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केंद्र सरकार ने इस खरपतवार नाशी केमिकल के आयात पर लगाया बैन

केंद्र सरकार ने इस खरपतवार नाशी केमिकल के आयात पर लगाया बैन

भारत सरकार की तरफ से कम कीमत वाले 'ग्लूफोसिनेट टेक्निकल' के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है। भारत भर में यह निर्णय 25 जनवरी, 2024 से ही लागू कर दिया गया है। बतादें, कि 'ग्लूफोसिनेट टेक्निकल' का उपयोग खेतों में खरपतवार को हटाने के मकसद से किया जाता है। यहां जानें ग्लूफोसिनेट टेक्निकल पर रोक लगाने के पीछे की वजह के बारे में। 

भारत के कृषक अपने खेत की फसल से शानदार उत्पादन हांसिल करने के लिए विभिन्न प्रकार के केमिकल/रासायनिक खादों/ Chemical Fertilizers का उपयोग करते हैं, जिससे फसल की उपज तो काफी अच्छी होती है। परंतु, इसके उपयोग से खेत को बेहद ज्यादा हानि पहुंचती है। इसके साथ-साथ केमिकल से निर्मित की गई फसल के फल भी खाने में स्वादिष्ट नहीं लगते हैं। कृषकों के द्वारा पौधों का शानदार विकास और बेहतरीन उत्पादन के लिए 'ग्लूफोसिनेट टेक्निकल' का उपयोग किया जाता है। वर्तमान में भारत सरकार ने ग्लूफोसिनेट टेक्निकल नाम के इस रसायन पर प्रतिबंध लगा दिया है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि सरकार ने हाल ही में सस्ते मूल्य पर मिलने वाले खरपतवारनाशक ग्लूफोसिनेट टेक्निकल के आयात पर रोक लगा दी है। आंकलन यह है, कि सरकार ने यह फैसला घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से किया है।

ग्लूफोसिनेट टेक्निकल का इस्तेमाल किस के लिए किया जाता है 

किसान ग्लूफोसिनेट टेक्निकल का उपयोग खेतों से हानिकारक खरपतवार को नष्ट करने या हटाने के लिए करते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ किसान इसका इस्तेमाल पौधों के शानदार विकास में भी करते हैं। ताकि फसल से ज्यादा से ज्यादा मात्रा में उत्पादन हांसिल कर वह इससे काफी शानदार कमाई कर सकें। 

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ग्लूफोसिनेट टेक्निकल केमिकल का आयात प्रतिबंधित 

ग्लूफोसिनेट टेक्निकल केमिकल पर प्रतिबंध का आदेश 25 जनवरी, 2024 से ही देश भर में लागू कर दिया गया है। ग्लूफोसिनेट टेक्निकल केमिकल पर प्रतिबंध को लेकर विदेश व्यापार महानिदेशालय का कहना है, कि ग्लूफोसिनेट टेक्निकल के आयात पर प्रतिबंध मुक्त से निषेध श्रेणी में किया गया है।

उन्होंने यह भी कहा है, कि यदि इस पर लागत, बीमा, माल ढुलाई मूल्य 1,289 रुपये प्रति किलोग्राम से ज्यादा होता है, तो ग्लूफोसिनेट टेक्निकल का आयात पूर्व की भांति ही रहेगा। परंतु, इसकी कीमत काफी कम होने की वजह से इसके आयात को भारत में प्रतिबंधित किया गया है। 

कीटनाशक दवाएं महंगी, मजबूरी में वाशिंग पाउडर छिड़काव कर रहे किसान

कीटनाशक दवाएं महंगी, मजबूरी में वाशिंग पाउडर छिड़काव कर रहे किसान

नौहझील। बढ़ती महंगाई का असर अब कीटनाशक दवाओं पर भी दिखाई देने लगा है। कीटनाशक दवाओं पर म्हंगैबक चलते किसान वाशिंग पाउडर का घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करने को मजबूर हैं। इन दिनों मूंग और उड़द की फसल लहलहा रही है। लेकिन कीट-पतंगे फसल को बर्बाद कर रहे हैं। कीड़े और गिडार फसल को खा रहीं हैं। कीटनाशक दवाओं मूल्यों पर अचानक हुई वृद्धि से किसान परेशान हैं। मजबूरन किसान कीटनाशक की जगह पानी में वाशिंग पाउडर का घोल बनाकर मूंग व उड़द की फसल पर छिड़काव कर रहे हैं।

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गांव हसनपुर निवासी किसान ललित चौधरी व दीपू फौजदार बताते हैं कि उन्होंने अपने खेत में मूंग कि उड़द की फसल बो रखी है। फसल को कीड़े व गिडार कहा रहे हैं। कीटनाशक दवाओं के रेट अचानक बढ जाने के कारण पानी में वाशिंग पाउडर का घोल बनाकर छिड़काव कर रहे हैं। हालांकि इसका असर कम ही दिखाई दे रहा है।

क्या कहते हैं दुकानदार

- विकास कीटनाशक भंडार कोलाहर के दुकानदार मनोज चौधरी ने बताया कि रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते कीटनाशक दवाओं के रेट महंगे हुए हैं। बीते दो महीने में कीटनाशक दवाओं के रेट दोगुने तक हो गए हैं। "मौसम काफी गर्म है ऐसे में फसल पर वाशिंग पाउडर के घोल का छिड़काव फसलों के लिए हानिकारक हो सकता है। किसानों को कोराजिन व मार्शल लिक्विड का छिड़काव करना चाहिए। जो सस्ता व कारगर साबित होगा।" - एसडीओ कृषि, सुबोध कुमार सिंह

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इन गांवों के किसान हैं प्रभावित

- हसनपुर, ईखू, मसंदगढ़ी, पालखेड़ा, रायकरनगढ़ी, भूरेखा, मरहला, नावली, सामंतागढ़ी सहित कई गांवों के किसानों की फसल कीट-पतंगों से प्रभावित हो रहीं हैं।

तीन महीने पहले की कीमत :

- एक्सल की मीरा 71 100 ML की कीमत 60 रुपए थी, जो अब 130 रुपए है। - नागार्जुना 65 रुपए कीमत थी जो अब 125 रुपए हो गई है एक एकड़ में 60 एमएल कोराजिन दवा का छिड़काव होता है। जिसकी कीमत 850 रुपए है। ------ लोकेन्द्र नरवार

किसान मोर्चा की खास तैयारी, म‍िलेट्स या मोटे अनाज को बढ़ावा देने का कदम

किसान मोर्चा की खास तैयारी, म‍िलेट्स या मोटे अनाज को बढ़ावा देने का कदम

केंद्र सरकार ने बजट में श्री अन्न योजना की शुरूआत की है. हालांकि पहले से ही केंद्र सरकार प्राकृतिक खेती के साथ-साथ मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही है. जिसे देखते हुए इस बार के बजट में सरकार ने किसानों की आमदनी को बढ़ाने के लिए इस योजना की शुरूआत की है. सरकार के मुताबिक मोटे अनाज और प्राकृतिक खेती से जमीन का वाटर लेबल बढ़ सकता है. इसके अलावा इस तरह की खेती में ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती. इस खुशखबरी के बीच बीजेपी (BJP) की कृषि विंग समेत किसान मोर्चा ने भी एक अभियान शुरू कर दिया है. यह राष्ट्रव्यापी अभियान कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों के कम इस्तेमाल को लेकर है. इस अभियान के तहत उन्होंने एक करोड़ लोगों तक अपना मैसेज पहुंचाने का लक्ष्य रखा है. इसके अलावा वह करीब एक लाख से भी ज्यादा गांवों की यात्रा कर रहे हैं. किसान मोर्चा के राज्य संयोजक और अन्य सह संयोजकों के नेतृत्व में यह यात्रा गंगा के किनारे बसे गांवों में की जा रही है.

