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किसान पूसा से धान की इन किस्मों का बीज अब ऑनलाइन खरीद सकते हैं

किसान पूसा से धान की इन किस्मों का बीज अब ऑनलाइन खरीद सकते हैं

भारत विश्व में चावल उत्पादन के मामले में दूसरे स्थान पर है। भारत में खरीफ की प्रमुख फसलों में धान का विशेष स्थान है। धान की खेती भारत के उत्तरी और दक्षिणी प्रदेशों में मानसून के मौसम में की जाती है। 

साथ ही, कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां धान का सीजन (Paddy Season) वर्ष में दो बार आता है। धान की खेती सिंचित और असिंचित दोनों ही तरह के इलाकों में की जाती है। बतादें, कि धान की खेती छिड़काव और रोपाई विधि के माध्यम से की जाती है। 

बतादें, कि रोपाई विधि से धान का उत्पादन काफी अच्छा हांसिल होता है। भारत में धान की बहुत सारी ऐसी उन्नत किस्में हैं, जिनकी खेती करके आप काफी शानदार लाभ कमा सकते हैं। 

इनमें धान की PB 1692" और "PB 1509" किस्म शामिल है, जिन्हें आप ऑनलाइन भी खरीद सकते हैं।

धान की पीबी 1692 किस्म / Paddy PB 1692 Variety

पूसा बासमती 1692 धान की उन्नत किस्मों में से एक है। यह एक शीघ्र पकने वाली बासमती धान की प्रजाति है। इसको पकने में तकरीबन 110 से 115 दिनों का समय लगता है और ज्यादा उत्पादन होता है। 

इसी खूबी की वजह से यह बासमती उत्पादक क्षेत्र में धान की फसल की समय पर कटाई करने में सहयोग करता है। ताकि फसल के पश्चात अन्य कार्यों को करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। 

अगर समय पर खेतों की सफाई की जाती है, तो इससे पर्यावरण प्रदूषण को भी कम करने में सहायता मिलती है। इसके अतिरिक्त बासमती जीआई क्षेत्र में आने वाली गेहूं की फसल की भी वक्त पर बुवाई में सहायता मिलती है। 

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किसान धान की पीबी 1692 किस्म की खेती कर करीब 20 से 24 क्विंटल प्रति एकड़ फसल हांसिल कर सकते हैं। वहीं, प्रति एकड़ में रोपाई के लिए 5 किलो बीज पर्याप्त होते हैं।

धान की पीबी 1509 किस्म / Paddy PB 1509 Variety

पूसा बासमती 1509 धान भी उन्नत किस्मों में से एक है। इसको 2013 में सीवीआरसी द्वारा बासमती उगाने वाले इलाकों जैसे कि - दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी यूपी, उत्तराखंड और जम्मू और कश्मीर के लिए जारी किया गया था। 

यह एक शीघ्रता से पकने वाली बासमती धान की किस्म है। इसको पकने में 115 से 120 दिनों का वक्त लगता है। पूसा बासमती 1509 धान की किस्म 5 से 6 सिंचाई तक बचाने में मदद करती है, जिससे आप लगभग 33% प्रतिशत तक पानी की बचत कर सकते हैं। 

किसान धान की इस किस्म की खेती से करीब 27 से 28 क्विंटल प्रति एकड़ फसल हांसिल कर सकते हैं। प्रति एकड़ भूमि में इस किस्म की धान की रोपाई के लिए 4 से 5 किलो बीज पर्याप्त होते हैं। 

धान की ऑनलाइन खरीद कैसे करें 

अगर आप धान की “PB 1692" और "PB 1509" किस्म को खरीदना चाहते हैं, तो आप इसको घर बैठे ऑनलाइन माध्यम से भी ऑर्डर कर सकते हैं। 

अब आप एनएससी के उत्तम किस्म के धान ‘पीबी 1692’ और पीबी’ किस्म के सर्टिफाइड बीज के 10 किलोग्राम के पैकट को ऑनलाइन माध्यम से खरीद सकते हैं। 

यहां आपको NSC धान पीबी 1509 बीज के 10 किलोग्राम का पैकट 850 रुपये में मिलता है। वहीं, NSC धान पीबी 1509 बीज के 10 किलोग्राम के पैकट की कीमत 800 रुपये निर्धारित की गई है। अभी ऑर्डर करने के लिए https://mystore.in/en/search/nsc-paddy लिंक पर क्लिक करें। 

ऐसे मिले धान का ज्ञान, समझें गन्ना-बाजरा का माजरा, चखें दमदार मक्का का छक्का

ऐसे मिले धान का ज्ञान, समझें गन्ना-बाजरा का माजरा, चखें दमदार मक्का का छक्का

पैडी (Paddy) यानी धान, शुगरकैन (sugarcane) अर्धात गन्ना, बाजरा (millet) और मक्का (maize) की अच्छी पैदावार पाने के लिए, भूमि सेवक किसान यदि मात्र कुछ मूल सूत्रों को अमल में ले आएं, तो कृषक को कभी भी नुकसान नहीं रहेगा। यदि होगा भी तो बहुत आंशिक।

धान, गन्ना, जवार, बाजरा, मक्का, उरद, मुंग की अच्छी पैदावार : समझें अनुभवी किसानों से

स्यालू में धान (dhaan/Paddy)

स्यालू यानी कि खरीफ की मुख्य फसल (Major Kharif Crops) की यदि बात की जाए तो वह है धान (dhaan/Paddy/Rice)। इस मुख्य फसल की बीज या फिर रोपा (इसकी सलाह अनुभवी किसान देते हैं) आधारित रोपाई, जूलाई महीने में हर हाल में पूरा कर लेने की मुंहजुबानी सलाह किसानों से मिल जाएगी। 

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अच्छी धान के लिए कृषि वैज्ञानिकों के मान से धान (dhaan) के खेत (Paddy Farm) में यूरिया (नाइट्रोजन) की पहली तिहाई मात्रा का उपयोग धान रोपण के 58 दिन बाद करना हितकारी है। क्योंकि इस समय तक पौधे जमीन में अच्छी तरह से जड़ पकड़ चुके होते हैं। रोपण के सप्ताह उपरांत खेत में रोपण से वंचित एवं सूखकर मरने वाले पौधों वाले स्थान पर, फिर से पौधों का रोपण करने से विरलेपन के बचाव के साथ ही जमीन का पूर्ण सदुपयोग भी हो जाता है। 

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धान रोपण युक्ति

तकरीबन 20 से 25 दिन में तैयार धान की रोपाई खेत में की जा सकती है। इस दौरान पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेंटीमीटर तथा पौध से पौध की दूरी 10 सेमी रखने की सलाह कृषि वैज्ञानिक देते हैं। उत्कृष्ट उत्पादन के लिए प्रति हेक्टेयर 100 किग्रा नाइट्रोजन (Urea), 60 किग्रा फास्फोरस, 40 किग्रा पोटाश और 25 किग्रा जिंक सल्फेट डालने की सलाह कृषि सलाहकारों की है। 

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गन्ने की खेती (Sugarcane Farming)

गले की तरावट, मद्य, मीठे गुड़ में मददगार शुगरकैन फार्मिंग (Sugarcane Farming), यानी गन्ने की खेती में भी कुछ बातों का ख्याल रखने पर दमदार और रस से भरपूर वजनदार गन्नों की फसल मिल सकती है। जैसे गन्ने की पछेती बुवाई (रबी फसल कटने के बाद) करने की दशा में, खेत में समय-समय पर सिंचाई, निराई एवं गुड़ाई अति जरूरी है। फसल कीड़ों-मकोड़ों और बीमारियों के प्रकोप से ग्रसित होने पर रासायनिक, जैविक या अन्य विधियों से नियंत्रित किया जा सकता है। ये भी पढ़ें: हल्के मानसून ने खरीफ की फसलों का खेल बिगाड़ा, बुवाई में पिछड़ गईं फसलें अत्यधिक वर्षा, तूफान या तेज हवा के दबाव में गन्ने के फसल जमीन पर बिछने/गिरने का खतरा मंडराता है। ऐसे में जुलाई-अगस्त के महीने में ही, दो कतारों मध्य कुंड बनाकर निकाली गई मिट्टी को ऊपर चढ़ाने से ऐहतियातन बचाव किया जा सकता है।

उड़द, मूंग में सावधानी

बारिश शुरू होते ही उड़द एवं मूंग की बुवाई शुरू कर देना चाहिए। अनिवार्य बारिश में देर होने की दशा में पलेवा कर इनकी बुवाई जुलाई के प्रथम पखवाड़े, यानी पहले पंद्रह दिनों में खत्म करने की सलाह दी जाती है। 

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उड़द, मूंग की बुवाई सीड ड्रिल या फिर अपने पुश्तैनी देसी हल से कर सकते हैं। इस दौरान ख्याल रहे कि 30-45 सेमी दूरी पर बनी पक्तियों में बुवाई फसल के लिए कारगर होगी। इसके साथ ही निकाई से पौधे से पौधे के बीच की दूरी 7 से 10 सेमी कर लेनी चाहिए। उड़द, मूंग की उपलब्ध किस्मों के अनुसार उपयुक्त बीज दर 15 से 20 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर मानी गई है। दोनों फसलों में प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किग्रा फास्फोरस तथा 20 किग्रा गंधक का मानक रखने की सलाह कृषि वैज्ञानिक एवं सलाहकार देते हैं।

