कपास की खेती भारत में बड़े पैमाने पर की जाती है। कपास को नकदी फसल के रूप में भी जाना जाता है। कपास की खेती ज्यादातर बारिश और खरीफ के मौसम में की जाती है। कपास की खेती के लिए काली मिट्टी को उपयुक्त माना जाता है। इस फसल का काफी अच्छा प्रभाव हमारे देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है, क्योंकि यह एक नकदी फसल है। कपास की कुछ उन्नत किस्में भी हैं ,जिनका उत्पादन कर किसान मुनाफा कमा सकता है।
यह क़िस्म प्रभात सीड की बेस्ट वैरायटी में से एक है। इस किस्म की बुवाई सिंचित और असिंचित दोनों क्षेत्रों में की जा सकती है। यह किस्म कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगना और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में ज्यादातर की जाती है। इस किस्म के पौधे ज्यादातर लम्बे और फैले हुए होते है। इस बीज की बुवाई कर किसान एक एकड़ जमीन में 20 -25 क्विंटल की पैदावार प्राप्त कर सकता है। यह फसल 160 -170 दिन में पककर तैयार हो जाती है।
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कपास की यह वैरायटी इंडो अमेरिकन की वेरायटीज में टॉप पर आती है। कपास की इस किस्म की खेती गुजरात और मध्य प्रदेश में की जाती है। इसकी खेती के लिए बहुत ही हल्की मिट्टी वाली भूमि की आवश्यकता रहती है। इस किस्म में कपास के बोल का वजन 7 -10 ग्राम होता है। कपास की इस किस्म में 45 -48 दिन फूल आना शुरू हो जाते है। यह किस्म लगभग 155 -165 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म में आने वाले फूल का रंग क्रीमी होता है। Indo US 936, Indo US 955 की उत्पादन क्षमता प्रति एकड़ 15 -20 क्विंटल है।
यह किस्म सिंचित और असिंचित दोनों क्षेत्रों में उगाई जा सकती है। इस किस्म में कपास के पौधे की लम्बाई 145 से 160 सेंटीमीटर होती है। कपास की इस किस्म में बनने वाली बोल का वजन 6 -10 ग्राम होता है। Ajeet 177BG II में अच्छे किस्म के रेशें होते हैं। कपास की इस किस्म में पत्ती मोड़क कीड़े लगने की भी बहुत कम संभावनाएं होती हैं। यह फसल 145 -160 दिन के अंदर पककर तैयार हो जाती है। प्रति एकड़ में इसकी उत्पादन क्षमता 22 -25 क्विंटल होती है।
इस किस्म का ज्यादातर उत्पादन राजस्थान, महाराष्ट्रा, कर्नाटक, तेलंगना, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु में होता है। यह मध्यम काल अवधि में पकने वाली फसल है। कपास की इस किस्म का वजन भी काफी अच्छा रहता है। प्रति एकड़ में इस फसल की पैदावार 20 -25 क्विंटल के आस पास हो जाती है।
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कपास की यह किस्म हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र,तेलंगाना,गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में ज्यादातर उगाई जाती है। चूसक कीड़ों के लिए यह किस्म सहिष्णु होती है। कपास की इस किस्म के पौधे हरे भरे होते है। रासी नियो की उत्पादन क्षमता प्रति एकड़ 20 -22 क्विंटल होती है। इस किस्म को हल्की और मध्यम भूमि के लिए काफी उपयुक्त माना गया है।
किसान भाई कृषि के लिए विभिन्न कृषि यंत्रों अथवा उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं। कृषि उपकरण खेतीबाड़ी के बहुत सारे कार्यों को कम लागत और कम वक्त में पूरा करने में सहयोग करते हैं।
खेती के कार्यों को पूरा करने के लिए किसानों को मजदूर और मजदूरी लागत पूरी करने के लिए विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
खेती के कार्यों में कृषि मशीनें भिन्न-भिन्न भूमिका निभाती हैं। इनमें एक पावर टिलर मशीन भी शम्मिलित है, जो खेत की मृदा को तैयार करने, बीज बोने और बुवाई करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
