भारत में जीरे की खेती कैसे करें: जानें, जीरे की किस्में और खेती का तरीका

Published on: 07-Nov-2025
Updated on: 07-Nov-2025

जीरे की आधुनिक खेती से मिलेगी अधिक उपज जानिए कैसे 

Modern Cultivation of Cumin: भारत में जीरा एक मसाला फसल है, इसकी खेती मसाले के रूप में की जाती है। जीरे का वैज्ञानिक नाम Cuminum cyminum है जो की Apiaceae परिवार का सदस्य है। भारत में जीरे की खेती गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में रबी की फसल के रूप में की जाती है। जीरा देखने में बिल्कुल सोंफ की तरह ही होता है, किन्तु यह रंग में थोड़ा अलग होता है। जीरे का उपयोग कई तरह के व्यंजनों में खुशबु उत्पन्न करने के लिए करते है। इसके अलावा इसे खाने में कई तरह से उपयोग में लाते है, जिसमे से कुछ लोग इससे पॉउडर या भूनकर खाने में इस्तेमाल करते है। जीरे का सेवन करने से पेट संबंधित कई बीमारियों से छुटकारा मिल जाता है। इस लेख में हम आपको जीरे की खेती (cumin farming) के बारे में जानकारी देंगे। 

जीरे की खेती के लिए जलवायु (Cumin Cultivation)

जीरे का पौधा शुष्क जलवायु वाला पौधा है, तथा इसके पौधों को सामान्य बारिश की आवश्यकता होती है भारत में जीरे की खेती सबसे अधिक राजस्थान और गुजरात में की जाती है, यहाँ पर पूरे देश का कुल 80% जीरा उत्पादित किया जाता है, जिसमे 28% जीरे का उत्पादन अकेले राजस्थान राज्य में होता है, इसके पश्चिमी क्षेत्र में राज्य का कुल 80% जीरा उत्पादन होता है। 

हल्की बारिश लाभदायक रहती है, जबकि अधिक गर्मी इसकी वृद्धि पर विपरीत प्रभाव डालती है। रोपाई के बाद पौधों के लिए लगभग 25°C तापमान बेहतर माना जाता है, वहीं वृद्धि के दौरान 20°C तापमान आदर्श होता है। सामान्य रूप से यह फसल 20°C से 30°C तापमान की सीमा को बिना किसी परेशानी के सहन कर लेती है। फूल आने और फल लगने के दौरान उच्च आर्द्रता इस फसल में फफूंद जनित रोगों का कारण बनती है।  

जीरे की खेती के लिए मिट्टी की आवश्यकता                     

जीरे की अधिक उपज के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। खेत में जल निकासी अच्छी होनी चाहिए और मिट्टी का pH सामान्य स्तर पर रहना आवश्यक है। जीरा रबी सीजन में बोई जाने वाली फसल है, इसलिए यह ठंडी जलवायु में अच्छी तरह विकसित होती है। इसके पौधों को 

जीरे की किस्में 

वर्तमान समय में जीरे की कई तरह की उन्नत किस्मो को तैयार किया गया है, जो अलग-अलग जलवायु के हिसाब से अधिक पैदावार देने के लिए उगाई जाती है। S-404, MC-43, गुजरात जीरा -1(GC-1), GC-2, GC-3, RS-1, UC198, RZ-19, RC 4, RC 209 , RC 1 आदि जीरे की उन्नत किस्में है। 

जीरे की बुवाई के लिए भूमि की तैयारी        

जीरे की फसल करने से पहले उसके खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लिया जाता है। इसके लिए सबसे पहले खेत की मिट्टी पलटने वाले हलो से गहरी जुताई कर दी जाती है। जुताई के बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है। इसके बाद खेत में प्राकृतिक खाद के तौर पर 10 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद डालकर जुताई कर दी जाती है, इससे खेत की मिट्टी में खाद अच्छी तरह से मिल जाती है।  खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है। जुताई के बाद खेत में पानी लगाकर पलेव कर दिया जाता है। 

