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घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां (Summer herbs to grow at home in hindi)

घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां (Summer herbs to grow at home in hindi)

दोस्तों, आज हम बात करेंगे जड़ी बूटियों के विषय में ऐसी जड़ी बूटियां जो ग्रीष्मकालीन में उगाई जाती है और इन जड़ी बूटियों से हम विभिन्न विभिन्न प्रकार से लाभ उठा सकते हैं। यह जड़ी बूटियों को हम अपने घर पर उगा सकते हैं, यह जड़ी बूटियां कौन-कौन सी हैं जिन्हें आप घर पर उगा सकते हैं, इसकी पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें।

ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां

पेड़ पौधे मानव जीवन के लिए एक वरदान है कुदरत का यह वरदान मानव जीवन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। विभिन्न प्रकार से यह पेड़-पौधे जड़ी बूटियां मानव शरीर और मानव जीवन काल को बेहतर बनाते हैं। पेड़ पौधे मानवी जीवन का एक महत्वपूर्ण चक्र है। विभिन्न प्रकार की ग्रीष्म कालीन जड़ी बूटियां  रोग निवारण करने के लिए इन जड़ी बूटियों का उपयोग किया जाता है। इन जड़ी-बूटियों के माध्यम से विभिन्न प्रकार की बीमारियां दूर होती है अतः या जड़ी बूटियां मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां, औषधि पौधे न केवल रोगों से निवारण अपितु विभिन्न प्रकार से आय का साधन भी बनाए रखते हैं। औषधीय पौधे शरीर को निरोग बनाए रखते हैं। विभिन्न प्रकार की औषधि जैसे तुलसी पीपल, और, बरगद तथा नीम आदि की पूजा-अर्चना भी की जाती है। 

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घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां :

ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां जिनको आप घर पर उगा सकते हैं, घर पर इनको कुछ आसान तरीकों से उगाया जा सकता है। यह जड़ी बूटियां और इनको उगाने के तरीके निम्न प्रकार हैं: 

नीम

नीम का पौधा गर्म जलवायु में सबसे अच्छा पनपता है नीम का पेड़ बहुत ही शुष्क होता है। आप घर पर नीम के पौधे को आसानी से गमले में उगा सकते हैं। इसको आपको लगभग 35 डिग्री के तापमान पर उगाना होता है। नीम के पौधे को आप घर पर आसानी से उगा सकते हैं। आपको ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं होती, नीम के पेड़ से गिरे हुए फल को  आपको अच्छे से धोकर उनके बीच की गुणवत्ता  तथा खाद मिट्टी में मिला कर पौधों को रोपड़ करना होता है। नीम के अंकुरित लगभग 1 से 3 सप्ताह का टाइम ले सकते हैं। बगीचों में बड़े छेद कर युवा नीम के पौधों को रोपण किया जाता है और पेड़ अपनी लंबाई प्राप्त कर ले तो उन छिद्रों को बंद कर दिया जाता है। नीम चर्म रोग, पीलिया, कैंसर आदि जैसे रोगों का निवारण करता है।

तुलसी

तुलसी के पौधे को घर पर उगाने के लिए आपको घर के किसी भी हिस्से या फिर गमले में बीज को मिट्टी में कम से कम 1 से 4 इंच लगभग गहराई में तुलसी के बीज को रोपण करना होता है। घर पर तुलसी के पौधा उगाने के लिए बस आपको अपनी उंगलियों से मिट्टी में इनको छिड़क देना होता है क्योंकि तुलसी के बीज बहुत ही छोटे होते हैं। जब तक बीच पूरी तरह से अंकुरित ना हो जाए आपको मिट्टी में नमी बनाए रखना है। यह लगभग 1 से 2 सप्ताह के बीच उगना शुरू हो जाते हैं। आपको तुलसी के पौधे में ज्यादा पानी नहीं देना है क्योंकि इस वजह से पौधे सड़ सकते हैं तथा उन्हें फंगस भी लग सकते हैं। घर पर तुलसी के पौधा लगाने से पहले आपको 70% मिट्टी तथा 30 प्रतिशत रेत का इस्तेमाल करना होता है। तुलसी की पत्तियां खांसी, सर्दी, जुखाम, लीवर की बीमारी मलेरिया, सास से संबंधित बीमारी, दांत रोग इत्यादि के लिए बहुत ही उपयोगी होती है।