अगर आप भी खेती के लिए एक शक्तिशाली पावर टिलर मशीन खरीदने की योजना बना रहें हैं, तो आपके लिए ग्रीव्स कॉटन एसटी960 पावर टिलर काफी बेहतरीन विकल्प हो सकता है।
ग्रीव्स कॉटन एसटी960 पावर टिलर में 744 सीसी क्षमता वाला सिंगल सिलेंडर में Water Cooled, Horizontal, 4 Stroke, Direct Injection, Diesel इंजन दिया गया है, जो 12 एचपी उत्पन्न करता है।
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कंपनी के इस पावर टिलर में Wet, Oil Bath टाइप एयर फिल्टर आता है, जो धूल-मृदा से इंजन को सुरक्षित रखता है। इस ग्रीव्स कॉटन पावर टिलर में आपको 11 लीटर क्षमता वाला फ्यूल टैंक देखने को मिल जाता है।
इस पावर टिलर मशीन का समकुल भार 480 किलोग्राम है। आप इस मशीन के साथ 1.2 से 1.5 घंटे तक बगैर किसी रुकावट के कार्य कर सकते हैं। इस पावर टिलर मशीन के इंजन से 2000 आरपीएम उत्पन्न होता है।
ग्रीव्स कॉटन एसटी960 पावर टिलर को 2910 MM लंबाई और 920 MM चौड़ाई के साथ 1200 MM ऊंचाई में तैयार किया है। इसका ग्राउंड क्लीयरेंस 210 MM निर्धारित किया गया है।
ग्रीव्स कॉटन एसटी960 पावर टिलर में 6 Forward + 2 Reverse गियर वाला Combination of ding & Constant Mesh गियरबॉक्स प्रदान किया गया है।
यह पावर टिलर काफी शानदार ग्रिप वाले हैंडल के साथ आता है, जिससे घंटो खेत में निरंतर काम करने के बाद भी किसान को कम से कम थकान का अहसास होता है।
ग्रीव्स कॉटन के इस पावर टिलर के साथ आप 600 MM चौड़ाई और 150 MM गहराई तक जुताई कर सकते हैं। इस पावर टिलर में आपको Hand Operated ब्रेक्स देखने को मिल जाते हैं।
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कंपनी ने अपने इस पावर टिलर में 6-12, (6-Ply Rating) टायर दिए है, जो हर तरह के मौसम में काम कर सकते हैं।
भारत में ग्रीव्स कॉटन एसटी960 पावर टिलर की कीमत 1.72 लाख से 2.25 लाख रुपये निर्धारित की गई है। इस पावर टिलर के साथ आप जुताई, पोखर बनाना, बुवाई, निराई, सिंचाई, छिड़काव और ढुलाई जैसे कार्यों को कर सकते हैं।
सिरसा।
किसानों के लिए वरदान बनी कपास की खेती को गुलाबी सुंडी (Pink bollworm) का खतरा हो सकता है। हरियाणा राज्य में कृषि विभाग ने इसके लिए अलर्ट जारी किया है। सरकार ने कपास की खेती करने वाले सभी किसान भाईयों को गुलाबी सुंडी से कपास की फसल को बचाने के लिए निर्देश भी दिए हैं। पिछले दो साल से कपास की खेती किसानों के लिए सफेद सोना साबित हुई है। कपास ने किसानों को अच्छा मुनाफा दिया है। जिसके चलते किसानों में लगातार कपास की खेती के प्रति रुचि बढ़ रही है। अकेले सिरसा जिले में 2 लाख 10 हजार हेक्टेयर भूमि पर कपास की खेती की जा रही है।
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- कपास की कलियों और बीजकोषों को क्षति का कारण गुलाबी सुंडी (इल्ली) पेक्टिनोफोरा गॉसिपिएला का लार्वा है। वयस्कों का रंग और आकार अलग-अलग होता है लेकिन आम तौर पर वे चित्तीदार धूसर से धूसर-भूरे होते हैं। वे दिखने में लंबे पतले और भूरे से होते हैं। अंडाकार पंख झालरदार होते हैं। करीब 4 से 5 दिन में लार्वा अंडे से बाहर निकल आते हैं। और तुरंत ही कपास की कलियों या बीजकोष में घुस जाते हैं। और फिर करीब 12 से 14 दिन तक फसल को खाता है।
1- जैविक नियंत्रण के अनुसार पेक्टिनोफोरा गॉसिपिएला से प्राप्त सेक्स फेरोमोन्स का संक्रमित खेत में छिड़काव करने से गुलाबी सुंडी की क्षमता और तादात कम होती है।