भरपूर बाजरा (Bajra) उगाने का यह है माजरा

बाजरा के भरपूर उत्पादन के लिए कई प्लस पॉइंट हैं। अव्वल तो बाजरा (Bajra) के लिए अधिक उपजाऊ मिट्टी की जरूरी नहीं, बलुई-दोमट मिट्टी में यह पनपता है। इसकी भरपूर पैदावार के लिए सिंचित क्षेत्र के लिए नाइट्रोजन 80 किलोग्राम, फॉस्फोरस और पोटाश 40-40 किलोग्राम और बारानी क्षेत्रों के लिए नाइट्रोजन-60 किग्रा, फॉस्फोरस व पोटाश 30-30 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करने की सलाह जानकार देते हैं।


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सभी परिस्थितियों में नाइट्रोजन की मात्रा आधी तथा फॉस्फोरस एवं पोटाश पूरी मात्रा में तकरीबन 3 से 4 सेंमी की गहराई में डालना चाहिए। बचे हुए नाइट्रोजन की मात्रा अंकुरण से 4 से 5 हफ्ते बाद मिट्टी में अच्छी तरह मिलाने से फसल को सहायता मिलती है।

ज्वार का ज्वार, मक्का (Maize) का पंच

देशी अंदाज में भुंजा भुट्टा, तो फूटकर पॉपकॉर्न तक कई रोचक सफर से गुजरने वाले मक्के की दमदार पैदावार का पंच यह है, कि मक्का (Maize) व बेबी कॉर्न की बुवाई के लिए मानसून उपयुक्त माना गया है। उत्तर भारत में इसकी बुवाई की सलाह मध्य जुलाई तक खत्म कर लेने की दी जाती है। मक्के की ताकत की यही बात है कि इसे सभी प्रकार की मिट्टी में लगाया जा सकता है। हालांकि बलुई-दोमट और दोमट मिट्टी अच्छी बढ़त एवं उत्पादकता में सहायक हैं।


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जोरदार, धुआंधार ज्वार की पैदावार का ज्वार लाने के लिए बारानी क्षेत्रों में मॉनसून की पहली बारिश के हफ्ते भर भीतर ज्वार की बुवाई करना फलदायी है। ज्वार के मामले में एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में बुवाई के लिए 12 से 15 किलोग्राम ज्वार के बीज की जरूरत होगी।  

चावल की बेहतरीन पैदावार के लिए इस प्रकार करें बुवाई

चावल की बेहतरीन पैदावार के लिए इस प्रकार करें बुवाई

धान की बेहतरीन पैदावार के लिए जुताई के दौरान प्रति हेक्टेयर एक से डेढ़ क्विंटल गोबर की खाद खेत में मिश्रित करनी है। आज कल देश के विभिन्न क्षेत्रों में धान की रोपाई की वजह खेत पानी से डूबे हुए नजर आ रहे हैं। किसान भाई यदि रोपाई के दौरान कुछ विशेष बातों का ध्यान रखें तो उन्हें धान की अधिक और अच्छी गुणवत्ता वाली पैदावार मिल सकती है। अमूमन धान की रोपाई जून के दूसरे-तीसरे सप्ताह से जुलाई के तीसरे-चौथे सप्ताह के मध्य की जाती है। रोपाई के लिए पंक्तियों के मध्य का फासला 20 सेंटीमीटर और पौध की दूरी 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए। एक स्थान पर दो से तीन पौधे रोपने चाहिए। धान की फसल के लिए तापमान 20 डिग्री से 37 डिग्री के मध्य रहना चाहिए। इसके लिए दोमट मिट्टी काफी बेहतर मानी जाती है। धान की फसल के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और 2 से तीन जुताई कल्टीवेटर से करके खेत को तैयार करना चाहिए। साथ ही, खेत की सुद्रण मेड़बंदी करनी चाहिए, जिससे बारिश का पानी ज्यादा समय तक संचित रह सके।

धान शोधन कराकर खेत में बीज डालें

धान की बुवाई के लिए 40 से 50 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के अनुसार बिजाई करनी चाहिए। साथ ही, एक हेक्टेयर रोपाई करने के लिए 30 से 40 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है। हालांकि, इससे पहले बीज का शोधन करना आवश्यक होता है। ये भी पढ़े: भूमि विकास, जुताई और बीज बोने की तैयारी के लिए उपकरण

खाद और उवर्रकों का इस्तेमाल किया जाता है

धान की बेहतरीन उपज के लिए जुताई के दौरान प्रति हेक्टेयर एक से डेढ़ क्विंटल गोबर की खाद खेत में मिलाते हैं। उर्वरक के रूप में नाइट्रोजन, पोटाश और फास्फोरस का इस्तेमाल करते हैं।

बेहतर सिंचाई प्रबंधन किस प्रकार की जाए

धान की फसल को सबसे ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है। रोपाई के उपरांत 8 से 10 दिनों तक खेत में पानी का बना रहना आवश्यक है। कड़ी धूप होने पर खेत से पानी निकाल देना चाहिए। जिससे कि पौध में गलन न हो, सिंचाई दोपहर के समय करनी चाहिए, जिससे रातभर में खेत पानी सोख सके।

कीट नियंत्रण किस प्रकार किया जाता है

धान की फसल में कीट नियंत्रण के लिए जुताई, मेंड़ों की छंटाई और घास आदि की साफ सफाई करनी चाहिए। फसल को खरपतवारों से सुरक्षित रखना चाहिए। 10 दिन की समयावधि पर पौध पर कीटनाशक और फंफूदीनाशक का ध्यान से छिड़काव करना चाहिए।
बासमती उत्पादक किसानों को सरकार के इस कदम से झेलना पड़ रहा नुकसान

बासमती उत्पादक किसानों को सरकार के इस कदम से झेलना पड़ रहा नुकसान

भारत संपूर्ण दुनिया का सबसे बड़ा बासमती चावल का निर्यातक देश है। यह अपनी पैदावार का लगभग 80 प्रतिशत निर्यात कर देता है। साल 2022-23 में भारत ने तकरीबन 4.6 मिलियन टन बासमती चावल का निर्यात किया है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा एवं पंजाब की मंडियों में बासमती धान की आवक चालू हो गई है। परंतु, इस बार कृषकों को विगत वर्ष की तुलना में बासमती धान का कम भाव मिल रहा है। किसानों का यह कहना है, कि उन्हें इस वर्ष बासमती धान की बिक्री में काफी हानि हो रही है। किसानों की मानें, तो उन्हें इस बार प्रति क्विंटल 400 से 500 रुपये कम प्राप्त हो रहे हैं। साथ ही, किसानों का यह आरोप है, कि केंद्र सरकार द्वारा बासमती चावल के मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस 1,200 डॉलर प्रति टन निर्धारित करने के चलते उन्हें काफी हानि उठानी पड़ रही है।

भारत दुनिया में सबसे बड़ा बासमती निर्यातक देश है

भारत दुनिया का सबसे बड़ा बासमती चावल का निर्यातक देश है। यह अपनी पैदावार का 80 प्रतिशत बासमती चावल निर्यात करता है। ऐसी स्थिति में इसका भाव निर्यात के कारण से चढ़ता-उतरता रहता है। यदि बासमती चावल का मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस 850 डॉलर प्रति टन से ज्यादा हो जाएगा, तो ऐसी स्थिति में व्यापारियों को काफी नुकसान होगा। इससे किसानों को भी काफी नुकसान उठाना पड़ेगा। क्योंकि व्यापारी किसानों से कम भाव पर बासमती चावल खरीदेंगे। इस मध्य खबर है, कि बासमती चावल की नवीन फसल 1509 किस्म की कीमतों में काफी गिरावट आई है। विगत सप्ताह इसके भाव में 400 रुपये प्रति क्विंटल की कमी दर्ज की गई।

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किसानों को वहन करना पड़ रहा घाटा

किसान कल्याण क्लब के अध्यक्ष विजय कपूर ने बताया है, कि मिलर्स और निर्यातक किसानों को सही भाव नहीं दे रहे हैं। वह किसानों से कम कीमत पर बासमती खरीदने के लिए काफी दबाव डाल रहे हैं। उनकी मानें तो यदि सरकार 15 अक्टूबर के पश्चात मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस वापस ले लेती है, तो किसानों को काफी अच्छा मुनाफा मिलेगा। उन्होंने कहा है, कि पंजाब के व्यापारी हरियाणा से कम भाव पर बासमती चावल की 1509 प्रजाति की खरीदारी कर रहे हैं। इससे किसानों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।

किसानों को 1,000 करोड़ रुपये की हानि होगी

हरियाणा में कुल 1.7 मिलियन हेक्टेयर रकबे में से बासमती चावल की खेती की जाती है। इसमें से लगभग 40 प्रतिशत हिस्सेदारी 1509 किस्म की है। ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया के अनुसार, यदि इसी प्रकार बासमती का भाव मिलता रहा, तो किसानों को कुल मिलाकर 1,000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा।
गेहूं की बुवाई हुई पूरी, सरकार ने की तैयारी, 15 मार्च से शुरू होगी खरीद

गेहूं की बुवाई हुई पूरी, सरकार ने की तैयारी, 15 मार्च से शुरू होगी खरीद

देश में महंगाई चरम पर है. सब्जी और दाल के साथ आटे के दाम भी आसमान छू रहे हैं. बढ़ी हुई महंगाई ने आम आदमी के बजट और जेब दोनों पर डाका डाल दिया है. इन बढ़े हुए दामों ने केंद्र सरकार को भी परेशान कर रखा है. वहीं बात महंगे गेहूं की करें तो, अब इसके दाम कम हो सकते हैं. आम जनता के लिए यह बड़ी राहत भरी खबर हो सकती है. देश में कई बड़े राज्यों में गेहूं की बुवाई का काम हो चुका है. बताया जा रहा है कि इस साल बुवाई रिकॉर्ड स्तर पर की गयी है. हालांकि भारत के बड़े हिस्से में गेहूं की बुवाई की जाती है. जिसके बाद केंद्र सरकार 15 मार्च से गेहूं खरीद का काम शुरू कर देगी. इसके अलावा इसे जमीनी स्तर पर परखने के लिए खाका भी तैयार किया जा रहा है.

