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गोवंश में कुपोषण से लगातार बाँझपन की समस्या बढ़ती जा रही है

गोवंश में कुपोषण से लगातार बाँझपन की समस्या बढ़ती जा रही है

पशुओं में कुपोषण की वजह से बांझपन की बीमारियां निरंतर बढ़ती जा रही हैं। खास कर गोवंश में देखी जा रही है। गोवंश में बांझपन के बढ़ते मामलों के का सबसे बड़ा कारण कुपोषण है। इसका मतलब है, कि पशुओं को पौष्टिक आहार नहीं मिल पा रहा है। इस गंभीर समस्या से किसानों के साथ-साथ पशुपालन से संबंधित समस्त संस्थाऐं भी काफी परेशान हैं। सरदार बल्लभभाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय वेटनरी कॉलेज के अधिष्ठाता डॉ राजीव सिंह ने बताया है, कि व्यस्क पशुओं में कम वजन व जननागों के अल्प विकास से पशुओं में प्रजनन क्षमता में कमी देखने को मिल रही है। जैसा कि उपरोक्त में बताया गया है, कि इसका मुख्य कारण कुपोषण है। इफ्को टोकियो जनरल इंश्योरेंस लिमिटेड के वित्तीय सहयोग से कृषि विश्व विद्यालय और पशुपालन विभाग द्वारा मेरठ के ग्राम बेहरामपुर मोरना ब्लॉक जानी खुर्द में निशुल्क पशु स्वास्थ्य शिविर का आयोजन कुलपति डॉ के.के. सिंह एवं पशुपालन विभाग के अपर निदेशक डॉ अरुण जादौन के निर्देश में हुआ है।

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इस उपलक्ष्य पर परियोजना के मार्ग दर्शक डॉ राजवीर सिंह ने कहा है, कि मादा पशुओं को संतुलित आहार के साथ-साथ प्रोटीन और खनिज मिश्रण जरूर देना चाहिए। जिसकी सहायता से उनकी गर्भधारण क्षमता बरकरार रहे। परियोजना प्रभारी डॉ अमित वर्मा का कहना है, कि पशुओं में खनिज तत्वों के अभाव की वजह से भूख ना लगना, बढ़वार एवं प्रजनन क्षमता में कमी जैसे समय पर गर्मी में ना आना, अविकसित संतानो की उत्पत्ति, दूध उत्पादन में कमी, एनीमिया इत्यादि समस्याऐं आ सकती हैं। बतादें, कि पशुओं को प्रतिदिन 30 - 50 ग्राम मिनरल मिक्सचर पाउडर पशु आहार के लिए जरूर देना चाहिए। पशु स्वास्थ्य शिविर में पशु चिकित्सा महाविद्यालय कॉलेज मेरठ के विशेषज्ञों इनमें डॉ. अमित वर्मा, डॉ अरविन्द सिंह, डॉ अजीत कुमार सिंह, डॉ विकास जायसवाल, डॉ प्रेमसागर मौर्या, डॉ आशुतोष त्रिपाठी और डॉ रमाकांत इत्यादि की टीम के द्वारा 157 पशुओं को कृमिनाशक, बाँझपन प्रबंधन, गर्भावस्था निदान, रक्त व गोबर की जाँच जैसी पशु चिकित्सा सेवाएं और तदानुसार मुफ्त दवाएं भी प्रदान की गईं। पशु चिकित्साधिकारी डॉ रिंकू नारायण एवं डॉ विभा सिंह ने पशुपालन के लिए सरकार की तरफ से दिए जाने वाले किसान क्रेडिट कार्ड तथा सब्सिड़ी योजनाओं के संबंध में जानकारी प्रदान की। प्रशांत कौशिक ग्राम प्रधान समेत अन्य ग्रामवासियों ने शिविर के आयोजन हेतु कृषि विवि की कोशिशों की सराहना करते हुए धन्यवाद व्यक्त किया।

बारिश के चलते बुंदेलखंड में एक महीने लेट हो गई खरीफ की फसलों की बुवाई

बारिश के चलते बुंदेलखंड में एक महीने लेट हो गई खरीफ की फसलों की बुवाई

झांसी। बुंदेलखंड के किसानों की समस्या कम होने की बजाय लगातार बढ़ती जा रहीं हैं। पहले कम बारिश के कारण बुवाई नहीं हो सकी, अब बारिश बंद न होने के चलते बुवाई लेट हो रहीं हैं। इस तरह बुंदेलखंड के किसानों के सामने बड़ी परेशानी खड़ी हो गई है। मौसम खुलने के 5-6 दिन बाद ही मूंग, अरहर, तिल, बाजरा और ज्वर जैसी फसलों की बुवाई शुरू होगी। लेकिन बुंदेलखंड में इन दिनों रोजाना बारिश हो रही है, जिससे बुवाई काफी पिछड़ रही है।

