मधुमक्खी पालन को बनाएं आय का स्थायी स्रोत : बी-फार्मिंग की सम्पूर्ण जानकारी और सरकारी योजनाएं - Meri Kheti

मधुमक्खी पालन को बनाएं आय का स्थायी स्रोत : बी-फार्मिंग की सम्पूर्ण जानकारी और सरकारी योजनाएं

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मधुमक्खी पालन की जानकारी और मधुमक्खी पालन व्यवसाय के लिए सरकारी अनुदान (Honey Bee Farming information in Hindi and Government subsidy for Beekeeping Business)

जब भी हम कभी मधुमक्खी (मधुमक्षी / Madhumakkhi / Honeybee) का नाम सुनते हैं तो हमारे मन में मधु या शहद (अंग्रेज़ी:Honey हनी) का ख्याल जरूर आता है, जैसे की लोकप्रिय वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था-

यदि पृथ्वी से मधुमक्खियां खत्म हो जाएगी तो अगले 3 से 4 वर्षों में मानव प्रजाति भी खत्म हो जाएगी

इसी मंशा को ध्यान में रखते हुए मधुमक्खी पालन करने वाले किसानों की आय में बढ़ोतरी और प्रजाति के संरक्षण के लिए कृषि और पशु वैज्ञानिक निरंतर मधुमक्खी पालन से जुड़ी नई तकनीकों का विकास कर रहे हैं।

आर्थिक सर्वेक्षण 2021 (Economic survey 2021-22) के अनुसार भारत में शहद का मार्केट लगभग 21 बिलियन रुपए का है, जो कि 2027 तक 40 बिलियन रुपए होने का अनुमान है। इतने बड़े वैल्यू मार्केट को सही समय पर सही तकनीक का फायदा पहुंचाने के लिए सरकार भी प्रयासरत है।

क्या होता है मधुमक्खी पालन (Bee-Farming) :

भारत के प्राचीन कालीन इतिहास से ही कई जनजातियां एवं जंगलों में रहने वाले किसानों के द्वारा मधुमक्खी पालन किया जा रहा है, हाल ही में शहद की बढ़ती डिमांड की वजह से इस क्षेत्र में कई युवा किसानों की रुचि भी बढ़ी है।

मधुमक्खी पालन को एपीकल्चर(Apiculture) के नाम से भी जाना जाता है।

वर्तमान में आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर मधुमक्खियों के लिए अलग-अलग डिजाइन के छत्ते (honeycomb / beehive; बीहाइव )  तैयार किए जा रहे हैं और इन्हीं कॉम्ब में मधुमक्खियों को रखा जाता है, जो आस पास में ही स्थित फूलों से शहद इकट्ठा कर छत्ते में जमा करती है, जिसे बाद में एकत्रित कर बाजार में बेचा जाता है।

पुष्प से मधुरस चूसती हुई मधुमक्खी
पुष्प से मधुरस चूसती हुई मधुमक्खी

मधुमक्खी पालन से होने वाले फायदे :

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के अनुसार मधुमक्खी पालन से ना केवल किसानों की आय बढ़ेगी, बल्कि इस मधुमक्खी पालन वाले स्थान के आसपास स्थित खेत में मक्खियों के द्वारा परागण या पोलिनेशन (Pollination) करने की वजह से खेत से उगायी गयी फसल की उपज भी अधिक प्राप्त होती है।

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मधुमक्खी पालन से प्राप्त होने वाले उत्पाद :

मुख्यतः मधुमक्खी पालन शहद प्राप्त करने के लिए ही किया जाता है, मधुमक्खियों से प्राप्त होने वाले प्राकृतिक शहद में कई प्रकार की औषधीय गुण होते हैं और इसे मानवीय शरीर में होने वाली कई प्रकार की बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है।

बोतल में छत्ते के साथ रखी मधु_source-wikipedia-karlovic1
बोतल में छत्ते के साथ रखी मधु _source-wikipedia-karlovic1

मधुमक्खी पालन से प्राप्त होने वाले अन्य उत्पाद :

  • मधुमक्खी वैक्स (मोम; Beeswax ) :

आपने अपने घर में कई बार मोमबत्ती का इस्तेमाल किया होगा, यह मोमबत्ती मधुमक्खी पालन से ही प्राप्त एक उत्पाद होता है। वर्तमान में बढ़ती मोम की डिमांड भी किसानों को अच्छा मुनाफा दे रही है।

