Ad

khaad

गेहूं की अच्छी फसल तैयार करने के लिए जरूरी खाद के प्रकार

गेहूं की अच्छी फसल तैयार करने के लिए जरूरी खाद के प्रकार

गेहूं की खेती पूरे विश्व में की जाती है। पुरे विश्व की धरती के एक तिहाई हिस्से पर गेहूं की खेती की जाती है। धान की खेती केवल एशिया में की जाती है जबकि गेहूं विश्व के सभी देशों में उगाया जाता है। 

इसलिये गेहूं की खेती का बहुत अधिक महत्व है और किसान भाइयों के लिए गेहूं की खेती कृषि उपज के प्राण के समान है। इसलिये प्रत्येक किसान गेहूं की अच्छी उपज लेना चाहता है। 

वर्तमान समय में वैज्ञानिक तरीके से खेती की जाती है। इसलिये किसान भाइयों को चाहिये कि वह गेहूं की खेती में खाद की मात्रा उन्नत एवं वैज्ञानिक तरीके से करेंगे तो उन्हें अपने खेतों में अच्छी पैदावार मिल सकती है।

क्यों है अच्छी फसल की जरूरत

किसान भाइयों एक बात यह भी सत्य है कि जमीन का दायरा सिकुड़ता जा रहा है और आबादी बढ़ती जा रही है। मानव का मुख्य भोजन गेहूं पर ही आधारित है। इसलिये गेहूं की मांग बढ़ना आवश्यक है। 

इस मांग को पूरा करने के लिए अधिक से अधिक पैदावार करना होगा। जहां लोगों की जरूरतें  पूरी होंगी और वहीं किसान भाइयों की आमदनी भी बढ़ेगी। किसान भाइयों गेहूं की खेती बहुत अधिक मेहनत मांगती है। 

जहां खेत को तैयार करने के लिए अधिक जुताई, पलेवा, निराई गुड़ाई, सिंचाई के साथ गेहूं की खेती में खाद की मात्रा का भी प्रबंधन समय-समय पर करना होता है। 

आइये देखते हैं कि गेहूं की खेती में किन-किन खादों व उर्वरकों का प्रयोग करके अधिक से अधिक पैदावार ली जा सकती है।

अधिक उत्पादन का मूलमंत्र

गेहूं की खेती की खास बात यह होती है कि इसमें बुआई से लेकर आखिरी सिंचाई तक उर्वरकों और पेस्टिसाइट व फर्टिसाइड का इस्तेमाल किया जाता है। तभी आपको अधिक उत्पादन मिल सकता है।

बुआई के समय करें ये उपाय

गेहूं की अच्छी फसल लेने के लिए किसान भाइयों को सबसे पहले तो अपनी भूमि का परीक्षण कराना चाहिये, मृदा परीक्षण या सॉइल टेस्टिंग भी कहा जाता है। 

परीक्षण के उपरांत कृषि विशेषज्ञों से राय लेकर खेत तैयार करने चाहिये और उनके द्वारा बताई गई विधि से ही खेती करेंगे तो आपको अधिक से अधिक पैदावार मिलेगी।  

क्योंकि फसल की पैदावार बहुत कुछ खाद एवं उर्वरक की मात्रा पर निर्भर करती है। गेहूं की खेती में हरी खाद, जैविक खाद एवं रासायनिक खाद के अलावा फर्टिसाइड और पेस्टीसाइड का भी प्रयोग करना होता है।  

कौन सी खाद कब इस्तेमाल की जाती है, आइये जानते हैं:-

  1. गेहूं की फसल के लिए बुआई से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार किया जाता है। इसके लिए सबसे पहले 35 से 40 क्विंटल गोबर की सड़ी हुई खाद प्रति हेक्टेयर खेत में डालना चाहिये। इसके साथ ही 50 किलोग्राम नीम की खली और 50किलो अरंडी की खली को भी मिला लेना चाहिये। पहले इन सभी खादों के मिश्रण को खेत में बिखेर दें और उसके बाद खेत की जमकर जुताई करनी चाहिये।
  2. किसान भाई गेहूं की अच्छी फसल के लिए अगैती फसल में बुआई के समय 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल करना चाहिये। गेहूं की पछैती फसल के लिए बुआई के समय 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश गोबर की खाद, नीम व अरंडी की खली के बाद डालना चाहिये।
  3. इसमें नाइट्रोजन की आधी मात्रा को बचा कर रख लेना चाहिये जो बाद में पहली व दूसरी सिंचाई के समय डालना चाहिये।

ये भी पढ़े : गेहूं की अच्छी फसल के लिए क्या करें किसान

पहली सिंचाई के समय

बुआई के बाद पहली सिंचाई लगभग 20 से 25 दिन पर की जाती है। गेहूं की खेती में खाद की मात्रा की बात करें तो उस समय किसान भाइयों को गेहूं की फसल के लिए 40 से 45 किलोग्राम यूरिया, 33 प्रतिशत वाला जिंक 5 किलो, या 21 प्रतिशत वाला जिंक 10 किलो, सल्फर 3 किलो का मिश्रण डालना चाहिये। इसके अलावा नैनोजिक एक्सट्रूड जैसे जायद का भी प्रयोग करना चाहिये।

