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जम्मू-कश्मीर सरकार राज्य में सेब की खेती पर अनुदान प्रदान कर रही है

जम्मू-कश्मीर सरकार राज्य में सेब की खेती पर अनुदान प्रदान कर रही है

जम्मू कश्मीर पूरी दुनिया में अपने सेब के लिए मशहूर है। जम्मू कश्मीर के लाखों लोग सेब की खेती के जरिए ही अपना जीवन यापन करते हैं। सेब की खेती करने वाले किसान भाइयों के लिए यह बड़े काम की खबर साबित होने वाली है। हमारे भारत में ही नहीं विदेशों में भी सेब को काफी अधिक पसंद किया जाता है। भारत में सेब की खेती कश्मीर राज्य में होती है। कश्मीर के मूल निवासी किसानों की आमदनी का सबसे बड़ा जरिया सेब की खेती है। कश्मीर का सेब दुनिया भर में मशहूर है। जम्मू कश्मीर में लगभग 25 लाख लोगों को सेब की खेती से रोजगार के अवसर मिल रहे हैं। हालांकि, इस वर्ष हुई प्रचंड बरसात की वजह से सेब की फसल को काफी क्षति पहुँची है। जिसको देखते हुए सरकार ने किसानों के फायदे हेतु एक कदम उठाया है। अब सरकार सेब की खेती करने के लिए अनुदान प्रदान करेगी। खबरों के अनुसार, जम्मू और कश्मीर भारत में कुल उत्पादित सेब के तकरीबन 80 प्रतिशत हिस्से में भागीदारी रखता है। सेब की खेती से प्रदेश को लगभग 1500 करोड़ रुपये की आमदनी अर्जित होती है। कश्मीर के कुपवाड़ा, गांदरबल, शोपियां, अनंतनाग, श्रीनगर, बडगाम और बारामुला जनपद में बड़े पैमाने पर सेब की खेती की जाती है।

सेब की विभिन्न किस्मों को मंगाकर भी उत्पादन किया जाएगा

जम्मू-कश्मीर प्रशासन और हॉर्टिकल्चर विभाग ने स्थितियों को ध्यान में रखते हुए राज्य उच्च घनत्व वृक्षारोपण पर बल दिया है। इस वजह से राज्य के कृषकों की आमदनी में इजाफा होने की संभावना है। राज्य सरकार के इस उपयोग के दौरान यूरोप के देशों से सेब की भिन्न-भिन्न प्रजातियों को मंगा कर लगाया जाएगा। सेब की नवीन किस्मों के वृक्षारोपण के लिए जम्मू-कश्मीर हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट कृषकों को 50 प्रतिशत तक की सब्सिड़ी देगी। इसके अतिरिक्त हॉर्टिकल्चर विभाग राज्य के किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए खेती से जुड़ी तकनीकी जानकारियां भी प्रदान कर रहा है। यह भी पढ़ें: कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट द्वारा विकसित सेब की किस्म से पंजाब में होगी सेब की खेती

किसान भाइयों की आर्थिक स्थिति सशक्त बनेगी

अधिकारियों का कहना है, कि इस कदम से सेब के उत्पादन के साथ-साथ किसान भाइयों की आर्थिक हालत भी सशक्त होगी। हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट के मुताबिक, बेहद जल्द ही नए किस्म के सेब को उपलब्ध करा दिया जाएगा।

हाई डेंसिटी एप्पल प्लांटेशन को लेकर अनुदान दिया जा रहा है

कश्मीर में हाई डेंसिटी एप्पल प्लांटेशन के चलते किसानों में दिलचस्पी बढ़ी है। साथ ही, कश्मीर में फिलहाल जगह-जगह पर रिवायती सेब के पेड़ों के स्थान पर इसी हाई डेंसिटी प्लांटेशन में दिलचस्पी दिखा रहे हैं, जिसमें जम्मू कश्मीर हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट की ओर से 50% प्रतिशत का अनुदान भी किसानों को इस नई तकनीक के अंतर्गत सेब उगाने के लिए दिया जा रहा है। उसके साथ-साथ हॉर्टिकल्चर डिपार्मेंट किसानों को उत्साहित करने के लिए हर प्रकार की तकनीकी जानकारियां भी किसानों के खेतों तक पहुंचा रही है। यह भी पढ़ें: सेब की फसल इस कारण से हुई प्रभावित, राज्य के हजारों किसानों को नुकसान