2- रासायनिक नियंत्रण के अनुसार इन गुलाबी पतंगों को मारने के लिए क्लोरपाइरिफास, एस्फेंवैलेरेट या इंडोक्साकार्ब के कीटनाशक फार्मूलेशन का पत्तियों पर छिड़काव किया जा सकता है।
3- कीट के लक्षणों को पहचानने के लिए नियमित कपास के पौधों पर निगरानी रखें।
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4- कपास की जल्द परिवक्व होने वाली वैरायटी का उपयोग करें, ताकि सीजन शुरू होने से पहले ही फसल की उपज मिल जाए। आमतौर पर गुलाबी सुंडी सीजन में ज्यादा जोर पकड़ती है।
5- कीटनाशक दवाओं का सावधानी से प्रयोग करें, ताकि कोई नुकसान न हो।
6- कटाई के तुरंत बाद पौधों को नष्ट कर देना चाहिए।
7- ध्यान रहे कि कभी भी दो रासायनिक पदार्थों को मिलाकर छिड़काव न करें। इससे फसल को नुकसान संभावना बढ़ जाती है। 8- अधिकांश तौर पर नीम आधारित दवाओं का इस्तेमाल करें।
------- लोकेन्द्र नरवार
एक समय विश्व व्यापार में होने वाले निर्यात में भारतीय कृषि की भूमिका चीन के बाद में दूसरे स्थान पर हुआ करती थी। हालांकि अभी भी कुछ फसलों के उत्पादन और निर्यात में भारत सर्वश्रेष्ठ स्थान पर है, परंतु अन्य फसलों में उत्पादकता बढ़ाने के लिए पिछले कुछ समय से भारतीय कृषि वैज्ञानिकों और विदेश के कई बड़े कृषि विश्वविद्यालयों की सहायता से आनुवांशिकरूप से संशोधित फसलें तैयार की जा रही है। इस प्रकार तैयार फसलों को 'जेनेटिकली मोडिफाइड क्रॉप्स' या 'जीएम फसल' (Genetically Modified Crops) भी कहा जाता है।
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इसके अलावा अलग-अलग रोगों के साथ ही खरपतवार को नष्ट करने के लिए इस्तेमाल में आने वाले रासायनिक उर्वरकों के खिलाफ भी प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर सकती है। इस प्रकार तैयार फसलों में पोषक तत्वों की मात्रा तो अधिक मिलती ही है, साथ ही रासायनिक उर्वरकों का भी कम इस्तेमाल करना पड़ता है, जिससे खेत की मृदा की गुणवत्ता भी बरकरार रहती है। यदि ऐसी फसलों को पशुओं को खिलाया जाए, तो पशुओं की प्रतिरक्षा प्रणाली भी मजबूत होती है और उनकी वृद्धि को भी बढ़ाया जा सकता है, जिससे पशुओं से अधिक मांस, अंडे और दूध प्राप्त किया जा सकता है। यदि बात करें पर्यावरणीय फायदों की, तो यह फसलें मिट्टी की उर्वरता को तो बढ़ाती ही है, साथ ही पानी के काफी कम इस्तेमाल में भी आसानी से बड़ी हो सकती है, इसीलिए रेगिस्तानी और कम बारिश होने वाले क्षेत्रों में इन फसलों का उत्पादन आसानी से किया जा सकता है। जेनेटिकली मोडिफाइड फसलों का इस्तेमाल प्राकृतिक खरपतवार नाशक के रूप में भी किया जा सकता है क्योंकि bt-cotton जैसी फ़सल में ऐसे बैक्टीरिया और वायरस की जीन का इस्तेमाल किया जाता है, जो कि पौधे के आसपास उगने वाली खरपतवार को पूरी तरीके से नष्ट कर सकती है। यदि बात करें किसानों के फायदे की तो इन फसलों की कम लागत पर अच्छी पैदावार की जा सकती है, क्योंकि कम सिंचाई और मृदा की कम देखभाल की वजह से खर्चे कम होने से से किसान का मुनाफा बढ़ने के साथ ही बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए भोजन की मांग की की पूर्ति भी सही समय पर की जा सकती है।
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अरुणाचल प्रदेश में कुछ किसानों के द्वारा सोयाबीन की अनुवांशिक रूप से संशोधित फसल का गैर कानूनी रूप से इस्तेमाल किया जा रहा था, हालांकि इसके इस्तेमाल से किसानों की आमदनी तो बढ़ी परंतु पूरी जांच पड़ताल ना करने और फसल को तैयार करने वाली कम्पनी के द्वारा भारतीय क्षेत्रों को ध्यान में रखकर संशोधन ना करने की वजह से उस क्षेत्र में पाई जाने वाली तितली की एक प्रजाति पूरी तरीके से खत्म हो चुकी है।