आटे की कीमतों पर लगेगी लगाम

हाल ही में केंद्र सरकार ने गेहूं और आटे की कीमतों पर लगाम लगाने के लिए खुले बाजार में लगभग तीस लाख टन गेहूं बेचने की योजना का ऐलान किया था. बता दें ई-नीलामी के तहत बेचे जाने वाले गेहूं को उठाने और फिर उसे आटा मार्केट में लाने के बाद उसकी कीमतों में कमी आना तय है.
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जानकारी के लिए बता दें कि, OMSS  नीति के तहत केंद्र सरकार FCI को खुले बाजार में पहले निर्धारित कीमतों पर अनाज खास तौर पर चावल और गेहूं बेचने की अनुमति देती है. सरकार के ऐसा करने का लक्ष्य मांग ज्यादा होने पर आपूर्ति को बढ़ाना है और खुले बाजार मनें कीमतों को कम करना है. भारत में गेहूं की पैदावार पिछले साल यानि की 2021 से 2022 में 10 करोड़ से भी ज्यादा टन था. गेहूं की पैदावार की कमी की राज्यों में अचानक बदले मौसम, गर्मी और बारिश की वजह से हुई. जिसके बाद गेहूं और गेहूं के आटे के दामों में उछाल आ गया.
इस राज्य में 24 लाख टन गेहूं की खरीद बढ़ी, क्या इससे किसानों को होगा फायदा

इस राज्य में 24 लाख टन गेहूं की खरीद बढ़ी, क्या इससे किसानों को होगा फायदा

पंजाब राज्य सरकार की तरफ से अंदाजा लगाया जा रहा है, कि प्रदेश में इस वर्ष विगत वर्ष के मुकाबले गेहूं की खरीद में इजाफा किया जाएगा। विगत वर्ष जहां आंकड़ा 96.47 करोड़ के करीब रहा था। इसबार वह आंकड़ा काफी ज्यादा रहेगा। भारत के बहुत सारे राज्यों में गेहूं कटाई चल रही है। किसान गेहूं को काटकर तत्काल मंडी लेकर पहुंच रहे हैं। किसान भाई सर्व प्रथम मौसम के रुझान को भांप रहा है। एक-दो दिन पूर्व आई बरसात ने गेहूं काट रहे किसानों की चिंता को बढ़ा दिया है। उधर, केंद्र एवं राज्य सरकार भी गेहूं खरीद पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं। केंद्र सरकार एजेंसियों के माध्यम से गेहूं खरीद का डाटा इकठ्ठा कर रही है। साथ ही, राज्य सरकार भी मंडी के स्तर से गेहूं के आंकड़ों की अपडेट ले रही हैं। खरीद केंद्रों पर किसानों को किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत न हो सके। इसका भी विशेष रूप से ध्यान रखा जा रहा है। गेहूं खरीद को लेकर पंजाब से राहत भरा समाचार सुनने को सामने आया है। यहां गेहूं की धुआँधार खरीद होने का अंदाजा लगाया गया है। इससे यह बिल्कुल साफ है, कि किसान भी गेहूं बेचकर अच्छी-खासी आमदनी कर सकते हैं।

पंजाब में इतने करोड़ टन गेहूं की खरीद होने की संभावना

पंजाब की मंडियों में भी गेहूं पहुंचाया जा रहा है। अधिकारी भी गेहूं खरीदने में पूरी तेयारी से जुटे हुए हैं। फिलहाल, पंजाब सरकार के अधिकारी ने कहा है, कि मौजूदा रबी सत्र में गेहूं की खरीद काफी अच्छी होने की संभावना है। खरीद का आंकड़ा 1.2 करोड़ टन पहुंचने का अंदाजा है। जबकि विगत वर्ष गेहूं खरीद 96.47 लाख टन रही थी। लगभग 24 लाख टन का इजाफा दर्ज किया जा रहा है।

पंजाब में लगभग 14 लाख हेक्टेयर फसल को हुई हानि

पंजाब में मौसमिक अनियमितताओं के चलते बेमौसम हुई बारिश से तकरीबन 14 हैक्टेयर फसल पर काफी असर पड़ा है। वर्तमान में सांसद राघव चडढा की तरफ से भी प्रभावित किसानों की सहायता करने के लिए केंद्र सरकार को पत्र लिखा था। प्रदेश सरकार के अधिकारियों ने बताया है, कि राज्य में समकुल 34.90 लाख हेक्टेयर में फसल की बुआई की गई है, वहीं इसमें से 14 लाख हेक्टेयर फसल काफी प्रभावित हो चुकी है। जो कि अपने आप में एक बड़ा हिस्सा है। राज्य के कृषि विभाग द्वारा 47.24 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अथवा 19 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत पैदावार की संभावना व्यक्त की गई है। इसी आधार पर आंकड़ा भी निकाला गया है।

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पंजाब के इन जनपदों को बेमौसम बारिश ने काफी प्रभावित किया है

ओलावृष्टि के साथ तीव्र हवाओं की वजह से पंजाब के मोगा, फाजिल्का, पटियाला और मुक्तसर सहित पंजाब के बहुत से अन्य इलाकों में भी गेंहू के साथ अन्य फसलें भी काफी प्रभावित हुई हैं। हालाँकि, सहूलियत की बात यह है, कि केंद्र सरकार की एजेंसियों के माध्यम से 18 फीसद तक भीगे, सिकुड़े और टूटे गेंहू के लिए छूट दे दी है। नतीजतन कृषकों को अत्यधिक हानि वहन नहीं करनी पड़ेगी। लेकिन, किसान भाइयों की यही अरदास है, कि गेंहू विक्रय से पूर्व बारिश ना हो जाए।
कैसे डालें धान की नर्सरी

कैसे डालें धान की नर्सरी

किसी भी फसल की नर्सरी डालना सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है क्योंकि अनेक तरह के रोग संक्रमण नर्सरी से शुरू होकर आखरी फसल पकने तक परेशान करते हैं। इनमें मुख्य रूप से जीवाणु और विषाणु जनित रोग प्रमुख हैं। 

धान की नर्सरी (paddy nursery)

एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए महीन धान 30 किलोग्राम,मध्यम धान 35 किलोग्राम और मोटे धान का 40 किलोग्राम बीज को तैयार करने हेतु पर्याप्त होता है। एक हेक्टेयर की नर्सरी से लगभग 15 हेक्टेयर क्षेत्रफल की रोपाई हो जाती है। धान की नर्सरी डालने से पहले पौधों वाली क्यारी को खेत से 1 से 2 इंची ऊंचा उठा लें ताकि गर्मी के समय में यदि क्यारी में पानी ज्यादा लग जाए तो उसे निकाला जा सके।

क्यारी उपचार

 

 धान की नर्सरी डालने से पूर्व एक कुंतल सड़े हुए गोबर की खाद में एक किलोग्राम ट्राइकोडरमा मिला लें और उसे पेड़ की छांव में पानी के छींटे मार कर रखते हैं। 7 दिन तक पानी के छींटे मारते हुए स्थान को पलटते रहें। इसके बाद धान की नर्सरी जिस क्यारी में डालनी है उसमें इसे मिला दें। ऐसा करने से जमीन में मौजूद सभी हानिकारक फफूंदियां नष्ट हो जाएंगी। 

उर्वरक प्रबंधन

 

