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तेज बारिश और ओलों ने गेहूं की पूरी फसल को यहां कर दिया है बर्बाद, किसान कर रहे हैं मुआवजे की मांग

तेज बारिश और ओलों ने गेहूं की पूरी फसल को यहां कर दिया है बर्बाद, किसान कर रहे हैं मुआवजे की मांग

इस साल पड़ने वाली जोरों की ठंड ने सभी को परेशान किया है। अब घर में पाले के बाद ओले से किसान बेहद परेशान हो रहे हैं। मध्य प्रदेश के छतरपुर व अन्य जिलों में चना, मटर, गेहूं, सरसों की फसलों को अच्छा खासा नुकसान पहुंचा है। किसानों ने मुआवजे की मांग की है। किसानों का संकट खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। पहले सूखे के कारण बिहार, छत्तीसगढ़ में किसानों की फसलें ही सूख गई थीं। इनके आस पड़ोस के राज्यों में बाढ़ ने कहर बरपाया। वहीं खरीफ सीजन के आखिर में तेज बारिश ने धान समेत अन्य फसलों को बर्बाद कर दिया। पिछले कुछ दिनों से किसान पाले को लेकर बहुत ज्यादा परेशान हैं। इस बार बारिश और उसके साथ पड़े ओले ने फसलों को नुकसान पहुंचाया है। किसान मुश्किल से ही अपनी फसलों का बचाव कर पा रहे हैं। बारिश से पड़ने वाले पानी से तो किसान जैसे-तैसे बचाव कर लेते हैं। लेकिन ओलों से कैसे बचा जाए। 

मध्य प्रदेश में ओले से फसलों को हुआ भारी नुकसान

मध्य प्रदेश में ओले से कई जगहों पर फसलें बर्बाद हो गई हैं। छतरपुर में बारिश से गेहूं की फसल पूरी तरह खत्म होने की संभावना मानी गई है। इस क्षेत्र में किसानों ने सरसों, चना, दालों की बुवाई की है। अब ओले पड़ने के कारण इन फसलों को नुकसान पहुंचा है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बारिश और ओले से हुए नुकसान को लेकर छतरपुर जिला प्रशासन ने भी जानकारी दी है।

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इन क्षेत्रों में चना, गेहूं को भी नुकसान

बुदेलखंड के छतरपुर जिले में बिजावर, बड़ा मल्हरा समेत अन्य क्षेत्रों में पिछले तीन दिनों में ओले पड़ना दर्ज किया गया है। इससे चना, गेहूं समेत रबी की अन्य फसलों को भी नुकसान पहुंचा है। किसानों से हुई बातचीत में पता चला है, कि जब तक खेती का सही ढंग से आंकलन नहीं किया जाएगा। तब तक उनकी तरफ से यह बताना संभव नहीं है, कि फसल को कितना नुकसान हुआ है। 

प्रशासन कर रहा फसल नुकसान का आंकलन

छतरपुर समेत आसपास के जिलों में ओले इतने ज्यादा गिरे हैं, कि ऐसा लगता है मानो पूरी बर्फ की चादर बिछ गई हो। किसान अपनी आर्थिक स्थिति को लेकर भी काफी परेशान हो गए हैं। इसीलिए छतरपुर जिला प्रशासन ने फसल के नुकसान को लेकर सर्वे कराना शुरू कर दिया है। ताकि प्रश्नों का सही ढंग से आकलन किया जा सके और उचित रिपोर्ट कृषि विभाग को भेजी जाए। प्रशासन द्वारा दी गई रिपोर्ट के आधार पर ही किसानों को मुआवजा दिया जाएगा 

किसान कर रहे मुआवजे की मांग

लोकल किसानों से हुई बातचीत से पता चला कि इस समय में होने वाली कम बारिश गेहूं की फसल के लिए बहुत ज्यादा फायदेमंद है। लेकिन पिछले 3 दिन से बारिश बहुत तेज हुई है और साथ में आने वाले ओलों ने फसलों को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है। किसान अपनी फसल को लेकर परेशान हैं और निरंतर सरकार से मुआवजे की मांग कर रहे हैं।

गेहूं के विपणन तथा भंडारण के कुछ उपाय

गेहूं के विपणन तथा भंडारण के कुछ उपाय

गेहूं की कटाई व गहाई  पूरी हो गई है। अब कुछ लोग मंडियों में न्यूनतम मूल्य यानी एम.एस.पी. पर अपनी उपज बेच रहे हैं तो कुछ लोग अपने इस्तेमाल या अच्छे दाम की उम्मीद में अनाज का  भंडारण कर रहे हैं। लेकिन, अगर भंडारण का तरीका सही नहीं हुआ तो अनाज खराब होने का खतरा पैदा होगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक अनाज को भंडारण में रखने के लिए कई बाते ध्यान रखने योग्य हैं,

जैसे-

  1. अनाज भंडारण मे रखने से पहले भंडारघर की सफाई करें,
  2. अनाज को अच्छी तरह उसे सुखा लें,
  3. दानों में नमी 12 प्रतिशत से ज्यादा नही होनी चाहिए,
  4. छत या दीवारों पर यदि दरारें हैं तो इन्हे भरकर बंद कर लें,
  5. बोरियों को धूप में सुखाकर रखें,
  6. बोरियों को 5 प्रतिशत नीम तेल के घोल से उपचारित करें,
  7. अगर संभव हो तो, गेहूं को नमी-रोधी, खाद्य-श्रेणी की पैकेजिंग में संग्रहित करें, जैसे माइलर-प्रकार के बैग, पॉलीथीन बैग,
  8. अनाजकीबोरियोंकेसीधेजमीनपरनारखेजमीनसे 10-12 इंचऊपररखें,
  9. चूहों के नियंत्रण के लिए मूषकनाशी दवा व, चूहे दानी का प्रयोग करें।
  10. यदि लंबे समय तक भंडारण किया जाता है, तो कीटनाशकों के प्रयोग की आवश्यकता होगी,
  11. गेहूँ को आक्सीजन के अभाव में तब तक भण्डारित करना आवश्यक नहीं है जब तक कीट उपस्थित न हों,
  12. अगर खुले में भण्डारण कर रहे हैं, तो बोरियों के चट्टे  को तिरपाल से ढक दें ।



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गेहूं बेचने के लिए पंजीकरण कैसे करें :

देश, विदेश में गेहूं की मांग बढ़ती जा रही है।  इसलिए सरकार गेहूं को समर्थन मूल्य में खरीदना शुरू कर दिया है, जिसका पैसा सीधे बैंक खाता में मिलता है। लेकिन अधिकांश किसानों को गेहूं का पंजीकरण कैसे करते है पता नहीं होता है। इसलिए उत्तर प्रदेश सरकार ने वेबसाइट, https://fcs.up.gov.in शुरू की है, ताकि राज्य के सभी किसान गेहूं को समर्थन मूल्य में बेचने के लिए घर बैठे मोबाइल से पंजीकरण कर सके।  गेहूं की बढ़ती लागत  को देखते हुएसरकार ने गेहूं के समर्थन मूल्य को 110 रूपए बढ़ा दिया है इस वर्ष, 2023 में  गेहूं  का समर्थन मूल्य 2125 रूपए है।  गेहूं के साथ ही साथ सभी प्रकार के रबी फसल के समर्थन मूल्य में वृद्धि किया है,  लेकिन बहुत से किसानों को इसकी जानकारी नहीं होते है, जिसके कारण गेहूं को बाजार में बेच देते है। गेहूं को समर्थन मूल्य में बेचने के लिए पंजीकरण करना बहुत ही आसान है।

गेहूं बेचने के लिए पंजीकरण कैसे करें ?