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बारिश से किसानों पर पड़ रही है दोहरी मार

- 15 जुलाई को क्षेत्र के कई हिस्सों में करीब 100 एमएम बारिश हुई, जिससे किसानों ने थोड़ी राहत की सांस ली और किसान खेतों में बुवाई की तैयारियों में जुट गए। लेकिन रोजाना बारिश होने के चलते खेतों में अत्यधिक नमी बन गई है, जिसके कारण खेतों को बुवाई के लिए तैयार होने में वक्त लगेगा। वहीं शुरुआत में कम बारिश के कारण बुवाई शुरू नहीं हुई थी। इस तरह किसानों को इस बार दोहरी मार झेलनी पड़ रही है।

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नमी कम होने पर ही खेत मे डालें बीज

- खेत में फसल बोने के लिए जमीन में कुछ हल्का ताव जरूरी है। लेकिन यहां रोजाना हो रही बारिश से खेतों में लगातार नमी बढ़ रही है। नमी युक्त खेत में बीज डालने पर वह बीज अंकुरित नहीं होगा, बल्कि खेत में ही सड़ जाएगा। इसमें अंकुरित होने की क्षमता कम होगी। बारिश रुकने के बाद खेत में नमी कम होने पर ही किसान बुवाई कर पाएंगे।

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रबी की फसल में हो सकती है देरी

- खरीफ की फसलों की बुवाई लेट होने का असर रबी की फसलों पर भी पड़ता दिखाई दे रहा है। जब खरीफ की फसलें लेट होंगी, तो जाहिर सी बात है कि आगामी रबी की फसल में भी देरी हो सकती है।
मोटे अनाज से बने चिप्स और नूडल्स की अब होगी पूरे देश भर में सप्लाई; बुंदेलखंड के किसानों के लिए खुशखबरी

मोटे अनाज से बने चिप्स और नूडल्स की अब होगी पूरे देश भर में सप्लाई; बुंदेलखंड के किसानों के लिए खुशखबरी

बुंदेलखंड एक ऐसी जगह है जिसका आप कहीं भी नाम पढ़ते हैं तो आपके जहन में एक तस्वीर उभर आती है. और यह तस्वीर खूबसूरत नहीं होती है क्योंकि बुंदेलखंड का नाम सुनते ही पानी की किल्लत से भरी हुई जगह और फटे हाल किसानों की तस्वीरें नजर के सामने आने लगती हैं. लेकिन आपको बता दें कि यह बातें बेहद पुरानी हो गई है और अब बुंदेलखंड के किसानों के भाग बदलने वाले हैं क्योंकि अब यहां के किसानों ने मोटे अनाज से तरह-तरह के फूड आइटम बनाने और उन्हें बेचने का फैसला लिया है.  साथ ही सरकार की तरफ से भी इस कदम को प्रोत्साहित किया जाएगा. मीडिया से आ रही रिपोर्ट के अनुसार बुंदेलखंड के किसान अब सिर्फ मोटे अनाज की खेती पर ही निर्भर नहीं रहेंगे बल्कि उस अनाज की प्रोसेसिंग कर उससे ब्रेड,  नूडल, और नान खटाई जैसी चीजें बनाकर देश भर में बिक्री करेंगे जिससे न सिर्फ उनकी इनकम बढ़ेगी बल्कि लोगों को भी पोष्टिक भोजन कम कीमत पर मिलना शुरू होगा. इसके सेवन से इंसान तंदरुस्त और निरोग रहता है. सभी मोटे अनाजों पर विश्वविद्यालय में अभी शोध चल रहा है और उसके बाद ही इस पर आगे की प्रोसेसिंग शुरू की जाएगी. हम सभी जानते हैं कि लगभग 40 से 50 साल पहले हमारे पूर्वज मोटे अनाजों की बढ़-चढ़कर खेती करते थे और उन्हें दिनचर्या में इस्तेमाल भी किया जाता था लेकिन जैसे ही हरित क्रांति आई इन सभी मोटे अनाजों की जगह है और चावल जैसी फसलों ने ले ली. एक समय ऐसा आ गया कि लोगों की थाली से यह मोटा अनाज पूरी तरह से गायब ही हो गया और लोगों ने इसे पूरी तरह से काम बंद कर दिया था. लेकिन एक बार फिर से लोगों को मोटे अनाज में मिलने वाले वाइट अमीन और पोषक तत्वों के बारे में जानकारी मिलनी शुरू हो गई है और उन्हें यह भी पता चल गया है कि इसके सेवन से व्यक्ति तंदुरुस्त और निरोगी रहता है. इसीलिए एक बार फिर से मोटे अनाज की तरफ लोगों का रुझान आया है

