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ज्वार की बुवाई, भूमि तैयारी व उन्नत किस्मों की जानकारी

ज्वार की बुवाई, भूमि तैयारी व उन्नत किस्मों की जानकारी

भारत के अंदर ज्वार की खेती आदि काल से होती आ रही है। भारत में ज्वार की खेती मोटे दाने वाली अनाज फसल और हरे चारे के रूप में की जाती है। 

पशुओं के चारे के तोर पर ज्वार के सभी भागों का उपयोग किया जाता है। यह एक तरह की जंगली घास है, जिसकी बाली के दाने मोटे अनाजों में शुमार किए जाते हैं। ज्वार (संस्कृत रूयवनाल, यवाकार या जूर्ण) एक प्रमुख फसल है। 

ज्वार की पैदावार कम बारिश वाले इलाकों में अनाज और चारा दोनों के लिए बोई जाती हैं। ज्वार जानवरों का एक विशेष महत्वपूर्ण एवं पौष्टिक चारा है। 

भारत में यह फसल का उत्पादन करीब सवा चार करोड़ एकड़ जमीन में किया जाता है। ज्वार भी बहुत तरह की होती है, जिनके पौधों में कोई खास भेद नजर नहीं पड़ता है। ज्वार की फसल दो तरह की होती है, एक रबी, दूसरी खरीफ। 

मक्का भी इसी का एक प्रकार है। इसलिए कहीं-कहीं मक्का भी ज्वार ही कहलाता है। ज्वार को जोन्हरी, जुंडी आदि नामों से भी जानते हैं। ज्वार की खेती सिंचित और असिंचित दोनों इलाकों पर आसानी से की जा सकती है। 

अगर हम अपने भारत की बात करें, तो ज्वार की खेती खरीफ की फसलों के साथ की जाती है। ज्वार के पौधे 10 से 12 फिट की लंबाई तक के हो सकते हैं। इनको हरे रूप में कई बार काटा जा सकता है। 

इसके पौधे को किसी खास तापमान की आवश्यकता नही होती। अधिकांश किसान भाई इसकी खेती हरे चारे के तोर पर ही करते हैं। परंतु, कुछ किसान भाई इसे व्यापारिक रूप से भी उगाते हैं। 

अगर आप भी ज्वार की व्यवसायिक खेती करने का मन बना रहे हैं। हम आपको इसकी बुवाई, भूमि तैयारी व उन्नत किस्मों से जुड़ी जरूरी जानकारी प्रदान करेंगे।

अच्छी उपज के लिए ज्वार की बुवाई कब करें ?

भारत के अंदर ज्वार की खेती खरीफ की फसलों के साथ की जाती है। अब ऐसे में ज्वार के बीज की रोपाई अप्रैल से मई माह के अंत तक की जानी चाहिए। भारत में ज्वार को सिंचाई करके वर्षा से पहले एवं वर्षा शुरू होते ही इसकी बोवाई की जाती है। 

अगर किसान बरसात से पहले सिंचाई करके यह बो दी जाए, तो फसल और अधिक तेजी से तैयार हो जाती है। ज्वार के बीजों को अंकुरण के समय सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है। 

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उसके बाद पौधों को विकास करने के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान उपयुक्त होता है। परंतु, इसके पूरी तरह से विकसित पौधे 45 डिग्री तापमान पर भी सहजता से विकास कर लेते हैं।

ज्वार की खेती के लिए कौन-सी मिट्टी सबसे अच्छी है ?

ज्वार एक खरीफ की मोटे आनाज वाली गर्मी की फसल है। यह फसल 45 डिग्री के तापमान को झेलकर बड़ी आसानी से विकास कर सकती है। वैसे तो ज्वार की फसल को किसी भी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है। 

लेकिन, अधिक मात्रा में उपज प्राप्त करने के लिए इसकी खेती उचित जल निकासी वाली चिकनी मृदा में करें। इसकी खेती के लिए जमीन का पीएच मान 5 से 7 के बीच होना चाहिए। 

इसकी खेती खरीफ की फसल के साथ की जाती है। उस समय गर्मी का मौसम होता है, गर्मियों के मौसम में बेहतर ढ़ंग से सिंचाई कर शानदार उपज हांसिल की जा सकती है।

बेहतर उपज के लिए ज्वार की उन्नत किस्में 

आज के समय में ज्वार की महत्ता और खाद्यान्न की बढती हुई मांग को मद्देनजर रखते हुए कृषि वैज्ञानिकों ने ज्वार की ज्यादा पैदावार और बार-बार कटाई के लिए नवीनतम संकर और संकुल प्रजातियों को विकसित किया है। ज्वार की नवीन किस्में तुलनात्मक बौनी हैं एवं उनमें अधिक उपज देने की क्षमता है। 

अनुमोदित दाने के लिए ज्वार की उन्नतशील किस्में सी एस एच 5, एस पी वी 96 (आर जे 96), एस एस जी 59 -3, एम पी चरी राजस्थान चरी 1, राजस्थान चरी 2, पूसा चरी 23, सी.एस.एच 16, सी.एस.बी. 13, पी.सी.एच. 106 आदि ज्वार उन्नत किस्में है। इन किस्मों की खेती हरे चारे और दाने के लिए की जाती है। 

ज्वार की यह किस्में 100 से 120 दिन के समयांतराल में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इन किस्में से किसानों को 500 से 800 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के अनुरूप पशुओं के लिए हरा चारा हो जाता है। 

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90 से 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सूखा चारा प्राप्त हो जाता है। साथ ही, 15 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से दाने हांसिल हो सकते हैं।

ज्वार की बुवाई के लिए खेत की तैयारी 

ज्वार की खेती के लिए शुरुआत में खेत की दो से तीन गहरी जुताई कर उसमें 10 से 12 टन उचित मात्रा में गोबर की खाद डाल दें। उसके बाद फिर से खेत की जुताई कर खाद को मिट्टी में मिला दें। 

खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पानी चलाकर खेत का पलेव कर दे। पलेव के तीन से चार दिन बाद जब खेत सूखने लगे तब रोटावेटर चलाकर खेत की मिट्टी को भुरभुरा बना लें। 

उसके बाद खेत में पाटा चलाकर उसे समतल बना लें। ज्वार के खेत में जैविक खाद के अलावा रासायनिक खाद के तौर पर एक बोरा डी.ए.पी. की उचित मात्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में दें। 

ज्वार की खेती हरे चारे के रूप में करने पर ज्वार के पौधों की हर कटाई के बाद 20 से 25 किलो यूरिया प्रति हेक्टेयर के हिसाब से समय समय पर खेत में देते रहें।

अरंडी की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

अरंडी की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

किसान भाइयों, अरंडी एक औषधीय वानस्पतिक तेल का उत्पादन करने वाली खरीफ की मुख्य व्यावसायिक फसल है। कम लागत में होने वाली अरंडी के तेल का व्यावसायिक महत्व होने के कारण इसको नकदी फसल भी कहा जा सकता है। किसान भाइयों अरंडी की फसल का आपको दोहरा लाभ मिल सकता है। इसकी फसल से पहले आप तेल निकाल कर बेच सकते हैं। उसके बाद बची हुई खली से खाद बना सकते हैं। इस तरह से आप अरंडी के खेती करके दोहरा लाभ कमा सकते हैं। आइये जानते हैं कि अरंडी की खेती कैसे की जाती है।

भूमि व जलवायु

अरंडी की फसल के लिए दोमट व बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है लेकिन इसकी फसल पीएच मान 5 से 6 वाली सभी प्रकार की मृदाओं में उगाई जा सकती है। अरंडी की फसल ऊसर व क्षारीय मृदा में नहीं की जा सकती। इसकी खेती के लिए खेत में जलनिकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिये अन्यथा फसल खराब हो सकती है।
अरंडी की खेती विभिन्न प्रकार की जलवायु में भी की जा सकती है। इसकी फसल के लिए 20 से 30 सेंटीग्रेट तापमान की आवश्यकता होती है। अरंडी के पौधे की बढ़वार और बीज पकने के समय उच्च तापमान की आवश्यकता होती है। अरंडी की खेती के लिए अधिक वर्षा यानी अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि इसकी जड़ें गहरी होतीं हैं और ये सूखा सहन करने में सक्षम होतीं हैं। पाला अरंडी की खेती के लिए नुकसानदायक होता है। इससे बचाना चाहिये।

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खेत की तैयारी कैसे करें

अरंडी के पौधे की जड़ें काफी गहराई तक जातीं हैं , इसलिये इसकी फसल के लिए गहरी जुताई करनी आवश्यक होती है। जो किसान भाई अरंडी की अच्छी फसल लेना चाहते हैं वे पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें। उसके बाद दो तीन जुताई कल्टीवेटर या हैरों से करें तथा पाटा लगाकर खेत को समतल बना लें। किसान भाइयों सबसे बेहतर तो यही होगा कि खेत में उपयुक्त नमी की अवस्था में जुताई करें। इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जायेगी और खरपतवार भी नष्ट हो जायेगा। इस तरह खेत को तैयार करके एक सप्ताह तक खुला छोड़ देना चाहिये। जिससे पूर्व फसल के कीट व रोग धूप में नष्ट हो सकते हैं ।

अरंडी की मुख्य उन्नत किस्में

अरंडी की मुख्य उन्नत किस्मों मे जीसीएच-4,5, 6, 7 व डीसीएच-32, 177 व 519, ज्योति, हरिता, क्रांति किरण, टीएमवी-6, अरुणा, काल्पी आदि हैं। Aranki ki plant