दूसरी सिंचाई के समय

गेहूं की खेती में दूसरी सिंचाई बुआई के 40 से 50 दिन बाद की जानी चाहिये। उस समय भी आपको 40 से 45 किलोग्राम यूरिया डालनी होगी ।

इसके साथ थायनाफेनाइट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्ल्यूपी 500 ग्राम प्रति एकड़, मारबीन डाजिम 12 प्रतिशत, मैनकोजेब 63 प्रतिशत डब्ल्यूपी 500 ग्राम प्रति एकड़ से मिलाकर डालनी चाहिये।

उर्वरकों का इस्तेमाल का फैसला ऐसे करें

मुख्यत: गेहूं की फसल में दो बार सिंचाई के बाद ही उर्वरकों का मिश्रण डालने का प्रावधान है लेकिन उसके बाद किसान भाइयों को अपने खेत व फसल की निगरानी करनी चाहिये। 

इसके अलावा भूमि परीक्षण के बाद कृषि विशेषज्ञों की राय के अनुसार उर्वरकों का इस्तेमाल करना चाहिये। यदि भूमि परीक्षण नहीं कराया है तो आपको अपने खेत की निगरानी अपने स्तर से करनी चाहिये और स्वयं के अनुभव के आधार पर या अनुभवी किसानों से राय लेकर फसल की जरूरत के हिसाब से उर्वरक, फर्टिसाइड व पेस्टीसाइड का इस्तेमाल करना चाहिये।

हल्की फसल हो तो क्या करें

विशेषज्ञों के अनुसार दूसरी सिंचाई के बाद देखें कि आपकी फसल हल्की हो तो आप अपने खेतों में माइकोर हाइजल दो किलो प्रति एकड़ के हिसाब से डालें। 

जिन किसान भाइयों ने बुआई के समय एनपीके का इस्तेमाल किया हो तो उन्हें अलग से पोटाश डालने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि एनपीके में 12 प्रतिशत नाइट्रोजन और 32 प्रतिशत फास्फोरस होता है और 16प्रतिशत पोटाश होता है।

डीएपी का इस्तेमाल करने वाले  क्या करें

जिन किसान भाइयों ने बुआई के समय डीएपी खाद का इस्तेमाल किया हो तो उन्हें पहली सिंचाई के बाद ही 15 से 20 किलो म्यूरेट आफ पोटाश प्रति एकड़ के हिसाब से डालना चाहिये।

क्योंकि डीएपी  में 18 प्रतिशत नाइट्रोजन होता है और 46 प्रतिशत फास्फोरस होता है और पोटाश बिलकुल नहीं होता है।

प्रत्येक सिंचाई के बाद खेत को परखें

गेहूं की फसल में 5-6 बार सिंचाई करने का प्रावधान है। किसान भाइयों को चाहिये कि वो कुदरती बरसात को देख कर और खेत की नमी की अवस्था को देखकर ही सिंचाई का फैसला करें। 

यदि प्रति सिंचाई के बाद यूरिया की खाद डाली जाये तो आपकी फसल में रिकार्ड पैदावार हो सकती है। यूरिया के साथ फसल की जरूरत के हिसाब से फर्टिसाइड और पेस्टीसाइड का भी इस्तेमाल करना चाहिये। 

पहली दो सिंचाई के बाद तीसरी सिंचाई 60 से 70 दिन बाद की जाती है। चौथी सिंचाई 80 से 90 दिन बाद उस समय की जाती है जब पौधों में फूल आने को होते हैं। पांचवीं सिंचाई 100 से 120 दिन बाद करनी चाहिये। 

  ये भी पढ़े : गन्ने की आधुनिक खेती की सम्पूर्ण जानकारी

खाद सिंचाई से पहले या बाद में डाली जाए?

  1. किसान भाइयों के समक्ष यह गंभीर समस्या है कि गेहूं की खेती में खाद की मात्रा कितनी डालनी चाहिये? हालांकि खाद डालने का प्रावधान सिंचाई के बाद ही का है लेकिन कुछ किसान भाइयों को यह शिकायत होती है कि सिंचाई के बाद खेत की मिट्टी दलदली हो जाती है, जहां खेत में घुसने में पैर धंसते हैं और उससे पौधों की जड़ों को नुकसान पहुंच सकता है। ऐसी स्थिति में किसान भाइयों को परिस्थिति देखकर स्वयं फैसला लेना होगा।
  2. यदि भूमि अधिक दलदली है और सिंचाई के बाद पैर धंस रहे हैं तो आपको खेत के पानी को सूखने का इंतजार करना चाहिये लेकिन पर्याप्त नमी होनी चाहिये तभी खाद डालें। इसके लिए आप सिंचाई से अधिक से अधिक दो दिन के बाद खाद अवश्य डाल देनी चाहिये। यदि यह भी संभव न हो पाये तो इस तरह की भूमि में सिंचाई से 24 घंटे पहले खाद डालनी चाहिये लेकिन ध्यान रहे कि 24 घंटे में सिंचाई अवश्य ही हो जानी चाहिये। तभी खाद आपको लाभ देगी अन्यथा नहीं।
  3. यदि आपके खेत की भूमि बलुई या रेतीली है, जहां पानी तत्काल सूख जाता है और आप खेत में आसानी से जा सकते हैं तो आपको सिंचाई के तत्काल बाद गेहूं की खेती में खाद की मात्रा डालनी चाहिये। ऐसे खेतों में अधिक से अधिक सिंचाई के 24 घंटे के भीतर खाद डालनी चाहिये।
गेंहू की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदुओं की विस्तृत जानकारी

