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बंजर और शुष्क भूमि में खेती को मिलेगा बढ़ावा, टीएनएयू ने तैयार किये लाल चंदन

बंजर और शुष्क भूमि में खेती को मिलेगा बढ़ावा, टीएनएयू ने तैयार किये लाल चंदन

तमिलनाडु में खास कृषि बजट में बंजर और शुष्क भूमि में खेती को बढ़ावा देने के लिए जरूरी कदम उठाया है. दरअसल तमिलनाडु कृषि विश्विद्यालय यानि की टीएनएयू ने फारेस्ट कॉलेज एंड रिसर्च में सबसे ज्यादा फायदे देने वाले लाल चंदन के पौधे तैयार किये हैं. टीएनएयू (TNAU) के कुलपति के मुताबिक तमिलनाडु ने अपने वन क्षेत्र को बढ़ाने का लक्ष्य रखा है. जोकि 17 फीसद से बढ़ाकर करीब 30 फीसद तक किया जाएगा. जिसमें लाल चंदन को उगाया जाएगा. बता दें लाल चंदन उगाने से किसानों को काफी ज्यादा फायदा मिलेगा. क्योंकि बाजार में लाल चंदन की लकड़ी की बिक्री पर काफी अच्छा रिटर्न मिलता है. वहीं सरकार की तरफ से प्राइवेट जमीनों पर लाल चंदन के पेड़ उगाने के लिए लोगों को प्रेरित किया जा रहा है.

किसानों को मिलेगा अच्छा मुनाफा

जानकारी के मुताबिक एक बड़े
लाल चंदन के पेड़ की लकड़ी की कटाई करने के लिए 18 साल का इंतजार करना होता है. लेकिन इंतजार के बाद हर पेड़ से 1 क्विंटल तक की लकड़ी मिलती है. जिसकी वजह से किसानों को अच्छा खासा मुनाफा हो सकता है. एक एकड़ की जमीन में आप करीब तीन-तीन मीटर की दूरी पर करीब एक साथ 450 पेड़ उगा सकते हैं. आपको बता दें कि, लाल चंदन के पौधे में तने से लेकर जड़ों तक में एक खास तरह की इंजीनियरिंग प्रणाली शामिल की गयी है. इसकी मदद से ज्यादा उपज मिल सकेगी. इस लाल चंदन की खास किस्म को तेजी से बढ़ने वाले पौधों की प्रजातियों के लिए विकसित किया गया है. ये भी पढ़ें: आज लगाएं यह पौधा, बारह साल में बन जाएंगे करोड़पति लाला चंदन के इस पौधे को विकसित करने के पीछे कृषि भूमि से बेहद दुर्लभ, और संकट से घिरी पेड़ों की प्रजातियों की खेती को बढ़ावा देना है. साइंटिस्ट बताते है कि, अच्छे तरीके से किये गये पौधों का रोपण, ड्रिप से सिंचाई और अच्छे जड़ प्रबंधन के तरीकों से लाल चंदन के विकास को बढ़ावा मिल सकता है.
दिन दूना रात चौगुना उत्पादन, किसानों को नैनो तकनीक से मिल रहा फायदा

दिन दूना रात चौगुना उत्पादन, किसानों को नैनो तकनीक से मिल रहा फायदा

किसानों के लिए तमिलनाडू कृषि विश्वविद्यालय ने रिसर्च के बाद एक नया सॉल्यूशन विकसित किया है। इतना ही नहीं इस सॉल्यूशन से फल और सब्जियों को लंबे समय तक फ्रेश रखने में मदद मिलेगी। तमिलनाडू के कोयम्बटूर में तमिलनाडू कृषि विश्वविद्यालय जो कि अब सौ साल पुराना हो चुका है। उसके परिसर में नैनो विज्ञान और प्रोद्योगिकी विभाग देश में खेती की अच्छी गुणवत्ता और उत्पादन बढ़ाने के लिए नैनो सॉल्यूशन पर काम जारी है। बताया जा रहा है कि, इसमें खेती के काफी सारे इनपुट का इस्तेमाल किया जा रहा है। जिसमें उर्वरक, कीटनाशक, खरपतवार और कवक नासी जैसी चीजें शामिल हैं। हालांकि सिर्फ 20 से 30 फीसद ही फसलें इनका इस्तेमाल करती हैं। जिसका बाकी का बचा हुआ हिस्सा मिट्टी के अवशेषों के रूप में रह जाता है। जा फिर जमीन में मिल जाता है।

अनुसंधान के निदेशक ने की स्थापना

अनुसंधान के निदेशक केएस सुब्रमण्यन भारत के सबसे अग्रिणी लोगों में शामिल हैं। सुब्रमण्यन के पास नैनो प्रोद्योगिकी कृषि सहायता के सेक्टर में सालों का अनुभव है। साल 2017 में NABARD ने TNAU में नैनो साइंस और प्रौधोगिकी विभाग में बर्ड प्रोफेसर चेयर को स्थापित किया। साल 2017 से साल 2020 में करीब एक करोड़ रुपये की आर्थिक मदद के साथ सुब्रमण्यम को लगभग तीन सालों के लिए इसकी जिम्मेदारी सौंप दी गयी। इसके आलवा TANU नव प्रदूषण को कम करने के अलावा, फसलों की अच्छी उपज और अच्छे उत्पादन के साथ साथ फलों और सब्जियों को लंबे समय तक तरो ताजा बनाने के लिए नैनी प्रौद्योगिकी क्षेत्र में रिसर्च और विकास किया। जानकारी के लिया बतादें कि, कृषि इनपुट की क्षमता में सुधार करने के लिए नैनो प्रौद्योगिकी सहायता करती है। इसके लिए उत्पादों का इस्तेमाल प्रभावी लागत के साथ सटीक और सही मात्रा और लेवल तक किया जा सकता है।