ऐसा ही एक और उदाहरण गोल्डन चावल के रूप में भी देखा जा सकता है। भारत में पूरी तरीके से प्रतिबंधित चावल की अनुवांशिक रूप से संशोधित यह फसल महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के कुछ किसानों के द्वारा गैरकानूनी रूप से उत्पादित की जा रही है।
केवल आमदनी बढ़ाने और जल्दी पक कर तैयार होने जैसे फायदों को ही ध्यान में रखते हुए इस फसल के द्वारा तैयार चावल के इस्तेमाल से होने वाले नुकसान पर कंपनी और किसानों के द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया गया, जिसकी वजह से इसे खाने वाले लोगों में अंधापन और शरीर में कई दूसरी बीमारियों के अलावा मौत होने जैसी खबरें भी सामने आई है।
इसीलिए आशा करते हैं कि हमारे किसान भाई ऊपर बताई गई दो घटनाओं से सीख ले पाएंगे और कभी भी गैरकानूनी रूप से अलग-अलग कंपनी के द्वारा बेचे जाने वाली जेनेटिकली मोडिफाइड फसलों का इस्तेमाल नहीं करेंगे।
आशा करते है कि किसान भाइयों को Merikheti.com के द्वारा आनुवांशिक रूप से संशोधन कर प्राप्त की गई फसलों के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी और भविष्य में बीटी-कॉटन और सरकार से अनुमति प्राप्त ऐसी फसलों का उत्पादन कर आप भी कम लागत पर अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे।
बारिश के बाद से पर्यावरण में तेजी से बदलाव देखने को मिला है, जिसकी वजह से फसलों पर तरह-तरह के कीट लग रहे हैं और उन्हें जमकर नुकसान हो रहा है। इस तरह का कीट का मामला सामने आया है जो फसलों का रस चूस लेता है और उन्हें सुखा देता है। ऐसे में भले ही अब बारिश का खतरा टल गया हो, लेकिन कीट लगने की वजह से उत्पादन पर असर पड़ने की आशंकाएं बढ़ गई हैं। पिछले साल कपास का रेट किसानों को अच्छा मिला था इसलिए महाराष्ट्र के कई इलाकों में कपास की जमकर बुवाई की गई है। ऐसे में किसान सोच रहे थे कि उत्पादन बढ़िया होगा तो उनके हालात सुधर जाएंगे, लेकिन कीटों के हमले के चलते ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा है। किसानों का कहना है कि जब फसलें छोटी थीं जब कीटों ने हमला नहीं किया, बल्कि जैसे-जैसे फसलें बढ़ती गईं कीटों ने हमला करना शुरू कर दिया।
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राज्य में जून के महीने में बिल्कुल बारिश नहीं हुई थी। इसके बाद जुलाई के महीने से लेकर 15 अगस्त तक मूसलाधार बारिश हुई। आलम यह है कि इस बारिश के चलते कई खेतों में जलभराव हो गया। अब जहां जलभराव हुआ है वहां फफूंद या कवक रोग फैल रहे हैं, जिसके चलते फसलें बढ़ नहीं रही हैं। पहले बारिश का असर फसलों पर हुआ था, लेकिन अब बदलते पर्यावरण का असर साफ दिख रहा है। जिन क्षेत्रों में पानी भरा हुआ है वहां रस चूसने वाले कीड़े फसलों पर कहर बरपा रहे हैं। ये कीड़े रस चूस रहे हैं जिसके चलते कपास की पत्तियां लाल होकर गिर जाती हैं। इस कपास की बुवाई मई में की गई थी, जो अब अपने शबाब पर थी, लेकिन संक्रमण इतना खतरनाक है कि फूल मर रहे हैं। अब किसानों ने भी इन कीड़ों से निपटने के लिए कमर कस ली है और उनके द्वारा कैमिकल और उर्वरकों का उपयोग किया जा रहा है, ताकि इन कीड़ों को खत्म किया जा सके। लेकिन कामयाबी पूरी तरह इसमें भी अब तक नहीं मिल पाई है। किसानों को कीटों से कैसे लड़ा जाए इसके लेकर बहुत थोड़ी जानकारी होती है। ऐसे में अगर कृषि विभाग अपनी तरफ से कोई पहल करे तो राज्य के किसानों का भला हो जाएगा और वे अपनी फसलों को बचा पाएंगे।
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