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असम के चाय उत्पादकों को सामान्य चाय उत्पादन की आशा

असम के चाय उत्पादकों को सामान्य चाय उत्पादन की आशा

चाय का उच्चतम उत्पादक राज्य माने जाने वाले असम राज्य के चाय उत्पादक पूर्व में बेहद चिंताग्रस्त थे। चिंता की वजह यह थी, कि उनको यह संभावना लग रही थी, कि उनकी कम बारिश की वजह से प्रथम फ्लश फसल प्रभावित होगी। दीर्घकाल से सूखे के उपरांत, असम के समस्त चाय बागानों में विगत कुछ दिनों में बेहतरीन बारिश हुई है। जिससे बागान मालिकों के मुँह पर खुशी छा गई है, क्योंकि बरसात से नए सीजन के पूर्व फ्लश उत्पादन के "सामान्य" होने की आशा है। ये भी पढ़े: भारत ने किया रिकॉर्ड तोड़ चाय का निर्यात चाय के उच्चतम उत्पादक राज्य असम में चाय उत्पादक पूर्व में बेहद चिंतित थे। क्योंकि, वह आशा कर रहे थे, कि कम वर्षा से पहली फ्लश फसल प्रभावित होगी। “इससे पहले असम के कुछ इलाकों में बारिश हुई थी, जबकि कुछ इलाके बिल्कुल सूखे रहे थे। लेकिन अब राज्य के सभी हिस्सों में बारिश हुई है। पिछले पांच दिनों में पूरे असम में बारिश हुई है। मुझे लगता है, कि पहली फ्लश फसल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। हमें एक सामान्य फसल मिलनी चाहिए, ” नॉर्थ ईस्टर्न टी एसोसिएशन (NETA) के सलाहकार बिद्यानंद बरकाकोटी ने बताया।

असम चाय उद्योग के लिए पहली फ्लश फसलों का उत्पादन सामान्यतयः मार्च और अप्रैल में किया जाता है।

“पहला फ्लश अब अच्छा रहा है, क्योंकि असम के सभी हिस्सों में बारिश हो रही है। मार्च की फसल पिछले साल की तुलना में बेहतर होनी चाहिए। पिछले साल फसल देरी से शुरू हुई थी। इस साल इसकी शुरुआत जल्दी हो गई है, जो अच्छी बात है। पिछले सप्ताह तक पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में वर्षा की कमी थी। अब निश्चित तौर पर यह आगे बढ़ गया है।" ये भी पढ़े: सही लागत-उत्पादन अनुपात को समझ सब्ज़ी उगाकर कैसे कमाएँ अच्छा मुनाफ़ा, जानें बचत करने की पूरी प्रक्रिया प्रथम फ्लश फसल असम में कुल चाय उत्पादन का तकरीबन 10% है। हालांकि, असम चाय उद्योग हेतु दूसरा फ्लश ज्यादा जरुरी है, क्योंकि यह प्रीमियम किस्म होती है। दूसरी फ्लश फसलें सामान्यतः मई एवं जून में उत्पादित की जाती हैं। 2022 में, असम चाय का उत्पादन 687.93 मिलियन किलोग्राम रहा था। वहीं, 2021 में यह 667.73 मिलियन किलोग्राम था। 2021 में उत्पादन वर्ष के आरंभिक माहों (जनवरी, फरवरी और मार्च) के साथ-साथ 2020 के बाद (अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर) के समय कम वर्षा की वजह से कम था। “खरीदार मार्च में असम चाय उत्पादन पर इतना निर्भर नहीं हैं। आगे चलकर कीमतें अप्रैल और मई में हुए उत्पादन पर निर्भर करेंगी। जहां तक मैं देखता हूं बाजार अभी भी भूखा नहीं है। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि सर्दियों के दौरान खपत उम्मीद के मुताबिक नहीं बढ़ी थी, जो तुलनात्मक रूप से गर्म थी।"
विश्व की सर्वाधिक तीखी मिर्च ने गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में नाम दर्ज किया

विश्व की सर्वाधिक तीखी मिर्च ने गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में नाम दर्ज किया