नैनो उत्पाद सरकारी खजाने में लाएगा बचत

देश में लगभग एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की कीमत के उर्वरकों का आयात किया जाता है। साथ ही, नैनो उत्पादन सरकार खजाने में काफी बचत भी करने में मददगार हो सकता है। सुब्रमण्नयम के मुताबिक यूरिया की 5 सौ मिलीलीटर की बोतल युरिया के 50 किलो बैग के बराबर होती है। वहीं, 5 सौ एमएल यूरिया की कीमत लगभग दो सौ से ढ़ाई सौ के बीच में है। जो कि एक एकड़ जमीन के लिए काफी होती है। ये भी पढ़ें: नैनो डीएपी के व्यवसायिक प्रयोग को मंजूरी, जल्द मिलेगा लाभ

नैनो सॉल्यूशन से होगी फलों और सब्जियों की सुरक्षा

नैनो उत्पाद का इस्तेमाल करने से कई तरह के लाभ मिल सकते हैं। देश में हर साल करीब 330 मिलियन टन फलों और सब्जियों का उत्पादन किया जाता है। जो कि पूरी दुनिया में दूसरे नंबर पर है। लेकिन हर तीन में से एक फल यानि की लगभग 35 फीसद फल और सब्जी खराब हो जाते हैं। TNAU परियोजना के तहत फलों को संरक्षित करने और उन्हें लंबे समय तक ताजा बनाए रखने और कचरे को कम करने के लिए नैनो उत्पादों की एक सीरीज तैयार की गयी है। हालांकि, तमिलनाडू में आम और केले की खेती के लिए इस प्रयोग को किया जा रहा है। इसके पीछे सिर्फ एक ही सोच है, और वो ये है कि, नुकसान का 10 फीसद कम किया जा सकता है। इससे देश के हिस्से बड़ी बचत आ सकती है।

किसानों को हो रहा फायदा

5 हजार से ज्यादा किसानों ने आम और केले की खेती के लिए इस फार्मुलेशन का इस्तेमाल किया है। इससे उन्हें काफी फायदा भी हुआ है। यह किसान कृष्णागिरी, थेनी, डिंडीगुल और कन्याकुमारी जिले के थे। वहीं 80 फीसद किसानों के अनुसार उपज में काफी हद तक बीमारी में कमी हुई है और इससे उन्हें अच्छा मुनाफा हुआ है।

बीजों के लिए आ गया नैनो समाधान

नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग प्रसंस्करण की लैब में बीजों की परत चढ़ाई जाती है। जिसमें कपास, मूंग, धान और भिंडी के बीजों में सूक्ष्म नैनो फाइबर लगाया जाता है। जिसमें सभी तरह के पोषण, कीटों से सुरक्षण के साथ साथ विकास भी शामिल है। इसके लिए पहले से ही बीजों को तैयार कर लिया जाता है। जो किसानों के लिए मददगार होते हैं। जिसके बाद उनके उपचार से लेकर कीटनाशकों से जुड़ी टेंशन नहीं लेनी पड़ती।

TNAU में विकसित उत्पादों में से एक नैनो यूरिया

नैनो यूरिया का इस्तेमाल तमिलनाडु के बवानी सागर एरिया में करीब दस एकड़ चावल और मक्के पर किया जा चुका है। जोकि काफी सफल रहता है। साथ ही इसकी उपज में 10 से 15 फीसद तक बढ़ोतरी हुई है। जिसे देखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने देश के 11 हजार जगहों पर परीक्षण किया। जिसमें से कुल 650 कृषि विज्ञान केन्द्रों के जरिये नैनो यूरिया को बांटा गया। साल 2022 में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के पहले नैनो यूरिया लिक्विड सयंत्र का उद्घाटन किया था। जो उत्पादकता को बढ़ाने के साथ-साथ किसानों की इनकम को बढ़ाने में भी मददगार साबित हुआ था। इसे साइंटिफिक रूप से मान्य और जैव सुरक्षा परीक्षण किया गया। जहां साल 2021 में उर्वरकों को कंट्रोल आदेश के द्वारा देश में पहले नैनो उर्वरक की अधिसूचना में मदद मिली।

नैनो तकनीक को किया सूचीबद्ध

किसानों के लिए सबसे चैलेंजिंग काम फसलों की बिमारियों का पता लगाने के साथ-साथ मिट्टी में नाइट्रोजन और नमी का लेवल नापने और इस बात को सुनिश्चित करने के लिए उत्पादन किसी तरह का हानिकारक है या नहीं। किसानों द्वारा इन सब चीजों का पता नैनो तकनीक के माध्यम से किया जा रहा है। हाल ही में नैनो उपकरणों को किसानों से जोड़ने का काम किया जा रहा है। इससे किसानों को उनकी फसलों में अगर कोई कमी मिलती है, तो उन्हें मैसेज के जरिये कांटेक्ट किया जा सकता है।

चुनौतियों को समझना भी मुश्किल

नैनो तकनीक में कई तरह की सम्भावनाएं हैं। लेकिन इसका सही इस्तेमाल करने के लिए काफी चुनौतियों को पार करना होगा। इसमें सबसे बड़ी चुनौती की बात की जाए तो, इसके विकास को जारी रखने के लिए आर्थिक चुनौती में मदद की थी। इसके अलावा प्रयोगकर्ता और किसानों से लेकर नीति निर्माताओं और लोगों के बीच प्रयोगशालाओं में क्या हो रहा है, इससे जुड़ी जागरूकता होनी भी जरूरी है। ताकि अनुसंधान और विकास को फायदा मिल सके।