13 फरवरी को प्रशिक्षण संगोष्ठी

13 फरवरी को किसान मोर्चा एक महत्वपूर्ण काम करने जा रहा है. जानकारी के मुताबिक वह न सिर्फ यात्राओं को बल्कि बीजेपी के कार्यकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण संगोष्ठी का भी आयोजन करने वाला है.बिंग के अधिकारी के नेतृत्व में इस संगोष्ठी का आयोजन किया जाएगा. इसके अलावा इसमें साइंटिस्ट, न्यूट्रीशनिस्ट और अन्य एक्सपर्ट्स शामिल होंगे. इस संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य बीजेपी के कार्यकर्ताओं को को जैविक खेती और बाजरे के बारे में जानकारी दी जाएगी. जिसके बाद वो अपने जिले के किसानों की इस विषय में मदद कर सकें. हालांकि इस संगोष्ठी के बाद सभी जिलों में इसी तरह के सत्र का आयोजन किया जाएगा.
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चौपाल और चर्चाओं का चलेगा सिलसिला

यूपी के शुक्रताल में अगले महीने से जन जागरण अभियान की शुरूआत होगी. जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत कई बीजेपी नेताओं की भागीदारी होगी. एक गांव परिक्रमा यात्रा भी इस अभियान का हिस्सा होगी. इसके अलावा इसमें किसान चौपाल और चर्चाओं का भी सिलसिला चलेगा. किसानों को किसान मोर्चा बजट से कई फायदे होंगे. जिसके चलते उन्हें शिक्षित करने के लिए एक हफ्ते का अभियान चल रहा है. इसके अलावा इस अभियान के जरिये किसानों को यह भी समझाना है कि, उन्हें सरकार की नीतियों से कैसे फायदा मिल सकता है. साथ ही यह भी बताना है कि, जैविक खेती को कैसे बढ़ाया जाए और नुकसानदायक रसायनों का इस्तेमाल कम किया जाए.
बसंत ऋतु के दौरान फसलों में होने वाले कीट संक्रमण से संरक्षण हेतु रामबाण है यह घोल

बसंत ऋतु के दौरान फसलों में होने वाले कीट संक्रमण से संरक्षण हेतु रामबाण है यह घोल

डॉक्टर एसके सिंह का कहना है, कि इस कीट के निम्फ एवं वयस्क दोनों पौधे के फूलों, पत्तियों, नाजुक टहनियों एवं नवनिर्मित फलों के रस को चूस जाते हैं। बसंत ऋतु के मौसम के दौरान अपने पुराने पत्तों को छोड़कर नवीन पत्तियों से तैयार होते हैं। साथ ही, इस वक्त कुछ कीट बड़ी बुरी तरह से इन पंत्तियों को नष्ट करने में जुटे हुए हैं। ऐसी स्थिति में किसान भाई वक्त पर इससे सुलझने की तैयारी करलें। भारत के प्रसिद्ध फल वैज्ञानिक डॉक्टर संजय कुमार सिंह कृषकों को आम के वृक्षों पर संक्रमण करने वाले लीफ हाफर कीट का खात्मा करने की तैयारी के विषय में बता रहे हैं। डॉक्टर एसके सिंह का कहना है, कि इस कीट के निम्फ एवं वयस्क दोनों पौधे के फूलों, पत्तियों, कोमल टहनियों एवं नवनिर्मित फलों के रस को चूस जाते हैं। उसके बाद वह मृत एवं रिक्त कोशिकाओं को हटाकर तरल पदार्थ को चूसने का कार्य करते हैं। जो कि बाद में छोटे एवं सफेद धब्बे के रूप में बदल जाते हैं। इसका असर से फूल का सिर भूरा हो जाता है एवं शुष्क हो जाते हैं। साथ ही, इससे फल सेटिंग प्रभावित रहती है। थोड़ी हानि पत्तियों एवं फूलों के तनों में अंडे देने से भी हो जाती है। भारी भोजन की वजह से ‘हॉपरबर्न’ हो जाता है ,जो कि कीड़ों की लार के जहरीले असर की वजह से होता है। जो कि मोज़ेक वायरस रोग की भी वजह बन जाता है, क्योंकि कीट विषाणु के वाहक होते हैं।

लीफहॉपर के संक्रमण की यह पहचान होती है

डॉक्टर सिंह के अनुसार, लीफ हॉपर्स प्रचूर मात्रा में एक मीठा तरल अपशिष्ट पैदा करते हैं, जिसको हनीड्यू के नाम से जाना जाता है। एक कवक, जिसको कालिख (सूटी मोल्ड) कहा जाता है, शहद की भाँति तरल के जमाव पर पैदा होता है जो कि पत्तियों एवं शाखाओं पर इकठ्ठा हो जाता है। यह पत्तियों एवं शाखाओं का रंग काला कर देता है। पौधों के ऊपर कालापन दिखना लीफहॉपर के संक्रमण की पहचान है।

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आम के लीफहॉपर किस रंग के होते हैं

आपको बतादें कि अंडे पत्तियों के नीचे नरम पौधे के ऊतक के भीतर रखे जाते हैं। जो कि लम्बी अथवा वक्र, सफेद से हरे रंग की एवं तकरीबन 0.9 मिमी लंबी होती हैं। तकरीबन 10 दिनों में अंडे सेने में लग जाते हैं। यह निम्फ वयस्कों के समरूप दिखाई देते हैं। परंतु, बेहद छोटे, हल्के पीले-हरे एवं पंखहीन से होते हैं। वह पांच निम्फल चरणों से निकलते हैं। उनकी डाली की खाल सामान्य रूप से पत्ती की निचे की सतह पर टिकी होती है। निम्फ में तीव्र गति से आगे अथवा पीछे या फिर बग़ल में चलने की क्षमता रहती है। छोटे, लम्बे पच्चर और व्यस्क के आकार के कीड़े तकरीबन 3-4 मिमी लंबे रहते हैं। वह तीव्रता से कूदते हैं। शीघ्रता से उड़ते हैं एवं दिक्कत परेशानी होने पर समस्त दिशाओं में दौड़ सकते हैं। इस वजह से इसका नाम लीफहॉपर है। कई लीफहॉपर एक ही तरह के दिखाई देते हैं, परंतु आम के लीफहॉपर सफेद रंग के होते हैं।

क्या बिना रसायनों के उपयोग से लीफ हॉपर की रोकथाम हो सकती है

लहसुन के अर्क (तेल) का छिड़काव (स्प्रे) करके आम के लीफ हॉपर को कुछ सीमा तक प्रबंधित कर सकते हैं। शुरूआत में सर्वप्रथम इसका इस्तेमाल छोटे स्तर पर करके देखने और संतुष्ट होने के उपरांत व्यापक स्तर पर करना होगा। अब हम चर्चा करने जा रहे हैं, लहसुन के अर्क (तेल) किस प्रकार निर्मित कर रहे हैं। इसको 100 ग्राम लहसुन सर्वप्रथम बारीकी से काटा जाता है। उसके बाद कटे हुए लहसुन को एक दिन हेतु आधा लीटर खनिज तेल में डुबो दें। इसके उपरांत इसमें 10 मिली तरल साबुन का मिश्रण करें। इसमें 10 लीटर जल डालकर पतला करके छान लें। तेल को भिन्न होने से रूकावट हेतु प्रयोग के चलते कंटेनर को निरंतर हिलाएं अथवा घोल (अर्क) को निरंतर हिलाते रहें। इस घोल से सिर्फ लीफ हॉपर्स ही नहीं प्रबंधित होते हैं। साथ ही, इससे गोभी के कीट, स्क्वैश के कीट एवं सफेद मक्खी आदि कीट बिना रसायनों के प्रबंधित हो सकते हैं।
इस राज्य में किसान कीटनाशक और उर्वरक की जगह देशी दारू का छिड़काव कर रहे हैं