युवा किसानों की भी दिलचस्पी बढ़ रही है

अब कश्मीर में पढ़े-लिखे युवा भी खेती की तरफ रुचि दिखाने लगे हैं। साथ ही, हाई डेंसिटी एप्पल प्लांटेशन उनके लिए रोजगार का साधन होने के साथ-साथ आमदनी का बेहतरीन माध्यम बनता जा रहा है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि कश्मीरी सेब की मांग भारत के समेत संपूर्ण विश्व में है। इसी मिठास एवं रसीलेपन की वजह इसकी मांग संपूर्ण विश्व में है। अब ऐसी स्थिति में यह कश्मीरी लोगों के लिए आमदनी का एक बेहतरीन विकल्प साबित हो सकता है।
कश्मीर में हुई पहली ऑर्गेनिक मार्केट की शुरुआत, पौष्टिक सब्जियां खरीदने के लिए जुट रही है भारी भीड़

कश्मीर में हुई पहली ऑर्गेनिक मार्केट की शुरुआत, पौष्टिक सब्जियां खरीदने के लिए जुट रही है भारी भीड़

ऑर्गेनिक मार्केट के शुरुआत के ही दिनों में लोगों की काफी भीड़ यहां जुटने लगी है. आश्चर्य ये है कि बाजार में बिक्री शुरू होने के कुछ घंटों में ही काउंटर खाली हो जा रहे हैं. श्रीनगर: हर जगह इस समय जैविक खाद्य पदार्थ या आम भाषा में कहें तो ऑर्गेनिक फूड (Organic Food) की मांग लगातार बढ़ती जा रही है. इसी कारण कश्मीर कृषि विभाग ने ऑर्गेनिक फूड की मांग को देखते हुए श्रीनगर में ऑर्गेनिक बाजार की शुरुआत की है, जिसमें सिर्फ ऑर्गेनिक सब्जियां और फल बेचे जा रहे हैं. यह बाजार कृषि कार्यालय में लगाया जा रहा है और शुरुआत के ही दिनों में यहाँ लोगों की भीड़ जुटने लगी है. आश्चर्य की बात यह है कि बाजार में बिक्री शुरू होने के कुछ घंटों के अंदर ही काउंटर खाली हो जाते हैं.

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क्रेता फैसल अली कहते हैं कि हमें यहाँ अब पुराने जमाने के जैसा अनुभव होत्ता है . बिना किसी खाद और कीटनाशक का भोजन. हम यहाँ पहली बार आए हैं और यह बजार और भी विकसित होगा इसकी हम उम्मीद कर रहे हैं.

साधारण खेत को ऑर्गेनिक बनाने में लगता है 3 साल का समय

कश्मीर के कृषि कहते हैं कि हमने तीन साल पहले खेतो को ऑर्गेनिक करने का कार्यक्रम शुरू किया था. उन्होंने बताया कि किसी भी साधारण खेत को ऑर्गेनिक रूप में बदलने के लिए लगभग तीन साल का समय लग जाता है तब जा कर चौथे वर्ष में उस खेत को ऑर्गेनिक माना जाता है.

ऑर्गेनिक खेती से किसानों को मिल रहा है बेहतर लाभ

किसान जावेद अली कहते हैं कि हम फसलों को उगाने के लिए किसी भी तरह का केमिकल, फर्टिलायजर उपयोग नहीं करते हैं. महंगी खाद की जगह हम इसमें प्राकृतिक खाद का उपयोग करते हैं और इसका हमें बेहतर लाभ भी मिलता है. उन्होंने बताया कि फल और सब्जियों की बिक्री कर के वो रोजाना लगभग 500 रुपये तक कमा लेते हैं.