  • सबसे पहले गेहूं का पंजीकर  करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की वेबसाइट https://fcs.up.gov.in/ को खोलना
  • इसके बाद यूपी सरकार खाद्य एवं रसद विभाग की वेबसाइट खुल जायेगा जिसमे गेहूं क्रय प्रबंधन प्रणाली के ऑप्शन का चयन करें,
  • गेहूं क्रय प्रबंधन प्रणाली के ऑप्शन को सेलेक्ट करने के बाद नया पेज खुलेगा जिसमे आपको गेहूँ 2023-24 के ऑप्शन को चुनना है।
  • इसके बाद शाखा का नाम, यूजर टाइप, ईमेल आईडी, पासवर्ड एवं कैप्चा कोड भरकर submit बटन का चयन कर देना है।
  • इसके बाद गेहूं का पंजीयन करने का फॉर्म खुल जायेगा जिसमे पूछे गए सभी जानकारी को भरकर submit कर देना है।
  • इस प्रकार आप गेहूं को समर्थन मूल्य में बेचने के लिए घर बैठे मोबाइल से पंजीकरण कर सकते है और 2125 रूपए में गेहूं को बेच सकते है।

गेहूं का पंजीयन करने के लिए आवश्यक दस्तावेज

  • आधार कार्ड
  • बैंक खाता पासबुक
  • मोबाइल नंबर
  • पासपोट साइज फोटो
  • जमीन का पर्ची
तैयार हुई चावल की नई किस्म, एक बार बोने के बाद 8 साल तक ले सकते हैं फसल

तैयार हुई चावल की नई किस्म, एक बार बोने के बाद 8 साल तक ले सकते हैं फसल

दुनिया की बढ़ती हुई जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए दुनिया भर के कृषि वैज्ञानिक अनाज की नई-नई किस्में विकसित करने में लगे हुए हैं। ताकि दुनिया भर में रहने वाली 8 अरब से ज्यादा जनता को खाना खिलाया जा सके। इसी कड़ी में चीन के कृषि वैज्ञानिकों ने हाल ही में चावल की एक नई किस्म विकसित की है। जिसे PR23 नाम दिया गया है। चीनी कृषि वैज्ञानिकों का दावा है, कि चावल की इस किस्म की रोपाई करने के बाद लगातार 8 साल तक फसल ली जा सकती है। वैज्ञानिकों ने बताया है, कि चावल की इस किस्म के पेड़ की जड़ें बहुत ज्यादा गहरी होती हैं। जो चावल के पेड़ को मजबूती प्रदान करती हैं। चावल की PR23 किस्म की फसल की कटाई करने के बाद दोबारा से चावल का पौधा जड़ों से ऊपर निकल आता है। पौधे के ऊपर निकालने की रफ्तार भी पहले वाले पेड़ के समान होती है। जिससे इसमें समय से बीज लगते हैं और किसान को समय पर फसल प्राप्त हो जाती है।

इस किस्म को विकसित करने में क्रॉस ब्रीडिंग का हुआ है उपयोग

चीनी वैज्ञानिकों ने इस किस्म को विकसित करने के लिए क्रॉस ब्रीडिंग का सहारा लिया है। उन्होंने PR23 प्रजाति को विकसित करने के लिए अफ्रीकी चावल ओरिजा सैटिवा (Oryza sativa) का प्रयोग किया है। यह बारहमासी चावल है, जिसने PR23 प्रजाति को विकसित करने में महत्वपूर्ण रोल अदा किया है। कृषि वैज्ञानिकों ने बताया है, कि चावल की इस किस्म को इस तरह से तैयार किया गया है, जिससे इसमें खाद की जरूरत कम से कम हो। अगर उपज की बात करें तो यह चावल एक हेक्टेयर जमीन में 6.8 टन तक उत्पादित हो जाता है। साथ ही इसकी खेती करने के लिए किसानों को अन्य चावल के मुकाबले कम खर्च करना पड़ता है।


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लंबे समय से चल रही थी इस चावल पर रिसर्च

चावल की इस किस्म को विकसित करना चीन के लिए मील का पत्थर साबित हुआ है। क्योंकि चावल की इस किस्म को विकसित करने के लिए चीनी कृषि वैज्ञानिक साल 1970 से लगातार रिसर्च कर रहे थे। ज्यादातर रिसर्च चीन की युन्नान अकादमी में की गई है। शुरुआती दिनों में चीनी कृषि वैज्ञानिकों को इसमें सफलता हासिल नहीं हुई थी। लेकिन लगातार कोशिश करने के बाद वैज्ञानिकों ने 1990 के दशक में बारहमासी चावल विकसित करने में कुछ सफलता पाई थी। इसके बाद अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान ने एक रिसर्च शुरू की, जिसमें चीनी वैज्ञानिक फेंगयी हू ने बारहमासी चावल को विकसित करने पर काम किया था। धन की कमी के कारण साल 2001 में अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान ने रिसर्च को बंद कर दिया। लेकिन फेंगयी हू ने हार नहीं मानी। वो लगातार चावल की इस किस्म को विकसित करने में लगे रहे। इस दौरान उन्होंने द लैंड इंस्टीट्यूट, कंसास और यूएसए का बहुमूल्य सहयोग से युन्नान विश्वविद्यालय में अपनी रिसर्च जारी रखी। जिसके परिणामस्वरूप फेंगयी हू चावल की PR23 किस्म को विकसित करने में सफल हुए। अब यह किस्म चीन के किसानों को उत्पादन के लिए दे दी गई है। चावल की PR23 किस्म के साथ चीन किसान अब निश्चिंत होकर खेती कर सकेंगे।
किसान मोर्चा की खास तैयारी, म‍िलेट्स या मोटे अनाज को बढ़ावा देने का कदम

किसान मोर्चा की खास तैयारी, म‍िलेट्स या मोटे अनाज को बढ़ावा देने का कदम

केंद्र सरकार ने बजट में श्री अन्न योजना की शुरूआत की है. हालांकि पहले से ही केंद्र सरकार प्राकृतिक खेती के साथ-साथ मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही है. जिसे देखते हुए इस बार के बजट में सरकार ने किसानों की आमदनी को बढ़ाने के लिए इस योजना की शुरूआत की है. सरकार के मुताबिक मोटे अनाज और प्राकृतिक खेती से जमीन का वाटर लेबल बढ़ सकता है. इसके अलावा इस तरह की खेती में ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती. इस खुशखबरी के बीच बीजेपी (BJP) की कृषि विंग समेत किसान मोर्चा ने भी एक अभियान शुरू कर दिया है. यह राष्ट्रव्यापी अभियान कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों के कम इस्तेमाल को लेकर है. इस अभियान के तहत उन्होंने एक करोड़ लोगों तक अपना मैसेज पहुंचाने का लक्ष्य रखा है. इसके अलावा वह करीब एक लाख से भी ज्यादा गांवों की यात्रा कर रहे हैं. किसान मोर्चा के राज्य संयोजक और अन्य सह संयोजकों के नेतृत्व में यह यात्रा गंगा के किनारे बसे गांवों में की जा रही है.