कब और कैसे करें बुआई

अरंडी की फसल की बुआई अधिकांशत: जुलाई और अगस्त में की जानी चाहिये। किसान भाई अरंडी की फसल की खास बात यह है कि मानसून आने पर खरीफ की सभी फसलों की खेती का काम निपटाने के बाद अरंडी की खेती आराम से कर सकते हैं। अरंडी की बुआई हल के पीछे हाथ से बीज गिराकर की जा सकती है तथा सीड ड्रिल से भी बुआई की जा सकती है। सिंचाई वाले क्षेत्रोंं अरंडी की फसल की बुआई करते समय किसान भाइयों को इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि लाइन से लाइन की दूरी एक मीटर या सवा मीटर रखें और पौधे से पौधे की दूरी आधा मीटर रखें तो आपकी फसल अच्छी होगी। असिंचित फसल के लिए लाइन और पौधों की दूरी कम रखनी चाहिये। इस तरह की खेती के लिए लाइन से लाइन की दूरी आधा मीटर या उससे थोड़ी ज्यादा होनी चाहिये और पौधों से पौधों की दूरी भी लगभग इतनी ही रखनी चाहिये।

कितना बीज चाहिये

किसान भाइयों अरंडी की फसल के लिए बीज की मात्रा , बीज क आकार और बुआई के तरीके और भूमि के अनुसार घटती-बढ़ती रहती है। फिर भी औसतन अरंडी की फसल के लिए प्रति हेक्टेयर 12 से 15 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। छिटकवां बुआई में बीज अधिक लगता है यदि इसे हाथ से एक-एक बीज को बोया जाता है तो प्रतिहेक्टेयर 8 किलोग्राम के लगभग बीज लगेगा। किसान भाइयों को चाहिये कि अरंडी की अच्छी फसल लेने के लिए उन्नत किस्म का प्रमाणित बीज लेना चाहिये। यदि बीज उपचारित नहीं है तो उसे उपचारित अवश्य कर लें ताकि कीट एवं रोगों की संभावना नहीं रहती है। भूमिगत कीटों और रोगों से बचाने के लिए बीजों को कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रतिकिलोग्राम पानी से घोल बनाकर बीजों को बुआई से पहले  भिगो कर उपचारित करें।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

किसान भाइयों खाद और उर्वरक काफी महंगी आती हैं इसलिये किसी भी तरह की खेती के लिए आप अपनी भूमि का मृदा परीक्षण अवश्य करवा लें और उसके अनुसार आपको खाद और उर्वरक प्रबंधन की अच्छी जानकारी मिल सकेगी। इससे आपका पैसा व समय दोनों ही बचेगा। खेती की लागत कम आयेगी। इसी तरह अरंडी की खेती के लिए जब आप खाद व उर्वरकों का प्रबंधन करें तो मिट्टी की जांच के बाद बताई गयी खाद व उर्वरक की मात्रा का प्रयोग करें। अरंडी की खेती के लिए उर्वरक का अच्छी तरह से प्रबंधन करना होता है। अच्छे खाद व उर्वरक प्रबंधन से अरंडी के दानों में तेल का प्रतिशत काफी बढ़ जाता है। इसलिये इस खेती में किसान भाइयों को कम से कम तीन बार खाद व उवर्रक देना होता है। अरंडी चूंकि एक तिलहन फसल है, इसका उत्पादन बढ़ाने व बीजों में तेल की मात्रा अधिक बढ़ाने के लिए बुआई से पहले 20 किलोगाम सल्फर को 200 से 250 किलोग्राम जिप्सम मिलाकर प्रति हेक्टेयर डालना चाहिये। इसके बाद अरंडी की सिंचित  खेती के लिए 80 किलो ग्राम नाइट्रोजन और 40 किलो फास्फोरस  प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इस्तेमाल करना चाहिये तथा असिंचित खेती के लिए 40 किलोग्राम नाइट्रोजन और 20 किलोग्राम फास्फोरस का इस्तेमाल किया जाना चाहिये। इसमें से खेत की तैयारी करते समय आधा नाइट्रोजन और आधा किलो फास्फोरस का प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालना चाहिये। शेष आधा भाग 30 से 35  दिन के बाद वर्षा के समय खड़ी फसल पर डालना चाहिये। Arandi ki kheti

सिंचाई प्रबंधन

अरंडी खरीफ की फसल है, उस समय वर्षा का समय होता है। वर्षा के समय में बुआई के डेढ़ से दो महीने तक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। इस अवधि में पानी देने से जड़ें कमजोर हो जाती है, जो सीधा फसल पर असर डालती है। क्योंकि अरंडी की जड़ें गहराई में जाती हैं जहां से वह नमी प्राप्त कर लेतीं हैं। जब अरंडी के पौधों की जड़ें अच्छी तरह से विकसित हो जायें और जमीन पर अच्छी तरह से पकड़ बना लें और जब खेती की नमी आवश्यकता से कम होने लगे तब पहला पानी देना चाहिये। इसके बाद प्रत्येक 15 दिन में वर्षा न होने पर पानी देना चाहिये। यदि सिंचाई के लिए टपक पद्धति हो तो उससे इसकी सिंचाई करना उत्तम होगा।

खरपतवार प्रबंधन

अरंडी की फसल में खरपतवार का प्रबंधन शुरुआत में ही करना चाहिये। जब तक पौधे आधे मीटर के न हो जायें तब तक समय-समय पर खरपतवार को हटाना चाहिये तथा गुड़ाई भी करते रहना चाहिये। इसके अलावा खरपतवार नियंत्रण के लिए एक किलोग्राम पेंडीमेथालिन को 600 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के दूसरे या तीसरे दिन छिड़काव करने से भी खरपतवार का नियंत्रण होता  है। लेकिन 40 दिन बाद एक बार अवश्य ही निराई गुड़ाई करवानी चाहिये।

कीट-रोग एवं उपचार

अरंडी की फसल में कई प्रकार के रोग एवं कीट लगते हैं। उनका समय पर उपचार करने से फसल को बचाया जा सकता है। आईये जानते हैं कि कौन से कीट या रोग का किस प्रकार से उपचार किया जाता है:- 1. जैसिड कीट: अरंडी की फसल में जैसिड कीट लगता है। इसका पता लगने पर किसान भाइयों को मोनोक्रोटोफाँस 36 एस एल को एक लीटर प्रति हेक्टेयर का छिड़काव कर देना चाहिये। इससे फसल का बचाव हो जाता है। 2. सेमीलूपर कीट: इसकीट का प्रकोप सर्दियों में अक्टूबर-नवम्बर के बीच होता है। इस कीट को नियंत्रित करने के लिए 1 लीटर क्यूनालफॉस 25 ईसी , लगभग 800 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रतिहेक्टेयर में फसल पर छिड़काव करने से कीट पर नियंत्रण हो जाता है। 3. बिहार हेयरी केटरपिलर: यह कीट भी सेमीलूपर की तरह सर्दियों में लगता है और इसके नियंत्रण के लिए क्यूनालफॉस का घोल बनाकर खड़ी फसल पर छिड़काव करना चाहिये। 4. उखटा रोग: उखटा रोग से बचाव के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडि 10 ग्राम प्रतिकिलोग्राम बीज का बीजोपचार करना चाहिये तथा 2.5 ट्राइकोडर्मा को नम गोबर की खाद के साथ बुवाई से पूर्व खेत में डालना अच्छा होता है।

पाले सें बचाव इस तरह करें

अरंडी की फसल के लिए पाला सबसे अधिक हानिकारक है। किसान भाइयों को पाला से फसल को बचाने के लिए भी इंतजाम करना चाहिये। जब भी पाला पड़ने की संभावना दिखाई दे तभी किसान भाइयों को एक लीटर गंधक के तेजाब को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रतिहेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करा चाहिये। यदि पाला पड़ जाये और फसल उसकी चपेट में आ जाये तो 10 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से यूरिया के साथ छिड़काव करें। फसल को बचाया जा सकता है।

कब और कैसे करें कटाई

अरंडी की फसल को पूरा पकने का इंतजार नहीं करना चाहिये। जब पत्ते व उनके डंठल पीले या भूरे दिखने लगें तभी कटाई कर लेनी चाहिये क्योंकि फसल के पकने पर दाने चिटक कर गिर जाते हैं। इसलिये पहले ही इनकी कटाई करना लाभदायक रहेगा। अरंडी की फसल में पहली तुड़ाई 100 दिनों के आसपास की जानी चाहिये। इसके बाद हर माह आवश्यकतानुसार तुड़ाई करना सही रहता है।

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पैदावार

अरंडी की फसल सिंचित क्षेत्र में अच्छे प्रबंधन के साथ की जाये तो प्रतिहेक्टेयर इसकी पैदावार 30 से 35 क्विंटल तक हो सकती है जबकि  असिंचित क्षेत्र में 15 से 23 क्विंटल तक प्रतिहेक्टेयर पैदावार मिल सकती है।
सदाबहार पौधे से संबंधित विस्तृत जानकारी

सदाबहार पौधे से संबंधित विस्तृत जानकारी

सदाबहार एक तरह का पौधा है, जो साल भर फूलता रहता है, इसलिए इसे सदाबहार के नाम से जाना जाता है। यह एक बारहमासी पौधा है, जो 3 से 4 फीट तक का होता है। सदाबहार का वैज्ञानिक नाम कैथेरेंथस रोसस है। यह एपोसाइनेसी परिवार का पौधा है। सदाबहार की उत्पत्ति मैडागास्कर से हुई है। परंतु, यह वर्तमान में विश्व भर के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय इलाकों में पाया जाता है। सदाबहार के फूलों का इस्तेमाल औषधीय उद्देश्यों के लिए भी किया जाता है। सदाबहार के फूलों में एल्कलॉइड होते हैं, जो कई बीमारियों के इलाज में काफी मददगार होते हैं। सदाबहार के फूलों का इस्तेमाल कैंसर, मलेरिया और मधुमेह यानी डायबिटीज के उपचार के लिए किया जाता है।

