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तोरई की खेती में भरपूर पैसा

तोरई की खेती में भरपूर पैसा

तोरई को कद्दू वर्गीय खेती माना जाता है। तोरई की खेती कैसे करते हैं यह जानने के लिए इससे जुड़ी कुछ तकनीकों की जानकारी होना आवश्यक है। इ्सकी खेती से अच्छा पैसा प्राप्त करने के लिए लो-टनल तकनीक एक खास तकनीक है। इस तकनीक में एक पॉलीथिन की झोंपड़ी बनाई जाती है और इसमें समय से पूर्व पौध तैयार की जाती है। इस पौध को फसल के लिए उपयुक्त तापमान मिलने पर खेत में रोप दिया जाता है। यह नगदी फसल है और बाजार में इसकी कीमतें बहुत ज्यादा न गिरने से किसानों को इसकी खेती से नुकसान नहीं होता। तोरई उचित जल निकासी वाली मिट्टी, मीठा पानी और गर्म जलवायु में अच्छा उत्पादन देती है। शुष्क और आद्र मौसम में इससे अच्छा उत्पादन मिलता है। अच्छे उत्पादन के लिए सब्जी वाली फसलों में कम्पोस्ट खाद का प्रयोग करना बेहद आवश्यक है।

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तोरई की खेती कब करें

इसकी अगेती खेती के लिए किसान लो टनल पॉलीहाउस में बीजारोपण करने की तैयारी कर रहे हैं ताकि यहां नियंत्रित तापमान में पौध तैयार की जा सके। समय से बिजाई का उपयुक्त समय  जनबरी के बाद आता है। कद्दू वर्गीय किसी फसल को लगाने के लिए फरबरी में ही उपयुक्त तापमान आता है। 

तोरई की खेती करने का तरीका

कुछ लोग लो-टनल में पौध तैयार करके उन्हें जनवरी के अंत या फरवरी के प्रारंभ में खेत में रोपते हैं। दूसरा तरीका मल्चिंग का है। इस तकनीक में बीज जमीन में समय से पूर्व ही लगा दिए जाते हैं। इन्हें पॉलीथिन सीट से ढ़क दिया जाात है। बाद में अंकुरण होने और बढ़बार शुरू होने तक ढँक कर रखा जाता है। पॉलीथिन सीट तब हटाई जाती है जबकि मौसम सामान्य हो जाए। 

तोरई के लिए कैसी मिट्टी चाहिए

यह नगदी फसल है और बाजार में इसकी कीमतें बहुत ज्यादा न गिरने से किसानों को इसकी खेती से नुकसान नहीं होता । तोरई उचित जल निकासी वाली मिट्टी, मीठा पानी और गर्म जलवायु में अच्छा उत्पादन देती है। शुष्क और आद्र मौसम में इससे अच्छा उत्पादन मिलता है। अच्छे उत्पादन के लिए सब्जी वाली फसलों में कम्पोस्ट खाद का प्रयोग करना बेहद आवश्यक है। 

उन्न्त किस्मों का चयन

तोरई की अनेक उन्नत किस्में हैंं। सस्ते बीज सरकारी संस्थानों में मिलते हैं। प्राईवेट कंपनियों के अनेक हाइब्रिड बाजार में मौजूद हैं। घिया तोरई, पूसा नसदार किस्म जिसे कुछ इलाकों में खर्रा भी कहा जाता है दिल्ली जैसे महानगरों में पसंद की जाती है। इसे दूूसरे शहरों तक पहुंचाने में फल कम घिसते हैं। सरपुतिया, पंजाब सदाबहार, पी के एम 1, कोयम्बूर 2 आदि अनेक किस्में हैं। इनसे 70 से 80 दिन में फल मिलने शुरू हो जाते हैं। उपज 200 से 250 कुंतल प्रति हैक्टेयर मिलती है। 

बीजारोपण

खेत को अच्छे से तैयार करते हैं। सड़ी गोबर की खाद जोत में मिलाते हैं। इसके बीजों को खेत में उगाने से पहले थीरम या बाविस्टीन से उपचारित कर लेना चाहिए. ताकि पौधे को शुरुआत में होने वाले रोगों से बचाया जा सके। एक हेक्टेयर में इसकी रोपाई के लिए दो से तीन किलो बीज काफी होता है। खेत में तीन से चार मीटर की दूरी पर नाली बना लेते हैं। इनके किनारों पर बीज रोपकर पानी लगा देना चाहिए। 

पौधों की सिंचाई

तोरई के पौधों को सिंचाई की जरूरत बीजों के अंकुरित होने और पौधों पर फल बनने के दौरान अधिक होती है। इस दौरान पौधों की तीन या चार दिन के अंतराल में हल्की हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए। खेत में 100 किलोग्राम एनपीके आखिरी जुताई मेेें मिलाने और गोबर की खाद डालने के बाद किसी खाद की जरूरत नहीं होती। फसल विकास के समय बेहद हल्का यूरिया डालना चाहिए। खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई गुडाई करते रहें। 

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लालड़ी

कीट के प्रभाव से फसल को बचाने लिए अंकुरण के बाद ही पौधों पर नीम का तेल पानी के साथ मिलाकर छिडक देना चाहिए।

फल मक्खी

इसके नियंत्रण के ​लिए जैविक उपचार के तौर पर नीम तेल या क्लोरोपायरीफास जैसे हल्के कीटनाशक का प्रयोग करें।

चूर्णी फफूंदी

इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर कार्बेन्डाजिम या एन्थ्रेक्नोज की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए।

पत्ती धब्बा

इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मन्कोजेब या जिनेब की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए।