गेंहू की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदुओं की विस्तृत जानकारी

अक्टूबर माह से गेंहू की बुवाई की शुरूआत हो जाती है। गेंहू की खेती में बुवाई से लगाकर कटाई तक यदि सभी कार्यों को बेहतर ढ़ंग से करते हैं, तो वह अच्छा खासा मुनाफा उठा सकते हैं। जैसा कि हम जानते हैं, कि खरीफ सीजन चल रहा है। इस सीजन की फसलों की कटाई के पश्चात किसान भाई रबी सीजन की फसलों की बुवाई शुरू कर देंगे। गेहूं की फसल रबी की प्रमुख फसलों से एक है, इसलिए किसान कुछ बातों का ध्यान रखकर अच्छा उत्पादन पा सकते हैं। भारत ने विगत चार दशकों में गेहूं पैदावार में उपलब्धि हासिल की है। गेहूं का उत्पादन वर्ष 1964-65 में जहां केवल 12.26 मिलियन टन था, जो बढ़कर के साल 2019-20 में 107.18 मिलियन टन के एक ऐतिहासिक उत्पादन स्तर पर पहुंच गया है। भारत की जनसंख्या को खाद्य एवं पोषण सुरक्षा मुहैय्या करने के लिए गेहूँ के उत्पादन और उत्पादकता में लगातार बढ़ोत्तरी की जरूरत है। एक अनुमान के मुताबिक, साल 2025 तक भारत की जनसँख्या तकरीबन 1.4 बिलियन होगी। इसके लिए वर्ष 2025 तक गेहूं की अनुमानित मांग तकरीबन 117 मिलियन टन होगी। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नवीन तकनीकियाँ विकसित करनी होंगी। नवीन किस्मों की प्रगति तथा उनकी उच्च उर्वरता की स्थिति में परीक्षण से ज्यादा से ज्यादा उत्पादन क्षमता प्राप्त की जा सकती है।

भारत में गेंहू की खेती करने वाले प्रमुख राज्य

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि उत्तरी गंगा-सिंधु के मैदानी क्षेत्र भारत के सबसे उपजाऊ एवं गेहूं के सर्वाधिक उत्पादन वाले इलाके हैं। दरअसल, इस इलाके में गेहूं के प्रमुख उत्पादक राज्य जैसे कि दिल्ली, राजस्थान (कोटा व उदयपुर सम्भाग को छोड़कर) पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड के तराई क्षेत्र, जम्मू कश्मीर के जम्मू व कठुआ जनपद व हिमाचल प्रदेश का ऊना जिला व पोंटा घाटी शम्मिलित हैं। इस इलाके में तकरीबन 12.33 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्रफल पर गेहूं का उत्पादन किया जाता है। तकरीबन 57.83 मिलियन टन गेहूं की पैदावार होती है। इस इलाके में गेहूं की औसत उत्पादकता तकरीबन 44.50 कुंतल/हैक्टेयर है। वहीं, किसानों के खेतों पर आयोजित गेहूं के अग्रिम पंक्ति प्रदर्शनों में गेहूं की अनुशंसित प्रौद्योगिकियों को अपनाकर 51.85 कुंतल/हैक्टेयर की पैदावार अर्जित की जा सकती है। विगत कुछ सालों से इस इलाके में गेहूं की उन्नत किस्में एचडी 3086 व एचडी 2967 की बुवाई बड़े पैमाने पर की जा रही है। परंतु, इन किस्मों के प्रतिस्थापन के लिए उच्च उत्पादन क्षमता एवं रोग प्रतिरोधी किस्में डीबीडब्ल्यू 187, डीबीडब्ल्यू 222 और एचडी 3226 आदि किस्मों को बड़े स्तर पर प्रचारित-प्रसारित किया गया है। यह भी पढ़ें: गेहूं की फसल का समय पर अच्छा प्रबंधन करके कैसे किसान अच्छी पैदावार ले सकते हैं।