किसान की आमदनी में होगा बढ़ावा

केंद्र सरकार भी एक बार फिर से मोटे अनाज की खेती के लिए पूरे देश भर में किसानों को प्रोत्साहित कर रही है और बहुत जगह पर मोटे अनाज के बीज किसानों को मुफ्त में मुहैया करवाए जा रहे हैं. साथ इससे जुड़ी हुई कई तरह की स्कीम भी केंद्र सरकार लागू करने में लगी हुई है. ये भी पढ़े: मिलेट्स की खेती करने पर कैसे मिली एक अकाउंटेंट को देश दुनिया में पहचान कोर्णाक आर्मी लोगों को समझ में आ गया कि मोटे अनाज में रोगों से लड़ने की क्षमता बहुत ज्यादा है और अपने भोजन में इनका सेवन करना बेहद जरूरी है. इसके अलावा किसानों के पक्ष से देखा जाए तो इस अंदाज में सिंचाई के लिए ज्यादा पानी की जरूरत भी नहीं पड़ती है इसलिए बुंदेलखंड राज्य इसके लिए एकदम सही है.  यहां पर किसान फूड प्रोसेसिंग करके अपनी आमदनी में अच्छा-खासा इजाफा कर सकते हैं. कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग के प्राध्यापक डा.कमालुद्दीन ने भी माना है कि मोटे अनाज की खेती बुंदेलखंड के किसानों के लिए एक नई क्रांति लेकर आएगी और इससे उनकी आमदनी में अच्छा खासा मुनाफा होने वाला  है.
सिंचाई समस्या पर राज्य सरकार का प्रहार, इस योजना के तहत 80% प्रतिशत अनुदान देगी सरकार

सिंचाई समस्या पर राज्य सरकार का प्रहार, इस योजना के तहत 80% प्रतिशत अनुदान देगी सरकार

बिहार सरकार की तरफ से सामूहिक नलकूप योजना के अंतर्गत कृषकों को 80 प्रतिशत अनुदान देने का निर्णय लिया गया है। इसका मतलब यह है, कि सामूहिक नलकूप स्थापित करने के लिए सरकार राज्य के किसानों को 80 प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है। बिहार एक ऐसा राज्य है, जहां पर कुछ जनपद बारिश की वजह से प्रतिवर्ष बाढ़ से प्रभावित हो जाते हैं। इन जनपदों में ज्यादा बारिश होने से फसलें चौपट हो जाती हैं। साथ ही, कुछ जनपद ऐसे भी हैं, जहां पर जल की समस्या सदैव बनी रहती है। ऐसी स्थिति में किसान भाइयों को सिंचाई करने के लिए ट्यूबवेल की सहायता लेनी पड़ती है। परंतु, अब इन जनपदों में किसानों को चिंतित होने की कोई आवश्यकता नहीं है। राज्य सरकार द्वारा सिंचाई की परेशानी को दूर करने के लिए सामूहिक नलकूप योजना जारी की गई है। इस योजना के अंतर्गत सरकार किसानों को अच्छा-खासा अनुदान प्रदान कर रही है।

बिहार के इन जिलों को वर्षा के समय बाढ़ का सामना करना पड़ता है

दरअसल, उत्तरी बिहार के विभिन्न जनपद प्रतिवर्ष बारिश के मौसम में बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं। इससे खेतों में खड़ी फसल बाढ़ के पानी के साथ बह जाती है, जिससे किसान भाइयों को करोड़ों रुपये की हानि होती है। साथ ही, दक्षिणी बिहार के गया, जहानाबाद, औरंगाबाद और नवादा समेत विभिन्न जनपदों में उत्तरी बिहार के तुलनात्मक कम बरसात होती है। इससे इन जनपदों में रबी के साथ- साथ खरीफ फसल के दौरान भी जल की समस्या बनी रहती है। ऐसी स्थिति में किसान फसलों की वक्त पर सिंचाई नहीं कर पाते हैं।

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किसानों को बिहार सरकार दे रही अच्छा-खासा अनुदान

बिहार राज्य के अंदर सिंचाई के साधनों हेतु जूझ रहे कृषकों के लिए एक खुशखबरी है। बिहार सरकार की तरफ से सामूहिक नलकूप योजना के अंतर्गत किसानों को 80 प्रतिशत अनुदान देने का ऐलान किया गया है। इसका अर्थ यह है, कि सामूहिक नलकूप की स्थापना करने पर किसान भाइयों को सरकार से 80 प्रतिशत अनुदान मिलेगा। अब ऐसी स्थिति में किसान भाई समूह बनाकर इस योजना का फायदा उठा सकते हैं।

