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पालक की खेती के लिए इन किस्मों का चयन करना लाभकारी साबित होगा

पालक की खेती के लिए इन किस्मों का चयन करना लाभकारी साबित होगा

किसान भाई बेहतरीन मुनाफा पाने के लिए पालक की खेती कर सकते हैं। बतादें, कि भारत में पालक की खेती रबी, खरीफ एवं जायद तीनों फसल चक्र में की जाती है। इसके लिए खेत में बेहतर जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए। साथ ही, हल्की दोमट मृदा में पालक के पत्तों का शानदार उत्पादन होता है।

किसान भाई इन बातों का विशेष रूप से ख्याल रखें

एक हेक्टेयर भूमि पर
पालक की खेती करने के लिए 30 किग्रा बीज की जरूरत पड़ती है। वहीं, छिटकवां विधि के माध्यम से खेती करने पर 40 से 45 किग्रा बीज की जरूरत होती है। बुवाई से पूर्व 2 ग्राम कैप्टान प्रति किलोग्राम बीजों का उपचार करें, जिससे पैदावार अच्छी हो। पालक की बुवाई के लिए कतार से कतार की दूरी 25–30 सेंटीमीटर और पौध से पौध की 7–10 सेंटीमीटर की दूरी रखें। पालक की खेती के लिए जलवायु एवं मिट्टी के अनुसार ज्यादा उत्पादन वाली उन्नत किस्मों का चयन कर सकते हैं।

ऑल ग्रीन

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि 15 से 20 दिन में हरे पत्तेदार पालक की किस्म तैयार हो जाती है। एक बार बुवाई करने के उपरांत यह छह से सात बार पत्तों को काट सकता है। यह किस्म बेशक ज्यादा उत्पादन देती है। परंतु, सर्दियों के दौरान खेती करने पर 70 दिनों में बीज और पत्तियां लगती हैं।

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पूसा हरित

साल भर की खपत को सुनिश्चित करने के लिए बहुत सारे किसान पूसा हरित से खेती करते हैं। पालक की बढ़वार सीधे ऊपर की ओर होती है। साथ ही, इसके पत्ते गहरे हरे रंग के बड़े आकार वाले होते हैं। क्षारीय जमीन पर इसकी खेती करने के बहुत सारे फायदे हैं।

देसी पालक

देसी पालक बाजार के अंदर बेहद अच्छे भाव में बिकता है। देसी पालक की पत्ती छोटी, चिकनी और अंडाकार होती हैं। यह बेहद शीघ्रता से तैयार हो जाती है। इस वजह से ज्यादातर किसान भाई इसकी खेती करते हैं।

विलायती पालक

विलायती पालक के बीज गोल एवं कटीले होते हैं। कटीले बीजों को पहाड़ी एवं ठंडे स्थानों में उगाना ज्यादा फायदेमंद होता है। गोल किस्मों की खेती भी मैदानों में की जाती है।
सर्दियों में पालक की जबरदस्त मांग होती है, किसान इसकी उन्नत किस्मों का चयन करें

सर्दियों में पालक की जबरदस्त मांग होती है, किसान इसकी उन्नत किस्मों का चयन करें

पालक की प्रमुख किस्मों में सम्पूर्ण हरा, पूसा हरित, पूसा ज्योति, जोबनेर ग्रीन एवं हिसार सेलेक्शन-23 सर्वाधिक उगाई जाने वाली प्रजाति होती हैं। आज हम आपको इन किस्मों के साथ-साथ इनकी ज्यादा मांग के विषय में जानकारी देंगे। सर्दियों का आगमन होते ही सबसे ज्यादा जो चीजें खाई जाने वाली होती हैं, उनमें हरी सब्जियों का नाम सर्व प्रथम आता है। इनमें सोया-मेथी, पालक, बथुआ एवं सरसों का साग सबसे विशेष होता है। इन्हीं में से आज हम आपको पालक की कुछ प्रमुख किस्मों के विषय में बताने जा रहे हैं। दरअसल, किसान पालक की खेती इसकी अधिक मांग के चलते भी करते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, पालक में सर्वाधिक आयरन की मात्रा होती है। जो हमारे स्वास्थ्य में हीमोग्लोबिन को संयमित करने में सहायता करती है। इसके चलते लोगों में इस सब्जी की सर्वाधिक मांग रहती है।