13 फरवरी को प्रशिक्षण संगोष्ठी

13 फरवरी को किसान मोर्चा एक महत्वपूर्ण काम करने जा रहा है. जानकारी के मुताबिक वह न सिर्फ यात्राओं को बल्कि बीजेपी के कार्यकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण संगोष्ठी का भी आयोजन करने वाला है.बिंग के अधिकारी के नेतृत्व में इस संगोष्ठी का आयोजन किया जाएगा. इसके अलावा इसमें साइंटिस्ट, न्यूट्रीशनिस्ट और अन्य एक्सपर्ट्स शामिल होंगे. इस संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य बीजेपी के कार्यकर्ताओं को को जैविक खेती और बाजरे के बारे में जानकारी दी जाएगी. जिसके बाद वो अपने जिले के किसानों की इस विषय में मदद कर सकें. हालांकि इस संगोष्ठी के बाद सभी जिलों में इसी तरह के सत्र का आयोजन किया जाएगा.
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चौपाल और चर्चाओं का चलेगा सिलसिला

यूपी के शुक्रताल में अगले महीने से जन जागरण अभियान की शुरूआत होगी. जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत कई बीजेपी नेताओं की भागीदारी होगी. एक गांव परिक्रमा यात्रा भी इस अभियान का हिस्सा होगी. इसके अलावा इसमें किसान चौपाल और चर्चाओं का भी सिलसिला चलेगा. किसानों को किसान मोर्चा बजट से कई फायदे होंगे. जिसके चलते उन्हें शिक्षित करने के लिए एक हफ्ते का अभियान चल रहा है. इसके अलावा इस अभियान के जरिये किसानों को यह भी समझाना है कि, उन्हें सरकार की नीतियों से कैसे फायदा मिल सकता है. साथ ही यह भी बताना है कि, जैविक खेती को कैसे बढ़ाया जाए और नुकसानदायक रसायनों का इस्तेमाल कम किया जाए.
फसलों पर बरपा कहर, सरकार देगी इतना मुआवजा

फसलों पर बरपा कहर, सरकार देगी इतना मुआवजा

देश में किसानों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट गया है. जहां एक तरफ बीते खरीफ के सीजन में जमकर हुई बारिश, बाढ़ और सूखे की वजह से फसलें बर्बाद हो गयी थीं वहीं दूसरी तरफ एक बार फिर जनवरी और फरवरी में हुई बारिश और ओलावृष्टि ने फसलों को तबाह करके रख दिया है. कई राज्यों में फसलों की बर्बादी के बाद तमिलनाडु के खराब हालात सामने आ रहे हैं. जहां एक बड़े हिस्से में तेज बारिश की वजह से फसलें खराब हो गयीं. जिसके बाद बेबस और लाचार किसानों की मदद के लिए राज्य सरकार ने मदद का हाथ आगे बढ़ाया है.

प्रति हेक्टेयर सरकार देगी इतना मुआवजा

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने किसानों की मदद के लिए कावेरी डेल्टा की प्रभावित हुई फसलों के लिए मुआवजे का ऐलान किया है. जिसमें किसानों को 20 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर का राहत पैकेज दिया जाएगा. यह मुआवजा उन किसानों को दिया जाएगा, जिनकी फसलें कावेरी डेल्टा से सबसे ज्यादा और बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं.

किसानों ने किया शुक्रिया

किसानों ने राज्य सरकार की इस मदद का आभार जताते हुए कहा कि, सरकार का यह कदम हमारे जख्मों पर मरहम की तरह है. ये भी देखें: ठंड़ और पाले की वजह से बर्बाद हुई फसल का मुआवजा मांगने के लिए हरियाणा के किसान दे रहे धरना

विभागीय स्तर से होगा फसल सर्वे

राज्य सरकार किसानों को मुआवजा देने के लिए फसलों का सर्वे करवाएगी. यह सर्वे विभागीय स्तर पर किया जाएगा. इसके अलावा राज्य सरकार ने यह भी निर्देश दिए हैं कि, कृषि विभाग और राजस्व इस नुकसान का मिलकर आकलन करे. इसके अलावा अगर बीमा को लेकर पहले सर्वे का काम पूरा हो गया तो बचा हुआ मूल्यांकन करवाया जाएगा. साथ ही राज्य सरकार की यही कोशिश है कि, कोई भी पीड़ित किसान मुआवजे से वंचित ना रहा जाए.

6 लाख हेक्टेयर से ज्यादा फसलें बर्बाद

पिछले कुछ दिनों में तमिलनाडु में मूसलाधार बारिश हुई. जिससे राज्य के कई अहम क्षेत्र बुरी तरह से प्रभावित हुए. बारिश इतनी तेज थी कि, वो अपने तेज बहाव में फसलें भी लेकर बह गयी. जिसमें कावेरी डेल्टा का क्षेत्र बारिश की चपेट में सबसे ज्यादा आया. अनुमान लगाया जा रहा है कि इस क्षेत्र में ल्ह्बह्ग 6 लाख हेक्टेयर से जायदा फसलें बर्बाद हुई हैं. ज्सिके बाद राज्य सरकार ने राहत राशि का ऐलान करते हुए मदद का हाथ आगे बढ़ाया है.
राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने मोटे अनाजों के उत्पादों को किया प्रोत्साहित

राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने मोटे अनाजों के उत्पादों को किया प्रोत्साहित

राजस्थान में मोटे अनाजों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। राज्यपाल कलराज मिश्र ने बताया है, कि मोटे अनाज कुटकी, संवा, कंगनी, चेना, कोदो, बाजरा, ज्वार, रागी पारम्परिक रूप से भारतीय भोजन का भाग रहे हैं। राजस्थान राज्य के राज्यपाल कलराज मिश्र ने भारत की बढ़ती जनसंख्या को पोषण युक्त भोजन मुहैय्या कराने के लिए मोटे अनाजों की कृषि को समस्त स्तरों पर बढ़ावा दिए जाने के लिए पहल की जा रही है। उनका कहना है, कि पोषण की प्रचूर मात्रा से युक्त मोटे अनाजों के समयानुसार सेवन से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता सुद्रण बनती है। इस वजह से मोटे अनाजों को आम जनता में प्रचलित एवं लोकप्रिय बनाने के खूब प्रयास किए जा रहे हैं। जोबनेर के श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को गुरुवार को राजभवन से डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए मिश्र ने कहा है, कि मोटे अनाज संवा, कंगनी, चेना, कोदो, बाजरा, ज्वार, रागी एवं कुटकी परंपरागत रूप से भारतीय भोजन का अभिन्न हिस्सा रहे हैं। राजस्थान के अधिकांश इलाकों में फिलहाल भी मोटा अनाज आम लोगों के भोजन का महत्वपूर्ण भाग है।

कृषि शिक्षा को एक नई दिशा देनी की बेहद आवश्यकता है

राज्यपाल ने बताया कि यह दौर विवेकपूर्ण कृषि का है। आपको बतादें कि बदलते समय में रोबोटिक्स, बिग डाटा एनालिटिक्स, रिमोट सेन्सिंग, आईओटी एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने कृषि क्षेत्र में एक नई क्रांति का स्वागत किया है। उन्होंने बताया है, कि कृषि विश्वविद्यालयों को स्मार्ट कृषि से संबंधित नई तकनीकों के लिए किसान भाइयों को जागरूक किया जाएगा। मिश्र ने बताया है, कि खराब होते मौसमिक तंत्र, जैव विविधता पर चुनौती एवं सिंचाई के साधनों के अभाव के संबंध में बेहतर सोच रखी है। कृषि शिक्षा को नई दिशा देनी की बेहद आवश्यकता है। ये भी देखें: किसान ड्रोन की सहायता से 15 मिनट के अंदर एक एकड़ भूमि में करेंगे यूरिया का छिड़काव

विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया है

राज्यपाल जी ने प्राकृतिक आपदा बारिश एवं ओलावृष्टि से कृषि पर पड़ रहे दुष्प्रभावों की ओर संकेत करते हुए कृषि विज्ञान केन्द्रों के अंतर्गत जलवायु बदलाव का विस्तृत अध्ययन किए जाने की राय दी गई है। राज्यपाल ने बताया है, कि कृषि पद्धतियों के पुराने एवं नए ज्ञान का बेहतर उपयोग करते हुए किसान भाइयों के लिए प्रभावी पद्धतियां तैयार करने की जरूरत है, जिससे कि कृषि पैदावार में वृद्धि, खाद्य सुरक्षा के लिए खाद्य उत्पादन एवं भंडारण, पर्याप्त पोषण युक्त खाद्य मुहैय्या कराने के वांछित लक्ष्यों को हाँसिल किया जा सके। इस उपलक्ष्य पर 3 विद्यार्थियों को समेकित कृषि स्नातकोत्तर उपाधियां, 985 विद्यार्थियों को कृषि स्नातक उपाधियां, 32 विद्यार्थियों को पीएचडी, 75 को स्नातकोत्तर तथा आठ विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक प्रदान किए गए।

संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को मोटा अनाज दिवस के रूप में मनाया है

आपको हम बतादें कि भारत सरकार के निवेदन पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2023 को मोटा अनाज वर्ष की घोषणा की गई है। साथ ही, केंद्र सरकार भी भारत के अंदर मोटे अनाज की किस्मों की खेती को प्रोत्साहन देना चाहती है। इसके लिए वह किसान भाइयों को प्रेरित कर रही है। विगत माह मोटे अनाज की कृषि को बढ़ावा देने के लिए संसद भवन के अंदर बाजरे से निर्मित व्यंजन प्रस्तुत किया गया था। जिसका पीएम मोदी सहित अन्य मंत्रियों एवं सांसदों ने भी स्वाद चखा था।
किसानों  के लिए इस राज्य सरकार की बड़ी घोषणाएं, फसलों के नुकसान पर मिलेगा इतना मुआवजा

किसानों के लिए इस राज्य सरकार की बड़ी घोषणाएं, फसलों के नुकसान पर मिलेगा इतना मुआवजा

पिछले 2 सप्ताह में मध्य प्रदेश में बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि ने जमकर कहर ढाया है। इस दौरान राज्य में गेहूं, चना, सरसों और मसूर की खेती बुरी तरह से प्रभावित हुई है। ओलावृष्टि के कारण गेहूं की फसल खेतों में पूरी तरह से बिछ गई है, जिससे किसानों को भारी नुकसान हुआ है। पिछले सप्ताह ही मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस आपदा से हुए नुकसान का जायजा लेने के लिए सर्वे के आदेश दिए थे। यह सर्वे पूरा हो चुका है और इसकी विस्तृत रिपोर्ट मध्य प्रदेश शासन को भेजी जा चुकी है। रिपोर्ट के आधार पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की है कि सरकार 50 फीसदी तक बर्बाद हुई फसल पर 32 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से मुआवजा प्रदान करेगी। इसके अलावा किसानों को फसल बीमा योजना का लाभ भी दिलवाया जाएगा। साथ ही फसलों को हुए नुकसान का सैटेलाइट से सर्वे भी करवाया जाएगा। जिसमें सरकार के तीन विभाग संयुक्त रूप से फसल के सर्वे का काम करेंगे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आगे कहा है कि ओलावृष्टि से जिन किसानों की फसलों का व्यापक नुकसान हुआ है, उनसे फिलहाल कर्ज की वसूली नहीं की जाएगी। साथ ही अब कर्ज का ब्याज सरकार भरेगी। इस दौरान यदि किसी व्यक्ति की ओलावृष्टि या बिजली गिरने से मौत हो गई है तो उसके परिजनों को सरकार 4 लाख रुपये की सरकारी सहायता उपलब्ध करवाएगी।

गाय-भैंस की मृत्यु पर भी मिलेगी सहायता राशि

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि फसल के नुकसान के अलावा यदि आपदा के दौरान किसी की गाय या भैंस की मृत्यु हो गई है तो ऐसे लोगों को 37 हजार रुपये प्रति जानवर की दर से सहायता राशि उपलब्ध कारवाई जाएगी। इसके साथ ही भेड़-बकरी की मृत्यु पर 4 हजार रुपये तथा बछड़ा और बछिया की मृत्यु पर 20 हजार रुपये दिए जाएंगे। मुर्गा और मुर्गियों का नुकसान होने पर 100-100 रुपये दिए जाएंगे। यदि आपदा से किसी के घर को नुकसान हुआ है तो उसके घर की मरम्मत के लिए भी सहायता उपलब्ध कारवाई जाएगी। ये भी पढ़े: यहां मिल रहीं मुफ्त में दो गाय या भैंस, सरकार उठाएगी 90 फीसद खर्च

रबी फसल के लिए दोबारा रजिस्ट्रेशन करवा पाएंगे किसान

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि ऐसे किसान जिनकी फसल बर्बाद हो गई है और उनके घर में उनकी बेटी की शादी है। ऐसे किसानों को सरकार मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के अंतर्गत 56 हजार रुपये की सहायता राशि उपलब्ध करवाएगी। साथ ही कन्या के विवाह में भी सहयोग करेगी। इसके साथ ही जो किसान रबी की फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद के लिए रजिस्ट्रेशन नहीं करवा पाए हैं, ऐसे किसान फिर से अपना रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं। उनके लिए दोबारा पोर्टल खुलवाया जाएगा। ताकि कोई भी किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य के लाभ से छूटने न पाए।
रूस यूक्रेन युद्ध, अनाज का हथियार के तौर पर इस्तेमाल

रूस यूक्रेन युद्ध, अनाज का हथियार के तौर पर इस्तेमाल

आपको बतादें कि रूस ने अपने हाथों गेहूं निर्यात का नियंत्रण ले लिया है। इससे खाद्यान्न युद्ध शुरू होने की अटकलें लगाई जा रही हैं। इसी कड़ी में दो बड़े इंटरनैशनल ट्रेडर्स ने रूस से गेहूं निर्यात के कारोबार से पीछे हटने की घोषणा की है। इसका मतलब यह है, कि विश्व का सर्वोच्च गेहूं निर्यातक रूस की खाद्य निर्यात पर दखल और अधिक होगी। अनुमानुसार, रूस गेहूं निर्यात को रणनीतिक हथियार के रूप में प्रयोग कर सकता है। जरुरी नहीं कि दुश्मन को मजा चखाने के लिए अपना शारीरिक और आर्थिक बल ही उपयोग किया जाए। ना ही किसी अस्त्र शस्त्र की आवश्यकता जैसे कि आजकल बंदूक, मिसाइल, तोप, पनडुब्बी आदि आधुनिक हथियारों का उपयोग होता है। खाद्यान पदार्थों में अनाज भी एक बड़े हथियार की भूमिका अदा करता है। क्योंकि आज के समय खाद्यान्न जियोपॉलिटिक्स का बड़ा हथियार है। बीते दिनों रूस-यूक्रेन के भीषण युद्ध के बीच मॉस्को फिलहाल गेहूं को हथियार के रूप में उपयोग करने जा रहा है, जिसकी चिंगारी पूरे विश्व को प्रभावित करेगी। रूस विश्व का सर्वोच्च गेहूं निर्यातक देश है। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते पूर्व से ही वैश्विक खाद्यान आपूर्ति डगमगाई हुई है। रूस यूक्रेन युद्ध की वजह से विगत वर्ष खाद्यान्न के भावों में वृद्धि बड़ी तीव्रता से हुई थी। फिलहाल, रूस जिस प्रकार से गेहूं निर्यात पर सरकारी नियंत्रण को अधिक तवज्जो दे रहा है, उससे हालात और अधिक गंभीर होंगे। रूस का यह प्रयास है, कि गेहूं निर्यात में केवल सरकारी कंपनियां अथवा उसकी घरेलू कंपनियां ही रहें। जिससे कि वह निर्यात को हथियार के रूप में और अधिक कारगर तरीके से उपयोग कर सके। इसी मध्य दो बड़े इंटरनैशनल ट्रेडर्स निर्यात हेतु रूस में गेहूं खरीद को प्रतिबंधित करने जा रहे हैं। नतीजतन, वैश्विक खाद्यान आपूर्ति पर रूस का नियंत्रण और अधिक हो जाएगा।