पानी से जुड़ी समस्या पर सरकार का प्रहार

दरअसल, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने राज्य में सूक्ष्म सिंचाई को प्रोत्साहन देने के लिए इस योजना को जारी किया है। सरकार का यह मानना है, कि इस विधि से सिंचाई करने पर जल की काफी बचत होगी और पौधों को भरपूर मात्रा में जल मिल सकेगा। अब ऐसे में जो किसान भाई ड्रिप इरिगेशन एवं मिनी स्प्रिंकलर विधि द्वारा अपनी फसल की सिंचाई करना चाहते हैं, वह समूह बनाकर अनुदान का लाभ उठा सकते हैं।

आवेदन कर योजना का लाभ उठाएं

किसान भाई अनुदान से संबंधित अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो वह कृषि विभाग की वेबसाइट पर विजिट कर सकते हैं। साथ ही, अनुदान का लाभ उठाने वाले समूह उद्यान निदेशालय की वेबसाइट http://www.horticulture.gov.in पर जाकर आवेदन भी कर सकते हैं।
ब्लूकॉन फूल की खेती से बुंदेलखंड के किसानों को अच्छा-खासा लाभ हो रहा है

ब्लूकॉन फूल की खेती से बुंदेलखंड के किसानों को अच्छा-खासा लाभ हो रहा है

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि कृषि विभाग के उपनिदेशक विनय कुमार यादव के अनुसार ब्लूकॉन की नर्सरी नवंबर महीने में तैयार की जाती है। साथ ही, रोपाई करने के तीन माह के पश्चात पौधों पर फूल आने लगते हैं। ब्लूकॉन के फूल से आयुर्वेदिक औषधियां निर्मित की जाती हैं। यही कारण है, कि ब्लूकॉन के फूल को दवा कंपनियां हाथों-हाथ खरीद लेती हैं। बुंदेलखंड का नाम कान में पड़ते ही लोगों के दिमाग में सबसे पहले सूखाग्रस्त क्षेत्रों की तस्वीर उभरकर सामने आती है। क्योंकि बुदेलखंड क्षेत्रों में पानी की काफी ज्यादा परेशानी है। बारिश भी उत्तर प्रदेश के बाकी जिलों की अपेक्षा यहां पर बेहद कम होती है। ऐसी स्थिति में यहां के किसान अधिकांश मक्का एवं बाजरा जैसे मोटे अनाज की ही खेती करते हैं। इससे किसानों की काफी कम आमदनी होती है। परंतु, अब यहां के किसान भी अन्य दूसरे राज्यों के किसानों की भांति ही आधुनिक फसलों की खेती कर रहे हैं। यहां के कृषक अब बागवानी में जरूरत से कुछ ज्यादा ही रूचि ले रहे हैं। इससे किसान भाइयों की आमदनी बढ़ गई है।

बुंदेलखंड के किसान कर रहे ब्लूकॉन फूल की खेती

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि बुदेलखंड इलाकों के कृषक अब ब्लूकॉन फूल की खेती कर रहे हैं। यह एक प्रकार का विदेशी फूल होता है। इसकी खेती केवल जर्मनी में की जाती है। परंतु, अब बुंदेलखंड इलाकों में भी कृषकों ने ब्लूकॉन की खेती चालू कर दी है। इस फूल की सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि इसे सिंचाई की बहुत कम जरूरत पड़ती है। मतलब कि इसे सूखाग्रस्त क्षेत्र में भी उगाया जा सकता है। यही कारण है, कि जर्मनी के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में ब्लूकॉन को उगाया जाता है।

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ब्लूकॉन के फूल बेचकर 9 लाख रुपये तक की आय कर सकते हैं

विशेष बात यह है, कि यदि आप एक बीघे में इसकी खेती करते हैं, तो आप प्रतिदिन 15 किलो तक आसानी से फूल तोड़ सकते हैं। मतलब कि आप एक बीघे भूमि से प्रतिदिन 30 हजार रुपये की आमदनी कर सकते हैं। इस प्रकार किसान भाई फूल बेचकर प्रति माह 9 लाख रुपये कमा सकते हैं।

ब्लूकॉन का फूल 2000 रुपए प्रति किलो मिलता है

दरअसल, फिलहाल बुंदेलखंड और झांसी में भी इसकी खेती को प्रोत्साहन देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार प्रयास कर रही है। विशेषज्ञों की मानें तो यहां की जलवायु ब्लूकॉन फूल की खेती के लिए अनुकूल है। साथ ही, कृषि विभाग इन फूलों की नर्सरी तैयार कर रहा है। सरकार किसानों को इसकी खेती करने के लिए वितरित कर रही है। बाजार के अंदर ब्लूकॉन का फूल 2000 रुपए प्रति किलो मिलता है।