आजकल एक ही फसल की विभिन्न किस्में देश में मौजूद हैं। कृषि वैज्ञानिक एवं कृषि विशेषज्ञ निरंतर नवीन किस्मों को विकसित करने के प्रयास में जुटे रहते हैं। उसी तरह लाल मिर्च की एक किस्म भूत जोलोकिया आजकल गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज होने की वजह से चर्चा में है। सामान्यतः मिर्च का इस्तेमाल सब्जी में तीखापन लाने, महक और स्वाद को बढ़ाने हेतु किया जाता है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि नागालैंड की भूत जोलोकिया मिर्च विश्व की सर्वाधिक तीखी मिर्च मानी जाती है। दरअसल, मिर्च का नाम कान में पड़ते ही तीखेपन का स्वाद मन में आ जाता है। आमतौर पर मिर्च का उपयोग सब्जी में सलाद एवं स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है। लाल मिर्च तुलनात्मक काफी ज्यादा तीखी होती है। इसको पीसकर मसाले के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। मिर्च उपयोग से सब्जी का रंग लाल होने के साथ-साथ इसके स्वाद में भी परिवर्तन आ जाता है। आज ऐसी मिर्च के विषय में जानने का प्रयास करेंगे, जिसको विश्व की सबसे ज्यादा तीखी मिर्च के रूप में जाना जाता है। अच्छी विशेषताओं वाली यह मिर्च महिलाओं के सुरक्षा कवच का कार्य करती है।

भूत जोलोकिया मिर्च गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में हुई शामिल

भूत जोलोकिया मिर्च को दुनिया की सर्वाधिक तीखी मिर्च के रूप में जानी जाती है। इसका उत्पादन भारत के नागालैंड में किया जाता है। इसके तीखेपन स्वाद की वजह से भूत जोलोकिया मिर्च को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल है। वर्ष 2007 में इसे रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया है। नागालैंड में अधिकाँश किसान इसकी खेती किया करते हैं। साथ इसको विश्व के विभिन्न देशों में मिर्च को निर्यात किया जाता है। भारत की भूत जोलोकिया की मांग विदेशों तक से भी रहती है। यह भी पढ़ें: यहां के किसान मिर्च की खेती से हो रहे हैं मालामाल, सरकार भी कर रही है मदद

भूत जोलोकिया मिर्च कितने दिन में तैयार हो जाती है

भारत के नागालैंड की यह प्रसिद्ध भूत जोलोकिया मिर्च 75 से 90 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। अगर हम आकार की बात करें तो मिर्च की ऊंचाई 50 से 120 सेंटीमीटर तक होती है। इसका उत्पादन पहाड़ों पर काफी अच्छी तरह से होता है। सामान्य मिर्च की तुलना में लाल मिर्च लंबाई में छोटी होती है। अगर इसकी लंबाई की बात की जाए तो यह 3 सेंटीमीटर तक होती है। वहीं चौड़ाई 1 से 1. 2 सेंटीमीटर तक होती है।

भूत जोलोकिया महिलाओं की सुरक्षा करने हेतु भी काम आती है

भूत जोलोकिया की एक और सबसे बड़ी खासियत है। इसका उपयोग सुरक्षा बल एजेंसियों द्वारा आँसू गैस गोला इत्यादि उत्पाद बनाने के लिए भी किया जाता है। साथ ही, इसके तीखी होने की विशेषता के चलते इस मिर्च से स्प्रे भी तैयार की जाती है। इससे महिलाओं के साथ होने वाली बदसलूकी और छेड़खानी में संरक्षण के तौर पर उपयोग करती हैं। बतादें, कि स्प्रे से गले एवं आंखों में जलन होनी चालू हो जाती है। व्यक्ति की खांसी नहीं रुकती और बेहाल हो जाता है।
असम सरकार ने दूध उत्पादन बढ़ाने और आवारा पशुओं को कम करने की योजना तैयार की