इसके अलावा इस वैक्स का इस्तेमाल कई प्रकार के फार्मास्यूटिकल और कॉस्मेटिक व्यवसाय में भी किया जाता है।

  • मधुमक्खी जहर (Bee-Venom) :

जब मधुमक्खियां अपनी सुरक्षा के लिए डंक मारती है, तो उनके शरीर में पाया जाने वाला वेनम (venom) यानि जहर हमारे शरीर में चला जाता है, जिससे सूजन और मांसपेशियों में दर्द होता है।

आधुनिक तकनीक की मदद से अब इस इस वेनम को भी मधुमक्खियों से प्राप्त किया जा रहा है, इसका इस्तेमाल आर्थराइटिस यानी गठिया (arthritis) जैसी खतरनाक बीमारी के इलाज में किया जाता है और जोड़ों में होने वाले दर्द के लिए होने वाली एपिथेरेपी (Apitherapy) में भी इस उत्पाद का इस्तेमाल किया जाता है।

मधुमक्खी के डंक को एपिथेरेपी सत्र के दौरान लगाया जा रहा है (Bee sting being applied during an apitherapy session.)(By Historias de Luz - https://www.youtube.com/watch?v=HlGIroSEiuk, CC BY-SA 2.5, https://commons.wikimedia.org/w/index.php?curid=81276694)
मधुमक्खी के डंक को एपिथेरेपी सत्र के दौरान लगाया जा रहा है (By Historias de Luz – https://www.youtube.com/watch?v=HlGIroSEiuk, CC BY-SA 2.5, https://commons.wikimedia.org/w/index.php?curid=81276694)
  • रॉयल जेली (Royal Jelly) :

मधुमक्खी पालन से ही प्राप्त होने वाला यह उत्पाद स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद होता है और इससे बनने वाली दवाइयों का इस्तेमाल फर्टिलिटी (Fertility) से जुड़े रोगों के इलाज के लिए किया जाता है।

सुपरफूड के रूप में इस्तेमाल किया जाने वाला यह उत्पाद कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के द्वारा खरीदा जा रहा है।

भारत में आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु क्षेत्र के कई किसान रॉयल जैली को बेचकर अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे हैं।

  • मधुमक्खी के द्वारा तैयार किया गया छत्ता गोंद (Propolis) :

इसे मधुमक्खियों के घर के रूप में जाना जाता है। हरियाणा और पंजाब के कुछ आधुनिक किसानों के लिए मधुमक्खी का छत्ता भी आय का अच्छा स्रोत बन कर सामने आया है। इसका इस्तेमाल गोंद बनाने में किया जाता है, जिससे कई बीमारियों का इलाज किया जाता है।

ऊपर बताए गए इन सभी उत्पादों के अलावा भी मधुमक्खियों से कई दूसरे प्रकार के उत्पाद प्राप्त होते हैं, जोकि मधुमक्खियों के संरक्षण में किए जा रहे प्रयासों की सुदृढ़ता तो बढ़ाते ही है, साथ ही लोगों के लिए रोजगार उपलब्ध करवाने के अलावा किसानी परिवार को भी मदद प्रदान करते हैं।

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बड़ी ब्रांड की कंपनियों का शहद वर्तमान में पन्द्रह सौ रुपए प्रति किलो की दर से बिकता है और इसकी मांग भविष्य में और तेजी से बढ़ने की संभावनाएं हैं, इसीलिए समुचित विकास को ध्यान में रखते हुए किसान भाई भी नीचे बताए गए तरीके से मधुमक्खी पालन कर सकते हैं :

कैसे करें मधुमक्खी की प्रजाति का चयन ?