जड़ सड़न

इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों की जड़ों में बाविस्टीन या मेन्कोजेब की उचित मात्रा को पानी में मिलाकर पौधों पर छिड़कना चाहिए।

मसालों के लिए सबसे बेहतरीन पतली मिर्च की सर्वश्रेष्ठ किस्में [Chili pepper varieties best for spices]

मसालों के लिए सबसे बेहतरीन पतली मिर्च की सर्वश्रेष्ठ किस्में [Chili pepper varieties best for spices]

मिर्ची का नाम सुनते ही कुछ मीठा खाने का मन करता है, लेकिन उस से ज्यादा मन मिर्च खाने का होता है। बिना मिर्ची के किसी भी सब्जी , पकवान, मसाला, अचार और अन्य भोजनों मे स्वाद ही नहीं आता। मिर्ची को हम मसाले बनाने के लिए भी बहुत ज्यादा काम में लेते है। भारत के पश्चिमी और उतरी इलाको में सबसे ज्यादा मिर्ची खाई जाती है। आइये आज हम जानते हैं मसालों के लिए सबसे बेहतरीन पतली मिर्च की सर्वश्रेष्ठ किस्में [Chili pepper] । मिर्ची का सबसे पहले उत्पादन या फिर जन्म स्थान की बात करे तो वह है दक्षिणी अमेरिका। उसके बाद यह धीरे धीरे संपूर्ण विश्व भर में फैली है। भारत में मिर्ची की सबसे ज्यादा खेती आंध्र प्रदेश में होती है। यही से भारत की सबसे ज्यादा मिर्ची संपूर्ण देश भर में बेची जाती है। मिर्ची में भी बहुत सारी किस्में होती है। जैसे शिमला मिर्च जिसे हम सब्जी बनाने में काम में लेते है क्योंकि ये इतनी ज्यादा तीखी नही होती है। वही दूसरी ओर लाल मिर्च को मसाले और आचार बनाने के काम में लेते है, क्योंकि लाल मिर्च स्वाद में काफी तेज होती है। लाल मिर्ची के पौधे

ऐसे में आज हम आपको बताएंगे कुछ ऐसी ही पतली और स्वाद में तीखी मिर्ची के बारे में :-

मिर्ची की इन 7 किस्मों को सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है।

  1. पंजाब की लाल मिर्च ( पंजाब लाल) :-

पंजाब की लाल मिर्च बहुत ही ज्यादा तीखी और स्वादिष्ट होती है। "पंजाब लाल" मिर्ची का एक पौधा होता है जिसकी ऊंचाई लगभग 10-12 सेंटी मीटर होती हे। शुरुआती दौर में यह मिर्च आम मिर्च की तरह  हरी होती है लेकिन उसके बाद पूर्ण रूप से पकने पर लाल रंग की हो जाती है। अगर हम हरी मिर्च और लाल मिर्च के मुनाफे की बात करे तो सालाना  हरी मिर्च 75 क्विंटल होती है वहीं दूसरी तरफ लाल मिर्च 10 क्विंटल ही होती है।
  1. पूषा ज्वाला पतली तेज मिर्च :-

पूषा ज्वाला मिर्ची दिखने में पतली होती है लेकिन स्वाद में बहुत ही तीखी होती हैं। इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल मसाले और आचार बनाने में किया जाता है, क्योंकि इसका स्वाद मसाले और आचार के लिए सबसे बेहतरीन माना जाता है। इसके अंदर विटामिन ए की मात्रा काफी ज्यादा होती है । इसी कारण इस मिर्ची को कई प्रकार की औषधीयां और दवाइया बनाने के लिए मेडिकल उपयोग में भी किया जाता हैं। ये भी पढ़े: विश्व की सर्वाधिक तीखी मिर्च ने गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में नाम दर्ज किया
  1. कल्याण पूर चमन मिर्ची :-

कल्याण पूर मिर्च का नाम कल्याण पूर गांव के नाम पर रखा गया। वही से इस प्रकार की मिर्च का सबसे ज्यादा निर्यात होता है।कल्याण पूर मिर्च शंकर किस्म की मिर्च के अंतर्गत आती हैं। खाने और मसाले बनाने में इसका इस्तेमाल किया जाता हैं। कल्याणपुर चमन मिर्ची को उगाने के लिए आप छोटे छोटे खबड़े बनाकर उसके अंदर खाद और उर्वरक डालकर मिट्टी तैयार कर ले। उसके बाद आप इसे बीजों के द्वारा भी लगा सकते हैं और पौधों की रोपाई के द्वारा भी लगा सकते हैं।
  1. भाग्य लक्ष्मी मिर्च :-

भाग्य लक्ष्मी का मतलब होता है की भाग्य में मिलने वाली लक्ष्मी लेकिन  यहां पर हम मिर्च की बात कर रहे है ना की पैसे की।भाग्य लक्ष्मी किस्म की मिर्ची दिखने में काफी पतली होती हैं।यह मिर्च इतनी ज्यादा प्रसिद्ध है की इसकी खेती संपूर्ण भारत में की जाती हैं। भाग्यलक्ष्मी मिर्च का निर्यात भी आज कल बढ़ गया है। इसकी पैदावार भी अच्छी होने लगी है ,सुक्ष्ण कटिबंधीय इलाको में।
  1. आंध्र की आंध्र ज्योति मिर्च :-