इस राज्य में किसान कीटनाशक और उर्वरक की जगह देशी दारू का छिड़काव कर रहे हैं

किसान पंकज का कहना है, कि एक एकड़ भूमि में 500 एमएल देसी शराब का छिड़काव किया जाता है। इससे फसलीय उत्पादन में वृद्धि होने की बात कही जा रही है। ऐसे तो किसान बेहतरीन उत्पादन के लिए खेतों में उर्वरक और कीटनाशकों का उपयोग करते हैं। परंतु, मध्य प्रदेश के कुछ किसान पैदावार बढ़ाने के लिए अजीबोगरीब तरीका अपना रहे हैं। जिसे सुनकर आप हैरान रह जाएंगे। यहां के किसान दलहन के उत्पादन में बढ़ोत्तरी करने के लिए फसलों को देसी शराब पिला रहे हैं। हालांकि, इससे फसलों को कोई हानि नहीं पहुंचने का दावा किया जा रहा है। किसानों का यह मानना है, कि ऐसा करने से दलहन की पैदावार बढ़ जाती है।

इस जनपद के किसान फसल को पिला रहे देशी दारू

मीडिया के अनुसार, नर्मदापुरम जनपद में किसानों ने ग्रीष्मकालीन
मूंग की खेती की है। यहां पर किसान मूंग की दोगुनी पैदावार लेने के लिए फसल पर देसी दारू का छिड़काव कर रहे हैं। किसानों का यह भी कहना है, कि इंसान की भांति पौधे भी दारू पीते हैं। इससे फसलों का उत्पादन बढ़ जाता है। कहा जा रहा है, कि नर्मदापुरम के अतिरिक्त अन्य दूसरे जनपदों में भी किसान खेती की इस विधि को अपना रहे हैं। किसानों का कहना है, कि आगामी दिनों में पूरे राज्य में मूंग की फसल को देसी दारू पिलाने का चलन चालू हो जाएगा। इससे राज्य में मूंग का उत्पादन बढ़ जाएगा।

किसानों ने देसी दारू के छिड़काव को लेकर क्या कहा है

दरअसल, जनपद के किसान देसी दारू को कीटनाशक के तौर पर फसलों के ऊपर छिड़काव करते हैं। किसानों ने कहा है, कि देसी दारू को पानी में मिलाकर स्प्रे मशीन के जरिए से फसल पर छिड़काव किया जाता है। इससे कीट- पतंग भी मर जाते हैं। किसानों के मुताबिक, रासायनिक कीटनाशकों का छिड़काव करने से हम लोगों की सेहत पर भी प्रभाव पड़ता था। कीटनाशक का छिड़काव करने वाले इंसान की आंखों में तेज जलन होने लगती है। इतना ही नहीं सिर में भी काफी दर्द होता है। बहुत बार तो यह भी देखा गया है, कि किसान बीमार भी पड़ जाते हैं। परंतु, देसी दारू के साथ इस प्रकार की कोई दिक्कत नहीं है।

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वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक केके मिश्रा का शराब छिड़काव पर क्या कहना है

जानकारी के लिए बतादें, कि कुछ स्थानीय किसानों का ऐसा मानना है, कि देसी दारू एक प्रकार से जैविक दवा है। यह रासायनिक कीटनाशकों की तुलना में काफी सस्ती भी होती है। ऐसे में किसानों की खेती पर होने वाली लागत कम हो जाती है। स्थानीय किसान पंकज ने कहा है, कि एक एकड़ जमीन पर 500 एमएल देसी शराब का छिड़काव किया जाता है। 20 लीटर जल में 100 एमएल देसी शराब का मिश्रण करके पौधों के ऊपर छिड़काव किया जाता है। साथ ही, वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक केके मिश्रा ने कहा है, कि ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल में शराब का छिड़काव करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इससे फसल को किसी तरह का कोई लाभ भी नहीं होने वाला है, बल्कि साइड इफेक्ट ही हो सकता है। ऐसी स्थिति में फसलों की पैदावार में इजाफा होने की जगह गिरावट हो सकती है।
खरीफ सीजन में बासमती चावल की इन किस्मों की खेती से होगी अच्छी पैदावार और कमाई

खरीफ सीजन में बासमती चावल की इन किस्मों की खेती से होगी अच्छी पैदावार और कमाई

भारत भर में बासमती धान का उत्पादन किया जाता है। देश के विभिन्न राज्यों में विभिन्न किस्म का बासमती चावल उगाया जाता है। परंतु, कुछ ऐसी भी प्रजातियां हैं, जिनके उत्पादन हेतु हर प्रकार का मौसम और जलवायु उपयुक्त होता है। इस बार जून के पहले हफ्ते में मानसून की शुरुआत होगी। इसके उपरांत संपूर्ण भारत में किसान धान की बुवाई करने में लग जाएंगे। दरअसल, किसानों ने धान की नर्सरी को तैयार करना चालू कर दिया है। यदि किसान भाई बासमती धान का उत्पादन करने की योजना बना रहे हैं, तो उनके लिए यह अच्छी खबर है। क्योंकि, आगे इस लेख में हम आपको बासमती धान की सदाबहार प्रजतियों के विषय में जानकारी देने वाले हैं। इन किस्मों से खेती करने पर रोग लगने का खतरा भी बहुत कम रहता है। साथ ही, काफी बेहतरीन पैदावार भी मिलती है।

बासमती चावल का उत्पादन पूरे देश में किया जाता है

ऐसे तो बासमती चावल की खेती पूरे भारत में की जाती है। लेकिन, भिन्न-भिन्न राज्यों में वहां की मृदा-जलवायु हेतु अनुकूल भिन्न-भिन्न किस्म का बासमती चावल उगाया जा सकता है। हालाँकि, कुछ ऐसी भी प्रजातियां मौजूद हैं, जिनका उत्पादन हर प्रकार के मौसम एवं जलवायु में आसानी से किया जा सकता है। इन किस्मों के ऊपर झुलसा रोग का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। साथ ही, फसल की लंबाई कम होने की वजह से तेज हवा बहने पर भी यह वृक्ष नहीं गिरते हैं। अब ऐसी हालत में किसानों की कीटनाशकों पर आने वाली लागत में राहत मिलेगी एवं धान में पोष्टिकता भी बनी रहेगी। इसकी वजह से बाजार में समुचित भाव प्राप्त होगा। ये भी देखें: धान की किस्म पूसा बासमती 1718, किसान कमा पाएंगे अब ज्यादा मुनाफा

पूसा बासमती-6 (पूसा- 1401):

पूसा बासमती-6 धान की एक सिंचित किस्म है। मतलब कि यह प्रजाति बारिश से ही अपने लिए जल की आवश्यकता को पूरा कर लेती है। यह बासमती की एक बौनी प्रजाति है। इसकी फसल की लंबाई परंपरागत बासमती की तुलना में बेहद कम होती है। ऐसी हालत में तीव्र हवा चलने पर भी इसकी फसल खेत में नहीं गिरती है। इसकी उत्पादन क्षमता 55 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है। यदि किसान भाई इसकी खेती करेंगे को उनको काफी ज्यादा उत्पादन प्राप्त हो सकेगा।