अलग-अलग पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुसार मधुमक्खी की अलग-अलग प्रजातियों का पालन किया जाता है, ऐसी ही कुछ प्रजातियां निम्न प्रकार है :-

  • यूरोपियन मधुमक्खी (European Bees) :

इस प्रकार के मधुमक्खी को पालने पर एक कॉलोनी से लगभग 25 से 30 किलोग्राम शहद इकट्ठा किया जा सकता है।

यह मधुमक्खी मुख्यतः पतझड़ मौसम के समय ज्यादा उत्पादन देती है।

यूरोपियन हनी बी पराग टोकरी में पराग ले अपने छत्ते में वापस उड़ता हुआ
यूरोपियन हनी बी पराग टोकरी में पराग ले अपने छत्ते में वापस उड़ता हुआ
  • भारतीय मधुमक्खी (Indian or Asian Bees ) :

मधुमक्खी पालन की शुरुआत करने वाले व्यक्ति ज्यादातर इसी मधुमक्खी को पालते हैं।

हालांकि इस प्रजाति की एक कॉलोनी में 6 से 8 किलोग्राम शहद ही प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन इसका पालन करना आर्थिक रूप से कम दबाव वाला होता है।

  • स्टिंग्लेस मधुमक्खी (Stingless Bees) :

कम प्रति व्यक्ति आय वाले किसान भाई दवाइयां बनाने में इस्तेमाल आने वाले शहद और छत्ते के उत्पादन के लिए इस मधुमक्खी का पालन करते हैं।

यह मधुमक्खी एक बेहतरीन पोलिनेटर के रूप में भी काम करती है और इसके छत्ते के आसपास उगने वाले पेड़ पौधों और फसलों को फायदा पहुंचाती है।

इसके अलावा मधुमक्खियों की एक कॉलोनी में रहने वाली सभी मक्खियों को अलग-अलग श्रेणी में बांटा गया है, जिनमें रानी मधुमक्खी, ड्रोन मधुमक्खी और वर्कर मधुमक्खी को शामिल किया जाता है।

रानी मधुमक्खी अंडे देती है और ज्यादातर समय कॉम्ब के अंदर ही बिताती है, जबकि ड्रोन मधुमक्खी रानी के साथ मेटिंग करने का काम करते हैं।

इसके अलावा वर्कर श्रेणी की मधुमक्खियां छाते से बाहर निकल कर फूलों के मधुरस या नेक्टर (Nectar) से शहद का निर्माण करती हैं।

कैसे चुनें मधुमक्खी पालन के लिए सही जगह ?

मधुमक्खी पालन के लिए जगह चुनने से पहले ध्यान रखना चाहिए कि इनके कृत्रिम छत्तों को उसी स्थान पर लगाएं जहां पर पानी का कोई अच्छा स्रोत उपलब्ध हो, जैसे मानव निर्मित तालाब या नदी और झील का तटीय क्षेत्र।

इसके अलावा छत्ते के आसपास के क्षेत्र में पर्याप्त मात्रा में वनस्पति होनी चाहिए, जिनमें सूर्यमुखी, मोरिंगा और कई दूसरे प्रकार के फूलों के पौधे हो सकते हैं।

जगह को चुनने के बाद उसमें कृत्रिम छत्ते लगाने के उपरांत तुरंत इस जगह को बाहर से आने वाले लोगों के लिए पूरी तरीके से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।

मधुमक्खी विकास क्षेत्र में काम कर रहे वैज्ञानिकों के अनुसार किसी सड़क और ध्वनि प्रदूषण वाले क्षेत्रों से मधुमक्खी के छत्तों को हमेशा दूर ही लगाना चाहिए, क्योंकि निरंतर ध्वनि प्रदूषण वर्कर मधुमक्खी की शहद एकत्रित करने की क्षमता को कम करने के अलावा कई प्रकार की बीमारियों के लिए भी जिम्मेदार हो सकता है।

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कैसे करें मधुमक्खी के छत्ते का चुनाव और क्या हो पूरी प्रक्रिया ?

मधुमक्खी पालन के लिए सबसे पहले मधुमक्खी के कृत्रिम छत्ते की आवश्यकता होती है। इस छत्ते का आकार और डिज़ाइन आपके निवेश और बिजनेस की अवधी पर निर्भर कर सकता है। एक एकड़ के क्षेत्र में लगभग 3 से 4 मधुमक्खी के बड़े छत्ते लगाए जा सकते हैं।

इन छत्तों को समय पर निरंतर निगरानी करने के लिए और सुरक्षा के लिए एक बॉक्स की आवश्यकता होती है। इस प्रकार के बॉक्स में फ्लोर और बॉटम बोर्ड के अलावा लकड़ी के बने हुए फ्रेम होते है, जो कि एक सुपर चेंबर की तरह कार्य करते हैं। यह बॉक्स ऊपर और नीचे से ढका रहता है, जिसमें मधुमक्खियों के जाने के लिए जगह बनाई रहती है।