यह एक बहु - वर्षीय किस्म है जिसकी एक साल में बहुत बार खेती की जा सकती है। आंध्र ज्योति मिर्च काफी जल्दी पक कर तैयार  हो जाती हैं। इसकी पैदावार भी बहुत ज्यादा होती हैं।इस किस्म की मिर्च की फलियां काफी लंबी और पतली होती हैं। साथ ही साथ इसमें  रोगों और बीमारियों से लड़ने के लिए बहुत ज्यादा क्षमता होती हैं। आंध्र प्रदेश की आंध्र ज्योति मिर्च को पकने के लिए हमेशा गर्म जलवायु पसंद आती हैं।
  1. जवाहर मिर्च :-

जवाहर मिर्च की किस्म को भारत में सबसे ज्यादा इस्तेमाल में लीया जाता हैं। जवाहर मिर्च को सबसे उत्तम मिर्च माना जाता हैं। यह मिर्च थायपास और मायटास के लिए बहुत ही ज्यादा स्वेदनशील होती है। इस मिर्च को संपूर्ण रूप से तैयार होने में तकरीबन 120 से 130 दिनों का समय लगता है। हरी मिर्च और लाल मिर्च का अगर हम अंतराल देखे तो लाल मिर्च हरी मिर्च से काफी कम मात्रा में होती है। ये भी पढ़े: तीखी मिर्च देगी मुनाफा
  1. अर्का मेघना मिर्च :-

इस किस्म की मिर्च के पौधे दूसरी मिर्च की किस्म से काफी अलग होते है। इस मिर्च के पौधे काफी लंबे और गहरे हरे लाल रंग के होते हैं। अर्क मेघना मिर्च हरी और लाल दोनो प्रकार की फलियों के लिए बहुत ही ज्यादा उपयुक्त होती हैं। इसकी फलियों की लंबाई 10 सेंटी मीटर से लेकर 15 सेंटी मीटर तक होती है। यह मिर्च 3 से 4 टन प्रति साल होती है एक ही फसल से। मसालों के लिए सबसे बेहतरीन पतली मिर्च की सर्वश्रेष्ठ किस्में [Chili pepper varieties best for spices] जो उपरोक्त दी गयी हैं, इनके अलावा आप की जानकारी में मिर्च की किस्में जो आप यहां पोस्ट में डलवाना चाहें, तो कृपया कमेंट में जरूर साझा करें।

मिर्ची की तुड़ाई के लिए सबसे अच्छा समय :-

अलग अलग प्रकार की मिर्च की किस्म के लिए  तुड़ाई का समय अलग अलग  होता है। सामान्य प्रकार की मिर्च के लिए आप मिर्च की रोपाई करने के 80 से 90 दिनों के बीच में पक कर तैयार हो जाती है। इसके बाद आप आराम से मिर्ची की फलियों की तुड़ाई कर सकते हैं , हालांकि यदि आपको हरी मिर्च चाहिए तो आपको पहले तुड़ाई  करनी होगी और लाल मिर्च के लिए थोड़ा और समय देना होगा। सुखी यानी की सूखी लाल मिर्च के लिए आपको 140 से 150 दिनों तक का समय लगेगा। हरी मिर्च की पैदावार की बात करें तो यह 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है और वहीं दूसरी तरफ लाल मिर्च की पैदावार मात्र 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टर होती है।

मिर्च में लगने वाले रोग और बीमारियों से इस प्रकार छुटकारा पाएं :

मिर्च के रोग [chili plant disease] मिर्ची की फसल में सबसे ज्यादा लगने वाला रोग होता है फल गलन यानी की टहनी मार रोग। यह रोग इतना खतरनाक होता है कि यदि किसान भाई सही समय पर इसकी रोकथाम ना करें तो यह मिर्ची की पैदावार को बहुत ज्यादा कम कर देती हैं। ऐसे में किसानों को काफी ज्यादा नुकसान होता है।इस रोग में मिर्ची के पौधों की पत्तियों और फलियों पर काले और भूरे रंग के छोटे-छोटे धब्बे बनना शुरू हो जाते हैं। ये भी पढ़े: जानें मिर्च की खेती में कितनी लागत में किसान कितना मुनाफा कमा सकते हैं एक बार जब यह धब्बे बनना शुरू हो जाते हैं तो उसके कुछ ही समय बाद इन पर फफूंदी लग जाती हैं जो पत्तियों को संपूर्ण रूप से नष्ट कर देती हैं। ऐसे में मिर्ची का पूरा पौधा रोग के कारण मुरझा जाता है। हालांकि कई बार यह रोग हो जाने के बाद भी मिर्ची की पैदावार अच्छी होती हैं लेकिन मिर्ची की क्वालिटी और स्वाद बिल्कुल भी अच्छा नहीं होता है।इस रोग से बचने के लिए आप 400 ग्राम कॉपर ऑक्सिक्लोराइड और मैनजॉब या फिर जिन्आय को 200 लीटर पानी में मिलाकर 1 एकड़ के हिसाब से प्रति सप्ताह दो-तीन दिन के अंतराल से छिड़काव करें। यह जरूर याद रखें कि इसका छिड़काव प्रतिदिन ना करें क्योंकि यह काफी हानिकारक होता है मिर्ची के पौधों के लिए। 10 से 15 दिन तक इस प्रकार छिड़काव करने से काले और भूरे धब्बे सभी हट जाते हैं और पौधा पूर्ण रूप से विकसित होने लगता है जिसके कारण अच्छी पैदावार होती हैं। इसी के साथ आप यह भी याद रखें कि समय-समय पर पौधों पर कीटनाशकों का छिड़काव और खाद और उर्वरक देते रहें ताकि पौधों में पोषक तत्व और विटामिंस की बिल्कुल भी कमी ना आने पाए। आशा करते हैं की उपरोक्त जानकारी आपको पसंद आएगा, मसालों के लिए सबसे बेहतरीन पतली मिर्च की सर्वश्रेष्ठ किस्में [Chili pepper varieties best for spices] जो ऊपर दी गयी हैं, उनका प्रयोग आपके ज़ायके को बढ़ा दे। कृपया अपने सुझाव कमेंट में जरूर साझा करें।
घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां (Summer herbs to grow at home in hindi)

घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां (Summer herbs to grow at home in hindi)

दोस्तों, आज हम बात करेंगे जड़ी बूटियों के विषय में ऐसी जड़ी बूटियां जो ग्रीष्मकालीन में उगाई जाती है और इन जड़ी बूटियों से हम विभिन्न विभिन्न प्रकार से लाभ उठा सकते हैं। यह जड़ी बूटियों को हम अपने घर पर उगा सकते हैं, यह जड़ी बूटियां कौन-कौन सी हैं जिन्हें आप घर पर उगा सकते हैं, इसकी पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें।

ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां

पेड़ पौधे मानव जीवन के लिए एक वरदान है कुदरत का यह वरदान मानव जीवन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। विभिन्न प्रकार से यह पेड़-पौधे जड़ी बूटियां मानव शरीर और मानव जीवन काल को बेहतर बनाते हैं। पेड़ पौधे मानवी जीवन का एक महत्वपूर्ण चक्र है। विभिन्न प्रकार की ग्रीष्म कालीन जड़ी बूटियां  रोग निवारण करने के लिए इन जड़ी बूटियों का उपयोग किया जाता है। इन जड़ी-बूटियों के माध्यम से विभिन्न प्रकार की बीमारियां दूर होती है अतः या जड़ी बूटियां मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां, औषधि पौधे न केवल रोगों से निवारण अपितु विभिन्न प्रकार से आय का साधन भी बनाए रखते हैं। औषधीय पौधे शरीर को निरोग बनाए रखते हैं। विभिन्न प्रकार की औषधि जैसे तुलसी पीपल, और, बरगद तथा नीम आदि की पूजा-अर्चना भी की जाती है। 

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घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां :

ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां जिनको आप घर पर उगा सकते हैं, घर पर इनको कुछ आसान तरीकों से उगाया जा सकता है। यह जड़ी बूटियां और इनको उगाने के तरीके निम्न प्रकार हैं: 

नीम

नीम का पौधा गर्म जलवायु में सबसे अच्छा पनपता है नीम का पेड़ बहुत ही शुष्क होता है। आप घर पर नीम के पौधे को आसानी से गमले में उगा सकते हैं। इसको आपको लगभग 35 डिग्री के तापमान पर उगाना होता है। नीम के पौधे को आप घर पर आसानी से उगा सकते हैं। आपको ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं होती, नीम के पेड़ से गिरे हुए फल को  आपको अच्छे से धोकर उनके बीच की गुणवत्ता  तथा खाद मिट्टी में मिला कर पौधों को रोपड़ करना होता है। नीम के अंकुरित लगभग 1 से 3 सप्ताह का टाइम ले सकते हैं। बगीचों में बड़े छेद कर युवा नीम के पौधों को रोपण किया जाता है और पेड़ अपनी लंबाई प्राप्त कर ले तो उन छिद्रों को बंद कर दिया जाता है। नीम चर्म रोग, पीलिया, कैंसर आदि जैसे रोगों का निवारण करता है।

तुलसी

तुलसी के पौधे को घर पर उगाने के लिए आपको घर के किसी भी हिस्से या फिर गमले में बीज को मिट्टी में कम से कम 1 से 4 इंच लगभग गहराई में तुलसी के बीज को रोपण करना होता है। घर पर तुलसी के पौधा उगाने के लिए बस आपको अपनी उंगलियों से मिट्टी में इनको छिड़क देना होता है क्योंकि तुलसी के बीज बहुत ही छोटे होते हैं। जब तक बीच पूरी तरह से अंकुरित ना हो जाए आपको मिट्टी में नमी बनाए रखना है। यह लगभग 1 से 2 सप्ताह के बीच उगना शुरू हो जाते हैं। आपको तुलसी के पौधे में ज्यादा पानी नहीं देना है क्योंकि इस वजह से पौधे सड़ सकते हैं तथा उन्हें फंगस भी लग सकते हैं। घर पर तुलसी के पौधा लगाने से पहले आपको 70% मिट्टी तथा 30 प्रतिशत रेत का इस्तेमाल करना होता है। तुलसी की पत्तियां खांसी, सर्दी, जुखाम, लीवर की बीमारी मलेरिया, सास से संबंधित बीमारी, दांत रोग इत्यादि के लिए बहुत ही उपयोगी होती है।

बेल

बेल का पौधा आप आसानी से गमले या फिर किसी जमीन पर उगा सकते हैं। इन बेल के बीजों का रोपण करते समय अच्छी खाद और मिट्टी के साथ पानी की मात्रा को नियमित रूप से देना होता है। बेल के पौधे विभिन्न प्रकार की बीमारियों को दूर करने के काम आते हैं। जैसे: लीवर की चोट, यदि आपको वजन घटाना हो या फिर बहुत जादा दस्त हो, आंतों में विभिन्न प्रकार की गड़बड़ी, कब्ज की समस्या तथा चिकित्सा में बेल की पत्तियों और छालों और जड़ों का प्रयोग कर विभिन्न प्रकार की औषधि का निर्माण किया जाता है। 