गेंहू निर्यात हेतु रूस से दो इंटरनेशनल ट्रेडर्स ने कदम पीछे हटाया

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, कारगिल इंकॉर्पोरेटेड और विटेरा ने रूस से गेहूं का निर्यात प्रतिबंधित करने की घोषणा की है। इन दोनों की विगत सीजन में रूस के कुल खाद्यान्न निर्यात में 14 फीसद की भागीदारी थी। इनके जाने से विश्व के सर्वोच्च गेहूं निर्यातक रूस का ग्लोबल फूड सप्लाई पर नियंत्रण और पकड़ ज्यादा होगी। इनके अतिरिक्त आर्कर-डेनिएल्स मिडलैंड कंपनी भी व रूस भी अपने व्यवसाय को संकीर्ण करने के विषय में विचार-विमर्श कर रही है। लुइस ड्रेयफस भी रूस में अपनी गतिविधियों को कम करने की सोच रही है। जैसा कि हम जानते हैं, गेहूं का नया सीजन चालू हो गया है। रूस गेहूं के नए उत्पादन का निर्यात चालू कर देगा। फिलहाल, इंटरनैशनल ट्रेडर्स के पीछे हटने से रूसी गेहूं निर्यात पर सरकारी और घरेलू कंपनियों का ही वर्चश्व रहेगा। रूस द्वारा और बेहतरीन तरीके से इसका उपयोग जियोपॉलिटिक्स हेतु कर पायेगा। वह मूल्यों को भी प्रभावित करने की हालात में रहेगा। मध्य पूर्व और अफ्रीकी देश रूसी गेहूं की अच्छी खासी मात्रा में खरीदारी करते हैं।

रूस करेगा गेंहू निर्यात को एक औजार के रूप में इस्तेमाल

रूस द्वारा वर्तमान में गेहूं निर्यात करने हेतु सरकार से सरकार व्यापार पर ध्यान दे रहा है। बतादें, कि सरकारी कंपनी OZK पहले ही तुर्की सहित गेहूं बेचने के संदर्भ में बहुत सारे समझौते कर चुकी है। उसने विगत वर्ष यह कहा था, कि वह इंटरनैशनल ट्रेडर्स के हस्तक्षेप से निजात चाहती है और प्रत्यक्ष रूप से देशों को निर्यात करने की दिशा में कार्य कर रही है। रूस गेहूं का शस्त्र स्वरुप उपयोग करते हुए स्वयं की इच्छानुसार चयनित देशों को ही गेंहू निर्यात करेगा। इससे फूड सप्लाई चेन तो प्रभावित होगी ही, विगत वर्ष की भाँति अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं के मूल्यों में बेइंतिहान वृद्धि भी हो सकती है। ये भी पढ़े: बंदरगाहों पर अटका विदेश जाने वाला 17 लाख टन गेहूं, बारिश में नुकसान की आशंका

रूस ने खाद्य युद्ध को यदि हथियार बनाया तो क्या होगा

रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रभाव से विगत वर्ष विश्वभर में गेहूं एवं आटे के भावों में तीव्रता से बढ़ोत्तरी हुई थी। बहुत सारे देश खाद्य संकट की सीमा पर पहुँच चुके हैं। तो बहुत से स्थानों पर खाद्य पदार्थ काफी महंगे हो चुके हैं। विगत वर्ष भारत में भी गेहूं एवं आटे के मूल्यों में तेजी से इजाफा हुआ था। जिसके उपरांत सरकार द्वारा गेहूं निर्यात को प्रतिबंधित कर दिया था। हालाँकि, भारत अपने आप में एक बड़ा खाद्यान्न उत्पादक देश है। परंतु, जो देश खाद्यान्न की आवश्यकताओं के लिए काफी हद तक आयात हेतु आश्रित हैं। उनको काफी खाद्यान संकट से जूझना पड़ेगा। विश्व में एक बार पुनः गेहूं एवं आटे के मूल्यों में तेजी से इजाफा होने की संभावना भी बढ़ गई है।

पुरे विश्व को प्रभावित कर सकता है फूड वॉर

अगर हम सकारात्मक तौर पर इस बात का विश्लेषण करें तो खाद्यान्न को एक हथियार के रूप में उपयोग करना कही तक उचित तो कतई नहीं है। इससे काफी लोग भुखमरी तक के शिकार होने की संभावना होती है। वर्ष 2007 में सर्वप्रथम फूड वॉर की भयावय स्थिति देखने को मिली थी। उस वक्त सूखा, प्राकृतिक आपदा की भांति अन्य कारणों से भी पूरे विश्व में खाद्यान्न की पैदावार कम हुई थी। उस समय रूस, अर्जेंटिना जैसे प्रमुख खाद्यान्न निर्यातक देशों ने घरेलू मांग की आपूर्ति करने हेतु 2008 में कई महीनों तक खाद्यान्न के निर्यात को एक प्रकार से बिल्कुल प्रतिबंधित कर दिया था। जिसके परिणामस्वरूप, विश्व के विभिन्न स्थानों पर राजनीतिक अस्थिरता एवं आर्थिक संकट उत्पन्न हो गए थे। संयोगवश उस समय वैश्विक मंदी ने भी दस्तक दे दी थी। फूड वॉर को भी इसके कारणों में शम्मिलित किया जा सकता है।
मोटे अनाज से बने चिप्स और नूडल्स की अब होगी पूरे देश भर में सप्लाई; बुंदेलखंड के किसानों के लिए खुशखबरी

मोटे अनाज से बने चिप्स और नूडल्स की अब होगी पूरे देश भर में सप्लाई; बुंदेलखंड के किसानों के लिए खुशखबरी

बुंदेलखंड एक ऐसी जगह है जिसका आप कहीं भी नाम पढ़ते हैं तो आपके जहन में एक तस्वीर उभर आती है. और यह तस्वीर खूबसूरत नहीं होती है क्योंकि बुंदेलखंड का नाम सुनते ही पानी की किल्लत से भरी हुई जगह और फटे हाल किसानों की तस्वीरें नजर के सामने आने लगती हैं. लेकिन आपको बता दें कि यह बातें बेहद पुरानी हो गई है और अब बुंदेलखंड के किसानों के भाग बदलने वाले हैं क्योंकि अब यहां के किसानों ने मोटे अनाज से तरह-तरह के फूड आइटम बनाने और उन्हें बेचने का फैसला लिया है.  साथ ही सरकार की तरफ से भी इस कदम को प्रोत्साहित किया जाएगा. मीडिया से आ रही रिपोर्ट के अनुसार बुंदेलखंड के किसान अब सिर्फ मोटे अनाज की खेती पर ही निर्भर नहीं रहेंगे बल्कि उस अनाज की प्रोसेसिंग कर उससे ब्रेड,  नूडल, और नान खटाई जैसी चीजें बनाकर देश भर में बिक्री करेंगे जिससे न सिर्फ उनकी इनकम बढ़ेगी बल्कि लोगों को भी पोष्टिक भोजन कम कीमत पर मिलना शुरू होगा. इसके सेवन से इंसान तंदरुस्त और निरोग रहता है. सभी मोटे अनाजों पर विश्वविद्यालय में अभी शोध चल रहा है और उसके बाद ही इस पर आगे की प्रोसेसिंग शुरू की जाएगी. हम सभी जानते हैं कि लगभग 40 से 50 साल पहले हमारे पूर्वज मोटे अनाजों की बढ़-चढ़कर खेती करते थे और उन्हें दिनचर्या में इस्तेमाल भी किया जाता था लेकिन जैसे ही हरित क्रांति आई इन सभी मोटे अनाजों की जगह है और चावल जैसी फसलों ने ले ली. एक समय ऐसा आ गया कि लोगों की थाली से यह मोटा अनाज पूरी तरह से गायब ही हो गया और लोगों ने इसे पूरी तरह से काम बंद कर दिया था. लेकिन एक बार फिर से लोगों को मोटे अनाज में मिलने वाले वाइट अमीन और पोषक तत्वों के बारे में जानकारी मिलनी शुरू हो गई है और उन्हें यह भी पता चल गया है कि इसके सेवन से व्यक्ति तंदुरुस्त और निरोगी रहता है. इसीलिए एक बार फिर से मोटे अनाज की तरफ लोगों का रुझान आया है