बड़े स्तर पर व्यवसाय करने के लिए कई दूसरे प्रकार के उपकरण जैसे कि क्वीन गेट, हाउस टूल और शुगर फिटर के अतिरिक्त एक स्मोकर की आवश्यकता होती है।

मधुमक्खी के छत्ते/बॉक्स को हमेशा पीले और हल्के हरे रंग से ही रंग किया चाहिए, जिससे मधुमक्खियों को जगह का आसानी से पता चल जाए, कभी भी मधुमक्खी के छत्ते को लाल या काले रंग से नहीं रँगना चाहिए।

अब इस बॉक्स रूपी छत्ते में बाहर से लाकर मधुमक्खियों को डाल दिया जाता है। भारतीय मधुमक्खियां खासतौर पर पहले से तैयार किए हुए घर में रहना पसंद करती हैं, हालांकि यूरोपीयन मधुमक्खियां कई बार इस तरह तैयार छत्तों को छोड़कर आसपास में ही अपना खुद का छत्ता भी बना लेती हैं।

मधुमक्खी पालन में आने वाली समस्याएं और लगने वाले रोग :

वैसे तो मधुमक्खियां खुद ही एक बेहतरीन पोलिनेटर के रूप में कार्य करती हैं, इसलिए इनमें ज्यादा बीमारियां नहीं होती है, लेकिन बदलते पर्यावरणीय प्रभाव और कीटनाशकों के अधिक प्रयोग से फूलों में पहुंचे दूषित और केमिकल तत्व मधुमक्खियों के शरीर में चले जाते हैं, जो कि उनके लिए नुकसानदायक हो सकते हैं।

  • वरोआ माइट (Varroa mites) :

यह कीट पिछले कई सालों से मधुमक्खी की कॉलोनियों को नुकसान पहुंचाने में सबसे बड़ी भूमिका निभा रहा है। यह बड़ी से बड़ी मधुमक्खियों को भी नुकसान पहुंचा सकता है।

 वरोआ माइट का शीर्ष और निचले व्यूज
वरोआ माइट का शीर्ष और निचले व्यूज

मुख्यतः यह लार्वा और प्यूपा की मदद से प्रजनन करते हैं और धीरे-धीरे मधुमक्खियों के छत्ते तक अपनी पहुंच बना लेते हैं।

इससे ग्रसित हुई मधुमक्खियां के पंख धीरे-धीरे टूटने लगते हैं और उनके शरीर के कई अंगों को नुकसान होना शुरू हो जाता है।

हॉर्टिकल्चर क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिकों के अनुसार इस रोग के इलाज के लिए एपिवरोल टेबलेट (Apiwarol tablet) का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिसे पानी में मिलाकर मधुमक्खी के छाते के ऊपर तीन दिन के अंतराल में चार से पांच बार स्प्रे करना रहता है।

  • होर्नेट कीट (Hornet pest) :

मधुमक्खी पालन के दौरान यह कीट सबसे ज्यादा हानिकारक होता है और यह मधुमक्खी की पूरी कॉलोनी पर ही आक्रमण कर देता है और उन्हें पूरी तरीके से कमजोर बना देता है और धीरे-धीरे मधुमक्खियों को मारते हुए उसके छत्ते पर ही अपना कब्जा कर लेता है।

Asian-giant-hornets-start-a-mass-assault-on-a-honeybee-hive_Credit_Alastair-Macewen_Getty-Images

इस प्रकार की कीट से बचने का सर्वश्रेष्ठ उपाय यह है कि उस पूरे छत्ते को ही नष्ट कर देना चाहिए, जिससे कि यह आसपास में ही स्थित दूसरे छत्तों में ना फैले।

हालांकि इसके अलावा भारतीय मधुमक्खी की प्रजाति में कई दूसरी प्रकार की माइक्रोबियल बीमारियां भी होती है, जोकि बैक्टीरिया के अधिक वृद्धि के कारण होती है। इसके इलाज के लिए एंटीमाइक्रोबॉयल टेबलेट का एक घोल बनाकर उसे कॉलोनी के आसपास के क्षेत्र में समय समय पर स्प्रे करना चाहिए।

कैसे करें मधुमक्खी की कॉलोनी का अच्छे से प्रबंधन ?