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कश्मीर में 1100 हेक्टर भूमि है ऑर्गेनिक खेती के लिए उपलब्ध

कश्मीर में अभी तक 1100 हेक्टर भूमि ऑर्गेनिक खेती के लिए उपलब्ध है, जिसमें 300 हेक्टर को सर्टिफाइड किया गया है. कश्मीर कृषि विभाग को यह उमीद है की ऑर्गेनिक खेती कश्मीर में किसानों को नई दशा और दिशा के साथ बुलंदियों तक ले जाएगी.
इन फसलों को कम भूमि में भी उगाकर उठाया जा सकता है लाखों का मुनाफा

इन फसलों को कम भूमि में भी उगाकर उठाया जा सकता है लाखों का मुनाफा

आइये अब जानते हैं, उन फसलों के बारे में जिनकी सहायता से किसान कुछ समय में ही लाखों का मुनाफा कमा सकते हैं। जिसमें कॉफी, लैवेंडर, माइक्रो ग्रीन (microgreen), मशरूम और केसर ये पांच ऐसी फसलें हैं, जो कम जमीन में कम लागत में कम समय में लाखों का मुनाफा प्रदान करने में बेहद सहायक साबित होती हैं, क्योंकि इनकी बाजार में कीमत अच्छी खासी मिलती है। साथ ही इनका बाजार भाव भी अच्छा होता है क्योंकि इन फसलों के प्रयोग से कई तरह के जरुरी और महंगे उत्पाद तैयार किये जाते हैं। जिसकी वजह से इन सभी फसलों के भाव अच्छे खासे प्राप्त हो जाते हैं।

केसर की खेती

बतादें कि, केसर का उत्पादन अधिकतर जम्मू कश्मीर में होता है, जहां केंद्र सरकार द्वारा एक केसर पार्क की भी स्थापना की गयी है, जिसकी वजह से केसर का भाव अब दोगुना हो गया है। केसर का उपयोग विभिन्न प्रकार के उत्पादों में किया जाता है, जिसकी वजह से किसान इसका उत्पादन कर लाखों कमा सकते हैं।

लैवेंडर की खेती

लैवेंडर की खेती भी कोई कम नहीं, लैवेंडर का उपयोग खुशबू उत्पन्न करने वाले उत्पादों में किया जाता है जैसे कि धूप बत्ती इत्र आदि जिनकी बाजार में कीमत आप भली भांति जानते ही हैं। लैवेंडर अच्छी उपयोगिता और अच्छे गुणों से विघमान फसल है जिसकी मांग हमेसा से बाजार में अच्छे पैमाने पर रही है।
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मशरूम की खेती

अब बात करें मशरूम की तो इसका उत्पादन मात्र १ माह के करीब हो जाता है और इसका बाजार में भी अच्छा खासा भाव मिलता है। इसका जिक्र हमने कुछ दिन पूर्व अपने एक लेख में किया था। लॉकडाउन के समय बिहार में बेसहारा लोगों ने अपनी झुग्गी झोपड़ियों व उसके समीप स्थान पर मशरूम की खेती उगा कर अपनी आजीविका को चलाया था।

कॉफी की खेती

अब हम जिक्र करते हैं, दुनिया भर की बेहद आबादी में सबसे अधिक प्रचलित कॉफी के बारे में। इसकी पूरी दुनिया में खूब मांग होती है, इस कारण से इसका अच्छा भाव प्राप्त होता है। इसलिए किसानों को कॉफी का उत्पादन कर अच्छा खासा मुनाफा कमा लेना चाहिए। कॉफी उत्पादन करने वाले किसान बेहद फायदे में रहते हैं।

