गुरलीन प्रमुख तौर पर तब चर्चाओं में आईं जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात के 73वें संस्करण में उनका जिक्र किया एवं उनकी जमकर तारीफ की है। गुरलीन का कहना है, कि वह आज सफल ढ़ंग से खेती कर लाखों की आमदनी कर रही हैं।