जीरे की बुवाई और बीज दर

बुवाई नवंबर के प्रथम सप्ताह से दिसंबर के प्रथम सप्ताह तक की जाती है। बुवाई छिटकवां (broadcasting) तरीके से या 30 सेमी की दूरी पर कतारों में की जा सकती है। बीज दर 12 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रहती है, जो बुवाई के तरीके और मिट्टी के प्रकार पर निर्भर करती है। बीजों की बुवाई 1–2 सेमी की गहराई पर करनी चाहिए। बुवाई से पहले बीजों का उपचार सेरासन (Ceresan), थिरम (Thiram) या डाइफोल्टन (Difoltan) से @ 3.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से जरूर करना चाहिए। बीजों को बुवाई से पहले करीब 8 घंटे तक भिगोकर रखना लाभदायक होता है, इससे अंकुरण अच्छा होता है। भिगोए हुए बीजों को छाया में सुखाकर ही छिटकवां बुवाई करें। बीजों को अधिक गहराई पर बोने से अंकुरण कम हो जाता है। कीट एवं रोगों के प्रभाव से बचाव हेतु फसल चक्र (Crop rotation) अपनाना चाहिए।

जीरे की फसल में उर्वरक और खाद प्रबंधन 

पलेव के बाद खेत की आखरी जुताई के समय 65 किलो डी.ए.पी. और 9 किलो यूरिया का छिड़काव खेत में करना होता है। इसके बाद खेत में रोटावेटर लगाकर खेत की मिट्टी को भुरभुरा कर दिया जाता है। मिट्टी के भुरभुरा हो जाने के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर दिया जाता है| इससे खेत में जलभराव की समस्या नहीं उत्पन्न होती है। इसके अतिरिक्त 20 से 25 KG यूरिया  की मात्रा को पौधों के विकास के समय तीसरी सिंचाई के दौरान पौधों को देना होता है |

जीरे की फसल में सिचांई प्रबंधन  

मिट्टी के प्रकार के अनुसार इस फसल को 4 से 6 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। पहली हल्की सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद देनी चाहिए। दूसरी सिंचाई पहली सिंचाई के 6 से 10 दिन बाद करें। इसके बाद की सिंचाइयाँ पहली सिंचाई से क्रमशः 30, 45, 65 और 80 दिन बाद दी जाती हैं। फूल आने और फल सेट बनने के समय सिंचाई अत्यंत आवश्यक है। फसल जब पकने की अवस्था में पहुँच जाए, तब सिंचाई बंद कर देनी चाहिए।

फसल में खरपतवार नियंत्रण 

जीरे के खेत में खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक और प्राकृतिक दोनों ही विधियों का इस्तेमाल किया जाता है। रासायनिक विधि में आक्साडायर्जिल की उचित मात्रा को पानी के साथ मिलाकर घोल बना लिया जाता है, जिसे बीज रोपाई के तत्पश्चात खेत में छिड़क दिया जाता है| प्राकृतिक विधि में पौधों की निराई-गुड़ाई की जाती है। इसकी पहली गुड़ाई बीज रोपाई के तक़रीबन 20 दिन बाद की जाती है, तथा बाकी की गुड़ाई को 15 दिन के अंतराल में करना होता है। इसके पौधों को अधिकतम दो से तीन गुड़ाई की ही आवश्यकता होती है। 

जीरे की फसल की कटाई और उपज 

जीरे की उन्नत किस्में बीज रोपाई के तक़रीबन 100 से 120 दिन पश्चात् कटाई के लिए तैयार हो जाती है। जब इसके पौधों में लगे बीजो का रंग हल्का भूरा दिखाई देने लगे उस दौरान पुष्प छत्रक को काटकर एकत्रित कर खेत में ही सूखा लिया जाता है। इसके बाद सूखे हुए पुष्प छत्रक से मशीन द्वारा दानो को निकल लिया जाता है। उन्नत किस्मो के आधार पर जीरे के एक हेक्टेयर के खेत से लगभग 7 से 8 क्विंटल की पैदावार प्राप्त हो जाती है।  

Merikheti.com आपको कृषि से जुड़ी हर नई जानकारी से अवगत कराते रहते हैं। इसके तहत ट्रैक्टरों के नए मॉडलों और उनके खेतों में उपयोग से संबंधित अपडेट लगातार साझा किए जाते हैं। साथ ही, स्वराजमहिंद्रान्यू हॉलैंडवीएसटी, और मैसी फर्ग्यूसन प्रमुख ट्रैक्टर कंपनियों के सभी ट्रैक्टर से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी आपको देती है।

श्रेणी