माईक्रोग्रीन

माइक्रोग्रीन्स बनाने के लिए के लिए धनिया, सरसों, तुलसी, मूली, प्याज, गाजर, पुदीना, मूंग, कुल्फा, मेथी आदि के पौधों के बीज उपयुक्त होते हैं।माईक्रोग्रीन में इन बीजों को अंकुरित करके फिर बोना चाहिये, अंकुरित पौधों को हफ्ते-दो हफ्ते 4-5 इंच तक बढ़ने देते हैं। उसके बाद कोमल पौधों को तने, पत्तियों और बीज सहित काटकर इस्तेमाल किया जाता है, इसे सलाद या सूप की तरह प्रयोग करते हैं. माइक्रोग्रीन औषधीय गुण से परिपूर्ण होने के साथ ही घर में ताजी हवा का संचार भी बढ़ता है। आपको बतादें कि उपरोक्त में बताई गयी सभी फसलों का उत्पादन कर किसान कुछ समय के अंदर ही लाखों का मुनाफा कमा सकते हैं और अपनी १ या २ एकड़ भूमि में ही अच्छी खासी पैदावार कर सकते हैं। किसानों को अपनी अच्छी पैदावार लेने के लिए बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जैसे कि बारिश, आंधी-तूफान एवं अन्य प्राकृतिक आपदाओं के साथ साथ फसल का उचित मूल्य प्राप्त न होना जैसी गंभीर समस्याओं से जूझने के साथ ही काफी जोखिम भी उठाना पड़ता है। अब मौसमिक असंभावनाओं के चलते किसान कम भूमि में अधिक उत्पादन देने वाली फसलों की ओर रुख करें तो उनको हानि की अपेक्षा लाभ की संभावना अधिक होगी। इस प्रकार का उत्पादन उपरोक्त में दी गयी फसलों से प्राप्त हो सकता है, जिसमें कॉफी, लैवेंडर, केसर, माइक्रो ग्रीन्स एवं मशरूम की फायदेमंद व मुनाफा देने वाली फसल सम्मिलित हैं। किसान इन फसलों को उगा कर अच्छा खासा मुनाफा उठा सकते हैं, इनमे ज्यादा जोखिम भी नहीं होता है, साथ ही इन सभी फसलों का बाजार मूल्य एवं मांग अच्छी रहती है।
किसानों की बढ़ेगी आय सितंबर माह में वितरित की जाएगी मशरूम की नवीन विकसित किस्म

किसानों की बढ़ेगी आय सितंबर माह में वितरित की जाएगी मशरूम की नवीन विकसित किस्म

जम्मू कश्मीर में मशरूम की नई प्रजाति तैयार की गई है। इस प्रजाति को स्थानीय कृषि विभाग सितंबर माह में बाजार में लाएगा। इससे मशरूम की पैदावार काफी ज्यादा हो जाएगी। उन्नत खेती के लिए बीजों की अच्छी किस्म होनी अत्यंत आवश्यक है। किसानों को बेहतरीन किस्म के बहुत सारी फसलों के बीज प्राप्त हुए। इसको लेकर केंद्र एवं राज्य सरकार पहल करती रहती हैं। वैज्ञानिक एवं कृषि विशेषज्ञ नवीनतम विभिन्न फसलों की नवीन किस्म तैयार करते रहते हैं। इसी कड़ी में किसान भाइयों के लिए जम्मू कश्मीर से सुकून भरी खबर सामने आई है। किसानों के लिए मशरूम की ऐसी ही बेहतरीन प्रजाति तैयार की है। इससे कृषकों की आमदनी में इजाफा होगा।

मशरूम की इस नई प्रजाति को विकसित किया गया है

मीडिया खबरों के मुताबिक, जम्मू कश्मीर के कृषि विभाग द्वारा किसानों के फायदे के लिए कदम उठाया गया है। कृषि विभाग के स्तर से मशरूम एनपीएस-5 की प्रजाति तैयार की गई है। बतादें, कि बीज का सफल परीक्षण भी कर लिया गया है। किस्म की खासियत यह है, कि यह उच्च प्रतिरोधी है एवं अतिशीघ्रता से बेकार भी नहीं होगी।

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बाजारों में इस नवीन किस्म का वितरण सितंबर माह में किया जाएगा

मशरूम की यह नवीन प्रजाति सितंबर में बाजार में आ पाएगी। जम्मू-कश्मीर का कृषि विभाग किसान भाइयों को व्यवसायिक खेती के लिए प्रोत्साहित करेगा। इसको लेकर इसका बीज बाजार में उतारा जाएगा। कृषि विभाग के सीनियर अधिकारी का कहना है, कि विकसित की गई मशरूम की दूसरी प्रजाति एनपीएस-5 है। इसका मास्टर कल्चर भी बनाया जा रहा है। यह प्रयास है, कि इस साल के आने वाले सितंबर माह तक किसानों को इसके बीज वितरण की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। अभी तक बीज को लेकर जो परीक्षण किया गया है। वह सफल रहा है।

