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लोहड़ी का त्यौहार कब, कैसे और किस वजह से मनाया जाता है

लोहड़ी का त्यौहार कब, कैसे और किस वजह से मनाया जाता है

लोहड़ी का त्यौहार मुख्य रूप से पंजाब व हरियाणा में बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है। लोहरी भारत के उत्तर प्रान्त में ज्यादा जोर-शोर से मनायी जाती है। लोहड़ी के समय सम्पूर्ण भारत में पतंगे उड़ती दिखाई नजर आती हैं। सम्पूर्ण देशवासी अपनी-अपनी भावनाओं और मान्यताओं के अनुरूप इस त्यौहार को खुशी से मनाते हैं।

लोहड़ी त्यौहार का मुख्य ध्येय क्या होता है

आमतौर पर त्यौहार प्राकृतिक बदलाव के अनुरूप मनाये जाते हैं। लोहड़ी भी कुछ इसी तरह का त्यौहार है। क्योंकि
लोहड़ी वाले दिन साल की आखिरी सर्वाधिक रात्रि होती है। इस रात्रि के बाद आगामी दिनों में दिन बढ़वार आने लगती है। इसी दौरान किसानों की फसल तैयार होकर लहलहाटी है। किसानों के लिए यह भी बड़ी खुशी की बात होती है। साथ ही, मौसम भी बेहद अच्छा होता है। इस त्यौहार को परिजन एवं मित्र सब हिल-मिलकर बड़ी खुशी के साथ मनाते हैं। इस त्यौहार को एक साथ प्रशन्नता से मनाने से सौहार्द, प्रेम और भाईचारा बढ़ता है। जो कि लोहड़ी त्यौहार का का मुख्य ध्येय है। साथ ही, अग्नि एवं सूर्य देव को भोग लगाकर आगामी फसल अच्छी होने की अरदास भी की जाती है।

लोहड़ी कब मनाई जाती है

लोहड़ी के त्यौहार को जनवरी माह 13 तारीख की शाम से मकर संक्राति की सुबह होने तक बड़े हर्षोल्लास एवं खुशी से मनाते हैं। लोहरी हर साल मनाये जाने वाला त्यौहार है। लोहड़ी को पंजाबी लोग बेहद धूम धाम से मनाते हैं। भारत त्यौहारों के मामले में विश्वभर में अपनी अलग पहचान रखता है। देश के प्रत्येक प्रान्त में अपनी अपनी मान्यताओं से लोग एक साथ मिलकर त्यौहार मनाते हैं। लोहड़ी त्यौहार की चहल पहल काफी दिन पूर्व से आरंभ हो जाती है।

लोहड़ी के त्यौहार के पीछे ऐतिहासिक और पौराणिक दोनों ही महत्त्व हैं

अगर हम लोहड़ी के पौराणिक महत्त्व के बारे में जानें तो इस त्यौहार को सती के त्याग व बलिदान को हर साल याद करके मनाया जाता है। कथा के अनुरूप जिस समय प्रजापति दक्ष ने भगवान शिव का तिरस्कार अपनी पुत्री सती की उपस्थित में भरी सभा में किया था। साथ ही, भगवान शिव को यज्ञ में शम्मिलित करने हेतु कोई निमंत्रण नहीं दिया गया तब माता सती जी स्वयं अग्नि में समर्पित हो गई थीं। उस दिन को एक पश्चाताप के तौर पर हर साल लोहड़ी पर मनाते हैं। इस वजह से घर की विवाहित पुत्री को लोहड़ी के दिन उपहार प्रदान किए जाते हैं। बेटियों को घर पर भोजन करने के लिए सादर आमंत्रित करके उनका आदर किया जाता है। इस दिन हर्षोल्लास के साथ विवाहित महिलाओं को श्रृंगार की सामग्री वितरित की जाती है।
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लोहड़ी त्यौहार के ऐतिहासिक महत्त्व के बारे में जानें तो इसे दुल्ला भट्टी नामक पंजाबी सरदार की वजह से भी मनाया जाता है। यह बात तब की है जब अकबर का शासनकाल था। उस समय पंजाब प्रान्त के सरदार थे, दुल्ला भट्टी। उनकी छवि पंजाब के नायक के रूप में मानी जाती थी। उस समय संदलबार नाम का एक स्थान था, जो कि फिलहाल पाकिस्तान में आता है। वहाँ लड़कियों की खरीद फरोख्त की जाती थी। जिसका दुल्ला भट्टी ने विरोध किया और इस बात के बिल्कुल खिलाफ थे। दुल्ला भट्टी जी ने वहाँ की लड़कियों व महिलाओं का आदरपूर्वक इस दुष्कर्म से संरक्षण किया। केवल इतना ही नहीं उन लड़कियों का विवाह कराकर उनको एक सम्मानपूर्वक जीवन प्रदान किया। दुल्ला भट्टी की इस जीत के दिन को लोहड़ी के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। दुल्ला भट्टी जी को याद किया जाता है। लोहड़ी त्यौहार को मनाने के दौरान यह बात गीतों में भी गायी जाती है।.

