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भूमि विकास, जुताई और बीज बोने की तैयारी के लिए उपकरण

भूमि विकास, जुताई और बीज बोने की तैयारी के लिए उपकरण

आइए जानते हैं कि भूमि का विकास किस तरह से किया जाता हैं और भूमि विकास पूर्ण हो जाने के जुताई और बीज बोने के क्या तरीके हैं। 

जुताई और बीज बोने की पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारी पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें। आइये जानें भूमि विकास, जुताई और बीज बोने की तैयारी के लिए उपकरण और आधुनिक कृषि यंत्र

बीज बोने के तरीके

बुवाई का क्या अर्थ होता है, मिट्टी की विशेष गहराई को प्राप्त करने के बाद अच्छे अंकुरण बीजों को बोने की क्रिया को बुवाई कहते हैं। कृषि क्षेत्र में बुवाई का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। 

बीच होने से पहले भूमि को अच्छी तरह से समतल किया जाता है।ताकि बीज बोने के टाइम जमीन उथल-पुथल या उसके कण भूमि में ना रह जाए।भूमि में बीज डालने के बाद बीज की दूरी को ध्यान में रखना आवश्यक होता है इससे अंकुरण अच्छे से फूट सके।

भूमि विकास के लिए भूमि की जुताई

किसी भी फसल की बुआई के लिए जुताई सबसे पहला कदम होती है। मिट्टी को उल्टा पुल्टा कर थोड़ा ढीला करा जाता है।जिससे पौधों और पोषक तत्वों की उपलब्धता को सुनिश्चित किया जा सके। 

जुताई के द्वारा रोपाई में बहुत ही मदद मिलती है और अंकुरण आसानी से भूमि में प्रवेश कर लेते हैं।मिट्टी ढीला करने से सबसे बड़ा फायदा यह होता है।कि मिट्टी को ढीला करने से इनमें मौजूद रोगाणुओं और केंचुओं के विकास में बहुत ही आसानी होती है।

जिससे फसलों को उच्च कोटि का लाभ पहुंचता है। साथ ही साथ यह जुताई खरपतवार आदि में भी काफी सहायता देती है।जुताई के द्वारा मिट्टी पोषक तत्वों से पूरी तरह से भरपूर बनाई जाती है। 

सभी किसान, कृषि फसलों की बुवाई करने से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई करना अनिवार्य समझते हैं।कभी-कभी जुताई  फसलों के आधार पर भी की जाती है। की फसल किस तरह की है ,और उसे कितने तरह की जताई की जरूरत है किन स्थितियों में।

किसान अपनी भूमि की जुताई के लिए कल्टीवेटर , कुदाल, हल आदि उपकरणों का प्रयोग करते हैं।कभी-कभी मिट्टी काफी कठोर हो जाती है और फसलों की जुताई करने के लिए हैरो का इस्तेमाल भी किया जाता है। जिसके बाद जुताई के बाद भी कई प्रकार के जुताई की जाती है।

बुवाई के लिए भूमि को समतल करना

किसान खेतों की जुताई के बाद जो दूसरी क्रिया करते हैं वह भूमि समतल है। समतल यानी भूमि को एक समान करना होता है हल यह किसी भी अन्य उपकरणों के द्वारा। भूमि समतल विभिन्न विभिन्न समय पर फसलों के आधार पर बदलता रहता है। 

किसान समतल के लिए खेतों में मेड, खांचे या अन्य प्रकार की क्रिया को शामिल किए रहते हैं। जो विशिष्ट फसलों के लिए बहुत ही आवश्यक होती हैं। भूमि समतल करने से फसलों में सिंचाई काफी आसानी से हो जाती हैं। 

पौधों को अच्छी तरह से पानी की प्राप्ति हो जाती है पौधों के पनपने और पूर्ण रूप से उत्पादन करने के लिए। भूमि समतल करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपकरण यानी लेवलर का इस्तेमाल किया जाता है। लेवलर उपकरण का इस्तेमाल कर भूमि को समतल किया जाता है। 

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खाद का चयन करना

बुवाई के बाद खाद के रूप में गाय की गोबर, नीम के अर्क, केचुआ सिंथेटिक उर्वरकों आदि जैसे जैविक संशोधनों का उपयोग किया जाता है। 

खेतों में मिट्टी की खाद डालने से पहले उसका अच्छी प्रकार से परीक्षण कर लेना चाहिए ,ताकि किसी भी प्रकार से फसलों को हानि ना हो, और मिट्टियों में मौजूद पोषक तत्व और खनिजों की उचित मात्रा की उपलब्धता पूर्ण रूप से सुनिश्चित हो। कुछ प्राकृतिक संशोधन के बाद हमें मिट्टी में खाद मिलानी चाहिए। 

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बीज बोने के एक प्रसारण तरीके

किसान भाई आसान तरीके से बीज बोने का प्रसारण करते हैं। खेतों में बीजों को बेहतरीन ढंग से तैयार कर लिया जाता है और अपने हाथों से भूमि पर बीजों को फेंकना शुरू कर दिया जाता हैं। 

आप हाथ या किसी अन्य उपकरण के द्वारा भी बीज को खेतों में फेंक सकते हैं।  बीज बोने से पहले बीजों का अच्छे से चयन कर लेना चाहिए। कि बीज भूमि के लिए उचित है या नहीं।बीजो को अच्छी तरह से खेतों में बिखेर देना चाहिए।

बीज बोने के लिए डिब्लिंग का इस्तेमाल

खेतों में आसानी से बीज बोने के लिए आजकल किसान भाई डिब्लिंग का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। इस उपकरण के जरिए बीजों को डिब्बलर में रखा जाता है। डिब्बलर के निचले हिस्से पर एक छेद होता है जो बीज रखने के लिए उपयोग किया जाता है। 

डिब्बलरों को कोई भी कुशल किसान या श्रमिक आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं। यह एक शंक्वाकार कहने वाला यंत्र है। यह खेतों के बीच, बीज बोने के लिए खेतों में छेद करता है और अंकुरित बीजों को विकसित करता है।

डिब्लिंग विधि का इस्तेमाल कर समय की काफी बचत होती है। डिब्लिंग विधि का इस्तेमाल किसान ज्यादातर सब्जियों की फसल बोने तथा अन्य फसलों के लिए ज्यादा इस्तेमाल किया जाता हैं।

बीज बोने के लिए उपकरण

किसान बीज बोने के लिए अपना आसान और पारंपरिक तरीके का इस्तेमाल करते हैं,जैसे कि अपने हल के पीछे बीजों को गिराते रहते हैं भूमियों पर या आसान हल उपकरण का इस्तेमाल हैं बीज बोने के लिए। 

इनका उपयोग ज्यादातर गेहूं, चना ,मक्का जौ आदि बीजों की बुवाई करने के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया में किसान भूमि को हल द्वारा गहराई करता है ,और उसके पीछे दूसरा व्यक्ति बीजों को खेतों डालता रहता है। इस क्रिया से समय की बहुत हानि होती है।

भूमि विकास के लिए पशु चालित पटेला हैरो उपकरण का इस्तेमाल

पशु चालित पटेला हैरो की लंबाई लगभग 1.50 मीटर और मोटाई कम से कम 10 सेंटीमीटर होती है।पशु चालित पटेला हैरो लकड़ी का बना  हुआ उपकरण होता है। 

इस उपकरण से किसानों को बहुत ही सहायता मिलती है ,क्योंकि इसकी ऊपरी सतह पर घुमावदार हुक बंधा रहता है जो मिट्टियों को उपर नीचे करने में सहायक होता है। 

तथा इस उपकरण के जरिए मिट्टी में भुरभुरा पन आ जाता है।इसका मुख्य कार्य फसल के टूठ, वह इक्कट्ठा करना और खरपतवार को मिट्टी से अलग करना होता है।

पटेला 30 किसानों का कार्य करता है, इसके द्वारा 58 प्रतिशत संचालन में लगने वाले खर्चों की बचत होती है। तथा भूमि उपज में 3 से 4% की बढ़ोतरी होती है।

ब्लेड हैरो उपकरण का इस्तेमाल

या उपकरण स्टील का बना हुआ होता हैं, इसका मुख्य कार्य खरपतवार निकालने के लिए होता है। इस उपकरण में लगे ब्लेड के जरिए खरपतवार आसानी से निकाले जाते हैं। तथा इस उपकरण में लोहे के बड़े बड़े कांटे भी लगे होते। 

इस यंत्र को चलाने के लिए हरिस वह हत्था लगा हुआ होता है। यह यंत्र पूर्ण रूप से स्टील का बना हुआ होता है। इस उपकरण की मदद से किसान मूंगफली आलू आदि फसल की खुदाई भी कर सकते हैं। 

इस यंत्र के द्वारा किसानों को कम से कम 24 मजदूरों की बचत होती हैं और 15% जो खर्च संचालन में लगता है उसकी भी बचत होती है। 3 से  4% फसल उपजाऊ में काफी बढ़ोतरी भी होती है।