उन्नत पूसा बासमती-1 (पूसा-1460):

उन्नत पूसा बासमती-1 भी पूसा बासमती-6 की ही भाँती एक सिंचित बासमती धान की प्रजाति है। इसकी फसल 135 दिन के समयांतराल में ही पककर तैयार हो जाती है। इसका अर्थ यह है, कि 135 दिन के उपरांत किसान भाई इसकी कटाई कर सकते हैं। इसमें रोग प्रतिरोध क्षमता काफी ज्यादा पाई जाती है। अब ऐसी हालत में इसके ऊपर झुलसा रोग का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यदि पैदावार की बात करें तो, आप एक हेक्टेयर से 50 से 55 क्विंटल धान की पैदावार कर सकते हैं। ये भी देखें: पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

पूसा बासमती-1121:

पूसा बासमती- 1121 का उत्पादन आप किसी भी धान की खेती वाले भाग में कर सकते हैं। यह बासमती की एक सुगंधित प्रजाति है। जो कि 145 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है। इसके चावल का दाना पतला एवं लंबा होता है। खाने में यह बेहद स्वादिष्ट लगती है। इसकी उत्पादन क्षमता 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसके अलावा यदि किसान भाई चाहें, तो पूसा सुगंध-2, पूसा सुगंध-3 और पूसा सुगंध-5 की भी खेती कर सकते हैं। इन किस्मों की खेती करने हेतु पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर का मौसम उपयुक्त है। यह किस्में तकरीबन 120 से 125 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती हैं। साथ ही, एक हेक्टेयर जमीन से 40 से 60 क्विंटल उत्पादन मिल सकता है।
रोग व कीटों से जुड़ी समस्त समस्याओं के हल हेतु हेल्पलाइन नंबर जारी हुआ

रोग व कीटों से जुड़ी समस्त समस्याओं के हल हेतु हेल्पलाइन नंबर जारी हुआ

अगर आपकी फसल में लगातार कीट और रोग लगते रहते हैं। इसकी रोकथाम के लिए आप इधर से उधर चक्कर काट रहे हैं। यदि आपको इसके बावजूद भी इससे निजात नहीं मिल पाई है, तो इसी परेशानी को देखते हुए किसानों के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी कर दिया गया है। जैसा कि आप सब लोग जानते हैं, कि भारत सरकार ने संपूर्ण भारत के विभिन्न राज्यों में विभिन्न प्रकार के कीटनाशकों को बैन किया है। परंतु, हमारे भारत में अधिकांश किसानों को अब यह डर सता रहा है, कि अगर किसी कारण से उनकी फसल में कोई रोग लग जाता है, तो फिर किसान क्या करें और उसे ठीक करने के लिए वह किसके समीप जाए। ऐसे में आप घबराएं नहीं आज हम आपके इन सभी सवालों का जवाब लेकर आए हैं। किसानों को कीट और रोगों से बचाने के लिए हर संभव प्रयास करें।

बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन ने एक सरकारी हेल्पलाइन नंबर जारी

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि फसलों में लगने वाले रोगों की वजह से बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन ने एक सरकारी हेल्पलाइन नंबर जारी किया है। कहा जा रहा है, कि इस एक नंबर से किसानों को कीट से लेकर बाकी विभिन्न प्रकार की परेशानियों का समाधान सरलता से प्राप्त होगा। इसके लिए आपको ज्यादा कुछ करने की भी आवश्यकता नहीं है। आपको बस अपनी फसल में लगे रोग और कीटों की एक तस्वीर को खींचकर इस नंबर पर कॉल करके उन्हें भेजना होगा। यदि आप चाहें तो फसल की विडियो बनाकर भी इस नंबर पर भेज सकते हैं, जिससे कि आप समस्या से छुटकारा पा सकें।

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नंबर की सेवा का समय कितना है

ऊपर बताया गया नंबर किसानों के लिए व्हाट्सएप हेल्पलाइन नंबर है। इस नंबर पर किसानों की परेशानी का जवाब सुबह 9 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक ही मिल पाएगा। इस दौरान किसान कॉल करके भी फसल से संबंधित समस्या पर वार्तालाप कर सकते हैं।

इन कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगा है

अगर आप इस बात से अभी तक अनभिज्ञ है, कि सरकार के द्वारा किन-किन कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाया गया है। तो आइए इसके ऊपर भी एक नजर डाल सकते हैं। बासमती उत्पादक पंजाब ने 10 कीटनाशकों को प्रतिबंधित किया है, जिनके नाम कुछ इस तरह हैं। ट्राइसाइक्लाजोल, एसेफेट, बुप्रोफेजिन, क्लोरपाइरीफोस, हेक्साकोनाज़ोल, प्रोपिकोनाजोल, थियामेथोक्सम, प्रोफेनोफोस, इमिडाक्लोप्रिड और कार्बेन्डाजिम आदि शम्मिलित हैं।
येलो मोजेक वायरस की वजह से महाराष्ट्र में पपीते की खेती को भारी नुकसान

येलो मोजेक वायरस की वजह से महाराष्ट्र में पपीते की खेती को भारी नुकसान

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि नंदुरबार जिला महाराष्ट्र का सबसे बड़ा पपीता उत्पादक जिला माना जाता है। यहां लगभग 3000 हेक्टेयर से ज्यादा रकबे में पपीते के बाग इस वायरस की चपेट में हैं। इसकी वजह से किसानों का परिश्रम और लाखों रुपये की लागत बर्बाद हो गई है। किसानों ने सरकार से मांगा मुआवजा। सोयाबीन की खेती को बर्बाद करने के पश्चात फिलहाल येलो मोजेक वायरस का प्रकोप पपीते की खेती पर देखने को मिल रहा है। इसकी वजह से पपीता की खेती करने वाले किसान काफी संकट में हैं। इस वायरस ने एकमात्र नंदुरबार जनपद में 3 हजार हेक्टेयर से ज्यादा रकबे में पपीते के बागों को प्रभावित किया है, इससे किसानों की मेहनत और लाखों रुपये की लागत बर्बाद हो चुकी है। महाराष्ट्र के विभिन्न जिलों में देखा जा रहा है, कि मोजेक वायरस ने सोयाबीन के बाद पपीते की फसल को बर्बाद किया है, जिनमें नंदुरबार जिला भी शामिल है। जिले में पपीते के काफी बगीचे मोजेक वायरस की वजह से नष्ट होने के कगार पर हैं।

सरकार ने मोजेक वायरस से क्षतिग्रस्त सोयाबीन किसानों की मदद की थी

बतादें, कि जिस प्रकार राज्य सरकार ने मोजेक वायरस की वजह से सोयाबीन किसानों को हुए नुकसान के लिए सहायता देने का वादा किया था। वर्तमान में उसी प्रकार पपीता किसानों को भी सरकार से सहयोग की आशा है। महाराष्ट्र एक प्रमुख फल उत्पादक राज्य है। परंतु, उसकी खेती करने वालों की समस्याएं कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। इस वर्ष किसानों को अंगूर का कोई खास भाव नहीं मिला है। बांग्लादेश की नीतियों की वजह से एक्सपोर्ट प्रभावित होने से संतरे की कीमत गिर गई है। अब पपीते पर प्रकृति की मार पड़ रही है।

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पपीते की खेती में कौन-सी समस्या सामने आई है