सदाबहार पौधे से जुड़ी कुछ खास बातें

सदाबहार एक तरह का पौधा है, जो पूरे वर्ष फूलता रहता है। इसलिए इसे सदाबहार कहा जाता है, यह एक बारहमासी पौधा है, जो 3 से 4 फीट तक का होता है। इसके फूल गुलाबी, सफेद अथवा लाल रंग के होते हैं। साथ ही, इनके अंदर पांच पंखुड़ियां होती हैं। सदाबहार के
फूलों का इस्तेमाल औषधीय उद्देश्यों के लिए भी किया जाता है। सदाबहार का वैज्ञानिक नाम कैथेरेंथस रोसस है। यह एपोसाइनेसी परिवार का पौधा है। सदाबहार एक लोकप्रिय पौधा होता है, जिसे सामान्यतः घरों और बगीचों में उगाया जाता है। यह एक कम रखरखाव वाला पौधा होता है, जो सूखे और छाया में अच्छी तरह से जीवित रह सकता है। इस छोटे से दिखने वाले पौधे के अंदर बहुत सारे औषधीय गुण उपलब्ध हैं। जो हमारे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक हैं।

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सदाबहार के पौधों को इस प्रकार लगाऐं

सामान्य तौर पर तो सदाबहार का पौधा स्वयं से ही जहां-तहां निकल आता है। इसे लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। परंतु, हां यदि आप ये चाहते हैं, कि इसके रंग-बिरंगें फूलों का आनंद लिया जाए तो आप इसे कई गमलों में लगा सकते हैं। उसके लिए एक गमले में सूखी मिट्टी को रख लें और उसमें थोड़ा पानी डाल कर उसमें पौधरोपण करें। सदाबहार के पौधे को नियमित तौर पर पानी दें। परंतु, मिट्टी को भिगोने से बचें, सदाबहार के पौधे को प्रति वर्ष वसंत में खाद दें। सदाबहार के फूलों का इस्तेमाल औषधीय उद्देश्यों के लिए भी किया जाता है। सदाबहार के फूलों में एल्कलॉइड होते हैं, जो बहुत सारी बीमारियों के उपचार में उपयोगी होते हैं। सदाबहार के फूलों का इस्तेमाल मलेरिया, डायबिटीज और कैंसर के इलाज के लिए किया जाता है।

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सदाबहार का उपयोग करने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें

सदाबहार के फूलों का उपयोग डायबिटीज, कैंसर और मलेरिया के इलाज के लिए किया जाता है। सदाबहार कैंसर, मलेरिया जैसी बीमारी में सहयोगी होने के साथ-साथ ये मधुमेह के उपचार में भी सहायता करता है। सदाबहार के फूलों में इंसुलिन के उत्पादन को बढ़ाने के गुण विघमान होते हैं। हालांकि, सदाबहार के फूलों का इस्तेमाल करने से पूर्व डॉक्टर से सलाह लेनी बेहद आवश्यक है। सदाबहार के फूलों में कुछ दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं, जैसे कि उल्टी, दस्त और सिरदर्द इस लिए इसका इस्तेमाल करने से पूर्व डॉक्टर की सलाह जरूर लेनी चाहिए।
गर्मियों के मौसम में लगाए जाने वाले फूल (Flowering Plants to be sown in Summer)

गर्मियों के मौसम में लगाए जाने वाले फूल (Flowering Plants to be sown in Summer)

गर्मियों का मौसम सबसे खतरनाक मौसम होता है क्योंकि इस समय बहुत ही तेज गर्म हवाएं चलती हैं। इनसे बचने के लिए हम सभी का मन करता है की ठंडी और खुसबुदार छाया में बैठ कर आराम करने का। 

यही आराम हम बाहर बाग बागीचो में ढूंढतेहै ,लेकिन अगर आप थोड़ी सी मेहनत करे तो आप इन ठंडी छाया वाले फूलों का अपने घर पर भी बैठ कर आनंद ले सकते है।

गर्मियों के मौसम में लगाए जाने वाले फूल (Flowers to plant in the summer season:)

गर्मियों के मौसम की एक खास बात यह होती है को यह पौधों की रोपाई के लिए सबसे अच्छा समय होता है। तेज धूप में पौधे अच्छे से अपना भोजन बना पाते है।

साथ ही साथ उन्हें विकसित होने में भी कम समय लगता है। ऐसे में आप गेंदे का फूल , सुईमुई का फूल , बलासम का फूल और सूरज मुखी के फूल बड़ी ही आसानी से अपने घर के गार्डन में लगा सकते है। 

इससे आपको घर पर ही गर्मियों के मौसम में ठंडी और खुसबुदार छाया का आनंद मिल जायेगा।अब बात यह आती है की हम किस प्रकार इन फुलों के पौधों को अपने घर पर लगा पाएंगे। 

इसके लिए सबसे पहले आपको मिट्टी, फिर खाद और उर्वरक और अंत में अच्छी सिंचाई करनी होगी। साथ ही साथ हमे इन पौधों की कीटो और अन्य रोगों से भी रोकथाम करनी होगी। तो चलिए अब हम आपको बताते है आप प्रकार इन मौसमी फुलों के पौधों लगा सकते है।

गर्मियो में फूलों के पौधें लगाने के लिए इस प्रकार मिट्टी तैयार करें :-

mitti ke prakar

इसके लिए सबसे पहले आप जमीन की अच्छी तरह से उलट पलट यानी की पाटा अवश्य लगाएं।खेत को अच्छे से जोतें ताकि किसी भी प्रकार का खरपतवार बाद में परेशान न करे पौधों को।

मौसमी फूलों के पौधों के बीजों के अच्छे उत्पादन के लिए जो सबसे अच्छी मिट्टी होती हैं वह होते हैं चिकनी दोमट मिट्टी।इन फुलों को आप बीजो के द्वारा भी लगा सकते है और साथ ही साथ आप इनके छोटे छोटे पौधें लगाकर रोपाई भी कर सकते हैं। 

इसके अलावा बलुई दोमट मिट्टी का भी आप इस्तेमाल कर सकते है बीजों को पैदावार के लिए। इसके लिए आप 50% दोमट मिट्टी और 30% खाद और 20% रेतीली मिट्टी को आपस में अच्छे से तैयार कर ले। 

एक बार मिट्टी तैयार हो जाने के बाद आप इसमें बीजों का छिड़काव कर दे या फिर अच्छे आधा इंच अंदर तक लगा देवे। उसके बाद आप थोड़ा सा पानी जरूर देवे पौधों को।

गर्मियों में फूलों के पौधों को इस प्रकार खाद और उर्वरक डालें :-

khad evam urvarak

मौसमी फूलों के पौधों का अच्छे से उत्पादन करने के लिए आप घरेलू गोबर की खाद का इस्तमाल करे न की रासायनिक खाद का। रासायनिक खाद से पैदावार अच्छी होती है लेकिन यह खेत की जमीन को धीरे धीरे बंजर बना देती है। 

इसलिए अपनी जमीन को बंजर होने से बचाने के लिए आप घरेलू गोबर की खाद का ही इस्तमाल करे। यह फूलों के पौधों को सभी पोषक तत्व प्रोवाइड करवाती है।

100 किलो यूरिया और 100 किलो सिंगल फास्फेट और 60 किलो पोटाश को अच्छे मिक्स करके संपूर्ण बगीचे और गार्डन में मिट्टी के साथ मिला देवे। खाद और उर्वरक का इस्तेमाल सही मात्रा में ही करे । ज्यादा मात्रा में करने पर फुल के पौधों में सड़न आने लगती है।

गर्मियों में फूलों के पौधों की इस प्रकार सिंचाई करे :-

phool ki sichai

गर्मियों में पौधों को पानी की काफी आवश्यकता होती है। इसके लिए आप नियमित रूप से अपने बगीचे में सभी पौधों की समान रूप से पानी की सिंचाई अवश्य करें। 

पौधों को सिंचाई करना सबसे महत्वपूर्ण काम होता है, क्योंकि बिना सिंचाई के पौधा बहुत ही काम समय में जल कर नष्ट हो जायेगा। 

इसी के साथ यह भी ध्यान रखना चाहिए की गर्मियों के मौशम में पौधों को बहुत ज्यादा पानी की आवश्यकता होती हैं और वहीं दूसरी तरफ सर्दियों के मौसम में फूलों को काफी कम पानी की आवश्यकता होती है। 

इन फूलों के पौधों की सिंचाई के लिए सबसे अच्छा समय जल्दी सुबह और शाम को होता है।सिंचाई करते समय यह भी जरूर ध्यान रखे हैं कि खेत में लगे पौधों की मिट्टी में नमी अवश्य होनी चाहिए ताकि फूल हर समय खिले रहें। क्यारियों में किसी भी प्रकार का खरपतवार और जरूरत से ज्यादा पानी एकत्रित ना होने देवे।

गर्मियों के फुलों के पौधों में लगने वाले रोगों से बचाव इस प्रकार करे :-

phoolon ke rogo se bachav

गर्मियों के समय में ना  केवल पौधों को गर्मी से बचाना होता है बल्कि रोगों और कीटों से भी बचाना पड़ता है।