ये सब एनपीएस-5 की खासियत हैं

मशरूम की नवीन प्रजाति एनपीएस-5 कम जल अथव ज्यादा जल होने पर भी उपज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस प्रजाति को कार्बन-डाइऑक्साइड ज्यादा प्रभावित नहीं करती है। इसी वजह से यह अतिशीघ्र खराब होने वाली फसलों में नहीं आती है। विशेषज्ञों के कहने के अनुसार, अब तक बाजार में उपस्थित ज्यादातर मशरूम अगर एक या दो दिन नहीं बिकते हैं, तो खराब होने लगते हैं। लेकिन, अब नई किस्म के अंदर यह बात नहीं है। अच्छी गुणवत्ता होने की वजह से मशरूम के बीज भी अच्छी कीमतों पर बिकेंगे। इससे किसान भाइयों की आमदनी भी बढ़ जाएगी।
इतने रूपये किलो से कम भाव वाले सेब के आयात पर लगा प्रतिबंध

इतने रूपये किलो से कम भाव वाले सेब के आयात पर लगा प्रतिबंध

भारत सरकार के द्वारा सेब कारोबारियों को काफी सहूलियत प्रदान की गई है। 50 रुपये से कम कीमत वाले सेब के आयात पर रोक लगा दी है। इससे भारत में सेब व्यापार से जुड़े कारोबारियों एवं कृषकों की आमदनी में काफी इजाफा किया जाएगा। विदेशों के सेबों की कीमत कम होने की वजह से भारत में उत्पादित किए जाने वाले सेब की स्थिति काफी खराब थी। सेब कारोबारियों द्वारा किया गया खर्चा तक नहीं निकल पा रहा था। बतादें, कि आमदनी का सौदा माने जानी वाली फसल से कृषक धीरे-धीरे दूर होने लगे थे। इसी कड़ी में केंद्र सरकार की तरफ से सेब उत्पादकों एवं कारोबारियों को एक बड़ी राहत दी है। इससे देश में सेब कारोबार से जुड़े सभी किसान एवं कारोबारियों की आमदनी में अच्छा खासा इजाफा होगा। जब किसी चीज का मूल्य कम या ज्यादा होता है, तो उसकी मांग सीधे तौर पर परिवर्तित होती है।

केंद्र सरकार द्वारा सेब से जुड़ी नई शर्त लागू की गई है

केंद्र सरकार द्वारा सेब आयात पर अब नई शर्त लागू हो चुकी है। इसके अंतर्गत 50 रुपये किलो से कम भाव के सेब का आयात नहीं किया जाएगा। विदेश व्यापार महानिदेशालय द्वारा इससे जुड़ी अधिसूचना जारी कर दी गई है। अधिसूचना के मुताबिक, अगर सीआईएफ (माल ढुलाई, लागत, बीमा) आयात कीमत 50 रुपये किलो से कम होती है, तब उस स्थिति में इस तरह के सेब का आयात प्रतिबंधित कर दिया जाएगा। ये भी पढ़े: बम्पर फसल के बावजूद कश्मीर का सेब उद्योग संकट में, लगातार गिर रहे हैं दाम

केवल इस देश पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा

न्यूनतम आयात मूल्य से जुड़ी शर्तें भूटान से आयात किए जाने वाले सेब पर लागू नहीं की जाऐंगी। शर्ताें के मुताबिक, सीआईएफ आयात मूल्य 50 रुपये प्रति किलोग्राम से कम आएगा। इससे आयात काफी प्रतिबंधित होगा। परंतु, न्यूनतम आयात मूल्य की शर्तें भूटान पर लागू नहीं की जाऐंगी।

कश्मीरी सेब उत्पादक और कारोबारी काफी चिंतित थे

भारत में ईरान से सेब का अत्यधिक मात्रा में आयात किया जाता है। ईरान से सेब की बहुत सारी बड़े स्तर पर सेब की खेप की जाती है। इसके चलते भारत में सेब काफी हद तक सस्ती कीमतों पर बिकता है। भारत में जम्मू कश्मीर एक बड़ा सेब उत्पादक राज्य है। परंतु, यहां का सेब विदेशों के सेब से कुछ ज्यादा महंगा होता है, इस वजह से लोग सस्ते के चक्कर में कश्मीरी सेब नहीं खरीदते हैं। आयात पर शर्ते लगाने अथवा प्रतिबंध लगाने की मांग सेब कारोबारी काफी वक्त से कर रहे थे। हालाँकि, वर्तमान में सेब पर प्रतिबंध लगने से सेब कारोबारी और किसान काफी ज्यादा प्रशन्न हैं। ये भी पढ़े: हाइवे में हजारों ट्रकों के फंसने से लाखों मीट्रिक टन सेब हुआ खराब