पालक की किस्म सम्पूर्ण हरा

पालक की इस प्रजाति के पौधे सामान्यतः हरे रंग के होते हैं। 5 से 20 दिन के समयांतराल पर इसकी पत्तियाँ मुलायम होकर कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं। बतादें कि इसकी 6 से 7 बार कटाई की जा सकती है। पालक की यह प्रमुख किस्म ज्यादा उत्पादन देती है। ठंड के मौसम में तकरीबन ढाई माह उपरांत बीज और डंठल आते हैं।

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पालक की किस्म पूसा ज्योति

यह पालक की एक और उन्नत किस्म होती है, जिसकी पत्तियाँ हद से ज्यादा मुलायम और बिना रेशे वाली होती हैं। इस प्रजाति के पौधे काफी तेजी से बढ़ते हैं। साथ ही, पत्तियां कटाई के लिए भी तैयार हो जाती हैं, जिससे पैदावार भी ज्यादा होती है।


पालक की किस्म जोबनेर ग्रीन

जोबनेर ग्रीन प्रजाति की मुख्य विशेषता यह है, कि इसे अम्लीय मृदा में भी पैदा किया जा सकता है। पालक की इस किस्म की समस्त पत्तियाँ एक समान हरी, मोटी, मुलायम और रसदार होती हैं। इसकी पत्तियाँ पकाने पर बड़ी आसानी से गल जाती हैं।


 

पालक की किस्म पूसा हरित

पालक की यह शानदार किस्म पहाड़ी इलाकों के लिए उपयुक्त होती है। साथ ही, इसको यहाँ संपूर्ण वर्षभर उगाया जा सकता है। इसके पौधे ऊपर की तरफ बढ़ते हैं। साथ ही, पत्तियों का रंग गहरा हरा होता है। इसके पत्ते आकार में भी काफी बड़े होते हैं। इस किस्म की विशेषता यह है, कि इसे विभिन्न प्रकार की जलवायु में उगाया जा सकता है। इसकी खेती अम्लीय मिट्टी में भी सुगमता से की जा सकती है।

पालक की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

पालक की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

पालक का नाम सुनते ही हमारे जेहन में एक हरे और चौड़े पत्ते वाली सब्जी आती है. जो की सर्दियों में हरा साग बना के खाई जाती है. पालक की सब्जी लोह और दूसरे विटामिन्स का बहुत अच्छा स्रोत है. इससे कैंसर-रोधक और ऐंटी ऐजिंग दवाइयां भी बनाई जाती है. इसके बहुत सारे अन्य फायदे भी हैं. यह हमारे पाचन, बाल, त्वचा आदि में भी बहुत महत्वपूर्ण है. अक्सर डॉक्टर्स हमें हरी सब्जी खाने की सलाह देते हैं इसके पीछे कारण यह है की इन हरी सब्जियों से हमें बहुत सारे विटामिन्स एंड मिनरल्स मिलते हैं जिससे की हमारे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है.

मिटटी:

पालक के लिए दोमट एवं मिक्स बलुई मिटटी उपयुक्त रहती है. इसको मिटटी से मिलने वाले पोषक तत्व अगर सही से मिलें तो इसके पत्ते चौड़े और चमकदार होते है. पत्ते देख कर भी कोई बता सकता है की पालक को मिटटी से मिलने वाले पोषक तत्व कैसे हैं. कहने का तात्पर्य है की चमकदार हरा रंग और चौड़े पत्ते भरपूर पोषक तत्वों का सूचक है.

खेत की तैयारी:

पालक के लिए खेत की तैयारी करते समय ध्यान रहे की इसके खेत की जुताई अच्छे तरीके से कि जाये. खेत में खरपतवार न हो तथा खेत समतल होना चाहिए जिससे की उसमें पानी भरने कि संभावना न हो. इससे पालक कि फसल ख़राब न हो. पालक की फसल कच्ची फसल होती है यह ज्यादा पानी भरने पर गल जाती है. खेत की अंतिम जुताई करने से पहले अच्छे से गोबर का बना हुआ खाद मिला देना चाहिए. इससे रासायनिक खाद की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती है. पालक की खेती के साथ-साथ इसको सर्दियों में पशुओ को भी खिलाते हैं. क्योकि यह लोह और विटामिन्स का बहुत अच्छा स्रोत है. इसलिए
पशुओं के लिए बोने वाले चारे में पालक और मेथी मिला देते हैं. इससे पशुओं को भरपूर विटामिन्स मिलते हैं तथा सर्दियों में उनका स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है.