लोहड़ी का त्यौहार किस तरह से मनाया जाता है

लोहड़ी का त्यौहार विशेषरूप से पंजाबियों द्वारा नाच, गाकर और ढोल बजाकर बड़ी ही खुशी और उत्साह के साथ मनाया जाता है। लोहड़ी आने से पन्द्रह दिन पूर्व से ही नौजवान और बच्चे हर घर में जाकर लोहड़ी के गीत गाने लग जाते हैं। लोहड़ी के दिन गीतों में वीर शहीदों को याद करते हैं, दुल्ला भट्टी जी का नाम उनमें से एक मुख्य नाम है। हमारे भारत देश में प्रत्येक त्यौहार का एक मुख्य व्यंजन या भोजन होता है। उसी प्रकार लोहड़ी के त्यौहार में रेवड़ी, मुंगफली, गजक इत्यादि का सेवन किया जाता है। पकवान भी इन्ही से तैयार किए जाते हैं। लोहड़ी में मुख्यतयः सरसों का साग व मक्के की रोटी बनती हैं जिसको बड़े ही प्रेम से लोग खाते हैं और अपने निज जनों को भी खिलाते हैं।
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लोहड़ी के त्यौहार पर अलाव का क्या महत्त्व होता है

लोहड़ी का त्यौहार आने से काफी समय पूर्व लकड़ी एकत्रित की जाती हैं। जिसको गाँव या नगर के मध्य में किसी बढ़िया सी जगह पर जमाया जाता है। लोहरी वाली रात्रि में अपने परिवारीजन एवं मित्रगणों के साथ प्रेमपूर्वक अलाव के आस पास बैठ जाते हैं। इस दौरान बहुत से खेल कूद, गीत गायन बिना किसी शिकवा शिकायत के एक दूसरे के साथ हिल मिलकर किये जाते हैं। उसके बाद अलाव की परिक्रमा लगाई जाती है एवं अपने निज जनों की उन्नति एवं अच्छे स्वास्थ्य हेतु प्रार्थना की जाती है। रात्रि में इस अलाव के पास बैठ कर लोग गन्ने गजक रेबड़ी इत्यादि खाते हैं।
लोहड़ी का त्यौहार क्यों, कब और कैसे मनाया जाता ? इसका किसानों से क्या संबंध है?

लोहड़ी का त्यौहार क्यों, कब और कैसे मनाया जाता ? इसका किसानों से क्या संबंध है?