ट्रैक्टर चालित मिटटी पलट हल का इस्तेमाल

ट्रैक्टर चालित मिटटी पलट हल स्टील का बना हुआ होता है। इसका जो भाग होता है वो फार,मोल्ड बोर्ड, हरिस , भूमि पार्श्व  वह (लैंड साइड), हल मूल (फ्राग) आदि का होता है। 

इस उपकरण की सहायता से मिट्टी जितने भी सख्त हो, उसको तोड़ा जा सकता है। यह हल सख्त से सख्त मिट्टी को तोड़ने में सक्षम हैं।

यह हल कम से कम 40 से लेकर 50% मजदूरों का काम अकेले करता है। इसकी सहायता से 30% संचालन का खर्चा बचता है। इस हल की सहायता से किसानों को कम से कम 4 से 5% की उच्च कोटि की खेती की प्राप्ति होती है। 

यह हल की जुताई की गहराई का नियंत्रण लगभग हाइड्रोलिक लीवर या ट्रैक्टर के थ्री प्वाइन्ट लिंकेज से किया जाता हैं। हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारी इस पोस्ट के जरिए भूमि विकास, जुताई और बीज बोने की तैयारी के लिए उपकरण व अन्य उपकरणों की पूर्ण जानकारी प्राप्त हुई होगी। 

यदि आप हमारी दी गई जानकारियों से संतुष्ट है ,तो हमारी इस पोस्ट को अपने सोशल मीडिया यह अन्य प्लेस पर शेयर करें अपने दोस्तों के साथ धन्यवाद।

मक्के की खेती को प्रभावित करने वाला रोग और इसकी रोकथाम

मक्के की खेती को प्रभावित करने वाला रोग और इसकी रोकथाम

मिलेट्स यानी मोटे अनाज को श्री अन्न भी कहा जाता है। मिलेट्स की पैदावार को प्रोत्साहन देने के लिए भारत सरकार ने विगत वर्ष 2023 को मिलेट्स ईयर के तोर पर मनाया था। 

जब कभी मोटे अनाज अर्थात मिलेट्स की चर्चा होती है, तो स्वाभाविक रूप से मन में मक्का का प्रतिबिंब प्रदर्शित जरूर होता है। क्योंकि, वर्तमान में रबी सीजन की कटाई का कार्य तकरीब संपन्न हो चुका है। 

किसान भाई जल्द ही खरीफ फसलों की बुवाई की तैयारी में जुटने लगेंगे। हालाँकि, जिन किसानों की फसल खेत से उठ चुकी है, ऐसे अधिकांश किसान मक्के की खेती करने की तैयारी में भी लग गए हैं। 

हम आपके लिए मक्का की खेती को हानि पहुँचाने वाले झुलसा रोग और इसके नियंत्रण से जुड़ी जरूरी जानकारी प्रदान करेंगे, ताकि आपको अच्छी उपज लेने में सहयोग मिल सके।

मक्के की खेती में झुलसा रोग 

मक्के की फसल में उत्तरी झुलसा रोग लगने का संकट सदैव बना रहता है। अंग्रेजी और वैज्ञानिक भाषा में इसको टर्सिकम लीफ ब्लाइट रोग/Tursicum Leaf Blight Disease के नाम से जाना जाता है। 

झुलसा रोग इतना हानिकारक और खतरनाक है, कि यदि फसल में लग जाए, तो पूरी फसल को बर्बाद करने की क्षमता रखता है। 

कृषि विशेषज्ञों का कहना है, कि भारत के अंदर बड़ी तादात में किसान भाई मक्के की खेती करते हैं। परंतु, मक्के में कवक रोगों के लगने से इसकी फसल काफी प्रभावित हो जाती है, जिनमें विशेष रूप से उतरी झुलसा लगने का संकट अधिक होता है। 

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क्योंकि, इसका संक्रमण 17 से 31 डिग्री सेल्सियस तापमान सापेक्षिक आर्द्रता 90 से 100 प्रतिशत गीली और आद्र के मौसम में अनुकूल होता है, जो कि फोटोसिंथेसिस प्रक्रिया को प्रभावित करता है। इससे मक्के की उपज में 90% प्रतिशत तक कमी आ जाती है।

झुलसा रोग के क्या-क्या लक्षण हैं ?

बतादें, कि उत्तरी झुलसा रोग का संक्रमण 10 से 15 दिन के पश्चात नजर आने लगता है। इस दौरान फसल में छोटे हल्के हरे भरे रंग के धब्बे नजर आते हैं। 

साथ ही, पत्तियों पर शिकार के आकार के एक से 6 इंच लंबे भूरे रंग के घाव हो जाते हैं, जिससे पौधे की पत्तियां झड़ कर नीचे गिरने लगती हैं। इससे उपज को काफी हानि होती है। 

झुलसा रोग से इस प्रकार बचाव करें ?

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, फसल की बुवाई से पूर्व पुराने अवशेषों को खत्म कर दें, जिससे इस रोग के लगने की संभावना कम हो जाती है। 

साथ ही, खेतों में पोटैशियम क्लोराइड के तौर पर पोटैशियम का इस्तेमाल करना चाहिए। साथ ही, मैंकोजेब 0.25 प्रतिशत व कार्बेंडाजिम का फसल पर छिड़काव करने से फसल को इस हानिकारक रोग से बचाया जा सकता है। 

गेहूं की फसल में खरपतवार नियंत्रण

गेहूं की फसल में खरपतवार नियंत्रण

गेहूं उत्तर भारत की मुख्य फसल है और इसमें खरपतवार मुख्य समस्या बनते हैं। खरपतवारों में मुख्य रूप से बथुआ, खरतुआ, चटरी, मटरी, गेहूं का मामा या गुल्ली डंडा प्रमुख हैं। जिन्हें हम खरपतवार कहत हैं उनमें मुख्य रूप से गेहूं का मामा फसल को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है और इसका नियंत्रण ज्यादा बजट वाला है। बाकी खरपतवार बेहद सस्ते रसायनों से और शीघ्र मर जाते हैं। 

समय

Gehu ki fasal 

 विशेषज्ञों की मानें तो खरपतवार नियंत्रण के लिए सही समय का चयन बेहद आवश्यक है। यदि सही समय से नियंत्रण वाली दबाओं का छिड़काव न किया जाए तो उत्पादन पर 35 प्रतिशत तक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। धान की खेती वाले इलाकों में गेहूं की फसल में पहला पानी लगने की तैयारी है और इसके साथ ही खरपतवार जोर पकड़ेंगे। चूंकि किसान पहले पानी के साथ ही उर्वरकों को बुरकाव करते हैं लिहाजा ऐसी स्थिति में खरपतवारों को पूरी तरह से मारना और ज्यादा दिक्कत जदां हो जाता है। विशेषज्ञ 25 से 35 दिन के बीच के समय को खरपतवार नियंत्रण के लिए उपयुक्त मानते हैं। इसके बाद दवाओं का फसल पर दुष्प्रभाव भले ही सामान्य तौर पर न दिखे लेकिन उत्पादन पर प्रतिकूल असर होता है। 

कैसे मरता है खरपतवार

Gehu mai kharpatvar 

 खरपतवार को मारने के लिए बाजार में अनेक दवाएं मौजूद हैं लेकिन इससे पहले यह जान लेना आवश्यक है कि दवाओं से केवल खरपतवार ही मरता है और फसल सुरक्षित रहती है तो कैसे । फसल और खरपतवार की आहार व्यवस्था में थोड़ा अंतर होता है। फसल किसी भी पोषक तत्व का अवशोषण जमीन से सीमित मात्रा में करती है। खरतवारों के पौधों का विकास बहुत तेज होता है और वह कम खुराक से भी अपना काम चला लेते हैं। ऐसे में जो खरपतवारनाशी दवाएं छिड़की जाती हैं उनमें जिंक आदि पोषक तत्वों को मिलाया जाता है। इनका फसल पर जैसे ही छिड़काव होता है खरपतवार के पौधे उसे बेहद तेजी से ग्रहण करते हैं और दवा के प्रभाव से उनकी कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। इधर मुख्य फसल के पौध इन्हें बेहद कम ग्रहण करता है और कम दुष्प्रभाव को झेलते हुए खुद को बचा लेता है।

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खरपतवार की श्रेणी

kharpatvar 

 खरपतवार को दो श्रेणियों में बांटा जाता है। गेहूं में संकरी और चौड़ी पत्ती वाले दो मुख्य खरपतवार पनपते हैं। किसान ऐसी दवा चाहता है जिससे एक साथ चौड़ी और संकरी पत्ती वाले खरपतवार मर जाएं। इसके लिए कई कंपनियों की सल्फोसल्फ्यूरान एवं मैट सल्फ्यूरान मिश्रित दवाएं आती हैं। इस तरह के मिश्रण वाली दवाओं से एक ही छिड़काव में दोनों तरह के खरपतवार मर जाते हैं। केवल चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार मारने के लिए टू फोर डी सोडियम साल्ट 80 प्रतिशत दवा आती है। 250 एमएल दवा एक एकड़ एवं 625 एमएल प्रति हैक्टेयर के लिए उपोग मे लाएं। पानी में मिलाकर 400 से 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करने से तीन दिन में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार मर जाते हैं। केवल संकरी पत्ती वाले गेहूंसा, गेहूं का मामा, गुल्ली डंडा एंव जंगली जई को मारने के लिए केवल स्ल्फोसफल्फ्यूरान या क्लोनिडाफाप प्रोपेरजिल 15 प्रतिशत डब्ल्यूपी 400 ग्राम प्रति एकड़ को पानी में घोलकर छिड़काव करें।