पपीते पर लगने वाले विषाणुजनित रोगों की वजह से उसके पेड़ों की पत्तियां शीघ्र गिर जाती हैं। शीर्ष पर पत्तियां सिकुड़ जाती हैं, इस वजह से फल धूप से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। व्यापारी ऐसे फलों को नहीं खरीदने से इंकार कर देते हैं, जिले में 3000 हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्रफल में पपीता इस मोज़ेक वायरस से अत्यधिक प्रभावित पाया गया है। हालांकि, किसानों द्वारा इस पर नियंत्रण पाने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के उपाय किए जा रहे हैं। परंतु, पपीते पर संकट दूर होता नहीं दिख रहा है। इसलिए किसानों की मांग है, कि जिले को सूखा घोषित कर सभी किसानों को तत्काल मदद देने की घोषणा की जाए।

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किसान कर लें ये काम, वरना पपीते की खेती हो जाएगी बर्बाद

पपीता पर रिसर्च सेंटर स्थापना की आवश्यकता

नंदुरबार जिला महाराष्ट्र का सबसे बड़ा पपीता उत्पादक जिला माना जाता है। प्रत्येक वर्ष पपीते की फसल विभिन्न बीमारियों से प्रभावित होती है। परंतु, पपीते पर शोध करने के लिए राज्य में कोई पपीता अनुसंधान केंद्र नहीं है। इस वजह से केंद्र और राज्य सरकारों के लिए यह जरूरी है, कि वे नंदुरबार में पपीता अनुसंधान केंद्र शुरू करें और पपीते को प्रभावित करने वाली विभिन्न बीमारियों पर शोध करके उस पर नियंत्रण करें, जिससे किसानों की मेहनत बेकार न जाए।

येलो मोजेक रोग के क्या-क्या लक्षण हैं

येलो मोजेक रोग मुख्य तौर पर सोयाबीन में लगता है। इसकी वजह से पत्तियों की मुख्य शिराओं के पास पीले धब्बे पड़ जाते हैं। ये पीले धब्बे बिखरे हुए अवस्था में दिखाई देते हैं। जैसे-जैसे पत्तियां बढ़ती हैं, उन पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं। कभी-कभी भारी संक्रमण की वजह पत्तियां सिकुड़ और मुरझा जाती हैं। इसकी वजह से उत्पादन प्रभावित हो जाता है।

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येलो मोजेक रोग की रोकथाम का उपाय

कृषि विभाग ने येलो मोजेक रोग को पूरी तरह खत्म करने के लिए रोगग्रस्त पेड़ों को उखाड़कर जमीन में गाड़ने या नीला व पीला जाल लगाने का उपाय बताया है। इस रोग की वजह से उत्पादकता 30 से 90 प्रतिशत तक कम हो जाती है। इसके चलते कृषि विभाग ने किसानों से समय रहते सावधानी बरतने की अपील की है।
धानुका एग्रीटेक ने प्रेस विज्ञप्ति में आधुनिक तकनीक से भारतीय कृषि को मजबूत करने की बात कही है

धानुका एग्रीटेक ने प्रेस विज्ञप्ति में आधुनिक तकनीक से भारतीय कृषि को मजबूत करने की बात कही है

धानुका एग्रीटेक प्रेस विज्ञप्ति : भारतीय किसानों की समस्याओं के प्रभावी समाधान के रूप में धानुका एग्रीटेक ऐसे उत्पाद लेकर आया है, जो उत्पादन क्षमता के साथ ही लाभ के प्रतिशत को भी बढ़ा देंगे। इतना ही नहीं धानुका अत्याधुनिक अनुसंधान एवं विकास और प्रशिक्षण केंद्र के जरिए यह कंपनी किसानों तक नवीनतम समाधान बिना किसी अवरोध के सीधे पहुंचाने का काम भी कर रही है।

भारतीय कृषि मौजूदा समय में बड़े बदलावों से गुजर रही है। आधुनिक कृषि प्रौद्योगिकी या एग्री-टेक के कारण आई इस बदलाव की लहर के बूते अब देश अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कृषि महाशक्ति के रूप में उभरकर आने को तैयार है। पिछले कुछ वर्षों में ही, एग्री-टेक ने लाभ प्रतिशत और उत्पादन क्षमता को बढ़ा दिया है, जिसने एक बार फिर से देश की अर्थव्यवस्था में कृषि की महत्वपूर्ण भूमिका को मजबूती दे दी है।

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इस बढ़ोतरी को देखते हुए कहा जा सकता है कि साल 2030 तक भारत की जीडीपी में कृषि का लाभांश योगदान 600 अरब डॉलर तक पहुंचने की क्षमता है, जो 2020 की तुलना में 50 प्रतिशत से भी ज्यादा की वृद्धि होगी। इसके अलावा, एग्री-टेक ग्रामीण इलाकों के उत्थान में भी योगदान दे रहा है, जो भारत को वैश्विक स्तर पर खाद्य उत्पादन के क्षेत्र में एक प्रमुख उत्पादक के रूप में स्थापित कर रहा है।

कृषि क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति को मजबूत बनाने के इस मिशन को धानुका एग्रीटेक आगे बढ़ा रहा है। एक लीडर की भूमिका निभाते हुए कंपनी भारतीय किसानों को नवीन कृषि-तकनीक और आधुनिक पद्धतियां उपलब्ध करवा रहा है, जिससे वे और भी अधिक सक्षम बन रहे हैं। इतना ही नहीं बल्कि अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों और टिकाऊ कृषि समाधानों का उपयोग करते हुए कंपनी ने एग्री-टेक के क्षेत्र में इनोवेशन को भी बढ़ावा दिया है।

कृषि से जुड़ी नवीनतम जानकारी हासिल करने के लिए धानुका ने अमेरिका, जापान और यूरोप जैसे देशों की टॉप एग्री-इनपुट कंपनियों से हाथ मिलाया है। इसका इस्तेमाल कर कंपनी ने भारतीय कृषि में ऐसी अत्याधुनिक तकनीक को पेश किया है, जो देश को वैश्विक स्तर पर कृषि क्षेत्र में अग्रणी बनने की ओर ले जा रही है। वर्तमान में, धानुका के पास तीन ऐसे अत्याधुनिक विनिर्माण इकाइयां (मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी) हैं जिनके जरिए उच्चतम स्तर के कृषि उत्पादों का उत्पादन किया जा रहा है।

धानुका इन नवीनतम पद्धतियों का इस्तेमाल एग्रोकेमिकल इंडस्ट्री से जुड़े अपने उत्पादों की बड़ी रेंज को तैयार करने में कर रहा है। इन उत्पादों में खरपतवार नाशक, कीटनाशक, फफूंदनाशक, बायोलॉजिकल्स, और प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर्स शामिल हैं, जो सभी मुख्य फसल कीटों, बीमारियों और खरपतवारों से जुड़ी समस्याओं का प्रभावी तरीके से समाधान करते हैं। किसानों को फसल से जुड़ी इन परेशानियों का सामना करने में सक्षम बनाने और फसल को सुरक्षित रखने के लिए धानुका नए उत्पाद लेकर आया है। धानुका के उत्पादों की BiologiQ रेंज की बात करें तो इसमें बायो-फर्टिलाइजर, बायो-इंसेक्टिसाइड्स, और बायो-फंगीसाइड्स दिए गए हैं।

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इन सभी में मौजूद जैविक एजेंट फसलों पर लगने वाले कीटों और बीमारियों को नियंत्रित करते हैं ताकि पौधों के विकास को बढ़ावा मिल सके। धानुका का नया उत्पाद Tizom जो पिछले साल लॉन्च किया गया है, गन्ने के लिए विशेषतौर पर बनाया गया खरपतवार नाशक है। यह गन्ने के खेतों से जुड़ी खरपतवारों की समस्या को प्रबंधित करने में सहायता प्रदान करता है। विकास की ओर बढ़ती भारतीय कृषि की समस्याओं के लिए BiologiQ और Tizom की रेंज में आने वाले उत्पाद ऐसे असरदार समाधान उपलब्ध करवाते हैं, जो किसानों को उत्पादन क्षमता और मुनाफा बढ़ाने में मददगार साबित हो सकते हैं।