  1. पतियों पर लगने वाले दाग :-

इस रोग में पौधों पर बहुत सारे काले और हल्के भूरे रंग के दाग लग जाते है। इस से बचने के लिए ड्यूथन एम 45 को 3 ग्राम प्रति लिटर में अच्छे से घोल बना कर 8 दिनों के अंतराल में छिड़काव करे। इस से सभी काले और भूरे दाग हट जाएंगे।
  1. पतियों का मुर्झा रोग :-

इस रोग में पौधों की पत्तियां धीरे धीरे मुरझाने लगती है और बाद में संपूर्ण पौधा मरने लग जाता है।इस से बचाव के लिए आप पौधों के बीजों को उगाने से पहले ट्राइको टर्म और जिनॉय के घोल में अच्छे से मिक्स करके उसके बाद लगाए। इस से पोधे में मुर्झा रोग नहीं होगा।
  1. कीटों से सुरक्षा :-

जितना पसंद फूल हमे आते है उतना ही कीटो को भी। इस में इन फूलों पर कीट अपना घर बना लेते है और भोजन भी। वो धीरे धीरे सभी पतियों और फुलों को खाना शुरू कर देते है। इस कारण फूल मुरझा जाते है और पोधा भी। इस बचाव के लिए आप कीटनाशक का प्रति सप्ताह 3 से 4 बार याद से छिड़काव करे।इससे कीट जल्दी से फूलों और पोधें से दूर चले जायेंगे।

गर्मियों में मौसम में इन फुलों के पौधों को अवश्य लगाएं अपने बगीचे में :-

गर्मियों के मौसम में लगाए जाने वाले फूल - सूरजमुखी (sunflower)
  1. सुरजमुखी के फुल का पौधा :-

सूरजमुखी का फूल बहुत ही आसानी से काफी कम समय में बड़ा हो जाता है। ऐसे में गर्मियों के समय में सुरज मुखी के फूल का पौधा लगाना एक बहुत ही अच्छी सोच हो सकती है। 

आप बिना किसी चिंता के आराम से सुरज मुखी के पौधे को लगा सकते हैं। गर्मियों के मौसम में तेज धूप पहले से ही बहुत होती है और सूरज मुखी को हमेशा तेज धूप की ही जरूरत होती हैं।

  1. गुड़हल के फूल का पौधा :-

गर्मियों के मौसम में खिलने वाला फूल गुड़हल बहुत ही सुंदर दिखता है घर के बगीचे में।गुड़हल का फूल बहुत सारे भिन्न भिन्न रंगो में पाया जाता हैं। 

गुड़हल का सबसे ज्यादा लगने वाला लाल फूल का पौधा होता है। यह न केवल खूबसूरती के लिए लगाया जाता है बल्कि इस से बहुत अच्छी महक भी आती है।

  1. गेंदे के फूल का पौधा :-

गेंदे का फूल बहुत ही खुसबूदार होता है और साथ ही साथ सुंदर भी। गेंदे के फूल का पौधा बड़ी ही आसानी से लग जाता है और इसे आप अपने घर के गार्डन में आराम से लगाकर सम्पूर्ण घर को महका सकते है।।

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  1. बालासम के फूल का पौधा :-

बालासाम का पौधा काफी सुंदर होता है और इसमें लगने वाले रंग बिरंगे फूल इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं। यह फूल बहुत ही कम समय में खेलना शुरू हो जाते हैं यानी की रोपाई के बाद 30 से 40 दिनों के अंदर ही यह पौधा विकसित हो जाता है और फूल खिला लेता है।

बैंकिंग से कृषि स्टार्टअप की राह चला बिहार का यह किसान : एक सफल केस स्टडी

बैंकिंग से कृषि स्टार्टअप की राह चला बिहार का यह किसान : एक सफल केस स्टडी

कठिन मेहनत से हासिल बैंकिंग की नौकरी छोड़, कृषि में स्टार्टअप की राह पर चला बिहार का यह किसान

आजादी के बाद भारत की आर्थिक वृद्धि और जीडीपी में कृषि का योगदान निरंतर कम होता जा रहा है। हालांकि,
हरित क्रांति की सफलता के बाद एक समय आयात पर निर्भर रहने वाली भारतीय कृषि इतनी सफल तो हो पायी, कि देश के लोगों की मांग पूरी करने के अलावा कुछ स्तर पर निर्यात में भी हिस्सेदारी बंटा पाई। 2011 की जनगणना के अनुसार, 78 मिलियन प्रवासी मजदूर कृषि क्षेत्रों में सक्रिय रहने के अलावा, अतिरिक्त आय के लिए प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भी काम करते हैं और इसी वजह से कृषि से होने वाली उत्पादकता में निरंतर कमी देखने को मिली है। बिहार के औरंगाबाद जिले के बरौली गांव में रहने वाले एक किसान की कहानी कुछ ऐसे ही शुरू हुई थी, जब उन्होंने कृषि और किसानी में सफल हुए कई विदेशी और भारतीय किसानों की केस स्टडी (case study) के बारे में पढ़ा। मैनेजमेंट प्रोफेशनल के रूप में काम करते हुए ही 2011 में बिहार के अभिषेक कुमार ने अच्छी सैलरी देने वाली जॉब को छोड़ने का निर्णय लिया और आज अभिषेक कुमार के खेतों में तुलसी (Tulsi), हल्दी (Turmeric), गिलोय (giloy) तथा मोरिंगा (Drumstick) और गेंदा (मेरीगोल्ड, Marygold) जैसी, आयुर्वेदिक औषधियों में इस्तेमाल होने वाले पौधों की खेती की जाती है। अभिषेक को परिवारिक जमीन के रूप में 20 एकड़ का क्षेत्र मिला था, जिनमें से 15 एकड़ के क्षेत्र में वह इसी तरह कम समय में तैयार होने वाली आयुर्वेदिक औषधियों का उत्पादन कर बड़ी मार्केटिंग कंपनियों से जुड़ते हुए अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।


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अभिषेक ने बताया कि धान, गेहूं और मक्का से होने वाली बचत इन फसलों की तुलना में आधी भी नहीं होती है, लेकिन वैज्ञानिकों के द्वारा सुझाई गई आधुनिक विधियों और कृषि विभाग के द्वारा जारी की गई एडवाइजरी का सही तरीके से पालन कर, इंटरनेट की मदद से कई सफल किसानों तक पहुंच बनाकर, बेहतर कृषि उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले कुछ ऐसे गुण सीखे, जो आज अभिषेक को अच्छा मुनाफा दे रहे हैं। बिहार में एक प्रॉफिटेबल कृषि मॉडल बनाने की सोच को लेकर काम कर रहे अभिषेक, खेत से होने वाली उत्पादकता पर ज्यादा ध्यान देते हैं। खुद अभिषेक ही बताते हैं कि एक कृषि परिवार से संबंध रखने के बावजूद भी खेती में कम आमदनी होने की वजह से, अपने परिवार को सहायता प्रदान करने और खुद का गुजारा करने के लिए वह पुणे में एक बैंक में कंसलटेंट के रूप में काम करने लगे थे। अभिषेक ने बताया कि जब उन्होंने सिक्योरिटी गार्ड और चपरासी जैसे पदों पर काम करते वाले लोगों को देखा और उनसे मुलाकात हुई, तो पता चला कि इन लोगों के गांव में बहुत ज्यादा जमीन खाली पड़ी है और खेती में मुनाफा ना होने की वजह से ही वह अपने परिवार को गांव में छोड़कर शहरों में मुश्किल भरी जिंदगी जी रहे हैं। इन्हीं घटनाओं से प्रेरणा लेते हुए अभिषेक ने अपनी नौकरी को छोड़ वापस गांव में ही रहते हुए कृषि में इनोवेशन (Innovation) करने की सोच के साथ एक नई शुरुआत करने की सोची। आज अभिषेक को उनके गांव में ही नहीं बल्कि पूरे जिले में एक अलग पहचान मिल चुकी है और बिहार के कई बड़े एनजीओ (NGOs) तथा किसान भाई समय-समय पर उनसे जाकर मिलते हैं और अभिषेक के कृषि मॉडल की तरह ही अपने खेत की जमीन की उर्वरता और उत्पादन बढ़ाने के लिए राय लेते है।


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जब अभिषेक ने अपनी खेती की शुरुआत की तभी उन्होंने मन बना लिया था कि वह केवल किताबी ज्ञान को किसानों को बताने की बजाय पहले उसे अपने खेत में अपना कर देखेंगे और यदि अच्छा मुनाफा होगा तभी दूसरे किसान भाइयों को भी नई तकनीकों को सलाह देंगे, उन्हीं प्रयोगों का अभिषेक को इतना फायदा हुआ कि वर्तमान में वह लगभग 95 से अधिक कृषि उत्पादन संगठनों (Farmers producer organisation) से जुड़े हुए है और इन संगठनों से जुड़े हुए लगभग 2 लाख से अधिक किसान भाइयों को साल 2011 से मार्केटिंग और खेती से जुड़ी समस्त जानकारियां उपलब्ध करवा रहे है। किसी भी शहरी परिवेश से वापस ग्रामीण क्षेत्र में आकर कृषि कार्यों की शुरुआत करने में अनेक प्रकार की समस्याएं होती है और ऐसी ही समस्या अभिषेक के सामने भी बिहार में एक अच्छा मुनाफा कमाने वाले किसान बनने की राह में अड़चन पैदा कर रही थी। हालांकि जब अभिषेक शहर से अपनी नौकरी छोड़ वापस गांव में आए, तो उन्हें कई लोगों के द्वारा विरोध झेलना पड़ा और उनके परिवार के सदस्यों के द्वारा इस विचार को पूरी तरीके से गलत ठहरा दिया गया, लेकिन जब अभिषेक ने अपने पिता को आधुनिक और समोच्च तरीके से होने वाली वैज्ञानिक विधियों की मदद से खेती करने की बात बताई, तो उनके परिवार ने भी हामी भरदी। वैज्ञानिक विधि का पालन करते हुए अभिषेक ने सबसे पहले अपने खेत में मिट्टी की जांच करवाई, जिससे उन्हें उनके खेत में पाई जाने वाली मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्वों के बारे में पता चला, कौन से पोषक तत्वों की कितनी मात्रा खेत में पहले से उपलब्ध है और किन पोषक तत्वों की खेत की मिट्टी में कमी है।


