मशीन को तौबा तो मजदूर को मिले काम

By: MeriKheti
Published on: 03-Apr-2020

हरियाणा,पंजाब,उत्तर प्रदेश सहित गेहूं उत्पादक राज्यों में कंबाइन हार्वेस्टर से गेहूं की कटाई की जा रही है। इसके चलते मजदूर काम के लिए मारे मारे फिर रहे हैं। लॉकडाउन के चलते घरों में कैद लोग अब अकुलाने लगे हैं। उन्हें परिवार के भरण पोषण के लिए गेहूं की कटाई ही रोजगार तथा समय बिताने का जरिया नजर आ रहा है लेकिन मशीनों ने उनके इस काम पर भी डाका डाल दिया है। 

इधर मंडी में तेज आवक शुरू होने, बाजार में गिरावट के दौर के चलते कारोबारियों ने गेहूं की कीमतें बेहद गिरा दी है। चार दिन पूर्व 2300 रुपए प्रति कुतल बिक रहा गेहूं गुरूवार को 1700 या उससे भी नीचे आ गया है। महात्मागांधी ने मशीनीकरण का यूंही विरोध नहीं किया था।आज मशीनीकरण ने आदमी को बेकाम कर दिया है। लॉकडाउन के हालात में मजदूरों को काम नहीं मिल रहा है।

वह सोच रहे हैं की यदि किसान अपने गहूं ही कटवा लें तो उन्हें परिवार के खाने भर का अनाज मिल जाए लेकिन यह भी आसान नहीं है। मशीन की कटाई और मजदूरों की कटाई के रेट में जमीन आसमान का अंतर है। मशीन 1000 में एक बीघा खेत काट देती है वहीं मजदरों पर तीन से चार हजार रुपया खर्चना पड़ता है।

 मजदूरों से कटाई के बाद निकालने पर अतिरिक्त पैसा खर्चना होता है। कंबाइन से कटा गेहूं सीधा  मण्डी या भण्डारण के लिए पहुंच जाता है। इसके अलावा जब तक फसल खेत से आ न जाए रिस्क बना रहता है। संकट का दौर है थोड़ा मंहगा ही सही यदि मजूदरों को काम दिया जाए तो उनके परिवार भी पल सकते हैं।

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