बुवाई :

पालक के बीज की बुवाई या तो मशीन के द्वारा कराइ जानी चाहिए या फिर किसी विशेषज्ञ किसान द्वारा पवेर के करनी चाहिए. इसके पौधों में एक निश्चित दूरी रखनी चाहिए. जिससे की पौधे को फैलने की पर्याप्त जगह मिले.

पालक की उन्नत किस्में:

पालक की खेती इसकी पत्तियों के लिए की जाती है. इसकी पट्टी जीतनी चमकदार और हरी, चौड़ी होंगी उतनी ही अच्छी फसल मणि जाती है. इसकी फसल से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए क्षेत्र विशेष की जलवायु व भूमि के अनुसार किस्मों का चयन करना भी एक आवश्यक कदम है। साथ ही पालक की सफल खेती के लिए चयनित किस्मों की विशेषताओं का भी ध्यान रखना चाहिए। पालक की खेती के लिए कुछ निम्नलिखित किस्मों में से किसी एक किस्म का चयन कर किसान अपनी आय को बढ़ा सकते हैं- ऑलग्रीन, पूसा ज्योति, पूसा हरित, पालक नं. 51-16, वर्जीनिया सेवोय, अर्ली स्मूथ लीफ आदि।

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पालक की फसल के रोग:

जैसा की हम पहले बता चुके हैं कि पालक की फसल कच्ची फसल होती है तो इसमें रोग भी जल्दी ही लगते हैं. इसके रोग कीड़े के रूप में और अन्य बीमारी भी इसमें जल्दी लगाती हैं. जैसे: चेंपा: चेंपा रोग इसमें बहुत जल्दी लगता है. तथा इसके छोटे छोटे कीड़े पत्ती पर बैठ कर उसका रास चूस लेते हैं जिससे कि इसकी पत्तियां मुरझा जाती है. इसके इलाज के लिए अगर आप देसी इलाज देना चाहते हैं तो नीम कि पत्ती का घोल और उपले की राख बखेर देनी चाहिए. चिट्टेदार पत्ते: इस रोग में पालक के पत्ते पर लाल रंग का घेरा जैसा बन जाता है. उससे पत्तियां ख़राब होने लगती हैं जिससे ये बाजार में बेचने लायक नहीं होता है. मोज़ेक वायरस: यह वायरस लगभग 150 विभिन्न प्रकार की सब्जियों और पौधों को संक्रमित कर सकता है। हम पत्तियों के उतरे हुए रंग को देखकर इसकी पहचान कर सकते हैं। संक्रमित पत्तियों में पीले और सफेद धब्बे होते हैं। पौधों का आकार बढ़ना बंद हो जाता है और वे धीरे-धीरे मर जाते हैं। कोमल फफूंदी: यह बीमारी पेरोनोस्पोरा फेरिनोसा रोगाणु के कारण होती है। हम पत्तियों को देखकर इसकी पहचान कर सकते हैं। वे अक्सर मुड़ी हुई होती हैं और उसमें फफूंदी और काले धब्बे लगे होते हैं। स्पिनच ब्लाइट:  यह वायरस पत्तियों को प्रभावित करता है। संक्रमित पत्तियां बढ़ना बंद कर देती हैं और उनका रंग पीलापन लिए हुए भूरे रंग का होने लगता है।
अगस्त में ऐसे लगाएं गोभी-पालक-शलजम, जाड़े में होगी बंपर कमाई, नहीं होगा कोई गम

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मानसून सीजन में भारत में इस बार बारिश का मिजाज किसानों की समझ से परे है। मानसून के देरी से देश के राज्यो में आमद दर्ज कराने से धान, सोयाबीन जैसी प्रतिवर्ष ली जाने वाली फसलों की तैयारी में देरी हुई, वहीं अगस्त माह में अतिवर्षा के कारण कुछ राज्यों में फसलों को नुकसान होने के कारण किसान मुआवजा मांग रहे हैं। लेकिन हम बात नुकसान के बजाए फायदे की कर रहे हैं। 