 एक हेक्टेयर नर्सरी डालने के लिए खेत में 100 किलोग्राम नत्रजन एवं 50 किलोग्राम फास्फोरस का प्रयोग करें।ट्राइकोडरमा का एक छिड़काव नर्सरी लगने के 10 दिन के अंदर पर कर देना चाहिए।मौत के 10 से 15 दिन का होने पर एक सुरक्षात्मक छिड़काव खैरा सहित विभिन्न रोगों से सुरक्षा के लिए कर देना चाहिए। पांच किलोग्राम जिंक सल्फेट, 20 किलोग्राम यूरिया, या ढाई किलोग्राम बुझे हुए चूने के साथ 1000 लीटर पानी के साथ प्रति हेक्टेयर की दर से पहला छिड़काव बुवाई के 10 दिन बाद दूसरा 20 दिन बाद करना चाहिए। सफेदा रोग का नियंत्रण करने के लिए 4 किलोग्राम फेरस सल्फेट का 20 किलो यूरिया के घोल के साथ मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। झोंका रोग की रोकथाम के लिए 500 ग्राम कार्बन डाई, 50% डब्ल्यूपी का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। भूरा धब्बा रोग से बचाव के लिए दो किलोग्राम जिंक मैग्नीस कार्बोमेट का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। नर्सरी में लगने वाले कीड़ों से पौधों को बचाने के लिए 1 लीटर फेनीट्रोथियान 50 ईसी, 1. 25 लीटर क्नायूनालफास 25 ईसी या 1.5 लीटर क्लोरो पायरी फास 20 ईसी का छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से करें। 

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समय-समय पर पद की क्यारी में पानी लगाते रहे और इस बात का जरूर ध्यान रखें की पानी शाम को लगाएं। सुबह तक क्यारी पानी को पी जाए इतना ही पानी लगाएं। ज्यादा पानी लगाने और पानी के क्यारी में ठहर जाने से पौध मर सकती है।

बीज का भिगोना

धान के बीज को अंकुरण के लिए भिगोने से पूर्व 100 किलो पानी में 2 किलो नमक डालकर बीज को उसमें डालें। इससे संक्रमित थोथा और खराब बीज ऊपर तैर आएगा। खराब बीज को फेंक दें। अच्छे बीज को नमक के घोल से निकाल कर तीन चार बार साफ पानी में धो लें ताकि नमक का कोई भी अंश बीज पर ना रहे।

धान की फसल काटने के उपकरण, छोटे औजार से लेकर बड़ी मशीन तक की जानकारी

धान की फसल काटने के उपकरण, छोटे औजार से लेकर बड़ी मशीन तक की जानकारी

हमारे देश के बड़े भूभाग में धान की फसल की जाती है। पूर्वोत्तर और दक्षिण भारत में तो धान की ही मुख्य फसल होती है। धान की फसल की बुआई, रोपाई और कटाई में बहुत से श्रमिकों की आवश्यकता होती है। किसान भाइयों आज का समय पैसे कमाने का समय है। प्रत्येक व्यक्ति अपने परिश्रम का अधिक से अधिक मेहनताना लेना चाहता है। इसके लिए आज के श्रमिकों ने खेती किसानी का काम छोड़ करन परदेश जाकर कारखानों में काम करना शुरू कर दिया है। इस वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में श्रमिकों का अभाव हो गया है। इस वजह से खेती किसानी करना बहुत मुश्किल होता जा रह है। जो श्रमिक गांवों में बचे रह गये हैं वे भी अपने अन्य भाइयों के समान औद्योगिक श्रमिकों की तरह मेहनताना मांगते हैं। इससे खेती की लागत उतनी अधिक बढ़ जाती है जितना उत्पादन नहीं हो पाता है। इसलिये किसान भाई वो काम नहीं कर पाते हैं।

धान की फसल की बुआई, रोपाई और कटाई

Content

  1. समय पर कटाई से बच जाता है नुकसान
  2. हंसिया (Sickle)
  3. ब्रश कटर (Brush Cutter)
  4. क्या होता है ब्रश कटर
  5. कम्बाइंट हार्वेस्टर (Combined Harvester Machine)
  6. क्या होती है कम्बाइंड हार्वेस्टर मशीन (Combined Harvester Machine)
  7. क्या होता है कम्बाइंड हार्वेस्टर कटर
  8. रीपर मशीन (Reaper Machine)
  9. क्या होता है रीपर मशीन
  10. हाथ से चलने वाली मशीन (हैंड रीपर)
  11. छोटे वाहन वाली मशीन (सेल्फ प्रॉपलर मशीन)
  12. ट्रैक्टर से चलने वाली मशीन (ट्रैक्टर माउंटेड)

समय पर कटाई से बच जाता है नुकसान

खेती किसानी का काम समय से होना चाहिये तभी आपको अधिक उत्पादन मिल सकता है। श्रमिकों के अभाव में किसान भाइयों की खेती प्रभावित होती है। कभी लेट बुआई होती है तो कभी निराई गुड़ाई नहीं हो पाती है। कभी सिंचाई देर से हो पाती है अथवा फसल की आवश्यकतानुसार सिंचाई नहीं हो पाती है। कीट व रोग के प्रकोप से नियंत्रण में भी असर पड़ता है। कुल मिलाकर श्रमिकों के बिना खेती पूरी तरह से प्रभावित होती है। ऐसी स्थिति में किसान भाइयों को खेती के आधुनिक तरीके और आधुनिक उपकरणों और मशीनों का इस्तेमाल करना चाहिये। इन मशीनों व उपकरणों से मानव श्रम से अधिक और बहुत ही साफ सुथरा काम हो जाता है। लागत  व समय भी कम लगता है। आइये हम आज धान की फसल को काटने वाली छोटे उपकरण से लेकर बड़ी मशीनों तक की चर्चा करेंगे। जो इस प्रकार है:-
  1. हंसिया या हंसुआ: (Sickle)

यह किसानों का पारंपरिक कटाई का औजार, उपकरण या हथियार है। इससे किसी प्रकार की फसल की कटाई की जा सकती है। धान की फसल की कटाई इसी हथियार से की जाती है। छोटे किसान आज भी अपने परिवार के साथ इसी हथियार से कटाई करते हैं। इससे फसल की कटाई में काफी समय लगता है। जब धान की फसल पक गयी हो और खेत में पानी भरा हो तब यही हथियार फसल की कटाई के काम आता है।
  1. ब्रश कटर (Brush Cutter)

हाथ से कटाई करने में बहुत श्रमिक और बहुत समय लगता है। इससे किसान भाइयों का समय व पैसा बहुत बर्बाद होता है। धान की फसल की समय पर कटाई होनी बहुत जरूरी होती है। यदि समय पर धान की फसल की कटाई नहीं की गई तो बहुुत नुकसान होता है। आज के समय में खेतों में काम करने वाले मजदूर न मिलने के कारण किसानों के समक्ष बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न हो गयी है। ऐसे में समय पर कटाई करना किसान भाइयों के लिए टेढ़ी खीर बन गयी है। इस समस्या को आधुनिक यंत्रों व मशीनों के द्वारा हल किया जा सकता है। पहले तो व्यापारियों ने धान की फसल कटाई के लिए बड़ी बड़ी मशीनें मार्केट में उतारीं, जिन्हें किराये पर लेकर काम कराया जा सकता था। लेकिन इन मशीनों का किराया भी इतना अधिक था कि प्रत्येक किसान उसको वहन नहीं कर सकता था। इसलिये अब बाजार में छोटी मशीनें आ गयी है। इसमें एक ब्रश कटर नाम से एक ऐसी मशीन आ गयी है, जिसको किसान अकेले ही दस मजदूरों के बराबर फसल की कटाई कर सकता है।  पेट्रोल से चलने वाली यह मशीन महीनों का काम घंटों में कर देती है। ये भी पढ़े: आधुनिक तकनीक अपनाकर घाटे से बचेंगे किसान

कितना है मैनुअल व मशीन के काम व दाम में अंतर

जानकार लोगों का दावा है कि एक एकड़ की मजदूरों द्वारा खेती की धान की फसल की कटाई पर लगभग 5 हजार रुपये का खर्च आता है। लेकिन इस मशीन से मात्र 500  रुपये में एक ही व्यक्ति कटाई कर सकता है। यदि किसान भाई यह काम करने में सक्षम हो तो ठीक वरना इस मशीन को चलाने वाले बहुत से लोग आ गये हैं। इस मशीन की खास बात यह है कि इसमें फसल के अनुसार ब्लेड लगाकर अलग-अलग तरह की फसलों की कटाई की जा सकती है। यह मंशीन कंधे पर टांग कर फसल की कटाई की जा सकती है। खेत में पानी भी भरा हो तब भी किसान भाई इस मशीन से कटाई कर सकते हैं। यदि किसान भाई इस मशीन की मेंटीनेंस अच्छी तरह से करे तो यह मशीन अपनी कीमत एक साल में ही निकाल देती है। यह मशीन अधिक महंगी भी नहीं है।

क्या होता है ब्रश कटर (Brush Cutter):-

ये भी पढ़े: भूमि की तैयारी के लिए आधुनिक कृषि यन्त्र पावर हैरो छोटे किसानों के लिए यह एक ऐसी आधुनिक मशीन है, जिसके माध्यम से किसान भाई केवल धान फसल की कटाइई ही नहीं कर सकते हैं बल्कि इससे अनेक प्रकार की फसलों च चारे की कटाई आसानी से कर सकते हैं। इस मशीन से खेतों में रुका हुआ थोड़ा बहुत पानी भी निकाल सकते हैं। अब यह मशीन पेट्रोल और मोबिल आयल से चलने वाली 4 स्ट्रोक वाली मोटर से लैस मशीन है। इसमें एक हैंडल दिया गया है। हैंडल के आगे कटर लगाने के लिए स्थान दिया गया है। इसमें आप अपनी जरूरत के ब्लेड लगाकर अपनी मनचाही फसल काट सकते हैं। इसका वजन 7 से 10 किलो तक का होता है।