 

सावधानी

kitnashak dawai 

 किसी भी दवा के छिड़काव से पूर्व शरीर पर कोई भी घरेलू तेल लगा लें। दस्ताने आदि पहनना संभव हो तो ज्यादा अच्छा है। दवा को जहां खरपतवार ज्यादा हो वहां आराम से छिड़कें और जहां कम हो वहां गति थोड़ी तेज कर दें ताकि पौधों पर ज्यादा दवा न जाए। दवा छिड़कते समय खेत में हल्का पैर चपकने लायक नमी होनी चाहिए ताकि खेत में नमी सूखने के साथ ही खरपतवार भी सूखता चला जाएगा।

संतुलित आहार के लिए पूसा संस्थान की उन्नत किस्में

संतुलित आहार के लिए पूसा संस्थान की उन्नत किस्में

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली जिसे पूसा संस्थान के नाम से जाना जाता है ने अपने 115 वर्षों के सफर में देश की कृषि को सुधारने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हरित क्रांति के जनक के रूप में पूसा संस्थान में विभिन्न फसलों की बहुत सारी किस्में निकाली हैं जिनसे हम अपने देश की जनता को संतुलित आहार दे सकते हैं और अपने किसानों के लिए खेती को लाभदायक बना सकते हैं। दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए पूसा सस्थान द्वारा निकाली गई कुछ फसलों की मुख्य किस्में व उनकी विशेषताओं के विषय में हम आपको बता रहे हैं।

संतुलित आहार की उन्नत किस्में

धान

Dhan ki kheti 1-पूसा बासमती 1 जिस की पैदावार 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर है 135 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। 2-पूसा बासमती 1121 जिसकी पैदावार 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर है एवं 140  दिन में पक जाती है। पकाने के दौरान चावल 4 गुना लंबा हो जाता है। 3-पूसा बासमती 6 की पैदावार 55 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। आप पकने में 150 दिन का समय लेती है। 4-पूसा बासमती 1509 का उत्पादन 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है. यह पत्नी है 120 दिन का समय लेती है. जल्दी पकने के कारण बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है. 5-पूसा बासमती 1612 का उत्पादन 51 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है . पकने में 120 दिन का समय लेती है . यह ब्लास्ट प्रतिरोधी किस्म है। 6-पूसा बासमती 1592 का उत्पादन 47.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है .यह पकने में 120 दिन का समय लेती है .बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है. ये भी पढ़े: धान की उन्नत खेती कैसे करें एवं धान की खेती का सही समय क्या है 7-पूसा बासमती 1609 का उत्पादन 46 कुंटल पकने का समय 120 दिन व बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रति प्रतिरोधी है। 8-पूसा बासमती 1637 का उत्पादन 42 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अवधि 130 दिन है । यह ब्लाइट प्रतिरोधी है. 9-पूसा बासमती 1728 का उत्पादन 41.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकाव  अवधि 140 दिन है। वह किसी भी बैक्टीरियल ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है। 10-पूसा बासमती 1718 का उत्पादन 46.4 कुंटल प्रति हेक्टेयर बोकारो अवधि 135 दिन है। यह किस्म बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोध ही है। 11-पूसा बासमती 1692 का उत्पादन 52.6 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। यह पकने में 115 दिन का समय लेती है। उच्च उत्पादन जल्दी पकने वाली किस्म है।

 गेहूं

gehu ki kheti 1-एचडी 3059 का उत्पादन 42.6 कुंतल प्रति हेक्टेयर व पकाव अवधि 121 दिन है। यह पछेती की किस्में है। 2-एचडी 3086 का उत्पादन 56.3 कुंटल एवं पकाव अवधि 145 दिन है। 3-एचडी 2967 का उत्पादन 45.5 कुंतल प्रति हेक्टेयर। वह पकने में 145 से लेती है। 4-एच डी सीएसडब्ल्यू 18 का उत्पादन 62.8 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। पीला रतुआ प्रतिरोधी 150 दिन में पकती है। 5-एचडी 3117 से 47.9 कुंटल उत्पादन 110 दिन में मिल जाता है । यह किस्म करनाल बंट रतुआ प्रतिरोधी पछेती किस्म है। 6-एचडी 3226 से 57.5 कुंटल उत्पादन 142 दिन में मिल जाता है। 7-एचडी 3237 से 4 कुंतल उत्पादन 145 दिन में मिलता है। ये भी पढ़े: सर्दी में पाला, शीतलहर व ओलावृष्टि से ऐसे बचाएं गेहूं की फसल 8-एच आई 1620 से 49.1 कुंदन उत्पादन के 40 दिन में मिलता है। यह कंम पानी वाली किस्म है। 9-एच आई 1628 से 50.4 कुंतल उत्पादन 147 में मिलता है। 10-एच आई 1621 से 32.8 कुंतल उत्पादन 102 दिन में मिल जाता है यह पछेती किस्म है। 11-एचडी 3271 किस्म से कुंतल उत्पादन 104 दिन में मिलता है यह अति पछेती किस्म है पीला रतुआ प्रतिरोधी है। 12-एचडी 3298 से 39 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन 104 दिन में मिल जाता है।

मक्का

Makka ki kheti 1-पूसा एच एम 4 संकर किस्म से 64.2 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है । यह पकने में 87 दिन का समय देती है और इसमें प्रोटीन अत्यधिक है। 2-पूसा सुपर स्वीट कॉर्न संकर सै 93 कुंतल उत्पादन 75 दिन में मिल जाता है। 3-पूसा एचक्यूपीएम 5 संकर 64.7 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन 92 दिन में मिलता है। बाजरा (खरीफ) 1-पूसा कंपोजिट 701 से , 80 दिन में 23.5 कुंतल उत्पादन मिलता है। 2-पूसा 1201 संकर से 28.1 कुंतल उत्पादन 80 दिन में मिलता है।

चना

chana ki kheti 1-पूसा 372 से 125 दिन में 19 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है। 2-पूसा 547 से 130 दिन में 18 कुंतल उत्पादन मिलता है।

अरहर

arhar ki kheti 1-अरहर की पूसा 991 किस्म 142 दिन में तैयार होती है व 16.5 कुंदन उत्पादन मिलता है। 2- पूसा 2001 से 18.7 कुंतल उत्पादन 140 दिन में मिलता है। 3- पूसा 2002 किस्म से 143 दिन में 17.7 कुंतल उपज मिलती है। 4-पूसा अरहर 16 से 120 दिन में 19.8 कुंतल उपज मिलती है।

मूंग (खरीफ)

Mung ki kheti 1-पूसा विशाल 65 दिन में 11.5 कुंतल उपज देती है। यह किस्मत एक साथ पकने वाली है। 2- पूसा 9531 से 65 दिन में 11.5 कुंटल उत्पादन मिलता है। यह भी एक साथ पकने वाली किस्म है। 3- पूसा 1431 किस्म से 66 दिन में 12.9 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है।

मसूर

masoor ki dal 1- एल 4076 किस्म 125 दिन में पकने वाली है । इससे 13.5 कुंतल उत्पादन मिलता है। 2- एवं 4147 से ,125 दिन में 15 कुंतल उपज मिलती है। दोनों किस्म  फ्म्यूजेरियम बिल्ट रोग प्रतिरोधी है।

सरसों(रबी)

sarson ki kheti 1-जल्द पकने वाली पीएम 25 किस्म से 105 दिन में 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है। 2-प्रीति बाई के लिए उपयुक्त पीएम 26 किस्म से 126 दिन में 16.4 कुंतल तक उपज मिलती है। 3-41.5% की उच्च तेल मात्रा वाली पीएम 28 किस्म 107 दिन में 19.9 कुंतल तक उपज दे जाती है। 4-कुछ तेल प्रतिशत वाली पीएम 3100 किस्म से 23.3  कुंतल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिलती है ।यह पकने में 142 दिन का समय लेती है। 5- पीएम 32 किस्म से 145 दिन में 27.1 कुंतल उपज दे ती है।

सोयाबीन (खरीफ)

soybean 1-पुसा सोयाबीन 9712 किस्म पीला मोजेक प्रतिरोधी है। 115 दिन में 22.5 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। 2-पूसा 12 किस्म 128 दिन मैं 22.9 कुंतल उपज देती है।

लेखक

राजवीर यादव, फिरोज हुसैन, देवेंद्र के यादव एवं अशोक के सिंह
ठंड के दिनों में घटी दूध की आपूर्ति