किसान की आमदनी में होगा बढ़ावा

केंद्र सरकार भी एक बार फिर से मोटे अनाज की खेती के लिए पूरे देश भर में किसानों को प्रोत्साहित कर रही है और बहुत जगह पर मोटे अनाज के बीज किसानों को मुफ्त में मुहैया करवाए जा रहे हैं. साथ इससे जुड़ी हुई कई तरह की स्कीम भी केंद्र सरकार लागू करने में लगी हुई है. ये भी पढ़े: मिलेट्स की खेती करने पर कैसे मिली एक अकाउंटेंट को देश दुनिया में पहचान कोर्णाक आर्मी लोगों को समझ में आ गया कि मोटे अनाज में रोगों से लड़ने की क्षमता बहुत ज्यादा है और अपने भोजन में इनका सेवन करना बेहद जरूरी है. इसके अलावा किसानों के पक्ष से देखा जाए तो इस अंदाज में सिंचाई के लिए ज्यादा पानी की जरूरत भी नहीं पड़ती है इसलिए बुंदेलखंड राज्य इसके लिए एकदम सही है.  यहां पर किसान फूड प्रोसेसिंग करके अपनी आमदनी में अच्छा-खासा इजाफा कर सकते हैं. कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग के प्राध्यापक डा.कमालुद्दीन ने भी माना है कि मोटे अनाज की खेती बुंदेलखंड के किसानों के लिए एक नई क्रांति लेकर आएगी और इससे उनकी आमदनी में अच्छा खासा मुनाफा होने वाला  है.
मोटे अनाज (मिलेट) की फसलों का महत्व, भविष्य और उपयोग के बारे में विस्तृत जानकारी

मोटे अनाज (मिलेट) की फसलों का महत्व, भविष्य और उपयोग के बारे में विस्तृत जानकारी

भारत के किसान भाइयों के लिए मिलेट की फसलें आने वाले समय में अच्छी उपज पाने हेतु अच्छा विकल्प साबित हो सकती हैं। आगे इस लेख में हम आपको मिलेट्स की फसलों के बारे में अच्छी तरह जानकारी देने वाले हैं। मिलेट फसलें यानी कि बाजरा वर्गीय फसलें जिनको अधिकांश किसान मिलेट अनाज वाली फसलों के रूप में जानते हैं। मिलेट अनाज वाली फसलों का अर्थ है, कि इन फसलों को पैदा करने एवं उत्पादन लेने के लिए हम सब किसान भाइयों को काफी कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता। समस्त मिलेट फसलों का उत्पादन बड़ी ही आसानी से लिया जा सकता है। जैसे कि हम सब किसान जानते हैं, कि सभी मिलेट फसलों को उपजाऊ भूमि अथवा बंजर भूमि में भी पैदा कर आसान ढ़ंग से पैदावार ली जा सकती है। मिलेट फसलों की पैदावार के लिए पानी की जरुरत होती है। उर्वरक का इस्तेमाल मिलेट फसलों में ना के समान होता है, जिससे किसान भाइयों को ज्यादा खर्च से सहूलियत मिलती है। जैसा कि हम सब जानते हैं, कि हरित क्रांति से पूर्व हमारे भारत में उत्पादित होने वाले खाद्यान्न में मिलेट फसलों की प्रमुख भूमिका थी। लेकिन, हरित क्रांति के पश्चात इनकी जगह धीरे-धीरे गेहूं और धान ने लेली और मिलेट फसलें जो कि हमारी प्रमुख खाद्यान्न फसल हुआ करती थीं, वह हमारी भोजन की थाली से दूर हो चुकी हैं।

भारत मिलेट यानी मोटे अनाज की फसलों की पैदावार में विश्व में अव्वल स्थान पर है

हमारा भारत देश आज भी मिलेट फसलों की पैदावार के मामले में विश्व में सबसे आगे है। इसके अंतर्गत मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, झारखंड, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में किसान भाई बड़े पैमाने पर मोटे अनाज यानी मिलेट की खेती करते हैं। बतादें, कि असम और बिहार में सर्वाधिक मोटे अनाज की खपत है। दानों के आकार के मुताबिक, मिलेट फसलों को मुख्यतः दो हिस्सों में विभाजित किया गया है। प्रथम वर्गीकरण में मुख्य मोटे अनाज जैसे बाजरा और ज्वार आते हैं। तो उधर दूसरे वर्गीकरण में छोटे दाने वाले मिलेट अनाज जैसे रागी, सावा, कोदो, चीना, कुटुकी और कुकुम शम्मिलित हैं। इन छोटे दाने वाले, मिलेट अनाजों को आमतौर पर कदन्न अनाज भी कहा जाता है।

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वर्ष 2023 को "अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष" के रूप में मनाया जा रहा है

जैसा कि हम सब जानते है, कि वर्ष 2023 को “अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष” के रूप में मनाया जा रहा है। भारत की ही पहल के अनुरूप पर यूएनओ ने वर्ष 2023 को मिलेट वर्ष के रूप में घोषित किया है। भारत सरकार ने मिलेट फसलों की खासियत और महत्ता को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2018 को “राष्ट्रीय मिलेट वर्ष” के रूप में मनाया है। भारत सरकार ने 16 नवम्बर को “राष्ट्रीय बाजरा दिवस” के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।

मिलेट फसलों को केंद्र एवं राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर से बढ़ावा देने की कोशिशें कर रही हैं

भारत सरकार द्वारा मिलेट फसलों की महत्ता को केंद्र में रखते हुए किसान भाइयों को मिलेट की खेती के लिए प्रोत्साहन दिया जा रहा है। मिलेट फसलों के समुचित भाव के लिए सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफा किया जा रहा है। जिससे कि कृषकों को इसका अच्छा फायदा मिल सके। भारत सरकार एवं राज्य सरकारों के स्तर से मिलेट फसलों के क्षेत्रफल और उत्पादन में बढ़ोत्तरी हेतु विभिन्न सरकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं। जिससे किसान भाई बड़ी आसानी से पैदावार का फायदा उठा सकें। सरकारों द्वारा मिलेट फसलों के पोषण और शरीरिक लाभों को ध्यान में रखते हुए ग्रामीण एवं शहरी लोगों के मध्य जागरूकता बढ़ाने की भी कोशिश की जा रही है। जलवायु परिवर्तन ने भी भारत में गेहूं और धान की पैदावार को बेहद दुष्प्रभावित किया है। इस वजह से सरकार द्वारा मोटे अनाज की ओर ध्यान केन्द्रित करवाने की कोशिशें की जा रही हैं।