बेल

बेल का पौधा आप आसानी से गमले या फिर किसी जमीन पर उगा सकते हैं। इन बेल के बीजों का रोपण करते समय अच्छी खाद और मिट्टी के साथ पानी की मात्रा को नियमित रूप से देना होता है। बेल के पौधे विभिन्न प्रकार की बीमारियों को दूर करने के काम आते हैं। जैसे: लीवर की चोट, यदि आपको वजन घटाना हो या फिर बहुत जादा दस्त हो, आंतों में विभिन्न प्रकार की गड़बड़ी, कब्ज की समस्या तथा चिकित्सा में बेल की पत्तियों और छालों और जड़ों का प्रयोग कर विभिन्न प्रकार की औषधि का निर्माण किया जाता है। 

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आंवला

घर पर  किसी भी गमले या जमीन पर आप आंवले के पौधे को आसानी से लगा सकते हैं। आंवले के पेड़ के लिए आपको मिट्टी का गहरा और फैलाव दार गमला लेना चाहिए। इससे पौधों को फैलने में अच्छी जगह मिलती है। गमले या फिर घर के किसी भी जमीन के हिस्से में पॉटिंग मिलाकर आंवले के बीजों का रोपण करें। आंवले में विभिन्न प्रकार का औषधि गुण मौजूद होता है आंवले में  विटामिन की मात्रा पाई जाती है। इससे विभिन्न प्रकार के रोगों का निवारण होता है जैसे: खांसी, सांस की समस्या, रक्त पित्त, दमा, छाती रोग, मूत्र निकास रोग, हृदय रोग, क्षय रोग आदि रोगों में आंवला सहायक होता है।

घृत कुमारी

घृतकुमारी  जिसको हम एलोवेरा के नाम से पुकारते हैं। एलोवेरा के पौधे को आप किसी भी गमले या फिर जमीन पर आसानी से उगा सकते हैं। यह बहुत ही तेजी से उगने वाला पौधा है जो घर के किसी भी हिस्से में उग सकता है। एलोवेरा के पौधे आपको ज्यादातर भारत के हर घर में नजर आए होंगे, क्योंकि इसके एक नहीं बल्कि अनेक फायदे हैं। एलोवेरा में मौजूद पोषक तत्व त्वचा के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होते हैं। त्वचा के विभिन्न प्रकार के काले धब्बे दाने, कील मुहांसों आदि समस्याओं से बचने के लिए आप एलोवेरा का उपयोग कर सकते हैं। यह अन्य समस्याओं जैसे  जलन, डैंड्रफ, खरोच, घायल स्थानों, दाद खाज खुजली, सोरायसिस, सेबोरिया, घाव इत्यादि के लिए बहुत सहायक है।

अदरक

अदरक के पौधों को घर पर या फिर गमले में उगाने के लिए आपको सबसे पहले अदरक के प्रकंद का चुनाव करना होता है, प्रकंद के उच्च कोटि को चुने करें। घर पर अदरक के पौधे लगाने के लिए आप बाजार से इनकी बीज भी ले सकते हैं। गमले में 14 से 12 इंच तक मिट्टी को भर ले, तथा खाद और कंपोस्ट दोनों को मिलाएं। गमले में  अदरक के टुकड़े को डाले, गमले का जल निकास नियमित रूप से बनाए रखें। 

अदरक एक ग्रीष्मकालीन पौधा है इसीलिए इसको अच्छे तापमान की बहुत ज्यादा आवश्यकता होती है। यह लगभग 75 से लेकर 85 के तापमान में उगती  है। अदरक भिन्न प्रकार के रोगों का निवारण करता है, सर्दियों के मौसम में खांसी, जुखाम, खराश गले का दर्द आदि से बचने के लिए अदरक का इस्तेमाल किया जाता है। अदरक से बैक्टीरिया नष्ट होते हैं, पुरानी बीमारियों का निवारण करने के लिए अदरक बहुत ही सहायक होती है। 