ठंड के दिनों में घटी दूध की आपूर्ति

दूध के बाजार में इस बार अजीब उथल पुथल की स्थिति है। यह ओमेक्रोन के खतरे के चलते है या महंगे भूसे, दाने चारे के कारण या किसी और वजह से कह पाना आसान नहीं है लेकिन हालात अच्छे नहीं हैं। गुजरे कोरोनाकाल में दूध के कारोबार पर बेहद बुरा असर पड़ा। यह बात अलग है दूधिए और डेयरियों को किसी तरह की बंदिश में नहीं रखा गया लेकिन दूध से बनने वाले अनेक उत्पादों पर रोक से दूध की खपत बेहद घटी। चालू सीजन में बाजार में दूध की आवक करीब 25 फीसद कम है। दूध की आवक में कमी के चलते देश के कई कोआपरेटिव संघ एवं मितियां दूध के दाम बढ़ाने की दिशा में निर्णय कर चुके हैं। कुछने तो दाम बढ़ा भी दिए हैं। एक एक संघ रेट बढ़ाता है तो दूसरों को भी कीमत बढ़ानी पड़ती है। नवंबर माह में पिछले साल के मुकाबले इस बार दूध की कीमत दो से तीन रुपए लीटर ज्यादा हैं। 

15 रुपए किलो हुआ भूसा

सूखे चारे पर महंगाई की मार से पशुपालक आहत हैं। गेहूं का भूूसा 15 रुपए प्रति किलोग्राम तक पहुंच गया है। एक भैंस को दिन में तकरीबन 10 किलोग्राम सूखे भूसे की आवश्यकता होती है। सूखे चारे पर महंगाई की मार से किसान भी कराहने लगे हैं। इसके चलते पशुपालन में लगे लोगों ने भी अपने पशुओं की संख्या बढ़ाने के बजाय सीमित की हुई है। इसी का असर है कि ठंड के दिनों में भी बड़ी डेयरियों पर दूध की आवक कमजोर बीते सालों के मुकाबले कमजोर चल रही है। 

घाटे का सौदा है दूध बेचना

आईए 10 लीटर दूध की कीमत का आकलन करते हैं। 10 लीटर दूध देने वाली भैंस के लिए हर दिन 10 किलोग्राम भूसे की जरूरत होती है। इसकी कीमत 150 रुपए बैठती है। इसके अलावा एक किलोग्राम दाना शरीर के मैनेजमेंट के लिए जरूरी होता है। इसकी कीमत भी करीब 25 रुपए बैठती है। तकनीबन 300 ग्राम दाना प्रति लीटर दूध पर देना होता है। इस हिसाब से 10 लीटर दूध वाले पशु को करीब तीन किलोग्राम दाना, खल, चुनी चोकर आदि चाहिए। यह भी 250 रुपए से कम नहीं बैठता। 

इसके अलावा हरा चारा, नमक, गुड़ और कैल्सियम की पूर्ति के लिए  खडिया जैसे सस्ते उत्पादों की कीमत जोड़ें तो दुग्ध उत्पादन से पशुपलकों को बिल्कुल भी आय नहीं मिल रही है। गांवों में दूध 40 रुपए लीटर बिक रहा है। यानी 10 लीटर दूध 400 का होता है और पशु की खुराब 500 तक पहुंच रही है। उक्त सभी उत्पादों की कीमत जोड़ें तो 10 लीटर दूध देने वाले पशु से आमदनी के बजाय नुकसान हो रहा है। पशु पालक के श्रम को जोड़ दिया जाए को घाटे की भरपाई असंभव है। किसान दूध से मुनाफा लेने के लिए पशु की खुराक में कटौती करते हैं लेकिन इसका असर उसकी प्रजनन क्षमता एवं स्वास्थ्य पर पड़ता है। इसके चलते पशु समय से गर्मी पर नहीं आता। इसके चलते पशु पालक को पशुओं का कई माह बगैर दूध के भी चारा दाना देना होता है। इस स्थिति में तो पशुपालक की कमर टूट जाती है।

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दूध नहीं घी बनाएं किसान

देश के अधिकांश ग्रामीण अंचल में अधिकतर पशु पालक 40 रुपए लीटर ही दूध बेच रहे हैं। भैंस के दूध में औसतन 6.5 प्रतिशत फैट होता है। इस हिसाब से 10 लीटर दूध में करीब 650 ग्राम घी बनता है। गांवों में भी 800 से 1000 रुपए प्रति किलोग्राम शुद्ध घी आसानी से बिक जाता है। घी बनाते समय मिलने वाली मठा हमारे पशुपालक परिवार के पोषण में वृद्धि करती है। इस लिहाज से दूध बेचने से अच्छा तो घी बनाना है। दूध बेचने में खरीददार दूधियों द्वारा भी पशु पालकों के पैसे को रोक कर रखा जाता है। उन्हें समय पर पूरा पैसा भी नहीं मिलता। इसके अलावा ठंड के दिनों में जो दूधिया दूध खरीदता है उसे गर्मियों में दूध देना पशु पालक की मजबूरी बना जाता है।

भूसा के बढ़ते भाव ने पशुपालकों को लिया जकड़, तो तूरी ने ईंट भट्ठा स्वामियों को दिखाई अकड़

भूसा के बढ़ते भाव ने पशुपालकों को लिया जकड़, तो तूरी ने ईंट भट्ठा स्वामियों को दिखाई अकड़

लखनऊ। महंगाई की मार से जहां आम आदमी के घरों का चूल्हा चलना मुश्किल हो रहा है। वहीं पशुओं के चारे पर लगातार बढ़ रहीं कीमतों ने पशुपालकों को परेशान कर दिया है। दूसरी तरफ सरसों की तूरी ने भी मंहगाई को तड़का लगाते हुए ईंट भट्ठा स्वामियों को अकड़ दिखाना शूरू कर दिया है। इस सीजन में पशुओं का पेट भरने वाला भूसा का भाव 1000 से 1200 रु. प्रति क्विंटल तक पहुंच गया है। जिससे पशुपालकों को परेशानी हो रही है। भूसा के दामों में बेहताशा वृद्धि के चलते पशुओं तक भरपेट भोजन नहीं पहुंच पा रहा है।

गेहूं की कम पैदावार की वजह से बढ़े हैं भूसा के दाम

- भूसा के दामों में लगातार हो रही वृद्धि गेहूं की कम पैदावार का मुख्य कारण है। गेहूं की बहुतायत में पैदावार करने वाले यूपी, हरियाणा व पंजाब में भी भूसा के दामों में बढ़ोतरी हुई है।

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अभी और बढ सकते हैं भूसा के दाम

- इन दिनों पशुपालक हरे चारे के सहारे पशुओं का पेट भर रहे हैं। भूसा की कम खपत हो रही है। हरा चारा कम होते ही भूसा की खपत बढ़ जाएगी। इससे भूसा के दामों में और भी उछाल देखने को मिल सकता है।

सरसों की तूरी से पकाई जाती हैं ईंटे

- सरसों की तूरी को ईंट भट्ठों पर आग जलाने में प्रयोग किया जाता है। सरसों की तूरी से ईंट भट्ठा में आग तेजी से जलती है। जिससे कच्ची ईंटों को पकाया जाता है।

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बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से सरसों में हुआ था भारी नुकसान

- सरसों की फसल का उत्पादन राजस्थान में ज्यादा होता है। बीते सीजन में बेमौसम बरसात व ओलावृष्टि से सरसों की फसल को भारी नुकसान हुआ था। जिससे सरसों की फसल अच्छी नहीं रही। तूरी के भाव भी इसी कारण बढ़े हैं।

क्या भाव है भूसा और तूरी

- भूसा के भाव 1000 से 1200 रु. प्रति क्विंटल हैं। - सरसों की तूरी के भाव 500 से 650 रु. प्रति क्विंटल हैं। 


 -------- लोकेन्द्र नरवार

क्रांतिकारी ट्रैक्टर : मात्र 15 रुपए में यह ट्रैक्टर करता है एक घंटा काम

क्रांतिकारी ट्रैक्टर : मात्र 15 रुपए में यह ट्रैक्टर करता है एक घंटा काम

नई दिल्ली। इंसान का तेज दिमाग और कड़ी मेहनत कठिन से कठिन काम को भी आसान कर सकती है। अन्नदाता दिनरात मेहनत मजदूरी करते हैं। और हर रोज नए नए प्रयोग करते हैं। आज हम आपको एक ऐसे किसान की दास्तां से रूबरू कराएंगे जिसने एक ऐसा क्रांतिकारी ट्रैक्टर बना डाला, जो महज 15 रुपए में एक घंटा काम करता है। गुजरात के जामनगर निवासी महेश भूत ने ऐसा कमाल का ट्रैक्टर बनाकर लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। 34 वर्षीय महेश बचपन से ही अपने पिता के साथ खेती-किसानी में हाथ बटाते रहे हैं। साल 2014 में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद महेश ने खेती-किसानी को ही पहली वरीयता दी। 

महेश ने पेस्टीसाईट्स और फर्टिलाइजर के उपयोग से होने वाले खर्च को कम करने के लिए अपनी पूरी क्षमता के साथ ऑर्गेनिक खेती का फैसला लिया। इसी सोच के तहत काम करते हुए महेश ने एक दिन कृषि यंत्रों का खर्चा कम करने के उद्देश्य से ई-ट्रैक्टर बनाने का निर्णय लिया। 

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महेश ने सबसे पहले ई-रिक्शा बनाने का प्रयोग किया और कुछ ही दिनों में महेश ने ई-ट्रैक्टर भी बना लिया। इस ट्रैक्टर में 22 एचपी का इंजन और 72 वाट लीथियम की अच्छी क्वालिटी की बैटरी लगी है, जो जल्दी खराब नहीं होती है। महेश ने अपने ई-ट्रैक्टर का नाम व्योम रखा। व्योम ट्रैक्टर से एक घंटा खेत में काम करने पर महज 15 रुपए का खर्चा आता है। आज इस ई-ट्रैक्टर व्योम (Vyom Electric Tractor) ने दुनियां के कई देशों में खास जगह बना ली है। 

21 नए ट्रैक्टर बनाने का मिल चुका है ऑर्डर

- किसाम द्वारा बनाया गया ट्रैक्टर व्योम लगातार सुर्खियों में बना हुआ है। मिली जानकारी के अनुसार व्योम नाम के ई-ट्रैक्टर को बनाने के लिए 21 लोगों ने ऑर्डर किया है, जो जनवरी 2023 तक तैयार होने की संभावना है। 

क्या है व्योम ई-ट्रैक्टर की कीमत?