अत्यधिक पैदावार हेतु करें इन उन्नत किस्मों का चुनाव

गेहूं की खेती में किस्मों का चयन एक महत्वपूर्ण फैसला है, जो यह सुनिश्चित करता है, कि कितना उत्पादन होगा। सदैव नवीन रोगरोधी व उच्च उत्पादन क्षमता वाली किस्मों का चयन करना चाहिए। सिंचित व समय से बिजाई के लिए डीबीडब्ल्यू 303, डब्ल्यूएच 1270, पीबीडब्ल्यू 723 और सिंचित व विलंब से बुवाई के लिए डीबीडब्ल्यू 173, डीबीडब्ल्यू 71, पीबीडब्ल्यू 771, डब्ल्यूएच 1124, डीबीडब्ल्यू 90 व एचडी 3059 की बिजाई कर सकते हैं। वहीं, ज्यादा फासले से बुवाई के लिए एचडी 3298 किस्म की पहचान की गई है। सीमित सिंचाई और समय से बुवाई के लिए डब्ल्यूएच 1142 किस्म को अपनाया जा सकता है। बुवाई का समय बीज दर व उर्वरक की समुचित मात्रा गेहूं की बुवाई करने से 15-20 दिन पूर्व खेत तैयार करने के दौरान 4-6 टन/एकड़ की दर से गोबर की खाद का इस्तेमाल करने से मृदा की उर्वरक शक्ति बढ़ जाती है।

जीरो टिलेज व टर्बो हैप्पी सीडर से बुवाई की जाती है

धान-गेहूं फसल पद्धति में जीरो टिलेज तकनीक से गेहूं की बुवाई एक कारगर एवं फायदेमंद तकनीक है। इस तकनीक के जरिए धान की कटाई के उपरांत भूमि में संरक्षित नमी का इस्तेमाल करते हुए, जीरो टिल ड्रिल मशीन से गेहूं की बुवाई बिना जुताई के ही की जाती है। जहां पर धान की कटाई काफी विलंब से होती है। वहां पर यह मशीन बेहद ही ज्यादा कारगर साबित हो रही है। जल भराव वाले इलाकों में भी इस मशीन की काफी उपयोगिता है। यह धान के फसल अवशेष प्रबंधन की सबसे प्रभावी एवं कुशल विधि है। इस विधि के माध्यम से गेहूं की बुवाई करने से पारंपरिक बुवाई की तुलना में समान अथवा ज्यादा पैदावार प्राप्त होती है व फसल गिरती नहीं है। फसल अवशेषों को सतह पर रखने से पौधों के जड़ इलाके में नमी ज्यादा वक्त तक संरक्षित रहती है, जिसके कारण तापमान में वृद्धि का दुष्प्रभाव पैदावार पर नही पड़ता और खरपतवार भी कम होते हैं। गेहूं की खेती में सिंचाई प्रबंधन है जरूरी।

गेहूं की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन बेहद आवश्यक होता है

बतादें, कि ज्यादा उत्पादन के लिए गेहूं की फसल को पांच-छह सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। पानी की मौजूदगी मिट्टी के प्रकार एवं पौधों की जरूरतों के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए। गेहूं की फसल के जीवन चक्र में तीन अवस्थाएं जैसे कि चंदेरी जड़े निकलना (21 दिन), पहली गांठ बनना (65 दिन) और दाना बनना (85 दिन) ऐसी हैं, जिन पर सिंचाई करना अत्यंत जरूरी है। अगर सिंचाई हेतु जल पर्याप्त मात्रा में मौजूद हो तो प्रथम सिंचाई 21 दिन पर इसके उपरांत 20 दिन के समयांतराल पर बाकी पांच सिंचाई करें। नवीन सिंचाई तकनीकों जैसे फव्वारा विधि अथवा टपक विधि भी गेहूं की खेती के लिए काफी बेहतरीन होती है। कम सिंचित क्षेत्रों में इनका इस्तेमाल काफी पहले से होता आ रहा है। परंतु, जल की बाहुलता वाले इलाकों में भी इन तकनीकों को अपनाकर जल का संचय किया जा सकता है। साथ ही, बेहतरीन उत्पादन लिया जा सकता है। सिंचाई की इन तकनीकों पर केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा अनुदान के तौर पर धनराशि भी प्रदान की जा रही है। कृषक भाईयों को इन योजनाओं का लाभ लेकर सिंचाई जल प्रबंधन के राष्ट्रीय दायित्व का भी निर्वहन करना चाहिए।
कद्दू की खेती ( Pumpkin Farming) के उन्नत तरीके

कद्दू की खेती ( Pumpkin Farming) के उन्नत तरीके

कद्दू की खेती लगभग पूरे भारत में होती है।कद्दू एक ऐसी सब्जी है जिसे क्षेत्र और राज्य के अनुसार इसके नाम होते हैं। अगर हम उत्तर प्रदेश की बात करते हैं तो कद्दू को काशीफल, सीताफल, कोला या कोयला कई जगह इसे पैठे की सब्जी भी बोला जाता है | इसे English में Pumpkin बोला जाता है | कद्दू की सब्जी को लोग बड़े चाव से खाते हैं तथा इसकी सब्जी को जब भी कोई धार्मिक भंडारा होता है तो इसकी सब्जी जरूर बनाई जाती है. दक्षिण भारत में इसको सांभर में प्रयोग किया जाता है. आज जैसे-जैसे आबादी बढ़ रही है तो लोगों की आवश्यकता भी उसी अनुरूप बढ़ रही है। सब्जी की खेती किसान को भी अच्छी आमदनी दिलाती है, इससे किसान को रोजाना की आमदनी होती है।कहना गलत नहीं होगा कि अगर किसान को अपनी आय बढ़ानी है तो उसे सब्जी की खेती करनी होगी।