अगस्त महीने में कुछ बातों का ध्यान रखकर किसान यदि कुछ फसलों पर समुचित ध्यान देते हैं, तो आगामी महीनों में किसानों को भरपूर कृषि आय प्राप्त हो सकती है। जुलाई महीने तक भारत में कई जगह सूखा, गर्मी सरीखी स्थिति रही। ऐसे में अगस्त माह में किसान सब्जी की फसलों पर ध्यान केंद्रित कर अल्पकालिक फसलों से मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। अगस्त के महीने को साग-सब्जियों की खेती की तैयारी के लिहाज से काफी मुफीद माना जाता है। मानसून सीजन में सब्जियों की खेती से किसान बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं, हालांकि उनको ऐसी फसलों से बचने की कृषि वैज्ञानिक सलाह देते हैं, जो अधिक पानी की स्थिति में नुकसान का सौदा हो सकती हैं।

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 ऐसे में अगस्त के महीने में समय के साथ ही किसान को सही फसल का चुनाव करना भी अति महत्वपूर्ण हो जाता है। अगस्त में ऐसी कुछ सब्जियां हैं जिनकी खेती में नुकसान के बजाए फायदे अधिक हैं। एक तरह से अगस्त के मौसम को ठंड की साग-सब्जियों की तैयारी का महीना कहा जा सकता है। अगस्त के महीने में बोई जाने वाली सब्जियां सितंबर माह के अंत या अक्टूबर माह के पहले सप्ताह तक बाजार में बिकने के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाती हैं।

शलजम (Turnip) की खेती

जड़ीय सब्जियों (Root vegetables) में शामिल शलजम ठंड के मौसम में खाई जाने वाली पौष्टिक सब्जियों में से एक है। कंद रूपी शलजम की खेती (Turnip Cultivation) में मेहनत कर किसान जाड़े के मौसम में बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं। गांठनुमा जड़ों वाली सब्जी शलजम या शलगम को भारतीय चाव से खाते हैं। अल्प समय में पचने वाली शलजम को खाने से पेट में बनने वाली गैस आदि की समस्या का भी समाधान होता है। कंद मूल किस्म की इस सब्जी की खासियत यह है कि इसे पथरीली अथवा किसी भी तरह की मिट्टी वाले खेत में उपजाया जा सकता है। हालांकि किसान मित्रों को शलजम की बोवनी के दौरान इस बात का विशेष तौर पर ध्यान रखना होगा कि, खेत में जल भराव न होता हो एवं शलजम बोए जाने वाली भूमि पर जल निकासी का समुचित प्रबंध हो।

शलजम की किस्में :

कम समय में तैयार होने वाली शलजम की प्रजातियों में एल वन (L 1) किस्म भारत में सर्वाधिक रूप से उगाई जाती है। महज 45 से 60 दिनों के भीतर खेत में पूरी तरह तैयार हो जाने वाली यह सब्जी अल्प समय में कृषि आय हासिल करने का सर्वोत्कृष्ट उपाय है। इस किस्म की शलजम की जड़ें गोल और पूरी तरह सफेद, मुलायम होने के साथ ही स्वाद में कुरकुरी लगती हैं। अनुकूल परिस्थितियों में किसान प्रति एकड़ 105 क्विंटल शलजम की पैदावार से बढ़िया मुनाफा कमा सकता है। इसके अलावा पंजाब सफेद फोर (Punjab Safed 4) किस्म की शलजम का भी व्यापक बाजार है। जैसा कि इसके नाम से ही जाहिर है, खास तौैर पर पंजाब और हरियाणा में इस प्रजाति की शलजम की खेती किसान करते हैं।

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शलजम की अन्य किस्में :

शलजम की एल वन (L 1) एवं पंजाब सफेद फोर (Punjab Safed 4) किस्म की प्रचलित किस्मों के अलावा, भारत के अन्य राज्यों के किसान पूसा कंचन (Pusa Kanchan), पूसा स्वेति (Pusa Sweti), पूसा चंद्रिमा (Pusa Chandrima), पर्पल टॉप व्हाइट ग्लोब (Purple top white globe) आदि किस्म की शलजम भी खेतों में उगाते हैं।

गाजर की खेती (Carrot farming)

