Peach Farming - आड़ू की खेती से जुडी सम्पूर्ण जानकारी

Published on: 16-Oct-2025
Updated on: 16-Oct-2025

आडू की खेती कैसे करें - जानें, पूरी जानकारी

आड़ू, जिसे अंग्रेजी में Peach कहा जाता है, भारत के पर्वतीय एवं उपपर्वतीय क्षेत्रों में लोकप्रियता से उगाया जाने वाला एक स्वादिष्ट एवं पोषक फल है। इसका वानस्पतिक नाम Prunus persica है और यह Rosaceae कुल से संबंधित है। आड़ू के फल प्रोटीन, शर्करा, खनिज तथा विटामिन्स से भरपूर होते हैं। इसके ताजे फलों के साथ-साथ इसके प्रसंस्कृत उत्पादों से भी किसानों को अच्छा लाभ प्राप्त होता है। इस लेख में हम आड़ू की खेती से जुड़ी सभी आवश्यक जानकारियाँ विस्तारपूर्वक प्रस्तुत कर रहे हैं।

मिट्टी एवं जलवायु की आवश्यकताएँ

आड़ू की अच्छी पैदावार के लिए हल्की दोमट या बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी की गहराई कम से कम 2.5 से 3 मीटर और pH मान 5.5 से 6.8 के बीच होना चाहिए। जलनिकास की व्यवस्था उत्तम होनी चाहिए ताकि जलभराव न हो।

आड़ू की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है, जिसमें सर्दियों में तापमान कुछ समय के लिए 7°C से नीचे चला जाए। यह तापमान इसकी सुषुप्तावस्था और पुष्पन के लिए आवश्यक है।

प्रमुख किस्में

भारत में आड़ू की कई उन्नत किस्में उगाई जाती हैं, जिनमें प्रमुख हैं – शान-ए-पंजाब, प्रताप और खुर्मानी। ये किस्में स्वाद, आकार और उत्पादन क्षमता के लिहाज़ से अच्छी मानी जाती हैं।

प्रसार की विधियाँ

आड़ू का प्रसार मुख्यतः दो तरीकों से होता है:

1. बीज विधि: जंगली आड़ू के बीजों से रूटस्टॉक तैयार किया जाता है।

2. वेजेटेटिव विधि (कलम या ग्राफ्टिंग): वाणिज्यिक खेती में मुख्यतः यही विधि अपनाई जाती है।

रूटस्टॉक तैयार करना

बीजों को अंकुरण के लिए 4–10°C तापमान पर 10–12 सप्ताह तक नम बालू में रखा जाता है। इससे बीज परतबद्ध होते हैं। बुवाई से पूर्व बीजों को थायोयूरेआ (5 ग्राम/लीटर) या GA3 (200 मि.ग्रा./लीटर) में उपचारित करने से अंकुरण में सुधार होता है।

नर्सरी में बुवाई

अक्टूबर-नवंबर में बीजों की बुवाई 5 सेमी गहराई और 15 सेमी की दूरी पर तैयार बेड्स में की जाती है। बीजबिस्तर को सूखी घास से ढककर हल्की सिंचाई की जाती है ताकि नमी बनी रहे।

ग्राफ्टिंग विधियाँ

कलिकायन, टंग ग्राफ्टिंग और वेज ग्राफ्टिंग नवंबर-दिसंबर के दौरान की जाती हैं। यह विधि उच्च गुणवत्ता वाले पौधे तैयार करने में सहायक होती है।

खेत एवं गड्ढों की तैयारी

खेत को सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से जोता जाता है, फिर 2–3 बार आड़ी-तिरछी जुताई करके समतल किया जाता है। पौधों की रोपाई के लिए 4.5 × 4.5 मीटर की दूरी पर 0.75 मीटर गहरे, लंबे और चौड़े गड्ढे खोदे जाते हैं।

गड्ढों में ऊपरी मिट्टी के साथ निम्न सामग्री भरनी चाहिए:

  •  15–20 किग्रा गोबर की खाद
  •  100 ग्राम यूरिया
  •  100 ग्राम म्यूरिएट ऑफ पोटाश (MOP)
  •  300 ग्राम सुपर फॉस्फेट (SSP)
  •  50 ग्राम क्लोरोपाइरीफॉस डस्ट/ग्रान्यूल

गड्ढों को ज़मीन की सतह से लगभग 10 सेमी ऊँचा भरना चाहिए।

पौधे तैयार करना

बीजों को 10–15 सप्ताह तक ठंडे तापमान में रखकर उनकी अंकुरण क्षमता बढ़ाई जाती है। उसके बाद ग्राफ्टिंग विधियों से अच्छे किस्म के पौधे तैयार किए जाते हैं।

फसल की तुड़ाई एवं भंडारण

आड़ू की फसल अप्रैल से मई के बीच तैयार हो जाती है। जब फल का रंग आकर्षक हो और गूदा थोड़ा नरम हो जाए, तभी तुड़ाई करें। तुड़ाई के समय वृक्ष को हल्के से हिलाया जाता है। फलों को सामान्य तापमान पर रखा जा सकता है। इन्हें जैम, स्क्वैश आदि बनाने में भी उपयोग किया जा सकता है।

निष्कर्ष

इस प्रकार, आड़ू की खेती एक सुनियोजित प्रक्रिया है जिसमें उपयुक्त मिट्टी, अनुकूल जलवायु, पौधों की गुणवत्ता, खेत की सही तैयारी तथा समय पर तुड़ाई जैसी क्रियाओं का समन्वय आवश्यक होता है। यदि इन सभी बिंदुओं का ध्यानपूर्वक पालन किया जाए, तो किसान इस फसल से उत्तम उत्पादन और अच्छा मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं।

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