किसी ट्रेनिंग की आवश्यकता नहीं

इस मशीन को चलाने के लिए कोई खास ट्रेनिंग नहीं लेनी होती है। शुरू के 10 से 15 मिनट में नये व्यक्ति को परेशानी होती है। एक बार इसको चलाने का तरीका जानने के बाद इसे आसानी से चलाया जा सकता है। इतनी ट्रेनिंग मशीन बेचने वाली कंपनी के टेक्नीशियन दे देते हैं। इसके अलावा इस मशीन को किसान भाई तो चला सकते हैं और उनकी अनुपस्थिति में घर की महिलाएं भी आसानी से चला सकतीं हैं।
  1. कम्बाइंड हार्वेस्टर मशीन (Combined Harvester Machine)

धान फसल की कटाई के लिए कम्बाइंड हार्वेस्ट मशीन का उपयोग तेजी से होने लगा है। इस मशीन के माध्यम से खेत में खड़ी फसल की बालियों यानी अनाज की कटाई की जाती है और उसकी मढ़ाई और गहाई की जाती है। यह मशीन जमीन से 30 सेंटीमीटर ऊपर से फसल काटती है और खेत में ठूंठ छोड़ देती है इससे पुआल का नुकसान होता है। दूसरा समय पर खेत को खाली करने के लिए किसान भाइयों को जल्दी होती है और उस समय कोई दूसरा उपाय न सूझने के कारण खेत में पराली को जला दिया जाता है। इससे जानवरों के चारे का नुकसान होता है दूसरा पर्यावरण प्रदूषित होता है।

नुकसान के बावजूद है फायदे का सौदा

हालंकि मजदूरों की अपेक्षा आधी कीमत पर बहुत कम समय में अच्छी तरह से कटाई, मढ़ाई और गहाई हो जाती है। इसलिये किसान भाई इस मशीन का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह की मशीन का इस्तेमाल बड़े किसान भाई करते हैं जिनके पास लम्बी चौडी खेती है और समय पर मजदूर नहीं मिल रहे हैं तो उनके पास इसी तरह की मशीन का ही एकमात्र विकल्प बचता है। लेकिन इस मशीन की इस कमी को देखते हुए अनेक तरह के आकर्षक रीपर मार्केट में आ गये हें। जिनसे जमीन से 5 सेंटी ऊपर की कटाई की जाती है। इससे किसान भाइयों के समक्ष ठूंठ व पराली वाली समस्या नहीं आती है।  चारे व अन्य काम के लिए बची पुआल भी काम में आ जाती है।

क्या होती है कम्बाइंड हार्वेस्टर मशीन (Combined Harvester Machine)

यह मशीन वास्तव में बड़े किसानों के इस्तेमाल के लिए होती है। यह मशीन महंगी होती है तथा इसको किराये पर चलाने के उद्देश्य से भी लिया जा सकता है। यह मशीन सूखे खेत में ही चलाई जा सकती है। जो किसान भाई कम्बाइंड हार्वेस्टर मशीन का इस्तेमाल करना चाहें तो प्रॉपलर या ट्रैक्टर में लगाकर इस मशीन को इस्तेमाल कर सकते हैं। इस तरह की मशीन बनाने वालों में दशमेशर, हिंद एग्रो, न्यू हिन्द, प्रीत, क्लास आदि ब्रांड के हार्वेस्टर कटर आते हैं। ये चौड़ाई के अनुसार दो फिल्टर्स आते हैं। इनकी चौड़ाई 1 से 10 व 11 से 20 फीट तक होती है। इसके अलावा आप अपनी जरूरत के हिसाब की चौड़ाई वाले फिल्टर्स का इस्तेमाल कर सकते हैं।
  1. रीपर मशीन (Reaper Machine)

यह भी ब्रश कटर से मिलती जुलती मशीन है। इस मशीन में भी कटर का इस्तेमाल होता है। इस मशीन की खास बात यह है कि यह कई साइजों में आती है। इस मशीन को किसान भाई अपनी क्षमता व जरूरत के हिसाब से लेकर इस्तेमाल कर सकते हैं अथवा किराये पर लेकर भी इस्तेमाल कर सकते हैं। यह मशीन हाथ ठेले के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है, इसे मिनी ट्रैक्टर या छोटी गाड़ी में भी लगाकर फसल की कटाई की जा सकती है। इसको बड़े ट्रैक्टर में भी लगाकर फसल की कटाई की जा सकती है। यह मशीन धान की फसल की कटाई के लिए तो उपयुक्त है ही। साथ ही गेहूं  सहित अनेक फसलों को भी इससे काटा जा सकता है।

क्या होती है रीपर मशीन (Reaper Machine)

आधुनिक कृषि उपकरणों में इस मशीन की गिनती होती है। यह मशीन ऐसी है जिसे हर तरह का किसान अपनी क्षमता के अनुसार खरीद कर फसल की कटाई आसानी से कर सकता है। जहां पर फसल की कटाई के लिए कम्बाइंड हावेस्टर और ट्रैक्टर नहीं पहुंच पाता है वहां पर यह मशीन काम आती है। यह मशीन छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी आती है। मुख्यत: तीन प्रकार की ये मशीन होती है।
    1. हाथ से चलने वाली मशीन हैंड रीपर (Hand Reaper Machine)
    2. छोटे वाहन वाली मशीन सेल्फ प्रॉपलर मशीन (Self Propeller Machine)
    3. ट्रैक्टर से चलने वाली मशीन ट्रैक्टर माउंटेड (Tractor Mounted Machine)
  1. हाथ से चलने वाली मशीन हैंड रीपर (Hand Reaper Machine)

यह मशीन मूलत: छोटे किसानों के लिए होती है। यह एक पॉवरफुल मशीन होती है जो हाथों से एक व्यक्ति द्वारा चलाई जाती है। इसमें एक 5 हॉर्सपॉवर का इंजन लगा होता है। पेट्रोल व डीजल से चलने वाले इंजन अलग-अलग आते हैं। इसमें आगे की तरफ रीपर में ब्लेड़स लगे रहते हैं जिससे फसल की कटाई की जाती है। इसमें पीछे एक हैंडल लगा होता है और इसमें दो मजबूत रबर के टायर भी लगे होते हैं। हैंडल में दो गियर भी लगे होते हैं। किसान भाई हैंडल को पकड़ कर इस मशीन को खेतों में धकेलते जाते हैं और गियर के इस्तेमाल से फसल की कटाई होती रहती है। यदि इस मशीन को कहीं दूर ले जाना होता है तो इसको मोटर व मशीन को आसानी से अलग-अलग भी किया जा सकता है और इस्तेमाल के समय जोड़ा भी जा सकता है।
  1. छोटे वाहन वाली मशीन यानी सेल्फ प्रॉपलर मशीन (Self Propeller Machine)

जो किसान मध्यम श्रेणी में आते हैं और जिनकी खेती का रकबा थोड़ा बड़ा होता है, जो थोड़ा ज्यादा पैसा खर्च कर सकते हैं तो वे छोटे वाहन यानी सेल्फ प्रॉपलरवाली मशीनों को खरीद कर फसल की आसान कटाई कर सकते हैं। इसमें एक सीटर वाहन होता है। उसमें रीपर में ब्लेड लगे होते हैं। इस एक सीटर वाहन में किसान भाई आराम से बैठ कर रीपर के माध्यम से फसलों की कटाई आसानी से कर सकते हैं। समय, पैसा दोनों ही बचा सकते हैं। ये भी पढ़े: कल्टीवेटर से खेती के लाभ और खास बातें

रीपर बाइंडर मशीन (Reaper Binding Machine)

रीपर बाइंडिंग मशीन ऐसी मशीन होती है जो खेत में फसल की कटाई के साथ पौधों का बडल यानी पूला बना देती है। इससे किसान भाइयों को काफी सुविधा होती है।
  1. ट्रैक्टर माउंटेड मशीन (Tractor Mounted Machine)

यह मशीन बड़े किसानों के लिए होती है। यह मशीन ट्रैक्टर में लगायी जाती है। यह मशीन उन किसानों के लिए है, जिनकी बड़ी काश्तकारी है और उनके पास काम करने वाले श्रमिकों की संख्या कम होती है। ऐसे किसान अपने खेत के काम निपटा कर दूसरों के खेतों पर कटाई का व्यवसाय कर सकते हैं। इस तरह से किसान इसको किराये पर चला कर अपना व्यवसाय भी कर सकते हैं।
तर वत्तर सीधी बिजाई धान : भूजल-पर्यावरण संरक्षण व खेती लागत बचत का वरदान (Direct paddy plantation)

तर वत्तर सीधी बिजाई धान : भूजल-पर्यावरण संरक्षण व खेती लागत बचत का वरदान (Direct paddy plantation)