दोस्तों हम यह उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह आर्टिकल घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां पसंद आया होगा। हमारे आर्टिकल में घर पर उगाई जाने वाली  जड़ी बूटियों की पूर्ण जानकारी दी गई है। जो आपके बहुत काम आ सकती है यदि आप हमारी जानकारी से संतुष्ट है। तो हमारी इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्त और सोशल मीडिया पर  शेयर करें। 

धन्यवाद।

अदरक के भाव में कमी के चलते अदरक उत्पादक बेहद चिंता में, मूल्य में घटोत्तरी के बारे में ये बोले किसान

अदरक के भाव में कमी के चलते अदरक उत्पादक बेहद चिंता में, मूल्य में घटोत्तरी के बारे में ये बोले किसान

अदरक (Ginger; जिंजर; adrak) की कीमतों में घटोत्तरी के कारण किसान बेहद चिंतित हैं, उनके मुताबिक कुछ साल से कीमतों में घटोत्तरी हो रही है। आजकल के समय बाजारों में अदरक का मूल्य २५०० रुपये से लेकर ३००० रुपये प्रति क्विंटल मिल रहा है, जबकि ५००० रुपये प्रति क्विंटल तक का भाव मिले तब जाकर उत्पादकों को अच्छा मुनाफा मिल पायेगा। महाराष्ट्र राज्य के किसानों की परेशानियाँ कम ही नही हो रही हैं। कभी बेमौसम बारिश तो कभी बाजारों में पैदावार का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। महाराष्ट्र में इस वक्त किसान सोयाबीन एवं प्याज के गिरते मूल्य से चिंतित तो थे ही, अब अदरक उत्पादकों की भी समस्या बढ़ गई हैं। अदरक के भाव में भारी कमी देखने को मिल रही है। महाराष्ट्र में अदरक उत्पादन करने वाले किसानों को पिछले कुछ वर्षों से बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ है। अदरक की खेती पर किसान लाखों रुपये व्यय करते हैं, लेकिन बाजार में उचित मूल्य नहीं मिलने से अदरक उत्पादकों को घाटा वहन करना पड़ रहा है। राज्य में सर्वाधिक अदरक की खेती सतारा, जालना एवं औरंगाबाद जिले में की जाती है। महाराष्ट्र में अदरक की फसल का रकबा लगभग २० हजार हेक्टेयर तक पहुंच चुका है। पुणे, बीड,जलाना, वाशिम, औरंगाबाद, सांगली एवं सतारा जनपदों में अदरक की फसल का उत्पादन तो बढ़ा है, लेकिन मूल्यों में वृद्धि नहीं हो पा रही है। किसानों ने बताया है कि ४ वर्ष पूर्व अदरक उत्पादन से लाभ तो हो रहा था, लेकिन अब नहीं हो पा रहा है। किसान सोमनाथ पाटिल ने बताया है कि अगर किसानों को अदरक का उचित मूल्य न्यूनतम ५००० रुपये प्रति क्विंटल मिले तब कहीं अदरक उत्पादकों को लाभ हो सकेगा।


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अत्यधिक बरसात के चलते हुआ था फसल को भारी नुकसान

अक्टूबर माह में २० दिनों के दौरान अदरक उत्पादक इलाकों में मूसलाधार बरसात हुई, जिसके चलते अदरक की गुणवत्ता भी बेहद प्रभावित हुई है। इससे किसानों की समस्याएं ज्यादा बढ़ गई हैं। फिलहाल बाजार में अदरक की आवक में घटोत्तरी हो रही है, लेकिन अदरक २५०० रुपये से ३००० रुपये प्रति क्विंटल के मूल्य पर विक्रय हो रहा है, जो कि काफी कम है। अदरक की फसल पैदावार की औसत खर्च ७५ हजार से १. ५ लाख प्रति एकड़ तक होता है। साथ ही, अन्य फसलों की अपेक्षा में रोपण के उपरांत न्यूनतम छह महीने तक सुरक्षा रखने की आवश्यकता होती है। विगत कुछ वर्षों में बरसात में परिवर्तन के चलते हानि हुई है। अक्टूबर और नवंबर माह में अकारण बरसात में अदरक की पैदावार में गिरावट आ जाती है।

अदरक उत्पादन में किसान का कितना व्यय होता है ?