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अभिषेक ने अपने किसानी करियर में पहली शुरुआत सामान्य खेती से ही की थी, लेकिन जब उन्होंने बागवानी कृषि को अपनाया तो उनके द्वारा किए गए सभी प्रयास सफल हुए और पहली साल में ही 6 लाख रुपए से अधिक की कमाई हुई। अभिषेक बताते हैं कि 2011 से ही वह रोज सुबह एक घंटे साइबर कैफे में जाकर इंटरनेट और यूट्यूब की मदद से विदेशी और पूशा के वैज्ञानिकों के द्वारा बताई गई नई विधियों को अपने खेत में आजमाकर देखते थे। जरबेरा की फसल का उत्पादन करने वाले वह बिहार के पहले व्यक्ति थे। इसके लिए उन्होंने बेंगलुरु और पुणे में काम कर रही कृषि से जुड़ी कई बड़ी साइंटिफिक लाइब्रेरी में जाकर रिसर्च करने वाले लोगों से बात कर उच्च गुणवत्ता वाले बीजों (High yield variety seeds) को उगाया तो पहले ही उत्पादन के बाद अच्छा मुनाफा दिखाई दिया। आज उनके खेतों में एक चौथाई से ज्यादा हिस्सों पर इसी प्रकार के औषधियों में इस्तेमाल होने वाले पौधे उगाए जाते है। अभिषेक बताते हैं कि औषधीय पौधों (Medicine Plants) को एक बार लगाने के बाद कुछ समय तक बिना निराई गुड़ाई के भी रखा जा सकता है और उत्पादन में होने वाली लागत को कम किया जा सकता है, क्योंकि ऐसे प्लांट्स के पौधे और पत्तियां अधिक बारिश और तेज धूप तथा भयंकर ठंड में भी वृद्धि दर को बरकरार रख सकते हैं, जिससे उर्वरकों पर होने वाली लागत कम आती है। औषधीय पौधों में एक बार पानी देने के बाद वे आसानी से 20 से 25 दिन तक बिना पानी के रह सकते है। अभिषेक ने बताया कि मेडिसिन पौधों का सबसे बड़ा फायदा यह भी है कि इनमें आवारा पशु और जानवरों से होने वाले नुकसान पूरी तरीके से कम किए जा सकते है, क्योंकि नीलगाय जो कि बिहार के खेतों में सबसे ज्यादा क्रॉप डेमेज (Crop damage) करती है, वह इन पौधों को बिल्कुल भी नुकसान नहीं पहुंचाती।


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अफ्रीका और आसाम में काम कर रही चाय के बागान से जुड़ी कंपनियों के अनुसंधानकर्ताओं की मदद से अभिषेक ने बिहार में रहते हुए ही 'ग्रीन टी' का उत्पादन भी शुरू किया है। ग्रीन टी बनाने के लिए तुलसी, लेमन घास (Lemongrass) और मोरिंगा के पौधों की पत्तियों की आवश्यकता होती है, जिन्हें बारीक तरीके से काटकर एक सोलर ड्रायर विधि की मदद से अभिषेक के द्वारा ही स्थापित गांव की ही एक विपणन इकाई में मशीन की मदद से तैयार किया जाता है और कई बड़ी भारतीय और इंटरनेशनल मार्केटिंग कंपनियों को बेचा जाता है। बैंक में काम करने वाले एक कर्मचारी से लेकर खेती में सफलता प्राप्त करने वाले अभिषेक कई किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बनने के बाद अब कृषि के क्षेत्र में एक नई स्टार्टअप की योजना बना रहे है, हालांकि पिछले कुछ समय से बेंगलुरु से संचालित हो रही एक एग्रीटेक स्टार्टअप (Agritech startup) के साथ वह पहले से ही बिजनेस डेवलपर के रूप में जुड़े हुए हैं।


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अभिषेक प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां (PACs) में होने वाली विपणन की विधियों में भी कुछ सुधार की उम्मीद करते है, क्योंकि वह मानते है कि मंडियों में होने वाले बिचौलिए की जॉब को पूरी तरीके से खत्म कर देना ही किसानों के लिए फायदेमंद रहेगा। स्टार्टअप की राय पर अभिषेक का मानना है कि वह किसानों और कृषि उत्पादन संगठन (FPOs) के मध्य कम शुल्क पर काम करने वाले एक माध्यम के रूप में भूमिका निभाने वाली स्टार्टअप की शुरुआत करना चाहते है और उनकी कोशिश है कि किसानों को उगाई गई उपज की सरकार के द्वारा तय किए गए मिनिमम सपोर्ट प्राइस (Minimum Support Price -MSP) से कुछ ज्यादा ही राशि मिले। अपनी इस स्टार्टअप यात्रा के दौरान अभिषेक एम.एस.स्वामीनाथन समिति के द्वारा दिए गए सुझावों को मध्य नजर रखते हुए अपने स्तर पर भारतीय कृषि में कुछ बदलाव करने की सोच भी रखते है। बिहार कृषि विश्वविद्यालय, भागलपुर से अभिषेक को 2014 में सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार भी मिल चुका है। इसके अलावा भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के द्वारा दिया जाने वाला भारतीय कृषि रत्न पुरस्कार जीतने वाले अभिषेक प्राकृतिक खेती को ज्यादा प्राथमिकता देते है और हमेशा घर पर तैयार की हुई प्राकृतिक गोबर खाद से ही अधिक उत्पादन प्राप्त करने की कोशिश करते है। अभिषेक का मानना है कि भारतीय किसान जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग ( Zero budget natural farming) और समोच्च कृषि (Sustainable development) जुताई विधियों की मदद से आने वाले समय में उत्पादन बढ़ाने के साथ ही विदेशी मार्केट में भी अपनी पकड़ बना पाएंगे। आशा करते हैं कि Merikheti.com के द्वारा बिहार के अवॉर्ड विजेता किसान अभिषेक की कृषि क्षेत्र में प्राप्त सफलताओं और उनके नए विचारों से जुड़ी यह जानकारी आपको पसंद आई होगी और आने वाले समय में आप भी ऐसी ही भविष्यकारी नीतियों को अपनाकर एक सफल किसान बनने की राह पर जरूर अपना लक्ष्य प्राप्त करेंगे।
इन पौधों के डर से मच्छर भागें घर से

इन पौधों के डर से मच्छर भागें घर से

फिलहाल मच्छर जनित रोग डेंगू- मलेरिया का जोर है। मलेरिया व डेंगू की वजह से उत्तर प्रदेश राज्य का जनपद हाथरस के बहुत सारे लोग भी चपेट में हैं। मच्छरों से छुटकारा पाने के लिए लोग अपने घरों में विभिन्न प्रकार के मॉस्किटो किलर का प्रयोग कर रहे हैं। दरअसल, इनसे निकलने वाला धुआं व अन्य रसायन सेहत के लिए काफी नुकसानदायक साबित होते हैं। लेकिन इस परेशानी से बचने के लिए उद्यान विभाग घर में कुछ खास पौधे यानी की नैचुरल मॉस्किटो रिपेलेंट्स लगाने की सलाह दे रहा है। इनकी सुगंध से मच्छर पास नहीं आते और ये काफी अच्छे भी होते हैं। इन पौधों के संदर्भ में थोड़ा प्रकाश डालें। लेमन ग्रास : लेमन ग्रास की सहायता से मच्छर, मकोड़े, कीड़े से बचाया जा सकता है। साथ ही विभिन्न प्रकार के अन्य शारीरिक रोगों से लड़ने में भी अहम् भूमिका निभाती है। लेमन ग्रास को बगीचे व गमले में उगाया जा सकता है। लेमन ग्रास की सुगंध से मक्खी मच्छर दूर भाग जाते हैं इसलिए यह डेंगू और मलेरिया से बचाने के लिए बेहद जरुरी है। लेमन ग्रास का उपयोग लेमन टी के रूप में भी किया जाता है। गेंदे का पौधा: गेंदे का पौधा एक नैचुरल मॉस्किटो रिपेलेंट्स पौधे (Natural mosquito repellent plants) के साथ ही बेहतरीन फूल भी है।  इसमें कई ऐसे गुण विद्यमान हैं, जो इसको एक अलग ही पहचान देते हैं। इस पौधे की पंखुड़ियों एवं फूल से एक अच्छी महक आती है, जो मच्छरों के लिए जानलेवा होती है। इसी कारण से, मच्छर इसके समीप आने से भयभीत होते हैं। मच्छरों से निपटने के लिए गेंदे के पौधों को अपने घर में एवं बालकनी में लगायें, इससे मच्छर आपके घर में प्रवेश नहीं कर पाएंगे।