* सीधी बिजाई धान क्रांतिकारी संरक्षण/टिकाऊ कृषि तकनीक *

* पर्यावरण हितेषी संरक्षण कृषि तकनीक * भूजल संरक्षण- ग्रीन हाउस गैसें का कम विसर्जन- सुगम फसल अवशेष पराली प्रबंधन! * किसान हितेषी टिकाऊ खेती तकनीक * एक तिहाही भूजल सिचाई, खेती की लागत, श्रम, डीज़ल, बिजली आदि की बचत * झंडा रोग मुक्त फसल व पूरी पैदावार ! फसल विविधिकरण किसान हितेषी वैकल्पिक फसल चक्र से ही सम्भव है! वर्षा ऋतु में आधा प्रदेश जल भराव ग्रस्त होने से, धान फसल का कोई व्यवहायरिक विकल्प नही है। सिवाय भूजल बर्बादी वाली धान की रोपाई पर, क़ानूनी प्रतिबंध 15 जुन की बजाय पहली जुलाई तक बढाकर, भूजल व खेती लागत बचत वाली तर-वत्तर
सीधी बिजाई धान तकनीक को प्रोत्साहन दिया जाए। वैसे भी धान फसल किसान हितेषी (40,000 रूपये/एकड लाभ) होने के साथ-2, राष्ट्रहित मे भी है जो भारत की खाध्य सुरक्षा और 63,000 करोड रूपये वार्षिक निर्यात भी सुनिश्चित करती है ! धान फ़सल से लगातार हो रही भूजल बर्बादी एक गंभीर समस्या है लेकिन लाइलाज नही है। ज़िसे किसान हितेषी व वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित “तर- वत्तर सीधी बिजाई धान" तकनीक को अपनाकर आसानी से हल किया जा सकता है। जो पिछले वर्ष पंजाब में लगभग सात लाख हेक्टर (यानि प्रदेश के कुल धान क्षेत्र के चोथाई हिस्से) और हरियाना मे लगभग 2 लाख हेक्टर भूमि पर सफलता से बहुत बड़े स्तर पर अपनायी गई और लगभग 28 किवंटल प्रति एकड़ की दर से रोपाई धान के बराबर ही पैदावार मिली। तर-वत्तर सीधी धान तकनीक अपनाने से रोपाई धान के बेकार झंझटों (बुआई से पहले खेत में पानी खड़ा करके पाड़े काटना/ कद्दु करना, पौध बोना, उखाड़ना और फिर से लगाना और तीन महीने खेत में पानी खड़ा रखना आदि) से मुक्ति मिलती है और फसल का झंडा/बकानी रोग से भी प्रभावी बचाव होता है । तर- वत्तर सीधी बिजाई धान तकनीक मे बुआई मूँग व गेंहू आदि फ़सलो की तरह बिल्कुल आसान है। जिसे इच्छुक किसान निम्नलिखित विधि अपनाकर, आने वाली पीढ़ियों के भूजल-पर्यावरण संरक्षण और खेती की लागत में भारी बचत कर सकते है। ये भी पढ़े: धान की कटाई के बाद भंडारण के वैज्ञानिक तरीका

* तर-वत्तर सीधी बीजाई धान तकनीक *

तर वत्तर सीधी बिजाई धान की तकनीक से बने खेत औरधान की फसल [Paddy fields after direct plantation ]

1) तर-वत्तर सीधी बीजाई धान की किस्मे

धान की सभी किस्मे कामयाब है!

2) बुआई का समय

25 मई से 5 जुन तक अच्छी नमी वाले तर- वत्तर खेत मे करे (मानसुन आगमन से एक महीना पहले बुआई करे) यानि सीधी बीजाई धान की बुआई रोपाई धान की पौध नर्सरी की बुआई के समय पर ही करनी है !

3) सीधी बिजाई धान के लिए खेत की तैयारी

पहले खेत को समतल बनाए, फिर गहरी सिचाई, जुताई व तर-वत्तर (अच्छी नमी) तैयार खेत मे शाम के समय बुआई करे !

4) बीज की मात्रा व उपचार

बुआई से पहले बीज उपचार बहुत ज़रुरी है ! एक एकड के लिए 8 किलो बीज को 12 घंटे 25 लीटर पानी मे डूबोये, फिर 8 घंटे छाया मे सुखाकर, 2 ग्राम बाविस्टीन और एक मि.ली. क्लोरोपायरीफास प्रति किलो बीज उपचार करे !

5) सीधी बिजाई धान की बुआई का तरीका

लाईन से लाईन की दूरी : 8-9 इंच , बीज की गहराई: मात्र एक इंच रखे!  बुआई बीज मशीन के ईलावा छींटा विधि से भी हो सकती है ! बुआई के बाद खेत की नमी बचाने के लिए हलका पाटा(सुहागा) लगाये!

6) खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार ज़माव रोकने को, बुआई के तुरंत बाद 1.5 लीटर पेंडामेथेलीन प्रति एकड 200 लीटर पानी मे  छिडकाव ज़रूर करे और आवश्कता पड़ने पर 20- 25 दिन बाद 100 लीटर पानी प्रति एकड मे 100 मि. ली. नामिनी गोल्ड (बिस्पाईरीबेक सोडीयम), या 400 मि.ली. राईस स्टार (फेनोक्सापरोप पी ईथाइल) या 8 ग्राम अलमिक्स (क्लोरीम्यूरान ईथाइल मेटसल्फूरान मिथाइल) या 90 ग्राम कौंसील एकटीव (ट्राईमाफोन 20: एथोक्सीसल्फूरान 10) य़ा 250 ग्राम  2,4- डी 80 प्रतिशत सोडीयम साल्ट का छिडकाव करे!

7) सीधी बिजाई धान की सिचाई

पहली सिचाई देर से 21 दिन के बाद और बाद की सिचाई 10 दिन के अंतराल पर गीला - सुखा प्रणाली से वर्षा आधारित करे ! बुआई के बाद अगर पहले सप्ताह मे बे-मौसम वर्षा से भूमि की ऊपरी सतह पर करंड (मिट्टी सख्त हो), तो तुरंत हलकी सिचाई करे वर्ना धान के उगे नये पौधे भूमि की सतह से बाहर नही निकल पायेंगे ! धान के तर बत्तर खेत [watered paddy fields]  

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8) खाद की मात्रा

रोपाई धान की अनुमोदित दर और विधि से ही करे ! धान फसल मे प्रति एकड सामान्यता 40 किलो नाईट्रोजन, 16 किलो फासफोरस और 8-10 किलो पोटाश की ज़रूरत होती है!नाईट्रोजन की एक तिहाही और फासफोरस की पूरी मात्रा बुआई के समय प्रयोग करे, जो एक बेग डी.ए. पी. प्रति एकड से पूरी हो जाती  है! यूरिया और म्यूरेट आफ पोटाश (MOP) उर्वरको का प्रयोग मशीन के खाद बक्से मे नही रखना चाहिए! इन उर्वरको का प्रयोग टाप ड्रेसिंग के रुप मे पहली सिचाई यानि 21दिन बाद करना  चाहिए, उसी समय 10 किलो ज़िंक सल्फेट प्रति एकड भी डालना  चाहिए ! इस विधि से ऊगाई धान फसल की शुरुवाती अवस्था मे अक्सर , आयरन की कमी से पौधो मे पीलापन देखा जाता है उसके लिए, एक प्रतिशत आयरन सल्फेट का छिडकाव एक सप्ताह अंतराल पर दो बार करे ! फसल मे बालिया निसरने पर एक किलो  घूलनशील इफको उर्वरक 13:0:45 प्रति एकड छिडकाव करे !

9) कीट-बिमारीया प्रबंधन

रोपाई धान की अनुमोदित दर और विधि से ही करे, लेकिन ध्यान रखे कि रसायनिक दवायो का प्रयोग अनुमोदित दर से ज्यादा कभी नही करे ! तने की सुंडी (गोभ के  कीडे) के 25-35 दिन के फसल अवस्था पर 8 किलो कारटेप रेत मे  मिलाकर तथा पत्ता लपेट/ तना छेदक के लिए 200 मि .ली . मोनोक्रोटोफास या कलोरोपायरीफास या 400 मि .ली. क्वीनलफास 100 लीटर पानी मे प्रति एकड प्रयोग करे! धान  निसरने के समय, ह्ल्दी रोग या ब्लास्ट से बचाव के लिए 200 ग्राम  कार्बेंडाज़िम या प्रोपीकानाजोल (टिलट) 200 लीटर पानी प्रति एकड छिडकाव करे ! शीट ब्लाईट के लिए 400 मि. ली. वैलिडामाईसिन (अमीस्टार/लस्टर आदि) 200 लीटर पानी प्रति  एकड छिडकाव करे ! फसल मे दीमक की शिकायत होने पर , एक  लीटर कलोरोपायरीफास प्रति एकड सिचाई पानी के साथ चलाये ! धान की लह लहाती फसल [lush green paddy field]

10) सीधी बीजाई तकनीक के बारे मे सावधानिया

- इस विधि से बोयी गई फसल रोपाई धान के मुकाबले पहले 40 दिन हलकी नजर आयेंगी, इसलिये किसान होसला बनाए रखे! - सीधी बुआई धान खारे पानी और सेम व लवनीय भूमि मे खास सफल नही है ! ऐसे क्षेत्रो मे किसान रोपाई धान ही लगाये! - 15 जुन के बाद धान की सीधी बिजाई नही करे और तब रोपाई विधि से धान की खेती फायदेमन्द रहेंगी ! -बुआई समय पर कम तापमान व फसल पकाई समय पर मानसुन वर्षा के कारण साठी धान (मार्च-अप्रेल बुआई) मे सीधी बीजाई तकनीक कामयाब नही है !

