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लीची : लीची के पालन के लिए अभी से करे देखभाल

लीची : लीची के पालन के लिए अभी से करे देखभाल

सन;1780 मे पहली बार भारत देश मे दस्तक देने वाला फल लीची , जिसकी जरूरत आज भी शहरी और ग्रामीण बाजारों में काफी तेज़ी मे है। 

लीची एक मात्र ऐसा फल है जो हमारे शरीर को डी हाइड्रेशन यानी की पानी की कमी की पूर्ति करता है।इसी कारण भारत के पश्चिमी इलाको मे इसकी मांग बहुत है। 

इसी के साथ साथ इसमें विटामिन सी होता है, जो हमारे शरीर मे कैल्शियम की कमी की पूर्ति करता है। इसमें केरोटिन और नियोसीन भी होता है जो शरीर मे इम्यूनिटी को बढ़ाता हैं। 

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भारत मे लीची का उत्पादन सबसे ज्यादा त्रिपुरा मे होता है। इसके अलावा अन्य राज्य झारखंड , पश्चिम बंगाल , बिहार , उतरप्रदेस और पंजाब मे। 

भारत मे किसानों के लिए लीची की फसल से अच्छा मुनाफा होता है ,लेकिन साथ ही साथ अच्छी देखभाल भी करनी पड़ती है।

लीची की फसल को तैयार होने मे काफी समय लगता है, इसलिए किसानों को काफी परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है । ऐसे मे किसानों को संपूर्ण फसल को तैयार करने मे लागत खर्चा भी ज्यादा लगता है।

लीची के पालन के लिए सिंचाई और खाद उर्वरक का इस प्रकार करे इस्तेमाल :

insect pest in litchi

लीची की फसल के लिए हमेशा आपको थाला विधि से ही सिंचाई करनी चाहिए। हमें केवल तब तक सिंचाई करनी है ,जब तक पौधों मे फूल आना न लग जाए। 

उसके बाद हमें नवंबर माह से फरवरी माह तक लीची की फसल की सिंचाई नहीं करनी चाहिए। लीची के पौधों को पानी देने का सबसे अच्छा समय शाम का होता है, क्योंकि इससे दिन की गर्मी की वजह से वाष्पीकरण भी नहीं होता है और पौधों को अच्छी तरह से जल की पूर्ति भी होती हैं। 

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इसके अलावा अच्छी खाद और उर्वरक का इस्तेमाल करें और साथ ही साथ पौधे के आस पास बिल्कुल भी खरपतवार ना रहने दे। खरपतवार सभी प्रकार की फसलों के लिए सबसे खतरनाक होता है। 

इस से बचाव के लिए समय समय पर लीची के पौधों के आस पास ध्यान रखे और खरपतवार बिल्कुल भी न रहने दे। जब पौधे 6 से 7 माह के हो जाते है, तो उसके बाद आप पौधों मे फव्वारे के द्वारा पानी की छटाई अवस्य रूप से करे। 

अप्रैल महीने से लेकर नवंबर महीने तक लीची के पौधे की पूर्ण रूप से सिंचाई करे । इस समय तेज गर्मी के कारण पौधों को पानी की पूर्ति सही ढंग से नहीं करवाने पर संपूर्ण फसल पर बहुत असर पड़ता है।

लीची के पौधों की इस प्रकार करे कांट - छांट और रख - रखाव :

production of litchi crops

लीची के पौधों की रख - रखाव करना सबसे महत्वपूर्ण काम होता है ,क्योंकि इसके बिना पूरी फसल भी खराब हो सकती है। 

इसके लिए आप गर्मी और सर्दी की ऋतू मे जब पोधा 4-5 साल का होता है, तो इस समय उसकी अवांछित टहनियों और साखाओ को हटा देना चाहिए । इससे जो भी कीट पतंग और मकड़िया बिना धूप पहुंचने के कारण शाखाओं में छिप जाती हैं वे नष्ट हो जाएंगी। 

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इससे पौधे का अच्छे से भरण-पोषण होगा और फसल की उपज भी अच्छी होगी। फलों की तुड़ाई करने के बाद आप पौधे की जितनी भी रोग ग्रसित ,अवांछित, खराब टहनियों और पत्तियों को हटा दे। 

संपूर्ण खेत के चारों तरफ से बाढ करना बहुत जरूरी है,इससे आसपास के पशु फसल को नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे। साथ ही साथ इससे फसल की उपज मे भी इजाफा होगा।