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पुदीने का पौधा: पुदीने की खुशबू मच्छरों के प्रकोप से बचाने में सहायक साबित होती है। इसकी पत्तियों से उत्पन्न महक विभिन्न प्रकार के कीड़ों से बचाती है। पुदीने के उत्पादन को गमलों की सहायता से पैदा किया जा सकता है, एवं इसके लिए मिट्टी में नमी व अच्छे जल की निकासी होती है। इसे घर में सहजता से लगाया जा सकता है। लैवेंडर का पौधा: मच्छरों को दूर भगाने के लिए जिन मॉस्किटो रिपेलेंट्स का प्रयोग किया जाता है, उनमें लैवेंडर ऑयल का प्रयोग किया जाता है। लैवेंडर का पौधा मच्छरों से निपटने के लिए बेहद सहायक होता है साथ ही इसको घर पे आसानी से उगाया जा सकता है। तुलसी का पौधा: तुलसी के पौधे का हिंदू धर्म में बेहद पौराणिक महत्त्व है। तुलसी के पौधे में विभिन्न प्रकार के औषधीय गुण विघमान होते हैं। बतादें कि तुलसी के पत्तों का अर्क जुकाम, खांसी एवं सर्दी से राहत दिलाने में बेहद सहायक होता है। साथ ही, तुलसी का पौधा मच्छरों से बचाने में बेहद काम आता है। इसे सहजता से घर में उगाया जा सकता है। रोजमेरी का पौधा: रोजमेरी का पौधा सुंदर पुष्पों सहित दिखने में बेहद आश्चर्यजनक होता है। रोजमेरी के पौधे को लोग घर के सौंदर्यीकरण के लिए उपयोग करते हैं। बतादें कि रोजमेरी का पौधा नैचुरल मॉस्किटो रिपेलेंट्स माना जाता है। यह मच्छरों से बचाने में काफी सहायक साबित होता है। साथ ही, जिला उद्यान अधिकारी अनीता यादव का कहना है कि इस बार २० हेक्टेयर में तुलसी की पैदावार का संकल्प विभाग को दिया गया गया है। इसमें 14 हेक्टेयर लक्ष्य हासिल हो चूका है। उघान विभाग पर जाकर तुलसी के पौधे खरीदने की चाह रखने वाले किसान तुलसी के बीज प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि फिलहाल जनपदों में डेंगू के मामलों में प्रतिदिन बढ़ोत्तरी की जा रही है। अब तक जनपद में २२ मामले सामने आए हैं। ड़ेंगू को लेकर स्वास्थ्य विभाग भी निरंतर नियंत्रण कर रहा है। शहर, गांव, कस्बा एवं मौहल्ला में फॉग उपकरण द्वारा कीटनाशक छिड़काव हो रहा है। साथ ही, डॉक्टर्स की टोली भी दवाई वितरण का कार्य कर रहीं हैं।
13 फसलों के जीएम बीज तैयार करने के लिए रिसर्च हुई शुरू

13 फसलों के जीएम बीज तैयार करने के लिए रिसर्च हुई शुरू

भारत सरकार लगातार देश में उत्पादन बढ़ाने पर विचार कर रही है। इसके लिए सरकार तरह-तरह की परियोजनाएं लाती रहती है, जिससे किसानों को उत्पादन बढ़ाने में मदद मिल सके। इन परियोजनाओं के अंतर्गत सरकार किसानों को सीधे अनुदान देने के अलावा खाद, बीज, दवाई और कृषि उपकरणों पर सब्सिडी प्रदान करती है। इसके साथ ही अब सरकार ने देश भर में गुणवत्तापूर्ण फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए रिसर्च पर जोर देना शुरू कर दिया है। इसके तहत अब भारत के कृषि वैज्ञानिक जेनेटिक मॉडिफाइड यानि जीएम फसलों का विकास कर रहे हैं। फिलहाल, जीएम फसलों को लेकर देश दो धड़ों में बंटा हुआ है। एक धड़ा वो है, जो फसलों में जेनेटिकली मॉडिफिकेशन का विरोध कर रहा है। ऐसे लोग इसे नेचर के खिलाफ बता रहे हैं। वहीं दूसरा धड़ा वो है, जो जीएम फसलों को देश के लिए और लोगों के लिए सही बता रहा है और इस प्रकार की रिसर्च का समर्थन कर रहा है। हालांकि इस विरोध और समर्थन के बीच देश के संस्थानों में जेनेटिक मॉडिफाइड फसलों पर रिसर्च शुरू हो चुका है। अगर यह रिसर्च कामयाब रहती है, तो कुछ दिनों में देश के किसान जेनेटिक मॉडिफाइड फसलों की खेती करते हुए दिखाई देंगे। इन फसलों की खेती से किसानों का उत्पादन बढ़ेगा, साथ ही साथ आने वाले दिनों में किसानों की आय में भी भारी इजाफा हो सकता है।


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इन जेनेटिक मॉडिफाइड फसलों पर रिसर्च हुई है शुरू

मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है, कि देश के कृषि मंत्रालय ने अलग-अलग अनुसंधान केंद्रों को जीएम फसलों पर रिसर्च की जिम्मेदारी दी है। जहां देश के वैज्ञानिक 13 जीएम फसलों पर रिसर्च कर रहे हैं। इन फसलों में चावल, गेहूं, गन्ना, आलू, अरहर, चना और केला जैसी फसलें शामिल हैं। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि जीएम फसलों की उपज के बाद भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी। फसलों का ज्यादा उत्पादन होने के कारण अनाज के लिए अन्य देशों पर निर्भरता कम होगी। इसके साथ ही कृषि मंत्रालय ने कहा है कि जीएम बीजों की पैदावार से फसल की क्वालिटी सुधरेगी और उत्पादन में बंपर इजाफा होगा। कृषि मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया है, कि इन फसलों को जेनेटिकली मॉडिफाइड करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के वैज्ञानिक दिन रात मेहनत कर रहे हैं।

इस फसल के बीज अभी तक हो चुके हैं विकसित

अभी तक सरसों के बीजों को जेनेटिक मॉडिफाइड रूप से विकसित किया जा चुका है। इन विकसित बीजों को धारा मस्टर्ड हाईब्रिड (डीएमएच-11) बीज का नाम दिया गया है, जो सरसों के बीजों की एक हाईब्रिड प्रजाति है। इस प्रजाति को दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स ने विकसित किया है। अनुसंधान केंद्र का दावा है, कि इन बीजों का इस्तेमाल करने से भारत की दूसरे देशों पर खाद्य तेल को लेकर निर्भरता बहुत हद तक कम हो जाएगी। इस साल अक्टूबर में भारत के पर्यावरण मंत्रालय ने सरसों के जीएम बीजों का परीक्षण करने की अनुमति दी थी। आनुवंशिक रूप से संशोधित इस फसल का देश भर में परीक्षण शुरू हो चुका है। कई जगहों पर इन बीजों की बुवाई भी की गई है। जिसके शानदार परिणाम देखने को मिले हैं। आगामी 2 सालों के दौरान देश भर में जीएम सरसों का उत्पादन शुरू हो जाएगा। फिलहाल देश भर में जीएम कपास का बंपर उत्पादन हो रहा है।
इस औषधीय पौधे की खेती करने के लिए सरकार देती है 75 फीसदी सब्सिडी, योजना का लाभ उठाकर किसान बनें मालामाल

इस औषधीय पौधे की खेती करने के लिए सरकार देती है 75 फीसदी सब्सिडी, योजना का लाभ उठाकर किसान बनें मालामाल

देश के साथ दुनिया में इन दिनों औषधीय पौधों की खेती की लगातार मांग बढ़ती जा रही है। इनकी मांग में कोरोना के बाद से और ज्यादा उछाल देखने को मिला है क्योंकि लोग अब इन पौधों की मदद से अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखना चाहते हैं। 

जिसको देखेते हुए केंद्र सरकार ने इस साल 75 हजार हेक्टेयर में औषधीय पौधों की खेती करने का लक्ष्य रखा है। सरकारी अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि पिछले ढ़ाई साल में औषधीय पौधों की मांग में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है जिसके कारण केंद्र सरकार अब औषधीय पौधों की खेती पर फोकस कर रही है। 

किसानों को औषधीय पौधों की खेती की तरफ लाया जाए, इसके लिए सरकार अब सब्सिडी भी प्रदान कर रही है। राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में औषधीय पौधों की खेती पर राज्य सरकारें भी अलग से सब्सिडी प्रदान कर रही हैं।

75 फीसदी सब्सिडी देती है केंद्र सरकार

सरकार ने देश में औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा देने के लिए एक योजना चलाई है, जिसे 'राष्ट्रीय आयुष मिशन' का नाम दिया गया है। 

इस योजना के अंतर्गत सरकार  औषधीय पौधों और जड़ी बूटियों के उत्पादन को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। इस मिशन के अंतर्गत सरकार 140 जड़ी-बूटियों और हर्बल प्लांट्स की खेती के लिए अलग-अलग सब्सिडी प्रदान कर रही है।

यदि कोई किसान इसकी खेती करना चाहता है और सब्सिडी के लिए आवेदन करता है तो उसे 30 फीसदी से लेकर 75 फीसदी तक की सब्सिडी प्रदान की जाएगी। 

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अगर किसान भाई किसी औषधीय पौधे की खोज रहे हैं तो वह करी पत्ता की खेती कर सकते हैं। करी पत्ता का इस्तेमाल हर घर में मसालों के रूप में किया जाता है। 

इसके साथ ही इसका इस्तेमाल जड़ी-बूटी के तौर पर किया जाता है, साथ ही इससे कई प्रकार की दवाइयां भी बनाई जाती हैं। जैसे वजन घटाने की दवाई, पेट की बीमारी की दवाई और एंफेक्शन की दवाई करी पत्ता से तैयार की जाती है।