- गुजरात के महेश भूत द्वारा बनाए जा रहे ई-ट्रैक्टर की कीमत सामान्य ट्रैक्टर के मुकाबले थोड़ी ज्यादा है। ई-ट्रैक्टर की कीमत करीब 5 से 6 लाख रुपए तय की गई है, जो सामान्य ट्रैक्टर के मुकाबले थोड़ी अधिक है। 

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व्योम ई-ट्रैक्टर की विशेषताएं :

1- यह ई-ट्रैक्टर एक बार चार्ज होने के बाद करीब 9 से 10 घंटे काम कर सकता है। 2- इसमें अच्छी क्वालिटी की 22 HP व 72 वाट की बैटरी लगी है, जो बार-बार बदलनी नहीं पड़ती है। 3-इस ई-ट्रैक्टर को मोबाइल एप से जोड़ा गया है। इससे ई-ट्रैक्टर के सभी पार्ट एवं अन्य सभी जानकारियां मिल सकती हैं। 4- इस ई-ट्रैक्टर को आधुनिक तकनीकी से तैयार किया गया है, जिससे किसानों को कोई परेशानी न हो। इसकी रिपेयरिंग करना भी बेहद आसान है। 5- इस ई-ट्रैक्टर में चार गियर के साथ एक रिवर्स गियर भी होता है। 


 ------ लोकेन्द्र नरवार

मक्के की खेती (Maize farming information in Hindi)

मक्के की खेती (Maize farming information in Hindi)

मक्के को भुट्टा (Maize or Corn) भी कहा जाता है, बारिश में तो लोग बड़े ही शौक से भुट्टे को खाते हैं। मक्के से जुड़ी सभी आवश्यक बातों को जानने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने:

मक्के की खेती:

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार मक्का एक खाद्य फसल है, मक्का मोटे अनाजों के अंतर्गत आता है। मक्के की फसल भारत के मैदानी भागों में उगाई जाती है तथा 2700 मीटर उँचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों तक फैली हुई है। मक्के की फसल के लिए सभी प्रकार की मिट्टी उपयोगी होती है परंतु किसान दोमट मिट्टी का चयन करते हैं। मक्के को खरीफ ऋतु की फसल में भी उगाया जाता है। मक्के में आवश्यक तत्व जैसे कार्बोहाइड्रेट का बहुत अच्छा स्त्रोत मौजूद होता है। आहार के रूप में मक्का बहुत ही महत्वपूर्ण और अपनी एक अलग जगह बनाए हुए हैं।

मक्के से बनने वाली डिशेस:

मक्के से विभिन्न प्रकार की डिशेस बनती है जैसे: गांव में मक्के को अच्छी तरह से सुखाकर पीसने के बाद गुड़ मिलाकर खाया जाता है, मक्के से हलवा बनता हैं, मक्के की रोटी गांव में लोग खाना बहुत पसंद करते हैं, मक्के को बारिश के दिनों में भून कर खाया जाता है, मक्के को स्वीट कॉर्न  (Baby Corn) के रूप में भी लोग काफी पसंद करते हैं, सभी प्रकार की डिशेस बनाने में मक्के का इस्तेमाल किया जाता है।

मक्के की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और भूमि:

मक्के उत्पादन के लिए सबसे उपयुक्त जलवायु उष्ण और आर्द की जलवायु होती है जो फसलों को पनपने में सहायता करती है। मक्के की फसल के लिए जल निकास वाली भूमि सबसे आवश्यक मानी जाती है। खेत तैयार करते समय भूमि में जल निकास की व्यवस्था को बनाए रखना उपयुक्त होता है। पहली बारिश होने के बाद हैरो के पश्चात पाटा चलाना उपयुक्त है। 

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मक्के की फसल के लिए खेत को तैयार करें:

मक्के की फसल के लिए खेत को भली प्रकार से जुताई की आवश्यकता होती है। भूमि को जोत कर समतल कर ले, हरो का इस्तेमाल करने के बाद पाटा चला दे। अगर आप गोबर की खाद का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो सड़ी हुई खाद को अच्छी तरह से खेत की आखरी जुताई करने के बाद मिट्टियों में मिला दे।

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मक्के की फसल की बुवाई का समय:

मक्के की फसल की विभिन्न विभिन्न प्रकार की बुवाई इन के बीजों पर आधारित होती है और किस समय किस बीज को बोना चाहिए वह किसान उचित रूप से जानते हैं। इसीलिए फसल बुवाई का समय एक दूसरे से भिन्न होता है:

  • किसान मक्के की खरीफ फसल की बुवाई का समय जून से जुलाई तक का निश्चित करते हैं।
  • मक्के की रबी फसल की बुवाई का समय अक्टूबर से नवंबर तक का होता है।
  • मक्के की जायद फसलों की बुवाई का समय फरवरी से मार्च तक का होता है।

मक्के की फसल की बुवाई का तरीका:

मक्के की फसल बुवाई करने के लिए अगर आपके पास सिंचाई का साधन पहले से मौजूद है, तो आप 12 से 15 दिन पहले ही मक्के की बुवाई करना शुरू कर दें। मक्के की बुवाई आप बारिश शुरू होने पर भी कर सकते हैं। अधिक मक्के की पैदावार प्राप्त करने के लिए फसल की बुवाई पहले करे। बीज बोने के लिए इसकी गहराई लगभग 3 से 5 सेंटीमीटर तक रखना उपयोगी होता है। मक्की की बुआई करने के बाद एक हफ्ते के बाद मिट्टी चढ़ाना आवश्यक होता है। बुवाई किसी भी तरह से कर सकते हैं लेकिन पौधों की संख्या 55 से 80 हजार हेक्टेयर के हिसाब से रखनी चाहिए।

मक्के की फसल के लिए उपयुक्त खाद का चयन:

मक्की की फसल के लिए सबसे उपयोगी और आवश्यक सड़ी हुई गोबर की खाद होती है। कभी-कभी किसान उर्वरक खाद, नत्रजन फास्फोरस, पोटाश आदि का भी इस्तेमाल करते हैं।

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मक्के की फ़सल के लिए निराई-गुड़ाई:

मक्के की फसल की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए निराई गुड़ाई बहुत ही आवश्यकता होती है। या निराई गुड़ाई आपको लगभग बीज बोने के बाद 10 से 20 दिनों के अंदर कर देनी चाहिए। यह निराई गुड़ाई आप किसी भी प्रकार के हल द्वारा या फिर ट्रैक्टर द्वारा कर सकते हैं। कुछ रसायनिक दवाओं का भी इस्तेमाल करें जैसे: एट्राजीन नामक निंदानाशक का इस्तेमाल करना उपयुक्त होता है। इसका इस्तेमाल अंकुरण आने से पहले 600 से 800 ग्राम तक 1 एकड़ की दर पर पूरे खेतों में भली प्रकार से छिड़काव करना उचित होता है। निराई गुड़ाई के बाद 20 से 25 दिनों के बाद मिट्टी चढ़ाएं।

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मक्के की फसल की सिंचाई:

मक्के की पूरी फसल को लगभग 400 से 600 मिनिमम पानी की जरूरत पड़ती है। मक्के की फसल की सिंचाई पुष्पन दाना भरने के टाइम करते हैं।सिंचाई करते समय हमेशा जल निकास की व्यवस्था को बनाए रखना बहुत जरूरी होता है।

मक्के की फ़सल को कीट व रोगों से सुरक्षित रखने के उपाय:

  • मक्के की फसलों को सुरक्षित रखने के लिए सिंचाई के पानी में क्लोरपाइरीफास 2.5 प्रति लीटर मिलाकर अच्छी तरह से सिंचाई करें।
  • मक्के के तने और जड़ों को सुरक्षित रखने के लिए लगभग आपको 10 लीटर गौमूत्र लेना है। उसमें आपको नीम के पत्ते, धतूरे के पत्ते, करंज के पत्ते, डालकर अच्छी तरह से उबाल लेना है। पानी जब 5 लीटर बजे तब उसे ठंडा कर अच्छी तरह से छान ले। अरंडी के तेल में लगभग 50 ग्राम सर्फ़ मिलाकर तनें और जड़ों में डाल दें।
  • मक्के की फसलों को सूत्रकृमि से बचाने के लिए फसल बोने के एक हफ्ते बाद 10 किलोग्राम फोरेट 10g का इस्तेमाल करे।
  • मक्के की फसल को तना छेदक कीट से सुरक्षित रखने के लिए कार्बोफ्यूरान 3g 20 किग्रा, फोरेट10% सीजी 20 किग्रा, डाईमेथोएट 30%क्यूनालफास 25 का इस्तेमाल कर छेदक जैसी कीटों से फ़सल की सुरक्षा करे।

मक्के की फसल की उपयोगिता:

मक्के की फसल में कार्बोहाइड्रेट का बहुत ही अच्छा स्त्रोत होता है। इसीलिए यह सबसे महत्वपूर्ण फसल मानी जाती है। मक्के की फसल मनुष्य और पशु दोनों के आहार का सबसे महत्वपूर्ण साधन होता है। मक्के की फसल औद्योगिक दृष्टिकोण में बहुत ही उपयोगी होती हैं। मक्के की फसल को सुरक्षित रखने के लिए भिन्न प्रकार की सावधानी बरतनी चाहिए। ताकि उनमें किसी प्रकार के कीड़े कीट ना लग सके। मक्के की फसल से किसानों को विभिन्न प्रकार का लाभ पहुंचता है आय निर्यात का साधन बना रहता है। 

दोस्तों हम उम्मीद करते हैं आपको हमारा यह आर्टिकल मक्का पसंद आया होगा। यदि आप हमारी दी हुई जानकारियों से संतुष्ट हैं। तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों और सोशल मीडिया पर शेयर करें। धन्यवाद।

आदत बदलने पर छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना में 3 साल तक मिलेंगे पूरे इतने हजार

आदत बदलने पर छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना में 3 साल तक मिलेंगे पूरे इतने हजार

किसान पंचायत समिति से जुड़ी स्कीम

फसल चक्र बदलने सीएम बघेल का प्लान

इमारती लकड़ी, फल, बाँस, लघु वनोपज बढ़ाने का संकल्प

निरंतर एक सी खेती के लती किसानों को यदि छत्तीसगढ़ सरकार की आर्थिक मदद से जुड़ी एक योजना का तीन सालों तक लाभ हासिल करना है, तो उन्हें पहले अपनी आदतों में भी बदलाव करना होगा। जी हां, छत्तीसगढ़ प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी योजना की यह प्रथम एवं अनिवार्य शर्त है। अब कौन सी आदत किसान मित्र को बदलनी होगी, सरकार के कहने पर चले तो किसान का क्या भला होगा, आदत बदलने पर कितना आर्थिक लाभ होगा, इन सवालों के जानिये जवाब मेरी खेती के साथ। पर्यावरण एवं मृदा संरक्षण के लिए कृषि वैज्ञानिक खेत पर उपज बदल-बदल कर खेती करने की सलाह किसानोें को देते हैं। पारंपरिक फसल चक्र से जुड़े किसानों को अन्य फसलों, पौधों, बागवानी, वानिकी आधारित कृषि आय से जोड़ने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें कई प्रोत्साहन योजनाएं संचालित कर रही हैं।

छग में भूपेंद्र सरकार की अभिनव पहल

इस तारतम्य में छत्तीसगढ़ सरकार ने कृषि भूमि की उर्वरता की रक्षा एवं वृद्धि के साथ ही पर्यावरण सहेजने के लिए महत्वाकांक्षी चीफ मिनिस्टर ट्री प्लांटेशन इंसेंटिव स्कीम (Chhattisgarh Chief Minister Tree Plantation Incentive Scheme) स्टार्ट की है।


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इस योजना के तहत, छत्तीसगढ़ राज्य में वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार की ओर से जारी किए गए दिशा-निर्देशों के अनुसार किसानों, किसान समितियों के साथ ही निजी भूमि में भी पौधरोपण (शासकीय योजनानुसार वृक्षारोपण) से जुड़े खेती-किसानी कार्य को प्रोत्साहित किया जाएगा।

दबाव होगा कम

छत्तीसगढ़ प्रदेश सरकार का मानना है कि इस अभिनव योजना से जंगल की आग से रक्षा, चारा, लकड़ी और औद्योगिक सेक्टर के लिए जरूरी भू-जनित उत्पाद के दबाव को कम करने में मदद मिलेगी। साथ ही आधुनिक खेती से पर्यावरण पर मंडराने वाले खतरों को कम करने में भी आसानी होगी।

एक साल पहले हुई घोषणा

फसल चक्र में बदलाव के लिए किसानों को प्रेरित करने की दिशा में प्रयासरत देश की राज्य सरकारों के मध्य छत्तीसगढ़ राज्य सरकार (Chhattisgarh State Government) ने बीते साल 1 जून 2021 को अहम योजना की घोषणा की थी। इस दिन छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा आदिवासी बहुल प्रदेश छत्तीसगढ़ राज्य में मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना का शुभारंभ किया गया। गौरतलब है कि, 18 मई 2021 को मंत्रिमंडल की बैठक में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Chief Minister Bhupesh Baghe) ने चीफ मिनिस्टर ट्री प्लांटेशन इंसेंटिव स्कीम (Chief Minister Tree Plantation Incentive Scheme) को छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) राज्य में लागू करने का निर्णय लिया था।

किसका कितना भला

चीफ मिनिस्टर ट्री प्लांटेशन इंसेंटिव स्कीम (Chief Minister Tree Plantation Incentive Scheme) अर्थात मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना का छत्तीसगढ़ राज्य में किसको, कितना, क्या लाभ हासिल होगा, इन विषयों पर सवाल दर जानिये जवाब।


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इनको मिलेगा लाभ

छत्तीसगढ़ प्रदेश सरकार ने यह पेशकश राज्य के सभी किसानों, ग्राम एवं संयुक्त वन प्रबंधन समितियों के हित में जारी की है। निजी भूमि में भी पौधरोपण (शासकीय योजनानुसार वृक्षारोपण) से जुड़े खेती-किसानी कार्य को छत्तीसगढ़ राज्य सरकार द्वारा प्रोत्साहित किया जाएगा।

योजना का मकसद

छत्तीसगढ़ में पौधरोपण (वृक्षारोपण) योजना शुरू करने का मूल मकसद नागरिकों एवं किसानों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करते हुए राज्य में जल, जंगल एवं जमीन का संरक्षण एवं संवर्धन करते हुए पर्यावरण में सुधार लाना है। पिछले वर्ष जून 2021 से शुरू की गई प्लांटेशन स्कीम के तहत छत्तीसगढ़ राज्य सरकार जागरूकता कार्यक्रमों एवं शिविरों के माध्यम से लोगों को जल-जंगल-जमीन के महत्व से परिचित करा रही है। छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना का मूल उद्देश्य वृक्षों की कमी के कारण जल-जंगल-जमीन, प्राणी और पर्यावरण के स्वास्थ्य पर पड़ रहे बुरे प्रभावों को रोककर प्राकृतिक घटक आधारित उत्पाद को मानव एवं पर्यावरण हितकारी बनाना है। छत्तीसगढ़ राज्य सरकार की मंशा पौधरोपण कर वृक्ष का स्वरूप प्रदान करने वाले किसानों को आर्थिक मदद प्रदान करना है, ताकि पारंपरिक कृषि चक्र अपनाने वाले अन्य किसान भी, बदलाव करने वाले कृषकों से सीख लेकर फसल चक्र में बदलाव के लिए प्रेरित हो सकेें। इस योजना को शुरू करने के पीछे राज्य सरकार का उद्देश्य छत्तीसगढ़ राज्य में हो रहे जलवायु परिवर्तन के कुप्रभाव को कम करके, इसे स्थिर करना एवं प्रदूषण को कम करने वृक्षों की संख्या में वृद्धि करना है।

लेकिन बदलना होगी आदत

चूंकि प्रदेश सरकार की योजना का मकसद फसल चक्र में बदलाव करना है, अतः परंपरागत फसल चक्र के बजाए पौधरोपण के जरिए वृक्ष संवर्धन करने वाले किसानों को छग सरकार प्रोत्साहित करेगी। खरीफ वर्ष 2020 में धान की फसल की पैदावार करने वाले किसानों को इस बार अपनी आदत में बदलाव करना होगा। यदि इस बार वे धान के बदले अपने खेतों में वृक्षारोपण (पौधरोपण) करते हैं, तो वे योजना हितग्राही पात्रता की प्रथम अनिवार्य शर्त की पूर्ति कर योजना का लाभ ले सकेंगे। ग्राम पंचायतें भी स्वयं की उपलब्ध राशि से वाणिज्यिक उपयोग के लिए वृक्षारोपण (पौधरोपण) कर मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना का लाभ प्राप्त कर सकती हैं। यह सुविधा भविष्य में पंचायतों की आय में वृद्धि करने का लाभ भी प्रदान करेगी।