लीची की फसल मे आने वाली समस्याओं का इस प्रकार करे समाधान :

litchi farming

लीची की फसल का सही से रखरखाव और अच्छी उपज के लिए किसानों को काफी समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है, जिनके बारे मे आज हम आपको बताएंगे की किस प्रकार आप इन समस्याओं से निदान पा सकते है। एक अच्छी फसल का उत्पादन कर सकते हैं तो चलिए जानते है इनके बारे मे

  1. लीची के फलों का फटना और छोटा होने से बचाव :- लीची के पौधों को गर्म और तेज हवाओं के कारण इनके फलों पर इसका सबसे ज्यादा असर दिखाई देता है क्योंकि इससे फल फटना तथा छोटा होना शुरू हो जाते है। ऐसे मे आप  बोरेक्स  ( 5ग्राम लिटर ) या बोरिक अम्ल (4 ग्रा./ली.) के घोल का 2-3 बार छिड़काव करें । इससे फसल की अच्छी पैदावार होगी।फलों के फटने की समस्या भी दूर हो जायेगी ।
  2. लीची मे मकड़ी का लग जाने से बचाव : लीची मे अगर एक बार मकड़ी लग जाती है, तो पूरी फसल को बर्बाद कर देती है। यह मकड़ी लीची के पौधों की टहनियां ,पत्ते और फलों को चुस्ती रहती है। जिसके कारण पूरा पौधा कमजोर पड़ जाता है और नष्ट हो जाता है। इससे बचाव के लिए आप सितंबर और अक्टूबर माह मे केलथेन या फ़ॉसफामिडान (1.25 मि.ली./लीटर) का घोल बनाकर 10- 15 दिन का अंतराल लेकर छिड़काव करें।
  3. लीची के फलों को झड़ने से रोकने के सुझाव :लीची के फलों का झड़ना संपूर्ण फसल के लिए काफी नुकसानदायक होता है। ऐसा पानी की कमी और किटों के कारण होता है।इससे बचाव के लिए आप पौधे मे फल लगने के मात्र सप्ताह भर के अंदर - अंदर क्रॉनिक्सएक्स 2 मिलीलीटर / 4. 8 लीटर या फिर आप ए एन ए 20 मिलीग्राम प्रति लीटर के घोल का बारी-बारी से छिड़काव करें। इससे फलों का झड़ना बंद हो जाएगा।

लीची के पौधे का पूर्ण विकास और प्रबंध इस प्रकार करें :

Litchi farmers

लीची के पौधे का संपूर्ण तरह से विकास होने मे 15 से 20 साल तक का समय लगता है। ऐसे मे पौधे का पूर्ण विकास और सही रखरखाव होना बहुत ही जरूरी होता है।अच्छी उपजाऊ जमीन और अच्छी जलवाष्प का होना भी काफी आवश्यक होता है। 

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लीची के पौधों को लगाते समय प्रति पौधे के बीच मे 5 मीटर की दूरी होनी चाहिए। किसान भाई प्रत्येक एक हेक्टर में 90 से 200 लीची के पौधे लगाएं। 

लीची के पौधों का अच्छे से विकास करने के लिए उनको क्रमबद्ध कतारों मे जरूर लगाए। नियमित रूप से सिंचाई और समय-समय पर पौधों की जरूरत के अनुसार खाद और उर्वरक का छिड़काव करना ना भूलें।

भारत मे लीची का बढ़ता हुआ आयात इस प्रकार :

litchi production in india

भारतीय बाजार की तुलना मे अंतरराष्ट्रीय बाजार मे नवंबर माह से लेकर मार्च माह तक काफी ज्यादा लीची की मांग होती है। भारत मे लीची का फल जुलाई महीने तक संपूर्ण रूप से तैयार होकर बाजार मे उपलब्ध होता है। 

ऐसे समय पर अंतरराष्ट्रीय बाजार मे लीची की मांग बढ़ जाती है। भारत से निर्यात को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा एपीडी कार्यक्रम की भी प्रमुख भूमिका है। 

भारत से सबसे ज्यादा लीची का निर्यात सऊदी अरेबिया संयुक्त अरब अमीरात, ओमान , कुवैत  ,बेल्जियम  ,बांग्लादेश और नार्वे जैसे देशों को होता है। 