भारत इन देशों से सेब आयात करता है

भारत सेब आयात विभिन्न देशों से करता है। भारत को सेब भेजने वाले देशों के अंतर्गत अफगानिस्तान, फ्रांस, बेल्जियम, चिली, इटली, तुर्की, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, पोलैंड, ईरान, ब्राजील, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात सहित अन्य देश भी शम्मिलित हैं। अप्रैल-फरवरी 2023 में भारत द्वारा 260.37 मिलियन डॉलर सेब आयात किया गया था, जबकि 2021-22 में यह 385.1 मिलियन डॉलर तक रहा है।
Red Gold : केसर की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

Red Gold : केसर की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

कृषक भाई केसर की खेती कर काफी शानदार फायदा हांसिल कर सकते हैं। कृषक इसके लिए उन्हें कुछ विशेष बातों का ख्याल पड़ेगा। खानपान की सामग्रियों से लेकर पूजा पाठ और औषधियों में केसर का उपयोग किया जाता है। केसर की मांग बाजार में वर्ष भर बनी रहती है। ऐसी स्थिति में यदि आप परंपरागत फसलों का उत्पादन करके ऊब गए हैं, तो आप केसर की खेती कर सकते हैं। केसर की खेती में मुनाफा भी काफी ज्यादा होता है। बाजार में यह ऊंची कीमतों पर बिकती है। केसर को लाल सोना मतलब कि रेड गोल्ड भी कहा जाता है। बाजार में आज के दौरान 1 किलो केसर की कीमत 3 लाख रुपये तक हैं।

केसर की खेती के लिए मृदा एवं जलवायु 

कृषक भाइयों को केसर की खेती के दौरान कुछ महत्वपूर्ण बातों का विशेष ख्याल रखना चाहिए। केसर की खेती के लिए ठंडी एवं शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। भारत में केसर की खेती प्रमुख रूप से जम्मू और कश्मीर में की जाती है। केसर की खेती के लिए बेहतरीन जल निकासी वाली रेतीली दोमट मृदा शानदार होती है। केसर के बीज काफी ज्यादा छोटे होते हैं। इस वजह से इन्हें उगाने के लिए विशेष तकनीक का उपयोग करना होता है। साथ ही, इसके शानदार रखरखाव की भी जरूरत पड़ती है। इसकी खेती के लिए समय-समय पर सिंचाई, खरपतवार नियंत्रण व कीट नियंत्रण की जरूरत होती है। केसर की फसल 7-8 महीने में पककर तैयार हो जाती है। फसल पकने के पश्चात केसर के फूलों को तोड़कर सुखाया जाता है। सूखे केसर को छीलकर बाजार में बेचा जाता है। 


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केसर की खेती से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें

विशेषज्ञों के मुताबिक, केसर की खेती के लिए खेत की मृदा को बेहतर ढ़ंग से तैयार करें। मृदा की 2-3 बार जुताई करें फिर उसके बाद उसे एकसार कर दें। केसर के बीज की सितंबर-अक्टूबर माह के दौरान बिजाई की जाती है। बीज की 2-3 सेंटीमीटर गहराई में बिजाई करनी चाहिए। वहीं, इसकी फसल की नियमित तोर पर सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। विशेष तौर पर फूल आने के दौरान और फसल पकने के समय ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता होती है। फसल को वक्त-वक्त पर खाद और उर्वरक की जरूरत पड़ती है। केसर की फसल में खरपतवार का होना नुकसानदायक होता है। इस वजह से इन पर नियंत्रण भी आवश्यक है।