मिलेट यानी मोटे अनाज की फसलों में पोषक तत्व प्रचूर मात्रा में विघमान रहते हैं

मिलेट फसलें पोषक तत्वों के लिहाज से पारंपरिक खाद्यान गेहूं और चावल से ज्यादा उन्नत हैं। मिलेट फसलों में पोषक तत्त्वों की भरपूर मात्रा होने की वजह इन्हें “पोषक अनाज” भी कहा जाता है। इनमें काफी बड़ी मात्रा में प्रोटीन, फाइबर, विटामिन-E विघमान रहता है। कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन कैल्शियम, मैग्नीशियम भी समुचित मात्रा में पाया जाता है। मिलेट फसलों के बीज में फैटो नुत्त्रिएन्ट पाया जाता है। जिसमें फीटल अम्ल होता है, जो कोलेस्ट्राल को कम रखने में सहायक साबित होता है। इन अनाजों का निमयित इस्तेमाल करने वालों में अल्सर, कोलेस्ट्राल, कब्ज, हृदय रोग और कर्क रोग जैसी रोगिक समस्याओं को कम पाया गया है।

मिलेट यानी मोटे अनाज की कुछ अहम फसलें

ज्वार की फसल

ज्वार की खेती भारत में प्राचीन काल से की जाती रही है। भारत में ज्वार की खेती मोटे दाने वाली अनाज फसल और हरे चारे दोनों के तौर पर की जाती है। ज्वार की खेती सामान्य वर्षा वाले इलाकों में बिना सिंचाई के हो रही है। इसके लिए उपजाऊ जलोड़ एवं चिकिनी मिट्टी काफी उपयुक्त रहती है। ज्वार की फसल भारत में अधिकांश खरीफ ऋतु में बोई जाती है। जिसकी प्रगति के लिए 25 डिग्री सेल्सियस से 30 डिग्री सेल्सियस तक तापमान ठीक होता है। ज्वार की फसल विशेष रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु में की जाती है। ज्वार की फसल बुआई के उपरांत 90 से 120 दिन के समयांतराल में पककर कटाई हेतु तैयार हो जाती है। ज्वार की फसल से 10 से 20 क्विंटल दाने एवं 100 से 150 क्विंटल हरा चारा प्रति एकड़ की उपज है। ज्वार में पोटैशियम, फास्पोरस, आयरन, जिंक और सोडियम की भरपूर मात्रा पाई जाती है। ज्वार का इस्तेमाल विशेष रूप से उपमा, इडली, दलिया और डोसा आदि में किया जाता है।

बाजरा की फसल

बाजरा मोटे अनाज की प्रमुख एवं फायदेमंद फसल है। क्योंकि, यह विपरीत स्थितियों में एवं सीमित वर्षा वाले इलाकों में एवं बहुत कम उर्वरक की मात्रा के साथ बेहतरीन उत्पादन देती हैं जहां अन्य फसल नहीं रह सकती है। बाजरा मुख्य रूप से खरीफ की फसल है। बाजरा के लिए 20 से 28 डिग्री सेल्सियस तापमान अनुकूल रहता है। बाजरे की खेती के लिए जल निकास की बेहतर सुविधा होने चाहिए। साथ ही, काली दोमट एवं लाल मिट्टी उपयुक्त हैं। बाजरे की फसल से 30 से 35 क्विंटल दाना एवं 100 क्विंटल सूखा चारा प्रति हेक्टेयर की पैदावार मिलती है। बाजरे की खेती मुख्य रूप से गुजरात, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में की जाती है। बाजरे में आमतौर पर जिंक, विटामिन-ई, कैल्शियम, मैग्नीशियम, कॉपर तथा विटामिन-बी काम्प्लेक्स की भरपूर मात्रा उपलब्ध है। बाजरा का उपयोग मुख्य रूप से भारत के अंदर बाजरा बेसन लड्डू और बाजरा हलवा के तौर पर किया जाता है।

रागी (मंडुआ) की फसल

विशेष रूप से रागी का प्राथमिक विकास अफ्रीका के एकोपिया इलाके में हुआ है। भारत में रागी की खेती तकरीबन 3000 साल से होती आ रही है। रागी को भारत के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न मौसम में उत्पादित किया जाता है। वर्षा आधारित फसल स्वरुप जून में इसकी बुआई की जाती है। यह सामान्यतः आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, बिहार, तमिलनाडू और कर्नाटक आदि में उत्पादित होने वाली फसल है। रागी में विशेष रूप से प्रोटीन और कैल्शियम ज्यादा मात्रा में होता है। यह चावल एवं गेहूं से 10 गुना ज्यादा कैल्शियम व लौह का अच्छा माध्यम है। इसलिए बच्चों के लिए यह प्रमुख खाद्य फसल हैं। रागी द्वारा मुख्य तौर पर रागी चीका, रागी चकली और रागी बालूसाही आदि पकवान निर्मित किए जाते हैं।

कोदों की फसल

भारत के अंदर कोदों तकरीबन 3000 साल पहले से मौजूद था। भारत में कोदों को बाकी अनाजों की भांति ही उत्पादित किया जाता है। कवक संक्रमण के चलते कोदों वर्षा के बाद जहरीला हो जाता है। स्वस्थ अनाज सेहत के लिए फायदेमंद होता है। इसकी खेती अधिकांश पर्यावरण के आश्रित जनजातीय इलाकों में सीमित है। इस अनाज के अंतर्गत वसा, प्रोटीन एवं सर्वाधिक रेसा की मात्रा पाई जाती है। यह ग्लूटन एलजरी वाले लोगो के इस्तेमाल के लिए उपयुक्त है। इसका विशेष इस्तेमाल भारत में कोदो पुलाव एवं कोदो अंडे जैसे पकवान तैयार करने हेतु किया जाता है।

सांवा की फसल

जानकारी के लिए बतादें, कि लगभग 4000 वर्ष पूर्व से इसकी खेती जापान में की जाती है। इसकी खेती आमतौर पर सम शीतोष्ण इलाकों में की जाती है। भारत में सावा दाना और चारा दोनों की पैदावार के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह विशेष रूप से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार और तमिलनाडू में उत्पादित किया जाता है। सांवा मुख्य फैटी एसिड, प्रोटीन, एमिलेज की भरपूर उपलब्ध को दर्शाता है। सांवा रक्त सर्करा और लिपिक स्तर को कम करने के लिए काफी प्रभावी है। आजकल मधुमेह के बढ़ते हुए दौर में सांवा मिलेट एक आदर्श आहार बनकर उभर सकता है। सांवा का इस्तेमाल मुख्य तौर पर संवरबड़ी, सांवापुलाव व सांवाकलाकंद के तौर पर किया जाता है।

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चीना की फसल

चीना मिलेट यानी मोटे अनाज की एक प्राचीन फसल है। यह संभवतः मध्य व पूर्वी एशिया में पाई जाती है, इसकी खेती यूरोप में नव पाषाण काल में की जाती थी। यह विशेषकर शीतोष्ण क्षेत्रों में उत्पादित की जाने वाली फसल है। भारत में यह दक्षिण में तमिलनाडु और उत्तर में हिमालय के चिटपुट इलाकों में उत्पादित की जाती है। यह अतिशीघ्र परिपक्व होकर करीब 60 से 65 दिनों में तैयार होने वाली फसल है। इसका उपभोग करने से इतनी ऊर्जा अर्जित होती है, कि व्यक्ति बिना थकावट महसूस किये सुबह से शाम तक कार्यरत रह सकते हैं। जो कि चावल और गेहूं से सुगम नहीं है। इसमें प्रोटीन, रेशा, खनिज जैसे कैल्शियम बेहद मात्रा में पाए जाते हैं। यह शारीरिक लाभ के गुणों से संपन्न है। इसका इस्तेमाल विशेष रूप से चीना खाजा, चीना रवा एडल, चीना खीर आदि में किया जाता है।
अदरक और टमाटर सहित इस फल की भी कीमत हुई दोगुनी