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भारतीय बाजार मे लीची की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार की तुलना में काफी कम है , लेकिन पिछले कुछ सालों मे इसकी कीमत मे इजाफा हुआ है। 

साथ ही साथ भारत सरकार द्वारा किसान भाइयों के लिए फसलों की रखरखाव और जानकारी के लिए कई सारे कार्यक्रम भी किए जाते हैं। 

इसके अलावा लॉकडाउन लगने के कारण किसानों को लीची की फसल को भारतीय बाजार मे बेचने के लिए काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा लेकिन आने वाले सालों मे लीची का आयात बहुत ज्यादा बढ़ने वाला है। 

अतः हमारे द्वारा बताए गए इन सभी सुझाव समस्याओं एवं उनके निदान जो की लीची की फसल के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होते है। साथ ही साथ इसके अलावा किसान भाई समय-समय पर लीची के पौधों का उचित रखरखाव और खाद रूप का छिड़काव करते रहे।

लीची की वैरायटी (Litchi varieties information in Hindi)

लीची की वैरायटी (Litchi varieties information in Hindi)

दोस्तों आज हम बात करेंगे लीची के विषय में लीची की वैरायटी कितने प्रकार की होती है।लीची से हमें कितने प्रकार के लाभ हो सकते हैं और लीची के महत्वपूर्ण विषय के बारे में जिससे हमें लीची से संबंधित सभी प्रकार की जानकारियां प्राप्त हो जाए।लीची से जुड़ी आवश्यक जानकारियों को प्राप्त करने के लिए हमारी पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहे।

लीची

लीची एक ऐसा फल है जो स्वाद में सबसे अलग है लीची की बढ़ती मांग दुनियाभर में प्रचलित है। लीची ना सिर्फ स्वादिष्ट बल्कि या विटामिन से भी भरी हुई होती है। यदि आपको अब तक इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि लीची को पैदावार करने वाला देश चीन है। लेकिन ऐसा नहीं है कि लीची सिर्फ चीन में ही पैदा होती है भारत भी इस की पैदावार की श्रेणी में आता है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार लीची करीबन एक लाख टन से भी ज्यादा उत्पादन भारत देश में होता है।

इसकी अच्छी क्वालिटी की मांग स्थानीय से लेकर अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी बड़े पैमाने में बढ़ चढ़कर इसकी मांगे होती है।फल के रूप में लीची का सेवन वैसे तो किया जाता है, लेकिन विभिन्न प्रकार के जूस या तरल पदार्थ में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। जैसे लीची का शरबत बनाना, जैम आदि का उपयोग करना, नेक्टर, कार्बोनेटेड और भी कई पिए जाने वाले पदार्थों में लीची का उपयोग किया जाता है।

भारत देश में लीची कहां पाई जाती है

भारत देश में विभिन्न ऐसे राज्य और क्षेत्र है, जहां पर लीची का उत्पादन काफी मात्रा में होता है। उनमें से एक बिहार क्षेत्र है जहां पर लीची का उत्पादन होता है। मुजफ्फरपुर तथा दरभंगा  जिलो में लीची की काफी भारी मात्रा में पैदावार होती है, तथा बिहार के क्षेत्र पश्चिमबंगाल ,असम और भारत के उत्तराखंड तथा पंजाब लीची की पैदावार करने वाले क्षेत्र है।

लीची की खेती के लिए कैसे जलवायु उपयुक्त हैं

लीची के लिए उपयुक्त जलवायु जनवरी और फरवरी के महीने में आसमान खुला - खुला साफ रहता है,तो इस बीच काफी शुष्क हवाएं चलती है। जिससे लीची में बेहतर मंजरी यानी( नया कल्ला) बनती है।लीची उत्पादन के लिए सबसे अच्छी जलवायु समशीतोष्ण की होती है। जलवायु के इस प्रभाव से लीची के फल काफी अच्छे आते हैं। लीची मार्च और अप्रैल के महीने में काफी अच्छी तरह से विकसित होती है, क्योंकि कम गर्मी पड़ने से इसकी गुणवत्ता अच्छी होती है तथा लीची के गूदे का अच्छा विकास होता है। लीची के फूल जनवरी-फरवरी में खिलते हैं तथा मई-जून में यह पूरी तरह से विकसित होकर तैयार हो जाती हैं।