11) सुगम पराली (फसल अवशेष) प्रबंधन

सीधी बिजाई धान फसल आमतौर पर रोपाई धान के मुकाबले 7-10 दिन पहले पकती है ज़िससे किसानो को पराली प्रबंधन मे धान कटाई के बाद ज्यादा मिलने से भी पराली प्रबंधन मे सहायता मिलती है ! इस विधि मे किसान जल्दी पकने वाली कम अवधी (125 दिन) की किस्मो पूसा बासमती- 1509, पी.आर -126 आदि की खेती से, धान फसल की कटाई सितम्बर महीने मे कर सकते है! ज़िससे फसल अवशेष (पराली) को भूमि मे दबाकर, गेंहू फसल की बुआई से पहले ढ़ेंचा या मूँग की हरी खाद के लिए फसल ली ज़ा सकती है! जो भूमि ऊर्वरा शक्ती बढाने और पराली जलाने से उत्पन होने वाले वायु प्रदूषण को रोकने मे भी रामबाण साबित होगी !

डा. वीरेन्द्र सिह लाठर , पूर्व प्रधान वैज्ञानिक, भारतीय कृषि  अनुसंधान संस्थान, नयी  दिल्ली drvslather@gmail.com

बिहार में धान की दो किस्में हुईं विकसित, पैदावार में होगी बढ़ोत्तरी

बिहार में धान की दो किस्में हुईं विकसित, पैदावार में होगी बढ़ोत्तरी

बेगूसराय जनपद में 17061 हेक्टेयर के करीब बंजर जमीन है। वहीं, 11001 हेक्टेयर पर किसान खेती नहीं करते हैं। अब ऐसी स्थिति में इन जगहों पर किसान राजेंद्र विभूति प्रजाति की खेती कर सकते हैं। बतादें कि धान बिहार की मुख्य फसल है। नवादा, औरंगाबाद, पटना, गया, नालंदा और भागलपुर समेत तकरीबन समस्त जनपदों में धान की खेती की जाती है। मुख्य बात यह है, कि समस्त जनपदों में किसान मृदा के अनुरूप भिन्न-भिन्न किस्मों के धान की खेती किया करते हैं। सबका भाव एवं स्वाद भी भिन्न-भिन्न होता है। पश्चिमी चंपारण जनपद में सर्वाधिक मर्चा धान की खेती की जाती है। विगत अप्रैल महीने में इसको जीआई टैग भी मिला था। इसी प्रकार पटना जनपद में किसान मंसूरी धान अधिक उत्पादित करते हैं। यदि बेगूसराय के किसान धान की खेती करने की तैयार कर रहे हैं। तो उनके लिए आज हम एक शानदार समाचार लेकर आए हैं, जिसकी खेती चालू करते ही उत्पादन बढ़ जाएगा।

बेगूसराय जनपद की मृदा एवं जलवायु के अनुरूप दो किस्में विकसित की गईं

मीड़िया खबरों के अनुसार, कृषि विज्ञान केंद्र पूसा ने बेगूसराय जनपद की मृदा एवं जलवायु को ध्यान में रखते हुए धान की दो बेहतरीन प्रजातियों को विकसित किया है। जिसका नाम राजेन्द्र श्वेता एवं राजेन्द्र विभूति है। इन दोनों प्रजातियों की विशेषता यह है, कि यह कम वक्त में पक कर तैयार हो जाती है। मतलब कि किसान भाई इसकी शीघ्र ही कटाई कर सकते हैं। इसकी पैदावार भी शानदार होती है। साथ ही, कृषि विज्ञान केंद्र खोदावंदपुर के कृषि वैज्ञानिक डॉ. रामपाल ने बताया है, कि जून के प्रथम सप्ताह से बेगूसराय जनपद में किसान इन दोनों धान की नर्सरी को तैयार कर सकते हैं।

यहां राजेंद्र विभूति की खेती की जा सकती है

खोदावंदपुर के कृषि विशेषज्ञ अंशुमान द्विवेदी ने राजेंद्र श्वेता व राजेंद्र विभूति धान की प्रजाति का बेगूसराय में परीक्षण किया है। दोनों प्रजातियां ट्रायल में सफल रहीं। इसके उपरांत कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को इसकी रोपाई करने की सलाह दी है। यदि किसान भाई राजेन्द्र श्वेता एवं राजेन्द्र विभूति की खेती करना चाहते हैं, तो नर्सरी तैयार कर सकते हैं। साथ ही, कृषि विज्ञान केंद्र खोदावंदपुर में आकर खेती करने का प्रशिक्षण भी ले सकते हैं। विशेषज्ञों के बताने के मुताबिक, बेगूसराय जनपद के ग्रामीण क्षेत्रों में राजेंद्र विभूति की खेती की जा सकती है।

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इस राज्य में धान की खेती के लिए 80 फीसद अनुदान पर बीज मुहैय्या करा रही राज्य सरकार

विकसित दो किस्मों से प्रति हेक्टेयर चार क्विंटल उत्पादन बढ़ जाता है

बतादें, कि बेगूसराय जनपद में 17061 हेक्टेयर बंजर भूमि पड़ी है। वहीं, 11001 हेक्टेयर भूमि पर किसान खेती नहीं करते हैं। अब ऐसी स्थिति में इन जमीनों पर किसान राजेंद्र विभूति प्रजाति की खेती कर सकते हैं। इस किस्म की विशेषता यह है, कि यह पानी के बिना भी काफी दिनों तक हरा भरा रह सकता है। मतलब कि इसके ऊपर सूखे का उतना प्रभाव नहीं पड़ेगा। साथ ही, यह बेहद कम पानी में पककर तैयार हो जाती है। तो उधर राजेंद्र श्वेता प्रजाति को खेतों में पानी की आवश्यकता होती है। परंतु, इतना भी ज्यादा नहीं होती। दोनों प्रजाति की खेती से प्रति हेक्टेयर चार क्विंटल उत्पादन बढ़ जाता है।
जानिए धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों और उनकी रोकथाम के बारे में

जानिए धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों और उनकी रोकथाम के बारे में

भारत धान का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। खरीफ के सीजन में धान की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। इस सीजन में वायुमंडल में आर्दरता होने के कारण फसल पर रोगों का प्रकोप भी बहुत होता है। धान की फसल कई रोगों से ग्रषित होती है जिससे पैदावार में बहुत कमी आती है। मेरी खेती के इस लेख में आज हम आपको धान के प्रमुख रोगों और उनकी रोकथाम के बारे में विस्तार से बताएंगे।  

धान के प्रमुख रोग और इनका उपचार   

  1. धान का झोंका (ब्लास्ट रोग) 

  • धान का यह रोग पाइरिकुलेरिया ओराइजी नामक कवक द्वारा फैलता है। 
  • धान का यह ब्लास्ट रोग अत्यंत विनाशकारी होता है।
  • पत्तियों और उनके निचले भागों पर छोटे और नीले धब्बें बनते है, और बाद मे आकार मे बढ़कर ये धब्बें नाव की तरह हो जाते है।


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उपचार 

  • रोग के नियंत्रण के लिए बीज को बोने से पहले बेविस्टीन 2 ग्राम या कैप्टान 2.5 ग्राम दवा को प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर लें।
  • खड़ी फसल मे रोग नियंत्रण के लिए  100 ग्राम Bavistin +500 ग्राम इण्डोफिल M -45 को 200 लीटर पानी मे घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए।
  • बीम नामक दवा की 300 मिली ग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव किया जा सकता है।
  1. जीवाणुज पर्ण झुलसा रोग यानी की (Bacterial Leaf Blight)

लक्षण 

  • ये मुख्य रूप से यह पत्तियों का रोग है। यह रोग कुल दो अवस्थाओं मे होता है, पर्ण झुलसा अवस्था एवं क्रेसेक अवस्था। 
  • सर्वप्रथम पत्तियों के ऊपरी सिरे पर हरे-पीले जलधारित धब्बों के रूप मे रोग उभरता है।
  • धीरे-धीरे पूरी पत्ती पुआल के रंग मे बदल जाती है। 
  • ये धारियां शिराओं से घिरी रहती है, और पीली या नारंगी कत्थई रंग की हो जाती है।


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उपचार 

  • रोग के नियंत्रण के लिए एक ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन या 5 ग्राम एग्रीमाइसीन में बीज को बोने से पहले 12 घंटे तक डुबो लें।
  • बीजो को स्थूडोमोनास फ्लोरेसेन्स 10 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज की दर से उपचारित कर लगावें।
  • खड़ी फसल मे रोग दिखने पर ब्लाइटाक्स-50 की 2.5 किलोग्राम एवं स्ट्रेप्टोसाइक्लिन की 50 ग्राम दवा 80-100 लीटर पानी मे मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।    
  1. पर्ण झुलसा पर्ण झुलसा