अदरक और टमाटर सहित इस फल की भी कीमत हुई दोगुनी

बारिश से फसल को हानि पहुंचने के कारण आजादपुर मंडी (दिल्ली में) में टमाटर की आपूर्ति काफी कम हो गई है। नई फसल आने तक भाव कुछ वक्त तक ज्यों की त्यों रहेंगी। टमाटर ने एक बार पुनः अपना रुद्र रूप दिखाना चालू कर दिया है। विगत एक पखवाड़े में टमाटर एवं अदरक के भावों में रॉकेट की रफ्तार जितनी बढ़ोत्तरी हुई है। कुछ समय पूर्व हुई बारिश से उत्तर भारत में टमाटर की फसल प्रभावित हुई है। वहीं दूसरी तरफ, अदरक के किसान अपनी फसल को अभी रोक रहे हैं। विगत वर्ष हुई क्षति की भरपाई के लिए कीमतों में बढ़ोत्तरी कर रहे हैं।

तरबूज की कीमत किस वजह से बढ़ी है

इसी मध्य, तरबूज के बीज की कीमत तीन गुना तक बढ़ चुकी है। दरअसल, इसको सूडान से आयात किया जाता है। परंतु, वहां पर सैन्य संघर्ष चल रहा है। जिसके चलते आपूर्ति काफी कम है। दिल्ली के एक व्यापारी संजय शर्मा का कहना है, कि एक किलो तरबूज के बीज का भाव फिलहाल 900 रुपये है। जो कि सूडान संघर्ष से पूर्व मात्र 300 रुपये थी।

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टमाटर का भाव दोगुना हो चुका है

खुदरा बाजार में टमाटर का भाव 15 दिन पूर्व 40 रुपये प्रति किलोग्राम थी। जिसमें फिलहाल तकरीबन 80 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई हैं। आजादपुर बाजार में टमाटर ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक कौशिक के मुताबिक बारिश से फसल को क्षति पहुंचने की वजह से आजादपुर मंडी (दिल्ली में) में टमाटर की आपूर्ति काफी कम हो चुकी है। नवीन फसल आने तक भाव कुछ वक्त तक इतना ही रहने वाला है। कौशिक का कहना है, कि दक्षिणी भारत से टमाटर की भारी मांग है, जिससे भी भाव बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा है, कि टमाटर फिलहाल हरियाणा एवं यूपी के कुछ इलाकों से आ रहे हैं। कीमतों का कम से कम दो माह तक ज्यों के त्यों रहने की आशंका है।

अदरक की कीमतों में हुई वृद्धि

अदरक की कीमत जो कि 30 रुपये प्रति 100 ग्राम थी। वह अब बढ़कर 40 रुपये तक हो गई है। ऑल इंडिया वेजिटेबल ग्रोअर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष श्रीराम गढ़वे का कहना है, कि पिछली साल किसानों को कम भाव के चलते नुकसान वहन करना पड़ा था। इस बार वह बाजार में सावधानी से फसल उतार रहे हैं। अब जब कीमतों में वृद्धि हुई है, तो वह अपनी फसल को बेचना चालू कर देंगे। भारत का वार्षिक अदरक उत्पादन करीब 2.12 मिलियन मीट्रिक टन है।
आगामी रबी सीजन में इन प्रमुख फसलों का उत्पादन कर किसान अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं

आगामी रबी सीजन में इन प्रमुख फसलों का उत्पादन कर किसान अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं

किसान भाइयों जैसा कि आप जानते हैं, कि रबी सीजन की बुवाई का कार्य अक्टूबर से लेकर नवंबर माह तक किया जाता है। परंतु, उससे पूर्व किसान अपने खेतों में मृदा की जांच एवं संरक्षित ढांचे की तैयारी जैसे आवश्यक कार्य कर सकते हैं। भारत में जलवायु परिवर्तन की परेशानी बढ़ती जा रही है, जिसका सबसे बड़ा प्रभाव खेती पर पड़ रहा है। इस समस्या से निजात पाने के लिये आवश्यक है, कि मिट्टी और जलवायु के हिसाब से फसलें एवं इनकी मजबूत प्रजातियों का चुनाव किया जाये। इसके अतिरिक्त खेत की तैयारी से लेकर खाद-उर्वरकों की खरीद तक कई सारे ऐसे कार्य होते हैं, जिनका समय पर फैसला लेना आवश्यक होता है।

रबी सीजन की बुवाई अक्टूबर से नवंबर के बीच की जाती है

सामान्य तौर पर
रबी सीजन की बुवाई का कार्य अक्टूबर से लेकर नवंबर तक किया जाता है। परंतु, उससे पूर्व किसान अपने खेतों में मिट्टी की जांच और संरक्षित खेती की तैयारी जैसे आवश्यक कार्य कर सकते हैं। इसके उपरांत मृदा स्वास्थ्य कार्ड के अनुसार, खेतों में अनाज, दलहन, तिलहन, चारे वाली फसलें, जड़ और कंद वाली फसलें, सब्जी वाली फसलें, शर्करा वाली फसलें एवं मसाले वाली फसलों की खेती की जा सकती है। यह भी पढ़ें: जानें रबी और खरीफ सीजन में कटाई के आधार पर क्या अंतर है

रबी सीजन की प्रमुख अनाज फसलें

रबी सीजन की प्रमुख नकदी और अनाज वाली फसलों में गेहूं, जौ, जई आदि शम्मिलित हैं। किसान भाई इन फसलों की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं।

रबी सीजन की दलहनी फसलें

रबी सीजन की प्रमुख दलहनी फसलें प्रोटीन से युक्त होती हैं। इसका प्रत्येक दाना किसानों को अच्छी आमदनी दिलाने में सहायता करता है। इन फसलों में चना, मटर, मसूर, खेसारी इत्यादि दालें शम्मिलित हैं।

रबी सीजन की तिलहनी फसलें

तिहलनी फसलें तेल उत्पादन के मकसद से पैदा की जाती हैं, जिनसे किसानों को काफी अच्छी आमदनी होती है। रबी सीजन की प्रमुख तिलहनी फसलों में सरसों, राई, अलसी, तोरिया, सूरजमुखी की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।

रबी सीजन की चारा फसलें

पशुओं के लिए प्रत्येक सीजन में पशु चारे का इंतजाम होता रहे। इसी मकसद से चारा फसलों की बुवाई की जाती है। रबी सीजन की इन चारा फसलों में बरसीम, जई और मक्का का नाम शम्मिलित है।

रबी सीजन की मसाला फसलें

रबी सीजन के अंतर्गत कुछ मसालों की भी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। इनमें मंगरैल, धनियाँ, लहसुन, मिर्च, जीरा, सौंफ, अजवाइन आदि सब्जियां शम्मिलित हैं।

रबी सीजन की प्रमुख सब्जी फसलें

अधिकांश किसान पारंपरिक फसलों को छोड़कर बागवानी फसलों की खेती करते हैं। विशेष रूप से बात करें सब्जी फसलों की तो यह कम समय में ज्यादा मुनाफा देती हैं। रबी सीजन की प्रमुख सब्जी फसलों में लौकी, करेला, सेम, बण्डा, फूलगोभी, पातगोभी, गाठगोभी, मूली, गाजर, शलजम, मटर, चुकन्दर, पालक, मेंथी, प्याज, आलू, शकरकंद, टमाटर, बैगन, भिन्डी, आलू और तोरिया आदि फसलें उगाई जाती हैं।