विशिष्ट जलवायु लीची की खेती के लिए बहुत ही उपयोगी होती है। लीची की खेती करने वाले मुख्य देश है: जैसे देहरादून की घाटी, उत्तर प्रदेश का तराई क्षेत्र, उत्तरी बिहार, झारखंड प्रदेश,आदि इन क्षेत्रों में लीची की पैदावार काफी आसानी के साथ भारी मात्रा में लीची का उत्पादन होता है।

लीची की खेती के लिए मिट्टी का चुनाव

लीची की खेती के लिए किसान जिस मिट्टी का चुनाव किसान करते हैं ,जिससे लीची की फसल काफी अच्छी हो वह मिट्टी अम्लीय एवं लेटराइट होती है। गहरी बलुई दोमट मिट्टी जिसकी क्षमता जल धारण करने के लिए अधिक हो वह लीची की खेती के लिए बहुत ही उपयोगी साबित होती है। परंतु ध्यान रखने योग्य बातें जलभराव वाले क्षेत्र लीची उत्पादन के लिए बिल्कुल भी सही नहीं होते हैं। लीची की खेती जल निकास युक्त जमीन में करना बहुत लाभदायक होता है।

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लीची की वैरायटी

यदि हम बात करें लीची की वैरायटी की, तो भारत में काफी कम मात्रा में लीची की ( वैरायटी /किस्म) पाई जाती हैं।इसका मुख्य कारण यह हो सकता है,कि किसान इस की खेती या बुआई करने में काफ़ी देरी कर देते हैं। इन्हीं कारणों की वजह से यह काफी कम मात्रा में पाई जाती है।कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार कुछ वर्षों में किसानों ने अपनी जी तोड़ मेहनत के बल पर कई अनेक प्रकार की लीची की किस्मों की खेती की है।किसानों ने लीची की पैदावार को बढ़ाने के लिए इनकी अनेक प्रकार की किस्मों की काफी सहायता भी ली है।

लीची की कुछ प्रमुख किस्म इस प्रकार है

किसानों द्वारा दी गई जानकारियों के अनुसार  इनकी कुछ किस्मों का हमें ज्ञात हुआ है जो निम्न प्रकार है;

  1. कलकतिया लीची

 दोस्तों जानते हैं कलकतिया लीची कि जो खाने में ही बहुत ही ज्यादा स्वादिष्ट होती है और इनकी जो बीज होती है वह आकार में काफी बड़ी होती है। या कलकतिया लीची की बहुत ही अच्छी किस्म है। कलकतिया लीची के फल जुलाई के महीने में आते हैं। कलकतिया लीची की किस्म पूरी तरह से पकने में काफी लंबा टाइम लेते हैं। कलकतिया लीची लगभग 23 ग्राम की होती है बात करें इन के छिलकों की तो यह दिखने में हल्की मोती रंग के नज़र आते हैं। लोग इस कलकतिया लीची की किस्म को बड़े ही चाव के साथ खाना पसंद करते हैं।

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  1. लीची की देहरादून किस्म

 देहरादून के फल लोगों में बहुत ही ज्यादा लोकप्रिय होते हैं, देहरादून के फल लोग बहुत ही ज़्यादा पसंद करते हैं। लीची की या किस्म बहुत ही जल्दी समय में फल देती है। लीची कि यह किस्म जून के महीने में तोड़ने के लायक हो जाती है।इसके फल काफी तेजी से पकना शुरू कर देते हैं। लीची की यह किस्म की रंगत दिखने में लोगों को अपनी ओर बहुत ही आकर्षित करती हैं। इनमें दरारे जल्दी आ जाती है और छिलके फटने लगते है। लीची की देहरादून  किस्म बहुत पौष्टिक होती है।

  1. लीची की रोज सेंटेड किस्म

लीची की या किस्म खाने में मीठी होती है, दिखने में या एक गुलाब के तरह होती है।यह लीची की किस्म जून के महीने में पूरी तरह से पक जाती हैं।जब यह लीची पक जाती है तो दिखने में एकदम हृदय के आकार की प्रतीत होती है। बात करें, इसके भार की तो लगभग 18 ग्राम की होता है। इनके छिलके बैगनी रंग के साथ बहुत ही पतला भी होते है। लीची की रोज सेंटेड किस्म बहुत भी पौष्टिक होती हैं।