भारत के धान विकसित क्षेत्रों मे यह एक प्रमुख रोग बनकर सामने आया है। ये रोग राइजोक्टोनिया सोलेनाई नामक फफूँदी के कारण होता है, जिसे हम थेनेटीफोरस कुकुमेरिस के नाम से भी जानते है। पानी की सतह से ठीक ऊपर पौधें के आवरण पर फफूँद अण्डाकार जैसा हरापन लिए हुए स्लेट/उजला धब्बा पैदा करती है।

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इस रोग के लक्षण मुख्यत पत्तियों एवं पर्णच्छद पर दिखाई पड़ते है। अनुकूल परिस्थितियों मे फफूँद छोटे-छोटे भूरे काले रंग के दाने पत्तियों की सतह पर पैदा करते है, जिन्हे स्कलेरोपियम कहते है। ये स्कलेरोसीया  हल्का झटका लगने पर नीचे गिर जाता है। सभी पत्तियाँ आक्रांत हो जाती है जिस कारण से पौधा झुलसा हुआ दिखाई देता है, और आवरण से बालियाँ बाहर नही निकल पाती है। बालियों के दाने भी पिचक जाते है। वातावरण मे आर्द्रता अधिक तथा उचित तापक्रम रहने पर, कवक जाल तथा मसूर के दानों के तरह स्कलेरोशियम दिखाई पड़ते है। रोग के लक्षण कल्लें बनने की अंतिम अवस्था मे प्रकट होते है। लीफ शीथ पर जल सतह के ऊपर से धब्बे बनने शुरू होते है। पौधों मे इस रोग की वजह से उपज मे 50% तक का नुकसान हो सकता है।

 उपचार 

धान के बीज को स्थूडोमोनारन फ्लोरेसेन्स की 1 ग्राम अथवा ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बुआई करें। जेकेस्टीन या बेविस्टीन 2 किलोग्राम या इण्डोफिल एम-45 की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी मे घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। खड़ी फसल मे रोग के लक्षण दिखाई देते ही भेलीडा- माइसिन कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम या प्रोपीकोनालोल 1 ML का 1.5-2 मिली प्रति लीटर पानी मे घोल बनाकर 10-15 दिन के अन्तराल पर 2-3 छिड़काव करें।

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  1. धान का भूरी चित्ती रोग (Brown Spot)

धान का यह रोग देश के लगभग सभी हिस्सों मे देखा जा सकता है। यह एक बीजजनित रोग है। यह रोग हेल्मिन्थो स्पोरियम औराइजी नामक कवक द्वारा होता है।    ये रोग फसल को नर्सरी से लेकर दाने बनने तक प्रभावित करता है। इस रोग के कारण पत्तियों पर गोलाकार भूरे रंग के धब्बें बन जाते है।  इस रोग के कारण पत्तियों पर तिल के आकार के भूरे रंग के काले धब्बें बन जाते है। ये धब्बें आकार एवं माप मे बहुत छोटी बिंदी से लेकर गोल आकार के होते है। धब्बों के चारो ओर हल्की पीली आभा बनती है।                       ये रोग पौधे के सारे ऊपरी भागों को प्रभावित करता है।    

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उपचार 

रोग दिखाई देने पर मैंकोजेब के 0.25 प्रतिशत घोल के 2-3 छिड़काव 10-12 दिनों के अन्तराल पर करना चाहिए। खड़ी फसल में इण्डोफिल एम-45 की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी मे घोल कर प्रति एकेड की दर से छिड़काव 15 दिनों के अन्तर पर करें।  इस लेख में आपने धान के प्रमुख रोगों और इनकी रोकथाम के बारे में जाना । मेरी खेती आपको खेतीबाड़ी और ट्रैक्टर मशीनरी से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी प्रोवाइड करवाती है। अगर आप खेतीबाड़ी से जुड़ी वीडियोस देखना चाहते हो तो हमारे यूट्यूब चैनल मेरी खेती पर जा के देख सकते है।  
खरीफ सीजन में धान की फसल की इस तरह करें देखभाल होगा अच्छा मुनाफा

खरीफ सीजन में धान की फसल की इस तरह करें देखभाल होगा अच्छा मुनाफा

धान की रोपाई के पश्चात फसल को ज्यादा देखभाल की आवश्यकता पड़ती है। इस वजह से उर्वरक, खाद एवं सिंचाई के साथ दूसरे प्रबंधन कार्य ठीक तरह से कर लेने चाहिये। खरीफ सीजन में भारत के अधिकांश किसान अपने खेतों में धान की फसल लगाते हैं। चावल का बेहतरीन उत्पादन पाने के लिये आरंभ से अंत तक प्रत्येक कार्य सावधानी पूर्वक किया जाता है। परंतु, इतने परिश्रम के बावजूद धान के कल्ले निकलते वक्त विभिन्न समस्याऐं सामने आती हैं। धान की फसल के लिये यह सबसे आवश्यक समय होता है। इस वजह से आवश्यक है, कि उर्वरक, खाद एवं सिंचाई सहित दूसरे प्रबंधन कार्य सही तरह करके धान का अच्छा उत्पादन अर्जित किया जाये। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, रोपाई के उपरांत फसल को ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है। इस दौरान कीड़े एवं रोगों का नियंत्रण तो करना ही है। साथ ही, उत्पादन बढ़ाने वाले वैज्ञानिक नुस्खों पर कार्य करना फायदेमंद माना जाता है।

खेत से जलभराव की समुचित निकासी का प्रबंध करें

यदि फसल में अधिक जलभराव की स्थिति है, तो जल निकासी करके अतिरिक्त जल को खेत से बाहर निकाल दें। उसके बाद में हल्की सिंचाई का काम करते रहें, जिससे मृदा फटने की दिक्कत न हो सके। यह कार्य इस वजह से जरूरी है, कि फसल की जड़ों तक सौर ऊर्जा पहुंच सके। साथ ही, फसल में ऑक्सीजन की सप्लाई भी होती रहे। यह कार्य रोपाई के 25 दिन उपरांत ही कर लेना चाहिए, जिससे कि समय रहते पोषण प्रबंधन किया जा सके।

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धान की फसल की बढ़वार के लिए समय पर पोषण की आवश्यकता होती है

धान की रोपाई के 25-50 दिन के दरमियान धान की फसल में कल्ले निकलने शुरू हो जाते हैं। ये वही वक्त है जब धान के पौधों को सबसे ज्यादा पोषण की आवश्यकता होती है। इस दौरान धान के खेत में एक एकड़ के हिसाब से 20 किलो नाइट्रोजन एवं 10 किलो जिंक का मिश्रण तैयार कर फसल पर छिड़क देना चाहिये। कृषक भाई यदि चाहें तो अजोला की खाद भी फसल में डाल सकते हैं।

फसलीय विकास एवं उत्तम पैदावार हेतु निराई-गुड़ाई

फसल का विकास और बेहतरीन उत्पादन के लिये धान के खेत में निराई-गुड़ाई का कार्य भी करते रहें। इससे फसल में लगने वाली बीमारियां एवं कीड़ों के प्रकोप का पता लग जाता है। निराई-गुड़ाई करने से जड़ों में आक्सीजन का प्रभाव होता है और पौधों के विकास में सहयोग मिलता है। कृषक भाई चाहें तो फसल पर उल्टी एवं सीधी दिशा में बांस से पाटा लगा सकते हैं, जिससे जड़ों में खिंचाव होने लगता है। साथ ही, बढ़वार भी काफी तेजी से होने लगती है।

धान की फसल में खरपतवार नियंत्रण

अक्सर धान के खेत में गैर जरूरी पौधे उग जाते हैं, जो धान से पोषण सोखकर फसल की उन्नति से रोकते हैं, इन्हें खरपतवार कहते हैं। खरपतवार को नष्ट करने हेतु 2-4D नामक खरपतवार नाशी दवा का स्प्रे करें। पेंडीमेथलीन 30 ई.सी भी एक प्रमुख खरपतवार नाशी दवा है, जिसकी 3.5 लीटर मात्रा को 850-900 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर के मुताबिक खेतों में डाल देना चाहिये।

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जैविक खाद का इस्तेमाल धान की फसल में किया जाता है

प्राचीन काल से ही धान की फसल से बेहतरीन उत्पादन लेने के लिये जैविक विधि अपनाने का सलाह मशवरा दिया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, धान एंजाइम गोल्ड का उपयोग करके बेहद लाभ उठा सकते हैं। बतादें, कि धान एंजाइम गोल्ड को समुद्री घास से निकाला जाता है। जो धान की बढ़वार और विकास में सहयोग करता है। यह ठीक अजोला की भांति कार्य करता है, जिससे कीड़ों एवं रोगों की संभावना भी कम हो जाती है। इसके छिड़काव के लिये एक मिली. धान एंजाइम गोल्ड को एक लीटर पानी में मिलाकर घोल बनायें। साथ ही, एक हेक्टेयर खेत में इसकी 500 लीटर मात्रा का इस्तेमाल करें।