रिटायर्ड इंजीनियर ने नोएडा में उगाया कश्मीरी केसर, हुआ बंपर मुनाफा

रिटायर्ड इंजीनियर ने नोएडा में उगाया कश्मीरी केसर, हुआ बंपर मुनाफा

भारत में केसर का मसाले और दवाई के रूप में प्रयोग किया जाता है। चटक रंग के कारण इसका प्रयोग अनेक भारतीय व्यंजनों में भी किया जाता है। जिसके कारण पिछले कुछ सालों में देखा गया है कि इसकी मांग घरेलू बाजार में तेजी से बढ़ी है। केसर एक ऐसी फसल है जिसे उगाने के लिए खास तरह की जलवायु की जरूरत होती है। ऐसे में इसका उत्पादन मुख्य तौर पर कश्मीर में किया जाता है। कश्मीर के अलावा अन्य प्रदेशों की जलवायु को इसके उत्पादन के लिए सही नहीं माना जाता है। इसलिए अन्य प्रदेशों के किसान अपने यहां इसके उत्पादन के लिए प्रयास नहीं करते हैं। लेकिन इसके विपरीत नोएडा में रहने वाले इंजीनियर रमेश गेरा ने उत्तर प्रदेश की भूमि पर केसर की खेती करके कमाल कर दिया है। केसर के बारे में कहा जाता है कि इसकी खेती सिर्फ ठंडी जलवायु वाली जगह में ही की जाती है। गर्म और उष्ण जलवायु में इसकी खेती संभव नहीं है। इसकी खेती के लिए विशेष प्रकार की मिट्टी की जरूरत होती है। ऐसे में इंजीनियर रमेश गेरा के लिए नोएडा में केसर की खेती करना बेहद चुनौतीपूर्ण था। रमेश गेरा ने बताया कि इसके लिए उन्होंने कश्मीर जैसी जलवायु को विकसित किया। साथ ही कश्मीर से मिट्टी मंगवाई और घर में खेती शुरू की। जिसमें उन्हें सफलता प्राप्त हुई। फिलहाल रमेश गेरा नोएडा में केसर की खेती करके हर साल लाखों रुपये कमा रहे हैं।

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रमेश गेरा ने बताया कि केसर की खेती उन्होंने एडवांस फार्मिंग की मदद से शुरू की है। वह दक्षिण कोरिया से एडवांस फार्मिंग की तकनीक सीखकर भारत वापस लौटे हैं। साल 2017 के बाद वो रिटायर्ड हो गए थे, जिसके बाद उन्होंने केसर की खेती करना शुरू कर दी है। शुरुआती दो सालों में उन्हें इस खेती में सफलता हाथ नहीं लगी थी। जिसके बाद वो कश्मीर पहुंचे और उन्होंने अपने स्तर पर रिसर्च की और यह जानने की कोशिश की कि केसर की खेती कैसे करते हैं। उसके बाद वापस लौटकर उन्होंने नोएडा में केसर उगाना शुरू किया। इस बार वो उत्तर प्रदेश की जमीन पर केसर उगाने में कामयाब हुए और वर्तमान में वो केसर से अच्छी खासी उपज प्राप्त कर रहे हैं। रमेश गेरा ने अपने बारे में बताया है कि वो एक किसान परिवार से आते हैं जो हरियाणा के हिसार में रहता है। उनके मन में हमेशा से किसानों के लिए कुछ नया करने की इच्छा थी, इसलिए वो समय-समय पर खेती बाड़ी के नए प्रयोग करते रहते थे। वह वर्तमान में किसानों को एडवांस फार्मिंग की तकनीक सिखा रहे हैं। साथ ही हाइड्रोफोनिक, ऑर्गेनिक और सॉइल लेस मल्टीलेवल खेती कैसे करते हैं इसके लिए भी किसानों को प्रशिक्षित कर रहे हैं। बड़ी संख्या में आस पास के किसान उन्हें खेती किसानी का प्रशिक्षण लेने पहुंच रहे हैं। इन दिनों रमेश गेरा केसर के अलावा विभिन्न प्रकार की सब्जियों की खेती भी कर रहे हैं, जिनसे उन्हें भरपूर मुनाफा प्राप्त हो रहा है। जेल के कैदियों की सहायता करने के लिए वो इन दिनों उन्हें भी खेती किसानी की उन्नत तकनीकें सिखा रहे हैं।