कम लागत, अच्छी आमदनी :

सरकार किसानों कि आय दोगुनी करने पर कार्य कर रही है, इसके लिए वो किसानों को नए-नए तरीके से फसल करना, खेती सम्बंधित व्यवसाय करना आदि कि ट्रेनिंग दे रही है | कद्दू कि खेती भी किसानों के लिए एक वरदान का काम कर सकती है | इसकी उपज में लागत कम आती है तथा इसका उत्पादन अच्छा होता है | इसके फल का वजन भी ज्यादा होता है | पके कददू गहरे पीले रंग के होते हैं तथा इसमें कैरोटीन की मात्रा भी बहुतायत में पाई जाती है। इसके बीज का सेवन पुरुषों के लिए बहुत लाभप्रद बताये जाते हैं. Pumpkin Farming

खेत की तैयारी:

सामान्यतः अन्य फसलों की तरह इसकी खेती के लिए भी खेत में पोषक तत्वों की मात्रा भरपूर होनी चाहिए. इसका सबसे सटीक उपाय है की आप खेत में पहली जुताई से पहले गोबर की बनी ( सड़ी) हुई खाद डाल कर उसपर 2 से 3 बार कल्टीवेटर से जुताई लगा दें और ऊपर से पाटा लगा दें जिससे की खेत समतल हो जाये. अगर हो सके तो अपने खेत को कम से कम 3 साल में एक बार हरी खाद जरूर दें.  इससे जमीन को ताकत मिलती है तथा आपकी फसल भी कम से कम रासायनि खादों पर निर्भर रहती है. ये भी पढ़ें : रासायनिक से जैविक खेती की तरफ वापसी

भूमि का चुनाव:

इसकी फसल के लिए भूमि का चुनाव करते समय ध्यान रहे की उस खेत में पानी निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए | यानि की इसकी जमीन में पानी नहीं रुकना चाहिए इससे इसके पौधे और फल दोनों ही गलने लग जाते हैं. इसके लिए रेतीली, भुरभुरी और दोमट मिटटी उपयुक्त रहती है.

जलवायु:

जलवायु की बात करें तो इसके लिए गर्म और बारिश वाला समय उपयुक्त रहता है. इसके बीज को उगाने के लिए दोनों मौसम सहायक होते हैं लेकिन सर्दी के मौसम में इसके बीज को उगाना मुश्किल है | लेकिन आज तो लोग कृत्रिम मौसम देकर इसके बीज को समय से पहले ही उगा लेते हैं | कददू की खेती के लिए सर्दी और कम सर्दी वाली जलवायु भी उपयुक्त होती है इसके लिए 18 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट का सामान्य मौसम होना चाहिए.

कद्दू कितने तरह के होते हैं:

kaddu ki kheti कद्दू की प्रजाति या प्रकार की हम बात करें तो, हमारे कृषि वैज्ञानिक इसकी नई नई किस्में विकसित कर रहें हैं. जो कि निम्न प्रकार हैं:

1- पूसा विशवास:

कद्दू की इस किस्म को उत्तर भारत के ज्यादातर राज्यों में उगाया जाता है क्योकि इस किस्म को थोड़ा ठंडा और गर्म दोनों मौसम के अनुसार पूसा संस्थान ने विकसित किया है. इसके एक फल का वजन 5 से 7  किलो के आसपास जाता है. जबकि इसका कुल उत्पादन 400 से 450 किवंटल प्रति हेक्टेयर के आसपास होता है. इसके फलों का रंग दूसरी किस्मों की अपेक्षा ज्यादा हरा दिखाई देता है. जिन पर सफ़ेद रंग के धब्बे बने होते हैं. इस किस्म के पौधों पर फल बीज रोपाई के 110 से 120 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं.

2- पूसा विकास:

कद्दू की इस किस्म के पौधे बारिश के मौसम में उगाये जाते हैं. इस किस्म के बेल की लम्बाई दो से तीन मीटर के बीच पाई जाती है. इसके फल कच्चे रूप में सब्जी में ज्यादा उपयोग में लिए जाते हैं. इसका फल छोटे आकार का होता है तथा इसके अंदर गूदा भी अच्छा होता है. जिनका वजन दो से तीन किलो के आसपास पाया जाता है. एक हेक्टेयर के इसका उत्पादन 300 - 350 किवंटल के आस पास जाता है.