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आंवला

घर पर  किसी भी गमले या जमीन पर आप आंवले के पौधे को आसानी से लगा सकते हैं। आंवले के पेड़ के लिए आपको मिट्टी का गहरा और फैलाव दार गमला लेना चाहिए। इससे पौधों को फैलने में अच्छी जगह मिलती है। गमले या फिर घर के किसी भी जमीन के हिस्से में पॉटिंग मिलाकर आंवले के बीजों का रोपण करें। आंवले में विभिन्न प्रकार का औषधि गुण मौजूद होता है आंवले में  विटामिन की मात्रा पाई जाती है। इससे विभिन्न प्रकार के रोगों का निवारण होता है जैसे: खांसी, सांस की समस्या, रक्त पित्त, दमा, छाती रोग, मूत्र निकास रोग, हृदय रोग, क्षय रोग आदि रोगों में आंवला सहायक होता है।

घृत कुमारी

घृतकुमारी  जिसको हम एलोवेरा के नाम से पुकारते हैं। एलोवेरा के पौधे को आप किसी भी गमले या फिर जमीन पर आसानी से उगा सकते हैं। यह बहुत ही तेजी से उगने वाला पौधा है जो घर के किसी भी हिस्से में उग सकता है। एलोवेरा के पौधे आपको ज्यादातर भारत के हर घर में नजर आए होंगे, क्योंकि इसके एक नहीं बल्कि अनेक फायदे हैं। एलोवेरा में मौजूद पोषक तत्व त्वचा के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होते हैं। त्वचा के विभिन्न प्रकार के काले धब्बे दाने, कील मुहांसों आदि समस्याओं से बचने के लिए आप एलोवेरा का उपयोग कर सकते हैं। यह अन्य समस्याओं जैसे  जलन, डैंड्रफ, खरोच, घायल स्थानों, दाद खाज खुजली, सोरायसिस, सेबोरिया, घाव इत्यादि के लिए बहुत सहायक है।

अदरक

अदरक के पौधों को घर पर या फिर गमले में उगाने के लिए आपको सबसे पहले अदरक के प्रकंद का चुनाव करना होता है, प्रकंद के उच्च कोटि को चुने करें। घर पर अदरक के पौधे लगाने के लिए आप बाजार से इनकी बीज भी ले सकते हैं। गमले में 14 से 12 इंच तक मिट्टी को भर ले, तथा खाद और कंपोस्ट दोनों को मिलाएं। गमले में  अदरक के टुकड़े को डाले, गमले का जल निकास नियमित रूप से बनाए रखें। 

अदरक एक ग्रीष्मकालीन पौधा है इसीलिए इसको अच्छे तापमान की बहुत ज्यादा आवश्यकता होती है। यह लगभग 75 से लेकर 85 के तापमान में उगती  है। अदरक भिन्न प्रकार के रोगों का निवारण करता है, सर्दियों के मौसम में खांसी, जुखाम, खराश गले का दर्द आदि से बचने के लिए अदरक का इस्तेमाल किया जाता है। अदरक से बैक्टीरिया नष्ट होते हैं, पुरानी बीमारियों का निवारण करने के लिए अदरक बहुत ही सहायक होती है। 

दोस्तों हम यह उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह आर्टिकल घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां पसंद आया होगा। हमारे आर्टिकल में घर पर उगाई जाने वाली  जड़ी बूटियों की पूर्ण जानकारी दी गई है। जो आपके बहुत काम आ सकती है यदि आप हमारी जानकारी से संतुष्ट है। तो हमारी इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्त और सोशल मीडिया पर  शेयर करें। 

धन्यवाद।

लम्पी वायरस: मवेशियों के लिए योगी सरकार बनाने जा रही है 300 किमी लंबा सुरक्षा कवच

लम्पी वायरस: मवेशियों के लिए योगी सरकार बनाने जा रही है 300 किमी लंबा सुरक्षा कवच

अभी देश को कोरोना जैसे भयावह और जानलेवा बीमारी से पूर्ण रूप से निजात मिला भी नहीं था, तब तक देश के 12 राज्यों के पशुओं के ऊपर एक भयावह वायरस का प्रकोप शुरू हो गया और वह वायरस है ‘लम्पी स्किन डिजीज‘ या एलएसडी (LSD – Lumpy Skin Disease) वायरस. इस बीमारी की वजह से देश में लगभग 56 हजार से अधिक मवेशी की मौत अब तक हो चुकी है. आपको बताते चले कि उत्तर प्रदेश राज्य में भी इसका प्रकोप काफी बढ़ गया है और अब तक वहां लगभग 200 पशुओं की मौत हो चुकी है. इसको यूपी सरकार ने काफी गंभीरता से लिया है और इसके लिए काफी महत्वपूर्ण कदम भी उठाए है. आपको मालूम हो की यूपी के योगी सरकार ने वहां के गायों और अन्य मवेशियों को सुरक्षित रखने के लिए सुरक्षा कवच का निर्माण करने का निर्देश दिया है. गौरतलब है की सुरक्षा कवच के रूप 300 किमी का इम्यून बेल्ट (Immune Belt) बनाने का निर्णय लिया गया है.

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(Lumpy Skin Disease)

पशुपालन विभाग का मास्टर प्लान

खबरों के मुताबिक उत्तर प्रदेश सरकार पशुपालन विभाग के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने इम्यून बेल्ट पर आधारित मास्टर प्लान सरकार के सामने पेश किया है, जिस पर यूपी की योगी सरकार ने सहमति भी जताई है और उस पर कार्य करने को योजना भी तैयार किया है. योगी सरकार का मानना है कि इस सुरक्षा कवच यानी इम्यून बेल्ट के निर्माण से वायरस का प्रसार प्रतिबंधित होगा.

क्या है इम्यून बेल्ट ?