  1. लीची की अर्ली लार्ज रेड किस्म

 लीची की अर्ली लार्ज रेड किस्म का बीज  आकार बड़ा होता है। लीची की इस किस्म की खेती जून के महीने में होती है। इस लीची का भार 20 से 50 ग्राम का होता है। इस लीची के छिलके काफी हल्के होते हैं या दिखने में लाल रंग के होते हैं। इसमें मौजूद शर्करा 10 प्रतिशत पाया जाता है। तथा लीची की इस किस्म में लगभग 43% अम्लता मौजूद होता है।

लीची की किस्मों से जुड़ी कुछ आवश्यक बातें

लीची की किस्मों से जुड़ी कुछ आवश्यक बातें शाही लीची तथा बेदाना और चाइना लीची कि किस्म बहुत ही उपयोगी मानी जाती है।शाही लीची की खेती बेदाना की तुलना में काफी मात्रा में की जाती है।क्योंकि शाही लीची पूर्ण रुप से गुणवत्ता से भरी हुई होती है और इस में कई तरह के पौष्टिक तत्व भी मौजूद होते हैं। 

दोस्तों हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा लीची की वैरायटी का आर्टिकल काफी पसंद आया होगा।हमने अपने इस आर्टिकल में लीची  की वैरायटी तथा लीची से जुड़ी सभी प्रकार की जानकारियों की पूरी डिटेल हमारे इस आर्टिकल में मौजूद है। यदि आप हमारी दी गई जानकारी से संतुष्ट है तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर शेयर करें। धन्यवाद।

इस माह नींबू, लीची, पपीता का ऐसे रखें ध्यान

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नींबू (Lemon) की नीली फफूंद से सुरक्षा

लीची (Lychee) खाने वाली इल्ली से रक्षा

पपीता (Papaya) पौधे को गलने से बचाएं

फलदार पौधों की बागवानी तैयार करने के लिए अगस्त का महीना अनुकूल माना जाता है। नींबू, बेर, केला, जामुन, पपीता, आम, अमरूद, कटहल, लीची, आँवला का नया बाग-बगीचा तैयार करने का काम किसान को इस महीने पूरा कर लेना चाहिए। भाकृअनुप- 
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR -Indian Council of Agricultural Research), पूसा, नई दिल्ली के कृषि एवं बागवानी विशेषज्ञों ने इनकी खेती के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। इस लेख में हम नींबू (Lemon), लीची (Lychee), पपीता (Papaya) की बागवानी से जुड़े खास बिंदुओं पर अपना ध्यान केंद्रित करेंगे।

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नींबू (Lemon) की देखभाल

नींबू के पौधे खेत, बागान या घर की बगिया में रोपने के लिए अगस्त का महीना काफी अच्छा होता है। कृषक मित्र उपलब्ध मिट्टी की गुणवत्ता के हिसाब से नींबू की किस्मों का चयन कर सकते हैं। कृषि विज्ञान केंद्र, उद्यानिकी विभाग से संबद्ध नर्सरी के अलावा ऑन लाइन प्लेटफॉर्म से किसान, उपलब्ध लागत के हिसाब से पौधों की किस्मों का चयन कर सकते हैं। इन केंद्रों पर 20 रुपये से लेकर 100, 200 एवं 500 रुपया प्रति पौधा की दर से पौधे खरीदे जा सकते हैं। उल्लेखनीय है कि पौधे की कीमत उसकी किस्म के हिसाब से घटती-बढ़ती है।

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अगस्त का महीना नींबू और लीची के पेड़-पौधों में गूटी बांधने के लिहाज से काफी उपयुक्त माना जाता है।

ऐसे करें लेमन सिट्रस कैंकर का उपचार

नींबू के सिट्रस कैंकर (Citrus canker) रोग का समय रहते उपचार जरूरी है। यह उपाय ज्यादा कठिन भी नहीं है। नींबू में सिट्रस कैंकर रोग के लक्षण पहले पत्तियों में दिखने शुरू होते हैं। बाद में यह नींबू के पौधे-पेड़ की टहनियों, कांटों और फलों पर पर भी फैल जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए जमीन पर गिरी हुई पौधे की पत्तियों को इकट्ठा कर नष्ट कर देना चाहिए। इसके अलावा नींबू की रोगयुक्त टहनियों की काट-छांट भी जरूरी है। बोर्डाे (Bordo) मिश्रण (5:5:50), ब्लाइटाॅक्स (Blitox) 0.3 फीसदी (3 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर) का छिड़काव भी सिट्रस कैंकर रोग से नींबू के पेड़ के बचाव में कारगर साबित होता है।