इस प्रकार की जलवायु में करें करी पत्ता की खेती

करी पत्ता की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु सबसे बेहतर मानी जाती है। इसकी खेती ऐसी जगह पर करनी चाहिए जहां सीधे तौर पर धूप आती हो। इसकी खेती छायादार जगह पर नहीं करना चाहिए।

करी पत्ता की खेती के लिए इस तरह से करें भूमि तैयार

करी पत्ता की खेती के लिए PH मान 6 से 7 के बीच वाली मिट्टी उपयुक्त होती है। इस खेती में किसान को खेत से उचित जल निकासी की व्यवस्था कर लेनी चाहिए। इसके साथ ही चिकनी काली मिती वाले खेत में इन पौधों की खेती नहीं करना चाहिए। 

सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करना चाहिए, इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल कर दें। इसके बाद हर चार मीटर की दूरी पर पंक्ति में गड्ढे तैयार करें। गड्ढे तैयार करने के बाद बुवाई से 15 दिन पहले गड्ढों में जैविक खाद या गोबर की सड़ी खाद भर दें। 

इसके बाद गड्ढों में सिंचाई कर दें। भूमि बुवाई के लिए तैयार है। करी पत्ता के पौधों की रोपाई वैसे तो सर्दियों को छोड़कर किसी भी मौसम में की जा सकती है। लेकिन मार्च के महीने में इनकी रोपाई करना सर्वोत्तम माना गया है। 

करी पत्ता की बुवाई बीज के साथ-साथ कलम से भी की जा सकती है। अगर किसान बीजों से बुवाई करने का चयन करते हैं तो उन्हें एक एकड़ में बुवाई करने के लिए करी पत्ता के 70 किलो बीजों की जरूरत पड़ेगी। 

यह बीज खेत में किए गए गड्ढों में बोए जाते हैं। इन बीजों को गड्ढों में 4 सेंटीमीटर की गहराई में लगाने के बाद हल्की सिंचाई की जाती है। इसके साथ ही जैविक खाद का भी प्रयोग किया जाता है।

सुगंधित फसलों को उगाने के लिए सरकार दे रही है ट्रेनिंग, होगा बंपर मुनाफा

सुगंधित फसलों को उगाने के लिए सरकार दे रही है ट्रेनिंग, होगा बंपर मुनाफा

इन दिनों देश में विभिन्न प्रकार की फसलों का चलन बढ़ा है। अलग-अलग तरह की फसलों को उत्पादित करने से किसानों को मोटा मुनाफा हो रहा है। इसलिए किसानों का रुझान इस ओर तेजी से बढ़ता जा रहा है। इसको देखते हुए सरकार अब सुगंधित फसलों की खेती करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। इसके लिए सरकार ने एक योजना लॉन्च की है, जिसे 'एरोमा मिशन' का नाम दिया गया है। इस योजना के अंतर्गत किसानों को लेमन ग्रास, पामारोजा, मिंट, तुलसी, जिरेनियम, अश्वगंधा, कालमेघ, पचौली और कैमोमाइल जैसी फसलों को उगाने की ट्रेनिंग दी जा रही है। यह ट्रेनिंग लखनऊ में आयोजित की जाएगी। सीएसआईआर-केंद्रीय औषधीय एवं सगंध अनुसंधान संस्थान मिलकर आगामी 26 से 28 अप्रैल तक किसानों के लिए एक ट्रेनिंग कार्यक्रम शुरू कर रहा है। जिसमें किसानों को सुगंधित फसलों की खेती के लिए प्रशिक्षण दिया जाएगा। इस ट्रेनिंग में फसलों की प्रोसेसिंग की भी पूरी जानकारी दी जाएगी। साथ ही फसलों की गुणवत्ता और बाजार में उनके भाव को लेकर भी जागरुख किया जाएगा। यह भी पढ़ें: इस राज्य के किसान अब करेंगे औषधीय और सुगंधित पौधों की खेती जो भी किसान भाई इस ट्रेनिंग प्रोग्राम में हिस्सा लेना चाहते हैं वो डायरेक्टर सीआईएमएपी, लखनऊ के नाम पर भारतीय स्टेट बैंक में 3 हजार रुपये की फीस का भुगतान कर सकते हैं। जिसका खाता नंबर 30267691783 है तथा IFSC कोड SBIN000012 है । इसके बाद रुपये भेजने का प्रमाण पत्र या रशीद मेल आईडी training@cimap.res.in पर भी भेजें। सीएसआईआर-केंद्रीय औषधीय एवं सगंध अनुसंधान संस्थान ने अपने नोटिफिकेशन में बताया है कि किसानों का चयन पहले आओ पहले पाओ के आधार पर किया जाएगा। किसान को ट्रेनिंग के दौरान लखनऊ में रहने की व्यवस्था खुद करनी होगी। ट्रेनिंग के दौरान किसानों को दोपहर का खाना उपलब्ध करवाया जाएगा। इस बार की ट्रेनिंग के लिए मात्र 50 सीटें उपलब्ध हैं। अधिक जानकारी के लिए किसान भाई  0522-2718596, 598, 606, 599, 694 पर संपर्क कर सकते हैं।
करौंदे की खेती से होगा बम्पर मुनाफा, जल्द ही मालामाल हो सकते हैं किसान

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करौंदा एक ऐसी फसल है जो किसानों को अतिरिक्त सुरक्षा देने का काम करती है। यह एक बागवानी फसल है जिससे किसान भाई हर रोज कमाई कर सकते हैं। अगर किसान भाई अपने खेत में 100 करौंदा के पेड़ लगाते हैं तो वह 20 हजार रुपये की कमाई बेहद आसानी से कर सकते हैं। आइए हम आज आपको बताने जा रहे हैं कि करौंदा की खेती कैसे करें, ताकि कम समय में ही आप जल्द से जल्द पैसे कमा सकें। करौंदा एक झाड़ीदार कांटे वाला पेड़ होता है। इसलिए इसे देखभाल की कोई खास जरूरत नहीं होती है। काटों के कारण इसके पौधे के पास कोई जानवर भी नहीं आता। यह एक ऐसी फसल होती है जिसे लगाने के लिए अतिरिक्त जमीन की जरूरत भी नहीं होती। इसे आप खेत के चारों ओर लगा सकते हैं। यह ऐसा पौधा होता है जो बिना पानी के भी कई दिनों तक जीवित रह सकता है। इसमें सूखे को सहन करने की अद्भुत क्षमता पाई जाती है। इसलिए करौंदा बंजर और रेतीली भूमि में भी बेहद आसानी से उग जाता है। इसका पेड़ लगभग 6 से 7 फीट तक ऊंचा होता है। करौंदे की खेती ठंडी जलवायु में कर पाना संभव नहीं है।

करौंदा के लिए उपयुक्त मिट्टी का चुनाव

इसकी खेती के लिए बलुई और दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी का चुनाव करते समय ध्यान रखें कि खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था हो। साथ ही मिट्टी का पीएच मान 6 से 8 के बीच होना चाहिए।

करौंदा की उन्नत किस्में

वैसे तो बाजार में करौंदा की बहुत सारी किस्में उपलब्ध हैं। लेकिन कैरिसा इब्लिसा, मनोहर, पंत स्वर्ण और सीआईएसएच करौंदा-2 जैसी किस्में किसानों के द्वारा सबसे ज्यादा पसंद की जाती हैं। इन किस्मों के पेड़ों के फल बड़े होते हैं और उत्पादन भी ज्यादा होता है।

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करौंदा की पौध तैयारी एवं रोपाई

करौंदा की पौध की तैयारी बीजों के माध्यम से करते हैं। इसके लिए करौंदा के पके हुए फलों से बीज निकाल लेते हैं और पौधशाला में बुवाई कर देते है। 40 से 60 दिन पुराने पौधों को पन्नी में भरकर रोपाई के लिए तैयार कर लेते हैं। करौंदा के पौधों की रोपाई जुलाई और अगस्त माह में की जाती है। अगर किसान के पास सिंचाई की उचित व्यवस्था है तो इसकी रोपाई फरवरी से मार्च माह के बीच भी की जा सकती है। करौंदा के पेड़ों की रोपाई गड्ढों में करें। इसके लिए खेत में 2 फ़ीट व्यास का गड्ढे बना लें, साथ ही रोपाई के 30 दिन पहले गड्ढों को गोबर की सड़ी हुई खाद से भर दें। रोपाई के समय एक पेड़ से दूसरे पेड़ के बीच कम से कम एक मीटर का फासला जरूर रखें।

करौंदा के लिए खाद एवं उर्वरक की मात्रा

करौंदा की अच्छी ग्रोथ के लिए खाद एवं उर्वरक देना बेहद जरूरी है। जब करौंदा की पौध की रोपाई करें तब प्रति पौधा के हिसाब से 5 किलो गोबर, 150 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 100 ग्राम यूरिया व 75 ग्राम पोटाश दें। खाद एवं उर्वरक की इतनी मात्रा पहले तीन सालों तक देनी है। जब पौधा बड़ा हो जाए तो 450 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 300 ग्राम यूरिया, 15-20 किलो गोबर की खाद व 225 ग्राम पोटाश प्रति वर्ष के हिसाब से दे सकते हैं।

करौंदा के पौधों की सिंचाई

करौंदा के पौधों को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं पड़ती। ये पौधे कम पानी में भी काम चला सकते हैं। लेकिन गर्मियों के मौसम में 10 से 15 दिन के अंतराल में पानी देते रहना चाहिए। इसके अलावा सर्दियों के मौसम में इन पौधों में ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती। बरसात के मौसम में पौधों के पास से उचित जल निकासी की व्यवस्था जरूर करें।