असम सरकार ने दूध उत्पादन बढ़ाने और आवारा पशुओं को कम करने की योजना तैयार की

आज हम आपको बताने वाले हैं, सेक्स्ड सॉर्टेड सीमन के बारे में जो कि एक ऐसा प्रोसेस है, जिसके अंतर्गत लैब में शुक्राणुओं से उसके Y गुणों को अलग कर दिया जाता है। इसके उपरांत इन शुक्राणुओं को गायों और भैसों के गर्भ में डाल दिया जाता है। जैसा भारत में किसान कृषि समेत अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए पशुपालन भी किया करते हैं। देश में लाखों की तादात में ऐसे कृषक हैं, जो दूध और दूध से निर्मित उत्पादों को बेचकर अपनी आजीविका चला रहे हैं। इन किसानों की हमेशा यही कामना रहती है, कि उनकी गाय- भैंस सदैव बछिया ही पैदा करें। जिससे कि उन्हें कभी भी दूधारू पशुओं को नहीं खरीदना पड़े। घर की बछिया ही बड़ी होकर दूध प्रदान करने लगे। परंतु, हमारे चाहने से ऐसा नहीं होता है। गाय- भैंस बछिया के साथ- साथ बछड़े को भी पैदा करती हैं। हालाँकि, वर्तमान में किसानों को बछिया के जन्म को लेकर चिंतित होने की कोई आवश्यकता नहीं है। वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक को खोज निकाला है, जिससे केवल बछिया ही पैदा होंगी।

दूध उत्पादन बढ़ाने और आवारा पशुओं को कम करने की पहल

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि केवल बछिया को जन्म देने के लिए असम की सरकार द्वारा
सेक्स्ड सॉर्टेड सीमन की शुरुआत की है। असम सरकार का यह कहना है, कि इस मिशन से प्रदेश में दूध की पैदावार में इजाफा होगा। साथ ही, निराश्रित जानवरों की तादात में गिरावट आएगी। दरअसल, वर्तमान में सारे देश में ट्रैक्टर के माध्यम से खेती हो रही है। इस वजह से बछड़े को बैल नहीं बनाया जा रहा है। इस वजह से ये बछड़े बड़े होकर सड़कों पर छुट्टा आवारा घूमते हैं। इसकी वजह से बहुत बारी सड़कों पर दुर्घटना भी हो जाती है। साथ ही, ये सांड फसलों को भी चौपट कर देते हैं। अब ऐसी स्थिति में सरकार के मिशन से केवल बछिया पैदा होने से दूध का उत्पादन बढ़ने के साथ-साथ सड़कों पर आवारा मवेशियों की तादात में भी गिरावट आएगी। ये भी पढ़े: यूपी के बरेली में मौजूद भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान केंद्र संस्थान ने सरोगेसी तकनीक का सफल परीक्षण किया

असम सरकार 1.16 लाख सेक्स्ड सॉर्टेड सीमन खरीदेगी

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा की सरकार द्वारा राज्य में मादा बछड़ों की तादात बढ़ाने के लिए 1.16 लाख सेक्स्ड सॉर्टेड सीमन खरीदने की योजना तैयार की है। मुख्य बात यह है, कि CM हिमंत ने स्वयं ट्वीट कर के इसकी जानकारी साझा की है। उन्होंने कहा है, कि सरकार प्रदेश में गाय और भैसों के लिए कृत्रिम गर्भाधान की प्रक्रिया चालू करेगी। ये भी पढ़े: पशु प्रजनन की आधुनिक तकनीक (Modern Animal Breeding Technology in Hindi)

सेक्स्ड सॉर्टेड सीमन प्रक्रिया

सेक्स्ड सॉर्टेड सीमन एक ऐसी प्रक्रिया होती है, जिसके अंतर्गत लैब के अंदर शुक्राणुओं से उसके Y गुणों को अलग कर दिया जाता है। इसके पश्चात इन शुक्राणुओं को गायों एवं भैसों के गर्भ में डाल दिया जाता है। ऐसा करने से गाय एवं भैसों से पैदा होने वाले बच्चे में बछिया के जन्म की संभावना तकरीबन 90% प्रतिशत तक बढ़ जाती है।