CMTPIS का क्रियान्वन

चीफ मिनिस्टर ट्री प्लांटेशन इंसेंटिव स्कीम (सीएमटीपीआईएस) (Chief Minister Tree Plantation Incentive Scheme/ CMTPIS) अर्थात मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना का छत्तीसगढ़ राज्य में क्रियान्वयन करने के लिए राज्य सरकार ने विशेष रूपरेखा बनाई है। राज्य स्तर पर योजना के क्रियान्वयन के लिए प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं कृषि उत्पादन आयुक्त की सहभागिता खास तौर पर सुनिश्चित की गई है। जिला स्तर पर स्कीम के सफल क्रियान्वन की जिम्मेदारी क्षेत्रीय वन मंडल अधिकारियों को सौंपी गई है। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना में किसानों को प्रदान करने के लिए उच्च गुणवत्ता के पौधे तैयार किए जा रहे हैं। इन पौधों का रोपण वन अधिकार प्रदत्त वन एवं राजस्व वन भूमि पर हितग्राहियों की सहमति से किया जाएगा।


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योजना में शामिल किस्में

मुख्यमंत्री वृक्षारोपण (पौधरोपण) प्रोत्साहन योजना के तहत गैर वन क्षेत्रों में इमारती, गैर इमारती लकड़ी, फलदार वृक्षों, बांस, अन्य लघु वनोपज एवं औषधीय पौधों की खेती करने वाले किसानों को लाभान्वित किया जाएगा। इमारती लकड़ी, फल, बाँस, लघु वनोपज एवं औषधीय पौधे खेत में लगाने वाले किसानों को प्रदेश सरकार से बदले में आर्थिक मदद प्राप्त होगी। इसके अलावा निजी क्षेत्र में तैयार परिपक्व एवं उम्र दराज पेड़ों, वृक्षों को काटने के बारे में लागू अनुमति संबंधी प्रावधानों को अपेक्षाकृत रूप से पहले के मुकाबले और अधिक आसान बनाया गया है। हितग्राही द्वाला लगाए जा रहे पौधों के परिपक्व पेड़ बनने के बाद उसकी कटाई से जुड़े अनुमति के प्रावधानों के बारे में भी राज्य सरकार ने प्रबंध किए हैं।

योजना पात्रता मानदंड

मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना का लाभ अव्वल तो सिर्फ छत्तीसगढ़ राज्य के स्थाई निवासी को ही प्रदान किया जाएगा। सीएम ट्री प्लांटेशन इंसेंटिव स्कीम के तहत लाभ लेने के इच्छुक किसानों, ग्राम पंचायतों या संयुक्त वन प्रबंधन समितियों के पास कम से कम 1 एकड़ भूमि की अनिवार्यता योजना में एक अन्य अहम शर्त है। मतलब एक एकड़ भूमि के मालिक हितग्राही ही योजना का लाभ ले सकेंगे। कृषक मित्र याद रखें कि छत्तीसगढ़ चीफ मिनिस्टर ट्री प्लांटेशन इंसेंटिव स्कीम 2022 के हितग्राही को योजना का लाभ केवल तब ही प्रदान किया जाएगा जब स्कीम के तहत पौधरोपण का एक साल सफलतम रूप से पूरा हो चुका हो। यह योजना की तीसरी प्रमुख शर्त कही जा सकती है।

योजना आवेदन प्रक्रिया

छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना 2022 का लाभ हासिल करने आवेदन के लिए ऑनलाइन प्रोसेस अभी शुरू नहीं हो पाई है। राज्य के इच्छुक लाभार्थी मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना लिए लाभ प्राप्त करने फिलहाल ऑफलाइन आवेदन कर सकते हैं। जिले के वन परिक्षेत्र कार्यालय में योजना अहर्ता फॉर्म आवेदक को प्राप्त होंगे। फॉर्म में अनिवार्य जानकारी दर्ज करने एवं जरूरी दस्तावेजों की प्रतिलिपि संलग्न कर आवेदक को कार्यालय में फॉर्म जमा करना होगा।


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अहम सवाल, कितना लाभ मिलेगा

छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना 2022 के तहत योजना की पात्रता रखने वाले किसानों को राज्य सरकार द्वारा अगले 3 सालों तक 10 हजार रुपये प्रति एकड़, प्रति वर्ष की दर से प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाएगी। स्वयं के पास उपलब्ध राशि से योजना के तहत पौधरोपण करने वाली ग्राम पंचायतों को एक साल बाद सफल पौधरोेपण की स्थिति में शासन की ओर से योजना के लाभ बतौर 10 हजार रूपये प्रति एकड़ की दर से प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाएगी। इससे पंचायतों की आय में वृद्धि के साथ ही पर्यावरण संवर्धन हेतु सामूहिक प्रयास की कोशिश भी साकार होगी। संयुक्त वन प्रबंधन समिति भी स्वयं के खर्चे पर राजस्व भूमि पर व्यवसायिक उपयोग आधार संबंधी पौधरोपण कर योजना का लाभ हासिल कर सकती है। योजना में पात्र वन प्रबंधन समिति को पंचायत की ही तरह एक साल बाद शासन की ओर से 10 हजार रुपये प्रति एकड़ की दर से प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाएगी। योजना के तहत तैयार किए जाने वाले पौधों, वृक्षों, पेड़ों की कटाई एवं विक्रय के अधिकार योजना के अनुसार संबंधित समिति के पास सुरक्षित रखे गए हैं। सरकार पात्र हितग्राहियों को चीफ मिनिस्टर ट्री प्लांटेशन इंसेंटिव स्कीम अर्थात मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना के तहत 3 साल तक 10000 रुपये प्रति वर्ष प्रति एकड़ की दर से प्रदान किए जाएंगे। आपको बता दें राज्य सरकार की योजनाओं के बारे में आधिकारिक वेबसाइट पर महत्वपूर्ण सूचनाएं उपलब्ध हैं : https://chhattisgarh.nic.in/ भू, जल एवं पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन के लिए छत्तीसगढ़ सरकार का यह प्रयास निश्चित ही अनुकरणीय कहा जा सकता है। पेड़ पौधों को सहेजने के लिए भले ही वर्तमान पीढ़ी ने देर कर दी हो, लेकिन इस बारे में ताकीद पहले की अनुभवी पीढ़ी यह कहते हुए पहले ही दे चुकी है कि, “इन टहनियों को मत काटो, ये चमन का जेवर हैं, इन्हीं में से कल आफताब उभरेगा।” छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना 2022 का लाभ हासिल करने आवेदन के लिए ऑनलाइन प्रोसेस अभी शुरू नहीं हो पाई है। इस बारे में पुष्टि जरूर कर लें।
किसान गोष्ठी एवं बीज वितरण कार्यक्रम का अयोजन

किसान गोष्ठी एवं बीज वितरण कार्यक्रम का अयोजन

कृषि विज्ञान संस्थान, काशी हिन्दू विश्विद्यालय वाराणसी में अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन परियोजना, राई एवं सरसों अनुसंधान संस्थान भरतपुर, के तहत किसान गोष्ठी एवं बीज वितरण कार्यक्रम का अयोजन किया गया, जिसमें विशिष्ट अतिथि राई एव सरसों निर्देशालय के निदेशक डॉं. पी के राय, कृषि विज्ञान संस्थान वाराणसी के वैज्ञानिक एवं परियोजना के संचालक डॉक्टर कार्तिकेय श्रीवास्तव, परियोजना के सस्य वैज्ञानिक डॉक्टर राजेश सिंह, पादप रोग विज्ञान के अध्यक्ष डॉक्टर श्याम सरन वैश्य, परियोजना सहायक डॉक्टर अदिती एलिजा तिर्की, अरविंद पटेल शोध छात्र दिव्य प्रकाश ,साहिल गौतम शामकुवर एव वाराणसी मीरजापुर के 100 प्रगतिशील किसान मौजूद रहे। इस कार्यक्रम में डॉक्टर पी के राय ने बताया कि किसान भाई, किसान समूह बना कर तेल निकालने वाली मशीन लगा कर अपने फसल का प्रसंकरण कर, खुद का उत्पाद बना कर बाजार में उसका विपरण करें, जिससे आय को दुगुना किया जा सकता है। इसी के साथ साथ उन्होंने बताया सरसों की फसल को सहफसली न करें, एकल फसल लगाएं। सरसों के साथ मधुमक्खी पालन करें, जिससे 10-15 प्रतिशत उत्पादन में बृद्धि होगी।