रसजीवी कीट से रक्षा

नींबू के पौधे का रस चूसने वाले कीट से भी समय रहते बचाव जरूरी है। नींबू के पौधे का रस चूसने वाले कीट से बचाव करने के लिए मेलाथियान (Malathion) का स्प्रे मददगार होता है। मेलाथियान को 2 मिलीलीटर पानी में घोलकर पौधे पर छिड़काव करने से नींबू की रक्षा करने में गार्डनर को मदद मिल सकती है।
लग सकता है नीला फफूंद रोग
अगस्त महीने के दौरान नींबू के पौधों पर नीला फफूंद रोग लगने की आशंका रहती है। लेमन ट्री या प्लांट की नीले फफूंद रोग से रक्षा के लिए आँवला वाला तरीका अपनाया जा सकता है। इसके लिए नींबू के फलों को बोरेक्स या नमक से उपचारित कर नीला फफूंद रोग से रक्षा की जा सकती है। नींबू के फलों को कार्बेन्डाजिम या थायोफनेट मिथाइल की महज 0.1 प्रतिशत मात्रा से उपचारित करके भी नीला फफूंद रोग को फैलने से रोका जा सकता है।

लीची (Lychee or Litchi) की रक्षा

रस से भरी, चटख लाल, कत्थई रंग की लीची देखकर किसके मुंह में पानी न आ जाए। बार्क इटिंग कैटरपिलर (Bark Eating Caterpillar) भी अपनी यही चाहत पूरी करने लीची पर हमला करती है।

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आपको बता दें बार्क इटिंग कैटरपिलर लीची का छिलका खाने की शौकीन होती है। लीची का छिलका खाने वाले पिल्लू (बार्क इटिंग कैटरपिलर) की रोकथाम भी संभव है। इसके लिए लीची के जीवित छिद्रों में पेट्रोल या नुवाॅन या फार्मलीन से भीगी रुई ठूंसकर छिद्र मुख को चिकनी मिट्टी से अच्छी तरह से बंद कर देना चाहिए। बगीचे को स्वच्छ एवं साफ-सुथरा रखकर भी इन कीटों से लीची का बचाव किया जा सकता है।

पपीता (Papaya) का रखरखाव

पपीता का पनामा विल्ट (Panama wilt) एवं कॉलर रॉट (Collar Rot) जैसे प्रकोप से बचाव किया जाना जरूरी है। पपीते के पेड़ में फूल आने के समय 2 मिली. सूक्ष्म तत्वों को एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने की सलाह वैज्ञानिकों ने दी है।

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पनामा विल्ट की रोकथाम

पनामा विल्ट के पपीता पर कुप्रभाव को रोकने के लिए बाविस्टीन(BAVISTIN) का उपयोग करने की सलाह दी गई है। बाविस्टीन के 1.5 मि.ग्रा. प्रति लीटर पानी मिश्रित घोल से पनामा विल्ट से रक्षा होती है। बताए गए घोल का पपीते के पौधों के चारों ओर मिट्टी पर 20 दिनों के अंतराल से दो बार छिड़काव करने की सलाह उद्यानिकी सलाहकारों ने दी है।

काॅलर राॅट की रोकथाम

काॅलर राॅट भी पपीता के पौधों के लिए एक खतरा है। पपाया प्लांट पर काॅलर राॅट के प्रकोप से पपीता के पौधे, जमीन की सतह से ठीक ऊपर गल कर गिर जाते हैं। इस समस्या के समाधान के लिए पौधों पर रिडोमिल (RIDOMIL)(2 ग्राम/लीटर) दवा का छिड़काव करना फायदेमंद होगा। नींबू, लीची और पपीता के खेत में जलभराव से फल पैदावार प्रभावित हो सकती है। इन खेतों पर जल भराव न हो इसलिए कृषकों को जल निकासी के पर्याप्त इंतजाम नींबू, लीची, पपीता के खेतों पर करने चाहिए।
विदेशों में लीची का निर्यात अब खुद करेंगे किसान, सरकार ने दी हरी झंडी