लिए कुछ प्रभावी और आधुनिक समाधान लेकर आई है। BiologiQ रेंज में फसल सुरक्षा, मिट्टी के स्वास्थ्य, पौधों के पोषण जैसी कई जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उत्पाद बनाए गए हैं। इनमें बायो-पेस्टिसाइड्स, फंगीसाइड्स और क्रॉप न्यूट्रिटिव शामिल हैं। Biological Insecticides लक्षित कीटों को अपना होस्ट बनाकर उन्हें अंदर से खत्म करता है। इसकी यह खूबी इसे एक ताकतवर कीटनाशक बनाती है। वहीं, Fungicides पौधों के पैथजेनिक फंगस और बैक्टीरिया की गतिविधि को नियंत्रित करता है। इससे पौधों को स्वस्थ और सुरक्षित बनाए रखने में मदद मिलती है। इस रेंज में Nemataxe, Whiteaxe, Sporenil, Downil, Myconxt, और Omninxt जैसे प्रोडक्ट्स दिए गए हैं, जो फसल से जुड़ी विशेष समस्याओं का प्रभावी तरीके से दीर्घकालीन समाधान करते हैं।

BiologiQ रेंज के उत्पाद प्राकृतिक चीजों से तैयार किए जाते हैं। इसमें आर्टिफिशियल केमिकल्स नहीं होते हैं। इसकी जगह इन उत्पादों को शुद्ध माइक्रोबियल स्ट्रेन से निर्मित किया जाता है। यह उत्पाद न सिर्फ बेहतरीन फसल पैदावार में बल्कि मिट्टी के स्वास्थ्य का कायाकल्प कर उसे और उपजाऊ बनाने में भी योगदान देते हैं। इससे एक ओर खेती के जरिए ज्यादा आर्थिक लाभ की संभावना बढ़ती है, तो दूसरी ओर यह पर्यावरण को नुकसान भी नहीं पहुंचता। इस रेंज के उत्पाद FCO और CIBRC सहित कड़े सरकारी नियामक मानकों पर खरे उतरते हैं। साथ ही इन्हें IMO, INDOCERT, ECOCERT, OMRI जैसे अंतर्राष्ट्रीय प्रमाणपत्र प्राप्त हैं। यह इन उत्पादों की विश्वसनीयता को दिखाने के साथ ही इस बात को प्रमाणित करता है कि इन्हें बनाने की प्रक्रिया में वैश्विक मानदंड का पूरी तरह से पालन किया गया है। यह प्रोडक्ट रेंज कृषि समाधान उपलब्ध करवाने के लिए प्रतिबद्ध धानुका एग्रीटेक की उस सोच को दर्शाती है, जिसमें यह सुनिश्चित किया जाता है कि कंपनी का हर उत्पाद उच्चतम सुरक्षा मानकों पर खरा जरूर उतरे।

भारतीय गन्ना किसानों की फसलों को खरपतवारों से बचाएगा Tizom उत्पाद

भारतीय कृषि अनेक विविधताओं से भरी है, जिसमें अलग-अलग तरह की कृषि सम्बंधित समस्याओं के समाधान की जरूरत निरंतर बनी रहती है। ऐसे में धानुका एग्रीटेक द्वारा प्रस्तुत किया गया Tizom एक क्रांतिकारी खरपतवारनाशक के रूप में सामने आता है। यह दो रसायनों का अद्भुत मिश्रण है, जो आसानी से विविध प्रकार के खतपतवारों को नियंत्रित करने में सक्षम है। खासतौर पर यह जटिल खरपतवारों को नियंत्रित करने का एक प्रभावी समाधान है जिसमें की चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार (BLWs), संकरी पत्ती वाले खरपतवार (NLWs) और मोथा प्रजाति के खरपतवार सम्मिलित है। विशेषतौर पर Tizom को गन्ने के खेत में आने वाले खतपतवारों के लिए तैयार किया गया है जोकिं भारतीय गन्ना किसानों के लिए एक वरदान साबित हो रहा है।

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Tizom की विशेषता यह है, कि यह गन्ना किसानों को उनके खेत में आने वाले खतपतवारों को नियंत्रित करने में सक्षम बनाता है। जापानी तकनीक से तैयार किया गया यह खरपतवारनाशक अपने चयनात्मक गुण के कारण गन्ने की फसल को कोई दुष्प्रभाव नहीं पहुँचने देता है। इसके साथ ही Tizom लंबे समय तक खतपतवारों को नियंत्रित करने में भी समर्थ है, जिससे भारतीय गन्ना किसानों को उनके गन्ने की फसल की उपज बढ़ाने में सहायता मिल रही है, जिससे वो गोर्वान्वित हो रहे हैं।

हर तरह की परिस्थिति में अलग-अलग तरह के संसाधनों का उपयोग कर खेती करने वाले किसानों के लिए Tizom खरपतवारनाशक जटिल खरपतवारों के नियंत्रण को आसान और प्रभावी बना रहा है । इसके साथ ही यह फसल को सुरक्षित रखते हुए गन्ने की पैदावार बढ़ाने में सहायक साबित हो रहा है।

धानुका के कृषि नवीनीकरण में लीडर बनने की महत्वाकांक्षा को दर्शाता, हरियाणा के पलवल में स्थित धानुका कृषि अनुसंधान और प्रौद्योगिकी केंद्र धानुका एग्रीटेक लिमिटेड शुरुआत से ही इस चीज को अच्छे से समझता आया है कि सर्वश्रेष्ठ उत्पाद और सेवाएं प्रदान करने में अनुसंधान और विकास की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। यही वजह है कि उन्होंने एक बड़ा आरएंडडी सेटअप स्थापित किया। वर्तमान में, धानुका सबसे बड़े अनुसंधान एवं विकास दल में से एक है, जिससे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (SAU) और देश के विभिन्न प्रतिष्ठित अनुसंधान संगठनों में काम कर चुके अनुभवी वैज्ञानिकों और तकनीकि विषेशज्ञ जुड़े हैं।

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धानुका एग्रीटेक ने हाल ही में हरियाणा के पलवल में एक अत्याधुनिक अनुसंधान एवं विकास और प्रशिक्षण केंद्र, धानुका कृषि अनुसंधान और प्रौद्योगिकी केंद्र (DART) की स्थापना की है। इस केंद्र की स्थापना अनुसंधान के प्रति कंपनी की प्रतिबद्धता को और मजबूती से दर्शाती है। DART का ध्यान ऐसे कृषि समाधानों को विकसित करने पर है जो भारतीय किसानों की बढ़ती जरूरतों को पूरा कर सके। इसके लिए यह केंद्र जैविक संश्लेषण, विश्लेषणात्मक, सूत्रीकरण, मिट्टी और जल विश्लेषण, कृषि अनुसंधान एवं विकास, वनस्पति विज्ञान, जैव-कीटनाशक, जैव परख और कीट-पालन सहित कई प्रकार की प्रयोगशालाओं की एक विस्तृत श्रृंखला से सुसज्जित किया गया है। इन विशेषताओं के साथ यह एक ऐसे केंद्र के रूप में सामने आता है, जो बुनियादी, व्यावहारिक और अनुकूल अनुसंधान के जरिए खेती से जुड़ी वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों का समाधान करने का प्रयास करता है, ताकि भारतीय कृषि का सतत विकास सुनिश्चित किया जा सके।