करौंदा के फलों की तुड़ाई एवं कमाई

करौंदा के पौधे लगाने के 4 से 5 साल बाद इनमें फल आने लगते हैं। पेड़ों पर फल आने के 2 से 3 माह बाद इनकी तुड़ाई की जा सकती है। करौंदा के फलों का उपयोग अचार, सब्जी व चटनी बनाने के लिए किया जाता है। इसके अलावा इसके फलों से जेली भी बनाई जाती है। करौंदा का एक पेड़ 15 से 25 किलो के बीच फल दे सकता है। जिनके फलों की तुड़ाई करके 2 से 3 दिन के बीच विक्रय के लिए मंडी भेज दिया जाता है। अगर किसान एक एकड़ में करौंदा के पेड़ों को लगाएं तो आसानी से 1 लाख रुपये तक की कमाई कर सकते हैं।
लाल चंदन की खेती से किसान कुछ ही वर्षों में मालामाल हो सकते हैं

लाल चंदन की खेती से किसान कुछ ही वर्षों में मालामाल हो सकते हैं

यदि आप भी अपने खेतों में चंदन की खेती करना चाहते हैं, तो इसके लिए यह लेख एक बार अवश्य पढ़ लें। जिससे कि आप कम वक्त में इससे ज्यादा से ज्यादा मुनाफा उठा सकें। जैसा कि हम जानते हैं, कि भारत के अधिकांश ग्रामीण लोग खेती करके ही अपना जीवन यापन करते हैं। परंतु, आज के दौर में देखा जाए तो किसान खेती से ज्यादा धन नहीं कमा पा रहे हैं। कुछ किसानों ने तो पारंपरिक खेती को छोड़कर बाकी तरीकों को अपनाना चालू कर दिया है।

लाल चंदन की खेती करेगी मालामाल

परंतु, आज हम आपके लिए ऐसी कृषि की जानकारी लेकर आए हैं, जिसको अपनाकर आप करोड़पति तक बन सकते हैं। इसके लिए आपको ज्यादा कुछ करने की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी। केवल थोड़ा सा धैर्य धारण करना पड़ेगा। अर्थात एक बार इस पौधे को अपने खेत में रोपने के पश्चात आपको कुछ वर्षों तक प्रतीक्षा करनी होगी। दरअसल, जिस खेती की हम बात कर रहे हैं, उसका नाम लाल सोना की खेती है। बतादें कि आज के समय में यह विश्व भर में सबसे ज्यादा मुनाफे का व्यवसाय साबित हो रही है। ये भी पढ़े:
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लाल चंदन को लाल सोना क्यों बोलते हैं

दरअसल, आज हम जिस लाल सोने की चर्चा कर रहे हैं, उसको बाजार में चंदन भी कहा जाता है। इसकी कीमत देश-विदेश के बाजार में काफी ज्यादा होती है। यदि आप अपने खेत में लाल सोने के पौधों को रोपते हैं, तो आप कुछ ही वर्षों के अंदर इसको बाजार में बेचकर करोड़ों रुपए आसानी से कमा सकते हैं। फिलहाल, आपके दिमाग में यह बात आ रही होगी कि यदि इसकी खेती की मांग और कीमत इतनी ज्यादा है, तो भारत का प्रत्येक किसान लाल सोने की खेती क्यों नहीं करता है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इसकी खेती करना कोई आसान काम नहीं है। इसके लिए किसानों को काफी दीर्घ काल तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है। वहीं, समय-समय पर इसकी देखभाल से लेकर बहुत सारे जरूरी काम भी करने होते हैं।

लाल चंदन के एक पेड़ की कीमत

भारतीय बाजार में लाल सोना मतलब की चंदन के पेड़ की कीमत लाखों में होती है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, बाजार में इसके एक ही पेड़ की कीमत लगभग 6 लाख रुपए तक होती है।

चंदन के पेड़ की खेती हेतु सरकारी सहायता

भारत सरकार की ओर से भी चंदन के पेड़ की खेती करने के लिए आर्थिक रूप से सहायता की जाती है। मीडिया खबरों के अनुसार, लाल सोना मतलब कि चंदन की खेती के लिए सरकार से किसानों को 28-30 हजार रुपए तक आर्थिक रूप से सहायता की जाती है। ये भी पढ़े: चंदन के समान मूल्यवान इन पेड़ों की लकड़ियां बेचकर होश उड़ाने वाला मुनाफा हो सकता है

एक हेक्टेयर भूमि में लाल चंदन के कितने पौधे लगेंगे

यदि आप बाजार के अंदर इसके एक पौधे को खरीदने के लिए जाते हैं, तो आपको इसका एक ही पौधा 100 से लेकर 150 रुपए तक पड़ेगा। वहीं, यदि आप अपने खेत के एक हेक्टेयर में इसकी खेती करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको तकरीबन 600 पौधों की जरूरत पड़ेगी। जो कि 12 साल में अच्छे से तैयार हो जायेंगे। समय के अनुरूप आपको इन 600 पेड़ों का भाव बाजार के अंदर मिलेगा। यदि हम वर्तमान भाव के अनुरूप बात करें तो आप लाल सोने के 600 पेड़ों से कम से कम 30 करोड़ रुपए अर्जित कर सकते हैं।
लैंटाना के फूल को अपने घर गमले में लगाकर आर्थिक तंगी दूर करें

लैंटाना के फूल को अपने घर गमले में लगाकर आर्थिक तंगी दूर करें

लैंटाना फूल के विभिन्न फायदे हैं, इसे घर में रखना काफी शुभ है। आज हम आपको इस लेख में इसके फायदों के संदर्भ में बात करेंगे। लैंटाना फूल काफी ज्यादा सुगंधित होता है। लैंटाना अपनी सुगंध के लिए यह विश्व भर में प्रसिद्ध है। लैंटाना के फूल रंगबिरंगे होते हैं। यह फूल सफेद, गुलाबी, पीला, नारंगी और लाल आदि रंगों में मिल जाऐंगे। यह उसकी खूबसूरती का प्रमुख कारण है। इसलिए ही इन्हें बगीचों में और घर के गमलों में उगाया जाता है। इस फूल को घर में लगाने के अनेकों लाभ होते हैं। माना जाता है, कि यह फूल किसी भी घर की आर्थिक समस्याओं को दूर कर सकते हैं। तो आइये जानें इस फूल को गमले में उगाने का सरल तरीका।

लैंटाना के फूल कीड़ों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं

लैंटाना के फूल छोटे और बटोहियों में इकठ्ठे होते हैं, जो उन्हें बहुत ही आकर्षक बनाते हैं। इनको अंडे की भाँति गुच्छे में देखा जा सकता है, जिनमें एक से ज्यादा रंगों के फूल होते हैं। यह फूल छोटे गोल आकार के होते हैं, जो बगीचों में खूबसूरत जीवाणु को आकर्षित करते हैं। लैंटाना फूल की एक और खासियत यह है, कि यह बेहद तीव्रता से विकसित होते हैं। आहिस्ते-आहिस्ते यह संपूर्ण बगीचे में भर जाते हैं। मुख्य बात यह है, कि कट जाने के पश्चात भी यह फूल पुनः उग जाते हैं। इसके पौधों के छोटे टुकड़े भी अपने आप में जुड़ जाते हैं और नए पौधे उगने शुरू हो जाते हैं।

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लैंटाना आपके घर की सुंदरता बढ़ाता है

गमले के अंदर लैंटाना उगाना आपके बालकनी के लिए लाभकारी और खूबसूरत हो सकता है। ऐसे गमला का चयन करें जिनकी साइज कम से कम 12 इंच (30 सेमी) हो और जल निकासी हेतु नीचे छेद हो। लैंटाना के फूल किसी भी तरह की मृदा में उग सकते हैं। लैंटाना के पौधे को उसके नर्सरी कंटेनर से धीरे से निकालें और गमले के बिल्कुल मध्य में रखें। पौधे के चारों तरफ बची हुई जगह को पॉटिंग मिक्स से भरें। लैंटाना पूरी धूप में पनपते हैं, इस वजह से गमले को ऐसी स्थान पर रखें जहां पर प्रतिदिन कम से कम 6 से 8 घंटे सूरज का प्रकाश मिलता है। अगर आप इसे घर के अंदर उगा रहे हैं, तो इसको धूप वाली खिड़की के समीप रखें।

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लैंटाना फूल का इस्तेमाल किन बीमारियों के इलाज में किया जाता है

रोपण के पश्चात पौधे को बेहतरीन ढ़ंग से पानी दें और मृदा को समान रूप से नम रखें। लैंटाना के फूल झाड़ीदार हो जाते हैं, इस वजह उनके आकार को व्यवस्थित रखने और ज्यादा खिलने के लिए कभी-कभी छंटाई की जरूरत होती है। लैंटाना सामान्य रूप से अधिकांश कीटों और बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी होते हैं। लैंटाना फूल घर के लिए बेहद शुभ माने जाते हैं। इससे आर्थिक समस्या दूर रहने के साथ-साथ घर में शांति भी बनी रहती है। लैंटाना के कुछ लाभकारी औषधीय गुण हो सकते हैं, जैसे कि इसके पत्तों और पुष्पों का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार के दर्द, घाव एवं सूजन के उपचार में किया जा सकता है। हालांकि, यह उपचार डॉक्टर के परामर्श के मुताबिक ही किया जाना चाहिए।