किसान सोमनाथ पाटिल ने कहा है कि उनका अदरक उत्पादन करने के दौरान प्रति एकड़ ५० हजार से लेकर ६० हजार रुपए तक का व्यय होता है। साथ ही, इसके अतिरिक्त परिवहन का खर्च ही ३ हजार तक जाता है। अदरक के बीज के लिए ५००० रुपए लग जाते हैं। यदि बाजारों में अदरक का भाव ५००० रुपये प्रति क्विंटल मिले तब कहीं उत्पादकों द्वारा फसल पर किया गया खर्च निकल पाएगा।
गमले में अदरक उगाएं रोग प्रतिरोधक क्षमता बड़ाएं

गमले में अदरक उगाएं रोग प्रतिरोधक क्षमता बड़ाएं

सर्दियों के सीजन में समुचित आहार एवं व्यायाम नहीं करने की स्थिति में शीघ्र रोगग्रसित हो सकते हैं, परंतु फिलहाल घर पर ही अदरक (Ginger; Adrak) की तरह जड़ी बूटी उत्पादित करके स्वयं प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकते हैं, साथ ही सेहतमंद जीवन व्यतीत किया जा सकता है। भारत में शीत लहर आरंभ होने के साथ धीरे-धीरे हवा में कंपकपाहट में भी बढ़ोत्तरी हो रही है। सर्दियों के मौसम में लोग ज्यादातर बीमारियों के चंगुल में फंस जाते हैं। बुखार, सर्दी-जुकाम, इस मौसम में सामान्य सी बात हो चुकी है। ऐसी समस्त समस्याओं से आपको अदरक से बनी चाय ही बचा सकती है। बतादें, कि अदरक एक प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक है, इसका उपयोग आयुर्वेदिक दवाएं बनाने के लिए किया जाता है। इसमें जिंक, आयरन, कैल्शियम के साथ-साथ विटामिंस प्रचूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो कि किसी बीमारिओं से बचाने में बेहद सहायक होते हैं। मुख्य चीज यह है, कि फिलहाल स्वस्थ्य रहने हेतु आपको बाजार के अदरक पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा, क्योंकि अब आप अपने घर पर ही बहुत सुगमता से इसको उत्पादित कर सकते हैं। दरअसल, अदरक का गृह उत्पादन बेहद ही आसान है। इसके हेतु आपको कोई अतिरिक्त व्यय करने की आवश्यकता नहीं होगी। वर्तमान में इसका बीज या अदरक के टुकड़े से भी आप 1 से 2 किलो तक अदरक की हार्वेस्टिंग ले आसानी से ले सकते हो। जिसकी विधि हम आपको आगे इस लेख में बताने जा रहे हैं।

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कौनसी जगह अदरक की बागवानी के लिए सही है

यदि हम अदरक की बागवानी के बारे में बात करें तो, उसके लिए जगह एक महत्वपूर्ण विषय है। अदरक की बागवानी ऐसी जगह की जानी चाहिए जहां सीधी धूप पर्याप्त मात्रा में मिल सके। यदि आप चाहें तो घर की छत, बालकनी अथवा आप खिड़की के आसपास भी गमला रखकर उगाया जा सकता है। अदरक के कंटेनर को शेड में स्थापित करें, जिसकी वजह से सर्द हवा एवं पाले का प्रत्यक्ष प्रभाव पौधे पर ना पड़े। क्योंकि बहुत बार अत्यधिक सर्दी के कारण हार्वेस्टिंग बेकार भी हो सकती है।

किस प्रकार करें प्लांटर को तैयार

अदरक की बागवानी करने हेतु सर्व प्रथम गमला स्थापित करना होगा। अगर आपको अच्छा लगे तो घर पर ही किसी पुरानी बाल्टी या कंटेनर का भी उपयोग कर सकते हैं। इसमें बागवानी मृदा अथवा साधारण मिट्टी के साथ कोकोपीट, वर्मीकंपोस्ट तथा गोबर से बनी खाद का मिश्रण डाल दें। एक बात का विशेष ख्याल रखें कि मृदा अत्यधिक नम या फिर गीली ना हो।