इम्यून बेल्ट एक सुरक्षा कवच है जो पीलीभीत और इटावा के बीच बनाई जाएगी. इस इम्यून बेल्ट का दायरा 300 किमी लंबा और 10 किमी चौड़ा होगा. Immune Belt - Pilibhit to Etawah, UP आपको मालूम हो कि लंपी स्किन डिजीज के वायरस का प्रकोप वेस्ट यूपी में सबसे ज्यादा है. यहां सबसे ज्यादा संक्रमण देखा जा रहा है. वेस्ट यूपी के कुछ जिले जैसे अलीगढ़, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर सबसे ज्यादा प्रभावित है. वही मथुरा, बुलंदशहर, बागपत, हापुड़, मेरठ में लम्पी स्किन डिजीज के वायरस का संक्रमण काफी तेजी से फ़ैल रहा है. संक्रमण के तेज होने के कारण ही योगी सरकार ने ये सुरक्षा कवच के रूप में 5 जिलों और 23 ब्लॉकों से होकर गुजरने वाली इम्यून बेल्ट बनाने का निर्णय किया है. आपको यह भी जान कर हैरानी होगी कि यह इम्यून बेल्ट मलेशियाई मॉडल पर आधारित होगा.

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खबरों के अनुसार इम्यून बेल्ट वाले इलाके में निगरानी के लिए कुछ टास्क फोर्स को सुरक्षा कवच के रूप में तैनात किए जाएंगे. यह टास्क फोर्स मवेशियों में वायरस के उपचार और उनके निगरानी पर खास ध्यान देंगे ताकि उस इम्यून बेल्ट से कोई संक्रमित मवेशी बाहर न आए और अन्य मवेशियों को संक्रमित ना करें. गौरतलब हो की राज्य में अब तक लगभग 22000 गायों को इस लम्पी वायरस का सामना करना पड़ा है यानी वो संक्रमित हुए हैं. यह राज्य के लगभग 2331 गावों का आंकड़ा है. असल में अब तक राज्य के 2,331 गांवों की 21,619 गायें लम्पी वायरस की चपेट में आ चुकी हैं, जिनमें से 199 की मौत हो चुकी है. जबकि 9,834 का इलाज किया जा चुका है और वे ठीक हो चुकी हैं. जानलेवा वायरस पर काबू पाने के लिए योगी सरकार बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान चला रही है. अब तक 5,83,600 से अधिक मवेशियों का टीकाकरण किया जा चुका है. यह कदम लम्पी वायरस पर नकेल कसने के दिशा में एक सफल प्रयास है और आशा है की इस तरह के योजना और सुरक्षा कवच (इम्युन बेल्ट) बनाने से जल्द ही यूपी सरकार इस वायरस को भी मात दे देगी.

इम्यून बेल्ट का कार्य

यूपी सरकार की तरफ से बनाई जाने वाली 300 किमी लंबी इम्यून बेल्ट को मलेशियाई मॉडल के तौर पर जाना जाता है. जानकारी के मुताबिक पशुपालन विभाग द्वारा इम्यून बेल्ट वाले क्षेत्र में वायरस की निगरानी के लिए एक टॉस्क फोर्स का गठन किया जाएगा. यह टास्क फोर्स वायरस से संक्रमित जानवरों की ट्रैकिंग और उपचार को संभालेगी.
अब पशु पालक 10 किलोमीटर के दायरे तक कर पाएंगे अपने जानवरों की लोकेशन ट्रैक; जाने कैसे काम करता है डिवाइस

अब पशु पालक 10 किलोमीटर के दायरे तक कर पाएंगे अपने जानवरों की लोकेशन ट्रैक; जाने कैसे काम करता है डिवाइस

नई-नई तकनीकों के जरिए खेती का आधुनिकीकरण हो रहा है और इससे हम पूरी तरह से अवगत हैं. बहुत से ऐसे गैजेट्स और तकनीक आ गई है जिसकी मदद से किसानों की मेहनत, समय, पैसा और पानी सभी चीजों की बचत हो रही है. लेकिन अब एक नई चीज पशु पालकों की जिंदगी को आसान बनाने के लिए सामने आई है. वैज्ञानिकों ने पशु पालन को भी आसान बनाने के लिए एक बहुत ही बेहतरीन तकनीक खोज निकाली है और इसका नाम है काउ मॉनिटर सिस्टम. इस सिस्टम को भारतीय डेयरी मशीनरी कंपनी (IDMC) ने बनाकर तैयार किया है.

जाने क्या है काउ मॉनिटर सिस्टम??

इसमें आप के मवेशी के गले में एक बेल्ट जैसी चीज पहनाई जाती है और इसकी मदद से
पशु पालक अपने पशुओं की लोकेशन को जान सकते हैं. इसके अलावा लोकेशन बताने के साथ-साथ इस बेल्ट के जरिए पशु के फुट स्टेप और उनकी गतिविधियों से उनमें होने वाली संभव बीमारियों के बारे में भी पहले से ही पता लगाया जा सकता है. माना जा रहा है कि पशु पालकों को लंबी जैसी महामारी या फिर किसी भी तरह की दुर्घटनाओं से बचने में यह तकनीक अच्छी खासी मदद करने वाली है. नेशनल डेहरी डेवलपमेंट बोर्ड के अधीन आने वाली भारतीय डेयरी मशीनरी कंपनी  का यह अविष्कार किसानों और पशु पालकों के लिए बहुत ही लाभदायक साबित होने वाला है.

काउ मॉनिटर सिस्टम को इस्तेमाल करने का तरीका?