इस केंद्र में व्यापक अनुसंधान के लिए प्रतिष्ठित वैज्ञानिक, कृषिविद और उद्योग विशेषज्ञ मिलकर काम करते हैं, ताकी किसानों को व्यावहारिक और नवीनतम समाधान उपलब्ध कराए जा सकें। इतना ही नहीं यह केंद्र किसानों को मिट्टी परीक्षण, जल विश्लेषण और जैव-कीटनाशक परीक्षण जैसी सेवाएं भी प्रदान करता है। DART के माध्यम से, धानुका एग्रीटेक किसानों को आधुनिक कृषि की चुनौतियों से सफलतापूर्वक निपटने के लिए जरूरी ज्ञान और उपकरण उपलब्ध करवाता है। व्यावहारिक उपयोग के साथ उन्नत अनुसंधान का मिश्रण यह भी सुनिश्चित करता है कि जो भी नए और आधुनिक समाधान हैं, वे सीधे खेतों में काम कर रहे किसानों तक पहुंच सकें। इतना ही नहीं DART किसानों को विशेषज्ञों द्वारा फसल संबंधित विविध प्रकार के प्रशिक्षण भी प्रदान करता है।

DAHEJ प्लांट: कृषि उत्पादन क्षमता बढ़ाना

पिछले साल धानुका एग्रीटेक ने उत्पादन क्षमताएं बढ़ाने पर भी काफी ध्यान केंद्रित किया है। अगस्त 2023 में, इसने गुजरात के दहेज में एक नया विनिर्माण केंद्र स्थापित किया। धानुका का लक्ष्य इस इकाई के माध्यम से कच्चे माल की सुरक्षा सुनिश्चित करना और विनिर्माण प्रक्रिया में पिछड़ चुके एकीकरण को आगे बढ़ाना है।

यह ईकाई धानुका के कृषि क्षेत्र में अपनी आत्मनिर्भरता और स्थिरता को बरकरार रखने के संकल्प को प्रदर्शित करता है। वैसे गुजरात में स्थित इकाई कच्चे माल की कम लागत सुनिश्चित करने और उत्पादन बढ़ाने में भी काफी मददगार साबित होगी। यह रणनीतिक कदम धानुका के उस दृष्टिकोण के अनुरूप है, जिसमें दूसरों पर निर्भरता कम करने और उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद देश भर के किसानों तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है।

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ऐसे समय में जब देश का कृषि क्षेत्र एक अहम मोड़ पर खड़ा है, धानुका एग्रीटेक किसानों को परिवर्तनकारी उत्पाद और अग्रणी समाधान उपलब्ध करवाने पर लगातार काम कर रहा है। यह कृषि विकास और उत्पादकता को बढ़ाने के नए आयाम खोलने में अहम भूमिका निभाएगा। चाहे फसल को सुरक्षित रखने वाली BiologiQ रेंज हो या फिर खरपतवार का सफल प्रबंधन करने वाला Tizom, धानुका सीधे तौर पर भारतीय कृषि की उभरती जरूरतों को संबोधित कर रहा है। इस पहल का हिस्सा बनते हुए धानुका कृषि अनुसंधान और प्रौद्योगिकी केंद्र एक ओर व्यावहारिक उपयोग के साथ वैज्ञानिक अनुसंधान को एकजुट कर रहा है, तो दूसरी ओर उत्पादन क्षमता का विस्तार कर आत्मनिर्भरता बढ़ाने का काम कर रहे हैं।

धानुका एग्रीटेक साल 2024 में नए उत्पाद बाजार में उतारने को तैयार है, जिसे लेकर अभी से ही उत्सुकता देखने को मिल रही है। इन नवीनतम उत्पादों की बदौलत भारत की मौजूदा कृषि पद्धियों के मानक ऊपर उठते दिखेंगे, तो वहीं खेती के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आते भी देखे जा सकेंगे। यह आगामी उत्पाद श्रृंखला भारतीय कृषि की बढ़ती जरूरतों के अनुसार अत्याधुनिक तकनीकों और लंबे समय तक चलने वाले समाधानों को पेश करने के लिए पूरी तरह से तैयार है।

इन सब उत्पादों और अन्य चीजों के दम पर धानुका एग्रीटेक एक बार फिर से एग्री-टेक के क्षेत्र में खुद को लीडर के तौर पर साबित कर रहा है। यह भारतीय कृषि क्षेत्र में एक सकारात्मक बदलावों को संचारित करता देखा जा सकता है। नवाचार, स्थिरता और आत्मनिर्भरता की दिशा में कंपनी के निरंतर प्रयास भारत में कृषि के भविष्य को बेहतर आकार देने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।

कीटनाशक कितना खतरनाक है, इसका पता हम रंग से भी लगा सकते हैं

कीटनाशक कितना खतरनाक है, इसका पता हम रंग से भी लगा सकते हैं

जैसा कि हम सब जानते हैं, कि कीटों का खत्मा करने के लिए किसान खेतों में कीटनाशक का इस्तेमाल किया करते है। साथ ही, इसकी पैकेट पर प्रदर्शित रंगों से इसकी तीव्रता का पता चल जाता है। इनमें लाल रंग सर्वाधिक तीव्रता वाला होता है। खेती से उत्तम उत्पादन पाने के लिए जितनी आवश्यक मृदा है, उतनी ही आवश्यक जलवायु भी होती है। बीज का उत्तम होना भी काफी महत्वपूर्ण होता है। 

साथ ही, फसल का कीटों से संरक्षण करने के लिए उत्तम कीटनाशक का चुनाव अत्यंत आवश्यक होता है। बाजार में सैंकड़ों की तादात में कीटनाशक विघमान होते हैं। इनका समुचित चयन काफी जरूरी होता है। परंतु, कौन सा कीटनाशक बेहतरीन ढंग से कार्य करता है। इसका चयन किस प्रकार से किया जाए। कहा जाता है, कि कीटनाशकों के ज्यादा खतरनाक होने की जानकारी रंगोें के जरिए से भी की जा सकती है। यह रंग कीटनाशकों के पैकेट पर भी लगा हुआ होता है।

किस कीटनाशक से कितना खतरनाक

लाल रंग निशान वाले कीटनाशक सबसे खतरनाक होते हैं

लाल रंग खतरे का निशान माना जाता है। रंगों के संबंध में भी कुछ ऐसा ही है। लाल रंग जहर की तीव्रता को नापने वाले पैमाने पर सबसे ज्यादा होता है। अब अगर किसी कीटनाशक के पैकेट के पीछे लाल रंग का लोगो है, तो यह सबसे तीव्र कीटनाशक रसायन के रूप में माना जाता है।

पीला रंग दूसरे स्तर पर खतरनाक कीटनाशक माना जाता है

लाल रंग के उपरांत पीले रंग को खतरनाक स्तर के मामले में दूसरे स्तर का कीटनाशक माना जाता है। खेत में इसका कितना इस्तेमाल किए जाना चाहिए। इसके पैकेट पर लिखा हुआ होता है। हालांकि, कृषि विशेषज्ञों से इसकी सलाह भी ली जा सकती है। 

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नीला रंग वाले मध्यम स्तर की तीव्रता रखते हैं

कीटनाशक के पैकेट का रंग यदि नीला होता है। उसकी तीव्रता मध्यम स्तर पर होती है। मतलब साफ है, कि यह लाल एवं पीले रंग से कुछ कम खतरनाक होता है। कृषि वैज्ञानिक डॉ. विवेक राज का कहना है, कि हर फसल में भिन्न-भिन्न प्रकार के कीट लगते हैं। उनकी तीव्रता भी ज्यादा और कम हो सकती है। इसी तीव्रता के आधार पर किसानों को कीटनाशक इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। उन्होंने कहा है, कि कोई भी किसान खेत में कीटनाशक इस्तेमाल करने से पूर्व कृषि एक्सपर्ट से सलाह जरूर प्राप्त करे। 