अदरक का बीज कैसे लगाएं

गमला तैयार करने के उपरांत आप 2 से 3 इंच का अदरक का टुकड़ा रसोई से लायें। पौधे के सुगम उत्पादित होने के लिए आप अदरक के टुकड़े को अंकुरित करके लगाएं। इसके बाद अदरक का टुकड़ा गमले में मिट्टी के भीतर लगाएं और उसके बाद थोड़ा सा जल भी छिड़क दें। यदि आप दिए गए विधि द्वारा अदरक का बीजारोपण करते हैं, तो आपको अति शीघ्र ही पैदावार मिलने के आसार हैं।

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इस प्रकार करें देखरेख

अदरक का गमला पूर्ण रूप से व्यवस्थित करने के उपरांत इसको प्रत्यक्ष रूप से धूप वाले स्थान पर रख दें, जिससे पौधे को शीघ्रता से बढ़ने में सहायता मिल सके। समय समय पर अपने पौधे की जाँच करते रहें, इसमें कोई कीड़े-मकोड़े, रोग एवं जलन तो नहीं लगे। अगर ऐसी स्थिति है, तो नींबू पानी का घोल बनाकर के पौधे पर छिड़काव कर सकते हैं। पौधे में जल आवश्यकतानुसार ही डालें, यदि जरूरत से ज्यादा जल ड़ाल दिया तो पौधा एवं अदरक में गलाव लग जाता है। सर्दियों के दिन प्रत्येक सप्ताह में 2 बार जल का छिड़काव किया जा सकता है।

मात्र 25 दिनों में अदरक की कटाई कर सकते हैं

बतादें, कि यदि आपने पौधे की बेहतरीन तरीके से देखभाल की है। हालाँकि, मौसम भी अदरक की बागवानी हेतु काफी अनुकूल ही रहेगा। इस वजह से 25 दिन के अंतराल में ही अदरक की काफी बेहतरीन कटाई ली जा सकती है। इस प्रकार से स्वयं भी मात्र एक अदरक के टुकड़े से आप काफी उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। इसके माध्यम से आपको बेहद कम व्यय करके अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ा सकते हैं।
इस प्रकार से अदरक की खेती करने पर होगा जबरदस्त मुनाफा

इस प्रकार से अदरक की खेती करने पर होगा जबरदस्त मुनाफा

वर्तमान समय में किसान भाई लगातार अपनी आय बढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं ताकि वो अपनी जरूरतों को पूरा कर सकें। लेकिन कुछ समय से देखा गया है कि जबरदस्त मेहनत करने के बावजूद किसान भाइयों को परंपरागत फसलों से मुनाफा लगातार कम होता जा रहा है। 

ऐसे में अब किसान भाई वैकल्पिक फसलों की तरफ रुख कर रहे हैं। ये फसलें कम समय में ज्यादा मुनाफा देने में सक्षम हैं। ऐसी ही एक फसल है अदरक की फसल। 

अदरक का उपयोग चाय से लेकर सब्जी, अचार में किया जाता है। इसलिए इस फसल की मांग बाजार में साल भर बनी रहती है। ऐसे में किसान भाई इस फसल को लगाकर अच्छी खासी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।

इस प्रकार की परिस्थियों में की जा सकती है अदरक की खेती

अदरक की खेती के लिए अलग से जमीन का चयन करने की बिल्कुल जरूरत नहीं होती है। इसकी
खेती पपीता और दूसरे बड़े पेड़ों के बीच आसानी से की जा सकती है। 

लेकिन फसल बोने के पहले मिट्टी की जांच करना आवश्यक है। जिस मिट्टी में अदरक की फसल लगाने जा रहे हैं उस मिट्टी का पीएच 6 से 7 के बीच होना चाहिए। इसके साथ ही खेत से पानी निकालने की भी समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।

खेत में जरूरत से अधिक पानी जमा होने पर यह फसल सड़ सकती है। जिससे किसान को नुकसान उठाना पड़ सकता है। अगर मिट्टी की बात करें तो इसकी फसल के लिए बलुई दोमट सबसे उपयुक्त मानी गई है।

इस प्रकार से करें अदरक की बुवाई

बुवाई के पहले खेत को अच्छे से जुताई करके तैयार कर लें। इसके बाद खेत में अदरक के कंदों की बुवाई करें। प्रत्येक कंद के बीच 40 सेंटीमीटर का अंतर रखें। कंदों को मिट्टी में 5 सेंटीमीटर की गहराई में बोना चाहिए। 