इसमें आपको अपने गाय या भैंस के गले में एक बेल्ट नुमा डिवाइस बांध लेना है जिसमें जीपीएस लगा हुआ है. अगर आपके पशु घूमते घूमते कहीं दूर निकल जाते हैं तो आप इस बेल्ट की मदद से उन को ट्रैक कर सकते हैं. इसमें सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें आप लगभग 10 किलोमीटर तक के दायरे में अपने पशुओं को ट्रैक कर सकते हैं. इसके अलावा यह बेल्ट पशुओं के गर्भधान के बारे में भी पालक को अपडेट देगी जो काफी लाभदायक है. ये भी पढ़ें: इस राज्य के पशुपालकों को मिलेगा भूसे पर 50 फीसदी सब्सिडी, पशु आहार पर भी मिलेगा अब ज्यादा अनुदान

कितनी रहेगी डिवाइस की कीमत?

भारतीय डेयरी मशीनरी कंपनी यानी आईडीएमसी के काउ मॉनीटरिंग सिस्टम की बैटरी लाइफ 3 से 5 साल तक बताई गई है और इसकी कीमत 4,000 से 5,000 रुपये है. रिपोर्ट की मानें तो माना जा रहा है कि अगले 3 से 4 महीने के अंदर अंदर यह बेल्ट पशुपालक द्वारा खरीदने के लिए उपलब्ध करवा दी जाएगी.
लाखों किसानों को सिखाए जाएंगे उन्नत खेती के गुण, होगा फायदा

लाखों किसानों को सिखाए जाएंगे उन्नत खेती के गुण, होगा फायदा

उत्तर प्रदेश में किसानों की आर्थिक मदद के लिए अब उन्हें उन्नत खेती के गुण सिखाए जाएंगे. इतना ही नहीं इंटरनेशनल मिलेट ईयर को सफल बनाने के लिए यूपी की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होने वाली है. साल 2023 में पूरी दुनिया इंटरनेशनल मिलेट ईयर पूरी दुनिया मना रही है. यह आयोजन भारत की पहल पर हो रहा है. इस आयोजन को सफल बनाने के लिए जोरों पर तैयारियां की जा रही हैं. हालांकि खेती उत्तर प्रदेश में ज्यादातर लोगों की रोजी रोटी का साधन है. उत्तर प्रदेश में दुनिया की सबसे ज्यादा उर्वरतम जमीन है. जोकि गंगेटिक बेल्ड का अधिकांश हिस्सा भी है. इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश में ना तो पानी की कमी है, और ना ही मानव संसाधन की, जिसके चलते यहां पर खेती की संभावना भी अच्छी है. उत्तर पदेश मात्र एक ऐसा राज्य है, जिसमें सिर्फ मात्र 11 रकबे का है, और 20 फीसद खाद्यान पैदा करता है. राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भी खेती बाड़ी में ज्यादा रूचि है. जिस वजह से अंतरराष्ट्रीय मिलेट को सफल बनाने के लिए यूपी की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर तैयारियां

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ क्र निर्देश के हिसाब से तैयारियां की जा रही हैं. इसके अलावा कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही के निर्देशों का पालन भी किया जा रहा है, उत्तर प्रदेश मिलेटस पुनरोद्धार कार्यक्रम को चलाने के पीछे की मंशा यही है कि, मिलेट्स से जुड़ी पोषण सम्बंधी खूबियों को लोगों तक पहुंचाएं. अच्छे स्वास्थ्य और पोषण सुरक्षा के लिए ज्यादा से ज्यादा लोग इनका किसी ना किसिया रूप से उपयोग उपभोग कर सकें.

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इस योजना के तहत मिलेट्स फसलों में जैसे ज्वार, बाजरा, कोदो, सवा की खेती को बड़े पैमाने में बढ़ावा देने के लिए उचित प्रयास किये जा रहे हैं. यूपी सरकार मिलेट्स पुनरोद्धार कार्यक्रम में करीब 186.27 करोड़ रुपये खर्चा कर रही है. साल 2021 से 2022 में कुल 10.83 लाख हेक्टेयर की एरिया में खास मिलेट्स फसलों का उत्पादन किया जाता है. इसमें बाजरा , ज्वार, कोदो और सावा का रकबा क्यों लाख हेक्टेयर में फैला हुआ है. यूपी की योगी सरकार ने साल 2026 से 2027 तक इनकी बुवाई का रकबा बढाकर तकरीबन 25 लाख हेक्टेयर करने का लक्ष्य तय किया है.

सरकार देगी फ्री में बीज

यूपी सरकार ने आने वाले चार सैलून में ढ़ाई लाख किसानों को फ्री में बीज देने का फैसल किया है. जिसके लिए वो 11.86 करोड़ रुपये भी खर्च करने वाली है. इतना ही नहीं मिलेट्स बीजों के उत्पादन के लिए सरकार की तरफ से साल 2023 से 2024 और साल 2026 से 2027 तक कुल 180 कृषक उत्पादक संगठनों को चार लाख रुपये प्रति एफपीओ (FPO) के हिअब से सीड मनी दी जाएगी. जिससे भविष्य में राज्य में मिलेट्स की तरह तरह की फसलों के बीज को स्थानीय स्तर पर किसानों को उपलब्ध करवा सकेंगे. इतना ही नहीं इस कार्यक्रम के लिए चार सालों में 7 करोड़ से भी ज्यादा की धन राशि खर्च की जाएगी.
किसान भाई 5 लाख से कम कीमत पर आने वाले इन ट्रैक्टरों से कमाऐं लाखों

