केले की खेती की सम्पूर्ण जानकारी
आज हम केले की फसल के बारे में बात करने जा रहे हैं हमारे यूजर ने पूछा था कि केला की फसल के बारे में जानकारी दें तो पहले तो हम अपने सभी रीडर को धन्यवाद कहना चाहेंगे जिनका हमें इतना प्यार और सहयोग मिल रहा है आप सभी का दिल से धन्यवाद. केला यह ऐसी फसल है जिससे पैसे के साथ-साथ आपको तंदुरुस्ती और ऊर्जा मिलती है. हमारे शरीर के लिए जो भी विटामिन जरूरी होती हैं वह हमें केले से मिल जाती है केले का यूज़ हमारे रोजमर्रा के जीवन में भी काम आता है जैसे मिल्क से बनाना शेक,चिप्स, जैम और भी बहुत तरह की चीजें बनती हैं केले के पेड़ थैला और रस्सी भी बनती है. कहने का तात्पर्य है कि केले का हमारे जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है. केला ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल है तो इस वजह से उसकी देखरेख भी उतनी ही करनी होती है जितना केले से फायदा हो सकता है उतना ही जल्दी अगर उसकी देखरेख ढंग से ना हुई हो तो नुकसान हो सकता है इसलिए उसकी सुरक्षा भी बहुत जरूरी है चाहे वह मौसम से हो चाहे वह कीड़ों से हो. इस फसल में कीड़े भी बहुत लगते हैं इस को बचाने के लिए हमें खेत को साफ रखना चाहिए और ध्यान रहे कि इसकी फसल को ढंग से हवा और पानी की निकासी की समुचित व्यवस्था हो और केले को ज्यादा से ज्यादा फायदेमंद बनाने के लिए जरूरी है कि इसकी खेती वैज्ञानिक तकनीकी से की जाए उससे आप लोगों को फायदा के साथ-साथ उच्च गुणवत्ता की फसल मिलेगी. अगर फसल में कोई रोग नहीं होगा तो फसल अच्छी आएगी और फसल अच्छी आने पर आपको बाजार का रेट भी अच्छा मिलेगा. कोई भी फसल करने से पहले हमें अपने खेत की मिट्टी की जांच जरूर करा लेनी चाहिए उससे हमारा डबल फायदा होता है एक तो हमें बिना मतलब के कोई भी कीटनाशक और खाद नहीं डालना पड़ता ऊपर से हमारी पैदावार भी बढ़ जाती है क्योंकि जिस चीज की जरूरत हमारी मिट्टी और फसल को होती है फिर हम उसका उपचार उसी तरह से करते हैं.केले की खेती के लिए मिट्टी का चुनाव

मिट्टी का उपचार
पहले तो हमें अपने खेत की मिट्टी की जाँच करानी चाहिए उसके हिसाब से ही आगे की खाद या उपचार की व्यवस्था करानी चाहिए अगर भूमि की मिट्टी की जाँच संभव नहीं है तो नीचे लिखे तरीकें भी अपना सकते हैं. एक खाद जो सभी फसलों के लिए आवश्यक है वो केला की फसल के लिए भी बहुत उपयोगी है वो है गोबर की बनी हुई या सड़ी हुई खाद. 1. बिवेरिया बेसियान- पांच किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 250 क्विंटल गोबर की सड़ी हुई या बनी हुई खाद में मिलाकर भूमि में प्रयोग करें। यदि खेत में सूत्र कृमि की समस्या है तो पेसिलोमाईसी (जैविक फंफूद) की पांच किलोग्राम मात्रा गोबर की सड़ी हुई खाद में मिलाकर करें। 2.जड़ गाठ सूत्र कृमि केले की फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे फसल की वृद्धि रुक जाती है, एवं पौधे का पूरा पोषक तत्व नहीं मिल पाता है। खड़ी फसल नियंत्रण के लिए नीम की खली 250 ग्राम या कार्बोफ्यूरान 50 ग्राम प्रति पौधा (जड़ के पास) प्रयोग करें। 3.कीटों और बीमारियों से बचने के लिए खेत को बिल्कुल साफ सुथरा रखें, सत्रु कीटों की संख्या कम करने के लिए फसल के बीच बीच में रेडी या अरंडी के पौधे भी लगा सकते हैं। 4.मित्र जीवों की संख्य़ा बढ़ाने के लिए फूलदार वृक्ष (सूरजमुखी, गेंदा, धनिया, तिल्ली आदि) मेढ़ों के किनारे-किनारे लगा सकते हैं। 5.फसल तैयार होने की दशा में पत्ते और तनों के अवशेष खेत से हटाकर गड्ढों में दबाते रहें। फसल की लगातार निगरानी करें। 6.कीटों की संख्या कम करने के लिए पीला चिपचिपा पाष एवं लाइट ट्रैप का इस्तेमाल करें।केले की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

पोषक तत्व :
गोबर की खाद के साथ-साथ आप हरी खाद को भी इसमें मिला सकते हैं इससे आपको कम से कम रासायनिक खाद का प्रयोग करना पड़ेगा और फसल को भी पूर्ण पोषक तत्व मिल जायेंगें. हरी खाद में जैसे ढेंचा,लोबिया जैसी फलों का प्रयोग कर सकते हैं तथा 45 से 60 दिन के अंदर ही उनको रोटावेटर से जुताई करा दें. जिससे उसे जमीन में बारीक़ कण के साथ मिलने में ज्यादा समय न लगे. केले को लगाने के लिए जून और जुलाई का महीना सही होता है क्यों की उस समय बारिश का मौसम आने लगता है इससे पौधे को ज़माने में दिक्कत नहीं होती है. पौधा ज़माने के बाद अपनी बढ़वार पकड़ने लगता है. जैसा की हमने ऊपर बताया है, टिश्यू कल्चर से लगाए गए पौधों की ग्रोथ अच्छी होती है तथा वो १ साल में ही फसल देने लगते हैं. जून के महीने में केले के पौधों के लिए गड्ढे खोदकर उनमे गोबर की बनी हुई खाद डाल दें अगर दीमक की समस्या हो तो उसका विशेष ध्यान रखें और उसमे दीमक का उपचार के लिए नीम या अन्य दवा का प्रयोग करें जिससे की केले की जड़ों को कोई नुकसान न हो.केले की फसल का रखरखाब

पोषण प्रबंधन
केले की खेती में भूमि की ऊर्वरता के अनुसार प्रति पौधा 300 ग्राम नाइट्रोजन,100 ग्राम फॉस्फोरस तथा 300 ग्राम पोटाश की आवश्यकता पड़ती है। फॉस्फोरस की आधी मात्रा पौधरोपण के समय तथा शेष आधी मात्रा रोपाई के बाद देनी चाहिए। नाइट्रोजन की पूरी मात्रा पांच भागों में बांटकर अगस्त, सितम्बर, अक्टूबर तथा फरवरी एवं अप्रैल में देनी चाहिए। एक हेक्टेयर में करीब 3,700 पुतियों की रोपाई करनी चाहिए। केले के बगल में निकलने वाली पुतियों को हटाते रहें। बरसात के दिनों में पेड़ों के अगल-बगल मिट्टी चढ़ाते रहें। सितम्बर महीने में विगलन रोग तथा अक्टूबर महीने में छीग टोका रोग के बचाव के लिए प्रोपोकोनेजॉल दवाई 1.5 एमएल प्रति लीटर पानी के हिसाब से पौधों पर छिड़काव करें
26-Oct-2020