हरा रंग वाले कीटनाशकों में न्यूनतम स्तर की तीव्रता होती है

जिस पैकेट का रंग हरा होता है, उसकी तीव्रता न्यूनतम होती है। ऐसे मेें खेती मेें कम कीटनाशक होने अथवा फिर कीटनाशक के खतरे को देखते हुए इस प्रकार के कीटनाशकों के उपयोग की सलाह प्रदान की जाती है। अधिकांश किसानों को कीटनाशकों के खतरनाक होने के स्तर की जानकारी नहीं होती है। इसके चलते उनके साथ दुर्घटना होने की संभावना भी होती है।

फसलों पर कीटनाशकों का प्रयोग करते समय बरतें सावधानी, हो सकता है भारी नुकसान

फसलों पर कीटनाशकों का प्रयोग करते समय बरतें सावधानी, हो सकता है भारी नुकसान

फसलों पर कीटों का हमला होना आम बात है। इसलिए लोग पिछली कई शताब्दियों से कीटों से छुटकारा पाने के लिए फसलों पर कीटनाशकों का प्रयोग करते आ रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से देखा गया है कि किसानों ने रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग बढ़ा दिया है। साथ ही जैविक कीटनाशकों का प्रयोग तेजी से कम हुआ है। बाजार में उपलब्ध सभी कीटनाशकों को प्रमाणिकताओं के आधार पर बाजार में बेंचा जा रहा है, इसके बावजूद रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग से फसलों को नुकसान होता है और किसान इससे बुरी तरह से प्रभावित होते हैं।

फसलों पर कीटनाशकों का प्रयोग

इन दिनों बाजार में विभिन्न तरह के कीटनाशक उपलब्ध हैं। लेकिन इनको खरीदने के पहले किसान को पूरी जानकारी होना आवश्यक कि वो किस कीटनाशक को खरीद रहे हैं और वह रोग को खत्म करने में सहायक होगा या नहीं। वैसे आजकल बाजार में ऐसे कीटनाशी भी आ रहे हैं जिनका प्रयोग अलग-अलग फसल के लिए भी कर सकते हैं। इससे फसल को किसी भी तरह का नुकसान नहीं होगा। सरकार ने कुछ कीटनाशकों को कुछ फसलों के लिए निर्धारित किया है। इन चुनी गई फसलों में विशेष कीटनाशक ही डाले जा सकते हैं।

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कई बार देखा गया कि कीटनाशकों के कारण फसलें नकारात्मक रूप से प्रभावित होती हैं। इसलिए सरकार ने कुछ कीटनाशकों को बाजार में बेंचने से प्रतिबंधित कर दिया है। इनमें मालाथयॉन कीटनाशक प्रमुख है। इसका उपयोग ज्वार, मटर, सोयाबीन, अरंडी, सूरजमुखी, भिंडी, बैगन, फूलगोभी, मूली की खेती में किया जाता था। इसके अलावा क्युनलफोस और मैनकोजेब को प्रबंधित किया जा चुका है। इन दोनों कीटनाशकों का उपयोग जूट, इलायची, ज्वार, अमरुद और ज्वार की फसल में किया जाता था। 

सरकार ने फसलों के ऊपर खतरे को देखते हुए अक्सिफलोरफेन और क्लोरप्यरिफोस को भी प्रतिबंधित कर दिया है। इनका प्रयोग आलू, मूंगफली, बेर, साइट्रस और तंबाकू की फसलों में किया जाता था। कई बार ये कीटनाशक फसलों के साथ-साथ आम लोगों को भी नुकसान पहुंचाते हैं। ये कीटनाशक खाद्य चीजों के साथ आपकी खाने की थाली में पहुंच जाते हैं और आपके भोजन का हिस्सा बन जाते हैं। जो मानव शरीर के लिए बेहद नुकसानदेह होते हैं।

जानें खाद-बीज भंडार की दुकान खोलने की प्रक्रिया के बारे में

जानें खाद-बीज भंडार की दुकान खोलने की प्रक्रिया के बारे में

यदि आप ग्रामीण इलाकों में रहते हैं एवं कृषि से संबंधित बिजनेस करने की सोच रहे हैं, तो आप खाद-बीज की दुकान खोल सकते हैं। ऐसे में आइए आपको खाद-बीज की दुकान खोलने के लिए लाइसेंस कैसे लें, इसके बारे में आपको विस्तार से बताते हैं। शहरी क्षेत्रों की भांति ही, ग्रामीण क्षेत्रों में भी व्यवसाय के विभिन्न अवसर हैं। साथ ही, ग्रामीण इलाकों में कृषि से जुड़े कारोबार का महत्वपूर्ण रोल है। गौरतलब है, कि भारत सरकार भी कृषि से संबंधित व्यवसाय करने के लिए किसानों एवं लोगों को प्रोत्साहित कर रही है। यदि आप एक कृषक हैं अथवा फिर ग्रामीण हिस्सों में रहते हैं। साथ ही, आप कृषि से जुड़ा कारोबार करने की सोच रहे हैं, तो आप खाद-बीज की दुकान खोल सकते हैं। खाद-बीज का बिजनेस ग्रामीण क्षेत्र का एकमात्र ऐसा कारोबार है, जिसकी मांग सदैव बनी रहती है।

खाद-बीज की दुकान खोलने के लिए लाइसेंस लेने की आवश्यकता पड़ती है

हालांकि, खाद-बीज की दुकान खोलने के लिए लाइसेंस लेने की आवश्यकता पड़ती है। इसके अतिरिक्त लाइसेंस लेने के लिए आवेदक का 10वीं पास होना भी अनिवार्य है। साथ ही, सरकार किसानों को ऑनलाइन माध्यम से खाद व बीज स्टोर का लाइसेंस देने का कार्य करती है। ऐसी स्थिति में आइए आज हम आपको खाद-बीज की दुकान की स्थापना के लिए लाइसेंस लेने की संपूर्ण प्रक्रिया के बारे में बताते हैं।

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खाद-बीज की दुकान खोलने हेतु लाइसेंस के लिए दस्तावेज

  • आधार कार्ड
  • मतदाता पहचान पत्र
  • निवास प्रमाण पत्र
  • पैन कार्ड
  • पासपोर्ट साइज फोटो
  • एग्रीकल्चर में डिप्लोमा
  • दुकान या फर्म का नक्शा

खाद-बीज भंडार खोलने के लिए लाइसेंस किस तरह लें

खाद एवं बीज भंडार खोलने के लिए आपको सरकार से लाइसेंस लेना ही पड़ेगा। इस लाइसेंस को लेने के उपरांत ही आप खाद-बीज का कारोबार आरंभ कर सकते हैं। इसके साथ-साथ आप खाद-बीज दुकान का लाइसेंस ऑनलाइन के जरिए आसानी से निर्मित करा सकते हैं। अगर आप बिहार के मूल निवासी हैं और ऑनलाइन अपनी दुकान का लाइसेंस तैयार करने के लिए आवेदन करना चाहते हैं, तो आप लिंक पर विजिट कर आवेदन से जुड़ी संपूर्ण प्रक्रिया जान सकते हैं। साथ ही, लिंक पर विजिट कर समस्त आवश्यक दस्तावेज सबमिट कर आप खाद-बीज लाइसेंस के लिए सुगमता से आवेदन कर सकते हैं।