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वहीं कृषि विज्ञान संस्थान के परियोजना संचालक डॉक्टर कार्तिकेय श्रीवास्तव ने कहा, सिंचित और असिंचित दशा में समय और देर से बुवाई करने वाली उन्नतिशील प्रजातियों एवं सरसों पंक्ति विधि से बुवाई कर के किसान भाई अधिक उत्पादन कर सकते हैं। इन्होंने समय से बुवाई के लिए गिरिराज (Mustard Giriraj Variety), वरुणा (Varuna), आर. एच् 725 (RH 725), RH-749 । बिलम्ब से बुवाई के लिए बृजराज, एन आर सी एच बी 101 प्रजाति की संतुति की। पादप रोग विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर श्याम सरन वैश्य ने राई एवं सरसो में लगने वाले विभिन्न रोग के लक्षण एवं उसके निदान के बारे में बताया और कृषि विज्ञान संस्थान के सस्य वैज्ञानिक डॉक्टर राजेश सिंह ने सरसों की सस्य क्रियाकलाप सिंचाई एवं कितना रासायनिक और जैव उर्वरक का प्रयोग करें इस पर बल दिया। उपस्थित कुछ प्रगतिशील किसान ने अपनी समस्याओं को बताया और उसका समाधान वहां उपस्थित वैज्ञानिकों ने किया । इस कार्क्रम के उपरांत 100 किसानों को गिरिराज एवं बृजराज प्रजाति का बीज वितरित किया गया।
छत्तीसगढ़ राज्य सरकार द्वारा १ नवंबर से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ११० लाख मीट्रिक टन खरीदी जाएगी धान

छत्तीसगढ़ राज्य सरकार द्वारा १ नवंबर से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ११० लाख मीट्रिक टन खरीदी जाएगी धान

इस बार छत्तीसगढ़ प्रदेश के पंजीकृत किसानों से 110 लाख मीट्रिक टन धान खरीदी का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। साथ ही ट्वीट में बताया गया है कि चालू खरीफ विपणन साल के लिए अब तक २४ लाख ६२ हजार किसानों का रजिस्ट्रेशन हो चुका है। छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए यह अच्छी खुशखबरी है, क्योंकि राज्य सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर धान की खरीद करने की घोषणा की है। मुख्य बात यह है कि १ नवंबर से धान की खरीद प्रारंभ होगी, इसके साथ ही प्रदेश सरकार किसानों से एमएसपी पर मक्का की खरीद भी करेगी। वहीं, किसानों ने एमएसपी पर धान बेचने के लिए पंजीयन करवाना आरम्भ कर दिया है। रजिस्ट्रेशन की अंतिम तारीख ३१ अक्टूबर है, जबकि राज्य में १७ अक्टूबर से ही उड़द, अरहर एवं मूँग समेत कई दलहनी फसलों की खरीद एमएसपी पर प्रारम्भ हो चुकी है। छत्तीसगढ़ सरकार ने ट्वीट कर कहा है कि राज्योत्सव के चलते ही एक नवम्बर से धान खरीद प्रक्रिया प्रारम्भ हो जायेगी। इस बार प्रदेश के पंजीकृत किसानों से ११० लाख मीट्रिक टन धान खरीदी का लक्ष्य निर्धारित किया है। साथ ही, ट्वीट में कहा है कि चालू खरीफ विपणन साल के लिए अब तक २४ लाख ६२ हजार किसानों का रजिस्ट्रेशन संपन्न भी हो चुका है। साथ ही, जो किसान अभी तक रजिस्ट्रेशन नहीं कर पाए हैं, वह धान को बेचने के लिये एकीकृत किसान पोर्टल kisan.cg.nic.in पर जाकर रजिस्ट्रेशन करवा लें। मुख्यतय बात यह है कि खरीफ वर्ष २०२१-२२ में धान को एमएसपी पर बेचने वाले पंजीकृत किसानों को पुनः पंजीयन कराने की आवश्यकता नहीं होगी।

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छत्तीसगढ़ सरकार इस बार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदेगी मक्का की फसल

छत्तीसगढ़ राज्य में १ नवंबर से धान के साथ-साथ मक्के को भी एमएसपी पर खरीदे जाने की घोषणा की गयी है। मक्का को एमएसपी पर बेचने वाले किसान भी एकीकृत किसान पोर्टल kisan.cg.nic.in पर समस्त जरुरी कागजातों के साथ आवेदन कर सकते हैं। हालाँकि, छत्तीसगढ़ राज्य सरकार द्वारा किसानों को आवेदन एवं पंजीयन समेत और भी जानकारियां के लिए एकीकृत किसान पोर्टल लॉन्च किया गया है, जिसको किसानों के खेत व फसल बुवाई के रकबे का सत्यापन हेतु भुइयाँ पोर्टल (bhuiyan portal) से भी जोड़ा जायेगा। वहीं, छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्य सचिव अमिताभ जैन द्वारा शुक्रवार को धान खरीदी समेत कल्याणकारी व महत्वपूर्ण योजनाओं के क्रियान्वयन की समीक्षा भी की गयी। इस दौरान उन्होंने कस्टम मिलिंग, समितियों से धान परिवहन की व्यवस्था सहित इस खरीफ सीजन में धान खरीदी के सन्दर्भ में अन्य महत्वपूर्ण व्यवस्थाओं के सम्बंध में भी दिशा निर्देश जारी किए हैं।
किसान ड्रोन की सहायता से 15 मिनट के अंदर एक एकड़ भूमि में करेंगे यूरिया का छिड़काव

किसान ड्रोन की सहायता से 15 मिनट के अंदर एक एकड़ भूमि में करेंगे यूरिया का छिड़काव

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जनपद में स्थित बीएचयू कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा खेतों में फसलों को जल पोषित करने हेतु अत्याधुनिक ड्रोन तैयार किया है। इस ड्रोन से किसान भाई कम वक्त में दवा व उर्वरकों का छिड़काव कर पाएंगे। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जनपद में स्थित बीएचयू कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किसानों हेतु अत्याधुनिक ड्रोन तैयार किया जाएगा। किसान ड्रोन तकनीक के माध्यम से कीटनाशक व उर्वरकों का छिड़काव फसलों पर कर पाएंगे। केवल 15 मिनट के समय के अंदर एक एकड़ भूमि पर खाद अथवा फिर कीटनाशक का छिड़काव कर सकेंगे। इस तकनीकी उपयोग से जल की खपत कम होने के साथ-साथ वक्त भी बचेगा। फसलों की पैदावार को अच्छा करने के लिए निरंतर केंद्र सरकार कदम उठा रही है। इसी कड़ी में बरकछा में उपस्थित कृषि विज्ञान केंद्र ने किसानों की खेती को अत्यधिक सुगम करने के लिए अत्याधुनिक ड्रोन निर्मित किया गया है।

समय की बर्बादी खत्म उत्पादन में होगी बढ़ोत्तरी

मिर्जापुर जनपद के बरकछा के बीएचयू में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से 10 लाख रुपये के खर्च से अत्याधुनिक ड्रोन तैयार किया गया है। ड्रोन तकनीक से केवल 15 मिनट में एक एकड़ भूमि पर खाद, कीटनाशक अथवा दवा का छिड़काव आसानी से कर सकते हैं। फसलों की पैदावार में बढ़ोत्तरी करने के लिये केंद्र सरकार निरंतर नई तकनीक जारी कर रही है। अत्याधुनिक ड्रोन समस्त तरह की कृषि हेतु लाभकारी है।
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किसानों के खर्च में कमी आएगी

किसान ड्रोन तकनीक का उपयोग करके नैनो यूरिया (Nano Urea) का भी छिड़काव कर सकते हैं। इससे किसानों की आमदनी में इजाफा होगा। कृषि विज्ञान केंद्र मुफ्त में किसानों को ड्रोन उपलब्ध कराएगा । इस ड्रोन के वजन की बात करें तो यह 14.5 किलो ग्राम का है। ड्रोन के नीचे एक बॉक्स बना रहता है। इस बॉक्स के अंदर कीटनाशक अथवा खाद रखा जा सकता है। कम जल खपत एवं कम खर्च में किसान खेतों में छिड़काव कर पाएंगे। इस तकनीक के इस्तेमाल से किसानों का खर्च भी काफी कम हो जाएगा।

ड्रोन से किया गया छिड़काव ज्यादा फायदेमंद होता है

कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष डॉ श्रीराम सिंह का कहना है, कि ड्रोन के माध्यम से किसान एक एकड़ भूमि में कीटनाशकों, वाटर सॉल्युबल उर्वरकों और पोषक तत्वों का फिलहाल कम समय के अंदर किसान छिड़काव कर पाएंगे। इसकी सहायता से उनके वक्त के साथ संसाधन भी बचेेंगे। ड्रोन तकनीक द्वारा ऊपर से छिड़काव किया जाता है, जो कि फसलों हेतु अत्यंत लाभकारी होता है। मैनुवल से अधिक ऊपर से छिड़काव लाभकारी होता है।

किसानों द्वारा नैनो यूरिया उपयोग किया जा सकता है

खेतों में छिड़काव हेतु किसान नैनो यूरिया (Nano Urea) का उपयोग कर सकते हैं। इफको द्वारा दानेदार खाद से इतर हटकर नैनो यूरिया तैयार किया है। एक बोतल नैनो यूरिया एक बोरी खाद के समरूप किसानों की फसलों की पैदावार में वृद्धि करने हेतु काम है। एक एकड़ भूमि के लिए पांच सौ एमएल की एक ही बोतल काफी है। नैनो यूरिया के 4 एमएल प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर फसलों में छिड़काव किया जा सकता है। ड्रोन तकनीक में इसी यूरिया का उपयोग कर सकते हैं। नैनो यूरिया पूर्णतय प्रदूषण से मुक्त है।