विदेशों में लीची का निर्यात अब खुद करेंगे किसान, सरकार ने दी हरी झंडी

लीची बिहार की एक प्रमुख फसल है। पूरे राज्ये में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। बिहार के मुजफ्फरपुर को लीची उत्पादन का गढ़ माना जाता है। यहां की लीची विश्व प्रसिद्ध है, इसलिए इस लीची की देश के साथ विदेशों में भी जबरदस्त मांग रहती है। लीची को लोग फल के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। साथ ही इससे जैम बनाया जाता है और महंगी शराब का निर्माण भी किया जाता है। जिससे दिन प्रतिदिन बिहार की लीची की मांग बढ़ती जा रही है। बढ़ती हुई मांग को देखते हुए सरकार ने प्लान बनाया है कि अब किसान खुद ही अपनी लीची की फसल का विदेशों में निर्यात कर सेकेंगे। अब किसानों को अपनी फसल औने पौने दामों पर व्यापारियों को नहीं बेंचनी पड़ेगी। अगर भारत में लीची के कुल उत्पादन की बात करें तो सबसे ज्यादा लीची का उत्पादन बिहार में ही किया जाता है। यहां पर उत्पादित शाही लीची की विदेशों में जमकर डिमांड रहती है। इसलिए सरकार ने कहा है कि किसान अब इस लीची को खुद निर्यात करके अच्छा खास मुनाफा कमा सकेंगे। इसके लिए सरकार ने मुजफ्फरपुर जिले के चार प्रखंडों में 6 कोल्ड स्टोरेज और 6 पैक हाउस का निर्माण करवाया है। इसके साथ ही 6 पैक हाउस को निर्देश दिए गए हैं कि वो किसानों की यथासंभव मदद करें। इन 6 पैक हाउस में प्रतिदिन 10 टन लीची की पैकिंग की जाएगी, जिसका सीधे विदेशों में निर्यात किया जाएगा।

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खुशखबरी: बिहार के मुजफ्फरपुर के अलावा 37 जिलों में भी हो पाएगा अब लीची का उत्पादन
बिहार लीची एसोसिएशन के अध्यक्ष बच्चा प्रसाद सिंह ने बताया है कि निर्यात का काम बिहार लीची एसोसिएशन देखेगी, तथा इस काम में किसानों की यथासंभव मदद की जाएगी। उन्होंने बताया कि पहले मुजफ्फरपुर में मात्र एक प्रोसेसिंग यूनिट की व्यवस्था थी, लेकिन अब मांग बढ़ने के कारण सरकार ने जिले में 6 प्रोसेसिंग यूनिट लगवा दी हैं। अगर भविष्य में कोल्ड स्टोरेज और पैक हाउस की मांग बढ़ती है तो उसकी व्यवस्था भी की जाएगी। जिससे किसान बेहद आसानी से अपने उत्पादों को विदेशों में निर्यात कर पाएंगे। बिहार के कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया है कि इस प्रोजेक्ट को बागवानी मिशन के तहत लॉन्च किया गया है। जिससे किसानों को अपने उत्पादों को मनचाहे बाजार में एक्सपोर्ट करने में मदद मिले। लीची की प्रोसेसिंग यूनिट लगाने पर 4 लाख रुपये का खर्च आता है, जिसमें 50 फीसदी सब्सिडी सरकार देती है। ऐसे में अगर किसान चाहें तो खुद ही लीची की प्रोसेसिंग यूनिट लगा सकते हैं और खुद के साथ अन्य किसानों की भी मदद कर सकते हैं। उत्पादन को देखते हुए आने वाले दिनों में जिलें में लीची की प्रोसेसिंग यूनिट्स में बढ़ोत्तरी होगी।

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कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया है कि वर्तमान में मुजफ्फरपुर के मानिका, सरहचियां, बड़गांव, गंज बाजार और आनंदपुर में कोल्ड स्टोरेज और पैक हाउस खोले गए हैं। जहां लीची को सुरक्षित रखा जा सकेगा। इनका उद्घाटन आगामी 19 मई को किया जाएगा। किसानों को मदद करने के लिए बिहार लीची एसोसिएशन, भारतीय निर्यात बैंक और बिहार बागवानी मिशन तैयार हैं। ये किसानों को यथासंभव मदद उपलब्ध करवाएंगे, ताकि मुजफ्फरपुर की लीची का विदेशों में बड़ी मात्रा में निर्यात हो सके।