जमीन के भीतर की पनपने वाली एक और सब्जी है गाजर। अगस्त के महीने में गाजर (Carrot) की बोवनी कर किसान ठंड के महीने में बंपर कमाई कर सकते हैं। मूल तौर पर लाल और नारंगी रंग वाली गाजर की खेती भारत के किसान करते हैं। भारत के प्रसिद्ध गाजर के हलवे में प्रयुक्त होने वाली लाल रंग की गाजर की ठंड में जहां तगड़ी डिमांड रहती है, वहीं सलाद आदि में खाई जाने वाली नारंगी गाजर की साल भर मांग रहती है। गाजर का आचार आदि में प्रयोग होने से इसकी उपयोगिता भारतीय रसोई में किसी न किसी रूप मेें हमेशा बनी रहती है। अतः गाजर को किसान के लिए साल भर कमाई प्रदान करने वाला जरिया कहना गलत नहीं होगा। अगस्त का महीना गाजर की फसल की तैयारी के लिए सर्वाधिक आदर्श माना जाता है। हालांकि किसान को गाजर की बोवनी करते समय शलजम की ही तरह इस बात का खास ख्याल रखना होता है कि, गाजर की बोवनी की जाने वाली भूमि में जल भराव न होता हो एवं इस भूमि पर जल निकासी के पूरे इंतजाम हों।

फूल गोभी (Cauliflower) की तैयारी

सफेद फूल गोभी की खेती अब मौसम आधारित न होकर साल भर की जाने वाली खेती प्रकारों में शामिल हो गई है। आजकल किसान खेतों में साल भर फूल गोभी की खेती कर इसकी मांग के कारण भरपूर मुनाफा कमाते हैं। हालांकि ठंड के मौसम में पनपने वाली फूल गोभी का स्वाद ही कुछ अलग होता है। विंटर सीजन में कॉलीफ्लॉवर की डिमांड पीक पर होती है। अगस्त महीने में फूल गोभी के बीजों की बोवनी कर किसान ठंड के मौसम में तगड़ी कमाई सुनिश्चित कर सकते हैं। चाइनीज व्यंजनों से लेकर सूप, आचार, सब्जी का अहम हिस्सा बन चुकी गोभी की सब्जी में कमाई के अपार अवसर मौजूद हैं। बस जरूरत है उसे वक्त रहते इन अवसरों को भुनाने की।

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पर्ण आधारित फसलें

बारिश के मौसम में मैथी, पालक (Spinach) जैसी पर्ण साग-सब्जियों को खाना वर्जित है। जहरीले जीवों की मौजूदगी के कारण स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका के कारण वर्षाकाल में पर्ण आधारित सब्जियों को खाना मना किया गया है। बारिश में सड़ने के खतरे के कारण भी किसान पालक जैसी फसलों को उगाने से बचते हैं। हालांकि अगस्त का महीना पालक की तैयारी के लिए मददगार माना जाता है। लौह तत्व से भरपूर पालक (Paalak) को भारतीय थाली में सम्मानजनक स्थान हासिल है। पौष्टिक तत्वों से भरपूर हरी भरी पालक को सब्जी के अलावा जूस आदि में भरपूर उपयोग किया जाता है।

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सर्दी के मौसम में पालक के पकौड़े, पालक पनीर, पालक दाल आदि व्यंजन लगभग प्रत्येक भारतीय रसोई का हिस्सा होते हैं। अगस्त के महीने में पालक की तैयारी कर किसान मित्र ठंड के मौसम में अच्छी कृषि आय प्राप्त कर सकते हैं।

चौलाई (amaranth) में भलाई

चौलाई की भाजी की साग के भारतीय खासे दीवाने हैं। गरमी और ठंड के सीजन में चौलाई की भाजी बाजार मेें प्रचुरता से बिकती है। चौलाई की भाजी किसान किसी भी तरह की मिट्टी में उगा सकता है। अगस्त के महीने में सब्जियों की खेती की तैयारी कर ठंड के मौसम के लिए कृषि आय सुनिश्चित कर सकते हैं। तो किसान मित्र ऊपर वर्णित किस्मों विधियों से अगस्त के दौरान खेत में लगाएंगे गोभी, पालक और शलजम तो ठंड में होगी भरपूर कमाई, नहीं रहेगा किसी तरह का कोई गम।