लोहड़ी के त्यौहार का प्रमुख आकर्षण रात में जलाई जाने वाली आग है, जिसको लोहड़ी कहा जाता है। लोहड़ी में जलने वाली आग अग्निदेव का प्रतिनिधित्व करती है। बतादें, कि इस दिन रात के दौरान एक जगह पर आग जलाई जाती है। समस्त लोग इस अग्नि के चारों तरफ एकत्रित हो जाते हैं।

उत्तर भारत में लोहड़ी को एक खुशी के त्यौहार के तोर पर मनाया जाता है। यह त्यौहार मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व मनाया जाता है। यह त्यौहार विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा में हिंदू और सिख समुदायों द्वारा मनाया जाता है। लोहड़ी का त्यौहार किसानों के लिए विशेष महत्व रखता है। इस समय खेतों में फसलें लहलहाने लगती हैं। लोहड़ी का त्यौहार मनाने के लिए रात के समय लकड़ी का घेरा बनाकर आग जलाई जाती है, जिसे लोहड़ी कहा जाता है। यह अग्नि पवित्रता और शुभता का प्रतीक है। इस अग्नि में मूंगफली, रेवड़ी, गजक, तिल और गुड़ आदि चढ़ाए जाते हैं। 

लोहड़ी के त्यौहार की मान्यता के बारें में जानकारी ?

लोहड़ी शब्द 'तिलोहारी' यानी 'तिल' यानी तिल और 'रोराही' यानी गुड़ से बना है। इसीलिए इसे लोहड़ी कहा जाता है। यह त्यौहार प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का भाव व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन अग्नि देवता को गुड़, गजक, तिल जैसी खाद्य सामग्री अर्पित की जाती हैं। लोहड़ी मुख्य रूप से उत्तरी भारत में कृषक समुदाय द्वारा मनाई जाती है, जिसमें वे अपनी कटी हुई फसलें अग्नि देवता को अर्पित करते हैं। लोहड़ी फसल के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है। यह दिन नव वर्ष की शुरुआत का भी प्रतीक है। इसके अतिरिक्त लोहड़ी सर्दी के मौसम के अंत का प्रतीक है और उस दिन सर्दी अपने चरम पर होती है और उसके बाद सर्दी धीरे-धीरे कम होने लगती है। इस प्रकार, लोहड़ी की रात पारंपरिक रूप से वर्ष की सबसे लंबी रात मानी जाती है, जिसे शीतकालीन संक्रांति के रूप में जाना जाता है।

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लोहड़ी के त्यौहार पर आग जलाने की परंपरा

लोहड़ी के त्यौहार का विशेष आकर्षण रात में जलाई जाने वाली आग है, जिसको लोहड़ी कहा जाता है। लोहड़ी में जलने वाली अग्नि अग्निदेव का प्रतिनिधित्व करती है। इस दिन रात के दौरान एक जगह पर आग जलाई जाती है। समस्त लोग इस अग्नि के चारों तरफ एकत्रित हो जाते हैं। सभी लोग एक साथ मिलकर अग्निदेव को तिल, गुड़ इत्यादि से निर्मित मिठाइयाँ अर्पित करते हैं। लोककथाओं के मुताबिक, लोहड़ी पर जलाए गए अलाव की लपटें फसलों के विकास में सहयोग करने के लिए लोगों के संदेश और सूर्य भगवान से प्रार्थना करती हैं। इसके बदले में सूर्य देव भूमि को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। लोहड़ी के अगले दिन को मकर संक्रांति के तौर पर मनाया जाता है।

लोहड़ी के त्यौहार से दुल्ला भट्टी का क्या संबंध है ?

लोहड़ी के दिन लोग आग जलाकर उसके चारों तरफ नृत्य करते हैं। साथ ही, घर के बड़े-बुज़ुर्ग एक घेरा बनाकर सभी को दुल्ला भट्टी की कहानी सुनाते हैं। ऐसा कहा जाता है, कि मुगल काल में अकबर के समय में दुल्ला भट्टी नाम का एक व्यक्ति पंजाब में रहता था। उस समय कुछ अमीर व्यापारी सामान के बदले शहर की लड़कियों को बेच देते थे, तब दुल्ला भट्टी ने उन लड़कियों को बचाया और उनकी शादी करवाई। तभी से हर साल लोहड़ी के त्योहार पर उनकी याद में दुल्ला भट्टी की कहानी सुनाने की परंपरा चली आ रही है।