3 - कल्यानपुर पम्पकिन-1,

4 - नरेन्द्र अमृत,

5 - अर्का सुर्यामुखी,

6 - अर्का चन्दन,

7 - अम्बली,

8 - सी एस 14,

9 - सी ओ1 एवम 2,

इनके साथ-साथ कुछ विदेशी प्रजातियां भी अपने यहाँ उगाई जाती है जो निम्न प्रकार हैं:

विदेशी किस्में:

भारत में पैटीपान , बतर न्ट, ग्रीन हब्बर्ड , गोल्डन हब्बर्ड , गोल्डन कस्टर्ड, और यलो स्टेट नेक नामक किस्में भी बहुत छोटे स्तर पर उगाई जाती है |

बोने का तरीका:

Kaddu ki Buwai इसके बीज को मेंड़ बना कर लगाना उचित रहता है. इसकी मेंड़ से मेंड़ कि दूरी कम से कम 4 फ़ीट की होनी चाहिए. जिससे की इसकी बेल को फैलने के लिए पूरी जगह मिल सके. उचित होगा अगर आप इसकी बेल को ऊपर चढ़ा दें जिससे की मिटटी की वजह से इसके फल को नुकसान नहीं होता है. किसान के घर में औरतें भी इसकी खेती करती हैं. जब बारिश शुरू हो जाती हैं तो वो इसके बीजों को बुर्जी और बिटोरों के पास लगा देती हैं धीरे धीरे ये बेल बुर्जी और बिटोरे पर चढ़ जाती हैं और ऊपर फल लगने लगते हैं जो कि पूरी तरह से ऑर्गनिक फल होते हैं. ये भी पढ़ें : तोरई की खेती में भरपूर पैसा

फसल कि देखरेख:

इसकी फसल कि देखरेख में सबसे ज्यादा जो ध्यान रखने वाली चीज है वो ये है कि अगर आपने इसकी फसल को गर्मी में लगाया है तो इसको हर 8 से 10 दिन में पानी कि आवश्यकता होती है तथा बारिश के मौसम की फसल को खरपतवार से बचाना होता है. इसकी समय समय पर निराई गुड़ाई करते रहें. अगर इसकी फसल में खरपतवार हो गया तो इसको कीट रोग बहुत जल्दी लगेंगे. अगर संभव हो तो शाम के समय में गूगल, धूप डाल के खेत में जगह जगह धुँआ कर दें इससे कीट पतंगें इससे दूर रहेंगें.

कद्दू की फसल में लगने वाले रोग:

कीट एवं रोग नियंत्रण के जैविक तरीके:

  • लालड़ी

पौधों पर दो पत्तियां निकलने पर इस कीट का प्रकोप शुरू हो जाता है यह कीट पत्तियों और फूलों को खाता है इस कीट की सुंडी भूमि के अन्दर पौधों की जड़ों को काटती है जिससे हमारी फसल का पौधा सूख जाता है जिसका नुक्सान हमे उठाना पड़ता है जिससे हमारी पैदावार पर काफी प्रभाव पड़ता है |

रोकथाम

इम से कम 40-50 दिन पुराना 15 लीटर गोमूत्र को तांबे के बर्तन में रखकर 5 किलोग्राम धतूरे की पत्तियों एवं तने के साथ उबालें 7.5 लीटर गोमूत्र शेष रहने पर इसे आग से उतार कर ठंडा करें एवं छान लें मिश्रण तैयार कर 3 ली. को प्रति पम्प के द्वारा फसल में तर-बतर कर छिडकाव करना चाहिए |
  • फल की मक्खी

यह मक्खी फलों में प्रवेश कर जाती है और वहीँ पर अंडे देती है अण्डों से सुंडी बाहर निकलती है वह फल को बेकार कर देती है यह मक्खी विशेष रूप से खरीफ वाली फसल को अधिक हानी पहुंचाती है जिससे हमारी फसल ख़राब हो जाती है | इसकी मक्खी फल के रस को चूस लेती है. इसको रस चूसक भी बोला जाता है.

रोकथाम

इम से कम 40-50 दिन पुराना 15 लीटर गोमूत्र को तांबे के बर्तन में रखकर 5 किलोग्राम धतूरे की पत्तियों एवं तने के साथ उबालें 7.5 लीटर गोमूत्र शेष रहने पर इसे आग से उतार कर ठंडा करें एवं छान लें मिश्रण तैयार कर 3 ली. को प्रति पम्प के द्वारा फसल में तर-बतर कर छिडकाव करना चाहिए |
  • सफ़ेद ग्रब

यह कीट कद्दू वर्गीय पौधों को काफी क्षति पहुंचाती है यह भूमि के अन्दर रहती है और पौधों की जड़ों को खा जाती है जिसके कारण पौधे सुख जाते है |

रोकथाम

इसकी रोकथाम के लिए खेत में नीम का खाद प्रयोग करें |
  • चूर्णी फफूदी

यह रोग ऐरीसाइफी सिकोरेसिएरम नमक फफूंदी के कारण होता है पत्तियों एवं तनों पर सफ़ेद दरदरा और गोलाकार जल सा दिखाई देता है जो बाद में आकार में बढ़ जाता है और कत्थई रंग का हो जाता है पूरी पत्तियां पिली पड़कर सुख जाती है पौधों की बढ़वार रुक जाती है |

