किसानों का वरदान बन रही बेकार जलकुंभी

By: MeriKheti
Published on: 20-Dec-2019

जलकुंभी जलीय पौधा आपको गंदे पानी, तालाब और नालों आदि में हर जगह दिख जाएगा। नहरी तंत्र के लिए तो यह बेहद सरदर्दी का कारण बन रहा है लेकिन इसकी उपयोगिता अब किसान ही सिद्ध करने लगे हैं। अब इसका प्रयोग हरे चारे की गैर मौजूदगी के समय पशुओं के लिए किया जाने लगा है। यह पौधा सड़ाकर खाद बनाने के लिहाज से भी बेहद अच्छा है। प्रारंभ में इसे लोग समस्या के रूप में देखते थे लेकिन आज यह पशुओं के लिए हरे चारे के अलावा खेती के लिए खाद के रूप में इस्तेमाल हो रहा है। नहरों में पानी के बाहव के लिए जलकुंभी दिक्कत पैदा करती है लेकिन यह भी बड़े काम की होती है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा के सेवानिवृत्त निदेशक प्रसार डा. जेपी शर्मा की मानें तो यह बगैर किसी पोषण के बड़ी तेजी से बढ़ती है। जलकुंभी किसी तालाब से वाष्पीकृत होने वाले पानी की कुल मात्रा से करीब पांच गुना ज्यादा पानी का अवशोषण करती है। गाय, सूअर, बतख, मुर्गी और मछलियों को पसंदीदा भोजन की पूर्ति इसी से होती है। पानी की कमी वाले कई देशों में जलकुंभी के ऊपर टमाटर की फसल की जाती है। दक्षिण अफ्रीका के कई देशों में जलकुम्भी के ऊपर मशरूम उगाया जाता है। कागज, खाद, रस्सी बनाने के साथ इसका इस्तेमाल बायोगैस ईंधन बनाने के लिए भी होता है।

   

 अभी तक इस पौधे की देश में बेकदरी कम नहीं हुई है लेकिन पशुओं के लिए महंगे भूसे और हरे चारे के संकट के चलते कई ग्रामीण इलाकों में महिलाएं इसे हरे चारे के रूप में इस्तेमाल करने लगी हैं। कई तालाबों की बहुतायत वाले राज्यों में जलकुंभी से खाद बनाई जाने लगी है। खाद का उपयोग खेती और मछलियों दोनों के लिए किया जाता है।

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हर तरफ जैविक खाद के शोर के चलते लोगों ने तालाबों में बेकार पड़ी रहने वाली जलकुंभी का उपयोग हरी खाद बनाने के लिया करना शुरू कर दिया है। इसे खेतों में सीधे जोतकर,गला देने से खाद बन जाती है। इसमें नाइट्रोजन एवं फास्फोरस प्रचुर मात्रा में होता है। इसकी खाद डालने से मिट्टी में हवा और पानी सोखने की क्षमता में काफी इजाफा होता है। जलकुंभी की जैविक खाद तैयार करने में लागत बेहद कम आती है,जबकि वर्मी कम्पोस्ट, गोबर की खाद आदि में लागत काफी ज्यादा आती है।

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