अगर बीज की मात्रा की बात करें तो एक हेक्टेयर में बुवाई के लिए 2 से 3 क्विंटल तक अदरक के बीज की जरूरत पड़ती है। बुवाई के बाद ढालदार मेड़ बनाकर बीजों को हल्की मिट्टी या गोबर की खाद से ढक दें। बीजों को ढकते समय पानी निकासी की व्यवस्था का ध्यान रखें। 

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अदरक एक कंद है। इसलिए छाया में बोई गई फसल में अन्य फसलों की अपेक्षा ज्यादा उपज होती है। कई बार यह उपज 25 प्रतिशत तक अधिक हो सकती है। साथ ही छाया में बोई गई अदरक में कंदों का गुणवत्ता में भी उचित वृद्धि होती है।

पलवार का उपयोग करें

अदरक की खेती में पलवार का उपयोग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसको बिछाने से भूमि के तापक्रम एवं नमी में सामंजस्य बना रहता है। जिससे फसल का अंकुरण अच्छा होता है और वर्षा और सिंचाई के समय भूमि का क्षरण भी नहीं होता है। 

पलवार का उपयोग करने से बहुत हद तक खरपतवार पर भी नियंत्रण पाया जा सकता है। पलवार के लिए काली पॉलीथीन के अलावा हरी पत्तियां लम्बी घास, आम, शीशम, केला या गन्ने के ट्रेस का भी उपयोग किया जा सकता है।

पलवार को फसल रोपाई के तुरंत बाद बिछा देना चाहिए। इसके बाद दूसरी बार बुवाई के 40 दिन बाद और तीसरी बार बुवाई के 90 दिन बाद बिछाना चाहिए।

निदाई, गुडाई तथा मिट्टी चढ़ाना

अदरक की फसल में निदाई, गुडाई फसल बुवाई के 4-5 माह बाद करना चाहिए। इस दौरान यदि खेत में किसी भी प्रकार का खरपतवार है तो उसे निकाल देना चाहिए। 

जब अदरख के पौधों की ऊंचाई 20-25 सेमी हो जाए तो पौधों की जड़ों में मिट्टी चढ़ाना चाहिए। इससे मिट्टी भुरभुरी हो जाती है और अदरक का आकार बड़ा हो जाता है।

इस तरह से करें खाद का प्रबंधन

अदरक की फसल बेहद लंबी अवधि की फसल है, इसलिए इसमें पोषक तत्वों की हमेशा मांग रहती है। जमीन में पोषक तत्वों की मांग को पूरा करने के लिए बुवाई से पहले 250-300 कुन्टल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सड़ी हुई गोबर या कम्पोस्ट की खाद को खेत में बिछा देना चाहिए। इसके साथ ही कंद रोपड़ के समय नीम की खली डालने पौधे में किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं लगती है और पौधा स्वस्थ्य रहता है। 

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इसके अलावा रासायनिक उर्वरकों में 75 किग्रा. नत्रजन, किग्रा कम्पोस्टस और 50 किग्रा पोटाश को प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग कर सकते हैं। 

इन उर्वरकों का प्रयोग करने के बाद  प्रति हेक्टेयर 6 किग्रा जिंक का प्रयोग भी किया जा सकता है। इससे फसल उत्पादन अच्छा प्राप्त होता है।

ऐसे करें हार्वेस्टिंग

अदरक की फसल 9 माह में तैयार हो जाती है। जिसके बाद इसे भूमि से निकालकर बाजार में बेंचा जा सकता है। लेकिन यदि किसान को लग रहा है कि उसे उचित दाम नहीं मिल रहे हैं तो इसे जमीन के भीतर 18 महीने तक छोड़ा जा सकता है। 

ऐसे में यह फसल किसी भी तरह से प्रभावित नहीं होती है। यह एक बड़ा मुनाफा देने वाली फसल है। ऐसे में  किसान भाई इस फसल को उगाकर लाखों रुपये बेहद आसानी से कमा सकते हैं।

अदरक की इन उन्नत प्रजातियों की जुलाई-अगस्त में बुवाई कर अच्छा उत्पादन उठा सकते हैं

अदरक की इन उन्नत प्रजातियों की जुलाई-अगस्त में बुवाई कर अच्छा उत्पादन उठा सकते हैं