जब भी किसी फूल के पौधे से नेक्टर निकलने का समय होता है उस समय तो मधुमक्खियां अपने आप जाकर खाने की व्यवस्था कर लेती है, लेकिन बारिश और ऑक्सीजन के दौरान इनके भोजन के लिए 20 से 25 किलोग्राम शुगर की आवश्यकता होती है।

मधुमक्खी पालन के दौरान किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि किसी भी प्रजाति को भूखा नहीं रखना चाहिए और शुगर तथा पोलन सप्लीमेंट को मिलाकर एक पेस्ट तैयार करके इसमें प्रोटीन के कुछ मात्रा के लिए सोयाबीन का आटा मिला सकते हैं। इस तैयार पेस्ट को मधुमक्खियों की कॉलोनी के बाहर रख देना चाहिए, जिसे समय मिलने पर कॉलोनी के सभी सदस्य अपने आप भोजन के रूप में इस्तेमाल कर लेंगे।

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मधुमक्खी पालन बढ़ाने के लिए किए गए सरकारी प्रयास :

मधुमक्खी पालन व्यवसाय की भविष्यकारी सम्भावनाओं को समझते हुए भारत सरकार और कई स्थानीय राज्य सरकारें लोगों को मधुमक्खी पालन के लिए प्रोत्साहित कर रही है।

पिछले कुछ समय से भारत सरकार ने स्वीट रिवॉल्यूशन यानी मधु क्रांति (Madhukranti) नाम का पायलट प्रोजेक्ट भी शुरू किया है, जो मुख्यतः मधुमक्खी उत्पादन व्यवसाय में सक्रिय लोगों को नई तकनीकों के बारे में जानकारी देने के अलावा उन्हें बेहतर उत्पादन के लिए अच्छी ट्रेनिंग की सुविधा भी उपलब्ध करवाता है।

इसके अलावा राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड (National Bee Board – NBB) के द्वारा लांच किये गए राष्ट्रीय मधुमक्खीपालन और मधु मिशन (नेशनल बीकीपिंग एंड हनी मिशन; National Beekeeping and Honey Mission – NBHM) की मदद से भारत सरकार मधुमक्खी से प्राप्त होने वाले उत्पाद की गुणवत्ता की बेहतर जांच के लिए स्रोत उपलब्ध करवाने के साथ ही किसानों की आय बढ़ाने को मुख्य लक्ष्य के रूप में रखा गया है।

Government websites screenshots of madhukranti, nbb, kvic

बदलते वैश्विक परिदृश्य में शहद के निर्यात में भारत की भागीदारी बढ़ाने के लिए किए जा रहे प्रयासों के तहत हनी कॉर्नर नाम का एक मार्केटिंग टूल भी तैयार किया गया है।

"मधुक्रांति पोर्टल" व "हनी कॉर्नर" सहित शहद परियोजनाओं का शुभारंभ कार्यक्रम से सम्बंधित सरकारी प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) रिलीज़ 
का दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें

आत्मनिर्भर भारत स्कीम के तर्ज पर काम करते हुए भारत सरकार मधु क्रांति के लिए साल 2017 से लगातार सब्सिडी उपलब्ध करवा रही है, इस प्रकार के नई सरकारी योजनाओं की अधिक जानकारी के लिए आप अपने राज्य सरकार के कृषि और बागवानी मंत्रालय की वेबसाइट पर जाकर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

शहद मिशन के अंतर्गत खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) किसानों को मधुमक्खी पालन के लिए जागरूकता के अलावा ट्रेनिंग और छत्ते के रूप में इस्तेमाल होने वाले बीबॉक्स (Beehive Box) उपलब्ध करवा रहा है।

आशा करते हैं कि भविष्य में मधुमक्खी पालन के लिए प्रयासरत किसान भाइयों को MERIKHETI.COM के द्वारा इस व्यवसाय के बारे में संपूर्ण जानकारियां मिल गई होगी और भविष्य में आप भी सरकारी स्कीमों का बेहतर इस्तेमाल करते हुए समुचित विकास की अवधारणा पर चलकर भारत के निर्यात को बढ़ाने के अलावा स्वयं की आर्थिक स्थिति को भी मजबूत कर पाएंगे।

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