किसान भाई 5 लाख से कम कीमत पर आने वाले इन ट्रैक्टरों से कमाऐं लाखों

खेती-किसानी के लिए ट्रैक्टर अत्यंत उपयोगी कृषि उपकरण है। यदि आप फिलहाल सस्ता और मजबूत ट्रैक्टर खरीदने के बारे में सोच रहे हैं। दरअसल, आज हम आपके लिए पांच लाख से कम कीमत वाले टॉप तीन ट्रैक्टरों की जानकारी लेकर आए हैं, जो खेती से संबंधित तकरीबन समस्त कार्यों को पूर्ण करने में सक्षम हैं। किसानों के लिए ट्रैक्टर रीढ़ की हड्डी माना जाता है। साथ ही, बाजार में विभिन्न प्रकार के शक्तिशाली ट्रैक्टर उपस्थित हैं। जो कि खेत के प्रत्येक कार्य को पूर्ण करने में सक्षम हैं। 

दरअसल, ट्रैक्टर एक बहुमुखी मशीन होती है, जो कि जुताई, बुआई, भारी सामान उठाने एवं बाकी विभिन्न कार्यों को करती है। आधुनिक खेती करने वाले कृषकों के लिए ट्रैक्टर अत्यंत उपयोगी साबित होता है। यदि आप भी वर्तमान में एक बेहतरीन, सस्ता और टिकाऊ ट्रैक्टर खरीदने के बारे में सोच रहे हैं, तो आज हम आपको पांच लाख रुपए से कम भाव वाले टॉप 3 शानदार ट्रैक्टरों की जानकारी प्रदान करेंगे। यह कम बजट वाले ट्रैक्टर कृषकों की सुविधा को मंदेनजर रखते हुए ट्रैक्टर निर्माता कंपनियों के जरिए विशेष रूप से तैयार किए गए हैं।

पांच लाख से कम कीमत में आने वाले तीन सबसे शानदार ट्रैक्टर

महिंद्रा कंपनी का युवराज 215 NXT ट्रैक्टर

महिंद्रा युवराज 215 NXT : यह ट्रैक्टर भारतीय किसानों द्वारा सर्वाधिक खरीदे जाने वाला बेहतरीन ट्रैक्टर है। इस ट्रैक्टर में 2300 RPM की गति के साथ 15HP का सिंगल सिलेंडर इंजन की सुविधा प्रदान की गई है। इसके अतिरिक्त इसमें ईंधन क्षमता 19 लीटर तक होती है। साथ ही, यह ट्रैक्टर 780 किलोग्राम तक का भार सहजता से उठा सकता है। इसके अंदर ड्राई डिस्क ब्रेक, 8 फॉरवर्ड + 3 रिवर्स गियर्स की सुविधा उपलब्ध होती है। साथ ही इसके अंदर मैकेनिकल स्टीयरिंग प्रदान किया गया होता है। इस ट्रैक्टर के साथ किसान सीडर्स, स्प्रेयर, ढुलाई, थ्रेशर और रीपर जैसे विभिन्न उपकरणों को सुगमता से जोड़ सकते हैं। महिंद्रा युवराज 215 NXT की कीमत तकरीबन 2.00 लाख रुपये से चालू है। यह अलग अलग राज्यों में अलग अलग हो सकती है।

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स्वराज कंपनी का 717 ट्रैक्टर

स्वराज 717 ट्रैक्टर: सिंगल सिलेंडर के साथ आने वाला स्वराज कंपनी का यह ट्रैक्टर 15 HP इंजन द्वारा संचालित होता है। यह ट्रैक्टर 2300 आरपीएम की गति प्रदान करता है। इस ट्रैक्टर में ईंधन क्षमता 19-लीटर तक होती है। स्वराज 717 ट्रैक्टर 850 किलोग्राम तक का वजन उठाने में सक्षम होती है। इसके अतिरिक्त इसमें ड्राई डिस्क ब्रेक शम्मिलित हैं। इस ट्रैक्टर का सुचारु तौर पर संचालन करने के लिए 6 फॉरवर्ड गियर एवं 3 रिवर्स गियर दिए गए है। स्वराज का यह बेहतरीन ट्रैक्टर अरंडी, अंगूर, कपास और अन्य फसलों की खेती के लिए सबसे अच्छा विकल्प है। स्वराज 717 ट्रैक्टर की कीमत लगभग 2.60 लाख रुपये से आरंभ होती है।

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महिंद्रा कंपनी का जीवो 225 डीआई ट्रैक्टर

बतादें, कि महिंद्रा JIVO 225 DI ट्रैक्टर किसानों के लिए काफी किफायती साबित होता है। इसमें 20HP की इंजन क्षमता प्रदान की गई है। इसके साथ ही इसमें 2-सिलेंडर उपलब्ध होते हैं। यह ट्रैक्टर 2300 आरपीएम की गति प्रदान करता है। महिंद्रा के इस ट्रैक्टर में ईंधन टैंक की क्षमता 22 लीटर तक होती है। इसके अंदर तेल में डूबे हुए ब्रेक की सुविधा भी प्रदान की गई है। साथ ही, इसके अतिरिक्त इसमें 8 फॉरवर्ड गियर एवं 4 रिवर्स गियर उपस्थित है। किसानों की सुविधा के अनुरूप इसमें मैकेनिकल या फिर पावर स्टीयरिंग का विकल्प भी दिया गया है। वहीं, महिंद्रा JIVO 225 DI ट्रैक्टर 750 किलोग्राम तक का भार सरलता से उठा सकता है। किसानों को यह ट्रैक्टर 2 वर्ष की वारंटी के साथ प्रदान किया जाता है। महिंद्रा जीवो 225 डीआई की कीमत तकरीबन 2.91 लाख रुपये से चालू होती है।