अथिरा: अथिरा अदरक की एक बेहतरीन प्रजाति है। बुवाई करने के उपरांत 220 से 240 दिन में इसकी फसल तैयार हो जाती है। अगर आप एक एकड़ में अथिरा किस्म की खेती करते हैं, तो 84 से 92 क्विंटल तक अदरक की पैदावार हो सकती है। 

अदरक एक औषधीय श्रेणी में आने वाली फसल है, जिसका इस्तेमाल खाने के साथ-साथ औषधियां बनाने में भी किया जाता है। यह सालों साल सुगमता से बाजार में मिल जाता है। 

हालांकि, मौसम के हिसाब से इसका भाव ऊपर- नीचे अस्थिर होता रहता है। परंतु, वर्तमान में अदरक ने महंगाई के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। इसकी कीमत 250 से 300 रुपये किलो के मध्य पहुंच गई है। 

हालांकि, ऐसे इसका भाव 100 से 120 रुपये किलो के आसपास ही रहता है। ऐसी स्थिति में बहुत सारे किसान अदरक बेचकर लखपति बन चुके हैं। यदि आप अदरक की खेती करने के विषय में सोच रहे हैं, तो आज हम आपको इसकी चार ऐसी प्रजातियों के विषय में बताएंगे, जिससे बंपर उत्पादन मिलेगा।

अदरक की बुवाई किस प्रकार की जाती है

सामान्य तौर पर अदरक की बुवाई अप्रैल से मई महीने के दौरान की जाती है। अधिकतर किसान इन्हीं दो महीनों में अदरक की खेती करते हैं। परंतु, वर्तमान में मानसून की दस्तक के उपरांत भी इसकी बुवाई की जाने लगी है। 

यदि आप चाहते हैं, तो जुलाई और अगस्त माह के दौरान भी इसकी बुवाई की जा सकती है। इस वजह से अदरक की खेती करने वाले किसान इसकी बुवाई करने से पूर्व नीचे दी गई बेहतरीन किस्मों का चयन जरूर करें। यदि आप खरीफ सीजन में वैज्ञानिक विधि से इन प्रजातियों की खेती करते हैं, तो अच्छी आमदनी होगी।

अदरक की कुछ प्रमुख किस्में

सुप्रभा: सुप्रभा प्रजाति का छिलका सफेद और चमकीला सा होता है। यह कम समयावधि में पककर तैयार होनी वाली प्रजाति है। इसकी बुवाई करने पर आप 225 से 230 दिनों में फसल की पैदावार कर सकते हैं। 

विशेष बात यह है, कि इस प्रजाति में प्रकंद विगलन रोग नहीं लगता है। क्योंकि, इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा विघमान होती है। इसका उत्पादन 80 से 92 क्विंटल प्रति एकड़ है।

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सुरुची: इसी प्रकार सुरुचि किस्म का कोई तोड़ ही नहीं है। यह एक प्रकार की अगेती प्रजाति है। रोपाई करने के 200 से 220 दिन के समयांतराल पर फसल तैयार हो जाती है। बतादें कि इसकी औसतन ऊपज 4.8 टन प्रति एकड़ होती है।

नदिया: नदिया किस्म की खेती सबसे अधिक उत्तर भारत के किसान करते हैं। इसकी फसल को तैयार होने में काफी वक्त लगता है। 

गभग 8 से 9 महीने में नदिया किस्म की फसल पक कर तैयार हो जाती है। साथ ही, इसकी औसत पैदावार 80 से 100 क्विंटल प्रति एकड़ है। 

अथिरा: अथिरा अदरक की एक बेहतरीन प्रजाति है। बुवाई करने के पश्चात 220 से 240 दिन में इसकी फसल तैयार हो जाती है। 

यदि आप एक एकड़ में अथिरा प्रजाति की खेती करते हैं, तो 84 से 92 क्विंटल तक अदरक का उत्पादन हो सकता है। इससे लगभग 22.6 प्रतिशत सूखी अदरक 3.4 प्रतिशत कच्चे रेशे और 3.1 प्रतिशत तेल की मात्रा प्राप्त होती है। अधिकांश किसान इसी प्रजाति की खेती करते हैं।