रोकथाम

इसकी रोकथाम के लिए देसी गाय का मूत्र 5 लीटर लेकर 15 ग्राम के आकार के बराबर हींग लेकर पिस कर अच्छी तरह मिलाकर घोल बनाना चाहिए प्रति 2 ली. पम्प के द्वारा तर-बतर कर छिडकाव करे ।
  • मृदु रोमिल फफूंदी

यह स्यूडोपरोनोस्पोरा क्यूबेन्सिस नामक फफूंदी के कारण होता है रोगी पत्तियों की निचली सतह पर कोणाकार धब्बे बन जाते है जो ऊपर से पीले या लाल भूरे रंग के होते है |

रोकथाम

इम से कम 40-50 दिन पुराना 15 लीटर गोमूत्र को तांबे के बर्तन में रखकर 5 किलोग्राम धतूरे की पत्तियों एवं तने के साथ उबालें 7.5 लीटर गोमूत्र शेष रहने पर इसे आग से उतार कर ठंडा करें एवं छान लें मिश्रण तैयार कर 3 ली. को प्रति पम्प के द्वारा फसल में तर-बतर कर छिडकाव करना चाहिए |
  • मोजैक

यह विषाणु के द्वारा होता है पत्तियों की बढ़वार रुक जाती है और वे मुड़ जाती है फल छोटे बनते है और उपज कम मिलती है यह रोग चैंपा द्वारा फैलता है |

रोकथाम

इसकी रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र तम्बाकू मिलाकर पम्प के द्वारा तर-बतर कर छिडकाव करे ।
  • एन्थ्रेक्नोज

यह रोग कोलेटोट्राईकम स्पीसीज के कारण होता है इस रोग के कारण पत्तियों और फलो पर लाल काले धब्बे बन जाते है ये धब्बे बाद में आपस में मिल जाते है यह रोग बीज द्वारा फैलता है |

रोकथाम

बीज के बोने से पूर्व गौमूत्र या कैरोसिन या नीम का तेल के साथ उपचारित करना चाहिए |
पंजाब सरकार बनाएगी पराली से खाद—गैस

पंजाब सरकार बनाएगी पराली से खाद—गैस

पंजाब सरकार करीब 500 करोड़ के निजी निवेश पर आधारित पांच बायोगैस प्रोजेक्टों को शीघ्र शुरू करने जा रही है। इनमें धान की पराली से बायोगैस एवं खाद बनाई जाएगी। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री डा. राज कुमार वेरका और पेडा के चेयरमैन एच.एस. हंसपाल की मौजुदगी में राज्य के नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत विभाग की पंजाब ऊर्जा विकास एजेंसी (पेडा) ने मैसर्ज एवरएनवायरो रिसोर्स मैनेजमेंट प्राईवेट लिमटिड, मुंबई के साथ राज्य में धान की पराली पर आधारित पाँच बायोगैस प्रोजैक्टों के लिए हस्ताक्षर करके समझौता किया।

Read Also: पराली बनी गौसेवा का माध्यम

इस मौके पर पेडा के सी.ई.ओ रंधावा ने बताया कि यह प्रोजैक्ट जगराओं, मोगा, धूरी, पातड़ां और फिलौर तहसीलों में स्थापित किये जाएंगे। यह कंपनी लगभग 500 करोड़ रुपए के निजी निवेश से इन प्रोजेक्टों की स्थापना करेगी। इन प्रोजेक्टों का कुल उत्पादन 222000 घन मीटर रा बायो गैस प्रति दिन है जिसको शुद्ध किया जायेगा जिससे प्रति दिन 92 टन बायो सीएनजी /सीबीजी प्राप्त की जा सके। इन प्रोजेक्टों में उप-उत्पाद के तौर पर जैविक खाद भी तैयार की जायेगी जो खेती ज़मीन की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाएगी और रासायनिक खाद के प्रयोग को भी बदलेगी। 

यह प्रोजैक्ट दिसंबर, 2023 तक या इससे पहले बायो सीएनजी का व्यापारिक उत्पादन शुरू कर देंगे। यह प्रोजैक्ट लगभग 7000 व्यक्तियों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर रोजग़ार प्रदान करेंगे। इन प्रोजैक्टों के चालू होने पर लगभग 3.5 लाख टन सालाना धान की पराली खपत होगी। इस तरह राज्य के किसानों को अपने खेतों में इन प्रोजैक्टों के लिए खेती के अवशेष की बिक्री से भी लाभ होगा और पराली जलाने की समस्या से भी काफ़ी निजात मिलेगी।

