उत्तर प्रदेश में सरकारी फार्म को निजी हाथों में सौंपने का खेल - Meri Kheti

उत्तर प्रदेश में सरकारी फार्म को निजी हाथों में सौंपने का खेल

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-1496 एकड़ में फैला है वेटरनरी विश्वविद्यालय मथुरा का माधुरीकुण्ड फार्म
-650 एकड़ उपजाऊ जमीन पर खेती करना चाहता है ट्रस्ट
-49 करोड़ 3 साल में खर्च करेगा, भेजी डीपीआर

मथुरा। पंडित दीनदयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय एवं गौ अनुसंधान संस्थान के माधुरी कुंड कृषि फार्म (Madhuri kund Farm) को जेके ट्रस्ट मुंबई लेना चाहता है। अपर मुख्य सचिव पशुधन, देवेश चतुर्वेदी को फाउंडेशन ने करीब 650 एकड़ जमीन पर निजी संसाधनों से खेती का प्रस्ताव दिया है। 3 साल की डीपीआर में फाउंडेशन करीब 49 करोड़ खर्च कर चारा व बीज उत्पादन, साइलेज व हे मेकिंग जैसे पशु कल्याण के कार्य सरकार की निगरानी में करेगा। सरकार एवं विश्वविद्यालय से बगैर ₹1 लिए वह चारे की आपूर्ति शासन के आदेशों के अनुरूप करेगा। उत्पादित हरा चारा गौ आश्रय सदनों को भी भेजा जाएगा।

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विदित हो कि माधुरी कुंड कृषि फार्म 1496 एकड़ में फैला है, लेकिन यहां सैकड़ों एकड़ में वन क्षेत्र विकसित किया जा चुका है। चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय कानपुर द्वारा संचालित होने तक यह फार्म गुलजार रहा। वेटरनरी विश्वविद्यालय मथुरा में कृषि विशेषज्ञ ना होने के कारण फार्म का संचालन धीरे-धीरे प्रभावित होता गया। वर्तमान में यहां ठेके पर जुताई बुवाई का काम कराया जा रहा है। खेती का क्षेत्रफल व उत्पादन दोनों बीते 4 वर्षों में बेहद कम हो गए हैं।

फार्म की बदहाली व संचालन में असमर्थता को लेकर शासन काफी समय से चिंतित है। इसी क्रम में जेके ट्रस्ट मुंबई ने फार्म को 3 साल के लिए खेती के लिए सरकार से मांगा है। फाउंडेशन 650 एकड़ उपजाऊ जमीन पर सरकार के दिशानिर्देशों के अनुरूप चारा, बीज उत्पादन जैसे अनेक कार्य करना चाहता है। इससे पूर्व फार्म की लेवलिंग, सिंचाई के संसाधनों का विकास जैसे सभी कार्य वह अपने खर्चे से ही करेगा। निजी संसाधनों से सरकार की शर्तों के अनुरूप खेती करने का 3 साल का यह प्रयोग मूर्त रूप लेता है, और सफल होता है तो बड़े-बड़े सरकारी फॉर्मो को चलाने में आसानी होगी।

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शासन ने फाउंडेशन की डीपीआर विश्वविद्यालय को करीब 1 माह पूर्व भेजी है। फाउंडेशन को 1496 एकड़ में से खेती के लिए कौन सी जमीन देनी है, इसका निर्धारण विश्वविद्यालय को करना है। इस मामले में अभी तक विश्वविद्यालय की हाई पावर कमेटी कोई निर्णय नहीं कर सकी है। विश्वविद्यालय द्वारा इस निर्णय को रवी की दशा में शासन कृषि विशेषज्ञों के पैनल के माध्यम से भी जमीन का चिन्हांकन करा सकता है। यह भी संभव है कि फाउंडेशन का अकेला प्रस्ताव आया है, अन्य एनजीओ भी इस दिशा में आगे आते हुए अपनी रूचि दिखाएं। विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर ए के श्रीवास्तव से इस संबंध में बात करनी चाहिए, लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी।

सूत्रों की माने तो शासन इसे सीएसए यूनिवर्सिटी कानपुर जैसे किसी विश्वविद्यालय के जरिए भी संचालित करा सकता है, लेकिन ऐसा होगा नहीं। कोई भी सरकारी संस्थान इतने बड़े फार्म को चलाने के लिए सरकार से बजट की मांग करेगा और सरकार बजट देने को तैयार नहीं होगी। शासन फार्म को ट्रस्ट को सौंपने का मन बना चुका है।

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