बाजारी गुलाल को टक्कर देंगे हर्बल गुलाल, घर बैठे आसानी से करें तैयार

बाजारी गुलाल को टक्कर देंगे हर्बल गुलाल, घर बैठे आसानी से करें तैयार

होली के त्यौहार की रौनक बाजारों में दिखने लगी हैं. हर तरफ जश्न का मौहाल और खुशियों के रंग में डूब जाने की हर किसी की तैयारी है. तो ऐसे में बाजारी गुलाल रंग में भंग न डालें, इसलिये हर्बल गुलाल की डिमांड बाजार में सबसे ज्यादा देखने को मिल रही है. हालांकि पिछले साल की तरह इस साल भी होली के सीजन में हर्बल गुलाल तेजी से तैयार किये जा रहे  हैं. को पालक, लाल सब्जियों, हल्दी, फूलों और कई तरह की जड़ी बूटियों से तैयार किये जा रहे हैं. ये हर्बल गुलाल बाजारी गुलाल को मात देने के लिए काफी हैं. विहान यानि की राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की महिलाएं होली के त्यौहार को देखते हुए हर्ब गुलाल बनाने में जुट चुकी हैं. हर्बल गुलाल लगाने से स्किन में किसी तरह का कोई भी इन्फेक्शन या साइड इफेक्ट होने का डर नहीं होता. क्योनी ये गुलाल पूरी तरह से केमिकल फ्री होते हैं.

प्रदेश में बढ़ रही हर्बल गुलाल की डिमांड

अच्छे गुणों की वजह से हर्बल गुलाल की डिमांड पूरे प्रदेश के साथ साथ स्थानीय बाजारों में बढ़ रही है. जिसे देखते हुए विहान की महिलाओं को घर बैठे बैठे ही रोजगार मिल रहा है और अच्छी कमाई हो रही है. इसके अलावा महासमुंद के फ्राम पंचायत डोगरीपाली की जय माता दी स्वयं सहायता समूह की महिलाएं भी तैयारियों में जुट गयी हैं और हर्बल गुलाल बना रही गौब. समूह की सदस्यों की मानें तो पिछले साल की होली में लगभग 50 किलो तक हर्बल गुलाल के पैकेट तैयार किये थे. जिसकी डिमांड ज्यादा रही. महिलाओं ने बताया कि, हर्बल गुलाल के पैकेट 10 रुपये से लेकर 20 और 50 रुपये के हर्बल गुलाल के पैकेट बनाए गये थे. इस बार ज्यादा मात्रा में गर्ब्ल और गुलाल तैयार किया जा रहा है. बात इस हर्बल गुलाल की तैयारी की करें तो इसे पालक, लाल सब्जी, हल्दी, जड़ी-बूटी, फूल और पत्तियों को सुखाकर प्रोसेसिंग यूनिट में पीसकर तैयार किया जाता है. ये भी देखें: बागवानी के साथ-साथ फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाकर हर किसान कर सकता है अपनी कमाई दोगुनी

हरी पत्तियां भी होती हैं प्रोसेस

हरी पत्तियों में गुलाब, चुकंदर, अमरूद, आम और स्याही फूल की पत्तियों को प्रोसेस किया जाता है. करीब 150 रुपये तक का खर्च एक किलो गुलाल बनाने में आता है. सिंदूर के अलावा पालक और चुकंदर का इस्तेमाल गुलाल बनाने में किया जाता है. बाजार में हर्बल गुलाल की कीमत बेहद कम होती है. गर्ब्ल गुलाल बनाने से न सिर्फ महिलाओं को घर बोथे रोजगार मिल रहा है, बल्कि अच्छी कमाई भी हो रही है. जिले की ग्राम पंचायत मामा भाचा महिला स्व सहायता समूह की महिलाएं इस साल पालक, लाल सब्जी, फूलों और हल्दी से हर्बल गुलाल तैयार कर रही हैं. जिससे पीला, नारंगी, लाल और चंदन के कलर के गुलाल बनाए जा रहे हैं. जिसे स्व सहायता समूह की महिलाएं गौठान परिसर और दुकानों के जरिये बेच रही हैं. इतना ही नहीं समूह को हर्बल गुलाल के ऑर्डर भी मिलने लगे हैं. हर्बल गुलाल बनाने में हल्दी, इत्र, पाल्स का फूल समेत कई तरह की साग सब्जियों और खाने वाले चूने का इस्तेमाल किया जाता है.