Read Also: सुपर सीडर मशीन क्या है और कैसे दिलाएगी पराली की समस्या से निजात

सी.ई.ओ. ने आगे बताया कि पेडा ने राज्य में कुल 263 टन प्रति दिन सामर्थ्य वाले 23 ऐसे बायो सीएनजी प्रोजैक्ट, प्राईवेट डिवैलपरों को बीओओ के आधार पर अलाट किये हैं, जिनमें उपरोक्त 5 प्रोजैक्ट भी शामिल हैं। यह प्रोजैक्ट 2022-23 और 2023-24 तक लगभग 1300-1500 करोड़ रुपए के निजी निवेश से पूरे किये जाएंगे। इन प्रोजैक्टों से लगभग 35000 व्यक्तियों को प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष तौर पर रोजग़ार मिलेगा।

यह प्रोजैक्ट चालू होने पर लगभग 9 लाख टन सालाना धान की पराली का उपभोग करेंगे। मैसर्ज वर्बियो इंडिया प्राईवेट लिमटिड द्वारा गाँव भुटाल कलाँ, जि़ला संगरूर में प्रति दिन 33.23 टन बायो-सीऐनजी सामथ्र्य का स्थापित किया जा रहा सबसे बड़ा प्रोजैक्ट है, दिसंबर 2021 तक व्यापारिक उत्पादन शुरू कर देगा। इस प्रोजैक्ट में लगभग 1.25 लाख टन धान की पराली की खपत की जायेगी।

जानें खाद-बीज भंडार की दुकान खोलने की प्रक्रिया के बारे में

जानें खाद-बीज भंडार की दुकान खोलने की प्रक्रिया के बारे में

यदि आप ग्रामीण इलाकों में रहते हैं एवं कृषि से संबंधित बिजनेस करने की सोच रहे हैं, तो आप खाद-बीज की दुकान खोल सकते हैं। ऐसे में आइए आपको खाद-बीज की दुकान खोलने के लिए लाइसेंस कैसे लें, इसके बारे में आपको विस्तार से बताते हैं। शहरी क्षेत्रों की भांति ही, ग्रामीण क्षेत्रों में भी व्यवसाय के विभिन्न अवसर हैं। साथ ही, ग्रामीण इलाकों में कृषि से जुड़े कारोबार का महत्वपूर्ण रोल है। गौरतलब है, कि भारत सरकार भी कृषि से संबंधित व्यवसाय करने के लिए किसानों एवं लोगों को प्रोत्साहित कर रही है। यदि आप एक कृषक हैं अथवा फिर ग्रामीण हिस्सों में रहते हैं। साथ ही, आप कृषि से जुड़ा कारोबार करने की सोच रहे हैं, तो आप खाद-बीज की दुकान खोल सकते हैं। खाद-बीज का बिजनेस ग्रामीण क्षेत्र का एकमात्र ऐसा कारोबार है, जिसकी मांग सदैव बनी रहती है।

खाद-बीज की दुकान खोलने के लिए लाइसेंस लेने की आवश्यकता पड़ती है

हालांकि, खाद-बीज की दुकान खोलने के लिए लाइसेंस लेने की आवश्यकता पड़ती है। इसके अतिरिक्त लाइसेंस लेने के लिए आवेदक का 10वीं पास होना भी अनिवार्य है। साथ ही, सरकार किसानों को ऑनलाइन माध्यम से खाद व बीज स्टोर का लाइसेंस देने का कार्य करती है। ऐसी स्थिति में आइए आज हम आपको खाद-बीज की दुकान की स्थापना के लिए लाइसेंस लेने की संपूर्ण प्रक्रिया के बारे में बताते हैं।

ये भी पढ़ें:
खाद-बीज के साथ-साथ अब सहकारी समिति बेचेंगी आरओ पानी व पशु आहार

खाद-बीज की दुकान खोलने हेतु लाइसेंस के लिए दस्तावेज

  • आधार कार्ड
  • मतदाता पहचान पत्र
  • निवास प्रमाण पत्र
  • पैन कार्ड
  • पासपोर्ट साइज फोटो
  • एग्रीकल्चर में डिप्लोमा
  • दुकान या फर्म का नक्शा

खाद-बीज भंडार खोलने के लिए लाइसेंस किस तरह लें

खाद एवं बीज भंडार खोलने के लिए आपको सरकार से लाइसेंस लेना ही पड़ेगा। इस लाइसेंस को लेने के उपरांत ही आप खाद-बीज का कारोबार आरंभ कर सकते हैं। इसके साथ-साथ आप खाद-बीज दुकान का लाइसेंस ऑनलाइन के जरिए आसानी से निर्मित करा सकते हैं। अगर आप बिहार के मूल निवासी हैं और ऑनलाइन अपनी दुकान का लाइसेंस तैयार करने के लिए आवेदन करना चाहते हैं, तो आप लिंक पर विजिट कर आवेदन से जुड़ी संपूर्ण प्रक्रिया जान सकते हैं। साथ ही, लिंक पर विजिट कर समस्त आवश्यक दस्तावेज सबमिट कर आप खाद-बीज लाइसेंस के लिए सुगमता से आवेदन कर सकते हैं।